RECENT TRENDS IN ENGINEERING RED HAT'S OPENSHIFT … · growing storage needs of applications...
Transcript of RECENT TRENDS IN ENGINEERING RED HAT'S OPENSHIFT … · growing storage needs of applications...
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RECENT TRENDS IN ENGINEERING
RED HAT'S OPENSHIFT CONTAINER PLATFORM EXPANDS CLOUD OPTIONS
Red Hat OpenShift Container Platform 3.4.
,latest version helps organizations better embrace new
Linux container technologies that can deliver
innovative business applications and services without
sacrificing existing IT investments. Red Hat
OpenShift Container Platform 3.4 provides a platform
for innovation without giving up existing mission-
critical workloads. It offers dynamic storage
provisioning for both traditional and cloud-native
applications, as well as multitenant capabilities that
can support multiple applications, teams and
deployment processes in a hybrid cloud environment.
Today's enterprises are balance management of their
existing application portfolios with the goal of making
it easier for developers to build new applications.
The new release focuses on three complex
areas for enterprises: managing storage; isolating
resources for multiple groups (multitenancy); and the
ability to consistently run applications on multiple
cloud environments (public or private). OpenShift
Container Platform 3.4 makes storage provisioning
easier for developers and operators, and it enhances
how the platform can be used to provide multitenant
resources to multiple groups within an organization.
Additionally, it continues to codify the best practices
needed to deploy a consistent container platform
across any cloud environment, such as AWS, Azure,
GCP, OpenStack or VMware.
Pushes Cloud Benefits
The new platform advances the process of
creating and deploying applications by addressing the
growing storage needs of applications across the
hybrid cloud for enterprises. It allows for coexistence
of modern and future-forward workloads on a single,
enterprise-ready platform.
The new OpenShift Container Platform and
service gives Red Hat customers an easy way to adopt
and use Google Cloud as a public of hybrid cloud
environment. The new release also provides an
enterprise-ready version of Kubernetes 1.4 and the
Docker container runtime, which will help customers
roll out new services more quickly with the backing of
Red Hat Enterprise Linux. OpenShift Container
Platform 3.4 integrates architectures, processes and
services to enable delivery of critical business
applications, whether legacy or cloud-native, and
containerized workloads.
Open Source and Linux Innovation
Kubernetes is becoming the de facto standard for
orchestrating and managing Linux containers.
OpenShift is delivering the leading enterprise-ready
platform built on Kubernetes. Both Red Hat and
Google are pushing for innovation. Both companies
are among the market's most proactive and innovative
supporters of open source and Linux solutions.
Features and Benefits
Among the new capabilities in the latest version of
OpenShift Container Platform:
Next-level container storage with support for dynamic storage provisioning -- This allows
multiple storage types and multitier storage
exposure in Kubernetes;
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Container-native storage enabled by Red Hat Gluster Storage -- This now supports dynamic
provisioning and push button deployment for
stateful and stateless applications;
Software-defined, highly available and scalable storage solution -- This provides
access across on-premises and public cloud
environments for more cost efficiency over
traditional hardware-based or cloud-only
storage services;
Enhanced multitenancy through more simplified management of projects -- This
feature is powered by Kubernetes namespaces
in a single Kubernetes cluster. Applications
can run fully isolated and share resources on a
single Kubernetes cluster in OpenShift
Container Platform.
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More Supplements
The OpenShift Container Platform upgrade
adds the capacity to search for projects and project
details, manage project membership, and more via a
more streamlined Web console. This capability
facilitates working with multiple projects across
dispersed teams.
Another enhancement is the multitenancy
feature that provides application development teams
with their own cloud-like application environment. It
lets them build and deploy customer-facing or internal
applications using DevOps processes that are isolated
from one another.
Also available in the new release are new
hybrid cloud reference architectures for running Red
Hat OpenShift Container Platform on OpenStack,
VMware, Amazon Web Services, Google Cloud
Engine and Microsoft Azure. These guides help walk
a user through deployment across public and private
clouds, virtual machines and bare metal.
