रामचिरतमानस - BABA SHYAMbabashyam.com/Ayodhya-Kand.pdf · 2007-10-28 · Read...

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रामचिरतमानस - 1 - अयोयाकांड Read Ramcharitmanas online at www.swargarohan.org गोवामी तुलसीदास िवरिचत रामचिरतमानस अयोयाकाड

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  • रामचिरतमानस - 1 - अयोध्याकांड

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    गोस्वामी तलुसीदास िवरिचत

    रामचिरतमानस

    अयोध्याकाण्ड

    http://www.swargarohan.org/Ramayana/Ramcharitmanas.htm

  • रामचिरतमानस - 2 - अयोध्याकांड

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    ीगणेशाय नमः

    ीरामचिरतमानस ि तीय सोपान

    अयोध्याकाण्ड

    ोक

    यस्याङ्के च िवभाित भूधरसुता देवापगा मस्तके भाले बालिवधुगर्ले च गरल ं यस्योरिस व्यालराट। सोऽयं भूितिवभूषणः सुरवरः सवार्िधपः सवर्दा शवर्ः सवर्गतः िशवः शिशिनभः ीशङ्करः पातु माम ॥१॥

    सन्नतां या न गतािभषेकतस्तथा न मम्ले वनवासदःखतः। ु मुखाम्बुज ी रघुनन्दनस्य मे सदास्तु सा मञ्जुलमगंल दा ॥ २ ॥

    नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोिपतवामभागम। पाणौ महासायकचारुचापं नमािम रामं रघुवंशनाथम ॥ ३ ॥

    दोहा

    ीगुरु चरन सरोज रज िनज मनु मकुुरु सुधािर। बरनउँ रघुबर िबमल जसु जो दायकु फल चािर ॥ १ ॥

    जब तें रामु ब्यािह घर आए। िनत नव मगंल मोद बधाए ॥ भवुन चािरदस भूधर भारी। सुकृत मेघ बरषिह सुख बारी ॥ १ ॥ िरिध िसिध सपंित नदीं सुहाई। उमिग अवध अंबुिध कहँ आई ॥ ु मिनगन पुर नर नािर सजुाती। सुिच अमोल सुदंर सब भाँती ॥ २ ॥ किह न जाइ कछ नगर िबभतूी। जनु एतिनअ िबरंिच करतूती ॥ु सब िबिध सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंद िनहारी ॥ ु ३ ॥ मिुदत मातु सब सखीं सहेली। फिलत िबलोिक मनोरथ बेली ॥ राम रूपु गुनसील ु सुभाऊ। मुिदत होइ देिख सुिन राऊ ॥ ४ ॥

  • रामचिरतमानस - 3 - अयोध्याकांड

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    दोहा

    सब कें उर अिभलाषु अस कहिहं मनाइ महेसु। आप अछत जुबराज पद रामिह देउ नरेसु ॥ १ ॥

    एक समय सब सिहत समाजा। राजसभाँ रघुराजु िबराजा ॥ सकल सुकृत मूरित नरनाह। रामू सुजसु सुिन अितिह उछाह ॥ू १ ॥ नपृ सब रहिहं कृपा अिभलाषें। लोकप करिहं ीित रुख राखें ॥ ितभुवन तीिन काल जग माहीं। भूिर भाग दसरथ सम नाहीं ॥ २ ॥ मगंलमूल राम ु सतु जासू। जो कछ किहज थोर सबु तासू ॥ ु रायँ सुभायँ मुकुरु कर लीन्हा। बदनु िबलोिक मुकुट सम कीन्हा ॥ ३ ॥ वन समीप भए िसत केसा। मनहँ जरठपनु अस उपदेसा ॥ु नपृ जबुराज राम कहँ देह। जीवन जनम लाह िकन लेह ॥ु ू ु ू ४ ॥

    दोहा

    यह िबचारु उर आिन नपृ सुिदनु सुअवसरु पाइ। ेम पुलिक तन मुिदत मन गुरिह सुनायउ जाइ ॥ २ ॥

    कहइ भआुलु सिुनअ मुिननायक। भए राम सब िबिध सब लायक ॥ सेवक सिचव सकल पुरबासी। जे हमारे अिर िम उदासी ॥ १ ॥ सबिह राम ु ि य जेिह िबिध मोही। भु असीस जनु तनु धिर सोही ॥ िब सिहत पिरवार गोसाईं। करिहं छोह सब रौिरिह नाई ॥ ु २ ॥ जे गुर चरन रेनु िसर धरहीं। ते जनु सकल िबभव बस करहीं ॥ मोिह सम यह अनुु भयउ न दजें। सबु पायउँ रज पाविन पूजें ॥ू ३ ॥ अब अिभलाषु एकु मन मोरें। पूजिह नाथ अनु ह तोरें ॥ मिुन सन्न लिख सहज सनेह।ू कहेउ नरेस रजायसु देह ॥ू ४ ॥

    दोहा

    राजन राउर नामु जसु सब अिभमत दातार। फल अनुगामी मिहप मिन मन अिभलाषु तुम्हार ॥ ३ ॥

  • रामचिरतमानस - 4 - अयोध्याकांड

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    सब िबिध गुरु सन्न िजयँ जानी। बोलेउ राउ रहँिस मदृ बानी ॥ ु नाथ रामु किरअिहं जुबराजू। किहअ कृपा किर किरअ समाजू ॥ १ ॥ मोिह अछत यहु होइ उछाह। लहिहं लोग सब लोचन लाह ॥ ू ू भु साद िसव सबइ िनबाहीं। यह लालसा एक मन माहीं ॥ २ ॥ पुिन न सोच तनु रहउ िक जाऊ। जेिहं न होइ पाछें पिछताऊ ॥ सिुन मुिन दसरथ बचन सुहाए। मंगल मोद मूल मन भाए ॥ ३ ॥ सनुु नपृ जासु िबमुख पिछताहीं। जासु भजन िबनु जरिन न जाहीं ॥ भयउ तुम्हार तनय सोइ स्वामी। रामु पुनीत ेम अनुगामी ॥ ४ ॥

    दोहा

    बेिग िबलंबु न किरअ नपृ सािजअ सबुइ समाजु। सिुदन सुमंगल ु तबिहं जब रामु होिहं जुबराजु ॥ ४ ॥

    मिुदत मिहपित मंिदर आए। सेवक सिचव सुमं ु बोलाए ॥ किह जयजीव सीस ितन्ह नाए। भूप सुमंगल बचन सुनाए ॥ १ ॥ जौं पाँचिह मत लागै नीका। करह हरिष िहयँ रामिहु टीका ॥ मं ी मुिदत सनुत ि य बानी। अिभमत िबरवँ परेउ जनु पानी ॥ २ ॥ िबनती सिचव करिह कर जोरी। िजअह जगतपित बिरस करोरी ॥ु जग मगंल भल काजु िबचारा। बेिगअ नाथ न लाइअ बारा ॥ ३ ॥ नपृिह मोद सिुन सिचव सुभाषा। बढ़त बौंड़ जनु लही सुसाखा ॥ ु ४ ॥

    दोहा

    कहेउ भपू मुिनराज कर जोइ जोइ आयसु होइ। राम राज अिभषेक िहत बेिग करह सोइ सोइ ॥ ु ५ ॥

    हरिष मुनीस कहेउ मदृ बानी। आनह सकल सुतीरथ पानी ॥ ु ु औषध मूल फूल फल पाना। कहे नाम गिन मगंल नाना ॥ १ ॥ चामर चरम बसन बह भाँती। रोम पाट पट अगिनत जाती ॥ ु मिनगन मगंल बस्तु अनेका। जो जग जोगु भूप अिभषेका ॥ २ ॥

  • रामचिरतमानस - 5 - अयोध्याकांड

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    बेद िबिदत किह सकल िबधाना। कहेउ रचह पुरु िबिबध िबताना ॥ सफल रसाल पूगफल केरा। रोपह बीिथन्ह पुर चहँ फेरा ॥ ु ु ३ ॥ रचह मंजुु मिन चौकें चारू। कहह बनावन बेिग बजारू ॥ ु पूजह गनपित गुर कुलदेवा। सब िबिध करहु ु भूिमसुर सेवा ॥ ४ ॥

    दोहा

    ध्वज पताक तोरन कलस सजह तुरग रथ नाग। ु िसर धिर मुिनबर बचन सबु िनज िनज काजिहं लाग ॥ ६ ॥

