उ³राखण्ड मqक्त शवĸशवĮालय,...

234
BEDSEDE-A2 समकालीन भारत एव शिा Contemporary India and Education शवशि शिा शवभाग शिािा शवािाखा उराखड म शवशवालय, हवानी

Transcript of उ³राखण्ड मqक्त शवĸशवĮालय,...

  • BEDSEDE-A2

    समकालीन भारत एवं शिक्षा

    Contemporary India and Education

    शवशिष्ट शिक्षा शवभाग

    शिक्षािास्त्र शवद्यािाखा

    उत्तराखण्ड मुक्त शवश्वशवद्यालय, हल्द्वानी

  • इकाई लेखन इकाई सखं्या इकाई लेखन इकाई सखं्या

    डॉ० दीप्ती जौहरी

    सहायक प्रोफेसर एवं ववभागाध्यक्ष,

    विक्षा ववभाग,

    बरेली कालेज, बरेली,

    उत्तर प्रदेि

    1 सशु्री ममता कुमारी

    सहायक प्रोफेसर,

    विक्षािास्त्र ववद्यािाखा,

    उत्तराखण्ड मकु्त ववश्वववद्यालय,

    हल्द्वानी, नैनीताल, उत्तराखण्ड

    7, 9, 12

    डॉ० वदनेि कुमार

    सहायक प्रोफेसर,

    विक्षािास्त्र ववद्यािाखा,

    उत्तराखण्ड मकु्त ववश्वववद्यालय,

    हल्द्वानी, नैनीताल, उत्तराखण्ड

    2, 3, 4, 5, 6, 8, 10,

    11, 13, 14, 15

    डॉ० बजृेि राय

    सहायक प्रोफेसर,

    ववविष्ट विक्षा संकाय,

    डॉ० िकंुतला वमश्रा राष्ट्रीय पनुवाास

    ववश्वववद्यालय, लखनऊ, उत्तर प्रदेि

    16

    समस्त लेखों/पाठों से संबंशित शकसी भी शववाद के शलए सबंंशित लेखक शिम्मेदार होगा ।

    शकसी भी शववाद का िूररसशडक्िन हल्द्वानी (नैनीताल) होगा ।

    कापीराइट: उत्तराखण्ड मुक्त शवश्वशवद्यालय

    प्रकािन वर्ष: 2016

    ससं्करण: सीशमत शवतरण हेतु

    प्रकािक: कुलसशिव, उत्तराखण्ड मुक्त शवश्वशवद्यालय, हल्द्वानी, नैनीताल, उत्तराखण्ड -263139

  • समकालीन भारत एव ंशिक्षा

    Contemporary India and Education

    BEDSEDE-A2

    इकाई सं० इकाई का नाम पृष्ठ स०ं

    01 शिक्षा: प्रत्यय, परिभाषा तथा काययके्षत्र

    Education: Concept, Definition and Scope

    1-16

    02 शिक्षा के साधन: औपचारिक, अनौपचारिक एवं शनिौपचारिक

    Agencies of Education: Formal, Informal and Non-formal

    17- 25

    03 प्रकृशतवाद

    Naturalism

    26- 41

    04 आदियवाद

    Idealism

    42- 56

    05 प्रयोजनवाद

    Pragmatism

    57- 74

    06 अशततत्ववाद

    Existentialism

    75-88

    07 महात्मा गााँधी

    Mahatma Gandhi

    89-105

    08 िवीन्द्रनाथ टैगोि

    Rabindranath Tagore

    106-121

    09 श्री अिशवन्द्द

    Sri Aurobindo

    122-134

    10 समकालीन भाितीय परिप्रेक्ष्य

    Contemporary Indian Perspective

    135-144

    11 गणुवत्ता एवं समता के पहल ू

    Issues of Quality and Equity

    145-160

    12 शिक्षा संबंधी संवैधाशनक प्रावधान

    Constitutional Provisions with Regard to Education

    161-172

    13 िाष्ट्रीय शिक्षा आयोग 1964-66 (कोठािी कमीिन)

