Aranya-Kand Shri Ramcharit Manas, Gita Press Gorakhpur

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शारमचरतमनस

अरणयकणड

 त ताय सोपन - म गलचरण  

ोक : 

* मी  ल धम तरो कजलध पी  ण द मनदद 

  रयब जभकर घघनतपह तपहम। 

 मोहभोधरपी  गपटनऽधौ सभ श कर 

  द कल कल कशमन ा रमभी  पऽयम॥1॥ 

भथ:-धम पा क मी  ल , ऽ क पा सम  को आन द द न ल  पी  ण च ,  रय पा कमल क (ऽकऽसत करन ल) सी  य, पप पा 

 घोर अधकर को ऽनय हा ऽमटन ल, तान तप को हरन ल,

 मोह पा बदल क समी  ह को ऽि - ऽभ करन क ऽऽध (य) म 

आकश स उप पन प , जा क शज (आमज) तथ 

 कल कनशक , महरज ा रमचजा क ऽय ा श करजा क म  दन 

 करत ॥1॥ 

* सनदपयोदसौभगतन  पातबर स  दर 

 पणौ बणशरसन कटलसी  णारभर रम। 

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 रजायतलोचन ध तजटजी  टन सशोऽभत 

 सातलमणस य त पऽथगत रमऽभरम भज॥2॥

भथ:- ऽजनक शरार जलय  म घ क समन स  दर (यमण) ए 

आन दघन ह, जो स  दर (कल क) पात धरण कए ह, ऽजनक

 हथ म बण और धन ष ह, कमर उम तरकस क भर स सशोऽभत ह,

 कमल क समन ऽशल न  ह और मतक पर जटजी  ट धरण कए ह,

 उन अयत शोभयमन ा सातजा और लमणजा सऽहत मग म  चलत ए आन द द न ल ा रमचजा को म भजत ॥2॥ 

 सोरठ :

* उम रम ग न गी   प ऽडत म ऽन पह ऽबरऽत। 

 पह मोह ऽबमी   ज हर ऽबम ख न धम रऽत॥ 

भथ:- ह प ता! ा रमजा क ग ण गी   ह, पऽडत और म ऽन उह 

 समझकर  रय करत ह, परत जो भगन स ऽम ख ह और 

 ऽजनक धम म  म नह ह,  महमी   (उह स नकर) मोह को होत 

 ह। 

*चौपई :

 प र नर भरत ाऽत म गई। मऽत अन प अनी  प स हई॥ 

अब भ चरत स न अऽत पन। करत ज बन स र नर म ऽन भन॥1॥ 

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भथ:- प रऽसय क और भरतजा क अन पम और स  दर  म क म न 

अपना ब ऽ क अन सर गन कय। अब द त , मन य और म ऽनय क

 मन को भन ल भ ा रमचजा क अयत पऽ चर स नो ,

 ऽजह न म कर रह ह 

 जय त क क टलत और फल ऽ 

* एक बर च ऽन कस म स हए। ऽनज कर भी  षन रम बनए॥ 

 सातऽह पऽहरए भ सदर। ब ठ फटक ऽसल पर स  दर॥2॥ 

भथ:- एक बर स  दर फील च नकर ा रमजा न अपन हथ स भ ऽत -

भ ऽत क गहन बनए और स  दर फटक ऽशल पर ब ठ ए भ न आदर 

 क सथ गहन ा सातजा को पहनए॥2॥ 

* स रपऽत स त धर बयस ब ष। सठ चहत रघ पऽत बल द ख॥ 

 ऽजऽम ऽपपाऽलक सगर थह। मह म दमऽत पन चह॥3॥

भथ:- द रज इ क मी  ख प  जयत कौए क प धरकर ा 

 रघ नथजा क बल द खन चहत ह। ज स महन म दब ऽ चटा सम  

 क थह पन चहता हो॥3॥ 

*सात चरन चच हऽत भग। मी   म दमऽत करन कग॥ 

 चल ऽधर रघ नयक जन। सक धन ष सयक सधन॥4॥ 

भथ:- ह मी   , म दब ऽ करण स (भगन क बल क परा करन 

 क ऽलए) बन आ कौआ सातजा क चरण म चच मरकर भग। जब 

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 र बह चल , तब ा रघ नथजा न जन और धन ष पर सक (सरकड)

 क बण सधन कय॥4॥ 

 दोह : 

* अऽत कपल रघ नयक सद दान पर न ह। 

 त सन आइ कह िल मी  रख अग न ग ह॥1॥ 

भथ:-ा रघ नथजा , जो अयत हा कपल ह और ऽजनक दान पर 

 सद  म रहत ह, उनस भा उस अग ण क घर मी  ख जयत न आकर 

ि ल कय॥1॥

 चौपई : 

* रत म  सर ध। चल भऽज बयस भय प॥ 

धर ऽनज प गयउ ऽपत पह। रम ऽबम ख रख त ऽह नह॥1॥ 

भथ:- म  स  रत होकर ह बण दौ। कौआ भयभात होकर 

भग चल। ह अपन असला प धरकर ऽपत इ क पस गय , पर 

ा रमजा क ऽरोधा जनकर इ न उसको नह रख॥1॥

*भ ऽनरस उपजा मन स। जथ च भय रऽष द ब स॥ 

 धम ऽसप र सब लोक। फर ऽमत यकल भय सोक॥2॥ 

भथ:- तब ह ऽनरश हो गय , उसक मन म भय उप हो गय , ज स 

 द  स ऋऽष को च स भय आ थ। ह लोक , ऽशलोक आद 

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 समत लोक म थक आ और भय -शोक स कल होकर भगत 

 फर॥2॥

*क ब ठन कह न ओहा। रऽख को सकइ रम कर ोहा ॥ 

 मत म य ऽपत समन समन। सध होइ ऽबष स न हरजन॥3॥ 

भथ:-(पर रखन तो दी  र रह) कसा न उस ब ठन तक क ऽलए नह 

 कह। ा रमजा क ोहा को कौन रख सकत ह? ( ककभश ऽडजा 

 कहत ह-) ह ग ! स ऽनए , उसक ऽलए मत म य क समन , ऽपत  यमरज क समन और अम त ऽष क समन हो जत ह॥3॥

*ऽम करइ सत रप क करना। त कह ऽबबधनदा ब तरना॥ 

 सब जग तऽह अनल त तत। जो रघ बार ऽबम ख स न त॥4॥ 

भथ:-

 ऽम स क श क सा करना करन लगत ह। द नदा  ग गजा उसक ऽलए  तरणा (यमप रा क नदा) हो जता ह। ह भई!

 स ऽनए , जो ा रघ नथजा क ऽम ख होत ह, समत जगत उनक ऽलए 

अऽ स भा अऽधक गरम (जलन ल) हो जत ह॥4॥

*नरद द ख ऽबकल जय त। लऽग दय कोमल ऽचत स त॥ 

 पठ त रत रम पह तहा। कह ऽस प कर नत ऽहत पहा॥5॥ 

भथ:- नरदजा न जयत को कल द ख तो उह दय आ गई ,

यक स त क ऽच ब कोमल होत ह। उहन उस (समझकर)

 त रत ा रमजा क पस भ ज दय। उसन (जकर) प करकर कह - ह 

शरणगत क ऽहतकरा! म रा र कऽजए॥5॥

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*आत र सभय गह ऽस पद जई। ऽह ऽह दयल रघ रई॥ 

अत ऽलत बल अत ऽलत भ तई। म मऽतम द जऽन नह पई॥6॥ 

भथ:-आत र और भयभात जयत न जकर ा रमजा क चरण पक 

 ऽलए (और कह -) ह दयल रघ नथजा! र कऽजए , र कऽजए।

आपक अत ऽलत बल और आपक अत ऽलत भ त (समय) को म 

 मदब ऽ जन नह पय थ॥6॥

*ऽनज कत कम जऽनत फल पयउ। अब भ पऽह सरन तक आयउ॥ 

 स ऽन कपल अऽत आरत बना। एकनयन कर तज भना॥7॥ 

भथ:-अपन कम स उप आ फल म न प ऽलय। अब ह भ! म रा 

 र कऽजए। म आपक शरण तक कर आय । (ऽशजा कहत ह-) ह 

 प ता! कपल ा रघ नथजा न उसक अय त आ (द ख भरा) णा 

 स नकर उस एक आ ख क कन करक िो दय॥7॥

 सोरठ : 

*कह मोह बस ोह जऽप त ऽह कर बध उऽचत। 

 भ ि उ कर िोह को कपल रघ बार सम॥2॥ 

भथ:- उसन मोहश ोह कय थ , इसऽलए यऽप उसक ध हा 

 उऽचत थ , पर भ न कप करक उस िो दय। ा रमजा क समन 

 कपल और कौन होग ?॥2॥

 चौपई : 

*रघ पऽत ऽचकीट बऽस नन। चरत कए  ऽत सध समन॥ 

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 बर रम अस मन अन मन। होइऽह भार सबह मोऽह जन॥1॥ 

भथ:- ऽचकीट म बसकर ा रघ नथजा न बत स चर कए , जो 

 कन को अम त क समन (ऽय) ह। फर (कि समय पत) ा 

 रमजा न मन म ऐस अन मन कय क म झ सब लोग जन गए ह,

 इसस (यह) बा भा हो जएगा॥1॥

अऽ ऽमलन ए त ऽत 

* सकल म ऽनह सन ऽबद करई। सात सऽहत चल ौ भई॥ 

अऽ क आम जब भ गयऊ। स नत महम ऽन हरऽषत भयऊ॥2॥ 

भथ:-(इसऽलए) सब म ऽनय स ऽद ल कर सातजा सऽहत दोन 

भई चल! जब भ अऽजा क आम म गए , तो उनक आगमन स नत 

 हा महम ऽन हषत हो गए॥2॥ 

* प लकत गत अऽ उठ धए। द ऽख रम आत र चऽल आए॥ 

 करत द डत म ऽन उर लए।  म बर ौ जन अहए॥3॥

भथ:-शरार प लकत हो गय , अऽजा उठकर दौ। उह दौ आत 

 द खकर ा रमजा और भा शात स चल आए। दडत करत ए हा 

ा रमजा को (उठकर) म ऽन न दय स लग ऽलय और  म क

 जल स दोन जन को (दोन भइय को) नहल दय॥3॥ 

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*द ऽख रम िऽब नयन ज न। सदर ऽनज आम तब आन॥ 

 कर पी  ज कऽह बचन स हए। दए मी  ल फल भ मन भए॥4॥ 

भथ:-ा रमजा क िऽ द खकर म ऽन क न  शातल हो गए। तब  

 उनको आदरपी   क अपन आम म ल आए। पी  जन करक स  दर चन 

 कहकर म ऽन न मी  ल और फल दए , जो भ क मन को बत च॥4॥ 

 सोरठ : 

* भ आसन आसान भर लोचन सोभ ऽनरऽख। 

 म ऽनबर परम बान जोर पऽन अत ऽत करत॥3॥ 

भथ:- भ आसन पर ऽरजमन ह। न  भरकर उनक शोभ द खकर 

 परम ाण म ऽन   हथ जोकर त ऽत करन लग॥3॥

ि द : *नमऽम भ सल। कपल शाल कोमल॥ 

भजऽम त पद ब ज। अकऽमन धमद॥1॥ 

भथ:- ह भ सल! ह कपल! ह कोमल भ ल! म आपको 

 नमकर करत । ऽनकम प ष को अपन परमधम द न ल आपक

 चरण कमल को म भजत ॥1॥

*ऽनकम यम स  दर। भ ब नथ म दर॥ 

 फ ल कज लोचन। मदद दोष मोचन॥2॥ 

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भथ:-आप ऽनतत स  दर यम , स सर (आगमन) पा सम  को 

 मथन क ऽलए म दरचल प , फील ए कमल क समन न  ल और 

 मद आद दोष स िन ल ह॥2॥

*ल ब ब ऽम। भोऻम य भ॥ 

 ऽनष ग चप सयक। धर ऽलोक नयक॥3॥ 

भथ:- ह भो! आपक ल बा भ ज क परम और आपक ऐय 

अम य (बऽ क पर अथ असाम) ह। आप तरकस और धन ष - बण धरण करन ल तान लोक क मा ,॥3॥

*दनश श म डन। महश चप ख डन॥ 

 म न स त रजन। स रर   द भ जन॥4॥ 

भथ:- सी  य श क भी  षण , महद जा क धन ष को तोन ल,

 म ऽनरज और स त को आन द द न ल तथ द त क श अस र क

 समी  ह क नश करन ल ह॥4॥

*मनोज  र  दत। अजद द  स ऽत॥ 

 ऽश  बोध ऽह। समत दी  षणपह॥5॥ 

भथ:-आप कमद  क श महद जा क र  दत ,  आद 

 द त स स ऽत , ऽश  नमय ऽह और समत दोष को न 

 करन ल ह॥5॥

*नमऽम इदर पत। स खकर सत गत॥ 

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भज सशऽ सन ज। शचा पऽत ऽयन ज॥6॥ 

भथ:- ह लमापत! ह स ख क खन और सप ष क एकम गऽत!

 म आपको नमकर करत ! ह शचापऽत (इ) क ऽय िोट भई (मनजा)! प -शऽ ा सातजा और िोट भई लमणजा सऽहत 

आपको म भजत ॥6॥

*द ऽ मी  ल य नर। भज ऽत हान मसर॥ 

 पत ऽत नो भण । ऽतक ाऽच स कल॥7॥ 

भथ:- जो मन य मसर (डह) रऽहत होकर आपक चरण कमल क 

 स न करत ह,  तक - ऽतक (अन क कर क स द ह) पा तरग स पी  ण 

 स सर पा सम  म नह ऽगरत (आगमन क चर म नह पत)॥7॥

*ऽऽ ऽसन सद। भज ऽत म य म द॥ 

 ऽनरय इयदक। य ऽतत गत क॥8॥ 

भथ:- जो एकतसा प ष म ऽ क ऽलए , इऽयद क ऽनह 

 करक (उह ऽषय स हटकर) सतपी   क आपको भजत ह,  

 कय गऽत को (अपन प को) होत ह॥8॥

*तम कमभ त भ । ऽनराहमार ऽभ ॥ 

 जगग  च शत। त रायम  क ल॥9॥ 

भथ:- उन (आप) को जो एक (अऽताय), अभ त (मऽयक जगत स 

 ऽलण), भ (स समथ), इिरऽहत , ईर (सबक मा), पक ,

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 जगग  , सनतन (ऽनय), त राय (तान ग ण स सथ पर) और क ल 

(अपन प म ऽथत) ह॥9॥

*भजऽम भ लभ। क योऽगन स द लभ॥ 

 भ कप पदप। सम स स मह॥10॥ 

भथ:-(तथ) जो भऽय , क योऽगय (ऽषया प ष) क ऽलए 

अयत द लभ , अपन भ क ऽलए कप (अथ त उनक समत 

 कमन को पी  ण करन ल), सम (पपतरऽहत) और सद स खपी   क 

 स न करन योय ह, म ऽनरतर भजत ॥10॥

*अनी  प प भी  पत। नतोऻहम ज पत॥ 

 साद म नमऽम त। पदज भऽ द ऽह म॥11॥ 

भथ:- ह अन पम स  दर! ह पापऽत! ह जनकनथ! म आपको णम 

 करत । म झ पर स होइए , म आपको नमकर करत । म झ 

अपन चरण कमल क भऽ दाऽजए॥11॥

*पठऽत य त इद। नरदरण त पद॥ 

 वज ऽत न सशय। दाय भऽ स य त॥12॥ 

भथ:- जो मन य इस त ऽत को आदरपी   क पत ह,  आपक भऽ 

 स य  होकर आपक परम पद को होत ह, इसम स द ह नह॥12॥

 दोह : 

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*ऽबनता कर म ऽन नइ ऽस कह कर जोर बहोर। 

 चरन सरोह नथ जऽन कब तज मऽत मोर॥4॥ 

भथ:- म ऽन न (इस कर) ऽनता करक और फर ऽसर नकर , हथ 

 जोकर कह - ह नथ! म रा ब ऽ आपक चरण कमल को कभा न 

ि ो॥4॥

ा सात -अनसी  य ऽमलन और ा सातजा को अनसी  यजा क पऽतवत 

धम कहन 

 चौपई : 

* अन स इय क पद गऽह सात। ऽमला बहोर स साल ऽबनात॥ 

 रऽषपऽतना मन स ख अऽधकई। आऽसष द इ ऽनकट ब ठई॥1॥ 

भथ:- फर परम शालता और ऽन ा सातजा अनसी  यजा 

(आऽजा क पा) क चरण पककर उनस ऽमल। ऋऽष पा क मन म 

 ब स ख आ। उहन आशाष द कर सातजा को पस ब ठ ऽलय॥1॥

* दय बसन भी  षन पऽहरए। ज ऽनत नी  तन अमल स हए॥ 

 कह रऽषबधी सरस म द बना। नरधम िक यज बखना॥2॥

भथ:-और उह ऐस द और आभी  षण पहनए , जो ऽनय - नए 

 ऽनम ल और स हन बन रहत ह। फर ऋऽष पा उनक बहन मध र 

और कोमल णा स ऽय क कि धम बखन कर कहन लग॥2॥ 

*मत ऽपत त ऽहतकरा। ऽमतद सब स न रजकमरा॥ 

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अऽमत दऽन भत बयद हा। अधम सो नर जो स  न त हा॥3॥ 

भथ:- ह रजकमरा! स ऽनए - मत , ऽपत , भई सभा ऽहत करन 

 ल ह, परत य सब एक साम तक हा (स ख) द न ल ह, परत ह 

 जनक! पऽत तो (मो प) असाम (स ख) द न ल ह। ह ा अधम 

 ह, जो ऐस पऽत क स  नह करता॥3॥ 

* धारज धम ऽम अ नरा। आपद कल परऽखअह चरा॥ 

 ब  रोगबस ज धनहान। अध बऽधर ोधा अऽत दान॥4॥ 

भथ:-ध य, धम, ऽम और ा - इन चर क ऽपऽ क समय हा 

 परा होता ह।   , रोगा , मी  ख, ऽनध न , अध , बहर , ोधा और 

अयत हा दान -॥4॥

*ऐस  पऽत कर कए अपमन। नर प जमप र द ख नन॥ 

 एकइ धम एक त न म। कय बचन मन पऽत पद  म॥5॥ 

भथ:- ऐस भा पऽत क अपमन करन स ा यमप र म भ ऽत -भ ऽत क

 द ख पता ह। शरार , चन और मन स पऽत क चरण म  म करन ा 

 क ऽलए , बस यह एक हा धम ह, एक हा वत ह और एक हा ऽनयम  ह॥5॥

*जग पऽतत चर ऽबऽध अहह। ब द प रन स त सब कहह॥ 

 उम क अस बस मन मह। सपन  आन प ष जग नह॥6॥ 

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भथ:- जगत म चर कर क पऽतवतए ह।  द , प रण और स त सब 

 ऐस कहत ह क उम  णा क पऽतवत क मन म ऐस भ बस 

 रहत ह क जगत म (म र पऽत को िोकर) दी  सर प ष म भा  नह ह॥6॥

*मयम परपऽत द खइ कस। त ऽपत प  ऽनज ज स॥ 

धम ऽबचर सम ऽझ कल रहई। सो ऽनक ऽय  ऽत अस कहई॥7॥ 

भथ:- मयम  णा क पऽतवत परए पऽत को कस द खता ह, ज स  ह अपन सग भई , ऽपत य प  हो (अथ त समन अथ ल को 

 ह भई क प म द खता ह, ब को ऽपत क प म और िोट को प  

 क प म द खता ह।) जो धम को ऽचरकर और अपन कल क मय  द 

 समझकर बचा रहता ह, ह ऽनक (ऽन  णा क) ा ह, ऐस  द 

 कहत ह॥7॥

*ऽबन असर भय त रह जोई। जन  अधम नर जग सोई॥ 

 पऽत ब चक परपऽत रऽत करई। रौर नरक कप सत परई॥8॥ 

भथ:-और जो ा मौक न ऽमलन स य भयश पऽतवत बना 

 रहता ह, जगत म उस अधम ा जनन। पऽत को धोख द न ला जो 

 ा परए पऽत स रऽत करता ह, ह तो सौ कप तक रौर नरक म 

 पा रहता ह॥8॥

*िन स ख लऽग जनम सत कोटा। द ख न सम झ त ऽह सम को खोटा॥ 

 ऽबन म नर परम गऽत लहई। पऽतत धम िऽ िल गहई॥9॥ 

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भथ:-णभर क स ख क ऽलए जो सौ करो (अस य) जम क द ख 

 को नह समझता , उसक समन द  कौन होगा। जो ा िल िोकर 

 पऽतवत धम को हण करता ह, ह ऽबन हा परम परम गऽत को   करता ह॥9॥

*पऽत ऽतकील जनम जह जई। ऽबध होइ पइ तनई॥10॥ 

भथ:- कत जो पऽत क ऽतकील चलता ह, ह जह भा जकर जम 

 ल ता ह, ह जना पकर (भरा जना म) ऽध हो जता ह॥10॥

 सोरठ : 

* सहज अपऽन नर पऽत स त सभ गऽत लहइ। 

 जस गत  ऽत चर अज त लऽसक हरऽह ऽय॥5 क॥ 

भथ:- ा जम स हा अपऽ ह, कत पऽत क स  करक ह 

अनयस हा शभ गऽत कर ल ता ह। (पऽतवत धम क करण हा)

आज भा ' त लसाजा ' भगन को ऽय ह और चर  द उनक यश गत 

 ह॥5 (क)॥

*स न सात त नम स ऽमर नर पऽतत करह। 

 तोऽह नऽय रम कऽहउ कथ स सर ऽहत॥5 ख॥ 

भथ:- ह सात! स नो , त हर तो नम हा ल- ल कर ऽय पऽतवत 

धम क पलन करगा। त ह तो ा रमजा ण क समन ऽय ह, यह 

(पऽतवत धम क) कथ तो म न स सर क ऽहत क ऽलए कहा ह॥5 (ख)॥

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 चौपई : 

* स ऽन जनक परम स ख प। सदर तस चरन ऽस न॥ 

 तब म ऽन सन कह कपऽनधन। आयस होइ जउ बन आन॥1॥ 

भथ:- जनकजा न स नकर परम स ख पय और आदरपी   क उनक

 चरण म ऽसर नय। तब कप क खन ा रमजा न म ऽन स कह - 

आ हो तो अब दी  सर न म जऊ॥1॥

*स तत मो पर कप कर। स क जऽन तज  जऽन न ॥ 

धम ध रधर भ क बना। स ऽन स म बोल म ऽन यना॥2॥ 

भथ:- म झ पर ऽनरतर कप करत रऽहएग और अपन स क जनकर 

  ह न िोऽएग। धम ध रधर भ ा रमजा क चन स नकर ना 

 म ऽन  मपी   क बोल-॥2॥

*जस कप अज ऽस सनकदा। चहत सकल परमरथ बदा॥ 

 त त ह रम अकम ऽपआर। दान बध म द बचन उचर॥3॥ 

भथ:-  , ऽश और सनकद सभा परमथ दा (त )

 ऽजनक कप चहत ह, ह रमजा! आप हा ऽनकम प ष क भा ऽय 

और दान क बध भगन ह, जो इस कर कोमल चन बोल रह 

 ह॥3॥

*अब जना म ा चत रई। भजा त हऽह सब द  ऽबहई॥ 

 ज ऽह समन अऽतसय नह कोई। त कर साल कस न अस होई॥4॥ 

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भथ:-अब म न लमाजा क चत रई समझा , ऽजहन सब द त 

 को िोकर आप हा को भज। ऽजसक समन (सब बत म) अयत 

 ब और कोई नह ह, उसक शाल भल , ऐस य न होग ?॥4॥

*क ऽह ऽबऽध कह ज अब मा। कह नथ त ह अ तरजमा॥ 

अस कऽह भ ऽबलोक म ऽन धार। लोचन जल बह प लक सरार॥5॥ 

भथ:- म कस कर क क ह मा! आप अब जइए ? ह नथ!