- Swapnil Thorat (Lab Technician, E&TC)
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CAMPUS DIARY
EDUCATIONAL ACTIVITIES
EXTRA CURRICULAR ACTIVITIES
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STUDENTS CORNER
अभिय ांभिकी
अभिय ांत्रिकी म्हणजे नश , ती करून बघ वी
अभिय ांत्रिकी एक नूतन दिश , ती च लून बघ वी
अभिय ांत्रिकी एक ि ष , ती भशकून बघ वी
अभिय ांत्रिकी एक िश , ती िोगून बघ वी
अभिय ांत्रिकी एक आश , ती स क रून बघ वी
वैभव वव. शवेाळे (म दहती तांिज्ञ न, वषष-४ थे )
SKETCH
Kanifnath Satav (Second Year MBA-HR)
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PHOTOGRAPHY
Nilesh Hazare (First Year MBA)
Sanket Kubade (T.E. Automobile)
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FACULTY CORNER
भारतीय विज्ञान, तकनीकी, विक्षा और मानस
इस विषय के अंतर्गत हम ज्ञात करेंर् ेकी भारतीय
विज्ञान और तकनीकी क्या थी? भारत के संदभग में
यहााँ की तकनीकी का स्िरुप कैसा होना चावहये
और अभी कैसा ह|ै प्राचीन भारतीय विज्ञान और
तकनीकी का विकास और उस पर आधाररत समाज
व्यिस्था, विक्षा व्यिस्था और दिे की अथग व्यिस्था
इन सब प्रकाि डालेंर्|े आज के (यूरोप कें द्रित) विक्षा प्रणाली और (विकृत)
समाज ज्ञान अनुसार अर्र हम सोच ेतो यह ज्ञात
होता ह ैकी –
अ) प्राचीन भारतीय लोर्ों को कोई विज्ञान और
तकनीकी नहीं पता थी| यह तो साप और सपेरों
का दिे था| आ) विज्ञान तो अंग्रजों (विरििों) के कारण इस दिे
को पता चला ह|ै अंग्रजों न े ही हमें काननू
व्यिस्था वसखाई| इ) उन की (अंग्रेजी) विक्षा व्यिस्था हमें आधुवनक
बना रही ह|ै ई) अंग्रेजों स ेपहले भारत दिे में कुछ नहीं था| यहााँ
के लोर् अनपढ़, र्रीब और वभकारी थ ेऔर इस
के विपरीत यूरोप के (विरिि) लोर् बहुत पढे
वलख ेऔर धनिान थ|े भारत के यथाथग (True) इवतहास पर मनन, चचंतन
करन ेस ेज्ञात होता ह ैकी, भारत का वपछले लाखों
िषों का ग्रन्थ रूप में वलवखत इवतहास ह|ै इस के
विपरीत विश्व के अन्य दिेों के पास ईसा पूिग
४५०० स ेपुरान ेदस्तािेज/ग्रन्थ नहीं वमलते| अर्र
पविमी दिेों ने हमें विज्ञान और व्यिस्थायें वसखाई
होर्ी, तो प्रश्न यह उठता ह ै की, वबना विज्ञान,
तकनीकी और वबना द्रकसी व्यिस्था स ेयह दिे कई
लाख िषग चला कैस?े
हमारी आज की पीढ़ी को इस बात पे विश्वास ह ैकी
– भारत सोने की वचविया और विश्वर्ुरु था| इस
विश्वास को प्रमावणत करन े हतेु आज भी सुिणग
मंद्रदर और नालंदा, तक्षविला जैसे विश्वविद्यापीठ
