Festivals Parv Tyohar-4 Hindi

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गगग गगग शशशशशशशशशशशशशशशशशशश शशशशश शशशशशशशशश शशशश शशश- शशशशशशश शशशशशशश शशशशशशशश शशश शशशशशशशशशश शशश शशशशशशशश शशशशशशशशश शश शश शशश शशशशश शश शश शशशशश शशशशशश शशशश शश शश शशशशशशशशशश (शशशश) शशश शशशशशशश शशशशश शशश शशश शश शश शशश शशशशशश शशश शशशशश शशश शशश शशशश शशशशशशशशशश शश शशश शशश शशश शशशश शशश शशश शशशशशशश शश शश शशशशशशशशशश शशश शशशशशशशशशशशशशशश शश शशशशशश शशशश शश शशशश शश शशशश शशशश शशशशश शशशशशशश शशशश शशश शशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशशशश शशशशशश शशशशशशशशशश-शशशशशशशशश शशश शशशशशशशश शशशशश शश शशशशशशशशश शशशशश शश शशशशशश शशशश शशशशशशशशशश शशश शश शशशशशशशश शशशशश शशश शशश शशशशशशशशशशशशशशशशशश शशशशश शशश शश शशशशशशशश शशशशशश शशश शश शशशश शशशश शश शशशशश शशशश शश शश शश शशशशशशश शशशश शश, शश शशशशशशशशशशशश शशशश शशशशशशशशशश शशश शशश शशशश शश शशश शशशश शशश शशशशश शश शश शशशशशशश शश शशशशशशशशशशशशशशशशशशशश शशशशश शशशशश शशशशश शश शशशशशशश शशशश शशशश श शशशश शशशशश शशशश शश शशशशशश शशशश शश शश शश शशशशशशशश शश शशशशशशशशशश शशश शशश शशशशश शश शशशशशशशशशशश शश शशश शशशशशशश शश शशश शशश शशशश शशशशशशशश शश शशशश शश शशशश शश शशशशश शशशश शशशशश शश शशशशशश शश शशश शश शशशश शशश शशश शशशशशशश शश शशशश शशशशशशशशशशशशशशशशशशश शश शशशशश शश शश शशशशशश शशश शशशशशशश शशश शशशशशशशशश,शशशशश-शशशशशशशश, शशशशशशश शशशश शशश शशशशशश श शशशशशश शश शशशशशशशशश शशशशशशश शशशश शशशश शशश शशशश शशशश श शशशशशशशशशश शशश शशशशश-शशशशशश शश शशशशशश शशशशश शश शशशशश:शशशशशश शशशश शशश शशशशश-शशशशश शशशशशश शशश शशश शशशशशशश शशश शशशशश शशशशशश शशशश शशश शशशशश शशशश शशशश शशशशश शशश शशशशश शशशशशश शशशश शशशश शशशश शशशशशशशशशश शशशशश शश शशशश शश शशश शशशशशशश शशशशश शशश शशशशश शश शशशशशश शशश शशशश शशशशश-शशश, शशशशश-शशशश शश शशशश-शशशशशशशशश शश शशश शशशश शश शशशश शशशश शशशशश शश शशशशशशशश शश शश-शश शश शशशशशशश शशशश शश शश शशशशशशश शशशश शशश शशशशश शश शशशश शशशश शश शशशशशश शश शशशशशशश शशशशश शश शशशश शशशश शशशश शश शश शशशशश शशश शशशशश शशशशशशशशश शश शश शशशशशशशशशशश शशशशश शशश शशश शशशश शशशशश शशशश, शशशशश शश शशशशशशश शश शशशशशशशशशश शशश शशशश शशशश शशशश शशश शशश गगगगगगगगग गगगगग गगगग

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गोप मास कात्यायनी मासिक पूजा राजेन्द्र प्रसाद स्मृतिदिवस वीर सावरकर स्मृतिदिवस स्वामी करपात्री पुण्यतिथि आशा दशमी व्रत-कथा भगत सिंह-सुखदेव-राजगुरु शहीद दिवस गुरु गोरखनाथ जयन्ती शनि प्रदोष व्रत अक्षय नवमी मेला खाटूश्यामजी पुत्रदा एकादशी श्रीतैलंग स्वामी

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गो�प मा�स

श्री�मद्भगवद्गी�ताम� भगवन श्री�कृ� ष्ण कृहता� ह�- मसान� मग�शी�र्षो�ऽहम�।द्वादशी मसा म� म� मग�शी�र्षो� हूं�। परम�श्वर श्री�कृ� ष्ण कृ यह कृथन हमर इसा ओर ध्यन आकृ� ष्ट कृरता ह- किकृ मग�शी�र्षो� (अगहन) म� अत्यन्ता दिदव्य ग4ण ह� और यह मसा उन्ह� अकिता कि7य ह-। इसा� कृरण मग�शी�र्षो� कृ8 ग8प मसा कृह जाता ह-। ऐसा� मन्यता ह- किकृ मग�शी�र्षो� म� ग8पव�र्षोधार�कृ� ष्ण कृ< आरधान कृरन� सा� भक्त कृ8 उनकृ< कृ� प अवश्य 7प्ता ह8ता� ह-।

स्कृन्दप4रणकृ� व-ष्णवखण्डम� वर्णिणEता मग�शी�र्षो�-महत्म्य म� य8ग�श्वर कृ� ष्ण कृ< जान्मस्थली� मथ4र कृ< यत्रा ह�ता4 मग�शी�र्षो� मसा कृ8 साव�परिर बताय गय ह-। श्री�हरिरब्रह्माजा�कृ8 बताता� ह� किकृ ता�थ�रजा 7यग म� एकृ हजार वर्षो� ताकृ किनवसा कृरन� सा� जा8 फली 7प्ता ह8ता ह-, वह मथ4रप4र�म� कृ� वली मग�शी�र्षो� म� वसा कृरन� सा� मिमली जाता ह-। भगवन कृ� इसा वक्तव्य कृ8 अकिताशीय8क्तिक्तपRण�मनकृर इसाम� किनकिहता सा�द�शी कृ< उप�क्षा कृरन उक्तिTता न ह8ग बल्किVकृ इसासा� यह स्पष्ट ह8ता ह- किकृ व� मन4ष्य कृ8 मग�शी�र्षो� मसा म� मथ4र कृ< ता�थ�यत्रा कृ� क्तिलीए 7�रण द� रह� ह� ताकिकृ द�र्घ�कृली ताकृ कृठो8र ताप कृरन� सा� मिमलीन� वली� प4ण्य कृ8 7ण� एकृ मह कृ� अVप सामय म� 7प्ता कृर साकृ� । साव�न्ताय�म�7भ4 यह जानता� थ� किकृ कृक्तिलीय4ग म� अमिधाकृ�शी ली8ग तापश्चय�,म�त्रा-प4रश्चरण, यज्ञादिद कृरन� म� असामथ� ह ग�। आल्किस्ताकृ जान भगवत्कृ� प 7प्ता कृरन� ह�ता4 सारली सा4गम उपय ख8जा�ग�। मग�शी�र्षो� म� मथ4र-यत्रा कृ< महत्ता भगवन न� सा�भवता:इसा�क्तिलीए बताई ह-।

मथ4र-मण्डली T^रसा� कृ8सा म� व्यप्ता ह-। भगवन किवष्ण4 यह� साद किनवसा कृरता� ह�। भRली8कृ म� म8क्षा 7दन कृरन� वली� साप्ता प4रिरय म� मथ4र कृ< अपन� एकृ अलीग किवक्तिशीष्ट मकिहम ह-। मथ4र कृ< यत्रा ताथ यह� स्नन-दन, दशी�न-पRजान सा� जान्म-जान्मन्तार कृ� पप भस्म ह8 जाता� ह�। मथ4र कृ< परिरक्रम सा� पग-पग पर अश्वम�धा यज्ञा कृ फली 7प्ता ह8ता ह-। ली�किकृन इसा महन प4र� कृ< यत्रा कृ सा^भग्य भगवन कृ< असा�म कृ� प ह8न� पर ह� मिमलीता ह-। भगवन श्री�कृ� ष्ण न� ता8 द्वापरय4गकृ� अ�किताम Tरण म� यह� अवतार क्तिलीय, किंकृEता4 यह क्षा�त्रा ता8 अनदिदकृलीसा� परम पवन मन जाता रह ह-।

का�त्या�यानी� मा�सिसका प जा�

ग8प कृ4 मरिरय न� श्री�कृ� ष्ण कृ8 पकिता कृ� रूप म� 7प्ता कृरन� कृ� क्तिलीए एकृ मसा ताकृ किनयमिमता रूप सा� किनयम व्रतादिद कृ पलीन कृरता� हुए कृत्ययन� द�व� कृ< पRजा कृ< थe। व्रता कृ� अ�ता म� कृ4 छ कि7य साखओं कृ� साथ श्री�कृ� ष्ण न� ग8किपय कृ� वस्त्रा-हरण किकृय� ताथ उन्ह� उनकृ< अभिभलीर्षो पRण� ह8न� कृ वरदन दिदय थ। यम4न कृ� ताट पर मथ4र कृ� साम�प (गjव क्तिसायर8) कृत्ययन� द�व� कृ मन्दिन्दर ह-।

व��दवन कृ� रधाबगम� भगवता� कृत्ययन� कृ प^रभिणकृ शीक्तिक्तप�ठो ह-। ता�त्राशीस्त्राकृ� ग्रं�थ कृ� अन4सार, ब्रजा म� साता� कृ� कृ� शी किगर� थ�। -ग8किपय कृ< कृत्ययन� पRजा श्री�मद्भगवता महप4रणकृ� दशीम स्कृ� धा म� ब्रजा कृ< ग8किपय द्वार श्री�कृ� ष्ण कृ8 7प्ता कृरन� कृ� उद्दे�श्य सा� भगवता� कृत्ययन� कृ< पRजा और व्रता कृरन� कृ वण�न मिमलीता ह-। इसा कृथ कृ सार यह ह- किकृ ब्रजा कृ< ग8किपय� य8ग�श्वर श्री�कृ� ष्ण पर म8किहता ह8न� कृ� कृरण उन्ह� पकिता रूप म� पन� कृ� क्तिलीए इच्छु4कृ थe। व� जाब यम4न ताट पर एकृत्रा हुई, ताभ� व��दद�व� उनकृ� सामन� एकृ तापल्किस्वन� कृ� रूप म� आई। उन्ह न� ग8किपय कृ8 कृत्ययन� द�व� कृ< आरधान कृ परमशी� दिदय।

उन्ह न� ग8किपय कृ8 ह�म�ता ऋता4 कृ� 7थम मसा मग�शी�र्षो� [अगहन] म� पRर� मह�न� व्रता रखन� कृ8 कृह, न्दिजासाम� कृ� वली फलीहर किकृय जाता ह-। ग8किपय� किनत्य साRय�दय ह8न� सा� पRव� ब्रह्माम4हूं त्ता�म� श्री�कृ� ष्ण कृ� नम कृ जाप

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कृरता� हुए यम4न-स्नन कृरताe। व� बलीR सा� कृत्ययन� मता कृ< मRर्तिताE बनकृर उसा� फली-फR ली, धाRप-द�प, न-व�द्य अर्तिपEता कृरन� लीगe। इसा 7कृर ब्रजा कृ< कृ4 मरिरय�किवमिधा-किवधान सा� जागद�ब कृ< अT�न म� जा4ट गई। -कृत्ययन� म�त्रा ग8किपय� म� कृत्ययन� कृ< पRजा कृ� बद इसा म�त्रा कृ जाप कृरन� लीगe-

ह� कृत्ययन�! महमय! न�द ग8प कृ� प4त्रा श्री�कृ� ष्ण कृ8 हमर पकिता बन द�। हम आपकृ8 7णम कृरता� ह�।

यह म�त्रा श्री�मद्भगवता महप4रणकृ� दशीम स्कृ� धा कृ� 22 व� अध्यय कृ T^थ श्लो8कृ ह-। कृहता� ह� किकृ कृत्ययन� द�व� कृ� व्रता-अन4ष्ठान सा� ग8किपय कृ< मन8कृमन पRण� हुई। इसाकृ� बद यह किवधान कृन्यओं कृ� क्तिलीए मन8न4कृR ली वर पन� कृ साधान बन गय। आजा भ� य4वकिताय� अपन� भवन कृ� अन4रूप पकिता 7प्ता कृरन� कृ� क्तिलीए बड� श्रीद्धा कृ� साथ यह अन4ष्ठान कृरता� ह�।

रा�जा�न्द्र प्रस�द स्मा�ति�दिदवस

डuक्टर रजा�न्द्र 7साद भरताकृ� 7थम रष्ट्रपकिता थ�। (जान्म- 3 दिदसाम्बर, 1884, जा�रद�य� , किबहर, म�त्य4- 28 फ़रवर�, 1963, सादकृता आश्रीम, पटन)। रजा�न्द्र 7साद 7किताभशीली� और किवद्वान व्यक्तिक्त थ�।

रजा�न्द्र 7साद 7किताभशीली� और किवद्वान थ� और कृलीकृत्ता कृ� एकृ य8ग्य वकृ<ली कृ� यहj कृम सा�ख रह� थ�। रजा�न्द्र 7साद कृ भकिवष्य एकृ सा4�दर सापन� कृ< तारह थ। रजा�न्द्र 7साद कृ परिरवर उनसा� कृई आशीय� लीगय� ब-ठो थ। वस्ताव म� रजा�न्द्र 7साद कृ� परिरवर कृ8 उन पर गव� थ। ली�किकृन रजा�न्द्र 7साद कृ मन इन साब म� नहe थ। रजा�न्द्र 7साद कृ� वली धान और सा4किवधाय� पन� कृ� क्तिलीए आग� पढ़न नहe Tहता� थ�। एकृएकृ रजा�न्द्र 7साद कृ< दृमिष्ट म� इन T�ज़ों कृ कृ8ई मRVय नहe रह गय थ। रष्ट्र�य न�ता ग8खली�कृ� शीब्द रजा�न्द्र 7साद कृ� कृन म� बर-बर गRjजा उठोता� थ�।

रजा�न्द्र 7साद कृ< मता�भRमिम किवद�शी� शीसान म� जाकृड़ी� हुई थ�। रजा�न्द्र 7साद उसाकृ< प4कृर कृ8 कृ- सा� अनसा4न� कृर साकृता� थ�। ली�किकृन रजा�न्द्र 7साद यह भ� जानता� थ� किकृ एकृ तारफ द�शी और दूसार� ओर परिरवर कृ< किनष्ठा उन्ह� भिभन्न-भिभन्न दिदशीओं म� खeT रह� थ�। रजा�न्द्र 7साद कृ परिरवर यह नहe Tहता थ किकृ वह अपन कृय� छ8ड़ीकृर 'रष्ट्र�य आ�द8लीन' म� भग ली� क्य किकृ उसाकृ� क्तिलीए पRर� सामप�ण कृ< आवश्यकृता ह8ता� ह-। रजा�न्द्र 7साद कृ8 अपन रस्ता स्वय� T4नन पड़ी�ग। यह उलीझन मन उनकृ< आत्म कृ8 झकृझ8र रह� थ�।

रजा�न्द्र 7साद न� रता खत्म ह8ता�-ह8ता� मन ह� मन कृ4 छ ताय कृर क्तिलीय थ। रजा�न्द्र 7साद स्वथ� बनकृर अपन� परिरवर कृ8 साम्भालीन� कृ पRर भर अपन� बड़ी� भई पर नहe डली साकृता� थ�। रजा�न्द्र 7साद कृ� किपता कृ द�हन्ता ह8 T4कृ थ। रजा�न्द्र 7साद कृ� बड़ी� भई न� किपता कृ स्थन ली�कृर उनकृ मग�दशी�न किकृय थ और उच्च आदशी� कृ< 7�रण द� थ�। रजा�न्द्र 7साद उन्ह� अकृ� ली कृ- सा� छ8ड़ी साकृता� थ�? अगली� दिदन ह� उन्ह न� अपन� भई कृ8 पत्रा क्तिलीख, "म�न� साद आपकृ कृहन मन ह- और यदिद ईश्वर न� Tह ता8 साद ऐसा ह� ह8ग।" दिदली म� यह शीपथ ली�ता� हुए किकृ अपन� परिरवर कृ8 और दुख नहe द�ग� उन्ह न� क्तिलीख, "म� न्दिजातान कृर साकृता हूंj कृरूj ग और साब कृ8 7सान्न द�ख कृर 7सान्नता कृ अन4भव कृरूj ग।"

ली�किकृन उनकृ� दिदली म� उथली-प4थली मT� रह�। एकृ दिदन वह अपन� आत्म कृ< प4कृर सा4न�ग� और स्वय� कृ8 पRण�ताय अपन� मता�भRमिम कृ� क्तिलीए सामर्तिपEता कृर द�ग�। यह य4वकृ रजा�न्द्र थ� जा8 Tर दशीकृ पश्चता 'स्वता�त्रा भरता कृ� 7थम रष्ट्रपकिता' बन�।

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किबहर 7न्ता कृ� एकृ छ8ट� सा� गjव जा�रद�यR म� 3 दिदसाम्बर, 1884 म� रजा�न्द्र 7साद कृ जान्म हुआ थ। एकृ बड़ी� सा�य4क्त परिरवर कृ� रजा�न्द्र 7साद साबसा� छ8ट� सादस्य थ�, इसाक्तिलीए वह साबकृ� दुलीर� थ�। रजा�न्द्र 7साद कृ� परिरवर कृ� सादस्य कृ� साम्बन्ध गहर� और म�दु थ�। रजा�न्द्र 7साद कृ8 अपन� मता और बड़ी� भई मह�न्द्र 7साद सा� बहुता स्न�ह थ।

रजा�न्द्र 7साद बद म� रष्ट्र�य आ�द8लीन म� शीमिमली ह8 गए। ताब वह पत्न� सा� और भ� कृम मिमली पता� थ�। वस्ताव म� किववह कृ� 7थम पTसा वर्षो� म� शीयद पकिता-पत्न� पTसा मह�न� ह� साथ-साथ रह� ह ग�। रजा�न्द्र 7साद अपन सार सामय कृम म� किबताता� और पत्न� बच्च कृ� साथ जा�रद�इ गjव म� परिरवर कृ� अन्य सादस्य कृ� साथ रहता� थe।

