PPt on Ras Hindi grammer

33
रर

Transcript of PPt on Ras Hindi grammer

Page 1: PPt on Ras Hindi grammer

रस

Page 2: PPt on Ras Hindi grammer

रसरस का शाब्दि��क अर्थ� है 'आनन्�'। काव्य को पढ़ने या सुनने से

जि�स आनन्� की अनुभूति हो ी है, उसे 'रस' कहा �ा ा है।

• पाठक या श्रो ा के हृ�य में स्थि* *ायीभाव ही तिवभावादि� से संयुक्त होकर रस के रूप में परिरण हो �ा ा है।

• रस को 'काव्य की आत्मा' या 'प्राण  त्व' माना �ा ा है।

Page 3: PPt on Ras Hindi grammer

रस के प्रकारक्रमांक रस का प्रकार1.

शंृगार रस

2. हास्य रस3. करुण रस4. रौद्र रस5. वीर रस6. भयानक रस7. वीभत्स रस8. अद्भ ु रस9. शां रस

Page 4: PPt on Ras Hindi grammer

1.शृंगार रस• शृंगार रस को रसरा� या रसपति कहा गया है। मुख्य : संयोग र्था तिवप्रलंभ या

तिवयोग के नाम से �ो भागों में तिवभाजि� तिकया �ा ा है, किकं ु धनं�य आदि� कुछ तिवद्वान् तिवप्रलंभ के पूवा�नुराग भे� को संयोग-तिवप्रलंभ-तिवरतिह पूवा�व*ा मानकर अयोग की संज्ञा �े े हैं र्था शेष तिवप्रयोग र्था संभोग नाम से �ो भे� और कर े हैं। संयोग की अनेक परिरस्थि*ति यों के आधार पर उसे अगणेय मानकर उसे केवल आश्रय भे� से नायकारब्ध, नायियकारब्ध अर्थवा उभयारब्ध, प्रकाशन के तिवचार से प्रच्छन्न र्था प्रकाश या स्पष्ट और गुप् र्था प्रकाशनप्रकार के तिवचार से संक्षिRप् , संकीण�, संपन्न र र्था समृजिSमान नामक भे� तिकए �ा े हैं र्था तिवप्रलंभ के पूवा�नुराग या अक्षिभलाषहे ुक, मान या ईश्र्याहे ुक, प्रवास, तिवरह र्था करुण तिप्रलंभ नामक भे� तिकए गए हैं। शंृगार रस के अं ग� नायियकालंकार, ऋ ु  र्था प्रकृति का भी वण�न तिकया �ा ा है।

Page 5: PPt on Ras Hindi grammer

उदाहरण

• संयोग शंृगार ब रस लालच लाल की, मुरली धरिर लुकाय।

सौंह करे, भौंहतिन हँस,ै �ैन कहै, नदि[ �ाय। -तिबहारी लाल

• तिवयोग शृंगार (तिवप्रलंभ शंृगार) तिनसिसदि�न बरस नयन हमारे,

स�ा रहति पावस ऋ ु हम पै �ब े स्याम सिसधारे॥ -सूर�ास

Page 6: PPt on Ras Hindi grammer

शंृगार रस

Page 7: PPt on Ras Hindi grammer

2.हास्य रस• भार ीय काव्याचाय^ ने रसों की संख्या प्राय: नौ ही मानी है

जि�नमें से हास्य रस प्रमुख रस है।• �ैसे जि�ह्वा के आस्वा� के छह रस प्रसिसS हैं उसी प्रकार हृ�य

के आस्वा� के नौ रस प्रसिसS हैं। जि�ह्वा के आस्वा� को लौतिकक आनं� की कोदि[ में रखा गया है क्योंतिक उसका सीधा संबंध लौतिकक वस् ुओं से है। हृ�य के आस्वा� को अलौतिकक आनं� की कोदि[ में माना �ा ा है क्योंतिक उसका सीधा संबंध वस् ुओं से नहीं किकं ु भावानुभूति यों से है। भावानुभूति और भावानुभूति के आस्वा� में अं र है।

