ॐ - GAJANAN MAHARAJ AMERICA DEVOTEES PARIVAR (A …...॥ जय गजानन ॥ ॥ अथ...

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जय गजानन अथ स तक वी ी दासगण वरवित ॥ ी गजानन ाथथना तोम || || || ीगणेशाय नमः || हे साा साशी | हे जगदोारा जगपती | सा हा सरगत| या लेकरा कारण ||||

Transcript of ॐ - GAJANAN MAHARAJ AMERICA DEVOTEES PARIVAR (A …...॥ जय गजानन ॥ ॥ अथ...

  • ॥ जय गजानन ॥

    ॥ अथ संतकंवी श्री दासगणूववरवित ॥

    ॥ श्री गजानन प्राथथना स्तोत्रम ्॥

    || ॐ ||

    || श्रीगणशेाय नमः ||

    ह ेसर्ााद्या सर्ाशक्ती | ह ेजगदोद्धारा जगत्पती |

    साह्य व्हार्ें सत्र्रगतत | या लेकराांकारणें ||१||

  • जें जें काही ब्रमहाांडात | तें तें तझुें रुप सत्य |

    तझु्यापढुे नाहीं खतित | कोणािीही प्रततष्ठा ||२||

    त ां तनरांजन तनराकार | त ांि अर्ध त तदगांबर |

    साकाररुप सर्ेश्वर | तर्श्वनाथ त ांि की ||३||

    जें जें काांही महणार्ें | तें तें तझु ेरुप बरर्ें |

    दासगण स आताां पार्े | हीि आह ेयािना ||४||

    त ांि काशी तर्श्वशे्वर | सोमनाथ बद्रीकेदार |

    महाांकाल ततेर् ओ ांकार | त ांि की रे त्र्यांबकेश्वरा ||५||

    भीमाशांकर मतललकाज ान | नागनाथ पार्ातीरमण |

    श्रीघषृ्णशे्वर महण न | र्रेूळगाांर्ी त ांि की ||६||

    त ांि परळी र्ैजनाथ | तनधीतटाला त ांि तथथत |

    रामेश्वर पार्ातीकाांत | सर्ा सांकट तनर्ारता ||७||

    ह ेकृपाणार्ा नारायणा | महातर्ष्णो आनांदघना |

    ह ेशषेशायी पररप णाा | नरहरर र्ामना रघपुत े||८||

    त ां र्ृांदार्नी श्रीहरी | त ां पाांडुरांग पांढरपरुीं |

    व्यांकटेश त ां तगरीर्रीं | परुीमाजीं जगन्नाथ ||९||

  • द्वारकेसी नांदनांदन | नाम दतेी तजुकारण |

    जैसें भक्ताांि ेइच्छील मन | तसैे तजु ठरतर्ती ||१०||

    आता ह ेिांद्रभागातटतर्हारा | या गजाननथतोत्रा साह्य करा |

    हेंि मागण ेपसरुतन पदा | तजु तर्ठठ्ले दासगण ||११||

    गजानन जें थर्रुप काांही | तें तझु्यातर्ण र्ेगळें नाहीं |

    दत्त भरैर् मातडं तेही | रुपें तझुीि अधोक्षजा ||१२||

    या सर्ा थर्रुपाांकारण | आदरें मी करी र्ांदन |

    माझ ेतत्रताप करा हरण | हेंि आह ेमागणें ||१३||

    हें महालक्ष्मी कुलदरे्त े| कृपाकटाक्षें लेकरातें |

    पाही दासगण तें | हीि तजुला प्राथाना ||१४||

    आताां शांकरािाया गरुुर्र | तरे्ी नाथ मतच्छांदर |

    तनर्तृ्तीदास ज्ञानेश्वर | समथा सज्जनगडीि े||१५||

    ह ेतकुारामा महासांता | तजुलागी दांडर्ता |

    कररता होई मला त्राता | नाहीं ऐस ेमहण ां नका ||१६||

    ह ेतशडीकर बाबासाई | लेकराांसाठी धाांर् घईे |

    र्ामनशास्त्री माझ ेआई | माझी उपके्षा करूां नका ||१७||

  • ह ेशगेाांर्ीच्या गजानना | महासांता आनांदघना |

    तलुा येऊां द ेकाांहीं करुणा | या अजाण दासगण िी ||१८||

    तमुहाां सर्ाा प्राथ ान | थतोत्र कररतो हें लेखन |