    National Education Commission (1964-66)

    173-188

    14 िाष्ट्रीय शिक्षा नीशत 1986 189-204

  • National Education Policy 1986

    15 संिोशधत िाष्ट्रीय शिक्षा नीशत 1986 (1992)

    Revised National Education Policy, 1986 (1992)

    205-217

    16 शविेष तथा समावशेित शिक्षा के सदंभय में िाष्ट्रीय एवं अतंििाष्ट्रीय नीशतयााँ औि काननू

    National & International Policies and Laws in context of Special and

    Inclusive Education

    218-230

  • समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2

    उत्तराखण्ड मकु्त विश्वविद्यालय 1

    इकाई-1-शिक्षा: प्रत्यय , पशिभाषा तथा कायय - क्षते्र (Education: Concept, Definition and Scope)

    1.1 प्रस्तािना 1.2 उद्दशे्य 1.3 विक्षा का अर्थ

    1.3.1 विक्षा का विशे्लषणात्मक ि दािथवनक अर्थ 1.3.2 विक्षा का समाजिास्त्रीय ि राजनैवतक अर्थ 1.3.3 विक्षा का आवर्थक ि मनोिजै्ञावनक अर्थ 1.3.4 विक्षा का समग्र एि ंिास्तविक अर्थ

    1.4 विक्षा के कायथ 1.4.1 विक्षा के सामान्य कायथ 1.4.2 मानिीय जीिन में विक्षा के कायथ 1.4.3 सामावजक जीिन में विक्षा के कायथ 1.4.4 राष्ट्रीय जीिन में विक्षा में कायथ

    1.5 विक्षा का विषय क्षेत्र 1.5.1 िैवक्षक समस्याए ं1.5.2 अध्ययन के विविष्ट क्षेत्र

    1.6 सारांि 1.7 िब्दािली 1.8 स्िमूलयांकन हतेु प्रश्नों के उत्त्तर 1.9 संदर्थ ग्रन्र् सूची 1.10 वनबन्धात्मक प्रश्न

    1.1 प्रस्तावना मानि प्रकृवत की सिोत्तम रचना ह,ै जो अपने सार् कुछ जन्मजात िवक्तयााँ लेकर पदैा होता ह।ै

    विक्षा के द्वारा मानि की इन जन्मजात िवक्तयों का विकास, उसके ज्ञान एिं कला कौिल में िवृि

    एिं व्यिहार में पररितथन वकया जाता ह ैऔर उस ेसभ्य, ससुंस्कृत एिं योग्य नागररक बनाया जाता ह।ै

  • समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2

    उत्तराखण्ड मकु्त विश्वविद्यालय 2

    यह कायथ मानि के जन्म से ही उसके पररिार द्वारा अनौपचाररक रूप से तत्पश्चात विद्यालय र्ेजकर

    औपचाररक रूप से प्रारम्र् कर वदया जाता ह।ै विद्यालय के सार्-सार् उस ेपररिार एिं समदुाय में र्ी

    कुछ-न कुछ वसखाया जाता रहा ह ैऔर सीखने - वसखाने का यह क्रम विद्यालय छोड़ने के बाद र्ी

    चलता रहता ह ैऔर जीिन र्र चलता ह।ै अपने िास्तविक अर्थ में वकसी समाज में सदिै चलन े

    िाली सीखने वसखाने की यह सप्रयोजन प्रवक्रया ही विक्षा ह।ै इस इकाई में आप विक्षा के विवर्न्न

    अर्थ यर्ा-िावब्दक, संकुवचत, व्यापक, विशे्लषणात्मक, समग्र एि ंव्यापक अर्थ से अिगत हो सकें गे

    सार् ही इन अर्थ को पररर्ावषत करने िाले विवर्न्न दृवष्टकोणों के बारे में जान सकेगें।

