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ISSN: 2455-6440, Volume 1, Issue III, (April- June .2016), PP 462-470 www.SarhadEPatrika.com Page 462 of 470 A Review Under the World Library Indexing Journal रचनावाद एक आलोचनामक मू ला कन मुय शद , रचनावाद ,आलोचना , रैडलीफ़ ाउन, लेवी- रास ,पारस शोध विवध इस शोध प को ललखने म मुयत लितीयक ोत का योग लकया ह । सारा रचनावाद शद को असर एक वशष कार के मानववादी स रचनावादी वेषण के सदभ म इतेमाल वकया जाता है जहा तय को स के त के ववान (यानी स केत की एक णाली) से उलेवित वकया जाता है। महाीपीय दशभन म इस शद का आम तौर पर इसी तरह योग वकया जाता है। हाला वक, इस शद का योग स रचनामक वषकोण के ववध सदभ जैसे वक सामावजक नेटवकभ वेषण और वगभ वेषणम ी वकया जाता है। इस अभ म स रचनावाद स रचनामक ववेषण या स रचनामक समाजशा का पयाभय बन गया है , वजनम से बाद वाले को इस कार परावषत वकया गया है "एक ऐसी पहल वजसम सामावजक स रचना, अवरोध और अवसर को अवधक पष तौर पर देिा जाये यह सा कृवतक मानद ड या अय यविपरक चीज की तुलना म मानव यवहार पर अवधक ाव डालता है। लेवी- रास ने सामावजक याभ के दो तर बताए ह वजनके अनुसार ,अी तक मानव वैावनक ने ऊपरी तर की स रचना अाभत स ाओ और यवहार की याया की है जबवक गहराई के तर की िोज करना वतकामक अभबोध की स रचनाओ की िोज करना है । लेवरास के अनुसार यावाहरक और सामावजक वतमान का अगर गहराई से अययन कर उह सरलीकृत वकया जाए तो अभबोध की ऐसी स रचनाएँ वमलगी जो समत मानव-जावत की स रचना मानी जा सकती है । अगर ऐसी सावभौवमक रचनाओ की िोज आवदमानव म की जाए तो मानव स कृवत की आधारवशला वमल जाए गी । स रचनवाद को सामावजक वान का एक वयात शोध योग बनाने का ेय ा स के मानवशाी लेवी ा स को जाता है वजहने ाषा वान के एककावलक अययन के नए वसा त से ेरणा लेकर सामावजक ववेषण म ी स के त एव वतक की गहन स रचनाकी वीण पाठक पी- एच.डी ववकास एव शा वि अन (2015) महामा गाधी अतराारीय लहदी लवलवालय वधा, महारा[email protected]

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    संरचनावाद

    एक आलोचनात्मक मूल्ांकन

    मुख्य शब्द , संरचनावाद ,आलोचना , रैडक्लीफ़ –ब्राउन, लेवी- स्ट्रास ,पारसंस

    शोध प्रविवध इस शोध पत्र को ललखने में मखु्यत लितीयक स्रोतों का प्रयोग लकया हैं ।

    साराांश

    संरचनावाद शब्द को अक्सर एक वववशष्ट प्रकार के मानववादी संरचनावादी ववशे्लषण के सन्दर्भ में इस्ट्तेमाल वकया जाता ह ै

    जहां तथ्यों को संकेतों के ववज्ञान (यानी संकेतों की एक प्रणाली) से उल्लेवित वकया जाता ह।ै महाद्वीपीय दशभन में इस शब्द

    का आम तौर पर इसी तरह प्रयोग वकया जाता ह।ै हालांवक, इस शब्द का प्रयोग संरचनात्मक दृवष्टकोण के ववववध सन्दर्भ

    जसैे वक सामावजक नेटवकभ ववशे्लषण और वगभ ववशे्लषणमें र्ी वकया जाता ह।ै इस अर्भ में संरचनावाद संरचनात्मक ववशे्लषण

    या संरचनात्मक समाजशास्त्र का पयाभय बन गया ह,ै वजनमें से बाद वाले को इस प्रकार पररर्ावषत वकया गया ह ै"एक ऐसी

    पहल वजसमें सामावजक संरचना, अवरोध और अवसरों को अवधक स्ट्पष्ट तौर पर दिेा जाये यह सांस्ट्कृवतक मानदडंों या

    अन्य व्यविपरक चीजों की तलुना में मानव व्यवहार पर अवधक प्रर्ाव डालता ह।ै लेवी- स्ट्रास न ेसामावजक यर्ार्भ के दो