    माझ्या तित्तीं महण न | र्ास आपण करार्ा ||१९||

    जें जें तमुही र्दर्ाल काांही | तेंि तलहीन कागदीं पाहीं |

    थर्तांत्रता मजला नाहीं | मी पोषणा तमुिा असें ||२०||

    माघमासी सप्तमीस | र्द्यपक्षीं शगेाांर्ाांत |

    तमुही प्रगटला पणु्यपरुुष | पांथातिया माझारी ||२१||

    उष्टया पत्रार्ळी शोधन | तमुहीं केलया महण न |

    तमळालें कीं नामातभधान | तपसा तपसा ऐ ांसे तमुहा ||२२||

    उगी न र्ाढार्ी महती | महण न ऐसी केली कृती |

    तमुही साि गरुुम ती | लप न बसाया कारण े||२३||

    परर तर्िारर्ांत जे ज्ञानी | तें तमुहाांलागी पाहुनी |

    भ्रमा हातफळी दरे् नी | पाय तमुि ेर्ांतदतात ||२४||

    बांकटलाल दामोदर | ह ेदोघ ेितरु नर |

    भ्रमातें सारून द र | शरण आले तमुहाांला ||२५||

  • बांकटलालािें सदनास | तमुही रातहला काांही तदर्स |

    तथेे जानरार् दशेमखुास | मरत असताां र्ाांितर्ले ||२६||

    केर्ळ पाजतुनयाां ततथाा | आपलुया पदींि ेसमथाा |

    तजुलागीं दांडर्ता | असो आमिुा र्रिरे्र ||२७||

    ततुझया लीलातनधीिा | नि लाग ेपार सािा |

    तटटर्ींने सागारािा | अांत कसा घरे्र्ेल ? ||२८||

    तपताांबरा दऊेनी भोपळा | नालयास तमुही पाठतर्ला |

    जल तें हो आणतर्ण्याला | तहान लागली महण न ||२९||

    तपताांबरासी बजातर्ले | ओांजळीने पाणी भले |

    न पातहजे तुांर्ा भरले | या मातझया भोपळयाांत ||३०||

    जलाांत तुांबा बडुर्ार्ा | जलें प णा भरून घ्यार्ा |

    आतण तोि मला आण न द्यार्ा | याांत अांतर करूां नको ||३१||

    तुांबा बडेुल ऐसें पाणी | नव्हतें नालयालागनुी |

    तर्श्वास ठेर्ोतनया र्िनीं | ऐसें केलें तपताांबरे ||३२||

    नालयातिया जलासी | तुांबा तो लातर्ताां सरसी |

    आपोआप त्या ठायासी | भव्य खाांि पडली कीं ||३३||

  • तुांबा त्याांत भरत आला | ऐशी तझुी अगाध लीला |

    ती साि र्णाण्याला | शषेही थकेल र्ाटतें ||३४||

    सोमर्ारी प्रदोषासी | बांकटलालच्या सदनासी |

    भातर्काां आपण व्योमकेशी | तदसतसा महाराजा ||३५||

    यात नर्ल ना ततळभर | काां कीं त ांि शांकर रमार्र |

    ह ेजेर्ढे िरािर | तरे्ढे तमुहीि आहात कीं ||३६||

    तझुें थर्रुप यथातथ्य | मानर्ासी नाहीं कळत |

    महण न पडती भ्रमाांत | मायार्श होऊनी ||३७||

    प्रातःकालाि ेर्ेळीं | सांपली होती तदर्ासळी |

    जानकीराम दईेना मळुीं | तर्थतर् तमुच्या तिलमीस ||३८||

    जानकीराम सोनार | बागेसरीिा र्ैश्वानर |

    द्यार्यासी कुरकुर | करूां लागला असे कीं ||३९||

    तें अांतज्ञाानें जाण न | कौतकु दातर्लें करून |

    तिलीम तर्थतर्ाांर्ाि न | पटे तनया दातर्ली ||४०||

    सोनार तर्थतर् दणे्याला | नाहीं ऐस ेर्दला |

    महण तनया येता झाला | राग भगर्ांताकारणें ||४१||

  • तिांिर्ण ेतें सोनारािें | नासले अक्षय ततृीयेंिें |

    प्राणघातक तकडयाांि े| झालें त्याांत साम्राज्य ||४२||