किब्रदिटशी शीसाकृ कृ� अन्यय कृ� 7किता हमर दब्बRपन अब किवर8धा म� बदली रह थ। सान� 1914 म� 7थम किवश्व य4द्धा आरम्भा ह8न� पर ली8ग कृ� क्तिलीय� नई कृदिठोनइयj उत्पन्न ह8 गई। जा-सा�- भर� कृर, खद्य पदथ� कृ< कृम� कृ<मता कृ बढ़न और ब�र8ज़ोंगर�। सा4धार कृ कृ8ई सा�कृ� ता नहe मिमली रह थ। जाब कृलीकृत्ता म� सान� 1917 कृ� दिदसाम्बर मह म� 'ऑली इ�किडय कृ�ग्रं�सा कृम�ट�' कृ अमिधाव�शीन हुआ ता8 भरता म� उथली-प4थली मT� हुई थ�। रजा�न्द्र 7साद भ� इसा अमिधाव�शीन म� शीमिमली हुए। उनकृ� साथ ह� एकृ सा�वली� र�ग कृ दुबली-पताली आदम� ब-ठो थ मगर उसाकृ< आjख� बड़ी� ता�ज़ों और Tमकृ<ली� थ�। रजा�न्द्र 7साद न� सा4न थ किकृ वह अफ़्री<कृसा� आय ह- ली�किकृन अपन� स्वभकिवकृ सा�कृ8T कृ� कृरण वह उसासा� बताT�ता न कृर साकृ� । यह व्यक्तिक्त और कृ8ई नहe महत्म ग�धा� ह� थ�। वह अभ�-अभ� दभिक्षाण अफ़्री<कृ म� सारकृर� दमन कृ� किवरूद्धा सा�र्घर्षो� कृरकृ� भरता ली^ट� थ�। रजा�न्द्र 7साद कृ8 उसा सामय पता नहe थ किकृ वह सा�वली प-न� आjख वली व्यक्तिक्त ह� उनकृ� भकिवष्य कृ� जा�वन कृ8 आकृर द�ग।

ग�धा� जा� न� अपन 7थम 7य8ग किबहर कृ� Tम्पारन न्दिज़ोंली� म� किकृय जाहj कृ� र्षोकृ कृ< दशी बहुता ह� दयन�य थ�। किब्रदिटशी ली8ग न� बहुता सार� धारता� पर न�ली कृ< ख�ता� आरम्भा कृर द� थ� जा8 उनकृ� क्तिलीय� लीभदयकृ थ�। भRख�, न�ग�, कृ� र्षोकृ किकृरय�दर कृ8 न�ली उगन� कृ� क्तिलीय� ज़ोंबरदस्ता� कृ< जाता�। यदिद व� उनकृ< आज्ञा नहe मनता� ता8 उन पर जा4म�न किकृय जाता और क्रR रता सा� यतानएj द� जाता� एव� उनकृ� ख�ता और र्घर कृ नष्ट कृर दिदय जाता थ। जाब भ� झगड़ी हई कृ8ट� म� प�शी हुआ, ताब-ताब वस्ताव म� रजा�न्द्र 7साद न� साद किबन फ़<सा क्तिलीय� इन कृ� र्षोकृ कृ 7किताकिनमिधात्व किकृय। ली�किकृन किफर भ� वह किनरन्तार जानवर जा-सा� स्थिस्थकिता म� रहता� आ रह� थ�। ग�धा�जा� कृ8 Tम्पारन म� ह8 रह� दमन पर किवश्वसा नहe हुआ और वस्ताकिवकृता कृ पता लीगन� वह कृलीकृत्ता अमिधाव�शीन कृ� बद स्वय� किबहर गय�। महत्म ग�धा� कृ� साथ Tम्पारन कृ एकृ कृ� र्षोकृ न�ता थ। जा8 पहली� उन्ह� रजा�न्द्र 7साद जा� कृ� र्घर पटन म� ली� आय। र्घर म� कृ� वली न^कृर थ। ग�धा�जा� कृ8 एकृ किकृसान म4वस्थिक्कृली सामझकृर उसान� बड़ी� रूखई सा� उन्ह� बहर ब-ठोन� कृ� क्तिलीय� कृह। कृ4 छ सामय बद ग�धा� जा� अपन� Tम्पारन कृ< यत्रा पर Tली दिदय�। न�ली कृर साहब और यहj कृ� सारकृर� अमिधाकृरिरय कृ8 डर थ किकृ ग�धा�जा� कृ� आन� सा� गड़ीबड़ी न ह8 जाय�। इसाक्तिलीय� उन्ह� सारकृर� आद�शी दिदय गय किकृ तात्कृली न्दिज़ोंली छ8ड़ी कृर Tली� जाय�। ग�धा�जा� न� वहj सा� जान� सा� इ�कृर कृर दिदय और उत्तार दिदय किकृ वह आ�द8लीन कृरन� नहe आय�। कृ� वली पRछताछ सा� जानन Tहता� ह�। बहुता बड़ी� सा�ख्य म� प�किड़ीता किकृसान उनकृ� पसा अपन� दुख कृ< कृहकिनय� ली�कृर आन� लीग�। अब उन्ह� कृTहर� म� प�शी ह8न� कृ� क्तिलीय� कृह गय।

बबR रजा�न्द्र 7साद कृ< ख़्यकिता किकृ वह बहुता सामर्तिपEता कृय�कृता� ह�, ग�धा� जा� कृ� पसा पहुjT T4कृ< थe। ग�धा� जा� न� रजा�न्द्र 7साद कृ8 Tम्पारन कृ< स्थिस्थकिता बताता� हुए एकृ तार भ�जा और कृह किकृ वह ता4रन्ता कृ4 छ स्वय�सा�वकृ कृ8 साथ ली�कृर वहj आ जाय�। बबR रजा�न्द्र 7साद कृ ग�धा� जा� कृ� साथ यह पहली साम्पाकृ� थ।

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वह उनकृ� अपन� जा�वन म� ह� नहe बल्किVकृ भरता कृ< रष्ट्र�यता कृ� इकिताहसा म� भ�, एकृ नय म8ड़ी थ। रजा�न्द्र 7साद ता4रन्ता Tम्पारन पहुjT� और ग�धा� जा� म� उनकृ< दिदलीTस्प� जाग�। पहली� बर मिमलीन� पर उन्ह� ग�धा� जा� कृ< शीक्ली य बताT�ता किकृसा� न� भ� 7भकिवता नहe किकृय थ। ह�, वह अपन� न^कृर कृ ग�धा� जा� सा� किकृय� दुव्य�वहर सा� न्दिजासाकृ� बर� म� उन्ह न� सा4न थ, बहुता दुख� थ�।

उसा रता ग�धा� जा� न� जागकृर वइसारuय और भरता�य न�ताओं कृ8 पत्रा क्तिलीख� और कृTहर� म� प�शी कृरन� कृ� क्तिलीय� अपन बयन भ� क्तिलीख। उन्ह न� कृ� वली एकृ बर रूकृ कृर बबR रजा�न्द्र 7साद और उनकृ� साक्तिथय सा� पRछ किकृ यदिद उन्ह� जा�ली भ�जा दिदय गय ता8 व� क्य कृर�ग�। एकृ स्वय�सा�वकृ न� ह�साता� हुए कृह किकृ ताब उनकृ कृम भ� खत्म ह8 जाय�ग और व� साब अपन� र्घर Tली� जाय�ग�। इसा सामय इसा बता न� रजा�न्द्र 7साद जा� कृ� दिदली कृ8 छR क्तिलीय और उसाम� हलीTली मT गई। यह एकृ ऐसा आदम� ह- जा8 इसा 7न्ता कृ किनवसा� नहe ह- और किकृसान कृ� अमिधाकृर कृ� क्तिलीय� जा�-जान सा� सा�र्घर्षो� कृर रह ह-। वह न्यय कृ� क्तिलीय� जा�ली जान� कृ8 भ� ता-यर ह-। और यहj हमर� जा-सा� 'किबहर�' जा8 अपन� क्षा�त्रा कृ� किकृसान कृ< मदद कृरन� पर गव� कृरता� ह� ली�किकृन किफर भ� हम साब र्घर Tली� जाय�ग�। इसा अजा�ब8ग़र�ब स्थिस्थकिता न� उन्ह� T�कृ दिदय। वह इसा छ8ट� सा� आदम� कृ8 आश्चय�Tकिकृता सा� ताकृता� रह�। न्दिजान ली8ग कृ8 वह जानता� थ� उनम� सा� किकृसा� न� भ� कृभ� जा�ली जान� ताकृ कृ सापन नहe द�ख थ। वकृ<ली कृ� क्तिलीए जा�ली एकृ गन्द शीब्द थ। जा�ली कृ� वली अपरमिधाय कृ� क्तिलीए थ। अपरधा� भ� जा�ली कृ< साख़्ता� सा� बTन� कृ� क्तिलीए अमिधाकृरिरय कृ8 बड़ी�-बड़ी� रकृम� द�ता� थ�, और यह आदम� जान� कृह� सा� आकृर जा�ली जान� कृ< बता कृर रह थ। उसाकृ भ� ता8 र्घर और परिरवर ह8ग। अगली� सा4बह ताकृ ग�धा� जा� कृ� किन:स्वथ� उदहरण न� बबR रजा�न्द्र 7साद और उनकृ� साक्तिथय कृ दिदली जा�ता क्तिलीय थ। अब व� उनकृ� साथ जा�ली जान� कृ� क्तिलीए ता-यर थ�। कृTहर� म� ग�धा� जा� न� कृह किकृ उन्ह न� Tम्पारन छ8ड़ीन� कृ अमिधाकृरिरय कृ आद�शी अपन� आत्म कृ< आवज़ों सा4नकृर ह� नहe मन थ। वह जा�ली जान� कृ8 ता-यर ह�। बबR रजा�न्द्र 7साद और उनकृ� साथ� जाब ताकृ किगरफ़्तार नहe कृर क्तिलीय� जाता� और उनकृ स्थन अन्य न�ता नहe ली� ली�ता� पRछताछ कृ कृम जार� रख�ग�। उसा दिदन दूर-दूर कृ� गjव सा� इतान� ली8ग कृTहर� म� ग�धा�जा� कृ8 सा4नन� आय� किकृ वहj कृ दरवज़ों ह� टRट गय।

यह एकृ Tमत्कृर कृ� सामन थ। ग�धा� जा� कृ किनडरता सा� ह8कृर सात्य और न्यय पर अड़ी� रहन� सा� सारकृर बहुता 7भकिवता हुई। म4क़दम वपसा ली� क्तिलीय गय और वह अब पRछताछ कृ� क्तिलीए स्वता�त्रा थ�। यहj ताकृ कृ< अमिधाकृरिरय कृ8 भ� उनकृ< मदद कृरन� कृ� क्तिलीय� कृह गय। यह सात्यग्रंह कृ< पहली� किवजाय थ�। स्वधा�नता सा�र्घर्षो� म� ग�धा� जा� कृ यह महत्त्वपRण� य8गदन थ। सात्यग्रंह न� हम� क्तिसाखय किकृ किनभ�य ह8कृर दमनकृर� कृ� किवरूद्धा अपन� अमिधाकृर कृ� क्तिलीए अकिंहEसात्मकृ तार�कृ� सा� अड़ी� रह8।

रजा�न्द्र 7साद Tम्पारन आ�द8लीन कृ� द^रन ग�धा�जा� कृ� वफ़दर साथ� बन गय�। क़्रर�ब 25,000 किकृसान कृ� बयन क्तिलीख� गय� और अन्ताता� यह कृम उन्ह� ह� सा�प दिदय गय। किबहर और उड़ी�सा कृ< सारकृर न� अन्ताता8गत्व इन रिरप8ट� कृ� आधार पर एकृ अमिधाकिनयम पसा कृरकृ� Tम्पारन कृ� किकृसान कृ8 लीम्ब� वर्षो� कृ� अन्यय सा� छ4 टकृर दिदलीय। सात्यग्रंह कृ< वस्ताकिवकृ साफलीता ली8ग कृ� हृदय पर किवजाय थ�। ग�धा�जा� कृ� आदशी�वद, साहसा और व्यवहरिरकृ साकिक्रयता सा� 7भकिवता ह8कृर रजा�न्द्र 7साद अपन� पRर� जा�वन कृ� क्तिलीय� उनकृ� सामर्तिपEता अन4यय� बन गय�। वह यद कृरता� ह�, 'हमर� सार� दृमिष्टकृ8ण म� परिरवता�न ह8 गय थ...हम नय� किवTर, नय साहसा और नय कृय�क्रम ली�कृर र्घर ली^ट�।' बबR रजा�न्द्र 7साद कृ� हृदय म� मनवता कृ� क्तिलीय� असा�म दय थ�। 'स्वथ� सा� पहली� सा�व' शीयद यह� उनकृ� जा�वन कृ ध्य�य थ। जाब सान� 1914 म� ब�गली और किबहर कृ� ली8ग बढ़ सा� प�किड़ीता हुए ता8 उनकृ< दयली4 7कृ� किता ली8ग कृ< व�दन सा� बहुता 7भकिवता हुई। उसा सामय वह स्वय�सा�वकृ बन नव म� ब-ठोकृर दिदन-रता प�किड़ीता कृ8 भ8जान और कृपड़ी ब�टता�। रता कृ8 वह किनकृट कृ� र�लीव� स्ट�शीन पर सा8 जाता�। इसा मनव�य कृय� कृ� क्तिलीय� जा-सा� उनकृ< आत्म भRख� थ� और यहe सा� उनकृ� जा�वन म� किनस्स्वथ� सा�व कृ आरम्भा हुआ।

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ग�धा�जा� कृ� किनकृट सा�ब�धा कृ� कृरण उनकृ� प4रन� किवTर म� एकृ क्रन्तिन्ता आई और वह साब T�जा कृ8 नय� दृमिष्टकृ8ण सा� द�खन� लीग�। उन्ह न� महत्म ग�धा� कृ� मनव�य किवकृसा और सामजा सा4धार कृय� म� भरसाकृ साहयता कृ<। उन्ह न� महसाRसा किकृय, "किवद�शी� ताकृता कृ हम पर रजा कृरन� कृ मRली कृरण हमर� कृमज़ों8र� और सामन्दिजाकृ ढां�T� म� दरर� ह�।" अस्प�श्यता कृ अभिभशीप जा8 7T�न सामय सा� Tली आ रह थ भरता�य सामजा कृ< एकृ ऐसा� कृ4 र�किता थ� न्दिजासाकृ� द्वार न�T� जाकिताय कृ8 ऐसा� दूर रख जाता थ मन व� कृ8ई छR ता कृ< ब�मर� ह । उन्ह� म�दिदर कृ� भ�तार जान� नहe दिदय जाता थ। यहj ताकृ कृ< ग�व म� कृ4 ए सा� पन� भ� नहe भरन� द�ता� थ�।

ली�किकृन सामजा कृ� बदलीन� सा� पहली� अपन� कृ8 बदलीन� कृ साहसा ह8न Tकिहय�। "यह बता साT थ�," रजा�न्द्र 7साद न� स्व�कृर किकृय, "म� ब्रह्माण कृ� अलीव किकृसा� कृ छ4 आ भ8जान नहe खता थ। Tम्पारन म� ग�धा�जा� न� उन्ह� अपन� प4रन� किवTर कृ8 छ8ड़ी द�न� कृ� क्तिलीय� कृह। आख़ि�रकृर उन्ह न� सामझय किकृ जाब व� साथ-साथ एकृ ध्य�य कृ� ली�य� कृय� कृरता� ह� ता8 उन साबकृ< कृ� वली एकृ जाकिता ह8ता� ह- अथ�ता व� साब साथ� कृय�कृता� ह�।"

ड. रजा�न्द्र 7साद जा� न� साद जा�वन अपनय और न^कृर कृ< सा�ख्य कृम कृरकृ� एकृ कृर द�। वह स्मरण कृरता� ह�, "साT ता8 यह ह- किकृ हम साब कृ4 छ स्वय� ह� कृरता� थ�। यहj ताकृ कृ< अपन� कृमर� म� झड़ू लीगन, रसा8ईर्घर साफ़ कृरन, अपन बता�न म�जान-धा8न, अपन सामन उठोन और अब गड़ी� म� भ� ता�सार� दजा� म� यत्रा कृरन अपमनजानकृ नहe लीगता थ।" द�शी न� ग�धा� जा� कृ� हरिरजान आ�द8लीन म� बहुता उत्साह दिदखय। किबहर न� 7किताज्ञा कृ< किकृ वह इसा कृ4 र�किता कृ8 और हरिरजान कृ� कृVयण कृ� क्तिलीय� किकृय� कृय� द्वार हटय�ग�। दभिक्षाण भरता कृ8 उन्ह न� "अस्प�श्यता कृ गढ़" कृह। रजा�न्द्र 7साद वह� सा�. रजाग8पलीTर� कृ� साथ गय� और बहुता 7यसा किकृय किकृ म�दिदर कृ� द्वार हरिरजान कृ� क्तिलीय� ख8ली दिदय� जाय�। उन्ह� कृ4 छ साफलीता भ� मिमली�। उन्ह न� ग�व कृ� कृ4� ए कृ उपय8ग कृरन� कृ� अमिधाकृर कृ� क्तिलीए भ� लीड़ीई कृ<। इसा सा4किवधा कृ8 भ� अन्य सा4किवधाओं कृ� साथ स्व�कृर कृर क्तिलीय गय।

जानवर� सान� 1934 म� किबहर कृ8 एकृ भ�यकृर भRकृम्पा न� झिंझEझ8ड़ी दिदय। जा�वन और साम्पाभित्ता कृ< बहुता हकिन हुई। रजा�न्द्र 7साद अपन� अस्वस्थता कृ� बद भ� रहता कृय� म� जा4ट गय�। वह उन ली8ग कृ� क्तिलीय� न्दिजानकृ� र्घर नष्ट ह8 गय� थ�, भ8जान, कृपड़ी और दवइय� इकृट्ठी� कृरता�। भRकृम्पा कृ� पश्चता किबहर म� बढ़ और मली�रिरय कृ 7कृ8प हुआ। न्दिजासासा� जानता कृ< ताकृली�फ� और भ� बढ़ गई। इसा भRकृम्पा और बढ़ 7भकिवता क्षा�त्रा म� कृम कृरन� म� ग�धा� जा� न� रजा�न्द्र 7साद कृ साथ दिदय।

कृ4 छ सामय पश्चता उत्तार-पभिश्चम म� कृ8यट नगर म�, मई सान� 1935 म� भय�कृर भRकृम्पा आय और उसा क्षा�त्रा म� भ�र्षोण किवनशी ली�ली हुई। सारकृर� 7किताबन्ध कृ� कृरण रजा�न्द्र 7साद ता4रन्ता वह� पहु�T न साकृ� । उन्ह न� प�जाब और सिंसाEधा म� रहता कृम�दिटय� बन द� जा8 भRकृम्पा द्वार ब�र्घर और वह� सा� आय� ली8ग कृ8 रहता द�न� कृ कृम कृरन� लीग�। रजा�न्द्र 7साद बड़ी� किहम्मता सा� साम्प्रदमियकृ तानव कृ8 कृम कृरन�, स्त्रिस्त्राय कृ< स्थिस्थकिता म� सा4धार और ग�व म� खद� और उद्य8ग कृ किवकृसा एव� रष्ट्र कृ� अन्य किनम�ण कृय� म� लीग� रह�। यह कृय� वह अपन� जा�वन कृ� अ�किताम दिदन ताकृ कृरता� रह�। उनकृ< मनवता आदम� कृ� भ�तार कृ< अच्छुई कृ8 छR जाता� थ�।

रजा�न्द्र 7साद न� अन्य न�ताओं कृ� साथ रष्ट्र किनम�ण कृ अकिता किवशीली कृय� ली� क्तिलीय। उसा सामय उनकृ� भ�तार जाली रह� रष्ट्र�यता कृ< ज्वली कृ8 कृ8ई नहe ब4झ साकृता थ। रजा�न्द्र 7साद ग�धा� जा� कृ� बहुता किनष्ठावन अन4यय� थ�। उन्ह न� स्वय� कृ8 पRर� तारह स्वधा�नता सा�ग्रंम कृ� क्तिलीए सामर्तिपEता कृर दिदय। उन्ह� और पRर� भरता