    जो मुनीस जेिह आयसु दीन्हा। सो तेिहं काजु थम जनु कीन्हा ॥ िब साध ु सुर पूजत राजा। करत राम िहत मंगल काजा ॥ १ ॥ सनुत राम अिभषेक सुहावा। बाज गहागह अवध बधावा ॥ राम सीय तन सगुन जनाए। फरकिहं मंगल अंग सुहाए ॥ २ ॥ पुलिक स ेम परसपर कहहीं। भरत आगमनु सूचक अहहीं ॥ भए बहुत िदन अित अवसेरी। सगुन तीित भेंट ि य केरी ॥ ३ ॥ भरत सिरस ि य को जग माहीं। इहइ सगुन फलु दसर नाहींू ॥ रामिह बंधु सोच िदन राती। अंडिन्ह कमठ दउ जेिह भाँती ॥ ४ ॥

    दोहा

    एिह अवसर मंगलु परम सिुन रहँसेउ रिनवासु। सोभत लिख िबधु बढ़त जनु बािरिध बीिच िबलासु ॥ ७ ॥

    थम जाइ िजन्ह बचन सुनाए। भूषन बसन भूिर ितन्ह पाए ॥ ेम पुलिक तन मन अनुरागीं। मंगल कलस सजन सब लागीं ॥ १ ॥ चौकें चारु सुिम ाँ पुरी। मिनमय िबिबध भाँित अित रुरी ॥ आनँद मगन राम महतारी। िदए दान बह िब हँकारी ॥ ु २ ॥ पूजीं ामदेिब सरु नागा। कहेउ बहोिर देन बिलभागा ॥ जेिह िबिध होइ राम कल्यानू। देह दया किर सो बरदानू ॥ ु ३ ॥ गाविहं मगंल कोिकलबयनीं। िबधबुदनीं मगृसावकनयनीं ॥ ४ ॥

  • रामचिरतमानस - 6 - अयोध्याकांड

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    दोहा राम राज अिभषेकु सुिन िहयँ हरषे नर नािर। लगे सुमगंल सजन सब िबिध अनुकूल िबचािर ॥ ८ ॥

    तब नरनाहँ बिस ु बोलाए। रामधाम िसख देन पठाए ॥ गुर आगमनु सुनत रघुनाथा। ार आइ पद नायउ माथा ॥ १ ॥ सादर अरघ देइ घर आने। सोरह भाँित पूिज सनमाने ॥ गहे चरन िसय सिहत बहोरी। बोले रामु कमल कर जोरी ॥ २ ॥ सेवक सदन स्वािम आगमनू। मंगल मूल अमंगल दमनू ॥ तदिप उिचत जनु बोिल स ीती। पठइअ काज नाथ अिस नीती ॥ ३ ॥ भुता तिज भु कीन्ह सनेह। भयउ पुनीत आजुू यह गेह ॥ ु ू आयसु होइ सो करौं गोसाई। सेवक लहइ स्वािम सेवकाई ॥ ४ ॥

    दोहा

    सिुन सनेह साने बचन मुिन रघुबरिह संस। राम कस न तुम्ह कहह अस हंस बंस अवतंस ॥ ु ९ ॥

    बरिन राम गुन सीलु सभुाऊ। बोले ेम पुलिक मुिनराऊ ॥ भपू सजेउ अिभषेक समाज।ू चाहत देन तुम्हिह जुबराजू ॥ १ ॥ राम करह सब संजम आजू। जौं िबिध कुसल िनबाहै काज ू ॥ ु गुरु िसख देइ राय पिहं गयउ। राम हृदयँ अस िबसमउ भयऊ ॥ २ ॥ जनमे एक संग सब भाई। भोजन सयन केिल लिरकाई ॥ करनबेध उपबीत िबआहा। संग संग सब भए उछाहा ॥ ३ ॥ िबमल बंस यह अनुिचत एकू।ु बंधु िबहाइ बड़ेिह अिभषेकू ॥ भु स ेम पिछतािन सुहाई। हरउ भगत मन कै कुिटलाई ॥ ४ ॥

    दोहा

    तेिह अवसर आए लखन मगन ेम आनंद। सनमाने ि य बचन किह रघुकुल कैरव चंद ॥ १० ॥

  • रामचिरतमानस - 7 - अयोध्याकांड

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    बाजिहं बाजने िबिबध िबधाना। पुर मोद निहं जाइ बखानाु ॥ भरत आगमनु सकल मनाविहं। आवहँ बेिग नयन फलु पाविहं ॥ ु १ ॥ हाट बाट घर गलीं अथाई। कहिहं परसपर लोग लोगाई ॥ कािल लगन भिल केितक बारा। पूिजिह िबिध अिभलाषु हमारा ॥ २ ॥ कनक िसघंासन सीय समेता। बैठिहं रामु होइ िचत चेता ॥ सकल कहिहं कब होइिह काली। िबघन मनाविहं देव कुचाली ॥ ३ ॥ ितन्हिह सोहाइ न अवध बधावा। चोरिह चंिदिन राित न भावा ॥ सारद बोिल िबनय सरु करहीं। बारिहं बार पाय लै परहीं ॥ ४ ॥

    दोहा

    िबपित हमािर िबलोिक बिड़ मातु किरअ सोइ आजु। रामु जािहं बन राजु तिज होइ सकल सुरकाजु ॥ ११ ॥

    सिुन सुर िबनय ठािढ़ पिछताती। भइउँ सरोज िबिपन िहमराती ॥ देिख देव पुिन कहिहं िनहोरी। मातु तोिह निहं थोिरउ खोरी ॥ १ ॥ िबसमय हरष रिहत रघुराऊ। तुम्ह जानह सब राम भाऊ ॥ ु जीव करम बस सुख दख भागी।ु जाइअ अवध देव िहत लागी ॥ २ ॥ बार बार गिह चरन सँकोचौ। चली िबचािर िबबुध मित पोची ॥ ऊँच िनवासु नीिच करतूती। देिख न सकिहं पराइ िबभूती ॥ ३ ॥ आिगल काजु िबचािर बहोरी। करहिहं चाह कुसल किब मोरी ॥ हरिष हृदयँ दसरथ पुर आई। जनु ह दसा दसह दखदाई ॥ु ु ४ ॥

    दोहा

    नाम ु मंथरा मदंमित चेरी कैकेइ केिर। अजस पेटारी तािह किर गई िगरा मित फेिर ॥ १२ ॥

    दीख मंथरा नगरु बनावा। मंजुल मंगल बाज बधावा ॥ पूछेिस लोगन्ह काह उछाह। रामू ितलकु सुिन भा उर दाह ॥ ू १ ॥ करइ िबचारु कुबुि कुजाती। होइ अकाजु कविन िबिध राती ॥ देिख लािग मधु कुिटल िकराती। िजिम गवँ तकइ लेउँ केिह भाँती ॥ २ ॥

  • रामचिरतमानस - 8 - अयोध्याकांड

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    भरत मातु पिहं गइ िबलखानी। का अनमिन हिस कह हँिस रानी ॥ ऊतरु देइ न लेइ उसास।ू नािर चिरत किर ढारइ आँसू ॥ ३ ॥ हँिस कह रािन गाल ु बड़ तोरें। दीन्ह लखन िसख अस मन मोरें ॥ तबहँ न बोलु चेिर बिड़ पािपिन। छाड़इ स्वास कािर जनु साँिपिन ॥ ४ ॥

    दोहा

    सभय रािन कह कहिस िकन कुसल रामु मिहपाल।ु लखनु भरतु िरपुदमनु सुिन भा कुबरी उर सालु ॥ १३ ॥

    कत िसख देइ हमिह कोउ माई। गालु करब केिह कर बलु पाई ॥ रामिह छािड़ कुसल केिह आजू। जेिह जनेसु देइ जुबराजू ॥ १ ॥ भयउ कौिसलिह िबिध अित दािहन। देखत गरब रहत उर नािहन ॥ देखेह कस न जाइु सब सोभा। जो अवलोिक मोर मनु छोभा ॥ २ ॥ पूतु िबदेस न सोचु तुम्हारें। जानित हह बसु नाह हमारें ॥ ु नीद बहत ि य सेज तुराई। लखह न भूप कपट चतुराई ॥ ु ु ३ ॥ सिुन ि य बचन मिलन मनु जानी। झुकी रािन अब रह अरगानी ॥ ु पुिन अस कबहँ कहिस घरफोरी। तब धिर जीभु कढ़ावउँ तोरी ॥ ४ ॥

    दोहा

    काने खोरे कूबरे कुिटल कुचाली जािन। ितय िबसेिष पुिन चेिर किह भरतमातु मुसुकािन ॥ १४ ॥

    ि यबािदिन िसख दीिन्हउँ तोही। सपनेहँ तो पर कोपु नु मोही ॥ सिुदनु सुमगंल दायकु सोई। तोर कहा फुर जेिह िदन होई ॥ १ ॥ जेठ स्वािम सेवक लघु भाई। यह िदनकर कुल रीित सहुाई ॥ राम ितलकु जौं साँचेहँ काली। देउँ मागु मन भावतु आली ॥ २ ॥ कौसल्या सम सब महतारी। रामिह सहज सुभायँ िपआरी ॥ मो पर करिहं सनेह िबसेषी।ु मैं किर ीित परीछा देखी ॥ ३ ॥ जौं िबिध जनमु देइ किर छोह। होहँ राम िसय पूतू ु पुतोह ॥ ू ान तें अिधक रामु ि य मोरें। ितन्ह कें ितलक छोभु कस तोरें ॥ ४ ॥