    अर्घ ेटकमका पाहती | नाका पदर लातर्ती |

    एकमेका साांगती | हें तिांिर्ण ेखाऊ नका ||४३||

    मग जानकीराम महणाला | साध स तर्थतर् ना तदला |

    त्यािा हा प्रत्यय आला | धन्य धन्य हा गजानन ||४४||

    मग तात्काळ उठ न र्ेगेंसी | आला बांकट सदनासी |

    हकीकत बांकटलालासी | सर्ा केली तनर्देन ||४५||

    बांकटलालाि ेर्तशलयानें | िरण धररलें सोनारानें |

    अनन्यभार् भक्तींने | गजाननाि ेतधेर्ाां ||४६||

    गरुुराया अांतर | मऊ आपले सािार |

    तेंि काां हो केले कठोर | मजतर्षयीं समथाा ||४७||

    आताां या तििर्ण्यासी | हात लार्ा पणु्यराशी |

    त्यातर्ण मी सदनासी | न जाय येथ न ||४८||

    ऐसी त्यािी ऐक न तगरा | तिांिर्ण्यासी लातर्ले करा |

    तिांिर्णें तेि झाला झरा | अमतृािा तर्बधुहो ||४९||

  • यापरी जानकीराम शरण आला | अखरे आपलुया पदाला |

    मकुीनिांद ुकृताथा केला | खाऊन दोन कान्हर्ले ||५०||

    माधर् नामें तिांिोलीिा | ब्राह्मण एक होता सािा |

    त्यास बोध अध्यात्मािा | तमुहीि एक केलात ||५१||

    भ्राांती त्यािी उठतर्ली | प्रपांि माया तोतडली |

    मोक्ष पर्ाणी लाभली | तया माधर्ाकारणें ||५२||

    ऐसें आपलुें मतहमान | श्रेष्ठ आह ेसर्ााहून |

    पदरी असलया तर्प ल पणु्य | पाय तझु ेसाांपडती ||५३||

    र्सांत पजुेकारण | घनपाठी ब्राह्मण |

    आणतर्लेत आपण | ऐन र्ेळी तेधर्ाां ||५४||

    बांकटलालें आपणाांसी | नेलें खार्या मक्यासी |

    आपतुलया मळयासी | अतत आग्रह करूनी ||५५||

    मोहळें होती मळयाांत | मधमाशाांिी भव्य सत्य |

    तीं पटेतर्ता आगटीप्रत | उठतीं झालीं तनजलीलें ||५६||

    मधमाशासी पाहून | लोक कररती पलायन |

    भय तजर्ािें दारूण | आह ेकी प्रत्येकाला ||५७||

  • तमुही मात्र तनधााथत | बैसता झाला मळयाांत |

    मधमाशा अतोनाांत | बसलया तमुच्या अांगार्री ||५८||

    लोक दरुुन पाहती | परी न कोणािी होय छाती |

    तमुहाां सोडर्ाया गरुुम ती | मधमाशाांच्या त्रासाांत न ||५९||

    बांकटलाल द:ुखी झाला | पाहून त्या माशाांला |

    त्याांनी मात्र थोड केला | प्रयत्न तमुहा सोडतर्ण्यािा ||६०||

    काांही र्ेळ गलेयार्री | तमुहीि आज्ञा केली खरी |

    मधमाशाांस जाया दरुी | तें अर्घ्याांनी पातहले ||६१||

    आपलुया आजे्ञनसुार | मधमाशा झालया द र |

    बांकट महण ेसोनार | आणतर्तों काांटे काढार्या ||६२||

    काां कीं मधमाशाांि ेकाटे | रुतले असतील मोठें |

    त ेलप न बसती बेटे | थर्ामी अर्घ्या शररराांत ||६३||

    महण न त ेकाढार्या | सोनार आणतर्तो ये ठाया |

    आपण महणालात र्ाया | हा त्रास घऊे नका ||६४||

    योगशास्त्र येतें मला | मी योगबलें काांटयाला |

    बाहरे कातढतों त्याजला | सोना कशास पातहजे ? ||६५||

  • ऐसें र्द न कुां भक केला | तेधर्ाां की आपण भला |

    तेणें बाहरे काांटयाला | पडणें अर्श्य झाले की ||६६||