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कृ8 ग�धा� कृ� रूप म� आ�द8लीन कृ� क्तिलीय� नय न�ता और सात्यग्रंह व असाहय8ग कृ� रूप म� एकृ नय अस्त्रा मिमली।

किवश्व इकिताहसा म� ऐसा उदहरण नहe मिमली�ग जाह� इतान� किनरस्त्रा ली8ग अकिंहEसा अपनकृर इतान� बहदुर� सा� लीड़ी� ह । सात्य और न्यय कृ� आदशी� कृ8 धारण कृरकृ� उनकृ किब्रदिटशी शीसान कृ8 किहलीन� कृ किनश्चय दृढ़ ह8ता जा रह थ।

सारकृर न� अपन� दमनकृर� अस्त्रा सा� इसा उत्साह कृ8 दबन� कृ 7यसा किकृय। मT� सान� 1919 म� रuली�ट एक्ट पसा किकृय गय। इसाकृ� द्वार जाजा रजान�किताकृ म4क़दम कृ8 जाRर� कृ� किबन सा4न साकृता� थ� और सा�द�हस्पद रजान�किताकृ ली8ग कृ8 किबन किकृसा� 7किक्रय कृ� जा�ली म� डली जा साकृता थ।

ली8ग कृ असा�ता8र्षो बढ़ता गय। ग�धा�जा� न� पRर� द�शी म� छ अ7¢ली सान� 1919 कृ8 हड़ीताली ब4लीई। "सार कृम ठोप्प ह8 गय...यहj ताकृ कृ< ग�व म� भ� किकृसान न� हली एकृ ओर रख दिदय�", रजा�न्द्र 7साद न� दिटप्पण� कृ<।

ली�किकृन सारकृर कृ अत्यTर बढ़ता ह� गय। अम�तासारकृ� जाक्तिलीयjवली बग़ म� 13 अ7�ली, 1919 म� एकृ किवर8धा साभ म� ढां�र सार� किनरस्त्रा ली8ग मर� गय� और कृई र्घयली हुए।

रजा�न्द्र 7साद इसा बता सा� बहुता क्र8मिधाता ह8 उठो� और उन्ह न� किनभ�कृता सा� किबहर कृ< जानता सा� ग�धा�जा� कृ� न�ता�त्व म� असाहय8ग आ�द8लीन कृ8 स्व�कृर कृरन� कृ< अप�ली कृ<। यह ऐसा सामय थ जाब द�शी कृ� क्तिलीय� कृ8ई भ� बक्तिलीदन बहुता बड़ी नहe थ। बबR रजा�न्द्र 7साद न� अपन� फलीता�-फR लीता� वकृलीता छ8ड़ीकृर पटन कृ� किनकृट सानअ 1921 म� एकृ न�शीनली कृuली�जा ख8ली। हज़ोंर छत्रा और 78फ़� सार न्दिजान्ह न� सारकृर� सा�स्थओं कृ बकिहष्कृर किकृय थ यहj आ गय�। किफर इसा कृuली�जा कृ8 ग�ग किकृनर� सादकृता आश्रीमम� ली� जाय गय। अगली� 25 वर्षो� कृ� क्तिलीय� यह रजा�न्द्र 7साद जा� कृ र्घर थ।

किबहर म� असाहय8ग आ�द8लीन 1921 म� दवनली कृ< तारह फ- ली गय। रजा�न्द्र 7साद दूर-दूर कृ< यत्राय� कृरता�, साव�जाकिनकृ साभय� ब4लीता�, न्दिजासासा� साबसा� साहयता ली� साकृ� और धान इकृट्ठी कृर साकृ� । उनकृ� क्तिलीय� यह एकृ नय अन4भव थ। "म4झ� अब र8ज़ों साभओं म� ब8लीन पड़ीता थ इसाक्तिलीय� म�र स्वभकिवकृ सा�कृ8T दूर ह8 गय..." साधारणताय क़्रर�ब 20,000 ली8ग इन साभओं म� उपस्थिस्थता ह8ता�। उनकृ� न�ता�त्व म� ग�व म� सा�व सामिमकिताय और प�Tयता कृ सा�गठोन किकृय गय। ली8ग सा� अन4र8धा किकृय गय किकृ किवद�शी� कृपड़ी कृ बकिहष्कृर कृर� और खद� पहन� व Tख� कृतान आरम्भा कृर�।

यह अकिनवय� थ किकृ रजान�किता कृ दृश्य बदली�। रजा�न्द्र 7साद न� जागरूकृता कृ वण�न इसा 7कृर किकृय ह-, "अब रजान�किता क्तिशीभिक्षाता और व्यवसाय� ली8ग कृ� कृमर सा� किनकृलीकृर द�हता कृ< झ8पकिड़ीय म� 7व�शी कृर गई थ� और इसाम� किहस्सा ली�न� वली� थ� किकृसान।"

सारकृर न� इसाकृ� उत्तार म� अपन दमन Tक्र Tलीय। हज़ोंर ली8ग न्दिजानम� लीली लीजापता रय, जावहर लीली न�हरू, द�शीबन्ध4 क्तिTतार�जान दसा और म^लीन अब4ली कृलीम आज़ोंद जा-सा� 7क्तिसाद्धा न�ता किगरफ्तार कृर क्तिलीय� गय�। आ�द8लीन कृ अन8खपन थ उसाकृ अकिंहEसाकृ ह8न। ली�किकृन फ़रवर� सान� 1922 म� ग�धा�जा� न� 'साकिवनय अवज्ञा आ�द8लीन' कृ< प4कृर द� किकृन्ता4 T^र� T^र, उत्तार 7द�शी म� किंहEसाकृ र्घटनय� ह8न� पर ग�धा� जा� न� साकिवनय अवज्ञा आ�द8लीन स्थकिगता कृर दिदय। उन्ह� लीग किकृ किंहEसा न्ययसा�गता नहe ह-। और रजान�किताकृ साफलीता कृ8

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कृ4 छ सामय कृ� क्तिलीय� स्थकिगता किकृय जान ह� अच्छु ह-। न्दिजासासा� न-किताकृ असाफलीता सा� बT जा साकृ� । कृई न�ताओं न� आ�द8लीन कृ8 स्थकिगता कृरन� कृ� क्तिलीय� ग�धा� जा� कृ< कृड़ी� आली8Tन कृ< ली�किकृन रजा�न्द्र 7साद न� दृढ़ता कृ� साथ उनकृ साथ दिदय। उन्ह� ग�धा�जा� कृ< ब4न्दिद्धामत्ता पर पRण� किवश्वसा थ।

नमकृ सात्यग्रंह कृ आरम्भा ग�धा� जा� न� साम4द्र ताट कृ< ओर यत्रा कृरकृ� ड�ड� म� किकृय। न्दिजासासा� नमकृ क़नRन कृ उVली�र्घन वह कृर साकृ� । ड�ड�, साबरमता� आश्रीम सा� 320 किकृली8म�टर दूर थ�। नमकृ कृ< ज़ोंरूरता हव और पन� कृ< तारह साब कृ8 ह- और उन्ह न� महसाRसा किकृय किकृ नमकृ पर कृर लीगन अमन4किर्षोकृ कृय� थ। यह पRर� रष्ट्र कृ8 साकिक्रय ह8न� कृ सा�कृ� ता थ। किबहर म� नमकृ सात्यग्रंह कृ आरम्भा रजा�न्द्र 7साद कृ� न�ता�त्व म� हुआ। प4क्तिलीसा आक्रमण कृ� बवजाRद नमकृ क़नRन कृ� उVलीर्घ�न कृ� क्तिलीय� पटन म� न�सा तालीब T4न गय। स्वय�सा�वकृ कृ� दली उत्साहपRव�कृ एकृ कृ� बद एकृ आता� और नमकृ बनन� कृ� क्तिलीय� किगरफ्तार कृर क्तिलीय� जाता�। रजा�न्द्र 7साद न� अकिंहEसाकृ रहन� कृ� क्तिलीय� स्वय�सा�वकृ सा� अप�ली कृ<। कृई स्वय�सा�वकृ गम्भा�र रूप सा� र्घयली हुए।

नमकृ सात्यग्रंह कृ� 7किता प4क्तिलीसा कृ� अत्यTर इतान� बढ़ गय� किकृ जानता म� र8र्षो उत्पन्न ह8 गय क्य किकृ वह उलीट कृर प4क्तिलीसा कृ8 मरता� नहe थ� और सारकृर कृ8 अ�ता म� प4क्तिलीसा कृ8 वह� सा� हटन पड़ी। अब स्वय�सा�वकृ नमकृ बन साकृता� थ�। रजा�न्द्र 7साद न� उसा किनर्मिमEता नमकृ कृ8 ब�Tकृर धान इकृट्ठी किकृय। न्दिजासा क़नRन कृ8 वह न्ययसा�गता नहe सामझता� थ� उसा� ता8ड़ीन� सा� कृ8ई भ� T�ज़ों उन्ह� र8कृ नहe साकृता� थ�। एकृ बर ता8 वह प4क्तिलीसा कृ< लीदिठोय द्वार गम्भा�र रूप सा� र्घयली ह8 गय� थ�। उन्ह� छ� मह�न� कृ< जा�ली हुई। यह उनकृ< पहली� जा�ली यत्रा थ�।

रजा�न्द्र 7साद इ�किडयन न�शीनली कृ�ग्रं�सा कृ� एकृ सा� अमिधाकृ बर अध्यक्षा रह�। अक्तR बर सान� 1934 म� बम्बई म� हुए इ�किडयन न�शीनली कृ�ग्रं�सा कृ� अमिधाव�शीन कृ< अध्यक्षाता रजा�न्द्र 7साद न� कृ< थ�। उन्ह न� ग�धा� जा� कृ< सालीह सा� अपन� अध्यक्षा�य भर्षोण कृ8 अन्तिन्ताम रूप दिदय। साह� बता कृ सामथ�न कृरन साभ कृ< कृर�वई म� 7किताकिबस्त्रिम्बता ह8ता ह-। जाब ग�धा�जा� न� उनसा� पRछ किकृ उन्ह न� प�किडता मदनम8हन मलीव�य जा-सा� गणमन्य न�ता कृ8 दूसार� बर ब8लीन� सा� कृ- सा� मन कृर दिदय ता8 उन्ह न� उत्तार म� कृह किकृ ऐसा किनण�य उन्ह न� कृ�ग्रं�सा कृ� अध्यक्षा ह8न� कृ� नता� क्तिलीय थ न किकृ रजा�न्द्र 7साद कृ� रूप म�।

अपन� अध्यक्षा�य भर्षोण म� उन्ह न� साक्र<य, गकिताशी�ली, अ�किहसात्मकृ, सामRकिहकृ कृय� और अ�ताह�न बक्तिलीदन कृ8 स्वधा�नता कृ मRVय बताता� हुए उन पर ज़ों8र दिदय। अपन� ब�मर� कृ� बवजाRद कृ�ग्रं�सा अध्यक्षा कृ< ह-क्तिसायता सा� उन्ह न� बहुता द^र� किकृए।

कृ�ग्रं�सा कृ< स्वण� जायन्ता� (सान 1885-1935) मनई गई और कृ�ग्रं�सा अध्यक्षा न� अपन� सा�द�शी म� कृह, "यह दिदन स्मरण कृरन� और अपन� किनश्चय कृ8 द8हरन� कृ ह- किकृ हम पRण� स्वरज्य ली�ग�, जा8 स्वग�य कितालीकृ कृ� शीब्द म� हमर जान्म क्तिसाद्धा अमिधाकृर ह-।"

श्री� सा4भर्षोT�द्र ब8सा कृ� अ7-ली सान� 1939 म� कृ�ग्रं�सा अध्यक्षाता (कित्राप4र�) सा� त्यगपत्रा द�न� कृ� बद रजा�न्द्र 7साद किफर अध्यक्षा T4न� गय�। वह अपन बहुता सार सामय कृ�ग्रं�सा कृ� भ�तार� झगड़ी कृ8 किनबटन� म� लीगता�। कृकिव रव�न्द्रनथ ट-ग8र न� उन्ह� क्तिलीख, "अपन� मन म� म4झ� पRण� किवश्वसा ह- किकृ ता4म्हर व्यक्तिक्तत्व र्घयली आत्मओं पर मरहम कृ कृम कृर�ग और अकिवश्वसा और गड़ीबड़ी कृ� वतावरण कृ8 शीन्तिन्ता और एकृता कृ� वतावरण म� बदली द�ग।"

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हमर� स्वता�त्राता कृ� इकिताहसा म� सान� 1939-47 ताकृ कृ� वर्षो� बड़ी� महत्त्वपRण� थ�। हम धा�र�-र्घ�र� स्व-7शीसान कृ< ओर बढ़ रह� थ�। इसा सामय साम्प्रदमियकृ दुभ�वनओं कृ� रूप म� एकृ उपद्रव� तात्त्व उत्पन्न ह8 गय थ। यह द�खकृर रजा�न्द्र 7साद कृ8 बहुता किनरशी हुई किकृ यह भवन बढ़ता� जा रह� ह-। जा�रद�ई म� उन्ह न� अपन� सा�र्घर्षो� कृ� अन्तिन्ताम द^र कृ� द^रन द8न साम्प्रदय कृ8 शीन्ता रहन� कृ< 7थ�न कृरता� हुए कृह, "यह ता8 अकिनवय� ह- किकृ दली म� किवTर कृ< भिभन्नता ह8 ली�किकृन इसाकृ अथ� यह नहe किकृ हम एकृ-दूसार� कृ क्तिसार फ8ड़ी द�।"

म4हम्मद अली� न्दिजान्न न� पकिकृस्तान कृ8 अपन� पट¥, म4स्थिस्लीम ली�ग कृ ध्य�य र्घ8किर्षोता कृर दिदय थ। ली�किकृन किवभजान कृ किवTर रजा�न्द्र 7साद कृ� क्तिसाद्धा�ता और दृमिष्टकृ8ण कृ� किबVकृ4 ली किवरूद्धा थ। उन्ह� इसा किवTर म� कृ8ई ऐसा व्यवहरिरकृ हली नहe मिमली। जाब भ� किबहर म� साम्प्रदमियकृ द�ग� ह8ता�, रजा�न्द्र 7साद ता4रन्ता वह� पहु�Tता�। उन्ह� वह� कृ� हृदय किवदरकृ दृश्य द�खकृर बड़ी धाक्कृ लीग। वह हम�शी किवव�कृपRण� बता� कृरता�।

किद्वाता�य किवश्वय4द्धा कृ< सामन्तिप्ता पर किब्रट�न न� महसाRसा किकृय किकृ अब भरता कृ� साथ और अमिधाकृ सामय क्तिTपकृ� रहन कृदिठोन ह-। किब्रदिटशी 7धानम�त्रा� क्ली�म�ट एटली� न� र्घ8र्षोण कृ< किकृ वह भरता�य न�ताओं कृ� साथ द�शी कृ� किवधान और सात्ता कृ< ताबद�ली� कृ� बर� म� किवTर-किवमशी� कृर�ग�। स्वधा�नता किनकृट ह� दिदखई द� रह� थ�।

सान 1946 म� भरता आन� वली� किब्रदिटशी कृ- किबन�ट मिमशीन कृ� 7यसा असाफली रह� थ�। यद्यकिप कृ� न्द्र�य और 7�ता�य किवधान म�डली कृ� T4नव और एकृ अ�तारिरम रष्ट्र�य सारकृर बनन� कृ 7स्ताव स्व�कृर कृर क्तिलीय गय थ।

सान 1946 म� जावहर लीली न�हरू कृ� न�ता�त्व म� बरह म�कित्राय कृ� साथ एकृ अ�तारिरम सारकृर बन�। रजा�न्द्र 7साद कृ� किर्षो और खद्य म�त्रा� किनय4क्त हुए। यह कृम उन्ह� पसान्द थ और वह ता4रन्ता कृम म� जा4ट गय�। द�शी म� इसा सामय खद्य पदथ� कृ< बहुता कृम� थ� और उन्ह न� खद्य पदथ� कृ उत्पदन बढ़न� कृ� क्तिलीय� एकृ य8जान बनई।

ली�किकृन सा�म्प्रदमियकृता कृ< सामस्य कृ8 सा4लीझय नहe जा साकृ। सान� 1946 म�, कृलीकृत्ता म� साम्प्रदमियकृ द�ग� आरम्भा हुय� और किफर पRर� ब�गली और किबहर म� फ- ली गय�। रजा�न्द्र 7साद न� जावहर लीली न�हरू कृ� साथ द�गग्रंस्ता क्षा�त्रा कृ द^र कृरता� हुए, ली8ग सा� अपन मनक्तिसाकृ सा�ता4लीन एव� किवव�कृ बनए रखन� कृ< अप�ली कृ<, "मनवता कृ< म�ग ह- किकृ पगलीपन, लीRटमर व आगजान� और हत्यकृ�ड कृ8 ता4रन्ता बन्द किकृय जाय�..."

