ॐ - GAJANAN MAHARAJ AMERICA DEVOTEES PARIVAR (A …...॥ जय गजानन ॥ ॥ अथ...
Transcript of ॐ - GAJANAN MAHARAJ AMERICA DEVOTEES PARIVAR (A …...॥ जय गजानन ॥ ॥ अथ...
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॥ जय गजानन ॥
॥ अथ संतकंवी श्री दासगणूववरवित ॥
॥ श्री गजानन प्राथथना स्तोत्रम ्॥
|| ॐ ||
|| श्रीगणशेाय नमः ||
ह ेसर्ााद्या सर्ाशक्ती | ह ेजगदोद्धारा जगत्पती |
साह्य व्हार्ें सत्र्रगतत | या लेकराांकारणें ||१||
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जें जें काही ब्रमहाांडात | तें तें तझुें रुप सत्य |
तझु्यापढुे नाहीं खतित | कोणािीही प्रततष्ठा ||२||
त ां तनरांजन तनराकार | त ांि अर्ध त तदगांबर |
साकाररुप सर्ेश्वर | तर्श्वनाथ त ांि की ||३||
जें जें काांही महणार्ें | तें तें तझु ेरुप बरर्ें |
दासगण स आताां पार्े | हीि आह ेयािना ||४||
त ांि काशी तर्श्वशे्वर | सोमनाथ बद्रीकेदार |
महाांकाल ततेर् ओ ांकार | त ांि की रे त्र्यांबकेश्वरा ||५||
भीमाशांकर मतललकाज ान | नागनाथ पार्ातीरमण |
श्रीघषृ्णशे्वर महण न | र्रेूळगाांर्ी त ांि की ||६||
त ांि परळी र्ैजनाथ | तनधीतटाला त ांि तथथत |
रामेश्वर पार्ातीकाांत | सर्ा सांकट तनर्ारता ||७||
ह ेकृपाणार्ा नारायणा | महातर्ष्णो आनांदघना |
ह ेशषेशायी पररप णाा | नरहरर र्ामना रघपुत े||८||
त ां र्ृांदार्नी श्रीहरी | त ां पाांडुरांग पांढरपरुीं |
व्यांकटेश त ां तगरीर्रीं | परुीमाजीं जगन्नाथ ||९||
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द्वारकेसी नांदनांदन | नाम दतेी तजुकारण |
जैसें भक्ताांि ेइच्छील मन | तसैे तजु ठरतर्ती ||१०||
आता ह ेिांद्रभागातटतर्हारा | या गजाननथतोत्रा साह्य करा |
हेंि मागण ेपसरुतन पदा | तजु तर्ठठ्ले दासगण ||११||
गजानन जें थर्रुप काांही | तें तझु्यातर्ण र्ेगळें नाहीं |
दत्त भरैर् मातडं तेही | रुपें तझुीि अधोक्षजा ||१२||
या सर्ा थर्रुपाांकारण | आदरें मी करी र्ांदन |
माझ ेतत्रताप करा हरण | हेंि आह ेमागणें ||१३||
हें महालक्ष्मी कुलदरे्त े| कृपाकटाक्षें लेकरातें |
पाही दासगण तें | हीि तजुला प्राथाना ||१४||
आताां शांकरािाया गरुुर्र | तरे्ी नाथ मतच्छांदर |
तनर्तृ्तीदास ज्ञानेश्वर | समथा सज्जनगडीि े||१५||
ह ेतकुारामा महासांता | तजुलागी दांडर्ता |
कररता होई मला त्राता | नाहीं ऐस ेमहण ां नका ||१६||
ह ेतशडीकर बाबासाई | लेकराांसाठी धाांर् घईे |
र्ामनशास्त्री माझ ेआई | माझी उपके्षा करूां नका ||१७||
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ह ेशगेाांर्ीच्या गजानना | महासांता आनांदघना |
तलुा येऊां द ेकाांहीं करुणा | या अजाण दासगण िी ||१८||
तमुहाां सर्ाा प्राथ ान | थतोत्र कररतो हें लेखन |
माझ्या तित्तीं महण न | र्ास आपण करार्ा ||१९||
जें जें तमुही र्दर्ाल काांही | तेंि तलहीन कागदीं पाहीं |