आप अतय मा ह, आप हा कऽहए। ऐस कहकर धार म ऽन भ को द खन 

 लग। म ऽन क न  स ( म क) जल बह रह ह और शरार प लकत 

 ह॥5॥

ि द : 

* तन प लक ऽनभ र  म पी  रन नयन म ख प कज दए। 

 मन यन ग न गोतात भ म दाख जप तप क कए॥ 

 जप जोग धम समी  ह त नर भगऽत अन पम पई। 

 रघ बार चरत प नात ऽनऽस दन दस त लसा गई॥ 

भथ:- म ऽन अयत  म स पी  ण ह, उनक शरार प लकत ह और न  

 को ा रमजा क म खकमल म लगए ए ह। (मन म ऽचर रह ह क)

 म न ऐस कौन स जप - तप कए थ, ऽजसक करण मन , न , ग ण और 

 इऽय स पर भ क दश न पए। जप , योग और धम समी  ह स मन य 

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अन पम भऽ को पत ह। ा रघ ार क पऽ चर को त लसादस 

 रत - दन गत ह।

 दोह : 

* कऽलमल समन दमन मन रम स जस स खमी  ल। 

 सदर स नह ज ऽतह पर रम रहह अन कील॥6 क॥ 

भथ:-ा रमचजा क स  दर यश कऽलय ग क पप क नश करन 

 ल , मन को दमन करन ल और स ख क मी  ल ह, जो लोग इस आदरपी   क स नत ह, उन पर ा रमजा स रहत ह॥6 (क)॥

 सोरठ : 

* कठन कल मल कोस धम न यन न जोग जप। 

 परहर सकल भरोस रमऽह भजह त चत र नर॥6 ख॥ 

भथ:- यह कठन कऽल कल पप क खजन ह, इसम न धम ह, न 

 न ह और न योग तथ जप हा ह। इसम तो जो लोग सब भरोस को 

ि ोकर ा रमजा को हा भजत ह,  हा चत र ह॥6 (ख)॥

ा रमजा क आग थन , ऽरध ध और शरभ ग स ग  

 चौपई : 

* म ऽन पद कमल नइ कर सास। चल बनऽह स र नर म ऽन ईस॥ 

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आग रम अन ज प ऽन िप। म ऽन बर ब ष बन अऽत िक ॥1॥ 

भथ:- म ऽन क चरण कमल म ऽसर नकर द त , मन य और 

 म ऽनय क मा ा रमजा न को चल। आग ा रमजा ह और उनक

 िपा िोट भई लमणजा ह। दोन हा म ऽनय क स  दर  ष बनए 

अयत सशोऽभत ह॥1॥

* उभय बाच ा सोहइ कसा। जा ऽबच मय ज सा॥ 

 सरत बन ऽगर अघट घट। पऽत पऽहचऽन द ह बर बट॥2॥भथ:- दोन क बाच म ा जनकजा कसा सशोऽभत ह, ज स  

और जा क बाच मय हो। नदा , न , प त और द ग म घटय, सभा 

अपन मा को पहचनकर स  दर रत द द त ह॥2॥ 

* जह जह जह द  रघ रय। करह म घ तह तह नभ िय॥ 

 ऽमल अस र ऽबरध मग जत। आतह रघ बार ऽनपत॥3॥ 

भथ:- जह- जह द  ा रघ नथजा जत ह, ह- ह बदल आकश 

 म िय करत जत ह। रत म जत ए ऽरध रस ऽमल। समन 

आत हा ा रघ नथजा न उस मर डल॥3॥ 

* त रतह ऽचर प त ह प। द ऽख द खा ऽनज धम पठ॥ 

 प ऽन आए जह म ऽन सरभ ग। स  दर अन ज जनक स ग॥4॥ 

भथ:-(ा रमजा क हथ स मरत हा) उसन त रत स  दर (द) प 

  कर ऽलय। द खा द खकर भ न उस अपन परम धम को भ ज 

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 दय। फर स  दर िोट भई लमणजा और सातजा क सथ ह 

आए जह म ऽन शरभ गजा थ॥4॥ 

 दोह : 

* द ऽख रम म ख प कज म ऽनबर लोचन भ  ग। 

 सदर पन करत अऽत धय जम सरभ ग॥7॥ 

भथ:-ा रमचजा क म खकमल द खकर म ऽन  क न  पा 

भर अयत आदरपी   क उसक (मकरद रस) पन कर रह ह।शरभ गजा क जम धय ह॥7॥

 चौपई : 

* कह म ऽन स न रघ बार कपल। स कर मनस रजमरल॥ 

 जत रह उ ऽबरऽच क धम। स न उ न बन ऐहह रम॥1॥ 

भथ:- म ऽन न कह - ह कपल रघ ार! ह श करजा मन पा 

 मनसरोर क रजह स! स ऽनए , म लोक को ज रह थ। (इतन म)

 कन स स न क ा रमजा न म आ ग॥1॥

* ऽचतत पथ रह उ दन रता। अब भ द ऽख ज ना िता॥ 

 नथ सकल सधन म हान। कहा कप जऽन जन दान॥2॥ 

भथ:- तब स म दन - रत आपक रह द खत रह । अब (आज) भ 

 को द खकर म रा िता शातल हो गई। ह नथ! म सब सधन स हान ।

आपन अपन दान स क जनकर म झ पर कप क ह॥2॥

* सो िक द  न मोऽह ऽनहोर। ऽनज पन रख उ जन मन चोर॥ 

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 तब लऽग रह दान ऽहत लगा। जब लऽग ऽमल त हऽह तन यगा॥3॥ 

भथ:- ह द ! यह कि म झ पर आपक एहसन नह ह। ह भ -

 मनचोर! ऐस करक आपन अपन ण क हा र क ह। अब इस दान  क कयण क ऽलए तब तक यह ठहरए , जब तक म शरार िोकर 

आपस (आपक धम म न) ऽमली   ॥3॥

* जोग जय जप तप त कह। भ कह द इ भगऽत बर लाह॥ 

 एऽह ऽबऽध सर रऽच म ऽन सरभ ग। ब ठ दय िऽ सब स ग॥4॥ 

भथ:- योग , य , जप , तप जो कि वत आद भा म ऽन न कय थ ,

 सब भ को समप ण करक बदल म भऽ क रदन ल ऽलय। इस 

 कर (द लभ भऽ करक फर) ऽचत रचकर म ऽन शरभ गजा दय 

 स सब आसऽ िोकर उस पर ज ब ठ॥4॥

 दोह : 

* सात अन ज सम त भ नाल जलद तन यम। 

 मम ऽहय बस ऽनरतर सग नप ा रम॥8॥ 

भथ:- ह नाल म घ क समन यम शरार ल सग ण प ा रमजा!

 सातजा और िोट भई लमणजा सऽहत भ (आप) ऽनरतर म र दय  म ऽनस कऽजए॥8॥

 चौपई : 

* अस कऽह जोग अऽगऽन तन जर। रम कप ब क  ठ ऽसधर॥ 

 तत म ऽन हर लान न भयऊ। थमह भ द भगऽत बर लयऊ॥1॥ 

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भथ:- ऐस कहकर शरभ गजा न योगऽ स अपन शरार को जल 

 डल और ा रमजा क कप स  क  ठ को चल गए। म ऽन भगन म 

 लान इसऽलए नह ए क उहन पहल हा भ द -

भऽ क र ल ऽलय थ॥1॥

* रऽष ऽनकय म ऽनबर गऽत द खा। स खा भए ऽनज दय ऽबस षा॥ 

अत ऽत करह सकल म ऽन ब  द। जयऽत नत ऽहत कन कद॥2॥ 

भथ:- ऋऽष समी  ह म ऽन   शरभ गजा क यह (द लभ) गऽत द खकर 

अपन दय म ऽश ष प स स खा ए। समत म ऽन  द ा रमजा क 

 त ऽत कर रह ह (और कह रह ह) शरणगत ऽहतकरा कण कद 

(कण क मी  ल) भ क जय हो!॥2॥

* प ऽन रघ नथ चल बन आग। म ऽनबर ब  द ऽबप ल स ग लग॥ 

अऽथ समीह द ऽख रघ रय। पी ि ा म ऽनह लऽग अऽत दय॥3॥ 

भथ:- फर ा रघ नथजा आग न म चल।   म ऽनय क बत स 

 समी  ह उनक सथ हो ऽलए। हऽय क ढर द खकर ा रघ नथजा को 

 बा दय आई , उहन म ऽनय स पी ि ॥3॥

* जनत पी  ऽिअ कस मा। सबदरसा तह अ तरजमा॥ 

 ऽनऽसचर ऽनकर सकल म ऽन खए। स ऽन रघ बार नयन जल िए॥4॥ 

भथ:-(म ऽनय न कह) ह मा! आप स दश (स ) और 

अ तय मा (सबक दय क जनन ल) ह। जनत ए भा (अनजन क 

 तरह) हमस कस पी ि  रह ह? रस क दल न सब म ऽनय को ख 

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 डल ह। (य सब उह क हऽय क ढर ह)। यह स नत हा ा रघ ार 

 क न  म जल ि गय (उनक आ ख म कण क आ सी भर आए)॥4॥

 रस ध क ऽत करन , स ताणजा क  म , अगय ऽमलन ,

अगय स द  

 दोह : 

* ऽनऽसचर हान करउ मऽह भ ज उठइ पन कह। 

 सकल म ऽनह क आमऽह जइ जइ स ख दाह॥9॥ 

भथ:-ा रमजा न भ ज उठकर ण कय क म पा को रस 

 स रऽहत कर दी    ग। फर समत म ऽनय क आम म ज - जकर उनको 

(दश न ए सभषण क) स ख दय॥9॥

 चौपई : 

* म ऽन अगऽत कर ऽसय स जन। नम स ितान रऽत भगन॥ 

 मन म बचन रम पद स क। सपन  आन भरोस न द क॥1॥

भथ:- म ऽन अगयजा क एक स ताण नमक स जन (ना) ऽशय 

थ, उनक भगन म ाऽत था। मन , चन और कम स ा रमजा क

 चरण क स क थ। उह म भा कसा दी  सर द त क भरोस नह 

थ॥1॥ 

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* भ आगन न स ऽन प। करत मनोरथ आत र ध॥ 

 ह ऽबऽध दानबध रघ रय। मो स सठ पर करहह दय॥2॥ 

भथ:- उहन य हा भ क आगमन कन स स न पय , य हा 

अन क कर क मनोरथ करत ए आत रत (शात) स दौ चल। ह 

 ऽधत! य दानबध ा रघ नथजा म झ ज स द  पर भा दय 

 करग?॥2॥ 

* सऽहत अन ज मोऽह रम गोस। ऽमऽलहह ऽनज स क क न॥ 

 मोर ऽजय भरोस द  नह। भगऽत ऽबरऽत न यन मन मह॥3॥ 

भथ:-य मा ा रमजा िोट भई लमणजा सऽहत म झस 

अपन स क क तरह ऽमल ग? म र दय म द  ऽस नह होत ,

यक म र मन म भऽ ,  रय य न कि भा नह ह॥3॥ 

* नह सतस ग जोग जप जग। नह द  चरन कमल अन रग॥ 

 एक बऽन कनऽनधन क। सो ऽय जक गऽत न आन क॥4॥ 

भथ:- म न न तो सस ग , योग , जप अथ य हा कए ह और न भ 

 क चरणकमल म म र द  अन रग हा ह। ह, दय क भ डर भ क 

 एक बन ह क ऽजस कसा दी  सर क सहर नह ह, ह उह ऽय होत 

 ह॥4॥

* होइह स फल आज मम लोचन। द ऽख बदन प कज भ मोचन॥ 

 ऽनभ र  म मगन म ऽन यना। कऽह न जइ सो दस भना॥5॥ 

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भथ:-(भगन क इस बन क मरण आत हा म ऽन आन दम 

 होकर मन हा मन कहन लग-) अह! भ बधन स िन ल भ क

 म खरद को द खकर आज म र न  सफल हग। (ऽशजा कहत ह-

) ह भना! ना म ऽन  म म पी  ण प स ऽनम ह। उनक ह दश कहा 

 नह जता॥5॥

* दऽस अ ऽबदऽस पथ नह सी  झ। को म चल उ कह नह बी  झ॥ 

 कब क फर िप प ऽन जई। कब क न य करइ ग न गई॥6॥ 

भथ:- उह दश - ऽदश (दशए और उनक कोण आद) और 

 रत , कि भा नह सी  झ रह ह। म कौन और कह ज रह , यह 

भा नह जनत (इसक भा न नह ह)। कभा िपा घी  मकर फर 

आग चलन लगत ह और कभा (भ क) ग ण ग - गकर नचन लगत 

 ह॥6॥

* अऽबरल  म भगऽत म ऽन पई। भ द ख त ओट ल कई॥ 

अऽतसय ाऽत द ऽख रघ बार। गट दय हरन भ भार॥7॥ 

भथ:- म ऽन न ग  मभऽ कर ला। भ ा रमजा क 

आ म ऽिपकर (भ क  मोम दश) द ख रह ह। म ऽन क अयत 

  म द खकर भभय (आगमन क भय) को हरन ल ा रघ नथजा  म ऽन क दय म कट हो गए॥7॥

* म ऽन मग मझ अचल होइ ब स। प लक सरार पनस फल ज स॥ 

 तब रघ नथ ऽनकट चऽल आए। द ऽख दस ऽनज जन मन भए॥8॥ 

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भथ:-(दय म भ क दश न पकर) म ऽन बाच रत म अचल 

(ऽथर) होकर ब ठ गए। उनक शरार रोम च स कटहल क फल क समन 

(कटकत) हो गय। तब ा रघ नथजा उनक पस चल आए और अपन भ क  म दश द खकर मन म बत स ए॥8॥

* म ऽनऽह रम ब भ ऽत जग। जग न यन जऽनत स ख प॥ 

भी  प प तब रम द र। दय चतभ   ज प द ख॥9॥ 

भथ:-ा रमजा न म ऽन को बत कर स जगय , पर म ऽन नह 

 जग, यक उह भ क यन क स ख हो रह थ। तब ा 

 रमजा न अपन रजप को ऽिप ऽलय और उनक दय म अपन 

 चतभ   ज प कट कय॥9॥

* म ऽन अकलइ उठ तब कस। ऽबकल हान मऽन फऽनबर ज स॥ 

आग द ऽख रम तन यम। सात अन ज सऽहत स ख धम॥10॥ 

भथ:- तब (अपन ई प क अ तध न होत हा) म ऽन ऐस कल 

 होकर उठ, ज स   (मऽणधर) सप मऽण क ऽबन कल हो जत ह।

 म ऽन न अपन समन सातजा और लमणजा सऽहत यमस  दर ऽह 

 स खधम ा रमजा को द ख॥10॥* परउ लक ट इ चरनऽह लगा।  म मगन म ऽनबर बभगा॥ 

भ ज ऽबसल गऽह ऽलए उठई। परम ाऽत रख उर लई॥11॥ 

भथ:-  म म म ए बभगा   म ऽन लठा क तरह ऽगरकर 

ा रमजा क चरण म लग गए। ा रमजा न अपना ऽशल भ ज 

 स पककर उह उठ ऽलय और ब  म स दय स लग रख॥11॥

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* म ऽनऽह ऽमलत अस सोह कपल। कनक तऽह जन भ ट तमल॥ 

 रम बदन ऽबलोक म ऽन ठ। मन ऽच मझ ऽलऽख क॥12॥ 

भथ:- कपल ा रमचजा म ऽन स ऽमलत ए ऐस शोऽभत हो रह 

 ह, मनो सोन क स तमल क गल लगकर ऽमल रह हो। म ऽन 

(ऽनतध) ख ए (टकटक लगकर) ा रमजा क म ख द ख रह ह,

 मनो ऽच म ऽलखकर बनए गए ह॥12॥

 दोह : 

* तब म ऽन दय धार धर गऽह पद बरह बर। 

 ऽनज आम भ आऽन कर पी  ज ऽबऽबध कर॥10॥ 

भथ:- तब म ऽन न दय म धारज धरकर बर - बर चरण को पश 

 कय। फर भ को अपन आम म लकर अन क कर स उनक पीज  क॥10॥

 चौपई : 

* कह म ऽन भ स न ऽबनता मोरा। अत ऽत कर कन ऽबऽध तोरा॥ 

 मऽहम अऽमत मोर मऽत थोरा। रऽब सम ख खोत अ जोरा॥1॥ 

भथ:- म ऽन कहन लग- ह भो! म रा ऽनता स ऽनए। म कस कर स 

आपक त ऽत क? आपक मऽहम अपर ह और म रा ब ऽ अप ह।

 ज स सी  य क समन ज गनी क उजल!॥1॥

* यम तमरस दम शरार। जट म क ट परधन म ऽनचार॥ 

 पऽण चप शर कट ती  णार। नौऽम ऽनरतर ारघ ार॥2॥ 

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भथ:- ह नालकमल क मल क समन यम शरार ल! ह जट 

 क म क ट और म ऽनय क (कल) पहन ए , हथ म धन ष - बण 

 ऽलए तथ कमर म तरकस कस ए ा रमजा! म आपको ऽनरतर  नमकर करत ॥2॥

* मोह ऽऽपन घन दहन कशन । स त सरोह कनन भन ॥ 

 ऽनऽसचर कर थ म गरज। स सद नो भ खग बज॥3॥ 

भथ:- जो मोह पा घन न को जलन क ऽलए अऽ ह, स त पा  कमल क न को फ ऽलत करन क ऽलए सी  य ह, रस पा हऽथय 

 क समी  ह को िपन क ऽलए सह ह और भ (आगमन) पा पा 

 को मरन क ऽलए बज प ह,  भ सद हमरा र कर॥3॥

* अण नयन रजा स श। सात नयन चकोर ऽनशश॥ 

 हर द मनस बल मरल। नौऽम रम उर ब ऽशल॥4॥ 

भथ:- ह लल कमल क समन न  और स  दर श ल! सातजा क

 न  पा चकोर क च म , ऽशजा क दय पा मनसरोर क

 बलह स , ऽशल दय और भ ज ल ा रमच जा! म आपको 

 नमकर करत ॥4॥

* सशय सप सन उरगद। शमन स ककश तक ऽषद॥ 

भ भ जन रजन स र यी थ। त सद नो कप थ॥5॥ 

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भथ:- जो सशय पा सप को सन क ऽलए ग ह, अय त कठोर 

 तक स उप होन ल ऽषद क नश करन ल ह, आगमन को 

 ऽमटन ल और द त क समी  ह को आन द द न ल ह,  कप क

 समी  ह ा रमजा सद हमरा र कर॥5॥

* ऽनग   ण सग ण ऽषम सम प। न ऽगर गोतातमनी  प॥ 

अमलमऽखलमनमपर। नौऽम रम भ जन मऽह भर॥6॥ 

भथ:- ह ऽनग   ण , सग ण , ऽषम और समप! ह न , णा और 

 इय स अतात! ह अन पम , ऽनम ल , स पी  ण दोषरऽहत , अन त ए पा 

 क भर उतरन ल ा रमच जा! म आपको नमकर करत ॥6॥

* भ कपपदप आरम। तज न ोध लोभ मद कम॥ 

अऽत नगर भ सगर स त । त सद दनकर कल क त ॥7॥ 

भथ:- जो भ क ऽलए कप क बगाच ह, ोध , लोभ , मद और 

 कम को डरन ल ह, अय त हा चत र और स सर पा सम  स तरन 

 क ऽलए स त प ह,  सी  य कल क ज ा रमजा सद म रा र 

 कर॥7॥

* अत ऽलत भ ज तप बल धम। कऽल मल ऽप ल ऽभ जन नम॥ 

धम म नम द ग ण म। स तत श तनोत मम रम॥8॥ 

भथ:- ऽजनक भ ज क तप अत लनाय ह, जो बल क धम ह,

 ऽजनक नम कऽलय ग क ब भरा पप क नश करन ल ह, जो 

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धम क कच (रक) ह और ऽजनक ग ण समी  ह आन द द न ल ह,  ा 

