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तताराज गया याख

महाराषट क महान‌ सत क चन हए अभगो का

हिनदी रपानतर

®

सगरहकरता-अनवादक

नारायणपरसाद जन

समपादक

शरीपाद जोशी

. १६७८

4 ससता यहितय मणडल परकाशत

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परकाशक यशपाल जन

मतरी, ससता साहितय मडल | नई दिलली ¢

9 7

दसरी बार : १९७०८

मलय : :2. 50

मदरक: सवतवा पच कड क०, दिलती-६

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` ८विवक ओर साधना" क समथ रखक

परमपजय शरी कदारनाथजी

को

सविनय

, -- नारायणपरसाद

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पकाशकीय

सतो की वाणी परतयक वयकति क लिए बडी उपयोगी होती

ह । दनिया क मायाजाल म जब आदमी अशात होकर भटकता

ह तो सतो क जीवन-चरित ओर उनक वचन उस सही रासत

क दरदान करात ह। हम हष ह कि सतो की पावन वाणी को

पाठको क किए सरभ करान म "मणडल" अपना यतकिचित योग

दता रहा ह । सत-वाणी, बदध-वाणी, महावीर-वाणी, सत- `

सधा-सार आदि इसी दिशा क परकारन ह । इसी शखला म

अव महाराषट क महान‌ सत तकाराम क चन हए विचार-रतनो `

की यह‌ मणिका पाठको क हाथो म पहच रही ह । पाठको को

सविघा क लिए पसतक की सामगरी को विभिनन वरगो म विभाजित

कर दिया गया ह ।

` हम चाहत थ कि तकाराम क म अभग भी अनवाद क साथ म दत; ठककिन उसस पसतक का आकार बहत बढ जाता ओर मलय की दषटि स पसतक सामानय सथिति क पाठको क किए दलभ हो जाती । आकार कम करन की विवडता क कारण न कवर मल अगो को ही छोडा गया ह, अपित कटी कही अमगो क अश-मातर ही दिय गए ह ।

हम विशवास ह कि पाठक इस पसतक क वचनो का पठन-

पाठन ही नही, मनन-चिनतन भी करग ओर अपन दनिकः सवाधयाय म इस पसतक का उपयोग करग ।

--मतरो

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रव

दो शबद‌ सत तकाराम उन महातमाओ म स थ, जो मल-मटको को रासता ,

दिखान क किए पदा होतह । उनकी सरल-सहानौ दिवय वाणी हर मराठ को जवान पर ह । दव-पजा या तीरथयातरा क अवसर पर किसी भी अनय सत क नाम का एसा यशगान नही होता, जसा तकाराम क नाम.का ।

समपतति को वह आघयातमिक माग की बाधा ओौर आदमी को आदमी स अलग करनवाली बाड समञञत थ । आतमानभति क बाद उनहोन

„पहला काम यह किया कि अपन कटमब क अपन हिसस- की समपतति क सार अधिकार-पतरो को नदी म बहा दिया । उसक बाद यदयपि वह जीवि- ` कोपाजन करत रह, तथापि उनहोन अपन को पणतया भगवद‌ -कषा पर छोड दिया ।

शिवाजी की भट की ह ई घन-समपतति को उनहोन टकरा दिया । वह जो उपदश दत थ उसीक अनसार आचरण भी करत थ । यह कहना जयादा सही. होगा कि उनक काय हौ उपदश का काम करत थ। व मद-माव कौ न

^ माननवा, सब जीवो को समान समञलनवाल ओर आतम-परम को विदव भरम म मिला दनवाठ अदवत की परति-मतति थ । उनक गीत उनक परशानत जीवन क अनरप थ । मराठो न राजनतिक अनशासन शिवाजी स सीखा तो आवयातमिक अनशासन तकाराम स । वह जन-साधारण म स एक थ ओर सव-साधारण की ही भाषा म बोलत थ ।

` उनक सचच जीवन की कषाकी उनक अभगो म मिलती ह । भगवत‌- सफति-यकत अवसथा म चार करोड अभग उनक मह स निकल, जिनम स सिफ साढ चार हजार मिरत ह । व कहत ह, “मक सवपन म सदगर न उपदश दकर कता किया । उसक वाद तरनत ही कविता की सफति हो आरई ।“ उनक अभग वद-मतरो क समान ह । महाराषट म व . अधयातम-मदिर क कलश". मान जात ह ।

नारायणपरसाद जन

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विषय-सची

आतम-परिचय

. नाम-महिमा

„ भकत ओर सजजन

भगवान गौर उसकी भकति

, भजन ओर कीततन

. सगण-निरगण-विचार उपदश `

, अजञानी जीव ओर दजन . भगवान‌ स पराथना , विचार-मौकतिक

२८

३५ ५२ ६१ द

६८

९१ १०३ १० ९.

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तकारामः गाथा-सार

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९;

आतम-परिचय

मः शदरवश म पदा हा, इसीलिए मञलम दमभ नही रहा 1 ह भगवान‌,

त ही अब मरा मा-बापह। वद-पठन का अधिकार मञ नहीह। म सव

“भरकार स दीन ओर जातिहीन ह ।

अचछा हआ हः भगवान, कि तन मञञ किसान बनाया, वरना म धमड

स मर गया होता । ह ईङवर, तन अचछा किया, कयोकि अव तकाराम नाचता

ह ओर तर चरण छता ह । अगर मकषम कछ विदया होती तो वड कट म

. फस जाता । तव म सतो की सवा न करता ओर मपत म मर जाता ।

अगर मर मामली किसान न होता तो मञषम दनिया भर का घमड आ

जाता ओर यमराज क मारग स चलन लगता । बडपयन क अभिमान स

आदमी नरक म चा जाता ह ।

सवय पाडरग भगवान क साथ सवपन म आकर नामदव महाराज न

मकभ जगाया । उनहोन मकषस कहा, “तम कविता करो, वयय की वात मत

करो । मन सौ करोड अभग लिखन का सकलप किया था; उनम स जितन बाकती ह, उतन तम छि डालो ।

मरा दरवय ओौर घानय लोगो क घर-घर म भरा हमा ह, ओर म अपना

पट भिकषा स भरता ह । परम‌ न मरी सब विषयो की. वासना नषट कर डाली

ह गौर मर कटमब की सवा वही करता ह ।

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१० बकाराम-गाया-सार

इस मतय-रोक म हरि क नाम को छोडकर मज ओर कछ परिय नही

लगता । मर चितत को सार परपच सघणा हो गई ह । सोना, रपया, हम मिटटी

क समान ह, माणिक पतथर की तरह ह । सार जग को भलानवाली सतयो

स मञच विरकति हो गई

जव मजञ भान भौ नही था, ससार कौ चिनता नही थी, उस समय पिता

. चल बस 1 ह परभो, तरा भरा ही राजय ह, दरसर का काम नही । सतरी मर गई

वह‌ छट गई । दव न माया चडा दी । लडक मर गए,अचछा हजा । दवन माया

स मकत कर दिया । मर दखत मा मर गई; चिनता स मकत हौ गया ।

ससार की वारता मञलस सहन नही होती ओर किसीको यह कहना कि

यह‌ मरा ह" मञच नही सहाता । दह को सख दनवाल उपचारो स मदो सख

नही होता; उनका आदर अथवा भोग विषवत‌ अथवा बनबनवत‌ रगता

ह 1 परतिषठा या गौरव मिलन पर मरा जौ बहत ही अकलाताःह 1

` म जो कछ बोलता ह, सनतो का उचछिषट ह । म जो कछ बोकता हः

दव ही मञलस बलवाता ह ! उसका गहय अरथ-माव कया ह, सो भी वही जानता `

ह॥ ६

कोई करगा कि यह तकाराम कविता करता ह; पर कविता की वाणी

मरी मपनी नही ह । मरी कविता का परकार यवति का नही ह 1 मशनस विव मभर ही.बकवाता ह । भ पामर अरथ-मद कया जान ? जो गोविनद बलवाता ह, सो बोलता ह । यहा म" नाम की कोई चीज नही ह, सबकछ सवामी की ही सतता ह । ।

परमा -विरोधी वचन मचस सहन नही होत । उनह सनकर भरा मन

बडा दःखी होता ह । इसलिए मजञ किसीकी, सगति सहन नही होती । एकात-

वास ही परिय लगता ह । दह कौ भावना ओौर वासना का सग मञञ पसद नही

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आतम-परिचयः - ` ११

आता । उसस जी ऊब गया ह । आला-मोह क जाक म पडन स दःख वढता

ह गौर दव-भाराधन म अनतर पड जाता ह ।

म .मान मौर दमम को थककर कीरतन करता ह । म दह स उदास हो

गया ह । एक दव क सिवा मञञ कोई चाह नही । अरथ को अनय सरीखा

मानकर दर रख दिया । म सव उपाधियो स अलग रहकर पवितर हआ ह ।

ससारम जो क ह, बरहमरप ह, एस अनभव का म एशवरय भोगता ह ।

भरी कामना दव को ही भोगती ह ओर दव क आगन कौ अभिलाषा रख-

कर चरणो का चमबन ऊती ह । शातिक सयोग स तरिविध ताप नषटकर

दिया। अब भद-बदधि उतपनन होना पाप ह । जिधर दखता ह, उधर एक हरि

का रप ही दीखता ह । इसकिए अपन ओर पराय का मद नषट हो गया ।

कषण-कषण साकषी होकर मः अपनी अनतरमख -वति को समारता ह ताकि

परम‌ चरणो का मञञस सबव न ट‌ट । कितनही भकतो को अनतराय आयाः

दसक भय स म जागरत हो गया ।

ह दव, म तम सरीखा शिव भी नही ह गौर अपन सरीखा जीव भी नही

ह, यानी इन दोनो भावो स अलग ह ।

` एक भगवान कीः ही पहचान ह, दसरी भावनाए नषट हौ गई । तमहार

अलावा अनय नाम-रपातमक जगत मर चिए नषट हो गया 1

म' हाय म विवक की राटी लकर दह क पीछ लग गया । जिस तरह समशान

, म मद कत ह, उसी तरह मन उस अपन बरहमतज स जला डाला ।

` हम शरी विटठल क परतापी वीर ह । कलिका भी आय तो उसका सिर

फोड दग । हम हमशा हरिनाम-कीतन करत ह । इस सख क किए हम बारमबार

जनम ठग । हम मकति की माशा नही करत ।

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१२ तकाराम-गाया-सार

, जिसस मर चितत म विदोप पड, एसी सगति म नही करगा । दिरटल

क यतिरिकत जो शबद ह, उनह म कान स नही सनगा । म जो कछ वोरता ह,

दरो क समाधान क किए बोरता ह, लकिन मरा चितत कही मी गया . इमा नही ह । जिनक चितत म भगवतपरम ह, व मजञ पराणो स अधिक परिय ह ।

, दव मौर सनत ही मर हित को जानत ह । इसचिए दसरो क बोलन की ओर भ घयान नही दता ।

दव क पास मङञ किस चीज की कमी ह ? फिर म किसी ओौर स कया साग‌ ? दसर कौ शसा न सननवाला ह न करनवाला । सिवा मगवान क , मञन करिसी चीज की इचछा नही ह । मोकष की न म आशा रखनवाला ह,

` न उसक लिए परयास ही करनवाला ह; न म ससार क आवागमन स डरता ह मरी आतमा को सिवा परमातमा क कछ नही चाहिए ।

पतिवरता अपन पति क सिवा किसीकी परशसा नही जानती 1 वह सव भाव स मन म पति का ही घयान करती ह । वस ही मरा मन अननय हौ गया ह । सिवा भगवान क मज कछ भी परिय नही ह । सरय-विकासिनी कमलिनी . चनदर क परकार स नी खिरती । कोकिला वसनत म ही गाती ह । बालक मा क आग ही नाचता ह । दसरो क बोल ऽस परिय नही लगत ।

. मन काम-करोष भगवान क समरपण करक उसक चरणो का परम धारण किया ह । मरा दहभाव चला गया । अब पीछ फिरकर‌ कौन दख ? ऋदधि- सिदधियो क सखो को लात मार चका, तो फिर इस पराकत ससार-सख को कौन मानता ह ? म विठोवा का दास ह । मन बरहमाड को गरास बनाकर रख दिया 29

परमशवर हमार दा लग गया ह, सछिए हम विनतारहित ह । हमारा मन कही नही दौडता। समी इदविया सतषट ह । कामवासना'का परणतया . तयाग करक म विठोवा का नाम लता ह ।

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आतम-परिचय १३

` दव कौ वारत मीटी गती ह, यह मरा परतयकष अनभव ह । मच सख मिला ह । उस सख का बाणी स वरणन नही हो सकता । अब महय ओर

दव म अनतर नही दीखता । इस भख को वनाय रखन का जी-जान स यतन करगा । .

परम मरी मा ह; बह मरी भख-पयास विना कह जानती ह ।

म किपीक अवगण नही दखता । न किसको पापी, पवितर या विदवान गिनता ह । सब तर ही रप ह । इसलिए सवका भावसहित वनदन करगा

ओौर सवा करगा । मञञ कवर भवित कौ अभिलाषा ह । तरी खातिर म विष को अमत मानकर पीऊगा 1

मज तर जञान की इचछा नही ह ; मल तो तरा नाम लना ही मीठा लगता

ह । ह मा विठाई, मन अपना सारा भार तञलपर डाल दिया ह । भवित या

वरागय मरी कछ भी समजञ म नही आता । म निङजज होकर तर सामन नाच

इस छोड ओर कोई भाव नही ह मर मन म ।

`. ह वषणवजनः, म तोतरी वाणी स हरिहरि" वोखता ह, इसक अलावा

म भिखारी ओौर क नही जानता । तम भगवान क दास हो; म तमहारा

उचछिषट परसाद पान को आशा करता ह ।

शरी हसचिरण कमलो क समान तरिलोक म सख नही ह, इसीकिएि मरा

मन उनम सथिर हो गया ह । उनह मन अपनी आतमा म घारण किया ह

ओर उनक नाम कौ इकहरी माला गल म डा ली ह । इसस म तरिविध तापो

स मकत होकर शाति पा गया ह । पाणडरग न मरी सव इचछाए पण कर दी;

मञञ सब सख मि गया '

भरा सपण भार विटठल न ठ लिया ह । अब अनदर-बाहर उसीका रप

भरा हमा ह ।

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१४ वकाराम-गाया-सार‌

मन सव सख विठोबा क चरणो स परापत होत ह, इसलिए ओर किसीकी

इचछा मर चितत. नही ह । एक मगवान क सिवा मर चितत म ओर कोई

नही । मङमकतितक की परवाह नही रही }

म एकानत म आननद स हरि का अननत परमरस भोग‌ 1 यह परमसख.

गहय घन ह‌ । किसीकी बरी नजर न खग जाय, इसकिए एकानत म इसका सवन

क । हमारा यहः परम बडा नाजक ह । वचनो का भार नही सह सकता

, कोई अपना, कोई पराया ! किनहीका पालन करना, किनहीस कषगडा

करना ! कोई अधिक कोई कम किस गण स होता ह ? ह शरीपति, तरी माया

मरी समजञ म नही आती ! इसकिए म शपथपरवक कहता ह कि म तरा ही

चिनतन करता ह ।

सारी दनिया हमको सताती ह । इसस मन म शका उठती ह किकया

नारायण मर गया ? अगर हम रोगो. स डरन ग तो कया.उसस ईरवर को

„ शम नही मायगी ?

सनतो न अपन चरण मर चितत म रख दिय ह । अव मकञ काल नही बाधि सकता । मरी सारी विषमता शीतर हो गई । अब अनदर-बाहर एक ईहवर ही

ह, इसकए मन भयरहित हो गया ह । भय तो अब सवपन म भी नही लगता ।

हम विलबा क लाइ ह, इसकए काल क भी काल ह । अव सव जगह हमारा शासन ह । अव एसी किसकी वखरी वाणी ह, जो हमार सामन बोः

सक ? अबर हमार हाथ म हरिनाम का तीकषण बाण ह ।

म' खाता-पीता, कता-दता ह, परनत सारा `जमा-खच करता ह तर ही नाम परः1 अब सारा कञञट खतम हो गया 1 अपना सारा मार तर सिर पर डालकर म निरिचनत हो गया ह ।

` हमार लिए सवःदिशा ओौर सारा काल शम हो गया ह । जो गम थाः

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आतम-परिचय ~ १५.

. वह‌ मगल का भी मगल हो गया ह । सख-दःख स विपरीत नही रहा । अव आघात भी हितफल दता ह । अव सार जीव हमार किए अचछ हो गए ह ।

सचित ही भोग; आग किसीका न ल । आतमसवरप म वढा रह, किसी- की चाकरी न कर । आजतक विषय-काम क हाय पडा रहा, कभी विशराति न पाई । अव पराधीनता समापत हो गई । अब स म अपनी सतता चकाऊ। `

जो सखराशि बकरणठ म भी नही मिलती, व सव सख-एरवय मञञम

निरनतर मिवास करत ह ।

. मङस परम न जसा कछ बलवाया, वसाम बोला, वरना मरी जाति मौर

कर क बार म तो आप जानत हीः ह । ह सनत मा-बाप, मञच दीन पर करोधः

न करक मञच मरी वातो क किए कषमा करो । मर भावी अपराघो को मन म

, न लाकर मञच अपन चरणो क निकट जगह दो ।

म सनतो क घर‌ का दास बनकर उनक दवार-आगन म खोटगा, कयोकि `

उनकी चरण-रज क लगन स मर बयारीस कलो का उदधार होगा ।

दषट की सगति न हो । उसस भजन म वाधा पडती ह ! ह विटठल, दषट , लोग तरा निषध करत ह, मजञ यह बिलकल सहन नही होता । म अकला किस- किस स वाद-विवाद क ? तर गण गाड या इन दषटो कौ खवर ल‌ १: `

जिस पद भ राम का नाम नही ह, उस सनन म मञञ कषट होता ह । ` तरा कहलाकर अब दसर का कहलान म मञच लजजा आती ह । मल सव-

. भाव सएक त ही परिय ह।

मञञ सनत-समागम ओर भगवान का. नाम ही परिय ह । मोकष की इचछा यहा किसको ह ? म तो भगवान की सवा ही मागता ह 1

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१६ तकाराम-गाथा-सार

मन अपना सव भार भगदान पाडसग पर छोड दिया ह । वह मरा सख

टख दखकर जिसम अतिहित दखत ह, करत ह

म अपन चितत को मोडकर धीर-धीर एक हित-माग पर खाता ह, परनत

पडित दोष निकालत ह । इसस शका क आघात पहचत ह । म ससार स उरता

ह, एक भाव स भगवान क निकट आना चाहता ह‌ ।

अपनी दहतक की हमन उपकषा कर दी ह 1 अव कहा जाकर किसको हित

की वात सनाऊ ? अपना-अपना ससार चान म कौन दकष नही ह 7 हमन

सासारिक विचारो का वमन कर दिया ह । जव म अपनी जानतक कीलालसा

नही रखता, तो गौरो कौ सभाङ कस कर ! जिस विषय म मञञ रस नही

रहा, उसम दसर की परसननता क लिए कयो छिथड ए

` इसकी मज सपषट परतीति होगरई ह कि तारनवाला ओर मारनवाला

तहीह।

भरा सवरप मर हाय मा गया । अव सबकछ अचछा ह । अव दत किस-

किए ? वह‌ तो अनदर की गनदगी ह 1

म भी भगवान ह, आप भी भगवान ह । परनत दोनो म एक-दसर क परति

मीति अधिक ह ! जो कोई भकति म दढ ह, उसक पीछ-पीछ भगवान दौडत

गगा क परवाह की तरह म सहन बोरता जाता ह ।.भागयवान इसका

सवन करग 1 यहा सब अधिकारी कहा ह ? `

परपचो कौ यह‌ खटपट कव परी होगी ? इस जाक स चटकर म कब विशराति पाऊगा ? इसक दःख स मर पराण निकलन स लगत ह । इस परपच क सवरप कौ परतीति न होन स लोग उसम सखी ह । भोगो स मरा मन शर स ही वसत ह । सङिए वह‌ कटी छिपन का. ठिकाना दढ रहाह।

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आतम-परिचय १७

सार ससार स अलग रहकर म दनिया का कौतक दखगा । ससार म

भर हओ कौ आलो म वनध छा गई ह । इव हओ म स कोई सिर ऊपर नही

निकार सकता ।

निङचय मानो कि य मर बोल नही ह । म तो भगवान का मजदर ह ।

मरी वाणी नामघोष स मधर हो गई ह ओौर उसस मरा मानस निशचिनत होकर

आननदभरित हो गया ह । अब ससार का भय नषट हौ गया ह । अव म चिदा-

काडा का हो गया ह । यह सब सनतो का परसाद ह । इसस भगवान का

आननद परापत हआ.ह ।

पतर, पतनी, बनध, आदि शरीर क सवयी, घन क खोभी, मायावौ लोग

. मितर, सतिदार, सवजनादि, नाना परकार क घातक करमो म लयडत ह ।

य मञञ डबान की घात म ह । इनस भरी रकषा करो। ह परभो, म तमहारी शरण

आयाह। ध

` जबतक हीरा नही मिला. तबतक काच की शोभा, जवतक सरयोदय

नही हमा, तभीतक दीपक कौ शोभा । उसौ तरह जबतक तकाराम स मट

नही हई ह, तभीतक अनय सतो की बात चरगी ।

मन अपना सब भार उसक सिर पर डार दिया ह, इसलिए मरी सारी

चिनता खतम हो गई ।

जिनक चितत शदध ह व मदो अतयत परिय ह ।

मर अहकार पर पतथर पड 1 दभ स परापत हए यश म आग लग।

जोःभर अनभव म आया ह, उस ही म रोगो को दता ह ।

अतर की जयोति की दीपति जो पह आचछादित थी, परकाशित हौ

गई । उसस इतना आननद हमा ह कि बरहमाड म भी वह‌ नही समाता । उसस

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१८ तकाराम-गाया-सार

मल जो'सख हमा, उसक लिए कोई उपमा नही ह ।,

धन-मान परारब स भिलता ह परारन स ही सख-दःल होता ह । परारबव

स ही पट भरता ह । इसलिए म वयथ किभीको बरा-मला नही कहता 1

जगत‌ क साथ महय कया लना-दना ? मरा सारा नोच पाडरग पर ह । विठोवा का नामकीतन करना ही मरा कल-साघन ह ।

सख का वयापार करन स मञ सख को इतनी कमाई हो गई कि आग- पीछ ओर सब दिशाओ म आननद-ही-आननद वयापत हो गया । अव तो मङञ

दव की ही सोहवत ओर उसकी ही पगत म बठना ह । समथ दव क धर म सव परकार की सपतति भरी पडी ह । वहा कभी किसी चीज की कमीः नही पडती । दव क घर म अपार लाभ का वास होता ह 1

दस म स एक आदमी अचछा ह, एसा कह तो अनय रोगो की निनदा करन

का दोष सहज ही लगता ह । इसलिए कौन अचछा ओर कोन बरा इसका विचार करन कौ वतति मञम ह ही नही । सव विषयो म हम अपन मह पर ताला मार-

कर वाणी का उपयोग कवर हरिनाम समरण म ही कर ।

म हरिनाम का सिकका लिय हए ह । उसकी सहायता स म कलिका

को धकका मारकर पीछ हटा सकता ह । इस सिकक को यो ही न समनञना 1

यह‌.जिसका ह उसक समान ह ओर उसक न मानन स नक-कान कट जात द । म नाम-शमी सिकक स निजाननद क सिहासन पर आङढ हमा ह ।

भतमातर म दवता का वासर ठ, यह समजञकर म सव लोगो को आगन दता ह । परनत वसा करत समय यह‌ वयकति परप ठ या सवरी, इसका विचार मन म नही साता । मर मन क भाव को भगवान जानत ह ।

दसो दिशाओ म मटकनवाटा मरापन जवस तर पास लोट आया ह, तवस उस परम तपति हो गई ह ।

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ारम-परिचय १९

फरिजल की बात कहन म वाणी का वयय कौन कर ? अव तो म वही

करना ह जिसस भगवान‌ को हदय म धारण कर सक‌ । ईश-चिनतन का

उपददा दन स म पाग गिना जाता ह ।

लोगो की निनदासतति को सनकर म बहर की तरह रगा, जस सवपन-

सषटि जगन पर मिथया हो जाती ह, उसी परकार इस परपच को सठा मानकर

म अनध की तरह रहगा ।

म परम क चरणो को कभी नही विसारन का। इतना किया तो मरी

सब चिनताओ का भार भगवान अपना समनचकर अपन ऊपर ल लग । परभ-

चरण रपी सचची अमत-सजीवनी मर हदय म हमशा रहती ह ।

मरा यह अनभव आप दखिय कि मन ईरवर को कस अपना बना किया

जयो ही कषदर ससार का तयाग किया कि भगवान अपन हो जात ह । मर धय

रखन स दव इतना मर पास-पास रहता ह, मानो मजञस चिपट गया हो ।

“इस शारीर स म पथक‌ ह", इस बात को भलकर मन अपना गला

मखतावश अपन ही हाथ स दबा डाला ह--अपन सवरप को दह-बदधि स

ढक रलौ ह । “यह मरा घर", “यह मरा डका" एसा मन मानाही कस ?

मञ समसत जगत‌ दवरप दीखता ह । इसस मरी गण-दोष दखन की

वतति कषीण हो गई ह । यह वडा अचछा हआ ह-- बडा ही अचछा हम ह ।

आरसी म भक ही दसरा परतिबिमब दिखाई दता हो, परनत तासविक दषटि

स दखनवाल को विमब ओर परतिबिमब एक-का-एक हीह.। नदी का समदर

क साय समागम होन पर नदी का नदीपन खो जाता ह. ओर वह‌ समदर ही

हो जाती ह ।

मञ जो-कछ मिला ह, मर सचित करमो का फल ह । मरा अनतःकरण

परम-मकति क माधरय स सराबोर हो गया ह जिसस म आननद म ही रहता

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२० तकाराम-गाया-सार `

ह । मरा जीवन आननद स भरपर हो गया ह । भगवान न मर अजञान का परदा

दर कर दिया ह, जिसस भरी दषट म सारा जगत‌ बरहमाननद स परिपण हो

गया ह । ईडवर न मरी कामनाए दर कर दी ह, इसङिए भरी उसक परति

बडी परीति ह ।

जो तरिविष-ताप-जवर स पीडित ह, उनह म नारायणरपी ओषध

दता ह ।

जो दव सरव-वयापक ह, वह मर हदय म न हो, यह कस हो सकता ह ?

दह-विषयक मत जो-जो आशाए बाघी, उनस मकषो भारी कछश हमा 1

अमक मनषय का समाधान करन स मञञ कोई परयोजन नही ह । इसस

सवय को गौर दसर को दःख होता ह 1

पहल मर मन क अनदर नाना परकार की आशा, मौर ततसबधी असखय

चिनताए थी, परनत उन दोनो का अब मन नाश कर डाला ह ।

यदि ईइवर-भकति का यह‌ उपाय पह स ही म जान गया होता, तो इतन कारतक गरभवास (जनम-मरण) का दःख कयो भोगता .? सतरी पतर क कषट

सल -षरकर "।हक कयः मरती ?

मञ तो एक शदध भाव ही मानय ह । उसक अतिरिकत अनय किसी जञान‌- चातय कौ मजञ कोई आवदयकता नही ह ।

यह सब जगत‌ मञञ मगवान‌-रप दीखता ह । इसस मञ जो आननद होता ह, उसस मरा सपण शरीर शीतक हो जाता ह । इसकए म जपन अटपट

` परनत परमभर शबदो स उस दव को करणा की भिकषा माग रहा ह ओौर एसा करन स मर मन को बडा सल होता ह। मञषम जो भदातमक भावना थी, उसका कषय हो गया ह, जिसस मञम दःख की तो छायातक नही रही । म तो तर

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आतम-परिचय २१

= म रग गया ह, इसस मरा जीव अतयत सखी हो गया ह ।

म स दव का दास ह कि जिस कोई कामना नही ह गौर जो सखदःख

आदि दव स रहित. ह । मर योग-कषम को निभान की पण चिनता उस ह ।

मरा हितकरता भौ वही ह । म उसक गीत मघर सवर स गागा ओर अनय

किसी विचार को चितत म परविषट न होन दगा ।

लोक-सल नाशवत ओर बाहय ह । उस लकर म कया करगा ?

