Shri ram katha lanka kand

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Ĥभु Įी राम जी का आशीवा[द सब पर सदा बना रहे (S. Sood ) लंका काÖड Įी गणेशाय नमः Įी जानकȧवãलभो वजयते Įी रामचǐरतमानस षçठ सोपान (लंकाकाÖड) æलोक रामं कामाǐरसेåयं भवभयहरणं कालम×तेभसंहं योगीÛġं £ानगàयं गुणǓनधमिजतं Ǔनगु[णं Ǔनव[कारम ्। मायातीतं सुरेशं खलवधǓनरतं ĦéमवृÛदैकदेवं वÛदे कÛदावदातं सरसजनयनं देवमुवȸशǾपम ्।। 1।। शंखेÛɮवाभमतीवसुÛदरतनुं शादू [लचमा[àबरं कालåयालकरालभूषणधरं गंगाशशांकĤयम ्। काशीशं कलकãमषौघशमनं कãयाणकãपġुमं नौमीɬयं गǐरजापǓतं गुणǓनधं कÛदप[हं शɨकरम ्।।2।। यो ददाǓत सतां शàभुः कै वãयमप दुल[भम ्। खलानां दÖडकृ ɮयोऽसौ शɨकरः शं तनोतु मे।।3।। दो0-लव Ǔनमेष परमानु जुग बरष कलप सर चंड। भजस मन तेǑह राम को कालु जासु कोदंड।। –*–*– सो0-संधु बचन सुǓन राम सचव बोल Ĥभु अस कहेउ। अब ǒबलंबु के Ǒह काम करहु सेतु उतरै कटकु ।। सुनहु भानुकु ल के तु जामवंत कर जोǐर कह। नाथ नाम तव सेतु नर चǑढ़ भव सागर तǐरǑहं।। यह लघु जलध तरत कǓत बारा। अस सुǓन पुǓन कह पवनकु मारा।। Ĥभु Ĥताप बड़वानल भारȣ। सोषेउ Ĥथम पयोǓनध बारȣ।। तब ǐरपु नारȣ ǽदन जल धारा। भरेउ बहोǐर भयउ तेǑहं खारा।। सुǓन अǓत उकु Ǔत पवनसुत के रȣ। हरषे कप रघुपǓत तन हेरȣ।।

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Open to download & Please Respect Every Religion तुलसीदास जी राम कथा की महिमा बताते हुये कहते हैं - रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।। मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।। रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।। त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।। (बा.35) वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है। श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे । मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन

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2. (S. Sood ) 0- 1 ** 0- 2 ** 0= 3. (S. Sood ) 3 ** 0- 4 ** 0- 5 ** 4. (S. Sood ) 0- 6 ** 0- 7 ** 0- 5. (S. Sood ) 8 ** 0- 9 ** 0- 10 ** 6. (S. Sood ) 0- 11() 11() ** 0- 12() 12() ** 7. (S. Sood ) 0- 13() 13() ** 0- 14 ** 0- 15 8. (S. Sood ) 15 ** 0- 16() 0- 16() ** 0- 17() 17() 9. (S. Sood ) 0- 18 ** 0- 19 ** 10. (S. Sood )0- 20 ** 0- 21 ** 0- 22() 22() ** 11. (S. Sood ) 0- 23() 23() 23() 23() 23() 23() ** 12. (S. Sood ) 0- 24 ** 0- 25 ** 13. (S. Sood ) 0- 26 ** 0- 27 ** 0- 28 ** 14. (S. Sood ) 0- 29 ** 0- 30 ** 0- 31() 15. (S. Sood ) 31() ** 0- 32() 32() ** 0- 33() 16. (S. Sood ) 33() 0- 34() 34() ** 17. (S. Sood ) 0- 35() () ** 0- 36 ** 18. (S. Sood ) 0- 37 ** 0- 38((() 38() ** 19. (S. Sood ) 0- 39 ** 0- 40 ** 0- ** 20. (S. Sood )0- 41 ** 0- 42 ** 0- 43 ** 21. (S. Sood ) 0- 44 ** 0- 45 ** 22. (S. Sood )0- 46 ** 0- 47 ** 0- 48() , 48() ** 23. (S. Sood ) 0- 0- 49 ** 0- 50 ** 24. (S. Sood ) 0- 51 ** 0- 52 ** 0- 53 ** 25. (S. Sood ) 0- 54 ** 0- 55 ** 0- 26. (S. Sood ) 56 ** 0- 57 ** 0- 58 ** 27. (S. Sood ) 0- 59 0- 60() 60() ** 28. (S. Sood ) 0- 61 0- 62 ** 29. (S. Sood ) 0- 63 ** 0- 64 ** 0- 65 ** 30. (S. Sood ) 0- 66 ** 0- 67 ** 31. (S. Sood ) 0- 68 ** 0- 69 ** 0- 70 32. (S. Sood )** 0- 0- 71 ** 33. (S. Sood ) 0- 72 ** 0- 73 ** 34. (S. Sood )0- 74() 74() ** 0- 75 ** 35. (S. Sood ) 0- 76 ** 0- 77 ** 36. (S. Sood ) 0- 0- 78 ** 0- 0- 79 ** 37. (S. Sood ) 0- 80() 80() 80() ** 0- 38. (S. Sood ) 0- 81 ** 0- 0- 82 ** 0- 39. (S. Sood ) 0- 83 ** 0- 0- 84 ** 0- 40. (S. Sood ) 0- 85 ** 0- 0- 86 ** 41. (S. Sood ) 0- 0- 87 ** 0- 0- 88 ** 42. (S. Sood ) 0- 0- 89 ** 0- 0- 90 ** 43. (S. Sood ) 0- 0- 91 ** 0- 44. (S. Sood ) 0- 92 ** 0- 0- 93 ** 0- 45. (S. Sood ) 0- 94 ** 0- 0- 95 ** 0- 46. (S. Sood ) 0- 96 ** 0- 0- 97 ** 47. (S. Sood ) 0- 0- 98 , ** 0- 48. (S. Sood ) 0- 99 ** 0- 0- 100 ** 0- 1 2 3 49. (S. Sood ) 4 5 6 7 8 0- 1 2 0- 101() 101() ** 50. (S. Sood ) 0- 0- 102 ** 0- 51. (S. Sood )0- 103 ** 0- 0- 104 ** 52. (S. Sood ) 0- 105 ** 0- 0- 106 ** 0- 53. (S. Sood ) 0- 107 ** 0- 108 ** 0- 54. (S. Sood ) 1 2 0- 109() 109() ** 0- 110 ** 0- 55. (S. Sood ) 0- 111 ** 56. (S. Sood ) 0- 112 ** 0- 1 2 3 4 5 6 7 8 0- 113 ** 57. (S. Sood ) 0- 114() 114() ** 0- 1 2 3 4 5 0- 115 ** 58. (S. Sood ) 0- 116() 116() 116() 116() ** 0- 117() 117() ** 59. (S. Sood ) 0- 118() 118() 0- 118() ~ ** ** 0- 119() 119() ** 60. (S. Sood ) 0- 120() 120() ** 0- 1 61. (S. Sood ) 2 0- 121() 121() , ( ) **