    स्ट्तर बताए हैं वजनके अनसुार ,अर्ी तक मानव वजै्ञावनकों ने ऊपरी स्ट्तर की संरचना अर्ाभत संस्ट्र्ाओ ंऔर व्यवहार की

    व्याख्या की ह ैजबवक गहराई के स्ट्तर की िोज करना प्रवतकात्मक अर्भबोध की संरचनाओ ंकी िोज करना ह ै। लेवी –

    स्ट्रास के अनसुार व्यावाहररक और सामावजक प्रवतमानों का अगर गहराई से अध्ययन कर उन्हें सरलीकृत वकया जाए तो

    अर्भबोध की ऐसी संरचनाए ँ वमलेंगी जो समस्ट्त मानव-जावत की संरचना मानी जा सकती ह ै । अगर ऐसी सावभर्ौवमक

    संरचनाओ ंकी िोज आवदमानव में की जाए तो मानव संस्ट्कृवत की आधारवशला वमल जाएंगी । संरचनवाद को सामावजक

    ववज्ञान का एक ववख्यात शोध प्रयोग बनाने का श्रेय फ्ांस के मानवशास्त्री लेवी स्त्रांस को जाता ह ैवजन्होंने र्ाषा –ववज्ञान के

    एककावलक अध्ययन के नए वसद्ांतों से प्रेरणा लेकर सामावजक ववशे्लषण में र्ी संकेतों एव ंप्रवतकों की ‘गहन संरचना’ की

    प्रवीण पाठक

    पी- एच.डी ववकास एवं शांवि अध्््न (2015)

    महात्मा गान्धी अन्तरााष्ट्रीय लहन्दी लवश्वलवद्यालय वधाा, महाराष्ट्र

    [email protected]

    mailto:%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AF%E0%A4%[email protected]

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    वाख्या पर जोर वदया ।इस तरह सनरंचनावाद में धमभ,वशझा आवद प्रत्यझ सांस्ट्कृवतक प्रवतकों के ‘अर्भ’ समझने के स्ट्र्ान पर

    मात्र संकेतों के परस्ट्पर ‘संबंधों तर्ा ववरोधों’ को समझना आवश्यक माना गया ।

    प्रस्िावना

    संरचनावाद का का सवभप्रर्म प्रयोग र्ाषा 1900-1930 बीच र्ाषा ववज्ञान के झते्र में हुआ । सामान्य र्ावबोध में

    संरचनावाद सामावजक घटनाओ ंके अध्ययन का एक ऐसा उपागम ह ै। वजसमें सामावजक विया की उपेझा सामावजक

    संरचना को अवधक महत्व वदया जाता ह ै। संरचनावाद के उद ्--र्व के पीछे सात्रभ के अवस्ट्तत्ववाद की प्रविया वियाशील

    रही ह ै, वकन्त ुसमाजशास्त्र में इस संकल्पना का प्रारम्र् दवुिभम के ववचारों से माना जाता ह ै; दवुिभम की रचनाओ ंमें काही

    र्ी संरचनावाद का प्रयोग नहीं वकया ह ै, वकन्त ुउन्होंने सामाज को सवोपरर माना ह ै। समाजशास्त्र के झेत्र में संरचनावाद

    के बारे में दो महत्वपणूभ हैं प्रर्म इसका आगमन लेवी-स्ट्रास की कृवतयों से हुआ वजसम ेमानवीय मवस्ट्तष्क तर्ा वमर्क

    जसैी सांस्ट्कृवतक घटनाओ ंका ववशे्लषण वकया गया ह ैऔर दसूरे यह वमशेल फुको के ववचारों का इवतहास ,जान लाक के

    मनोववशे्लषण तर्ा अल्र्जूर के संरचनात्मक माक्सभवाद से प्रेररत ह ै।

    1960 के दशक के पवूाभद्भ तक संरचनावाद स्ट्वयं एक आदंोलन के रूप में सामने आने लगा और कुछ लोगों का मानना

    र्ा वक यह मानव जीवन के वलए एक ऐसा एकीकृत तरीका प्रस्ट्ततु करता ह ैजो सर्ी दृवष्टकोणों को गले लगाएगा.