 रमजा ऽनरतर म र कयण क ऽतर कर॥8॥

* जदऽप ऽबरज यपक अऽबनसा। सब क दय ऽनरतर बसा॥ 

 तदऽप अन ज ा सऽहत खररा। बसत मनऽस मम कननचरा॥9॥ 

भथ:- यऽप आप ऽनम ल , पक , अऽनशा और सबक दय म 

 ऽनरतर ऽनस करन ल ह, तथऽप ह खरर ा रमजा! लमणजा 

और सातजा सऽहत न म ऽचरन ल आप इसा प म म र दय म 

 ऽनस कऽजए॥9॥

* ज जनह त जन मा। सग न अग न उर अ तरजमा॥ 

 जो कोसलपऽत रऽज नयन। करउ सो रम दय मम अयन॥10॥ 

भथ:- ह मा! आपको जो सग ण , ऽनग   ण और अ तय मा जनत ह ,

  जन कर, म र दय म तो कोसलपऽत कमलनयन ा रमजा हा 

अपन घर बन॥10॥

* अस अऽभमन जइ जऽन भोर। म स क रघ पऽत पऽत मोर॥ 

 स ऽन म ऽन बचन रम मन भए। बर हरऽष म ऽनबर उर लए॥11॥ 

भथ:- ऐस अऽभमन भी  लकर भा न िीट क म स क और ा 

 रघ नथजा म र मा ह। म ऽन क चन स नकर ा रमजा मन म बत 

 स ए। तब उहन हषत होकर   म ऽन को दय स लग 

 ऽलय॥11॥

* परम स जन म ऽन मोहा। जो बर मग द उ सो तोहा॥ 

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 म ऽन कह म बर कब न जच। सम ऽझ न परइ झी  ठ क सच॥12॥ 

भथ:-(और कह -) ह म ऽन! म झ परम स जनो। जो र म गो ,

 हा म त ह दी   ! म ऽन स ताणजा न कह - म न तो र कभा म ग हा 

 नह। म झ समझ हा नह पत क य झी  ठ ह और य सय ह, (य 

 म गी , य नह)॥12॥

* त हऽह नाक लग रघ रई। सो मोऽह द  दस स खदई॥ 

अऽबरल भगऽत ऽबरऽत ऽबयन। हो सकल ग न यन ऽनधन॥13॥ 

भथ:-((अत) ह रघ नथजा! ह दस को स ख द न ल! आपको जो 

अि लग, म झ हा दाऽजए। (ा रमच जा न कह - ह म न!) त म 

 ग भऽ ,  रय , ऽन और समत ग ण तथ न क ऽनधन हो 

 जओ॥13॥* भ जो दाह सो ब म प। अब सो द  मोऽह जो भ॥14॥ 

भथ:-(तब म ऽन बोल-) भ न जो रदन दय , ह तो म न प 

 ऽलय। अब म झ जो अि लगत ह, ह दाऽजए॥14॥

 दोह : 

* अन ज जनक सऽहत भ चप बन धर रम। 

 मन ऽहय गगन इद इ बस सद ऽनहकम॥11॥

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भथ:- ह भो! ह ा रमजा! िोट भई लमणजा और सातजा 

 सऽहत धन ष - बणधरा आप ऽनकम (ऽथर) होकर म र दय पा 

आकश म च म क भ ऽत सद ऽनस कऽजए॥11॥ चौपई : 

* एमत कर रमऽनस। हरऽष चल क  भज रऽष पस॥ 

 बत दस ग र दरसन पए। भए मोऽह एह आम आए॥1॥

भथ:-' एमत' ( ऐस हा हो) ऐस उरण कर लमा ऽनस ा  रमच जा हषत होकर अगय ऋऽष क पस चल। (तब स ताणजा 

 बोल-) ग  अगयजा क दश न पए और इस आम म आए म झ बत 

 दन हो गए॥1॥ 

* अब भ स ग जउ ग र पह। त ह कह नथ ऽनहोर नह॥ 

 द ऽख कपऽनऽध म ऽन चत रई। ऽलए स ग ऽबहस ौ भई॥2॥ 

भथ:-अब म भा भ (आप) क सथ ग जा क पस चलत । इसम 

 ह नथ! आप पर म र कोई एहसन नह ह। म ऽन क चत रत द खकर 

 कप क भ डर ा रमजा न उनको सथ ल ऽलय और दोनो भई ह सन 

 लग॥2॥

* पथ कहत ऽनज भगऽत अनी  प। म ऽन आम प च स रभी  प॥ 

 त रत स ितान ग र पह गयऊ। कर द डत कहत अस भयऊ॥3॥ 

भथ:- रत म अपना अन पम भऽ क ण न करत ए द त क

 रजरजर ा रमजा अगय म ऽन क आम पर प च। स ताण 

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 त रत हा ग  अगय क पस गए और दडत करक ऐस कहन 

 लग॥3॥

* नथ कोसलधास कमर। आए ऽमलन जगत आधर॥ 

 रम अन ज सम त ब द हा। ऽनऽस दन द  जपत ह ज हा॥4॥ 

भथ:- ह नथ! अयोय क रज दशरथजा क कमर जगदधर ा 

 रमच जा िोट भई लमणजा और सातजा सऽहत आपस ऽमलन आए 

 ह, ऽजनक ह द ! आप रत - दन जप करत रहत ह॥4॥

* स नत अगऽत त रत उठ धए। हर ऽबलोक लोचन जल िए॥ 

 म ऽन पद कमल पर ौ भई। रऽष अऽत ाऽत ऽलए उर लई॥5॥ 

भथ:- यह स नत हा अगयजा त रत हा उठ दौ। भगन को द खत 

 हा उनक न  म (आन द और  म क आ स क) जल भर आय। दोन 

भई म ऽन क चरण कमल पर ऽगर प। ऋऽष न (उठकर) ब  म स 

 उह दय स लग ऽलय॥5॥

* सदर कसल पी  ऽि म ऽन यना। आसन बर ब ठर आना॥ 

 प ऽन कर ब कर भ पी  ज। मोऽह सम भय त नह दी  ज॥6॥ 

भथ:- ना म ऽन न आदरपी   क कशल पी ि कर उनको लकर   आसन पर ब ठय। फर बत कर स भ क पी  ज करक कह - म र

 समन भयन आज दी  सर कोई नह ह॥6॥

* जह लऽग रह अपर म ऽन ब  द। हरष सब ऽबलोक सखकद॥7॥ 

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भथ:- ह जह तक (ऽजतन भा) अय म ऽनगण थ, सभा आन दकद 

ा रमजा क दश न करक हषत हो गए॥7॥

 दोह : 

* म ऽन समी  ह मह ब ठ सम ख सब क ओर। 

 सरद इद तन ऽचतन मन ऽनकर चकोर॥12॥ 

भथ:- म ऽनय क समी  ह म ा रमच जा सबक ओर सम ख होकर 

 ब ठ ह (अथ त य क म ऽन को ा रमजा अपन हा समन म ख करक ब ठ दखई द त ह और सब म ऽन टकटक लगए उनक म ख को द ख रह 

 ह)। ऐस जन पत ह मनो चकोर क सम दय शरपी  णम क च म 

 क ओर द ख रह ह॥12॥

 चौपई : 

* तब रघ बार कह म ऽन पह। त ह सन भ द र िक नह॥ 

 त ह जन ज ऽह करन आयउ। तत तत न कऽह सम झयउ॥1॥ 

भथ:- तब ा रमजा न म ऽन स कह - ह भो! आप स तो कि 

 ऽिप ह नह। म ऽजस करण स आय , ह आप जनत हा ह। इसा 

 स ह तत! म न आपस समझकर कि नह कह॥1॥

* अब सो म  द  भ मोहा। ज ऽह कर मर म ऽनोहा॥ 

 म ऽन म स कन स ऽन भ बना। पी ि  नथ मोऽह क जना॥2॥ 

भथ:- ह भो! अब आप म झ हा म  (सलह) दाऽजए , ऽजस कर 

 म म ऽनय क ोहा रस को म। भ क णा स नकर म ऽन 

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 म क रए और बोल- ह नथ! आपन य समझकर म झस यह  

 कय ?॥2॥

* त हरइ भजन भ अघरा। जनउ मऽहम िकक त हरा॥ 

 ऊमर त ऽबसल त मय। फल  ड अन क ऽनकय॥3॥ 

भथ:- ह पप क नश करन ल! म तो आप हा क भजन क भ 

 स आपक कि थोा सा मऽहम जनत । आपक मय गी  लर क

 ऽशल क समन ह, अन क  ड क समी  ह हा ऽजसक फल ह॥3॥

* जा चरचर ज त समन। भातर बसह न जनह आन॥ 

 त फल भिक कठन करल। त भय डरत सद सोउ कल॥4॥ 

भथ:- चर और अचर जा (गी  लर क फल क भातर रहन ल िोट-

ि ोट) ज त क समन उन (ड पा फल) क भातर बसत ह और   (अपन उस िोट स जगत क ऽस) दी  सर कि नह जनत। उन फल 

 क भण करन ल कठन और करल कल ह। ह कल भा सद 

आपस भयभात रहत ह॥4॥

* त त ह सकल लोकपऽत स। पी   ि  मोऽह मन ज क न॥ 

 यह बर मगउ कपऽनक त। बस दय ा अन ज सम त॥5॥ 

भथ:- उह आपन समत लोकपल क मा होकर भा म झस 

 मन य क तरह कय। ह कप क धम! म तो यह र म गत क 

आप ा सातजा और िोट भई लमणजा सऽहत म र दय म (सद)

 ऽनस कऽजए॥5॥

* अऽबरल भगऽत ऽबरऽत सतस ग। चरन सरोह ाऽत अभ ग॥ 

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 जऽप अख ड अन त। अनभ गय भजह ज ऽह स त।6॥ 

भथ:- म झ ग भऽ ,  रय , सस ग और आपक चरणकमल म 

अटीट  म हो। यऽप आप अख ड और अन त ह, जो अनभ स 

 हा जनन म आत ह और ऽजनक स तजन भजन करत ह॥6॥

* अस त प बखनउ जनउ। फर फर सग न रऽत मनउ॥ 

 स तत दसह द  बई। तत मोऽह पी   ि  रघ रई॥7॥ 

भथ:- यऽप म आपक ऐस प को जनत और उसक ण न भा 

 करत , तो भा लौट - लौटकर म सग ण म (आपक इस स  दर प 

 म) हा  म मनत । आप स क को सद हा बई दय करत ह,

 इसा स ह रघ नथजा! आपन म झस पी ि  ह॥7॥

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 रम क द डकन श , जटय ऽमलन , प चटा ऽनस और ा रम -

 लमण स द  

* ह भ परम मनोहर ठऊ। पन प चबटा त ऽह नऊ॥ 

 द डक बन प नात भ कर। उ सप म ऽनबर कर हर॥8॥भथ:- ह भो! एक परम मनोहर और पऽ थन ह, उसक नम 

 प चटा ह। ह भो! आप दडक न को (जह प चटा ह) पऽ 

 कऽजए और   म ऽन गौतमजा क कठोर शप को हर लाऽजए॥8॥ 

* बस कर तह रघ कल रय। कज सकल म ऽनह पर दय॥ 

 चल रम म ऽन आयस पई। त रतह प चबटा ऽनअरई॥9॥ 

भथ:- ह रघ कल क मा! आप सब म ऽनय पर दय करक ह 

 ऽनस कऽजए। म ऽन क आ पकर ा रमच जा ह स चल दए 

और शा हा प चटा क ऽनकट प च गए॥9॥ 

 दोह : 

* गाधरज स भ ट भइ ब ऽबऽध ाऽत बइ। 

 गोदरा ऽनकट भ रह परन ग ह िइ॥13॥ 

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भथ:- ह गरज जटय स भ ट ई। उसक सथ बत कर स  म 

 बकर भ ा रमच जा गोदराजा क समाप पण क टा िकर रहन 

 लग॥13॥ 

 चौपई : 

* जब त रम कह तह बस। स खा भए म ऽन बाता स॥ 

 ऽगर बन नद तल िऽब िए। दन दन ऽत अऽत होह स हए॥1॥ 

भथ:- जब स ा रमजा न ह ऽनस कय , तब स म ऽन स खा हो  गए , उनक डर जत रह। प त , न , नदा और तलब शोभ स ि 

 गए। दनदन अऽधक स हन (मली  म) होन लग॥1॥ 

* खग म ग ब  द अन दत रहह। मध प मध र ग  जत िऽब लहह॥ 

 सो बन बरऽन न सक अऽहरज। जह गट रघ बार ऽबरज॥2॥ 

भथ:- पा और पश क समी  ह आन दत रहत ह और भर मध र 

 ग  जर करत ए शोभ प रह ह। जह य ा रमजा ऽरजमन 

 ह, उस न क ण न सप रज श षजा भा नह कर सकत॥2॥ 

* एक बर भ स ख आसान। लऽिमन बचन कह िलहान॥ 

 स र नर म ऽन सचरचर स। म पी ि उ ऽनज भ क न॥3॥ 

भथ:- एक बर भ ा रमजा स ख स ब ठ ए थ। उस समय 

 लमणजा न उनस िलरऽहत (सरल) चन कह- ह द त , मन य , म ऽन 

और चरचर क मा! म अपन भ क तरह (अपन मा समझकर)

आपस पी ि त ॥3॥ 

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* मोऽह सम झइ कह सोइ द । सब तऽज कर चरन रज स ॥ 

 कह यन ऽबरग अ मय। कह सो भगऽत कर ज ह दय॥4॥ 

भथ:- ह द ! म झ समझकर हा कऽहए , ऽजसस सब िोकर म 

आपक चरणरज क हा स  क। न ,  रय और मय क ण न 

 कऽजए और उस भऽ को कऽहए , ऽजसक करण आप दय करत ह॥4॥ 

 दोह : 

* ईर जा भ द भ सकल कहौ सम झइ। 

 जत होइ चरन रऽत सोक मोह म जइ॥14॥ 

भथ:- ह भो! ईर और जा क भ द भा सब समझकर कऽहए ,

 ऽजसस आपक चरण म म रा ाऽत हो और शोक , मोह तथ म न हो 

 जए॥14॥ 

 चौपई : 

* थोरऽह मह सब कहउ ब झई। स न तत मऽत मन ऽचत लई॥ 

 म अ मोर तोर त मय। ज ह बस कह जा ऽनकय॥1॥ 

भथ:-(ा रमजा न कह -) ह तत! म थो हा म सब समझकर कह 

 द त । त म मन , ऽच और ब ऽ लगकर स नो! म और म र , ती और 

 त र - यहा मय ह, ऽजसन समत जा को श म कर रख ह॥1॥ 

* गो गोचर जह लऽग मन जई। सो सब मय जन  भई॥ 

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 त ऽह कर भ द स न त ह सोऊ। ऽब अपर अऽब दोऊ॥2॥ 

भथ:- इय क ऽषय को और जह तक मन जत ह, ह भई! उन 

 सबको मय जनन। उसक भा एक ऽ और दी  सरा अऽ , इन 

 दोन भ द को त म स नो -॥2॥ 

* एक द  अऽतसय द खप। ज बस जा पर भकीप॥ 

 एक रचइ जग ग न बस जक । भ  रत नह ऽनज बल तक ॥3॥ 

भथ:- एक (अऽ) द  (दोषय ) ह और अय त द खप ह,

 ऽजसक श होकर जा स सर पा कए म प आ ह और एक 

(ऽ) ऽजसक श म ग ण ह और जो जगत क रचन करता ह, ह 

 भ स हा  रत होता ह, उसक अपन बल कि भा नहा ह॥3॥ 

* यन मन जह एकउ नह। द ख समन सब मह॥ 

 कऽहअ तत सो परम ऽबरगा। त न सम ऽसऽ ताऽन ग न यगा॥4॥ 

भथ:- न ह ह, जह (ऽजसम) मन आद एक भा (दोष) नह ह 

और जो सबस समन प स को द खत ह। ह तत! उसा को परम 

  रयन कहन चऽहए , जो सरा ऽसऽय को और तान ग ण को  ऽतनक क समन यग च क हो॥4॥ 

(ऽजसम मन , दभ , हस , मरऽहय , टपन , आचय स  क 

अभ , अपऽत , अऽथरत , मन क ऽनग हात न होन , इय क

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 ऽषय म आसऽ , अह कर , जम - म य- जर - ऽधमय जगत म स ख -

 ब ऽ , ा - प  - घर आद म आसऽ तथ ममत , इ और अऽन क 

 ऽ म हष-शोक , भऽ क अभ , एकत म मन न लगन , ऽषया 

 मन य क स ग म  म - य अठरह न ह और ऽनय अयम (आम) म 

 ऽथऽत तथ त न क अथ (तन क र जनन योय)

 परमम क ऽनय दश न हो , हा न कहलत ह। द ऽखए गात 

अयय 13/ 7 स 11) 

 दोह : 

* मय ईस न आप क जन कऽहअ सो जा। 

 बध मोि द सब पर मय  रक सा॥15॥ 

भथ:-

 जो मय को , ईर को और अपन प को नह जनत , उस जा कहन चऽहए। जो (कम न सर) बधन और मो द न ल ,

 सबस पर और मय क  रक ह, ह ईर ह॥15॥ 

 चौपई  

* धम त ऽबरऽत जोग त यन। यन मोिद ब द बखन॥ 

 जत ब ऽग उ म भई। सो मम भगऽत भगत स खदई॥1॥ 

भथ:-धम (क आचरण) स  रय और योग स न होत ह तथ 

 न मो क द न ल ह- ऐस  द न ण न कय ह। और ह भई!

 ऽजसस म शा हा स होत , ह म रा भऽ ह जो भ को स ख 

 द न ला ह॥1॥ 

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* सो स त  अल ब न आन। त ऽह आधान यन ऽबयन॥ 

भगऽत तत अन पम स खमी  ल। ऽमलइ जो स त होइ अन कील॥2॥ 

भथ:- ह भऽ त  ह, उसको (न - ऽन आद कसा) दी  सर

 सधन क सहर (अप) नह ह। न और ऽन तो उसक अधान 

 ह। ह तत! भऽ अन पम ए स ख क मी  ल ह और ह तभा ऽमलता ह,

 जब स त अन कील (स) होत ह॥2॥ 

* भगऽत क सधन कहउ बखना। स गम पथ मोऽह पह ना॥ 

 थमह ऽब चरन अऽत ाता। ऽनज ऽनज कम ऽनरत  ऽत राता॥3॥ 

भथ:-अब म भऽ क सधन ऽतर स कहत - यह स गम मग ह,

 ऽजसस जा म झको सहज हा प जत ह। पहल तो ण क चरण म 

अय त ाऽत हो और  द क राऽत क अन सर अपन-

अपन (णम क) कम म लग रह॥3॥ 

* एऽह कर फल प ऽन ऽबषय ऽबरग। तब मम धम उपज अन रग॥ 

नदक न भऽ द ह। मम लाल रऽत अऽत मन मह॥4॥ 

भथ:- इसक फल , फर ऽषय स  रय होग। तब ( रय होन 

 पर) म र धम (भगत धम) म  म उप होग। तब ण आद नौ 

 कर क भऽय द  हगा और मन म म रा लाल क ऽत अय त 

  म होग॥4॥ 

* स त चरन प कज अऽत  म। मन म बचन भजन द  न म॥ 

 ग  ऽपत मत बध पऽत द । सब मोऽह कह जन द  स ॥5॥ 

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भथ:- ऽजसक स त क चरणकमल म अय त  म हो , मन , चन और 

 कम स भजन क द  ऽनयम हो और जो म झको हा ग  , ऽपत , मत ,

भई , पऽत और द त सब कि जन और स  म द  हो ,॥5॥ 

* मम ग न गत प लक सरार। गदगद ऽगर नयन बह नार॥ 

 कम आद मद दभ न जक । तत ऽनरतर बस म तक॥6॥ 

भथ:- म र ग ण गत समय ऽजसक शरार प लकत हो जए , णा 

 गदगद हो जए और न  स ( म क) जल बहन लग और कम ,

 मद और दभ आद ऽजसम न ह , ह भई! म सद उसक श म रहत 

 ॥6॥ 

 दोह : 

* बचन कम मन मोर गऽत भजन करह ऽनकम। 

 ऽतह क दय कमल म करउ सद ऽबम॥16॥ 

भथ:- ऽजनको कम, चन और मन स म रा हा गऽत ह और जो 

 ऽनकम भ स म र भजन करत ह, उनक दय कमल म म सद 

 ऽम कय करत ॥16॥ 

 चौपई : 

* भगऽत जोग स ऽन अऽत स ख प। लऽिमन भ चरनऽह ऽस न॥ 

 एऽह ऽबऽध िकक दन बाता। कहत ऽबरग यन ग न नाता॥1॥ 

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भथ:- इस भऽ योग को स नकर लमणजा न अय त स ख पय और 