थर्तांत्रता मजला नाहीं | मी पोषणा तमुिा असें ||२०||
माघमासी सप्तमीस | र्द्यपक्षीं शगेाांर्ाांत |
तमुही प्रगटला पणु्यपरुुष | पांथातिया माझारी ||२१||
उष्टया पत्रार्ळी शोधन | तमुहीं केलया महण न |
तमळालें कीं नामातभधान | तपसा तपसा ऐ ांसे तमुहा ||२२||
उगी न र्ाढार्ी महती | महण न ऐसी केली कृती |
तमुही साि गरुुम ती | लप न बसाया कारण े||२३||
परर तर्िारर्ांत जे ज्ञानी | तें तमुहाांलागी पाहुनी |
भ्रमा हातफळी दरे् नी | पाय तमुि ेर्ांतदतात ||२४||
बांकटलाल दामोदर | ह ेदोघ ेितरु नर |
भ्रमातें सारून द र | शरण आले तमुहाांला ||२५||
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बांकटलालािें सदनास | तमुही रातहला काांही तदर्स |
तथेे जानरार् दशेमखुास | मरत असताां र्ाांितर्ले ||२६||
केर्ळ पाजतुनयाां ततथाा | आपलुया पदींि ेसमथाा |
तजुलागीं दांडर्ता | असो आमिुा र्रिरे्र ||२७||
ततुझया लीलातनधीिा | नि लाग ेपार सािा |
तटटर्ींने सागारािा | अांत कसा घरे्र्ेल ? ||२८||
तपताांबरा दऊेनी भोपळा | नालयास तमुही पाठतर्ला |
जल तें हो आणतर्ण्याला | तहान लागली महण न ||२९||
तपताांबरासी बजातर्ले | ओांजळीने पाणी भले |
न पातहजे तुांर्ा भरले | या मातझया भोपळयाांत ||३०||
जलाांत तुांबा बडुर्ार्ा | जलें प णा भरून घ्यार्ा |
आतण तोि मला आण न द्यार्ा | याांत अांतर करूां नको ||३१||
तुांबा बडेुल ऐसें पाणी | नव्हतें नालयालागनुी |
तर्श्वास ठेर्ोतनया र्िनीं | ऐसें केलें तपताांबरे ||३२||
नालयातिया जलासी | तुांबा तो लातर्ताां सरसी |
आपोआप त्या ठायासी | भव्य खाांि पडली कीं ||३३||
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तुांबा त्याांत भरत आला | ऐशी तझुी अगाध लीला |
ती साि र्णाण्याला | शषेही थकेल र्ाटतें ||३४||
सोमर्ारी प्रदोषासी | बांकटलालच्या सदनासी |
भातर्काां आपण व्योमकेशी | तदसतसा महाराजा ||३५||
यात नर्ल ना ततळभर | काां कीं त ांि शांकर रमार्र |
ह ेजेर्ढे िरािर | तरे्ढे तमुहीि आहात कीं ||३६||
तझुें थर्रुप यथातथ्य | मानर्ासी नाहीं कळत |
महण न पडती भ्रमाांत | मायार्श होऊनी ||३७||
प्रातःकालाि ेर्ेळीं | सांपली होती तदर्ासळी |
जानकीराम दईेना मळुीं | तर्थतर् तमुच्या तिलमीस ||३८||
जानकीराम सोनार | बागेसरीिा र्ैश्वानर |
द्यार्यासी कुरकुर | करूां लागला असे कीं ||३९||
तें अांतज्ञाानें जाण न | कौतकु दातर्लें करून |
तिलीम तर्थतर्ाांर्ाि न | पटे तनया दातर्ली ||४०||
सोनार तर्थतर् दणे्याला | नाहीं ऐस ेर्दला |
महण तनया येता झाला | राग भगर्ांताकारणें ||४१||
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तिांिर्ण ेतें सोनारािें | नासले अक्षय ततृीयेंिें |
प्राणघातक तकडयाांि े| झालें त्याांत साम्राज्य ||४२||
अर्घ ेटकमका पाहती | नाका पदर लातर्ती |
