श्री चैतन्म चरयताभतृbveducationalservices.com/Sri Caitanya...

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ी चैतम चरयताभ के ददम अभ त का हभ सदैव आवादन कयगे औय ी चैतम भहाबु के चयणकभर भ हभ सदैव यहगे Bhaktivedanta Educational Services (In the service of Srila Prabhupada) www.bveducationalservices.com

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  • श्री चतैन्म चरयताभतृ

    के ददव्म अभतृ का हभ सदैव आस्वादन कयेंग े

    औय श्री चैतन्म भहाप्रब ुके चयणकभरों भें हभ सदैव यहेंगे

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    आदि ऱीऱा

    अध्याय १ परू्ण परुुषोत्तम भगवान श्री चतैन्य महाप्रभ ु

    आदद १.१ - भैं उन सभस्त गुरुओॊ, बगवद्भक्तों, बगवान के अवतायों एवॊ शक्क्तमों औय स्वमॊ आदद बगवान श्री चतैन्म भहाप्रबु को सादय नभस्काय कयता ह ॉ.

    आदद १.२ - श्री चतैन्म भहाप्रबु की जम हो! श्री ननत्मानॊद प्रब ुकी जम हो! श्री अद्वैत आचामय की जम हो! श्री चतैन्म भहाप्रबु के सभस्त बक्तों की जम हो!

    आदद १.४ - पऩघरे हुए सोने के सभान अनतशम प्रकाशशत-रूऩ भें श्रीभती शचीदेवी के ऩुत्र श्री चतैन्म भहाप्रबु सवायत कृऩारु रूऩ भें इस कशरमुग भें अवतरयत हुए हैं. वे अऩने अहैतकुी कृऩा से उस सवोत्कृष्ट भाधमुय प्रेभ सॊऩ णय पवश्व को प्रदान कयने के शरए अवतरयत हुए हैं जो ककसी बी अवताय ने प्रदान नह ॊ ककमा था. वे ऩ णय ऩुरुषोत्तभ बगवान श्री चतैन्म भहाप्रबु सदा आऩके रृदम भें पवयाजभान हों.

    आदद १.५ – श्री याधधका औय कृष्ण एक हैं औय अशबन्न हैं ककॊ तु वे शाश्वत कार से दो ददव्म रूऩ भें प्रकट हैं. अबी वे श्री चतैन्म भहाप्रबु के रूऩ भें ऩुन् एक हो गमे हैं. भैं उन श्री चतैन्म भहाप्रब ुको सादय नभस्काय कयता ह ॉ. श्री चतैन्म भहाप्रब ु साऺात कृष्ण हैं जो श्रीयाधाबाव रेकय प्रकट हुए हैं.

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    आदद १.६ – ऩ णय ऩुरुषोत्तभ बगवान श्रीकृष्ण इन तीन पवषमों का स्वमॊ आस्वादन कयने के शरए ह श्रीयाधाबाव रेकय श्री चतैन्म भहाप्रबु के रूऩ भें प्रकट हुए हैं.

    (१) श्रीभती याधायानी, भेये प्रनत अगाध प्रेभ के कायण, भेये से बी कयोड़ों गुना अधधक आनॊद का अनुबव कयती हैं.

    (२) भेया भाधमुय अद्भतु, अनॊत औय ऩ णय है. केवर श्री याधधका अऩने ददव्म प्रेभ के फर से इसका ननयॊतय आस्वादन कयते यहती हैं.

    (३) भेये से गोपऩमों का ददव्म पवशुद्ध औय ननष्करॊक सॊफन्ध बत्सनाय से ऩये है.

    इन पवषमों का स्वमॊ आस्वादन कयने के शरए ह ऩ णय ऩुरुषोत्तभ बगवान श्रीकृष्ण श्रीभती शचीदेवी के गबय से श्री चतैन्म भहाप्रबु के रूऩ भें प्रकट हुए हैं जैसे चॊद्रभा सभुद्र से प्रकट होता है.

    [तात्ऩमय: जो बक्त इन तीन ददव्म गहये पवषमों का सहाया रेकय कृष्ण के अद्भतु एवॊ अनॊत भधयुता का अनुबव कयते हैं औय अस्वादन कयते यहते हैं, वे आसानी से बौनतक सुख के आस्वादन कयने की फद्ध अवस्था से फच जाते हैं.

    ऩयॊतु फद्ध अवस्था भें जीव केवर बौनतक वस्तुओॊ के सॊफन्धों का ह अनुबव कयते हैं औय उसका ह आस्वादन कयते यहते हैं; उदायणाथय अऩने घय, सॊऩक्त्त, इत्मादद. इस तयह वह सदैव बौनतक शोषण कामय भें बाग रेते यहते हैं औय उनकी प्रनतकिमा के कायण दु् ख बोगते

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    यहते हैं. जफ वह पवशुद्ध बक्तों की कृऩा से कृष्ण के सॊफन्ध भें आत ेहैं तफ वह शाश्वत आनॊद जीवन प्राप्त कयते हैं.]

    आदद १.८५, ८७ - ऩ णय ऩुरुषोत्तभ बगवान श्रीकृष्ण औय श्रीफरयाभ स मय औय चॊद्रभा से बी कयोड़ों गुना अधधक तेजवान हैं. वे ५००० वषय ऩ वय वनृ्दावन भें प्रकट हुए थे, अबी पवश्व की ऩनतत अवस्था देखकय अनुकम्ऩावश गौड़देश के क्षऺनतज ऩय श्री चतैन्म भहाप्रबु औय ननत्मानॊद प्रबु के रूऩ भें प्रकट हुए हैं. श्री चतैन्म भहाप्रबु औय ननत्मानॊद प्रबु के आपवबायव से सॊऩ णय पवश्व आनॊददत हो गमा है.

    आदद १.८७ - क्जन्हें नॊद भहायाज के ऩुत्र के रूऩ भें श्रीभद् बागवत वणयन कयते हैं, वे स्वमॊ इस ऩथृ्वी ऩय श्री चतैन्म भहाप्रब ुके रूऩ भें अवतरयत हुए हैं.

    आदद १.११० - श्री रूऩ औय श्री यघुनाथ के चयणकभरों भें सदैव प्राथयना कयते हुए उनकी कृऩा की काभना कयते हुए औय उनके ऩदधचन्हों का अनुसयण कयते हुए भैं कृष्णदास श्री चतैन्म चरयताभतृ का वणयन कय यहा ह ॉ.

    हये कृष्ण हये कृष्ण कृष्ण कृष्ण हये हये हये याभ हये याभ याभ याभ हये हये

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    अध्याय ३ श्री चतैन्य महाप्रभ ुके प्राकट्य के बाह्य कारर् आदद ३.१ - भैं उन श्री चतैन्म भहाप्रबु को सादय नभस्काय कयता ह ॉ. उनके चयणकभरों की शयण के प्रबाव से भ खय से भ खय व्मक्क्त बी प्राभाणणक शास्त्रों की खानों भें से ननणायमक सत्म रूऩी भ ल्मवान यत्नों को एकत्र कय सकता है.

    आदद ३.२ - श्री चतैन्म भहाप्रबु की जम हो! श्री ननत्मानॊद प्रब ुकी जम हो! श्री अद्वैत आचामय की जम हो! श्री चतैन्म भहाप्रबु के सभस्त बक्तों की जम हो!

    आदद ३.११ - मदद कोई बगवान के साथ ननम्नशरणखत चाय पप्रम सॊफन्धों का सदैव आस्वादन कयत े हैं, बगवान श्रीकृष्ण तुयन्त ह उनके वश भें हो जाते हैं.

    बगवान के साथ दास्म बाव भें सॊफन्ध अथायत पप्रम सेवक के बाव भें सॊफन्ध (दास्म प्रेभ)

    बगवान के साथ सख्म बाव भें सॊफन्ध अथायत एक शभत्र के बाव भें सॊफन्ध (सख्म प्रेभ)

    बगवान के साथ वात्सल्म बाव भें सॊफन्ध अथायत भाता-पऩता के बाव भें सॊफन्ध (वात्सल्म प्रेभ)

    बगवान के साथ भाधमुय बाव भें सॊफन्ध अथायत एक प्रेभी के बाव भें सॊफन्ध (भाधमुय प्रेभ मा दाॊऩत्म प्रेभ)

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    आदद ३.५, ६ - आध्माक्त्भक जगत भें सबी बक्तगण बगवान के प्रेभभम सॊफन्ध भें सदैव भग्न होकय ददव्म आनॊद का आस्वादन कयते हैं. वे सफ बगवान के साथ, ब्रह्भाजी के एक ददन भें एक ह फाय, इस जगत भें अवतरयत होकय सबी जीवों के कल्माण के शरए उस प्रेभभम सॊफन्धों को अथायत अनन्म प्रेभभमी बक्क्त को ददव्म र राओॊ के भाध्मभ से प्रकट कयत ेहैं.