लीम्ब� वर्षो� ताकृ �Rन पसा�न एकृ कृर कृ� और दुख उठोन� कृ� पश्चता 15 अगस्ता, सान� 1947 कृ8 आज़ोंद� मिमली�, यद्यकिप रजा�न्द्र 7साद कृ� अखण्ड भरता कृ सापन किवभजान सा� ख�किडता ह8 गय थ।

हमन� अपन� स्वता�त्राता 7प्ता कृर ली� थ� परन्ता4 अभ� हम� नय� क़नRन बनन� थ� न्दिजासासा� नय� रष्ट्र कृ शीसान Tलीय जा साकृ� ।

स्वधा�नता सा� पहली� जा4लीई सान� 1946 म� हमर सा�किवधान बनन� कृ� क्तिलीए एकृ सा�किवधान साभ कृ सा�गठोन किकृय गय।

रजा�न्द्र 7साद कृ8 इसाकृ अध्यक्षा किनय4क्त किकृय गय थ। यह उनकृ< किनस्स्वथ� रष्ट्र सा�व कृ� 7किता श्रीद्धा�जाली� थ� न्दिजासाकृ� वह स्वय� मRता�रूप थ�।

भरता�य सा�किवधान साभ कृ 7थम अमिधाव�शीन 9 दिदसाम्बर सान� 1946 कृ8 हुआ। सा�किवधान साभ कृ� परिरश्रीम सा� 26 नवम्बर सान� 1949 कृ8 भरता कृ< जानता न� अपन� कृ8 सा�किवधान

दिदय न्दिजासाकृ आदशी� थ न्यय, स्वधा�नता, बरबर� और बन्ध4त्व और साबसा� ऊपर रष्ट्र कृ< एकृता न्दिजासाम� कृ4 छ मRलीभRता अमिधाकृर किनकिहता ह�। भकिवष्य म� भरता कृ� किवकृसा कृ< दिदशी, किपछड़ी� वग�,

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मकिहलीओं कृ< उन्नकिता और किवशी�र्षो क्षा�त्रा कृ� क्तिलीए किवशी�र्षो 7वधान ह�। न्दिजासासा� व्यक्तिक्त कृ< 7किताष्ठा और अ�तार�ष्ट्र�य शीन्तिन्ता कृ8 बढ़व द�न भ� सास्त्रिम्मक्तिलीता ह-।

भरता 26 जानवर� सान� 1950 म� गणता�त्रा बन और रजा�न्द्र 7साद उसाकृ� 7थम रष्ट्रपकिता बन�।

रष्ट्रपकिता बनन� पर भ� उनकृ रष्ट्र कृ� 7किता सामर्तिपEता जा�वन Tलीता रह। व�द्धा और नजा§कृ स्वस्थ्य कृ� बवजाRद उन्ह न� भरता कृ< जानता कृ� साथ अपन किनजा� साम्पाकृ� क़यम रख। वह वर्षो� म� सा� 150 दिदन र�लीगड़ी� द्वार यत्रा कृरता� और आमता^र पर छ8ट�-छ8ट� स्ट�शीन पर रूकृकृर सामन्य ली8ग सा� मिमलीता�।

ज्ञान कृ� 7किता लीगव ह8न� कृ� कृरण रजा�न्द्र 7साद "धान� और दरिरद्र द8न कृ� र्घर म� 7कृशी लीन Tहता� थ�।" क्तिशीक्षा ह� ऐसा� Tब� थ� जा8 मकिहलीओं कृ8 स्वता�त्राता दिदली साकृता� थ�। क्तिशीक्षा कृ अथ� थ व्यक्तिक्तत्व कृ पRण� किवकृसा न किकृ कृ4 छ प4स्ताकृ कृ रटन। वह मनता� थ� किकृ क्तिशीक्षा जानता कृ< मता�भर्षो म� ह8न� Tकिहए। यदिद हम� आधा4किनकृ किवश्व कृ� साथ अपन� गकिता बनय� रखन� ह- ता8 अ�ग्रं�ज़ों� कृ< उप�क्षा नहe कृरन� Tकिहए। उन्ह न� स्वय� भ� कृई किवक्तिशीष्ट प4स्ताकृ� क्तिलीखe। न्दिजानम�

उनकृ< आत्मकृथ (1946), Tम्पारन म� सात्यग्रंह (1922), इ�किडय किडवइड�ड (1946), महत्म ग�धा� ए�ड किबहर, साम र�मिमकिनसान्सा�जा (1949), बपR कृ� क़दम म� (1954) भ� सास्त्रिम्मक्तिलीता ह�।

व�रा स�वराकारा स्मा�ति�दिदवस

किवनयकृ दम8दर सावरकृर (जान्म- 28 मई, 1883, भगRर गjव, नक्तिसाकृ; म�त्य4- 26 फ़रवर�, 1966, म4म्बई भरता) न क्तिसाफ़� एकृ क्र�किताकृर� थ� बल्किVकृ एकृ भर्षोकिवद, ब4न्दिद्धावद�, कृकिव, अ7किताम क्र�किताकृर�, दृढां रजान�ता, सामर्तिपEता सामजा सा4धारकृ, दशी�किनकृ, द्रष्ट, महन कृकिव और महन इकिताहसाकृर और ओजास्व� आदिद वक्त भ� थ�। उनकृ� इन्हe ग4ण न� महनताम ली8ग कृ< श्री�ण� म� उच्च पयदन पर लीकृर खड़ी कृर दिदय।

व�र सावरकृर कृ पRर नम किवनयकृ दम8दर सावरकृर थ। अ�ग्रं�ज़ों� सात्ता कृ� किवरुद्धा भरता कृ< स्वता�त्राता कृ� क्तिलीए सा�र्घर्षो� कृरन� वली� किवनयकृ दम8दर सावरकृर साधारणताय व�र सावरकृर कृ� नम सा� किवख्यता थ�। व�र सावरकृर कृ जान्म 28 मई 1883 कृ8 नक्तिसाकृ कृ� भगRर गjव म� हुआ। उनकृ� किपता दम8दरप�ता गjव कृ� 7किताख़िष् ठोता व्यक्तिक्तय म� जान� जाता� थ�। जाब किवनयकृ न^ साली कृ� थ� ताभ� उनकृ< मता रधाबई कृ द�ह�ता ह8 गय थ। किवनयकृ दम8दर सावरकृर, 20 वe शीताब्द� कृ� साबसा� बड़ी� किहन्दूवद� थ�। उन्ह� किहन्दू शीब्द सा� ब�हद लीगव थ। वह कृहता� थ� किकृ उन्ह� स्वतान्त्राय व�र कृ< जागह किहन्दू सा�गठोकृ कृह जाए। उन्ह न� जा�वन भर किहन्दू किहन्द� किहन्दुस्तान कृ� क्तिलीए कृय� किकृय। वह अख़िखली भरता किहन्दू महसाभ कृ� 6 बर रष्ट्र�य अध्यक्षा T4न� गए। 1937 म� व� 'किहन्दू महसाभ' कृ� अध्यक्षा T4न� गए और 1938 म� किहन्दू महसाभ कृ8 रजान�किताकृ दली र्घ8किर्षोता

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किकृय थ। 1943 कृ� बद ददर, म4�बई म� रह�। बद म� व� किनद�र्षो क्तिसाद्धा हुए और उन्ह न� रजान�किता सा� सा�न्यसा ली� क्तिलीय।

व�र सावरकृर न� क्तिशीवजा� हईस्कृR ली नक्तिसाकृ सा� 1901 म� म-दिªकृ कृ< पर�क्षा पसा कृ<। बTपन सा� ह� व� पढ़कृR थ�। बTपन म� उन्ह न� कृ4 छ कृकिवताएj भ� क्तिलीख� थe। फ़ग्य4�सान कृuली�जा प4ण� म� पढ़न� कृ� द^रन भ� व� रष्ट्रभक्तिक्त सा� ओता-78ता ओजास्व� भर्षोण द�ता� थ�। जाब व� किवलीयता म� क़नRन कृ< क्तिशीक्षा 7प्ता कृर रह� थ�, ताभ� 1910 ई. म� एकृ हत्यकृ�ड म� साहय8ग द�न� कृ� रूप म� एकृ जाहज़ों द्वार भरता रवन कृर दिदय� गय�।

1940 ई. म� व�र सावरकृर न� पRन म� ‘अभिभनव भरता�’ नमकृ एकृ ऐसा� क्र�किताकृर� सा�गठोन कृ< स्थपन कृ<, न्दिजासाकृ उद्दे�श्य आवश्यकृता पड़ीन� पर बली-7य8ग द्वार स्वता�त्राता 7प्ता कृरन थ। आज़ोंद� कृ� वस्ता� कृम कृरन� कृ� क्तिलीए उन्ह न� एकृ ग4प्ता सा8सायट� बनई थ�, जा8 'मिमत्रा म�ली' कृ� नम सा� जान� गई।

1910 ई. म� एकृ हत्यकृ�ड म� साहय8ग द�न� कृ� रूप म� व�र सावरकृर एकृ जाहज़ों द्वार भरता रवन कृर दिदय� गय�। परन्ता4 फ़्री�सा कृ� मसा�ली�ज़ों बन्दरगह कृ� साम�प जाहज़ों सा� व� साम4द्र म� कृR दकृर भग किनकृली�, किकृन्ता4 प4न� पकृड़ी� गय� और भरता लीय� गय�। भरता कृ< स्वता�त्राता कृ� क्तिलीए किकृए गए सा�र्घर्षो� म� व�र सावरकृर कृ नम ब�हद महत्त्वपRण� रह ह-। महन द�शीभक्त और क्र�किताकृर� सावरकृर न� अपन सा�पRण� जा�वन द�शी कृ� क्तिलीए सामर्तिपEता कृर दिदय। अपन� रष्ट्रवद� किवTर सा� जाहj सावरकृर द�शी कृ8 स्वता�त्रा कृरन� कृ� क्तिलीए किनरन्तार सा�र्घर्षो� कृरता� रह� वहe दूसार� ओर द�शी कृ< स्वता�त्राता कृ� बद भ� उनकृ जा�वन सा�र्घर्षो� सा� मिर्घर रह।

एकृ किवशी�र्षो न्ययलीय द्वार उनकृ� अभिभय8ग कृ< सा4नवई हुई और उन्ह� आजा�वन कृली�पन� कृ< दुहर� साज़ों मिमली�। सावरकृर 1911 सा� 1921 ताकृ अ�डमन जा�ली (सा�VयRलीर जा�ली) म� रह�। 1921 म� व� स्वद�शी ली^ट� और किफर 3 साली जा�ली भ8ग�। 1937 ई. म� उन्ह� म4क्त कृर दिदय गय थ, परन्ता4 भरता�य रष्ट्र�य कृ�ग्रं�सा कृ8 उनकृ सामथ�न न 7प्ता ह8 साकृ 1947 म� इन्ह8न� भरता किवभजान कृ किवर8धा किकृय। महत्म रमTन्द्र व�र (किहन्दू महसाभ कृ� न�ता एव� सान्ता) न� उनकृ सामथ�न किकृय। और 1948 ई. म� महत्म ग�धा� कृ< हत्य म� उनकृ हथ ह8न� कृ सा�द�ह किकृय गय। इतान� म4ल्किश्क़ली कृ� बद भ� व� झ4कृ� नहe और उनकृ द�शी7�म कृ जाज़्ब बरकृरर रह और अदलीता कृ8 उन्ह� तामम आर8प सा� म4क्त कृर बर� कृरन पड़ी।

सावरकृर भरता कृ� पहली� व्यक्तिक्त थ� न्दिजान्ह न� किब्रदिटशी साम्राज्य कृ� कृ� न्द्र ली�दन म� उसाकृ� किवरूद्धा क्र�किताकृर� आ�द8लीन सा�गदिठोता किकृय थ।

सावरकृर भरता कृ� पहली� व्यक्तिक्त थ� न्दिजान्ह न� सान� 1905 कृ� ब�ग-भ�ग कृ� बद सान� 1906 म� 'स्वद�शी�' कृ नर द�, किवद�शी� कृपड़ी कृ< ह8ली� जालीई थ�।

सावरकृर भरता कृ� पहली� व्यक्तिक्त थ� न्दिजान्ह� अपन� किवTर कृ� कृरण ब-रिरस्टर कृ< किडग्रं� ख8न� पड़ी�। सावरकृर पहली� भरता�य थ� न्दिजान्ह न� पRण� स्वता�त्राता कृ< म�ग कृ<। सावरकृर भरता कृ� पहली� व्यक्तिक्त थ� न्दिजान्ह न� सान� 1857 कृ< लीड़ीई कृ8 भरता कृ 'स्वधा�नता सा�ग्रंम'

बताता� हुए लीगभग एकृ हज़ोंर प�ष्ठा कृ इकिताहसा 1907 म� क्तिलीख। सावरकृर भरता कृ� पहली� और दुकिनय कृ� एकृमत्रा ली�खकृ थ� न्दिजानकृ< किकृताब कृ8 7कृक्तिशीता ह8न� कृ�

पहली� ह� किब्रदिटशी और किब्रदिटशीसाम्राज्यकृ< सारकृर न� 7किताब�मिधाता कृर दिदय थ। सावरकृर दुकिनय कृ� पहली� रजान�किताकृ कृ- द� थ�, न्दिजानकृ ममली ह�ग कृ� अ�तारष्ट्र�य न्ययलीय म�

Tली थ। सावरकृर पहली� भरता�य रजान�किताकृ कृ- द� थ�, न्दिजासान� एकृ अछR ता कृ8 म�दिदर कृ प4जार� बनय थ। सावरकृर न� ह� वह पहली भरता�य झ�ड बनय थ, न्दिजासा� जाम�न� म� 1907 कृ< अ�तार�ष्ट्र�य

सा8शीक्तिलीस्ट कृ�ग्रं�सा म� म-डम कृम न� फहरय थ। सावरकृर व� पहली� कृकिव थ�, न्दिजासान� कृलीम-कृग़ज़ों कृ� किबन जा�ली कृ< द�वर पर पत्थर कृ� ट4कृड़ी सा�

कृकिवताय� क्तिलीखe। कृह जाता ह- उन्ह न� अपन� रT� दसा हज़ोंर सा� भ� अमिधाकृ प�क्तिक्तय कृ8 7T�न

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व-दिदकृ साधान कृ� अन4रूप वर्षो�स्म�किता म� सा4रभिक्षाता रख, जाब ताकृ वह किकृसा� न किकृसा� तारह द�शीवक्तिसाय ताकृ नहe पहुT गई।

उन्ह न� अन�कृ ग्रं�थ कृ< रTन कृ<, न्दिजानम� ‘भरता�य स्वता�त्र्य य4द्धा’, म�र आजा�वन कृरवसा’ और ‘अण्डमन कृ< 7किताध्वकिनयj’ (साभ� अ�ग्रं�ज़ों� म�) अमिधाकृ 7क्तिसाद्धा ह�।

जा�ली म� 'किंहEदुत्व' पर शी8धा ग्रं�थ क्तिलीख। 1909 म� क्तिलीख� प4स्ताकृ 'द इ�किडयन वuर ऑफ़ इ�किडप�ड�सा-1857' म� सावरकृर न� इसा लीड़ीई कृ8

किब्रदिटशी सारकृर कृ� ख़ि�लीफ आज़ोंद� कृ< पहली� लीड़ीई र्घ8किर्षोता कृ< थ�।

सावरकृर एकृ 7ख्यता सामजा सा4धारकृ थ�। उनकृ दृढ़ किवश्वसा थ, किकृ सामन्दिजाकृ एव� साव�जाकिनकृ सा4धार बरबर� कृ महत्त्व रखता� ह� व एकृ दूसार� कृ� पRरकृ ह�। सावरकृर जा� कृ< म�त्य4 26 फ़रवर�, 1966 म� म4म्बई म� हुई थ�।

स्व�मा� काराप�त्री� प�ण्याति�सि�

धाम� साम्राट स्वम� कृरपत्रा� जा� महरजा एकृ 7ख्यता भरता�य सा�ता एव� सान्यसा� रजान�ता थ�। धाम�सा�र्घ व अख़िखली भरता�य रम रज्य परिरर्षोद नमकृ रजान-किताकृ पट¥ कृ� सा�स्थपकृ महमकिहम स्वम� कृरपत्रा� कृ8 "किहन्दू धाम� साम्राट" कृ< उपमिधा मिमली�। स्वम� कृरपत्रा� एकृ साच्च� स्वद�शी7�म� व किहन्दू धाम� 7वता�कृ थ�। इनकृ वस्ताकिवकृ नम 'हर नरयण ओझ' थ।

स्वम� श्री� कृ जान्म सा�वता�1964 किवक्रम� (सान� 1907 ईस्व�) म� श्रीवण मसा, शी4क्ली पक्षा, किद्वाता�य कृ8 ग्रंम भटन�, न्दिजाली 7तापगढ़ उत्तार 7द�शी म� सानतान धाम� सारयRपर�ण ब्रह्माण स्व. श्री� रमकिनमिधा ओझ एव� परमधार्मिमEकृ सा4सा�स्त्रिस्क्रता स्व. श्री�मता� क्तिशीवरन� जा� कृ� आjगन म� हुआ। बTपन म� उनकृ नम 'हरिर नरयण' रख गय।

स्वम� श्री� 8-9 वर्षो� कृ< आय4 सा� ह� सात्य कृ< ख8जा ह�ता4 र्घर सा� पलीयन कृरता� रह�। वस्ता4ता� 9 वर्षो� कृ< आय4 म� सा^भग्यवता� कृ4 मर� महद�व� जा� कृ� साथ किववह सा�पन्न ह8न� कृ� पशीTता 16 वर्षो� कृ< अVपय4 म� ग�हत्यग कृर दिदय। उसा� वर्षो� स्वम� ब्रह्मान�द सारस्वता� जा� महरजा सा� न-मिष्ठाकृ ब्रह्माTर� कृ< द�क्षा ली�। हरिर नरयण सा� ' हरिरहर T-तान्य ' बन�।

न-मिष्ठाकृ ब्रह्म्Tरिरय प�किडता श्री� जा�वन दत्ता महरजा जा� सा� सा�स्त्रिस्क्रताध्यय्न र्षोड�दशी�नTय� प�किडता स्वम� श्री� किवश्व�श्वरश्रीम जा� महरजा सा� व्यकृरण शीस्त्रा, दशी�न शीस्त्रा, भगवता, न्ययशीस्त्रा, व�द�ता अध्ययन, श्री� अT4त्म4न� जा� महरजा सा� अध्ययन ग्रंहण किकृय।

17 वर्षो� कृ< आय4 सा� किहमलीय गमन 7र�भ कृर अख�ड साधान, आत्मदशी�न, धाम� सा�व कृ सा�कृVप क्तिलीय। कृशी� धाम म� क्तिशीखसाRत्रा परिरत्यग कृ� बद किवद्वाता, सा�न्यसा 7प्ता किकृय। एकृ ढांई गज़ों कृपड़ी एव� द8 ली�ग8ट� मत्रा रखकृर भय�कृर शी�ता8ष्ण वर्षो� कृ साहन कृरन इनकृ 18 वर्षो� कृ< आय4 म� ह� स्वभव बन गय थ। कित्राकृली स्नन, ध्यन, भजान, पRजान, ता8 Tलीता ह� थ। किवद्यध्ययन कृ< गकिता इतान� ता�व्र थ� किकृ सा�पRण� वर्षो� कृ पठ्यक्रम र्घ�ट और दिदन म� हृदय�गम कृर ली�ता�। ग�गताट पर फR� सा कृ< झ पड़ी� म� एकृकृ< किनवसा, र्घर म� भिभक्षाग्रंहण कृरन�, T^ब�सा र्घ�ट म� एकृ बर। भRमिमशीयन, किनरवण Tरण (पद) यत्रा। ग�गताट नखर म� 7त्य�कृ 7कितापद कृ8 धाRप म� एकृ लीकृड़ी� कृ< किकृली गड कृर एकृ ट�ग सा� खड़ी� ह8कृर तापस्य रता रहता�। T^ब�सा र्घ�ट� व्यता�ता ह8न� पर जाब साRय� कृ< धाRप सा� कृ<ली कृ< छय उसा� स्थन पर पड़ीता�, जाहj 24 र्घ�ट� पRव� थ�, ताब दूसार� प-र कृ आसान बदलीता�। ऐसा� कृठो8र साधान और र्घर म� भिभक्षा कृ� कृरण "कृरपत्रा�" कृहलीए।

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24 वर्षो� कृ< आय4 म� परम तापस्व� 1008 श्री� स्वम� ब्रह्मान�द सारस्वता� जा� महरजा सा� किवमिधावता दण्ड ग्रंहण कृर "अभिभनवशी�कृर" कृ� रूप म� 7कृट्य हुआ। एकृ सा4न्दर आश्रीम कृ< सा�रTन कृर पRण� रूप सा� सा�न्यसा� बन कृर "परमह�सा परिरब्रजाकृTय� 1008 श्री� स्वम� हरिरहरन�द सारस्वता� श्री� कृरपत्रा� जा� महरजा" कृहलीए।

अख़िखली भरता�य रम रज्य परिरर्षोद भरता कृ< एकृ परम्पारवद� किहन्दू पट¥ थ�। इसाकृ< स्थपन स्वम� कृरपत्रा� न� सान� 1948 म� कृ< थ�। इसा दली न� सान� 1952 कृ� 7थम ली8कृसाभ T4नव म� 3 सा�ट� 7प्ता कृ< थ�। सान� 1952, 1957 एवम� 1962 कृ� किवधानसाभ T4नव म� किहन्द� क्षा�त्रा (म4ख्यता: रजास्थन) म� इसा दली न� दजा�न सा�ट� हक्तिसाली कृ< थ�।