एकमेका साांगती | हें तिांिर्ण ेखाऊ नका ||४३||
मग जानकीराम महणाला | साध स तर्थतर् ना तदला |
त्यािा हा प्रत्यय आला | धन्य धन्य हा गजानन ||४४||
मग तात्काळ उठ न र्ेगेंसी | आला बांकट सदनासी |
हकीकत बांकटलालासी | सर्ा केली तनर्देन ||४५||
बांकटलालाि ेर्तशलयानें | िरण धररलें सोनारानें |
अनन्यभार् भक्तींने | गजाननाि ेतधेर्ाां ||४६||
गरुुराया अांतर | मऊ आपले सािार |
तेंि काां हो केले कठोर | मजतर्षयीं समथाा ||४७||
आताां या तििर्ण्यासी | हात लार्ा पणु्यराशी |
त्यातर्ण मी सदनासी | न जाय येथ न ||४८||
ऐसी त्यािी ऐक न तगरा | तिांिर्ण्यासी लातर्ले करा |
तिांिर्णें तेि झाला झरा | अमतृािा तर्बधुहो ||४९||
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यापरी जानकीराम शरण आला | अखरे आपलुया पदाला |
मकुीनिांद ुकृताथा केला | खाऊन दोन कान्हर्ले ||५०||
माधर् नामें तिांिोलीिा | ब्राह्मण एक होता सािा |
त्यास बोध अध्यात्मािा | तमुहीि एक केलात ||५१||
भ्राांती त्यािी उठतर्ली | प्रपांि माया तोतडली |
मोक्ष पर्ाणी लाभली | तया माधर्ाकारणें ||५२||
ऐसें आपलुें मतहमान | श्रेष्ठ आह ेसर्ााहून |
पदरी असलया तर्प ल पणु्य | पाय तझु ेसाांपडती ||५३||
र्सांत पजुेकारण | घनपाठी ब्राह्मण |
आणतर्लेत आपण | ऐन र्ेळी तेधर्ाां ||५४||
बांकटलालें आपणाांसी | नेलें खार्या मक्यासी |
आपतुलया मळयासी | अतत आग्रह करूनी ||५५||
मोहळें होती मळयाांत | मधमाशाांिी भव्य सत्य |
तीं पटेतर्ता आगटीप्रत | उठतीं झालीं तनजलीलें ||५६||
मधमाशासी पाहून | लोक कररती पलायन |
भय तजर्ािें दारूण | आह ेकी प्रत्येकाला ||५७||
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तमुही मात्र तनधााथत | बैसता झाला मळयाांत |
मधमाशा अतोनाांत | बसलया तमुच्या अांगार्री ||५८||
लोक दरुुन पाहती | परी न कोणािी होय छाती |
तमुहाां सोडर्ाया गरुुम ती | मधमाशाांच्या त्रासाांत न ||५९||
बांकटलाल द:ुखी झाला | पाहून त्या माशाांला |
त्याांनी मात्र थोड केला | प्रयत्न तमुहा सोडतर्ण्यािा ||६०||
काांही र्ेळ गलेयार्री | तमुहीि आज्ञा केली खरी |
मधमाशाांस जाया दरुी | तें अर्घ्याांनी पातहले ||६१||
आपलुया आजे्ञनसुार | मधमाशा झालया द र |
बांकट महण ेसोनार | आणतर्तों काांटे काढार्या ||६२||
काां कीं मधमाशाांि ेकाटे | रुतले असतील मोठें |
त ेलप न बसती बेटे | थर्ामी अर्घ्या शररराांत ||६३||
महण न त ेकाढार्या | सोनार आणतर्तो ये ठाया |
आपण महणालात र्ाया | हा त्रास घऊे नका ||६४||
योगशास्त्र येतें मला | मी योगबलें काांटयाला |
बाहरे कातढतों त्याजला | सोना कशास पातहजे ? ||६५||
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ऐसें र्द न कुां भक केला | तेधर्ाां की आपण भला |
तेणें बाहरे काांटयाला | पडणें अर्श्य झाले की ||६६||
ह ेकौतकु सर्ानंी | पातहलें त्या तठकाणी |