Page 8: PPt on Ras Hindi grammer

 उदाहरण

•   ंबूरा ले मंच पर बैठे पे्रमप्र ाप, सा� यिमले पंद्रह यिमन[ घं[ा भर आलाप। घं[ा भर आलाप, राग में मारा गो ा, धीरे-धीरे ब्दिखसक चुके र्थे सारे श्रो ा। (काका हार्थरसी)

Page 9: PPt on Ras Hindi grammer

हास्य रस

Page 10: PPt on Ras Hindi grammer

3. करुण रस• भरतमुनि� के ‘�ाट्यशास्त्र’ में प्रनितपादिदत आठ �ाट्यरसों

में शृंगार और हास्य के अ�न्तर तथा रौद्र से पूर्व- करुण रस की गण�ा की गई है। ‘रौद्रातु्त करुणो रस:’ कहकर 'करुण रस' की उत्पत्तित्त 'रौद्र रस' से मा�ी गई है और उसका र्वण- कपोत के सदृश है  तथा देर्वता यमराज बताये गये हैं  भरत �े ही करुण रस का निर्वशेष निर्वर्वरण देते हुए उसके स्थायी भार्व का �ाम ‘शोक’ दिदया हैI और उसकी उत्पत्तित्त शापजन्य क्लेश निर्वनि�पात, इष्टज�-निर्वप्रयोग, निर्वभर्व �ाश, र्वध, बन्ध�, निर्वद्रर्व अथा-त पलाय�, अपघात, व्यस� अथा-त आपत्तित्त आदिद निर्वभार्वों के संयोग से स्र्वीकार की है। साथ ही करुण रस के अभिभ�य में अशु्रपात�, परिरदेर्व� अथा-त् निर्वलाप, मुखशोषण, रै्वर्वर्ण्यय-, त्रस्तागात्रता, नि�:श्वास, स्मृनितनिर्वलोप आदिद अ�ुभार्वों के प्रयोग का नि�दNश भी कहा गया है। निOर नि�र्वNद, ग्लानि�, त्तिQन्ता, औत्सुक्य, आरे्वग, मोह, श्रम, भय, निर्वषाद, दैन्य, व्यात्तिध, जड़ता, उन्माद, अपस्मार, त्रास, आलस्य, मरण, स्तम्भ, रे्वपथु, रे्वर्वर्ण्यय-, अशु्र, स्र्वरभेद आदिद की व्यभिभQारी या संQारी भार्व के रूप में परिरगभिणत निकया है I

Page 11: PPt on Ras Hindi grammer

उदाहरण

• सोक तिबकल सब रोवकिहं रानी। रूपु सीलु बलु े�ु बखानी॥ करकिहं तिवलाप अनेक प्रकारा। परिरकिहं भूयिम ल बारकिहं बारा॥( ुलसी�ास)

Page 12: PPt on Ras Hindi grammer

4. वीर रसशंृगार के साथ स्पधा- कर�े र्वाला र्वीर रस है। शृंगार, रौद्र तथा र्वीभत्स के साथ र्वीर को

भी भरत मुनि� �े मूल रसों में परिरगभिणत निकया है। र्वीर रस से ही अदभुत रस की उत्पत्तित्त बतलाई गई है। र्वीर रस का 'र्वण-' 'स्र्वण-' अथर्वा 'गौर' तथा देर्वता इन्द्र कहे गये हैं। यह उत्तम प्रकृनित र्वालो से सम्बद्ध है तथा इसका स्थायी भार्व ‘उत्साह’ है - ‘अथ र्वीरो �ाम उत्तमप्रकृनितरुत्साहत्मक:’। भा�ुदत्त के अ�ुसार, पूण-तया परिरसु्फट

‘उत्साह’ अथर्वा समू्पण- इन्द्रिन्द्रयों का प्रहष- या उत्Oुल्लता र्वीर रस है - ‘परिरपूण- उत्साह: सर्वNन्द्रिन्द्रयाणां प्रहष] र्वा र्वीर:।’