    ह ेकौतकु सर्ानंी | पातहलें त्या तठकाणी |

    जो तो मनषु्य जोडी पातण | थर्ामी आपणाांकारण े||६७||

    आपण महणाला त्यार्र | ह ेजीर्ाांनो घटकाभर |

    बैसा या र्कृ्षार्र | आताां कोणास िार् ां नका ||६८||

    सांकलप बांकटलालिा | प णा करणें आह ेसािा |

    सोहळा मका सेर्ण्यािा | तनतर्ाघ्न त्यािा होऊां द्या ||६९||

    पहा माशा उठताां क्षणी | तमुही गलेाांत पळ नी |

    सांकट येताां नाहीं कोणी | ताररता ह ेध्यानीं धरा ||७०||

    लाड , पढेे खार्यास | लोक जमती तर्शषे |

    परी साह्य सांकटास | कोणीही करीना ||७१||

    हें तत्र् ध्यानी धरा | ईश्वरासी आपलुा करा |

    महणजे सफल होय खरा | तमुिा की सांसार ||७२||

    ऐसा उपदशे भक्ताप्रती | साि केलात गरुुम तता |

    एक्या मखुें करूां तकती | मी आपलुें र्णान ||७३||

  • कृष्णाजीिें मळयाांत | दाांतभक गोसार्ी आले बहुत |

    जे होत ेसाांगत | शषु्क र्ेदाांत जगाला ||७४||

    त्या गोसाव्याांिा ब्रह्मतगरी | महांत आतणला र्ाटेर्री |

    जो जळत्या पलांगार्री | तमुहाांजर्ळ ना बैसला ||७५||

    िहूांकड न होता पटेला | तो अतनन आपण शाांत केला |

    तेणें त्या ब्रमहातगरीला | कौतकु अतत र्ाटले ||७६||

    सर्ा आतभमान सोड न | आपणाां तो आला शरण |

    अननीिें त ेअननीपण | िाांदण्यापरी केलें तमुही ||७७||

    टाकळीकर हररदासािा | घोडा अतत द्वाड सािा |

    तमुही हरतर्ला त्यािा | द्वाडपणा तो क्षणात || ७८ ||

    घोडा आज्ञेंत र्ागला | तो सर्ानंी पातहला |

    अशक्य काांही आपणाला | नाही उरलें जगाांत ||७९||

    अडगाांर् आकोली गाांर्ात | कार्ळे तशरताां भांडाऱ्यात |

    आपण पळतर्ले क्षणाांत | आज्ञा त्यासी करून ||८०||

    अज नपयंत त्या ठायी | कार्ळा ये ना एकही |

    सांत जे र्दतील काांही | खोटे होय कोठ न ? ||८१||

  • प्रखर असनुी उन्हाळा | तनजानशा काननाला |

    ऐन दपुारि ेसमयाला | कौतकु केल ेअतभनर् ||८२||

    आकोलीच्या रानाांत | सव्ह ेनांबर बार्न्नात |

    एका शषु्क गदााडाप्रत | बनतर्ली तमुही पषु्कररणी ||८३||

    भक्त आपलुा तपताांबर | कृपा होती त्यािरे्र |

    तयािाही अतधकार | थोर आपण बनतर्ला ||८४||

    ज्योतीप्रत तमळालया ज्योत | भदे काांही न तथेे उरत |

    खराि तपताांबर पणु्यर्ांत | साक्षात्कारी जाहला ||८५||

    र्ठलेलया आांब्याला | त्याांनी आणतर्ला पाला |

    कोंडोली ग्रामाला | ह ेकृत्य झालें कीं ||८६||

    भीमा अमरजा सांगमासी | क्षते्र गाणगापरुासी |

    पण ेफुटलीं टोणप्यासी | नरतसांह सरथर्ती कृपनेें ||८७||

    तेंि कृत्य कोंडोलीतें | करतर्ले तपताांबरा हातें |

    आपणिी गरुुमतुे | ह ेथर्ामी समथाा ||८८||

    र्द्य पक्षाांत माघमासी | सोमर्तीच्या पर्ाासी |

    क्षते्र ओ ांकारेश्वरासी | गलेे असताां भक्त तमुिें ||८९||

  • तथेे महानदी नमादेंत | नौका फुटली अकथमात |