    रोलाण्ड बर्ेस और जकै्स डेररडा ने इस बात पर ध्यान कें वित वकया वक संरचनावाद को वकस तरह से सावहत्य में प्रयोग

    वकया जा सकता ह।ैफ्ायड और डी सौसर का सवम्मश्रण कर फ्ांसीसी (उत्तर) संरचनावादी जकै्स लेकन ने संरचनावाद

    को मनोववशे्लषण में प्रयिु वकया और जीन वपगटे ने अलग तरीके से संरचनावाद को मनोववज्ञान के अध्ययन में प्रचवलत

    वकया। लेवकन जीन वपगटे जो िदु को बेहतर रचनावादी के रूप में पररर्ावषत करते हैं, संरचनावाद को "वसद्ांत नहीं एक

    वववध" मानते हैं क्योंवक उनके वलए "संरचना के बगरै कोई वनमाभण नहीं होता, चाह ेवह अमतूभ हो या आनवुवंशक

    संरचनावाद (स्ट्रक्चरवलज्म) मानव ववज्ञान की एक ऐसी पद्वत ह ैजो संकेत ववज्ञान (यानी संकेतों की एक प्रणाली) और

    सहजता से परस्ट्पर संबद् र्ागों की एक पद्वत के अनसुार तथ्यों का ववशे्लषण करने का प्रयास करती ह।ै स्ट्वीडन के

    प्रवसद् र्ाषाववद फवदभनान्द द सस्ट्यरू इसके प्रवतभक माने जाते हैं, वजन्हें वहन्दी में सस्ट्यरू नाम से जाना जाता ह।ै तकभ के

    संरचनावादी तरीके को वववर्न्न के्षत्रों जसेै, नवृवज्ञान, समाजशास्त्र, मनोववज्ञान, सावहवत्यक आलोचना और यहां तक वक

    वास्ट्तकुला में र्ी लाग ूवकया गया ह।ै इसने एक वववध के रूप में नहीं बवल्क एक बौवद्क आंदोलन के रूप में संरचनावाद

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    की र्ोर में प्रवशे वकया, जो 1960 के दशक में फ्ांस में अवस्ट्तत्ववाद की जगह लेने आया र्ा।1970 के दशक में, यह

    आलोचकों के आन्तररक गसु्ट्से का वशकार हुआ, वजन्होंने इस पर बहुत ही अनमनीय तर्ा अनैवतहावसक होने का आरोप

    लगाया. हालांवक, संरचनावाद के कई समर्भकों, जसेै वक जकै्स लेकन ने महाद्वीपीय मान्यताओ ंऔर इसके आलोचकों

    की मलू धारणाओ ंपर जोर दकेर प्रर्ाव डालना शरुू वकया वक उत्तर-संरचनावाद संरचनावाद की वनरंतरता ह ैलीजन

    एवसस्ट्टर के अनसुार, संरचनावाद से संबंवधत चार आम ववचार एक 'बौवद्क प्रववृत्त' की रचना करते हैं। सबसे पहले,

    संरचना वह ह,ै जो पणूभता के प्रत्येक तत्व की वस्ट्र्वत को वनधाभररत करता ह।ै दसूरा, संरचनावावदयों का मानना ह ैवक हर

    प्रणाली की एक संरचना होती ह।ै तीसरा, संरचनावादी 'संरचनात्मक' वनयमों में ज्यादा रूवच लेते हैं जो बदलाव की जगह

    सह-अवस्ट्तत्व से संबंवधत होते हैं। और आविर में संरचनाए ंव े'असली वस्ट्तएुं' ह ैजो अर्भ के धरातल या सतह के नीच े

    ववद्यमान रहती हैं।संरचनावाद शब्द को अक्सर एक वववशष्ट प्रकार के मानववादी संरचनावादी ववशे्लषण के सन्दर्भ में

    इस्ट्तेमाल वकया जाता ह ैजहां तथ्यों को संकेतों के ववज्ञान (यानी संकेतों की एक प्रणाली) से उल्लेवित वकया जाता ह।ै

    महाद्वीपीय दशभन में इस शब्द का आम तौर पर इसी तरह प्रयोग वकया जाता ह।ै हालांवक, इस शब्द का प्रयोग संरचनात्मक

    दृवष्टकोण के ववववध सन्दर्भ जैसे वक सामावजक नेटवकभ ववशे्लषण और वगभ ववशे्लषणमें र्ी वकया जाता ह।ै इस अर्भ में

    संरचनावाद संरचनात्मक ववशे्लषण या संरचनात्मक समाजशास्त्र का पयाभय बन गया ह,ै वजनमें से बाद वाले को इस प्रकार

    पररर्ावषत वकया गया ह ै"एक ऐसी पहल वजसमें सामावजक संरचना, अवरोध और अवसरों को अवधक स्ट्पष्ट तौर पर

    दिेा जाये यह सांस्ट्कृवतक मानदडंों या अन्य व्यविपरक चीजों की तलुना में मानव व्यवहार पर अवधक प्रर्ाव डालता