    [तात्ऩमय: ब्रह्भाजी का एक ददन भतरफ हभाये शरए ४३२ कोदट वषय है औय उनका यात बी इतना ह है. अथायत ८६४ कोदट वषय भें एक ह फाय बगवान श्रीकृष्ण इस जगत भें अवतरयत होकय अऩनी अनन्म प्रेभभमी बक्क्त को प्रकट कयते हैं.]

    आदद ३.१३ – इस तयह केवर ५००० वषय ऩ वय बगवान श्रीकृष्ण औय उनके पप्रम बक्त इस जगत भें वनृ्दावन धाभ भें अवतरयत होकय अऩनी अनन्म प्रेभभमी बक्क्त को प्रकट ककमे हैं. अॊत भें अऩने धाभ गोरोक वनृ्दावन रौटने के फाद, वे अऩनी अहैतुकी कृऩा से ऩुन् इस ऩथृ्वी ऩय श्री चनै्तान्म भहाप्रबु के रूऩ भें अवतरयत होकय ऩहरे प्रकट ककमा हुआ उस अनन्म प्रेभभमी बक्क्त को सॊऩ णय पवश्व भें पवतयण कयने के शरए पवचाय ककमे.

    आदद ३.१४ - “द घय कार से भैंने बौनतक जगत के ननवाशसमों को भेय अनन्म प्रेभभमी बक्क्त का पवतयण नह ॊ ककमा था. ऐसी अनन्म प्रेभभमी बक्क्त के बफना इस बौनतक जगत का अक्स्तत्व व्मथय है.”

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    आदद ३.१५ – “साभान्मत् रोग शास्त्रों के पवधी-पवधानों के अनुसाय भेय वैधध बक्क्त कयत ेहैं ककॊ तु ऐसी वैधध बक्क्त कयने से वनृ्दावन ननवाशसमों के सभान अनन्म प्रेभबाव को प्राप्त नह ॊ ककमा जा सकता है.”

    [तात्ऩमय: साभान्मत् इस जगत भें ज्मादातय रोग अऩने बौनतक उन्ननत के शरए ननमशभत रूऩ से बक्क्त कयते हैं. ऩयॊत ु वास्तपवक रूऩ भें बक्क्त का भतरफ यागानुग बक्क्त है अथायत व्रजवाशसमों जैसी बगवान के प्रनत अगननत आसक्क्त; मह अनन्म प्रेभभमी बक्क्त है.]

    आदद ३.१६ – “सॊऩ णय जगत भेये ऐश्वमय को जानत े हुए आदय एवॊ सम्भान की बावना भें वैधध बक्क्त कयते हैं ककॊ त ुआदय एवॊ सम्भान से शशधथर हुई वैधध बक्क्त भुझ ेआकृष्ट नह ॊ कयती.”

    आदद ३.१७ - “वैधध बक्क्त कयने स ेभनुष्म केवर चाय प्रकाय की भुक्क्त प्राप्त कय सकत े हैं औय वैकुण्ठ जा सकते हैं ककॊ तु भेय प्रेभभमी बक्क्त कयने से भेये भाधमुय धाभ गोरोक वनृ्दावन को प्राप्त कय सकते हैं.”

    आदद ३.१९ - “अतएव भैं मुगधभय हय नाभ सॊकीतयन का स्वमॊ प्रनतष्ठाऩन करूॉ गा औय उसके भाध्मभ से इस जगत को भेय अनन्म प्रेभभमी बक्क्त की अनुब नत कयवाकय बावपवबोय होकय नतृ्म कयने को प्रवतृ्त करूॉ गा.”

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    आदद ३.२० - “बक्त की ब शभका भैं स्वमॊ स्वीकाय करूॉ गा औय भेय अनन्म प्रेभभमी बक्क्त का अभ्मास भैं स्वमॊ करूॉ गा. इस तयह भैं सॊऩ णय पवश्व को भेय अनन्म प्रेभभमी बक्क्त का शशऺण प्रधान करुॉ गा.”

    आदद ३.२६ - “प्रत्मेक मुग भें मुगधभय की स्थाऩना भेये अॊश कयते हैं ककॊ तु भेय अनन्म प्रेभभमी बक्क्त की स्थाऩना भैं स्वमॊ ह कय सकता ह ॉ.”

    आदद ३.२९ - इस तयह सोचते हुए ऩ णय ऩुरुषोत्तभ बगवान श्रीकृष्ण, हय नाभ सॊकीतयन के भाध्मभ से सॊऩ णय पवश्व को अऩनी अनन्म प्रेभभमी बक्क्त प्रदान कयने के शरए गौड़देश के क्षऺनतज ऩय श्री चतैन्म भहाप्रबु के रूऩ भें अवतरयत हुए हैं.

    आदद ३.११४ - श्री रूऩ औय श्री यघुनाथ के चयणकभरों भें सदैव प्राथयना कयते हुए उनकी कृऩा की काभना कयते हुए औय उनके ऩदधचन्हों का अनुसयण कयते हुए भैं कृष्णदास श्री चतैन्म चरयताभतृ का वणयन कय यहा ह ॉ.

    हये कृष्ण हये कृष्ण कृष्ण कृष्ण हये हये हये याभ हये याभ याभ याभ हये हये

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    आदि ऱीऱा

    अध्याय ४ श्री चतैन्य महाप्रभ ुके प्राकट्य के गुह्य कारर्

    आदद ४.२ - श्री चतैन्म भहाप्रबु की जम हो ! श्री ननत्मानॊद प्रबु की जम हो ! श्री अद्वैत आचामय की जम हो ! श्री चतैन्म भहाप्रबु के सभस्त बक्तों की जम हो !

    आदद ४.५, ६ - हय नाभ सॊकीतयन के भाध्मभ से अनन्म बक्क्त प्रदान कयने के शरए ह श्री चैतन्म भहाप्रबु अवतरयत हुए हैं. मद्मपऩ मह सत्म है ककॊ त ुमह तो बगवान के अवताय का फाह्म कायण है. उनके अवताय का औय अन्म गुह्म कायण बी है, कृऩमा सनुें.

    आदद ४.१०४ - मह गुह्म कायण तीन प्रकाय के है क्जसको स्वरुऩ दाभोदय गोस्वाभी न े प्रकट ककमा है जो श्री चतैन्म भहाप्रबु के ननकटतभ ऩाषयद हैं.

    आदद ४.१२६, १३६ - “श्रीभती याधायानी भेये प्रनत अगाध प्रेभ के कायण भेये से बी कयोड़ों गुना अधधक आनॊद का अनुबव कयती हैं”. इस तयह सोचत े हुए ऩ णय ऩुरुषोत्तभ बगवान श्रीकृष्ण उस प्रेभ का स्वमॊ आस्वादन कयने के शरए अत्मधधक उत्सुक थे औय उनकी मह इच्छा अक्ग्न के सभान प्रज्ज्वशरत होने रगी. मह उनकी प्रथभ इच्छा है अबी कृऩमा द सय इच्छा के फाये भें सुनें.

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    आदद ४.१३८ - अऩनी खुद की भधयुता को देखकय बगवान श्रीकृष्ण इस तयह पवचाय कयने रगे, “भेया भाधमुय अद्भतु, अनॊत औय ऩ णय है. तीनों रोकों भें कोई इसकी सीभा नह ॊ ऩा सकता है. केवर श्री याधधका अऩन ेददव्म प्रेभ के फर से इसका ननयॊतय आस्वादन कयती यहती हैं.”

    आदद ४.१४३ - “भेया भाधमुय ददन-प्रनतददन नवीन होता यहता है. बक्तगण अऩने अऩने प्रेभ के फर से उसका आस्वादन कयते हैं.”

    आदद ४.१४९ - “जो व्मक्क्त उस भधयुता का ननयॊतय ऩान कयत ेहैं उनकी तषृ्णा कबी बी नह ॊ फुझती, फक्ल्क ननयॊतय फढ़ती यहती है.”

    आदद ४.१५०, १५१ - ऐसा व्मक्क्त अतपृ्त होने के कायण ब्रह्भाजी की ननॊदा कयन े रगता है, “उन्हें ठीक से सजृन करा आती है मा व ेननऩट अनुबवदहन हैं? उन्होंने कृष्ण के सौंदमय को देखने के शरए कयोड़ों आॉखें क्मों नह ॊ द . उन्होंने केवर दो आॉखें द औय वे बी ऩरक झऩकती यहती है.”

