Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 017

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उस समय तक शिरडी गांव की गिगनती गि�छडे़ हुए गांवों में हुआ करती थी| उस समय शिरडी और उसके आस-�ास के लगभग सभी गांवों में ईसाई मिमनरिरयों न ेअ�ने �ैर मजबूती से जमा शिलय ेथे| ईसाइयों के प्रभाव-लोभ में आकर शिरडी के कुछ लोगों ने भी ईसाई धम. स्वीकार कर शिलया था| उन्होंने वहां गांव में एक छोटा-सा गिगरजाघर भी बना शिलया था| वहां �र उन्हें यह शिसखाया जाता था गिक गिहन्दू या मुसलमान जिजन बातों को मानें, चाहे वह उशिचत ही क्यों न हों, तुम उनका गिवरोध करो| गिहन्दू और मुस्लिस्लम जैसा आचरण करें, तुम उसके गिव�रीत आचरण करो, तागिक तुम उन सबस ेअलग दि<खाई �ड़ी|

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उनका एकमात्र उदे्दश्य गिहन्दू और मुस्लिस्लम सम्प्र<ायों के बीच दे्वष उत्�न्न करके वैमनस्य था, जिजससे वे अ�ना मकस< शिसद्ध कर सकें |

वे कहते थे गिक ईसामसीह में ही गिवश्वास करो| केवल वही ईश्वर का सच्चा �ुत्र है| उसके अलावा जिजतन ेभी अवतार, �ैगम्बर आदि< हैं व ेगिहन्दुओं और मुसलमानों की अ�नी बनाई हुई मनगढं़त कहागिनया ंहैं| ईसाई संतों का आ<र-सम्मान करो, क्योंगिक वही एकमात्र सम्मान योग्य हैं| गिहन्दू साधु-संत या मुस्लिस्लम फकीरों की बात मत सुनो| वह सब ढोंगी होते हैं| इस प्रकार की दे्वष भावना वह समाज में बराबर फैला रहे थे|

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आस-�ास के इलाके में जब हैजे की महामारी फैली तो वह लोग भी इस महामारी से अछूते न रहे| ईसाई धम. का प्रचार-प्रसार करने वाली मिमनरिरयों ने यह <ेखकर गिPदिट सरकार से सहायता प्राप्त कर उस इलाके में अस्पताल बनवा दि<या| इस अस्पताल में <वा केवल उन्हीं लोगों को <ी जाती थी, जो ईसाई थे|

जो व्यशिV ईसाई बनने के शिलए तैयार हो जाते थे, उनका मुफ्त इलाज करने के साथ-साथ रु�या-�ैसा भी दि<या जाता था|

मिमनरी अस्पताल के इंजेक्शन और <वा से भी जब कोई भी फाय<ा होता हुआ दि<खाई न �ड़ा तो अनेक ईसाई भी अ�ने �ा<रिरयों की कड़ी चेतावनी को अनसुना कर, साईं बाबा की रण में आने लगे|

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साईं बाबा के शिलए जात-�ात का कोई महत्त्व न था| वह सभी मनुष्यों के प्रगित समभाव रखते थे, जो कोई भी उनके �ास �हुंचता था, वह उसी को अ�नी ऊ<ी <े <ेते| उस ऊ<ी का तुरंत चमत्कारिरक असर होता था और रोगी व्यशिV मौत के मुंह में जाने से साफ बच गिनकलता था|

यह सब <ेख-सुनकर �ा<रिरयों ने �हले तो ईसाइयों को धन का लालच दि<या, गिफर डराया-धमकाया भी, गिक यदि< साईं बाबा के �ास <वा लेने के शिलए गए तो सारी सुगिवधाए ंछीन ली जाएगंी| �र लोगों �र इन बातों का जरा-सा भी असर न हुआ| वह उनकी धमगिकयों में नहीं आये, क्योंगिक यह उनकी जिजं<गी और मौत का सवाल था|

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साईं बाबा की <वा तो रामबाण थी| वह गिनश्चिbत रू� से बीमारी का समूल ना कर <ेती थी| इसका उन सब लोगों को �ूरा गिवश्वास था| वह स्वयं भी इसका प्रत्यक्ष प्रभाव <ेख रहे थे| इस कारण वह सब साईं बाबा के �ास आन ेलगे| उन्होंने रगिववार को गिगरजे में जाना भी बं< कर दि<या|

यह सब <ेखकर मिमस्टर थॅामस के गुस्स ेका कोई दिfकाना न रहा| वह शिरडी में अ�ना �गिवत्र ईसाई धम. फैलाने के शिलये आये थे| वह एक �ा<री थे|साईं बाबा के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकने के शिलए थॉमस ने यह गिनण.य गिकया गिक साईं बाबा को ढोंगी, झूfा शिसद्ध कर दि<या जाए| एक बडे़ �ैमाने �र उनके गिवरुद्ध प्रचार-प्रसार आरंभ कर दि<या जाए|

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वह सीधे शिरडी गांव �हुंचे| साईं बाबा से मिमलने के शिलए, उनके <.न करने और प्रवचन सुनने के शिलए लोग बड़ी-बड़ी दूर-दूर से आते रहते थे| लगेिकन जब तक साईं बाबा की आज्ञा नहीं मिमल जाती थी, गिकसी भी व्यशिV को उनके �ास <.न, चरणवं<ना करते हेतु नहीं जाने दि<या जाता था|

थॉमस के साथ भी ऐसा ही हुआ| वह द्वारिरकामाई मस्लिस्ज< में �हुंचे तो साईं बाबा के भVों ने उन्हें मस्लिस्ज< के बाहर ही रोक दि<या| थॉमस को मस्लिस्ज< के बाहर खडे़-खडे़ घंटों हो गए, लोग आत-ेजाते रहे| बाबा उनसे मिमलते रहे, लोगिकन थॉमस को उन्होंने नहीं बुलाया|

