Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 026
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Transcript of Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 026
पंडि�तजी साईं बाबा को गांव से भगाने के डिवषय में सोच-डिवचार कर रहे थे डिक तभी एक पुलि�स कोंस्टेडिब� आता दि%खाई दि%या| पंडि�तजी ने उसे दूर से ही पहचान लि�या था| उसका नाम गणेश था| वह पंडि�तजी के पास आता-जाता रहता था|
थाने में जिजतने भी पुलि�स कम-चारी थे, गणेश उन सबमें ज्या%ा चा�बाज था| �ोगों को डिकसी भी फज0 केस में फंसा %ेना तो उसके बायें हाथ का खे� था| रिरश्वत �ेने में उसका कोई सानी नहीं था| जो भी नया थाने%ार आता वह अपनी �चे्छ%ार बातों, हथकं�ों से उसे अपनी और मिम�ा �ेता था| डिफर सीधे-सा%े गांववालिसयों को सताना शुरू कर %ेता था| पंडि�तजी भी इस काम में उसकी भरपूर सहायता करते थे|
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उस आया %ेखकर पंडि�तजी के मन को थोड़ी-सी शांडित मिम�ी|
"आओ, आओ गणेश !" पंडि�तजी बो�े, डिफर हाथ पकड़कर अपने पास चौकी पर बैठा लि�या|
"कैसे हा�चा� हैं पंडि�तजी ?" - गणेश ने पूछा|
"बहुत बुरा हा� है|" पंडि�तजी दु:खभरे स्वर में बो�े - "कुछ न पूछो| जब से साईं बाबा गांव में आया है, मेरा तो सारा धंधा ही चौपट होकर रह गया है| उनकी भभूती ने मेरा औषधा�यबं% कर दि%या| �ोगों ने मंदि%र में आना भी छोड़ दि%या है| दुकान%ार सुबह-शाम मंदि%र आ जाते थे, उनसे थोड़ी-बहुत आम%नी हो जाती थी, पर %ीपाव�ी से वह भी बं% हो गयी|"
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"वो कैसे ?“
पंडि�तजी %ीपाव�ी की सारी घटना सुनाने के बा% कहा - "गणेश भाई ! यदि% यहीं तक होता तो चिचंता की कोई बात न थी| मेरे पास खेत हैं| उन खेतों से इतनी आम%नी हो जाती थी डिक बडे़ मजे से दि%न गुजर जाते| �ेडिकन खेतों में काम करने वा�े मजदूरों ने खेतों में काम करने से मना कर दि%या है| फस� का समय आ रहा है, यदि% खेतों में समय पर फस� न बोयी तो सा� भर खाऊंगा क्या ? मैं तो इस साईं से बहुत ही दु:खी हूं|
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"जब से साईं इस गांव में आया है आम%नी तो हम �ोगों की भी कम हो गयी है| न तो गांव में �ड़ाई-झगड़ा होता है और न चोरी-�कैती| साईं के आने से पह�े गांव से खूब आम%नी होती थी| अब तो फूटी कौड़ी भी हाथ नहीं �ग रहा है|" -गणेश ने भी अपना दु:खड़ा सुनाया|
"तो कोई ऐसा उपाय सोचो जिजससे यह ढोंगी गांव छोड़कर भाग जाए|" -पंडि�तजी ने कहा|
गणेश सोच में पड़ गया|
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पंडि�तजी नाश्ता �ेने अं%र च�े गए|