दव न मञच अमत-द का दान दिया ह । इस उपकार क बदल मन उस

अपना कठहार बना लिया ह । यह‌ मरा, यह तरा' मर इस दत को दव न

कषय कर डाला ।

मज किसीस कछ नही मागना । मागन योगय एक दव ह ओर वह तो

मर पास ही ह । म उसस इनदर का पद माग ल मगर उसको लकर कया करगा ?

बह शारवत तो ह नही । वकणठ-पद माग ट, उसम भी कछ मजा नही । वह

एकदशीय ओर ददी ह 1 चिरजीव आयष माग ल ? जीव अमर तोह ही,

फिर चिरजीवपन म कया जयादा ह ? जो एकतव किसीस किसी परकार कमी

अषट हो ही नही सकता, एस आतमकयभाव कोही म मागता ह ।

मर घर म शबद-रपी रनो का खजाना ह । शबद ही मर जीन का एक

साधन ह गौर रोगो को म शबद का ही दान दता ह । दखो, दखो, यह शबद ही

दव ह ओर शबद-गौरव स ही म उसका पजन करता ह 1

जब भ अपना ससार छोड बठा ह, तब मल लोकाचार की कया दरकार

ह ? दव क सिवा मरा कोई इषट-मितर, सनही-सवजन, सगापयारा ह ही नही।

अपन शरीर क सपण सबधियो का मन तयाग कर दिया ह 1 नाना परकार

की परपचपरण उपाधयो की बात सनन स मर कान इनकार करत ह । परम,

दया करक मञ विषय-वासना क सख दःख स दर रखना ।

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२२ तकारम-गाया-सार

म हर समय हरिनाम समरण करता रहता ह, इसस मरा मन समाहित

अवसथा म रहता ह ओर उसीका नाम ह‌ समाधि । म कही गफा आदि म

भटकन नही जानवाला । म तो वही रहगा जहा मकतो की मडली जमी

होगी 1 नाम-समरण क सिवा उपवासः बरत आदि म कभी नही करनवाला ।

जिस घडी मन अपना जीवभाव तङञ अरपण कर दिया, उसी घडी उसका

एसा कषय होगया कि वह‌ दढ भी नही मरता ! ह अननत! अब तो म जो-कक

करता ह, तरी ही सतता दवारा करता ह ।

दव का ओौर मरा मक स ही सवरपकय ह । शठ परपच क मोह‌ क कारण

दव स मिरत म बडा विलमब हो गया ।

जिनकी वतया सथिर हो गई हो, उनको म अपना मितर मानता ह ।

सवामी की सतता दवारा समपण मम पहल स हसतगत हो जान पर वारः बार विरष लाभो की परापति होती रहती ह । म भावहीन सयाना नही ह ।

मन अपन सवामी क मन क साय अपना मन मिला छिया ह, जिसस म उसक अनतःकरण की बात जान जाता ह । म परिधरम-शवक अपन मन को परतयक कषण जागरतावसथा म रखता ह । अब म दव स तनिक भ विलग नही रहन वाटा 1

चिततवतति को एकागर करक म हर गरास मौर हर घट पर दव का समरण करता हमा खाता-पीता ह । म चितत को जागरत रखता ह दरतभाव क घस आन की मजञ बडी आशका रहती ह 1

मरी इचछा यी कि लोगो क ऊपर अपन बडपपन की छाप बिठाकर सव मान परतिषठा पाऊ, इसी कारण दव मञञस विलग हो गया ह ।

अब अहकार स मरा सब नही रहा, इसस तमाम परपच का निरसन हो गया ह ।

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-----------

आतम-पारचय २३

मरी अविदया की रातरि का अनत आ गया ह । अव दहबदधि-रपी मोहनिदरा

को भल गया ह । मरा निवास नारायण क सवरप क अनदर हो गया तवस मञच

^ आननद-ही-आननद हो गया ह । तमाम जगतत म सव जगह सव-कछ मर दी

सवरप स परिपण हो गया ह । इसस म यह समञच गया ह कि भरा यह जञान

कितना मिथया था कि “म यह दह ह, ओर “इस दह क सबधी मर सबधी

ह ।' अब तो दव ओौर म दोनो एकरप होगणएह।

भन बहत-स सत-मतानतरो का तयाग किया ह ओर जिसक दारा अपना

कारय हो जाय उस ही पकडकर बठा हआ ह ।

दहतो कमधीन ह । उसक योगकषम को अपन सिर पर लकर मकयो

वथा दःख कर ? शरीरक सवधियो को अपन सबधी मान बठन की दरभावना

समजाज तक बड सकट उठाता आया ह ।

भरा मन निशच ओर सथिर हो गया ह, जिसस मह बाय रखनवाली

आशा क बधन टट गणए ह । हरिपरम-परवाह‌ स मञम आननद को वाद‌ आ

गई ठ ।

म अपन चितत म एकनिषठ भाव धारण करक भतमातर क परति दया,

कषमा ओर शानति घारण करक रहता ह ।

लकषमीपति सरीखा दातार मञञ मिला ह, फिर मज मागन क किए रहा

कया? ४

भगवान‌ क चरणो क निकट कमी किस बात की ह । उनक आग ऋदधा

ओर सिदधिया दासी बनी खडी रहती ह । परनत उस नाशवत सख की ओर

निगाह कौन करता ह ? म पाप-पणय दोनो को पार कर गया ह ।

, एसी मधर परम-मकति का आननद-भोग छोड मक जीवनमकत बनन स

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२४ तकाराम-गाया-सार

बया काम ? नारायण सवथ भकतो का दास ह, फिर उसस मिलना कया मरिकल

ह ? ह दव, मञ सायजय मकति नही चाहिए । मः तो सनतो क समागम म

अधिक आननदपरवक रहगा ।

वक क'दिवयमोग म इसी लोक म भोगन म, दसा उचच परम भ

सागता ह 1

सान-अमान, भाव-अभाव आदि सब दनद टल गए मौर मरीदह ही

भगवान-सवरप बन गई ह 1 एसी अवसथावाल भागयवान‌ ह । जीवन का यही

हत होना चाहिए

भतमातर म भगवान का वास ह, एसा पण अनभवयकत वरागय मक

परापत हमा ह 1

म जिसको चाहगा, मान दगा, मरी मरजी न होगी तो न दगा । वस, राजा

ओर रक मञज समान ह । जब म अपनी दह तक क परति उदासीन भाव रखता

ह, तब दसर की आख की शरम रखन का मञञ कया कारण ह ? तब तो म अपनी सहज लीला क अनसार ख खल रहा ह । म सख मौर दःख स पर हो गया ह

अपन कटमब क मरण-पोषण का भार मन तर ऊपर.डाल दिया ह । म तो एक निमितत-मातर ह । म वयवहार का कामकाज करता ह, परनत हदय म हर समय तरा नाम घारण किय रहता ह ।

सवरप-अजञान-रपी अरी रातरि को म खा गया ह, इसलिए अब काल मी मञञ नही पकड सकता । सवरप क ऊपर पद की तरह पडी हई मायान ही इस परपच का तमाशा खडा कर रखा ह । उस माया न परपच का वशा धारण करक जो भाव परकट किया वही अव नही रहन पाया, इसलिए दहादिक भरपच क घर म मञञ फिर स घसना पड, एसी परिसथिति ही नही रही ॥

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आतम-परिचय २५

सका कारण यह ह कि मन तमाम उपाधिया शरीहरि क पास भज दी द ।

(" अबमकिसीक हाय नही आनवाला । अब मरी एरी अचिनतय सथिति हो

गई ह कि उसका वरणन नही हो सकता,

म अणःरण स भी सकषम ह ओर आकाश जितना बडा ह । मन भरमजनय

` दहादि परपच क आकार का कषय कर दिया ह । जञय, जञाता ओर जञान की

तरिपरी का निरास करक मन आतमबोध-रपी दीपक अपनी दह क अनदर

परकटाया ह । अव तो म अपना अवशिषट परारय भोगन भर क किण ओर

लोकोपकार क लिए ही जीता ह ।

मान, परतिषठा ओर दमम मज सअर कौ विषठा क समान लगता द ।

मतय आन स पहल टी म तो मर चका ह । मर मन म जो आता हसो

करता रहता । तम मर नय-नय खर दखा करो, मर साथ विवाद करन का

` वयरथशरमनलो।

अब किसीको मञञस कोई आदा नही रखनी चाहिए । म तो भगवान क

लिए दीवाना बन गया ह ।

सगरह, तयाग पर मन बडी सिरपचची की । उसस दःख घटन क बदल

बढा 1 अब तो मः अननत क कदमो क आग पडा रहता ह । अव मयो जनम-

मरण क जजार म फसन का कोई कारण नही रहा ।

एकविध भाव स एकारत भ रहत स जो सख होता द, बह मञञपरापत हो

गया ह ।

अब मः सततव, रज ओर तम, इन तीनो गणो को तयाग करक निरगण दव

का बन गया ह ।

भ कया गा ? मरा गाना सननवाला तो कोई ह नही । जहा जाता

ह, सारी दनिया को वि षयतषणा स मान भरी हई पाता ह ।

इसरिएि अव

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२६ तकाराम-ाया-सार

म अपन आतमाराम क साथ करोडा करगा ओर जसी वन पड वसी बात

करक छटगा 1

जो निषकाम चितत स राम-मजन करता ह, उसका म दास ह ।

3 ~ „4.

जो तषणा क आसन पर बठ ह, उनका कछ नही बचनवाला, सव लट

जायगा । इसकिए म दनिया स मह मोडकर राम क रासत लगा ।

ससारी लोगो को पसा अपन जीवन स भी अधिक पयारा रगता

परनत मञञ वह‌ पसा पतथर स भी तचछ कगता ह । सग सबधी, इषटमितर,

सजजन ओर बन य सव मञञ एक सरीख ह ।

शरीहरि का कीततन करक म शदध हो गया ह, इसलिए मर लिए तो सारा तरलोकय भी शदध हो गया ह । अव स म पखरहमरपी नगर म सथायी लप स

रहता ह । वहा मदातमक परपचरपी पवितरता पर मरी निगाह नही पडती ।

अव म एकानत म परबरहमरस का पान करता रहता ह ।

म जनममतय क चककर म फसकर बहत थक गया था, परनत राम- समरण स वह‌ थकान दर हो गई ओर मरी काया शीतल हो गई ।

भरी कल पजी एक मगवान ह । य शवद भी मर मख स उनहीन बलवाय

ह ।

समसत वयसनो को नषट करक ओर सगमातर का तयाग करक म बिलकल निःसग भाव स नाचनवाला नट बन गया ह । इसस म सरवतर समान रप स दव को ही दखता ह सरवतर म ही वयापत होगया ह । अव किसी ओर को नही आन दनवाला 1

दवय की बौर कटभबियो कौ अव मञ कोई अभिलाषा नही ह । मल अपनी जान कौ परवाह नही । शरीर तक को वसतर स ढकन कौ कया

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आतम-परिचय २७

ह ? अव मजञ लाज-शम भी किसकी रखनी ह ? कयोकि चारो

क सिवा मञच ओर कोई नही दिखाई दता ।

ओर अशभ दोनो परकार क कषण मर रएिशभहीहो गण ह;

मनञ विशवास हो गया ह कि दव मञषपर कपा करग ही । इसलिए

समपण वयापारो म म आननद का ही वयापार करता रहता ह । इसक

कछ म जानता तक नही ह । एसा होन स मरा चितत समाहित

इसलिए लाभ, हानि, सख-दःख क धकक मर अनतःकरण को नही

रकार म ससार म रहत हए भी उसम लिपत नही होता । परापचिक

अपन मन स दर कर रला ह ओर मर अनतःकरण कीपरीति

तलय हरि क नाम पर सथिर हो गईह। इसम मर मन |

आघातो-परतिघातो का शमन हो गयाह।

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२६.

नाम-मटिमा

विदर‌ क यहा साग-पात खान स कया दव भखा रह गया था ? कनजा

दासी. का बदन तीन जगह स टढा था । वह‌ करपता की राशि थी। फिर

भी भगवान न उसीका सवीकार किया या न ?

साघ-सनतो का राम लन स पषय होता ह । इसीलिए मरी वाचा उनका

निरनतर नाम कती ह । इसस महालाम मपत म मिरता ह । सनतो क चरणो

म भावलीन रहना ही विशवाति ह । सनतो क जप स सब पाप कट जात ह।

कमदिनी अपनी सगघ को नही जानती, उसका भोग तो ममर ही करता

ह । इसी परकार ह दव ! अपन नाम की मिठास कौ आपको जानकारी नही हः

उसका परम-सख तो हम ही जानत ह।

आपक चरणो क सख क सबव म कया कह, आसिको उसका अनभव

नही ह 1 कितना हौ वणन कर, आपको सतय नही लगगा, कयोकि अमत क

गण अमत नही जानता ।

हरि का नाम सार का भी सारह । इसस यम भो शरणागत होकर किकर

बन जाता ह । नाम उततम स भी उततम ह । इसलिए वाणी स परषोततम बोलो ! कया कह, मगवान‌ क चरण ही तारक ह ।

अनतकाल म मी जिसक मह म दव का नाम आ गया, उसक सख का पार नही ह ॥

मह स मगवान का नाम ख‌, यही भरा नियम-पम ह; सनतो क परो पडना, यही मरी उपासना ह 1

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4.4.

। < ॥

नाम-महिमा २९

भगवान का नाम ही अचछा ह, वही सतय ह । उसीस बधन टटत ह;

उसीस दोनो लोको म कीति होती ह । जिसम हरि की शरदधा ह, उस हरि कौ

शरापति ततकाल होती ह । भोला भवत कलिकार को जीतना जानता ह‌।

दव-परम मन म न हयो तो न सही, मगर वाणी म उसका नाम हमशा रहन

द । उसक चिनतन म ओर नाम-सकीतन म जीवन बीत । चाह नाम दभ सही

कयो न ल, मगर ल, कभी-न-कमी भगवान सध लग दी ।

भगवान का नाम लन स भवरोग का निरसन होता ह, सचित करियमाण

ओग का नाश होता ह । इस उचवारन स जनम-मरण का नाश होता ह, पाप

नजदीक नही आ सकता, तरिविघ-ताप जाता रहता ह, माया दासी हो जाती

ह गौर परो पडन रगती ह ।

ह परभो, अगर म पतित न होता तो त पावन किसको करता ? इसि

पहल मरा नाम ह, बाद म तरा । अगर लोहा न होता तो पारस पतथर अनय

तयरो जसा होता । भगवान कलपना स कलपतरतक को कसपित वसत दता

= ॥

मक यह निरचय हो गया ह कि म इस भवसागर स पार हौ गया ह ।

ससार को छोडकर तरा नाम कठ म धारण किया ह । अब एक हरि को

-छोडकर ओर क शष नही बचा ।

भगवानरमी त याद करत ही दौडती आकर याद करनवाल को

पयार करती ह 1 हरि क नाम गान स सायजयता (मवित) मिलती ह ।

यहा सब सखो का आधार नाम ह । जब दवत चखा जाता ह, उसी समय

जरहय का साकषातकार हो जाता ह जौर शरीर भी बरहमरप हो जाता ह । साति

छोडकर दखलोग तो सव सख नाम म ही दिलाई दग।

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३० तकाराम-गाथा-लार

भगवान का नाम ही सवधम ह 1 इसक अलावा म दसरा साधन नही

जानता ।

दरवय को म गनदी चीज मानता ह । कारण, उसक पौ काल लगता ह ।

नारायण क नाम का ही जीवन मन घरण कर खया ह । मर पास जो याचक

आयग, उनद इसीका दान दन कौ कोवि कलपा ।

सारभत मम राम ह, इसलिए हम भाविक भकतो न उस हदय म रख

लिया ह 1 लोहा, चकमक, पतथर ओर रई, य अगनि को सिदध करन क लिए ही

रखन पडत ह, बरना उनका बोञा कौन उठान बठ \

भगवान जो-क करत ह, मर भल क ठिए करत ह, यह अनभव मर

चितत को परी तरह हो गया ह । मर जीव को अपार आननद हौ गधा, कयोकि

परमाननद न मरा समपण भार ल चया 1 उनह अपन नाम का अभिमान

ह, इसकिए व शरणागत को अपन बर स तासत ह ।

नाम सही सिदधि होगी, मगर वह‌ नाम दोषरहित वदधि स लना चाहिए ।

राम ही राजय ह, राम ही परजा ह, राम ही लोकपार ह । दसरा कोई नही ह । सवामी-सवक का भाव नषट हो गया ह ।

जहा दया, कषमा, शाति ह, वहा दव का वास ह 1 दव उसक घर दौडता आ जाकर उसक हदय म वास करता ह । दव का नाम ठन स उसकी पजा

व परापति हो जाती ह 1

जिसको जीभ पर भगवान का नाम नही आता, उसकी बोली मञच अचछी नही लगती 1 जो भगवान स सव परकार स विमख ह, उस म अपना कभी नही कहता, वह‌ मरा शतर ह । जिसको मगवाद का नाम परिय नही ह, वह अघम ह 1

(0

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नाम-महिमा ३१

जिस कषण दव क चरणो म मरी बदधि सथिर हई, उसी कषण मर मनोरथ

पण हो गए । जीव समाधान पाकर .निखवल हो गया, ओर आकलता को

मजञ याद तक न रही । भगवान क परमसख स मन क सखी होन क कारण

तरिविध-ताप का दहन हो गया । महालाभ भगवान का वाणी पर वासहो

गया ओर हदय म भी उनका अलड अगसग हो गया । आतमा क परमातमा

पद पान स विदव विदवमर म छय हो गया ।

राम क दो अकषरो को छोडकर यह सव जजाल किसकिए करना ह ?

आकसमिकः नामोचचारतक स सदगति मिरती ह; वही नाम सतत

छन स भगवान निकट आकर खड हो जात ह; ओर राम-नाम-समरण

मवित-भावपरवक किया तो उसकी सथिति तो कोन जान सकता हद

, नाम मीठा ह । उसीस सारी इचछाए परण होती ह। अनय रसोक

सवन स मतय निरचित आ जाती ह । परनत इस नाम-रस स जनम-मतय-

चकत समापत टो जाता ह ।

नाम छनवालो क ससार-कम का निवारण हौ गया । जिटन रामनाम

, पर विरवास रखा उनहोन भवपाश तोड डाल । भाविको न नाम सकीततन

स कलिका को शकाकर अपन बस म कर खया ह।

परम‌ क मकत चिनता-आशा-रहित होन क कारण सदा निरभय रहत ह ।

यह‌ वात वहतो न सिदध कर दी ह कि मख म नाम रखन स हाय म मोकष

आजाता ह । उसक लिए न असम-दड-लकडी चाहिए, न तीरथ-खमण । नाम

चिनतन हो, तो ईा-परापति म कोई बाधा नही आती 1

जिसक मह म हरि का नाम नही ह,.उसक सखो म आग रग । मपर,

कितनी भी विपतति पड, परनत चितत म राम रह । हरिचितनरदहित धन,

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३२ तकाराम-गाथा-सार

समपतति, उततम कल समल जल जाय । ह परभो, मक वह सथिति दो, जिसम .

तमहारी सवा होती रह ।

समदरवषटित पथवी का दान भी नामचितन की बराबरी नही कर

सकता । इसङए आलस न करो । रात-दिन रामनाम लो । तमाम वद-शासतरो

का पठन भी गोविद क नाम की तलना म क नही ह । परयाग, काशी, आदि

समसत तरयो कौ यातरा भी रामनाम क सामन कछ नही ह । विठोना का

ताम ही सार ह ।

कविता करन स कोई सनत नही हो जाता । न कोई सनत का सबघी होन

स सनत होता ह । सनत का वष धारण करन स या सनत उपनाम रख लन स

भी कोई सनत नही हो जाता शतर क परहारो को जो सहन करता ह, वही शर

सनत ह । हाय म इकतारा लकर गदडी ओदन स कोई सनत नही होता ।

कीतन करन स सनत नही होता । पराणो क अथ बतान स सनत नही होता,

वद-पठन स सनत नही होता, करमो क आचरण स सनत नही होता; तप-तीरथाटन

करन स सनत नही होता; वन-सवन स सनत नही होता; माला-मदरा स सनत

नही होता; भसम रमान स सनत नही होता \ जबतक दहवदधि, दहातमभाव,

नषट नही हमा, तवतक उपरयकत सब रोग ससारी ही ह ।

जो कोई हरि का नाम रता ह, उसक पीपी परभ का परम †ता ह ।

हरि का नाम छत ही ससारःवघन टटन लगत ह । नाम क सिवा हरि- भरापति का ओर कोई उपाय नही ह । म सबस पकरारकर कहता ह, नाम लिय विना न रहो ।

हरि का नाम लत ही पापो का नाड हो जाता ह ओर उततम गति मिरती ` ह । राम क नाम‌ स कलिका थरथर कापता ह । रामनाम छन स सकति , मिती ह 1 सीस आवागमन मिता ह ओर सार ससारः बधन टट जात ह । किसौ मौर तप-अनषठान की आवशयकता नही ह । भकति-भावसदहित हरि का नाम जपोतो काङवयम दरण भ जायगा ।

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नाम-महिमा ३३

परमसपरम‌ क सवरप का समरण करक उसम जीव को निमगन कर दना ही

रम-मिलाप ह । नामसमरण सपरमकारपही अपन पासञआ जाता ह । परभ

कानाम‌ बार-वार लस शरीरकी समपण नस आननद स शात हो जाती ह ।

"रामः नाम क समरण करन मातरस ही काम ओर करोष भसम हो जतह

जौर अभिमान निरवासित हौ जाता ह । रामनाम स ही सव करमा काओौर |

ससार का बनधन टट जाता ह जौर सवपनम भी हम कोई तकलीफ नही होती ।

जनम-मरण का दःख नही सहना पडता; दरिदरता कभी भी अनभव नही होती ।

रामनाम क उचचारण-मातर स सवधम की परापति हो जाती ह ओर अजञाना-

नवकार का पटल एक कषण म दर हो जाता ह । रामनाम कन स भव-समदर

सहज म तरा जा सकता ह, इसम तनिक भी शका नही ।

नारायण का नाम एक एसी ओषध ह, जिसस मवरोग का नाश हो

जाता ह । इस दव की कपा होती ह ओौर सीघ ही कवलयपद की परापति ह

जाती ह ।

हर समय विट‌ठ भगवान‌ क नाम काजप करना ही तमाम सखो का

सार ह 1 यही साधन तमाम साधनो का मर ह । यह‌ याद रलना कि जवतक

तनिक भी दहाभिमान ओर दह का विचार ह, तबतक नारायण पास नही

आ सकत 1

दव का समरण करन स मन का तमाम भय टर जाता ह ओर चिनता

करन का कोई कारण नही रहता । (कषणः का उचचारण परमसदित करन स

तन मन शानत हो जाता ह । ~

हर समय मह स नामोचचार करन की भकति चारो परकार की मकतियो

स शरषठ ह । इसी नाम की सहायता स म बरहय क साय सपरदधा म उतर आया

ओर भकत स भगवान वन गया

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३४ तकाराम-गाथा-सार

यदि रामनाम का रस रग जाय तो तमहारी दह भी रामरप ही नन

जाय । फिर तमम ओर दव म कोई अनतर नही रहनवाला । तमहारा मन

आननदसवरप हो जाय ओर तमहारी आलो स परमाशर वहन खग ।

= 3

चारो वद पढ चकम क वाद जो हरिगण गान वढ तो जानना कि वह‌ वद

का अथ ठीक समजञा ह । योग, यजञ, दान, आदि चाह जो करो, परनत उन

करमो को करत-करत यदि कणठ म हरि का नाम रमा रहता ह तभी उन करमो

का फल मिलता ह । त नाना परकार की खटपटो की वदधि करन क वदल सवक

सारसवरप एक हरि क नाम को ही अपन ग का हार बनाय रख ।

राम का भजन तमाम मधर वसतओ का सार ह 1 वह‌ जनममतय क

दःख का ओर तरिविध ताप का नाश कर डरता ह । खात-लात यग-क-यग

बीत गए, " फिर भी भख-का-भखा ! जिसन रामरस का सवन किया वह‌

. जनम-मरण क फर म कभी नही पडता ।

जो कोई रासत चरत-चलत रामनाम ठता जायगा, उस कदम-कदम पर

यजञ करन का पषय परापत होगा । उसका शरीर तीय ओर तरत क उतपतति-

सयान क समान बन जायगा । वह सचमच धनय-धनय हो जायगा । लोकिक

वयवहार क काम‌ करत-करत जो रामनाम का समरण करता रहगा, वह

सदाकार सख की समाधि का मोग करगा 1 जीमत-जीमत जो गरास-गरास

पर रामनाम जपता जायगा, वह खान पर उपवासी ही ह । भोग ओर योग

दोनो परसगो पर रामनाम का समरण करनवाला कभी कम म छिपति नही

होता । जो हर समय रामनाम का जप करता रहगा, वह जीत, हए भी मकत

दीह।

रामनाम क समान दसरा पणय नही ह । नास तो अमत का भी सार ह, निन सवरपः का वीज ह‌, ओर सव गदध तततवो म गहय ट । नारायण क सिचा ओौर किसीपर भरोसा न रखो ।

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ध:

भकत ओर सञजन

जो अपन हित क विषय म जागरत हौ गया ह, उसक माता-पिता

धनय ह ! उस दखकर भगवान परसतन होत ह ।

जिसका सव अहकार चला गया ओर जिसम निदा, हिसा, कपटादिक

` वयवहार नही, ओौर दहवदधि भी नही, वह निरमल सफटिक सरीखा सवचछ ह ।

अधिक कया क, उसका सव शरीर चिनतामणि सप ही ह । वह सव तीरथो

को पावन करनवाला ती हो गया ह । जिसक दशान स मोकष-लाम होता

ह, जिसका मन जदध हो गया ह, उसको माला आदि वाहरी चिनदो की क

भी आवदयकता नही; एक मन क गदध होन स वह सव भषणो स मडित होता

| ह, ओर जो निरनतर हरिगण गाता ह उसम अखड आननद रहता ह ।

~“ जिसन अपना दरवय, दह ओर मन परम‌ क अरपण कर दिया ह ओौर जिस कोई

आशा नही ह, एसा परष पारस-मणि स भी वठकर ह ।

=.