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उस जमाने में प्रत्येक अंगे्रज अ�ने आ�को बड़ा आ<मी समझता था| थॉमस अंगे्रज थे| साईं बाबा ने उन्हें मस्लिस्ज< के बाहर रोककर उनका अ�मान गिकया था| वह इस अ�मान को कैसे सहन कर सकत ेथे ! उन्होंने साईं बाबा के शिष्यों से कहा गिक वह बाबा से �ूछ लें गिक वह मुझस ेमिमलेंगे या नहीं, यदि< वह नहीं मिमलेंगे, तो मैं अभी लौट जाऊंगा|

साईं बाबा का एक शिष्य थॉमस की खबर लेकर बाबा के �ास गया| बाबा ने थॉमस का सं<े सुना और गिफर मुस्कराकर कहा - "जिजन लोगों के मन में ंका, घृणा, क्रोध, �क्ष�ात आदि< बुराइयां हैं, मैं उनसे मिमलना नहीं चाहता| मिमस्टर थॉमस से कहो, वह चले जायें| वैसे मैं उनसे कल मिमल सकता हूं, आज की रात वह यहीं fहरें| यदि< वह अगिनष्ट से बचना चाहते हैं तो उन्हें आज रात यहीं �र रुकना चागिहये| रुकें गे, तो मैं उनसे जरूर मिमलूंगा|"

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बाबा का सं<े थॉमस तक �हुंचाने के बा< उनसे आग्रह गिकया गया गिक वह रात को यहीं �र fहरें| उनके रहने और खाने-�ीने की व्यवस्था कर <ी जाएगी| गिकसी भी तरह की असुगिवधा नहीं होगी|

थॉमस ने उसका आग्रह fुकरा दि<या और वह वा�स चल दि<ए| वह तांगे में बैfकर शिरडी तक आए थे| उन्हें साईं बाबा की अगिनष्ट की भगिवष्यवाणी ढोंग का ही एक अंग मालूम �ड़ी|

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उनका तांगा अभी स्टेन से आधे रास्ते �र ही होगा गिक अचानक एक साईगिकल सवार तेजी से उनके तांगे वाले ने घोडे़ को रोकने की अ�नी ओर से भर�ूर उfा| तेजी से भागा, तांगे वाले ने घोडे़ को रोकने की अ�नी ओर से भर�ूर कोशि की, �र घोड़ा नहीं रुका| तांगा उलट गया| मिमस्टर थॉमस तांगे से नीचे गिगर �डे़ और वह लहुलुहान हो गय|े तब सड़क �र आते-जाते राहगीरों ने उन्हें उfाया और अस्पताल में जाकर भतr कर दि<या|

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रात को अस्पताल में जब थॉमस बेसुध सोए �डे़ थे, अचानक उन्होंने <ेखा गिक साईं बाबा उनके �लंग के �ास खडे़ हैं और उनके सर �र बंधी �दिsयों �र हाथ फेरते हुए कर रहे हैं - " तुमने मेरी बात का गिवश्वास नहीं गिकया थक, गिफर भी मैंन ेतुम्हारी रक्षा की| इस दुघ.टना में तुम्हारी मृत्यु गिनश्चिbत थी| यदि< तुम मेरा कहना मानकर वहीं �र रुक गये होत ेतो मैं तुम्हें बचने का उ�ाय बता <ेता| तुम्हारे मन में तो मेरे प्रगित अगिवश्वास भरा हुआ था, गिफर भी तुम्हारी रक्षा करना मेरा धम. था| मैंने तुम्हें बचा शिलया|"

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बाबा के अंतर्ध्याया.न होते थॉमस की आँख खुल गई, वह चौंककर इधर-उधर <ेखने लगे, लेगिकन कहीं कोई भी न था| चारों ओर गहरा सन्नाटा �सरा हुआ था|

कुछ दि<नों के बा< fीक हो जाने �र डॉक्टरों ने थॉमस को अस्पताल से छुsी <े <ी|

अस्पताल से छुsी मिमलते ही मिमस्टर थॉमस शिरडी की ओर चल �डे़| साईं बाबा के प्रगित उनके मन में भरा अगिवश्वास जाता रहा| धार्मिमंक कsरता भी अब न रही|

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थॉमस जब शिरडी आए तो साईं बाबा ने उनका स्वागत गिकया| थॉमस ने आते ही साईं बाबा के चरणों में अ�ना शिसर रख दि<या| आँखों में आँसू आ गये| वह बार-बार अ�ने अ�राधों के शिलए क्षमा मांगने लगे|

वहां उ�स्लिस्थत सब लोग यह दृश्य <ेखकर आbय.चगिकत रह गये गिक एक �ा<री साईं बाबा के चरणों में नतमस्तक हो रहा है| सबने इसे एक चमत्कार ही माना|

थॉमस ने सबके सामने साईं बाबा से क्षमा मांगी| गिफर खुले ब्<ों में कहा - "साईं बाबा ! आ� एक महा�ुरुष हैं, �हुंचे हुए संत हैं| मैंने इस बात का प्रमाण स्वयं <ेख शिलया है| आ� मानव जागित का उद्धार करने के शिलये ही इस धरती �र आये हैं|"

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इस घटना के �bात् शिरडी ही नहीं, आस-�ास के तमाम गांवों में भी साईं बाबा की जय-जयकार होने लगी| साईं बाबा के नाम का डंका दूर-दूर तक बजने लगा था|

सव.त्र ही उनके नाम की धूम मच गयी थी|