  • रामचिरतमानस - 9 - अयोध्याकांड

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    दोहा

    भरत सपथ तोिह सत्य कहु पिरहिर कपट दराउ। ु हरष समय िबसमउ करिस कारन मोिह सुनाउ ॥ १५ ॥

    एकिहं बार आस सब पूजी। अब कछ कहब जीभ किर दजी ॥ ु ू फोरै जोगु कपारु अभागा। भलेउ कहत दख रउरेिह लागा ॥ ु १ ॥ कहिहं झूिठ फुिर बात बनाई। ते ि य तुम्हिह करुइ मैं माई ॥ हमहँ कहिब अब ठकुरसोहाती। नािहंु त मौन रहब िदनु राती ॥ २ ॥ किर कुरूप िबिध परबस कीन्हा। बवा सो लुिनअ लिहअ जो दीन्हा ॥ कोउ नपृ होउ हमिह का हानी। चेिर छािड़ अब होब िक रानी ॥ ३ ॥ जारै जोगु सुभाउ हमारा। अनभल देिख न जाइ तुम्हारा ॥ तातें कछक बातु अनुसारी। छिमअ देिब बिड़ चूक हमारी ॥ ४ ॥

    दोहा

    गूढ़ कपट ि य बचन सुिन तीय अधरबुिध रािन। सरुमाया बस बैिरिनिह सुह्द जािन पितआिन ॥ १६ ॥

    सादर पुिन पुिन पूँछित ओही। सबरी गान मगृी जनु मोही ॥ तिस मित िफरी अहइ जिस भाबी। रहसी चेिर घात जनु फाबी ॥ १ ॥ तुम्ह पूँछह मैं कहत डेराऊँ। धरेउ मोर घरफोरी नाऊँ ॥ ु सिज तीित बहिबिध गिढ़ु छोली। अवध साढ़साती तब बोली ॥ २ ॥ ि य िसय रामु कहा तुम्ह रानी। रामिह तुम्ह ि य सो फुिर बानी ॥ रहा थम अब ते िदन बीते। समउ िफरें िरपु होिहं िपंरीते ॥ ३ ॥ भानु कमल कुल पोषिनहारा। िबनु जल जािर करइ सोइ छारा ॥ जिर तुम्हािर चह सवित उखारी। रँूधहु किर उपाउ बर बारी ॥ ४ ॥

    दोहा

    तुम्हिह न सोच ु सोहाग बल िनज बस जानह राउ। ु मन मलीन महु मीठ नपृ राउर सरल सुभाउ ॥ १७ ॥

  • रामचिरतमानस - 10 - अयोध्याकांड

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    चतुर गँभीर राम महतारी। बीचु पाइ िनज बात सँवारी ॥ पठए भरतु भपू निनअउरें। राम मातु मत जानव रउरें ॥ १ ॥ सेविहं सकल सवित मोिह नीकें । गरिबत भरत मातु बल पी कें ॥ साल ु तुम्हार कौिसलिह माई। कपट चतुर निहं होइ जनाई ॥ २ ॥ राजिह तुम्ह पर ेमु िबसेषी। सवित सुभाउ सकइ निहं देखी ॥ रची ंपचु भपूिह अपनाई। राम ितलक िहत लगन धराई ॥ ३ ॥ यह कुल उिचत राम कहँ टीका। सबिह सोहाइ मोिह सुिठु नीका ॥ आिगिल बात समिुझ डरु मोही। देउ दैउ िफिर सो फलु ओही ॥ ४ ॥

    दोहा

    रिच पिच कोिटक कुिटलपन कीन्हेिस कपट बोधु ॥ किहिस कथा सत सवित कै जेिह िबिध बाढ़ िबरोधु ॥ १८ ॥

    भावी बस तीित उर आई। पँूछ रािन पुिन सपथ देवाई ॥ का पूछहँ तुम्ह अबहँ नु ु जाना। िनज िहत अनिहत पसु पिहचाना ॥ १ ॥ भयउ पाखु िदन सजत समाज।ू तुम्ह पाई सुिध मोिह सन आज ू ॥ खाइअ पिहिरअ राज तुम्हारें। सत्य कहें निहं दोषु हमारें ॥ २ ॥ जौं असत्य कछु कहब बनाई। तौ िबिध देइिह हमिह सजाई ॥ रामिह ितलक कािल जौं भयऊ। तुम्ह कहुँ िबपित बीजु िबिध बयऊ ॥३॥ रेख खँचाइ कहउँ बलु भाषी। भािमिन भइह दध कइ माखी ॥ ु ू जौं सतु सिहत करह सेवकाई। तौ घर रहह न आन उपाई ॥ ु ु ४ ॥

    दोहा

    क ँ िबनतिह दीन्ह दखुू ु तुम्हिह कौिसलाँ देब। भरतु बंिदगहृ सेइहिहं लखनु राम के नेब ॥ १९ ॥

    कैकयसतुा सुनत कट बानी। किह न सकइ कछ सहिम सुखानी ॥ ु ु तन पसेउ कदली िजिम काँपी। कुबरीं दसन जीभ तब चाँपी ॥ १ ॥ किह किह कोिटक कपट कहानी। धीरजु धरह बोिधिस रानी ॥ ु

  • रामचिरतमानस - 11 - अयोध्याकांड

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    िफरा करमु ि य लािग कुचाली। बिकिह सराहइ मािन मराली ॥ २ ॥ सनुु मंथरा बात फुिर तोरी। दिहिन आँिख िनत फरकइ मोरी ॥ िदन ित देखउँ राित कुसपने। कहउँ न तोिह मोह बस अपने ॥ ३ ॥ काह करौ सिख सूध सुभाऊ। दािहन बाम न जानउँ काऊ ॥ ४ ॥

    दोहा

    अपने चलत न आजु लिग अनभल काहक कीन्ह। ु केिहं अघ एकिह बार मोिह दैअँ दसह दखु दीन्ह ॥ ु ु २० ॥

    नैहर जनमु भरब बरु जाइ। िजअत न करिब सवित सेवकाई ॥ अिर बस दैउ िजआवत जाही। मरनु नीक तेिह जीवन चाही ॥ १ ॥ दीन बचन कह बहिबिध रानी। सुिन कुबरीं ितयमाया ठानी ॥ ु अस कस कहह मािन मनु ऊना। सुखु सोहागु तुम्ह कहँ िदन दना ॥ ु ू २ ॥ जेिहं राउर अित अनभल ताका। सोइ पाइिह यहु फलु पिरपाका ॥ जब तें कुमत सुना मैं स्वािमिन। भूख न बासर नींद न जािमिन ॥ ३ ॥ पँूछेउ गुिनन्ह रेख ितन्ह खाँची। भरत भुआल होिहं यह साँची ॥ भािमिन करह त कहौं उपाऊ। हैु तुम्हरीं सेवा बस राऊ ॥ ४ ॥

    दोहा

    परउँ कूप तुअ बचन पर सकउँ पूत पित त्यािग। कहिस मोर दखु देिख बड़ कस न करब िहत लािग ॥ ु २१ ॥

    कुबरीं किर कबुली कैकेई। कपट छरी उर पाहनु टेई ॥ लखइ न रािन िनकट दखुु कैं से। चरइ हिरत ितन बिलपसु जैसें ॥ १ ॥ सनुत बात मदृ ु अंत कठोरी। देित मनहँ मधु माहर घोरी ॥ ु ु कहइ चेिर सुिध अहइ िक नाही। स्वािमिन किहह कथा मोिह पाहीं ॥ ु २ ॥ दइ बरदान भूप सन थाती। मागह आजु जड़ुावह छाती ॥ ु ु ु सतुिह राज ु रामिह बनवासू। देह लेह सब सवित हलास ुु ु ु ॥ ३ ॥ भपूित राम सपथ जब करई। तब मागेहु जेिहं बचनु न टरई ॥ होइ अकाजु आजु िनिस बीतें। बचनु मोर ि य मानेह जी तें ॥ु ४ ॥

  • रामचिरतमानस - 12 - अयोध्याकांड

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    दोहा

    बड़ कुघातु किर पातिकिन कहेिस कोपगहँृ जाह। ु काजु सँवारेह सजग सबु सहसा जिनु पितआह ॥ ु २२ ॥