    ह।ै1संरचनवाद को सामावजक ववज्ञान का एक ववख्यात शोध प्रयोग बनाने का श्रेय फ्ांस के मानवशास्त्री लेवी -स्ट्रास को

    जाता ह ै वजन्होंने र्ाषा –ववज्ञान के एककावलक अध्ययन के नए वसद्ांतों से प्रेरणा लेकर सामावजक ववशे्लषण में र्ी

    संकेतों एव ंप्रवतकों की ‘गहन संरचना’ की वाख्या पर जोर वदया ।इस तरह सनरंचनावाद में धमभ,वशझा आवद प्रत्यझ

    सांस्ट्कृवतक प्रवतकों के ‘अर्भ’ समझने के स्ट्र्ान पर मात्र संकेतों के परस्ट्पर ‘संबंधों तर्ा ववरोधों’ को समझना आवश्यक

    माना गया । इसी आधार पर कई मानवशास्त्रीयों अनेक समाजों के वमर्कों ,धावमभक अनुष्ठानों इत्यावद में पररलवझट

    ‘सांकेवतक संरचनाओ ंपर हाल में कई शोध –पत्र र्ी वलि ेहैं ।

    1 https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B0%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6

    https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B0%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B0%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6

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    संरचनावाद बताता ह ैवक मानव संस्ट्कृवत को संकेतों की एक प्रणाली समझा जाना चावहए. रॉबटभ स्ट्कोल्स ने संरचनावाद

    को आधवुनकतावादी अलगाव और वनराशा की प्रवतविया के रूप में पररर्ावषत वकया ह।ै संरचनावावदयों ने एक सांकेवतक

    ववज्ञान (संकेतों की प्रणाली) ववकवसत करने का प्रयास वकया। फवडभनेंड डी सौसर 20 वीं सदी के संरचनावाद के प्रवतभक

    माने जाते हैं और इसके सबतू हमें उनकी मतृ्य ुके बाद उनके छात्रों के नोटों पर आधाररत उनके सहयोवगयों द्वारा वलि े

    गये कोसभ इन जनरल वलंववववस्ट्टक में वमल सकते हैं, वजसमें उन्होंने र्ाषा (शब्द या र्ाषण) के इस्ट्तेमाल पर नहीं बवल्क

    र्ाषा (लैंगएु) की अतंवनभवहत प्रणाली पर ध्यान कें वित वकया ह ैऔर अपने वसद्ान्त को संकेत ववज्ञान कहा ह।ै हालांवक,

    र्ाषण (पेरोल) की जांच करने के माध्यम से ही अतंवनभवहत प्रणाली की िोज की जा सकती ह।ै जसेै वक संरचनात्मक

    र्ाषाववज्ञान असल में कोष र्ाषा ववज्ञान (कारपस वलंववववस्ट्टक्स) (प्रमात्रीकरण) का पवूभ स्ट्वरूप ह।ै इस दृवष्टकोण ने यह

    परीक्षण करने पर ध्यान कें वित वकया वक वतभमान में र्ाषा संबंवधत तत्व आपस में वकस तरह से जडेुे़ हुए हैं, वह ये वक,

    कालिवमक तौर पर न वक 'समकालीन' तरीके से. अतं में, उन्होंने तकभ वदया वक र्ाषाई संकेत दो र्ागों में बने हैं, शब्द

    रूप (वसववनफायर) (शब्द की ध्ववन के लक्षण, या तो मानवसक प्रक्षेपण में, जसैा वक हम कववता की पंवियां चपुचाप

    अपने वलए पढ़ते हैं- या वफर वास्ट्तववक रूप में, वाचक के रूप में र्ौवतक तौर पर बोलते हुए) और एक अवधारणा (शब्द

    की अवधारणा या अर्भ का प्रारूप) के रूप में. यह वपछले दृवष्टकोणों से काफी अलग र्ा वजसने दवुनया में शब्दों और

    उनसे सम्बंवधत वस्ट्तओु ंके बीच के ररश्ते पर ध्यान कें वित वकयामाक्सभ और संरचनावाद का सवम्मश्रण कर एक अन्य

    फ्ांसीसी ववचारक लईु एल्र्जुर ने संरचनात्मक सामावजक ववशे्लषण के अपने वनजी ब्राडं को पररवचत कराया और

    संरचनात्मक माक्सभवाद" को ववस्ट्तार वदया. तब से फ्ांस और ववदशेों में अन्य लेिकों न ेसंरचनात्मक ववशे्लषण को हर