जीवित और अििेष रूप में दवृिर्ोचर होते ह|ै कोई भी दिे समूचे विश्व में धन संपन्न तभी हो
सकता ह ैजब उस दिे में बहुत सारा उदयोर् होर्ा
(नौकरी नहीं), दिे में बहुत सारे उदयोर् तभी हो
सकते ह ैजब दिे में बहुत सारे कारखाने होंर्,े दिे
में कारखान े तभी होंर् े और चलेंर् े जब उन
कारखानों को चलाने िाली विज्ञान और तकनीकी
का विकास उस दिे में होर्ा और विज्ञन ि
तकनीकी का विकास रठक से तभी होर्ा जब उस
दिे की विक्षा व्यिस्था ‘ज्ञान’ और ‘चाररत्र्य संपन्न’
विद्याथी (भविष्य) बनाती होर्ी| इसी तार्कग क
आधार पर हम कह सकते ह ै की दिे को
िवििाली बनाने में विज्ञान, तकनीकी और विक्षा
का बहुत बिा महत्त्ि होता ह|ै (विश्व की औद्योवर्क इकाई की उत्पादन क्षमता:
सन १७५० में विश्व के सकल उत्पादन का ७३%
वहस्सा भारत और चीन का था| सन १८२० में
अकेले भारत का यह ६०% था, ४०% में पृथ्िी पर
के अन्य दिे आते थे|)
अब प्रश्न ऐसा उठता ह ैकी यह पतन कैसे हुआ? हम
अपना र्ौरि पूणग इवतहास भूलने के क्या कारण ह?ै
और हमारे विक्षा प्रणाली में ऐसा क्यों पढाया जा
रहा ह,ै वजस के कारण आन ेिाली पीढ़ी (विद्याथी)
िरीर से भारतीय और द्रदमार् (विचारों) से
पािात्य पे्रमी (अभारतीय) हो रहा ह?ै भारत
स्ितंत्र होने पािात् भी इसे क्यों बदला नहीं र्या?
यूरोप कें द्रित विक्षा से बहुत पढ़ा वलखा, पािात्य
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पे्रमी मानवसकता िाला विद्याथी अर्र नेता भी बन
जाये, तो क्या िह पविम पे्रमी मानवसकता स े
भारत को न्याय द ेपायेर्ा? इन सब के उत्तर भारत के विक्षा प्रणाली के इवतहास में छुपे ह|ै उस पे
उवचत प्रमाणों और सन्दभों के साथ अलर् से चचाग
हो सकती ह|ै इस लेख से हम प्राचीन भारतीय िैज्ञावनक
(ऋवष/महर्षग) के खोज के बारे में ज्ञात करेंर्|े इस से
प्राचीन भारतीय संस्कृवत, सभ्यता, समाज
व्यिस्था, विक्षा व्यिस्था और वचद्रकत्सा के संदभग के
सहस्य उजार्र होर्|े इस से केिल भािनात्मक स्तर
पे नहीं अवपतु बौवददक स्तर पे भी भारतीयता के
प्रवत आदर, आत्मीयता और सम्मान बढ़ेर्ा|
अब विज्ञान और तकनीकी में ऐसा भारतीय और
अभारतीय भेद कैसे आया? इस का उत्तर छुपा ह,ै
उस दिे के मूल तत्त्ि वजस के आधार पे िहााँ की
संस्कृवत, सभ्यता बनी ह|ै दिे की संस्कृवत, सभ्यता, मूल तत्त्ि, विचार और समाज िहााँ के विद्यार्थगयों
पे प्रभाि डालते ह ै और उसी स े उन का चाररत्र्य
वनमागण होता ह|ै अथागत, दिे के मूल तत्त्ि वजस के
आधार पे दिे खिा ह ैिही तय करता ह ैकी दिे का
भविष्य समाज में िांवत प्रस्थावपत करेर्ा या