    पाणी येऊां लागले आांत | नार् बडु ां लागली ||९०||

    त्या नौकें त आपण होताां | महण न नमादा लार्ी हाताां |

    फुटलेलया ठायी तत्र्ताां | ऐसा प्रभार् आपलुा हो ||९१||

    नौका काांठास लातर्ली | नमादनेें आण न भली |

    आपणाां र्ांद न गपु्त झाली | ह ेबहुताांनी पातहलें ||९२||

    त्र्यांबक पतु्र कर्रािा | आपलुा भक्त होता सािा |

    जो अभ्यास र्ैद्यकीिा | हदै्राबादी करीत असे ||९३||

    त्यािी काांदा भाकर | आपण केली गोड फार |

    पदाथा सारूतनयाां द र | इतराांनी आणलेल े||९४||

    जैसा द्वारकाधीश भगर्ान | कौरर्ाांि ेपक्र्ान्न |

    साांड तनया भक्षण | करी तर्दरु कण्याांि े||९५||

    तसैेि आपण केलें | कर्राांि ेअन्न भतक्षलें |

    खऱ्या भक्तीिें भकेुले | आपण आहा महाराजा ||९६||

    सर्ळदिा गांगाभारती | तया फुटली रक्ततपती |

    तो त्रास न तजर्ाप्रती | आला असताां आपणाकडे ||९७||

  • लोक अर्घ ेततटकारा | करूां लागलें त्यािा खरा |

    कोणी न दतेी त्यास थारा | रोगभयें करून ||९८||

    त्या गांगाभारतीस | येऊां न दतेी दशानास |

    कोणी आपलया शगेाांर्ास | ऐसी तथथती जाहली ||९९||

    लोक महणती तयाप्रत | तमसळ नकोस लोकाांत |

    त्रास न द्यार्ा यतत्कां तित ्| त ां समथाकंारणें ||१००||

    तो गोसार्ी एके तदर्शी | आला आपलया दशानासी |

    डोई ठेर्ताां पायाांसी | माररलें आपण तयाला ||१||

    थोबाड झोतडलें दोन्ही हातें | लाथ मारून कमरेंतें |

    उलथ न पातडला रथत्यातें | थुांक न त्याच्या अांगार्री ||२||

    बेडका पडताां अांगार्र | गांगाभारती हषाला फार |

    महण ेआताां होईल द र | व्याधी माझी तन:सांशय ||३||

    जो बेडका होता पडला | तोि त्याांने मलम केला |

    अर्घ्या अांगास लातर्ला | िोळिोळ नीया तनज हातें ||४||

    ऐशा रीतीं सेर्ा करीत | रातहला गोसार्ी शगेाांर्ाांत |

    तयाच्या महारोगाप्रत | आपण कीं हो तनर्तटलें ||५||

  • तमुच्या कृपतेिया पढुें | औषध काय बापडेु |

    अमतृ तेंही तफके पडे | ऐसा मतहमा अगाध ||६||

    कोणतेंही सांकट जरी | येऊन पडले भक्ताांर्री |

    तें तनजकृपनेें करीताां दरुी | आपण साि दयाळा ||७||

    सांकटीं खांड पाटलाप्रत | आपण दऊेन कृपिेा हात |

    न्यायातधशािें किरेीत | तनदोष त्यासी सोतडलें ||८||

    बाळकृष्ण रामदासी | होता बाळाप र ग्रामासी |

    त्या माघ र्द्य नर्मीसी | समथादशान घडतर्लें ||९||

    घटकें त तदसार्ा गजानन | घटकें त स यााजीपांत नांदन |

    घटकें त भजन तें गणगण | घटकें त जयजय रघरु्ीर अस े||११०||

    तणेें बाळकृष्ण घोटाळला | अखरे ओळख न आपणाांला |

    समथा महण नी नमथकार केला | काय लीला र्ान ां ती ||११||

    सांत आधकारें समान | मळुीं न तेथे अतधक न्य न |

    जैसे भक्ताांि ेइच्छी मन | तैशी रुप ेतदसती तया ||१२||

    गणशेदादा खापडे | उमरार्तीि ेगहृथथ बडे |

    कुपादृष्टीनें त्याांकडे | पातहले आपण सर्ादा ||१३||