 उहन भ ा रमच जा क चरण म ऽसर नय। इस कर  रय ,

 न , ग ण और नाऽत कहत ए कि दन बात गए॥1॥ 

शी  प णख क कथ , शी  प णख क खरदी  षण क पस जन और 

 खरदी  षणद क ध  

* सी  पनख रन क बऽहना। द  दय दन जस अऽहना॥ 

 प चबटा सो गइ एक बर। द ऽख ऽबकल भइ ज गल कमर॥2॥ 

भथ:-शी  प णख नमक रण क एक बऽहन था , जो नऽगन क समन 

भयनक और द  दय क था। ह एक बर प चटा म गई और दोन 

 रजकमर को द खकर ऽकल (कम स पाऽत) हो गई॥2॥ 

* त ऽपत प  उरगरा। प ष मनोहर ऽनरखत नरा॥ 

 होइ ऽबकल सक मनऽह न रोक। ऽजऽम रऽबमऽन रऽबऽह 

 ऽबलोक॥3॥ 

भथ:-(ककभश ऽडजा कहत ह-) ह गजा! (शी  प णख - ज सा  रसा , धम न शी  य कमध) ा मनोहर प ष को द खकर , चह 

 ह भई , ऽपत , प  हा हो , ऽकल हो जता ह और मन को नह रोक 

 सकता। ज स सी  य कतमऽण सी  य को द खकर ऽत हो जता ह (ल 

 स ऽपघल जता ह)॥3॥ 

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* ऽचर प धर भ पह जई। बोला बचन बत म स कई॥ 

 त ह सम प ष न मो सम नरा। यह स जोग ऽबऽध रच ऽबचरा॥4॥ 

भथ:- ह स दर प धरकर भ क पस जकर और बत मक रकर 

 चन बोला - न तो त हर समन कोई प ष ह, न म र समन ा।

 ऽधत न यह स योग (जो) बत ऽचर कर रच ह॥4॥ 

* मम अन प प ष जग मह। द ख उ खोऽज लोक ऽत नह॥ 

 तत अब लऽग रऽहउ क मरा। मन मन िक त हऽह ऽनहरा॥5॥ 

भथ:- म र योय प ष (र) जगतभर म नह ह, म न तान लोक को 

 खोज द ख। इसा स म अब तक कमरा (अऽऽहत) रहा। अब त मको 

 द खकर कि मन मन (ऽच ठहर) ह॥5॥ 

* सातऽह ऽचतइ कहा भ बत। अहइ कआर मोर लघ त॥ 

 गइ लऽिमन रप भऽगना जना। भ ऽबलोक बोल म द बना॥6॥ 

भथ:- सातजा क ओर द खकर भ ा रमजा न यह बत कहा क 

 म र िोट भई कमर ह। तब ह लमणजा क पस गई। लमणजा न 

 उस श क बऽहन समझकर और भ क ओर द खकर कोमल णा स 

 बोल-॥6॥ 

* स  दर स न म उह कर दस। परधान नह तोर स पस॥ 

 भ समथ कोसलप र रज। जो िक करह उनऽह सब िज॥7॥ 

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भथ:- ह स  दरा! स न , म तो उनक दस । म परधान , अत त ह 

 सभात (स ख) न होग। भ समथ ह, कोसलप र क रज ह,  जो कि 

 कर, उह सब फबत ह॥7॥ 

* स क स ख चह मन ऽभखरा। यसना धन सभ गऽत ऽबऽभचरा॥ 

 लोभा जस चह चर ग मना। नभ द ऽह दी ध चहत ए ना॥8॥ 

भथ:- स क स ख चह, ऽभखरा समन चह, सना (ऽजस ज ए ,

शरब आद क सन हो) धन और ऽभचरा शभ गऽत चह, लोभा 

 यश चह और अऽभमना चर फल - अथ, धम, कम , मो चह, तो य 

 सब णा आकश को द हकर दी ध ल न चहत ह (अथ त असभ बत 

 को सभ करन चहत ह)॥8॥ 

* प ऽन फर रम ऽनकट सो आई। भ लऽिमन पह बर पठई॥ 

 लऽिमन कह तोऽह सो बरई। जो त न तोर लज परहरई॥9॥ 

भथ:- ह लौटकर फर ा रमजा क पस आई , भ न उस फर 

 लमणजा क पस भ ज दय। लमणजा न कह - त ह हा रग , जो 

 ल को त ण तोकर (अथ त ऽत करक) यग द ग (अथ त जो  ऽनपट ऽनल  होग)॥9॥ 

* तब ऽखऽसआऽन रम पह गई। प भय कर गटत भई॥ 

 सातऽह सभय द ऽख रघ रई। कह अन ज सन सयन ब झई॥10॥ 

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भथ:- तब ह ऽखऽसयया ई ( होकर) ा रमजा क पस गई 

और उसन अपन भय कर प कट कय। सातजा को भयभात द खकर 

ा रघ नथजा न लमण को इशर द कर कह॥10॥ 

 दोह : 

* लऽिमन अऽत लघ सो नक कन ऽबन कऽह। 

 तक कर रन कह मनौ च नौता दाऽह॥17॥ 

भथ:- लमणजा न बा फ त स उसको ऽबन नक - कन क कर  दय। मनो उसक हथ रण को च नौता दा हो!॥17॥ 

 चौपई : 

* नक कन ऽबन भइ ऽबकरर। जन स ल ग  क धर॥ 

 खर दी  षन पह गइ ऽबलपत। ऽधग ऽधग त पौष बल त॥1॥ 

भथ:- ऽबन नक - कन क ह ऽकरल हो गई। (उसक शरार स र 

 इस कर बहन लग) मनो (कल) प त स ग  क धर बह रहा हो।

 ह ऽलप करता ई खर - दी  षण क पस गई (और बोला -) ह भई!

 त हर पौष (ारत) को ऽधर ह, त हर बल को ऽधर ह॥1॥ 

* त ह पी ि  सब कह ऽस ब झई। जतधन सऽन स न बनई॥ 

धए ऽनऽसचर ऽनकर बथ। जन सपि कल ऽगर जी थ॥2॥ 

भथ:- उहन पी ि  , तब शी  प णख न सब समझकर कह। सब स नकर 

 रस न स न त यर क। रस समी  ह झ  ड क झ  ड दौ। मनो 

 प खधरा कजल क प त क झ  ड हो॥2॥ 

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* नन बहन ननकर। ननयध धर घोर अपर॥ 

 सी  पनख आग कर लाना। असभ प  ऽत नस हाना॥3॥ 

भथ:-  अन क कर क सरय पर च ए तथ अन क आकर 

(सी  रत) क ह। अपर ह और अन क कर क अस य भयनक 

 हऽथयर धरण कए ए ह। उहन नक - कन कटा ई अम गलऽपणा 

शी  प णख को आग कर ऽलय॥3॥ 

* असग न अऽमत होह भयकरा। गनह न म य ऽबबस सब झरा॥ 

 गज ह तज ह गगन उह। द ऽख कटक भट अऽत हरषह॥4॥ 

भथ:-अनऽगनत भय कर अशकन हो रह ह, परत म य क श होन क

 करण सब क सब उनको कि ऽगनत हा नह। गरजत ह, ललकरत ह 

और आकश म उत ह। स न द खकर यो लोग बत हा हषत होत 

 ह॥4॥ 

* कोउ कह ऽजअत धर ौ भई। धर मर ऽतय ल  िई॥ 

धी  र पी  र नभ म डल रह। रम बोलइ अन ज सन कह॥5॥ 

भथ:- कोई कहत ह दोन भइय को जात हा पक लो , पककर 

 मर डलो और ा को िान लो। आकशमडल धी  ल स भर गय। तब 

ा रमजा न लमणजा को ब लकर उनस कह॥5॥ 

* ल जनकऽह ज ऽगर कदर। आ ऽनऽसचर कटक भय कर॥ 

 रह  सजग स ऽन भ क बना। चल सऽहत ा सर धन पना॥6॥ 

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भथ:- रस क भयनक स न आ गई ह। जनकजा को ल कर त म 

 प त क कदर म चल जओ। सधन रहन। भ ा रमच जा क

 चन स नकर लमणजा हथ म धन ष -

 बण ऽलए ा सातजा सऽहत  चल॥6॥ 

* द ऽख रम रप दल चऽल आ। 

 ऽबहऽस कठन कोद ड च॥7॥ 

भथ:-श क स न (समाप) चला आई ह, यह द खकर ा रमजा 

 न ह सकर कठन धन ष को चय॥7॥ 

ि द : 

* कोद ड कठन चइ ऽसर जट जी  ट बधत सोह य। 

 मरकत सयल पर लरत दऽमऽन कोट स ज ग भ जग य॥ 

 कट कऽस ऽनष ग ऽबसल भ ज गऽह चप ऽबऽसख सधर क। 

 ऽचतत मन म गरज भ गजरज घट ऽनहर क॥ 

भथ:- कठन धन ष चकर ऽसर पर जट क जी     बधत ए भ 

 कस शोऽभत हो रह ह, ज स मरकतमऽण (प) क प त पर करो 

 ऽबजऽलय स दो स प ल रह ह। कमर म तरकस कसकर , ऽशल 

भ ज म धन ष ल कर और बण सधरकर भ ा रमच जा रस 

 क ओर द ख रह ह। मन मतल हऽथय क समी  ह को (आत) द खकर 

 सह (उनक ओर) तक रह हो। 

 सोरठ : 

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* आइ गए बगम ल धर धर धत सभट। 

 जथ ऽबलोक अकल बल रऽबऽह घ रत दन ज॥18॥ 

भथ:-' पको - पको ' प करत ए रस यो बग िोकर (बा 

 त जा स) दौ ए आए (और उहन ा रमजा को चर ओर स घ र 

 ऽलय), ज स बलसी  य (उदयकलान सी  य) को अकल द खकर मद ह 

 नमक द य घ र ल त ह॥18॥ 

 चौपई : 

* भ ऽबलोक सर सकह न डरा। थकत भई रजनाचर धरा॥ 

 सऽच बोऽल बोल खर दी  षन। यह कोउ न पबलक नर भी  षन॥1॥ 

भथ:-(सदय- मध य ऽनऽध) भ ा रमजा को द खकर रस क 

 स न थकत रह गई। उन पर बण नह िो सक । म ा को ब लकर  खर - दी  षण न कह - यह रजकमर कोई मन य क भी  षण ह॥1॥ 

* नग अस र स र नर म ऽन ज त। द ख ऽजत हत हम कत॥ 

 हम भर जम स न सब भई। द खा नह अऽस स  दरतई॥2॥ 

भथ:-

 ऽजतन भा नग ,

अस र , द त 

, मन य और म ऽन ह

, उनम स 

 हमन न जन कतन हा द ख, जात और मर डल ह। पर ह सब भइय!

 स नो , हमन जमभर म ऐसा स  दरत कह नह द खा॥2॥ 

* जऽप भऽगना कऽह कप। बध लयक नह प ष अनी  प॥ 

 द  त रत ऽनज नर द रई। जाअत भन ज ौ भई॥3॥ 

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भथ:- यऽप इहन हमरा बऽहन को कप कर दय तथऽप य 

अन पम प ष ध करन योय नह ह। ' ऽिपई ई अपना ा हम त रत 

 द दो और दोन भई जात जा घर लौट जओ '॥3॥ 

* मोर कह त ह तऽह स न। तस बचन स ऽन आत र आ॥ 

 दी  तह कह रम सन जई। स नत रम बोल म स कई॥4॥ 

भथ:- म र यह कथन त म लोग उस स नओ और उसक चन (उर)

 स नकर शा आओ। दी  त न जकर यह स दश ा रमच जा स कह। उस स नत हा ा रमच जा म क रकर बोल-॥4॥ 

* हम िा म गय बन करह। त ह स खल म ग खोजत फरह॥ 

 रप बल त द ऽख नह डरह। एक बर कल सन लरह॥5॥ 

भथ:- हम ऽय ह, न म ऽशकर करत ह और त हर सराख द   पश को तो ी   ढत हा फरत ह। हम बलन श द खकर नह डरत।

(लन को आ तो) एक बर तो हम कल स भा ल सकत ह॥5॥ 

* जऽप मन ज दन ज कल घलक। म ऽन पलक खल सलक बलक॥ 

 ज न होइ बल घर फर ज। समर ऽबम ख म हतउ न क॥6॥ 

भथ:- यऽप हम मन य ह, परत द यकल क नश करन ल और 

 म ऽनय क र करन ल ह, हम बलक ह, परत द  को दड द न 

 ल। यद बल न हो तो घर लौट जओ। स म म पाठ दखन ल 

 कसा को म नह मरत॥6॥ 

* रन च करअ कपट चत रई। रप पर कप परम कदरई॥ 

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 दी  तह जइ त रत सब कह ऊ। स ऽन खर दी  षन उर अऽत दह ऊ॥7॥ 

भथ:- रण म च आकर कपट - चत रई करन और श पर कप 

 करन (दय दखन) तो बा भरा कयरत ह। दी  त न लौटकर त रत  सब बत कह , ऽजह स नकर खर - दी  षण क दय अय त जल उठ॥7॥ 

ि द : 

* उर दह उ कह उ क धर धए ऽबकट भट रजनाचर। 

 सर चप तोमर सऽ सी  ल कपन परघ परस धर॥ 

 भ कऽह धन ष टकोर थम कठोर घोर भयह। 

भए बऽधर यकल जतधन न यन त ऽह असर रह॥ 

भथ:-(खर - दी  षण क) दय जल उठ। तब उहन कह - पक लो 

(कद कर लो)। (यह स नकर) भयनक रस यो बण , धन ष , तोमर ,

शऽ (स ग), शी  ल (बिरा), कपण (कटर), परघ और फरस धरण 

 कए ए दौ प। भ ा रमजा न पहल धन ष क ब कठोर , घोर 

और भयनक टकर कय , ऽजस स नकर रस बहर और कल हो 

 गए। उस समय उह कि भा होश न रह।  दोह : 

* सधन होइ धए जऽन सबल आरऽत। 

 लग बरषन रम पर अ स बभ ऽत॥19 क॥ 

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भथ:- फर श को बलन जनकर सधन होकर दौ और ा 

 रमचजा क ऊपर बत कर क अ -श बरसन लग॥19 (क)॥ 

* ऽतह क आयध ऽतल सम कर कट रघ बार। 

 तऽन सरसन न लऽग प ऽन ि  ऽनज तार॥19 ख॥ 

भथ:-ा रघ ारजा न उनक हऽथयर को ऽतल क समन (टक-

 टक) करक कट डल। फर धन ष को कन तक तनकर अपन तार 

ि ो॥19 (ख)॥ 

ि द : 

* तब चल बन करल। फ  करत जन ब यल॥ 

 कोप उ समर ारम। चल ऽबऽसख ऽनऽसत ऽनकम॥1॥ 

भथ:-

 तब भयनक बण ऐस चल, मनो फ फकरत ए बत स सप  ज रह ह। ा रमचजा स म म ए और अयत ताण बण 

 चल॥1॥ 

* अलोक खरतर तार। म र चल ऽनऽसचर बार॥ 

भए ताऽनउ भइ। जो भऽग रन त जइ॥2॥ 

भथ:-अयत ताण बण को द खकर रस ार पाठ दखकर 

भग चल। तब खर - दी  षण और ऽऽशर तान भई होकर बोल- जो 

 रण स भगकर जएग ,॥2॥ 

* त ऽह बधब हम ऽनज पऽन। फर मरन मन म ठऽन॥ 

आयध अन क कर। सनम ख त करह हर॥3॥ 

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भथ:- उसक हम अपन हथ ध करग। तब मन म मरन ठनकर 

भगत ए रस लौट प और समन होकर अन क कर क

 हऽथयर स ा रमजा पर हर करन लग॥3॥ 

* रप परम कोप जऽन। भ धन ष सर सधऽन॥ 

ि   ऽबप ल नरच। लग कटन ऽबकट ऽपसच॥4॥ 

भथ:-श को अयत क ऽपत जनकर भ न धन ष पर बण चकर 

 बत स बण िो, ऽजनस भयनक रस कटन लग॥4॥ 

* उर सास भ ज कर चरन। जह तह लग मऽह परन॥ 

 ऽचरत लगत बन। धर परत कधर समन॥5॥ 

भथ:- उनक िता , ऽसर , भ ज , हथ और प र जह- तह पा पर 

 ऽगरन लग। बण लगत हा हथा क तरह चघत ह। उनक पह  क समन ध कट - कटकर ऽगर रह ह॥5॥ 

* भट कटत तन सत ख ड। प ऽन उठत कर पष ड॥ 

 नभ उत ब भ ज म  ड। ऽबन मौऽल धत ड॥6॥ 

भथ:- यो क शरार कटकर स क टक हो जत ह। फर 

 मय करक उठ ख होत ह। आकश म बत सा भ जए और ऽसर उ 

 रह ह तथ ऽबन ऽसर क ध दौ रह ह॥6॥ 

* खग कक कक स गल। कटकटह कठन करल॥7॥ 

भथ:- चाल (य च), कौए आद पा और ऽसयर कठोर और 

भय कर कट - कट शद कर रह ह॥7॥ 

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ि द : 

* कटकटह ज ब क भी  त  त ऽपसच खप र स चह। 

 ब तल बार कपल तल बजइ जोऽगऽन न चह॥ 

 रघ बार बन च ड ख डह भटह क उर भ ज ऽसर। 

 जह तह परह उठ लरह धर ध ध करह भय कर ऽगर॥1॥ 

भथ:- ऽसयर कटकटत ह, भी  त ,  त और ऽपशच खोपऽय बटोर 

 रह ह (अथ खपर भर रह ह)। ार -  तल खोपऽय पर तल द रह 

 ह और योऽगऽनय नच रहा ह। ा रघ ार क च ड बण यो क

 थल , भ ज और ऽसर क टक- टक कर डलत ह। उनक ध 

 जह- तह ऽगर पत ह, फर उठत और लत ह और ' पको - पको ' क 

भय कर शद करत ह॥1॥ 

* अ तर गऽह उत गाध ऽपसच कर गऽह धह। 

 स म प र बसा मन ब बल ग ा उह॥ 

 मर िपर उर ऽबदर ऽबप ल भट कह रत पर। 

अलोक ऽनज दल ऽबकल भट ऽतऽसरद खर दी  षन फर॥2॥ 

भथ:-अ तऽय क एक िोर को पककर गाध उत ह और उह क 

 दी  सर िोर हथ स पककर ऽपशच दौत ह, ऐस मली  म होत ह 

 मनो स म पा नगर क ऽनसा बत स बलक पत ग उ रह ह।

अन क यो मर और िप गए बत स, ऽजनक दय ऽदाण हो गए 

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 ह, प करह रह ह। अपना स न को कल द खर ऽऽशर और खर -

 दी  षण आद यो ा रमजा क ओर म ॥2॥ 

* सरसऽ तोमर परस सी  ल कपन एकऽह बरह। 

 कर कोप ा रघ बार पर अगऽनत ऽनसचर डरह॥ 

 भ ऽनऽमष म रप सर ऽनर पचर डर सयक। 

 दस दस ऽबऽसख उर मझ मर सकल ऽनऽसचर नयक॥3॥ 

भथ:-अनऽगनत रस ोध करक बण , शऽ , तोमर , फरस , शी  ल 

और कपण एक हा बर म ा रघ ार पर िोन लग। भ न पल भर 

 म श क बण को कटकर , ललकरकर उन पर अपन बण िो।

 सब रस स नपऽतय क दय म दस - दस बण मर॥3॥ 

* मऽह परत उठ भट ऽभरत मरत न करत मय अऽत घना। 

 स र डरत चौदह सहस  त ऽबलोक एक अध धना॥ 

 स र म ऽन सभय भ द ऽख मयनथ अऽत कौत क कर यो। 

 द खह परसपर रम कर स म रप दल लर मर यो॥4॥ 

भथ:- यो पा पर ऽगर पत ह, फर उठकर ऽभत ह। मरत 

 नह , बत कर क अऽतशय मय रचत ह। द त यह द खकर डरत ह 

 क  त (रस) चौदह हजर ह और अयोयनथ ा रमजा अकल ह।

 द त और म ऽनय को भयभात द खकर मय क मा भ न एक ब 

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 कौत क कय , ऽजसस श क स न एक - दी  सर को रम प द खन लगा 

और आपस म हा य  करक ल मरा॥4॥ 

 दोह : 

* रम रम कऽह तन तजह पह पद ऽनब न। 

 कर उपय रप मर िन म कपऽनधन॥20 क॥ 

भथ:- सब (' यहा रम ह, इस मरो ' इस कर) रम - रम कहकर 

शरार िोत ह और ऽन ण (मो) पद पत ह। कपऽनधन ा रमजा 

 न यह उपय करक ण भर म श को मर डल॥20 (क)॥ 

* हरऽषत बरषह स मन स र बजह गगन ऽनसन। 

अत ऽत कर कर सब चल सोऽभत ऽबऽबध ऽबमन॥20 ख॥ 

भथ:- द त हषत होकर फील बरसत ह, आकश म नग बज रह 

 ह। फर सब त ऽत कर - करक अन क ऽमन पर सशोऽभत ए चल 

 गए॥20 (ख)॥ 

 चौपई : 

* जब रघ नथ समर रप जात। स र नर म ऽन सब क भय बात॥ 

 तब लऽिमन सातऽह ल आए। भ पद परत हरऽष उर लए॥1॥ 

भथ:- जब ा रघ नथजा न य  म श को जात ऽलय तथ 

 द त , मन य और म ऽन सबक भय न हो गए , तब लमणजा सातजा 

 को ल आए। चरण म पत ए उनको भ न सतपी   क उठकर 

 दय स लग ऽलय॥1॥ 

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* सात ऽचत यम म द गत। परम  म लोचन न अघत॥ 