विदिंस लायेर्ा| चाररत्र्य संपन्न विद्याथी द्रकसी
िोध कायग में जीिन व्यतीत करे तो िह समाज/सृवि
के सृजन, पोषण के बारे में विचार कर तकनीकी का
विकास करेर्ा| इस के विपरीत चाररत्र्य वहन
विद्याथी विज्ञान पढ़ भी ले, तो िह समाज/सृवि को
िोवषत कर धन कमायेर्ा| इसे उदाहरण स ेसमझ;े
अर्र अनुविज्ञान का ज्ञान आतंकिादी (कसाब जैसे)
और चाररत्र्य संपन्न िैज्ञावनक (अब्दलु कलाम सर
जैसे) को द ेतो क्या होर्ा? कदावचत द्रकसी दिे का
विदिंस करने हतेु कसाब अनुबााँब बनाएर्ा और
कलाम सर जैसे विज्ञावनक उस से उजाग वनमागण कर
विद्युत बनायेर्|े अब दखेते ह ै की भारत और
पविमी दिेों के संस्कृवत के मूल तत्त्िों में अंतर क्या
था वजस के कारण भारतिषग समूचे विश्व में
िन्दनीय विश्वर्ुरु रहा था|
ितगमान (यूरो-अमेररका कें द्रित) विक्षा से जो
प्रभावित विद्वानों को लर्ता ह ै की मानि जाती
अश्मायुर् से वनरंतर शे्रष्ठ बन रही ह ै और भविष्य
का मानि ितगमान मानि से अवधक शे्रष्ठ होंर्े।
द्रकन्तु जो इस विक्षा से प्रभावित नहीं हुए ह ैया जो
भारतीय कालर्णना की समझ रखते ह ैउन्हें अपने
अनुभिों स ेऔर भारतीय िास्त्रों के कथन से मानि
जाती (ि वनसर्ग) वनरंतर क्षीण होती जा रही ह ै
ऐसा लर्ता ह।ै कवलयुर् में वस्थवत बहुत अवधक
वबघड रही ह।ै
यूरो-अमरीकी समाज पे ‘अरस्तु’, 'फ्ांवसस बकेन'
और 'दकेाते' जैसे दािगवनकों का प्रभाि ह।ै िो कहत े
ह-ै
- प्रकृवत मानि की दासी ह,ै इसे अपनी जकड में
रखना चावहए।
- प्रकृवत का मानि ने िोषण करना चावहए।
- अवनबगन्ध व्यविस्िातंत्र्य (unlimited individual
liberty).
- बलिान को ही जीन ेका अवधकार ह।ै (servival
of the fittest).
- दबुगल का िोषण (exploitation of the weak)
इत्याद्रद.
ऐसे मूल विचारो पे यूरो-अमरीकी व्यिस्थाये बानी
थी। ऐसी पररवस्थवतयों में जन्मी हुई विक्षा प्रणाली
से जो विद्वान् ि िैज्ञावनक समाज में आएरं् ेतो उन
की खोज ेभोर्िादी ही रहरे्ी।
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ठीक इसी के विपरीत भारतीय जीिन दिृी के तत्त्ि
थे।
- समूची सृवि आत्मतत्त्ि का ही विस्तार ह।ै
- सि ेभिन्तु सुवखन:। (सब सुखी हो)
- िसुधैि कुिुम्बकम्।(पूरा विश्व एक पररिार ह)ै
- आत्मित् सिगभूतषेू। (जैसा व्यिहार में अन्यो स े
अपने वलए चाहता हु, िैसा व्यिहार अन्यो के साथ
करू|)
इसी प्रकार के जीिनदवृि रूपी चररत्र वनमागण
र्ुरुकुलों में द्रकया जाता था। इसी र्ुरुकुलों से जब
आयगभट्ट, िराहवमवहर, चाणक्य, भास्कराचायग जसैे
िैज्ञावनक बहार वनकलत ेतो उनकी खोजे भी इन्ही
तत्िों को विचार कर के की जाती।