साम्पाRण� द�शी म� प-दली यत्राएj कृरता� धाम� 7Tर कृ� क्तिलीए सान 1940 ई० म� "अख़िखली भरता�ए धाम� सा�र्घ" कृ< स्थपन कृ< न्दिजासाकृ दयर सा�कृ4 क्तिTता नहe किकृन्ता4 वह आजा भ� 7ण� मत्रा म� सा4ख शी�किता कृ� क्तिलीए 7यत्नशी�ली ह�। उसाकृ< दृमिष्ट म� सामस्ता जागता और उसाकृ� 7ण� साव�श्वर, भगवन कृ� अ�शी ह� य रूप ह�। उसाकृ� क्तिसाद्धा�ता म� अधार्मिमEकृ कृ नहe अधाम� कृ� नशी कृ8 ह� 7थमिमकृता द� गई ह-। यदिद मन4ष्य स्वय� शी�ता और सा4ख� रहन Tहता ह- ता8 और कृ8 भ� शी�ता और सा4ख� बनन� कृ 7यत्न आवश्यकृ ह-। इसाक्तिलीए धाम� सा�र्घ कृ� हर कृय� कृ8 आदिद अ�ता म� धाम� कृ< जाय ह8, अधाम� कृ नशी ह8, 7भिणय म� साद्भवन ह8, किवश्व कृ कृVयण ह8, ऐसा� पकिवत्रा जायकृर कृ 7य8ग ह8न Tकिहए।

मर्घ शी4क्ली Tता4द�शी� सा�वता 2038 (7 फरवर 1962) कृ8 कृ� दरर्घट वरणसा� म� स्व�च्छु सा� उनकृ� प�T 7ण मह7ण म� किवली�न ह8 गए। उनकृ� किनद�शीन4सार उनकृ� नश्वर पर्थिथEव शीर�र कृ कृ� दरर्घट स्थिस्थता श्री� ग�ग महरन� कृ8 पवन ग8द म� जाली सामधा� द� गई|

आशा� दशामा� व्र�-का�� इसा व्रता कृ� कृरन� सा� मन8कृमनए� पRण� ह8ता� ह�. कृन्य श्री�ष्ठा वर 7प्ता कृरता� ह-, ब्रह्माण किनर्तिवEघ्न यज्ञा सा�पन्न कृर पता� ह�, र8ग� र8गम4क्त ह8 जाता ह-, और पकिता कृ� यत्रा 7वसा पर जान� पर और जाVद� न आन� पर स्त्रा� इसा व्रता कृ� द्वार अपन� पकिता कृ8 शी�घ्र 7प्ता कृर साकृता� ह-. क्तिशीशी4 र8ग म� इसा व्रता सा� लीभ ह8ता ह-.भगवन श्री�कृ� ष्ण कृहता� ह-- पथ�, अब म� आपसा� आशीदशीम� व्रता-कृथ एव� उसाकृ� किवधान कृ वण�न कृर रह हूंj. 7T�न कृली म� किनर्षोधा द�शी म� एकृ रजा रज्य कृरता� थ�, उनकृ नम नली थ. उनकृ� भई प4ष्कृर न� जाब उन्ह� द्य4ता (जाRआ) म� हर दिदय ताब रजा नली अपन� रन� दमय�ता� कृ� साथ रज्य सा� बहर Tली� गए. व� 7कितादिदन एकृ वन सा� दुसार� वन म� किवTरण कृरता� रहता� थ�. कृ� वली जाली पर ग4जार कृर रह� थ�. साRनसान जा�गली म� र्घ4ट� रहन ह� इनकृ भग्य बन TRकृ थ. एकृ बर रजा न� स्वण� सा� कृन्तिन्ता वली� कृ4 छ पभिक्षाय कृ8 द�ख. उन्ह� पकृड़ीन� कृ< इच्छु सा� रजा न� उनकृ� ऊपर वस्त्रा फ- लीय परन्ता4 क्तिTकिडय उनकृ वस्त्रा ली�कृर उड़ी गई. इसासा� रजा बड़ी� दुख� हुए. दमय�ता� क्र8धा कृर साकृता� ह�, इसा�क्तिलीए दमय�ता� कृ8 गढ़� किनद्र म� छ8ड़ीकृर रजा नली Tली� गए.दमय�ता� न� किनद्र सा� उठोकृर नली कृ8 न पकृर अत्य�ता दुख� ह8 गय� और तारह-तारह कृ< आशी�कृओं सा� उनकृ मन भर गय. व8 फफकृ-फफकृ कृर उसा किनजा�न जा�गली म� र8न� लीगe. वह इधार-उधार पRर� जा�गली म� रजा नली कृ< ख8जा म� भटकृन� लीगe. इसा 7कृर कृई दिदन और कृई रता� ब�ता गयe. भटकृता� हुए व8 एकृ नगर T�दिदद�शी पहुjTe. वह� वह उन्मत्ता-सा� रहन� लीगe और अपन मनक्तिसाकृ सा�ता4लीन भ� धा�र�-धा�र� ख8न� लीगe. छ8ट�-छ8ट� बच्च� उन्ह� कृ^ता4हलीवशी र्घ�र� रहता� थ�. एकृदिदन उसा द�शी कृ< रजामता कृ< नजार दमय�ता� पर पड़ी�. उसा सामय T�द्रम कृ< र�ख कृ� सामन उनकृ शीर�र ट�ढ़ ह8 TRकृ थ, ली�किकृन उनकृ म4खम�डली Tमकृ रह थ. रजामता कृ� पRछन� पर दमय�ता� न� कृह-म� किववकिहता हूंj. म� न किकृक्तिसासा कृ� Tरण धा8ता� हूंj और न ह� जाRठो भक्षाण कृरता� हूंj. यहj रहता� हुए यदिद कृ8ई म4झ� 7प्ता कृरन� कृ< कृ8क्तिशीशी कृर�ग ता8 व8

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आपकृ� द्वार द�ड कृ भग� ह8न Tकिहए. रजामता, इसा 7किताज्ञा कृ� साथ म� यहj रह साकृता� हूंj. रजामता न� इसा� स्व�कृर कृर क्तिलीय. कृ4 छ सामय ब�ता जान� कृ� पश्चता एकृ ब्रह्माण उसा� अपन� साथ अपन� परिरवर म� ली� आय. साभ� कृ4 छ उपलीब्ध रहन� कृ� बद भ� रजा नली कृ� किबन उसाकृ जा�वन साRन थ. एकृ बर दमय�ता� न� ब्रह्माण सा� कृह कृ< आप कृ8ई ऐसा दन-व्रता आदिद म4झ� कृह� न्दिजासासा� म� अपन ख8य सा4हग किफर सा� 7प्ता कृर साकृR� . ताब उसा किवद्वान ब्रह्माण न� उसा� आशी दशीम� कृ व्रता रखन� कृ< सालीह द�. ताब दमय�ता� न� किवमिधा पRव�कृ आशी दशीम� कृ व्रता पRजान किकृय और रजा नली कृ8 7प्ता किकृय. भगवन श्री� कृ� ष्ण न� आग� कृह- ह� रजान, इसा व्रता कृ� 7भव सा� रजाप4त्रा अपन रज्य, कृ� किर्षो, ख�ता�, वकिनकृ व्यपर म� लीभ, प4त्राथ� प4त्रा ताथ मन4ष्य धाम�, अथ�, कृम कृ< क्तिसान्दिद्धा 7प्ता कृरता� ह�.

भगो� सिंस$ह-स�खद�व-रा�जागो�रु शाह�द दिदवस

भगतासिंसाEह कृ जान्म 27 क्तिसाता�बर, 1907 कृ8 प�जाब कृ� न्दिज़ोंली लीयलीप4र म� ब�ग गjव (पकिकृस्तान) म� हुआ थ, एकृ द�शीभक्त क्तिसाख परिरवर म� हुआ थ, न्दिजासाकृ अन4कृR ली 7भव उन पर पड़ी थ। भगतासिंसाEह कृ� किपता 'सारदर किकृशीन सिंसाEह' एव� उनकृ� द8 TT 'अजा�तासिंसाEह' ताथ 'स्वण�सिंसाEह' अ�ग्रं�ज़ों कृ� ख़ि�लीफ ह8न� कृ� कृरण जा�ली म� बन्द थ� । न्दिजासा दिदन भगतासिंसाEह प-द हुए उनकृ� किपता एव� TT कृ8 जा�ली सा� रिरह किकृय गय । इसा शी4भ र्घड़ी� कृ� अवसार पर भगतासिंसाEह कृ� र्घर म� ख4शी� और भ� बढ़ गय� थ� । भगतासिंसाEह कृ< दद� न� बच्च� कृ नम 'भग� वली' (अच्छु� भग्य वली) रख । बद म� उन्ह� 'भगतासिंसाEह' कृह जान� लीग । व� 14 वर्षो� कृ< आय4 सा� ह� प�जाब कृ< क्रन्तिन्ताकृर� सा�स्थओं म� कृय� कृरन� लीग� थ�। ड�.ए.व�. स्कृR ली सा� उन्ह न� नवe कृ< पर�क्षा उत्ता�ण� कृ<। 1923 म� इ�टरम�किडएट कृ< पर�क्षा पसा कृरन� कृ� बद उन्ह� किववह बन्धन म� बjधान� कृ< ता-यरिरयj ह8न� लीग� ता8 व� लीह^र सा� भगकृर कृनप4रआ गय�।सा4खद�व थपर कृ जान्म प�जाबकृ� शीहर लीयलीप4र म� श्री�य4ता� रमलीली थपर व श्री�मता� रVली� द�व� कृ� र्घर किवक्रम� साम्वता 1964 कृ� फVग4न मसा म� शी4क्ली पक्षा साप्ताम� तादन4सार 15 मई 1907 कृ8 अपरन्ह प^न� ग्यरह बजा� हुआ थ । जान्म सा� ता�न मह पRव� ह� किपता कृ स्वग�वसा ह8 जान� कृ� कृरण इनकृ� ताऊ अक्तिTन्तारम न� इनकृ पलीन प8र्षोण कृरन� म� इनकृ< मता कृ8 पRण� साहय8ग किकृय। सा4खद�व कृ< ताय� जा� न� भ� इन्ह� अपन� प4त्रा कृ< तारह पली। इन्ह न� भगता सिंसाEह, कृuमर�ड रमTन्द्र एवम� भगवता� Tरण ब8हरकृ� साथ लीह^र म� न^जावन भरता साभकृ गठोन किकृय थ ।लीली लीजापता रय कृ< म^ता कृ बदली ली�न� कृ� क्तिलीय� जाब य8जान बन� ता8 साण्डसा� कृ वधा कृरन� म� इन्ह न� भगता सिंसाEह ताथ रजाग4रु कृ पRर साथ दिदय थ। यह� नहe, सान� 1929 म� जा�ली म� कृ- दिदय कृ� साथ अमनव�य व्यवहर किकृय� जान� कृ� किवर8धा म� रजान�किताकृ बन्दिन्दय द्वार कृ< गय� व्यपकृ हड़ीताली म� बढां-Tढांकृर भग भ� क्तिलीय थ |क्तिशीवरम हरिर रजाग4रु कृ जान्म भद्रपद कृ� कृ� ष्णपक्षा कृ< त्राय8दशी� साम्वता� 1965 (किवक्रम�) तादन4सार सान� 1908 म� प4ण� न्दिजाली कृ� ख�ड गjव म� हुआ थ । 6 वर्षो� कृ< आय4 म� किपता कृ किनधान ह8 जान� सा� बहुता छ8ट� उम्रा म� ह� य� वरणसा� किवद्यध्ययन कृरन� एव� सा�स्कृ� तासा�खन� आ गय� थ� । इन्ह न� किहन्दूधाम�-ग्रं�न्थों ताथ व�द8 कृ अध्ययन ता8 किकृय ह� लीर्घ4 क्तिसाद्धान्ता कृ^म4द� जा-सा स्थिक्लीष्ट ग्रंन्थों बहुता कृम आय4 म� कृण्ठोस्थ कृर क्तिलीय थ। इन्ह� कृसारता (व्ययम) कृ ब�हद शी^कृ थ और छत्रापकिता क्तिशीवजा� कृ< छपमर य4द्धा-शी-ली� कृ� बड� 7शी�साकृ थ� ।

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द�शी कृ< स्वता�त्राता कृ� क्तिलीए अख़िखली भरता�य स्तार पर क्रन्तिन्ताकृर� दली कृ प4नग�ठोन कृरन� कृ श्री�य सारदर भगतासिंसाEह कृ8 ह� जाता ह-। उन्ह न� कृनप4र कृ� '7ताप' म� 'बलीव�ता सिंसाEह' कृ� नम सा� ताथ दिदVली� म� 'अजा4�न' कृ� साम्पादकृ<य किवभग म� 'अजा4�न सिंसाEह' कृ� नम सा� कृ4 छ सामय कृम किकृय और अपन� कृ8 'न^जावन भरता साभ' सा� भ� साम्बद्धा रख।

1919 म� रuली�क्ट एक्ट कृ� किवर8धा म� सा�पRण� भरता म� 7दशी�न ह8 रह� थ� और इसा� वर्षो� 13 अ7-ली कृ8 जाक्तिलीय�वली बग़ कृण्ड हुआ । इसा कृण्ड कृ सामTर सा4नकृर भगतासिंसाEह लीह^र सा� अम�तासार पहु�T�। द�शी पर मर-मिमटन� वली� शीह�द कृ� 7किता श्रीध्द�जाक्तिली द� ताथ रक्त सा� भ�ग� मिमट्टी� कृ8 उन्ह न� एकृ ब8ताली म� रख क्तिलीय, न्दिजासासा� साद-व यह यद रह� किकृ उन्ह� अपन� द�शी और द�शीवक्तिसाय कृ� अपमन कृ बदली ली�न ह- ।1920 कृ� महत्म ग�धा� कृ� असाहय8ग आ�द8लीन सा� 7भकिवता ह8कृर 1921 म� भगतासिंसाEह न� स्कृR ली छ8ड़ी दिदय। असाहय8ग आ�द8लीन सा� 7भकिवता छत्रा कृ� क्तिलीए लीली लीजापता रय न� लीह^र म� 'न�शीनली कृuली�जा' कृ< स्थपन कृ< थ�। इसा� कृuली�जा म� भगतासिंसाEह न� भ� 7व�शी क्तिलीय। 'प�जाब न�शीनली कृuली�जा' म� उनकृ< द�शीभक्तिक्त कृ< भवन फलीन�-फR लीन� लीग�। इसा� कृuली�जा म� ह� यशीपली, भगवता�Tरण, सा4खद�व, ता�थ�रम, झण्डसिंसाEह आदिद क्र�किताकृरिरय सा� सा�पकृ� हुआ। कृuली�जा म� एकृ न�शीनली नटकृ क्लीब भ� थ। इसा� क्लीब कृ� मध्यम सा� भगतासिंसाEह न� द�शीभक्तिक्तपRण� नटकृ म� अभिभनय भ� किकृय। य� नटकृ थ�-

1. रण 7ताप,2. भरता-दुद�शी और3. साम्राट Tन्द्रग4प्ता।

व� 'Tन्द्रशी�खर आज़ोंद' जा-सा महन क्रन्तिन्ताकृर� कृ� साम्पाकृ� म� आय� और बद म� उनकृ� 7गढ़ मिमत्रा बन गय�। 1928 म� 'सा�डसा� हत्यकृण्ड' कृ� व� 7म4ख नयकृ थ�। 8 अ7-ली, 1929 कृ8 ऐकिताहक्तिसाकृ 'असा�म्बली� बमकृण्ड' कृ� भ� व� 7म4ख अभिभय4क्त मन� गय� थ�। जा�ली म� उन्ह न� भRख हड़ीताली भ� कृ< थ�। वस्ताव म� इकिताहसा कृ एकृ अध्यय ह� भगतासिंसाEह कृ� साहसा, शी^य�, दृढ़ साकृ� Vप और बक्तिलीदन कृ< कृहकिनय सा� भर पड़ी ह-।23 मT� 1931 कृ< रता भगता सिंसाEह, सा4खद�व और रजाग4रु द�शीभक्तिक्त कृ8 अपरधा कृहकृर फ�सा� पर लीटकृ दिदए गए। यह भ� मन जाता ह- किकृ म�त्य4द�ड कृ� क्तिलीए 24 मT� कृ< सा4बह ह� ताय थ�, ली�किकृन जान र8र्षो सा� डर� सारकृर न� 23-24 मT� कृ< मध्यरकित्रा ह� इन व�र कृ< जा�वनली�ली सामप्ता कृर द� और रता कृ� अ�धा�र� म� ह� साताली4जा कृ� किकृनर� उनकृ अ�किताम सा�स्कृर भ� कृर दिदय। 'लीह^र र्षोड़ीय�त्रा' कृ� म4क़दम� म� भगतासिंसाEह कृ8 फ़jसा� कृ< साज़ों मिमली� ताथ कृ� वली 24 वर्षो� कृ< आय4 म� ह�, 23 मT� 1931 कृ< रता म� उन्ह न� हjसाता�-हjसाता� सा�सार सा� किवद ली� ली�। भगतासिंसाEह कृ� उदय सा� न कृ� वली अपन� द�शी कृ� स्वता�त्राता सा�र्घर्षो� कृ8 गकिता मिमली� वरन� नवय4वकृ कृ� क्तिलीए भ� 7�रण स्रो8ता क्तिसाद्धा हुआ। व� द�शी कृ� सामस्ता शीह�द कृ� क्तिसारम^र थ�। 24 मT� कृ8 यह सामTर जाब द�शीवक्तिसाय कृ8 मिमली ता8 ली8ग वह� पहु�T�, जाह� इन शीह�द कृ< पकिवत्रा रख और कृ4 छ अस्थिस्थय� पड़ी� थe। द�शी कृ� द�वन� उसा रख कृ8 ह� क्तिसार पर लीगए उन अस्थिस्थय कृ8 सा�भली� अ�ग्रं�ज़ों� साम्राज्य कृ8 उखड़ी फ� कृन� कृ सा�कृVप ली�न� लीग�। द�शी और किवद�शी कृ� 7म4ख न�ताओं और पत्रा न� अ�ग्रं�ज़ों� सारकृर कृ� इसा कृली� कृरनम� कृ< ता�व्र किंनEद कृ<।

गो�रु गो�राखनी�� जायान्��

महय8ग� ग8रखनथ मध्यय4ग (11 वe शीताब्द� अन4मकिनता) कृ� एकृ किवक्तिशीष्ट महप4रुर्षो थ�। ग8रखनथ कृ� ग4रु मत्स्य�न्द्रनथ (मछ�दरनथ) थ�। इन द8न न� नथ साम्प्रदय कृ8 सा4व्यवस्थिस्थता कृर इसाकृ किवस्तार किकृय। इसा साम्प्रदय कृ� साधाकृ ली8ग कृ8 य8ग�, अवधाRता, क्तिसाद्धा, और्घड़ी कृह जाता ह-।

