Aranya-Kand Shri Ramcharit Manas, Gita Press Gorakhpur
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शारमचरतमनस
अरणयकणड
त ताय सोपन - म गलचरण
ोक :
* मी ल धम तरो कजलध पी ण द मनदद
रयब जभकर घघनतपह तपहम।
मोहभोधरपी गपटनऽधौ सभ श कर
द कल कल कशमन ा रमभी पऽयम॥1॥
भथ:-धम पा क मी ल , ऽ क पा सम को आन द द न ल पी ण च , रय पा कमल क (ऽकऽसत करन ल) सी य, पप पा
घोर अधकर को ऽनय हा ऽमटन ल, तान तप को हरन ल,
मोह पा बदल क समी ह को ऽि - ऽभ करन क ऽऽध (य) म
आकश स उप पन प , जा क शज (आमज) तथ
कल कनशक , महरज ा रमचजा क ऽय ा श करजा क म दन
करत ॥1॥
* सनदपयोदसौभगतन पातबर स दर
पणौ बणशरसन कटलसी णारभर रम।
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रजायतलोचन ध तजटजी टन सशोऽभत
सातलमणस य त पऽथगत रमऽभरम भज॥2॥
भथ:- ऽजनक शरार जलय म घ क समन स दर (यमण) ए
आन दघन ह, जो स दर (कल क) पात धरण कए ह, ऽजनक
हथ म बण और धन ष ह, कमर उम तरकस क भर स सशोऽभत ह,
कमल क समन ऽशल न ह और मतक पर जटजी ट धरण कए ह,
उन अयत शोभयमन ा सातजा और लमणजा सऽहत मग म चलत ए आन द द न ल ा रमचजा को म भजत ॥2॥
सोरठ :
* उम रम ग न गी प ऽडत म ऽन पह ऽबरऽत।
पह मोह ऽबमी ज हर ऽबम ख न धम रऽत॥
भथ:- ह प ता! ा रमजा क ग ण गी ह, पऽडत और म ऽन उह
समझकर रय करत ह, परत जो भगन स ऽम ख ह और
ऽजनक धम म म नह ह, महमी (उह स नकर) मोह को होत
ह।
*चौपई :
प र नर भरत ाऽत म गई। मऽत अन प अनी प स हई॥
अब भ चरत स न अऽत पन। करत ज बन स र नर म ऽन भन॥1॥
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भथ:- प रऽसय क और भरतजा क अन पम और स दर म क म न
अपना ब ऽ क अन सर गन कय। अब द त , मन य और म ऽनय क
मन को भन ल भ ा रमचजा क अयत पऽ चर स नो ,
ऽजह न म कर रह ह
जय त क क टलत और फल ऽ
* एक बर च ऽन कस म स हए। ऽनज कर भी षन रम बनए॥
सातऽह पऽहरए भ सदर। ब ठ फटक ऽसल पर स दर॥2॥
भथ:- एक बर स दर फील च नकर ा रमजा न अपन हथ स भ ऽत -
भ ऽत क गहन बनए और स दर फटक ऽशल पर ब ठ ए भ न आदर
क सथ गहन ा सातजा को पहनए॥2॥
* स रपऽत स त धर बयस ब ष। सठ चहत रघ पऽत बल द ख॥
ऽजऽम ऽपपाऽलक सगर थह। मह म दमऽत पन चह॥3॥
भथ:- द रज इ क मी ख प जयत कौए क प धरकर ा
रघ नथजा क बल द खन चहत ह। ज स महन म दब ऽ चटा सम
क थह पन चहता हो॥3॥
*सात चरन चच हऽत भग। मी म दमऽत करन कग॥
चल ऽधर रघ नयक जन। सक धन ष सयक सधन॥4॥
भथ:- ह मी , म दब ऽ करण स (भगन क बल क परा करन
क ऽलए) बन आ कौआ सातजा क चरण म चच मरकर भग। जब
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र बह चल , तब ा रघ नथजा न जन और धन ष पर सक (सरकड)
क बण सधन कय॥4॥
दोह :
* अऽत कपल रघ नयक सद दान पर न ह।
त सन आइ कह िल मी रख अग न ग ह॥1॥
भथ:-ा रघ नथजा , जो अयत हा कपल ह और ऽजनक दान पर
सद म रहत ह, उनस भा उस अग ण क घर मी ख जयत न आकर
ि ल कय॥1॥
चौपई :
* रत म सर ध। चल भऽज बयस भय प॥
धर ऽनज प गयउ ऽपत पह। रम ऽबम ख रख त ऽह नह॥1॥
भथ:- म स रत होकर ह बण दौ। कौआ भयभात होकर
भग चल। ह अपन असला प धरकर ऽपत इ क पस गय , पर
ा रमजा क ऽरोधा जनकर इ न उसको नह रख॥1॥
*भ ऽनरस उपजा मन स। जथ च भय रऽष द ब स॥
धम ऽसप र सब लोक। फर ऽमत यकल भय सोक॥2॥
भथ:- तब ह ऽनरश हो गय , उसक मन म भय उप हो गय , ज स
द स ऋऽष को च स भय आ थ। ह लोक , ऽशलोक आद
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समत लोक म थक आ और भय -शोक स कल होकर भगत
फर॥2॥
*क ब ठन कह न ओहा। रऽख को सकइ रम कर ोहा ॥
मत म य ऽपत समन समन। सध होइ ऽबष स न हरजन॥3॥
भथ:-(पर रखन तो दी र रह) कसा न उस ब ठन तक क ऽलए नह
कह। ा रमजा क ोहा को कौन रख सकत ह? ( ककभश ऽडजा
कहत ह-) ह ग ! स ऽनए , उसक ऽलए मत म य क समन , ऽपत यमरज क समन और अम त ऽष क समन हो जत ह॥3॥
*ऽम करइ सत रप क करना। त कह ऽबबधनदा ब तरना॥
सब जग तऽह अनल त तत। जो रघ बार ऽबम ख स न त॥4॥
भथ:-
ऽम स क श क सा करना करन लगत ह। द नदा ग गजा उसक ऽलए तरणा (यमप रा क नदा) हो जता ह। ह भई!
स ऽनए , जो ा रघ नथजा क ऽम ख होत ह, समत जगत उनक ऽलए
अऽ स भा अऽधक गरम (जलन ल) हो जत ह॥4॥
*नरद द ख ऽबकल जय त। लऽग दय कोमल ऽचत स त॥
पठ त रत रम पह तहा। कह ऽस प कर नत ऽहत पहा॥5॥
भथ:- नरदजा न जयत को कल द ख तो उह दय आ गई ,
यक स त क ऽच ब कोमल होत ह। उहन उस (समझकर)
त रत ा रमजा क पस भ ज दय। उसन (जकर) प करकर कह - ह
शरणगत क ऽहतकरा! म रा र कऽजए॥5॥
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*आत र सभय गह ऽस पद जई। ऽह ऽह दयल रघ रई॥
अत ऽलत बल अत ऽलत भ तई। म मऽतम द जऽन नह पई॥6॥
भथ:-आत र और भयभात जयत न जकर ा रमजा क चरण पक
ऽलए (और कह -) ह दयल रघ नथजा! र कऽजए , र कऽजए।
आपक अत ऽलत बल और आपक अत ऽलत भ त (समय) को म
मदब ऽ जन नह पय थ॥6॥
*ऽनज कत कम जऽनत फल पयउ। अब भ पऽह सरन तक आयउ॥
स ऽन कपल अऽत आरत बना। एकनयन कर तज भना॥7॥
भथ:-अपन कम स उप आ फल म न प ऽलय। अब ह भ! म रा
र कऽजए। म आपक शरण तक कर आय । (ऽशजा कहत ह-) ह
प ता! कपल ा रघ नथजा न उसक अय त आ (द ख भरा) णा
स नकर उस एक आ ख क कन करक िो दय॥7॥
सोरठ :
*कह मोह बस ोह जऽप त ऽह कर बध उऽचत।
भ ि उ कर िोह को कपल रघ बार सम॥2॥
भथ:- उसन मोहश ोह कय थ , इसऽलए यऽप उसक ध हा
उऽचत थ , पर भ न कप करक उस िो दय। ा रमजा क समन
कपल और कौन होग ?॥2॥
चौपई :
*रघ पऽत ऽचकीट बऽस नन। चरत कए ऽत सध समन॥
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बर रम अस मन अन मन। होइऽह भार सबह मोऽह जन॥1॥
भथ:- ऽचकीट म बसकर ा रघ नथजा न बत स चर कए , जो
कन को अम त क समन (ऽय) ह। फर (कि समय पत) ा
रमजा न मन म ऐस अन मन कय क म झ सब लोग जन गए ह,
इसस (यह) बा भा हो जएगा॥1॥
अऽ ऽमलन ए त ऽत
* सकल म ऽनह सन ऽबद करई। सात सऽहत चल ौ भई॥
अऽ क आम जब भ गयऊ। स नत महम ऽन हरऽषत भयऊ॥2॥
भथ:-(इसऽलए) सब म ऽनय स ऽद ल कर सातजा सऽहत दोन
भई चल! जब भ अऽजा क आम म गए , तो उनक आगमन स नत
हा महम ऽन हषत हो गए॥2॥
* प लकत गत अऽ उठ धए। द ऽख रम आत र चऽल आए॥
करत द डत म ऽन उर लए। म बर ौ जन अहए॥3॥
भथ:-शरार प लकत हो गय , अऽजा उठकर दौ। उह दौ आत
द खकर ा रमजा और भा शात स चल आए। दडत करत ए हा
ा रमजा को (उठकर) म ऽन न दय स लग ऽलय और म क
जल स दोन जन को (दोन भइय को) नहल दय॥3॥
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*द ऽख रम िऽब नयन ज न। सदर ऽनज आम तब आन॥
कर पी ज कऽह बचन स हए। दए मी ल फल भ मन भए॥4॥
भथ:-ा रमजा क िऽ द खकर म ऽन क न शातल हो गए। तब
उनको आदरपी क अपन आम म ल आए। पी जन करक स दर चन
कहकर म ऽन न मी ल और फल दए , जो भ क मन को बत च॥4॥
सोरठ :
* भ आसन आसान भर लोचन सोभ ऽनरऽख।
म ऽनबर परम बान जोर पऽन अत ऽत करत॥3॥
भथ:- भ आसन पर ऽरजमन ह। न भरकर उनक शोभ द खकर
परम ाण म ऽन हथ जोकर त ऽत करन लग॥3॥
ि द : *नमऽम भ सल। कपल शाल कोमल॥
भजऽम त पद ब ज। अकऽमन धमद॥1॥
भथ:- ह भ सल! ह कपल! ह कोमल भ ल! म आपको
नमकर करत । ऽनकम प ष को अपन परमधम द न ल आपक
चरण कमल को म भजत ॥1॥
*ऽनकम यम स दर। भ ब नथ म दर॥
फ ल कज लोचन। मदद दोष मोचन॥2॥
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भथ:-आप ऽनतत स दर यम , स सर (आगमन) पा सम को
मथन क ऽलए म दरचल प , फील ए कमल क समन न ल और
मद आद दोष स िन ल ह॥2॥
*ल ब ब ऽम। भोऻम य भ॥
ऽनष ग चप सयक। धर ऽलोक नयक॥3॥
भथ:- ह भो! आपक ल बा भ ज क परम और आपक ऐय
अम य (बऽ क पर अथ असाम) ह। आप तरकस और धन ष - बण धरण करन ल तान लोक क मा ,॥3॥
*दनश श म डन। महश चप ख डन॥
म न स त रजन। स रर द भ जन॥4॥
भथ:- सी य श क भी षण , महद जा क धन ष को तोन ल,
म ऽनरज और स त को आन द द न ल तथ द त क श अस र क
समी ह क नश करन ल ह॥4॥
*मनोज र दत। अजद द स ऽत॥
ऽश बोध ऽह। समत दी षणपह॥5॥
भथ:-आप कमद क श महद जा क र दत , आद
द त स स ऽत , ऽश नमय ऽह और समत दोष को न
करन ल ह॥5॥
*नमऽम इदर पत। स खकर सत गत॥
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भज सशऽ सन ज। शचा पऽत ऽयन ज॥6॥
भथ:- ह लमापत! ह स ख क खन और सप ष क एकम गऽत!
म आपको नमकर करत ! ह शचापऽत (इ) क ऽय िोट भई (मनजा)! प -शऽ ा सातजा और िोट भई लमणजा सऽहत
आपको म भजत ॥6॥
*द ऽ मी ल य नर। भज ऽत हान मसर॥
पत ऽत नो भण । ऽतक ाऽच स कल॥7॥
भथ:- जो मन य मसर (डह) रऽहत होकर आपक चरण कमल क
स न करत ह, तक - ऽतक (अन क कर क स द ह) पा तरग स पी ण
स सर पा सम म नह ऽगरत (आगमन क चर म नह पत)॥7॥
*ऽऽ ऽसन सद। भज ऽत म य म द॥
ऽनरय इयदक। य ऽतत गत क॥8॥
भथ:- जो एकतसा प ष म ऽ क ऽलए , इऽयद क ऽनह
करक (उह ऽषय स हटकर) सतपी क आपको भजत ह,
कय गऽत को (अपन प को) होत ह॥8॥
*तम कमभ त भ । ऽनराहमार ऽभ ॥
जगग च शत। त रायम क ल॥9॥
भथ:- उन (आप) को जो एक (अऽताय), अभ त (मऽयक जगत स
ऽलण), भ (स समथ), इिरऽहत , ईर (सबक मा), पक ,
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जगग , सनतन (ऽनय), त राय (तान ग ण स सथ पर) और क ल
(अपन प म ऽथत) ह॥9॥
*भजऽम भ लभ। क योऽगन स द लभ॥
भ कप पदप। सम स स मह॥10॥
भथ:-(तथ) जो भऽय , क योऽगय (ऽषया प ष) क ऽलए
अयत द लभ , अपन भ क ऽलए कप (अथ त उनक समत
कमन को पी ण करन ल), सम (पपतरऽहत) और सद स खपी क
स न करन योय ह, म ऽनरतर भजत ॥10॥
*अनी प प भी पत। नतोऻहम ज पत॥
साद म नमऽम त। पदज भऽ द ऽह म॥11॥
भथ:- ह अन पम स दर! ह पापऽत! ह जनकनथ! म आपको णम
करत । म झ पर स होइए , म आपको नमकर करत । म झ
अपन चरण कमल क भऽ दाऽजए॥11॥
*पठऽत य त इद। नरदरण त पद॥
वज ऽत न सशय। दाय भऽ स य त॥12॥
भथ:- जो मन य इस त ऽत को आदरपी क पत ह, आपक भऽ
स य होकर आपक परम पद को होत ह, इसम स द ह नह॥12॥
दोह :
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*ऽबनता कर म ऽन नइ ऽस कह कर जोर बहोर।
चरन सरोह नथ जऽन कब तज मऽत मोर॥4॥
भथ:- म ऽन न (इस कर) ऽनता करक और फर ऽसर नकर , हथ
जोकर कह - ह नथ! म रा ब ऽ आपक चरण कमल को कभा न
ि ो॥4॥
ा सात -अनसी य ऽमलन और ा सातजा को अनसी यजा क पऽतवत
धम कहन
चौपई :
* अन स इय क पद गऽह सात। ऽमला बहोर स साल ऽबनात॥
रऽषपऽतना मन स ख अऽधकई। आऽसष द इ ऽनकट ब ठई॥1॥
भथ:- फर परम शालता और ऽन ा सातजा अनसी यजा
(आऽजा क पा) क चरण पककर उनस ऽमल। ऋऽष पा क मन म
ब स ख आ। उहन आशाष द कर सातजा को पस ब ठ ऽलय॥1॥
* दय बसन भी षन पऽहरए। ज ऽनत नी तन अमल स हए॥
कह रऽषबधी सरस म द बना। नरधम िक यज बखना॥2॥
भथ:-और उह ऐस द और आभी षण पहनए , जो ऽनय - नए
ऽनम ल और स हन बन रहत ह। फर ऋऽष पा उनक बहन मध र
और कोमल णा स ऽय क कि धम बखन कर कहन लग॥2॥
*मत ऽपत त ऽहतकरा। ऽमतद सब स न रजकमरा॥
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अऽमत दऽन भत बयद हा। अधम सो नर जो स न त हा॥3॥
भथ:- ह रजकमरा! स ऽनए - मत , ऽपत , भई सभा ऽहत करन
ल ह, परत य सब एक साम तक हा (स ख) द न ल ह, परत ह
जनक! पऽत तो (मो प) असाम (स ख) द न ल ह। ह ा अधम
ह, जो ऐस पऽत क स नह करता॥3॥
* धारज धम ऽम अ नरा। आपद कल परऽखअह चरा॥
ब रोगबस ज धनहान। अध बऽधर ोधा अऽत दान॥4॥
भथ:-ध य, धम, ऽम और ा - इन चर क ऽपऽ क समय हा
परा होता ह। , रोगा , मी ख, ऽनध न , अध , बहर , ोधा और
अयत हा दान -॥4॥
*ऐस पऽत कर कए अपमन। नर प जमप र द ख नन॥
एकइ धम एक त न म। कय बचन मन पऽत पद म॥5॥
भथ:- ऐस भा पऽत क अपमन करन स ा यमप र म भ ऽत -भ ऽत क
द ख पता ह। शरार , चन और मन स पऽत क चरण म म करन ा
क ऽलए , बस यह एक हा धम ह, एक हा वत ह और एक हा ऽनयम ह॥5॥
*जग पऽतत चर ऽबऽध अहह। ब द प रन स त सब कहह॥
उम क अस बस मन मह। सपन आन प ष जग नह॥6॥
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भथ:- जगत म चर कर क पऽतवतए ह। द , प रण और स त सब
ऐस कहत ह क उम णा क पऽतवत क मन म ऐस भ बस
रहत ह क जगत म (म र पऽत को िोकर) दी सर प ष म भा नह ह॥6॥
*मयम परपऽत द खइ कस। त ऽपत प ऽनज ज स॥
धम ऽबचर सम ऽझ कल रहई। सो ऽनक ऽय ऽत अस कहई॥7॥
भथ:- मयम णा क पऽतवत परए पऽत को कस द खता ह, ज स ह अपन सग भई , ऽपत य प हो (अथ त समन अथ ल को
ह भई क प म द खता ह, ब को ऽपत क प म और िोट को प
क प म द खता ह।) जो धम को ऽचरकर और अपन कल क मय द
समझकर बचा रहता ह, ह ऽनक (ऽन णा क) ा ह, ऐस द
कहत ह॥7॥
*ऽबन असर भय त रह जोई। जन अधम नर जग सोई॥
पऽत ब चक परपऽत रऽत करई। रौर नरक कप सत परई॥8॥
भथ:-और जो ा मौक न ऽमलन स य भयश पऽतवत बना
रहता ह, जगत म उस अधम ा जनन। पऽत को धोख द न ला जो
ा परए पऽत स रऽत करता ह, ह तो सौ कप तक रौर नरक म
पा रहता ह॥8॥
*िन स ख लऽग जनम सत कोटा। द ख न सम झ त ऽह सम को खोटा॥
ऽबन म नर परम गऽत लहई। पऽतत धम िऽ िल गहई॥9॥
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भथ:-णभर क स ख क ऽलए जो सौ करो (अस य) जम क द ख
को नह समझता , उसक समन द कौन होगा। जो ा िल िोकर
पऽतवत धम को हण करता ह, ह ऽबन हा परम परम गऽत को करता ह॥9॥
*पऽत ऽतकील जनम जह जई। ऽबध होइ पइ तनई॥10॥
भथ:- कत जो पऽत क ऽतकील चलता ह, ह जह भा जकर जम
ल ता ह, ह जना पकर (भरा जना म) ऽध हो जता ह॥10॥
सोरठ :
* सहज अपऽन नर पऽत स त सभ गऽत लहइ।
जस गत ऽत चर अज त लऽसक हरऽह ऽय॥5 क॥
भथ:- ा जम स हा अपऽ ह, कत पऽत क स करक ह
अनयस हा शभ गऽत कर ल ता ह। (पऽतवत धम क करण हा)
आज भा ' त लसाजा ' भगन को ऽय ह और चर द उनक यश गत
ह॥5 (क)॥
*स न सात त नम स ऽमर नर पऽतत करह।
तोऽह नऽय रम कऽहउ कथ स सर ऽहत॥5 ख॥
भथ:- ह सात! स नो , त हर तो नम हा ल- ल कर ऽय पऽतवत
धम क पलन करगा। त ह तो ा रमजा ण क समन ऽय ह, यह
(पऽतवत धम क) कथ तो म न स सर क ऽहत क ऽलए कहा ह॥5 (ख)॥
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चौपई :
* स ऽन जनक परम स ख प। सदर तस चरन ऽस न॥
तब म ऽन सन कह कपऽनधन। आयस होइ जउ बन आन॥1॥
भथ:- जनकजा न स नकर परम स ख पय और आदरपी क उनक
चरण म ऽसर नय। तब कप क खन ा रमजा न म ऽन स कह -
आ हो तो अब दी सर न म जऊ॥1॥
*स तत मो पर कप कर। स क जऽन तज जऽन न ॥
धम ध रधर भ क बना। स ऽन स म बोल म ऽन यना॥2॥
भथ:- म झ पर ऽनरतर कप करत रऽहएग और अपन स क जनकर
ह न िोऽएग। धम ध रधर भ ा रमजा क चन स नकर ना
म ऽन मपी क बोल-॥2॥
*जस कप अज ऽस सनकदा। चहत सकल परमरथ बदा॥
त त ह रम अकम ऽपआर। दान बध म द बचन उचर॥3॥
भथ:- , ऽश और सनकद सभा परमथ दा (त )
ऽजनक कप चहत ह, ह रमजा! आप हा ऽनकम प ष क भा ऽय
और दान क बध भगन ह, जो इस कर कोमल चन बोल रह
ह॥3॥
*अब जना म ा चत रई। भजा त हऽह सब द ऽबहई॥
ज ऽह समन अऽतसय नह कोई। त कर साल कस न अस होई॥4॥
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भथ:-अब म न लमाजा क चत रई समझा , ऽजहन सब द त
को िोकर आप हा को भज। ऽजसक समन (सब बत म) अयत
ब और कोई नह ह, उसक शाल भल , ऐस य न होग ?॥4॥
*क ऽह ऽबऽध कह ज अब मा। कह नथ त ह अ तरजमा॥
अस कऽह भ ऽबलोक म ऽन धार। लोचन जल बह प लक सरार॥5॥
भथ:- म कस कर क क ह मा! आप अब जइए ? ह नथ!