निहन्दी के आQाय- सोम�ाथ �े र्वीर रस की परिरभाषा की है -‘जब कनिर्वत्त में सु�त ही वं्यग्य होय उत्साह। तहाँ र्वीर रस समन्द्रि`यो Qौनिबत्तिध के कनिर्व�ाह।’ सामान्यत: रौद्र एर्वं र्वीर रसों की पहQा� में कदिठ�ाई होती है। इसका कारण यह है निक दो�ों के उपादा� बहुधा एक - दूसरे से मिमलते-जुलते हैं। दो�ों

के आलम्ब� शतु्र तथा उद्दीप� उ�की Qेष्टाए ँहैं। दो�ों के व्यभिभQारिरयों तथा अ�ुभार्वों में भी सादृश्य हैं। कभी-कभी रौद्रता में र्वीरत्र्व तथा

र्वीरता में रौद्रर्वत का आभास मिमलता है। इ� कारणों से कुछ निर्वद्वा� रौद्र का अन्तभा-र्व र्वीर में और कुछ र्वीर का अन्तभा-र्व रौद्र में कर�े के अ�ुमोदक हैं, 

लेनिक� रौद्र रस के स्थायी भार्व क्रोध तथा र्वीर रस के स्थायी भार्व उत्साह में अन्तर स्पष्ट है।

Page 13: PPt on Ras Hindi grammer

उ�ाहरण• र्वीर तुम बढे़ Qलो, धीर तुम बढे़ Qलो। 

साम�े पहाड़ हो निक सिसंह की दहाड़ हो। तुम कभी रुको �हीं, तुम कभी `ुको �हीं॥

(द्वारिरका प्रसाद माहेश्वरी)

Page 14: PPt on Ras Hindi grammer

वीर रस

Page 15: PPt on Ras Hindi grammer

5. रौद्र रस

काव्यग रसों में रौद्र रस का महत्त्वपूण� *ान है। भर  ने ‘नाट्यशास्त्र’ में शृंगार, रौद्र, वीर  र्था वीभत्स, इन चार रसों को ही प्रधान माना है, अ : इन्हीं से अन्य रसों की उत्पक्षिk ब ायी है, यर्था-‘ ेषामुत्पक्षिkहे वच्Rत्वारो रसा: शृंगारो रौद्रो वीरो वीभत्स इति ’ । रौद्र से करुण रस की उत्पक्षिk ब ा े हुए भर कह े हैं तिक ‘रौद्रस्यैव च यत्कम� स शेय: करुणो रस:’ ।रौद्र रस का कम� ही करुण रस का �नक हो ा हैI

Page 16: PPt on Ras Hindi grammer

उ�ाहरण• श्रीकृष्ण के सुन वचन अ�ु�न Rोभ से �लने लगे। 

सब शील अपना भूल कर कर ल युगल मलने लगे॥ संसार �ेखे अब हमारे शतु्र रण में मृ पडे़। कर े हुए यह घोषणा वे हो गए उठ कर खडे़॥

• (मैसिर्थलीशरण गुप् )

Page 17: PPt on Ras Hindi grammer

6.भयानक रसभयानक रस तिहन्�ी काव्य में मान्य नौ रसों में से एक है। भानु�k के

अनुसार, ‘भय का परिरपोष’ अर्थवा ‘समू्पण� इजिन्द्रयों का तिवRोभ’ भयानक रस है। अर्था� भयोत्पा�क वस् ुओं के �श�न या श्रवण

से अर्थवा शत्रु इत्यादि� के तिवद्रोहपूण� आचरण से है, ब वहाँ भयानक रस हो ा है। तिहन्�ी के आचाय� सोमनार्थ ने

‘रसपीयूषतिनयिध’ में भयानक रस की तिनम्न परिरभाषा �ी है-‘सुतिन कतिवk में वं्यतिग भय �ब ही परग[ होय। हीं भयानक रस

बरतिन कहै सबै कतिव लोय’।

Page 18: PPt on Ras Hindi grammer

उ�ाहरण• उधर गर� ी सिसंधु लहरिरयाँ कुदि[ल काल के �ालों सी। 

चली आ रहीं फेन उगल ी फन फैलाये व्यालों - सी॥

(�यशंकर प्रसा�)

