Uday Prakash - Tepchu
17
१ उदय काश टेपच ू यह ि जो कु छ लिख हुआ है, वह कहनी नह है। कभी-कभी सचई कहनी से भी यद हैरत अ ि गेज होती है। टेपचू के बरे म सब कु छ जन िे ने के बद आपको भी ऐस ही िगेग। टेपचू को म बहुत करीब से जनत हि । हमर ग ि व मड़र सोन नदी के लकनरे एक–दो फिग के फसिे पर बस हुआ है। द ू री शयद कु छ और कम हो, यलक ग ि व की औरत सुबह खेत म जने से पहिे और शम को वह ि से िौटने के बद सोन नदी से ही घरेिू कम–कज के लिए पनी भरती है। ये औरत कु छ ऐसी औरत ह, लजह मने थकते हुए कभी नह देख है। वे िगतर कम करती जती है। ग ि व के िोग सोन नदी म ही डुबलकय ि िग-िगकर नहते ह। डुबलकय ि िग पने ियक पनी गहर करने के लिए नदी के भीतर कु इय ि खोदनी पड़ती है। नदी की बहती हुई धर के नीचे बिू को अ ि जुलिय से सरक लदय जए तो कु इय ि बन जती है। गमी के लदन म सोन नदी म पनी इतन कम होत है लक लबन कु इय ि बनए आदमी क धड़ ही नह भगत। यही सोन नदी लबहर पहुि चते–पहुि चते लकतनी बड़ी हो गई है, इसक अनुमन आप हमरे ग ि व के घट पर खड़े होकर नह िग सकते। हमरे ग ि व म दस-यरह सि पहिे अबी नम क एक मुसिमन रहत थ। ग ि व के बहर जह ि चमर की बती है, उसी से कु छ हटकर तीन-चर घर मुसिमन के थे। मुसिमन मुलगिय ि , बकररय ि पिते थे। िोग उह लचकव य कटुआ कहते थे। वे बकरे -बकररय के गोत क ध ि ध भी करते थे। थोड़ी बहुत जमीन भी उनके पस होती थी। अबी आवर और फकड़ लकम क आदमी थ। उसने दो–दो औरत के सथ शदी कर रखी थी। बद म एक औरत जो यद खूबसूरत थी, कबे के दजी के घर जकर बैठ गई। अबी ने ग़म नह लकय। प ि चयत ने दी को लजतनी रकम भरने को कह, उसने भर दी। अबी ने उन ऱपय से कु छ लदन ऐश लकय और लफर एक हरमोलनयम खरीद िय। अबी जब भी हट जत, उसी दी के घर रकत। खत–
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Short story of the famous contemporary Hindi writer Uday Prakash.
Transcript of Uday Prakash - Tepchu
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