  • या खापडयााला र्ऱ्हाड प्राांती | अनतभतषक्त राजा बोलती |

    राष्रोद्धारािी तळमळ ती | होती खापडयााकारणें ||१४||

    कोठे न आले अपयश त्याला | हा तमुच्या कृपिेा मतहमा झाला |

    बाळ गांगाधर तटळकाला | तमुहीि कृपा केलीत ||१५||

    भगर्ांतानें अजुानाला | भगर्द्गीतेिा उपदेश केला |

    ज्य गीतनेे जगाला | थक्क करून सोतडलें ||१६||

    पाथा दरे्ािा भक्त जरी | रातहला र्नर्ासाभीतरी |

    बारा र्ष ेकाांतारीं | ऐसे भागर्त साांगत े||१७||

    भगर्ांतािा र्तशला | प्रत्यक्ष अस न अजुानाला |

    र्नर्ास तो नाही िकुला | तैसेि झाले तटळकाांिें ||१८||

    सांतकृपा अस न | तशक्षा झाली दारूण |

    ब्रह्मदशेीं नेऊन | मांडालयाशीं ठेतर्लें त्या ||१९||

    श्रोतें त्याि मांडालयात | गीतारहथय केला ग्रांथ |

    जो आबालर्दृ्धाांप्रत | मान्य झाला सारखा ||१२०||

    कोलहटकरा हातें भला | आपण होता पाठतर्ला |

    भाकरीच्या प्रसादाला | मुांबईत तटळकाकारणें ||२१||

  • फळ हें त्या प्रसादािें | गीतारहथय होय सािें |

    भाष्यकार गीतेिे | ह ेसहार्े झाले की ||२२||

    पतहले शांकरािाया गरुुर्र | दसुरे रामानजुािाया थोर |

    मध्र्, र्ललभ त्यानांतर | भाष्यकार जाहलें ||२३||

    पाांिर्ी ज्ञानेश्वर माऊली | भार्ाथादीतपका तटका केली |

    जी मथतकी धारण केली | अर्घ्या ममुकु्ष ुजनाांनी ||२४||

    ज्ञानेश्वरा नांतर | एक दोन टीकाकार |

    झाले परी ना आली सर | त्याांना ज्ञानेश्वर माऊलीिी ||२५||

    र्ामनािी यथाथादीतपका | तैसाि गीताणार् दखेा |

    हहेीं ग्रांथ भातर्का | काही अांशें पटलें कीं ||२६||

    गीतिेा अथा कमापर | लार्ी बाळ गांगाधर |

    त्या तटळकाांिा अतधकार | र्ानाया मी समथा नसे ||२७||

    मागील टीका समयानसुार | अर्तरलया या भ मीर्र |

    तैसाि आह ेप्रकार | या गीतारहथयािा ||२८||

    त्या लोकमान्य तटळकाांर्री | आपण कृपा केली खरी |

    महण न तयाच्या झाला करी | गीतारहथय महाग्रांथ ||२९||

  • खामगाांर्ी डॉक्टर कर्रा | तीथा आतण अांगारा |

    आपण नेऊन तदलाांत खरा | ब्राह्मणाच्या र्ेषानें ||१३०||

    ज्यायोगें व्याधी त्यािी | समळु हरण झाली सािी |

    तमुही काळजी भक्ताांिी | अहोरात्र र्हातसाां ||३१||

    कन्या हळदी माळयािी | बायजा नामें मुांडगाांर्िी |

    ही तमुच्या कृप ेजनीिी | समता पार्ती झालीसे ||३२||

    र्रदहथत बायजातशरीं | तमुही ठेतर्ताां तनधाारी |

    ततही झाली आधकारी | केर्ळ तमुच्या कृपनेें ||३३||

    मुांडगाांर्च्या पुांडलीकाला | होता जरी प्लेग झाला |

    तो येता दशानाला | व्याधी दधुार हररली तमुही ||३४||

    सद्भक्त बाप न्याप्रती | तमुही भटेतर्ला रुतक्मणीपती |

    नाहीं अशक्य कोणती | गोष्ट आपणाांकारणें ||३५||

    एके र्ेळी आपणाला | गोपाळ बटुी घऊेन गलेा |

    भोसलयाच्या नागपरुाला | अती आग्रह करून ||३६||