आप अतय मा ह, आप हा कऽहए। ऐस कहकर धार म ऽन भ को द खन
लग। म ऽन क न स ( म क) जल बह रह ह और शरार प लकत
ह॥5॥
ि द :
* तन प लक ऽनभ र म पी रन नयन म ख प कज दए।
मन यन ग न गोतात भ म दाख जप तप क कए॥
जप जोग धम समी ह त नर भगऽत अन पम पई।
रघ बार चरत प नात ऽनऽस दन दस त लसा गई॥
भथ:- म ऽन अयत म स पी ण ह, उनक शरार प लकत ह और न
को ा रमजा क म खकमल म लगए ए ह। (मन म ऽचर रह ह क)
म न ऐस कौन स जप - तप कए थ, ऽजसक करण मन , न , ग ण और
इऽय स पर भ क दश न पए। जप , योग और धम समी ह स मन य
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अन पम भऽ को पत ह। ा रघ ार क पऽ चर को त लसादस
रत - दन गत ह।
दोह :
* कऽलमल समन दमन मन रम स जस स खमी ल।
सदर स नह ज ऽतह पर रम रहह अन कील॥6 क॥
भथ:-ा रमचजा क स दर यश कऽलय ग क पप क नश करन
ल , मन को दमन करन ल और स ख क मी ल ह, जो लोग इस आदरपी क स नत ह, उन पर ा रमजा स रहत ह॥6 (क)॥
सोरठ :
* कठन कल मल कोस धम न यन न जोग जप।
परहर सकल भरोस रमऽह भजह त चत र नर॥6 ख॥
भथ:- यह कठन कऽल कल पप क खजन ह, इसम न धम ह, न
न ह और न योग तथ जप हा ह। इसम तो जो लोग सब भरोस को
ि ोकर ा रमजा को हा भजत ह, हा चत र ह॥6 (ख)॥
ा रमजा क आग थन , ऽरध ध और शरभ ग स ग
चौपई :
* म ऽन पद कमल नइ कर सास। चल बनऽह स र नर म ऽन ईस॥
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आग रम अन ज प ऽन िप। म ऽन बर ब ष बन अऽत िक ॥1॥
भथ:- म ऽन क चरण कमल म ऽसर नकर द त , मन य और
म ऽनय क मा ा रमजा न को चल। आग ा रमजा ह और उनक
िपा िोट भई लमणजा ह। दोन हा म ऽनय क स दर ष बनए
अयत सशोऽभत ह॥1॥
* उभय बाच ा सोहइ कसा। जा ऽबच मय ज सा॥
सरत बन ऽगर अघट घट। पऽत पऽहचऽन द ह बर बट॥2॥भथ:- दोन क बाच म ा जनकजा कसा सशोऽभत ह, ज स
और जा क बाच मय हो। नदा , न , प त और द ग म घटय, सभा
अपन मा को पहचनकर स दर रत द द त ह॥2॥
* जह जह जह द रघ रय। करह म घ तह तह नभ िय॥
ऽमल अस र ऽबरध मग जत। आतह रघ बार ऽनपत॥3॥
भथ:- जह- जह द ा रघ नथजा जत ह, ह- ह बदल आकश
म िय करत जत ह। रत म जत ए ऽरध रस ऽमल। समन
आत हा ा रघ नथजा न उस मर डल॥3॥
* त रतह ऽचर प त ह प। द ऽख द खा ऽनज धम पठ॥
प ऽन आए जह म ऽन सरभ ग। स दर अन ज जनक स ग॥4॥
भथ:-(ा रमजा क हथ स मरत हा) उसन त रत स दर (द) प
कर ऽलय। द खा द खकर भ न उस अपन परम धम को भ ज
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दय। फर स दर िोट भई लमणजा और सातजा क सथ ह
आए जह म ऽन शरभ गजा थ॥4॥
दोह :
* द ऽख रम म ख प कज म ऽनबर लोचन भ ग।
सदर पन करत अऽत धय जम सरभ ग॥7॥
भथ:-ा रमचजा क म खकमल द खकर म ऽन क न पा
भर अयत आदरपी क उसक (मकरद रस) पन कर रह ह।शरभ गजा क जम धय ह॥7॥
चौपई :
* कह म ऽन स न रघ बार कपल। स कर मनस रजमरल॥
जत रह उ ऽबरऽच क धम। स न उ न बन ऐहह रम॥1॥
भथ:- म ऽन न कह - ह कपल रघ ार! ह श करजा मन पा
मनसरोर क रजह स! स ऽनए , म लोक को ज रह थ। (इतन म)
कन स स न क ा रमजा न म आ ग॥1॥
* ऽचतत पथ रह उ दन रता। अब भ द ऽख ज ना िता॥
नथ सकल सधन म हान। कहा कप जऽन जन दान॥2॥
भथ:- तब स म दन - रत आपक रह द खत रह । अब (आज) भ
को द खकर म रा िता शातल हो गई। ह नथ! म सब सधन स हान ।
आपन अपन दान स क जनकर म झ पर कप क ह॥2॥
* सो िक द न मोऽह ऽनहोर। ऽनज पन रख उ जन मन चोर॥
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तब लऽग रह दान ऽहत लगा। जब लऽग ऽमल त हऽह तन यगा॥3॥
भथ:- ह द ! यह कि म झ पर आपक एहसन नह ह। ह भ -
मनचोर! ऐस करक आपन अपन ण क हा र क ह। अब इस दान क कयण क ऽलए तब तक यह ठहरए , जब तक म शरार िोकर
आपस (आपक धम म न) ऽमली ॥3॥
* जोग जय जप तप त कह। भ कह द इ भगऽत बर लाह॥
एऽह ऽबऽध सर रऽच म ऽन सरभ ग। ब ठ दय िऽ सब स ग॥4॥
भथ:- योग , य , जप , तप जो कि वत आद भा म ऽन न कय थ ,
सब भ को समप ण करक बदल म भऽ क रदन ल ऽलय। इस
कर (द लभ भऽ करक फर) ऽचत रचकर म ऽन शरभ गजा दय
स सब आसऽ िोकर उस पर ज ब ठ॥4॥
दोह :
* सात अन ज सम त भ नाल जलद तन यम।
मम ऽहय बस ऽनरतर सग नप ा रम॥8॥
भथ:- ह नाल म घ क समन यम शरार ल सग ण प ा रमजा!
सातजा और िोट भई लमणजा सऽहत भ (आप) ऽनरतर म र दय म ऽनस कऽजए॥8॥
चौपई :
* अस कऽह जोग अऽगऽन तन जर। रम कप ब क ठ ऽसधर॥
तत म ऽन हर लान न भयऊ। थमह भ द भगऽत बर लयऊ॥1॥
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भथ:- ऐस कहकर शरभ गजा न योगऽ स अपन शरार को जल
डल और ा रमजा क कप स क ठ को चल गए। म ऽन भगन म
लान इसऽलए नह ए क उहन पहल हा भ द -
भऽ क र ल ऽलय थ॥1॥
* रऽष ऽनकय म ऽनबर गऽत द खा। स खा भए ऽनज दय ऽबस षा॥
अत ऽत करह सकल म ऽन ब द। जयऽत नत ऽहत कन कद॥2॥
भथ:- ऋऽष समी ह म ऽन शरभ गजा क यह (द लभ) गऽत द खकर
अपन दय म ऽश ष प स स खा ए। समत म ऽन द ा रमजा क
त ऽत कर रह ह (और कह रह ह) शरणगत ऽहतकरा कण कद
(कण क मी ल) भ क जय हो!॥2॥
* प ऽन रघ नथ चल बन आग। म ऽनबर ब द ऽबप ल स ग लग॥
अऽथ समीह द ऽख रघ रय। पी ि ा म ऽनह लऽग अऽत दय॥3॥
भथ:- फर ा रघ नथजा आग न म चल। म ऽनय क बत स
समी ह उनक सथ हो ऽलए। हऽय क ढर द खकर ा रघ नथजा को
बा दय आई , उहन म ऽनय स पी ि ॥3॥
* जनत पी ऽिअ कस मा। सबदरसा तह अ तरजमा॥
ऽनऽसचर ऽनकर सकल म ऽन खए। स ऽन रघ बार नयन जल िए॥4॥
भथ:-(म ऽनय न कह) ह मा! आप स दश (स ) और
अ तय मा (सबक दय क जनन ल) ह। जनत ए भा (अनजन क
तरह) हमस कस पी ि रह ह? रस क दल न सब म ऽनय को ख
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डल ह। (य सब उह क हऽय क ढर ह)। यह स नत हा ा रघ ार
क न म जल ि गय (उनक आ ख म कण क आ सी भर आए)॥4॥
रस ध क ऽत करन , स ताणजा क म , अगय ऽमलन ,
अगय स द
दोह :
* ऽनऽसचर हान करउ मऽह भ ज उठइ पन कह।
सकल म ऽनह क आमऽह जइ जइ स ख दाह॥9॥
भथ:-ा रमजा न भ ज उठकर ण कय क म पा को रस
स रऽहत कर दी ग। फर समत म ऽनय क आम म ज - जकर उनको
(दश न ए सभषण क) स ख दय॥9॥
चौपई :
* म ऽन अगऽत कर ऽसय स जन। नम स ितान रऽत भगन॥
मन म बचन रम पद स क। सपन आन भरोस न द क॥1॥
भथ:- म ऽन अगयजा क एक स ताण नमक स जन (ना) ऽशय
थ, उनक भगन म ाऽत था। मन , चन और कम स ा रमजा क
चरण क स क थ। उह म भा कसा दी सर द त क भरोस नह
थ॥1॥
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* भ आगन न स ऽन प। करत मनोरथ आत र ध॥
ह ऽबऽध दानबध रघ रय। मो स सठ पर करहह दय॥2॥
भथ:- उहन य हा भ क आगमन कन स स न पय , य हा
अन क कर क मनोरथ करत ए आत रत (शात) स दौ चल। ह
ऽधत! य दानबध ा रघ नथजा म झ ज स द पर भा दय
करग?॥2॥
* सऽहत अन ज मोऽह रम गोस। ऽमऽलहह ऽनज स क क न॥
मोर ऽजय भरोस द नह। भगऽत ऽबरऽत न यन मन मह॥3॥
भथ:-य मा ा रमजा िोट भई लमणजा सऽहत म झस
अपन स क क तरह ऽमल ग? म र दय म द ऽस नह होत ,
यक म र मन म भऽ , रय य न कि भा नह ह॥3॥
* नह सतस ग जोग जप जग। नह द चरन कमल अन रग॥
एक बऽन कनऽनधन क। सो ऽय जक गऽत न आन क॥4॥
भथ:- म न न तो सस ग , योग , जप अथ य हा कए ह और न भ
क चरणकमल म म र द अन रग हा ह। ह, दय क भ डर भ क
एक बन ह क ऽजस कसा दी सर क सहर नह ह, ह उह ऽय होत
ह॥4॥
* होइह स फल आज मम लोचन। द ऽख बदन प कज भ मोचन॥
ऽनभ र म मगन म ऽन यना। कऽह न जइ सो दस भना॥5॥
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भथ:-(भगन क इस बन क मरण आत हा म ऽन आन दम
होकर मन हा मन कहन लग-) अह! भ बधन स िन ल भ क
म खरद को द खकर आज म र न सफल हग। (ऽशजा कहत ह-
) ह भना! ना म ऽन म म पी ण प स ऽनम ह। उनक ह दश कहा
नह जता॥5॥
* दऽस अ ऽबदऽस पथ नह सी झ। को म चल उ कह नह बी झ॥
कब क फर िप प ऽन जई। कब क न य करइ ग न गई॥6॥
भथ:- उह दश - ऽदश (दशए और उनक कोण आद) और
रत , कि भा नह सी झ रह ह। म कौन और कह ज रह , यह
भा नह जनत (इसक भा न नह ह)। कभा िपा घी मकर फर
आग चलन लगत ह और कभा (भ क) ग ण ग - गकर नचन लगत
ह॥6॥
* अऽबरल म भगऽत म ऽन पई। भ द ख त ओट ल कई॥
अऽतसय ाऽत द ऽख रघ बार। गट दय हरन भ भार॥7॥
भथ:- म ऽन न ग मभऽ कर ला। भ ा रमजा क
आ म ऽिपकर (भ क मोम दश) द ख रह ह। म ऽन क अयत
म द खकर भभय (आगमन क भय) को हरन ल ा रघ नथजा म ऽन क दय म कट हो गए॥7॥
* म ऽन मग मझ अचल होइ ब स। प लक सरार पनस फल ज स॥
तब रघ नथ ऽनकट चऽल आए। द ऽख दस ऽनज जन मन भए॥8॥
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भथ:-(दय म भ क दश न पकर) म ऽन बाच रत म अचल
(ऽथर) होकर ब ठ गए। उनक शरार रोम च स कटहल क फल क समन
(कटकत) हो गय। तब ा रघ नथजा उनक पस चल आए और अपन भ क म दश द खकर मन म बत स ए॥8॥
* म ऽनऽह रम ब भ ऽत जग। जग न यन जऽनत स ख प॥
भी प प तब रम द र। दय चतभ ज प द ख॥9॥
भथ:-ा रमजा न म ऽन को बत कर स जगय , पर म ऽन नह
जग, यक उह भ क यन क स ख हो रह थ। तब ा
रमजा न अपन रजप को ऽिप ऽलय और उनक दय म अपन
चतभ ज प कट कय॥9॥
* म ऽन अकलइ उठ तब कस। ऽबकल हान मऽन फऽनबर ज स॥
आग द ऽख रम तन यम। सात अन ज सऽहत स ख धम॥10॥
भथ:- तब (अपन ई प क अ तध न होत हा) म ऽन ऐस कल
होकर उठ, ज स (मऽणधर) सप मऽण क ऽबन कल हो जत ह।
म ऽन न अपन समन सातजा और लमणजा सऽहत यमस दर ऽह
स खधम ा रमजा को द ख॥10॥* परउ लक ट इ चरनऽह लगा। म मगन म ऽनबर बभगा॥
भ ज ऽबसल गऽह ऽलए उठई। परम ाऽत रख उर लई॥11॥
भथ:- म म म ए बभगा म ऽन लठा क तरह ऽगरकर
ा रमजा क चरण म लग गए। ा रमजा न अपना ऽशल भ ज
स पककर उह उठ ऽलय और ब म स दय स लग रख॥11॥
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* म ऽनऽह ऽमलत अस सोह कपल। कनक तऽह जन भ ट तमल॥
रम बदन ऽबलोक म ऽन ठ। मन ऽच मझ ऽलऽख क॥12॥
भथ:- कपल ा रमचजा म ऽन स ऽमलत ए ऐस शोऽभत हो रह
ह, मनो सोन क स तमल क गल लगकर ऽमल रह हो। म ऽन
(ऽनतध) ख ए (टकटक लगकर) ा रमजा क म ख द ख रह ह,
मनो ऽच म ऽलखकर बनए गए ह॥12॥
दोह :
* तब म ऽन दय धार धर गऽह पद बरह बर।
ऽनज आम भ आऽन कर पी ज ऽबऽबध कर॥10॥
भथ:- तब म ऽन न दय म धारज धरकर बर - बर चरण को पश
कय। फर भ को अपन आम म लकर अन क कर स उनक पीज क॥10॥
चौपई :
* कह म ऽन भ स न ऽबनता मोरा। अत ऽत कर कन ऽबऽध तोरा॥
मऽहम अऽमत मोर मऽत थोरा। रऽब सम ख खोत अ जोरा॥1॥
भथ:- म ऽन कहन लग- ह भो! म रा ऽनता स ऽनए। म कस कर स
आपक त ऽत क? आपक मऽहम अपर ह और म रा ब ऽ अप ह।
ज स सी य क समन ज गनी क उजल!॥1॥
* यम तमरस दम शरार। जट म क ट परधन म ऽनचार॥
पऽण चप शर कट ती णार। नौऽम ऽनरतर ारघ ार॥2॥
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भथ:- ह नालकमल क मल क समन यम शरार ल! ह जट
क म क ट और म ऽनय क (कल) पहन ए , हथ म धन ष - बण
ऽलए तथ कमर म तरकस कस ए ा रमजा! म आपको ऽनरतर नमकर करत ॥2॥
* मोह ऽऽपन घन दहन कशन । स त सरोह कनन भन ॥
ऽनऽसचर कर थ म गरज। स सद नो भ खग बज॥3॥
भथ:- जो मोह पा घन न को जलन क ऽलए अऽ ह, स त पा कमल क न को फ ऽलत करन क ऽलए सी य ह, रस पा हऽथय
क समी ह को िपन क ऽलए सह ह और भ (आगमन) पा पा
को मरन क ऽलए बज प ह, भ सद हमरा र कर॥3॥
* अण नयन रजा स श। सात नयन चकोर ऽनशश॥
हर द मनस बल मरल। नौऽम रम उर ब ऽशल॥4॥
भथ:- ह लल कमल क समन न और स दर श ल! सातजा क
न पा चकोर क च म , ऽशजा क दय पा मनसरोर क
बलह स , ऽशल दय और भ ज ल ा रमच जा! म आपको
नमकर करत ॥4॥
* सशय सप सन उरगद। शमन स ककश तक ऽषद॥
भ भ जन रजन स र यी थ। त सद नो कप थ॥5॥
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भथ:- जो सशय पा सप को सन क ऽलए ग ह, अय त कठोर
तक स उप होन ल ऽषद क नश करन ल ह, आगमन को
ऽमटन ल और द त क समी ह को आन द द न ल ह, कप क
समी ह ा रमजा सद हमरा र कर॥5॥
* ऽनग ण सग ण ऽषम सम प। न ऽगर गोतातमनी प॥
अमलमऽखलमनमपर। नौऽम रम भ जन मऽह भर॥6॥
भथ:- ह ऽनग ण , सग ण , ऽषम और समप! ह न , णा और