    आदद ४.१५४ - नेत्रों के शरए कृष्ण के दशयन के अनतरयक्त अन्म कोई ऩ णयता नह ॊ है. जो बी उनका दशयन ऩात े हैं वे सचभुच ऩयभ बाग्मशार हैं.

    आदद ४.१५५ - गोपऩमों न ेकहा, “हे सणखमों! जो आॉखें नॊद भहायाज के ऩुत्रों के सुॊदय भुखों का दशयन कयती हैं ननश्चम ह बाग्मशार हैं. मे दोनों, कृष्ण औय फरयाभ, जफ अऩने सखाओॊ के साथ गामों को

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    रेकय वन भें प्रवेश कयते हैं तफ व ेअऩनी फाॉसुरयमाॉ को अऩने होंठों ऩय यखत े हुए वनृ्दावन ननवाशसमों की ओय प्रेभऩ वयक दृक्ष्टऩात कयत ेहैं. हभाये पवचाय से क्जनके ऩास आॉखें हैं उनके शरए इससे फढ़कय अन्म कोई दशयनीम वस्तु नह ॊ है.”

    आदद ४.१५६ - भथयुा की क्स्त्रमों ने कहा, “न जाने गोपऩमों ने कौन सा तऩ ककमा है? वे अऩनी आॉखों से कृष्ण के अभतृभम स्वरुऩ का ननयॊतय ऩान कयती हैं जो रावण्म का साय है क्जसके फयाफय मा फढ़कय औय कुछ नह ॊ है. मह रावण्म - मश, सौन्दमय औय सवय ऐश्वमय का एकभात्र ननवास स्थान है. मह रावण्म सॊऩ णय औय ननत्म नवीन है औय अनत दरुयब है.”

    आदद ४.१५८, १५९ – ऩ णय ऩुरुषोत्तभ बगवान श्रीकृष्ण की भधयुता इतनी है कक स्वमॊ उन्हें ह आकपषयत कयती है. मदद वे उस भधयुता का आस्वादन कयने का उऩाम सोचते हैं तो श्री याधधका के स्थान के शरए रारानमत हो जात ेहैं. मह उनकी द्पवतीम इच्छा है. अबी भैं तीसय इच्छा का वणयन कयता ह ॉ, कृऩमा ध्मान स ेसुनें.

    आदद ४.१६२ - गोपऩमों का पवशुद्ध औय ननश्करॊक ददव्म कृष्णसॊफन्ध को ‘अनत रूढ़ बाव’ कहते है.

    आदद ४.१६४, १६५ - क्जस प्रकाय रोहे औय सोने के रऺण अरग अरग होत ेहैं उसी प्रकाय काभ औय प्रेभ के रऺण अरग अरग होत े

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    हैं. अऩनी खदु की सॊतकु्ष्ट के शरए इच्छा कयना ‘काभ’ है ऩयॊत ुबगवान की ददव्म सॊतुक्ष्ट के शरए इच्छा कयना ‘प्रेभ’ है.

    आदद ४.१६७, १६९ - साभाक्जक रज्जा, कभयकाण्डीक पवधध ननमभ, वणायश्रभ धभय का भागय, शाय रयक सुख दु् ख, इत्मादद - इन सफको छोड़ ऩाना अत्मॊत कदठन है. गोपऩमों ने इन सफको तुच्छ सभझकय त्माग ददमा औय अऩने ऩरयजनों के दण्ड औय पटकाय को बी सहन ककमा. उन्होंने बगवान की प्रेभभमी अहैतुकी सवेा के शरए ह इन साये कष्टों को सहन ककमा.

    आदद ४.१७७ से १८० – ऩ णय ऩुरुषोत्तभ बगवान श्रीकृष्ण ऐसा वचन ददमा हैं कक उनके बक्तों की प्रेभभमी अहैतुकी सेवा के अनुसाय ननक्श्चत ह वे उनके साथ आदान प्रदान कयेंगे. ककॊ तु गोपऩमों की प्रेभभमी अहैतुकी सेवा से वह प्रनतऻा बॊग हो चकुी है. बगवान श्रीकृष्ण खदु इसको स्वीकाय ककमे हैं, “हे गोपऩमों, तुभ रोगों का भेये से सॊफन्ध बत्सनाय से ऩये है, पवशुद्ध एवॊ ननष्करॊक है. तुभ रोगों ने भेय प्रेभभमी अहैतुकी सवेा के शरए साये ऩारयवारयक फॊधनों को तोड़ ददमा. तुम्हाय इस अहैतुकी सेवा का कजय, ब्रह्भा के कार भें बी, भैं नह ॊ चकुा सकता.”

    आदद ४.२१४ - सबी गोपऩमों से श्रीभती याधायानी सवयशे्रष्ठ हैं. वे सदगुण, सौंदमय, सौबाग्म औय कृष्णप्रेभ भें सवयशे्रष्ठ हैं.

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    आदद ४.२२०, २२५ - क्जस कृष्णप्रेभ का गोपऩमाॉ औय श्रीभती याधायानी आस्वादन कयती हैं उस कृष्णप्रेभ का स्वमॊ आस्वादन कयने के शरए ह ऩ णय ऩुरुषोत्तभ बगवान श्रीकृष्ण, श्री चतैन्म भहाप्रबु के रूऩ भें अवतरयत हुए हैं. उनके अवताय का मह भुख्म कायण है.

    आदद ४.२७७ - श्री रूऩ औय श्री यघुनाथ के चयणकभरों भें सदैव प्राथयना कयते हुए उनकी कृऩा की काभना कयते हुए औय उनके ऩदधचन्हों का अनुसयण कयते हुए भैं कृष्णदास श्री चतैन्म चरयताभतृ का वणयन कय यहा ह ॉ.

    हये कृष्ण हये कृष्ण कृष्ण कृष्ण हये हये हये याभ हये याभ याभ याभ हये हये

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    आदि ऱीऱा

    अध्याय ७ श्री पंचतत्व

    आदद ७.१ - भैं उन श्री चतैन्म भहाप्रबु को सादय नभस्काय कयता ह ॉ, इस बौनतक जगत भें सवय प्रकाय की सम्ऩक्त्त पवह न व्मक्क्त के शरए वे चयभ रक्ष्म हैं औय आध्माक्त्भक जीवन भें प्रगनत कयने वारे के शरए वे एकभात्र अथय हैं.

    आदद ७.२ - श्री चतैन्म भहाप्रबु की जम हो! श्री ननत्मानॊद प्रब ुकी जम हो! श्री अद्वैत आचामय की जम हो! श्री चतैन्म भहाप्रबु के सभस्त बक्तों की जम हो!

    आदद ७.११ से १८ - कृष्ण के भाधमुय प्रेभ भें इतना आस्वादन है कक स्वमॊ कृष्ण औय उनके ऩाषयदों ने उस प्रेभ का आस्वादन कयने के शरए बक्तों का रूऩ धायण ककमा है.

    ऩ णय ऩुरुषोत्तभ बगवान श्रीकृष्ण - बक्त का रूऩ धायण कयके श्री चतैन्म भहाप्रबु के रूऩ भें अवतरयत हुए हैं.

    बगवान के प्रथभ पवस्ताय श्री फरयाभजी - बक्त का रूऩ धायण कयके श्री ननत्मानॊद प्रबु के रूऩ भें अवतरयत हुए हैं.

    बगवान के अवताय श्री भहापवष्णु - बक्त का रूऩ धायण कयके श्रीर अद्वैत आचामय के रूऩ भें अवतरयत हुए हैं.

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    बगवान की अॊतयॊगा शक्क्त - बक्त का रूऩ धायण कयके श्री गदाधय ऩॊडडत के रूऩ भें अवतरयत हुए हैं.

    बगवान के ननकटतभ पवशुद्ध बक्त - श्रीवास ठाकुय के रूऩ भें अवतरयत हुए हैं.

    इस तयह बगवान श्रीकृष्ण औय उनके ऩाषयद उस भाधमुय प्रेभ का आस्वादन कयन ेके शरए ऩॊचतत्व के रूऩ भें अवतरयत हुए हैं.