    कुबिरिह रािन ानि य जानी। बार बार बिड़ बुि बखानी ॥ तोिह सम िहत न मोर संसारा। बहे जात कइ भइिस अधारा ॥ १ ॥ जौं िबिध पुरब मनोरथु काली। करौं तोिह चख पूतिर आली ॥ बहिबिध चेिरिह आदरु देई। कोपभवन गविन कैकेई ॥ ु २ ॥ िबपित बीजु बरषा िरतु चेरी। भुइँ भइ कुमित कैकेई केरी ॥ पाइ कपट जलु अंकुर जामा। बर दोउ दल दख फल पिरनामा ॥ ु ३ ॥ कोप समाजु सािज सबु सोई। राजु करत िनज कुमित िबगोई ॥ राउर नगर कोलाहलु होई। यह कुचािल कछ जान न कोई ॥ ु ४ ॥

    दोहा

    मुिदत पुर नर नािर। सब सजिहं सुमंगलचार। एक िबसिहं एक िनगर्मिहं भीर भपू दरबार ॥ २३ ॥

    बाल सखा सनु िहयँ हरषाहीं। िमिल दस पाँच राम पिहं जाहीं ॥ भु आदरिहं ेमु पिहचानी। पूँछिहं कुसल खेम मदृ बानी ॥ ु १ ॥ िफरिहं भवन ि य आयसु पाई। करत परसपर राम बड़ाई ॥ को रघुबीर सिरस संसारा। सीलु सनेह िनबाहिनहारा ॥ २ ॥ जेंिह जेंिह जोिन करम बस महीं। तहँ तहँ ईसु देउ यह हमहीं ॥ सेवक हम स्वामी िसयनाह। होउ नात यह ओर िनबाह ॥ ू ू ३ ॥ अस अिभलाषु नगर सब काह। कैकयसतुा ह्दयँ अित दाह ॥ ू ू को न कुसंगित पाइ नसाई। रहइ न नीच मतें चतुराई ॥ ४ ॥

    दोहा

    साँस समय सानंद नपृु गयउ कैकेई गेहँ। गवनु िनठरता िनकट िकय जनु धिर देहु सनेहँ ॥ २४ ॥

  • रामचिरतमानस - 13 - अयोध्याकांड

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    कोपभवन सुिन सकुचेउ राउ। भय बस अगहड़ परइ न पाऊ ॥ ु सरुपित बसइ बाहँबल जाके। नरपित सकल रहिहं रुख ताकें ॥ १ ॥ सो सुिन ितय िरस गयउ सुखाई। देखह कामु ताप बड़ाई ॥ सूल कुिलस अिस अगँविनहारे। ते रितनाथ सुमन सर मारे ॥ २ ॥ सभय नरेसु ि या पिहं गयऊ। देिख दसा दखु दारुन भयऊ ॥ ु भिूम सयन पट मोट पुराना। िदए डािर तनु भषूण नाना ॥ ३ ॥ कुमितिह किस कुबेषता फाबी। अन अिहवातु सूच जनु भाबी ॥ जाइ िनकट नपुृ कह मदृ बानी। ानि या केिह हेतु िरसानी ॥ ु ४ ॥

    छंद

    केिह हेतु रािन िरसािन परसत पािन पितिह नेवारई। मानहँ सरोष भुअंग भािमिन िबषम भाँित ु िनहारई ॥ दोउ बासना रसना दसन बर मरम ठाहरु देखई। तुलसी नपृित भवतब्यता बस काम कौतुक लेखई ॥

    सोरठा

    बार बार कह राउ समुुिख सलुोिचिन िपकबचिन। कारन मोिह सुनाउ गजगािमिन िनज कोप कर ॥ २५ ॥

    अनिहत तोर ि या केइँ कीन्हा। केिह दइ िसर केिह जमु चह लीन्हा ॥ ु कह केु िह रंकिह करौ नरेस।ू कह केिह नपृिह िनकासौं देसू ॥ ु १ ॥ सकउँ तोर अिर अमरउ मारी। काह कीट बपुरे नर नारी ॥ जानिस मोर सुभाउ बरोरू। मनु तव आनन चदं चकोरू ॥ २ ॥ ि या ान सुत सरबसु मोरें। पिरजन जा सकल बस तोरें ॥ जौं कछ कहौ कपट किर तोही। भािमिन राम सपथ सतु ु मोही ॥ ३ ॥ िबहिस मागु मनभावित बाता। भूषन सजिह मनोहर गाता ॥ घरी कुघरी समिुझ िजयँ देखू। बेिग ि या पिरहरिह कुबेषू ॥ ४ ॥

    दोहा

  • रामचिरतमानस - 14 - अयोध्याकांड

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    यह सुिन मन गुिन सपथ बिड़ िबहिस उठी मितमंद। भषून सजित िबलोिक मगृु मनहँ िकराितिन फंद ॥ ु २६ ॥

    पुिन कह राउ सु द िजयँ जानी। ेम पुलिक मदृ मंजुल बानी ॥ ु भािमिन भयउ तोर मनभावा। घर घर नगर अनंद बधावा ॥ १ ॥ रामिह देउँ कािल जुबराज।ू सजिह सुलोचिन मंगल साजू ॥ दलिक उठेउ सुिन दउ कठोरू। जनु छइ गयउ पाक बरतोरू ॥ ु २ ॥ ऐिसउ पीर िबहिस तेिह गोई। चोर नािर िजिम गिट न रोई ॥ लखिहं न भूप कपट चतुराई। कोिट कुिटल मिन गुरू पढ़ाई ॥ ३ ॥ ज िप नीित िनपुन नरनाह। नािरचिरत जलिनिध अवगाह ॥ ू ू कपट सनेह बढ़ाइ बहोरी। बोली िबहिस नयन महु मोरीु ु ॥ ४ ॥

    दोहा

    मागु मागु पै कहह िपय कबहँ न देह न लेह। ु ु ु ु देन कहेह बरदान दइ तेउ पावतु ु सदेंह ॥ ु २७ ॥

    जानेउँ मरमु राउ हँिस कहई। तुम्हिह कोहाब परम ि य अहई ॥ थाित रािख न मािगह काऊ। िबसिर गयउ मोिह भोर सुभाऊ ॥ ु १ ॥ झूठेहँ हमिह दोषु जिन देह। दइु ू ु कै चािर मािग मकु लेह ॥ ू रघुकुल रीित सदा चिल आई। ान जाहँ बरु बचनु न जाई ॥ु २ ॥ निहं असत्य सम पातक पंुजा। िगिर सम होिहं िक कोिटक गुंजा ॥ सत्यमूल सब सुकृत सुहाए। बेद पुरान िबिदत मनु गाए ॥ ३ ॥ तेिह पर राम सपथ किर आई। सुकृत सनेह अविध रघुराई ॥ बात दृढ़ाइ कुमित हँिस बोली। कुमत कुिबहग कुलह जनु खोली ॥ ४ ॥

    दोहा

    भपू मनोरथ सुभग बनु सुख सुिबहंग समाजु। िभल्लिन िजिम छाड़न चहित बचनु भयंकरु बाजु ॥ २८ ॥

    मासपारायण, तेरहवाँ िव ाम

  • रामचिरतमानस - 15 - अयोध्याकांड

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    सनुह ानि य भावत जी का। देह एक बर भरतिह टीका ॥ु ु मागउँ दसर बर कर जोरी। पुरवह नाथ मनोरथ मोरी ॥ ू ु १ ॥ तापस बेष िबसेिष उदासी। चौदह बिरस राम ु बनबासी ॥ सिुन मदृ बचन भूप िहयँ सोकू।सिस कर छअत िबकल िजिम कोकू ॥ु ु २॥ गयउ सहिम निहं कछ किह आवा। जनु सचान बन झपटेउ लावा ॥ ु िबबरन भयउ िनपट नरपाल।ू दािमिन हनेउ मनहँ तरु तालू ॥ ु ३ ॥ माथे हाथ मूिद दोउ लोचन। तनु धिर सोचु लाग जनु सोचन ॥ मोर मनोरथु सरुतरु फूला। फरत किरिन िजिम हतेउ समूला ॥ ४ ॥ अवध उजािर कीिन्ह कैकेईं। दीन्हिस अचल िबपित कै नेईं ॥ ५ ॥

    दोहा

    कवनें अवसर का भयउ गयउँ नािर िबस्वास। जोग िसि फल समय िजिम जितिह अिब ा नास ॥ २९ ॥

    एिह िबिध राउ मनिहं मन झाँखा। देिख कुभाँित कुमित मन माखा ॥ भरतु िक राउर पूत न होहीं। आनेह मोल बेसािह िक मोही ॥ु १ ॥ जो सुिन सरु अस लाग तुम्हारें। काहे न बोलह बचनु सँभारे ॥ ु देह उतरु अनु करह िकु ु नाहीं। सत्यसंध तुम्ह रघुकुल माहीं ॥ २ ॥ देन कहेह अब जिन बरु देह। तजहँ सत्य जगु ू ु अपजसु लेह ॥ ू सत्य सरािह कहेह बरु देना। जानेह लेइिह मािग चबेना ॥ ु ु ३ ॥ िसिब दधीिच बिल जो कछ भाषा। तनु धनु तजेउ बचन पनु राखा ॥ ु अित कट बचन कहित कैकेई। मानहँ लोनु ु जरे पर देई ॥ ४ ॥