    गोपाळ बुटी श्रीमांत भारी | हजारों पांक्तीं त्याांि ेघरीं |

    उठ ां लागलया र्रिरे्री | केर्ळ आपलया तप्रत्यथा ||३७||

  • इकडे शगेाांर् सनुें पडलें | प्रतेर्त ्तदस ां लागलें |

    मखुीं तेज नाहीं उरलें | मळुींि पाटील मांडळीच्या ||३८||

    शगेाांर्ीि ेपषु्कळ जन | आले नागपरुा जाऊन |

    परी न झालें दशान | समथािं ेकोणाला ||३९||

    िौक्या पहारे सभोंर्ार | कडेकोट होत ेफार |

    समथाचं्या पायाांर्र | शीर ठेर्ण ेमषु्कील झालें ||१४०||

    नागप राहून आपणाला | आणण्या हरर पाटील तनघाला |

    दहा पाांि सांगतीला | भक्त घऊेन शगेाांर्ि े||४१||

    आला तसताबडीसी | गोपाळ बटुीच्या सदनासी |

    तो तथेे दारापाशीं | तशपाई पातहले दोन िार ||४२||

    तशपायाांनी पाटलाला | जरी होता अटकार् केला |

    परी तो न त्याांनी जमुातनला | बळकळ होता महण न ||४३||

    हरी पाटील तशरला आांत | गडबड झाली तथेे बहुत |

    तमुही धार् न त्यािा हात | धररलात कीं प्रेमानें ||४४||

    जैसे र्ासरासी पाहताां | गाय धार्े पणु्यर्ांता |

    तसैेि तमुही समथाा | केलेंत घरी बटुीच्या ||४५||

  • गोपाळ बुटी धाांर्त आले | हरर पाटला तर्नतर्त ेझाले |

    पाटील माझें ऐकलें | पातहजे तमुही थोडेसें ||४६||

    भोजनोत्तर समथााला | जा घऊेन शगेाांर्ाला |

    तो आह ेभक्तीस तर्कला | शगेाांर्कराांच्या तन:सांशय ||४७||

    सर्ािं ेझालया भोजन | आपण तनघाला तथे न |

    आशीर्ााद तो दऊेन | गोपाळ बटुीच्या कुट ांबाला ||४८||

    त्या पाटील हररर्री | कृपा आपलुी अत्यांत खरी |

    श्रीकलयाणथर्ामीपरी | सेर्ेस आपलुया तत्पर जो ||४९||

    हरर पाटला कारण | थर्ामी तमुि ेद्वयिरण |

    हेंि महातनधान | जोडलें ऐसें र्ाटतसे ||१५०||

    धार कलयाणिें रांगनाथ | आले तमुहाां भटेण्याप्रत |

    गरुुराया या शेगाांर्ात | शगेाांर्ि ेभानय मोठें ||५१||

    श्रीर्ासदुरे्ानांद सरथर्ती | जे प्रत्यक्ष दत्तमतुी |

    ऐशा जगमान्य तर्भ तत | आलया आपलया दशाना ||५२||

    जरी आपण दहे ठेतर्ला | तरी पार्तसा भातर्काला |

    यािा अनभुर् रतनसाला | आला आह ेदयातनधे ||५३||

  • रामिांद्र कृष्णाजी पाटील | भक्त तमुिा प्रेमळ |

    त्यािी तमुही परुतर्ली आळ | गोसाव्याच्या रुपानें ||५४||

    तैसि बोरीबांदरार्री | जाांजळ जो का लक्ष्मण हरी |

    त्याला भटे तदली खरी | परमहांस रुपानें ||५५||

    तमुच्या लीलेच्या तो पार | कोणा न लाग ेततळभर |

    मुांगी मेरूमाांदार | आक्रमण कैशी करी ||५६||

    तटटर्ीच्यानें सागर | शोषर्ेल का सािार |

    दासगण हा लािार | आह ेसर्ा बाज न े||५७||

    आपली र्णाण्या लीला | महाकर्ीि पातहजे झाला |

    मजसारख्या घुांगरुडयाला | ते साधण ेकठीण ||५८||

    परर जो का असे पररस | तो सरु्णा करी लोखांडास |

    उरर्ी न त्याच्या ठायीं दोष | लोहपणािा येतलुा हो ||५९||

    आपलुी लीला कथतरुी | मम र्ाणी मतृत्तका खरी |