ग4रु ग8रखनथ हठोय8ग कृ� आTय� थ�। कृह जाता ह- किकृ एकृ बर ग8रखनथ साममिधा म� ली�न थ�। इन्ह� गहन

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साममिधा म� द�खकृर मj पव�ता� न� भगवन क्तिशीव सा� उनकृ� बर� म� पRछ। क्तिशीवजा� ब8ली�, ली8ग कृ8 य8ग क्तिशीक्षा द�न� कृ� क्तिलीए ह� उन्ह न� ग8रखनथ कृ� रूप म� अवतार क्तिलीय ह-। इसाक्तिलीए ग8रखनथ कृ8 क्तिशीव कृ अवतार भ� मन जाता ह-। इन्ह� T^रसा� क्तिसाद्धा म� 7म4ख मन जाता ह-। इनकृ� उपद�शी म� य8ग और शी-व ता�त्रा कृ साम�जास्य ह-। य� नथ साकिहत्य कृ� आरम्भाकृता� मन� जाता� ह�। ग8रखनथ कृ< क्तिलीख� गद्य-पद्य कृ< Tली�सा रTनओं कृ परिरTय 7प्ता ह-। इनकृ< रTनओं ताथ साधान म� य8ग कृ� अ�ग किक्रय-य8ग अथ�ता� ताप, स्वध्यय और ईश्वर 7भिणधान कृ8 अमिधाकृ महत्व दिदय ह-। ग8रखनथ कृ मनन थ किकृ क्तिसान्दिद्धाय कृ� पर जाकृर शीRन्य साममिधा म� स्थिस्थता ह8न ह� य8ग� कृ परम लीक्ष्य ह8न Tकिहए। शीRन्य साममिधा अथ�ता� साममिधा सा� म4क्त ह8 जान और उसा परम क्तिशीव कृ� सामन स्वय� कृ8 स्थकिपता कृर ब्रह्माली�न ह8 जान, जाहj पर परम शीक्तिक्त कृ अन4भव ह8ता ह-। हठोय8ग� कृ4 दरता कृ8 T4न^ता� द�कृर कृ4 दरता कृ� सार� किनयम सा� म4क्त ह8 जाता ह- और जा8 अदृश्य कृ4 दरता ह-, उसा� भ� लीjर्घकृर परम शी4द्धा 7कृशी ह8 जाता ह-।

ग8रखनथ कृ� जा�वन सा� साम्ब�मिधाता एकृ र8Tकृ कृथ इसा 7कृर ह-- एकृ रजा कृ< कि7य रन� कृ स्वग�वसा ह8 गय। शी8कृ कृ� मर� रजा कृ ब4र हली थ। जा�न� कृ< उसाकृ< इच्छु ह� सामप्ता ह8 गई। वह भ� रन� कृ< क्तिTता म� जालीन� कृ< ता-यर� कृरन� लीग। ली8ग सामझ-ब4झकृर थकृ गए पर वह किकृसा� कृ< बता सा4नन� कृ8 ता-यर नहe थ। इतान� म� वह� ग4रु ग8रखनथ आए। आता� ह� उन्ह न� अपन� ह�ड� न�T� पटकृ द� और जा8र-जा8र सा� र8न� लीग गए। रजा कृ8 बहुता आश्चय� हुआ। उसान� सा8T किकृ वह ता8 अपन� रन� कृ� क्तिलीए र8 रह ह-, पर ग8रखनथ जा� क्य र8 रह� ह�। उसान� ग8रखनथ कृ� पसा आकृर पRछ, 'महरजा, आप क्य र8 रह� ह�?' ग8रखनथ न� उसा� तारह र8ता� हुए कृह, 'क्य कृरू� ? म�र साव�नशी ह8 गय। म�र� ह�ड� टRट गई ह-। म� इसा� म� भिभक्षा म�गकृर खता थ। ह�ड� र� ह�ड�।' इसा पर रजा न� कृह, 'ह�ड� टRट गई ता8 इसाम� र8न� कृ< क्य बता ह-? य� ता8 मिमट्टी� कृ� बता�न ह�। साधा4 ह8कृर आप इसाकृ< इतान� सिंTEता कृरता� ह�।' ग8रखनथ ब8ली�, 'ता4म म4झ� सामझ रह� ह8। म� ता8 र8कृर कृम Tली रह हूं� ता4म ता8 मरन� कृ� क्तिलीए ता-यर ब-ठो� ह8।' ग8रखनथ कृ< बता कृ आशीय सामझकृर रजा न� जान द�न� कृ किवTर त्यग दिदय।

कृह जाता ह- किकृ रजाकृ4 मर बप्प रवली जाब किकृशी8र अवस्थ म� अपन� साक्तिथय कृ� साथ रजास्थन कृ� जा�गली म� क्तिशीकृर कृरन� कृ� क्तिलीए गए थ�, ताब उन्ह न� जा�गली म� सा�ता ग4रू ग8रखनथ कृ8 ध्यन म� ब-ठो� हुए पय। बप्प रवली न� सा�ता कृ� नजाद�कृ ह� रहन शी4रू कृर दिदय और उनकृ< सा�व कृरता� रह�। ग8रखनथ जा� जाब ध्यन सा� जाग� ता8 बप्प कृ< सा�व सा� ख4शी ह8कृर उन्ह� एकृ तालीवर द� न्दिजासाकृ� बली पर ह� क्तिTत्ता^ड़ी रज्य कृ< स्थपन हुई।

ग8रखनथ जा� न� न�पली और पकिकृस्तान म� भ� य8ग साधान कृ<। पकिकृस्तान कृ� सिंसाEधा 7न्ता म� स्थिस्थता ग8रख पव�ता कृ किवकृसा एकृ पय�टन स्थली कृ� रूप म� किकृय जा रह ह-। इसाकृ� किनकृट ह� झ�लीम नद� कृ� किकृनर� रjझ न� ग8रखनथ सा� य8ग द�क्षा ली� थ�। न�पली म� भ� ग8रखनथ सा� साम्ब�मिधाता कृई ता�थ� स्थली ह�। उत्तार7द�शी कृ� ग8रखप4र शीहर कृ नम ग8रखनथ जा� कृ� नम पर ह� पड़ी ह-। यहj पर स्थिस्थता ग8रखनथ जा� कृ म�दिदर दशी�न�य ह-।

शातिनी प्रद�ष व्र�जाब 7द8र्षो व्रता शीकिनवर कृ� दिदन पड़ीता ह-, ता8 इसा� शीकिन 7द8र्षो व्रता कृ� नम सा� जान जाता ह-। शीकिनद�व नवग्रंह म� सा� एकृ ह� और शीस्त्रा म� वण�न ह- किकृ इनकृ कृ8प अत्यन्ता भय�कृर ह8ता ह-। किकृन्ता4 प4रण कृ� अन4सार शीकिन 7द8र्षो व्रता कृरन� सा� शीकिन द�व कृ 7कृ8प शीन्ता ह8 जाता ह-। न्दिजान ली8ग पर साढ़�साता� और ढां-य कृ 7भव ह8, उनकृ� क्तिलीए शीकिन 7द8र्षो व्रता कृरन किवशी�र्षो किहताकृर� मन गय ह-। इसा दिदन किवमिधा-किवधान सा� यह व्रता कृरन शीकिनद�व कृ< कृ� प 7प्ता कृरन� कृ एकृ शीस्त्रासाम्मता आसान उपय ह-। ऐसा कृरन� सा� न क्तिसाफ़� शीकिन कृ� कृरण ह8न� वली� पर�शीकिनयj दूर ह8ता� ह�, बल्किVकृ शीकिनद�व कृ आशी�व�द भ� मिमलीता ह- न्दिजासासा� साभ� मन8कृमनएj पRर� ह8ता� ह�। शीकिन 7द8र्षो वली� दिदन जा8 जाताकृ शीकिन कृ< वस्ता4ओं जा-सा� ली8ह, ता-ली, किताली, कृली�

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उड़ीद, कृ8यली और कृम्बली आदिद कृ दन कृरता ह-, शीकिन-म�दिदर म� जाकृर ता-ली कृ दिदय जालीता ह- ताथ उपवसा कृरता ह-, शीकिनद�व उसासा� 7सान्न ह8कृर उसाकृ� सार� दु�ख कृ8 हर ली�ता� ह�।

शीस्त्रा म� वर्णिणEता ह- किकृ सा�तान कृ< कृमन रखन� वली� दम्पाभित्ता कृ8 शीकिन 7द8र्षो व्रता अवश्य रखन Tकिहए। इसाम� कृ8ई सा�शीय नहe ह- किकृ यह व्रता शी�घ्र ह� सा�तान द�न� वली ह-। सा�तान-7न्तिप्ता कृ� क्तिलीए शीकिन 7द8र्षो वली� दिदन सा4बह स्नन कृरन� कृ� पश्चता पकिता-पत्न� कृ8 मिमलीकृर क्तिशीव-पव�ता� और पव�ता�-नन्दन गण�शी कृ< पRजा-अT�न कृरन� Tकिहए और क्तिशीवसिंलीEग पर जालीभिभर्षो�कृ कृरन Tकिहए। इसाकृ� उपरन्ता शीकिनद�व कृ< कृ� प 7प्ता कृरन� कृ� क्तिलीए किकृसा� प�पली कृ� व�क्षा कृ< जाड़ी म� जाली Tढ़न Tकिहए। साथ ह� उन्ह� पRर� दिदन किबन अन्न-जाली ग्रंहण किकृए उपवसा कृरन Tकिहए। ऐसा कृरन� सा� जाVद� ह� सा�तान कृ< 7न्तिप्ता ह8ता� ह-।

शीकिन 7द8र्षो व्रता म� साधाकृ कृ8 सा�ध्य-कृली म� भगवन कृ भजान-पRजान कृरन Tकिहए और क्तिशीवसिंलीEग कृ जाली और किबVव कृ< पभित्ताय सा� अभिभर्षो�कृ कृरन Tकिहए। साथ ह� इसा दिदन महम�त्य4�जाय-म�त्रा कृ� जाप कृ भ� किवधान ह-। इसा दिदन 7द8र्षो व्रता कृथ कृ पठो कृरन Tकिहए और पRजा कृ� बद भभRता कृ8 मस्ताकृ पर लीगन Tकिहए। शीस्त्रा कृ� अन4सार जा8 साधाकृ इसा तारह शीकिन 7द8र्षो व्रता कृ पलीन कृरता ह-, उसाकृ� साभ� कृष्ट सामप्ता ह8 जाता� ह� और साम्पाRण� इच्छुएj पRर� ह8ता� ह�।

अक्षया नीवमा�कृर्तिताEकृ मसा कृ� शी4क्ली पक्षा कृ< नवम� कृ8 अक्षाय नवम� रूप म� मनय जाता ह-, इसा� आ�वली नवम� भ� कृहता� ह�| अक्षाय नवम� कृ� दिदन स्नन, पRजान, ताप�ण ताथ अन्नदन कृरन� सा� हर मन8कृमन पRर� ह8ता� ह-। इसा दिदन किकृय गय जाप, ताप, दन इत्यदिद व्यक्तिक्त कृ8 साभ� पप सा� म4क्त कृरता ह- ताथ साभ� इच्छुओं कृ< पRर्तिताE कृरन� वली ह8ता ह-| मन्यता ह- किकृ द्वापरय4ग कृ आर�भ भ� इसा� दिदन हुआ थ| इसा दिदन आ�वली� कृ� व�क्षा कृ< पRजा कृरन� कृ किवधान ह-| धार्मिमEकृ मन्यताओं कृ� अन4सार आ�वली� कृ� व�क्षा म� साभ� द�वताओं कृ किनवसा ह8ता ह- ताथ यह फली भगवन किवष्ण4 कृ8 भ� अकिता कि7य ह-|

अक्षया नीवमा� का� माहत्व-

कृर्तिताEकृ शी4क्ली पक्षा कृ< आ�वली नवम� कृ धार्मिमEकृ महत्व बहुता मन गय ह-| एकृ बर भगवन किवष्ण4 सा� पRछ गय किकृ कृक्तिलीय4ग म� मन4ष्य किकृसा 7कृर सा� पप म4क्त ह8 साकृता ह-। भगवन न� इसा 7श्न कृ� जावब म� कृह किकृ जा8 7ण� अक्षाय नवम� कृ� दिदन म4झ� एकृग्रं ह8 कृर ध्यन कृर�ग, उसा� तापस्य कृ फली मिमली�ग। यह� नहe शीस्त्रा म� ब्रह्मा हत्य कृ8 र्घ8र पप बताय गय ह-। यह पप कृरन� वली अपन� दुष्कृम� कृ फली अवश्य भ8गता ह-, ली�किकृन अगर वह अक्षाय नवम� कृ� दिदन स्वण�, भRमिम, वस्त्रा एव� अन्नदन कृर� और वह आ�वली� कृ� व�क्षा कृ� न�T� ली8ग कृ8 भ8जान कृरए, ता8 इसा पप सा� म4क्त ह8 साकृता ह-।

आजा किकृय गय ग^, स्वण� ताथ वस्त्रा कृ दन अम8र्घ फलीदयकृ ह8ता ह-| इन वस्ता4ओं कृ दन द�न� सा� ब्रह्माण हत्य, ग^ हत्य जा-सा� महपप सा� बT जा साकृता ह-| Tरकृ सा�किहता म� इसाकृ� महत्व कृ8 व्यक्त किकृय गय ह-| न्दिजासाकृ� अन4सार कृर्तिताEकृ शी4क्ली नवम� कृ� दिदन ह� महर्तिर्षोE च्यवन कृ8 आ�वली कृ� सा�वन सा� प4नन�व ह8न� कृ वरदन 7प्ता हुआ थ|

अक्षया नीवमा� का+ का��-

7T�न सामय कृ< बता ह-, कृशी� नगर� म� एकृ व-श्य रहता थ| वह बहुता ह� धाम� कृम� कृ8 मनन� वली धाम�त्म प4रूर्षो थ, किंकृEता4 उसाकृ� कृ8ई सा�तान न थ�| इसा कृरण उसा वभिणकृ कृ< पत्न� बहुता दुख� रहता� थ�| एकृ बर किकृसा� न� उसाकृ< पत्न� कृ8 कृह किकृ यदिद वह किकृसा� बच्च� कृ< बक्तिली भ-रव बब कृ� नम पर Tढां¾ए ता8 उसा� अवश्य प4त्रा कृ< 7न्तिप्ता ह8ग�| स्त्रा� न� यह बता अपन� पकिता सा� कृह� पर�ता4 वभिणकृ न� ऐसा कृय� कृरन� सा� मन कृर दिदय, किंकृEता4 उसाकृ< पत्न� कृ� मन म� यह बता र्घर कृर गई ताथ सा�तान 7न्तिप्ता कृ< इच्छु कृ� क्तिलीए उसान� किकृसा�

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बच्च� कृ< बली� द� द�, पर�ता4 इसा पप कृ परिरणम अच्छु कृ- सा� ह8 साकृता थ अता: उसा स्त्रा� कृ� शीर�र म� कृ8ढ़ उत्पन्न ह8 गय और म�ता बच्च� कृ< आत्म उसा� सातान� लीग�|

उसा स्त्रा� न� यह बता अपन� पकिता कृ8 बताई| हलीjकिकृ पहली� ता8 पकिता न� उसा� खRब दुत्कृर ली�किकृन किफर उसाकृ< दशी पर उसा� दय भ� आई| वह अपन� पत्न� कृ8 ग�ग स्नन एव� पRजान कृ� क्तिलीए कृहता ह-, ताब उसाकृ< पत्न� ग�ग कृ� किकृनर� जा कृर ग�ग जा� कृ< पRजा कृरन� लीगता� ह-| एकृ दिदन मj ग�ग व�द्धा स्त्रा� कृ व�शी धारण किकृए उसा स्त्रा� कृ� सामक्षा आता� ह- और उसा सा�ठो कृ< पत्न� कृ8 कृहता� ह- किकृ यदिद वह मथ4र म� जाकृर कृर्तिताEकृ नवम� कृ व्रता एव� पRजान कृर� ता8 उसाकृ� साभ� पप सामप्ता ह8 जाए�ग�| ऎसा सा4नकृर वभिणकृ कृ< पत्न� मथ4र म� जाकृर किवमिधा किवधान कृ� साथ नवम� कृ पRजान कृरता� ह- और भगवन कृ< कृ� प सा� उसाकृ� साभ� पप क्षाय ह8 जाता� ह� ताथ उसाकृ शीर�र पहली� कृ< भjकिता स्वस्थ ह8 जाता ह-, उसा� सा�तान रूप म� प4त्रा रत्न कृ< 7न्तिप्ता ह8ता� ह-|

7ता:कृली स्नन कृर आ�वली� कृ� व�क्षा कृ< पRजा कृ< जाता� ह-| पRजा कृरन� कृ� क्तिलीए आjवली� कृ� व�क्षा कृ< पRव� दिदशी कृ< ओर उन्म4ख ह8कृर शी8ड�र्षो8पTर पRजान कृर�| दकिहन� हथ म� जाली, Tवली, प4ष्प आदिद ली�कृर व्रता कृ सा�कृVप कृर� किफर आ�वली� कृ� व�क्षा कृ� न�T� पRव� दिदशी कृ< ओर म4ख कृरकृ� ऊj धात्र्य- नम: म�त्रा सा� आवहनदिद र्षो8डशी8पTर पRजान कृरकृ� आ�वली� कृ� व�क्षा कृ< जाड़ी म� दूधा कृ< धार किगरता� हुए किपतार कृ ताप�ण कृर�. आ�वली� कृ� व�क्षा कृ� न�T� ब्रह्माण- भ8जान भ� कृरन Tकिहए और अन्ता म� स्वय� भ� आ�वली� कृ� व�क्षा कृ� न�T� ब-ठोकृर भ8जान कृरन Tकिहए। किपतार कृ� शी�ताकिनवरण कृ� क्तिलीए यथशीक्तिक्त कृ� बली आदिद ऊण�वस्त्रा भ� सात्पत्रा ब्रह्माण कृ8 द�न Tकिहए। अगर र्घर म� आ�वली� कृ व�क्षा न ह8 ता8 किकृसा� बग�T� म� य गमली� म� आ�वली� कृ प^धा लीग कृर यह कृय� साम्पान्न कृरन Tकिहए|नवम� कृ� दिदन य4गली उपसान कृरन� सा� भक्त शीन्तिन्ता, साद्भव, सा4ख और व�शी व�न्दिद्धा कृ� साथ प4नजा�न्म कृ� ब�धान सा� म4क्तिक्त 7प्ता कृरन� कृ अमिधाकृर� बनता ह-। 7भ4 कृ दिदय धाम� ह� जा�व कृ8 किनयम कृ< सा�ख द�ता ह-। जा8 मन4ष्य क़नRन कृ� द�ड सा� नहe डरता� उन्ह� यह रह दिदखता ह-। किनयम सा� साक्षात्कृर कृरन� कृ� क्तिलीए 7भ4 न� अक्षाय नवम� परिरक्रम कृर असात्य कृ शी�खनद और एकृदशी� परिरक्रम कृरकृ� अभय कृरन� कृ� क्तिलीए 7भ4 श्री� कृ� ष्ण न� ब्रजावक्तिसाय कृ व�हद सामगम किकृय।