    दोहा

    धरम धुरंधर धीर धिर नयन उघारे रायँ। िसरु धिुन लीिन्ह उसास अिस मारेिस मोिह कुठायँ ॥ ३० ॥

    आगें दीिख जरत िरस भारी। मनहँ रोष तरवािर उघारी ॥ु मिूठ कुबुि धार िनठराई। धरी कूबरीं सान बनाई ॥ ु १ ॥

  • रामचिरतमानस - 16 - अयोध्याकांड

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    लखी महीप कराल कठोरा। सत्य िक जीवनु लेइिह मोरा ॥ बोले राउ किठन किर छाती। बानी सिबनय तासु सोहाती ॥ २ ॥ ि या बचन कस कहिस कुभाँती। भीर तीित ीित किर हाँती ॥ मोरें भरतु राम ु दइ आँखी। सत्यु कहउँ किर सकंरू साखी ॥ ३ ॥ अविस दतु मैं पठइब ाता। ऐहिहं बेिग सुनू त दोउ ाता ॥ सिुदन सोिध सबु साजु सजाई। देउँ भरत कहँ राज ु बजाई ॥ ु ४ ॥

    दोहा

    लोभ ु न रामिह राज ु कर बहत भरत पर ीित। ु मैं बड़ छोट िबचािर िजयँ करत रहेउँ नपृनीित ॥ ३१ ॥

    राम सपथ सत कहँ सुभाऊ। राममातु कछ कहेउ न काऊ ॥ ू ु मैं सबु कीन्ह तोिह िबनु पँूछें । तेिह तें परेउ मनोरथ ु छछें ॥ ू १ ॥ िरस पिरहरू अब मगंल साजू। कछ िदन गएँ भरत जुबराजू ॥ ु एकिह बात मोिह दख ु लागा। बर दसर असमंजस मागा ॥ ु ू २ ॥ अजहँ हृदय जरत तेिह आँचा। िरस पिरहासु िक साँचेहँ साँचा ॥ ु कह तिज रोषु राम अपराधू। सबु कोउ कहइ रामु सुिठ साधू ॥ु ३ ॥ तुहँ सराू हिस करिस सनेह। अब सुिन मोिह भयउ सदेंह ॥ ू ू जासु सभुाउ अिरिह अनुकूला। सो िकिम किरिह मातु ितकूला ॥ ४ ॥

    दोहा

    ि या हास िरस पिरहरिह मागु िबचािर िबबेकु। जेिहं देखाँ अब नयन भिर भरत राज अिभषेकु ॥ ३२ ॥

    िजऐ मीन बरू बािर िबहीना। मिन िबनु फिनकु िजऐ दख दीना ु ॥ कहउँ सुभाउ न छलु मन माहीं। जीवनु मोर राम िबनु नाहीं ॥ १ ॥ समुिझ देखु िजयँ ि या बीना। जीवनु राम दरस आधीना ॥ सिुन द बचन कुमितु अित जरई। मनहँ अनल आहित घतृ परई ॥ ु ु २ ॥ कहइ करह िकन कोिट उपाया। इहाँ न लािगिह राउिरु माया ॥ देह िक लेह अजसु किर नाु ु हीं। मोिह न बहत पंच सोहाहींु ॥ ३ ॥

  • रामचिरतमानस - 17 - अयोध्याकांड

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    रामु साधु तुम्ह साधु सयाने। राममातु भिल सब पिहचाने ॥ जस कौिसलाँ मोर भल ताका। तस फलु उन्हिह देउँ किर साका ॥ ४ ॥

    दोहा

    होत ात मिुनबेष धिर जौं न रामु बन जािहं। मोर मरनु राउर अजस नपृ समुिझअ मन मािहं ॥ ३३ ॥

    अस किह कुिटल भई उिठ ठाढ़ी। मानहँ रोष तरंिगिन बाढ़ीु ॥ पाप पहार गट भइ सोई। भरी ोध जल जाइ न जोई ॥ १ ॥ दोउ बर कूल किठन हठ धारा। भवँर कूबरी बचन चारा ॥ ढाहत भपूरूप तरु मूला। चली िबपित बािरिध अनुकूला ॥ २ ॥ लखी नरेस बात फुिर साँची। ितय िमस मीचु सीस पर नाची ॥ गिह पद िबनय कीन्ह बैठारी। जिन िदनकर कुल होिस कुठारी ॥ ३ ॥ मागु माथ अबहीं देउँ तोही। राम िबरहँ जिन मारिस मोही ॥ राखु राम कहँ जेिह तेिह भाँती। नािहं त जिरिह जनम भिर छाती ॥ ु ४ ॥

    दोहा

    देखी ब्यािध असाध नपृु परेउ धरिन धुिन माथ। कहत परम आरत बचन राम राम रघुनाथ ॥ ३४ ॥

    ब्याकुल राउ िसिथल सब गाता। किरिन कलपतरु मनहँ िनपाता ॥ ु कंठ सूख मुख आव न बानी। जनुु पाठीनु दीन िबनु पानी ॥ १ ॥ पुिन कह कट कठोर कैकेई। मनहँ घाय महँ माहर देई ॥ ु ु ु ु जौं अंतहँ अस करतबु रहेऊ। मागु मागु तुम्ह केिहं बल कहेऊ ॥ ु २ ॥ दइ िक होइ एक समय भआुला।ु हँसब ठठाइ फुलाउब गाला ॥ दािन कहाउब अरु कृपनाई। होइ िक खेम कुसल रौताई ॥ ३ ॥ छाड़हु बचनु िक धीरजु धरह। जिन अबला िजिम करुना करह ॥ ू ू तनु ितय तनय धाम ुधनु धरनी। सत्यसंध कहँ तनृ सम बरनी ॥ ु ४ ॥

    दोहा

  • रामचिरतमानस - 18 - अयोध्याकांड

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    मरम बचन सिुन राउ कह कह कछ दोषु न तोर। ु ु लागेउ तोिह िपसाच िजिम कालु कहावत मोर ॥ ३५ ॥

    चहत न भरत भूपतिह भोरें। िबिध बस कुमित बसी िजय तोरें ॥ सो सबु मोर पाप पिरनामू। भयउ कुठाहर जेिहं िबिध बामू ॥ १ ॥ सबुस बिसिह िफिर अवध सुहाई। सब गुन धाम राम भुताई ॥ किरहिहं भाइ सकल सेवकाई। होइिह ितहँ पुर राम बड़ाई ॥ ु २ ॥ तोर कलंकु मोर पिछताऊ। मुएहँ न िमटिह न जाइिह काऊ ॥ु अब तोिह नीक लाग करु सोई। लोचन ओट बैठ मुह गोई ॥ ु ु ३ ॥ जब लिग िजऔ ंकहउँ कर जोरी। तब लिग जिन कछ कहिस बहोरी ॥ु िफिर पिछतैहिस अंत अभागी। मारिस गाइ नहारु लागी ॥ ४ ॥

    दोहा

    परेउ राउ किह कोिट िबिध काहे करिस िनदानु। कपट सयािन न कहित कछ जागित मनहँ मसानुु ु ॥ ३६ ॥

    राम राम रट िबकल भुआलू। जनु िबनु पंख िबहंग बेहालू ॥ हृदयँ मनाव भोरु जिन होई। रामिह जाइ कहै जिन कोई ॥ १ ॥ उदउ करह जिन रिब रघुकुल गुर। अवध िबलोिक सूल होइिहु उर ॥ भपू ीित कैकइ किठनाई। उभय अविध िबिध रची बनाई ॥ २ ॥ िबलपत नपृिह भयउ िभनुसारा। बीना बेनु संख धुिन ारा ॥ पढ़िहं भाट गुन गाविहं गायक। सुनत नपृिह जनु लागिहं सायक ॥ ३ ॥ मगंल सकल सोहािहं न कैसें। सहगािमिनिह िबभषून जैसें ॥ तेिहं िनिस नीद परी निह काह। राम दरस लालसा उछाह ॥ ू ू ४ ॥

    दोहा

    ार भीर सेवक सिचव कहिहं उिदत रिब देिख। जागेउ अजहँ न अवधपित कारनु कवनु िबसेिष ॥ ु ३७ ॥