    1.2 उद्दशे्य इस इकाई के अध्ययन के पश्चात ्आप -

    1. विक्षा के सकुंवचत एिं व्यापक अर्थ को स्पष्ट कर सकें गे। 2. विक्षा के अर्थ को र्ारतीय दृवष्टकोण एिं पाश्चात्य दृवष्टकोण के आधार पर स्पष्ट कर सकें गे। 3. विक्षा के सामान्य, मानिीय, सामावजक, राष्ट्रीय जीिन में कायथ को पररर्ावषत कर सकें गे। 4. विक्षा के विषय विस्तार के आधार पर विक्षा की प्रवक्रया एिं स्िरूप को समझ सकें गे।

    1.3शिक्षा का अर्थ(Meaning of Education) र्ारतीय दृवष्टकोण में विक्षा िब्द संस्कृत र्ाषा की विक्ष ्धात ुमें अ प्रत्यय लगने से बना ह।ै विक्ष ्

    का अर्थ ह ैसीखना और वसखाना। इसवलए विक्षा का अर्थ हआु- सीखने - वसखाने की प्रवक्रया। यवद

    हम विक्षा के वलए प्रयकु्त अगें्रजी िब्द एजकेूिन पर विचार करें तो उसका र्ी यही अर्थ वनकलता

    ह।ै एजकेूिन िब्द लैविन र्ाषा के एजकेूिम (Educatum) िब्द से बना ह ैऔर एजकेूिम िब्द

    उसी र्ाषा के (E) तर्ा ड्यकूो (Duco) िब्दों से वमलकर बना ह।ै ए का अर्थ ह ैअन्दर से और

    ड्यकूो का अर्थ ह ैआगे बढ़ाना। इसवलए एजकेूिन िब्द का अर्थ हुआ- बच्चे की आन्तररक

    िवक्तयों को बाहर की ओर प्रकि करना। इस प्रकार विक्षा िब्द का समग्र रूप से अर्थ बालक की

    जन्मजात िवक्तयों का सिाांगीण विकास ह।ै

    शिक्षा का व्यापक अर्थ -प्रत्येक प्राणी जन्म के बाद सिथप्रर्म पहला पाठ मां की गोद में पढ़ता ह ै

    तत्पश्चात अपने घरेल ूिातािरण तर्ा आस-पास के पयाथिरण वजसके र्ी संपकथ में आता ह,ै उसस े

    कुछ-न-कुछ सीखता रहता ह।ै इस सीखन े ि अनरु्ि का पररणाम यह होता ह ै वक िह धीरे-धीरे

    विवर्न्न प्रकार से अपने र्ौवतक , सामावजक और आध्यावत्मक िातािरण स े अपना सामजंस्य

    स्र्ावपत करता ह।ै इस प्रकार िस्ततुः सीखने -वसखाने की यह प्रवक्रया जीिनपयथन्त चलती रहती ह।ै

    विक्षा के व्यापक अर्थ को प्रकि करने में कहा जा सकता ह ैवक विक्षा वकसी समाज में सदिै चलन े

    िाली िह सोद्दशे्य सामावजक प्रवक्रया ह,ै वजसके द्वारा मनषु्ट्य की जन्मजात िवक्तयों का विकास,

  • समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2

    उत्तराखण्ड मकु्त विश्वविद्यालय 3

    उसके ज्ञान एि ंकला-कौिल में िवृद्व एि ंव्यिहार में पररितथन वकया जाता ह ैऔर इस प्रकार उस े

    सभ्य, ससुंस्कृत एिं योग्य नागररक बनाया जाता ह।ै इसके द्वारा व्यवक्त एिं समाज दोनों वनरन्तर

    विकास करते ह।ै

    विद्वान जे.एस. मकेैन्जी के िब्दों में:-व्यापक दृवष्ट से विक्षा जीिन पयथन्त चलने िाली प्रवक्रया ह ैऔर