इय स अतात! ह अन पम , ऽनम ल , स पी ण दोषरऽहत , अन त ए पा
क भर उतरन ल ा रमच जा! म आपको नमकर करत ॥6॥
* भ कपपदप आरम। तज न ोध लोभ मद कम॥
अऽत नगर भ सगर स त । त सद दनकर कल क त ॥7॥
भथ:- जो भ क ऽलए कप क बगाच ह, ोध , लोभ , मद और
कम को डरन ल ह, अय त हा चत र और स सर पा सम स तरन
क ऽलए स त प ह, सी य कल क ज ा रमजा सद म रा र
कर॥7॥
* अत ऽलत भ ज तप बल धम। कऽल मल ऽप ल ऽभ जन नम॥
धम म नम द ग ण म। स तत श तनोत मम रम॥8॥
भथ:- ऽजनक भ ज क तप अत लनाय ह, जो बल क धम ह,
ऽजनक नम कऽलय ग क ब भरा पप क नश करन ल ह, जो
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धम क कच (रक) ह और ऽजनक ग ण समी ह आन द द न ल ह, ा
रमजा ऽनरतर म र कयण क ऽतर कर॥8॥
* जदऽप ऽबरज यपक अऽबनसा। सब क दय ऽनरतर बसा॥
तदऽप अन ज ा सऽहत खररा। बसत मनऽस मम कननचरा॥9॥
भथ:- यऽप आप ऽनम ल , पक , अऽनशा और सबक दय म
ऽनरतर ऽनस करन ल ह, तथऽप ह खरर ा रमजा! लमणजा
और सातजा सऽहत न म ऽचरन ल आप इसा प म म र दय म
ऽनस कऽजए॥9॥
* ज जनह त जन मा। सग न अग न उर अ तरजमा॥
जो कोसलपऽत रऽज नयन। करउ सो रम दय मम अयन॥10॥
भथ:- ह मा! आपको जो सग ण , ऽनग ण और अ तय मा जनत ह ,
जन कर, म र दय म तो कोसलपऽत कमलनयन ा रमजा हा
अपन घर बन॥10॥
* अस अऽभमन जइ जऽन भोर। म स क रघ पऽत पऽत मोर॥
स ऽन म ऽन बचन रम मन भए। बर हरऽष म ऽनबर उर लए॥11॥
भथ:- ऐस अऽभमन भी लकर भा न िीट क म स क और ा
रघ नथजा म र मा ह। म ऽन क चन स नकर ा रमजा मन म बत
स ए। तब उहन हषत होकर म ऽन को दय स लग
ऽलय॥11॥
* परम स जन म ऽन मोहा। जो बर मग द उ सो तोहा॥
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म ऽन कह म बर कब न जच। सम ऽझ न परइ झी ठ क सच॥12॥
भथ:-(और कह -) ह म ऽन! म झ परम स जनो। जो र म गो ,
हा म त ह दी ! म ऽन स ताणजा न कह - म न तो र कभा म ग हा
नह। म झ समझ हा नह पत क य झी ठ ह और य सय ह, (य
म गी , य नह)॥12॥
* त हऽह नाक लग रघ रई। सो मोऽह द दस स खदई॥
अऽबरल भगऽत ऽबरऽत ऽबयन। हो सकल ग न यन ऽनधन॥13॥
भथ:-((अत) ह रघ नथजा! ह दस को स ख द न ल! आपको जो
अि लग, म झ हा दाऽजए। (ा रमच जा न कह - ह म न!) त म
ग भऽ , रय , ऽन और समत ग ण तथ न क ऽनधन हो
जओ॥13॥* भ जो दाह सो ब म प। अब सो द मोऽह जो भ॥14॥
भथ:-(तब म ऽन बोल-) भ न जो रदन दय , ह तो म न प
ऽलय। अब म झ जो अि लगत ह, ह दाऽजए॥14॥
दोह :
* अन ज जनक सऽहत भ चप बन धर रम।
मन ऽहय गगन इद इ बस सद ऽनहकम॥11॥
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भथ:- ह भो! ह ा रमजा! िोट भई लमणजा और सातजा
सऽहत धन ष - बणधरा आप ऽनकम (ऽथर) होकर म र दय पा
आकश म च म क भ ऽत सद ऽनस कऽजए॥11॥ चौपई :
* एमत कर रमऽनस। हरऽष चल क भज रऽष पस॥
बत दस ग र दरसन पए। भए मोऽह एह आम आए॥1॥
भथ:-' एमत' ( ऐस हा हो) ऐस उरण कर लमा ऽनस ा रमच जा हषत होकर अगय ऋऽष क पस चल। (तब स ताणजा
बोल-) ग अगयजा क दश न पए और इस आम म आए म झ बत
दन हो गए॥1॥
* अब भ स ग जउ ग र पह। त ह कह नथ ऽनहोर नह॥
द ऽख कपऽनऽध म ऽन चत रई। ऽलए स ग ऽबहस ौ भई॥2॥
भथ:-अब म भा भ (आप) क सथ ग जा क पस चलत । इसम
ह नथ! आप पर म र कोई एहसन नह ह। म ऽन क चत रत द खकर
कप क भ डर ा रमजा न उनको सथ ल ऽलय और दोनो भई ह सन
लग॥2॥
* पथ कहत ऽनज भगऽत अनी प। म ऽन आम प च स रभी प॥
त रत स ितान ग र पह गयऊ। कर द डत कहत अस भयऊ॥3॥
भथ:- रत म अपना अन पम भऽ क ण न करत ए द त क
रजरजर ा रमजा अगय म ऽन क आम पर प च। स ताण
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त रत हा ग अगय क पस गए और दडत करक ऐस कहन
लग॥3॥
* नथ कोसलधास कमर। आए ऽमलन जगत आधर॥
रम अन ज सम त ब द हा। ऽनऽस दन द जपत ह ज हा॥4॥
भथ:- ह नथ! अयोय क रज दशरथजा क कमर जगदधर ा
रमच जा िोट भई लमणजा और सातजा सऽहत आपस ऽमलन आए
ह, ऽजनक ह द ! आप रत - दन जप करत रहत ह॥4॥
* स नत अगऽत त रत उठ धए। हर ऽबलोक लोचन जल िए॥
म ऽन पद कमल पर ौ भई। रऽष अऽत ाऽत ऽलए उर लई॥5॥
भथ:- यह स नत हा अगयजा त रत हा उठ दौ। भगन को द खत
हा उनक न म (आन द और म क आ स क) जल भर आय। दोन
भई म ऽन क चरण कमल पर ऽगर प। ऋऽष न (उठकर) ब म स
उह दय स लग ऽलय॥5॥
* सदर कसल पी ऽि म ऽन यना। आसन बर ब ठर आना॥
प ऽन कर ब कर भ पी ज। मोऽह सम भय त नह दी ज॥6॥
भथ:- ना म ऽन न आदरपी क कशल पी ि कर उनको लकर आसन पर ब ठय। फर बत कर स भ क पी ज करक कह - म र
समन भयन आज दी सर कोई नह ह॥6॥
* जह लऽग रह अपर म ऽन ब द। हरष सब ऽबलोक सखकद॥7॥
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भथ:- ह जह तक (ऽजतन भा) अय म ऽनगण थ, सभा आन दकद
ा रमजा क दश न करक हषत हो गए॥7॥
दोह :
* म ऽन समी ह मह ब ठ सम ख सब क ओर।
सरद इद तन ऽचतन मन ऽनकर चकोर॥12॥
भथ:- म ऽनय क समी ह म ा रमच जा सबक ओर सम ख होकर
ब ठ ह (अथ त य क म ऽन को ा रमजा अपन हा समन म ख करक ब ठ दखई द त ह और सब म ऽन टकटक लगए उनक म ख को द ख रह
ह)। ऐस जन पत ह मनो चकोर क सम दय शरपी णम क च म
क ओर द ख रह ह॥12॥
चौपई :
* तब रघ बार कह म ऽन पह। त ह सन भ द र िक नह॥
त ह जन ज ऽह करन आयउ। तत तत न कऽह सम झयउ॥1॥
भथ:- तब ा रमजा न म ऽन स कह - ह भो! आप स तो कि
ऽिप ह नह। म ऽजस करण स आय , ह आप जनत हा ह। इसा
स ह तत! म न आपस समझकर कि नह कह॥1॥
* अब सो म द भ मोहा। ज ऽह कर मर म ऽनोहा॥
म ऽन म स कन स ऽन भ बना। पी ि नथ मोऽह क जना॥2॥
भथ:- ह भो! अब आप म झ हा म (सलह) दाऽजए , ऽजस कर
म म ऽनय क ोहा रस को म। भ क णा स नकर म ऽन
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म क रए और बोल- ह नथ! आपन य समझकर म झस यह
कय ?॥2॥
* त हरइ भजन भ अघरा। जनउ मऽहम िकक त हरा॥
ऊमर त ऽबसल त मय। फल ड अन क ऽनकय॥3॥
भथ:- ह पप क नश करन ल! म तो आप हा क भजन क भ
स आपक कि थोा सा मऽहम जनत । आपक मय गी लर क
ऽशल क समन ह, अन क ड क समी ह हा ऽजसक फल ह॥3॥
* जा चरचर ज त समन। भातर बसह न जनह आन॥
त फल भिक कठन करल। त भय डरत सद सोउ कल॥4॥
भथ:- चर और अचर जा (गी लर क फल क भातर रहन ल िोट-
ि ोट) ज त क समन उन (ड पा फल) क भातर बसत ह और (अपन उस िोट स जगत क ऽस) दी सर कि नह जनत। उन फल
क भण करन ल कठन और करल कल ह। ह कल भा सद
आपस भयभात रहत ह॥4॥
* त त ह सकल लोकपऽत स। पी ि मोऽह मन ज क न॥
यह बर मगउ कपऽनक त। बस दय ा अन ज सम त॥5॥
भथ:- उह आपन समत लोकपल क मा होकर भा म झस
मन य क तरह कय। ह कप क धम! म तो यह र म गत क
आप ा सातजा और िोट भई लमणजा सऽहत म र दय म (सद)
ऽनस कऽजए॥5॥
* अऽबरल भगऽत ऽबरऽत सतस ग। चरन सरोह ाऽत अभ ग॥
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जऽप अख ड अन त। अनभ गय भजह ज ऽह स त।6॥
भथ:- म झ ग भऽ , रय , सस ग और आपक चरणकमल म
अटीट म हो। यऽप आप अख ड और अन त ह, जो अनभ स
हा जनन म आत ह और ऽजनक स तजन भजन करत ह॥6॥
* अस त प बखनउ जनउ। फर फर सग न रऽत मनउ॥
स तत दसह द बई। तत मोऽह पी ि रघ रई॥7॥
भथ:- यऽप म आपक ऐस प को जनत और उसक ण न भा
करत , तो भा लौट - लौटकर म सग ण म (आपक इस स दर प
म) हा म मनत । आप स क को सद हा बई दय करत ह,
इसा स ह रघ नथजा! आपन म झस पी ि ह॥7॥
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रम क द डकन श , जटय ऽमलन , प चटा ऽनस और ा रम -
लमण स द
* ह भ परम मनोहर ठऊ। पन प चबटा त ऽह नऊ॥
द डक बन प नात भ कर। उ सप म ऽनबर कर हर॥8॥भथ:- ह भो! एक परम मनोहर और पऽ थन ह, उसक नम
प चटा ह। ह भो! आप दडक न को (जह प चटा ह) पऽ
कऽजए और म ऽन गौतमजा क कठोर शप को हर लाऽजए॥8॥
* बस कर तह रघ कल रय। कज सकल म ऽनह पर दय॥
चल रम म ऽन आयस पई। त रतह प चबटा ऽनअरई॥9॥
भथ:- ह रघ कल क मा! आप सब म ऽनय पर दय करक ह
ऽनस कऽजए। म ऽन क आ पकर ा रमच जा ह स चल दए
और शा हा प चटा क ऽनकट प च गए॥9॥
दोह :
* गाधरज स भ ट भइ ब ऽबऽध ाऽत बइ।
गोदरा ऽनकट भ रह परन ग ह िइ॥13॥
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भथ:- ह गरज जटय स भ ट ई। उसक सथ बत कर स म
बकर भ ा रमच जा गोदराजा क समाप पण क टा िकर रहन
लग॥13॥
चौपई :
* जब त रम कह तह बस। स खा भए म ऽन बाता स॥
ऽगर बन नद तल िऽब िए। दन दन ऽत अऽत होह स हए॥1॥
भथ:- जब स ा रमजा न ह ऽनस कय , तब स म ऽन स खा हो गए , उनक डर जत रह। प त , न , नदा और तलब शोभ स ि
गए। दनदन अऽधक स हन (मली म) होन लग॥1॥
* खग म ग ब द अन दत रहह। मध प मध र ग जत िऽब लहह॥
सो बन बरऽन न सक अऽहरज। जह गट रघ बार ऽबरज॥2॥
भथ:- पा और पश क समी ह आन दत रहत ह और भर मध र
ग जर करत ए शोभ प रह ह। जह य ा रमजा ऽरजमन
ह, उस न क ण न सप रज श षजा भा नह कर सकत॥2॥
* एक बर भ स ख आसान। लऽिमन बचन कह िलहान॥
स र नर म ऽन सचरचर स। म पी ि उ ऽनज भ क न॥3॥
भथ:- एक बर भ ा रमजा स ख स ब ठ ए थ। उस समय
लमणजा न उनस िलरऽहत (सरल) चन कह- ह द त , मन य , म ऽन
और चरचर क मा! म अपन भ क तरह (अपन मा समझकर)
आपस पी ि त ॥3॥
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* मोऽह सम झइ कह सोइ द । सब तऽज कर चरन रज स ॥
कह यन ऽबरग अ मय। कह सो भगऽत कर ज ह दय॥4॥
भथ:- ह द ! म झ समझकर हा कऽहए , ऽजसस सब िोकर म
आपक चरणरज क हा स क। न , रय और मय क ण न
कऽजए और उस भऽ को कऽहए , ऽजसक करण आप दय करत ह॥4॥
दोह :
* ईर जा भ द भ सकल कहौ सम झइ।
जत होइ चरन रऽत सोक मोह म जइ॥14॥
भथ:- ह भो! ईर और जा क भ द भा सब समझकर कऽहए ,
ऽजसस आपक चरण म म रा ाऽत हो और शोक , मोह तथ म न हो
जए॥14॥
चौपई :
* थोरऽह मह सब कहउ ब झई। स न तत मऽत मन ऽचत लई॥
म अ मोर तोर त मय। ज ह बस कह जा ऽनकय॥1॥
भथ:-(ा रमजा न कह -) ह तत! म थो हा म सब समझकर कह
द त । त म मन , ऽच और ब ऽ लगकर स नो! म और म र , ती और
त र - यहा मय ह, ऽजसन समत जा को श म कर रख ह॥1॥
* गो गोचर जह लऽग मन जई। सो सब मय जन भई॥
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त ऽह कर भ द स न त ह सोऊ। ऽब अपर अऽब दोऊ॥2॥
भथ:- इय क ऽषय को और जह तक मन जत ह, ह भई! उन
सबको मय जनन। उसक भा एक ऽ और दी सरा अऽ , इन
दोन भ द को त म स नो -॥2॥
* एक द अऽतसय द खप। ज बस जा पर भकीप॥
एक रचइ जग ग न बस जक । भ रत नह ऽनज बल तक ॥3॥
भथ:- एक (अऽ) द (दोषय ) ह और अय त द खप ह,
ऽजसक श होकर जा स सर पा कए म प आ ह और एक
(ऽ) ऽजसक श म ग ण ह और जो जगत क रचन करता ह, ह
भ स हा रत होता ह, उसक अपन बल कि भा नहा ह॥3॥
* यन मन जह एकउ नह। द ख समन सब मह॥
कऽहअ तत सो परम ऽबरगा। त न सम ऽसऽ ताऽन ग न यगा॥4॥
भथ:- न ह ह, जह (ऽजसम) मन आद एक भा (दोष) नह ह
और जो सबस समन प स को द खत ह। ह तत! उसा को परम
रयन कहन चऽहए , जो सरा ऽसऽय को और तान ग ण को ऽतनक क समन यग च क हो॥4॥
(ऽजसम मन , दभ , हस , मरऽहय , टपन , आचय स क
अभ , अपऽत , अऽथरत , मन क ऽनग हात न होन , इय क
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ऽषय म आसऽ , अह कर , जम - म य- जर - ऽधमय जगत म स ख -
ब ऽ , ा - प - घर आद म आसऽ तथ ममत , इ और अऽन क
ऽ म हष-शोक , भऽ क अभ , एकत म मन न लगन , ऽषया
मन य क स ग म म - य अठरह न ह और ऽनय अयम (आम) म
ऽथऽत तथ त न क अथ (तन क र जनन योय)
परमम क ऽनय दश न हो , हा न कहलत ह। द ऽखए गात
अयय 13/ 7 स 11)
दोह :
* मय ईस न आप क जन कऽहअ सो जा।
बध मोि द सब पर मय रक सा॥15॥
भथ:-
जो मय को , ईर को और अपन प को नह जनत , उस जा कहन चऽहए। जो (कम न सर) बधन और मो द न ल ,
सबस पर और मय क रक ह, ह ईर ह॥15॥
चौपई
* धम त ऽबरऽत जोग त यन। यन मोिद ब द बखन॥
जत ब ऽग उ म भई। सो मम भगऽत भगत स खदई॥1॥
भथ:-धम (क आचरण) स रय और योग स न होत ह तथ
न मो क द न ल ह- ऐस द न ण न कय ह। और ह भई!