    आदद ७.२०, २१ - ऩ णय ऩुरुषोत्तभ बगवान श्री चतैन्म भहाप्रबु जफ अऩने ऩाषयदों के साथ ऩॊचतत्व के रूऩ भें अवताय शरमे तफ उन्होंन ेकृष्णप्रेभ के बॊडाय का आस्वादन कयन ेके शरए उसका “सीर” तोड़कय रुट शरमा. वे जैस े जैस ेआस्वादन कयते गमे, औय औय आस्वादन कयने की उनकी तषृ्णा फढ़ती ह गई.

    आदद ७.२२ - श्री चतैन्म भहाप्रबु औय उनके ऩाषयदों बावावेश भें नाचते, गाते, हॉसते, योते औय इस तयह उन्होंने सॊऩ णय पवश्व को बगवत्प्रेभ प्रदान ककमा.

    आदद ७.२३ - उन्होंने बगवतप्रेभ का पवतयण कयते सभम कबी बी मह पवचाय नह ॊ ककमा कक कौन ऩात्र है औय कौन नह ॊ है, इसका पवतयण कहाॉ ककमा जाए औय कहाॉ नह ॊ. उनकी अहैतुकी कृऩा के कायण, बगवतप्रेभ के पवतयण के शरए कोई बी शतय नह ॊ यखी.

    आदद ७.२५, २७ – इस तयह बगवतप्रेभ की फाढ़ स े साय ददशाएॉ आप्रापवत होन ेरगीॊ. फारकों, क्स्त्रमों, वदृ्धों, मुवकों औय अन्म सबी

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    उस फाढ़ भें ड फने रगे औय बौनतक बोग कयने की उनकी प्रवनृत नष्ट होन े रगी. मह देखकय श्री चतैन्म भहाप्रब ुअत्मधधक प्रसन्न हुए.

    आदद ७.१७१ – श्री रूऩ औय श्री यघुनाथ के चयणकभरों भें सदैव प्राथयना कयते हुए उनकी कृऩा की काभना कयते हुए औय उनके ऩदधचन्हों का अनुसयण कयते हुए भैं कृष्णदास श्री चतैन्म चरयताभतृ का वणयन कय यहा ह ॉ.

    हये कृष्ण हये कृष्ण कृष्ण कृष्ण हये हये हये याभ हये याभ याभ याभ हये हये

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    आदि ऱीऱा

    अध्याय ८ ऱेखक को कृपा प्राप्तत

    आदद ८.५ - श्री ऩॊचतत्व के चयणकभरों का स्भयण कयने से ग ॉगा व्मक्क्त कपव फन सकता है, रॉगड़ा व्मक्क्त ऩवयतों को ऩाय कय सकता है औय अॊधा व्मक्क्त आकाश के तायों को देख सकता है.

    आदद ८.२ - श्री चतैन्म भहाप्रबु की जम हो! श्री ननत्मानॊद प्रब ुकी जम हो! श्री अद्वैत आचामय की जम हो ! श्री चतैन्म भहाप्रबु के सभस्त बक्तों की जम हो!

    आदद ८.२८ – बगवान के ऩपवत्रनाभ का कीतयन कयने से आध्माक्त्भक जीवन भें इतनी उन्नती होती है कक बौनतक जीवन की सभाक्प्त औय बगवतप्रेभ की प्राक्प्त एक ह साथ होती है. मह सफ केवर एक ह कृष्णनाभ के उच्चायण से उऩरब्ध हो जाती है.

    आदद ८.२९, ३० - मदद फायम्फाय कृष्णनाभ का कीतयन कयने ऩय बी बगवान के प्रनत प्रेभ पवकशसत नह ॊ हो यहा है तो इसका भतरफ अऩयाधों के कायण कृष्णनाभ का फीज अॊकुरयत नह ॊ हो यहा है.

    आदद ८.३१ – ककॊ तु, मदद कोई थोड़ी सी श्रद्धा के साथ बी बगवान श्री चतैन्म भहाप्रबु औय ननत्मानॊद प्रबु के ऩपवत्र नाभ का कीतयन कयत ेहैं, वे तुयन्त ह साये अऩयाधों से भुक्त हो जाते हैं. इस प्रकाय से

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    साये अऩयाधों से भुक्त होने के फाद मदद वे कृष्णनाभ का कीतयन कयते हैं, तुयन्त ह बगवत्प्रेभ का अनुबव कय ऩाते हैं.

    आदद ८.४३ - हय एक बक्तों स े भेय पवनती है कक श्री चतैन्म भहाप्रबु औय ननत्मानॊद प्रबु द्वाया द गई कृष्णबक्क्त भागय को अऩनामें औय इस बौनतक सॊसाय के दखुभम सागय को ऩाय कयें औय कृष्णप्रेभ के आनॊदभम सागय भें भग्न होकय शाश्वत आनॊद जीवन क्जमें.

    आदद ८.४४ – “श्री चतैन्म बागवत” भें श्रीर वनृ्दावन दास ठाकुय न ेभहाप्रबु की ददव्म र राओॊ का अनतसुॊदय रूऩ भें वणयन ककमा है. ऩयॊत ुउनभें अॊत्म र राएॉ अनकह यह गईँ.

    आदद ८.७२ - अतएव वनृ्दावन के साये वैष्णवों ने भहाप्रबु की अॊत्म र राओॊ के फाये भें शरखने के शरए भुझ ेआदेश ददमा.

    आदद ८.७३ - रेककन अऩने भन भें धचक्न्तत होन े के कायण भैं वनृ्दावन के भदनभोहन भॊददय भें जाकय बगवान की बी आऻा भाॉगी.

    आदद ८.७५, ७६ - जैसे ह भैंने बगवान की आऻा भाॉगी तुयन्त ह उनके गरे स ेएक भारा णखसककय नीचे आ गमी. वहाॉ ऩय खड़े हुए साये वैष्णवों ने जोय से ‘हरयफोर!’ ककमा, तफ ऩुजाय गोसाॊइ न ेवह भारा राकय भेये गरे भें डार द .

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    आदद ८.७७ - इस भारा को बगवान के आदेश के रूऩ भें ऩाकय भैंने तुयन्त ह मह ग्रॊथ शरखना प्रायम्ब ककमा.

    आदद ८.७८ - वास्तपवक भें श्री चतैन्म चरयताभतृ भेया शरखा हुआ ग्रॊथ नह ॊ है, श्री भदनभोहन द्वाया शरखा हुआ है. भेया शरखना एक तोत ेजैसा दोहयाना है.

    आदद ८.८५ - श्री रूऩ औय श्री यघुनाथ के चयणकभरों भें सदैव प्राथयना कयते हुए उनकी कृऩा की काभना कयते हुए औय उनके ऩदधचन्हों का अनुसयण कयते हुए भैं कृष्णदास श्री चतैन्म चरयताभतृ का वणयन कय यहा ह ॉ.

    हये कृष्ण हये कृष्ण कृष्ण कृष्ण हये हये हये याभ हये याभ याभ याभ हये हये

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    आदि ऱीऱा

    अध्याय १३ श्री चतैन्य महाप्रभ ुका दिव्य अववभाणव

    आदद १३.२ - श्री चतैन्म भहाप्रबु की जम हो! श्री ननत्मानॊद प्रब ुकी जम हो! श्री अद्वैत आचामय की जम हो! श्री चतैन्म भहाप्रबु के सभस्त बक्तों की जम हो!

    आदद १३.१९ - भैं उस अद्भतु पाल्गुन भह ने की शुबरऺणऩ णय ऩ णणयभा को सादय नभस्काय कयता ह ॉ जफ नाभ सॊकीतयन के साथ ऩ णय ऩुरुषोत्तभ बगवान श्री चतैन्म भहाप्रबु इस ऩथृ्वी ऩय अवतरयत हुए.