    जीिन के प्रत्येक अनरु्ि के द्वारा इसका विकास होता ह।ै

    शिक्षा का संकुशित अर्थ:-विक्षा के सकुंवचत या सीवमत अर्थ के अनसुार विक्षा का अवर्प्राय,

    बालक को विद्यालय में दी जाने िाली विक्षा से ह।ै दसूरे िब्दों में संकुवचत अर्थ में विक्षा वकसी

    समाज में एक वनवश्चत समय तर्ा वनवश्चत स्र्ान (विद्यालय) में सवुनयोवजत ढंग से चलने िाली िह

    सोदेश््य सामावजक प्रवक्रया ह ैवजसके द्वारा मनषु्ट्य की जन्मजात िवक्तयों का विकास, उसके ज्ञान एि ं

    कला - कौिल में िवृि एि ंव्यिहार में पररितथन वकया जाता ह,ै और इस प्रकार उसे सभ्य, ससुंस्कृत

    एिं योग्य नागररक बनाया जाता ह।ै इसके द्वारा व्यवक्त एिं समाज दोनों वनरन्तर विकास करते ह।ै

    विद्वान जे0एस0मेंकें जी के अनसुार- संकुवचत अर्थ में विक्षा का अवर्प्राय -हमारी िवक्तयों के

    विकास एिं उन्नवत के वलए चेतनापिूथक वकए गये वकसी र्ी प्रयास से हो सकता ह।ै

    1.3.1 शिक्षा का शिशे्लषणात्मक ि दािथशनक अर्थ :-

    शिक्षा का शिशे्लषणात्मकअर्थ:- विक्षा के विशे्लषणात्मकअर्थ को स्पष्ट करने के वलए मलू र्वूमका

    दािथवनकों, समाजिावस्त्रयों , राजनीवतिावस्त्रयों, अर्थिावस्त्रयों, मनोिैज्ञावनकों एिं िैज्ञावनकों ने अदा

    की ह ैऔर इन सबने विक्षा का संवक्षप्त वििरण प्रस्ततु कर इनकेद्वारा उद्घावित तथ्यों के आधार पर

    विक्षा के स्िरूप केा समझन ेएिं पररर्ावषत करन ेका प्रयत्न वकया ह।ै

    शिक्षा का दािथशनक अर्थ:-दािथवनकों की दृवष्ट से विक्षा मनषु्ट्य जीिन के अवन्तम उद्दशे्य की प्रावप्त

    का साधन होती ह।ै और चूवंक मनषु्ट्य जीिन के अवन्तम उद्दशे्य के सम्बन्ध में दािथवनकों में मतैक्य

    नहीं ह ैअतः वनम्नवलवखत विवर्न्न पररर्ाषायें विक्षा के सम्बन्ध में दी गयी ह।ै

    जगतगुरू िंकरािायथ की दृशि से -

    विक्षा िह ह ैजो मवुक्त वदलाये। (सः विद्या या विमकु्तये)

    स्िामी शििेकानन्द के अनुसार -

    मनषु्ट्य की अन्तथवनवहत पणूथता को अवर्व्यक्त करना ही विक्षा ह।ै

    यूनानी दािथशनक प्लेटो िरीर ि आत्मा दोनों के महत्ि को स्िीकार करते हैं तर्ा कहते हैं विक्षा

    का कायथ मनषु्ट्य के िरीर और आत्मा को िह पणूथता प्रदान करता ह ैवजसके वक िे योग्य ह।ै

    युगपुरूष महात्मा गााँधी ने िरीर, मन और आत्मा, तीनो के विकास पर समान रूप स ेबल देते हुये

    कहा ह ै– “विक्षा से मेंरा अवर्प्राय बालक और मनषु्ट्य के िरीर, मन तर्ा आत्मा के सिाांगीण एि ं