 प चबट बऽस ा रघ नयक। करत चरत स र म ऽन स खदयक॥2॥ 

भथ:- सातजा ा रमजा क यम और कोमल शरार को परम  म 

 क सथ द ख रहा ह, न  अघत नह ह। इस कर प चटा म बसकर 

ा रघ नथजा द त और म ऽनय को स ख द न ल चर करन 

 लग॥2॥ 

शी  प णख क रण क ऽनकट जन , ा सातजा क अऽ श और 

 मय सात  

* धआ द ऽख खरदी  षन क र। जइ स पनख रन  र॥ 

 बोला बचन ोध कर भरा। द स कोस क स रऽत ऽबसरा॥3॥ 

भथ:- खर - दी  षण क ऽ स द खकर शी  प णख न जकर रण को 

भकय। ह ब ोध करक चन बोला - ती  न दश और खजन क 

 स ऽध हा भ ल दा॥3॥ 

* करऽस पन सोऽस दन रता। स ऽध नह त ऽसर पर आरता॥ 

 रज नाऽत ऽबन धन ऽबन धम। हरऽह समप ऽबन सतकम॥4॥ 

 ऽब ऽबन ऽबब क उपजए। म फल प कए अ पए॥ 

 स ग त जता कम  त रज। मन त यन पन त लज॥5॥ 

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भथ:-शरब पा ल त ह और दन - रत प सोत रहत ह। त झ 

 खबर नह ह क श त र ऽसर पर ख ह? नाऽत क ऽबन रय और 

धम क ऽबन धन करन स, भगन को समप ण कए ऽबन उम  कम करन स और ऽ क उप कए ऽबन ऽ पन स परणम म 

म हा हथ लगत ह। ऽषय क स ग स स यसा , ब रा सलह स रज ,

 मन स न , मदर पन स ल ,॥4-5॥ 

* ाऽत नय ऽबन मद त ग ना। नसह ब ऽग नाऽत अस स ना॥6॥ 

भथ:- नत क ऽबन (नत न होन स) ाऽत और मद (अह कर) स 

 ग णन शा हा न हो जत ह, इस कर नाऽत म न स ना ह॥6॥ 

 सोरठ : 

* रप ज पक पप भ अऽह गऽनअ न िोट कर। 

अस कऽह ऽबऽबध ऽबलप कर लगा रोदन करन॥21 क॥ 

भथ:-श, रोग , अऽ , पप , मा और सप को िोट करक नह 

 समझन चऽहए। ऐस कहकर शी  प णख अन क कर स ऽलप करक

 रोन लगा॥21 (क)॥ 

 दोह : 

* सभ मझ पर यकल ब कर कह रोइ। 

 तोऽह ऽजअत दसकधर मोर क अऽस गऽत होइ॥21 ख॥ 

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भथ:-(रण क) सभ क बाच ह कल होकर पा ई बत 

 कर स रो - रोकर कह रहा ह क अर दशा! त र जात जा म रा य 

 ऐसा दश होना चऽहए ?॥21 (ख)॥ 

 चौपई : 

* स नत सभसद उठ अकलई। सम झई गऽह ब ह उठई॥ 

 कह ल क स कहऽस ऽनज बत। क इ त नस कन ऽनपत॥1॥ 

भथ:-शी  प णख क चन स नत हा सभसद अकल उठ। उहन शी  प णख क ब ह पककर उस उठय और समझय। ल कपऽत रण 

 न कह - अपना बत तो बत , कसन त र नक - कन कट ऽलए ?॥1॥ 

* अध न पऽत दसरथ क जए। प ष सघ बन ख लन आए॥ 

 सम ऽझ परा मोऽह उह क करना। रऽहत ऽनसचर करहह धरना॥2॥ 

भथ:-(ह बोला -) अयोय क रज दशरथ क प  , जो प ष म 

 सह क समन ह, न म ऽशकर खलन आए ह। म झ उनक करना ऐसा 

 समझ पा ह क पा को रस स रऽहत कर द ग॥2॥ 

* ऽजह कर भ जबल पइ दसनन। अभय भए ऽबचरत म ऽन कनन॥ 

 द खत बलक कल समन। परम धार धा ग न नन॥3॥ 

भथ:- ऽजनक भ ज क बल पकर ह दशम ख! म ऽन लोग न म 

 ऽनभ य होकर ऽचरन लग ह। द खन म तो बलक ह, पर ह कल क

 समन। परम धार ,   धनध र और अन क ग ण स य  ह॥3॥ 

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* अत ऽलत बल तप ौ त। खल बध रत स र म ऽन स खदत॥ 

 सोभ धम रम अस नम। ऽतह क स ग नर एक यम॥4॥ 

भथ:- दोन भइय क बल और तप अत लनाय ह। द  क ध 

 करन म लग ह और द त तथ म ऽनय को स ख द न ल ह। शोभ क

धम ह, ' रम ' ऐस उनक नम ह। उनक सथ एक तणा स  दर ा 

 ह॥4॥ 

* प रऽस ऽबऽध नर स रा। रऽत सत कोट तस बऽलहरा॥ 

 तस अन ज कट  ऽत नस। स ऽन त भऽगऽन करह परहस॥5॥ 

भथ:- ऽधत न उस ा को ऐसा प क रऽश बनय ह क सौ 

 करो रऽत (कमद  क ा) उस पर ऽिनर ह। उह क िोट भई न 

 म र नक - कन कट डल। म त रा बऽहन , यह स नकर म रा ह सा 

 करन लग॥5॥ 

* खर दी  षन स ऽन लग प कर। िन म सकल कटक उह मर॥ 

 खर दी  षन ऽतऽसर कर घत। स ऽन दससास जर सब गत॥6॥ 

भथ:- म रा प कर स नकर खर - दी  षण सहयत करन आए। पर उहन 

ण भर म सरा स न को मर डल। खर - दी  षन और ऽऽशर क ध  स नकर रण क सर अ ग जल उठ॥6॥ 

 दोह : 

* सी  पनखऽह सम झइ कर बल बोल ऽस ब भ ऽत। 

 गयउ भन अऽत सोचबस नाद परइ नह रऽत॥22॥ 

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भथ:- उसन शी  प णख को समझकर बत कर स अपन बल क 

 बखन कय , कत (मन म) ह अयत चतश होकर अपन महल 

 म गय , उस रत भर नद नह पा॥22॥ 

 चौपई : 

* स र नर अस र नग खग मह। मोर अन चर कह कोउ नह॥ 

 खर दी  षन मोऽह सम बल त। ऽतहऽह को मरइ ऽबन भग त॥1॥ 

भथ:-(ह मन हा मन ऽचर करन लग -) द त , मन य , अस र ,

 नग और पऽय म कोई ऐस नह , जो म र स क को भा प सक । खर -

 दी  षण तो म र हा समन बलन थ। उह भगन क ऽस और कौन 

 मर सकत ह?॥1॥ 

* स र रजन भ जन मऽह भर। ज भग त लाह अतर॥ 

 तौ म जइ ब  हठ करऊ। भ सर न तज भ तरऊ॥2॥ 

भथ:- द त को आन द द न ल और पा क भर हरण करन 

 ल भगन न हा यद अतर ऽलय ह, तो म जकर उनस हठपी   क 

  र कग और भ क बण (क आघत) स ण िोकर भसगर स  तर जऊग॥2॥ 

* होइऽह भजन न तमस द ह। मन म बचन म  द  एह॥ 

 ज नरप भी  पस त कोऊ। हरहउ नर जाऽत रन दोऊ॥3॥ 

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भथ:- इस तमस शरार स भजन तो होग नह , अतए मन , चन 

और कम स यहा द  ऽनय ह। और यद मन य प कोई रजकमर 

 हग तो उन दोन को रण म जातकर उनक ा को हर ली    ग॥3॥ 

* चल अकल जन च तह। बस मराच सध तट जह॥ 

 इह रम जऽस ज ग ऽत बनई। स न उम सो कथ स हई॥4॥ 

भथ:- रस क भयनक स न आ गई ह। जनकजा को ल कर त म 

 प त क कदर म चल जओ। सधन रहन। भ ा रमच जा क चन स नकर लमणजा हथ म धन ष - बण ऽलए ा सातजा सऽहत 

 चल॥6॥ 

 दोह : 

* लऽिमन गए बनह जब ल न मी  ल फल कद। 

 जनकस त सन बोल ऽबहऽस कप स ख ब  द॥23॥ 

भथ:- लमणजा जब कद - मी  ल - फल ल न क ऽलए न म गए , तब 

(अकल म) कप और स ख क समी  ह ा रमच जा ह सकर जनकजा स 

 बोल-॥23॥ 

 चौपई : 

* स न ऽय त ऽचर स साल। म िक करऽब लऽलत नरलाल॥ 

 त ह पक म कर ऽनस। जौ लऽग कर ऽनसचर नस॥1॥ 

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भथ:- ह ऽय! ह स  दर पऽतवत धम क पलन करन ला सशाल!

 स नो! म अब कि मनोहर मन य लाल कग , इसऽलए जब तक म 

 रस क नश क, तब तक त म अऽ म ऽनस करो॥1॥ 

* जबह रम सब कह बखना। भ पद धर ऽहय अनल समना॥ 

 ऽनज ऽतबब रऽख तह सात। त सइ साल प स ऽबनात॥2॥ 

भथ:-ा रमजा न य हा सब समझकर कह , य हा ा सातजा 

 भ क चरण को दय म धरकर अऽ म सम ग। सातजा न अपना 

 हा िय मी  त ह रख दा , जो उनक ज स हा शाल - भ और 

 पला तथ  स हा ऽन था॥2॥ 

* लऽिमन यह मरम न जन। जो िक चरत रच भगन॥ 

 दसम ख गयउ जह मराच। नइ मथ रथ रत नाच॥3॥ 

भथ:-भगन न जो कि लाल रचा , इस रहय को लमणजा न भा 

 नह जन। थ परयण और नाच रण ह गय , जह मराच थ 

और उसको ऽसर नय॥3॥ 

* नऽन नाच क अऽत द खदई। ऽजऽम अ क स धन उरग ऽबलई॥ 

भयदयक खल क ऽय बना। ऽजऽम अकल क क स म भना॥4॥ 

भथ:- नाच क झ कन (नत) भा अयत द खदया होत ह। ज स 

अ कश , धन ष , स प और ऽबला क झ कन। ह भना! द  क माठा 

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 णा भा (उसा कर) भय द न ला होता ह, ज स ऽबन ऋत क

 फील!॥4॥ 

 मराच स ग और ण म ग प म मराच क मर जन , सातजा 

 र लमण को भ जन  

 दोह : 

* कर पी  ज मराच तब सदर पी ि ा बत। 

 कन ह त मन य अऽत अकसर आय तत॥24॥ 

भथ:- तब मराच न उसक पी  ज करक आदरपी   क बत पी ि ा - ह 

 तत! आपक मन कस करण इतन अऽधक ह और आप अकल 

आए ह?॥24॥ 

 चौपई : 

* दसम ख सकल कथ त ऽह आग। कहा सऽहत अऽभमन अभग॥ 

 हो कपट म ग त ह िलकरा। ज ऽह ऽबऽध हर आन न पनरा॥1॥ 

भथ:- भयहान रण न सरा कथ अऽभमन सऽहत उसक समन 

 कहा (और फर कह -) त म िल करन ल कपटम ग बनो , ऽजस उपय 

 स म उस रजधी को हर लऊ॥1॥ 

* त ह प ऽन कह स न दससास। त नरप चरचर ईस॥ 

 तस तत बय नह कज। मर मरअ ऽजआए जाज॥2॥ 

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भथ:- तब उसन (मराच न) कह - ह दशशाश! स ऽनए। मन य 

 प म चरचर क ईर ह। ह तत! उनस  र न कऽजए। उह क मरन 

 स मरन और उनक ऽजलन स जान होत ह (सबक जान -

 मरण  उह क अधान ह)॥2॥ 

* म ऽन मख रखन गयउ कमर। ऽबन फर सर रघ पऽत मोऽह मर॥ 

 सत जोजन आयउ िन मह। ऽतह सन बय कए भल नह॥3॥ 

भथ:- यहा रजकमर म ऽन ऽऽम क य क र क ऽलए गए 

थ। उस समय ा रघ नथजा न ऽबन फल क बण म झ मर थ ,

 ऽजसस म णभर म सौ योजन पर आ ऽगर। उनस  र करन म भलई 

 नह ह॥3॥ 

* भइ मम कट भ  ग क नई। जह तह म द खउ दोउ भई॥ 

 ज नर तत तदऽप अऽत सी  र। ऽतहऽह ऽबरोऽध न आइऽह पी  र॥4॥ 

भथ:- म रा दश तो भ  गा क क क सा हो गई ह। अब म जह- तह 

ा रम - लमण दोन भइय को हा द खत । और ह तत! यद  

 मन य ह, तो भा ब शी  रार ह। उनस ऽरोध करन म पी  र न प ग 

(सफलत नह ऽमल गा)॥4॥ 

 दोह : 

* ज ह तक स ब हऽत ख ड उ हर कोद ड। 

 खर दी  षन ऽतऽसर बध उ मन ज क अस बरब ड॥25॥ 

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भथ:- ऽजसन तक और स ब को मरकर ऽशजा क धन ष तो 

 दय और खर , दी  षण और ऽऽशर क ध कर डल , ऐस च ड बला 

भा कह मन य हो सकत ह?॥25॥ 

 चौपई : 

* ज भन कल कसल ऽबचरा। स नत जर दाऽहऽस ब गरा॥ 

 ग  ऽजऽम मी   करऽस मम बोध। क जग मोऽह समन को जोध॥1॥ 

भथ:- अत अपन कल क कशल ऽचरकर आप घर लौट जइए।

 यह स नकर रण जल उठ और उसन बत सा गऽलय द (द  चन 

 कह)। (कह -) अर मी  ख! ती ग  क तरह म झ न ऽसखत ह? बत तो 

 स सर म म र समन यो कौन ह?॥1॥ 

* तब मराच दय अन मन। नऽह ऽबरोध नह कयन॥ 

 सा मम भ सठ धना। ब द ब द कऽब भनस ग ना॥2॥ 

भथ:- तब मराच न दय म अन मन कय क शा (शधरा),

 मम (भ द जनन ल), समथ मा , मी  ख, धनन ,   , भट , कऽ 

और रसोइय - इन नौ ऽय स ऽरोध ( र) करन म कयण (कशल) नह होत॥2॥ 

* उभय भ ऽत द ख ऽनज मरन। तब तकऽस रघ नयक सरन॥ 

 उत द त मोऽह बधब अभग। कस न मर रघ पऽत सर लग॥3॥ 

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भथ:- जब मराच न दोन कर स अपन मरण द ख , तब उसन 

ा रघ नथजा क शरण तक (अथ त उनक शरण जन म हा कयण 

 समझ)। (सोच क) उर द त हा (नह करत हा) यह अभग म झ  मर डल ग। फर ा रघ नथजा क बण लगन स हा य न म॥3॥ 

* अस ऽजय जऽन दसनन स ग। चल रम पद  म अभ ग॥ 

 मन अऽत हरष जन न त हा। आज द ऽखहउ परम सन हा॥4॥ 

भथ:-

दय म ऐस समझकर ह रण क सथ चल। ा रमजा  क चरण म उसक अख ड  म ह। उसक मन म इस बत क अयत हष 

 ह क आज म अपन परम  हा ा रमजा को द खी    ग , कत उसन यह 

 हष रण को नह जनय॥4॥ 

ि द : 

* ऽनज परम ातम द ऽख लोचन स फल कर स ख पइह। 

ासऽहत अन ज सम त कपऽनक त पद मन लइह॥ 

 ऽनब न दयक ोध ज कर भगऽत अबसऽह बसकरा। 

 ऽनज पऽन सर सधऽन सो मोऽह बऽधऽह स खसगर हरा॥ 

भथ:-(ह मन हा मन सोचन लग -) अपन परम ऽयतम को द खकर 

 न  को सफल करक स ख पऊग। जनकजा सऽहत और िोट भई 

 लमणजा सम त कपऽनधन ा रमजा क चरण म मन लगऊग।

 ऽजनक ोध भा मो द न ल ह और ऽजनक भऽ उन अश (कसा 

 क श म न होन ल, त  भगन) को भा श म करन ला ह,

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अब हा आन द क सम  ा हर अपन हथ स बण सधनकर म र 

 ध करग। 

 दोह : 

* मम िप धर धत धर सरसन बन। 

 फर फर भ ऽह ऽबलोकहउ धय न मो सम आन॥26॥ 

भथ:- धन ष - बण धरण कए म र िपा- िपा पा पर (पकन क

 ऽलए) दौत ए भ को म फर - फरकर द खी    ग। म र समन धय दी  सर  कोई नह ह॥26॥ 

 चौपई : 

* त ऽह बनऽनकट दसनन गयऊ। तब मराच कपटम ग भयऊ॥ 

अऽत ऽबऽच िक बरऽन न जई। कनक द ह मऽन रऽचत बनई॥1॥ 

भथ:- जब रण उस न क (ऽजस न म ा रघ नथजा रहत थ)

 ऽनकट प च , तब मराच कपटम ग बन गय! ह अयत हा ऽऽच 

थ , कि ण न नह कय ज सकत। सोन क शरार मऽणय स जकर 

 बनय थ॥1॥ 

* सात परम ऽचर म ग द ख। अ ग अ ग स मनोहर ब ष॥ 

 स न द  रघ बार कपल। एऽह म ग कर अऽत स  दर िल॥2॥ 

भथ:- सातजा न उस परम स  दर ऽहरन को द ख , ऽजसक अ ग -अ ग 

 क िट अयत मनोहर था। ( कहन लग -) ह द ! ह कपल रघ ार!

 स ऽनए। इस म ग क िल बत हा स  दर ह॥2॥ 

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* सयसध भ बऽध कर एहा। आन चम कहऽत ब द हा॥ 

 तब रघ पऽत जनत सब करन। उठ हरऽष स र कज स रन॥3॥ 

भथ:- जनकजा न कह - ह सयऽत भो! इसको मरकर इसक 

 चम ल दाऽजए। तब ा रघ नथजा (मराच क कपटम ग बनन क)

 सब करण जनत ए भा , द त क कय बनन क ऽलए हषत 

 होकर उठ॥3॥ 

* म ग ऽबलोक कट परकर बध। करतल चप ऽचर सर सध॥ 

 भ लऽिमनऽह कह सम झई। फरत ऽबऽपन ऽनऽसचर ब भई॥4॥ 

भथ:- ऽहरन को द खकर ा रमजा न कमर म फ ट बध और हथ 

 म धन ष ल कर उस पर स  दर (द) बण चय। फर भ न 

 लमणजा को समझकर कह - ह भई! न म बत स रस फरत 

 ह॥4॥ 

* सात क र कर रखरा। ब ऽध ऽबब क बल समय ऽबचरा॥ 

 भ ऽह ऽबलोक चल म ग भजा। धए रम सरसन सजा॥5॥ 

भथ:- त म ब ऽ और ऽ क क र बल और समय क ऽचर करक

 सातजा क रखला करन। भ को द खकर म ग भग चल। ा  रमचजा भा धन ष चकर उसक िपा दौ॥5॥ 

* ऽनगम न ऽत ऽस यन न प। मयम ग िप सो ध॥ 

 कब ऽनकट प ऽन दी  र परई। कब क गटइ कब िपई॥6॥ 

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भथ:-  द ऽजनक ऽषय म ' न ऽत - न ऽत ' कहकर रह जत ह और 

 ऽशजा भा ऽजह यन म नह पत (अथ त जो मन और णा स 

 ऽनतत पर ह),  हा ा रमजा मय स बन ए म ग क िपा दौ रह  ह। ह कभा ऽनकट आ जत ह और फर दी  र भग जत ह। कभा तो 

 कट हो जत ह और कभा ऽिप जत ह॥6॥ 

* गटत द रत करत िल भी  रा। एऽह ऽबऽध भ ऽह गयउ ल दी  रा॥ 

 तब तक रम कठन सर मर। धरऽन परउ कर घोर प कर॥7॥ 

भथ:- इस कर कट होत और ऽिपत आ तथ बत र िल 

 करत आ ह भ को दी  र ल गय। तब ा रमचजा न तक कर 

(ऽनशन सधकर) कठोर बण मर , ( ऽजसक लगत हा) ह घोर शद 

 करक पा पर ऽगर प॥7॥ 

* लऽिमन कर थमह ल नम। िप स ऽमरऽस मन म रम॥ 

 न तजत गटऽस ऽनज द ह। स ऽमरऽस रम सम त सन ह॥8॥ 

भथ:- पहल लमणजा क नम ल कर उसन िपा मन म ा रमजा 

 क मरण कय। ण यग करत समय उसन अपन (रसा) शरार 

 कट कय और  म सऽहत ा रमजा क मरण कय॥8॥ 

* अ तर  म तस पऽहचन। म ऽन द लभ गऽत दाऽह स जन॥9॥ 

भथ:- स जन (स ) ा रमजा न उसक दय क  म को 

 पहचनकर उस ह गऽत (अपन परमपद) दा जो म ऽनय को भा द लभ 

 ह॥9॥ 

 दोह : 

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* ऽबप ल स मर स र बरषह गह भ ग न गथ। 

 ऽनज पद दाह अस र क दानबध रघ नथ॥27॥ 

भथ:- द त बत स फील बरस रह ह और भ क ग ण क गथए

(त ऽतय) ग रह ह (क) ा रघ नथजा ऐस दानबध ह क उहन 

अस र को भा अपन परम पद द दय॥27॥ 

 चौपई : 