    व्यवस्ट्र्ा में व्यावहाररक रूप से ववस्ट्ताररत वकया।2

    सांरचनािाद विश्व की प्रकृवि के बारे में वनम्नविविि मान्यिाओां पर आधाररि हैं –

    (1) वकसी र्ी संरचना के आतंररक र्ाग के अपेझाकृत वस्ट्र्र होते हैं संरचना के र्ागों में पररवतभन के सार् मलू संरचना में

    बदलाव नहीं आता , वह अपररवतभनशील होती ह ै।

    2 https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B0%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6

    https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B0%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B0%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6

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    (2) वजसे हम ठोस ,सामान्य और स्ट्वार्ाववक मानते हैं ,वस्ट्ततु: वह आतंररक संरचना के वकसी तत्व के उत्पादन की प्रविया

    का अवंतम पररणाम होता ह ै।

    (3) संरचनावाद में व्यवियों को सामावजक यर्ार्भ के वनमाभता के स्ट्र्ान पर संबंधों की मात्र उपज माना जाता ह ै। संरचनावादी

    पररप्रेझ्य सत्तामलूक प्रावधकृत मानव व्यवि की धारणा की ‘स्ट्व’ की ववकें वित धारा द्वारा बदल दतेा ह ैजहां संरचनावादी

    माक्सभवाद व्यवि को सम्बन्धों (उत्पादन के साधनों पर स्ट्वावमत्व तर्ा ववंचतता के संबंध ) का मात्र एक वाहक मानता ह ै

    , वहीं अन्य ववचारक व्यवि को व्यवियों के बीच सम्बन्धों अर्ाभत समाज की उपज मानते हैं ।

    समाजशास्त्री् संरचनावादी प्रमुख ववचारक

    रैडक्लीफ़ –ब्राउन – ब्राउन एक प्रमिु संरचनावादी समाजशास्त्रीय ह ै वजनकी मान्यता ह ै वक मनषु्य वक सामावजक

    संरचना के अगं हैं और संरचना एक संस्ट्र्ा के रूप में पररर्ावषत तर्ा वनयवमत संबंधो के अतंगतभ व्यवियों का एक

    िमबद् एव ंव्यववस्ट्र्त समग्र ह ै। इस समग्रता में व्यवि अर्वा मनषु्य के बीच ववद्यमान सामावजक सम्बन्धों के जाल में

    एक-दसूरे से संबवन्धत हैं और मनषु्यों के बीच ववद्यमान सामावजक सम्बन्धों के इस जवटल जाल को स्ट्पष्ट करने के वलए

    “सामावजक संरचना” शब्दावली का प्रयोग वकया ह ैसम्बन्धों का यह जाल मनषु्य िदु बनाता ह ैऔर ये संबंध मनषु्यों

    के पारस्ट्पररक सामावजक अतं: वियाओ ंतर्ा संस्ट्र्ाओ ंद्वारा अवधक स्ट्पष्ट और वनयवमत होते हैं । 3

    लेवी –स्रास – लेवी स्ट्रास का संरचनावादी दृवष्टकोण यह प्रवतपावदत करता ह ैवक उसकी संरचना ,तकभ वववध से वनवमभत

    संरचना ह ैजो मनषु्य के मवस्ट्तष्क में वस्ट्र्त होती ह ैयह स्ट्वय अनरु्व से परे ह ैवकन्त ुअनरु्व वक व्याख्या का मानवसक

    सांचा ह ैचूंवक साँचे बदलते नहीं ह ैअत: मानवसक संरचनाए ँअपररवतभनीय हैं । लेवी स्ट्रास ने सामावजक यर्ार्भ के दो स्ट्तर

    बताए हैं वजनके अनसुार ,अर्ी तक मानव वैज्ञावनकों ने ऊपरी स्ट्तर की संरचना अर्ाभत संस्ट्र्ाओ ंऔर व्यवहार की व्याख्या

    की ह ैजबवक गहराई के स्ट्तर की िोज करना प्रवतकात्मक अर्भबोध की संरचनाओ ंकी िोज करना ह ै। लेवी –स्ट्रास के

    अनसुार व्यावाहररक और सामावजक प्रवतमानों का अगर गहराई से अध्ययन कर उन्हें सरलीकृत वकया जाए तो अर्भबोध

    की ऐसी संरचनाए ँवमलेंगी जो समस्ट्त मानव-जावत की संरचना मानी जा सकती ह ै। अगर ऐसी सावभर्ौवमक संरचनाओ ंकी

    िोज आवदमानव में की जाए तो मानव संस्ट्कृवत की आधारवशला वमल जाएगंी । शायद यह पता चलेगा वक ववचारों वक

    3 पाण्डेय ,एस . एस ,समाजशास्त्र , टाटा माइग्रेवहल्स ,नई वदल्ली , 2009 ,पषृ्ठ,19.8