जिसक मह म अमत तरय मीठ शबद ह, जिसकी दह परभक लिए ही लगी

हई द, जो परष सरवाग-निरमल ह भौर जिसका चितत गगाजल क समान पवितर

ह, उसक दशन-मातर स तापतरय मिटत ह एव विशवाति मिलती ह ।

चितत का अगर समाधान दौ गया तो विषदत‌ दःख भी सोन सरीख सखल-

कर लगत ह । विषय की अति-ालसा बहत वरी ह । चितत अगर विकवध ह

तो चनदन का उवटन भी अग को जाता ह । मन अगर असवसथ ह तो सलो-

पचार स भी पीडा होती ह ।

जिसकरो एक दव ही भरिय ह ओर जिसम दव क परति अखड परमभावद,

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३६ तकाराम-गाया-सार

भमडल म वही पवितर ओर वही मागयवान ह । उस परष कौ सवा दव को

पहचती ह 1

जो भगवान क चरणो का चिनतन करत ह, व सजजन मर परिय सगी-

साथी ह । अनय लोगो को म मरयादापालन-मातर क लिए मानता ह ; वयोकि

आखिर व सव दव क ही तो अश ह । परनत मञच हरि-मवित करनवाल

जितन परिय ह उतन अनय नदी ह ।

चौदह रोक जिसक पट म ह उस हमन अपन कठ म धारण करिया ह ।

हमार घर कछ कमी नही ह । ऋदधि-सिदधि हमार दरवाज पर सवा म ततपर

रहती ह, जिसन तमाम राकषसो को वाघ लिया, एसा परम‌ हमार सामन दोनो

टाथ जोडता ह । जिसक रपादिक नही, उस हमन अपनी भवित क जोरस

` सगण-साकार‌ किया ह । जिसक शरीर म अननत बरहय ट, बह हमार लिए

चीटी क समान ह । आशा को छोड करक हम भगवान स भी बरवान हौ गए

। सचित, परारवव ओर करियमाण कम भकतो क नदी होत ; कयोकि भकत

क अनदर-बाहर एक दव का ही अनभव होन क कारण उसका सवक चही

होगया ह । सततव, रज, तम गणो कौ वाघा कभी हरि कर भकत को नही

होती । दव स मवत सिनन नही ह ।

दरवय-इचछा जिसक चितत म नही ह, मान, अपमान, मोह, माया जिस

मिचया भासती ह, जो सव-तततवजञान सपादन कर ओर जञान का अभिमान

छोडकर माचरण करता ह, एस परष को साध अकसमात‌ मिर जात ह ।

जो परदःख ओर परःसख को अपना मान वही साध ह । वही दव को समञनता ह । मकखन जस अनदरःवाहर कोमर ह, उसी तरह सजजनो का चितत

होता ह । निराधित को जो हदय म रखता ह, अपन दास-दासियो पर जो + ।

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णो ~

भकत ओर सजजन ३७

पतर की-सी दया रखता द, उस कया कह ? वह तो मानो साकषात भगवान कौ

मति ह । ~

जिसक चितत म दरवय ओर दारा (कामिनी ओौर कचन) कौ इचछा नही

ह, उसन ससार पार कर लिया । सभ-अशभ स जिसको हष-शोक नही होता,

वह‌ जग म जनादन होकर रह रहा ह । जिसन दव को दह अपण कर दिया,

फिर उस क करना वाकी नही रहा ।

हम परभ क दास कलिकाल स भी डरनवाठ नही ह । मगजाल सरीख

परपच भ भटक जाय, यह कभी नही होनवाखा । घल उडान स सरज की किरण

मटी नही होती ।

नटो की तरह वष रखकर हम सव खल दिखलात ह, मगर उसस हमार

आतमबोध म अनतर नही पडता 1 वहरपियो कौ तरह कौतक स हमन खल

जमा रखा ह, फिर भी अपन सवसय को जानत ह । सफटिक मणि लार-पील

रगो की चीजो क योग स वस रग बदलती ह, मगर किसी रग स मिल नही

जाती 1 हम ससार स अपत रहकर निसचित करीडा कसत रहत ह ।

कोई साधनवाला हौ तो सावन दोही ह-परदरवय ओर पर-नारी को

तयाजय मान 1 फिर उसक घर भगवान का भागय ओर सकर सपतति

आयगी । एस परष का शरीर दव का भडारगह ह ।

जस किरण सय स अलग नही, मिठास शककर स अलग नही, उसी तरह

मदव स अभिनन ह ।

सचच भकत परमषठि पद को भी सरवदा तचछ मानत ह । सदा हरि का

चिनतन करना ही उनका धन ह । इनदर.पद आदि भोग, मोग नही -भवरोग

ह । सावभौम राजय स भकतो को कोई काम नही 1 पाता क आधिपतय को

व कवर दारिदरय मानत ह । योग-रिदधि-सार उनह असार लगता ह । मोकष

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३८ तकाराम-गाया-सार

सरीखा महान‌ सख भी उनह दःख लगता ह । हरिक सिवा उनह सबकछ तयाजय

रगता ह ।

जिसन अपन हदय म हरि को धारण किया ह, उसका आवागमन समापत

होगया । सारा वयापार सफर हौ गया । हरि हसतगत होगया कि फिर कोई |

भय चिनता नही । हरि भकतो म कोई विकार नही रहन दता ।

जिसन भगवान क लिए ससार छोड दिया ह, उसपर उनका अतिशय

म होता ह । वह एस भकत क पीछ दौडता ह गौर उसक सख-दःख को सवय

सहता ह । भवत का काम ह कि वह भगवान का नाम र, ओर भगवान का

काम ह कि वह‌ भवत क काम करता रह ।

जो अखड भित जानता ह, वही दव का पतला ह । उसक विना कोई

पडित हो या बदधिमान, मर नजदीक दववान नही । जो नवविध मकति जानता

ह, वही शदध ह । ह

जो मन को विषयो म जान स रोककर पीछ लाता हव, वह‌ बली ह, इस भमडल म वही एक शर ह ।

सतान सवया करता ह मगर परानन खाकर उस निषफल करता ह, जिसक

अनदर सासविक य नही, उस दव कभी नही भिरता ।

परम-सतर कौ डोरी स हरि को जिधर ल जाओ, उधर जाता ह । भकत न अपनी काया, वाचा ओौर मन को मगवान क अपण कर दिया ह । सारी सतता उसक हाथ ह । इसलिए आकरक-वयाक कयो होऊ ? वह जस रखगा, वस रहगा 1

जिसका हदय निरम ह, वह‌ भावशील धनय ह । जो दव-परतिमा का पजन करता ह, सत कह वहा माव रखता ह, विधि-निषव न जानता हआ चितत म भगवान कौ एकनिषठा रखता ह, दव को उसका भाई हो जाना पडता ह । .

व ~--~----

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भकत ओर सजजन . ३९

जहा-जहा राजा जाता ह, तहा तहा उसका वभव साथ चरता ह 1

उस राजा को कया यह‌ कहना पडता ह कि “म दशानतर जा रहा ह, यह‌ वभव

साथ ऊ चलो ।'' जिसक हदय म नारायण रहता ह, उसपर नारायण की पण

छपा रहती ह । इसको पहचान समता ह।

, सब जीवो म भगवान ह, इस सकत को म जानता ह इसीकिए तीर

की तरह तीकषण उततर दता ह ।

हमारी यह विशषता ह कि अनीति क माग स चरनवाठ जीवो को हम

नीति-माग दिलात ह जर जो कोई चक, उसकी फजीहत करत ह । एक

परमातमा का सदा डका वजान म कया वाघा ह ? इसस अगर सारी दनिया

कपित हो तो कया हो जायगा ? जहा राम-कषण-नाम सरीख बाण छट र

हो, वहा अविदया को कहा जगह मिलगी ? जहा सतय का उपदश होता ह,

वहा असतय नही ठहर सकता । प]

अब भ तर ही मगल गणगान करगा ओर मसत होकर हरिकथा कहगा ।

मर तमाम भय, वयाकरता ओर पापणय को निवारनवाला त ह आजतक

जो मोग भोग, नह तर हवाल करक इस दनिया म अकिपत होकर रग

ा ।

हम तर पयार बचच ह, तर चरणो स अलग नही रह सकत 1

मञ किसी चीज क मागन की इचछा नही, तो फिर भ एसा सकोच किस-

किए कर ? दिक म इचछा रखकर म किसी नीच की कभी परशसा नही

कर

सकता ।

भगवान को मदिर की सीढी क पास स नमसकार करन स कस उदधार

हो जायगा ? साकषात‌ भट होन स जो होता ह, वही सबको अचछा दीखता

ह 1 एक-दसर को नजरस न दखकर कोरी बात करना फिजख ह । इतीरिए

मन बोखना बनद करक अनतःकरण को साकषी बना रखा ह ।

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० तकाराम-गाया-सार

हम विषणदास कसम स भी कोमल ओर वज स भौ कठोर ह 1 हम दह-

बदधि स मतक जौर आतमसथिति म जीवित ह । भलो को अपनी रगोटी तक

द दग, मगर दषट क सर पर लाठी जमा दग । मा-बाप स भी जयादा पयार

करनवाञ ह ओर शतर स भी जयादा हानि पचानवाल ह । हमार आग

अमत बया मोटा ह ओर विष भौ कया कडवा ह १ हम पणतः मीठ ह, जिसकी

जसी इचछा होगी, हमार निकट परी टोगौ 1

जिनक अनतःकरण म दया ह, व ससारी पराणी धनय ह । व यहा उपकार

क किए ही आय ह । उनका घर वक म ह । जो सठ नही बोरत, दह क परति

उदासीन ह, ओढ पर मधरी वाणी ह, उनक पट म पषकल अवकाश ह ।

मन निषकपट ह, वाणी रसा ह, इसीको लकषमी (एडवर) कहत ह । एस ही मागयवत को जीना चाहिए । जो हमशा नमर रहता ह, उसका नाम

लत स हरकोई सतषट होता ह ।

सबकछ विषणमय ह, यह वषणव ही जानत ह । वाकी क रोग जञान का

बोजञा वयथ सिर पर चय फ ह । विभिनन साधन कवल कणट परद ह । उन

सवक करन म उलकचनमातर ह । अहकार कषीण होना चाहिए । अभिमान का नाश करना बडा कठिन ह । मायाजार वच स भी नही टट सकता । इसका मम कवल हरिभजन स ही मिलगा; अनयथा नही ।

मनि रोग गभवास स उरकर मोकष को चल गए) मगर हम विषणदासो को वह‌ गभवास सलम ह । सार ससार को परभमय कहकर हमन उस बरहमरप कर दिया । पराणो म मोकष-साघन को कठिन बताया ह, मगर हमारा वकणठ जान का माग बडा सरल ह । हम सव जनो क साय हमशा हरि का परमसख लत ह ।

ईवर क सवक बड शर ह, इसलिए काल उनक परो पडता ह । व घोष स परम का जय-जयकार करत ह, जिसस दोषो क बड-बड पाड भी जक

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भकत ओर सजजन ४१

जाति ह । जिसक हाय म शाति, दया, कषमा क अभग वाण ह, भमडल म वही

बी ह ।

, दह ओौर दह क सबधियो को निय मान ओर शवान-शकरा का वनदन

कर--एसी सथिति हो जाय, तभी समञञना कि भम" ओर भर' का खातमा

हो गया 1 मोह क कारण गरभवास करना पडता ह । घर, पसा ओौर सवदश स

विरकत रहना ओर वन क वकषो तथा पशओ स मिलना चाहिए । म" ओर‌

(भरा' जवान पर भी न आय, एसी सथिति जिनकी ह, व सचच साघजन ह ।

सारा जगत‌ हमारा दव ह । छकिन जो बर सवभाव क ह उनको म

विककारता ह । व काल क मह म पडग । उनक हित क लि म छटपटाता ह ।

हमारा कोई सखा नही, कोई शत नदी, हम सरल वाणी स बोखत ह, मगर

जिसम दोष ह, उस वह‌ मरमभदी कगता ह ।

हम हाय म वीणा ओौर करताल छकर हरि-चिनतन म नाच, यही सलभ

रहसय हमको सतो न बताया ह। इस कीरततन म हौनवाल बरहमरस पर समाधि

का सख नयोछावर कर डालो इस बरहमरस-पान स हमार चितत म सशय उतपनन

नही होता, चारो मवरितया हम हरिदासो की दासिया हो जाती ह । मन इसस

विशराति पाता ह, ओर‌ तरिविध-ताप कषणमावर म नाश होता ह ।

। ह दव, मान-अपमान तरी कषलक सपतति ह । जिनह इदरियो न दीन बना

दिया ह, जो तरी कषललक सपतति का शौक रखत हौ, उनह भय त मष बनाता

रहा । त ऋदधि-सिदधि दगा, मगर उस सवीकार कर ठ, एस मख हम नही ।

अर ठग, तन बहत-त एस लोगो को फसाया ह ।

जो दह स उदास ह ओौर जो आजञ-पादा का निवारण कर चक ठ, उनह

भवत समजञना । नारायण ही उनका एक विषय ह । उनद जन-धन, माता-

पिता पसद नही आत । एस भकतो क निरवाण क समय गोविनद आग-पीछ रह-

कर उनका रकषण करता ह । कोई सकट नही आन दता । सतकम म सबकी

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४२ तकाराम-गाथा-सार

सहायता करनी चाहिए । उसम भय माना तो नरक जाना पडता ह ।

भगवान की ओर दतगति स जानवाला शदध ओर धनय ह ! परमारथ का

जञान सनकर जिसक मन म उसका परिपाक होता ह, हरिपरम जिसक हदय

म हिलोर कता ह, मौर सवहित क लिए जागत रहता ह, एसा वयकति ही दव

ह 1

परोपकारी वयकति विशदध गणो की राशि ह । दव उसक अधीन ह ।

उसका धय कभी भग नही होता ।

निषठादनत भाव भकतो का सवधम ह । इस निदिचित मम स न चको ।

भगवान म निषकाम, निरचर विशवास रखो । दसर ओर किसीका सरा

न टटोढो । स अननय भकत की किसन उपकषा की ह ?

नितय नाम छनवाछ की चरणरज कन की दव इचछा रखता ह ओौर उस

पान क लिए वह उसक पीरपीछ दोडता-फिरता ह । जिसक कठ म वकणठ-

नायक ह, उसम ओर दव म कया कोई अनतर ह ?

हरिदास की भट होन पर पाप, ताप, दनय ततकाल चक जात ह।

नाम-सकीरतन म जो आननद-मसत होकर नाचता ह, महादव उसकी चरणरज `

की बनदना करत ह ।

जो भगवान को नितय भजता ह, वही पडित ह । जो सरवतर समबरहम दवता ह, सव जीवो म राम को दखता ह, वही परम का सचचा दास ह । उसक दन

करन स दोष जति ह ।

जिसकी सपण वासनाए नषट हो गई ह, उनह ही नहयरस की मिठास की

परापति होती ह 1 जो सार भदभाव की सकगनता स नितानत मकत होकर, बाहयञान को उपायि स रहित होकर, निज सवरप का जञान परापत करन वर

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भकत ओर सजजन ४३

ह, जिनका मन एक परमातमा म सथिर हो गया ह, उन निजातम-सख की कया

कमी ह ? जो सती-परषो को परमा का भान करात ह, व ही पणयवत ओर

परोपकारी ह । म उनक यहा उनका पायनदाज बनकर पडा ह ।

हम हरि क दासो को तरिलोक म कोई भय नही, कयोकि हम सक स

चछडान क लिए वह हमार आग-पीर खडा ह । हम अपन भावो स उस जसा

बनाय, वह वसा वनता ह ओर वतो का काम करन क किए वह डता

आता ह । म मख स विटठल को गाऊ, ओर निरनतर उसी सख म रह ।

वषणवो म मवित का दारिदरय नही ओर व ससार की भोर भी नही

दखत । गोविनद उनक चितत म टकर बठा ह । आदि, मधय, अवसान म

वही ह । उनहोन अपना सरव भोग नारायण क अपण कर दिया ह, ओौरव

उसीका नितय मगल-गान करत ह

उनका बल, बदधि परोपकार क ही किए ह 1. उनदन नामामत स पट

भर लिया ह 1 व दव सरीख ही दयावनत ह । व अपना-पराया नही दखत 1

उनका जीव ही दव ह । जहा व रहत ह, वही वकणठ ह ।

जिसक चितत म अहकार नही ओर परपच का तरास नही, वही तयागी

ह । यदि तयवत वसत का धयान रहा तो यह‌ सब विडमबना ह । भल-वर का

आप सवय विचार कर, बतानवाला ओर कौन मिलगा ?

जिनको हरि परिय ह, वह परष हो अथवा सवी, मञच भगवान‌ क समान

ह । उस भकत को म तरम स नमसकार करगा । जिसका अनतःकरण निरम ह,

उसीका अनतरबाहय कोमल ह । उसीकी सगति म मरा सब समय जाय तोडइस

समय की परतयक घडी मर लिए मगलरप ह । म अपनी जान उसपर नयोा-

बर करद‌ ।

हरि क दासो को भय ह, एसा कोई न कटो । भगवान उनक सामन

खड होकर उनकी इचछाए परण करत ह । हरि क दासो को किसी भी परकार

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द तकाराम-गाया-सार

की चिनता हो, यह असमव ह । भगवान उनको अनन-वसतर, आदि सव-कछ

द दत ह ।

हरि क दासो क यहा हमशा सल का कललोल होता रहता ह । जहा

हरि क दास बसत ह, वहा पणय फलत ह ओर पापो का नाश होता ह । नारा-

यण उनक रकषण क लिए सदशन लिय फिरत ह । हरि क दासो क यहा काम ,

करन क लिए दव सवक बनकर रहता ह ।

हमारा सवदश तो वरिरोक ह । हमारी निगाह म कोई दषट नही

ह 1 हमम ओर दसरो म मद नही ह 1 ठरिनामही हमारा घाम ह।

जिस परकार बालक का सब बोजञा मा पर होता ह, उसी परकार मरा

सारा वोजा तम सतो पर ह ।

वही पवितर ह जो विकलप की जड उखाड फकताह । जो बाहरी ठाठ

दिखात ह, व गनदगी स भर हए ह । जिसकी वदधि तरिकाल सावघान ह, वही आतमाराधन कर सकता ह । जो सदहगरसत ह, व परकति क बधन म ह । जो समबदधि समाधानरप ह, वही अखड धयान सचचा ह । अपना चितत

ओर वितत उसक हवा कर दो ।

जस आकादा सवतर सपण ह, वस ही सतो को समञञो-- गगाजल, अमत, सरय, हीरा, कपर ओर चिनतामणि की तरह विशदध ।

मकतिमान क आग बलवान का भौ ब नही चरता । उसका बल राम ह । वह‌ मकत जहा वठगा, वहा सवशकति विना बलाय आती ह । वह की भी रह, उसको ओर कौन बरी निगाह स दख सकता ह ?

शदवावान भोङ भकत कौ सथिति कभी नही बदलती । शष अपना पणय कषय हो जान पर षट हौ जात ह । कवर विषणदास ही गरभवास क दःख को नही जानत । विवा का नाम ही अचछा गौर सचचा ह ।

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सकत ओर सजजन। ४९५

भकतजन जसी इचछा करत ह, दव वस ही नाचता ह ओौर उस दव क

सकमार चरणो का व वनदन करत ह । भकति की अभिलाषा म व मवति को

भर जात ह । जिस मागन कौ इचछा नही ह, मगवान‌ उसका साथ नही

छोडत 1

जो कोई मागत नही, उनदीकी सवा करन क लिए दव दौडता ह ।

वह‌ दीन रप चारण करक भकत की सवा का ऋण धीर-धीर उसीकी सवा

करक चकाता ह । उन भवतो स वह एक कषण भी अलग नही रह सकता ।

` सचमच, जिसम भविति-भाव ह, वह दव का भी दव ह ।

हरिभकतो क यहा मोकष ओर सिदधिया दासिया बनकर रहती ह ।

जो मन, वचन, काया स भगवान क दास हो गए द, उनह काम-करोच

की वाधा नही होती । जो सवामी पर विशवास रखता ह, वह‌ उसपर अपनी

सतता चलाता ह ओर उसक समसत एशवय का भोकता वनता ह । हम अपना

चितत निरमर कर लग तौ वहा गोपाल आकर रहन रगग 1

जो अरथ, दह, पराण सवक छोड द, वटी हरि को जीत सकता ह

मोह, ममता, माया, चिनता छोडकर विषयासवति को जला डाङना चाहिए ।

लोक-खाज, अभिमान, मतसर का नाश कर दना चादिए । शाति, कषमा, दया

स मितरता कर उनह भगवान को बलान सविनय भजना चाहिए । अपनी

जाति ओर विदवतता का अभिमान छोडकर सतो की शरण जाना चाहिए 1.

जो किसीस कछ नही मागता, वही दव को परिय लगता ह । उसौको

दव समञचना चाहिए भौर उसक (चरणो म रीन रहना चाहिए । जिसक मन

म मतदया ह, उसक घर चकरपाणि रहता ह । म निङचयपरवक कहता ह

। कि उसक समान कोई नही ह।

जो सतो की सवा करन म जी चराता ह, उसकी ओर मरी दषटि न पड ।

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४६ तकाराम-गाथा-सार

जो सतो क चरणो म अपना भाव रखता ह, उसस भगवान‌ अपन-आप आकर

मिलत ह ।

साधक की दा उदातत होनी चाहिए । अनतरवाहय कोई उपाधि नही होनी

चाहिए । वह खोलपता छोड, निदरा को जीत ओर भोजन परिमित कर ।

एकानत म मथवा कोकानत म ाणो पर आ बनन पर भी सतरिथो स न बोल । एसा साधक ही गर-कपा स जञान परापत कर सकता ह ।

ससार की तमाम माया दव को अपण करक जो कोई उसकी भकति करगा,

उसकी भकति दव को अतयत परिय खगगी । परारबधानसार परमातमा जिसको जिस सथिति म रख, उसम समतापरवक रहना चाहिए । म तो अपन योगकषम

कासाराभारदव क सिर पर डाल दगा ओर अपना तमाम ससार उसक चरणो म समरपित कर दगा ।

जो दव की अननय भाव स शरण छत ह, उनह उततम जाति क जानना । जो हरि क शरणागत हए ह, उनक हदय म हरि का सवरप रवारव भर गया ह, ओर किर छलक पडता ह--उसम बरहमानभव कौ सलक दिखाई दन लगती ह ।

हरि क भकतो को यपन मन म भय तो लशमावर भी नही रखना चाहिए 1 कारण कि जिनक नारायण सरीखा सखा ह, उनक निकट ससार का मलय

हम अपन मन को हमशा सतोष-अवसथा म रख । ८

वरागय का उदय सतसगति म रन स होता ह । सनत साधकरो को अपन ससरग स निषपाप वना दत ह । £

सजजनो क दशन म गभ वचन सनन को मिलत ह। व वम-नीति का परतिः पादन करत ह । उनक परति करोध रखन स हित नही होता । अतयत मद‌ ही अचछा होता ह।

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{ ट

(

भकत ओर सजजन ४७

मर मन को परिय लग .ठस मर सचच सवधी तो हरिभकत ही द । निधन

` रहना ही उनका अदौभागय ह 1 उनका धथ कभी भग नही होता । जव उन

भखःपयास रगती ह, तव भी व अपन चितत म दव का ही समरण करत ह 1

नारायण ही उनका धन द 1

जो सचच कलीन होत र, व अपन मन की ऊची सथिति स कभी नही

डिगत । उनक हदय म जो भाव होता ह, उपतको व अपन वाहय आचरण म परकट

करत ह । उनका विचार ओर बरताव एक होता ह । उनम अपवितरता का

दाग कभी नदी कगता । उनक रस म भग कभी नही पडता । हीरा घन को

चोट स नदी फटता ।

जिनहोन परमारथ क रासत परयाण कर दविया ह, जो आ पडनवाल

आघातो को सहन करन का मनोव रत ह व हो सञच शरवीर द ।

जो अपन चितत को शदध भाव स दव क अरपण करक उसकी शरण म

जात ह, व दव क समसत परकार क वभव क मालिक हो जात ह । दव उनह

अपन स दर रखता ही नही द ।

सतो दारा आप मञच अगीकत करा द, तो फिर बरहमजञान गिडगिडाता

हमा चला जायगा, परनत भगवान क भवत उस गरहण करन की जयादा उता-

वरी नही करत । व सनत बरहमजञान स अरग भागत-फिरत ह ओर तरहाजान

उनक घर म जवरदसती घस जाना चाहता ह 1 जो बरहमजञान अति परयत करन

पर भी नदी मिलता, वह उदासीन वततिवालो क गल पडता जाता ह ।

जिसक अनतःकरण म दव का वास हजा, उसक ससार क ऊपर तो 7तथर‌

पड गए समदञो । दव उसक ससव का नाश कर उस अपनस अलग नही रहन

दता । उसकी वाण को दव असतय, आदि गदगी म नही पडन दता 1 जिसको

दव की सगति हई, उसका मनषयपना गया । दव उस किसी परकार कौ आदा

या नमता क पार म `धन नही दता । जिस दव की परापति हो गई इ, वह एसा

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४८ तकाराम-गाया-सार

सववता हो जाता ह कि सार जगत को अपन वडा म कर लता ह । य सव दव-

परापति क रकषण ह 1

जिसका चितत हमया सतषट ओर निरम रह, ओर जो योगय परसग को

तथा योगय काल को पहचानता हो, उस सनत जानना । +

, म वन म जाकर रगा ओर जिन-जिन वकषौ क पतत खान-योगय होग

उनट तोडकर खाऊगा । रोष सार समय विटठल का चिनतन किया करगा 1

वकषो की छार का वलकल बनाऊगा ओरः इस परकार दहाभिमान को जला

डालगा । परसिषठा को वमन (उलटी) क समान समजञकर विदटल परापति

क लिए एकानत सवन कारगा 1 जहातक‌ हो सक, म परपच क तिपरम नही

रखगा जर अरणयादि सथरो म रहकर एकानतवास का असयास करगा ।

जिसका एसा निरचय ह उसक परापचिक दःख-दाणिदरिय का नार ह जाता ह‌ ।

जिसन यलनपवक उपाधियो का नाश कर दिया हो, उसन सववर स

दव को हसतगत कर लिया समञजना, जिसन घन ओर जन का तयाग कर

दिया हो, वह सवय जनारदन खय हौ गया ह । इसम उतावरी काम नही दती ।

इसक रस की परतीति अनतर क अनभव स होती ह ।

हरिभकतो को किसी भी परकार का भय तो होता ही नही । उनह कोई

चिनता भी नही होती, कयोकि भगवान उनक समसत दःखो का निवारण

करत रहत द । परम उनक शरीर स दःल-दाणटिय का सपश भौ नही होन दत । जो समसत जगत‌ म वयापक ह, वही एक विदवमभर मरा सखा हो

1 “

जिस दिन मञज हरिभकतौ का दरशन होता ह बह दिन मञच दिवारी-

दशहरा क समान ह ।

मकत जो कछ बोलता ह उस तरफ भगवान धयान दत ह । भगवान‌ अपन मवतो की भकति स वव गय ह ।

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मकत ओर सजजन ४९

दो म शवर क विषय म मसीम लिखा ह । सार इतना ही ह कि

भगवान की शरण जाना ओौर निषठापरवक उसका नाम लना । बारह

पराणो का भी यही सिदधानत ह । ८

सचच सनत काम-कोधादि का अपन हदय स सपश भी नदी होन दत 1

जिसक मन म हरिनाम बस गया ह अकला वहौ तरता ह, ओौर सव

उसकी वनदना करत ह 1

कतरम‌ दयाभाव रलकर लोकोपकार करना दी जिसका कलघम

हो, उसक टाथ म सब साधनो का सार आ गया समञलना 1

जिनहोन सबकछ तयाग दिया, व तौ सदा क किए सखी हो गए । अगनि

को किसी शरकार की अपवितरता नही चती । सतयभाषौ लोग सासारिक

काम करत हए भी ससार स अकिपत रहत ह । परोपकारी म आतमसथिति

क] उदय हआ समननना । जो परगण-दोप-विषयक टीकाए न तो करता ह

जओरन सनता ह, वह जगत‌ म रहत हए भी जगत‌ स अरग रहता ह ॥

परमारथ परापति का सचचा. मम समन विना सारा परिशरम वयरथ ह!

जिसम वासतविक बराहमी-सथिति का उदय हमा ह, उसस तो एक

तिलका भी नही टटता, तो फिर जीव का वध तोकर ही किस परकार

, सकता ह ?

जिनक ससग स परम म वदधि ह, परम होतो दना हो जाय, उनहहीम

मनत कहती ह; जर जिनक ससग म आन स ईशा-तरम घट जाय, उनद म

दरजन भौर काल-मख कहता ह । ॥

। ; परमारथ-फर का सवन करनवाला कभी किभीक साथ वाद-विवाद

म नही उतरता । `

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५० तकाराम-गाया-सार

सनतो की सगति ही सल ह । भतमातर म परमातमा समान रप स

वयापत ह, फिर भी विषमता को सच मान लना ही दःख ह ।

जिस परकार कोर शरम करनवाल किसान कौ अचछी-स-अचछी फसल

होती ह, उसी तरह जो परिभरम उठाकर भजन करता ह, उस ही हरि की

परापति होती ह । अपना हित करना-न-करना आपक हाय मह।

जो एक बार भी हरि को जीत ठ उसका सख सवस अधिक समञचना ।

जिनहोन अपना तन, मन ओर धन शरीहरि को समरपित किया होता ह,

उनहीक पास वह रहना पसनद करता ह 1 जो हरि कौ कीति का वरणन करत

ह व समरथ ह । शष सव, चाह व चकरवरता हो, कगार ओौर दयापातर ह ।

बरज क गवाल भकत ओर निरमिमानी थ, इसीलिए उनको दव कौ

परापति हई ।

जो भगवान को नही मरत व ही सचमच उदार ओर दानवीर ह । इसस उनको कीति सरवतर फल जाती ह ।

हरिनाम-समरण करनवा अविनाशी-पद को पात हः ओर उनह सब परकार क सख की परापति होती ह । सव सख का अनभव उनक अनतःकरण म होता रद, तो फिर उनह वाहरी सखो की दरकार भी कयो रह ?