* खल बऽध त रत फर रघ बार। सोह चप कर कट तीनार॥ 

आरत ऽगर स ना जब सात। कह लऽिमन सन परम सभात॥1॥ 

भथ:- द  मराच को मरकर ा रघ ार त रत लौट प। हथ म 

धन ष और कमर म तरकस शोभ द रह ह। इधर जब सातजा न 

 द खभरा णा (मरत समय मराच क ' ह लमण ' क आज) स ना 

 तो बत हा भयभात होकर लमणजा स कहन लग॥1॥ 

* ज ब ऽग स कट अऽत त। लऽिमन ऽबहऽस कह स न मत॥ 

भ क ट ऽबलस स ऽ लय होई। सपन  स कट परइ क सोई॥2॥ 

भथ:- त म शा जओ , त हर भई ब स कट म ह। लमणजा न 

 ह सकर कह - ह मत! स नो , ऽजनक  क ट ऽलस (भ क इशर) म 

 स सरा स ऽ क लय (लय) हो जत ह,  ा रमजा य कभा  

 म भा स कट म प सकत ह?॥2॥ 

* मरम बचन जब सात बोल। हर  रत लऽिमन मन डोल॥ 

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 बन दऽस द  सऽप सब क। चल जह रन सऽस र॥3॥ 

भथ:- इस पर जब सातजा कि मम चन (दय म चभन ल 

 चन) कहन लग , तब भगन क  रण स लमणजा क मन भा 

 च चल हो उठ। ा सातजा को न और दश क द त को 

 सपकर ह चल, जह रण पा चम क ऽलए र प ा 

 रमजा थ॥3॥ 

ा सातहरण और ा सात ऽलप  

* सी  न बाच दसकधर द ख। आ ऽनकट जता क ब ष॥ 

 जक डर स र अस र ड रह। ऽनऽस न नाद दन अ न खह॥4॥ 

भथ:- रण सी  न मौक द खकर यऽत (स यसा) क  ष म ा 

 सातजा क समाप आय , ऽजसक डर स द त और द य तक इतन डरत 

 ह क रत को नद नह आता और दन म (भरप ट) अ नह खत-॥4॥ 

* सो दससास न क न। इत उत ऽचतइ चल भऽह॥ 

 इऽम क पथ पग द त खग स। रह न त ज तन ब ऽध बल ल स॥5॥ 

भथ:- हा दस ऽसर ल रण क क तरह इधर - उधर तकत 

 आ भऽहई * (चोरा) क ऽलए चल। (ककभश ऽडजा कहत ह-) ह 

 गजा! इस कर कमग पर प र रखत हा शरार म त ज तथ ब ऽ 

 ए बल क लश भा नह रह जत॥5॥ 

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* सी  न पकर क च पक स बत न -भ  म म   ह डलकर कि च र ल 

 जत ह। उस 'भऽहई ' कहत ह। 

* नन ऽबऽध कर कथ स हई। रजनाऽत भय ाऽत द खई॥ 

 कह सात स न जता गोस। बोल  बचन द  क न॥6॥ 

भथ:- रण न अन क कर क स हना कथए रचकर सातजा 

 को रजनाऽत , भय और  म दखलय। सातजा न कह - ह यऽत 

 गोस! स नो , त मन तो द  क तरह चन कह॥6। 

* तब रन ऽनज प द ख। भई सभय जब नम स न॥ 

 कह सात धर धारज ग। आइ गयउ भ र खल ठ॥7॥ 

भथ:- तब रण न अपन असला प दखलय और जब नम 

 स नय तब तो सातजा भयभात हो ग। उहन गहर धारज धरकर  कह - 'अर द ! ख तो रह , भ आ गए '॥7॥ 

* ऽजऽम हरबध ऽह ि सस चह। भएऽस कलबस ऽनऽसचर नह॥ 

 स नत बचन दससास रसन। मन म चरन ब द स ख मन॥8॥ 

भथ:- ज स सह क ा को त ि खरगोश चह,  स हा अर

 रसरज! ती (म रा चह करक ) कल क श आ ह। य चन स नत हा 

 रण को ोध आ गय , परत मन म उसन सातजा क चरण क 

  दन करक स ख मन॥8॥ 

 दोह : 

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* ोध त तब रन लाऽहऽस रथ ब ठइ। 

 चल गगनपथ आत र भय रथ ह क न जइ॥28॥ 

भथ:- फर ोध म भरकर रण न सातजा को रथ पर ब ठ ऽलय 

और ह बा उतला क सथ आकश मग स चल , कत डर क मर

 उसस रथ ह क नह जत थ॥28॥ 

 चौपई : 

* ह जग एक बार रघ रय। क ह अपरध ऽबसर दय॥ 

आरऽत हरन सरन स खदयक। ह रघ कल सरोज दननयक॥1॥ 

भथ:- (सातजा ऽलप कर रहा थ -) ह जगत क अऽताय ार ा 

 रघ नथजा! आपन कस अपरध स म झ पर दय भ ल दा। ह द ख क

 हरन ल, ह शरणगत को स ख द न ल, ह रघ कल पा कमल क

 सी  य!॥1॥ 

* ह लऽिमन त हर नह दोस। सो फल पयउ कह उ रोस॥ 

 ऽबऽबध ऽबलप करऽत ब द हा। भी  र कप भ दी  र सन हा॥2॥ 

भथ:-

ह लमण! त हर दोष नह ह। म न ोध कय , उसक फल 

 पय। ा जनकजा बत कर स ऽलप कर रहा ह- (हय!) भ क 

 कप तो बत ह, परत  हा भ बत दी  र रह गए ह॥2॥ 

* ऽबपऽत मोर को भ ऽह स न। प रोडस चह रसभ ख॥ 

 सात क ऽबलप स ऽन भरा। भए चरचर जा द खरा॥3॥ 

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भथ:- भ को म रा यह ऽपऽ कौन स न? य क अ को गदह 

 खन चहत ह। सातजा क भरा ऽलप स नकर ज - च तन सभा 

 जा द खा हो गए॥3॥ 

 जटय- रण - य  , अशोक टक म सातजा को रखन  

* गाधरज स ऽन आरत बना। रघ कलऽतलक नर पऽहचना॥ 

अधम ऽनसचर लाह जई। ऽजऽम मलि  बस कऽपल गई॥4॥ 

भथ:- गरज जटय न सातजा क द खभरा णा स नकर  पहचन ऽलय क य रघ कल ऽतलक ा रमचजा क पा ह। (उसन 

 द ख क) नाच रस इनको (ब रा तरह) ऽलए ज रह ह, ज स कऽपल 

 गय ल ि क पल प गई हो॥4॥ 

* सात प ऽ करऽस जऽन स। करहउ जतधन कर नस॥ 

ध ोध त खग कस। िीटइ पऽब परबत क ज स॥5॥ 

भथ:- (ह बोल -) ह सात प ा! भय मत कर। म इस रस क 

 नश कग। (यह कहकर) ह पा ोध म भरकर ऐस दौ , ज स 

 प त क ओर िीटत हो॥5॥ 

* र र द  ठ कन हो हा। ऽनभ य चल ऽस न जन ऽह मोहा॥ 

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आत द ऽख कत त समन। फर दसकधर कर अन मन॥6॥ 

भथ:- (उसन ललकरकर कह -) र र द ! ख य नह होत ?

 ऽनडर होकर चल दय! म झ ती  न नह जन ? उसको यमरज क समन 

आत आ द खकर रण घी  मकर मन म अन मन करन लग -॥6॥ 

* क म नक क खगपऽत होई। मम बल जन सऽहत पऽत सोई॥ 

 जन जरठ जटयी एह। मम कर तारथ ि ऽऽह द ह॥7॥ 

भथ:- यह य तो म नक प त ह य पऽय क मा ग। पर 

 ह (ग) तो अपन मा ऽण सऽहत म र बल को जनत ह! (कि 

 पस आन पर) रण न उस पहचन ऽलय (और बोल -) यह तो बी   

 जटय ह। यह म र हथ पा ताथ म शरार िो ग॥7॥ 

* स नत गाध ोधत र ध। कह स न रन मोर ऽसख॥ 

 तऽज जनकऽह कसल ग ह ज। नह त अस होइऽह बब॥8॥ 

भथ:- यह स नत हा गाध ोध म भरकर ब  ग स दौ और 

 बोल - रण! म रा ऽसखन स न। जनकजा को िोकर कशलपी   क 

अपन घर चल ज। नह तो ह बत भ ज ल! ऐस होग क -॥8॥ 

* रम रोष पक अऽत घोर। होइऽह सकल सलभ कल तोर॥ 

 उत न द त दसनन जोध। तबह गाध ध कर ोध॥9॥ 

भथ:- ा रमजा क ोध पा अयत भयनक अऽ म त र सर 

 श पतग (होकर भम) हो जएग। यो रण कि उर नह 

 द त। तब गाध ोध करक दौ॥9॥ 

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* धर कच ऽबरथ कह मऽह ऽगर। सातऽह रऽख गाध प ऽन फर॥ 

 चोचह मर ऽबदरऽस द हा। द ड एक भइ म ि त हा॥10॥ 

भथ:- उसन (रण क) बल पककर उस रथ क नाच उतर ऽलय ,

 रण पा पर ऽगर प। गाध सातजा को एक ओर ब ठकर फर 

 लौट और चच स मर - मरकर रण क शरार को ऽदाण कर डल।

 इसस उस एक घा क ऽलए मी  ि हो गई॥10॥ 

* तब सोध ऽनऽसचर ऽखऽसआन। कऽस परम करल कपन॥ 

 कटऽस प ख पर खग धरना। स ऽमर रम कर अदभ त करना॥11॥ 

भथ:- तब ऽखऽसयए ए रण न ोधय  होकर अयत भयनक 

 कटर ऽनकला और उसस जटय क प ख कट डल। पा (जटय) ा 

 रमजा क अभ त लाल क मरण करक पा पर ऽगर प॥11॥ 

* सातऽह जन चइ बहोरा। चल उतइल स न थोरा॥ 

 करऽत ऽबलप जऽत नभ सात। यध ऽबबस जन म गा सभात॥12॥ 

भथ:- सातजा को फर रथ पर चकर रण बा उतला क

 सथ चल। उस भय कम न थ। सातजा आकश म ऽलप करता ई 

 ज रहा ह। मनो ध क श म पा ई (जल म फसा ई) कोई भयभात ऽहरना हो!॥12॥ 

* ऽगर पर ब ठ कऽपह ऽनहरा। कऽह हर नम दाह पट डरा॥ 

 एऽह ऽबऽध सातऽह सो ल गयऊ। बन असोक मह रखत भयऊ॥13॥ 

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भथ:- प त पर ब ठ ए ब दर को द खकर सातजा न हरनम ल कर 

  डल दय। इस कर ह सातजा को ल गय और उह अशोक 

 न म ज रख॥13॥ 

 दोह : 

* हर पर खल ब ऽबऽध भय अ ाऽत द खइ। 

 तब असोक पदप तर रऽखऽस जतन करइ॥29 क॥ 

भथ:- सातजा को बत कर स भय और ाऽत दखलकर जब  ह द  हर गय , तब उह य करक (सब थ ठाक करक )

अशोक क नाच रख दय॥29 (क)॥ 

 ननपरयण ,ि ठ ऽम 

ा रमजा क ऽलप , जटय क स ग , कबध उर  

* ज ऽह ऽबऽध कपट क रग स ग धइ चल ारम। 

 सो िऽब सात रऽख उर रटऽत रहऽत हरनम॥29 ख॥ 

भथ:- ऽजस कर कपट म ग क सथ ा रमजा दौ चल थ, उसा 

ि ऽ को दय म रखकर हरनम (रमनम) रटता रहता ह॥29

(ख)॥ 

 चौपई : 

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* रघ पऽत अन जऽह आत द खा। बऽहज चत कऽह ऽबस षा॥ 

 जनकस त परहर अकला। आय तत बचन मम प ला॥1॥ 

भथ:- (इधर) ा रघ नथजा न िोट भई लमणजा को आत द खकर 

  प म बत चत क (और कह -) ह भई! त मन जनक को 

अकला िो दय और म रा आ क उल घन कर यह चल आए!॥1॥ 

* ऽनऽसचर ऽनकर फरह बन मह। मम मन सात आम नह॥ 

 गऽह पद कमल अन ज कर जोरा। कह उ नथ िक मोऽह न खोरा॥2॥ 

भथ:- रस क झ  ड न म फरत रहत ह। म र मन म ऐस आत ह 

 क सात आम म नह ह। िोट भई लमणजा न ा रमजा क

 चरणकमल को पककर हथ जोकर कह - ह नथ! म र कि भा दोष 

 नह ह॥2॥ 

* अन ज सम त गए भ तह। गोदर तट आम जह॥ 

आम द ऽख जनक हान। भए ऽबकल जस कत दान॥3॥ 

भथ:- लमणजा सऽहत भ ा रमजा ह गए , जह गोदरा क

 तट पर उनक आम थ। आम को जनकजा स रऽहत द खकर ा 

 रमजा सधरण मन य क भ ऽत कल और दान (द खा) हो गए॥3॥ 

* ह ग न खऽन जनक सात। प साल त न म प नात॥ 

 लऽिमन सम झए ब भ ऽत। पी ि त चल लत त प ता॥4॥ 

भथ:- ( ऽलप करन लग-) ह ग ण क खन जनक! ह प ,

शाल , वत और ऽनयम म पऽ सात! लमणजा न बत कर स 

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 समझय। तब ा रमजा लत और क प ऽय स पी ि त ए 

 चल॥4॥ 

* ह खग म ग ह मध कर  ना। त ह द खा सात म गन ना॥ 

 ख जन स क कपोत म ग मान। मध प ऽनकर कोकल बान॥5॥ 

भथ:- ह पऽय! ह पश! ह भर क प ऽय! त मन कह 

 म गनयना सात को द ख ह? ख जन , तोत , कबी  तर , ऽहरन , िमला ,

भर क समी  ह , ाण कोयल ,॥5॥ 

* क  द कला दऽम दऽमना। कमल सरद सऽस अऽहभऽमना॥ 

 बन पस मनोज धन ह स। गज क हर ऽनज स नत स स॥6॥ 

भथ:- कदकला , अनर , ऽबजला , कमल , शरद क च म और 

 नऽगना , अण क पश , कमद  क धन ष , ह स , गज और सह - य सब 

आज अपना श स स न रह ह॥6॥ 

* ा फल कनक कदऽल हरषह। न क न स क सकच मन मह॥ 

 स न जनक तोऽह ऽबन आजी । हरष सकल पइ जन रजी ॥7॥ 

भथ:- ब ल , स ण और कल हषत हो रह ह। इनक मन म जर भा 

श क और स कोच नह ह। ह जनक! स नो , त हर ऽबन य सब आज 

 ऐस हषत ह, मनो रज प गए ह। (अथ त त हर अ ग क समन य 

 सब त ि , अपमऽनत और लऽत थ। आज त ह न द खकर य अपना 

शोभ क अऽभमन म फील रह ह)॥7॥ 

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* कऽम सऽह जत अनख तोऽह पह। ऽय ब ऽग गटऽस कस नह॥ 

 एऽह ऽबऽध खोजत ऽबलपत मा। मन मह ऽबरहा अऽत कमा॥8॥ 

भथ:- त मस यह अनख (पध) कस सहा जता ह? ह ऽय! त म 

शा हा कट य नह होता ? इस कर (अनत ड क अथ 

 महमऽहममया पशऽ ा सातजा क ) मा ा रमजा 

 सातजा को खोजत ए (इस कर) ऽलप करत ह, मनो कोई 

 महऽरहा और अय त कमा प ष हो॥8॥ 

* पी  रकनम रम स ख रसा। मन जचरत कर अज अऽबनसा॥ 

आग पर गाधपऽत द ख। स ऽमरत रम चरन ऽजह रख॥9॥ 

भथ:- पी  ण कम , आन द क रऽश , अजम और अऽनशा ा रमजा 

 मन य क चर कर रह ह। आग (जन पर) उहन गपऽत जटय को  प द ख। ह ा रमजा क चरण क मरण कर रह थ , ऽजनम 

(ज , क ऽलश आद क) रखए (ऽचन) ह॥9॥ 

 दोह : 

* कर सरोज ऽसर परस उ कपसध रघ बार। 

 ऽनरऽख रम िऽब धम म ख ऽबगत भई सब पार॥30॥ 

भथ:- कप सगर ा रघ ार न अपन करकमल स उसक ऽसर क 

 पश कय (उसक ऽसर पर करकमल फ र दय)। शोभधम ा रमजा 

 क (परम स  दर) म ख द खकर उसक सब पा जता रहा॥30॥ 

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 चौपई : 

* तब कह गाध बचन धर धार। स न रम भ जन भ भार॥ 

 नथ दसनन यह गऽत कहा। त ह खल जनकस त हर लाहा॥1॥ 

भथ:- तब धारज धरकर गाध न यह चन कह - ह भ (जम - म य)

 क भय क नश करन ल ा रमजा! स ऽनए। ह नथ! रण न म रा 

 यह दश क ह। उसा द  न जनकजा को हर ऽलय ह॥1॥ 

* ल दऽिन दऽस गयउ गोस। ऽबलपऽत अऽत क ररा क न॥ 

 दरस लग भ रख उ न। चलन चहत अब कपऽनधन॥2॥ 

भथ:- ह गोस! ह उह ल कर दऽण दश को गय ह। सातजा 

 क ररा (कज) क तरह अय त ऽलप कर रहा थ। ह भो! आपक दश न 

 क ऽलए हा ण रोक रख थ। ह कपऽनधन! अब य चलन हा चहत 

 ह॥2॥ 

* रम कह तन रख तत। म ख म स कइ कहा त ह बत॥ 

 जकर नम मरत म ख आ। अधमउ म क त होइ  ऽत ग॥3॥ 

भथ:- ा रमच जा न कह - ह तत! शरार को बनए रऽखए। तब 

 उसन म क रत ए म   ह स यह बत कहा - मरत समय ऽजनक नम म ख  म आ जन स अधम (महन पपा) भा म  हो जत ह, ऐस  द गत 

 ह-॥3॥ 

* सो मम लोचन गोचर आग। रख द ह नथ क ऽह ख ग॥ 

 जल भर नयन कहह रघ रई। तत कम ऽनज त गऽत पई॥4॥ 

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भथ:- हा (आप) म र न  क ऽषय होकर समन ख ह। ह नथ!

अब म कस कमा (क पी  त) क ऽलए द ह को रखी   ? न  म जल भरकर 

ा रघ नथजा कहन लग- ह तत! आपन अपन   कम स (द लभ) गऽत पई ह॥4॥ 

* परऽहत बस ऽजह क मन मह। ऽतह क जग द लभ िक नह॥ 

 तन ऽतज तत ज मम धम। द उ कह त ह पी  रनकम॥5॥ 

भथ:- ऽजनक मन म दी  सर क ऽहत बसत ह (समय रहत ह), उनक ऽलए जगत म कि भा (कोई भा गऽत) द लभ नह ह। ह तत!

शरार िोकर आप म र परम धम म जइए। म आपको य दी   ? आप 

 तो पी  ण कम ह (सब कि प च क ह)॥5॥ 

 दोह : 

* सात हरन तत जऽन कह ऽपत सन जइ। 

 ज म रम त कल सऽहत कऽहऽह दसनन आइ॥31॥ 

भथ:- ह तत! सात हरण क बत आप जकर ऽपतजा स न 

 कऽहएग। यद म रम तो दशम ख रण क टब सऽहत ह आकर 

 य हा कह ग॥31॥ 

 चौपई : 

* गाध द ह तऽज धर हर प। भी  षन ब पट पात अनी  प॥ 

 यम गत ऽबसल भ ज चरा। अत ऽत करत नयन भर बरा॥1॥ 

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भथ:- जटय न गाध क द ह यगकर हर क प धरण कय और 

 बत स अन पम (द) आभी  षण और (द) पातबर पहन ऽलए।

यम शरार ह, ऽशल चर भ जए ह और न  म ( म तथ आन द कआ स क) जल भरकर ह त ऽत कर रह ह-॥1॥ 

ि द : 

* जय रम प अनी  प ऽनग   न सग न ग न  रक सहा। 

 दससास ब च ड ख डन च ड सर म डन महा॥ 

 पथोद गत सरोज म ख रजा आयत लोचन। 

 ऽनत नौऽम रम कपल ब ऽबसल भ भय मोचन॥1॥ 

भथ:- ह रमजा! आपक जय हो। आपक प अन पम ह, आप 

 ऽनग   ण ह, सग ण ह और सय हा ग ण क (मय क )  रक ह। दस ऽसर  ल रण क चड भ ज को ख ड - ख ड करन क ऽलए चड बण 

धरण करन ल, पा को सशोऽभत करन ल, जलय  म घ क

 समन यम शरार ल, कमल क समन म ख और (लल) कमल क

 समन ऽशल न  ल, ऽशल भ ज ल और भ -भय स िन 

 ल कपल ा रमजा को म ऽनय नमकर करत ॥1॥ 

* बलमम यमनदमजमयम कमगोचर। 

 गोबद गोपर  हर ऽबयनघन धरनाधर॥ 

 ज रम म  जप त स त अन त जन मन रजन। 

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 ऽनत नौऽम रम अकम ऽय कमद खल दल ग जन॥2॥ 

भथ:- आप अपरऽमत बलल ह, अनद , अजम , अ 

(ऽनरकर), एक अगोचर (अलय), गोद ( द य र जनन 

 योय), इय स अतात , ( जम - मरण , स ख - द ख , हष-शोकद)   

 को हरन ल, ऽन क घनमी  त और पा क आधर ह तथ जो स त 

 रम म  को जपत ह, उन अनत स क क मन को आन द द न ल ह।

 उन ऽनकमऽय (ऽनकमजन क  मा अथ उह ऽय) तथ कम आद द  (द   ऽय) क दल क दलन करन ल ा रमजा को म 

 ऽनय नमकर करत ॥2॥ 

* ज ऽह  ऽत ऽनरजन यपक ऽबरज अज कऽह गह। 

 कर यन यन ऽबरग जोग अनक म ऽन ज ऽह पह॥ 

 सो गट कन कद सोभ ब  द अग जग मोहई। 

 मम दय प कज भ  ग अ ग अन ग ब िऽब सोहई॥3॥ 

भथ:- ऽजनको  ऽतय ऽनरजन (मय स पर),  , पक ,

 ऽनकर और जमरऽहत कहकर गन करता ह। म ऽन ऽजह यन , न ,  रय और योग आद अन क सधन करक पत ह। हा 