जो तो मनषु्य जोडी पातण | थर्ामी आपणाांकारण े||६७||
आपण महणाला त्यार्र | ह ेजीर्ाांनो घटकाभर |
बैसा या र्कृ्षार्र | आताां कोणास िार् ां नका ||६८||
सांकलप बांकटलालिा | प णा करणें आह ेसािा |
सोहळा मका सेर्ण्यािा | तनतर्ाघ्न त्यािा होऊां द्या ||६९||
पहा माशा उठताां क्षणी | तमुही गलेाांत पळ नी |
सांकट येताां नाहीं कोणी | ताररता ह ेध्यानीं धरा ||७०||
लाड , पढेे खार्यास | लोक जमती तर्शषे |
परी साह्य सांकटास | कोणीही करीना ||७१||
हें तत्र् ध्यानी धरा | ईश्वरासी आपलुा करा |
महणजे सफल होय खरा | तमुिा की सांसार ||७२||
ऐसा उपदशे भक्ताप्रती | साि केलात गरुुम तता |
एक्या मखुें करूां तकती | मी आपलुें र्णान ||७३||
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कृष्णाजीिें मळयाांत | दाांतभक गोसार्ी आले बहुत |
जे होत ेसाांगत | शषु्क र्ेदाांत जगाला ||७४||
त्या गोसाव्याांिा ब्रह्मतगरी | महांत आतणला र्ाटेर्री |
जो जळत्या पलांगार्री | तमुहाांजर्ळ ना बैसला ||७५||
िहूांकड न होता पटेला | तो अतनन आपण शाांत केला |
तेणें त्या ब्रमहातगरीला | कौतकु अतत र्ाटले ||७६||
सर्ा आतभमान सोड न | आपणाां तो आला शरण |
अननीिें त ेअननीपण | िाांदण्यापरी केलें तमुही ||७७||
टाकळीकर हररदासािा | घोडा अतत द्वाड सािा |
तमुही हरतर्ला त्यािा | द्वाडपणा तो क्षणात || ७८ ||
घोडा आज्ञेंत र्ागला | तो सर्ानंी पातहला |
अशक्य काांही आपणाला | नाही उरलें जगाांत ||७९||
अडगाांर् आकोली गाांर्ात | कार्ळे तशरताां भांडाऱ्यात |
आपण पळतर्ले क्षणाांत | आज्ञा त्यासी करून ||८०||
अज नपयंत त्या ठायी | कार्ळा ये ना एकही |
सांत जे र्दतील काांही | खोटे होय कोठ न ? ||८१||
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प्रखर असनुी उन्हाळा | तनजानशा काननाला |
ऐन दपुारि ेसमयाला | कौतकु केल ेअतभनर् ||८२||
आकोलीच्या रानाांत | सव्ह ेनांबर बार्न्नात |
एका शषु्क गदााडाप्रत | बनतर्ली तमुही पषु्कररणी ||८३||
भक्त आपलुा तपताांबर | कृपा होती त्यािरे्र |
तयािाही अतधकार | थोर आपण बनतर्ला ||८४||
ज्योतीप्रत तमळालया ज्योत | भदे काांही न तथेे उरत |
खराि तपताांबर पणु्यर्ांत | साक्षात्कारी जाहला ||८५||
र्ठलेलया आांब्याला | त्याांनी आणतर्ला पाला |
कोंडोली ग्रामाला | ह ेकृत्य झालें कीं ||८६||
भीमा अमरजा सांगमासी | क्षते्र गाणगापरुासी |
पण ेफुटलीं टोणप्यासी | नरतसांह सरथर्ती कृपनेें ||८७||
तेंि कृत्य कोंडोलीतें | करतर्ले तपताांबरा हातें |
आपणिी गरुुमतुे | ह ेथर्ामी समथाा ||८८||
र्द्य पक्षाांत माघमासी | सोमर्तीच्या पर्ाासी |
क्षते्र ओ ांकारेश्वरासी | गलेे असताां भक्त तमुिें ||८९||
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तथेे महानदी नमादेंत | नौका फुटली अकथमात |
पाणी येऊां लागले आांत | नार् बडु ां लागली ||९०||