ऽजसस म शा हा स होत , ह म रा भऽ ह जो भ को स ख
द न ला ह॥1॥
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* सो स त अल ब न आन। त ऽह आधान यन ऽबयन॥
भगऽत तत अन पम स खमी ल। ऽमलइ जो स त होइ अन कील॥2॥
भथ:- ह भऽ त ह, उसको (न - ऽन आद कसा) दी सर
सधन क सहर (अप) नह ह। न और ऽन तो उसक अधान
ह। ह तत! भऽ अन पम ए स ख क मी ल ह और ह तभा ऽमलता ह,
जब स त अन कील (स) होत ह॥2॥
* भगऽत क सधन कहउ बखना। स गम पथ मोऽह पह ना॥
थमह ऽब चरन अऽत ाता। ऽनज ऽनज कम ऽनरत ऽत राता॥3॥
भथ:-अब म भऽ क सधन ऽतर स कहत - यह स गम मग ह,
ऽजसस जा म झको सहज हा प जत ह। पहल तो ण क चरण म
अय त ाऽत हो और द क राऽत क अन सर अपन-
अपन (णम क) कम म लग रह॥3॥
* एऽह कर फल प ऽन ऽबषय ऽबरग। तब मम धम उपज अन रग॥
नदक न भऽ द ह। मम लाल रऽत अऽत मन मह॥4॥
भथ:- इसक फल , फर ऽषय स रय होग। तब ( रय होन
पर) म र धम (भगत धम) म म उप होग। तब ण आद नौ
कर क भऽय द हगा और मन म म रा लाल क ऽत अय त
म होग॥4॥
* स त चरन प कज अऽत म। मन म बचन भजन द न म॥
ग ऽपत मत बध पऽत द । सब मोऽह कह जन द स ॥5॥
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भथ:- ऽजसक स त क चरणकमल म अय त म हो , मन , चन और
कम स भजन क द ऽनयम हो और जो म झको हा ग , ऽपत , मत ,
भई , पऽत और द त सब कि जन और स म द हो ,॥5॥
* मम ग न गत प लक सरार। गदगद ऽगर नयन बह नार॥
कम आद मद दभ न जक । तत ऽनरतर बस म तक॥6॥
भथ:- म र ग ण गत समय ऽजसक शरार प लकत हो जए , णा
गदगद हो जए और न स ( म क) जल बहन लग और कम ,
मद और दभ आद ऽजसम न ह , ह भई! म सद उसक श म रहत
॥6॥
दोह :
* बचन कम मन मोर गऽत भजन करह ऽनकम।
ऽतह क दय कमल म करउ सद ऽबम॥16॥
भथ:- ऽजनको कम, चन और मन स म रा हा गऽत ह और जो
ऽनकम भ स म र भजन करत ह, उनक दय कमल म म सद
ऽम कय करत ॥16॥
चौपई :
* भगऽत जोग स ऽन अऽत स ख प। लऽिमन भ चरनऽह ऽस न॥
एऽह ऽबऽध िकक दन बाता। कहत ऽबरग यन ग न नाता॥1॥
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भथ:- इस भऽ योग को स नकर लमणजा न अय त स ख पय और
उहन भ ा रमच जा क चरण म ऽसर नय। इस कर रय ,
न , ग ण और नाऽत कहत ए कि दन बात गए॥1॥
शी प णख क कथ , शी प णख क खरदी षण क पस जन और
खरदी षणद क ध
* सी पनख रन क बऽहना। द दय दन जस अऽहना॥
प चबटा सो गइ एक बर। द ऽख ऽबकल भइ ज गल कमर॥2॥
भथ:-शी प णख नमक रण क एक बऽहन था , जो नऽगन क समन
भयनक और द दय क था। ह एक बर प चटा म गई और दोन
रजकमर को द खकर ऽकल (कम स पाऽत) हो गई॥2॥
* त ऽपत प उरगरा। प ष मनोहर ऽनरखत नरा॥
होइ ऽबकल सक मनऽह न रोक। ऽजऽम रऽबमऽन रऽबऽह
ऽबलोक॥3॥
भथ:-(ककभश ऽडजा कहत ह-) ह गजा! (शी प णख - ज सा रसा , धम न शी य कमध) ा मनोहर प ष को द खकर , चह
ह भई , ऽपत , प हा हो , ऽकल हो जता ह और मन को नह रोक
सकता। ज स सी य कतमऽण सी य को द खकर ऽत हो जता ह (ल
स ऽपघल जता ह)॥3॥
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* ऽचर प धर भ पह जई। बोला बचन बत म स कई॥
त ह सम प ष न मो सम नरा। यह स जोग ऽबऽध रच ऽबचरा॥4॥
भथ:- ह स दर प धरकर भ क पस जकर और बत मक रकर
चन बोला - न तो त हर समन कोई प ष ह, न म र समन ा।
ऽधत न यह स योग (जो) बत ऽचर कर रच ह॥4॥
* मम अन प प ष जग मह। द ख उ खोऽज लोक ऽत नह॥
तत अब लऽग रऽहउ क मरा। मन मन िक त हऽह ऽनहरा॥5॥
भथ:- म र योय प ष (र) जगतभर म नह ह, म न तान लोक को
खोज द ख। इसा स म अब तक कमरा (अऽऽहत) रहा। अब त मको
द खकर कि मन मन (ऽच ठहर) ह॥5॥
* सातऽह ऽचतइ कहा भ बत। अहइ कआर मोर लघ त॥
गइ लऽिमन रप भऽगना जना। भ ऽबलोक बोल म द बना॥6॥
भथ:- सातजा क ओर द खकर भ ा रमजा न यह बत कहा क
म र िोट भई कमर ह। तब ह लमणजा क पस गई। लमणजा न
उस श क बऽहन समझकर और भ क ओर द खकर कोमल णा स
बोल-॥6॥
* स दर स न म उह कर दस। परधान नह तोर स पस॥
भ समथ कोसलप र रज। जो िक करह उनऽह सब िज॥7॥
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भथ:- ह स दरा! स न , म तो उनक दस । म परधान , अत त ह
सभात (स ख) न होग। भ समथ ह, कोसलप र क रज ह, जो कि
कर, उह सब फबत ह॥7॥
* स क स ख चह मन ऽभखरा। यसना धन सभ गऽत ऽबऽभचरा॥
लोभा जस चह चर ग मना। नभ द ऽह दी ध चहत ए ना॥8॥
भथ:- स क स ख चह, ऽभखरा समन चह, सना (ऽजस ज ए ,
शरब आद क सन हो) धन और ऽभचरा शभ गऽत चह, लोभा
यश चह और अऽभमना चर फल - अथ, धम, कम , मो चह, तो य
सब णा आकश को द हकर दी ध ल न चहत ह (अथ त असभ बत
को सभ करन चहत ह)॥8॥
* प ऽन फर रम ऽनकट सो आई। भ लऽिमन पह बर पठई॥
लऽिमन कह तोऽह सो बरई। जो त न तोर लज परहरई॥9॥
भथ:- ह लौटकर फर ा रमजा क पस आई , भ न उस फर
लमणजा क पस भ ज दय। लमणजा न कह - त ह हा रग , जो
ल को त ण तोकर (अथ त ऽत करक) यग द ग (अथ त जो ऽनपट ऽनल होग)॥9॥
* तब ऽखऽसआऽन रम पह गई। प भय कर गटत भई॥
सातऽह सभय द ऽख रघ रई। कह अन ज सन सयन ब झई॥10॥
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भथ:- तब ह ऽखऽसयया ई ( होकर) ा रमजा क पस गई
और उसन अपन भय कर प कट कय। सातजा को भयभात द खकर
ा रघ नथजा न लमण को इशर द कर कह॥10॥
दोह :
* लऽिमन अऽत लघ सो नक कन ऽबन कऽह।
तक कर रन कह मनौ च नौता दाऽह॥17॥
भथ:- लमणजा न बा फ त स उसको ऽबन नक - कन क कर दय। मनो उसक हथ रण को च नौता दा हो!॥17॥
चौपई :
* नक कन ऽबन भइ ऽबकरर। जन स ल ग क धर॥
खर दी षन पह गइ ऽबलपत। ऽधग ऽधग त पौष बल त॥1॥
भथ:- ऽबन नक - कन क ह ऽकरल हो गई। (उसक शरार स र
इस कर बहन लग) मनो (कल) प त स ग क धर बह रहा हो।
ह ऽलप करता ई खर - दी षण क पस गई (और बोला -) ह भई!
त हर पौष (ारत) को ऽधर ह, त हर बल को ऽधर ह॥1॥
* त ह पी ि सब कह ऽस ब झई। जतधन सऽन स न बनई॥
धए ऽनऽसचर ऽनकर बथ। जन सपि कल ऽगर जी थ॥2॥
भथ:- उहन पी ि , तब शी प णख न सब समझकर कह। सब स नकर
रस न स न त यर क। रस समी ह झ ड क झ ड दौ। मनो
प खधरा कजल क प त क झ ड हो॥2॥
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* नन बहन ननकर। ननयध धर घोर अपर॥
सी पनख आग कर लाना। असभ प ऽत नस हाना॥3॥
भथ:- अन क कर क सरय पर च ए तथ अन क आकर
(सी रत) क ह। अपर ह और अन क कर क अस य भयनक
हऽथयर धरण कए ए ह। उहन नक - कन कटा ई अम गलऽपणा
शी प णख को आग कर ऽलय॥3॥
* असग न अऽमत होह भयकरा। गनह न म य ऽबबस सब झरा॥
गज ह तज ह गगन उह। द ऽख कटक भट अऽत हरषह॥4॥
भथ:-अनऽगनत भय कर अशकन हो रह ह, परत म य क श होन क
करण सब क सब उनको कि ऽगनत हा नह। गरजत ह, ललकरत ह
और आकश म उत ह। स न द खकर यो लोग बत हा हषत होत
ह॥4॥
* कोउ कह ऽजअत धर ौ भई। धर मर ऽतय ल िई॥
धी र पी र नभ म डल रह। रम बोलइ अन ज सन कह॥5॥
भथ:- कोई कहत ह दोन भइय को जात हा पक लो , पककर
मर डलो और ा को िान लो। आकशमडल धी ल स भर गय। तब
ा रमजा न लमणजा को ब लकर उनस कह॥5॥
* ल जनकऽह ज ऽगर कदर। आ ऽनऽसचर कटक भय कर॥
रह सजग स ऽन भ क बना। चल सऽहत ा सर धन पना॥6॥
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भथ:- रस क भयनक स न आ गई ह। जनकजा को ल कर त म
प त क कदर म चल जओ। सधन रहन। भ ा रमच जा क
चन स नकर लमणजा हथ म धन ष -
बण ऽलए ा सातजा सऽहत चल॥6॥
* द ऽख रम रप दल चऽल आ।
ऽबहऽस कठन कोद ड च॥7॥
भथ:-श क स न (समाप) चला आई ह, यह द खकर ा रमजा
न ह सकर कठन धन ष को चय॥7॥
ि द :
* कोद ड कठन चइ ऽसर जट जी ट बधत सोह य।
मरकत सयल पर लरत दऽमऽन कोट स ज ग भ जग य॥
कट कऽस ऽनष ग ऽबसल भ ज गऽह चप ऽबऽसख सधर क।
ऽचतत मन म गरज भ गजरज घट ऽनहर क॥
भथ:- कठन धन ष चकर ऽसर पर जट क जी बधत ए भ
कस शोऽभत हो रह ह, ज स मरकतमऽण (प) क प त पर करो
ऽबजऽलय स दो स प ल रह ह। कमर म तरकस कसकर , ऽशल
भ ज म धन ष ल कर और बण सधरकर भ ा रमच जा रस
क ओर द ख रह ह। मन मतल हऽथय क समी ह को (आत) द खकर
सह (उनक ओर) तक रह हो।
सोरठ :
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* आइ गए बगम ल धर धर धत सभट।
जथ ऽबलोक अकल बल रऽबऽह घ रत दन ज॥18॥
भथ:-' पको - पको ' प करत ए रस यो बग िोकर (बा
त जा स) दौ ए आए (और उहन ा रमजा को चर ओर स घ र
ऽलय), ज स बलसी य (उदयकलान सी य) को अकल द खकर मद ह
नमक द य घ र ल त ह॥18॥
चौपई :
* भ ऽबलोक सर सकह न डरा। थकत भई रजनाचर धरा॥
सऽच बोऽल बोल खर दी षन। यह कोउ न पबलक नर भी षन॥1॥
भथ:-(सदय- मध य ऽनऽध) भ ा रमजा को द खकर रस क
स न थकत रह गई। उन पर बण नह िो सक । म ा को ब लकर खर - दी षण न कह - यह रजकमर कोई मन य क भी षण ह॥1॥
* नग अस र स र नर म ऽन ज त। द ख ऽजत हत हम कत॥
हम भर जम स न सब भई। द खा नह अऽस स दरतई॥2॥
भथ:-
ऽजतन भा नग ,
अस र , द त
, मन य और म ऽन ह
, उनम स
हमन न जन कतन हा द ख, जात और मर डल ह। पर ह सब भइय!
स नो , हमन जमभर म ऐसा स दरत कह नह द खा॥2॥
* जऽप भऽगना कऽह कप। बध लयक नह प ष अनी प॥
द त रत ऽनज नर द रई। जाअत भन ज ौ भई॥3॥
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भथ:- यऽप इहन हमरा बऽहन को कप कर दय तथऽप य
अन पम प ष ध करन योय नह ह। ' ऽिपई ई अपना ा हम त रत
द दो और दोन भई जात जा घर लौट जओ '॥3॥
* मोर कह त ह तऽह स न। तस बचन स ऽन आत र आ॥
दी तह कह रम सन जई। स नत रम बोल म स कई॥4॥
भथ:- म र यह कथन त म लोग उस स नओ और उसक चन (उर)
स नकर शा आओ। दी त न जकर यह स दश ा रमच जा स कह। उस स नत हा ा रमच जा म क रकर बोल-॥4॥
* हम िा म गय बन करह। त ह स खल म ग खोजत फरह॥
रप बल त द ऽख नह डरह। एक बर कल सन लरह॥5॥
भथ:- हम ऽय ह, न म ऽशकर करत ह और त हर सराख द पश को तो ी ढत हा फरत ह। हम बलन श द खकर नह डरत।
(लन को आ तो) एक बर तो हम कल स भा ल सकत ह॥5॥
* जऽप मन ज दन ज कल घलक। म ऽन पलक खल सलक बलक॥
ज न होइ बल घर फर ज। समर ऽबम ख म हतउ न क॥6॥
भथ:- यऽप हम मन य ह, परत द यकल क नश करन ल और
म ऽनय क र करन ल ह, हम बलक ह, परत द को दड द न
ल। यद बल न हो तो घर लौट जओ। स म म पाठ दखन ल
कसा को म नह मरत॥6॥
* रन च करअ कपट चत रई। रप पर कप परम कदरई॥
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दी तह जइ त रत सब कह ऊ। स ऽन खर दी षन उर अऽत दह ऊ॥7॥
भथ:- रण म च आकर कपट - चत रई करन और श पर कप
करन (दय दखन) तो बा भरा कयरत ह। दी त न लौटकर त रत सब बत कह , ऽजह स नकर खर - दी षण क दय अय त जल उठ॥7॥
ि द :
* उर दह उ कह उ क धर धए ऽबकट भट रजनाचर।
सर चप तोमर सऽ सी ल कपन परघ परस धर॥
भ कऽह धन ष टकोर थम कठोर घोर भयह।
भए बऽधर यकल जतधन न यन त ऽह असर रह॥
भथ:-(खर - दी षण क) दय जल उठ। तब उहन कह - पक लो
(कद कर लो)। (यह स नकर) भयनक रस यो बण , धन ष , तोमर ,
शऽ (स ग), शी ल (बिरा), कपण (कटर), परघ और फरस धरण
कए ए दौ प। भ ा रमजा न पहल धन ष क ब कठोर , घोर
और भयनक टकर कय , ऽजस स नकर रस बहर और कल हो
गए। उस समय उह कि भा होश न रह। दोह :
* सधन होइ धए जऽन सबल आरऽत।
लग बरषन रम पर अ स बभ ऽत॥19 क॥
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भथ:- फर श को बलन जनकर सधन होकर दौ और ा
रमचजा क ऊपर बत कर क अ -श बरसन लग॥19 (क)॥
* ऽतह क आयध ऽतल सम कर कट रघ बार।
तऽन सरसन न लऽग प ऽन ि ऽनज तार॥19 ख॥
भथ:-ा रघ ारजा न उनक हऽथयर को ऽतल क समन (टक-
टक) करक कट डल। फर धन ष को कन तक तनकर अपन तार
ि ो॥19 (ख)॥
ि द :
* तब चल बन करल। फ करत जन ब यल॥
कोप उ समर ारम। चल ऽबऽसख ऽनऽसत ऽनकम॥1॥
भथ:-
तब भयनक बण ऐस चल, मनो फ फकरत ए बत स सप ज रह ह। ा रमचजा स म म ए और अयत ताण बण
चल॥1॥
* अलोक खरतर तार। म र चल ऽनऽसचर बार॥
भए ताऽनउ भइ। जो भऽग रन त जइ॥2॥
भथ:-अयत ताण बण को द खकर रस ार पाठ दखकर
भग चल। तब खर - दी षण और ऽऽशर तान भई होकर बोल- जो
रण स भगकर जएग ,॥2॥
* त ऽह बधब हम ऽनज पऽन। फर मरन मन म ठऽन॥
आयध अन क कर। सनम ख त करह हर॥3॥
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भथ:- उसक हम अपन हथ ध करग। तब मन म मरन ठनकर
भगत ए रस लौट प और समन होकर अन क कर क
हऽथयर स ा रमजा पर हर करन लग॥3॥
* रप परम कोप जऽन। भ धन ष सर सधऽन॥
ि ऽबप ल नरच। लग कटन ऽबकट ऽपसच॥4॥
भथ:-श को अयत क ऽपत जनकर भ न धन ष पर बण चकर
बत स बण िो, ऽजनस भयनक रस कटन लग॥4॥
* उर सास भ ज कर चरन। जह तह लग मऽह परन॥
ऽचरत लगत बन। धर परत कधर समन॥5॥
भथ:- उनक िता , ऽसर , भ ज , हथ और प र जह- तह पा पर
ऽगरन लग। बण लगत हा हथा क तरह चघत ह। उनक पह क समन ध कट - कटकर ऽगर रह ह॥5॥
* भट कटत तन सत ख ड। प ऽन उठत कर पष ड॥
नभ उत ब भ ज म ड। ऽबन मौऽल धत ड॥6॥
भथ:- यो क शरार कटकर स क टक हो जत ह। फर
मय करक उठ ख होत ह। आकश म बत सा भ जए और ऽसर उ
रह ह तथ ऽबन ऽसर क ध दौ रह ह॥6॥
* खग कक कक स गल। कटकटह कठन करल॥7॥
भथ:- चाल (य च), कौए आद पा और ऽसयर कठोर और
भय कर कट - कट शद कर रह ह॥7॥
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ि द :
* कटकटह ज ब क भी त त ऽपसच खप र स चह।
ब तल बार कपल तल बजइ जोऽगऽन न चह॥
रघ बार बन च ड ख डह भटह क उर भ ज ऽसर।
जह तह परह उठ लरह धर ध ध करह भय कर ऽगर॥1॥
भथ:- ऽसयर कटकटत ह, भी त , त और ऽपशच खोपऽय बटोर
रह ह (अथ खपर भर रह ह)। ार - तल खोपऽय पर तल द रह
ह और योऽगऽनय नच रहा ह। ा रघ ार क च ड बण यो क
थल , भ ज और ऽसर क टक- टक कर डलत ह। उनक ध
जह- तह ऽगर पत ह, फर उठत और लत ह और ' पको - पको ' क
भय कर शद करत ह॥1॥
* अ तर गऽह उत गाध ऽपसच कर गऽह धह।
स म प र बसा मन ब बल ग ा उह॥