 कणकद , शोभ क समी  ह (य ा भगन) कट होकर ज - च तन 

 समत जगत को मोऽहत कर रह ह। म र दय कमल क मर प उनक

अ ग -अ ग म बत स कमद  क िऽ शोभ प रहा ह॥3॥ 

* जो अगम स गम सभ ऽनम ल असम सम सातल सद। 

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 पय ऽत ज जोगा जतन कर करत मन गो बस सद॥ 

 सो रम रम ऽनस स तत दस बस ऽभ न धना। 

 मम उर बसउ सो समन स स ऽत जस करऽत पना॥4॥ 

भथ:- जो अगम और स गम ह, ऽनम ल भ ह, ऽषम और सम ह 

और सद शातल (श त) ह। मन और इय को सद श म करत ए 

 योगा बत सधन करन पर ऽजह द ख पत ह। तान लोक क

 मा , रमऽनस ा रमजा ऽनरतर अपन दस क श म रहत ह।   हा म र दय म ऽनस कर, ऽजनक पऽ कत आगमन को ऽमटन 

 ला ह॥4॥ 

 दोह : 

* अऽबरल भगऽत मऽग बर गाध गयउ हरधम।  त ऽह क य जथोऽचत ऽनज कर कहा रम॥32॥ 

भथ:- अख ड भऽ क र म गकर गरज जटय ा हर क

 परमधम को चल गय। ा रमच जा न उसक (दहकम आद सरा)

 यए यथयोय अपन हथ स क॥32॥ 

 चौपई : 

* कोमल ऽचत अऽत दानदयल। करन ऽबन रघ नथ कपल॥ 

 गाध अधम खग आऽमष भोगा। गऽत दाहा जो जचत जोगा॥1॥ 

भथ:- ा रघ नथजा अय त कोमल ऽच ल, दानदयल और 

 ऽबन हा करण कपल ह। गाध (पऽय म भा) अधम पा और 

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 म सहरा थ , उसको भा ह द लभ गऽत दा , ऽजस योगाजन म गत 

 रहत ह॥1॥ 

* स न उम त लोग अभगा। हर तऽज होह ऽबषय अन रगा। 

 प ऽन सातऽह खोजत ौ भई। चल ऽबलोकत बन बतई॥2॥ 

भथ:- (ऽशजा कहत ह-) ह प ता! स नो ,  लोग अभग ह, जो 

भगन को िोकर ऽषय स अन रग करत ह। फर दोन भई 

 सातजा को खोजत ए आग चल। न क सघनत द खत जत ह॥2॥ 

* स कल लत ऽबटप घन कनन। ब खग म ग तह गज प चनन॥ 

आत पथ कबध ऽनपत। त ह सब कहा सप क बत॥3॥ 

भथ:- ह सघन न लत और स भर ह। उसम बत स 

 पा , म ग , हथा और सह रहत ह। ा रमजा न रत म आत ए  कबध रस को मर डल। उसन अपन शप क सरा बत कहा॥3॥ 

* द रबस मोऽह दाहा सप। भ पद प ऽख ऽमट सो पप॥ 

 स न गधब कहउ म तोहा। मोऽह न सोहइ कल ोहा॥4॥ 

भथ:-

(ह बोल -

) द  सजा न म झ शप दय थ। अब भ क चरण को द खन स ह पप ऽमट गय। (ा रमजा न कह -) ह गध!

 स नो , म त ह कहत , णकल स ोह करन ल म झ नह 

 स हत॥4॥ 

 दोह : 

* मन म बचन कपट तऽज जो कर भी  स र स । 

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 मोऽह सम त ऽबरऽच ऽस बस तक सब द ॥33॥ 

भथ:- मन , चन और कम स कपट िोकर जो भी  द  ण क 

 स  करत ह, म झ सम त  , ऽश आद सब द त उसक श हो 

 जत ह॥33॥ 

 चौपई : 

* सपत तत पष कह त। ऽब पी  य अस गह स त॥ 

 पी  ऽजअ ऽब साल ग न हान। सी   न ग न गन यन बान॥1॥ 

भथ:- शप द त आ , मरत आ और कठोर चन कहत आ भा 

 ण पी  जनाय ह, ऐस स त कहत ह। शाल और ग ण स हान भा ण 

 पी  जनाय ह। और ग ण गण स य  और न म ऽनप ण भा शी   पी  जनाय 

 नह ह॥1॥ 

* कऽह ऽनज धम तऽह सम झ। ऽनज पद ाऽत द ऽख मन भ॥ 

 रघ पऽत चरन कमल ऽस नई। गयउ गगन आपऽन गऽत पई॥2॥ 

भथ:- ा रमजा न अपन धम (भगत धम) कहकर उस 

 समझय। अपन चरण म  म द खकर ह उनक मन को भय। तदनतर ा रघ नथजा क चरणकमल म ऽसर नकर ह अपना गऽत 

(गध क प) पकर आकश म चल गय॥2॥ 

शबरा पर कप , नध भऽ उपदश और पपसर क ओर थन  

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* तऽह द इ गऽत रम उदर। सबरा क आम पग धर॥ 

 सबरा द ऽख रम ग ह आए। म ऽन क बचन सम ऽझ ऽजय भए॥3॥ 

भथ:- उदर ा रमजा उस गऽत द कर शबराजा क आम म पधर।

शबराजा न ा रमच जा को घर म आए द ख , तब म ऽन मत गजा क

 चन को यद करक उनक मन स हो गय॥3॥ 

* सरऽसज लोचन ब ऽबसल। जट म क ट ऽसर उर बनमल॥ 

 यम गौर स  दर दोउ भई। सबरा परा चरन लपटई॥4॥ 

भथ:- कमल सदश न  और ऽशल भ ज ल, ऽसर पर जट 

 क म क ट और दय पर नमल धरण कए ए स  दर , स ल और 

 गोर दोन भइय क चरण म शबराजा ऽलपट प॥4॥ 

*  म मगन म ख बचन न आ। प ऽन प ऽन पद सरोज ऽसर न॥ 

 सदर जल ल चरन पखर। प ऽन स  दर आसन ब ठर॥5॥ 

भथ:-  म म म हो ग , म ख स चन नह ऽनकलत। बर - बर 

 चरण - कमल म ऽसर न रहा ह। फर उहन जल ल कर आदरपी   क 

 दोन भइय क चरण धोए और फर उह स  दर आसन पर ब ठय॥5॥ 

 दोह : 

* कद मी  ल फल स रस अऽत दए रम क आऽन। 

  म सऽहत भ खए बरबर बखऽन॥34॥ 

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भथ:- उहन अय त रसाल और द कद , मी  ल और फल लकर 

ा रमजा को दए। भ न बर - बर श स करक उह  म सऽहत 

 खय॥34॥ 

 चौपई : 

* पऽन जोर आग भइ ठा। भ ऽह ऽबलोक ाऽत अऽत बा॥ 

 क ऽह ऽबऽध अत ऽत कर त हरा। अधम जऽत म जमऽत भरा॥1॥ 

भथ:- फर हथ जोकर आग खा हो ग। भ को द खकर  उनक  म अय त ब गय। (उहन कह -) म कस कर आपक 

 त ऽत क? म नाच जऽत क और अय त मी   ब ऽ ॥1॥ 

* अधम त अधम अधम अऽत नरा। ऽतह मह म मऽतम द अघरा॥ 

 कह रघ पऽत स न भऽमऽन बत। मनउ एक भगऽत कर नत॥2॥ 

भथ:- जो अधम स भा अधम ह, ऽय उनम भा अय त अधम ह,

और उनम भा ह पपनशन! म म दब ऽ । ा रघ नथजा न कह - ह 

भऽमऽन! म रा बत स न! म तो क ल एक भऽ हा क स बध मनत 

 ॥2॥ 

* जऽत प ऽत कल धम बई। धन बल परजन ग न चत रई॥ 

भगऽत हान नर सोहइ कस। ऽबन जल बरद द ऽखअ ज स॥3॥ 

भथ:- जऽत , प ऽत , कल , धम, बई , धन , बल , क टब , ग ण और 

 चत रत - इन सबक होन पर भा भऽ स रऽहत मन य कस लगत ह,

 ज स जलहान बदल (शोभहान) दखई पत ह॥3॥ 

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* नध भगऽत कहउ तोऽह पह। सधन स न ध मन मह॥ 

 थम भगऽत स तह कर स ग। दी  सर रऽत मम कथ स ग॥4॥ 

भथ:- म त झस अब अपना नध भऽ कहत । ती सधन होकर 

 स न और मन म धरण कर। पहला भऽ ह स त क सस ग। दी  सरा 

भऽ ह म र कथ स ग म  म॥4॥ 

 दोह : 

* ग र पद प कज स  तासर भगऽत अमन।  चौऽथ भगऽत मम ग न गन करइ कपट तऽज गन॥35॥ 

भथ:- तासरा भऽ ह अऽभमनरऽहत होकर ग  क चरण कमल क 

 स  और चौथा भऽ यह ह क कपट िोकर म र ग ण समी  ह क गन 

 कर॥35॥ 

 चौपई : 

* म  जप मम द  ऽबस। प चम भजन सो ब द कस॥ 

ि ठ दम साल ऽबरऽत ब करम। ऽनरत ऽनरतर सन धरम॥1॥ 

भथ:- म र (रम) म  क जप और म झम र द  ऽस - यह प च 

भऽ ह, जो  द म ऽस ह। िठा भऽ ह इय क ऽनह , शाल 

(अि भ य चर), बत कय स  रय और ऽनरतर स त 

 प ष क धम (आचरण) म लग रहन॥1॥ 

* सत सम मोऽह मय जग द ख। मोत स त अऽधक कर ल ख॥ 

आठ जथलभ स तोष। सपन  नह द खइ परदोष॥2॥ 

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भथ:- सत भऽ ह जगत भर को समभ स म झम ओतोत 

(रममय) द खन और स त को म झस भा अऽधक करक मनन। आठ 

भऽ ह जो कि ऽमल जए , उसा म स तोष करन और म भा  परए दोष को न द खन॥2॥ 

* नम सरल सब सन िलहान। मम भरोस ऽहय हरष न दान॥ 

 न म एकउ ऽजह क होई। नर प ष सचरचर कोई॥3॥ 

भथ:-

न भऽ ह सरलत और सबक सथ कपटरऽहत बत   करन , दय म म र भरोस रखन और कसा भा अथ म हष और 

 द य (ऽषद) क न होन। इन न म स ऽजनक एक भा होता ह, ह 

 ा - प ष , ज - च तन कोई भा हो -॥3॥ 

* सोइ अऽतसय ऽय भऽमऽन मोर। सकल कर भगऽत द  तोर॥ 

 जोऽग ब  द द रलभ गऽत जोई। तो क आज स लभ भइ सोई॥4॥ 

भथ:- ह भऽमऽन! म झ हा अय त ऽय ह। फर त झ म तो सभा 

 कर क भऽ द  ह। अतए जो गऽत योऽगय को भा द लभ ह, हा 

आज त र ऽलए स लभ हो गई ह॥4॥ 

* मम दरसन फल परम अनी  प। जा प ऽनज सहज सप॥ 

 जनकस त कइ स ऽध भऽमना। जनऽह क करबरगऽमना॥5॥ 

भथ:- म र दश न क परम अन पम फल यह ह क जा अपन सहज 

 प को हो जत ह। ह भऽमऽन! अब यद ती गजगऽमना 

 जनक क कि खबर जनता हो तो बत॥5॥ 

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* प प सरऽह ज रघ रई। तह होइऽह स ा ऽमतई॥ 

 सो सब कऽहऽह द  रघ बार। जनत पी ि  मऽतधार॥6॥ 

भथ:- (शबरा न कह -) ह रघ नथजा! आप प प नमक सरोर को 

 जइए। ह आपक स ा स ऽमत होगा। ह द ! ह रघ ार! ह सब 

 हल बत ग। ह धारब ऽ! आप सब जनत ए भा म झस पी ि त 

 ह!॥6॥ 

* बर बर भ पद ऽस नई।  म सऽहत सब कथ स नई॥7॥ 

भथ:- बर - बर भ क चरण म ऽसर नकर ,  म सऽहत उसन सब 

 कथ स नई॥7॥ 

ि द - : 

* कऽह कथ सकल ऽबलोक हर म ख दय पद प कज धर। 

 तऽज जोग पक द ह पर पद लान भइ जह नह फर॥ 

 नर ऽबऽबध कम अधम ब मत सोकद सब यग। 

 ऽबस कर कह दस त लसा रम पद अन रग॥ 

भथ:-

सब कथ कहकर भगन क म ख क दश न कर , उनक चरणकमल को धरण कर ऽलय और योगऽ स द ह को यग कर 

(जलकर) ह उस द लभ हरपद म लान हो गई , जह स लौटन नह 

 होत। त लसादसजा कहत ह क अन क कर क कम, अधम और बत 

 स मत - य सब शोकद ह, ह मन य! इनक यग कर दो और ऽस 

 करक ा रमजा क चरण म  म करो। 

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 दोह : 

* जऽत हान अघ जम मऽह म  कऽह अऽस नर। 

 महम द मन स ख चहऽस ऐस भ ऽह ऽबसर॥36॥ 

भथ:- जो नाच जऽत क और पप क जमभी  ऽम था , ऐसा ा को 

भा ऽजहन म  कर दय , अर महद ब   ऽ मन! ती ऐस भ को भी  लकर 

 स ख चहत ह?॥36॥ 

 चौपई : 

* चल रम यग बन सोऊ। अत ऽलत बल नर क हर दोऊ॥ 

 ऽबरहा इ भ करत ऽबषद। कहत कथ अन क स बद॥1॥ 

भथ:- ा रमच जा न उस न को भा िो दय और आग चल।

 दोन भई अत लनाय बलन और मन य म सह क समन ह। भ 

 ऽरहा क तरह ऽषद करत ए अन क कथए और स द कहत ह-

॥1॥ 

* लऽिमन द ख ऽबऽपन कइ सोभ। द खत क ऽह कर मन नह िोभ॥ 

 नर सऽहत सब खग म ग ब  द। मन मोर करत हह नद॥2॥ 

भथ:- ह लमण! जर न क शोभ तो द खो। इस द खकर कसक 

 मन  ध नह होग ? पा और पश क समी  ह सभा ा सऽहत ह।

 मनो म रा नद कर रह ह॥3॥ 

* हमऽह द ऽख म ग ऽनकर परह। म ग कहह त ह कह भय नह॥ 

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 त ह आन द कर म ग जए। कचन मग खोजन ए आए॥3॥ 

भथ:- हम द खकर (जब डर क मर) ऽहरन क झ  ड भगन लगत ह,

 तब ऽहरऽनय उनस कहता ह- त मको भय नह ह। त म तो सधरण 

 ऽहरन स प द ए हो , अत त म आन द करो। य तो सोन क ऽहरन 

 खोजन आए ह॥3॥ 

* स ग लइ करन कर ल ह। मन मोऽह ऽसखन द ह॥ 

 स स चऽतत प ऽन प ऽन द ऽखअ। भी  प स स ऽत बस नह ल ऽखअ॥4॥ 

भथ:- हथा हऽथऽनय को सथ लग ल त ह। मनो म झ ऽश द त 

 ह (क ा को कभा अकला नह िोन चऽहए)। भलाभ ऽत चतन 

 कए ए श को भा बर - बर द खत रहन चऽहए। अिा तरह स  

 कए ए भा रज को श म नह समझन चऽहए॥4॥ 

* रऽखअ नर जदऽप उर मह। ज बता स न पऽत बस नह॥ 

 द ख तत बस त स ह। ऽय हान मोऽह भय उपज॥5॥ 

भथ:- और ा को चह दय म हा य न रख जए , परत य ता 

 ा , श और रज कसा क श म नह रहत। ह तत! इस स  दर 

 स त को तो द खो। ऽय क ऽबन म झको यह भय उप कर रह 

 ह॥5॥ 

 दोह : 

* ऽबरह ऽबकल बलहान मोऽह जन ऽस ऽनपट अकल। 

 सऽहत ऽबऽपन मध कर खग मदन कह बगम ल॥37 क॥ 

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भथ:- म झ ऽरह स कल , बलहान और ऽबलकल अकल जनकर 

 कमद  न न , भर और पऽय को सथ ल कर म झ पर ध बोल 

 दय॥37 (क)॥ 

* द ऽख गयउ त सऽहत तस दी  त स ऽन बत। 

 ड र कह उ मन तब कटक हटक मनजत॥37 ख॥ 

भथ:- परत जब उसक दी  त यह द ख गय क म भई क सथ  

(अकल नह ), तब उसक बत स नकर कमद  न मनो स न को 

 रोककर ड र डल दय ह॥37 (ख)॥ 

 चौपई : 

* ऽबटप ऽबसल लत अझना। ऽबऽबध ऽबतन दए जन तना॥ 

 कदऽल तल बर ध ज पतक। द ऽख न मोह धार मन जक॥1॥ 

भथ:- ऽशल म लतए उलझा ई ऐसा मली  म होता ह मनो 

 नन कर क त बी तन दए गए ह। कल और त स  दर ज पतक 

 क समन ह। इह द खकर हा नह मोऽहत होत , ऽजसक मन धार 

 ह॥1॥ 

* ऽबऽबध भ ऽत फील त नन। जन बन त बन ब बन॥ 

 क क स  दर ऽबटप स हए। जन भट ऽबलग ऽबलग होइ िए॥2॥ 

भथ:- अन क नन कर स फील ए ह। मनो अलग -अलग 

 बन (द) धरण कए ए बत स तारदज ह। कह - कह स  दर  

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शोभ द रह ह। मनो यो लोग अलग -अलग होकर िना डल 

 ह॥2॥ 

* कीजत ऽपक मन गज मत। ढक महोख ऊट ऽबसरत॥ 

 मोर चकोर कर बर बजा। परत मरल सब तजा॥3॥ 

भथ:- कोयल कीज रहा ह, हा मनो मतल हथा (ऽचघ रह)

 ह। ढक और महोख पा मनो ऊट और खर ह। मोर , चकोर , तोत,

 कबी  तर और ह स मनो सब स  दर तजा (अरबा) घो ह॥3॥ 

* ताऽतर लक पदचर जी थ। बरऽन न जइ मनोज बथ॥ 

 रथ ऽगर ऽसल द  दभ झरन। चतक ब दा ग न गन बरन॥4॥ 

भथ:- तातर और बटर प दल ऽसपऽहय क झ  ड ह। कमद  क स न 

 क ण न नह हो सकत। प त क ऽशलए रथ और जल क झरन  नग ह। पपाह भट ह, जो ग णसमी  ह (ऽदला) क ण न करत 

 ह॥4॥ 

* मध कर म खर भ र सहनई। ऽऽबध बयर बसाठ आई॥ 

 चत रऽगना स न स ग लाह। ऽबचरत सबऽह च नौता दाह॥5॥ 

भथ:-भर क ग  जर भ रा और शहनई ह। शातल , म द और 

 स ग ऽधत ह मनो दी  त क कम ल कर आई ह। इस कर चत रऽगणा 

 स न सथ ऽलए कमद  मनो सबको च नौता द त आ ऽचर रह 

 ह॥5॥ 

* लऽिमन द खत कम अनाक। रहह धार ऽतह क जग लाक॥ 

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 ऐऽह क एक परम बल नरा। त ऽह त उबर सभट सोइ भरा॥6॥ 

भथ:- ह लमण! कमद  क इस स न को द खकर जो धार बन रहत 

 ह, जगत म उह क (ार म) ऽत होता ह। इस कमद  क एक ा 

 क ब भरा बल ह। उसस जो बच जए , हा   यो ह॥6॥ 

 दोह : 

* तत ताऽन अऽत बल खल कम ोध अ लोभ। 

 म ऽन ऽबयन धम मन करह ऽनऽमष म िोभ॥38 क॥ 

भथ:- ह तत! कम , ोध और लोभ - य तान अय त द  ह। य 

 ऽन क धम म ऽनय क भा मन को पलभर म  ध कर द त ह॥38

(क)॥ 

* लोभ क इि दभ बल कम क क ल नर। 

 ोध क पष बचन बल म ऽनबर कहह ऽबचर॥38 ख॥ 

भथ:- लोभ को इि और दभ क बल ह, कम को कल ा क 

 बल ह और ोध को कठोर चन क बल ह,   म ऽन ऽचर कर 

 ऐस कहत ह॥38 (ख)॥ 

 चौपई : 

* ग नतात सचरचर मा। रम उम सब अ तरजमा॥ 

 कऽमह क दानत द खई। धारह क मन ऽबरऽत द ई॥1॥ 

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भथ:- (ऽशजा कहत ह-) ह प ता! ा रमच जा ग णतात (तान 

 ग ण स पर), चरचर जगत क मा और सबक अ तर क जनन ल 

 ह। (उपय    बत कहकर) उहन कमा लोग क दानत (ब बसा) दखलई ह और धार (ऽ क) प ष क मन म  रय को द  कय 