मा�ला� ख�टू श्या�माजा�

खटR श्यम बब�र�कृकृ� रूप ह-। श्री�कृ� ष्णन� ह� बब�र�कृ कृ8 खटRश्यमजा� नम दिदय थ। भगवन श्री�कृ� ष्ण कृ� कृलीय4ग� अवतार खटR श्यमजा� खटR म� किवरन्दिजाता ह�। व�र र्घट8त्कृT और म^रव� कृ8 एकृ प4त्रारतान कृ< 7न्तिप्ता हुई न्दिजासाकृ� बली बब्बर शी�र कृ< तारह ह8न� कृ� कृरण इनकृ नम बब�र�कृ रख गय। बब�र�कृ कृ8 आजा हम खटR कृ� श्यम, कृलीय4ग कृ� अवतार, श्यम सारकृर, ता�न बणधार�, शी�शी कृ� दन�, खटR नर�शी व अन्य अनकिगनता नम सा� जानता� व मनता� ह�। कृ� ष्ण व�र बब�र�कृ कृ� महन बक्तिलीदन सा� कृफ़< 7सान्न हुय� और वरदन दिदय किकृ कृक्तिलीय4ग म� ता4म श्यम नम सा� जान� जाओग�, क्य किकृ कृक्तिलीय4ग म� हर� हुय� कृ साथ द�न� वली ह� श्यम नम धारण कृरन� म� सामथ� ह-। खटRनगर ता4म्हर धाम बन�ग और उनकृ शी�शी खटRनगर म� दफ़नय गय।

ब्रह्माण न� बलीकृ बब�र�कृ सा� दन कृ< अभिभलीर्षो व्यक्त कृ<, इसा पर व�र बब�र�कृ न� उन्ह� वTन दिदय किकृ अगर व8 उनकृ< अभिभलीर्षो पRण� कृरन� म� सामथ� ह8ग ता8 अवश्य कृर�ग। कृ� ष्ण न� उनसा� शी�शी कृ दन मjग। बलीकृ बब�र�कृ क्षाण भर कृ� क्तिलीय� Tकृर गय, परन्ता4 उसान� अपन� वTन कृ< दृढ़ता जाताई। बलीकृ बब�र�कृ न� ब्रह्माण सा� अपन� वस्ताकिवकृ रूप सा� अवगता कृरन� कृ< 7थ�न कृ< और कृ� ष्ण कृ� बर� म� सा4न कृर बलीकृ न� उनकृ� किवरट रूप कृ� दशी�न कृ< अभिभलीर्षो व्यक्त कृ<, कृ� ष्ण न� उन्ह� अपन किवरट रूप दिदखय। उन्ह न� बब�र�कृ कृ8 सामझय किकृ य4द्धा आरम्भा ह8न� सा� पहली� य4द्धाभRमिम कृ< पRजा कृ� क्तिलीय� एकृ व�य�व�र क्षाकित्राय कृ�

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शी�शी कृ� दन कृ< आवश्यकृता ह8ता� ह-, उन्ह न� बब�र�कृ कृ8 य4द्धा म� साबसा� व�र कृ< उपमिधा सा� अली�कृ� ता किकृय, अता-व उनकृ शी�शी दन म� मjग। बब�र�कृ न� उनसा� 7थ�न कृ< किकृ वह अ�ता ताकृ य4द्धा द�खन Tहता ह-, श्री� कृ� ष्ण न� उनकृ< यह बता स्व�कृर कृर ली�। फVग4न मह कृ< द्वादशी� कृ8 उन्ह न� अपन� शी�शी कृ दन दिदय। भगवन न� उसा शी�शी कृ8 अम�ता सा� साeT कृर साबसा� ऊj T� जागह पर रख दिदय, ताकिकृ वह महभरता य4द्धा द�ख साकृ� । उनकृ क्तिसार य4द्धाभRमिम कृ� साम�प ह� एकृ पहड़ी� पर सा4शी8भिभता किकृय गय, जाहj सा� बब�र�कृ साम्पाRण� य4द्धा कृ जायजा ली� साकृता� थ�।

खटR कृ< स्थपन रजा खट्टीव�ग न� कृ< थ�। खट्टीव� न� ह� बभ्रु4वहन कृ� बब�र�कृद्धा कृ� द�वर� म� बब�र�कृ कृ� क्तिसार कृ< 7ण 7किताष्ठा कृरवई थ�। खटR कृ< स्थपन कृ� किवर्षोय म� अन्य मता 7Tक्तिलीता ह-। कृई किवद्वान इसा� महभरता कृ� पहली� कृ मनता� ह� ता8 कृई इसा� ईसा पRव� कृ� सामय कृ मनता� ह- ली�किकृन कृ4 ली मिमलीकृर किवद्वान कृ< एकृमता रय यह ह- किकृ बभ4�रवहन कृ� द�वर� म� क्तिसार कृ< 7किताम कृ< स्थपन महभरता कृ� पश्चता� हुई।

उनकृ शी�शी खटR म� दफ़नय गय थ और बद म� वहj साफ़� द सा�गमरमर कृ खटR श्यमजा� म�दिदर बनवय गय थ। एकृ बर एकृ गय उसा स्थन पर आकृर अपन� स्तान सा� दुग्धा कृ< धार स्वता� ह� बह रह� थ�, बद म� ख4दय� कृ� बद वह शी�शी 7कृट हुआ, न्दिजासा� कृ4 छ दिदन कृ� क्तिलीय� एकृ ब्रह्माण कृ8 सा4प4द� कृर दिदय गय। एकृ बर खटR कृ� रजा कृ8 स्वप्न म� मन्दिन्दर किनम�ण कृ� क्तिलीय� और वह शी�शी मन्दिन्दर म� सा4शी8भिभता कृरन� कृ� क्तिलीय� 7�रिरता किकृय गय। तादन्तार उसा स्थन पर मन्दिन्दर कृ किनम�ण किकृय गय और कृर्तिताEकृ मह कृ< एकृदशी� कृ8 शी�शी मन्दिन्दर म� सा4शी8भिभता किकृय गय, न्दिजासा� बब श्यम कृ� जान्मदिदन कृ� रूप म� मनय जाता ह-। खटR श्यम जा� कृ म4ख्य म�दिदर रजास्थन कृ� सा�कृर न्दिज़ोंली� कृ� गjव खटR म� बन हुआ ह-।

श्री� खटR श्यम म�दिदर जायप4र सा� उत्तार दिदशी म� वय रeगसा ह8कृर 80 किकृली8म�टर दूर पड़ीता ह-। रeगसा पभिश्चम� र�लीव� कृ जा�क्शन ह-। दिदVली�, अहमदबद, जायप4र आदिद सा� आन� वली� यकित्राय कृ8 पहली पड़ीव रeगसा ह� ह8ता ह-। रeगसा सा� साभ� भक्तजान खटR-श्यम-धाम प-दली अथव जा�प , बसा आदिद द्वार 7स्थन कृरता� ह�।

यह म�दिदर फरवर� और मच्र मह�न म� लीगन� वली� खटRश्यमजा� म�ली� कृ� क्तिलीए 7क्तिसाद्धा ह-। यह म�ली इसा क्षा�त्रा कृ� किवभिभन्न ली8कृन�त्य , सा�ग�ता ताथ कृलीओं कृ8 7दर्थिशीEता कृरता ह�। भरता�य कृ- ली�डर कृ� अन4सार फVग4न म� सा4द� दशीम� और द्वादशी� कृ� ब�T यहj ता�न दिदवसा�य वर्तिर्षोEकृ म�ली लीगता ह-।

श्यम म�दिदर बहुता ह� 7T�न ह-। श्यम म�दिदर कृ< आधारक्तिशीली सान� 1720 म� रख� गई थ�। इकिताहसाकृर प�किडता झबरमVली शीम� कृ� म4ताकिबकृ सान� 1679 म� और�गजा�ब कृ< सा�न न� इसा म�दिदर कृ8 नष्ट कृर दिदय थ। इसा म�दिदर कृ< रक्षा कृ� क्तिलीए उसा सामय अन�कृ रजापRता न� अपन 7ण8त्साग� किकृय थ। खटR कृ� श्यम म�दिदर म� भ�म कृ� प^त्रा और र्घट8त्कृT कृ� प4त्रा बब�र�कृ कृ< पRजा श्यम कृ� रूप म� कृ< जाता� ह-। ऐसा मन जाता ह- किकृ महभरता य4द्धा कृ� सामय भगवन श्री�कृ� ष्ण न� बब�र�कृ कृ8 वरदन दिदय थ किकृ कृलीय4ग म� उसाकृ< पRजा श्यम (कृ� ष्ण स्वरूप) कृ� नम सा� ह8ग�। खटR कृ� श्यम म�दिदर म� श्यम कृ� मस्ताकृ स्वरूप कृ< पRजा ह8ता� ह-, जाबकिकृ पसा ह� म� स्थिस्थता रeगसा म� धाड़ी स्वरूप कृ< पRजा कृ< जाता� ह-।

हज़ोंर श्रीद्धाली4 यहj पदयत्रा कृरकृ� पहुjTता� ह�, वहe कृई ली8ग द�डवता कृरता� हुए खटR नर�शी कृ� दरबर म� हन्दिज़ोंर� द�ता� ह�। यहj कृ� एकृ दुकृनदर रमT�द्र T�जार कृ� म4ताकिबकृ नवम� सा� द्वादशी� ताकृ भरन� वली� म�ली� म� लीख श्रीद्धाली4 आता� ह�। 7त्य�कृ एकृदशी� और रकिववर कृ8 भ� यहj भक्त कृ< ली�ब� कृतार� लीग� ह8ता� ह�। जा�वन कृ� सामस्ता पप सामप्ता ह8 जाता� ह� और 7भ4 कृ� दशी�न मत्रा सा� उसाकृ� जा�वन म� ख4क्तिशीयj और सा4ख शीन्तिन्ता कृ भ�डर भरन 7रम्भा ह8 जाता ह-

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य� महन पण्डव भ�म कृ� प4त्रा र्घट8त्कृT और नग कृन्य अकिहलीवता� कृ� प4त्रा थ�। बVयकृली सा� ह� व� बहुता व�र और महन य8द्धा थ�। उन्ह न� य4द्धा कृली अपन� मj सा� सा�ख�। भगवन क्तिशीव कृ< र्घ8र तापस्य कृरकृ� उन्ह� 7सान्न किकृय और ता�न अभ�द्य बण 7प्ता किकृय� और ता�न बणधार� कृ 7क्तिसाद्धा नम 7प्ता किकृय। अख़िग्न द�व न� 7सान्न ह8कृर उन्ह� धान4र्षो 7दन किकृय, जा8 किकृ उन्ह� ता�न8 ली8कृ म� किवजाय� बनन� म� सामथ� थ।

बलीकृ व�र बब�र�कृ कृ� जान्म कृ� पश्चता� र्घट8त्कृT इन्ह� भगवन श्री� कृ� ष्ण कृ� पसा ली�कृर गए थ� और भग्वन श्री� कृ� ष्ण न� व�र बब�र�कृ कृ8 बताय कृ< जा�वन कृ साव�त्ताम उपय8ग, पर8पकृर और किनब�ली कृ साथ द�न ह8ता ह-। व�र बब�र�कृ न� वपसा आकृर किवजाय नमकृ ब्रह्माण कृ क्तिशीष्य बनकृर अस्त्रा-शीस्त्रा किवद्य ज्ञान हक्तिसाली किकृय और उनकृ� यज्ञा कृ8 रक्षासा सा� बTकृर, उनकृ यज्ञा सा�पRण� कृरय। किवजाय नम कृ� उसा ब्रह्माण कृ यज्ञा सा�पRण� कृरवन� पर मj भगवता� व भगवन क्तिशीव शी�कृर बब�र�कृ सा� बहुता 7सान्न हुए और उनकृ� सामन� 7कृट ह8कृर ता�न बण 7दन किकृए न्दिजासासा� ता�न8 ली8कृ म� किवजाय 7प्ता कृ< जा साकृता� थ�।

महभरता कृ य4द्धा 7रम्भा ह8न� पर व�र बब�र�कृ न� अपन� मता कृ� सामन� य4द्धा म� भग ली�न� कृ< इच्छु 7कृट कृ< और ताब इनकृ< मता न� इन्ह� य4द्धा म� भग ली�न� कृ< आज्ञा द� द� और यह वTन क्तिलीय कृ< ता4म य4द्धा म� हरन� वली� पक्षा कृ साथ किनभओग�। जाब बब�र�कृ य4द्धा म� भग ली�न� पहुjT� ताब भगवन श्री� कृ� ष्ण न� बब�र�कृ सा� शी�शी दन म� मjग क्तिलीय और उन्ह� यह सामझय किकृ य4द्धा आरम्भा ह8न� सा� पहली� य4द्धाभRमिम कृ< पRजा कृ� क्तिलीय� एकृ व�य�व�र क्षाकित्राय कृ� शी�शी कृ� दन कृ< आवश्यकृता ह8ता� ह-, उन्ह न� बब�र�कृ कृ8 य4द्धा म� साबसा� व�र कृ< उपमिधा सा� अली�कृ� ता किकृय, अता-व उनकृ शी�शी दन म� मjग। श्री� कृ� ष्ण न� ऐसा इसाक्तिलीए किकृय क्य8किकृ अगर बब�र�कृ य4द्धा म� भग ली�ता� ता8 कृ^रव कृ< सामन्तिप्ता कृ� वली 18 दिदन म� महभरता य4द्धा म� नहe ह8 साकृता� थ� और य4द्धा किनर�तार Tलीता रहता।

व�र बब�र�कृ न� भगवन श्री� कृ� ष्ण कृ� कृहन� पर जान-कृVयण, पर8पकृर और धाम� कृ< रक्षा कृ� क्तिलीए अपन� शी�शी कृ दन 7सान्न ह8 कृर द� दिदय और कृलीय4ग म� भगवन श्री� कृ� ष्ण कृ� अकिता कि7य नम श्री� श्यम नम सा� पR�जा� जान� कृ वरदन 7प्ता किकृय। बब�र�कृ कृ< य4द्धा द�खन� कृ< इच्छु भगवन श्री� कृ� ष्ण न� बब�र�कृ कृ� शी�शी कृ8 ऊj T� पव�ता पर रखकृर पRर� कृ< थ�। य4द्धा सामप्ता ह8 जान� कृ� बद साभ� प�डव8 कृ� पRछन� पर बब�र�कृ कृ� शी�शी न� उत्तार दिदय कृ< यह य4द्धा कृ� वली भगवन श्री� कृ� ष्ण कृ< किनकिता कृ� कृरण जा�ता गय ह- और इसा य4द्धा म� क्तिसाफ़� भगवन श्री� कृ� ष्ण कृ सा4दशी�न Tक्र Tलीता थ और द्र^पद� T�ड� कृ रूप धारण कृर पकिपय कृ लीहूं प� रह� थ�। भगवन श्री� कृ� ष्ण न� बब�र�कृ कृ� शी�शी कृ8 अम�ता सा� साeT और कृलीय4ग कृ अवतार� बनन� कृ आशी�व�द 7दन किकृय।

आजा यह साT हम अपन� आjख सा� द�ख रह� ह� कृ< उसा य4ग कृ� बब�र�कृ आजा कृ� य4ग कृ� श्यम ह� और कृलीय4ग कृ� सामस्ता 7ण� श्यम जा� कृ� दशी�न मत्रा सा� सा4ख� ह8 जाता� ह� उनकृ� जा�वन म� ख4क्तिशीय और साम्पादओं कृ< बहर आन� लीगता� ह- और खटR श्यम जा� कृ8 किनर�तार भजान� सा� 7ण� साब 7कृर कृ� सा4ख पता ह- और अ�ता म� म8क्षा कृ8 7प्ता ह8 जाता ह-।

प�त्रीद� एका�दशा�

किंहEदू धाम� म� एकृदशी� कृ व्रता महत्वपRण� स्थन रखता ह-। 7त्य�कृ वर्षो� T^ब�सा एकृदक्तिशीयj ह8ता� ह�। जाब अमिधाकृमसा य मलीमसा आता ह- ताब इनकृ< सा�ख्य बढ़कृर 26 ह8 जाता� ह-। व-सा� ता8 श्रीवण शी4क्ली एकृदशी�

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कृ नम प4त्राद ह-, ली�किकृन यह प^र्षोशी4क्ली मÄ भ� पडता� ह-| इसाकृ� सा4नन� मत्रा सा� वजाप�य यज्ञा कृ फली मिमलीता ह-।

एकृ बर कृ< बता ह-, श्री� य4मिधामिष्ठार कृहन� लीग� किकृ ह� भगवन! श्रीवण शी4क्ली एकृदशी� कृ क्य नम ह-? व्रता कृरन� कृ< किवमिधा ताथ इसाकृ महत्म्य कृ� प कृरकृ� कृकिहए। मधा4साRदन कृहन� लीग� किकृ इसा एकृदशी� कृ नम प4त्राद ह-। अब आप शी�कितापRव�कृ इसाकृ< कृथ सा4किनए। इसाकृ� सा4नन� मत्रा सा� ह� वयप�य� यज्ञा कृ फली मिमलीता ह-।

द्वापर य4ग कृ� आर�भ म� मकिहष्मकिता नम कृ< एकृ नगर� थ�, न्दिजासाम� मह�न्दिजाता नम कृ रजा रज्य कृरता थ, ली�किकृन प4त्राह�न ह8न� कृ� कृरण रजा कृ8 रज्य सा4खदयकृ नहe लीगता थ। उसाकृ मनन थ किकृ न्दिजासाकृ� सा�तान न ह8, उसाकृ� क्तिलीए यह ली8कृ और परली8कृ द8न ह� दु:खदयकृ ह8ता� ह�। प4त्रा सा4ख कृ< 7न्तिप्ता कृ� क्तिलीए रजा न� अन�कृ उपय किकृए पर�ता4 रजा कृ8 प4त्रा कृ< 7न्तिप्ता नहe हुई।

व�द्धावस्थ आता� द�खकृर रजा न� 7जा कृ� 7किताकिनमिधाय कृ8 ब4लीय और कृह- ह� 7जाजान ! म�र� खजान� म� अन्यय सा� उपजा�न किकृय हुआ धान नहe ह-। न म�न� कृभ� द�वताओं ताथ ब्रह्माण कृ धान छ�न ह-। किकृसा� दूसार� कृ< धार8हर भ� म�न� नहe ली�, 7जा कृ8 प4त्रा कृ� सामन पलीता रह। म� अपरमिधाय कृ8 प4त्रा ताथ बjधाव कृ< तारह द�ड द�ता रह। कृभ� किकृसा� सा� र्घ�ण नहe कृ<। साबकृ8 सामन मन ह-। साज्जन कृ< साद पRजा कृरता हूंj। इसा 7कृर धाम�य4क्त रज्य कृरता� हुए भ� म�र� प4 त्रा नहe ह-। सा8 म� अत्य�ता दु:ख प रह हूंj, इसाकृ क्य कृरण ह-?