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    ववधा आधवुनक मानव वक र्ी वही ह ैजो आवदमानव की र्ी । अतंर मात्र इतना ह ैवक ववचार ववषय-वस्ट्त ुबदल गयी ह ै।

    अत: लेवी –स्ट्रास का संरचनावाद मानवसक प्रविया ह ैजो समस्ट्त मानव जावत और संस्ट्कृवत में सावभर्ौवमक ह ै।

    एस. एफ. नाडेल – नाड़ेल एक प्रमिु संरचनावादी समाजशास्त्री ह,ै उनके अनसुार, ‘संरचना’ शब्द से वववर्न्न अगंों के

    व्यववस्ट्र्त तर्ा िमबद् योग का बोध होता ह ैइससे अगंों के गणुों ,प्रकृवत अर्वा महत्व से इसमें अतंवनरवहत अंत वस्ट्तु

    का बोध होता ह ैजब हम संरचना शब्द का प्रयोग करते हैं तो हमारा तात्पयभ उन सब बातों से होता ह ैजो िमबद्ता अर्वा

    व्यवस्ट्र्ा से संबवन्धत हों । नाडेल का मानना ह ैवक ‘संरचना’ शब्द अगंों की एक व्यववस्ट्र्त िमबद्ता को व्यि करता

    ह ै , वजसे स्ट्र्ानन्तनीण माना जा सकता ह ैऔर अपेझाकृत अपररवतंनशीलता पाई जाती ह ैयदवप उसके अगं वनरंतर

    पररवतभनशील होते हैं । नाड़ेल के अनसुार समाज को मनषु्यों के एक ऐसे समहू के रूप में समझा जा सकता ह ै,वजसमें

    व्यवि अवसए संस्ट्र्ागत अर्वा सामान्य वनयमों के द्वारा एक-दसूरे से संबवन्धत होते हैं जो उनकी वियाओ ंको वनदवेशत

    ,वनयवमत करते हैं। इस प्रकार नाड़ेल के अनसुार समाज की अवधारणा में चार परस्ट्पर संबवन्धत तत्व पाये जाते हैं जो

    वनम्नवलवित हैं –

    (1) व्यवि ;

    (2)पास्ट्पररक

    (3)सामावजक सम्बन्धों के वववर्न्न स्ट्वरूप तर्ा उनकी अवर्व्यिीयाँ ;

    (4) सामावजक सम्बन्धों में कुछ सीमा तक वनयवमतता तर्ा स्ट्र्ावयत्व के गणु 4

    इवतहासकार के वलए संरचनावाद के प्रयोगों का क्या महत्व ह ैएव ंइनका वकतना व्यापक उपयोग वकया जा सकता ह ै–

    यह ववचारणीय प्रश्न ह ैइसके अवतररि संरचनावाद उत्तर सनरंचनावाद के विलाफ , शैली तर्ा वसद्ान्त ,दोनों ही नजररयों

    से कुछ गरं्ीर आपवत्तयाँ उठाई गई हैं । सबसे पहले आपवत्त तो यह हैं वक इनकी व्याख्या एव ंलेिन –पद्वत अत्यंत दगुभम

    4 पाण्डेय ,एस . एस ,समाजशास्त्र , टाटा माइग्रेवहल्स ,नई वदल्ली , 2009 ,पषृ्ठ,19.10

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    जान पड़ता ह ै। यह कहना गलत नहीं होगा वक अवधकांश संरचनावादी लेिक अपने संवाद को ‘संकेतों’ के अतंसंबंधों

    पर केवन्ित करके एक वववशष्ट दायरे तक ही सीवमत रह गए हैं ।5

    संरचनावाद : आलोचनात्मक मूल्ांकन

    संरचनावाद मानव समाज की प्रकृवत के ववशे्लषण में मानवशास्त्री सावहत्य हते ुएक महत्वपणूभ वसद्ान्त ह ैवजसने दिुीम

    ,ब्राउन ,के ववचारों से हटे हुए पारसंस व नाड़ेल जसेै ववद्वानों के ववचारों में पणूभता प्राप्त की ह ै। संरचनावाद की कई ववचारों

    की आलोचनाए ँकी गई हैं । लगर्ग सर्ी संरचनावादी ववद्ान (दिुीम,ब्राऔन ,पारसंस आवद ) व्यवि व समाज के

    मध्य सम्बन्धों को प्रमिुता दतेे हैं और व्यवि को सामावजक संरचना के उत्पाद के रूप में दशाभते हैं । आलोचक