चाह दराचारी हो, मगर जो वाचा स हरि का नाम कता ह तो म मन- वचन-शरीर स उसका दास ह । हरि क गण गान म चितत म माव न हो तो भी कोई आपतति नही । जो अनाचार करता ह, मगर वाचा स हरिक नाम का उचचार करता ह, अपनको हरि का दास कहता ह, वह‌ धनय ह--चाह शदध कल का हौ या चाडार धरान का ।

बर कलवार लोग भी अनतापपवक हरिसमरण करन स मकत हो गए । 1.

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भकत ओौर सजजन ५१

हरिभकतिरदित बडपपयन को आग रग 1 दजन मञच दिखाई न द 1

अभकत बराहमण मानो राड का पतर ह । उसका मह जल जाय । चमार वषणव

हो तो उसकी मा धनय ह । उसक दोनो कल पवितर ह । यह तो पराणो न ही

कह रला ह, म अपनी तरफ स नही कह‌ रहा ह ।

जाति मौर कल की दव को कोई कीमत नही होती 1 जो कोई उसका

अननय मकत होकर रहता ह, उसक साथ वह भी अननय भाव स वरतन

करता ह ।

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5

भगवान ओर उसकी भकरित

एक भगवान क सिवा ओर किसीकी सतति करना हमार किए बरहम-

हतया क समान ह 1 म विषणदासो का एकविव भाव ह 1 हम दसर को दव कभी नही कहनवाछ । अगर स वचन स पल, तो मरी जवान शतखड हौ

जाय । अगर मन म किसी अनय दव का सकलप काऊ, तो मञञो जग क सब

पाप रग ।

सतो का अतिकरम करक दवपजा करना अधम ह । दव को सनाय गए मतर ओौर चढाय गए पषप, दव क सिर पर मार गए पतयरो क समान ह ।

यदि कोई अतिथि को तयागता ह मौर दव क किए नवदय तयार करता ह, तो एसी भद-वदधि स कौ गई दव की सवा सवा नही, ताडना ह ।

सतो की सवा करनी चाहिए । कारणः, वह दव को पहचती ह । उसस

“सव कारयो की सिदधि होती ह । मवत दव क ही अग ह। धरम का मम

यही ह‌ ।

मगवान‌ का आशरय लन पर तमह मबित कौ चिनता करन को आवदयकता नही ह 1 तव तमहार अनदर दनय-दारिदरय भी नही रहगा ।

दव मर आग-आग रहकर सार भोग मोगता ह । म सव कतततव-

मोकततवरहित होकर यो ही बठा ह । आजतक मर पीछ खग हए शभागम

करमो क सख-दःख का निरसन करन ओर भोगनवाला दव ही ह इस जञान स होगया ।

(जीव ओर शिव' का ख करता न लीला स ही किया ह । सारा आभास

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मगवान ओर उसको भदित ५३

अनितय ह । सचमच तो जगत‌ विषणमय ह । वणधरमखल ह । सवकरछ एक-

ही स बना ह, उसम मिनन-अभिनन का वयवहार कसा 2 यह निणय साकषात

वद-परष नारायण न किया ह । उसी परसाद का रसाननद म परपत हजा ट ।

इसङए भगवान क चरणो क पास ही मरा वास होगा । उनस म कभी जदा

न. होऊगत-+-

नारायण की कपा स विषवत‌ दःख अमतवत‌ सख समान हो जाता ह ।

निततमान हरि क सवक होन स हम भी शकतिमान हौ गए ह । ससार

को लात मार दी । काम-करोवादिक छौ ऊभियो को नषट कर दिया । जन,

घन, तन को तणवत‌ कर दिया । अब हम मकति क मसतक पर ह ।

इस. कलियग म दसरा उपाय नही चलता । भगवान क चरणो की ही

शरण गहनी चाहिए । उसक पट म सब पणय ह, ओर उसस सव पापोका

नाश होता ह । उस लन क लिए समय ओर कार दखन की आवशयकता

ही, न किसी तयाग कौ ।

खान को न मिल; सनतान न बढ; मगर नारायण कौ मकषपर कपा

रह । मरी बाणी मश एसा उपदश करती रह ओर दसर छोगो स भ यही

कहती रह । शरीर की विडमबना हौ या विपतति आव, मगर मर चितत म

नारायण रह । यह सब परपच नाशवत ह, इसलिए गोपाल को हमशा समरण

करन म ही हित ह ।

माव ही भगवान ह ।

जहा-जहा जो-जो भोग परापत हो, व सब हरि ही भोगता ह, एसा समजञ

कर हरि की सवा म समपण करना चाहिए । इसीको सहज पजा कहत ह ।

निरभिमान रहना चाहिए । जीव न कत तव-मोकततव का अभिमान न रखा

तो दव उसस अङग नही

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५४ तकाराम-गाया-तार

आग-पीछ, अनदरबाहर, सरवतर अगर दव ही ह तो हरि क दास को भय किसका ? दव क पास काल का बल नही चरता । उस घनी क यहा कमी किसिबातकीटह ?

दव अपन एकनिषठ भकत का भार अपन सिर पर लकर उनक योगकषम की चिनता रखता ह । अगर भकत माग स मटका, तो वह‌ उसका हाथ पकड कर सरल माग दिखा दता ह ।

एक भगवान क चिनतन स कया नही होता ? भगवान का चितन सरव- साधनो का सार ह ओर वह भवरसिष स पार उतारनवाङा ह ।

जिस पद की हम इचछा करग, भगवान हम उस जगह ल जाकर पहचा दगा 1 उसका चिनतन कर तो वह‌ चितत को अपन सवरप स ओतपरोत कर दता ह । इचछित फल की परापति क किए शरीर म मगवचचिनतन का बल चाहिए । तब सिदधि उसकी चरण-सवा करती ह ।

मगवान की चाकरी करन स इचछा पण होती ह ओर आतमा को अपना परम पद परापत होता ह ।

भगवान ही मरा दव मौर भगवान ही मरा गर हो गया ह । वह भरी अभिकाषाए पण करता ह ओौर अनत म अपन पास बला लता ह । मकत क पीछ-आग खडा रहकर वह उनह सभारता ह, गौर उनपर आनवाक सकरय को दर करता ह मौर उनह योग-कषम दता ह । उनह रासता दिखलाकर मोकष- माग पर लगाता ह ।