त्या नौकें त आपण होताां | महण न नमादा लार्ी हाताां |
फुटलेलया ठायी तत्र्ताां | ऐसा प्रभार् आपलुा हो ||९१||
नौका काांठास लातर्ली | नमादनेें आण न भली |
आपणाां र्ांद न गपु्त झाली | ह ेबहुताांनी पातहलें ||९२||
त्र्यांबक पतु्र कर्रािा | आपलुा भक्त होता सािा |
जो अभ्यास र्ैद्यकीिा | हदै्राबादी करीत असे ||९३||
त्यािी काांदा भाकर | आपण केली गोड फार |
पदाथा सारूतनयाां द र | इतराांनी आणलेल े||९४||
जैसा द्वारकाधीश भगर्ान | कौरर्ाांि ेपक्र्ान्न |
साांड तनया भक्षण | करी तर्दरु कण्याांि े||९५||
तसैेि आपण केलें | कर्राांि ेअन्न भतक्षलें |
खऱ्या भक्तीिें भकेुले | आपण आहा महाराजा ||९६||
सर्ळदिा गांगाभारती | तया फुटली रक्ततपती |
तो त्रास न तजर्ाप्रती | आला असताां आपणाकडे ||९७||
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लोक अर्घ ेततटकारा | करूां लागलें त्यािा खरा |
कोणी न दतेी त्यास थारा | रोगभयें करून ||९८||
त्या गांगाभारतीस | येऊां न दतेी दशानास |
कोणी आपलया शगेाांर्ास | ऐसी तथथती जाहली ||९९||
लोक महणती तयाप्रत | तमसळ नकोस लोकाांत |
त्रास न द्यार्ा यतत्कां तित ्| त ां समथाकंारणें ||१००||
तो गोसार्ी एके तदर्शी | आला आपलया दशानासी |
डोई ठेर्ताां पायाांसी | माररलें आपण तयाला ||१||
थोबाड झोतडलें दोन्ही हातें | लाथ मारून कमरेंतें |
उलथ न पातडला रथत्यातें | थुांक न त्याच्या अांगार्री ||२||
बेडका पडताां अांगार्र | गांगाभारती हषाला फार |
महण ेआताां होईल द र | व्याधी माझी तन:सांशय ||३||
जो बेडका होता पडला | तोि त्याांने मलम केला |
अर्घ्या अांगास लातर्ला | िोळिोळ नीया तनज हातें ||४||
ऐशा रीतीं सेर्ा करीत | रातहला गोसार्ी शगेाांर्ाांत |
तयाच्या महारोगाप्रत | आपण कीं हो तनर्तटलें ||५||
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तमुच्या कृपतेिया पढुें | औषध काय बापडेु |
अमतृ तेंही तफके पडे | ऐसा मतहमा अगाध ||६||
कोणतेंही सांकट जरी | येऊन पडले भक्ताांर्री |
तें तनजकृपनेें करीताां दरुी | आपण साि दयाळा ||७||
सांकटीं खांड पाटलाप्रत | आपण दऊेन कृपिेा हात |
न्यायातधशािें किरेीत | तनदोष त्यासी सोतडलें ||८||
बाळकृष्ण रामदासी | होता बाळाप र ग्रामासी |
त्या माघ र्द्य नर्मीसी | समथादशान घडतर्लें ||९||
घटकें त तदसार्ा गजानन | घटकें त स यााजीपांत नांदन |
घटकें त भजन तें गणगण | घटकें त जयजय रघरु्ीर अस े||११०||
तणेें बाळकृष्ण घोटाळला | अखरे ओळख न आपणाांला |
समथा महण नी नमथकार केला | काय लीला र्ान ां ती ||११||
सांत आधकारें समान | मळुीं न तेथे अतधक न्य न |
जैसे भक्ताांि ेइच्छी मन | तैशी रुप ेतदसती तया ||१२||
गणशेदादा खापडे | उमरार्तीि ेगहृथथ बडे |
कुपादृष्टीनें त्याांकडे | पातहले आपण सर्ादा ||१३||
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या खापडयााला र्ऱ्हाड प्राांती | अनतभतषक्त राजा बोलती |