मर िपर उर ऽबदर ऽबप ल भट कह रत पर।
अलोक ऽनज दल ऽबकल भट ऽतऽसरद खर दी षन फर॥2॥
भथ:-अ तऽय क एक िोर को पककर गाध उत ह और उह क
दी सर िोर हथ स पककर ऽपशच दौत ह, ऐस मली म होत ह
मनो स म पा नगर क ऽनसा बत स बलक पत ग उ रह ह।
अन क यो मर और िप गए बत स, ऽजनक दय ऽदाण हो गए
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ह, प करह रह ह। अपना स न को कल द खर ऽऽशर और खर -
दी षण आद यो ा रमजा क ओर म ॥2॥
* सरसऽ तोमर परस सी ल कपन एकऽह बरह।
कर कोप ा रघ बार पर अगऽनत ऽनसचर डरह॥
भ ऽनऽमष म रप सर ऽनर पचर डर सयक।
दस दस ऽबऽसख उर मझ मर सकल ऽनऽसचर नयक॥3॥
भथ:-अनऽगनत रस ोध करक बण , शऽ , तोमर , फरस , शी ल
और कपण एक हा बर म ा रघ ार पर िोन लग। भ न पल भर
म श क बण को कटकर , ललकरकर उन पर अपन बण िो।
सब रस स नपऽतय क दय म दस - दस बण मर॥3॥
* मऽह परत उठ भट ऽभरत मरत न करत मय अऽत घना।
स र डरत चौदह सहस त ऽबलोक एक अध धना॥
स र म ऽन सभय भ द ऽख मयनथ अऽत कौत क कर यो।
द खह परसपर रम कर स म रप दल लर मर यो॥4॥
भथ:- यो पा पर ऽगर पत ह, फर उठकर ऽभत ह। मरत
नह , बत कर क अऽतशय मय रचत ह। द त यह द खकर डरत ह
क त (रस) चौदह हजर ह और अयोयनथ ा रमजा अकल ह।
द त और म ऽनय को भयभात द खकर मय क मा भ न एक ब
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कौत क कय , ऽजसस श क स न एक - दी सर को रम प द खन लगा
और आपस म हा य करक ल मरा॥4॥
दोह :
* रम रम कऽह तन तजह पह पद ऽनब न।
कर उपय रप मर िन म कपऽनधन॥20 क॥
भथ:- सब (' यहा रम ह, इस मरो ' इस कर) रम - रम कहकर
शरार िोत ह और ऽन ण (मो) पद पत ह। कपऽनधन ा रमजा
न यह उपय करक ण भर म श को मर डल॥20 (क)॥
* हरऽषत बरषह स मन स र बजह गगन ऽनसन।
अत ऽत कर कर सब चल सोऽभत ऽबऽबध ऽबमन॥20 ख॥
भथ:- द त हषत होकर फील बरसत ह, आकश म नग बज रह
ह। फर सब त ऽत कर - करक अन क ऽमन पर सशोऽभत ए चल
गए॥20 (ख)॥
चौपई :
* जब रघ नथ समर रप जात। स र नर म ऽन सब क भय बात॥
तब लऽिमन सातऽह ल आए। भ पद परत हरऽष उर लए॥1॥
भथ:- जब ा रघ नथजा न य म श को जात ऽलय तथ
द त , मन य और म ऽन सबक भय न हो गए , तब लमणजा सातजा
को ल आए। चरण म पत ए उनको भ न सतपी क उठकर
दय स लग ऽलय॥1॥
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* सात ऽचत यम म द गत। परम म लोचन न अघत॥
प चबट बऽस ा रघ नयक। करत चरत स र म ऽन स खदयक॥2॥
भथ:- सातजा ा रमजा क यम और कोमल शरार को परम म
क सथ द ख रहा ह, न अघत नह ह। इस कर प चटा म बसकर
ा रघ नथजा द त और म ऽनय को स ख द न ल चर करन
लग॥2॥
शी प णख क रण क ऽनकट जन , ा सातजा क अऽ श और
मय सात
* धआ द ऽख खरदी षन क र। जइ स पनख रन र॥
बोला बचन ोध कर भरा। द स कोस क स रऽत ऽबसरा॥3॥
भथ:- खर - दी षण क ऽ स द खकर शी प णख न जकर रण को
भकय। ह ब ोध करक चन बोला - ती न दश और खजन क
स ऽध हा भ ल दा॥3॥
* करऽस पन सोऽस दन रता। स ऽध नह त ऽसर पर आरता॥
रज नाऽत ऽबन धन ऽबन धम। हरऽह समप ऽबन सतकम॥4॥
ऽब ऽबन ऽबब क उपजए। म फल प कए अ पए॥
स ग त जता कम त रज। मन त यन पन त लज॥5॥
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भथ:-शरब पा ल त ह और दन - रत प सोत रहत ह। त झ
खबर नह ह क श त र ऽसर पर ख ह? नाऽत क ऽबन रय और
धम क ऽबन धन करन स, भगन को समप ण कए ऽबन उम कम करन स और ऽ क उप कए ऽबन ऽ पन स परणम म
म हा हथ लगत ह। ऽषय क स ग स स यसा , ब रा सलह स रज ,
मन स न , मदर पन स ल ,॥4-5॥
* ाऽत नय ऽबन मद त ग ना। नसह ब ऽग नाऽत अस स ना॥6॥
भथ:- नत क ऽबन (नत न होन स) ाऽत और मद (अह कर) स
ग णन शा हा न हो जत ह, इस कर नाऽत म न स ना ह॥6॥
सोरठ :
* रप ज पक पप भ अऽह गऽनअ न िोट कर।
अस कऽह ऽबऽबध ऽबलप कर लगा रोदन करन॥21 क॥
भथ:-श, रोग , अऽ , पप , मा और सप को िोट करक नह
समझन चऽहए। ऐस कहकर शी प णख अन क कर स ऽलप करक
रोन लगा॥21 (क)॥
दोह :
* सभ मझ पर यकल ब कर कह रोइ।
तोऽह ऽजअत दसकधर मोर क अऽस गऽत होइ॥21 ख॥
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भथ:-(रण क) सभ क बाच ह कल होकर पा ई बत
कर स रो - रोकर कह रहा ह क अर दशा! त र जात जा म रा य
ऐसा दश होना चऽहए ?॥21 (ख)॥
चौपई :
* स नत सभसद उठ अकलई। सम झई गऽह ब ह उठई॥
कह ल क स कहऽस ऽनज बत। क इ त नस कन ऽनपत॥1॥
भथ:-शी प णख क चन स नत हा सभसद अकल उठ। उहन शी प णख क ब ह पककर उस उठय और समझय। ल कपऽत रण
न कह - अपना बत तो बत , कसन त र नक - कन कट ऽलए ?॥1॥
* अध न पऽत दसरथ क जए। प ष सघ बन ख लन आए॥
सम ऽझ परा मोऽह उह क करना। रऽहत ऽनसचर करहह धरना॥2॥
भथ:-(ह बोला -) अयोय क रज दशरथ क प , जो प ष म
सह क समन ह, न म ऽशकर खलन आए ह। म झ उनक करना ऐसा
समझ पा ह क पा को रस स रऽहत कर द ग॥2॥
* ऽजह कर भ जबल पइ दसनन। अभय भए ऽबचरत म ऽन कनन॥
द खत बलक कल समन। परम धार धा ग न नन॥3॥
भथ:- ऽजनक भ ज क बल पकर ह दशम ख! म ऽन लोग न म
ऽनभ य होकर ऽचरन लग ह। द खन म तो बलक ह, पर ह कल क
समन। परम धार , धनध र और अन क ग ण स य ह॥3॥
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* अत ऽलत बल तप ौ त। खल बध रत स र म ऽन स खदत॥
सोभ धम रम अस नम। ऽतह क स ग नर एक यम॥4॥
भथ:- दोन भइय क बल और तप अत लनाय ह। द क ध
करन म लग ह और द त तथ म ऽनय को स ख द न ल ह। शोभ क
धम ह, ' रम ' ऐस उनक नम ह। उनक सथ एक तणा स दर ा
ह॥4॥
* प रऽस ऽबऽध नर स रा। रऽत सत कोट तस बऽलहरा॥
तस अन ज कट ऽत नस। स ऽन त भऽगऽन करह परहस॥5॥
भथ:- ऽधत न उस ा को ऐसा प क रऽश बनय ह क सौ
करो रऽत (कमद क ा) उस पर ऽिनर ह। उह क िोट भई न
म र नक - कन कट डल। म त रा बऽहन , यह स नकर म रा ह सा
करन लग॥5॥
* खर दी षन स ऽन लग प कर। िन म सकल कटक उह मर॥
खर दी षन ऽतऽसर कर घत। स ऽन दससास जर सब गत॥6॥
भथ:- म रा प कर स नकर खर - दी षण सहयत करन आए। पर उहन
ण भर म सरा स न को मर डल। खर - दी षन और ऽऽशर क ध स नकर रण क सर अ ग जल उठ॥6॥
दोह :
* सी पनखऽह सम झइ कर बल बोल ऽस ब भ ऽत।
गयउ भन अऽत सोचबस नाद परइ नह रऽत॥22॥
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भथ:- उसन शी प णख को समझकर बत कर स अपन बल क
बखन कय , कत (मन म) ह अयत चतश होकर अपन महल
म गय , उस रत भर नद नह पा॥22॥
चौपई :
* स र नर अस र नग खग मह। मोर अन चर कह कोउ नह॥
खर दी षन मोऽह सम बल त। ऽतहऽह को मरइ ऽबन भग त॥1॥
भथ:-(ह मन हा मन ऽचर करन लग -) द त , मन य , अस र ,
नग और पऽय म कोई ऐस नह , जो म र स क को भा प सक । खर -
दी षण तो म र हा समन बलन थ। उह भगन क ऽस और कौन
मर सकत ह?॥1॥
* स र रजन भ जन मऽह भर। ज भग त लाह अतर॥
तौ म जइ ब हठ करऊ। भ सर न तज भ तरऊ॥2॥
भथ:- द त को आन द द न ल और पा क भर हरण करन
ल भगन न हा यद अतर ऽलय ह, तो म जकर उनस हठपी क
र कग और भ क बण (क आघत) स ण िोकर भसगर स तर जऊग॥2॥
* होइऽह भजन न तमस द ह। मन म बचन म द एह॥
ज नरप भी पस त कोऊ। हरहउ नर जाऽत रन दोऊ॥3॥
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भथ:- इस तमस शरार स भजन तो होग नह , अतए मन , चन
और कम स यहा द ऽनय ह। और यद मन य प कोई रजकमर
हग तो उन दोन को रण म जातकर उनक ा को हर ली ग॥3॥
* चल अकल जन च तह। बस मराच सध तट जह॥
इह रम जऽस ज ग ऽत बनई। स न उम सो कथ स हई॥4॥
भथ:- रस क भयनक स न आ गई ह। जनकजा को ल कर त म
प त क कदर म चल जओ। सधन रहन। भ ा रमच जा क चन स नकर लमणजा हथ म धन ष - बण ऽलए ा सातजा सऽहत
चल॥6॥
दोह :
* लऽिमन गए बनह जब ल न मी ल फल कद।
जनकस त सन बोल ऽबहऽस कप स ख ब द॥23॥
भथ:- लमणजा जब कद - मी ल - फल ल न क ऽलए न म गए , तब
(अकल म) कप और स ख क समी ह ा रमच जा ह सकर जनकजा स
बोल-॥23॥
चौपई :
* स न ऽय त ऽचर स साल। म िक करऽब लऽलत नरलाल॥
त ह पक म कर ऽनस। जौ लऽग कर ऽनसचर नस॥1॥
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भथ:- ह ऽय! ह स दर पऽतवत धम क पलन करन ला सशाल!
स नो! म अब कि मनोहर मन य लाल कग , इसऽलए जब तक म
रस क नश क, तब तक त म अऽ म ऽनस करो॥1॥
* जबह रम सब कह बखना। भ पद धर ऽहय अनल समना॥
ऽनज ऽतबब रऽख तह सात। त सइ साल प स ऽबनात॥2॥
भथ:-ा रमजा न य हा सब समझकर कह , य हा ा सातजा
भ क चरण को दय म धरकर अऽ म सम ग। सातजा न अपना
हा िय मी त ह रख दा , जो उनक ज स हा शाल - भ और
पला तथ स हा ऽन था॥2॥
* लऽिमन यह मरम न जन। जो िक चरत रच भगन॥
दसम ख गयउ जह मराच। नइ मथ रथ रत नाच॥3॥
भथ:-भगन न जो कि लाल रचा , इस रहय को लमणजा न भा
नह जन। थ परयण और नाच रण ह गय , जह मराच थ
और उसको ऽसर नय॥3॥
* नऽन नाच क अऽत द खदई। ऽजऽम अ क स धन उरग ऽबलई॥
भयदयक खल क ऽय बना। ऽजऽम अकल क क स म भना॥4॥
भथ:- नाच क झ कन (नत) भा अयत द खदया होत ह। ज स
अ कश , धन ष , स प और ऽबला क झ कन। ह भना! द क माठा
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णा भा (उसा कर) भय द न ला होता ह, ज स ऽबन ऋत क
फील!॥4॥
मराच स ग और ण म ग प म मराच क मर जन , सातजा
र लमण को भ जन
दोह :
* कर पी ज मराच तब सदर पी ि ा बत।
कन ह त मन य अऽत अकसर आय तत॥24॥
भथ:- तब मराच न उसक पी ज करक आदरपी क बत पी ि ा - ह
तत! आपक मन कस करण इतन अऽधक ह और आप अकल
आए ह?॥24॥
चौपई :
* दसम ख सकल कथ त ऽह आग। कहा सऽहत अऽभमन अभग॥
हो कपट म ग त ह िलकरा। ज ऽह ऽबऽध हर आन न पनरा॥1॥
भथ:- भयहान रण न सरा कथ अऽभमन सऽहत उसक समन
कहा (और फर कह -) त म िल करन ल कपटम ग बनो , ऽजस उपय
स म उस रजधी को हर लऊ॥1॥
* त ह प ऽन कह स न दससास। त नरप चरचर ईस॥
तस तत बय नह कज। मर मरअ ऽजआए जाज॥2॥
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भथ:- तब उसन (मराच न) कह - ह दशशाश! स ऽनए। मन य
प म चरचर क ईर ह। ह तत! उनस र न कऽजए। उह क मरन
स मरन और उनक ऽजलन स जान होत ह (सबक जान -
मरण उह क अधान ह)॥2॥
* म ऽन मख रखन गयउ कमर। ऽबन फर सर रघ पऽत मोऽह मर॥
सत जोजन आयउ िन मह। ऽतह सन बय कए भल नह॥3॥
भथ:- यहा रजकमर म ऽन ऽऽम क य क र क ऽलए गए
थ। उस समय ा रघ नथजा न ऽबन फल क बण म झ मर थ ,
ऽजसस म णभर म सौ योजन पर आ ऽगर। उनस र करन म भलई
नह ह॥3॥
* भइ मम कट भ ग क नई। जह तह म द खउ दोउ भई॥
ज नर तत तदऽप अऽत सी र। ऽतहऽह ऽबरोऽध न आइऽह पी र॥4॥
भथ:- म रा दश तो भ गा क क क सा हो गई ह। अब म जह- तह
ा रम - लमण दोन भइय को हा द खत । और ह तत! यद
मन य ह, तो भा ब शी रार ह। उनस ऽरोध करन म पी र न प ग
(सफलत नह ऽमल गा)॥4॥
दोह :
* ज ह तक स ब हऽत ख ड उ हर कोद ड।
खर दी षन ऽतऽसर बध उ मन ज क अस बरब ड॥25॥
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भथ:- ऽजसन तक और स ब को मरकर ऽशजा क धन ष तो
दय और खर , दी षण और ऽऽशर क ध कर डल , ऐस च ड बला
भा कह मन य हो सकत ह?॥25॥
चौपई :
* ज भन कल कसल ऽबचरा। स नत जर दाऽहऽस ब गरा॥
ग ऽजऽम मी करऽस मम बोध। क जग मोऽह समन को जोध॥1॥
भथ:- अत अपन कल क कशल ऽचरकर आप घर लौट जइए।
यह स नकर रण जल उठ और उसन बत सा गऽलय द (द चन
कह)। (कह -) अर मी ख! ती ग क तरह म झ न ऽसखत ह? बत तो
स सर म म र समन यो कौन ह?॥1॥
* तब मराच दय अन मन। नऽह ऽबरोध नह कयन॥
सा मम भ सठ धना। ब द ब द कऽब भनस ग ना॥2॥
भथ:- तब मराच न दय म अन मन कय क शा (शधरा),
मम (भ द जनन ल), समथ मा , मी ख, धनन , , भट , कऽ
और रसोइय - इन नौ ऽय स ऽरोध ( र) करन म कयण (कशल) नह होत॥2॥
* उभय भ ऽत द ख ऽनज मरन। तब तकऽस रघ नयक सरन॥
उत द त मोऽह बधब अभग। कस न मर रघ पऽत सर लग॥3॥
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भथ:- जब मराच न दोन कर स अपन मरण द ख , तब उसन
ा रघ नथजा क शरण तक (अथ त उनक शरण जन म हा कयण
समझ)। (सोच क) उर द त हा (नह करत हा) यह अभग म झ मर डल ग। फर ा रघ नथजा क बण लगन स हा य न म॥3॥
* अस ऽजय जऽन दसनन स ग। चल रम पद म अभ ग॥
मन अऽत हरष जन न त हा। आज द ऽखहउ परम सन हा॥4॥
भथ:-
दय म ऐस समझकर ह रण क सथ चल। ा रमजा क चरण म उसक अख ड म ह। उसक मन म इस बत क अयत हष
ह क आज म अपन परम हा ा रमजा को द खी ग , कत उसन यह
हष रण को नह जनय॥4॥
ि द :
* ऽनज परम ातम द ऽख लोचन स फल कर स ख पइह।
ासऽहत अन ज सम त कपऽनक त पद मन लइह॥
ऽनब न दयक ोध ज कर भगऽत अबसऽह बसकरा।
ऽनज पऽन सर सधऽन सो मोऽह बऽधऽह स खसगर हरा॥
भथ:-(ह मन हा मन सोचन लग -) अपन परम ऽयतम को द खकर
न को सफल करक स ख पऊग। जनकजा सऽहत और िोट भई
लमणजा सम त कपऽनधन ा रमजा क चरण म मन लगऊग।
ऽजनक ोध भा मो द न ल ह और ऽजनक भऽ उन अश (कसा
क श म न होन ल, त भगन) को भा श म करन ला ह,
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अब हा आन द क सम ा हर अपन हथ स बण सधनकर म र
ध करग।
दोह :
* मम िप धर धत धर सरसन बन।
फर फर भ ऽह ऽबलोकहउ धय न मो सम आन॥26॥
भथ:- धन ष - बण धरण कए म र िपा- िपा पा पर (पकन क
ऽलए) दौत ए भ को म फर - फरकर द खी ग। म र समन धय दी सर कोई नह ह॥26॥
चौपई :
* त ऽह बनऽनकट दसनन गयऊ। तब मराच कपटम ग भयऊ॥
अऽत ऽबऽच िक बरऽन न जई। कनक द ह मऽन रऽचत बनई॥1॥
भथ:- जब रण उस न क (ऽजस न म ा रघ नथजा रहत थ)
ऽनकट प च , तब मराच कपटम ग बन गय! ह अयत हा ऽऽच
थ , कि ण न नह कय ज सकत। सोन क शरार मऽणय स जकर
बनय थ॥1॥
* सात परम ऽचर म ग द ख। अ ग अ ग स मनोहर ब ष॥
स न द रघ बार कपल। एऽह म ग कर अऽत स दर िल॥2॥
भथ:- सातजा न उस परम स दर ऽहरन को द ख , ऽजसक अ ग -अ ग
क िट अयत मनोहर था। ( कहन लग -) ह द ! ह कपल रघ ार!