Page 19: PPt on Ras Hindi grammer

भयानक रस

Page 20: PPt on Ras Hindi grammer

7. बीभत्स रसबीभत्स रस काव्य में मान्य नव रसों में अपना तिवसिशष्ट *ान रख ा

है। इसकी स्थि*ति दु:खात्मक रसों में मानी �ा ी है। इस दृयिष्ट से करुण, भयानक र्था रौद्र, ये ीन रस इसके सहयोगी या सहचर सिसS हो े हैं। शान् रस से भी इसकी तिनक[ ा मान्य है, क्योंतिक बहुधा बीभत्स ा का �श�न वैराग्य की पे्ररणा �े ा है और अन् : शान् रस के *ायी भाव शम का पोषण कर ा है।

Page 21: PPt on Ras Hindi grammer

उ�ाहरण• सिसर पर बैठ्यो काग आँख �ोउ खा तिनकार । 

खींच �ीभकिहं स्यार अति तिह आनं� उर धार ॥ गीध �ांयिघ को खोदि�-खोदि� कै माँस उपार । स्वान आंगुरिरन कादि[-कादि[ कै खा तिव�ार ॥

(भार ेन्दु)

Page 22: PPt on Ras Hindi grammer

बीभत्स रस

Page 23: PPt on Ras Hindi grammer

8. अद्भ ु रसअद्भ ु रस ‘तिवस्मयस्य सम्यक्समृजिSरद्भ ु: सवyजिन्द्रयाणां ा[स्थ्यं

या’।  अर्था� तिवस्मय की सम्यक समृजिS अर्थवा समू्पण� इजिन्द्रयों की [* ा अ�भु रस है। कहने का अक्षिभप्राय यह है तिक �ब तिकसी रचना में तिवस्मय '*ायी भाव' इस प्रकार पूण� या प्रसु्फ[

हो तिक समू्पण� इजिन्द्रयाँ उससे अक्षिभभातिव होकर तिनश्चेष्ट बन �ाए,ँ ब वहाँ अद्भ ु रस की तिनष्पक्षिk हो ी है।

Page 24: PPt on Ras Hindi grammer

उ�ाहरण• अब्दिखल भुवन चर- अचर सब, हरिर मुख में लब्दिख मा ु। 

चतिक भई गद्ग� ्वचन, तिवकसिस दृग पुलका ु॥(सेनापति )

Page 25: PPt on Ras Hindi grammer

अद्भ ु रस

Page 26: PPt on Ras Hindi grammer

9. शां रसशान् रस सातिहत्य में प्रसिसS नौ रसों में अन्तिन् म रस माना �ा ा है -

"शान् ोऽतिप नवमो रस:।" इसका कारण यह है तिक भर मुतिन के ‘नाट्यशास्त्र’ में, �ो रस तिववेचन का आदि� स्रो है, नाट्य रसों के रूप में केवल आठ रसों का ही वण�न यिमल ा है। शान् के उस रूप में भर मुतिन ने मान्य ा प्र�ान नहीं की, जि�स रूप

में शंृगार, वीर आदि� रसों की, और न उसके तिवभाव, अनुभाव और संचारी भावों का ही वैसा स्पष्ट तिनरूपण तिकया।

Page 27: PPt on Ras Hindi grammer

उ�ाहरण• मन रे न काग� का पु ला। 

लागै बूँ� तिबनसिस �ाय सिछन में, गरब करै क्या इ ना॥ (कबीर)

Page 28: PPt on Ras Hindi grammer

शां रस

Page 29: PPt on Ras Hindi grammer

10. वात्सल्य रस• वात्सल्य रस का *ायी भाव है। मा ा-तिप ा का अपने पुत्रादि� पर �ो नैसर्गिगंक स्नेह हो ा है, उसे ‘वात्सल्य’