    सिोत्कृष्ट विकास से ह”ै।

    प्रकृशतिादी दािथशनक हरबटथ स्पेन्सर के अनुसार -

  • समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2

    उत्तराखण्ड मकु्त विश्वविद्यालय 4

    “विक्षा का अर्थ अन्तःिवक्तयों का बाहृय जीिन से समन्िय स्र्ावपत करना ह”ै।

    प्रयोजनिादी मनषु्ट्य को सामावजक प्राणी मानते ह ैऔर यह मानते हैं वक विक्षा के द्वारा मनषु्ट्य में

    ितथमान में अनकूुलन करने एिं र्विष्ट्य के समाज का वनमाथण करने की क्षमता का विकास करना

    चावहए। प्रयोजनिादी दािथशनक जॉन ड्यूिी के िब्दों में – “विक्षा व्यवक्त की उन सब

    योग्यताओ ंका विकास ह,ै जो उसमें अपने पयाथिरण पर वनयन्त्रण रखने तर्ा अपनी सम्र्ािनाओ ंको

    पणूथ करने की सामथ्यथ प्रदान करे”।

    1.3.2 शिक्षा का समाजिास्त्रीय ि राजनैशतक अर्थ –

    शिक्षा का समाजिास्त्रीय अर्थ:- समाजिावस्त्रयों के मतानसुार विक्षा एक सामावजक प्रवक्रया

    मानी जाती ह ैक्योंवक इनके अनसुार समाज के अवस्तत्ि पर ही विक्षा का अवस्तत्ि वनर्थर करता ह ै

    इस दृवष्ट से विक्षा की वनम्नवलवखत पररर्ाषायें महत्िपणूथ र्वूमका वनर्ाती ह ैयर्ा -

    1. विक्षा एक उद्दशे्यपणूथ एिं समायोजनपणूथ प्रवक्रया ह।ै 2. विक्षा एक विकासात्मक प्रवक्रया ह।ै 3. विक्षा एक गवतिील प्रवक्रया ह।ै 4. विक्षा एक वद्वध्रिुीय प्रवक्रया ह।ै 5. विक्षा एक वत्रध्रिुीय प्रवक्रया ह।ै 6. विक्षा सांस्कृवतकरण ह।ै 7. विक्षा एक अनिरत चलने िाली प्रवक्रया ह।ै

    शिक्षा का राजनैशतक अर्थ - विक्षा के राजनवैतक दृवष्टकोण के अनसुार विक्षा, राष्ट्र वनमाथण का

    साधन ह।ै राष्ट्र का वनमाथण , शे्रष्ठ नागररकों के वनमाथण से ही संर्ि ह ै वजसके वलए विक्षा से यह

    अपेक्षा की जाती ह ै वक िह व्यवक्त के अन्दर राष्ट्रप्रेम उत्पन्न करे।

    1.3.3 शिक्षा का आशर्थक ि मनोिैज्ञाशनक अर्थ –

    विक्षा का आवर्थक अर्थ –

    अर्थिावस्त्रयों के विचार में विक्षा एक उत्पादक प्रवक्रया ह ैवजसमें विक्षा का िह आवर्थक वनिेि ह ै

    वजसके द्वारा व्यवक्त में उत्पादन एिं संगठन के कौिलों का विकास वकया जाता ह ैऔर इस प्रकार

    व्यवक्त, समाज और राष्ट्र की उत्पादन क्षमता बढ़ाई जाती ह ैऔर इनका आवर्थक विकास वकया

    जाता ह।ै

    शिक्षा का मनोिैज्ञाशनक अर्थ - मनोिैज्ञावनकों के विचार में मनषु्ट्य एक मनोिारीररक प्राणी ह ैजो

    जन्म से कुछ िवक्तयां लेकर पदैा होता ह।ै अतः विक्षा के द्वारा सिथप्रर्म इन िवक्तयों का विकास