स ऽनए। इस म ग क िल बत हा स दर ह॥2॥
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* सयसध भ बऽध कर एहा। आन चम कहऽत ब द हा॥
तब रघ पऽत जनत सब करन। उठ हरऽष स र कज स रन॥3॥
भथ:- जनकजा न कह - ह सयऽत भो! इसको मरकर इसक
चम ल दाऽजए। तब ा रघ नथजा (मराच क कपटम ग बनन क)
सब करण जनत ए भा , द त क कय बनन क ऽलए हषत
होकर उठ॥3॥
* म ग ऽबलोक कट परकर बध। करतल चप ऽचर सर सध॥
भ लऽिमनऽह कह सम झई। फरत ऽबऽपन ऽनऽसचर ब भई॥4॥
भथ:- ऽहरन को द खकर ा रमजा न कमर म फ ट बध और हथ
म धन ष ल कर उस पर स दर (द) बण चय। फर भ न
लमणजा को समझकर कह - ह भई! न म बत स रस फरत
ह॥4॥
* सात क र कर रखरा। ब ऽध ऽबब क बल समय ऽबचरा॥
भ ऽह ऽबलोक चल म ग भजा। धए रम सरसन सजा॥5॥
भथ:- त म ब ऽ और ऽ क क र बल और समय क ऽचर करक
सातजा क रखला करन। भ को द खकर म ग भग चल। ा रमचजा भा धन ष चकर उसक िपा दौ॥5॥
* ऽनगम न ऽत ऽस यन न प। मयम ग िप सो ध॥
कब ऽनकट प ऽन दी र परई। कब क गटइ कब िपई॥6॥
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भथ:- द ऽजनक ऽषय म ' न ऽत - न ऽत ' कहकर रह जत ह और
ऽशजा भा ऽजह यन म नह पत (अथ त जो मन और णा स
ऽनतत पर ह), हा ा रमजा मय स बन ए म ग क िपा दौ रह ह। ह कभा ऽनकट आ जत ह और फर दी र भग जत ह। कभा तो
कट हो जत ह और कभा ऽिप जत ह॥6॥
* गटत द रत करत िल भी रा। एऽह ऽबऽध भ ऽह गयउ ल दी रा॥
तब तक रम कठन सर मर। धरऽन परउ कर घोर प कर॥7॥
भथ:- इस कर कट होत और ऽिपत आ तथ बत र िल
करत आ ह भ को दी र ल गय। तब ा रमचजा न तक कर
(ऽनशन सधकर) कठोर बण मर , ( ऽजसक लगत हा) ह घोर शद
करक पा पर ऽगर प॥7॥
* लऽिमन कर थमह ल नम। िप स ऽमरऽस मन म रम॥
न तजत गटऽस ऽनज द ह। स ऽमरऽस रम सम त सन ह॥8॥
भथ:- पहल लमणजा क नम ल कर उसन िपा मन म ा रमजा
क मरण कय। ण यग करत समय उसन अपन (रसा) शरार
कट कय और म सऽहत ा रमजा क मरण कय॥8॥
* अ तर म तस पऽहचन। म ऽन द लभ गऽत दाऽह स जन॥9॥
भथ:- स जन (स ) ा रमजा न उसक दय क म को
पहचनकर उस ह गऽत (अपन परमपद) दा जो म ऽनय को भा द लभ
ह॥9॥
दोह :
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* ऽबप ल स मर स र बरषह गह भ ग न गथ।
ऽनज पद दाह अस र क दानबध रघ नथ॥27॥
भथ:- द त बत स फील बरस रह ह और भ क ग ण क गथए
(त ऽतय) ग रह ह (क) ा रघ नथजा ऐस दानबध ह क उहन
अस र को भा अपन परम पद द दय॥27॥
चौपई :
* खल बऽध त रत फर रघ बार। सोह चप कर कट तीनार॥
आरत ऽगर स ना जब सात। कह लऽिमन सन परम सभात॥1॥
भथ:- द मराच को मरकर ा रघ ार त रत लौट प। हथ म
धन ष और कमर म तरकस शोभ द रह ह। इधर जब सातजा न
द खभरा णा (मरत समय मराच क ' ह लमण ' क आज) स ना
तो बत हा भयभात होकर लमणजा स कहन लग॥1॥
* ज ब ऽग स कट अऽत त। लऽिमन ऽबहऽस कह स न मत॥
भ क ट ऽबलस स ऽ लय होई। सपन स कट परइ क सोई॥2॥
भथ:- त म शा जओ , त हर भई ब स कट म ह। लमणजा न
ह सकर कह - ह मत! स नो , ऽजनक क ट ऽलस (भ क इशर) म
स सरा स ऽ क लय (लय) हो जत ह, ा रमजा य कभा
म भा स कट म प सकत ह?॥2॥
* मरम बचन जब सात बोल। हर रत लऽिमन मन डोल॥
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बन दऽस द सऽप सब क। चल जह रन सऽस र॥3॥
भथ:- इस पर जब सातजा कि मम चन (दय म चभन ल
चन) कहन लग , तब भगन क रण स लमणजा क मन भा
च चल हो उठ। ा सातजा को न और दश क द त को
सपकर ह चल, जह रण पा चम क ऽलए र प ा
रमजा थ॥3॥
ा सातहरण और ा सात ऽलप
* सी न बाच दसकधर द ख। आ ऽनकट जता क ब ष॥
जक डर स र अस र ड रह। ऽनऽस न नाद दन अ न खह॥4॥
भथ:- रण सी न मौक द खकर यऽत (स यसा) क ष म ा
सातजा क समाप आय , ऽजसक डर स द त और द य तक इतन डरत
ह क रत को नद नह आता और दन म (भरप ट) अ नह खत-॥4॥
* सो दससास न क न। इत उत ऽचतइ चल भऽह॥
इऽम क पथ पग द त खग स। रह न त ज तन ब ऽध बल ल स॥5॥
भथ:- हा दस ऽसर ल रण क क तरह इधर - उधर तकत
आ भऽहई * (चोरा) क ऽलए चल। (ककभश ऽडजा कहत ह-) ह
गजा! इस कर कमग पर प र रखत हा शरार म त ज तथ ब ऽ
ए बल क लश भा नह रह जत॥5॥
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* सी न पकर क च पक स बत न -भ म म ह डलकर कि च र ल
जत ह। उस 'भऽहई ' कहत ह।
* नन ऽबऽध कर कथ स हई। रजनाऽत भय ाऽत द खई॥
कह सात स न जता गोस। बोल बचन द क न॥6॥
भथ:- रण न अन क कर क स हना कथए रचकर सातजा
को रजनाऽत , भय और म दखलय। सातजा न कह - ह यऽत
गोस! स नो , त मन तो द क तरह चन कह॥6।
* तब रन ऽनज प द ख। भई सभय जब नम स न॥
कह सात धर धारज ग। आइ गयउ भ र खल ठ॥7॥
भथ:- तब रण न अपन असला प दखलय और जब नम
स नय तब तो सातजा भयभात हो ग। उहन गहर धारज धरकर कह - 'अर द ! ख तो रह , भ आ गए '॥7॥
* ऽजऽम हरबध ऽह ि सस चह। भएऽस कलबस ऽनऽसचर नह॥
स नत बचन दससास रसन। मन म चरन ब द स ख मन॥8॥
भथ:- ज स सह क ा को त ि खरगोश चह, स हा अर
रसरज! ती (म रा चह करक ) कल क श आ ह। य चन स नत हा
रण को ोध आ गय , परत मन म उसन सातजा क चरण क
दन करक स ख मन॥8॥
दोह :
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* ोध त तब रन लाऽहऽस रथ ब ठइ।
चल गगनपथ आत र भय रथ ह क न जइ॥28॥
भथ:- फर ोध म भरकर रण न सातजा को रथ पर ब ठ ऽलय
और ह बा उतला क सथ आकश मग स चल , कत डर क मर
उसस रथ ह क नह जत थ॥28॥
चौपई :
* ह जग एक बार रघ रय। क ह अपरध ऽबसर दय॥
आरऽत हरन सरन स खदयक। ह रघ कल सरोज दननयक॥1॥
भथ:- (सातजा ऽलप कर रहा थ -) ह जगत क अऽताय ार ा
रघ नथजा! आपन कस अपरध स म झ पर दय भ ल दा। ह द ख क
हरन ल, ह शरणगत को स ख द न ल, ह रघ कल पा कमल क
सी य!॥1॥
* ह लऽिमन त हर नह दोस। सो फल पयउ कह उ रोस॥
ऽबऽबध ऽबलप करऽत ब द हा। भी र कप भ दी र सन हा॥2॥
भथ:-
ह लमण! त हर दोष नह ह। म न ोध कय , उसक फल
पय। ा जनकजा बत कर स ऽलप कर रहा ह- (हय!) भ क
कप तो बत ह, परत हा भ बत दी र रह गए ह॥2॥
* ऽबपऽत मोर को भ ऽह स न। प रोडस चह रसभ ख॥
सात क ऽबलप स ऽन भरा। भए चरचर जा द खरा॥3॥
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भथ:- भ को म रा यह ऽपऽ कौन स न? य क अ को गदह
खन चहत ह। सातजा क भरा ऽलप स नकर ज - च तन सभा
जा द खा हो गए॥3॥
जटय- रण - य , अशोक टक म सातजा को रखन
* गाधरज स ऽन आरत बना। रघ कलऽतलक नर पऽहचना॥
अधम ऽनसचर लाह जई। ऽजऽम मलि बस कऽपल गई॥4॥
भथ:- गरज जटय न सातजा क द खभरा णा स नकर पहचन ऽलय क य रघ कल ऽतलक ा रमचजा क पा ह। (उसन
द ख क) नाच रस इनको (ब रा तरह) ऽलए ज रह ह, ज स कऽपल
गय ल ि क पल प गई हो॥4॥
* सात प ऽ करऽस जऽन स। करहउ जतधन कर नस॥
ध ोध त खग कस। िीटइ पऽब परबत क ज स॥5॥
भथ:- (ह बोल -) ह सात प ा! भय मत कर। म इस रस क
नश कग। (यह कहकर) ह पा ोध म भरकर ऐस दौ , ज स
प त क ओर िीटत हो॥5॥
* र र द ठ कन हो हा। ऽनभ य चल ऽस न जन ऽह मोहा॥
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आत द ऽख कत त समन। फर दसकधर कर अन मन॥6॥
भथ:- (उसन ललकरकर कह -) र र द ! ख य नह होत ?
ऽनडर होकर चल दय! म झ ती न नह जन ? उसको यमरज क समन
आत आ द खकर रण घी मकर मन म अन मन करन लग -॥6॥
* क म नक क खगपऽत होई। मम बल जन सऽहत पऽत सोई॥
जन जरठ जटयी एह। मम कर तारथ ि ऽऽह द ह॥7॥
भथ:- यह य तो म नक प त ह य पऽय क मा ग। पर
ह (ग) तो अपन मा ऽण सऽहत म र बल को जनत ह! (कि
पस आन पर) रण न उस पहचन ऽलय (और बोल -) यह तो बी
जटय ह। यह म र हथ पा ताथ म शरार िो ग॥7॥
* स नत गाध ोधत र ध। कह स न रन मोर ऽसख॥
तऽज जनकऽह कसल ग ह ज। नह त अस होइऽह बब॥8॥
भथ:- यह स नत हा गाध ोध म भरकर ब ग स दौ और
बोल - रण! म रा ऽसखन स न। जनकजा को िोकर कशलपी क
अपन घर चल ज। नह तो ह बत भ ज ल! ऐस होग क -॥8॥
* रम रोष पक अऽत घोर। होइऽह सकल सलभ कल तोर॥
उत न द त दसनन जोध। तबह गाध ध कर ोध॥9॥
भथ:- ा रमजा क ोध पा अयत भयनक अऽ म त र सर
श पतग (होकर भम) हो जएग। यो रण कि उर नह
द त। तब गाध ोध करक दौ॥9॥
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* धर कच ऽबरथ कह मऽह ऽगर। सातऽह रऽख गाध प ऽन फर॥
चोचह मर ऽबदरऽस द हा। द ड एक भइ म ि त हा॥10॥
भथ:- उसन (रण क) बल पककर उस रथ क नाच उतर ऽलय ,
रण पा पर ऽगर प। गाध सातजा को एक ओर ब ठकर फर
लौट और चच स मर - मरकर रण क शरार को ऽदाण कर डल।
इसस उस एक घा क ऽलए मी ि हो गई॥10॥
* तब सोध ऽनऽसचर ऽखऽसआन। कऽस परम करल कपन॥
कटऽस प ख पर खग धरना। स ऽमर रम कर अदभ त करना॥11॥
भथ:- तब ऽखऽसयए ए रण न ोधय होकर अयत भयनक
कटर ऽनकला और उसस जटय क प ख कट डल। पा (जटय) ा
रमजा क अभ त लाल क मरण करक पा पर ऽगर प॥11॥
* सातऽह जन चइ बहोरा। चल उतइल स न थोरा॥
करऽत ऽबलप जऽत नभ सात। यध ऽबबस जन म गा सभात॥12॥
भथ:- सातजा को फर रथ पर चकर रण बा उतला क
सथ चल। उस भय कम न थ। सातजा आकश म ऽलप करता ई
ज रहा ह। मनो ध क श म पा ई (जल म फसा ई) कोई भयभात ऽहरना हो!॥12॥
* ऽगर पर ब ठ कऽपह ऽनहरा। कऽह हर नम दाह पट डरा॥
एऽह ऽबऽध सातऽह सो ल गयऊ। बन असोक मह रखत भयऊ॥13॥
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भथ:- प त पर ब ठ ए ब दर को द खकर सातजा न हरनम ल कर
डल दय। इस कर ह सातजा को ल गय और उह अशोक
न म ज रख॥13॥
दोह :
* हर पर खल ब ऽबऽध भय अ ाऽत द खइ।
तब असोक पदप तर रऽखऽस जतन करइ॥29 क॥
भथ:- सातजा को बत कर स भय और ाऽत दखलकर जब ह द हर गय , तब उह य करक (सब थ ठाक करक )
अशोक क नाच रख दय॥29 (क)॥
ननपरयण ,ि ठ ऽम
ा रमजा क ऽलप , जटय क स ग , कबध उर
* ज ऽह ऽबऽध कपट क रग स ग धइ चल ारम।
सो िऽब सात रऽख उर रटऽत रहऽत हरनम॥29 ख॥
भथ:- ऽजस कर कपट म ग क सथ ा रमजा दौ चल थ, उसा
ि ऽ को दय म रखकर हरनम (रमनम) रटता रहता ह॥29
(ख)॥
चौपई :
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* रघ पऽत अन जऽह आत द खा। बऽहज चत कऽह ऽबस षा॥
जनकस त परहर अकला। आय तत बचन मम प ला॥1॥
भथ:- (इधर) ा रघ नथजा न िोट भई लमणजा को आत द खकर
प म बत चत क (और कह -) ह भई! त मन जनक को
अकला िो दय और म रा आ क उल घन कर यह चल आए!॥1॥
* ऽनऽसचर ऽनकर फरह बन मह। मम मन सात आम नह॥
गऽह पद कमल अन ज कर जोरा। कह उ नथ िक मोऽह न खोरा॥2॥
भथ:- रस क झ ड न म फरत रहत ह। म र मन म ऐस आत ह
क सात आम म नह ह। िोट भई लमणजा न ा रमजा क
चरणकमल को पककर हथ जोकर कह - ह नथ! म र कि भा दोष
नह ह॥2॥
* अन ज सम त गए भ तह। गोदर तट आम जह॥
आम द ऽख जनक हान। भए ऽबकल जस कत दान॥3॥
भथ:- लमणजा सऽहत भ ा रमजा ह गए , जह गोदरा क
तट पर उनक आम थ। आम को जनकजा स रऽहत द खकर ा
रमजा सधरण मन य क भ ऽत कल और दान (द खा) हो गए॥3॥
* ह ग न खऽन जनक सात। प साल त न म प नात॥
लऽिमन सम झए ब भ ऽत। पी ि त चल लत त प ता॥4॥
भथ:- ( ऽलप करन लग-) ह ग ण क खन जनक! ह प ,
शाल , वत और ऽनयम म पऽ सात! लमणजा न बत कर स
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समझय। तब ा रमजा लत और क प ऽय स पी ि त ए
चल॥4॥
* ह खग म ग ह मध कर ना। त ह द खा सात म गन ना॥
ख जन स क कपोत म ग मान। मध प ऽनकर कोकल बान॥5॥
भथ:- ह पऽय! ह पश! ह भर क प ऽय! त मन कह
म गनयना सात को द ख ह? ख जन , तोत , कबी तर , ऽहरन , िमला ,
भर क समी ह , ाण कोयल ,॥5॥
* क द कला दऽम दऽमना। कमल सरद सऽस अऽहभऽमना॥
बन पस मनोज धन ह स। गज क हर ऽनज स नत स स॥6॥
भथ:- कदकला , अनर , ऽबजला , कमल , शरद क च म और
नऽगना , अण क पश , कमद क धन ष , ह स , गज और सह - य सब
आज अपना श स स न रह ह॥6॥
* ा फल कनक कदऽल हरषह। न क न स क सकच मन मह॥
स न जनक तोऽह ऽबन आजी । हरष सकल पइ जन रजी ॥7॥
भथ:- ब ल , स ण और कल हषत हो रह ह। इनक मन म जर भा
श क और स कोच नह ह। ह जनक! स नो , त हर ऽबन य सब आज
ऐस हषत ह, मनो रज प गए ह। (अथ त त हर अ ग क समन य
सब त ि , अपमऽनत और लऽत थ। आज त ह न द खकर य अपना
शोभ क अऽभमन म फील रह ह)॥7॥
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* कऽम सऽह जत अनख तोऽह पह। ऽय ब ऽग गटऽस कस नह॥
एऽह ऽबऽध खोजत ऽबलपत मा। मन मह ऽबरहा अऽत कमा॥8॥
भथ:- त मस यह अनख (पध) कस सहा जता ह? ह ऽय! त म
शा हा कट य नह होता ? इस कर (अनत ड क अथ
महमऽहममया पशऽ ा सातजा क ) मा ा रमजा
सातजा को खोजत ए (इस कर) ऽलप करत ह, मनो कोई
महऽरहा और अय त कमा प ष हो॥8॥
* पी रकनम रम स ख रसा। मन जचरत कर अज अऽबनसा॥
आग पर गाधपऽत द ख। स ऽमरत रम चरन ऽजह रख॥9॥
भथ:- पी ण कम , आन द क रऽश , अजम और अऽनशा ा रमजा
मन य क चर कर रह ह। आग (जन पर) उहन गपऽत जटय को प द ख। ह ा रमजा क चरण क मरण कर रह थ , ऽजनम
(ज , क ऽलश आद क) रखए (ऽचन) ह॥9॥
दोह :
* कर सरोज ऽसर परस उ कपसध रघ बार।
ऽनरऽख रम िऽब धम म ख ऽबगत भई सब पार॥30॥
भथ:- कप सगर ा रघ ार न अपन करकमल स उसक ऽसर क
पश कय (उसक ऽसर पर करकमल फ र दय)। शोभधम ा रमजा
क (परम स दर) म ख द खकर उसक सब पा जता रहा॥30॥
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चौपई :
* तब कह गाध बचन धर धार। स न रम भ जन भ भार॥
नथ दसनन यह गऽत कहा। त ह खल जनकस त हर लाहा॥1॥
भथ:- तब धारज धरकर गाध न यह चन कह - ह भ (जम - म य)
क भय क नश करन ल ा रमजा! स ऽनए। ह नथ! रण न म रा
यह दश क ह। उसा द न जनकजा को हर ऽलय ह॥1॥
* ल दऽिन दऽस गयउ गोस। ऽबलपऽत अऽत क ररा क न॥
दरस लग भ रख उ न। चलन चहत अब कपऽनधन॥2॥
भथ:- ह गोस! ह उह ल कर दऽण दश को गय ह। सातजा
क ररा (कज) क तरह अय त ऽलप कर रहा थ। ह भो! आपक दश न
क ऽलए हा ण रोक रख थ। ह कपऽनधन! अब य चलन हा चहत
ह॥2॥
* रम कह तन रख तत। म ख म स कइ कहा त ह बत॥
जकर नम मरत म ख आ। अधमउ म क त होइ ऽत ग॥3॥
भथ:- ा रमच जा न कह - ह तत! शरार को बनए रऽखए। तब
उसन म क रत ए म ह स यह बत कहा - मरत समय ऽजनक नम म ख म आ जन स अधम (महन पपा) भा म हो जत ह, ऐस द गत
ह-॥3॥
* सो मम लोचन गोचर आग। रख द ह नथ क ऽह ख ग॥
जल भर नयन कहह रघ रई। तत कम ऽनज त गऽत पई॥4॥
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भथ:- हा (आप) म र न क ऽषय होकर समन ख ह। ह नथ!
अब म कस कमा (क पी त) क ऽलए द ह को रखी ? न म जल भरकर
ा रघ नथजा कहन लग- ह तत! आपन अपन कम स (द लभ) गऽत पई ह॥4॥
* परऽहत बस ऽजह क मन मह। ऽतह क जग द लभ िक नह॥
तन ऽतज तत ज मम धम। द उ कह त ह पी रनकम॥5॥
भथ:- ऽजनक मन म दी सर क ऽहत बसत ह (समय रहत ह), उनक ऽलए जगत म कि भा (कोई भा गऽत) द लभ नह ह। ह तत!