    आदद १३.६३, ६४ - श्री चतैन्म भहाप्रबु के अपवबायव ऩ वय नवद्पवऩ धाभ भें साये बक्तगण श्रीर अद्वैत आचामय के घय ऩय एकत्र होकय उनसे बगवतगीता औय श्रीभद् बागवत सुना कयते थे. सकाभ कभय औय तत्व ऻान का खॊडन कयते हुए अद्वैत आचामय शुद्ध बक्क्त को स्थापऩत कयत ेथे।

    आदद १३.६६, ६७ - इस तयह साये वैष्णव अद्वैत आचामय के घय ऩय सदैव नाभ कीतयन औय कृष्ण की सेवा भें भग्न होकय आनॊद रेते थे। ककॊ तु अद्वैत आचामय को कृष्ण बक्क्त यदहत साभान्म रोगों को इक्न्द्रमतकृ्प्त भें ड फा हुआ देखकय अत्मॊत ऩीड़ा होती थी।

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    आदद १३.६८ - सॊसाय की ऐसी दमनीम अवस्था देखकय श्रीर अद्वैत आचामय गम्बीयताऩ वयक सोचने रगे, “इक्न्द्रमतकृ्प्त भें ड फ े हुए ऐस ेरोगों को भामा के प्रबाव से कैसे उद्धाय ककमा जाएॉ।”

    आदद १३.६९ - श्रीर अद्वैत आचामय न ेसोचा, “मदद ऩ णय ऩुरुषोत्तभ बगवान श्रीकृष्ण स्वमॊ अवतरयत होंगे औय शुद्ध बक्क्त का पवतयण कयेंगे तबी इन रोगों का उद्धाय होना सम्बव है।”

    आदद १३.७०, ७१ - इस तयह सोचते हुए अद्वैत आचामय तुरसीदर तथा गॊगाजर से रृदमऩ वयक बगवान श्रीकृष्ण की ऩ जा कयने रगे. जोय जोय स ेहुॊकाय कयके बगवान श्रीकृष्ण को अवतरयत होने के शरए उनसे पवनती कयने रगे।

    आदद १३.७२ – श्री चतैन्म भहाप्रबु के अपवबायव ऩ वय, उनके भाता-पऩता जगन्नाथ शभश्र औय शचीभाता को आठ ऩुबत्रमाॉ प्राप्त हुई थी। दबुायग्मवश उन सफका जन्भ होने के फाद देहान्त हो गमा।

    आदद १३.७३, ७४ - जगन्नाथ शभश्र अत्मॊत दु् खी होकय बगवान श्रीपवष्णु के चयणकभरों की सेवा कयने रगे। इसके फाद उनको पवश्वरूऩ नाभक एक ऩुत्र प्राप्त हुआ जो अनतशम गुणवान थे औय व ेसाऺात फरदेवजी के अवताय थे।

    आदद १३.७९ - पवश्वरूऩ को एक ऩुत्र के रूऩ भें ऩाकय जगन्नाथ शभश्र औय शचीभाता ऩयभानॊददत हुए.

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    आदद १३.८० – इसके फाद सन ् १४८५ के जनवय भास भें ऩ णय ऩुरुषोत्तभ बगवान श्रीकृष्ण स्वमॊ जगन्नाथ शभश्र औय शचीभाता के रृदम भें प्रकट हुए।

    आदद १३.८१ - जगन्नाथ शभश्र न ेशचीभाता से कहा, “भैं अद्भतु दृश्म देख यहा हुॉ ! तुम्हाया शय य ज्मोनत से मुक्त है औय ऐसा रगता है की साऺात रक्ष्भी देवी भेये घय भें ननवास कय यह हैं।”

    आदद १३.८२ - “भैं जहाॉ कह ॊ जाता हुॉ रोग भुझ ेसम्भान देते हैं औय वे खदु होकय भुझ ेवस्त्र, धन औय धान्म देते हैं।”

    आदद १३.८३ - शचीभाता न ेकहा, “भुझ े फाह्म आकाश भें अत्मॊत तेजोभम ऩुरुष ददख यहे हैं औय ऐसा रगता है कक ककसी की तो वे स्तुनत कय यहे हैं।

    आदद १३.८४, ८५ - जगन्नाथ शभश्र न े कहा, “बगवान के ददव्म तेजोभम धाभ को भैंने हभाये ह्रदम भें प्रवेश होत ेहुए देखा। इसशरए भुझ ेरगता है कक शीघ्र ह ककसी भहाऩुरुष का अवताय होगा।”

    आदद १३.८६ - इस प्रकाय ऩती-ऩत्नी दोनों अत्मधधक प्रसन्न हो गमे औय वे दोनों घय ऩय शाशरग्राभ शशरा की प्रसन्नताऩ वयक सेवा कयन ेरगे।

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    आदद १३.८७ - ऩयॊतु तेयहवें भास ऩ णय होने ऩय बी शशशु के जन्भ का कोई रऺण नह ॊ ददख यहा था। इसके कायण जगन्नाथ शभश्र को अत्मधधक धचॊता होने रगी।

    आदद १३.८८ - तफ शचीभाता के पऩता नीराम्फय चिवती ने नऺत्रों की गणना कयके फतामा, “शुब भुह तय का राब उठाकय मह फारक इसी भास भें जन्भ रेगा ।”

    आदद १३.८९, ९० - सन ्१४८६ भें पाल्गुन भास के ऩ णणयभा की सॊध्मा के सभम वह अऩेक्षऺत शुब भुह तय आ गमा। शुब जन्भ चन्द्र शसॊह याशश ऩय था, शसॊह उच्च स्थान ऩय था। ग्रहगण उच्च स्थान ऩय शक्क्तशार क्स्थनत भें थे। षड्वगय तथा अष्टवगय शुब प्रबाव को प्रदशशयत कय यहे थे।

    आदद १३.९१ - कारे ग्रह याहु न ेसोचा, “श्री चतैन्म भहाप्रब ुरूऩी ननष्करॊक चॊद्रभा अबी प्रकट होने वारे हैं, कपय करॊकमुक्त चॊद्रभा की क्मा आवश्मकता है?” मह सोचकय याहु न े ऩ णयचॊद्रभा को ढक ददमा.

    आदद १३.९४ - तुयन्त ह “कृष्ण! कृष्ण! हय ! हय !” की ध्वनन स ेसॊऩ णय जगत गुॊजामभान हो उठा। इस तयह साया जगत चन्द्र ग्रहण के कायण उच्च स्वय भें नाभ कीतयन कय यहा था उसी सभम ऩ णय ऩुरुषोत्तभ बगवान श्रीकृष्ण, श्री चतैन्म भहाप्रबु के रूऩ भें इस ऩथृ्वी ऩय अवतरयत हुए।

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    आदद १३.९९ - श्रीर अद्वैत आचामय अऩने घय ऩय हरयदास ठाकुय को अऩने साथ रेकय अत्मधधक प्रसन्नता भें नाच यहे थे औय उच्च स्वय भें हये कृष्ण भहाभॊत्र का कीतयन कय यहे थे। ककॊ तु मह कोई नह ॊ सभझ ऩा यहा था कक मे दोनों क्मों नाच यहे हैं।

    आदद १३.१०५, १०६ - साये दैवी स्त्रीमाॉ वहाॉ ऩय ब्राह्भणणमों का वेश धायण कयके नवजात फारक को देखने के शरए नाना प्रकाय के उऩहाय रेकय आईं। साये देवतागण फाह्म आकाश भें गीत गाकय ढोर फजाकय नाचने रगे ।

    आदद १३.१०७ - ककसी को बी मह सभझ नह ॊ आ यहा था, कौन आ यहा है, कौन जा यहा है, कौन गा यहा है औय कौन नाच यहा है। कोई एक द सये की बाषा बी नह ॊ सभझ ऩा यहा था ऩयॊत ु हुआ मह कक साये रोगों का दु् ख द य हो गमा औय वे सफ प्रसन्न हो उठे।

    आदद १३.१०९ - जगन्नाथ शभश्र जो बी उऩहायों के रूऩ भें धन ऩामे औय जो कुछ उनके घय ऩे था उसको ब्राह्भणों, ऩेशवेय गाय्मकों, नाचने वारों औय ग़य फों को फाॉट ददमा।

    आदद १३.११० - धश्रवास ठाकुय की ऩत्नी, श्रीर चॊद्रशखेय आचामय की ऩत्नी औय अनेक स्त्रीमाॉ नवजात फारक की ऩ जा कयने के शरए शसॊदयु, हल्द , तेर, बुने हुए चावर, केरे औय नारयमर जैसे साभग्री रेकय वहाॉ आमीॊ।

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    आदद १३.१११ - एक ददन फाद शाॊनतऩुय से अद्वैत आचामय की ऩत्नी सीता ठकुयाणी, जो सॊऩ णय जगत के शरए ऩ जनीम हैं, अऩने साथ अनेक प्रकाय के बेंट रेकय उस सवयशे्रष्ठ फारक को देखने आईं ।

    आदद १३.११२ – उन्होंने अऩने साथ अनेक प्रकाय के सोने के आब षण रे आमीॊ क्जनभें हाथ के कॊ गन, अनतसुॊदय हाय औय ऩाॉव की ऩामर थी।

    आदद १३.११६ – उस अद्भतु फारक के ददव्म शाय रयक तेज, शुबरऺण ऩ णय सुगदठत अॊगों औय अनतशम स्वणय वणय रुऩ को देखकय सीता ठकुयाणी अत्मधधक प्रसन्न हो गईं औय उनका ह्रदम भातपृ्रेभ के कायण द्रपवत हो उठा ।