बहत-स विदवान तकशासतरी होत ह, मगर भगवान का पार उनह नही मिकता । बहत-त पाठ-पाठनतर कन स ओर अरयो का विचार करनस मी मगवान को महतता उनह नही अनभत होती । भोलपन क विता भगवान का लाभ नही होनवाला । जञान क मापस उस कितना ही मापो, वयरथ जायगा । “

~~~

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भगवान ओौर उसकी भकति षष

धीरज धरन स नारायण सहायक होता ह । वह‌ अपन दासो पर शरम

नही पडन दता, ओर चिनता भी नही करन दता । हम आननद स कीरतन कर

ओर हरि क गण गाय ।

सचित कम ज सकत ह । भगवान क चिनतन स पापमल तथा ताप-

जार नही रहन पाता ।

भगवनि का धयान अनतःकरण म करना, यही उसका मखय पजन ह ।

इसक अलावा सब उपाधिया पाप ह । सहज सवरप सथिति एषी सथिति ह

जिसस कभी जी नही ऊवता ।

जञान की वात कहना भी कठिन ह, तो हदय म अनभव कस आ सकता ह ? इसङए अजञ जीव अगर हरिभजन ओर हरिकथा म समयक‌ परकार

स चितत रगाय, तो उनक दःख का परिहार होगा । वन म जान स समाधान

नही होता ॥

उदरःपोषण क योगय काम करना चाहिए, परनत विशष आतमीयता

तो नाम की ही रह । चितत म भगवान का धयान धरन का ही काम कर‌ । दव

की सवा म जड जान की ही भावना भागयवानो को करनी चाहिए ओौर यह

सारी बल-बदधि खच करक करनी चाहिए ।

भगवान का नाम ककर भीख मागना खजजासपद ह । एसा जीवन नषट

हो जाय । भगवान एस लोगो की हमशा उपकषा ही करत ह । दव क परति

भकति-माव हए विना, जीव को हरि क समपण किय विना, बाहरी भकति

दिखलाना वयभिचारवत‌ ह । विषयचछा स दीन होकर दनिया को बोकषिल

करना ही अभागय ह । इसका कारण दव क परति अविवास ह । सचची शरदधा

हो तो विदवमभर कया-कया न कर दगा । उसक चरणो को दढता स पकडना

ही सार ह ।

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६ तकाराम-गाया-सार‌

हरिभकति क भाववल स हरि क भकत अविनाश ह । योग, भागय,

व‌ शकति उनक घर चकर आती ह ।

ह दव, अगर भकति-सख का अनभव नही आया तो म जञान लकर कया कर ?

. अब दव क अतिरिकत मजञ कछ नही बोलना, यही एक नियम कर वयाह काम करोध को दव क अपण कर दिया ह ।

जो हीरा घन की मार स नही एटता, वह अचछी कीमत स अगीकार

किया जाता ह, उसी तरह जो जग क आघात सहन करता ह उसको दव अपना बना ठता ह ।

जहा अपनी मान-परतिषटा ह, वहा मपनी अपरतिषठा करक पचभतातमक नषट दह की विडमबना कर डालनी चाहिए । एसा करन स घर-गहसथी कस रहगी ? जिसका हरि स परम ह वह तदरप हो जाता ह ।

बिना भवित का बरहयजञान बिना शककर क दष क समान ह । विना . नमक क अनन रचिकर नही होता । अनध को कछ सिखा तो वह उसका नाममातर जानता ह । तर .का सार भाग उसक तार ह ।

हम जसी भावना करत ह वसी दव कौ दन होती ह, इसकिए यल करन स.कया नही हो सकता ? कपासिनध भगवान‌ अपन दास की उपकषा नही करत; वह‌ उसक अनतर की वयया जानत ह । छोटा वारक मा स मागना नही जानता मगर मा उसक हदयभाव को जानती ह; ओर उस किसी तरह का दःख न हो, एसा करती ह । मन इसका अनमव ह; कोई अनयथा बोठ तो म नही मान सकता ।

यह‌ नारायण जीवो का जीवन ह, अमत सवरप ह, बरहमाणड काः भषण

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भगवान ओर उसकी भकति ७

ह, सखद सगतिवाला, ओौर काल का भौ काल ह । वह निज भकतो क¡ रारण-

सथान ह, माधरी का माधरय, आननद का कौतक भौर परीति क पयार ह । वह‌

परम, माव का निजभाव ओर नाम का भी नाम ह । वह‌ सव सार-का-सार ह।

यदि त ही नही मिला तो कोर बरहमजञान का म कया कड १ ऋदधि, सिदधि,

-शासवनिपणता तर बिना मार ह 1

ह परभो, म तरी चरण-सवा सावन क लिए जनम ल । हरि नाम कीततन,

सतपजा किया कर भौर तर दरवाज पर लोटा कर । आननद स परिपण

रहकर म कही मी रह । सख-दःल कौ म इचछा नही । न कोई दसरा उपाय

कर, न आशा रख । सव परकार स उदासीन रह तो जसा-कह-वसा काम

करनवाली दासी बनकर मोकष मर घर रदगा ।

जञानावसथा स म बहत डरता ह । ह नारायण, वह मर निकट न आव।

आपक, भविति-सख की समता कर सक एसी तरिरोक म कोई चीज नही ह ।

अरष-निमिष सतसगति का कलप क अनतपरयनत बकणठ म रहन क समान ह ।

सतसग करनवाक क पास मोकष आदि पद बचार विशननति लन क किए

आत ह । मकष अखणड भकति द ।

चातक पथवी पर भर हए जल की ओर न दखकर पराणो को कठम

रखकर मच की बाट जोहता ह 1 सरय स विकसित होनवाली कमलिनी चनदरा

मत न छकर सरयोदय की भतीकषा करती ह । गाय अपन वचच को छोड दसर

बड को अपन पास नही आन दती । पतिवरता को सवभाव स अपना पति

ही परिय होता ह । इसी परकार एकविष-भाव स धपरवक पराणोतसग होन

पर भी नियम न छोडन का दढ निशचय हो, तभी मर विठोवा की बात छड ।

` भवत क अनतःकरण का भाव दव जानता ह ओर उस परण करन का

उपाय करता ह । कहन-मागन कौ जररत नही ह । जी-जान स घयपवक

उसका अनसरण करक अविनाशी फल की परापति कर छनी चाहिए । वालक

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५८ दकाराम-गाया-सार

नही मागता, फिर भी मा उस बलाकर भोजन दती ह । उस दव का आशय

लकर कितन ही पगगो न गिरि पार कर दि ह ।

अननय भकत अजञानी भी हो, दव को अतिशय परिय ह । उपमनय, धरव

ओर परहवाद कया जानत थ ? उनक चितत म नारायण बसा हआ था । परम सवय भोला भकत ह मौर हमन उसक चरण पकड रख ह ।

भकतिपय बहत सरल ह; वह पणय-पाप रहित ह, इसकिए जनम- मरण नाडक ह । भकतिपथ पर खडा ह विठोवा हाय उठाकर बलाता

ह ओर अपन मह स कहता ह कि भकतो का सारा भार म उठाता ह । वह‌ अपन भाविक भकतो को पार उतारता ह ओर कतकरियो क सिर फोडता ह ।

हमारा मन वीरज नही रखता; वरना भगवान क पास कया कमी ह ? हरि पर सव वोजञा डालन पर वह दास की उपकषा नही करता ।

दवयोपाजन क किए हम जमी चषटा करत ह, वसी हरि-परापति क किए करनी चाहिए ॥

भगवान क चरण तमाम तीरथो क उतपतति सथान ह ओर लकषमी जिन का सवन करतौ रहती ह, सब सत अपन अनतिम विशरानति-सथान क रप म उनह ही माग ठत ह ।

दव को अपना बनाय बिना जीव को सख नही मिलनवाखा । दव क चिना सबकछ मायिक मौर दःखद ह । उसक परारमभ स अनततक दःख ही भरा हमा होता ह ।

कोगो की सतति करन स अपन आयषय कौ बरवादी होती ह 1 एसा करनवाला नारायण स विमख हो जाता ह मौर उसम स सव परकार क

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भगवान ओर उसकी भकति ५९

पापो की उतपतति होती ह । दव की सतति क सिवा कछ भी सनन स पाप रगता ह ।

भगवान को भकतो कौ अटपटी वाणी भौ अतयनत परिय लगती ह । वह उनकी समपण इचछाए पण कर दता ह ।

चितत क मतसर को दर करना ओर सखरप होकर रहना यही विशवमभर

का सचचा पजन ह ।

यडा, शरी, ओौदारय, जञान, वरागय ओर एडवय, इन छह गणो स यकत

कवर भगवान ह ।

दव क पास मोकष की पोटी बधी हई नही ह कि जिसम स वह मोकष निकालकर तमहार हाय म रख द । विषयो स मन भौर इनदरियो को खीच

जना ओर इस परकार निविषयी हो जाना ही मोकष का सवरप ह ।

राम अपन भकतो क पीछ-पीछ दौडत ह । राम क सवक उनक गल म रससी बावकर जहा चाह ल जात ह । राम अपन सवक को परमारथ क रासत

स भटकन नही दत । व कभी असावधानी स गरत रासत चक जाय, तो राम

उनका हाथ पकडकर उनह परमाथ क समयक‌, माग पर लगा दत ह ।

नारायण अपन अनय भकतो को इचछा रखत ह, ओर यदिव रक हो

तो उनको अपनी पदवी तक दकर निहार कर दत ह ।

दव का सवभाव एसा ह कि जबतक अपना काम परा न हौ जाय तव- तक सवय कया करना चाहता ह, इसकी किसीको खबर तक नही होन दता ।

नारायण जव कपा करग तव यह परापचिक जञान ही बरहमरप बन

जायगा । जव दव अपना सवरप वता दगा तव जीव-दशा म पडा ही नही

रहा जायगा ।

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६० तकाराम-गाया-सार

दव को पचान का साघन एक भकति-भाव ही ह । सक सिवा ओर

किसी साधन स उसकी परापति नही हो सकती 1

जिनम शदध भाव ह उनक लिए दव सरवतर मौजद ह, ओर जो भावहीन

ह उनक हाय वह कभी आनवाला नही । दव-रहित कोई सथान ह ही नही,

एसा जिसका अनभव हो गया, वह सवय दव-हप हौ गया ।

नारायण का सवभाव एसा ह कि अपन भकतो क सकट, समरण करत

ही टाक दत ह । अननत भगवान फल की सिदधि परयनत अपन मकतो कौ मदद

करत हः ओर उनह निरधारित सथान तक पहचा दत ह 1 भकतो का तो इतना

ही कततवय ह कि सवतोमाव स नारायण की शरण क 1:

भगवान परणकाम ह । उनक गणो म सबस मखय गण दया ह।॥ दयाक

तो मानो वह‌ समदर ही ह । वह अपन भकतो को किसीपरकारकाशरमया कषट

नही करन दत । उनकी उदारता दख तो सवय लकषमी को उनकी दासी पात

ह; उनकी शरवीरता दख तो कलिकाल को उनस परासत पात ह; चतर इतन

कि सव गणो की रारि ह; पागल इतन कि जिसम माव दखा कि उसक सवक

बन गए 1 अपन भकतो का जठा खा जान का उनह बडा शौक ह । वह‌ जीव

मातर म वयापत ह, फिर भी उनद कोई जान नही सकता । वह सबस धरषठ ह।

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"भ प कगकवष

६.९ 4

भजन ओर कीततन

यकताहारादिक किनदी साधनो कौ आवशयकता नही ह । तर जान का

अलय साधन नारायण न दिखाया ह, वह‌ यह कि कलियग म कीरतन करो,

उसीस नारायण भिर जायगा । कौकिक वयवहार छोडन का ओर वन म

जाकर मभत लगाकर दड लन कौ जररत नही ह । हरिक नाम को छोड-

कर सब उपाय वयरथ दिखत ह ।

हरिकीततन स हरि की कपा का परसाद मिलता ह । वह दर हो तो निकट

आ जाता ह । म यह मम तमको तरनत वतलाय दता ह कि तम अपना

मन अपन हित क माग म रगाओो ।

परम-कीरतन को छोडकर म शाति, कषमा, दया कया जान ? अमत क

सागर म इवकर शरीर क परति चिनतित कयो रह ? मञञ जग म रहकर

आननद ह, म वन म एकात-सवन बय कर ? मष विदवास ह, भगवान मर

साथ चलत ह ।

हरि क नाम क गीत जस हम गात ह उसी तरह उनद चितत म भी

रखना चाहिए । यही बडा मदिकल ह । अनन दखन स भख नही मिटती ।

हरि की कथा वितत म रखन क लिए ही सनी जाती ह । खाय विना मल

नही मिटती ॥

जो दव तप, वरत, दानादि, बड-बड साधनो स नही मिरता, वह नाम

लन स दौडा आता ह । जिसक पट म चौदह भवन ह वह भवत क कणठ म

रहता ह \ शरीहरि भकतो का ऋणी ह । उस शसतरौ-पराणो या योगियो क

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६२ तकाराम-गाथा-सार

घयान म नही पाया जा सकता । वह तो भकतो क कौततन म आकर आननद

स नाचता ह ।

हरि-कथः दव-घयान ही ह । कथा सरवोततम साधन ह । कथा सरीखा

पषय नही ह । भावसहित नारायण का नाम लन स एक कषण म महादोष

जल जात ह ।

जो भाव स कीततन करता ह, वह‌ सवय तरकर ओरो को तिराता ह

मौर नारायण स जा मिकता ह, इसम सशय नही ।

जो पवितर हरिकया को सादर गायग-सनग, उनक दोषो क पहाड

जल जायग । हरिभकतो क पास समसत तीथ पवितर होन क किए आत ह, ओर सव पवकार उनक परो त रहत ह । हरिकथा का माहातमय अनपम ह । बरहमा भी उसक सख का वरणन नही कर सकता ।

जो कोई करतार, मदग आदि लकर परम भर अनतःकरण स हरिनाम कीततन करता हमा गाता-नाचता ह उस तदरप ही समञलना चाहिए ।

हरिमजन सरीखा आननद तो सवग म भी नही ह । हरिनाम-समरण करन स चारो परकार की मवितयो की परापति होती ह ।

यह‌ हरिकथा समसत वररोकय म बरहमरस क रप म भरी ह । विषण भगवान उस हाथ जोड रह ह; दिवजी उसकी चरणरज को नमसकार कर माथ पर चढा रह ह । उस हरिकथा न ककिकाल को बनदी-गह म डाल

रखा ह ।

जो कोई हरि-कथा गायगा, उस ससार क दःखो का सपश भी नही होनवाला । उसक ठिए तो सारा ससार ही सखरप हो जायगा ।

हरिनाम-समरण स पाप कषणभर म नषट हो जात ह । शरीहरिनाम सकीततन कौ जहा गजना होती ह, वहा सब पाप जक जात ह ।

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भजन ओर कीततन ६३

जप-तप आदि साधन करन स जिसकी परापति नही होती, वह हरि हमको उसक गण गान स मिल गया ह ।

राम-मजन करन म ही जीवन कौ सारथकता ह । राम क सिवा सव मिथया ह । राम क सिवा रोष सब नादावत ह । रामक नामक सिवा ओर किसीम क सार नही ह ।

अनय समसत मीठ रस किस काम क ? उनस इस विकारी दहकाही रकषण होता ह । परनत राम का भजन करत हए सखी रोटी खाय तो भी वह दध, शककर, मकखन सरीखा सवाद ओर पषटि दती ह ।

हरिकीततन करनवालो को उदर-पोषण की एव तरणोपाय कौ कोई चिता करनी ही नही चाहिए; कारण कि इन दोनो वातो का दायितव दव न अपन सिर कभी का ल रखा ह । दव अपन पीतामबर स भवतो का रासता साफ करता चरता ह । वह‌ अपन भकतो क घर उनका दासतव करता रहता ह । जिनहोन मन, वाणी, ओौर शरीर दवारा अपना तमाम भाव दव को समित कर दिया ह, उनका सारा भार दव अपन ऊपर लता ह ओर उनका सारा वयवहार निभाता ह । हाल की वियाई हई गाय जस अपन वचड की ओर दौडती ह, वस ह दव अपन भवत कौ मदद को दौडता ह । भमञञ दव की परापति होनी ही चाहिए" एसी उतकठा जिसम जागी हो, उस सचचा भागयवान जानना ।

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8

सगण निरगण-विचार

दव भकतो को अपन नजदीक रखता ह ओर दरजनो का सहार करता ह । चकर गदा-धारी दव का यही धवा ह । निराकार ही साकार हो गया ह । जिसकी जभी इचछा होती ह, भगवान उस परी करत ह \

शसतरो का जो सार ओौर वदो की जो मति ह, वह‌ हमारा पराणसखा ह । सगण ओर निरगण जिसक अग ह बही हमार साथ करीडा करता ह ।

सम अतिरय परम का भखा ह । इसीका उसक यहा अकार ह ।

सतो का अनभव-सिदध जञान उबदजञानियो को सवीकार नही! सत

तीवर सगण भवित-माव धरकर तर गए; मगर वह ताकरिको क अनमव म नही माया.ओौर उनहोन सगण दव का निषष ही किया ॥

शदधचरया सत-पजा ह । इसम घन या वितत नही रगता 1 सगण भकति क माग स गए तो हमारा विशरानति-सथान, हरि का सगण रप, अपन-आप भवत को खोजता जाता ह ।

सतो की सगति स दव को सख हआ; इसीलिए वह उनकी सवा करता ह । निरण दव सगण साकार होकरःसतो की पजा करता ह ओर उनको दणडवत करता ह ।

किसी गाव की सीमा बनान स पथवी क खणड नही हो जात । भवित क दिए अरपी परमातमा हरि व हर क सगण रप म आया ।

हम मौकषपद तचछ ह । हम तो मगवत‌-चिनतन क लिए यग-यग म जनम

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सगण-निरगण-विचार ६५

लना ह 1 हमार किए दव न साकार रप वारण कर लिया ह अव हम उस

निराकार नही होन दग 1

यह सच ह कि सवर जीवो म दव अवय ह, परनत सगण दव क साकषातकार

क बिन। कोई नही तर सकतः । सबम जञान द, परसत भकति क विना वह

बरहम नही हो सकता ।

दव पाषाण का ह मौर जिस सीदी पर खड होकर उसकी पजा करनी ह बह भी पतथर की ह । भाव ही सार ह । जिनदोन इसका अनभव किया ह, व.

सवय भगवान हो गए ह 1

ईङवर‌ सरवभाव स भकतो क समागम म रहता ह ओौर कह विना उनक

सब काम करता ह । वह उनक हदय-सपट म रहता ह गौर छोट-स सगण

आकारः म बाहर उनक सामन खडा रहता ह । भकत कछ मागग इस आशा

म बह उनक मह कौ ओर दखता रहता ह ओौर उनक मनोरथो को ततका

परा करता ह । परनत भकत अपना जीव-भाव दव क चरणो म अपण करक

कछ भी नही मागत ।

जिनहोन दव को निराकार अवसथा स साकार अवसथा म लाकर रख

दिया ह, उनको दव का बाप जानतता । दव ओर उसक भकत परसपर बडी

निकट सबध स जड हए ट ।

दव कहता ह कि म तमस दर ह ही नही, तम जसा भाव मर परति रखत

हो, वसा ही म तमहार परति रखता ह, ओर उसी रप स तमको परापत होता ह ।

भजीर होत तो ह दो, परनत उनम घवनि तो एक ही उतपनन होती ह ।

उसी परकार सगण ओर निरगण म कोई अनतर नही ह ।

सफटिक दिला म अपना कोई रग नही होता; परनत वह पथक‌-पथक‌

रगो को घारण करती दिखाई दती ह, फिर भी सब गो स अरिपत रहती ह ।

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९६ £ तकाराम-गाथा-सार

उसी परकार दव सव परकार क काम करता ह मौर सवय उनस निलप रहता ह । जसा उसक भकतो क सन का भाग वसा वह हो जाता ह ओर उनकी वासनाओ को परा करता ह ।

दत का निरसन होन पर एक हरि ही अवशष रहता ह, तव उस ददन क लिए बाहर जान को आवसयकता नही रहती ।

अपनी सवरप-विसमति म सोय हए जीव, त मलतः परमातमा सवरप ह। €

यह‌ आतमिक दषट क खलन पर तरी समञ म आयगा ।

समसत जगत‌ को विषणमय जानना ही वषणवो का धम ह। भदाभद मतविचार, कवल अमगल गरम ह ।

मन चम-चलओो स न दखकर भी जञान-द‌षटि स सवक दख लिया ह । जिहवा न जो रस नही चख व सब आतम-रसना न चख लिय ह । न बोल हए बोर पारमाथिक परावाणी न सब परकट कर दिय ह । सथर कानो स जो नही सना, वह ततव मर अनतरमख मन म आ गया ह‌ ।

(ईश) सवरप की याद‌ करन स जीव ओौर‌ सवरप दोनो एक हो जति ह, उसम कषणमर का मी वियोग नही होता । सारा बरहमाणड परमातमा का सवरप ह एषी भावना ही पजा ह । भगवान को एकदशीय मानकर पजना . वयथ ह ।

सवतर म ही भरा हमा ह -- भगवान न अपन सवरप की यह‌ पहचान करा दी ह । इसकििए‌ मः उसक सवरप क अतिरिकत मौर कछ नही दखता। मरी सथिति ओर मति दव स पथक‌ नही ह ।

मगवान जिसका सखा ह, उसपर सारी दनिया कपा करतीः ह । एसा सबका अनभव होन पर मौ हरि की पा सपादन न करक सव जीव विषयो

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सगण-निरगण-विचार ६७

क लिए हीः तिलमिलात रहत ह । दव जिसकी रकषा करता ह, उस अगनि भी बाघा नही पहचा सकती ।

भ निःशनद बरहय का ही परतिपादन करता ह । मत दहवदधि स मरकर

जीवनः पाया ह । दह स ससार म ह, आतमसस नही । सब विषय-भोगो का तयाग हो गया । म सवसग म रहकर भी निःसग ह ।

मिठास को जस सब गड ही ह, वस सबकछ दव ही हो गया ह । अनदर बाहर दव ही ह, फिर किसको भज ? पानी स तरग अलग नही ह । सोन मौर गहन म सिफ नाम का फक ह, उसी तरह दव म ओर मञषम कवल

नाम का अनतर ह, वासतव म दोनो एक ह ।

जीव शिव का मल सवरप जो भदशनय परबरहम ह, वहा जीव दिव करी समरसता ह । जीव ओर परमातमा मरतः एक ह ।

मानसिक पजा ही भगवान को परिय ह । कलपना का वह भोग लता

ह । भकति का बाहरी-खाठ-बाट उस पसनद नही ह । भगवान अनतःकरण क

भत-वततमान-मविषयत‌ क भावो को जानता ह ।

अगर त ही विव म वयापत ह, तो म तञषस अलग कहा ह ? अगर अनदर-

बाहर कवल त ही ह तो अनदर स कया-कया निकाल बाहर फक‌ ? ओर

बाहर स कया-कया अनदर डाल‌ ?

निरगण स सगण दशन कन गए तो एकय-भाव म भद पदा हो जाता

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9,

उपदश ` इस परपच-सगति म जो तरी आय वथा गई, उस हानि को त‌ कस परी

करगा ? निन सतर-पतरो क मोह म त फसा हमा ह, व तज परयाण क समय छोड दग । जो उततम लाम ह, उसीका विचार कर ।

परसतरी को मा क समान मानन स कया खच होता ह ? दसर की निनदा न कौ ओर दसर क दरवय की अभिलाषा न को, तो उसम तमहारा कया खच होता ह ? राम-राम कहन स तमको कया शरम होता ह ? सतो क वचनो पर विवास रखन स तमहारा कया खच होता ह ? सच बोलन स तमको कया कणट होता ह मौर तमहारा कया खच होता ह ? कवल उतन स ही परभ की परापति होती ह मौर कोई कषर करन की आवदयकता नही ह ।

: जो कम किय जात ह, व फलदायक होत ही ह, इसलिए फलाशा न ` करो। 6

पतर, पल, बनध, भादि स सबघ तोडो । यह सव जजाल लगन रग, ¶ फिर उसस सवघ रलकर दोष म लिपत न होमो । आदमी क मरन पर जस हम उसक नाम का मटका फोडकर उसस निराश हौ जात ह, उसी तरह इन सवको मरा समजञकर इनक नाम क मटक एकसाथ फोड डारो । तयाग क विना भोग कभी परा नही होता । ।

जौ नारायण क अनतराय वन, उन मा-बाप करा तयाग कर दो। वाकी क सतरी, पतर, घन किस गिनती म ह? व हम दःख दनवार शतर ही ह। भहलाद न अपन पिता का, विभीषण न जपन बड भाई का, भरत न अपनी

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उपदश ६९

भा गौर राजय का तयाग करिया 1 हरि क चरणकमल ही सवधम ह ; अनय

उपाय दःख-मल ह ।

मान-अपमान की गतथी खोल डालो 1 हमशा समाधान रहना ही दव

का दरशन ह । जहा शाति की बसती ह, वहा कालगति कटित हो जाती ह ।

अनतःकरण म जो-जो ऊमिया उठ, उनह शाति स सहन करन स परमा

सरम हो जाता ह ।

सपण साधनो का सार यह ह कि चितत म हरष-विषाद न हो । अधिक

शोष करन की जररत नही ह । सारा परपच ज ह । दट‌-अभिमान

छोड द ।

दरजन की गघ दर स भी आती ह । उनस दर रहो । उनस कभी न मिलो

न बोखो । दजन क अग म अटट गदगी भरी हई ह । उनकी वोी रजसवला

कसाव की तरह ह । दरजनो स पागल कतत की तरह डरत रहो । दजन का

अग-अग भी अचछा नही । जिस दश म दरजन हो, उस दश तक का तयाग कर

दना बतराया ह । जयादा कया कह दरजन का शरीर नरक ह ।

अगर तरा अनतःकरण शदध नही ह, तो काशी ओर गगा तरा बया कर

कमी ? परम बिना बोलना कतत क भोकन क समान ह ।

जिसक चितत म जसी वासना होती ह, वसी ही उसकी भावना होती

मन को परसनन रखो । यही सब सिदधयो का आदि-कारण ह । मोकष,

बघनः, सदगति, अधोगति, सबका मल कारण मन ह । पतथर की मतति म

दव की कलपना मन ही करता ह । मन ही इचछाए पण करनवाला ह । मन ही

सबकी मा ह । किसी वयवित म गर क कलपना मन ही करता ह 1

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७० ६ तकाराम-गाा-सार

नाशवत अलकारो स करिया गया पजन कया सचचा पजन ह ? यहा सब- कछ नाशवत ह, लोगो को कषणिक का लोम दिखाकर कस फसा ?

शोक स शोक नढता ह, इसकिए हिममत करक खब धय षरो । इस जनम म थोडा-सा मी परमाय सा चया तो काफी ह।

जिसका जसा अधिकार ह, वसा उसको मारग दिखलाया गया ह । चरन स रासता मालम होता जाता ह । पार उतरन क बाद नौका को मत जला दना, कयोकि वह बहतो का पार उतरन का आघार ह।

शाति क पर सख नही ह, सिए सबको शातिही षारण करनी चाहिए! इसीस तम भवसागर पार कर सकोग । अगर चितत म काम-करोष खदबदात रहोग तो शरीर म आधि-वयाषि पदा होती रहगी । शाति धारण की, तो तरिविष-ताप अपन आप चल जायग ।

दवारचन करत समय यदि षर सतजन आय, तो दव को एक तरफ ` रखकर सत कौ पजा करनी चाहिए । .

ह जिह, सिवा मगवान क गौर कछ न बो । सब इदरियो स मरी यही विनती ह कि भगवान स विमल न हो । मर कान सिवा उसक नाम ककछ न सन । मरी मख सिवा उसक रपक कन दल । ह चितत, निङचित, एकविष, ओर अखड भाव स भगवान क चरणो म रत रह । हायपरो चलो मौर भगवान को नमसकार करो । भय कया ह ? हमारा पकषपाती नारायण ह ।

रथी परमा कस कर सकता ह ? लोम स चितत भिखारी हो जाता ह ।

अपन दहरपौ घर म दव को निरनतर बसाना चाहिए । इसस बठत,

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उपदवा ७९१

सोत, खात, चरत ववत उनका सग रहगा । सस सकलप-विकलप, पणय-पाप

भी नषट हौग । सव कार भगवान क योग का सकाङ हौ जायगा ।

अगर पानी निरमल नही ह तो साबन कया करगा ? उसी तरह मगर

चितत शदध नही ह तो बोघ कया करगा ? वकष पर अगर फल-रल नही ओत

तो वसनत ऋत कया करगी ? वाजञ क वचच नही होत तौ पति कया कर ?

नपसक पति स उसकी सरौ कया कर ? पराण जान पर शरीर कया करियाः

करगा ? पानी क विना धानय कस पकगा ?

अभिमान का नषट होना ही योग ओर तप ह । करना हो तो यही करो ।

इसीस आवागमन नषट होगा ओर दह-भार दर होगा ।

अपना हित करन भ दर न कर, कयोकि काल-पतता अपन हाथ म नही

ह । जो अपना हित कर लता ह, वही बदधिमान ह ।

सरववयवहार की ओर एक ही समय त एक मन को कस वाट सकता

ह? दह को परारबध क हवार कर चितत म भगवान को दढतापरवक रख ।

उस छोडकर दसरी वात स सकलप कौ ओर मन कोन लगा) तभी तरा

परमारथ काय सिदध होगा । इस भलीभाति जानन स सहज सथिति की

परतीति गी । 9

परमारथ कौ राह जलदी छ, नही तो दर पड जायगा । करितनी ही खट

पटकी,तोभीसारओौरही ठ जात ह । परपच-मार कयो वयरथ सिर पर ढोता

ह ? जबतक आय शष ह, तबतक जलदी कर । अर ओ बवचक ! तकस'

परमारथ का एक भी धकका सहन नही होता तौ त परमारथ-मख को कस परापत

करलगा ?

उस रासत चलना चाहिए जो कि जहा जाना ह वहा पहचा द । वहा

(न की बात वहा पहचन पर वयरथ हो जाती । मजो परो

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७२ तकारामगाया-सार

पडकर बोलता ह सो सनो । कया भवित-भाव ही वहा जान का रासता नही ह ? मन म उतकठा होनी चाहिए ।

तमम पानी हो तो शर बनो, वरना सीध-साद मजदर बनकर मज- दरी करो; परनत दोग न करो । थ

जिसक अनतःकरण म सतो क वचनो पर , विरवास हो, उस उपदक करन की जररत नही ह ।

दरवय का काल पीछा कर रहा ह, इसीिए उसका सग करना मिथया ह । दरवय नरक का मल ह । परारनध स मिरनवाला दःख-सख नही टक सकता, इसङिए किसी फल कौ तषणा रना वयय ह । परमय को सादर शरवण करो ओर नितय टिकनवाल परमा घन को ठत रहो ।

अनतःकरण म हरि का धयान करक सख स तपत हो । मह स कया वड- बड करता ह ? जबतक अनमव की मिस नही चखी, तवतक विधिनिषध की माया-पचची करनी पडती ह । मौन धारणकर अपनी बदधि को सथिर करो, यही साघन की सिदधि ह ।

तम सवय नकट हो । शरो पर गससा कयो करत हो ?

मनषय को चाहिए कि अपन निरवाह भर क कए काम कर। चितत म हमशा सतषट रह, यही नारायण क अनतःकरण म आ जान की पहचान ह । हमशा भातम-विवक स काम कर । अनतम होन स मातमा कौ परतीति होन लगती ह ।

यकत आहारःवयवहार हो; इनदरिया नियमित रह; -बहनिदरा, वह- भराषण न ही । परमाथ महा धन ह । अपनी दह दव क समपण कर ध

द, उसका छ मी मार अपन पर मत रख । इसस सव आननद होगा। ।

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उपदशा ७३

परदरवय ओर पर-नारी ही गदी चीज ह । जो इनस रर ह वह पवितर

` ह । गय-पदय क गरनथ किखकर दसर क पस हरण करन की चषटा न कर । उसस अपनी बदधि निकिपत रख । पाप-पणयातीत पजी इकटठी करनी चाहिए । वन म न जाओ; विव ओर विडवभर समान ह 1

ए मर दरगति करनवार मन, तजञ कितना समषाॐ ? त किसीक

सीछ-पीछ नः लग । अनय क परति किय गणए सनह स दःख होता ह । जग क परति निषठर होन म ही हरि का परमसख ह । विचारकर दख ओौर वअ की

तरह कठोर हो ।

हाय-पर अगनि की खराक ह, इसलिए हरि-भजन छोडकर इनका पालन

कयो करत हो ? भकतिभाव की जगह खञजा या खौकिक वयवहार का

विरचार न करना । जो इसपर हसता ह, उस बरहमहतया का पाप रगता ह ।

कथा क समय जो कथा-शरवण म मन पिरोता ह, वह दववान ह बाकी क

` छोग पतयर ह जो मनषय का जनम लकर आ गए ह ।

सब जग दव ही ह तो भी उसक सवभाव कौ ओर न दखकर उसक पर

ही पडना चाहिए । अगति का सौजनय शीत-निवारण ह, उस पलल मन