कह े हैं। मैकडुगल आदि� मनस् त्त्वतिव�ों ने वात्सल्य को प्रधान, मौसिलक भावों में परिरगक्षिण तिकया है, व्यावहारिरक अनुभव भी यह ब ा ा है तिक अपत्य-स्नेह �ाम्पत्य रस से र्थोड़ी ही कम प्रभतिवष्णु ावाला मनोभाव है।

• संस्कृ के प्राचीन आचाय^ ने �ेवादि�तिवषयक रति को केवल ‘भाव’ ठहराया है र्था वात्सल्य को इसी प्रकार की ‘रति ’ माना है, �ो *ायी भाव के ुल्य, उनकी दृयिष्ट में चवण�य नहीं है

• सोमेश्वर भसिक्त एवं वात्सल्य को ‘रति ’ के ही तिवशेष रूप मान े हैं - ‘स्नेहो भसिक्तवा�त्सल्ययिमति र ेरेव तिवशेष:’, लतेिकन अपत्य-स्नेह की उत्क[ ा, आस्वा�नीय ा, पुरुषार्थ�पयोतिग ा इत्यादि� गुणों पर तिवचार करने से प्र ी हो ा है तिक वात्सल्य एक स्व ंत्र प्रधान भाव है, �ो *ायी ही समझा �ाना चातिहए।

• भो� इत्यादि� कति पय आचाय^ ने इसकी सkा का प्राधान्य स्वीकार तिकया है।• तिवश्वनार्थ ने प्रसु्फ[ चमत्कार के कारण वत्सल रस का स्व ंत्र अस्तिस् त्व तिनरूतिप कर ‘वत्सल ा-स्नेह’  को

इसका *ायी भाव स्पष्ट रूप से माना है - ‘*ायी वत्सल ा-स्नेह: पुत्रार्थालम्बनं म म्’।• हष�, गव�, आवेग, अतिनष्ट की आशंका इत्यादि� वात्सल्य के व्यक्षिभचारी भाव हैं। उ�ाहरण -• ‘चल �ेब्दिख �सुमति सुख पावै। 

ठुमुतिक ठुमुतिक पग धरनी रेंग , �ननी �ेब्दिख दि�खावै’  इसमें केवल वात्सल्य भाव वं्यजि� है, *ायी का परिरसु्फ[न नहीं हुआ है।

Page 30: PPt on Ras Hindi grammer

उ�ाहरण• तिकलक कान्ह घु[रुवन आव । 

मतिनमय कनक नं� के आंगन तिबम्ब पकरिरवे घाव ॥

(सूर�ास)

Page 31: PPt on Ras Hindi grammer

11. भसिक्त रसभर मुतिन से लेकर पस्थि�ड रा� �गन्नार्थ  क संस्कृ  के तिकसी प्रमुख

काव्याचाय� ने ‘भसिक्त रस’ को रसशास्त्र के अन् ग� मान्य ा प्र�ान नहीं की। जि�न तिवश्वनार्थ ने वाक्यं रसात्मकं काव्यम् के सिसSान् का प्रति पा�न तिकया और ‘मुतिन-वचन’ का उल्लघंन कर े हुए वात्सल्य को नव रसों के समकR सांगोपांग *ातिप तिकया, उन्होंने भी 'भसिक्त' को रस नहीं माना। भसिक्त रस की सिसजिS का वास् तिवक स्रो काव्यशास्त्र न होकर भसिक्तशास्त्र है, जि�समें मुख्य या ‘गी ा’, ‘भागव ’, ‘शास्थि�डल्य भसिक्तसूत्र’, ‘नार� भसिक्तसूत्र’, ‘भसिक्त रसायन’ र्था ‘हरिरभसिक्तरसामृ सिसन्धु’ प्रभूति ग्रन्थों की गणना की �ा सक ी है।

Page 32: PPt on Ras Hindi grammer

उ�ाहरण• राम �पु, राम �पु, राम �पु

बावरे। 

घोर भव नीर- तिनयिध, नाम तिन� नाव रे॥

Page 33: PPt on Ras Hindi grammer

THANK YOU BY : AMAR PRAVEEN