    आदद १३.११७ - नवजात फारक के शसय ऩय द वायदर औय धान्म यखकय उन्होंने उसको आशीवायद ददमा, “द घायमु हो”. उन्होंने डामनों औय ब त प्रेत से फारक का सॊयऺण के शरए उसका नाभ ‘ननभाम’ यखा।

    आदद १३.११९ - अनत सुॊदय ननभाम को ऩुत्र के रूऩ भें ऩाकय जगन्नाथ शभश्र औय शचीभाता अत्मधधक प्रसन्न हो गमे। ननभाम के प्माये शय य को देखकय उन दोनों का आनॊद ददन प्रनतददन फढ़ता गमा।

    आदद १३.१२३ – भनुष्म शय य ऩाकय बी मदद कोई भहाप्रबु के सम्प्रदाम को स्वीकाय नह ॊ कयता तो वह अऩने जीवन के सुअवसय

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    को खो देता है. भनुष्म शय य ऩाकय बी कोई बक्क्त रूऩी अभतृ की प्रवाहभान नद का जर ऩीने के फदरे बौनतक सुख रूऩी पवषैरे गड्ढे का जर ऩीता है वह जीपवत यहने के फजाम फहुत ऩहरे ह भय गमा होता तो अच्छा होता.

    आदद १३.१२४ - श्री रूऩ औय श्री यघुनाथ के चयणकभरों भें सदैव प्राथयना कयते हुए उनकी कृऩा की काभना कयते हुए औय उनके ऩदधचन्हों का अनुसयण कयते हुए भैं कृष्णदास श्री चतैन्म चरयताभतृ का वणयन कय यहा ह ॉ.

    हये कृष्ण हये कृष्ण कृष्ण कृष्ण हये हये हये याभ हये याभ याभ याभ हये हये

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    आदि ऱीऱा

    अध्याय १४ श्री चतैन्य महाप्रभ ुका नामकरर् संस्कार

    आदद १४.१ - मदद कोई श्री चतैन्म भहाप्रबु का ककसी प्रकाय से बी स्भयण कयता है, उनका कदठन कामय बी सयर हो जाता है. इसके पवऩय त मदद कोई श्री चैतन्म भहाप्रबु को ब र जाता है उनका सयर कामय बी कदठन हो जाता है. भैं उन श्री चतैन्म भहाप्रबु को सादय नभस्काय कयता ह ॉ.

    आदद १४.२ - श्री चतैन्म भहाप्रबु की जम हो! श्री ननत्मानॊद प्रब ुकी जम हो! श्री अद्वैत आचामय की जम हो! श्री चतैन्म भहाप्रबु के सभस्त बक्तों की जम हो!

    आदद १४.३, ४ - इस तयह भैंने भहाप्रबु के आपवबायव का सॊक्षऺप्त रूऩ भें वणयन ककमा है. अबी भैं उनकी फाल्मकार की र राओॊ को सॊक्षऺप्त रूऩ भें फताऊॊ गा.

    आदद १४.६ - जफ ऩहर फाय भहाप्रबु बफस्तय ऩय रेटते हुए ऩरटे तफ जगन्नाथ शभश्र औय शचीभाता अत्मधधक प्रसन्न हो गमे. इसके फाद जफ भहाप्रबु ने सहाया रेकय चरने का प्रमास ककमा उनकी छोट छोट ऩाॉव की छाऩ भें बगवान श्रीपवष्णु के पवशशष्ट धचन्ह ददखाई ऩड़ ेजैसे ध्वज, वज्र, धनुष, शॊख, चि, ऩद्म इत्मादद.

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    आदद १४.८ - मह देखकय जगन्नाथ शभश्र औय शचीभाता ननश्चम नह ॊ कय ऩा यहे थे कक उनके घय भें मे धचन्ह कैसे आमे.

    आदद १४.९ - जगन्नाथ शभश्र ने कहा, “ननश्चम ह हभाय शाशरग्राभ शशरा साऺात फारकृष्ण हैं औय वे कभये भें खेर यहें हैं.”

    आदद १४.१०, ११ - इस प्रकाय शचीभाता औय जगन्नाथ शभश्र फातें कय यहे थे तफ फारक ननभाम जग गमा औय योने रगा. शचीभाता ननभाम को गोद भें रेकय द ध पऩराने रगी. तबी उनको अऩने ऩुत्र के चयण कभरों भें साये धचन्ह ददखाई ऩड़ ेऔय उन्होंने अऩने ऩनत को ददखामा.

    आदद १४.१२ - मह देखकय जगन्नाथ शभश्र अत्मधधक प्रसन्न हो गमे औय नीराम्फय चिवती को फुराकय ददखामा. नीराम्फय चिवती ने कहा, “भैंने ऩहरे से ह नऺत्रों की गणना कयके इन पवषमों के फाये भें ननक्श्चत कय शरमा औय शरख बी शरमा था”.

    आदद १४.१४ से १९ - “भहाऩुरुष के फत्तीस रऺण होते हैं - उनके शय य के अॊग ऩाॉच फड़,े ऩाॉच स क्ष्भ, सात रार यॊग के, छह उठे हुए, तीन छोटे, तीन चौड़ ेऔय तीन गहये होते हैं. भैं इस फारक के शय य भें मह साया रऺण देख यहा ह ॉ औय इसके हथेशरमों एवॊ तरवों भें बगवान नायामण का साया रऺण देख यहा ह ॉ. मह फारक बपवष्म भें साये जगत का ऩारन औय सॊयऺण कयेगा, इसशरए इसका नाभ पवश्वम्बय होगा”.

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    आदद १४.२० - जगन्नाथ शभश्र औय शचीभाता ने फड़ ेह आनॊद स ेसाये ब्राह्भणों को आभॊबत्रत ककमा औय नाभकयण उत्सव भनामा.

    आदद १४.९७ - श्री रूऩ औय श्री यघुनाथ के चयणकभरों भें सदैव प्राथयना कयते हुए उनकी कृऩा की काभना कयते हुए औय उनके ऩदधचन्हों का अनुसयण कयते हुए भैं कृष्णदास श्री चतैन्म चरयताभतृ का वणयन कय यहा ह ॉ.

    हये कृष्ण हये कृष्ण कृष्ण कृष्ण हये हये हये याभ हये याभ याभ याभ हये हये

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    आदि ऱीऱा

    अध्याय १५ श्री चतैन्य महाप्रभ ुकी पौगंड ऱीऱा

    आदद १५.१ - भैं उन श्री चतैन्म भहाप्रबु को सादय नभस्काय कयता ह ॉ, केवर उनके चयणकभरों भें प र अऩयण कयने से फड़ े से फड़ा बौनतकवाद बी अनतसुॊदय बक्त फन जाता है।

    आदद १५.२ - श्री चतैन्म भहाप्रबु की जम हो! श्री ननत्मानॊद प्रब ुकी जम हो! श्री अद्वैत आचामय की जम हो! श्री चतैन्म भहाप्रबु के सभस्त बक्तों की जम हो!

    आदद १५.३,४ - अबी भैं भहाप्रबु की ऩाॉच वषय की आम ुसे रेकय दस वषय तक की र राओॊ का सॊक्षऺप्त रूऩ भें वणयन करुॉ गा । इस कार भें भहाप्रबु ने भुख्म रूऩ से शशऺण प्राप्त ककमा।

    आदद १५.५ - श्री गॊगादास ऩॊडडत के महाॉ जफ भहाप्रबु व्माकयण ऩढ़ यहे थे, वे साये व्माकयण के ननमभ एवॊ ऩरयबाषाओॊ को केवर एक फाय सुनकय ह कण्ठस्थ कय रेते थे।

    आदद १५.६ – श्री चतैन्म भहाप्रबु शीघ्र ह ऩॊजी ट का की व्माख्मा भें ननऩुण हो गमे औय वे नमे होने ऩय बी सभस्त पवधाथीमों ऩय पवजम प्राप्त ककमे.

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    आदद १५.७ - वनृ्दावनदास ठाकुय ने अऩनी ऩुस्तक ‘श्री चतैन्म बागवत’ भें श्री चतैन्म भहाप्रबु की अध्ममन र राओॊ का पवस्ततृ रूऩ भें वणयन ककमा है।

    आदद १५.८ - श्री चतैन्म भहाप्रबु एक ददन अऩनी भाता के चयणों भें धगय ऩड़ े औय उनस ेप्राथयना की “भेय पप्रम भाता! कृऩमा भुझ े एक वस्तु का दान दें.”