राष्रोद्धारािी तळमळ ती | होती खापडयााकारणें ||१४||
कोठे न आले अपयश त्याला | हा तमुच्या कृपिेा मतहमा झाला |
बाळ गांगाधर तटळकाला | तमुहीि कृपा केलीत ||१५||
भगर्ांतानें अजुानाला | भगर्द्गीतेिा उपदेश केला |
ज्य गीतनेे जगाला | थक्क करून सोतडलें ||१६||
पाथा दरे्ािा भक्त जरी | रातहला र्नर्ासाभीतरी |
बारा र्ष ेकाांतारीं | ऐसे भागर्त साांगत े||१७||
भगर्ांतािा र्तशला | प्रत्यक्ष अस न अजुानाला |
र्नर्ास तो नाही िकुला | तैसेि झाले तटळकाांिें ||१८||
सांतकृपा अस न | तशक्षा झाली दारूण |
ब्रह्मदशेीं नेऊन | मांडालयाशीं ठेतर्लें त्या ||१९||
श्रोतें त्याि मांडालयात | गीतारहथय केला ग्रांथ |
जो आबालर्दृ्धाांप्रत | मान्य झाला सारखा ||१२०||
कोलहटकरा हातें भला | आपण होता पाठतर्ला |
भाकरीच्या प्रसादाला | मुांबईत तटळकाकारणें ||२१||
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फळ हें त्या प्रसादािें | गीतारहथय होय सािें |
भाष्यकार गीतेिे | ह ेसहार्े झाले की ||२२||
पतहले शांकरािाया गरुुर्र | दसुरे रामानजुािाया थोर |
मध्र्, र्ललभ त्यानांतर | भाष्यकार जाहलें ||२३||
पाांिर्ी ज्ञानेश्वर माऊली | भार्ाथादीतपका तटका केली |
जी मथतकी धारण केली | अर्घ्या ममुकु्ष ुजनाांनी ||२४||
ज्ञानेश्वरा नांतर | एक दोन टीकाकार |
झाले परी ना आली सर | त्याांना ज्ञानेश्वर माऊलीिी ||२५||
र्ामनािी यथाथादीतपका | तैसाि गीताणार् दखेा |
हहेीं ग्रांथ भातर्का | काही अांशें पटलें कीं ||२६||
गीतिेा अथा कमापर | लार्ी बाळ गांगाधर |
त्या तटळकाांिा अतधकार | र्ानाया मी समथा नसे ||२७||
मागील टीका समयानसुार | अर्तरलया या भ मीर्र |
तैसाि आह ेप्रकार | या गीतारहथयािा ||२८||
त्या लोकमान्य तटळकाांर्री | आपण कृपा केली खरी |
महण न तयाच्या झाला करी | गीतारहथय महाग्रांथ ||२९||
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खामगाांर्ी डॉक्टर कर्रा | तीथा आतण अांगारा |
आपण नेऊन तदलाांत खरा | ब्राह्मणाच्या र्ेषानें ||१३०||
ज्यायोगें व्याधी त्यािी | समळु हरण झाली सािी |
तमुही काळजी भक्ताांिी | अहोरात्र र्हातसाां ||३१||
कन्या हळदी माळयािी | बायजा नामें मुांडगाांर्िी |
ही तमुच्या कृप ेजनीिी | समता पार्ती झालीसे ||३२||
र्रदहथत बायजातशरीं | तमुही ठेतर्ताां तनधाारी |
ततही झाली आधकारी | केर्ळ तमुच्या कृपनेें ||३३||
मुांडगाांर्च्या पुांडलीकाला | होता जरी प्लेग झाला |
तो येता दशानाला | व्याधी दधुार हररली तमुही ||३४||
सद्भक्त बाप न्याप्रती | तमुही भटेतर्ला रुतक्मणीपती |
नाहीं अशक्य कोणती | गोष्ट आपणाांकारणें ||३५||
एके र्ेळी आपणाला | गोपाळ बटुी घऊेन गलेा |
भोसलयाच्या नागपरुाला | अती आग्रह करून ||३६||
गोपाळ बुटी श्रीमांत भारी | हजारों पांक्तीं त्याांि ेघरीं |