बाघो । सरप, विचछ‌ नारायण ही ह, तो भी उनह दर स ही नमसकार करो

हाय न लगाओ ।

त भगवान‌ का समरण करता रह । कार तरा दा हौ जायगा । माया-

जाल का बनधन टट जायगा । समसत ऋदधिया-सिदधिया तर कहन क अन-

सार करनवाली हो जायगी । सब शासतरो का यही सार ह । यही वदो.का

मखयाथ ह ।

त निशचल बठकर उसका षयान कर । ` वह तकञ अन-वसवर दगा ।

हम अधिक सचय करक कया करना ह ? सरको पति करनवाला दव हमारा

ऋणी हो गया ह । वह बडा दयाल व मायाल ह, भकत कौ जररत जानन-

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७४ ४ तकाराम-गाया-सार .

वाला ह । शरणागत स लाड कडाना भी जानता ह । उसस मागना या

कहना नही पडता, कयोकि जिसकी जसी इचछा ह, उस वह‌ जानकर परी

करता ह । ल अपनी वाणी को विटठल क नाम का जलकार पहना, इसस

त सवय ही दनिया म विटठल हो जायगा ।

हरि भजन मर परारवव म नही ह, एसा मत कह । र मढ, एसा मत कह

कि मरी दह विषयोपभोग ॐ किए ह । ह चाणडाल, एस। न कह कि नर-

दह परमाथ करन क लिए दव ह । इत मलो को कहातक कह ? भरी

नही सनग तो आखिर मह म धल पडगी ।

सवचछद जग की सवा कौ इचछा न रखो, कयोकि उसस दव की अवजञा

होती ह । दह का निगरह करनवाला दव ह, दह उसक हवाल कर . दनी

` चाहिए 1

जिन वचन स नारायण स अनतर पड, व वचन गरक भीहोतो

भी मत मानो।

मोग स ही रोग होता ह । जिहवा रस-सवन क पीछ लग गई, तो दसत होन रगत द ।

जिहवा स नितय नारायण का नाम लता जा । इसस जनम, जरा,

वयधि, पाप-पणय. य सब दःख नषट हो जायग । जनम, जरा, दःख, वयाधि प

को जौर कामकरोध अहकार कौ ऊमियो को तत समभाव स सहन करक

अविनाशी आतममख अपन मनदर साधय कर ठ । असरो को रटन स अभि- मान ओर विधि-निषव पीछ लगत ह, वाद करन स निदादि दोषो का वरप गता ह । इस परकार य मषण दषणो कौ जड ह । इसकिए इन विषयो की छटयटी छोड द ओर सवभाव स सतो कौ शरण जाकर हर हार म परसनन रह ।

1 कननययरौ

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उपदश ७५

जिस परष क दो सतरिया ह, उसक घर पाप बसता ह । जिसको पाप की तलाश हो, बह उसक घर चला जाय । जो शठ बोलता ह, वह‌ पाप कौ खान ह । जो सतय बोलता ह उसक समीप सवसखो का भडार ह ।

दव क सिर पर अपना सब भार डालकर उसको दह समापत कर दनी

चाहिए । दिह म ह" यह अभिमान मिथया ह, ठसा समञञकर सार ससार-

भार क निमितत सवरप इस अभिमान का तयाग कर दो । इस दहादिक परपच का सग छोड दो तो तमहार अनदर भगवदानद परकट होगा ।

दह म नही ह ' यह भाव द‌ होन पर जीव परमातमा सवलप हो जायगा ।

‹ इसकिए सारा समथ इपी चिनतन म लगाओ । दव स कोई सथान खालो नही,

इसलिए अपन रकषण की चिनता न करो । जीव को अपण कर दन स हदय म

दव परकट टो जाया ।

दव पर पड हर अपन समसत मार को कदी पर उतारो मत । भख-पयास क समथ चिनतन करना अचछा । दव क चिनतन म लापरवाही दिखान स

शरीपति का अनतराय होता ह । म ठव क सिवा सारा वभव गदा मानता ह ।

सतरी क तयागन स बरहमचय की परापति नही हौ जाती; दश तयागन स

वरागय नही आता । वासना क कारण काम ओौर भय बढता ह । इसकिषए

घीरज स वयथ कौ वासनामो का तयाग कर । टी परशसा करन स वाणी

गदी होती ह ।

अनन न छोड, बनवस न कर । सब भोगो क समथ नारायण का चिनतन

कर । मा क कष पर चलनवाल बालक को चलन का शरम नही होता, उस

बालक को मा क सिवा सब भावनाओ का मडन करना चाहिए । न मोगोम

फस, न तयाग म पड । परपगोपातत जो-जो भोगता जाय,उस दव क अपण करक

नषट करता जा । इसक अतिरिकत अब ओर कछ बार-बार मत प, कयोकि

इस छोडकर अब ओर कछ उपदश दष नही रहा । ?

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७६ तकाराम-गाया-सार

जबतक मह म राम.नही ह, तबतक सव लट वयय ह । सावधान !

साववान ! सकलपो स मन को मकत करर ! जो भोग तर भाग म आय उनह

मगवान क अरपण करक कवल ईश-चिनतन कर।

जग को सचचा मम नही बतलाना । तदविषयक सम रहन दना 1 सचचा

मम नही बतलान सव पौर लगग ओर वयय शरम उठायग । व सीखी हई बात

को हदय म धारण नही करत । अनभव क बिना कहना वथा शरम होगा ।

एक जाति क पराणौ का दसरी जाति क पराणी स भट करान का सकलप

हदय म न लाओ 1 जो होनवला हो, वह होनहार क अनसार होता रह

जिस भरकार कि नाराथण न तय कर दिषा ह । वयाच कौ भल मिटान क किष

गाय का वव करना कया पणयकाथ होगा ? सवारथा आदमी परा विचार नही `

करता । .

तथान को उपदश का एक वचन ही काफी ह । अगर त आख नही

, खोलगा तो अनतकाल म यमराज तरी खबर लगा ।

एस दव को छोडकर तर दीनवाणीवाखा कस हो गया ? कामनाओ स

हदय भरा रखत हो, मगर आखिर म हाय म धल मी नदी रहन की । उदार,

जगदानी, शरणागत का अभिमानी पाडरग भगवान ह । बह तरसीदल,

पानी ओौर चिनतन का भला ह । सबक दःख का निवारण वह‌ सवय करता ह।

उसम मिलन क किए कोई परतिबनव तदी ह । |

पह गजञान क कारण जनममतय क बहत-स दःख सहन किथ, अव आग कयो नव बन ? जो क सख-दःख हो उनह दव पर डालन क अलावा

किमो तरह भी कोई खटपट न करो ।

इस मिथया परपच का मोह न रखकर जीव को साकषी क खप म रहना

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उपदश ७७

चाहिए । अनकतव म एकतव ह ओर एकतव म अनकतव । परकति सवमाव क

अनसार उसका अनभव होता ह !

लोगो म अपना मान बढा दखकर निरिचनत न हो; भतो की परीति

स मत-ति (योनि) म जाना पडता ह । इसलिए अपन मन को भगवदभकति

म लगाना चाहिए, वरना मन इदरिपो की सहायता स बहिख हो जायगा ।

एकःपरमातमाकी ही जोर मन को लगाना चाहिए । मन का सवभाव एसा ह

कि जिस रग की ओर उसको कगाव उस रग म रग जाता ह । दव सव करमो स

निषकाम ह ओर जीव अवसथा म ही कम करन की आदत होती ह ।

निरभर होना साधन का मल ह; शष सव कञट गौण ह । ठोग का कोई

वयवहार अधिक नदी चरता; आखिर सच-ञठ का फसला हो जाता हि ।

जिसको परमचिनतन का ही परम द, उस ही सचव लाम म सभञलना ।

जो आशा को सभक खोदकर निकाल फक सक वदी व रागी बन ।

तजो कछ सीखा ह, उसका अभिमान रखगा, तो यमलोक क रासत

जायगा। जिस नमरता नदी, बह तलवार नही कठोर लोह ह ।

जहा हरिनाम का गजर बज रहा ह वहा त अपार लाभ मपत लट 1

रासत म चरत हए कदम-कदम पर मा पाडरग का चिनतन करना

चाहिए । इसस वह भगवान सन सख लकर चिनतन करनवाल क पीछ खग

जाता ह, गौर अपभी पसनद का रस उसक कठ म दारता ह 1 उस भकत पर

आसकत होकर बह अपन पीतामबर को छाया करता ह, गौर उसक मह स

कया परिय उततर मित ह, यह सनन क किए उसक मह कौ ओर दखता ह ।

नारायण क नाम समरण को ही जीवन बना डालना चाहिए । इसस मख-

` पयास नही सतायगी ।

अपना हित चाहत हो तो दमभ को दर करदो । शदध चितत स ईवर की

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७८ तकषाराम-गाथा-सार

सवा करो । विटठल का नाम एकानत म परम स गाओ । इसस अलम लाभ

घर पर चला आयगा 1 यह‌ आखिरो बण ह; इस छोडकर वाणी का वयरथ

वयय न करो 1 =,

चाट का वयवहार लोटा द । जिनहोन आलस को जीत लिया द, उन

दखकर भी त अमन आलकीपन पर लजजित नही होता ।

जनम-मरण म पडकर त नितय नय-नय दःखो स कषट पा रहा ह । इसकी

तञञ शम नही ह ? काम-करोषादि चोर तञञ पथ-मरषट करक नषट करन पर

तल हए द । त यह दखत हए मौ कयो नही दख रहा ? .

शरता का ही मोक ह । थोयी बकवास स काय-सिदधि नही होती ।

रतिजञापवक किया हआ निशतरय कभी न छोडो । धय ही सफलता का

कारण ह । धय स नारायण सहायक होता ह । हरि निशचय स अपन दासो

कारकषणकरता ह।

यदि तन एकानत म वठकर एकागरचितत स अपना चितत शदध कर लिया,

तो तञञ ठसा सख मिलगा जिसका अनत नही ।

मानव खद ही तरता ह ओर खद ही मरता ट । अतः अपना उदधार

सवय करो ।

अर, तजञ एक सर अनन कौ आवशयकता ह, उसीकी इचछा रख । बाकी वडबड वयय ह । मोह‌-पाग म बषकर कयो तषणा बढाता ह ? तञ

साद-तीन हाय जगह चाहिए, अधिक पान का शरम वयय ह । एक राम को

मलाकिशष सवशनमहीह।

जिस तरह कोलह क वर पर करणा न लाकर तलो उस मारता द, उसी परकार मवयरमण क दःख सहन ही पडत ह । इसकएि जबतक तमहार

हाय म ह, अपना सवहित दख छो ।

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च य किषादकयनयाककषककक क क र क ` 3

उपदशा 1 ७९

मनषय-दह दीघ काल क वाद भिर ह । शोघ लाम ड रो, वरना

वह नषट हो जायगौ । हरिनाम ततपरता सलो ओर सख क भडार मरलो।.

बाद म फरसत क समय अपना हित-सावन कर ठ, एसा कहना पागलपन ह। कया जीना अपन हयम? `

हर एक कौ चाह परी करन क किए नारायण हाय ऊपर उठाय खडा

ह । वह सरञ, उदार, मारईवाप जिसको जो रचता ह, उसक सामन ला

रखता ह । जस अपन कम होत ह वसी ही पसनद होती ह ओर वसा ही खाना ौर भोगना पडता ह । इसकिए मर वसत को हौ विचारपरवक गरहण करना चािए । जो बोया जाता ह उसीका फक काटना पडता ह !

बबल क पड पर अम क आग ? ईखवर स कछ न कह, त सवथ ही अपना

शात-मिवर ह ।

अगर त इनदो का दमन नदी कर पाया तो फिर तन यह परमारथ

की दकान कयो रग। रखी ह ? बाहर स घला हआ, अनदर स मलिन ।

, इस तरह अनत म तर हाय कछ नदी लगगा । `

लोग जव निषकाम होग तमी राम को आखो स दखकर रामषप

. हो जायग ।

ह सतो, अचछी तरह सनो । सबका सार एक यही ह कि दरजन का

तयाग करना चाहिए । पयाज स भी जयादा बद पयाज खानवाक क

` मह स आती ह । जस( सग वसा रग ।

` अनतकाल का सबधी भगवान ही ह, उसीका आशरय ल ।

शरीर को बाहर स धोन म कया ह ? जबकि अनतःकरण गदा ह

पराप-यणय कौ गदगी तर अनदर भरी हई ह । फिर हमशा पवितर रहतवाली

ममिःकी छभकछत का त कयो विचार करता ह ।

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८० तकाराम-गाथा-सार

ए मर जघीर मन, म तञषस एक बात पता ह । त निरनतर दशचित

कयो रहता ह ? खान की चिनता करता ह । तञषस अचछ तो पकषी ह । चातक

पलली पथवी का जर नदी पीता, इसलिए उसक लिए बादर गरमी म वरषाः

करत ह । कितन ही जीव पानी ओर वन म ह, उनक पास कोई सचय ह

कया?

मर, त कपाल दव का चिनतन कयो नही करता ? वह‌ अकल! सवका

परतिपालन करता ह । गभ क वचच को वदधि ओौर मा क सतनो म दध कौ

उतपतति कौन करता ह.? गरीषम काल म पड पर पततिया फटती ह । उनद

पानी कौन दता ह ? उसन तरी कया चिनता नही की ? त उसीका समरण

करता रह । जिसका नाम विशवभर ह, उसीका धयान त सतत धर ।

कनया-यतरादि का मोह मगलदायक नही । इसस अपन ओर परमातमा

क बीच एक लौकिक परदा पड जाता ह ।

दही म छा ओर मकखन दोनो होत ह, परनत दोनो को एक दाम पर न मागो । आकाश क पट म चनद ओर तारागण होत ह, परनत दोनो को समान न समशनो । पथवी क पट म हीर ओर ककर-पतयर ह, इन दोनो को

एक-दसर स न बदलो । उसी परकार सतो ओर ससारियो को समान रप सनभजो।

जिसस अपकीति हो उसका पणरप स तयाग कर दना चाहिए ।

तयाग करना हो तो अहकार का तयाग कर । फिर जिस सथितिम त हो उसम रह 1 फिर दख कि दोष कया वचा । दत को स।मन न आन दो । शदध मन ओर सनतोष चाहिए ।

उततम वयापार स दरवय परापत करो. ओर उस उद।सीन भाव स ख करो । इसस उततम गति ओर उततमः मोग मिग । परोपकार करना, पर-

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पिवनति म,

उपदश ८१

निनदा न करना, पर-सतरी को मा-बहन समशचना, भत-दया स गाय आदि

पञओ का पाङन करना, पयासो क लिए जग म पानी का परबनध

करना ह, शतरप रहना ओर किसीका बरा न चाहना, बडो का महव

बहाना- गहसथाशरम क य ही मखय फल ह ओर परमपद-परापति क लिए

आवशयक वरागय-वल यही ह । ।

कोई चीज खो जाय तो उसक किए वयय जी न जलाना । यह‌ समकन ठ

कि वह वसत आपन कषणापण कर दी ।

ह दव, विषय-सवन म त मशच आलसी बना ओौर तरा नामलनकी

शकति द । ओर कछ बोलन म मरी वाणी को गगी कर, परनत तरा गणा-

नवाद करन म मरी वाणी को बल द । तर चरणकमल क अतिरिकत जर क दखन म मरी आखो को"अवा वना द ।

ह परभो, आपस मरी एक ही माग ह कि दजन की सगति मक विलकल

न होन द । उसस घडी-षडी चितत म विकषप होता ह । ¦

जो अपन हित की वात कहता, ह, वह मानो जीवनदान दता ह, ओर

जो मनपसनद आचरण करन की वात कहता ह उस घात की समशचना । जिस

तरह गलत रासत पर जानवाक अध को रोका जाता ह, उसी परकार अधरमी

को जबरदसती करक भी रोकना चाहिए 1

त ठसा सनयास क, जिसस तर सकलप का नाच हो जाय ; फिर त कही

रह- बसती म, जग भ, परग पर या जमीन पर, चाह जहा । जस आकार

अण-अण म समाया हआ ह, उसी परकार दव सरवव ह ।

त शसतरो क शबदो का वाचन करता जाता ह बारवार‌ उनका पासयण

करता ह, परनत जबतक तरा अनतःकरण शदध न होगा, तबतक वह‌ सव वयथ

ह । भावारथ गरहण किय विदा ऊपरी वाचन भाररप ह । परभः परापति करनी ह

तो उसक परति एकनिषठा-यकत भाव रखता जा ।

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८२ तकाराम-गाया-सार

अपना समपण भार दव क सिर पर डालकर अयाचक वतति सवीकार

करना ही सार ह । अपनी दह को दवाधीन कर दना ओर उसक दारा

योगय समय पर योगय कम करात रहता । इस विरव क अनदर विव का पोषण करनवाला ह ही, एसा निशचय मन क साय कर लिय कि वही जिस समय जसी चाहिए, वसी वयवसथा कर लता ह । तम निचय समननो कि उपरयवत सथिति एक परकार का वल ही ह ।

जो तमह रहजञान चाहिए तो सनतो क चरणो की सवा करो ।

“ह मरा' ओर "यह तरा" यह दरतभाव जाता रह तो जीवातमा पर जो-जो

वोजञा ह वह सब उतर जाय । इस एक बात क अलावा आपको ओर कछ भी

नही करना ह ओर कछ तयागना भी नही ह । सवरपभाव सवभावतः शदध. ।

परपच क मोहजार म आशा-तषणा क कारण जीव बनधन म पड गया ह 1 जीव को फसा मारनवाखा तो उसक मन का भठा सशय ही ह । सवरप-सथिति म भख का अन‌मव होता ह सौर दःख की छाया भी वहा नही होती । सवका करता एक नारायण ह । लाम-हानि, मान-अपमान को समान जानना । इस ही सचचा सखी जानना ।

एक अचयत क नाम-चिनतन स तर तमाम काय सिदध हो जायग । एक हरि क ऊपर निषठा रखना, यही सौ वात-की-बात ह ।

कवल भाव-भकति स ही तमहारा काम होनवाला ह । दभयकत आचरण स तमह नकसान ही होगा ।

दव की ही सतति करो जौर जो निनदा.करन का मन होतोभीदवकी ही करो । दसर काम म वाणी का वयय करना अधम. कारय ह । रोग समयक‌ जञान कौ बात सनत वकत बहर हो जात ह गौर नरक स जानवाठ कामो को पसा लच करक भी करत ह ।

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उपदश < ८३

। भवसमदर म डब ह को बारह घडी उस पार जान का विचार.कसत

रहना चादिए । यह‌ दह नागवान‌ द ओर किसी-न-किसी दिनि विरीन हो

जानवारी ह । इस एहिक' ओर परापचिक वयवहार क उनमाद क वशीभत

होकर अधा नही बन जाना चाहिए ।

महान‌ परषो क साथ जान-पहचान रखना अचछा ह 1 उसक अतिरिकत

अनय लोगो क साथ भारई-चाराः करन कौ इजञट म न पडना। लटना हो तो

एसा.खजाना लटो कि जिसका कभी अनत ही न आव । महान‌ यश परापत

करक जीना उततम जीवन ह । |

परमारथ की साघना करत समय कोई दरसर की वाट न दख, न दसर

क किए खडा रह । ।

जस मिशरी की डी पानी म पडकर उसक साय मिल जाती ह, उसी

तरह तम भी अपना मन नारायण को अरपण करक उसक साय तदरप हो जाओ ।

कगाल लोग धनिया का नादा चाहत ह ; मख पडितो की मौत चाहत

ह । माई त दसरो का खयाल छोडकर दव की शरण मजा।

ह मनषयो, तम जरा भी चिनता नही करना ओर लश-मातर भी भय नही

रखना । कारण कि नारायण अपन भकतो का हमशा सहायक होता ह ओर

उनका रकषण करता ह । उसस कछ कहना हौ तो शबदो की योजना करक

सनदर भाषण तयार करन कौ भी जररत नही पडती । निरभय भौर निःशबद

रहो । ~

ए मर मन, त अनय कोई सकलप-विकलय न करक कवर भगवान का ही

, चिनतन करना । वहा अपार सख-भडार ह । वहा कलपना कौ गति कटठित

हो जाती ह । वहा हदय को विशराति मिर जाती ह ओर तषणाए शानत हो

जाती ह‌ । र

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८४ तकाराम-गायः-सार

दरजनो क साय कभी मितरता नही करना, उनका कभी ससग भी न होन दना ; कयोकि उसस बार-बार चितत का भग हमा करता ह । दरजनो स तो हरर ही रहना मौर उनक साय बोलन तक का परसग न आन दना ।

नारायण कौ एकविध ओौर एकनिषठ होकर उपासना करना, कयोकि विषय-माव स उस कषट होता ह । तदविषयक भावना म तनिक भी अनतर न पडन दनाः। विकषप का नाश करना ओर नितात एकाक रहकर आननदकनद `

शरीहरि म अननयभाव रखना । आलस ओर निदरा का तयाग करना, धय धारण ` करना ओर जागरतावसथा म रहकर हरिसवरप का दढ आकगिन करना । र

अर जर जाय यहजञान मौर यह चतराई ! भगवान‌ क चरणो म मरा भाव बना रह, मञञ इतना ही बहत ह । य आचार जौर य विचार भी जल

` जाय ! भरा मन पर म सथिर हो जाय यहौ बहत ह । दभ, मान ओौर लौकिक वयवहार म आग लग । मरा मन परमातमा क वयान मः मरन रह मञञ इतना ही चाहिए । यह शरीर जर जाय ओर इसक समबनधी भी जल जाय । मर कठ | म निरनतर परमाननद शरीहरि का वास हो यही बहत ह । मर मन ! जिसस सबकछ सिदध हो जाता ह एस शरौ विटठल क चरणो का आशरय छ ।

चितत म विवक का उदय होन पर वरागय धारण करना चाहिए । उसस पहक वरागय छन स रोगो म बडाई मिरती ह पर उदधतता भी मा जाती ह । अनतर क आदशानसार माचरण करना ही उततम ह ।

` जितना बोलन स तमहारा हिततहो उततना ही बोलो । वयथ बडबड करक , “ यखी जीवो को. कषट न दो । तम सवय शदध हो जाओ इतना ही. बहत ह । म तमहार परो पडकर कहता ह किदसरो को धिककारो मतः; अपनकोः शदध बनाो ।

अर मनषयो ! तम अपन जीवन म. चाह करोडो सपो की समपतति

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उपदश ५

परापत कर लो, फिर भौ मरन पर उस समपतति म स एक क"1टो भौ तमहार

साय नही चलगी । तम इस सरमय पान चवाकर लाल मह किथ फिरत हो,

परनत आखिर म तमह फीक मह ही जाना होगा । आज तम गदो -तकिथो पर

सोत हो, पर एक दिन तमर गाय क गोबर स किपौ जमीन पर सोना होगा ।

अगर तमन रामनाम को मखा दिया तो निदिचत जानना कि जनम वया

गवा दिया । 4

किसी का सकोच करना ह तो अपन चितत का करो । सब सल मिल,

बही काम करना । मतमातर क परति समदषटि रखना ही दव को सचची पजा .

ह । मतसर रखन स दःख होता, ह । किपीस रषट होना हो अयवा मह चढाना

हो, तो अपनी जात पर ही; कयोकि शोष सब तो हरिखप ह । सवका पराण हो

जाना ही सतन ह । . ~ १

त दवताओ क पजन क कट म न पड । जप, तप ओौर धयान करन कौ

मायापचचौ न कर । परमातमा क रासत मड । उसको भकति क आननद का

अनभव करन लग । वहा 'जो सहज गहय ततव ह व तरा निजसवरप ही

ह । इस त सवानभव स दख छ । मव त.सावधान होकर इस एक ही जनम म `

ससार-बवनो को तोडकर मकत हौ जा । |

त हर समथ खान-पीन की ही चिनता करता रहता ह । अपन कलयाण

का त तनिक भी विचार नही करता । शरदधा रल, ईइवर तरी कभी उपकषा

नही करन वाला ह । ॥

मह स 'राम', "हरि नामोचवार का सवन वडा सरल ह । इसस अकमय

लाम तमहारा घर पकता-पकता चला आया । इसक सिवा कोई कषी भी

अजन सवन करन की चषटा करना ही नही । तप, तीरथाटन, महादान ङ

आकर की जरत नदी ह । सिफ मन को एकोगर करक नामचिनतन करन

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2 तकाराम-गाथा-सार

| स तमह हरिपरापति हो जायगी । कवर नाम की सहायता स ही तमह नारायण ` की परापतिहो जायगी ।

जिसकी सगत करन स मन को सख होता हो उसीकी सगति करनी चाहिए 1 जितक ससग स चितत को कषोभ होता रहता हो .उनस दर रहना चाहिए । जिनका सवभाव अपनस परतिक हो उनक साथ समबनसः नही रखना चाहिए, चाह व कोई हो ।

जिस‌ दरवय क अनदर पनदरह परकार का अनय भरा ह, उस त दर फक द । जिसम तरा कलयाण ह, जिसस तरा सचचा सवाय सिदध हो, उस त सिदध करल। ,. 2

जवतक मन म स काम का नाश न हो गया हो तबतक सवी-बचचो का ^ तयाग करना योगय नही ह ।

अनक परकार की वासनाओो स परित होकर सकलप करना ओर उनक . पीछ पडना, इसको अपकषा त सकलयो जर उनक परिणामो को ही छोड द । इस भकार दःख का सरलता.स अजनत आ जायगा ॥ सवपन क जसमो पर त वयय रोता ह । जितनी जलदी हो सक त मलदव कौ शरण जा । वहा तञ सब फलो क परापति हो जायगी । ॥ स

सार कटमब का तयाग करन पर भी अगर ततसमबनधी वासना रह गई । तो पनः कटमब की परापति हए बिना न रहगी । तो फिर तयागी होन काढोग करन काकया परयोजन ह ? -

` जो जिसका धयान करता ह उसक साय तदरप हो जातोह । इसकिए तम जिस परपच का फलाव किय बड हो उसका कषय कर डालो, भौर खब दढ‌ मनस

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उपदशा ८७

विकवगधापो भगवान का समरण करन लगो । वह आकाशस भी घडा ह सौर

अण-रण‌ म भी समा सकता ह।

अर ! त पन मन को सकचित करक छोटा कयो बन जाया करता ह ?

दव को अपन हदय म समा छ ओर बरहमाणड को एक ही गरास म निगल जा।

"म दह ह' इस भावनास व छटसषरमधिरगयाह।

गरनथो का अधययन ओर पारायण ही करता बठा न रह । जितनी जलदी

हो सक एक बरत का जारसम कर-दवकीही इचछा की शरण होकर ओर

दहाभिमान छोडकर दव का ही भजन करन लग । भगवान एसह किनाम

समरण करनवाल को तरनत ससार-सरिता क पार उतार दत ह

मिलन का सख कनाहो तो पहल सर हथरी पर कना होगा । अपन

हायो

अपन ससार म आग लगानी होगी ओर मडकर दखना न होगा । जिस तरह

पकतगा जान जोखिम म डालकर दीपशिखा पर टट पडता ह, उसी तरह

तमह भी निरभय हो जाना चादिए ।

मन म एक भाव ओौर जवान पर दसरा भाव यहत करतातो

ह, परनत

अनतरयामी परमातमा तर दोनो भावो को जानता द ।

इस भपकर ओर पराणघातक घन-समपतति म लभाकरत‌ कयो मलावि म

पडा ह ? त रामनाम गा; कोई गाता हो तो सन । राजा आद

ि दसर रोगो

को त अपना मानता ह । परनत जब काल आयगा तब कोई काम नदी

आयगा। १ =

मर राम क सिवा साररप सख ओर किसम ह, यह त मङष बताए तो

म तरा दास हो जाऊ । कीति ओर नाम क किए चाह जितनी

दोड-धप करो,

~ परनत एक दिन उसका नाश इए बिना नही रहनवाला ह ॥

सचार का तयाग करन स पहल मन को शदध करलना चादिए । काम-

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८८ तकाराम-गाया-सार

करोधादिक वततियो को आशरय दन कानामही ससार ह । जिसन अपन दह समबनधी लोम को छोड दिया, वही सचचा सनयासी ह ।

यदि तरा अनतःकरण भगवा रग स रग नही गया तो बाहर स भगवा वसतर पहनकर त कया करनवाला ह ? अपन बहिरग को त मरत दमतक धोया कर तो भी उसस तर अनतःकरण का मल दर. नही होनवाला ।

जिसक ससग म आन स परम-सख दना हो जाय उसकी सगति करनी; मौर जिसकी सगति स अपन मल परम म भी कभी हो जाय, उस कलमहा दजन समकनना । अगर मिलना ही हो तो मन-को-मन क साय मिला दना ही उततम ह ।

सारा जगत‌ दवरप ह, यही एक मखय उपदशा मञञ. करना ह । पहल तो तम जो भ-पना' ह उसका तयाग कर दो । इतना करोग तो कसौटी पर खर उतर जागोग । प एक ही वचन म बरहमजञान का मणडार ह, यह निशचयपवक मान लो ।

भरापचिक काम करत समय उनम आसबत मत हो । ममतव-रहित एव निरिपत रहना चाहिए । सव परकार की लजजा छोड दनी चाहिए । नाना परकार को उपाधियो क बनधन को तोड डालो ओौर एकतव म रहन- वाल एक अदवितीय परमातमा का साकषातकार करो । समसत परकार क दहा- दिक परपच की माया स अलग हो जान पर सासारिक कामो मभी वासतविक सख मिलता ह । एसी सथिति परापत करन क किए पहल सदविचार करक दहादि का समबनध.तोड डाखना चाहिए । तमम ओर मञम दोनो म एक सामानय आतम-सवरप भाव ह । उस सथिति म अवसथान करक तम मदशनय ओर सरवोचच सवरपावसया को परापत कर लो ।

पचमतो मौर सपत धातगो स बनी हई दह को जीतकर जो त अपन अधीन नही करगा तो इस खल भ कस टिकगा ?

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उपदश ८९

भगवान का एक कषण क लिए भी विसमरण न होन दो। सवक जीवन

को सरर बना दनवाला यही एक उपाय ह । गर करन की ओर उसस

कान फकवान की कोई दरकार नही ह ।

जो त एकयभाव स करीडा करन लगगा तो त इस ससार क शिकज म

नही पडगा । दवत भावना रखी तो फसा ही समञलना । त ससाररपौ सल

खलत समय अपनी आतम-सथिति म सथिर रहकर ससार क

खल स अलिपत रहना ओर विषयो का समबनध काट डालना । इस

परकार ससार-करीडा करता हमा त एक दिन दव बन जायगा ।

एक भगवान क सिवा तमह कछ जानना ही नही ह । स विषयम जरा

भी सशय रखोग तो तमह निररथक शरम करना पडगा । जिसस परम उतयनन

हो, एस साधन का असयास हमशा करत रहो ।

जो तरारायण.का समरण कराव, उस ही सचचा दाता समजञो ।

. दव क ऊपर खब बलपरवक विरवास रखना, यही गपत रहसय ह । जञानी

पत का जितना ढोग करोग, वयथ जायगा । सगमातर का परितयाग करक

एक दव क ऊपर क भाव को दढ करो ।

, नारायण समपण जगत‌ म वयापत ह । इसीलिए उस जनादन कहत ह ।

तम उस नारायण का समरण करोग तो सब दव-दविया तमहार परो पडती

चरी आवगी ।

जस हो पर-वय ओर परसतरी की इचछाए तोमनस निकारहीदो।

फिर भक ही इस परप म सखपरवक रहो । अपन वयवहार म दभ को सथान

न दो 1 अतयनत शात रहो ओर रामनाम-रस का सवन करो। स विषय

म आरस न करो । सार जगत‌ क मितर बनकर रहो । वाणी स अशम

बचन न बोलो । दजन क सहवास म न रहो । परमा की साधना क

लिए जसा भरयल सतो न किया ˆ वसा तम भौ करो ।

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९० ४ तकाराम-गाया-सार

एक दव क सिवा दसरी हर वसत ओौर हर वयवित की आशा वयथ ह ।

तषणा को अतयनत बढा डालन स कभी सख का सवाद नही . मिलनवाखा ।

सव धयपवक भगवान क ऊपर विरवास रख ओर सबका करता-हरता एक

दव ही ह, ठसा भाव मन म दद रकखो । दव तमहारा योगकषम निभाता

रहगा, उसम जरा भी चरटि न आन दगा ।

हरि का नाम ओढो पर रखन क समान ही मन म भी रखत रहो ।

इसस समसत जगत‌ तमहार ठिए मधमय बन जायगा, तमहारी समपण

इचछाए खरत-खरत पण हो जायमी । सचच अनतःकरण स किया हज काम

` दीपत हो उलता ह ।

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हि

^ गी ताण

२.८ >

अजञानी जीव ओर दजन जो कछ काम होत ह व सब भगवान की ही सतता ओौर पररणा स होत

ह । मगर अविवकी जीव को इस मम की परतीति नही होती । वह "मन किया"

, की ~त भावना रखता ह 1 इसीस उसक पीछ "भत रग हए ह । यानी पच-

महामतातमक दह उसको खोजती हई आती ह । यदयपि काल न इस मख का

.गला दबा रखा ह, फिर भी लगातार “म-म" चिललाता रहता ह