    सरंचनावावदयों के इस ववचार से सहमत नहीं ह ैऔर व ेउन पर यह आरोप लगते हैं वक उन्होनें सामावजक जीवन में या

    सामावजक घटनाओ ंमें व्यवि की र्वूमका की उपेझा की ह ै।

    संरचनावावदयों की मान्यता ह ैवक वकसी संरचना का अंतवनरवहत र्ाग वस्ट्र्र होते हैं और संरचना के र्ागों में पररवतभन के

    सार् मलू संरचना में बदलाव नहीं आता ह ै। इस संदर्भ में आलोचकों का आरोप ह ैवक संरचनावादी अपने ववचारों में

    संरचना वक पररवतभनशीलता को कवतपय उपेझा की ह ै । सामावजक संरचनाए ँ घटकों में पररवतभन के सार् वनरंतर

    पररवतभनशील होती हैं । अगर ब्राउन ,पारसंस ,नाड़ेल ,लेवी-स्ट्रास के ववचारों के संदर्भ में दिेा जाए तो व ेयह मानते हैं

    वक सामावजक संरचना वक वववर्न्न अगं प्रवतमावनत रूप से एक दसूरे के सार् जड़ेु होते हैं और सामावजक संरचना वक

    वनरन्तरता हते ु वियाशील होते ह ै इस संदर्भ में आलोचकों का कहना ह ै वक इन ववद्वानों ने अपने ववशे्लषण में

    ववचलन,तनाव जसैी प्रवियाओ ंकी उपेझा की ह ैजो सामावजक संरचना का एक महत्वपूणभ यार्ार्भ ह ै।

    वनवित तौर पर उपयिु आलोचनाए ँएक वसद्ान्त के रूप में इसकी कवमयों को उजागर करती हैं ,परंत ु केवल इन्ही

    कवमयों की वजह से इस वसद्ान्त को परूी तरह से िाररज नहीं वकया जा सकता ह ै ।6शास्त्रीय उद्वववकास के ववपरीत

    सामावजक घटना या तत्व का ववशे्लषण अन्य तत्वों के संदर्भ में करने ,समाज के वववर्न्न तत्वों के मध्य सम्बन्धों को

    समझने और व्यवि पर समाज के प्रर्ाओ ंके ववशे्लषण म ेइस वसद्ान्त की महत्ता आज र्ी बनी हुई ह ैऔर संरचना पर

    5संपादक शुक्ल ,राम लिन,आधवुनक र्ारत का इवतहास ,वदल्ली ववश्वववद्यालय , नई वदल्ली, 1987 ,पषृ्ठ ,38 6 पाण्डेय ,एस . एस ,समाजशास्त्र , टाटा माइग्रेवहल्स ,नई वदल्ली , 2009 ,पषृ्ठ,19.12

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    अवधक बल वदया गया ह,ै परंत ुबाद के ववद्वानों ने इस कमी को दरू करने का प्रयास वकया ह ैवजसे हम एरं्ोनी वगडेंस

    के संरचनाकरण वसद्ान्त में अस्ट्पष्ट: दिे सकते हैं , वजसम ेउन्होने संरचना को उत्पादन एव ंपनुरुत्पादन की प्रविया के

    रूप में दिेते हुए न केवल सामावजक संरचना के वनमाभण में कताभ की र्वूमका को स्ट्वीकार वकया बवल्क कताभ पर

    सामावजक संरचना के प्रर्ावों को र्ी दशाभने का प्रयास वकया ह ै।

    संरचनावाद की सावहवत्यक आलोचना का तकभ ह ैवक "सावहवत्यक पाठ का नवीन मलू्य" नई संरचना की बजाय चररत्र

    ववकास और आवाज की बारीवकयों में ववद्यमान हो सकता है, वजससे संरचना व्यि की जाती ह।ै सावहवत्यक संरचनावाद

    की एक शािा, जसैे वक फ्ायडवाद, माक्सभवाद और पररवतभनकारी व्याकरण, एक गहरी और एक सतही संरचना, दोनों

    को मानते हैं। फ्ायडवाद और माक्सभवाद में गहरी संरचना एक कहानी ह,ै फ्ायड के मामले में लड़ाई अतंत: वजदंगी और

    मौत की सहज प्रववृत के बीच ह ै और माक्सभ में संघषभ वगों के बीच ह ै वजसकी जड़ें आवर्भक आधार में "वनवहत"

    हैं।सावहवत्यक संरचनावाद कर्ाओ,ं वमर्कों और हाल ही में लघकुर्ाओ ंमें आधारर्तू गहरे तत्वों की तलाश के वलए