    आदद १५.९, १० - शचीभाता ने कहा “भेये प्माये ऩुत्र तुभ जो भाॉगोगे भैं द ॉगी.” भहाप्रब ुफोरे, “भेय पप्रम भाता! कृऩमा एकादशी के ददन अन्न न खामें.” उस ददन से शचीभाता एकादशी के ददन उऩवास कयने रगीॊ।

    आदद १५.११ - इसके फाद पवश्वरूऩ की मुवावस्था देखकय जग्गन्नाथ शभश्र ने उसका पववाह कयवान ेके शरए इच्छा की।

    आदद १५.१२ - पवश्वरूऩ ने पववाह के फाये भें सुनकय तुयन्त गहृत्माग कय ददमा औय वे सॊन्मास रेकय तीथयमात्रा के शरए ननकर ऩड़।े

    आदद १५.१३ - मह सभाचाय सुनकय जग्गन्नाथ शभश्र औय शचीभाता अत्मॊत दु् खी हो गमे ककॊ तु भहाप्रब ुने उन्हें साॊत्वना द ।

    आदद १५.१४ – श्री चतैन्म भहाप्रबु ने कहा, “भेये पप्रम भाता औय पऩता! पवश्वरूऩ सॊन्मास ग्रहण ककमे मह अच्छा ह हुआ. क्मोंकक

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    सॊन्मास ग्रहण कयके वे अऩन े पऩत्र-ुकुर औय भात्र-ुकुर दोनों का ह उद्धाय कय ददमे हैं।”

    आदद १५.१५ - श्री चतैन्म भहाप्रब ु अऩने भाता-पऩता को पवश्वास ददराते हुए फोरे, “भैं जीवनबय आऩ दोनों की सेवा करूॉ गा” । इस प्रकाय से भहाप्रब ुन ेअऩने भाता-पऩता को साॊत्वना द ।

    आदद १५.२३ - जग्गन्नाथ शभश्र कुछ ददनों के फाद बगवत धाभ चरे गमे, इसके कायण शचीभाता औय भहाप्रबु दोनों अत्मॊत दखुी हो गमे।

    आदद १५.२५ - पऩता के नतयोबाव के फाद भहाप्रब ुने सोचा, “अबी मह भेया कतयव्म है कक भैं एक गहृस्थ की तयह जीवन जीम ॉ ।” इस प्रकाय सोचते हुए भहाप्रबु ने पववाह कयने का ननश्चम ककमा।

    आदद १५.२८ - श्री चतैन्म भहाप्रबु एक ददन ऩाठशारा स ेवाऩस आ यहे थे तफ अचानक उन्होंने वल्रबाचामय की ऩुत्री रक्ष्भीदेवी को देखा जो गॊगाजी की ओय जा यह थीॊ, वे साऺात बाग्मदेवी थीॊ औय अत्मॊत गुणवान थीॊ।

    आदद १५.२९ - उन दोनों ने एक दसुये को देखा औय उनका ददव्म सॊफन्ध जागतृ हो गमा. सॊमोगवश पववाह तम कयाने वारा ब्राह्भण वनभार शचीभाता से शभरने आमा।

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    आदद १५.३० - शचीभाता की अनुभनत शभरने ऩय ब्राह्भण वनभार ने पववाह को ऩक्का कय ददमा औय ननधायरयत सभम ऩय भहाप्रबु औय रक्ष्भीदेवी का पववाह हुआ।

    आदद १५.३३ - श्री रूऩ औय श्री यघुनाथ के चयणकभरों भें सदैव प्राथयना कयते हुए उनकी कृऩा की काभना कयते हुए औय उनके ऩदधचन्हों का अनुसयण कयते हुए भैं कृष्णदास श्री चतैन्म चरयताभतृ का वणयन कय यहा ह ॉ.

    हये कृष्ण हये कृष्ण कृष्ण कृष्ण हये हये हये याभ हये याभ याभ याभ हये हये

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    आदि ऱीऱा

    अध्याय १६ श्री चतैन्य महाप्रभ ुकी कैशोर ऱीऱा

    आदद १६.२ - श्री चतैन्म भहाप्रबु की जम हो! श्री ननत्मानॊद प्रब ुकी जम हो! श्री अद्वैत आचामय की जम हो! श्री चतैन्म भहाप्रबु के सभस्त बक्तों की जम हो!

    आदद १६.४ - ग्मायह वषय की आमु से भहाप्रबु पवद्माधथयमों को ऩढ़ाने रगे । मह ॊ से उनकी ककशोयावस्था प्रायम्ब होती है।

    आदद १६.५ - श्री चतैन्म भहाप्रबु के ऩास अनेकानेक पवद्माधथय आन ेरगे. सफ पवद्माधथय भहाप्रबु की कृष्ण सॊफक्न्धत व्माख्मा सुनकय आश्चमयचककत हो जाते।

    आदद १६.६ - शास्त्राथय भें श्री चतैन्म भहाप्रबु ने साये ऩक्ण्डतों को हयामा. भहाप्रबु की पवनम्रता के कायण कोई बी ऩक्ण्डत दु् खी नह ॊ हुआ।

    आदद १६.८ - श्री चतैन्म भहाप्रबु इसके फाद ऩ वय फॊगार गमे औय व ेजहाॉ ऩय बी गमे सॊकीतयन आॊदोरन का स त्रऩात ककमे।

    आदद १६.१० - तऩन शभश्र नाभक एक ब्राह्भण ऩ वी फॊगार भें थे. वे ननश्चम नह ॊ कय ऩा यहे थे कक जीवन का उदे्दश्म क्मा है ।

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    आदद १६.११ - मदद कोई ककताफ का कीड़ा फनकय अनेक ग्रॊथों औय शास्त्रों को ऩढ़ता यहता है औय अनेकानेक रोगों की दटकाएॉ औय उऩदेशों को सुनता यहता है तो उनके भन भें सॊदेह उत्ऩन्न हो जाता है औय वह जीवन के वास्तपवक रक्ष्म को ननक्श्चत नह ॊ कय ऩाता।

    आदद १६.१२, १३ - इस प्रकाय भोहग्रस्थ हुआ तऩन शभश्र को स्वप्न भें उनके गुरु ने ननदेश ददमा, “तुभ भहाप्रब ु के ऩास जाओ, वे साऺात ईश्वय हैं ननस्सन्देह ह तुम्हाये शरए सह ददशा ननदेशन कयेंगे।”

    आदद १६.१४, १५ - इसके फाद तऩन शभश्र भहाप्रब ुकी शयण भें आमे औय उन्होंने स्वप्न का पवस्ततृ वणयन ककमा। श्री चतैन्म भहाप्रबु न ेअत्मधधक प्रसन्न होकय उस ब्राह्भण को जीवन का रक्ष्म औय उसको प्राप्त कयने के भागय के फाये भें उऩदेश ददमा, “हे ब्राह्भण ननस्सॊदेह होकय सनुो, जीवन की सपरता के शरए हय नाभ सॊकीतयन ह एकभात्र गनत है।”

    आदद १६.१९, २० - इस तयह श्री चतैन्म भहाप्रबु ऩ वय फॊगार के रोगों को हय नाभ सॊकीतयन भें द क्षऺत कयके उन ऩय फड़ा उऩकाय ककमा। ऩयॊतु घय ऩय रक्ष्भीदेवी को भहाप्रबु के पवयह के कायण अत्मॊत दु् ख हो यहा था औय उसके कायण अचानक उनका देहान्त हो गमा।

    आदद १६.२५ - इसके फाद भहाप्रबु साऺात बाग्मदेवी पवष्णुपप्रमा के साथ पववाह ककमे जो सबी ददव्म गुणों से ऩरयऩ णय थीॊ.

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    आदद १६.१११ - श्री रूऩ औय श्री यघुनाथ के चयणकभरों भें सदैव प्राथयना कयते हुए उनकी कृऩा की काभना कयते हुए औय उनके ऩदधचन्हों का अनुसयण कयते हुए भैं कृष्णदास श्री चतैन्म चरयताभतृ का वणयन कय यहा ह ॉ.

    हये कृष्ण हये कृष्ण कृष्ण कृष्ण हये हये हये याभ हये याभ याभ याभ हये हये

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    आदि ऱीऱा

    अध्याय १७ श्री चतैन्य महाप्रभ ुका संन्यास ग्रहर्

    आदद १७.१ - भैं उन श्री चतैन्म भहाप्रबु को सादय नभस्काय कयता ह ॉ क्जनकी कृऩा से अशुद्ध मवन बी ऩपवत्र नाभ कीतयन के द्वाया अनतशम गुणवान फन जाता है।

    आदद १७.२ - श्री चतैन्म भहाप्रबु की जम हो! श्री ननत्मानॊद प्रब ुकी जम हो! श्री अद्वैत आचामय की जम हो! श्री चतैन्म भहाप्रबु के सभस्त बक्तों की जम हो!