, वतति, भमि, दरवय, राजय चाहनवालो को परम की परापति हरगिज नही

होनवाली ह । भाड क कोभ स वोकषा टोनवाठ कली को बोज क अनदर कौ

सार वसत का लाभ नही होता । किसी एक विषय का रोम चितत म रखकर

, दवपजा पर मन लगानवाला आदमी पतथर ह ओर पतथर की ही पजा कर

रहाह | अनक परकार क कम करक वड चाव स उसकी फलचछा करनवालो

का तमाम कौल वशया क आचार को तरह ह 1

ससार क पाक षड हए जीवो को विशति नही । उनम निरनतर अरजन .

वः विषय-सवन का गन होता रहता ह । कटभबियो का समाधान करन क

` लिए.उनको रात-दिन काफी नही होत । इसकिए उनको दव-दशन‌ दरभ

हो गया ह । एस रोग आतम-हतयार ह ।

. जिस गाव क रोग सवा-भकतिहीन ह वह समशान' ह गौरव रोग परत

ह । ब वतत की तरह पट भरत ह । उनदन अपन घरो म यमदत को बसा

रखा ह ।

. भविति-भाव स जिनक नतर नही छलकत ओर अनतर ` नही उमडता,

उनक सार बोल थोथ ठ जर लोगो का लोखला रजन करन क कएिह।

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९२ , -काराम-गाया-सार

काम-करोघ दषट विकारो को जस-क तस रहन दकर तिल-चावलो की त कयो आहतिया दता ह ? भगवान को भजन क बजाय यह‌ कषट कयो वथा

उठाता ह ? जिसन अकषरजञान परापत किया, मान-दम क किए तप ओर

तीयीटल करक अभिमान बढाया, दान दकर मातर अहता का रकषणः

किया, एसा वयकति आतम-पति क माग स भटक या, जौर उसन जो कछ

किया मघम ही किया । `

जिसक कणठ म कषण नाम की मणि नही, उसकी वाणी अशम ह, चाह

वह परष हो या सतरी । जिसक हाथ म दानवीरता का ककण नही ह, सत

उसकी फजीहत करत ह । , ^

घम-खग लोग माया को बरहम कहत ह। व अपनी. तरह रोगो को मी

शराति म डालत ह । . दह का पालन करलवालो को नारायण नही मिलत ।

मखो को यह नही सङञता कि किस समय कया करना ओर कया न `

करना । व दष ओर छख कौ एक हौ कीमत करतह।. ,

सोन क थार को दष स भरकर कतत क सामन रखन स, मोतियो का

हार गष क गल म डालन स, सअर कौ नाक म करतरी लगान स ओर बहर

को जञान सनान स कया लाभ ? सचचा मम कोई विरला ही जानता ह;

मकति की महिमा साघ ही जानत ह ।

जनमानव को सारी दनिया अनधी कगती ह, कयोकि उसकी सवय क - आखो म दषटि नही होती । रोगी क मिषटानन विषतलय लगता ह, कयोकि उसक मह म सवाद नही होता । जो सवय सदध नही ह, उसको तरिमवन अशदध लगता ह ।

जो सतरी क अधीन ह, उसक जीन को यिककार ह । उसका इहलोक ` या परलोक म कही मान नही ह । जिसका मन लोभी ह'जिसक यहा अतियि- अभयागत पज नही जात, उसक जीन को धिककार ह । जिसम आलस मोर

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अजञानी जोव ओर दरजन ९

, निदरा अधिक ह, जो अमित-आहारी अघोरी ह, उसक जीन को धिवकार ह।

जिसम विवक वरागय नही ह, मगर जो साध कहलान क लिए तिलमिलाता

रहता ह, उसक जीन को धिवकार ह । निनदक ओर विवादी वथा जनम ककर

आय; व नरकः जत ह

जो मह स बरहाजञान बोलता ह ओर मन म घन ओर मान की इचछा

` रखता ह; एस की सवा करन स जीव को कया सल होगा ?

समर मज स विषटा खाता ह । उस मिषटानन कौ लजजत का कया पता !

उसी तरह अभवतो को पाखड परिय रगता ह 1 उनह परमा मधर नही `

लगता । कतत को पचामत खिलागो तो भौ उसका चितत हडडी पर रहता ह।

सापको दष पिलादःतो भी उसक मह स वह विष होकर ही निकलता ह ।

र गघ को महातीथ म घोया तो भी वह शयामकण घोडा नही हौ जाता ।

‹ उसी, तरह दजन को उपदश दना फिजर ह; कयोकि उसका मन श नही

` ह। साप को शकर डालकर पीयष पिलाया, तो भी उसका आनतरि विष .

नही जाता ।

जिसका शरीर नवजवर स तपत ह, उस दध विष जसा रगता ह1 उसी

तरह जिसन परमाथ का तयाम कर रखा ह, उस सचमच सननिपात हौ गया ह।

. भिसको पीलिया हो गया ह उस चनदरमा पीला दिखाई दता ह ! जिस शराब `

पीन का शौक ह, उस मकखन का सवाद नही भाता । ।

` ह परभो, परमा रस इन दजलो की सगति स नषट हो जाता । जो

` “ भरषट जीव ह व मह‌ स नरकतलय गनद शबद निकालत ह । अचछ मीठ. अनन

को कतत मह डालकर भरषट कर दत ह । जौ सतो कौ मरयादा नही रखत,

| व निदयह। ५

जो दरागरह ह, उनका जकाव अमगल कौ ओर ह । चितत क सकोच स

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९४ तकषाराम-गाया-सार

कछ काम नही होता । चितत की अपरसननता स क करना पागरपन ह । योगय

काल क बिना कोई बात मानय नही होती, एसा करता न नियम कर रला ह । |

म आशा क भवर म पडा हजा था । मिथया-अभिमान ककर म सब षो

का पातर बना था। इतन म मरी आख खल गई नही तो म वडा दःखी होता 1 >

दस मिथया दहाभिमान की चषटा स ही सब जग आकरोश करता ह 1 मरन की

सध नही 1 लोभ की ओर वदधि परवतत रहती ह । उसस वह पीछ हट नही

पाती † धन जोडकर मर जात ह । लडक उस धन क लिए कत ह । व

जीद-जी नारायण को याद नही करत 1

एत पमरग म आग रग, जिसम पतगा दीपरिखा पर पागल होकर

अपन पराण गवाता ह । सास क लिए बह रोती ह, मगर अनतर का भाव भिनन

होता ह । कपटी मह‌ स चछा बोलता ह मगर अनतर करा भाव ओर ही

होता ह । वनदावन फल बाहर स अतयनत कातिवान‌ मगर अनदर स कडवा

होता ह, इसलिए हाय न ङगाओो 1 बगखा धयान का गग करक मछलिया

मारता ह । बासरी क वजन पर जस साप डोरता ह, उसी तरह ढोगी लोग `

हरिकया म ऊपरी तौर पर तललीन टौ जात ह ।

सतय की परतीति हौ जान पर भी लोग अपना हित न सावकर चरमक

-चवकर म कयो पठत ह ? सतय को जानन पर भी सवय अपना अहित करत

ह । ह परभो, यह‌ हारत दखो । मछली मास की आचया स अपना गा फसाती

ह । उसी तरह आदमी धन की इचछा स फस जाता ह । कम वडा बलवान ह ४

उसक दवारा बरा होनवाला हो तो होता ही ह 1

नाटक-तमाश म सवियो का वष धारण करनवाड नटो को न दखो ।

“ जो स दकर दखत ह, व दोष खरीदत द । नाटकौ लोग ङषण व गोपी क वव

बनाकर चीरहरण का खल करत ह, इसम मात-गमन सरीखा पाप ह ।

दखो, इन सवा-मकतिहीन रोगो को विषय-रस का कसा चसका रगा ह ॥

| ॥ ।

। ।

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कक.

अजञानी जीव ओौर दन . .. ९५ |

कितन ही शबद जञानी मनपसनद भोजन करत ह ओर बतात ह कि

नारायण न ही यह भोग किया, ; सव दव 'ही ह, उसस अरग कया ह--

आदि । मगर सपतति क किए ओरो का सिर फोडन पर उतार हौ जात

ह । तयागियो क-त वसतर, कमणडल ओौर थगडयो की गदडौ रखत हए उनक

बरहमजञान को लजजा लगती ह । (सव नरवर ह--एसा मह स बोलत ह, मगर

शाल-दशाक, चादी-सोना, भोग-उपभोग सामगरी परापत करन की इचछा

रखत ह । एस जञानियो की, करोडो जनम लन पर भी, दव स भट नही हौन-

वाली ॥

अर हीन, त अपनको हरि का दास कहलवाता ह ओर दीनो को 'महा-

^ राज कहता ह । तक हम नही आती ? विषयी-जनो को समभा म जाकर

कहह मटकाता ह ] इसक बिना कया तरा पट नही भरता ? पट न आदमी

, की एसी विडमबना की ह कि वह‌ दीन बनकर लोगो की खशामद करता ह ।

घर-घर सब बरहमजञानी हो गए ह । मगर उनका बरहयजञान आशा

षणा, माया स मिधित होन स दाभिक हौ गया ह । कामः करोच-खोभ क विष

स मिर होन स बह बहत बलर दता ह ; निनदा-अहकार दष स वह‌ बहत मला

हो'गया ह! एस जञानस कछ भी हाथ न लगकर मलयवान आय वयथ

जाती ह‌ ।

जस कोई पारस दकर काच ज उसी तरह लोग अलप रोम स परमाथ

की विकरी करत ह ।.इन रोमियो न सवगरोक म जाकर वहा दिवय भोग

भोगकर अपन पणय नषट कर डल ।

बड-बड कवीरवरो स हम दर ही रहत ह, नरयोकि व परासादिक

कविताओ म स अश ककर अपनी कविता म घसाकर सवय कवि होन का

दावा करत ह । उनह कीति की चाह होती ह; एस अनधो क मह आखिर स

काल होग ।

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९६ तकताराम-गाथा-सार

जो भत, भविषय, वतमान क शकन बतात ह, उन लोगो स मञचको तक-

ली होती ह, मञञ उनह आखो स दखना भी अचछा नही लगता । कछ रोग

ऋदि-सिटि क. साधक होति ह, कड वाचा-सिदधि कर तह, मगरय रोग

पणय-कषय हो जान पर अधोगति को जात ह ।

जिसको "पडित कह जान पर खशी हो, उस निपट मस समजञो । सव

जो समबरहम नही दखता, वह‌ वद क अथ क अनसार नही चकरता, इसलिए

दराचारी ह । वदो क अधययन स जीव ओर शिव को एकरप दखना आना

चारिए 1 <

जो मदोनमतत ह, उस योगय कततवय नही सञलता । जो नही कना चाहिए

उस वह‌ गरहण करता ह भौर जो अगीकार करना चाहिए, उसका परितयाग

करता ह 1 अनधकार म पडा हआ दीवार की जगह दरवाज की कलपना करक

अपना सिर टकराता ह । `

गागरभर दष म अगर शराब कौ एक बद पड गई, तो फिर वह‌ शदध

नदी रहता । उसी परकार जिसका मन अहकार स गदा ह, उस.खक की वाणी

` शरवण न करो । सनदरता क वततीस लकषण ह, परनत यदि नाक नही हतो

सब गर ह । मकखी जस अपन ससरग स अनन को कभी नही पचन दती, उसी

परकार ब की वाणी हितकर नही होती ।

जस धीवर मछलिया को, शिकारी हिरनो को बिना अपराध मारत ह,

, उसी परकार दषट लोग सतो को विना कारण सतात ह । उनह चाणडाल

समञो । विष स अमत की, अहकार स परकाश की, पतथर स हीर की, दषटो स

सतो की शरषठता परमाणित होती ह ।

निदक दरजन खव हो, कारण कि उनका हमपर वडा उपकार ह। व

सावन या मजदर लिय बगर हमार सव पापो का कषालन करत ह । य हमार

मफत क मजदर ह । व हमारा बोकञा ढोत ह । व हम पार उतारकर अप

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अजञान जोव ओर दरजन ९७

नरक म चर जात ह ।

जो सिदधो न सवन किया, वही अधम भी सवन करता ह, परनत फल

अधिकार क अनसार मिलता ह । सवाति नकषतर का जल सीप म मोती वन

जाता ह, कपास पर पडन स कपास का नाश हौ जाता ह,सप क मह म पडन

सि विष हय जाता ह । जो जसा करता ह, वसा फल पाता ह 1

चनदन क वकष क पास सप रहत ह, परस ध का छाम अनय दरसथ लोग

हत ह। बोजञा कोई ढोता ह, खाभ कोई ओरही लता ह । गायक थन का

करीडा (चिचडी) अशदध रत का पान करता रहता ह, दष अनय लोग ही

पीति ह । ह भगवान, सप ओर चिचडी जस जडबदधियो स पतयर होना

, अचछा ।

कामातर को भय, लजजा ओौर विचार नही होता । काम साधन क

सामन वह शरीर को असार तण-तलय गिनता ह । कपण का लोभ कवल दरवय

की ओर होता ह, ओर किसीकी उस परवाह नही होती । बभकषित अचछा-

बरा दख बिना जो पाता ह, वही खाता ह ।

शराब पीकर उनमतत होनवाला नगा नाचता ह ओर अनचित बात

बकरता ह । उसक दसतर कम उस धषट बना दत ह; मव समञञाए किसको ?

शारीर की सथिति बडी बवान होती ह, पागल को घरमनीति सनान स कया

फायदा ? यमदतो क डड पडन पर होश म आ जायगा 1

जिस परकार कौमा गगा म सनान करक जानवरो क जसमो म चोच

भारता ह, उसी परकार दरजन को यदि उपदश दिया तो भी वह अपना

सवभाव नही छोडता 1"

विषटा-भकषी को अमत अचछा नही लगता 1 दजन का सखा दरजन ।

सत लोग दजन का सग भलकर भी न कर! उसका दशन भी दःखदाई ह 1

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९८ तकाराम-गाया-सार

जिसक घर दनिया की छी-ी', ध की ही दौलत ह उसस अपना वया पाम निकलनवाला ह ?

दषट पर आवरण पड होन क कारण जीवो को अपना घम नही सल

रहा ह । विषय-कामना स सब लोग मरा हौ गए ह, अतः सचचा मम व कस

समक ? दलो तो, माया उनह कस नचा रही ह ?

पागल क कितन ही सखोपचार करो, उस उनस कया आननद आयगा ?

अनध क आग दीपक-नतय का कया उपयोग ? भकतिभाव क बिना भकति

वसीहीह।

करनी क बिना कथनी-पठनी वयथ ह । वाणी स अमत की मिठास का

वणन करता ह गौर सवतः भखा तडपता ह ।

जिसका जीना सतरी क अषीन ह, उस दखकर मक बडी पीडा होती ह‌ । उस जनत को म किसकी उपमा द ? उसकी हालत मदारी क बनदर की-सी ह । उसकी सारी जिनदगी गष या कतत क जीवन की तरह समजञनी चाहिए ।

मकली जिस परकार सगनधित पदायो को छोडकर दरगधित पदारथो पर खदी स बठती ह, उसी परकार अभागो को अधम कामो म ही रस भिता . ह।

एक सवरी न अपन पट पर साडी का डचा बाधः, ओौर सबस कहन छगी, “मजञ दिन रह ह ।' गभषारण करन का सब ढोग वह‌ करन लगी 1 उसक पट म बनना नही ओर सतन म दष की बद नही । वह सतरी आखिरकार बिलकल वाजञ साबित हई मोर रोगो म उसकी बहत हसी हई । अनभव बिना कवल शाबदिक जञान की चरचा करनवाल पडितजन भौ उस सतरी सरीख ही ह ।

कड वी तलसौ क पततो को चाह जितन गड स चषड, तो भी कड‌ व-क- कड‌.व ही रग । नीच जातिवाा हमशा नीच ही रहता ह 1 उस उपदश दना

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न ॥,

अजञानी जीव ओर दरजन श

वय शरम ह । विचछ‌ पर खव परम स हाय फरिय तो भी परम कौ कदर न करक वह‌ डक ही मारग। । पतथर को चाह जितना उवारो, नरम न होगा । सअर को विषटा खाना अतयत परिय ह । दन का भी सभर सरीखा सवभाव होता

ह।

कततो क भोकन स हाथी को सताप नही होता, मोकनवाल कततौ को

ही कषट होता ह । जो दषट रोग सत-साधमो को सतात ह, व अपना मह अपन

हाय स काला करत ह ।

जिनम दहाभिमान होता ह उनका जब छोग सनमान करत ह, तव उनह

मख होता ह । उनकी पणय सामगरी को मान, दभ, आदि चोर चरा र जात ह।

नीम को शककर स सीच तो भी उसका फल मीठा नही होनवाला ।

उसी परकारः दरजनो को कितना ही सदपदश दीजिय, सव निषफल ह ।

मल तो कवर भार ढोनवा वल ह, चतर कोग ही अनदर की सार-

वसत का उपभोग कर सकत ह ।

तर शरीर क माता-पिताओ को इस वात का जञान नही ह कि तरा

सचचा हित किसम ह ? इसकएि व तजञ परापचिक वयवहार की शिकषा दत ह ।

जञान बोजञ स जिनका कलजा दब गया ह, व कवल शबदो की ही माथा-

पचची किया करत ह ओर उनक स काम का अनतही नही आता । अनभव-

रहित शबद रसहीन होत ह ।

पहल बीज बोना, फिर सीचना, फिर ईरवर पर भरोसा ,रखकर जो

फल मिल, उस लना । एसा न करक जो कोई फल कौ आशा रलकर‌ ईरवरः

की मिलत करत रहत ह, व आखिरकार ग जायग ओर क न पायग ।

जो मनषय हाय म माला लकर गोमखी म हाय डालकर, जप करत क

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१०० तकाराम-गाणा-सार

बहान कवल ढी ही हिलाता रहता ह ओर मन म दसर लोगो की निनदा

का विचार करता रहता ह, वह‌ कवर माला क मनकर टपकाता जौर गोमखी

को हिलाता ही रहता ह । उस यम की सजा भोगनी ही पडगी ।

यह शरीरःसयल वडा बाधा-पण ह, फिर भी यहा जो फसल चाह पदा

कर सकत ह । ठसा होत हए भी जो कोई सकोच-वतति' रखकर पड रह तो

ममञचना कि व अपनी जौव दशा स चिपट रहना चाहत ह ।

अपन पास ही सवरप सख होत हए भी कषदर लोग अजञान क कारण भराति म पड रहकर दःख भोगत ह । दिशा-भरमित गत रासत च पडता ह । मरा

यह कथन निणयाटमक ओौर सवानभव गमय ह ।

दहाभिमानवालो म धय, शाति ओर निमरता नही होती 1 एस जौव निबल ही होत ह । व छोग तरिविध ताप स तपत रहत ह ।

म हरि का दास ह" यह‌ कहन क किए जीभ नही हिलती ओर वयथ

बकवास की दगघ फलाया करती ह 1

अपनी परशसा अपन मह स करना शोभा नही दता । फिर भी बहतर जपना बडपपन लोगो को दिखात फिरत ह ।

पराणियो क परति ` ष-बदधि रखना, मन म निषठर माव रखना, ओर अधिक वाद-विवाद करना-य तीन अपलकषण जिसम हो उस अभकत जानना 1

वस क छिए जो हरिकथा करता ह, उसस भ पता ह किए पापी, पट मरन क किए तजञ हरिकया करन क सिवाय जौर कोई धधा हीन मिखा?

अपनी दह का पालन-पोषण करता जाय ओर मह स जञानकी वात

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म ०

कमकमर भकना क 441१

अजञानी जीव ओर दजन १०१

छटता जाय, एस की सरत भ स भी दिखाई न पड तो अचछा । जिसक

सवभाव म सत क लकषण परकट न हए हो, एस लोग कया ओौरो को उपदश

दन योगय कह जा सकत ह ?

जो अपनी इदविधो का नियमन न कर मौर मह स नामोचवार कर, इसस उनका कया लाभ होगा ? कीततन करत समय जसा मह स बो, वसा आचरण भी करना चाहिए ।

जसा अपना जीव इ, वसा दसर पराणियो का भी जीव ह 1 पापी छोग यह वात नही जानत ओर दसरो क गलो पर छरी चकत ह । सव पराणियो क हदय म जीवरप स नारायण रहत ह । पशओ क हदयो म भी नारायण का वास ह 1 हतया करनवाङ अवोगति म ही जायग ओौर दारण दःख

भोगग।

कोई अपना करता फाडकर उसका कबर बनाय, वह जसा हासयासपद

ह, वसा ही दसर की कविताओ म स करता का नाम निकालकर उसकी

जगह अपना नाम घसड दनवाला ह ।

दडित रोग अपनी विदया को विकाऊ मार गिनकर उसक दवारा लोगो

का कवर मनोरजन करन की चषटा करग तो उनको परमाथ-सबधी कछ

भी फठ नही भिरगा ; परःत जो अपन मन स सव परकार का अभिमान दर

कर दत हः ओर अपनी बटियो की ओर धयान दकर नमर वन रहत ह,

व ही परमारथ-फल का सवाद चखत ह ।

जो चितत क साथ चितत मिक गया तो सबकछ मिक गया समञचना ।

एसान हो तो किसीकी भी सगत करना वयय ह। पानी ओर पतथर का

योग हो तो भी पतयर का अतरग पानी स न भीगता ह न नरम होता ह ।

बीवी-वचचो को छोडकर मड मडाकर सनयासी तो हमा, परनत यौद

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१०२ तकाराम-गाया-षार

अनतःकरण स तषणा का कषय न हजा, तो सनयासी हो जान स कया सधणा ?

जो तषणा-रहित हो गया ह, वह ससार म रहत ए भी अलिपत रह सकता ह 1

जो भरपच का भार ढोता फिरता ह, वह दव को पहचान ही नहौ सकना ।

जिसकी बदधि सथिर न हई वह चिनता म दब-मरता ह । जो तषणा का दास

जौर लोभी होता ह नारायण उसकी बदधि को सथिर नही होन दता ।

शरदधा बिना दव का मम समञच म ही नही आता । भकति-रहित आर चय

रहित लोग जस-कतस ही रहत ह ।

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म * &

भगवान स परारथना

जो सतो क दास हौ, उनक दासो का मद दास बना दो। ह हरि, फिर

चाह कलप-पयत मक गरभवास करना पड, नीच कम करन का भी परसग माया

तोम करगा, मगर मख म तमहारा नाम रह । तमहारी सवामही मर सकलप

समा जाय । 44

जिसका चितत सदा दहकता रहता ह गौर जिसका जी हमशा कषनध

रहता ह, उसक मङञ दन न हयो । वह जीता भी मतक क समान ह । दवचनो

की गदगी स उसरकी; वाणी अमगल हो गई ह । परतततव ञओौर परोपकार

को

वह नही जानता ।

ह दव, म ससारताप स तप गया ह 1 कटमब की सवा कर-करक मी तप

गया ह । मन बहत-स जनमो का बोजञा ढोया ह । सस चटन का मद मम नही

सता । म अनदर ओर बाहर क चोरो स धिर गया ह ।

बर समय क चककर म फसकर बरवान मी बदी हो जाता ह; कभी

दाता को भी याचको की शरण जाकर दान मागना पडतो ह । ह भगवा

न‌ 1

कया आप यह नही जानत ? मडो भी आपको कहना पडगा ?

मनञमान नही चाहिए । उसस मञञ जरा भी सल नही मिलता । दह

सलोपचार स मरा शरीर आरामतलब बनता जाता ह । मिषटा मजञ विष

की तरह कड.वा रगता ह । कोई मरी परशसा करता ह तो मञषस वह सनी

नही जाती । त मजञ एसा जञान द जिसस म तञको पा सक‌ ।

आजतक आय वयय गई । यह बडी हानि हई ह । ह हरि, अब तो षड

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१०४ दकाराम-गाया-सार

कर या । बठा हआ कया दखता ह ? मरा-तरा करत-करत उगर बीत जायगी -

ओौर मासिर मह म मिदरी पडनवारी ह । मन कषण कौ भी रसत नही लन

दता; वह भव नदी म बाता ह । विषय-लपी लटरो न मक लट लिया ह । ह परभो, म तमहारी शरण माया ह, गब तम मञञपर कपा करो ।

दम स कीति मिलती ह, पट भरता ह, मान मिलता ह; मगर यह

सवहित का कोई कारण नही ह । जञान का अभिमान रखन स तर चरण मञषस दर हो जात ह । दह का पालन-पोषण करन स विकार तीनर होत ह । लोक- लाज या लोगो का लिहाज रखकर म अपना बात सवय कस करल ? ह भरमो, मञष एसा सरल उपाय बता कि आख तर चरणारविनद दख ।

पहल क ऋषि कया अजञानी थ ? उनहोन इस जग का तयाग किया । आठो सिदधिया उनकी सवा म ततपर रहती थी, फिर भी ससारी जनो की बदधि क अनसार नही चङ । जिनहोन कद, मर, पतत खाकर शरीर का पोषण किया ओौर निरनतर बन म वास किया, वहा मौन ल, आख बनद कर शात होकर वठ । ह अननत, एषी ही मर चितत की सथिति कर द ओर लोगो को मकषस दर रख ।

मरी एषी बदधि म माग लग जाय कि म तञम समा जाऊ । इस एकय- वदधि का निषव ही अचछा ह । त सवामी म सवकः; तर ऊचा म नीचा । यही कौतक करना । इस टटन मत दना; कारण कि जल जल को नही पीता, वकष जपन फल को नही लाता; मोकता अलग होता ह, वही उसकी मिठास का अन- मव लता ह । हीरा कनदन म शोभा दता ह, गहन क रप को सोना शोभता ह । गरमी म छाया सख दती ह । बचचो क मिलन स मा क सतनो स दध की धार छटती ह । एक-स-एक ही मिर तो उस समय कया सख होगा ? अरग रहन म ही भरा यह चितत हित मानता ह । म मकत नही होऊगा, एसा मन निचय करलिया ह ।

त बडा उदार ह, कपाल ह, अनाथो का नाथ ह । जो तरी शरण भ जाता

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भगवान स परारथना १०५

` ह उसकी बात सनता ह । उसका सारा वौजञ त अपन सिर पर ऊकर चरता ह‌ । जो मन, वचन ओौर काया स तञलस अननय रप हौ गए ह‌, उनक आवाज दत 'ही त उनक नजदीक आकर खडा हो जाता ह, ओौर उनकी हर इचछा पण -करताह । व माग पर चरत ह तब त उनकी सभाल करता ह ओौर कही कटि- ककर सामन आय तो त अपन हाो स उनह दर करता ह । तर दासो को चिनता

। नही ह ; कयोकि सब तरह स रकषण करनवाला त उनक घर म रहता ह ।

ह दव, म कीतति, लोक, दभ, मान ककर कया कर ? त मञज अपन चरण दिखा । जञान क बडपपन का मार लकर तो म तर चरणो स मलग जा "पड गा ।

भर परमो, मस लघता दो । चीटी को चीनी क दान गौर एरावत रतन को 'कश की मार ! जिसम वडापन ह उस कठिन यातनाए भोगनी पडती ह । 'इसकिए छट स भी छोटा होना अचछा ह ।

ह दव, यदि आप वद-परष ह, तो वदो न आपक विषय म नति" शबद

का परयोग करक आपको भिनन कयो बताया ? ह अननत, तम सवगत, सरव- वयापी होकर किस कारण मसस विग रहत हो ? यजञ क भोकता आप ह

तो वह‌ सफल कयो नही होता ? उसम कछ कमी रह जान स कषोभ कयो होता ह ? सब भतो क अनदर अगर आप ही ह तो यह बाहरी भद कयो दिलाया ?

तप, तीरयाटन, दान क आप ही मतिमनत सवरप ह, तो इसस अभिमान कयो

होता ह ? आपक दरवाज पर खडा होकर य आवाजञ लगा रहा ह, कषमा करना ।

रवि का परका हीः रातरि का नाश करता ह । बह न हो तो बहत-त दीपक

जान स रातरि का नाडा हो जायग। कया ? उसी परकार सरववषठ हरि ही मर पराणो म वस । इसस अनभव म न आनवाली बातो का अभी अनभव होन लगगा । राजा क साथ होन स कोई वाधा नही आती ओर विभिनन मोधका-

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१०६ तकाराम-गाथा-सार

सिमो स रारथनाए नही करनी पडती । इसस जनम आदि बनधनो का नाश

होगा, कयोकि निकटवरती हरि पर परीति ह । |

ह परमो, एसा करो कि किसीस बोलन का परसग न आय, कयोकि यह‌ सब उपाधि ह । एक तमहार नाम विना सब शरम वयथ ह । मन क अनय सकलप होन स पाप-पणय पदा होता ह । इसछिए वाणी नारायण क ही निकट

॥िघरातिल1

ह परभो, मरी एक विनती सनो । मजञ मकति नही चाहिए; मङञ बङणठ

का वास नही चाहिए; उसस सख का नाश ह । कीततन क समय हरिनाम-चितन

का रस अम ह । ह मषरयाम, अपन नाम की महिमा का तमको पता नही ह, मह ह ; इसीकिए कना मञ परिय लगता ह '

आजतक जो हमा सो हमा । भविषय म म अचछा मधर भाषण करगा। अब मर अपराघो को आप मन म न लाइय। आपक नाम का चिनतन करन

म तनिक भी वाघा न पडन †जिए।

ह कषावत; तरी माया मरा समजञ म नही आती । जनम दनवारा कौन मौर जनम लनवाखा कौन ? दाता कौन ओर मागनवाला कौन ? भोकता कौन ओर मगतानवाला कौन ? रपवान कौन ओौर करप कौन ? सव जगह कवल त-ही-त वयापत ह । तर सिवा कछ नही ह ।

ह मगवान, मक यही दो कि मर मख म नाम हो गौर सतसगति मिक ॥ ` मञस वहिरग सवा न लकर मरी भावशदधिरपी अनतरग सवा छ । ,

ह दातार, अगर सारी दनिया मिल जाय तो भी मञच परयापत नही लगगी ॥ आदि-स-अनततक मकषस मर हई, यह परतीति मजञ नही होती ।

ह दव, मञञम गौर तश कोई मद नही ह । जो क ह वह त भौर त-दी- तर ह । म पणरपण तर सवरप क अनदर ह । मरा समसत बर तरा ही ह ।

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भगवान स पराथना १०७

ह दातार, नरसतति ओर कथा-विकरय मर दारान होन दो 1 परसतरी

ओर पर-घन की इचछा मर मन म न आन दो । लोगो का मतसर ओर सतो कौ

निनदा मञस न होन दो । दहाभिमान न होन दो । अपन चरणो कौ विसमति

बार-बार न होन दो ।

ह दव,यदि म मायाजाख म पड गया, तो तमको मल जाऊगा, इसछए

जञ सतान न दो । मक वय जौर भागय न दो, इसस जी का उदवग बढता ह।

मघ फकरीर सरीला करो जिसस रात-दिन जीभ पर हरि का नाम रह ।

भरनतर परसतरी को माता-समान न दख तो आखो कौ मङञ जररत नही

। ह। मर कान यदि किषीकी भी सतति या निनदा सनन म कषट न मानतोत‌

उनह बहरा कर द । तरा विसमरण हो जाय तो पराणो क रहन स कया लाम ?

बीज क पट म वकष रहता ह ओर वकष क पट म जस वीज रहता ह, उसी

परकारःह दव, हम दोनो एक-दसर क अनदर समा जात ह । पानी म तरग उतपनन

ोती ह गौर फिर व तरग पानी म ही समा जाती ह । बिमब ओर परतिबिमब

दोनो ही एक सथान म रय हो जात ह ; उसी परकार ह दव, आप ओौरम भी

एक दसर म लय हो जात ह ।

ह दव ! त कलपवकष ह, म जो इचछाए करता ह, उनह त परी करता द ।

ह दव ! आपक सिवा म किसीका आशरय नही कतवाला । मत भय,

लजजा ओर शका का तयाग कर दिया ह ।

ह दव ! वद ओर शासतर स तकष कोई नही समङ सकता, परत भाव ओर

भवति रा त निकट ही खडा दीलता ह । शरणागत भकतो क त आग-आग

चलता हआ उनह सचचा रासता दिखलाता ह ओर उनह भटक नही दता ।

त एक होत हए मी अपन माननद क लिए नाम रपातमक जगत‌ का विसतार

करता ह ओर उसम आननद स लीला करता ह।

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१०८ तकाराम-गाषा-सार

ह राम ! तर परमाननद सवरप ह, त परम परषोततम ह, त मचयत ह,

अननत ह, उपाधियो का हरण करनवाला ह, अविनाशी ह, अलकषय ह, पर- बरहम ह, लकषमी का सवामी ह, मगल-सवरप ह, शभदाता ह ।

ह परमो, तञषस यही मागता ` कि त मजञ सतो क हवा कर द । त उदार हो जा जीर मजञ सतो क चरणो क आग छ जाकर रख द ।

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: १० :

विचार-मोकितिक विवकपवक भोग भोगन स तयाग होता ह । अविचार स भोग का तयाग `

तयाग न रहकर भोग बन जाता ह । जिन करमो स दव-मिलन म अनतराल हो, व पाप कम ह ।

टटा हदय नही जडता ।

परवोपाजित पाप हमार हित म बाधक होत ह ।

अनन मिलना, मान होना, दरवय मिलना-सव परारबध क अधीन ह ।

अभयास स असाधय भी साधय हो जाता ह ।