 ह॥1॥ 

* ोध मनोज लोभ मद मय। िीटह सकल रम क दय॥ 

 सो नर इजल नह भी  ल। ज पर होइ सो नट अन कील॥2॥ 

भथ:- ोध , कम , लोभ , मद और मय - य सभा ा रमजा क 

 दय स िीट जत ह। ह नट (नटरज भगन) ऽजस पर स होत ह,

 ह मन य इजल (मय) म नह भी  लत॥2॥ 

* उम कहउ म अनभ अपन। सत हर भजन जगत सब सपन॥ 

 प ऽन भ गए सरोबर तार। प प नम सभग गभार॥3॥ 

भथ:- ह उम! म त ह अपन अनभ कहत - हर क भजन हा 

 सय ह, यह सर जगत तो (क भ ऽत झी  ठ) ह। फर भ ा 

 रमजा प प नमक स  दर और गहर सरोर क तार पर गए॥3॥ 

* स त दय जस ऽनम ल बरा। बध घट मनोहर चरा॥ 

 जह तह ऽपअह ऽबऽबध म ग नार। जन उदर ग ह जचक भार॥4॥ 

भथ:- उसक जल स त क दय ज स ऽनम ल ह। मन को हरन ल 

 स  दर चर घट बध ए ह। भ ऽत -भ ऽत क पश जह- तह जल पा रह ह।

 मनो उदर दना प ष क घर यचक क भा लगा हो!॥4॥ 

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 दोह : 

* प रइऽन सघन ओट जल ब ऽग न पइअ मम। 

 मिय न द ऽखऐ ज स ऽनग   न ॥39 क॥ 

भथ:- घना प रइन (कमल क प) क आ म जल क जदा पत 

 नह ऽमलत। ज स मय स ढक रहन क करण ऽनग   ण नह 

 दखत॥39 (क)॥ 

* स खा मान सब एकरस अऽत अगध जल मह।  जथ धम सालह क दन स ख स ज त जह॥39 ख॥ 

भथ:- उस सरोर क अय त अथह जल म सब िमऽलय सद 

 एकरस (एक समन) स खा रहता ह। ज स धमशाल प ष क सब दन 

 स खपी   क बातत ह॥39 (ख)॥ 

 चौपई : 

* ऽबकस सरऽसज नन रग। मध र म खर ग  जत ब भ  ग॥ 

 बोलत जलक क ट कलह स। भ ऽबलोक जन करत स स॥1॥ 

भथ:- उसम रग - ऽबरग कमल ऽखल ए ह। बत स भर मध र र 

 स ग  जर कर रह ह। जल क म ग और रजह स बोल रह ह, मनो भ को 

 द खकर उनक श स कर रह ह॥1॥ 

* चबक बक खग सम दई। द खत बनइ बरऽन नह जई॥ 

 स  दर खग गन ऽगर स हई। जत पऽथक जन ल त बोलई॥2॥ 

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भथ:- चक , बग ल आद पऽय क सम दय द खत हा बनत ह,

 उनक ण न नह कय ज सकत। स  दर पऽय क बोला बा 

 स हना लगता ह, मनो (रत म) जत ए पऽथक को ब लए ल ता  हो॥2॥ 

* तल समाप म ऽनह ग ह िए। च दऽस कनन ऽबटप स हए॥ 

 च पक बकल कद ब तमल। पटल पनस परस रसल॥3॥ 

भथ:- उस झाल (प प सरोर) क समाप म ऽनय न आम बन रख  ह। उसक चर ओर न क स  दर ह। चप , मौलऽसरा , कदब ,

 तमल , पटल , कटहल , ढक और आम आद -॥3॥ 

* न पल कस ऽमत त नन। च चराक पटला कर गन॥ 

 सातल म द स गध सभऊ। स तत बहइ मनोहर बऊ॥4॥ 

भथ:- बत कर क नए - नए प और (स ग ऽधत) प प स य  

 ह, ( ऽजन पर) भर क समी  ह ग  जर कर रह ह। भ स हा शातल ,

 म द , स ग ऽधत ए मन को हरन ला ह सद बहता रहता ह॥4॥ 

* क क कोकल ध ऽन करह। स ऽन र सरस यन म ऽन टरह॥5॥ 

भथ:- कोयल ' क  ' ' क  ' क शद कर रहा ह। उनक रसाला बोला 

 स नकर म ऽनय क भा यन टीट जत ह॥5॥ 

 दोह : 

* फल भरन नऽम ऽबटप सब रह भी  ऽम ऽनअरइ। 

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 पर उपकरा प ष ऽजऽम नह स स पऽत पइ॥40॥ 

भथ:- फल क बोझ स झ ककर सर पा क पस आ लग ह,

 ज स परोपकरा प ष बा सपऽ पकर (ऽनय स) झ क जत ह॥40॥ 

 चौपई : 

* द ऽख रम अऽत ऽचर तल। मन कह परम सख प॥ 

 द खा स  दर तबर िय। ब ठ अन ज सऽहत रघ रय॥1॥ 

भथ:- ा रमजा न अय त स  दर तलब द खकर न कय और 

 परम स ख पय। एक स  दर उम क िय द खकर ा रघ नथजा 

ि ोट भई लमणजा सऽहत ब ठ गए॥1॥ 

* तह प ऽन सकल द  म ऽन आए। अत ऽत कर ऽनज धम ऽसधए॥ 

 ब ठ परम स कपल। कहत अन ज सन कथ रसल॥2॥ 

भथ:- फर ह सब द त और म ऽन आए और त ऽत करक अपन-

अपन धम को चल गए। कपल ा रमजा परम स ब ठ ए िोट

भई लमणजा स रसाला कथए कह रह ह॥2॥ 

 नरद - रम स द  

* ऽबरह त भग तऽह द खा। नरद मन भ सोच ऽबस षा॥ 

 मोर सप कर अ गाकर। सहत रम नन द ख भर॥3॥

भथ:- भगन को ऽरहय  द खकर नरदजा क मन म ऽश ष प 

 स सोच आ। (उहन ऽचर कय क) म र हा शप को ाकर करक

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ा रमजा नन कर क द ख क भर सह रह ह (द ख उठ रह 

 ह)॥3॥ 

* ऐस भ ऽह ऽबलोकउ जई। प ऽन न बऽनऽह अस अस आई॥ 

 यह ऽबचर नरद कर बान। गए जह भ स ख आसान॥4॥ 

भथ:- ऐस (भ सल) भ को जकर द खी   । फर ऐस असर न 

 बन आ ग। यह ऽचर कर नरदजा हथ म ाण ऽलए ए ह गए ,

 जह भ स खपी   क ब ठ ए थ॥4॥ 

*गत रम चरत म द बना।  म सऽहत ब भ ऽत बखना॥ 

 करत द डत ऽलए उठई। रख बत बर उर लई॥5॥ 

भथ:- कोमल णा स  म क सथ बत कर स बखन - बखन 

 कर रमचरत क गन कर (त ए चल आ) रह थ। दडत करत 

 द खकर ा रमच जा न नरदजा को उठ ऽलय और बत द र तक 

 दय स लगए रख॥5॥ 

* गत पी    ऽि ऽनकट ब ठर। लऽिमन सदर चरन पखर॥6॥ 

भथ:- फर गत (कशल) पी ि कर पस ब ठ ऽलय। लमणजा न 

आदर क सथ उनक चरण धोए॥6॥ 

 दोह : 

* नन ऽबऽध ऽबनता कर भ स ऽजय जऽन। 

 नरद बोल बचन तब जोर सरोह पऽन॥41॥ 

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भथ:- बत कर स ऽनता करक और भ को मन म स 

 जनकर तब नरदजा कमल क समन हथ को जोकर चन बोल-

॥41॥ 

 चौपई : 

* स न उदर सहज रघ नयक। स  दर अगम स गम बर दयक॥ 

 द  एक बर मगउ मा। जऽप जनत अ तरजमा॥1॥ 

भथ:- ह भ स हा उदर ा रघ नथजा! स ऽनए। आप स  दर अगम और स गम र क द न ल ह। ह मा! म एक र म गत ,

 ह म झ दाऽजए , यऽप आप अ तय मा होन क नत सब जनत हा 

 ह॥1॥ 

* जन म ऽन त ह मोर सभऊ। जन सन कब क करऊ द रऊ॥ 

 कन बत अऽस ऽय मोऽह लगा। जो म ऽनबर न सक त ह मगा॥2॥ 

भथ:- (ा रमजा न कह -) ह म ऽन! त म म र भ जनत हा हो।

य म अपन भ स कभा कि ऽिप करत ? म झ ऐसा कौन सा 

 त ऽय लगता ह, ऽजस ह म ऽन ! त म नह म ग सकत?॥2॥ 

* जन क िक अद य नह मोर। अस ऽबस तज जऽन भोर॥ 

 तब नरद बोल हरषई। अस बर मगउ करउ ढठई॥3॥ 

भथ:- म झ भ क ऽलए कि भा अद य नह ह। ऐस ऽस भी  लकर 

भा मत िोो। तब नरदजा हषत होकर बोल- म ऐस र म गत ,

 यह ध त करत -॥3॥ 

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* जऽप भ क नम अन क।  ऽत कह अऽधक एक त एक॥ 

 रम सकल नमह त अऽधक। होउ नथ अघ खग गन बऽधक॥4॥ 

भथ:- यऽप भ क अन क नम ह और  द कहत ह क सब एक 

 स एक बकर ह, तो भा ह नथ! रमनम सब नम स बकर हो और 

 पप पा पऽय क समी  ह क ऽलए यह ऽधक क समन हो॥4॥ 

 दोह : 

* रक रजना भगऽत त रम नम सोइ सोम। 

अपर नम उडगन ऽबमल बस भगत उर योम॥42 क॥ 

भथ:-आपक भऽ पी  णम क रऽ ह, उसम ' रम ' नम यहा पी  ण 

 च म होकर और अय सब नम तरगण होकर भ क दय पा 

 ऽनम ल आकश म ऽनस कर॥42 (क)॥ 

* एमत म ऽन सन कह उ कपसध रघ नथ। 

 तब नरद मन हरष अऽत भ पद नयउ मथ॥42 ख॥ 

भथ:- कप सगर ा रघ नथजा न म ऽन स ' एमत' ( ऐस हा हो)

 कह। तब नरदजा न मन म अय त हषत होकर भ क चरण म  मतक नय॥42 (ख)॥ 

 चौपई : 

* अऽत स रघ नथऽह जना। प ऽन नरद बोल म द बना॥ 

 रम जबह  रउ ऽनज मय मोह  मोऽह स न रघ रय॥1॥ 

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भथ:- ा रघ नथजा को अय त स जनकर नरदजा फर कोमल 

 णा बोल- ह रमजा! ह रघ नथजा! स ऽनए , जब आपन अपना मय 

 को  रत करक म झ मोऽहत कय थ ,॥1॥ 

* तब ऽबबह म चहउ कह। भ कऽह करन कर न दाह॥ 

 स न म ऽन तोऽह कहउ सहरोस। भजह ज मोऽह तऽज सकल भरोस॥2॥ 

भथ:- तब म ऽह करन चहत थ। ह भ! आपन म झ कस 

 करण ऽह नह करन दय ? ( भ बोल-) ह म ऽन! स नो , म त ह हष 

 क सथ कहत क जो समत आश -भरोस िोकर क ल म झको हा 

भजत ह,॥2॥ 

* करउ सद ऽतह क रखरा। ऽजऽम बलक रखइ महतरा॥ 

 गह ऽसस बि अनल अऽह धई। तह रखइ जनना अरगई॥3॥ 

भथ:- म सद उनक  स हा रखला करत , ज स मत बलक 

 क र करता ह। िोट ब जब दौकर आग और स प को पकन 

 जत ह, तो ह मत उस (अपन हथ) अलग करक बच ल ता ह॥3॥ 

* ौ भए त ऽह स त पर मत। ाऽत करइ नह पऽिऽल बत॥ 

 मोर ौ तनय सम यना। बलक स त सम दस अमना॥4॥ 

भथ:- सयन हो जन पर उस प  पर मत  म तो करता ह, परत 

 ऽिपला बत नह रहता (अथ त मत परयण ऽशश क तरह फर 

 उसको बचन क चत नह करता , यक ह मत पर ऽनभ र न कर 

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अपना र आप करन लगत ह)। ना म र ौ (सयन) प  क समन 

 ह और (त हर ज स) अपन बल क मन न करन ल स क म र ऽशश 

 प  क समन ह॥4॥ 

* जनऽह मोर बल ऽनज बल तहा। द  कह कम ोध रप आहा॥ 

 यह ऽबचर प ऽडत मोऽह भजह। पए यन भगऽत नह तजह॥5॥ 

भथ:- म र स क को कल म र हा बल रहत ह और उस (ना को)

अपन बल होत ह। पर कम - ोध पा श तो दोन क ऽलए ह।(भ 

 क श को मरन क ऽजम रा म झ पर रहता ह, यक ह म र

 परयण होकर म र हा बल मनत ह, परत अपन बल को मनन ल 

 ना क श क नश करन क ऽजम रा म झ पर नह ह।) ऐस 

 ऽचर कर प ऽडतजन (ब ऽमन लोग) म झको हा भजत ह। न  

 होन पर भा भऽ को नह िोत॥5॥ 

 दोह : 

* कम ोध लोभद मद बल मोह क धर। 

 ऽतह मह अऽत दन द खद मयपा नर॥43॥ 

भथ:- कम , ोध , लोभ और मद आद मोह (अन) क बल स न  ह। इनम मयऽपणा (मय क सत मी  त) ा तो अय त दण 

 द ख द न ला ह॥43॥ 

 चौपई : 

* स न म ऽन कह प रन  ऽत स त। मोह ऽबऽपन क नर बस त॥ 

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 जप तप न म जलय झरा। होइ ाषम सोषइ सब नरा॥1 

भथ:- ह म ऽन! स नो , प रण ,  द और स त कहत ह क मोह पा न 

(को ऽकऽसत करन) क ऽलए ा स त ऋत क समन ह। जप , तप ,

 ऽनयम पा स पी  ण जल क थन को ा ाम प होकर सथ सोख 

 ल ता ह॥1॥ 

 कम ोध मद मसर भ क। इहऽह हरषद बरष एक॥ 

 द ब सन क म द सम दई। ऽतह कह सरद सद स खदई॥2॥ 

भथ:- कम , ोध , मद और मसर (डह) आद म ढक ह। इनको ष 

 ऋत होकर हष दन करन ला एकम यहा (ा) ह। ब रा सनए 

 क म द क समी  ह ह। उनको सद  स ख द न ला यह शरद ऋत ह॥2॥ 

* धम सकल सरसाह ब  द। होइ ऽहम ऽतहऽह दहइ स ख म द॥ 

 प ऽन ममत जस बतई। पल हइ नर ऽसऽसर रत पई॥3॥ 

भथ:- समत धम कमल क झ  ड ह। यह नाच (ऽषयजय) स ख द न 

 ला ा ऽहमऋत होकर उह जल डलता ह। फर ममतपा जस 

 क समी  ह (न) ा पा ऽशऽशर ऋत को पकर हर -भर हो जत 

 ह॥3॥ 

* पप उली  क ऽनकर स खकरा। नर ऽनऽब रजना अ ऽधयरा॥ 

 ब ऽध बल साल सय सब मान। बनसा सम ऽय कहह बान॥4॥ 

भथ:- पप पा उल क समी  ह क ऽलए यह ा स ख द न ला 

 घोर अधकरमया रऽ ह। ब ऽ , बल , शाल और सय - य सब िमऽलय 

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 ह और उन (को फसकर न करन) क ऽलए ा ब सा क समन ह, चत र 

 प ष ऐस कहत ह॥4॥ 

 दोह : 

* अग न मी  ल सी  लद मद सब द ख खऽन। 

 तत कह ऽनरन म ऽन म यह ऽजय जऽन॥44॥ 

भथ:- य ता ा अग ण क मी  ल , पा द न ला और सब द ख 

 क खन ह, इसऽलए ह म ऽन! म न जा म ऐस जनकर त मको ऽह 

 करन स रोक थ॥44॥ 

 चौपई : 

* स ऽन रघ पऽत क बचन स हए। म ऽन तन प लक नयन भर आए॥ 

 कह कन भ क अऽस राता। स क पर ममत अ ाता॥1॥ 

भथ:- ा रघ नथजा क स  दर चन स नकर म ऽन क शरार प लकत 

 हो गय और न  ( म क जल स) भर आए। ( मन हा मन कहन 

 लग-) कहो तो कस भ क ऐसा राता ह, ऽजसक स क पर इतन 

 मम और  म हो॥1॥ 

 स त क लण और सस ग भजन क ऽलए  रण  

* ज न भजह अस भ म यगा। यन रक नर म द अभगा॥ 

 प ऽन सदर बोल म ऽन नरद। स न रम ऽबयन ऽबसरद॥2॥ 

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भथ:- जो मन य म को यगकर ऐस भ को नह भजत,  न 

 क कगल , द ब   ऽ और अभग ह। फर नरद म ऽन आदर सऽहत बोल- ह 

 ऽन - ऽशरद ा रमजा! स ऽनए -॥2॥ 

* स तह क लिन रघ बार। कह नथ भ भ जन भार॥ 

 स न म ऽन स तह क ग न कहऊ। ऽजह त म उह क बस रहऊ॥3॥ 

भथ:- ह रघ ार! ह भ -भय (जम - मरण क भय) क नश करन 

 ल म र नथ! अब कप कर स त क लण कऽहए! (ा रमजा न  कह -) ह म ऽन! स नो , म स त क ग ण को कहत , ऽजनक करण म 

 उनक श म रहत ॥3॥ 

* षट ऽबकर ऽजत अनघ अकम। अचल अकचन स ऽच स खधम॥ 

अऽमत बोध अनाह ऽमतभोगा। सयसर कऽब कोऽबद जोगा॥4॥ 

भथ:- स त (कम , ोध , लोभ , मोह , मद और मसर - इन) िह 

 ऽकर (दोष) को जात ए , पपरऽहत , कमनरऽहत , ऽनल 

(ऽथरब ऽ), अकचन (स यगा), बहर -भातर स पऽ , स ख क

धम , असाम नन , इिरऽहत , ऽमतहरा , सयऽन , कऽ , ऽन , योगा ,॥4॥ 

* सधन मनद मदहान। धार धम गऽत परम बान॥5॥ 

भथ:- सधन , दी  सर को मन द न ल, अऽभमनरऽहत , ध य न ,

धम क न और आचरण म अय त ऽनप ण ,॥5॥ 

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 दोह : 

* ग नगर स सर द ख रऽहत ऽबगत स द ह। 

 तऽज मम चरन सरोज ऽय ऽतह क द ह न ग ह॥45॥ 

भथ:- ग ण क घर , स सर क द ख स रऽहत और स द ह स सथ 

ि ीट ए होत ह। म र चरण कमल को िोकर उनको न द ह हा ऽय 

 होता ह, न घर हा॥45॥ 

 चौपई : 

* ऽनज ग न न स नत सकचह। पर ग न स नत अऽधक हरषह॥ 

 सम सातल नह यगह नाता। सरल सभउ सबऽह सन ाऽत॥1॥ 

भथ:- कन स अपन ग ण स नन म सकचत ह, दी  सर क ग ण स नन स 

 ऽश ष हषत होत ह। सम और शातल ह, यय क कभा यग नह 

 करत। सरल भ होत ह और सभा स  म रखत ह॥1॥ 

* जप तप त दम स जम न म। ग  गोबद ऽब पद  म॥ 

िम मया दय। म दत मम पद ाऽत अमय॥2॥ 

भथ:- जप , तप , वत , दम , स यम और ऽनयम म रत रहत ह और 

 ग  , गोद तथ ण क चरण म  म रखत ह। उनम  , म ,

 म ा , दय , म दत (सत) और म र चरण म ऽनकपट  म होत 

 ह॥2॥ 

* ऽबरऽत ऽबब क ऽबनय ऽबयन। बोध जथरथ ब द प रन॥ 

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 दभ मन मद करह न कऊ। भी  ऽल न द ह कमरग पऊ॥3॥ 

भथ:- तथ  रय , ऽ क , ऽनय , ऽन (परमम क त क 

 न) और  द - प रण क यथथ न रहत ह। दभ , अऽभमन और 

 मद कभा नह करत और भी  लकर भा कमग पर प र नह रखत॥3॥ 

* गह स नह सद मम लाल। ह त रऽहत परऽहत रत साल॥ 

 म ऽन स न सध ह क ग न ज त। कऽह न सकह सदर  ऽत त त॥4॥ 

भथ:- सद म रा लाल को गत- स नत ह और ऽबन हा करण 

 दी  सर क ऽहत म लग रहन ल होत ह। ह म ऽन! स नो , स त क ऽजतन 

 ग ण ह, उनको सरता और  द भा नह कह सकत॥4॥ 

ि द : 

* कऽह सक न सरद स ष नरद स नत पद प कज गह। 

अस दानबध कपल अपन भगत ग न ऽनज म ख कह॥ 

 ऽस नइ बरह बर चरनऽह प र नरद गए। 

 त धय त लसादस आस ऽबहइ ज हर रग रए॥ 

भथ:- 'श ष और शरद भा नह कह सकत' यह स नत हा नरदजा न 

ा रमजा क चरणकमल पक ऽलए। दानबध कपल भ न इस कर 

अपन ाम ख स अपन भ क ग ण कह। भगन क चरण म बर - बर 

 ऽसर नकर नरदजा लोक को चल गए। त लसादसजा कहत ह क 

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  प ष धय ह, जो सब आश िोकर क ल ा हर क रग म रग गए 

 ह। 

 दोह : 

* रनर जस पन गह स नह ज लोग। 

 रम भगऽत द  पह ऽबन ऽबरग जप जोग॥46 क॥ 

भथ:- जो लोग रण क श ा रमजा क पऽ यश ग ग और 

 स न ग,   रय , जप और योग क ऽबन हा ा रमजा क द  भऽ 

 प ग॥46 (क)॥ 

* दाप ऽसख सम ज बऽत तन मन जऽन होऽस पत ग। 

भजऽह रम तऽज कम मद करऽह सद सतस ग॥46 ख॥ 

भथ:- य ता ऽय क शरार दापक क लौ क समन ह, ह मन! ती  

 उसक पतग न बन। कम और मद को िोकर ा रमच जा क 

भजन कर और सद सस ग कर॥46 (ख)॥