    पिछले पहर भूपु िनत जागा। आजु हमिह बड़ अचरजु लागा ॥

  • रामचिरतमानस - 19 - अयोध्याकांड

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    जाह सुमं जगावह जाई। कीिजअ काजु रजायसु पाई ॥ ु ु १ ॥ गए सुमं ु तब राउर माही। देिख भयावन जात डेराहीं ॥ धाइ खाइ जनु जाइ न हेरा। मानहुँ िबपित िबषाद बसेरा ॥ २ ॥ पूछें कोउ न ऊतरु देई। गए जेंिहं भवन भूप कैकैई ॥ किह जयजीव बैठ िसरु नाई। दैिख भूप गित गयउ सुखाई ॥ ३ ॥ सोच िबकल िबबरन मिह परेऊ। मानहँ कमल मूलुु पिरहरेऊ ॥ सिचउ सभीत सकइ निहं पूँछी। बोली असुभ भरी सुभ छछी ॥ ू ४ ॥

    दोहा

    परी न राजिह नीद िनिस हेतु जान जगदीस।ु रामु रामु रिट भोरु िकय कहइ न मरमु महीसु ॥ ३८ ॥

    आनहु रामिह बेिग बोलाई। समाचार तब पँूछेह आई ॥ ु चलेउ सुमं राय रूख जानी। लखी कुचािल कीिन्ह कछ रानी ॥ ु १ ॥ सोच िबकल मग परइ न पाऊ। रामिह बोिल किहिह का राऊ ॥ उर धिर धीरजु गयउ दआरें। पूछँिहं सकल देु िख मनु मारें ॥ २ ॥ समाधानु किर सो सबही का। गयउ जहाँ िदनकर कुल टीका ॥ राम ु सुमं िह आवत देखा। आदरु कीन्ह िपता सम लेखा ॥ ३ ॥ िनरिख बदनु किह भूप रजाई। रघुकुलदीपिह चलेउ लेवाई ॥ राम ु कुभाँित सिचव सँग जाहीं। देिख लोग जहँ तहँ िबलखाहीं ॥ ४ ॥

    दोहा

    जाइ दीख रघुबंसमिन नरपित िनपट कुसाजु ॥ सहिम परेउ लिख िसंिघिनिह मनहँ बृ गजराज ु ॥ ु ३९ ॥

    सूखिहं अधर जरइ सबु अगूं। मनहँ दीन मिनहीनु भुअंगू ॥ सरुष समीप दीिख कैकेई। मानहँ मीचु घरी गिन लेई ॥ ु १ ॥ करुनामय मदृ रामु सुभाऊ। थम दीख दखु सनुा न काऊ ॥ ु तदिप धीर धिर समउ िबचारी। पँूछी मधरु बचन महतारी ॥ २ ॥ मोिह कह मातु तात दख कारन। किरअ जतन जेिहं होइ िनवारन ॥ ु ु

  • रामचिरतमानस - 20 - अयोध्याकांड

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    सनुह राम सबुु कारन एह। राजिह तुम पर बहत सनेह ॥ ू ु ू ३ ॥ देन कहेिन्ह मोिह दइ बरदाना। मागेउँ जो कछु ु मोिह सोहाना। सो सुिन भयउ भपू उर सोचू। छािड़ न सकिहं तुम्हार सँकोचू ॥ ४ ॥

    दोहा

    सतु सनेह इत बचनु उत संकट परेउ नरेसु। सकह न आयसु धरह िसर मेटह किठन कलेसु ॥ ु ु ु ४० ॥

    िनधरक बैिठ कहइ कट बानी। सनुत किठनता अित अकुलानी ॥ ु जीभ कमान बचन सर नाना। मनहुँ मिहप मदृ लच्छ समाना ॥ ु १ ॥ जनु कठोरपनु धरें सरीरू। िसखइ धनुषिब ा बर बीरू ॥ सब सगंु रघुपितिह सनुाई। बैिठ मनहँ तनु धिर िनठराई ॥ ु ु २ ॥ मन मुसकाइ भानुकुल भानु। रामु सहज आनंद िनधानू ॥ बोले बचन िबगत सब दषन। मदृ मंजलु जनु बाग िबभूषन ॥ ू ु ३ ॥ सनुु जननी सोइ सुतु बड़भागी। जो िपतु मातु बचन अनुरागी ॥ तनय मातु िपतु तोषिनहारा। दलर्भ जनिन सकल ु संसारा ॥ ४ ॥

    दोहा

    मिुनगन िमलनु िबसेिष बन सबिह भाँित िहत मोर। तेिह महँ िपतु आयसु बहिर संमत जननी तोर ॥ ु ४१ ॥

    भरत ानि य पाविहं राजू। िबिध सब िबिध मोिह सनमुख आजु। जों न जाउँ बन ऐसेह काजा। थम गिनअ मोिह मढ़ू समाजा ॥ु १ ॥ सेविहं अरँड कलपतरु त्यागी। पु िरहिर अमतृ लेिहं िबषु मागी ॥ तेउ न पाइ अस समउ चुकाहीं। देखु िबचािर मातु मन माहीं ॥ २ ॥ अंब एक दखु मोिह िबसेषी। िनपट िबकल नरनायकुु देखी ॥ थोिरिहं बात िपतिह दख भारी। होित तीित न मोिह महतारी ॥ ु ३ ॥ राउ धीर गुन उदिध अगाधू। भा मोिह ते कछ बड़ अपराध ू ॥ ु जातें मोिह न कहत कछ राऊ। मोिर सपथ तोिहु कह सितभाऊ ॥ ु ४ ॥

  • रामचिरतमानस - 21 - अयोध्याकांड

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    दोहा सहज सरल रघुबर बचन कुमित कुिटल किर जान। चलइ जोंक जल ब गित ज िप सिललु समान ॥ ४२ ॥

    रहसी रािन राम रुख पाई। बोली कपट सनेह जनाई ॥ ु सपथ तुम्हार भरत कै आना। हेतु न दसर मै कछ जाना ॥ ू ु १ ॥ तुम्ह अपराध जोगु निहं ताता। जननी जनक बंधु सुखदाता ॥ राम सत्य सबु जो कछ कहह। तुम्ह िपतु मातु बचन रत अहह ॥ु ू ू २ ॥ िपतिह बुझाइ कहह बिल सोई। चौथेंपन जेिहं अजसु न होई ॥ ु तुम्ह सम सुअन सुकृत जेिहं दीन्हे। उिचत न तास ुिनरादरु कीन्हे ॥ ३ ॥ लागिहं कुमुख बचन सुभ कैसे। मगहँ गयािदक तीरथ जसेै ॥ रामिह मातु बचन सब भाए। िजिम सुरसिर गत सिलल सुहाए ॥ ४ ॥

    दोहा

    गइ मुरुछा रामिह सुिमिर नपृ िफिर करवट लीन्ह। सिचव राम आगमन किह िबनय समय सम कीन्ह ॥ ४३ ॥

    अविनप अकिन रामु पगु धारे। धिर धीरजु तब नयन उघारे ॥ सिचवँ सँभािर राउ बैठारे। चरन परत नपृ रामु िनहारे ॥ १ ॥ िलए सनेह िबकल उर लाई। गै मिन मनहँ फिनक िफिर पाई ॥ ु रामिह िचतइ रहेउ नरनाह। चला िबलोचन बािर बाह ॥ ू ू २ ॥ सोक िबबस कछ कहै न पारा। हृदयँु लगावत बारिहं बारा ॥ िबिधिह मनाव राउ मन माहीं। जेिहं रघुनाथ न कानन जाहीं ॥ ३ ॥ सिुमिर महेसिह कहइ िनहोरी। िबनती सुनह सदािसव मोरी ॥ ु आसुतोष तुम्ह अवढर दानी। आरित हरह दीन जनु जानी ॥ ु ४ ॥

    दोहा

    तुम्ह ेरक सब के हृदयँ सो मित रामिह देह। ु बचनु मोर तिज रहिह घर पिरहिर सीलु सनेह ॥ ु ४४ ॥

  • रामचिरतमानस - 22 - अयोध्याकांड

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    अजसु होउ जग सुजसु नसाऊ। नरक परौ बरु सुरपुरु जाऊ ॥ सब दख दसह सहावह ु ु ु मोही। लोचन ओट रामु जिन होंही ॥ १ ॥ अस मन गुनइ राउ निहं बोला। पीपर पात सिरस मनु डोला ॥ रघुपित िपतिह ेमबस जानी। पुिन कछ किहिहु मातु अनुमानी ॥ २ ॥ देस काल अवसर अनुसारी। बोले बचन िबनीत िबचारी ॥ तात कहउँ कछ करउँु िढठाई। अनुिचतु छमब जािन लिरकाई ॥ ३ ॥ अित लघु बात लािग दखु पावा। काहँ न मोिह किहु ु थम जनावा ॥ देिख गोसाइँिह पूँिछउँ माता। सुिन सगंु भए सीतल गाता ॥ ४ ॥