मखय घम ह दव-चिनतन; आदि-स-अनततक शर रणागण म अपना ` ` पराकरम दिखाता ह, मीर अपन घर बठा कापिता रहता ह ।

जब सचमच दह म दवी रावित का सचार होगा, तव कया कमी रहगी ?

समाघान ही पजा ह 1

जबतक रणभमि नही दीख पडती, तभीतक यदध कौ बात करना आसान ह ।

मिषटानन आदि विास क भोगो स अपनी दह पषट करना अवमो को ही माता ह । दह-रकषण जीव क हाथ म ह कया ? मालम भी न हीगा ओर यह

सषण-भगर शरीर एक दिन चरा जायगा ।

| बरहम करमाकम स निरपत रहती ह 1 सहज बरहय भान की जगह पाप-पणय

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११० वकाराम-गाथा-सार

को सथान नही ह ।

आशा क निरसन म ही हित ह ।

अनताप स दोष निमिष-मातर म चङ जात ह, मगर वह अनताप आदि-

स-अनततक रहना चाहिए । अनताप म नितय सनान करना ही परायरिचतत ह । अनताप स पाप सपश नही करता 1

बड-छोट का मद-भाव दया-धम का नाशक ह ।

जान दिय विना लाम मत म नही हो जाता । रण म शर क जान दन स दना लाभ होता ह ।

आघार क विना बोलना मानो दादी-मा की कहानी ह । जबतक भग- वान‌ की पहिचान तही होती, तबतक सब वयथ ह ।

शीशा अगर हीर कौ तरह चमक भी तो भी वह हीरा नही हो जाता । उसी तरह दसर को दखकर, सीखकर डौर दिखाया भी तो वह सचचा नही होता ।

परम बहत बडा ह, मगर भकतो क भाव क कारण छोटा होकर उनक दिलो म रहता ह । भवित क जोर स जसा कराय वसा करक मवतो की इचछा परी करता ह । जगत का दान करनवाला महान‌ दवभकतो स तलसी क पतत , ओर पानी मागता ह ।

६. वाणी बोलती ह मगर अनभव दकभ ह ।

यथाय बात न कहकर अचछ लगन क लिए जो ओौपचारिक भाषण करत ह, व अघोर नरक‌ भोगत ह ।

सचचा शर हौ मान पाता ह । अनय सनिक कवर वोला दोत ह ।

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१ कक

विचार-मौकितिक १११

जिस दिन सत घर आय, वही हमार दिवाली-दशहरा ह ।

इस भवसागर स मन ही पार उतारता ह, ओर मन ही चौरासी लाख योनियो क वन म डाखता ह ।

सतो की महिमा बहत दखभ ह । हम सवय सत हो जाय, तभी उनक माहातमय का पता ग सकता ह ।

जीवन को हरि क अरपण करन स सत-पद मिरता ह ।

सवका ल सचमच मिरता ह, उस पान क लिए किसीको वल-परयोग की आवशयकता नही होती ।

छाया की अभिराषा म कया ह‌ ? जल म पड तारो क परतिबिमब को मोतो

समञचकर हस चोच मार-मार कर जान गवाता ह ।

सब आगमो (शासम) का मथन करक निकाला आ सचचा नवनीत

भगवान ह ।

जो सतो को परिय ह वह काल काभी काल ह]

अभयास स सब काय सिदध होत ह । कोई एसा का न काम नही ह जो

अभयास स सिदध न हो जाय, मगर जबतक अभयास करन वा निङचय नही

-किया जाता, तबतक कठिन ह । रससी को रगड स पतथर तक कट जाता ह ।

अभयास स वि तक को खाकर पचाया जा सकता ह । मा क पट म } महीन

क बालक क रहन योगयः जगह शर म होती ह कछ ? लकिन धीर धीर उसक

“रहन योगय जगह हो जाती ह ।

जबतक‌ विरवमभर कौ पहचान नही हई, तभीतक मितरो ओर भाई-

जनदो का परम ह। नारायण, विरवमभर, विशवपिता का अनभव होत ही जगत

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११२ तकाराम-गाया-सार

मिथया दीखन लगगा । सरज जवतक उगा नही तबतक ही दीपक का कामः

ह 1 सय क परकाश म वह यो ही निसतज हो जाता ह । दह सबध तो परारबधः

स होता ह, अपना काम तो नारायण स ही रहता ह ।

लघता अचछी, कयोकि उस हालत म कोई नर नही धरता ।

भोजन दखन, कहन ओर खान म अनतर, बडा अनतर ह । हीर का मलय पारखी ही जानता ह, मढ को तो वह‌ चकमक पतथर सरीखा लगता ह 1

योगियो की सपदा तयाग ओर शाति ह । इसस दोनो लोको म कीति ओर मान की परापति हो जाती ह । तषणा स जीव (कषटी' होता ह । सव

कततवय बदधि का तयाग करन स जीव शिवपद को भोगता ह ।

= मन म धय ओर कषमा न हो तो जटा रखाना ओर भसम गाना एसीः

दह विडमबना ह, जस मद का शयगार करना ।

चितत म शाति रखन स सव सखो की परापति होती ह }

सतय बोलन क लिए हरि कौ परापति वयथ ह । एक सतय बोलन स ही' अतयत परोपकार होता ह । कवासना का मल छोड दन स मन शात हो जाता ह ॥

जो गर शिषय स सवा न लकर उस दव समान मानता ह, उसीका उपदश फलता ह, रोष क उपदशा स दोष मातर गता ह । जो दह-भाव स उदासीन ह. उसीको सचचा बरहयजञान ह ।

आशा, तषणा, माया य अपमान क बीज ह, इनका नारा करन स आदमी लोकपजय हौ जाता ह ।

जो जस धयावगा, मगवान वश ही रप म दकषन दगा । जीव जोकः

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व~ 7,

| ॥

विचार-मौकतिक ११३

सवन करता ह, वह सवकर हरि भोगता ह 1

` किसी परकार का सशय रखना ही गष ह । मन क भल-बर सकलपो स ही पणय-पाप होता ह, इसलिए उततम सकलप ही शम ह । चितत शदध करन म ही कलयाण ह ।

दव का कपा करक बोलना ही परसाद ह । इस आननद स आननद की वदधि

करली चाहिए । .

जिसन आशा का अनत कर दिया, दव उसीक अनदर निवास करता ह ।

जिसक दिर म आशका नही ह, वही मबत ह ; भौर जिसक चितत म लजजा, चिनता, मोह ह, वह बदध ह । जो एकात सधन करता ह, वह‌ सख-शाति

पाता ह ओर जो रोक म दभी बना फिरता ह, वह दखी रहता ह । दःख स छटकर सख परापत करन का उपाय छोटा-सा ही ह, मगर यह जीवउसन

जानकर इधर-उधर भटककर दखी होता ह ।

जो सब जीवो क परति नमर हो गया ह, उसन अननत परमातमा को अपन

हदय म बनद कर लिया ह । इस परकार शरीरग को जीतन म ही सचची शरता

ह । सबक परति नमर होना ही पणतव का कारण ह । पानी पतला होन स तक

तक जाता ह ।

जो अनियमित ह, उस दःख व कषट होता ह ।

नमरता ही भवसागर पार करन का सारभत साषन ह । बडपपन का

भार सिर पर कगा तो सागर म इव जायगा ।

जो आदा स बधा हआ ह उस सार जगत‌ का दास समञलना चाहिए 1

जो उदासीन ह, वह सब लोगो का पजय ह । जानकार क पीछ उपाधिया

रगती हः गौर अनजान को पका-पकाया खाना मिलता ह ।

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श६४ बकाराम-पाथा-सार

मन षर अशा चाहिए \ नितय नया दिन जागति का होना चाहिए 1

जो जस बर वस चक, वह मनषय अमोल ह । .

जिसका रखवाला दव ह, उस कौन मारगा ? काटो स भर जगर म वह

घम, तो मी उसक पर म काटा नही लग सकता । न उस अगनि जला सकती

-ह, न पानी डवा सकता ह । विष उसक लिए अमतःहो जाता ह‌.। त धह रासता

रता ह न किसक फ म पडता ह । उस कभौ यम-बाघा नही होती । उस-

पर आनवाली गोलियो भौर बाणो स उस नारायण बचत ह ।

दव न जव कछ करना ठान लिया, तो फिर वहा किसीका क बस नही

(चर सकता । हरिखवनदर गौर तारा रानी.स डोम क घर पानी. भरवाया ।

भगवान पाडवो क सहायक थ फिरःभौ उनकाःराजय नषट करा दिया। इसलिए

{निरचल रहकर दखिय कि सहज ही कया-कया होता'ह । <

बाहरी वष धरन स पट भरा जा सकता ह ; परलत अनतःकरण शदध करक

कमाई किय बिना परमाथ नही होता ।, .

तीरथयातरा, बरतादिक फलाला क करन स मति नही मिलती । मगवान‌

-की.शरण गण ^ ग सब साघन वयथ ह ।

. वयभिचार क निषववाचक शबद सनकर पतिवरता को आननद होता ह, परनत उनहीस वयभिचारिणी क मन को घकका रगता ह 1 अबदध आचरण म

माग लग; जग म शदधपन स रहना ही मला ह । घरमाचार सनकर सदा-

'वारियो करो आननद होता ह, दराचारियो को दःख । यदध स शर को उललास

होता ह, नामद का. मानो वह‌ मरण-परसग ही होता ह । आग स शदध

सोना.अधिक उजजवल होता ह, हीन काला पड जाता ह । जो घन की मार

सन टट, चही हीरा ह ।

सवय कमा म जाकर दसर को समाग दिखाय, उसका जो उपकार `

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आ न? ०८; 05 + १०५९. ऋणा र,

विचार-माकतक ११५

न मान वह अदवितीय मख ह । जो सवय विष-सवन करक जान की अवसथाम दसर को विष-सवन न करन का उपदश दता ह; जो सवय बता हआ अगाध पानी कौ सचना दता ह, उसका उपकार मानना चहिए कहनतराल क अवगण छोडकर ग‌ण गरहण करन च,हिए ।

धीरो म जाकर तन कया किया ? ऊपर-ऊपर स चमका परकषालन । जस कट-वनदावन फल को या करल को शवकर म धोकन स भी उसकी कटता नही जाती, उती परकार तीययातरा स अनतःकरण क मल नषट नही होत ।

सवक को सवामी की आजञा का पालन परणोतसग होन तक करना चाहिए।

सवामी स भर होन पर समय दखकर व वजरभदक उपदश स भी उप सनाना चाहिए । वही सवक कहकान योगय ह । एस ही सवक को सवामी का अनन खान का अधिकार ह।

सातविक रोग अलपभाषी होत ह ओर मककार बड-बड करनवाछ ।

दव को सबका पालन-पोषण करना पडता ह, ओर हम तो अपन खान

कौ भी चिनता नही करनी पडती । दव को लोयो क पाप-पषयो का विचार करना पडता ह, हमार लिए सब लोग भल ह । दव क पीछ जग का उतपतति-

सहार रगा हआ ह, हम थोडा-बहत भी काम नही करना पडता ; दव क

पीछ बडा काम-घघा लगा हम ह, हम हमशा खारी ह--विचार करर तौ

हम सब परकार स दव स अचछह। ;

गो को ङषणापण करक भोगन स भोग तयाग सवरप.हो जाता ह । इन भोगो का भोकता दव ह । यह निरिचत रप स जानकर आपक अलग

हो जान स इसी दह म भगवान की परापति हो जाती ह ।

दव उदार ह । वह थोड का बदला बहत दता ह ।

दव अपन दासो का सवक बनता ह ।

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११६ तकाराम-गाया सार

पानी सजजन, दरजन सबकी तषणा शात करता ह । वह‌ किसीको बखान

नही जाता, न किसीको अपन गण सनाता ह ।

भितन-भिनन अलकारो म रहत हए मी सोना एक ही ह 1 सवपन कौ लाभ-

हानि जागन पर मिथया हो जाती ह ।

कौआ मत जानवरो का मास खाता ह । तीतर ककर ओर हस मोती

खाता ह । जिसकी जसी पसद ह, जिसका जसा माव ह, नारायण उस वसा

ही दता ह ।

जहा भकतराज रहता ह, वहा सवय भगवान रहता ह । इसम‌ कोई

सदह नही 1

परमा का सवा मम पाडरग क विना कोई नही जान सकता 1

-कोई भी कला सिखाई जा सकती ह, परनत परम किसीक भी हाय म नही ह ।

जसी बदध, वसी सिदि।

जिसक पर म जता तक नही ह ओर राजा स बर करता ह, उस धिककार

: ह। वीटी क महम हाथी का आहार डालन स उसका भार वह उठा नही

, सकगी गौर . मर जायगी.।. दइसकिए अपनी शकति का विचार करक शरता स

तीर छोडना चाहिए ।

पातरापातर का विचार किय विना भख को अनन दना चाहिए ।

अपना जीव दवापण करन का नाम ह दव-पजा । इसक बिना सब बकार ह । जसा बीज, वसा फर; जसा कारण, वसा काय । जो जितना नमबहोगा,

. ईङवर इतना ही उस मान दता ह ।

मकत गौर मगवान म भद नही ह । अगनि क ससग स खकदी मभति हो `

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विचार-मौकतिक ११७

जाती ह ।

पराणिमातर क परति हम निरवर होना चाहिए । यही सरवोतकषट साघन

ह । नारायण तभी अगीकार करगा । इसक विना सारी वडबड वय ह ।

चितत क निमल होन पर ही सब काम होत ह ।

जबतक घी म छाछ ह, तबतक` वह कड-कड आवाज करता ह, शदध होन पर निदचक शात हो जाता ह ।

ताथयातरा की अपकषा जहा रहत हो वही अधिक पणय किस परकार सपादन

किया जाता ह, इस रहसय को जानना चाहिए । जिनकी एक घडी भी वयथ

नही जाती, एस मकत की सगति अतयततम ह । जो नाम-चिनतन करत ह

ओर करात ह, व इस मव-नद को पार करन कौ नौका ह । एस परोपकारियो

क चरणो पर मरा मसतक ह ।

सोना ही सतय ह, अरकार मिथया ह ।

यदि हमारा अहकार नषट हौ जाय तो नारायण हमार घर आकर

रहत ह 1

सार जग को विषणमय मानना वषणवो का घम ह, परनत व उस नहौ

जानत ।

विषयो स मन परावत हमा कि शदध आतमजयोति दिखाई दन

रगती ह ।

अचछा ओौरनरा बदधि को कलपना ह" मल आकति म मद नही ह, एक

पालकी उठाता ह, एक उसम बठता ह, सबको कदम-कदमपर अपन-अपन

कम मोगन पडत ह । एक क समान दसरा नही ह ; भिननता परकति का

सवरप ह ।

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१२१८ तकाराम-गाया-सार

उदासीन का दह बरहमरप ह । उस पणय-पाप नही लगत । उसक अनदर

अनतापरपी अगनि की जवाला जलती रहती ह 1 अहभाव न ही अनतःकरण को गनदा कर रखा ह । जबतक आकलता नषट नही हई तबतक चितत वदधा- वसथा मह ।

आशा छोडकर हम बनधन का पाश तोड दग । अनय बातो का बोञच

सिर पर लन स निज पथ दर पड जाता ह । उस जीन स कया लाभ, जिसस

ईश-परापति म बाघा पड जाय ?

जिसकी सगति स दःख होता ह, उसस परीति कस हो सकती ह ?

` बदधिहीन को उपदश दना अमत को विष बनाना ह । आकसी वयति का हदय खराब होता ह, जस कोई शव कामनाओ स अकिमत‌ हो ।

भगवान क चरणो म परीति रखन स सबकछ परापत होता ह । एक-दसर की मदद करक हम सव उचछा माग अपनाय ।

ससार असार ह, भगवान ही सार ह । ईश-चिनतन क अतिरिकत सब शरम वयथ ह ।

सव भतो म शरौ नारायण साकषी रप रहत ह, फिर भी अवगणी का दडन मौर गणी का पजन होता ह ।

जिसस अपन चितत को समाघान हो, एसा सवहित हम सवय ही जान । बहत-स रग-रपो म माया फर हई ह । उसकी इचछा करित करनाही अचछा । विशवमभर को अननय मवित स चितत समपण करक निःशबद रहन स ही उसकौ पजा ठोती ह ।

आमिष कौ जाशा स मछली काटा निगलती ह ओर मरती ह । शा न ही उसक पराण छिय । अर दलो ! बकरा कसाई स कसा मोह रखता ह !

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विचार-मोकतिक १९९

काम-करोध को शात करक सब जीव-जनतमो को नमसकार करन का

नाम ही मवित ह ।

सरवभोकता नारायण ह, म नही, एसा जिसकी वाणी बोलती ह, उसक

सब भोग नारायण को अरपण होतह । भोजन करत समय अथवा ओौर काय

करत समय “सबक‌ भगवान क अपण हो' एसा कहना चाहिए । इसम कछ

खच नही होता, परनत य शबद दव कोभरिय ह । `

सजजनो का सवहित इसीम ह कि लोगो क लिए कलयाणकर नीति,

जसी .सवय को परतीत हो, कह ।

.(परमाथ का) अपार भडार भरा ह, कितना भी खच करन पर खाली

नही होता ।

जो मान चाहता ह, उस अपमान मिलता ह । यह सिदध ह कि आखा अनत

म नाा.-करती ह । इचछानसार फल मिलता कहा ह ? फिर भी वासना ही

भिखारी बनाती ह । किसी ढोर का नाम राजहस रख दन स कया होता ह ?

दष म मकखन ह, यह सब जानत ह, परनत जो मयन जानत ह! वही उस

अलग‌ कर पात ह । लोग जानत ह कि काठ म अगनि ह, परनत धिस.विना वह‌

जलान का काय कस करगी ? मलिन दरपण को साफ किथ.बिना मह कत

दखा जा सकता ह ? र

जो दव हो गया हस सव जगदव सवरप रगता ह । यहा अनमव चारहिए,

कोरा शबद-गौरव नही ।

छनी स छील-छीरकर तयार हई दवमति दवपन कौ परापत होती ह,

परनत यदि वह बीच म ही टट-फट जाय, तो कोई उसकी धन नही

-करता ।

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१२० तकाराम-गाथा-सार

सय जचछ-बर सब रसो का शोषण करता तो ह, परनत उनका कोई गण-दोष उस नही लगता । वह सवय सबस अकिपत रहता ह । बरहमजञान भी एसा ही होता ह ।

अगनि किसीको बलान नही जाती कि मर पास आकर अपनी ठड दर कर रो । पानी भी किसीस नही कहता कि सन पीगो' । भगवान भी नही कहत कि मरा समरण करो; परनत जिस अपना उदधार करन की पडी होगी वह उसका समरण करन लगगा । .

सखरप जीवातमा ओर सखरप परमातमा, इन दोनो का तातविक योग हो जाय तो फिर इनका सबष तोड नही टटता । जिसक परति परन हो वह‌ दर मी होतो पास लगता ह; कारण कि परम तो इतना विराल ह कि आकार का गरास वना क!

पसवाक को दनिया मान दती ह ; परनत दरवय स उतपनन होनवाला मवा दरवय क ऊपर आघार रखनवाला सौभागय नादवत ह।

सव सख क सग ह मौर उनह कछ दिया जाय तभी व काम आत ह| दःख क समय या अत समय कोईकाम नही आनवाठ । मर शकतिहीन हो जान पर नाक गौर अख बहन लगगी भौर जोर तथा बाल-बचच मजञ छोड कर चल जायग । मरी अपनी सतरी मी कहगी, सजा, मरता भी तो नही ह । साराघर थक-धक कर खराव कर दिया ।' ह भभो, अनतकाल म तर सिवा भरा कोई सगी नही ह ।

पडित जौर कथावाचक बड जञानी तो होत ह, परनत परम-भवित क सवाद स व अनजान होत ह ।

ब की पीठ पर शवकर कौ बोरिया हो तो भी उस कडबी ही खानी पडती ह । कीमती चीजो की पविया ऊट कौ पीठ पर छादी जाती ह, पर उस

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विचार-मोकतिक * १२१

तो भख कगन पर काट ही चवान पडत ह । उसी तरह बडी-बडी आशाओ

स नाना परकार की परवततियो दवारा परापत कौ हई दौरत यहा-की-यही

रह जाती ह ओर उस कमानवाठ को उसक सग-सवधी वाध-जकडकर यम

क हवाल कर दत ह ।

ससार क सामन नाचनवाठ भाड क बदर किस काम क ? जव यम

उनक काम का हिसाब मागगा तो उनह दात निकालकर खडा रहना पडगा ।

` भमि तो सारी पवितर ह; वासना ही अपवितर ह ।

एक ही गह स विविध परकार क खादय पदारथ तयार होत ह ओौर उनह

खान कलिए जीभ रकचाया करती ह । भोग भोगन स उनक परति राग उतपनन

होता ह ओर उनह बार-बार मोगन का मन होता ह । भोगय पदाथ जो अपन

सामन स खिसक जाय, तो उनक परति नितयाकषण अधिक परबल होतो

जाता ह । समदर क अनदर एक-क-बाद-एक लहर उतपनन होती रहती ह वस

ही विषयो का आकषण ह । अपन बालक को खिलान क वाद भी उसकी मा

उस बारबार हाथ म ककर लिलाती ह ओर खिलात नही रकती । छोट

बालक की बोली म जो भिठास ह, उसीका ऊपरी सवाद चखन स वह माता

एसी विवश हो जाती ह कि उसका सवन करत-करत उस कदापि तपति

नही होती ।

एक म जिसकी वदधि सथिर नही हई, उसम धय नही ह । +

अपन चितत को दव क साय वाघ रकख तो वह‌ उसक पास रहता ह ।

एसा होन स ईदवर क भका स अनतःकरण हमशा परकाशित रहता ह ।

हदय क अनदर दव का परकाश होना अति उततम ओौर मर ह । ईरवर का

समरण करन स सारा बरहमाणड पट म समा जाता ह ! ईरवर क साथ यदि हम

अपना परम-सबध अखड रख तो सव परकार क साभ हम आकर घर बठ

मिलत ह ।

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१२२ तकाराम-गाया-सार

पानी म पानी मिल जान .पर कौन कह सकता ह कि यह पहक का पानी ह ओर यह बाद का ?

दह तो मतय कौ सराक ह । फिर भी लोग दहिक परपच का लोभ क 7. करत ह ओर उस सारवसत कस मान ठत ह ?

सचित कम अपन-अपन विविघ भोग भोगन क लिए यह ररीररपी सम सथान सवय तयार कर जत ह ।

मञञ हीनता स जीना पड तो जीन स कया फायदा ?

जो सकलप-विकलप क वशीमत ह, वह पराधीन ह । काम तो सहखमखः राकषस ह जिसकी कभी तपति नही होती । अतः हदय क अनदर उस लय कर दन स सख की परापति होती ह ।

सबस बडा विघनकरता दहाभिमान ह । इस अभिमान का जिस सपदा भी नही हमा वह कदीपक पदा हमा ह एसा समजञो ।

ससार अपवितर ह एसा विचार मन म लानवाला ही अपवितर ह । भतमातर क परति दया रखना ही मखय घम ह ओर यही स त-काय कहलाता ह 1

किसीको अजीण हो गौर उस सिर भौर डादी मडान की सलाह दी जाय, तौ यह उसका उचित इलाज नही ह । अपन योगय आवदयक करमो को विधिवत‌ करना चाहिए भौर व भी उतन ही करन चाहिए जितन जञावदयक हो ।, ८

दव-पीत बचच कौ मा जिन-जिन पदारथो का सवन करती ह उनका सदततिम माग दष म आ जान स वाखक क पट म ही जाता ह । यह सब ऋणानवनय का सबष ह, यह म सरल भाव स सवस कहता ह ।

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विचार-मौकतिक १२३

चावल पक जान पर उस पनः चलह पर रखना वयथ ह । योगय समय योगय काम करन का नाम ही धम ह 1 हर काम क किए यथोचित समय

होता ह ।

मन को जस विचारो क गम रग, वस विचारो का रग उसपर चद‌

जाता ह ओर फिर उस उसी बात की धन लग जाती ह

भगवान क ऊपर जिसका दढ विदवाकष जम जाता ह उसका हदय तो

अनायास बरहमरस स भरपर बन जाता ह ।

पतथर क अनदर भतित-भाव स दव की कलपना करन स अपनी भावना

क जोर पर भाविक भवत तर जायग, परनत बह पतथर तो पतथर ही रहगा ।

कोर सतरी अपनी अचछी घोती फाड डाल ओौर नग-घडग हौकर खडी

रह, तो हम जानत ह कि वह सचमच पागल होगई ह । परनत मन म तौ पागल-

पन न हो ओौर कोई पागल होन का पाखड कर, ओर दध व दही दोनो म पर

रखकर बडी-बडी बात कर, उसस कया होता ह ? मगजल को दखन स ओर

उसका सवन करन स पयास नही बञचती । जो अपनी कायसिदधि क लिए जात

समय दसरो की बाट जोहता नही खडा रहता, उस ही सचचा शरवीर

समञजना ।

दरागरह काही नाम पाप ह ।

अपना सन वश म करन का उपाय यदि हाथ म आ गया तो फिर कया

दलभ ह ?

कोई पतथर क साथ अपना सिर फोड तो उसका सिर फट जायगा,

परनत पतथर.नरम न होगा ।

अवसर का खाभ उठानवाल म यवित, बल, सवक चाहिए । कन

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१२ तकाराम-गाया-सार

लाम होगा ओौर कव हानि, इसका कोई नियम नही ह । य अकसमात‌ होत ह । जो काम करना हो, तदविषयक पण विचार कर लन क बाद योजना- नसार काय करना चाहिए, जस फसक की तयारी म ।

सवरप का जञान होन पर सवकछ शदध हो जाता ह । दरागरह नही रहता । वहा हष-शोक का नाश हो जाता ह । सवरप सविति म आकर वयवितत दसर स निराला बोलन लगता ह ।

भगवान को सब कम अरपण कर दन पर मन निरदिचत हो जाता ह । एसा न करन स वयथ भरम उतपतनहोता ह मौर करम-बनधन म वध जाना पडता. ह । एक मखय.दव की सवाः किय विना सव निरक ह ।

परमाथ क माग म वाघा डालनवार हमार पाप-पणय ह; ओर पाप- पणय का कारण दह‌-बदधि ह । शरवीर इस शिकज स एक तडक म छटकर मकत हो जात ह ।

बरहमसस का भोजन करन स परतयक परास पर परमदधि होती ह । मन म सचची लगन हो तो राकति भी आ जाती ह । मन उदार हो जाय तो किस बात का अभाव रह ?

शोक करना वथा ह । उसम स खराब कमाई की दगघ आती ह । जिसक अनतःकरण म जो दोष होता ह वही उस पीडा पहचाता ह।

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विचार-मोकतिक १२५

अनतःकरण क अनदर जसा सवभाव होता ह, वसा बाहर परकट हौ जाता

ह ओर उसस मनषय की पहचान अपन-माप हौ जाती ह ।

निङचित रहन स मन समाधान अवसथा म रहता ह ।

निनदा ओर सतति दोनो मिथया ह ।

को करन स पणय का नाश हौ जाता ह ।

` यकत आहार करना, नीति क रासत चलना, वरागय, आदि गणो को

घारण करना- य ही तर क मखय साघन ह ।

अनतःकरण को शदध करना ही मखय काय ह ।

कषमास ही सबका कलयाण होता ह ।

मन क सकलपो स पाप अथवा पणय हए विना रहता ही नही । जो-कछ

होता ह उस सबका मर कारण मन ह । मन का सवभाव एसा ह कि जिस

रस भ (विषय म) मिला.द उसक साथ मिल जाता ह ।

करोध का उदय होन पर मह स जो शबद निकलत ह, व नरक-स रीख

हत ह! परचातताप-रपी तीय म सनान करक आतम-बोघ रपीसय क दन

कर तमी शदधि होती ह 1

उपकार करना पणय ह मौर सताना पाप । इसक अतिरिवत ओौर न कछ

पणय ह, न पाप । सतय भाषण ओर सतय आचरण ही मखय धरम ह; मिथया-

भाषण ओर मिथया माचरण ही पाप को बदढानवल ह । पापपणय का यही

एक मरम ह, अनय नही । शरीहरि का नाम-समरण ही मखय गति ह ओर उसस

विमख होना ही नरकवास ह । सतो की सगति ही सवमवास ह । सतो क

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१२६ तकाराम-गाथा-सार

परति उदासीन माव रखना या उनह धिककारना ही घोर नरक ह‌ ।

दव की परापति का सचचा मम यह ह कि चितत म उपरति होनी चाहिए - ओौर रोम-रोम म हरिगरम वयापत हो जाना चादिए ।

= नवाल कामन क बड को खाना न मिक, कलपवकष क नीच वठनवाल को

मखो मरना पड--यह कभी हो सकता ह ?

" कभी कोरर मा किसी वसत को फकन का ठग करक बगल म छिपा लती ह, वसा ही खर दव भी तर साय लाड लडाता हआ खर रहा ह 1

एक बार जो इस जीव को उततम परष क सख का अनभव हो जाय तो

फिर वह‌ कभी दःख का सपश न होन दगा, कभी वियोग न होन दगा 1 दव सरव -एरशवय-समपनन ह ।

सवय तर जान म कया बडपपन ह ? दसर जडबदधि लोगो को भी हरि- नाम परमी कर दना चाहिए } पथवी इतना बोजञा उटाती ह, इसस उस सवय कया लाम ? गाय अपना दष दसरो को द दती ह, सवय एक बद भी नही चखती । वरषा वषटि करती ह उसस उसक हाय कया आता.हौ ? सर, चनदर विशराम लिय विना परकाशदान करत रहत ह । कयो ? परोपकारारथ । य सव काम राम ही करत ह

सतय क विना कावय म रसनही आता । अनभवरहित कविता लिखन का पाप कौन कर ? थोथ अनभवहीन सकलप लजजासपद ह ।

गर क वचन सनकर जो उनदर अनतःकरण म धारण कर सकता ह, उस सरक जनतःकरणवाला कहना चाहिए; ओर जो धय क अभाव स हाय ! मरा कया होगा ? ' एसा रोना रोता फिर, उस हीनवदधि समदमना ।

जो अपना जौवभाव दव क चरणो भ समपित कर दता ह ओौर जो ससार

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विचार-मौषतिक ` १२७

करीः उपाधि म पडता ह, वह‌ कपण हौ ।`

जिसकी बदधि सवाधीन हो गई ह, वह जो क करता ह वह‌ साधनरप ही हो जाता ह । जो दसर की बदधि का अनसरण करक काम करता ह, उस बडी हानि होती ह ।

जो अपनी इनदरियो को वश म रखता ह, -वह सब जगह उततम सममान पाता रह । `

जो सारी बात का सार जान ठता ह, उस जञाना समञलना ओर जो दसर क साथ वादविवाद करन म भपना भषण मानता ह, उस तचछ समञचन ।

जो गाय को ओौर अतिथि का भाग निकालकर जीमता ह, उस शदध आचरणवाका, ओर जो पगत म बठ हए दसर लोगो को.न दकर अकला ही खाता ह, उस अनाचारी कहना चादिए ।

दव भावानसौर फल दता ह । सब अपन-अपन भावानसार फल भोगत ह । सचित कमो क सिवा ओर कर साय नही जाता ।

वासना को जड स उखाड विना भवजार नही टट सकता ।

शरारनब म लिखा होगा सो होगा एसा कोई न कह । परयतन किय

विना दव की परापति नही होती । परारनधानसार परिणाम आयगा, एसा

विचार करक कया कोई काटो पर भी चरता ह ? अथवा जीवित साप पकडन की हिममत रखता ह ? इसकिए आतमोननति क काय भ परारनध विघन नही कर सकता" एसा विचार करऊ हरकोई अपना हित साध सकता ह ।

दव को पस-टक की कोई गरज नही होती 1 उसतो एकमातर मकति-

भाव की ही सपहा होती ह‌ ।

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१२८ तकाराम-गाथा-सार

सारी फजीहत का कारण यह ह कि लोग जीभ ओौर जनननदिय क गखाम हो गए ह ।

यदि अपना मन शदध होगा,तो जपना शतर भौ मितर हो जायगा ओौर बाघ,

सरप, आदि तक हमको दःख न द सकग । मन की निरमखता स विष भी अमत

हो जायगा । कोर हमपर परहार करगा तो वह भी हमको काभकरता होगा ।

घघकती अगनि भी शीतरता परदायिनी हो जायगी । जो वयकति मनषयमातर

को अपन जीव क समान मानकर उनक ऊपर परम रखता ह, उसक परति

पराणीमातर क मन म भी वसा ही भाव उतपनन होगा । जिस सा अनभव होन

लग उसपर नारायण की समपण कपा हई ह, एसा समञलना ।

(. १51८ # ५ एद € ८ १6 1

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मडल का

आधयातमिक साहितय {10

गीता माता

भगवदगीता

गीता की महिमा

अनासकति-योग‌

गीता बोघ

गीता पदा कोश

विषण सहसरनाम

बदधवाणी

शरी भररविनद का जीवन-दशन

भागवत कथा

सत सघासार आतम-चितन

तकाराम गाथा सार

{110}