चूाँद्रक अपनी भारतीय विक्षा प्रणाली अभी यूरोप
कें द्रित हुई ह,ै तो ऐसी विक्षा में स ेिैज्ञावनक तैयार
होंर् ेतो िो न ही सृवि के भरण पोषण के बारे में
विचार करेंर् ेऔर न ही मानिता के बारे में।
हमें भरण पोषण िाला विज्ञान जानना हो तो
विज्ञान के इवतहास को समझ कर ऋवषयों के
(सावत्िक) खोजों को द्रिर से जार्ृत करना पिरे्ा।
इसवलए हमें भारतीय िास्त्रों को ठीक स े(भारतीय
मानस स)े समझना पिरे्ा।
यह िास्त्र विद्या ि कलाओं को जन्म देंर्े।
जैसे: भारतिषग में बहुत से विल्प (Engineering)
की िाखाय ेउपलब्ध थी जीस के अंतर्गत १० िास्त्र
(Technologies) आते थे। इन्ही िास्त्रों के अंतर्गत
३२ विद्याए और विद्याओं के अंतर्गत ६४ कलाय े
आती थी।
चूाँद्रक भारतिषग समिीतोष्ण भार् में आता ह,ै यहााँ
पेड, पौधों, पिु, पवक्षओं, (वनसर्ग) में विविधता ह|ै
समूचे विश्व में केिल भारत वह ऐसा दिे ह ै जहााँ
विविध प्रकार के प्रदिे ह।ै
भारत की यह विविधता ज्ञात कर भारतीय ऋवषओं
(िैज्ञावनकों) ने प्रदिेों के भभूार् नुसार भारत के
१८ विभार्ों में विभावजत द्रकया| (वचत्र दखे)े
चूाँद्रक, भारत दिे के बहुत से प्रदिेों के िातािरण में
विविधता ह,ै तो हर एक प्रदिे की तकनीकी भी
अलर् अलर् होनी चावहये| जैसे, कश्मीर में बहुत थंड ह ै तो िहा का अन्न,
िेिभूषा, वचद्रकत्सा, यंत्र, इत्यादी र्रम प्रदिेों
(विदभग) से अलर् होंर्े|
भारत के प्राचीन ऋवषओं न ेभरतिषग को बारीकी
से समझा, उस पे संिोधन द्रकया और प्रदिेों
अनुसार तकनीकी का विकास द्रकया| प्रदिे नुसार
विज्ञान ि तकनीकी और जीिन सुखमय हो इसवलए
उस विज्ञान ि तकनीकी का द्रदनचयाग में उपयोर्|
अथागत, हर एक प्रदिे की द्रदनचयाग भी अलर् अलर्
होर्ी| वभन्न प्रदिेों की वभन्न द्रदनचयाग द्रिर वभन्न
संस्कृवत को दरे्ी|
अत: भारतिषग में कुछ कहािते प्रवसद्ध ह,ै जैसे –
“कोस कोस पर बदल ेपानी, चार कोस प ेिाणी...|” अथागत, अलर् प्रदिेों नुसार संस्कृवत और विज्ञान ि
तकनीकी में बदलाि|
“जसैा दिे, िसैा भषे..|”
अथागत, प्रदिेों नुसार िेिभूषा में बदलाि| द्रकतनी
हास्यास्पद बात ह ै की, आधुवनक विज्ञान युर् के
आधुवनक विक्षा पे पढ़े हम लोर् वबना सोच ेसमझे
भारत जसैे र्रम दिे में खादी की जर्ह पविमी
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सभ्यता िाला बे-ढंर् िेिभूषा modern fashion के
नाम पे अपनाते ह|ै इस प्रकार से पविमी दिेों का अनुकरण करने में अपन र्ौरि समझते ह ै और जो
भी भारतीय ज्ञान (ग्रन्थ, ऋवष, संस्कृवत) ह ै उस े
अंधश्रद्धा और वपछडा समझते ह|ै तकनीकी कभी