    परी मान पार्ेल भतुमर्री | सहर्ासें या कथतरुीच्या ||१६०||

    माझें भानय धन्य धन्य | महण न तमुि ेपातहले िरण |

    आताां न द्यार्े लोट न | परत दासगण ला ||६१||

  • सर्ादा साांभाळ माझा करा | दनै्यदःुखातें तनर्ारा |

    भटेर्ा मशीं शारांगधरा | भक्त बापनु्याच्यापरी ||६२||

    आपलया कृपकेरून | सानांद राहो सदा मन |

    सर्ादा घडो हररथमरण | तसैीि सांगत सज्जनाांिी ||६३||

    अव्याहत र्ारी पांढरीिी | मम करे व्हार्ी सािी |

    आर्ड सगणु भक्तीिी | तित्ता ठायीं अस ां द्या ||६४||

    अांत घडो गोदातीरीं | यातर्ण आशा नाहीं दसुरी |

    थमतृी राहो जागतृ खरी | भजन हरींिें करार्या ||६५||

    भजन कररताां मोक्ष घडो | दहे गोदातीरीं पडो |

    सद्भक्ताांसी थनेह जडो | दासगण िा सर्ादा ||६६||

    मातगतलें तें मला द्यार्े | तसैें लोकाांिहेी परुर्ार्े |

    आता गरुुर्रा मनोभार्े | जे या थतोत्रा पठतील ||६७||

    या थतोत्रािा पाठ जेथ | भार्े होईल तथे तथे |

    तथेे न राहो कदा दरुरत | इतलुेही दयाळा ||६८||

    थतोत्रपठाकाां उत्तम गती | तैशी सांतती सांपत्ती |

    धमार्ासना त्याांच्या तित्तीं | ठेर्ा जागतृ तनरांतर ||६९||

  • भ तबाधा भानामती | व्हार्ी न थतोत्र पठकाांप्रती |

    लौतकक त्यािा भ र्रती | उत्तरोत्तर र्ाढर्ार्ा ||१७०||

    हें थतोत्र ना अमतृ | होईल अर्घ्या भातर्काांप्रत |

    येईल त्यािी प्रतित | सद्भार् तो ठेतर्लया ||७१||

    मोठयानें करून गजाना | बहार्े साध गजानना |

    शगेाांर्िा योगीराणा | सर्ादा पार्ो तमुहातें ||७२||

    सद्गरुुनें तित्तास | पहा माझ्या करून र्ास |

    बोलतर्लें या थतोत्रास | तमुच्या तहताकारणें ||७३||

    यातें असत्य मानलयास | सखुािा तो होईल नाश |

    भोगीत रहाल सांकटास | र्रिरे्र अभक्तीनें ||७४||

    अभक्ती ती द र करा | गजाननासी मळुीं न तर्सरा |

    त्याच्या िरणीं भार् धरा | महणजे जन्म सफल होई ||७५||

    थतोत्र पठकाांिी आपदा | तनमेल कीं सर्ादा |

    दृढ तित्तीं धरा पदाां | गजानन साध च्या ||७६||

    र्ािें महणता गजानन | व्याधी जातील पळ न |

    जैसे व्याघ्रा पाहून | कोलह ेलाांडग ेपळती की ||७७||

  • थतोत्रपठका भ मीर्री | कोणी न राहील पहा र्ैरी |

    अखरे मोक्ष त्याच्या करी | येईल कीं तन:सांशय ||७८||

    शके अठराशें अडुसष्टाांत | श्रीक्षते्र शगेाांर्ाांत |

    समाधीपढुे मांडपाांत | रतियेलें थतोत्र पहा ||७९||

    फालग न र्द्य एकादशी | मांगळर्ार होता त्या तदर्शीं |

    थतोत्र गलेे कळसासी | गजाननाच्या कृपनेे ||१८०||

    शाांतत शाांतत तत्रर्ार शाांतत | असो या थतोत्राप्रती |

    थर्ामी गजानन गरुुम ती | आठर्ा महण ेदासगण ||१८१||

    शभुां भर्त ु|| श्रीहररहापाणमथत ु||

    || इतत सांतकां र्ी श्री दासगण तर्रतित ||

    || श्री गजानन प्राथाना थतोत्रम ्||

    || ॐ ||

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