    दोहा

    मगंल समय सनेह बस सोच पिरहिरअ तात। आयसु देइअ हरिष िहयँ किह पुलके भु गात ॥ ४५ ॥

    धन्य जनमु जगतीतल तासू। िपतिह मोद चिरत सिुन जासूु ॥ चािर पदारथ करतल ताकें । ि य िपतु मातु ान सम जाकें ॥ १ ॥ आयसु पािल जनम फलु पाई। ऐहउँ बेिगिहं होउ रजाई ॥ िबदा मातु सन आवउँ मागी। चिलहउँ बनिह बहिर पग लागी ॥ ु २ ॥ अस किह राम गवनु तब कीन्हा। भूप सोक बसु उतरु न दीन्हा ॥ नगर ब्यािप गइ बात सुतीछी। छअत चु ढ़ी जनु सब तन बीछी ॥ ३ ॥ सिुन भए िबकल सकल नर नारी। बेिल िबटप िजिम देिख दवारी ॥ जो जहँ सुनइ धुनइ िसरु सोई। बड़ िबषाद निहं धीरजु होई ॥ ु ४ ॥

    दोहा

    मुख सुखािहं लोचन विह सोकु न हृदयँ समाइ। मनहँ करुन रस कटकई उतरी अवध बजाइ ॥ ु ४६ ॥

    िमलेिह माझ िबिध बात बेगारी। जहँ तहँ देिहं कैकेइिह गारी ॥ एिह पािपिनिह बूिझ का परेऊ। छाइ भवन पर पावकु धरेऊ ॥ १ ॥ िनज कर नयन कािढ़ चह दीखा। डािर सुधा िबषु चाहत चीखा ॥ कुिटल कठोर कुबुि अभागी। भइ रघुबंस बेनु बन आगी ॥ २ ॥

  • रामचिरतमानस - 23 - अयोध्याकांड

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    पालव बैिठ पेड़ एिहं काटा। सुख महँ सोकु ु ठाट धिर ठाटा ॥ ु सदा रामु एिह ान समाना। कारन कवन कुिटलपनु ठाना ॥ ३ ॥ सत्य कहिहं किब नािर सुभाऊ। सब िबिध अगह अगाध दराऊ ॥ ु ु िनज ितिबंबु बरुकु गिह जाई। जािन न जाइ नािर गित भाई ॥ ४ ॥

    दोहा

    काह न पावकु जािर सक का न समु समाइ। का न करै अबला बल केिह जग कालु न खाइ ॥ ४७ ॥

    का सुनाइ िबिध काह सुनावा। का देखाइ चह काह देखावा ॥ एक कहिहं भल भूप न कीन्हा। बरु िबचािर निहं कुमितिह दीन्हा ॥ १ ॥ जो हिठ भयउ सकल दख भाजनु। अबला िबबस ग्यानु गुनु गा जनु ॥ ु एक धरम परिमित पिहचाने। नपृिह दोसु निहं देिहं सयाने ॥ २ ॥ िसिब दधीिच हिरचंद कहानी। एक एक सन कहिहं बखानी ॥ एक भरत कर संमत कहहीं। एक उदास भायँ सुिन रहहीं ॥ ३ ॥ कान मूिद कर रद गिह जीहा। एक कहिहं यह बात अलीहा ॥ सकृुत जािहं अस कहत तुम्हारे। रामु भरत कहँ ानिपआरे ॥ ु ४ ॥

    दोहा

    चदं चवैु बरु अनल कन सुधा होइ िबषतूल। सपनेहँ कबहँ न करिहं िकछु ु ु भरतु राम ितकूल ॥ ४८ ॥

    एक िबधातिहं दषनु देंहीं। सुधा देखाइ दीन्ह िबषु जेहीं ॥ ू खरभरु नगर सोच ु सब काह। दसह दाह उर िमटा उछाह ॥ ू ु ूु १ ॥ िब बधू कुलमान्य जठेरी। जे ि य परम कैकेई केरी ॥ लगीं देन िसख सीलु सराही। बचन बानसम लागिहं ताही ॥ २ ॥ भरतु न मोिह ि य राम समाना। सदा कहह यह सबु जगु जाना ॥ ु ु करह राम पर सहज सनेह। केिहं अपराध आजु बनुु ू देह ॥ ू ३ ॥ कबहँ न िकयह सवित आरेसू। ीित तीित जान सबु देसू ॥ ु ु कौसल्याँ अब काह िबगारा। तुम्ह जेिह लािग ब पुर पारा ॥ ४ ॥

  • रामचिरतमानस - 24 - अयोध्याकांड

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    दोहा

    सीय िक िपय सँगु पिरहिरिह लखनु िक रिहहिहं धाम। राज ु िक भँूजब भरत पुर नपृु िक जीिह िबनु राम ॥ ४९ ॥

    अस िबचािर उर छाड़ह कोह। सोक कलंक कोिठ जिन होह ॥ ु ू ू भरतिह अविस देह जुबराज।ू कानन काह राम करु काजू ॥ १ ॥ नािहन रामु राज के भूखे। धरम धरुीन िबषय रस रूखे ॥ गुर गहृ बसहँ रामु तिजु गेह। नपृ सनू अस बरु दसर लेह ॥ू ू २ ॥ जौं निहं लिगहह कहें हमारे। निहं लािगिह कछ हाथु ु तुम्हारे ॥ जौं पिरहास कीिन्ह कछ होई। तौ किह गट जनावह सोई ॥ ु ु ३ ॥ राम सिरस सुत कानन जोगू। काह किहिह सिुन तुम्ह कहँ लोगू ॥ ु उठह बेिग सोइ करह उपाई। जेिह िबिधु ु सोकु कलंकु नसाई ॥ ४ ॥

    छंद

    जेिह भाँित सोकु कलंकु जाइ उपाय किर कुल पालही। हिठ फेरु रामिह जात बन जिन बात दसिर चालही ॥ ू िजिम भानु िबनु िदनु ान िबनु तनु चंद िबनु िजिम जािमनी। ितिम अवध तुलसीदास भु िबनु समुिझ धौं िजयँ भािमनी ॥

    सोरठा

    सिखन्ह िसखावनु दीन्ह सुनत मधुर पिरनाम िहत। तेइँ कछ कान न कीन्ह कुिटल बोधी कूबरी ॥ु ५० ॥

    उतरु न देइ दसह िरस रूखी। मिृगन्ह िचतव जनु बािघिन भूखी ॥ ु ब्यािध असािध जािन ितन्ह त्यागी। चलीं कहत मितमदं अभागी ॥ १ ॥ राज ु करत यह दैअँ िबगोई। कीन्हेिस अस जस करइ न कोई ॥ एिह िबिध िबलपिहं पुर नर नारीं। देिहं कुचािलिह कोिटक गारीं ॥ २ ॥ जरिहं िबषम जर लेिहं उसासा। कविन राम िबनु जीवन आसा ॥ िबपुल िबयोग जा अकुलानी। जनु जलचर गन सूखत पानी ॥ ३ ॥

  • रामचिरतमानस - 25 - अयोध्याकांड

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    अित िबषाद बस लोग लोगाई। गए मातु पिहं रामु गोसाई ॥ मुख सन्न िचत चौगुन चाऊ। िमटा सोचु जिन राखै राऊ ॥ ४ ॥

    दोहा

    नव गयंद रघुबीर मनु राजुु अलान समान। छट जािन बन गवनु सुिन उर अनंद अिधकान ॥ ू ु ५१ ॥

    रघुकुलितलक जोिर दोउ हाथा। मुिदत मातु पद नायउ माथा ॥ दीिन्ह असीस लाइ उर लीन्हे। भषून बसन िनछाविर कीन्हे ॥ १ ॥ बार बार मुख चंुबित माता। नयन नेह जलु पुलिकत गाता ॥ गोद रािख पुिन हृदयँ लगाए। वत ेनरस पयद सुहाए ॥ २ ॥ ेमु मोद न कछ किह जाई। रंक धनदु ु पदबी जनु पाई ॥ सादर संुदर बदनु िनहारी। बोली मधरु बचन महतारी ॥ ३ ॥ कहह तात जननीु बिलहारी। कबिहं लगन मदु मंगलकारी ॥ सकृुत सील सुख सीवँ सुहाई। जनम लाभ कइ अविध अघाई ॥ ४ ॥

    दोहा

    जेिह चाहत नर नािर सब अित आरत एिह भाँित। िजिम चातक चातिक तिृषत बिृ सरद िरतु स्वाित ॥ ५२ ॥