उठ ां लागलया र्रिरे्री | केर्ळ आपलया तप्रत्यथा ||३७||
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इकडे शगेाांर् सनुें पडलें | प्रतेर्त ्तदस ां लागलें |
मखुीं तेज नाहीं उरलें | मळुींि पाटील मांडळीच्या ||३८||
शगेाांर्ीि ेपषु्कळ जन | आले नागपरुा जाऊन |
परी न झालें दशान | समथािं ेकोणाला ||३९||
िौक्या पहारे सभोंर्ार | कडेकोट होत ेफार |
समथाचं्या पायाांर्र | शीर ठेर्ण ेमषु्कील झालें ||१४०||
नागप राहून आपणाला | आणण्या हरर पाटील तनघाला |
दहा पाांि सांगतीला | भक्त घऊेन शगेाांर्ि े||४१||
आला तसताबडीसी | गोपाळ बटुीच्या सदनासी |
तो तथेे दारापाशीं | तशपाई पातहले दोन िार ||४२||
तशपायाांनी पाटलाला | जरी होता अटकार् केला |
परी तो न त्याांनी जमुातनला | बळकळ होता महण न ||४३||
हरी पाटील तशरला आांत | गडबड झाली तथेे बहुत |
तमुही धार् न त्यािा हात | धररलात कीं प्रेमानें ||४४||
जैसे र्ासरासी पाहताां | गाय धार्े पणु्यर्ांता |
तसैेि तमुही समथाा | केलेंत घरी बटुीच्या ||४५||
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गोपाळ बुटी धाांर्त आले | हरर पाटला तर्नतर्त ेझाले |
पाटील माझें ऐकलें | पातहजे तमुही थोडेसें ||४६||
भोजनोत्तर समथााला | जा घऊेन शगेाांर्ाला |
तो आह ेभक्तीस तर्कला | शगेाांर्कराांच्या तन:सांशय ||४७||
सर्ािं ेझालया भोजन | आपण तनघाला तथे न |
आशीर्ााद तो दऊेन | गोपाळ बटुीच्या कुट ांबाला ||४८||
त्या पाटील हररर्री | कृपा आपलुी अत्यांत खरी |
श्रीकलयाणथर्ामीपरी | सेर्ेस आपलुया तत्पर जो ||४९||
हरर पाटला कारण | थर्ामी तमुि ेद्वयिरण |
हेंि महातनधान | जोडलें ऐसें र्ाटतसे ||१५०||
धार कलयाणिें रांगनाथ | आले तमुहाां भटेण्याप्रत |
गरुुराया या शेगाांर्ात | शगेाांर्ि ेभानय मोठें ||५१||
श्रीर्ासदुरे्ानांद सरथर्ती | जे प्रत्यक्ष दत्तमतुी |
ऐशा जगमान्य तर्भ तत | आलया आपलया दशाना ||५२||
जरी आपण दहे ठेतर्ला | तरी पार्तसा भातर्काला |
यािा अनभुर् रतनसाला | आला आह ेदयातनधे ||५३||
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रामिांद्र कृष्णाजी पाटील | भक्त तमुिा प्रेमळ |
त्यािी तमुही परुतर्ली आळ | गोसाव्याच्या रुपानें ||५४||
तैसि बोरीबांदरार्री | जाांजळ जो का लक्ष्मण हरी |
त्याला भटे तदली खरी | परमहांस रुपानें ||५५||
तमुच्या लीलेच्या तो पार | कोणा न लाग ेततळभर |
मुांगी मेरूमाांदार | आक्रमण कैशी करी ||५६||
तटटर्ीच्यानें सागर | शोषर्ेल का सािार |
दासगण हा लािार | आह ेसर्ा बाज न े||५७||
आपली र्णाण्या लीला | महाकर्ीि पातहजे झाला |
मजसारख्या घुांगरुडयाला | ते साधण ेकठीण ||५८||
परर जो का असे पररस | तो सरु्णा करी लोखांडास |
उरर्ी न त्याच्या ठायीं दोष | लोहपणािा येतलुा हो ||५९||
आपलुी लीला कथतरुी | मम र्ाणी मतृत्तका खरी |
परी मान पार्ेल भतुमर्री | सहर्ासें या कथतरुीच्या ||१६०||