    अक्सर व्लावदमीर प्राप, अलवग्रडस जवूलयन ग्रेमस और क्लॉड लेवी स्ट्रास के दृष्टान्तों का अनसुरण करते हैं, जो वववर्न्न

    प्रकार स ेउर-कहानी या उर-वमर्कों के अनेक संस्ट्करणों के उत्पादन से संयिु हैं। फ्ायड और माक्सभ की तरह लेवकन

    पररवतभनकारी व्याकरण के ववपरीत ये बवुनयादी तत्व अर्भ-वाहक हैं।संरचनात्मक सावहवत्यक वसद्ांत और नार्भरोप फ्ाई

    की आद्यप्ररूपीय आलोचना के बीच काफी समानता है, जो वमर्कों के मानवशास्त्रीय अध्ययन का र्ी ऋणी ह।ै कुछ

    आलोचकों ने व्यविगत कायों के वसद्ांत को र्ी लाग ूकरने की कोवशश की लेवकन व्यविगत काम में अनठूी संरचनाओ ं

    को िोजने का प्रयास संरचनात्मक कायभिम के प्रवतकूल चलता ह ैऔर इसका नई आलोचना से सादृश्य ह।ैसावहवत्यक

    संरचनावाद की अन्य शािा सांकेवतकता ह ैऔर यह फवडभनेन्ड डी सौसर के काम पर आधाररत ह।ै7

    वनष्कर्ष

    संरचनावाद के वसद्ान्त में कुछ के कवमयों के बावजदू संरचनावाद का वसद्ान्त समाजशास्त्री ववशे्लसण के झते्र में एक

    महत्वपूणभ योगदान ह ै। सामावजक घटना या तत्व का ववशे्लषण अन्य तत्वों के संदर्भ में करने ,समाज के वववर्न्न तत्वों

    के मध्य सम्बन्धों को समझने और व्यवि पर समाज के प्रर्ावों के ववशे्लषण में इस वसद्ान्त की महत्ता आज र्ी बनी हुई

    7 https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B0%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6

    https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B0%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B0%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6

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    ह ैऔर संरचना पर अवधक बल वदया गया हआैज संरचनावाद, उत्तर-संरचनावाद और वडकन्शरक्शन जैसे दृवष्टकोणों की

    तलुना में कम लोकवप्रय ह।ै इसके कई कारण हैं। अक्सर, संरचनावाद की आलोचना अनैवतहावसक होने तर्ा व्यविगत

    क्षमता से कायभ करने की अपेक्षा वनयतात्मक संरचनात्मक बलों का पक्ष लेने के वलए की गई ह।ै 1960 और 1970 के

    दशक की राजनीवतक हलचल (और ववशेष रूप से मई 1968 के छात्र ववक्षोर्) वशक्षा को प्रर्ाववत करने लगी, शवि

    और राजनीवतक संघषभ के मदु्दों को लोगों के ध्यान के केन्ि में ले जाया गया। एर्नोलावजस्ट्ट रॉबटभ जवुलन ने एक अलग

    एर्नोलावजकल वववध को पररर्ावषत वकया वजसने स्ट्पष्ट रूप से संरचनावाद के विलाफ अपने को दागदार बनाया.

    1980 के दशक में वडकन्शरक्शन और र्ाषा की बवुनयादी अस्ट्पष्टता पर इसका प्रर्ाव- अपनी पारदशी तावकभ क संरचना

    की अपेक्षा- अवधक लोकवप्रय बन गया। सदी के अतं तक संरचनावाद को ववचारों के एक महत्वपणूभ ऐवतहावसक सम्प्रदाय

    के रूप में दिेा जाने लगा लेवकन यह िदु संरचनावाद की जगह, इसके द्वारा आरम्र् वकये जानेवाले आदंोलन र्े, वजन्होंने

    ध्यान आकवषभत वकया र्ा।

    सांदर्भ ग्रांथ सूची

    संपादक शकु्ल ,राम लिन,आधवुनक र्ारत का इवतहास ,वदल्ली ववश्वववद्यालय , नई वदल्ली, 1987

    पाण्डेय ,एस . एस ,समाजशास्त्र , टाटा माइग्रेवहल्स ,नई वदल्ली , 2009

    मकुजी ,रवीि नार् . सामावजक ववचारधारा कांप्ट से मकुजी तक , वववके प्रकाशन ,नई वदल्ली ,1961

    मकुजी ,रवीि नार् . समकालीन उच्चतर स्ट्माज्शस्त्रीय वसद्ान्त , वववके प्रकाशन ,नई वदल्ली ,1967

    Website link

    https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B0%E

    0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4

    %A6

    https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B0%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B0%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B0%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6