छोिी या बिी नहीं होती| तकनीकी सदिै िहा की
भौर्ोवलक पररवस्थवत अनसुार होती ह|ै
भारत छोड ज्यादा तर दिेों की आबोहिा एक तो
ठंडी ह ै अथिा र्रम ह|ै भारत जैसे अलर् अलर्
(छ:) ऋतुये िहा दवृिर्ोचर नहीं होते| अत: िहााँ
की तकनीकी अलर् होनी चावहये और अलर् ही ह|ै
आज ऐसी बहुतसी तकनीकी ह ै हो आधुवनक
(/Globalization) समझ कर भारत में आयी ह|ै इस से वनसर्ग (और मानिी जीिन) का िोषण ही हुआ
ह|ै जैसे, भारतीय वचद्रकत्सा िास्त्र (आयुिेद) को
पीछे छोि पविमी िैद्यद्रकय तकवनकी (Medical
Science, Allopathy) का विकास कुछ इस प्रकार
हुआ ह ैवजस ने १०० िषग की आयु िाले मानि को
६०-७० िषग के आयु का कर द्रदया ह ै और Allopathic वचद्रकत्सा तो मानो केिल श्रीमंत िर्ग
के वलये ही बनी हो| भारतीय नसैर्र्गक कृवष को पीछे छोि हररत क्ांवत
अंतर्गत Advanced Farming Technologies का
विकास द्रकया र्या, वजस ने प्रथम चरण पे कम
समय में उत्पादकता तो बढ़ाई द्रकन्तु कुछ समय
पािात् भूवम बंजर बनाई|
पोषक दधू, नैसर्र्गक र्ोबर खाद, औषधीय र्ौमुत्र
और िवििाली बैल दनेे िाली दिेी र्ाय को हिा
कर ज्यादा दधू के उत्पाद हेतु श्वेत क्ांवत (White
Revolution) अंतर्गत जसी, फ्ीवजयन, होलस्िीयन
र्ायों को भारत लाया र्या| ऐसी विदिेी र्ायों के
दधू के प्रोिीन में Histidin होने के कारण यह पेि
में विष समान काम करता ह ै और इन के बैल,
र्ोबर, र्ौमुत्र कुछ काम के नहीं होते ह|ै
लेख के अंवतम चरण में एक उदहारण हतेु प्राचीन
भारतीय तकनीकी अंतर्गत आने िाली प्राकर िास्त्र
की दरु्ग विद्या के बरे में कुछ चबंद ुज्ञात करत ेह|ै
सन १६६४ में श्री वििाजी महाराज के राज्य के
स्थापत्य अवभयंता वहरोजी इन्दालकर दिेमुख ने
महाराष्ट्र वस्थत चसंधुदरु्ग द्रकला का वनमागण द्रकया
था| यह द्रकला समुन्दर में वस्तत ह ै और द्रकले के
अंदर वपने हतेु मीठे पाणी की योजना की र्यी ह|ै
इस द्रकले की अलर् अलर् विविषताए ं आप
सांकेवतक स्थलों पे दखे सकत ेहो| भारतीय विज्ञान और तकनीकी विल्पसंवहता में
द्रदखाई दतेी ह|ै विल्पसंवहता में १० िास्त्र, ३२
विद्या और ६४ कलाओं के बारे में बताया र्या ह,ै
जो अवभयांवत्रकी के अलर् अलर् िाखाओं के बारे
में बताते ह|ै ‘विल्पसंवहता’ यह अथिगिेद का
उपिेद, ‘अथगिेद’ का भार् ह|ै (ऋग्िेद का उपिेद
आयुिेद ह,ै यजुिेद का धनुिेद, सामिेद का
र्ान्धिगिेद और अथिगिेद का उपिेद अथगिेद ह|ै)
वनचे द्रदए र्ये Email ID पे आप प्रश्न पूछ सकते हो|
|| िंद ेमातरम् ||
- प्रा. ितंन ूकोकािे, (अणवुिद्यतु विभार्) [email protected]
(भारतीय विज्ञान और विल्प संिोधन समूह)