शरार िोकर आप म र परम धम म जइए। म आपको य दी ? आप
तो पी ण कम ह (सब कि प च क ह)॥5॥
दोह :
* सात हरन तत जऽन कह ऽपत सन जइ।
ज म रम त कल सऽहत कऽहऽह दसनन आइ॥31॥
भथ:- ह तत! सात हरण क बत आप जकर ऽपतजा स न
कऽहएग। यद म रम तो दशम ख रण क टब सऽहत ह आकर
य हा कह ग॥31॥
चौपई :
* गाध द ह तऽज धर हर प। भी षन ब पट पात अनी प॥
यम गत ऽबसल भ ज चरा। अत ऽत करत नयन भर बरा॥1॥
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भथ:- जटय न गाध क द ह यगकर हर क प धरण कय और
बत स अन पम (द) आभी षण और (द) पातबर पहन ऽलए।
यम शरार ह, ऽशल चर भ जए ह और न म ( म तथ आन द कआ स क) जल भरकर ह त ऽत कर रह ह-॥1॥
ि द :
* जय रम प अनी प ऽनग न सग न ग न रक सहा।
दससास ब च ड ख डन च ड सर म डन महा॥
पथोद गत सरोज म ख रजा आयत लोचन।
ऽनत नौऽम रम कपल ब ऽबसल भ भय मोचन॥1॥
भथ:- ह रमजा! आपक जय हो। आपक प अन पम ह, आप
ऽनग ण ह, सग ण ह और सय हा ग ण क (मय क ) रक ह। दस ऽसर ल रण क चड भ ज को ख ड - ख ड करन क ऽलए चड बण
धरण करन ल, पा को सशोऽभत करन ल, जलय म घ क
समन यम शरार ल, कमल क समन म ख और (लल) कमल क
समन ऽशल न ल, ऽशल भ ज ल और भ -भय स िन
ल कपल ा रमजा को म ऽनय नमकर करत ॥1॥
* बलमम यमनदमजमयम कमगोचर।
गोबद गोपर हर ऽबयनघन धरनाधर॥
ज रम म जप त स त अन त जन मन रजन।
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ऽनत नौऽम रम अकम ऽय कमद खल दल ग जन॥2॥
भथ:- आप अपरऽमत बलल ह, अनद , अजम , अ
(ऽनरकर), एक अगोचर (अलय), गोद ( द य र जनन
योय), इय स अतात , ( जम - मरण , स ख - द ख , हष-शोकद)
को हरन ल, ऽन क घनमी त और पा क आधर ह तथ जो स त
रम म को जपत ह, उन अनत स क क मन को आन द द न ल ह।
उन ऽनकमऽय (ऽनकमजन क मा अथ उह ऽय) तथ कम आद द (द ऽय) क दल क दलन करन ल ा रमजा को म
ऽनय नमकर करत ॥2॥
* ज ऽह ऽत ऽनरजन यपक ऽबरज अज कऽह गह।
कर यन यन ऽबरग जोग अनक म ऽन ज ऽह पह॥
सो गट कन कद सोभ ब द अग जग मोहई।
मम दय प कज भ ग अ ग अन ग ब िऽब सोहई॥3॥
भथ:- ऽजनको ऽतय ऽनरजन (मय स पर), , पक ,
ऽनकर और जमरऽहत कहकर गन करता ह। म ऽन ऽजह यन , न , रय और योग आद अन क सधन करक पत ह। हा
कणकद , शोभ क समी ह (य ा भगन) कट होकर ज - च तन
समत जगत को मोऽहत कर रह ह। म र दय कमल क मर प उनक
अ ग -अ ग म बत स कमद क िऽ शोभ प रहा ह॥3॥
* जो अगम स गम सभ ऽनम ल असम सम सातल सद।
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पय ऽत ज जोगा जतन कर करत मन गो बस सद॥
सो रम रम ऽनस स तत दस बस ऽभ न धना।
मम उर बसउ सो समन स स ऽत जस करऽत पना॥4॥
भथ:- जो अगम और स गम ह, ऽनम ल भ ह, ऽषम और सम ह
और सद शातल (श त) ह। मन और इय को सद श म करत ए
योगा बत सधन करन पर ऽजह द ख पत ह। तान लोक क
मा , रमऽनस ा रमजा ऽनरतर अपन दस क श म रहत ह। हा म र दय म ऽनस कर, ऽजनक पऽ कत आगमन को ऽमटन
ला ह॥4॥
दोह :
* अऽबरल भगऽत मऽग बर गाध गयउ हरधम। त ऽह क य जथोऽचत ऽनज कर कहा रम॥32॥
भथ:- अख ड भऽ क र म गकर गरज जटय ा हर क
परमधम को चल गय। ा रमच जा न उसक (दहकम आद सरा)
यए यथयोय अपन हथ स क॥32॥
चौपई :
* कोमल ऽचत अऽत दानदयल। करन ऽबन रघ नथ कपल॥
गाध अधम खग आऽमष भोगा। गऽत दाहा जो जचत जोगा॥1॥
भथ:- ा रघ नथजा अय त कोमल ऽच ल, दानदयल और
ऽबन हा करण कपल ह। गाध (पऽय म भा) अधम पा और
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म सहरा थ , उसको भा ह द लभ गऽत दा , ऽजस योगाजन म गत
रहत ह॥1॥
* स न उम त लोग अभगा। हर तऽज होह ऽबषय अन रगा।
प ऽन सातऽह खोजत ौ भई। चल ऽबलोकत बन बतई॥2॥
भथ:- (ऽशजा कहत ह-) ह प ता! स नो , लोग अभग ह, जो
भगन को िोकर ऽषय स अन रग करत ह। फर दोन भई
सातजा को खोजत ए आग चल। न क सघनत द खत जत ह॥2॥
* स कल लत ऽबटप घन कनन। ब खग म ग तह गज प चनन॥
आत पथ कबध ऽनपत। त ह सब कहा सप क बत॥3॥
भथ:- ह सघन न लत और स भर ह। उसम बत स
पा , म ग , हथा और सह रहत ह। ा रमजा न रत म आत ए कबध रस को मर डल। उसन अपन शप क सरा बत कहा॥3॥
* द रबस मोऽह दाहा सप। भ पद प ऽख ऽमट सो पप॥
स न गधब कहउ म तोहा। मोऽह न सोहइ कल ोहा॥4॥
भथ:-
(ह बोल -
) द सजा न म झ शप दय थ। अब भ क चरण को द खन स ह पप ऽमट गय। (ा रमजा न कह -) ह गध!
स नो , म त ह कहत , णकल स ोह करन ल म झ नह
स हत॥4॥
दोह :
* मन म बचन कपट तऽज जो कर भी स र स ।
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मोऽह सम त ऽबरऽच ऽस बस तक सब द ॥33॥
भथ:- मन , चन और कम स कपट िोकर जो भी द ण क
स करत ह, म झ सम त , ऽश आद सब द त उसक श हो
जत ह॥33॥
चौपई :
* सपत तत पष कह त। ऽब पी य अस गह स त॥
पी ऽजअ ऽब साल ग न हान। सी न ग न गन यन बान॥1॥
भथ:- शप द त आ , मरत आ और कठोर चन कहत आ भा
ण पी जनाय ह, ऐस स त कहत ह। शाल और ग ण स हान भा ण
पी जनाय ह। और ग ण गण स य और न म ऽनप ण भा शी पी जनाय
नह ह॥1॥
* कऽह ऽनज धम तऽह सम झ। ऽनज पद ाऽत द ऽख मन भ॥
रघ पऽत चरन कमल ऽस नई। गयउ गगन आपऽन गऽत पई॥2॥
भथ:- ा रमजा न अपन धम (भगत धम) कहकर उस
समझय। अपन चरण म म द खकर ह उनक मन को भय। तदनतर ा रघ नथजा क चरणकमल म ऽसर नकर ह अपना गऽत
(गध क प) पकर आकश म चल गय॥2॥
शबरा पर कप , नध भऽ उपदश और पपसर क ओर थन
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* तऽह द इ गऽत रम उदर। सबरा क आम पग धर॥
सबरा द ऽख रम ग ह आए। म ऽन क बचन सम ऽझ ऽजय भए॥3॥
भथ:- उदर ा रमजा उस गऽत द कर शबराजा क आम म पधर।
शबराजा न ा रमच जा को घर म आए द ख , तब म ऽन मत गजा क
चन को यद करक उनक मन स हो गय॥3॥
* सरऽसज लोचन ब ऽबसल। जट म क ट ऽसर उर बनमल॥
यम गौर स दर दोउ भई। सबरा परा चरन लपटई॥4॥
भथ:- कमल सदश न और ऽशल भ ज ल, ऽसर पर जट
क म क ट और दय पर नमल धरण कए ए स दर , स ल और
गोर दोन भइय क चरण म शबराजा ऽलपट प॥4॥
* म मगन म ख बचन न आ। प ऽन प ऽन पद सरोज ऽसर न॥
सदर जल ल चरन पखर। प ऽन स दर आसन ब ठर॥5॥
भथ:- म म म हो ग , म ख स चन नह ऽनकलत। बर - बर
चरण - कमल म ऽसर न रहा ह। फर उहन जल ल कर आदरपी क
दोन भइय क चरण धोए और फर उह स दर आसन पर ब ठय॥5॥
दोह :
* कद मी ल फल स रस अऽत दए रम क आऽन।
म सऽहत भ खए बरबर बखऽन॥34॥
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भथ:- उहन अय त रसाल और द कद , मी ल और फल लकर
ा रमजा को दए। भ न बर - बर श स करक उह म सऽहत
खय॥34॥
चौपई :
* पऽन जोर आग भइ ठा। भ ऽह ऽबलोक ाऽत अऽत बा॥
क ऽह ऽबऽध अत ऽत कर त हरा। अधम जऽत म जमऽत भरा॥1॥
भथ:- फर हथ जोकर आग खा हो ग। भ को द खकर उनक म अय त ब गय। (उहन कह -) म कस कर आपक
त ऽत क? म नाच जऽत क और अय त मी ब ऽ ॥1॥
* अधम त अधम अधम अऽत नरा। ऽतह मह म मऽतम द अघरा॥
कह रघ पऽत स न भऽमऽन बत। मनउ एक भगऽत कर नत॥2॥
भथ:- जो अधम स भा अधम ह, ऽय उनम भा अय त अधम ह,
और उनम भा ह पपनशन! म म दब ऽ । ा रघ नथजा न कह - ह
भऽमऽन! म रा बत स न! म तो क ल एक भऽ हा क स बध मनत
॥2॥
* जऽत प ऽत कल धम बई। धन बल परजन ग न चत रई॥
भगऽत हान नर सोहइ कस। ऽबन जल बरद द ऽखअ ज स॥3॥
भथ:- जऽत , प ऽत , कल , धम, बई , धन , बल , क टब , ग ण और
चत रत - इन सबक होन पर भा भऽ स रऽहत मन य कस लगत ह,
ज स जलहान बदल (शोभहान) दखई पत ह॥3॥
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* नध भगऽत कहउ तोऽह पह। सधन स न ध मन मह॥
थम भगऽत स तह कर स ग। दी सर रऽत मम कथ स ग॥4॥
भथ:- म त झस अब अपना नध भऽ कहत । ती सधन होकर
स न और मन म धरण कर। पहला भऽ ह स त क सस ग। दी सरा
भऽ ह म र कथ स ग म म॥4॥
दोह :
* ग र पद प कज स तासर भगऽत अमन। चौऽथ भगऽत मम ग न गन करइ कपट तऽज गन॥35॥
भथ:- तासरा भऽ ह अऽभमनरऽहत होकर ग क चरण कमल क
स और चौथा भऽ यह ह क कपट िोकर म र ग ण समी ह क गन
कर॥35॥
चौपई :
* म जप मम द ऽबस। प चम भजन सो ब द कस॥
ि ठ दम साल ऽबरऽत ब करम। ऽनरत ऽनरतर सन धरम॥1॥
भथ:- म र (रम) म क जप और म झम र द ऽस - यह प च
भऽ ह, जो द म ऽस ह। िठा भऽ ह इय क ऽनह , शाल
(अि भ य चर), बत कय स रय और ऽनरतर स त
प ष क धम (आचरण) म लग रहन॥1॥
* सत सम मोऽह मय जग द ख। मोत स त अऽधक कर ल ख॥
आठ जथलभ स तोष। सपन नह द खइ परदोष॥2॥
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भथ:- सत भऽ ह जगत भर को समभ स म झम ओतोत
(रममय) द खन और स त को म झस भा अऽधक करक मनन। आठ
भऽ ह जो कि ऽमल जए , उसा म स तोष करन और म भा परए दोष को न द खन॥2॥
* नम सरल सब सन िलहान। मम भरोस ऽहय हरष न दान॥
न म एकउ ऽजह क होई। नर प ष सचरचर कोई॥3॥
भथ:-
न भऽ ह सरलत और सबक सथ कपटरऽहत बत करन , दय म म र भरोस रखन और कसा भा अथ म हष और
द य (ऽषद) क न होन। इन न म स ऽजनक एक भा होता ह, ह
ा - प ष , ज - च तन कोई भा हो -॥3॥
* सोइ अऽतसय ऽय भऽमऽन मोर। सकल कर भगऽत द तोर॥
जोऽग ब द द रलभ गऽत जोई। तो क आज स लभ भइ सोई॥4॥
भथ:- ह भऽमऽन! म झ हा अय त ऽय ह। फर त झ म तो सभा
कर क भऽ द ह। अतए जो गऽत योऽगय को भा द लभ ह, हा
आज त र ऽलए स लभ हो गई ह॥4॥
* मम दरसन फल परम अनी प। जा प ऽनज सहज सप॥
जनकस त कइ स ऽध भऽमना। जनऽह क करबरगऽमना॥5॥
भथ:- म र दश न क परम अन पम फल यह ह क जा अपन सहज
प को हो जत ह। ह भऽमऽन! अब यद ती गजगऽमना
जनक क कि खबर जनता हो तो बत॥5॥
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* प प सरऽह ज रघ रई। तह होइऽह स ा ऽमतई॥
सो सब कऽहऽह द रघ बार। जनत पी ि मऽतधार॥6॥
भथ:- (शबरा न कह -) ह रघ नथजा! आप प प नमक सरोर को
जइए। ह आपक स ा स ऽमत होगा। ह द ! ह रघ ार! ह सब
हल बत ग। ह धारब ऽ! आप सब जनत ए भा म झस पी ि त
ह!॥6॥
* बर बर भ पद ऽस नई। म सऽहत सब कथ स नई॥7॥
भथ:- बर - बर भ क चरण म ऽसर नकर , म सऽहत उसन सब
कथ स नई॥7॥
ि द - :
* कऽह कथ सकल ऽबलोक हर म ख दय पद प कज धर।
तऽज जोग पक द ह पर पद लान भइ जह नह फर॥
नर ऽबऽबध कम अधम ब मत सोकद सब यग।
ऽबस कर कह दस त लसा रम पद अन रग॥
भथ:-
सब कथ कहकर भगन क म ख क दश न कर , उनक चरणकमल को धरण कर ऽलय और योगऽ स द ह को यग कर
(जलकर) ह उस द लभ हरपद म लान हो गई , जह स लौटन नह
होत। त लसादसजा कहत ह क अन क कर क कम, अधम और बत
स मत - य सब शोकद ह, ह मन य! इनक यग कर दो और ऽस
करक ा रमजा क चरण म म करो।
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दोह :
* जऽत हान अघ जम मऽह म कऽह अऽस नर।
महम द मन स ख चहऽस ऐस भ ऽह ऽबसर॥36॥
भथ:- जो नाच जऽत क और पप क जमभी ऽम था , ऐसा ा को
भा ऽजहन म कर दय , अर महद ब ऽ मन! ती ऐस भ को भी लकर
स ख चहत ह?॥36॥
चौपई :
* चल रम यग बन सोऊ। अत ऽलत बल नर क हर दोऊ॥
ऽबरहा इ भ करत ऽबषद। कहत कथ अन क स बद॥1॥
भथ:- ा रमच जा न उस न को भा िो दय और आग चल।
दोन भई अत लनाय बलन और मन य म सह क समन ह। भ
ऽरहा क तरह ऽषद करत ए अन क कथए और स द कहत ह-
॥1॥
* लऽिमन द ख ऽबऽपन कइ सोभ। द खत क ऽह कर मन नह िोभ॥
नर सऽहत सब खग म ग ब द। मन मोर करत हह नद॥2॥
भथ:- ह लमण! जर न क शोभ तो द खो। इस द खकर कसक
मन ध नह होग ? पा और पश क समी ह सभा ा सऽहत ह।
मनो म रा नद कर रह ह॥3॥
* हमऽह द ऽख म ग ऽनकर परह। म ग कहह त ह कह भय नह॥
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त ह आन द कर म ग जए। कचन मग खोजन ए आए॥3॥
भथ:- हम द खकर (जब डर क मर) ऽहरन क झ ड भगन लगत ह,
तब ऽहरऽनय उनस कहता ह- त मको भय नह ह। त म तो सधरण
ऽहरन स प द ए हो , अत त म आन द करो। य तो सोन क ऽहरन
खोजन आए ह॥3॥
* स ग लइ करन कर ल ह। मन मोऽह ऽसखन द ह॥
स स चऽतत प ऽन प ऽन द ऽखअ। भी प स स ऽत बस नह ल ऽखअ॥4॥
भथ:- हथा हऽथऽनय को सथ लग ल त ह। मनो म झ ऽश द त
ह (क ा को कभा अकला नह िोन चऽहए)। भलाभ ऽत चतन
कए ए श को भा बर - बर द खत रहन चऽहए। अिा तरह स
कए ए भा रज को श म नह समझन चऽहए॥4॥
* रऽखअ नर जदऽप उर मह। ज बता स न पऽत बस नह॥
द ख तत बस त स ह। ऽय हान मोऽह भय उपज॥5॥
भथ:- और ा को चह दय म हा य न रख जए , परत य ता
ा , श और रज कसा क श म नह रहत। ह तत! इस स दर
स त को तो द खो। ऽय क ऽबन म झको यह भय उप कर रह
ह॥5॥
दोह :
* ऽबरह ऽबकल बलहान मोऽह जन ऽस ऽनपट अकल।
सऽहत ऽबऽपन मध कर खग मदन कह बगम ल॥37 क॥
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भथ:- म झ ऽरह स कल , बलहान और ऽबलकल अकल जनकर
कमद न न , भर और पऽय को सथ ल कर म झ पर ध बोल
दय॥37 (क)॥
* द ऽख गयउ त सऽहत तस दी त स ऽन बत।
ड र कह उ मन तब कटक हटक मनजत॥37 ख॥
भथ:- परत जब उसक दी त यह द ख गय क म भई क सथ
(अकल नह ), तब उसक बत स नकर कमद न मनो स न को
रोककर ड र डल दय ह॥37 (ख)॥
चौपई :
* ऽबटप ऽबसल लत अझना। ऽबऽबध ऽबतन दए जन तना॥
कदऽल तल बर ध ज पतक। द ऽख न मोह धार मन जक॥1॥
भथ:- ऽशल म लतए उलझा ई ऐसा मली म होता ह मनो
नन कर क त बी तन दए गए ह। कल और त स दर ज पतक
क समन ह। इह द खकर हा नह मोऽहत होत , ऽजसक मन धार
ह॥1॥
* ऽबऽबध भ ऽत फील त नन। जन बन त बन ब बन॥
क क स दर ऽबटप स हए। जन भट ऽबलग ऽबलग होइ िए॥2॥
भथ:- अन क नन कर स फील ए ह। मनो अलग -अलग
बन (द) धरण कए ए बत स तारदज ह। कह - कह स दर
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शोभ द रह ह। मनो यो लोग अलग -अलग होकर िना डल
ह॥2॥
* कीजत ऽपक मन गज मत। ढक महोख ऊट ऽबसरत॥
मोर चकोर कर बर बजा। परत मरल सब तजा॥3॥
भथ:- कोयल कीज रहा ह, हा मनो मतल हथा (ऽचघ रह)
ह। ढक और महोख पा मनो ऊट और खर ह। मोर , चकोर , तोत,
कबी तर और ह स मनो सब स दर तजा (अरबा) घो ह॥3॥
* ताऽतर लक पदचर जी थ। बरऽन न जइ मनोज बथ॥
रथ ऽगर ऽसल द दभ झरन। चतक ब दा ग न गन बरन॥4॥
भथ:- तातर और बटर प दल ऽसपऽहय क झ ड ह। कमद क स न
क ण न नह हो सकत। प त क ऽशलए रथ और जल क झरन नग ह। पपाह भट ह, जो ग णसमी ह (ऽदला) क ण न करत
ह॥4॥
* मध कर म खर भ र सहनई। ऽऽबध बयर बसाठ आई॥
चत रऽगना स न स ग लाह। ऽबचरत सबऽह च नौता दाह॥5॥
भथ:-भर क ग जर भ रा और शहनई ह। शातल , म द और
स ग ऽधत ह मनो दी त क कम ल कर आई ह। इस कर चत रऽगणा
स न सथ ऽलए कमद मनो सबको च नौता द त आ ऽचर रह
ह॥5॥
* लऽिमन द खत कम अनाक। रहह धार ऽतह क जग लाक॥
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ऐऽह क एक परम बल नरा। त ऽह त उबर सभट सोइ भरा॥6॥
भथ:- ह लमण! कमद क इस स न को द खकर जो धार बन रहत
ह, जगत म उह क (ार म) ऽत होता ह। इस कमद क एक ा
क ब भरा बल ह। उसस जो बच जए , हा यो ह॥6॥
दोह :
* तत ताऽन अऽत बल खल कम ोध अ लोभ।
म ऽन ऽबयन धम मन करह ऽनऽमष म िोभ॥38 क॥
भथ:- ह तत! कम , ोध और लोभ - य तान अय त द ह। य