    तात जाउँ बिल बेिग नहाह। जो मन भाव मधुर कछ खाहू ूु ॥ िपतु समीप तब जाएह भैआ। भइ बिड़ बार जाइ बिल मैआ ॥ ु १ ॥ मातु बचन सुिन अित अनुकूला। जनु सनेह सरुतरु के फूला ॥ सुख मकरंद भरे ि यमूला। िनरिख राम मनु भवरँु न भूला ॥ २ ॥ धरम धरुीन धरम गित जानी। कहेउ मातु सन अित मदृ बानी ॥ ु िपताँ दीन्ह मोिह कानन राज।ू जहँ सब भाँित मोर बड़ काजू ॥ ३ ॥ आयसु देिह मुिदत मन माता। जेिहं मुद मंगल कानन जाता ॥ जिन सनेह बस डरपिस भोरें। आनँद ु अबं अनु ह तोरें ॥ ४ ॥

  • रामचिरतमानस - 26 - अयोध्याकांड

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    दोहा बरष चािरदस िबिपन बिस किर िपतु बचन मान। आइ पाय पुिन देिखहउँ मनु जिन करिस मलान ॥ ५३ ॥

    बचन िबनीत मधरु रघुबर के। सर सम लगे मातु उर करके ॥ सहिम सूिख सुिन सीतिल बानी। िजिम जवास परें पावस पानी ॥ १ ॥ किह न जाइ कछ हृदय िबषादु ।ू मनहँ मगृी सुिन केहिरु नाद ॥ ू नयन सजल तन थर थर काँपी। माजिह खाइ मीन जनु मापी ॥ २ ॥ धिर धीरजु सतु बदनु िनहारी। गदगद बचन कहित महतारी ॥ तात िपतिह तुम्ह ानिपआरे। देिख मिुदत िनत चिरत तुम्हारे ॥ ३ ॥ राज ु देन कहँ सभु िदन साधा। कहेउ जान बन केिहं अपराधा ॥ ु तात सुनावहु मोिह िनदानू। को िदनकर कुल भयउ कृसानू ॥ ४ ॥

    दोहा

    िनरिख राम रुख सिचवसुत कारनु कहेउ बुझाइ। सिुन संगु रिह मूक िजिम दसा बरिन निहं जाइ ॥ ५४ ॥

    रािख न सकइ न किह सक जाह। दहँ भाँित उर दारुन दाह ॥ ू ू ूु िलखत सुधाकर गा िलिख राह। िबिध गित बाम सदा सबू काह ॥ ू १ ॥ धरम सनेह उभयँ मित घेरी। भइ गित साँप छछंदिर केरी ॥ ु ु राखउँ सुतिह करउँ अनुरोध।ू धरमु जाइ अरु बंधु िबरोधू ॥ २ ॥ कहउँ जान बन तौ बिड़ हानी। संकट सोच िबबस भइ रानी ॥ बहिर समुिझ ितय धरम ुसयानी। रामु भरतु दोउ सुत सम जानी ॥ ु ३ ॥ सरल सभुाउ राम महतारी। बोली बचन धीर धिर भारी ॥ तात जाउँ बिल कीन्हेह नीका। िपतु आयसु सब धरमकु टीका ॥ ४ ॥

    दोहा

    राज ु देन किह दीन्ह बनु मोिह न सो दख लेसु। ु तुम्ह िबनु भरतिह भूपितिह जिह चडं कलेसु ॥ ५५ ॥

  • रामचिरतमानस - 27 - अयोध्याकांड

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    जौं केवल िपतु आयसु ताता। तौ जिन जाह जािन बिड़ माताु ॥ जौं िपतु मातु कहेउ बन जाना। तौं कानन सत अवध समाना ॥ १ ॥ िपतु बनदेव मातु बनदेवी। खग मगृ चरन सरोरुह सेवी ॥ अंतहँ उिचत नपृिह बनबास।ू बय िबलोिक िहयँ होइ हराँसू ॥ु २ ॥ बड़भागी बनु अवध अभागी। जो रघुबंसितलक तुम्ह त्यागी ॥ जौं सुत कहौ संग मोिह लेह।ू तुम्हरे हृदयँ होइ सदेंह ॥ ू ३ ॥ पूत परम ि य तुम्ह सबही के। ान ान के जीवन जी के ॥ ते तुम्ह कहह मातु बन जाऊँ। मैं सुिन बचन बैिठ पिछताऊँ ॥ ु ४ ॥

    दोहा

    यह िबचािर निहं करउँ हठ झूठ सनेह बढ़ाइ। ु मािन मातु कर नात बिल सुरित िबसिर जिन जाइ ॥ ५६ ॥

    देव िपतर सब तुन्हिह गोसाई। राखहँ पलक नयन ु की नाई ॥ अविध अंबु ि य पिरजन मीना। तुम्ह करुनाकर धरम धुरीना ॥ १ ॥ अस िबचािर सोइ करह उपाई। सबिह िजअत जेिहं भेंटेह आईु ु ॥ जाह सुखेन बनिह बिल जाऊँ। किर अनाथ जन पिरजन गाऊँ ॥ ु २ ॥ सब कर आजु सुकृत फल बीता। भयउ कराल कालु िबपरीता ॥ बहिबिध िबलिप चरन लपटानी। पु रम अभािगिन आपुिह जानी ॥ ३ ॥ दारुन दसह दाह उर ब्यापा। बरिन न जािहं िबलाप कलापा ॥ ु ु राम उठाइ मातु उर लाई। किह मदृ बचन बहिर समुझाई ॥ ु ु ४ ॥

    दोहा

    समाचार तेिह समय सुिन सीय उठी अकुलाइ। जाइ सासु पद कमल जुग बंिद बैिठ िसरु नाइ ॥ ५७ ॥

    दीिन्ह असीस सासु मदृ बानी।ु अित सुकुमािर देिख अकुलानी ॥ बैिठ निमतमुख सोचित सीता। रूप रािस पित ेम पुनीता ॥ १ ॥ चलन चहत बन जीवननाथ।ू केिह सकृुती सन होइिह साथू ॥ की तनु ान िक केवल ाना। िबिध करतबु कछ जाइ न जानाु ॥ २ ॥

  • रामचिरतमानस - 28 - अयोध्याकांड

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    चारु चरन नख लेखित धरनी। नूपुर मुखर मधुर किब बरनी ॥ मनहुँ ेम बस िबनती करहीं। हमिह सीय पद जिन पिरहरहीं ॥ ३ ॥ मजुं िबलोचन मोचित बारी। बोली देिख राम महतारी ॥ तात सुनह िसय अित सुकुमारी। सासु ससरु पिरजनिह िपआरी ॥ ु ४ ॥

    दोहा

    िपता जनक भपूाल मिन ससुर भानुकुल भानु। पित रिबकुल कैरव िबिपन िबधु गुन रूप िनधानु ॥ ५८ ॥

    मैं पुिन पु बधू ि य पाई। रूप रािस गुन सील सहुाई ॥ नयन पुतिर किर ीित बढ़ाई। राखेउँ ान जािनिकिहं लाई ॥ १ ॥ कलपबेिल िजिम बहिबिध लाली। सींिच सनेहु सिलल ितपाली ॥ फूलत फलत भयउ िबिध बामा। जािन न जाइ काह पिरनामा ॥ २ ॥ पलँग पीठ तिज गोद िहंड़ोरा। िसयँ न दीन्ह पगु अविन कठोरा ॥ िजअनमूिर िजिम जोगवत रहऊँ। दीप बाित निहं टारन कहऊँ ॥ ३ ॥ सोइ िसय चलन चहित बन साथा। आयसु काह होइ रघुनाथा। चदं िकरन रस रिसक चकोरी। रिब रुख नयन सकइ िकिम जोरी ॥ ४ ॥

    दोहा

    किर केहिर िनिसचर चरिहं द जंतुु बन भिूर। िबष बािटकाँ िक सोह सतु सुभग सजीविन मूिर ॥ ५९ ॥

    बन िहत कोल िकरात िकसोरी। रचीं िबरंिच िबषय सुख भोरी ॥ पाइन कृिम िजिम किठन सुभाऊ। ितन्हिह कलेस ुन कानन काऊ ॥ १ ॥ कै तापस ितय कानन जोगू। िजन्ह तप हेतु तजा सब भोगू ॥ िसय बन बिसिह तात केिह भाँती। िच िलिखत किप देिख डेराती ॥ २ ॥ सरुसर सुभग बनज बन चारी। डाबर जोगु िक हंसकुमारी ॥ अस िबचािर जस आयसु होई। मैं िसख देउँ जानिकिह सोई ॥ ३ ॥ जौं िसय भवन रहै कह अबंा। मोिह कहँ होइ बहत अवलंबा ॥ ु सिुन रघुबीर मातु ि य बानी। सील सनेह सुधाँ जनु सानी ॥ ४ ॥

  • रामचिरतमानस - 29 - अयोध्याकांड

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    दोहा

    किह ि य बचन िबबेकमय कीिन्ह मातु पिरतोष। लगे बोधन जानिकिह गिट िबिपन गुन दोष ॥ ६० ॥

    मासपार