रजा मह�न्दिजाता कृ< इसा बता कृ8 किवTरन� कृ� क्तिलीए म� त्रा� ताथ 7जा कृ� 7किताकिनमिधा वन कृ8 गए। वहj बड़ी�-बड़ी� ऋकिर्षो-म4किनय कृ� दशी�न किकृए। रजा कृ< उत्ताम कृमन कृ< पRर्तिताE कृ� क्तिलीए किकृसा� श्री�ष्ठा तापस्व� म4किन कृ8 द�खता�-किफरता� रह�। एकृ आश्रीम म� उन्ह न� एकृ अत्य�ता वय8व�द्धा धाम� कृ� ज्ञाता, बड़ी� तापस्व�, परमत्म म� मन लीगए हुए किनरहर, न्दिजाता�द्र�य, न्दिजातात्म, न्दिजाताक्र8धा, सानतान धाम� कृ� गRढ़ तात्व कृ8 जानन� वली�, सामस्ता शीस्त्रा कृ� ज्ञाता महत्म ली8मशी म4किन कृ8 द�ख, न्दिजानकृ कृVप कृ� व्यता�ता ह8न� पर एकृ र8म किगरता थ।

साबन� जाकृर ऋकिर्षो कृ8 7णम किकृय। उन ली8ग कृ8 द�खकृर म4किन न� पRछ किकृ आप ली8ग किकृसा कृरण सा� आए ह�? किन:सा�द�ह म� आप ली8ग कृ किहता कृरूj ग। म�र जान्म कृ� वली दूसार कृ� उपकृर कृ� क्तिलीए हुआ ह-, इसाम� सा�द�ह मता कृर8।

ली8मशी ऋकिर्षो कृ� ऐसा� वTन सा4नकृर साब ली8ग ब8ली�- ह� महर्षो�! आप हमर� बता जानन� म� ब्रह्मा सा� भ� अमिधाकृ सामथ� ह�। अता: आप हमर� इसा सा�द�ह कृ8 दूर कृ<न्दिजाए। मकिहष्मकिता प4र� कृ धाम�त्म रजा मह�न्दिजाता 7जा कृ प4त्रा कृ� सामन पलीन कृरता ह-। किफर भ� वह प4त्राह�न ह8न� कृ� कृरण दु:ख� ह-।

उन ली8ग न� आग� कृह किकृ हम ली8ग उसाकृ< 7जा ह�। अता: उसाकृ� दु:ख सा� हम भ� दु:ख� ह�। आपकृ� दशी�न सा� हम� पRण� किवश्वसा ह- किकृ हमर यह सा�कृट अवश्य दूर ह8 जाएग क्य किकृ महन प4रुर्षो कृ� दशी�न मत्रा सा� अन�कृ कृष्ट दूर ह8 जाता� ह�। अब आप कृ� प कृरकृ� रजा कृ� प4त्रा ह8न� कृ उपय बतालीएj।

यह वता� सा4नकृर ऋकिर्षो न� थ8ड़ी� द�र कृ� क्तिलीए न�त्रा ब�द किकृए और रजा कृ� पRव� जान्म कृ व�त्ता�ता जानकृर कृहन� लीग� किकृ यह रजा पRव� जान्म म� एकृ किनधा�न व-श्य थ। किनधा�न ह8न� कृ� कृरण इसान� कृई ब4र� कृम� किकृए। यह एकृ

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गjव सा� दूसार� गjव व्यपर कृरन� जाय कृरता थ। एकृ सामय ज्य�ष्ठा मसा कृ� शी4क्ली पक्षा कृ< द्वादशी� कृ� दिदन मध्यह्न कृ� सामय वह जाबकिकृ वह द8 दिदन सा� भRख-प्यसा थ, एकृ जालीशीय पर जाली प�न� गय। उसा� स्थन पर एकृ तात्कृली कृ< ब्यह� हुई प्यसा� ग^ जाली प� रह� थ�।

रजा न� उसा प्यसा� गय कृ8 जाली प�ता� हुए हट दिदय और स्वय� जाली प�न� लीग, इसा�क्तिलीए रजा कृ8 यह दु:ख साहन पड़ी। एकृदशी� कृ� दिदन भRख रहन� सा� वह रजा हुआ और प्यसा� ग^ कृ8 जाली प�ता� हुए हटन� कृ� कृरण प4त्रा किवय8ग कृ दु:ख साहन पड़ी रह ह-। ऐसा सा4नकृर साब ली8ग कृहन� लीग� किकृ ह� ऋकिर्षो! शीस्त्रा म� पप कृ 7यभिश्चता भ� क्तिलीख ह-। अता: न्दिजासा 7कृर रजा कृ यह पप नष्ट ह8 जाए, आप ऐसा उपय बताइए।

ली8मशी म4किन कृहन� लीग� किकृ श्रीवण शी4क्ली पक्षा कृ< एकृदशी� कृ8 न्दिजासा� प4त्राद एकृदशी� भ� कृहता� ह�, ता4म साब ली8ग व्रता कृर8 और रकित्रा कृ8 जागरण कृर8 ता8 इसासा� रजा कृ यह पRव� जान्म कृ पप अवश्य नष्ट ह8 जाएग, साथ ह� रजा कृ8 प4त्रा कृ< अवश्य 7न्तिप्ता ह8ग�। ली8मशी ऋकिर्षो कृ� ऐसा� वTन सा4नकृर म�कित्राय साकिहता सार� 7जा नगर कृ8 वपसा ली^ट आई और जाब श्रीवण शी4क्ली एकृदशी� आई ता8 ऋकिर्षो कृ< आज्ञान4सार साबन� प4त्राद एकृदशी� कृ व्रता और जागरण किकृय।

इसाकृ� पश्चता द्वादशी� कृ� दिदन इसाकृ� प4ण्य कृ फली रजा कृ8 दिदय गय। उसा प4ण्य कृ� 7भव सा� रन� न� गभ� धारण किकृय और 7सावकृली सामप्ता ह8न� पर उसाकृ� एकृ बड़ी ता�जास्व� प4त्रा उत्पन्न हुआ।

इसाक्तिलीए ह� रजान! इसा श्रीवण शी4क्ली एकृदशी� कृ नम प4त्राद पड़ी। अता: सा�तान सा4ख कृ< इच्छु हक्तिसाली कृरन� वली� इसा व्रता कृ8 अवश्य कृर�। इसाकृ� महत्म्य कृ8 सा4नन� सा� मन4ष्य साब पप सा� म4क्त ह8 जाता ह- और इसा ली8कृ म� सा�तान सा4ख भ8गकृर परली8कृ म� स्वग� कृ8 7प्ता ह8ता ह-।

श्री��1ला2गो स्व�मा�

श्री�ता-ली�गस्वम� अध्यत्म जागता कृ< ऐसा� अकिताकिवक्तिशीष्ट किवभRकिता ह�, न्दिजानकृ< ता4लीन किकृसा� अन्य सा� कृर पन सा�भव नहe लीगता। य� एकृ परमक्तिसाद्धाय8ग� और जा�वन्म4क्त प4रुर्षो थ�। इन महप4रुर्षो कृ जान्म दभिक्षाण भरता कृ� एकृ सा�पन्न ब्रह्माण परिरवर म� सान� 1607 ई. कृ� जानवर� मह म� प^र्षो-शी4क्ली-एकृदशी�कृ� पवन दिदन हुआ थ। इनकृ� किपता न�सिंसाEहधारऔर मता किवद्यवता� द�व� किन:सा�तान ह8न� कृ� कृरण बहुता दु:ख� व सिंTEकिताता रहता� थ�। प4त्रा-7न्तिप्ता कृ< कृमन सा� उन द8न न� ग^र�शी�कृर कृ< आरधान एव� ब्रह्माण कृ< सा�व बड� श्रीद्धा सा� कृ<। स्वम�जा�कृ आकिवभ�व इसा� कृ� फलीस्वरूप हुआ। किपता न� नमकृरण किकृय ता-ली�गधार। मता किवद्यवता� न� एकृ दिदन क्तिशीवT�न कृरता� सामय द�ख किकृ क्तिशीवसिंलीEगसा� एकृ दिदव्य ज्य8किता किनकृली कृर उनकृ� प4त्रा म� सामकिवष्ट ह8 गई। इसासा� 7भकिवता ह8कृर म� न� इनकृ नम क्तिशीवरम रख दिदय।

बTपन सा� ह� इनम� सा�सारिरकृ किवर्षोय कृ� 7किता व-रग्य ताथ अध्यत्म कृ< ओर 7व�भित्ता थ�। य4ववस्थ आता�-आता� भ^किताकृता सा� इनकृ< उदसा�नता स्पष्ट दिदखलीई पडन� लीग�। मता-किपता न� ता-ली�गधारकृ8 किववह कृ� ब�धान म� ब�धान Tह, ली�किकृन इन्ह न� व-रग्य कृ< अकिता ता�व्र भवन कृ� कृरण इसाकृ< साम्मकिता नहe द�। ता-ली�गधारजाब 40 वर्षो� कृ� थ�, ताब उनकृ� किपता कृ द�हवसान ह8 गय। व� अपन� मता कृ< सा�व कृरता� हुए ईश्वर कृ� सिंTEतान म� किनमग्न ह8 गए। 52 वर्षो� कृ< अवस्थ म� मताश्री� कृ स्वग�वसा ह8 जान� पर य� सा�सारिरकृ दमियत्व सा� पRर� तारह म4क्त ह8 गए। न्दिजासा श्मशीन म� मता कृ दह-सा�स्कृर हुआ थ, उसा� किनजा�न स्थन पर व� रहन� लीग�। उनकृ� अन4जा श्री�धार न� उन्ह� र्घर वपसा लीन� कृ बहुता 7यसा किकृय किकृन्ता4 ता-ली�गधार न मन�। ताब श्री�धार न� अपन� बड� भई कृ� क्तिलीए वह� एकृ कृ4 ट� बनव द�। ता-ली�गधारन� वहj 20 वर्षो� ताकृ अत्यन्ता कृठो8र साधान कृ<। सान� 1679 म� इनकृ< भ�ट स्वम� भग�रथनन्दसारस्वता� नमकृ महय8ग�सा� हुई, न्दिजानकृ� साथ व� रजास्थन कृ� सा47क्तिसाद्धा ता�थ�

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प4ष्कृर आ गए। वहe पर भग�रथनन्दन� सान� 1685 ई.म� इन्ह� द�क्षा द� और इनकृ नम गणपकिता स्वम� ह8 गय। 10 वर्षो� ताकृ ग4रु-क्तिशीष्य द8न न� प4ष्कृर म� एकृ साथ ताप किकृय। सान� 1695 ई. म� ग4रु कृ� द�ह त्यग द�न� कृ� द8 वर्षो� बद व� ता�थ�टन कृ� क्तिलीए किनकृली पड�। सान� 1697 ई. म� रम�श्वर कृ< दशी�न-यत्रा म� जाब इन्ह न� एकृ म�ता ब्रह्माण कृ8 प4न:जा�किवता कृर दिदय ताब ली8ग न� पहली� बर इनकृ< अली^किकृकृ शीक्तिक्त कृ साक्षात्कृर किकृय। वहj सा� कृ�जा�वरम,कृ�T�प4रम,क्तिशीवकृशी�,नक्तिसाकृ ह8कृर सान� 1699 ई. म� व� सा4दमप4र�पहु�T�। वह� इनकृ< सा�व म� रता किनधा�न-किनप4त्रा ब्रह्माण कृ� धानवन-प4त्रावन ह8 जान� पर इनकृ< ख्यकिता Tर ओर फ- ली गई। दशी�नर्थिथEय कृ< भ�ड कृ� कृरण साधान म� किवघ्न उपस्थिस्थता ह8ता द�खकृर व� यह� सा� Tली पड�। सान� 1701 ई. म� 7भसा क्षा�त्रा सा� द्वारकृप4र�ह8कृर व� न�पली पहु�T गए और वह� एकृ वन म� य8ग-साधान कृरन� लीग�। न�पली-नर�शी इनकृ दशी�न कृरन� आए और इनकृ� भक्त बन गए। ली8ग कृ< भर� सा�ख्य म� एकृकित्राता ह8ता द�ख व� यह� सा� भ� 7स्थन कृरकृ� सान� 1707 ई. म� भ�मरथ�ता�थ� पहु�T�। वह� श्री��ग�र�मठो कृ� स्वम� किवद्यनन्दसारस्वता� सा� इन्ह न� सा�न्यसा कृ< द�क्षा ली�। भ�मरथ�सा� उत्तारख�ड जाता� सामय व� कृ� दरनथ, बदरिरकृश्रीम,ग4प्ताकृशी�,कित्राय8ग�नरयणआदिद स्थन पर भ� इन्ह न� तापस्य कृ<।

उनकृ� जा-सा� क्तिसाद्धा प4रुर्षो कृ� क्तिलीए कृहe पहु�T जान असा�भव न थ। उनकृ< गकिता प�थ्व� कृ� अकितारिरक्त जाली और वय4 म� भ� थ�। व� इच्छुमत्रासा� किकृसा� भ� स्थन पर पहु�T साकृन� म� सामथ� थ�। सान� 1710 ई. म� स्वम�जा�मनसार8वर Tली� गए और वह� व� द�र्घ�कृली ताकृ साधानरतारह�। यह� एकृ किवधाव कृ< 7थ�न पर उसाकृ� म�ता प4त्रा कृ� शीर�र कृ8 स्पशी� कृरकृ� स्वम� जा� न� उसा� प4नजा�किवता कृर दिदय। सान� 1726 ई. म� स्वम� जा� नम�द कृ� ताट पर स्थिस्थता मकृ� ण्ड�य ऋकिर्षो कृ� आश्रीम म� आकृर रहन� लीग�। वह� कृ� सा47क्तिसाद्धा सा�ता खकृ< बब और अन्य ली8ग न� द�ख किकृ स्वम� जा� कृ� द्वार पRजान कृरता� सामय नम�द म� दूधा 7वकिहता ह8न� लीगता थ। सान� 1733 ई. म� स्वम� जा� ता�थ�रजा 7यग आ गए और वह� एकृ�ता म� साधानली�नह8 गए। यह� उन्ह न� यकित्राय सा� खTखT भर� एकृ नव कृ8 अपन� य^किगकृ शीक्तिक्त सा� ग�गजा�म� डRबन� सा� बTय।

7यगरजा म� 4 वर्षो� रहन� कृ� उपर�ता सान� 1737 ई. म� ता-ली�गस्वम�कृशी� पधार� और यहe 150 वर्षो� ताकृ रह�। वरणसा� म� स्वम�जा�अस्सा� र्घट, हन4मन र्घट और दशीश्वम�धार्घट आदिद स्थन पर रहन� कृ� बद सान� 1800 ई. म� प�Tग�गर्घट पर आकृर किंबEदुमधावजा� कृ� म�दिदर म� रहन� लीग�। वहe पसा म� एकृ महरष्ट्र�यनब्रह्माण म�गलीदसाभट्टी एकृ कृ8ठोÈ म� रहता� थ�। व� किनत्य ग�ग-स्नन कृरकृ� बब किवश्वनथ जा� कृ< पRजा कृरन� कृ� बद ह� र्घर ली^टता� थ�। म�गलीदसा7कितादिदन यह द�खकृर बड� आश्चय�Tकिकृता ह8ता� थ�, किकृ जा8 मली उन्ह न� श्री�कृशी�किवश्वनथकृ8 Tढांई थ�, वह� स्वम�जा�कृ� गली� म� पड� हुई ह-। कृई बर पर�क्षा कृरन� पर भट्टीजा�यह जान गए किकृ स्वम� जा� साक्षाता� क्तिशीव-स्वरूप ह�। व� अन4नय-किवनय कृरकृ� स्वम� जा� कृ8 अपन� कृ8ठोÈ म� ली� आए। स्वम�जा�साद ख4ली� आसामन कृ� न�T� रहता� थ� अता:कृ8ठोÈ कृ� आ�गन म� ब�द�बनकृर उसापरउनकृ� रहन� कृ< व्यवस्थ कृ< गई। कृली�तार म� यह स्थन ता-ली�गस्वम�कृ� मठो कृ� नम सा� किवख्यता ह8 गय। ता-ली�गस्वम�दिदगम्बरवस्थम� रहता� थ�। एकृ स्त्रा� अपन� पकिता कृ� स्वस्थ ह8न� कृ< कृमन सा� 7कितादिदन जाब बब किवश्वनथ कृ� दशी�न-पRजान ह�ता4 जाता� थ�, ताब वह रस्ता� म� स्वम� जा� कृ8 द�खकृर अपशीब्द कृह द�ता� थ�। एकृ रता श्री�कृशी�किवश्वनथन� उसासा� स्वप्न म� कृह- ता4म उसा स्वम� कृ< अवह�लीन और अपमन मता कृर8। व� ह� ता4म्हर� पकिता कृ8 ठोÈकृ कृर�ग�। स्वम� जा� कृ वस्ताकिवकृ परिरTय 7प्ता ह8ता� ह� उसा स्त्रा� कृ� मन म� उनकृ� 7किता श्रीद्धा कृ< भवन जाग उठोÈ। ता-ली�गस्वम�कृ� द्वार 7दत्ता भस्म लीगन� सा� उसाकृ पकिता र8ग-म4क्त ह8 गय। इसा 7कृर स्वम�जा�न� न जान� किकृतान� ली8ग कृ8 र8ग-शी8कृ, कृष्ट-सा�ताप और सा�कृट सा� म4क्त कृरकृ� नवजा�वन 7दन किकृय। व� अत्यन्ता उदर और पर8पकृर� थ�। एकृ बर उज्ज-नकृ� महरजा जाब कृशी� कृ< ग�ग म� न^कृ-किवहर कृर रह� थ�, ताब उन्ह न� स्वम�जा�कृ8 ग�गजा�पर आसान जामए द�ख। श्री�रमकृ� ष्णपरमह�सा न� जाब उन्ह� भ�र्षोण गम� म� तापता� र�ता पर ली�ट� द�ख, ता8 व� स्वय� ख�र बनकृर लीए और स्वम�जा�कृ8 उसाकृ भ8ग लीगय। परमह�साद�वउनकृ< दिदव्यता सा� इतान� 7भकिवता हुए किकृ उन्ह न� ता-ली�गस्वम�कृ8 साTली किवश्वनथ कृ नम द� दिदय। एकृ अ�ग्रं�जा अफसार न� वस्त्राह�न रहन� कृ� कृरण इन्ह� हवलीता म� ब�द कृर दिदय किकृन्ता4 दूसार� दिदन साब�र� यह द�ख गय किकृ हवलीता कृ ताली ता8 ब�द ह- ली�किकृन स्वम� जा� हjसाता� हुए बहर टहली रह� ह�। श्री�ता-ली�गस्वम�कृ� Tमत्कृर कृ8 द�खकृर ली8ग द�ग रह जाता� थ�। भरता�य य8ग और अध्यत्म कृ< पताकृ Tर तारफ लीहर कृर सान� 1887 ई. म� 280 वर्षो� प�थ्व� पर ली�ली कृरन� कृ� उपर�ता अपन� जान्मकिताक्तिथ प^र्षो-शी4क्ली-

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एकृदशी�कृ� दिदन ह� कृशी� कृ� य� साTली किवश्वनथ ब्रह्माली�न ह8 गए और प�छ� छ8ड गए अपन� साद्गीÉण और य8ग-शीक्तिक्त कृ 7कृशी, जा8 हम� आजा भ� ईश्वर और धाम� सा� जा4डन� कृ< 7�रण द� रह ह-।