ऽन क धम म ऽनय क भा मन को पलभर म ध कर द त ह॥38
(क)॥
* लोभ क इि दभ बल कम क क ल नर।
ोध क पष बचन बल म ऽनबर कहह ऽबचर॥38 ख॥
भथ:- लोभ को इि और दभ क बल ह, कम को कल ा क
बल ह और ोध को कठोर चन क बल ह, म ऽन ऽचर कर
ऐस कहत ह॥38 (ख)॥
चौपई :
* ग नतात सचरचर मा। रम उम सब अ तरजमा॥
कऽमह क दानत द खई। धारह क मन ऽबरऽत द ई॥1॥
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भथ:- (ऽशजा कहत ह-) ह प ता! ा रमच जा ग णतात (तान
ग ण स पर), चरचर जगत क मा और सबक अ तर क जनन ल
ह। (उपय बत कहकर) उहन कमा लोग क दानत (ब बसा) दखलई ह और धार (ऽ क) प ष क मन म रय को द कय
ह॥1॥
* ोध मनोज लोभ मद मय। िीटह सकल रम क दय॥
सो नर इजल नह भी ल। ज पर होइ सो नट अन कील॥2॥
भथ:- ोध , कम , लोभ , मद और मय - य सभा ा रमजा क
दय स िीट जत ह। ह नट (नटरज भगन) ऽजस पर स होत ह,
ह मन य इजल (मय) म नह भी लत॥2॥
* उम कहउ म अनभ अपन। सत हर भजन जगत सब सपन॥
प ऽन भ गए सरोबर तार। प प नम सभग गभार॥3॥
भथ:- ह उम! म त ह अपन अनभ कहत - हर क भजन हा
सय ह, यह सर जगत तो (क भ ऽत झी ठ) ह। फर भ ा
रमजा प प नमक स दर और गहर सरोर क तार पर गए॥3॥
* स त दय जस ऽनम ल बरा। बध घट मनोहर चरा॥
जह तह ऽपअह ऽबऽबध म ग नार। जन उदर ग ह जचक भार॥4॥
भथ:- उसक जल स त क दय ज स ऽनम ल ह। मन को हरन ल
स दर चर घट बध ए ह। भ ऽत -भ ऽत क पश जह- तह जल पा रह ह।
मनो उदर दना प ष क घर यचक क भा लगा हो!॥4॥
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दोह :
* प रइऽन सघन ओट जल ब ऽग न पइअ मम।
मिय न द ऽखऐ ज स ऽनग न ॥39 क॥
भथ:- घना प रइन (कमल क प) क आ म जल क जदा पत
नह ऽमलत। ज स मय स ढक रहन क करण ऽनग ण नह
दखत॥39 (क)॥
* स खा मान सब एकरस अऽत अगध जल मह। जथ धम सालह क दन स ख स ज त जह॥39 ख॥
भथ:- उस सरोर क अय त अथह जल म सब िमऽलय सद
एकरस (एक समन) स खा रहता ह। ज स धमशाल प ष क सब दन
स खपी क बातत ह॥39 (ख)॥
चौपई :
* ऽबकस सरऽसज नन रग। मध र म खर ग जत ब भ ग॥
बोलत जलक क ट कलह स। भ ऽबलोक जन करत स स॥1॥
भथ:- उसम रग - ऽबरग कमल ऽखल ए ह। बत स भर मध र र
स ग जर कर रह ह। जल क म ग और रजह स बोल रह ह, मनो भ को
द खकर उनक श स कर रह ह॥1॥
* चबक बक खग सम दई। द खत बनइ बरऽन नह जई॥
स दर खग गन ऽगर स हई। जत पऽथक जन ल त बोलई॥2॥
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भथ:- चक , बग ल आद पऽय क सम दय द खत हा बनत ह,
उनक ण न नह कय ज सकत। स दर पऽय क बोला बा
स हना लगता ह, मनो (रत म) जत ए पऽथक को ब लए ल ता हो॥2॥
* तल समाप म ऽनह ग ह िए। च दऽस कनन ऽबटप स हए॥
च पक बकल कद ब तमल। पटल पनस परस रसल॥3॥
भथ:- उस झाल (प प सरोर) क समाप म ऽनय न आम बन रख ह। उसक चर ओर न क स दर ह। चप , मौलऽसरा , कदब ,
तमल , पटल , कटहल , ढक और आम आद -॥3॥
* न पल कस ऽमत त नन। च चराक पटला कर गन॥
सातल म द स गध सभऊ। स तत बहइ मनोहर बऊ॥4॥
भथ:- बत कर क नए - नए प और (स ग ऽधत) प प स य
ह, ( ऽजन पर) भर क समी ह ग जर कर रह ह। भ स हा शातल ,
म द , स ग ऽधत ए मन को हरन ला ह सद बहता रहता ह॥4॥
* क क कोकल ध ऽन करह। स ऽन र सरस यन म ऽन टरह॥5॥
भथ:- कोयल ' क ' ' क ' क शद कर रहा ह। उनक रसाला बोला
स नकर म ऽनय क भा यन टीट जत ह॥5॥
दोह :
* फल भरन नऽम ऽबटप सब रह भी ऽम ऽनअरइ।
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पर उपकरा प ष ऽजऽम नह स स पऽत पइ॥40॥
भथ:- फल क बोझ स झ ककर सर पा क पस आ लग ह,
ज स परोपकरा प ष बा सपऽ पकर (ऽनय स) झ क जत ह॥40॥
चौपई :
* द ऽख रम अऽत ऽचर तल। मन कह परम सख प॥
द खा स दर तबर िय। ब ठ अन ज सऽहत रघ रय॥1॥
भथ:- ा रमजा न अय त स दर तलब द खकर न कय और
परम स ख पय। एक स दर उम क िय द खकर ा रघ नथजा
ि ोट भई लमणजा सऽहत ब ठ गए॥1॥
* तह प ऽन सकल द म ऽन आए। अत ऽत कर ऽनज धम ऽसधए॥
ब ठ परम स कपल। कहत अन ज सन कथ रसल॥2॥
भथ:- फर ह सब द त और म ऽन आए और त ऽत करक अपन-
अपन धम को चल गए। कपल ा रमजा परम स ब ठ ए िोट
भई लमणजा स रसाला कथए कह रह ह॥2॥
नरद - रम स द
* ऽबरह त भग तऽह द खा। नरद मन भ सोच ऽबस षा॥
मोर सप कर अ गाकर। सहत रम नन द ख भर॥3॥
भथ:- भगन को ऽरहय द खकर नरदजा क मन म ऽश ष प
स सोच आ। (उहन ऽचर कय क) म र हा शप को ाकर करक
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ा रमजा नन कर क द ख क भर सह रह ह (द ख उठ रह
ह)॥3॥
* ऐस भ ऽह ऽबलोकउ जई। प ऽन न बऽनऽह अस अस आई॥
यह ऽबचर नरद कर बान। गए जह भ स ख आसान॥4॥
भथ:- ऐस (भ सल) भ को जकर द खी । फर ऐस असर न
बन आ ग। यह ऽचर कर नरदजा हथ म ाण ऽलए ए ह गए ,
जह भ स खपी क ब ठ ए थ॥4॥
*गत रम चरत म द बना। म सऽहत ब भ ऽत बखना॥
करत द डत ऽलए उठई। रख बत बर उर लई॥5॥
भथ:- कोमल णा स म क सथ बत कर स बखन - बखन
कर रमचरत क गन कर (त ए चल आ) रह थ। दडत करत
द खकर ा रमच जा न नरदजा को उठ ऽलय और बत द र तक
दय स लगए रख॥5॥
* गत पी ऽि ऽनकट ब ठर। लऽिमन सदर चरन पखर॥6॥
भथ:- फर गत (कशल) पी ि कर पस ब ठ ऽलय। लमणजा न
आदर क सथ उनक चरण धोए॥6॥
दोह :
* नन ऽबऽध ऽबनता कर भ स ऽजय जऽन।
नरद बोल बचन तब जोर सरोह पऽन॥41॥
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भथ:- बत कर स ऽनता करक और भ को मन म स
जनकर तब नरदजा कमल क समन हथ को जोकर चन बोल-
॥41॥
चौपई :
* स न उदर सहज रघ नयक। स दर अगम स गम बर दयक॥
द एक बर मगउ मा। जऽप जनत अ तरजमा॥1॥
भथ:- ह भ स हा उदर ा रघ नथजा! स ऽनए। आप स दर अगम और स गम र क द न ल ह। ह मा! म एक र म गत ,
ह म झ दाऽजए , यऽप आप अ तय मा होन क नत सब जनत हा
ह॥1॥
* जन म ऽन त ह मोर सभऊ। जन सन कब क करऊ द रऊ॥
कन बत अऽस ऽय मोऽह लगा। जो म ऽनबर न सक त ह मगा॥2॥
भथ:- (ा रमजा न कह -) ह म ऽन! त म म र भ जनत हा हो।
य म अपन भ स कभा कि ऽिप करत ? म झ ऐसा कौन सा
त ऽय लगता ह, ऽजस ह म ऽन ! त म नह म ग सकत?॥2॥
* जन क िक अद य नह मोर। अस ऽबस तज जऽन भोर॥
तब नरद बोल हरषई। अस बर मगउ करउ ढठई॥3॥
भथ:- म झ भ क ऽलए कि भा अद य नह ह। ऐस ऽस भी लकर
भा मत िोो। तब नरदजा हषत होकर बोल- म ऐस र म गत ,
यह ध त करत -॥3॥
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* जऽप भ क नम अन क। ऽत कह अऽधक एक त एक॥
रम सकल नमह त अऽधक। होउ नथ अघ खग गन बऽधक॥4॥
भथ:- यऽप भ क अन क नम ह और द कहत ह क सब एक
स एक बकर ह, तो भा ह नथ! रमनम सब नम स बकर हो और
पप पा पऽय क समी ह क ऽलए यह ऽधक क समन हो॥4॥
दोह :
* रक रजना भगऽत त रम नम सोइ सोम।
अपर नम उडगन ऽबमल बस भगत उर योम॥42 क॥
भथ:-आपक भऽ पी णम क रऽ ह, उसम ' रम ' नम यहा पी ण
च म होकर और अय सब नम तरगण होकर भ क दय पा
ऽनम ल आकश म ऽनस कर॥42 (क)॥
* एमत म ऽन सन कह उ कपसध रघ नथ।
तब नरद मन हरष अऽत भ पद नयउ मथ॥42 ख॥
भथ:- कप सगर ा रघ नथजा न म ऽन स ' एमत' ( ऐस हा हो)
कह। तब नरदजा न मन म अय त हषत होकर भ क चरण म मतक नय॥42 (ख)॥
चौपई :
* अऽत स रघ नथऽह जना। प ऽन नरद बोल म द बना॥
रम जबह रउ ऽनज मय मोह मोऽह स न रघ रय॥1॥
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भथ:- ा रघ नथजा को अय त स जनकर नरदजा फर कोमल
णा बोल- ह रमजा! ह रघ नथजा! स ऽनए , जब आपन अपना मय
को रत करक म झ मोऽहत कय थ ,॥1॥
* तब ऽबबह म चहउ कह। भ कऽह करन कर न दाह॥
स न म ऽन तोऽह कहउ सहरोस। भजह ज मोऽह तऽज सकल भरोस॥2॥
भथ:- तब म ऽह करन चहत थ। ह भ! आपन म झ कस
करण ऽह नह करन दय ? ( भ बोल-) ह म ऽन! स नो , म त ह हष
क सथ कहत क जो समत आश -भरोस िोकर क ल म झको हा
भजत ह,॥2॥
* करउ सद ऽतह क रखरा। ऽजऽम बलक रखइ महतरा॥
गह ऽसस बि अनल अऽह धई। तह रखइ जनना अरगई॥3॥
भथ:- म सद उनक स हा रखला करत , ज स मत बलक
क र करता ह। िोट ब जब दौकर आग और स प को पकन
जत ह, तो ह मत उस (अपन हथ) अलग करक बच ल ता ह॥3॥
* ौ भए त ऽह स त पर मत। ाऽत करइ नह पऽिऽल बत॥
मोर ौ तनय सम यना। बलक स त सम दस अमना॥4॥
भथ:- सयन हो जन पर उस प पर मत म तो करता ह, परत
ऽिपला बत नह रहता (अथ त मत परयण ऽशश क तरह फर
उसको बचन क चत नह करता , यक ह मत पर ऽनभ र न कर
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अपना र आप करन लगत ह)। ना म र ौ (सयन) प क समन
ह और (त हर ज स) अपन बल क मन न करन ल स क म र ऽशश
प क समन ह॥4॥
* जनऽह मोर बल ऽनज बल तहा। द कह कम ोध रप आहा॥
यह ऽबचर प ऽडत मोऽह भजह। पए यन भगऽत नह तजह॥5॥
भथ:- म र स क को कल म र हा बल रहत ह और उस (ना को)
अपन बल होत ह। पर कम - ोध पा श तो दोन क ऽलए ह।(भ
क श को मरन क ऽजम रा म झ पर रहता ह, यक ह म र
परयण होकर म र हा बल मनत ह, परत अपन बल को मनन ल
ना क श क नश करन क ऽजम रा म झ पर नह ह।) ऐस
ऽचर कर प ऽडतजन (ब ऽमन लोग) म झको हा भजत ह। न
होन पर भा भऽ को नह िोत॥5॥
दोह :
* कम ोध लोभद मद बल मोह क धर।
ऽतह मह अऽत दन द खद मयपा नर॥43॥
भथ:- कम , ोध , लोभ और मद आद मोह (अन) क बल स न ह। इनम मयऽपणा (मय क सत मी त) ा तो अय त दण
द ख द न ला ह॥43॥
चौपई :
* स न म ऽन कह प रन ऽत स त। मोह ऽबऽपन क नर बस त॥
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जप तप न म जलय झरा। होइ ाषम सोषइ सब नरा॥1
भथ:- ह म ऽन! स नो , प रण , द और स त कहत ह क मोह पा न
(को ऽकऽसत करन) क ऽलए ा स त ऋत क समन ह। जप , तप ,
ऽनयम पा स पी ण जल क थन को ा ाम प होकर सथ सोख
ल ता ह॥1॥
कम ोध मद मसर भ क। इहऽह हरषद बरष एक॥
द ब सन क म द सम दई। ऽतह कह सरद सद स खदई॥2॥
भथ:- कम , ोध , मद और मसर (डह) आद म ढक ह। इनको ष
ऋत होकर हष दन करन ला एकम यहा (ा) ह। ब रा सनए
क म द क समी ह ह। उनको सद स ख द न ला यह शरद ऋत ह॥2॥
* धम सकल सरसाह ब द। होइ ऽहम ऽतहऽह दहइ स ख म द॥
प ऽन ममत जस बतई। पल हइ नर ऽसऽसर रत पई॥3॥
भथ:- समत धम कमल क झ ड ह। यह नाच (ऽषयजय) स ख द न
ला ा ऽहमऋत होकर उह जल डलता ह। फर ममतपा जस
क समी ह (न) ा पा ऽशऽशर ऋत को पकर हर -भर हो जत
ह॥3॥
* पप उली क ऽनकर स खकरा। नर ऽनऽब रजना अ ऽधयरा॥
ब ऽध बल साल सय सब मान। बनसा सम ऽय कहह बान॥4॥
भथ:- पप पा उल क समी ह क ऽलए यह ा स ख द न ला
घोर अधकरमया रऽ ह। ब ऽ , बल , शाल और सय - य सब िमऽलय
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ह और उन (को फसकर न करन) क ऽलए ा ब सा क समन ह, चत र
प ष ऐस कहत ह॥4॥
दोह :
* अग न मी ल सी लद मद सब द ख खऽन।
तत कह ऽनरन म ऽन म यह ऽजय जऽन॥44॥
भथ:- य ता ा अग ण क मी ल , पा द न ला और सब द ख
क खन ह, इसऽलए ह म ऽन! म न जा म ऐस जनकर त मको ऽह
करन स रोक थ॥44॥
चौपई :
* स ऽन रघ पऽत क बचन स हए। म ऽन तन प लक नयन भर आए॥
कह कन भ क अऽस राता। स क पर ममत अ ाता॥1॥
भथ:- ा रघ नथजा क स दर चन स नकर म ऽन क शरार प लकत
हो गय और न ( म क जल स) भर आए। ( मन हा मन कहन
लग-) कहो तो कस भ क ऐसा राता ह, ऽजसक स क पर इतन
मम और म हो॥1॥
स त क लण और सस ग भजन क ऽलए रण
* ज न भजह अस भ म यगा। यन रक नर म द अभगा॥
प ऽन सदर बोल म ऽन नरद। स न रम ऽबयन ऽबसरद॥2॥
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भथ:- जो मन य म को यगकर ऐस भ को नह भजत, न
क कगल , द ब ऽ और अभग ह। फर नरद म ऽन आदर सऽहत बोल- ह
ऽन - ऽशरद ा रमजा! स ऽनए -॥2॥
* स तह क लिन रघ बार। कह नथ भ भ जन भार॥
स न म ऽन स तह क ग न कहऊ। ऽजह त म उह क बस रहऊ॥3॥
भथ:- ह रघ ार! ह भ -भय (जम - मरण क भय) क नश करन
ल म र नथ! अब कप कर स त क लण कऽहए! (ा रमजा न कह -) ह म ऽन! स नो , म स त क ग ण को कहत , ऽजनक करण म
उनक श म रहत ॥3॥
* षट ऽबकर ऽजत अनघ अकम। अचल अकचन स ऽच स खधम॥
अऽमत बोध अनाह ऽमतभोगा। सयसर कऽब कोऽबद जोगा॥4॥
भथ:- स त (कम , ोध , लोभ , मोह , मद और मसर - इन) िह
ऽकर (दोष) को जात ए , पपरऽहत , कमनरऽहत , ऽनल
(ऽथरब ऽ), अकचन (स यगा), बहर -भातर स पऽ , स ख क
धम , असाम नन , इिरऽहत , ऽमतहरा , सयऽन , कऽ , ऽन , योगा ,॥4॥
* सधन मनद मदहान। धार धम गऽत परम बान॥5॥
भथ:- सधन , दी सर को मन द न ल, अऽभमनरऽहत , ध य न ,
धम क न और आचरण म अय त ऽनप ण ,॥5॥
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दोह :
* ग नगर स सर द ख रऽहत ऽबगत स द ह।
तऽज मम चरन सरोज ऽय ऽतह क द ह न ग ह॥45॥
भथ:- ग ण क घर , स सर क द ख स रऽहत और स द ह स सथ
ि ीट ए होत ह। म र चरण कमल को िोकर उनको न द ह हा ऽय
होता ह, न घर हा॥45॥
चौपई :
* ऽनज ग न न स नत सकचह। पर ग न स नत अऽधक हरषह॥
सम सातल नह यगह नाता। सरल सभउ सबऽह सन ाऽत॥1॥
भथ:- कन स अपन ग ण स नन म सकचत ह, दी सर क ग ण स नन स
ऽश ष हषत होत ह। सम और शातल ह, यय क कभा यग नह
करत। सरल भ होत ह और सभा स म रखत ह॥1॥
* जप तप त दम स जम न म। ग गोबद ऽब पद म॥
िम मया दय। म दत मम पद ाऽत अमय॥2॥
भथ:- जप , तप , वत , दम , स यम और ऽनयम म रत रहत ह और
ग , गोद तथ ण क चरण म म रखत ह। उनम , म ,
म ा , दय , म दत (सत) और म र चरण म ऽनकपट म होत
ह॥2॥
* ऽबरऽत ऽबब क ऽबनय ऽबयन। बोध जथरथ ब द प रन॥
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दभ मन मद करह न कऊ। भी ऽल न द ह कमरग पऊ॥3॥
भथ:- तथ रय , ऽ क , ऽनय , ऽन (परमम क त क
न) और द - प रण क यथथ न रहत ह। दभ , अऽभमन और
मद कभा नह करत और भी लकर भा कमग पर प र नह रखत॥3॥
* गह स नह सद मम लाल। ह त रऽहत परऽहत रत साल॥
म ऽन स न सध ह क ग न ज त। कऽह न सकह सदर ऽत त त॥4॥
भथ:- सद म रा लाल को गत- स नत ह और ऽबन हा करण
दी सर क ऽहत म लग रहन ल होत ह। ह म ऽन! स नो , स त क ऽजतन
ग ण ह, उनको सरता और द भा नह कह सकत॥4॥
ि द :
* कऽह सक न सरद स ष नरद स नत पद प कज गह।
अस दानबध कपल अपन भगत ग न ऽनज म ख कह॥
ऽस नइ बरह बर चरनऽह प र नरद गए।
त धय त लसादस आस ऽबहइ ज हर रग रए॥
भथ:- 'श ष और शरद भा नह कह सकत' यह स नत हा नरदजा न
ा रमजा क चरणकमल पक ऽलए। दानबध कपल भ न इस कर
अपन ाम ख स अपन भ क ग ण कह। भगन क चरण म बर - बर
ऽसर नकर नरदजा लोक को चल गए। त लसादसजा कहत ह क
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प ष धय ह, जो सब आश िोकर क ल ा हर क रग म रग गए
ह।
दोह :
* रनर जस पन गह स नह ज लोग।
रम भगऽत द पह ऽबन ऽबरग जप जोग॥46 क॥
भथ:- जो लोग रण क श ा रमजा क पऽ यश ग ग और
स न ग, रय , जप और योग क ऽबन हा ा रमजा क द भऽ
प ग॥46 (क)॥
* दाप ऽसख सम ज बऽत तन मन जऽन होऽस पत ग।
भजऽह रम तऽज कम मद करऽह सद सतस ग॥46 ख॥
भथ:- य ता ऽय क शरार दापक क लौ क समन ह, ह मन! ती
उसक पतग न बन। कम और मद को िोकर ा रमच जा क
भजन कर और सद सस ग कर॥46 (ख)॥