नाश्ता करने के बा% एक �म्बी �कार �ेते हुए गणेश ने रहस्यपूण- स्वर में कहा - "पंडि�तजी, पुलि�स के जिजतन ेभी बडे़-बडे़ अफसर हैं, वह सब इस साईं के चे�े बन गए हैं| यदि% उनसे इसके डिवरुद्ध कोई लिशकायत की जाएगी तो वे सुनेंगे ही नहीं| %ो-चार बार कभी साईं के डिवरुद्ध कुछ कहने की कोलिशश की, �ेडिकन अभी अपनामुंह भी नहीं खो� पाया था डिक अफसरों ने फटकारते हुए कहा - "खबर%ार, जो साईं के डिवरुद्ध एक शब्% भी कहा| वह इंसान नहीं भगवान का अवतार हैं|" उनकी �ांट खाकर चुप रह जाना पड़ा| इसलि�ए उनसे तो उम्मी% करना ही बेकार है| यदि% साईं को गांव से कोई डिनका� सकता है तो वह लिसफ- गांववा�े|"
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"भ�ा गांव वा�े उसे क्यों गांव से डिनका�ने �गे ?" -पंडि�तजी बो�े|
"%ेखो, पंडि�तजी ! गांव वा�े बहुत सीधे-सा%े होते हैं| उन्हें झूठ और धोखे से बहुत घृणा होती है| उनका चा�-च�न एक%म साफ-सुथरा होता है| वह उस आ%मी को कभी भी ब%ा-श्त नहीं कर सकते, जिजसका चा�-च�न ठीक नहीं होता और उस आ%मी को तो डिकसी भी कीमत पर नहीं, जिजसे वे साधु-महात्मा, लिसद्ध या अपना गुरु मानते हैं| साईं कंुवारा है और पंडि�तजी आप तो जानते ही हैं डिक इस दुडिनया में ऐसा कोई भी पुरुष नहीं है, जो औरत से बच सके|
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यदि% डिकसी तरह डिकसी औरत के साथ साईं बाबा का सम्बंध बनाया जा सके, कोई औरत उस ेअपने जा� में फंसा �े तो डिफर साईं का पत्ता साफ|“
"साईं का तो डिकसी औरत से सम्बंध नहीं है| वह तो प्रत्येक स्त्री को मा ँकहता है| उसके चा�-च�न के बारे में तो आज तक कोई ऐसी-वैसी बात सुनी ही नहीं गई है|" -पंडि�तजी ने कहा|
"नहीं है तो क्या हुआ, इस दुडिनया में कौन-सा ऐसा काम है, जिजसे न डिकया जा सके|" गणेश ने एक आँख %बात ेहुए मुस्कराकर कहा - "बस पैसों की जरूरत है| यदि% मेरे पास थोडे़-से रुपये होते तो मैं इस साईं को क� ही गांव से भगा दंू|"
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"तुम रुपयों की चिचंता डिबल्कु� मत करो| ये बताओ डिक साईं को भगाओगे कैसे ?" -पंडि�तजी ने बेचैनी से पह�ू ब%�ते हुए पूछा|
गणेश ने पंडि�तजी की ओर मुस्कराकर %ेखते हुए कहा- "जरा अपना कान इधर �ाइए|“
पंडि�तजी अपना कान गणेश के मुंह के पास �े गये| गणेश धीरे-धीरे फुसफुसाकर उन्हें अपनी योजना समझान े�गा| पंडि�तजी के चेहरे से ऐसा प्रकट हो रहा था|डिक जैसे वह उसकी योजना से पूरी तरह सहमत हैं|
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वह उठकर अं%र च�े गये और जब वापस �ौटे, तो उनके हाथ में कपड़े की एक थै�ी थी, जो रुपयों से भरी हुई थी|
"�ो गणेश !" -पंडि�तजी ने रुपयों की थै�ी गणेश की ओर बढ़ाते हुए कहा- "पूरे पांच सौ हैं|“
गणेश ने थै�ी झपटकर अपने झो�े में रख �ी और उठकर बो�ा- "अच्छा पंडि�तजी, अब आज्ञा %ीजिजए| चार-पांच दि%न तो �ग ही जायेंगें, तब आपसे मु�ाकत होगी|"
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"ठीक है|" पंडि�तजी ने कहा- "तुम रुपयों की चिचंता डिबल्कु� मत करना| इस साईं को गांव से डिनक�वान ेके लि�ए तो मैं अपना सब कुछ %ांव पर �गा सकता हूं|“
गणेश मुस्कराया और डिफर च� दि%या|