माझें भानय धन्य धन्य | महण न तमुि ेपातहले िरण |
आताां न द्यार्े लोट न | परत दासगण ला ||६१||
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सर्ादा साांभाळ माझा करा | दनै्यदःुखातें तनर्ारा |
भटेर्ा मशीं शारांगधरा | भक्त बापनु्याच्यापरी ||६२||
आपलया कृपकेरून | सानांद राहो सदा मन |
सर्ादा घडो हररथमरण | तसैीि सांगत सज्जनाांिी ||६३||
अव्याहत र्ारी पांढरीिी | मम करे व्हार्ी सािी |
आर्ड सगणु भक्तीिी | तित्ता ठायीं अस ां द्या ||६४||
अांत घडो गोदातीरीं | यातर्ण आशा नाहीं दसुरी |
थमतृी राहो जागतृ खरी | भजन हरींिें करार्या ||६५||
भजन कररताां मोक्ष घडो | दहे गोदातीरीं पडो |
सद्भक्ताांसी थनेह जडो | दासगण िा सर्ादा ||६६||
मातगतलें तें मला द्यार्े | तसैें लोकाांिहेी परुर्ार्े |
आता गरुुर्रा मनोभार्े | जे या थतोत्रा पठतील ||६७||
या थतोत्रािा पाठ जेथ | भार्े होईल तथे तथे |
तथेे न राहो कदा दरुरत | इतलुेही दयाळा ||६८||
थतोत्रपठाकाां उत्तम गती | तैशी सांतती सांपत्ती |
धमार्ासना त्याांच्या तित्तीं | ठेर्ा जागतृ तनरांतर ||६९||
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भ तबाधा भानामती | व्हार्ी न थतोत्र पठकाांप्रती |
लौतकक त्यािा भ र्रती | उत्तरोत्तर र्ाढर्ार्ा ||१७०||
हें थतोत्र ना अमतृ | होईल अर्घ्या भातर्काांप्रत |
येईल त्यािी प्रतित | सद्भार् तो ठेतर्लया ||७१||
मोठयानें करून गजाना | बहार्े साध गजानना |
शगेाांर्िा योगीराणा | सर्ादा पार्ो तमुहातें ||७२||
सद्गरुुनें तित्तास | पहा माझ्या करून र्ास |
बोलतर्लें या थतोत्रास | तमुच्या तहताकारणें ||७३||
यातें असत्य मानलयास | सखुािा तो होईल नाश |
भोगीत रहाल सांकटास | र्रिरे्र अभक्तीनें ||७४||
अभक्ती ती द र करा | गजाननासी मळुीं न तर्सरा |
त्याच्या िरणीं भार् धरा | महणजे जन्म सफल होई ||७५||
थतोत्र पठकाांिी आपदा | तनमेल कीं सर्ादा |
दृढ तित्तीं धरा पदाां | गजानन साध च्या ||७६||
र्ािें महणता गजानन | व्याधी जातील पळ न |
जैसे व्याघ्रा पाहून | कोलह ेलाांडग ेपळती की ||७७||
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थतोत्रपठका भ मीर्री | कोणी न राहील पहा र्ैरी |
अखरे मोक्ष त्याच्या करी | येईल कीं तन:सांशय ||७८||
शके अठराशें अडुसष्टाांत | श्रीक्षते्र शगेाांर्ाांत |
समाधीपढुे मांडपाांत | रतियेलें थतोत्र पहा ||७९||
फालग न र्द्य एकादशी | मांगळर्ार होता त्या तदर्शीं |
थतोत्र गलेे कळसासी | गजाननाच्या कृपनेे ||१८०||
शाांतत शाांतत तत्रर्ार शाांतत | असो या थतोत्राप्रती |
थर्ामी गजानन गरुुम ती | आठर्ा महण ेदासगण ||१८१||
शभुां भर्त ु|| श्रीहररहापाणमथत ु||
|| इतत सांतकां र्ी श्री दासगण तर्रतित ||
|| श्री गजानन प्राथाना थतोत्रम ्||
|| ॐ ||
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