    आदद १७.९ – श्री चतैन्म भहाप्रबु गमा भें जफ ईश्वय ऩुय स ेद ऺा ग्रहण ककमे तफ से उनभें बगवत्प्रेभ के तीव्र रऺण प्रकट होने रगे.

    आदद १७.३४ – उस सभम से धश्रवास ठाकुय के घय ऩय बावावेश भें भहाप्रबु हय योज, यात बय हये कृष्ण भहाभॊत्र का साभ दहक कीतयन कयते थे।

    आदद १७.३५ - मह बावऩ णय कीतयन दयवाजा फॊद कयके ककमा जाता था ताकक अपवश्वासी रोग प्रवेश न कय सकें ।

    आदद १७.३६ - ईष्माय के कायण अपवश्वासी रोगों ने धश्रवास ठाकुय से फदरा रेने के शरए अनेक मोजनाएॉ फनाई।

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    आदद १७.३७, ३८ - एक यात धश्रवास ठाकुय के घय के अॊदय कीतयन चर यहा था. तफ गोऩार चाऩार नाभक एक नाक्स्तक ब्राह्भण धश्रवास ठाकुय के दयवाजा के फाहय दगुायदेवी की ऩ जन साभग्री यख ददमा।

    आदद १७.३९ – उन्होंने केरे के ऩत्ते के ऊऩय ऩ जा की साभग्री यखी थी क्जसभें रार-ओड़फुर, हल्द , शसॊदयु, रार-चन्दन औय चावर था l

    आदद १७.४० - इस साभग्री के साथ उन्होंने एक शयाफ का घड़ा यख ददमा था। सुफह धश्रवास ठाकुय ने जफ अऩना दयवाजा खोरा उन्हें मह साय साभग्री ददखाई ऩड़ी।

    आदद १७.४१, ४३ - धश्रवास ठाकुय न े ऩड़ोस के साये सम्भाननीम रोगों को फुराकय ददखामा. वहाॉ ऩय एकबत्रत हुए साये सज्जन हाहाकाय कयके फोरे, “मह क्मा! मह क्मा! ककसने मह फदभाशी की है? वह ऩाऩी कौन है?”

    आदद १७.४४ - इसके फाद उन सफ ने एक झाड़ रगाने वारे को फुराकय उस स्थान को जर तथा गोफय से शुद्ध ककमा।

    आदद १७.४५, ४६ – कुछ ददनों के फाद गोऩार चाऩार को कुष्टयोग हो गमा। उनके साये शय य भें कीड़ ेऩड़ गमे औय ननयॊतय काटने रगे। इससे उनको असह्म ऩीड़ा होने रगी।

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    आदद १७.४७ - कुष्ट पैरने वारा योग है इसशरए गोऩार चाऩार गाॉव छोड़कय गॊगा नद के ककनाये एक वृऺ के नीचे जा फैठा। उन्होंने एक ददन भहाप्रब ुको जाते हुए देखा तफ इस तयह कहा.

    आदद १७.४८ - “हे बाॊजे, गाॉव के सॊफन्ध से भैं आऩका भाभा रगता ह ॉ। देखो न इस कुष्टयोग के आिभण से भुझ े ककस तयह ऩीड़ा हो यह है।”

    आदद १७.४९ - “आऩ तो ईश्वय के अवताय हैं, अनेक ऩनततात्भाओॊ का उद्धाय ककमे हैं। भैं बी अत्मॊत दु् खी ऩनततात्भा ह ॉ, कृऩमा भेया बी उद्धाय कीक्जमे।”

    आदद १७.५० - मह सुनकय श्री चतैन्म भहाप्रबु अत्मधधक िोधधत हुए औय उस िोधावेश भें भहाप्रबु ने इस प्रकाय कहा।

    आदद १७.५१ - “अये ऩाऩी! शुद्ध बक्तों से द्वेष कयने वारे, भैं तुम्हाया उद्धाय नह ॊ करूॉ गा! तुभ इसी तयह कयोड़ों वषय इन कीड़ों से काटे जाओगे।”

    आदद १७.५४ - मह कहकय श्री चतैन्म भहाप्रब ुगॊगास्नान के शरए चरे गमे. इस तयह वह ऩाऩी कष्ट बोगता यहा।

    आदद १७.५५ से ५६ - श्री चतैन्म भहाप्रबु जफ सॊन्मास रेने के फाद जगन्नाथ ऩुय से वाऩस कुशरमा गाॉव आमे तफ उन्होंने भहाप्रबु के

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    चयणकभरों की शयण र । तफ भहाप्रबु न ेउन ऩय कृऩा कयके उनके कल्माण के शरए उऩदेश ददमा।

    आदद १७.५७, ५८ - श्री चतैन्म भहाप्रबु ने कहा, “आऩने धश्रवास ठाकुय के चयणकभरों ऩय अऩयाध ककमा है। अतएव सफसे ऩहरे आऩ वहाॉ जाएॉ औय उनकी कृऩा की माचना कयें। मदद श्रीवास ठाकुय आऩको आशीवायद देते हैं औय कपय से आऩ ऐसा ऩाऩ नह ॊ कयोगे तबी आऩ इन ऩाऩपरों से भुक्त कय ददमे जाओगे।”

    आदद १७.५९ - इसके फाद वह ब्राह्भण गोऩार चाऩार ने श्रीवास ठाकुय के चयणकभरों की ऩ णय शयण र . श्रीवास ठाकुय की कृऩा से वह सबी ऩाऩपरों से भुक्त हो गमा।

    आदद १७.२४७ - श्री चतैन्म भहाप्रब ुएक ददन गोपऩमों के बाव भें औय उनके पवयह भें अत्मॊत णखन्न होकय “गोऩी! गोऩी!” ऩुकाय यहे थे।

    आदद १७.२४८, २४९ - मह देखकय श्री चतैन्म भहाप्रब ु का एक पवधाथी आश्चमयचककत हो गमा औय इस प्रकाय फोरा, “बगवान श्रीकृष्ण के ऩपवत्र नाभ का उच्चायण कयने के फदरे आऩ ’गोऩी, गोऩी‘ क्मों ऩुकाय यहे हैं? ऐसा कयने से आऩको कौन सा ऩुण्म प्राप्त होगा?”

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    आदद १७.२५०, २५१ - भ खय पवद्माथी की फात सुनकय भहाप्रबु अत्मॊत िोधधत हुए. उन्होंने गोपऩमों के बाव भें अनेक प्रकाय स े कृष्ण को पटकाय रगाई औय राठी उठाकय भ खय पवद्माथी के ऩीछे दौड़ने रगे।

    आदद १७.२५२ – श्री चतैन्म भहाप्रबु को सबी बक्तों ने शाॊत ककमा औय उन्हें घय रे आमे। वह पवद्माथी बागकय अन्म पवद्माथीमों की टोर भें गमा औय साय घटना को फतामा ।

    आदद १७.२५४ - मह घटना सुनकय साये पवद्माथी अत्मधधक िोधधत हो गमे औय भहाप्रबु की ननॊदा कयन ेरगे।

    आदद १७.२५९ - सवयऻ होने के कायण भहाप्रब ुइन पवद्माथीमों की दगुयनत सभझ गमे।

    आदद १७.२६२ - “भैं ऩनततों का उद्धाय कयने के शरए ह आमा ह ॉ दबुायग्मवश अबी तो इसके ठीक पवऩय त घटना घट है । भैं इन दषु्टों का कैसे उद्धाय कय सक ॉ गा?”

    आदद १७.२६५ – श्री चतैन्म भहाप्रबु सोचने रगे, “मदद भैं सॊन्मास आश्रभ ग्रहण करूॉ गा तो रोग भुझ े एक सॊन्मासी जानकय सन्भान देंगे औय भुझ ेप्रणाभ कयेंगे।”

    आदद १७.२६६ - “भुझ ेप्रणाभ कयने से रोगों के सये ऩाऩपर नष्ट हो जामेंगे। कपय भेय कृऩा से उनके रृदमों भें बक्क्त जाग्रत होगी।”

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    आदद १७.२६८ - इस तयह दृढ़ ननष्कषय ऩय भहाप्रबु ऩहुॉच ेउसी सभम नवद्वीऩ धाभ भें �