    होना चावहए। जमथन शिक्षािास्त्री पैस्टालॉजी के िब्दों में इसे वनम्न प्रकार पररर्ावषत वकया जा

  • समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2

    उत्तराखण्ड मकु्त विश्वविद्यालय 5

    सकता ह ै–“विक्षा मनषु्ट्य की जन्मजात िवक्तयों का स्िार्ाविक, समरस एिं प्रगवतिील विकास

    ह।ै”

    फ्रोबेल के अनुसार –“विक्षा िह प्रवक्रया ह ै वजसके द्वारा बालक अपनी आन्तररक िवक्तयों को

    बाहर कीओर प्रकि करता ह।ै”

    1.3.4 शिक्षा का समग्र एिं िास्तशिक अर्थ-

    विक्षा के विषय में दािथवनकों, समाजिावस्त्रयों, राजनीवतिावस्त्रयों, अर्थिावस्त्रयों, मनोिैज्ञावनकों और

    िैज्ञावनकों के वर्न्न-वर्न्न दृवष्टकोण ह।ै उपरोक्त सर्ी दृवष्टकोणों से विक्षा की प्रकृवत के विषय में ये

    तथ्य उजागर होते ह ैवक विक्षा एक सोद्दशे्य, अविरल, गवतिील, ि विकास की प्रवक्रया ह।ै उपयुथक्त

    दी गई सर्ी पररर्ाषाओ ंको यवद सार रूप में प्रस्ततु वकया जाये तो इसे वनम्न रूप में पररर्ावषत

    करना चावहए -

    विक्षा वकसी समाज में सदिै चलन ेिाली िह सोद्दशे्य सामावजक प्रवक्रया ह ैवजसके द्वारा मनषु्ट्य की

    जन्मजात िवक्तयों का विकास, उसके ज्ञान, एिं कला - कौिल में िवृि तर्ा व्यिहार में पररितथन

    वकया जाता ह ैऔर इस प्रकार उसे सभ्य, ससुंस्कृत एिं योग्य नागररक बनाया जाता ह।ै इसके द्वारा

    व्यवक्त एिं समाज दोनों वनरन्तर विकास करते ह।ै

    विक्षा की उपरोक्त पररर्ाषा अपने आप में पणूथ एिं समवन्ित दृवष्टकोण समावहत वकए हुये ह ैतर्ा

    विक्षा के अर्थ को पयाथप्त रूप से स्पष्ट करती ह।ै

    स्िमूलयांकन हेतु प्रश्न

    1. प्रत्येक प्राणी जन्म के बाद सिथप्रर्म पहला पाठ .......की गोद में पढ़ता ह।ै 2. विक्षा के द्वारा ........................दोनों वनरन्तर विकास करते ह।ै 3. विक्षा के द्वारा मनषु्ट्य की जन्मजात िवक्तयों का विकास, उसके ज्ञान एिं कला-कौिल में

    िवृि एिं ...........पररितथन वकया जाता ह,ै

    1.4 शिक्षा के कायथ (Functions of Education) विक्षा एक बहुमखुी प्रवक्रया ह।ै कोई व्यवक्त, समाज अर्िा राज्य विक्षा के द्वारा जो प्राप्त करना

    चाहता ह ैिे ही विक्षा के उद्दशे्य होते ह ैऔर इन उद्दशे्यों की पवूतथ करना ही विक्षा के कायथ होते ह।ै

    अनेक विक्षाविदों न े मानि एि ं समाज दोनों की आिश्यकताओ ंको ध्यान में रखकर विक्षा के

    विवर्न्न कायथ वनधाथररत वकए ह।ै ज ान ड्यिूी के अनसुार विक्षा का कायथ -असहाय प्राणी के

    विकास में सहायता पहुाँचाना ह,ै तावक िह सखुी, नैवतक और कुिल मानि बन सके।

  • समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2

    उत्तराखण्ड मकु्त विश्वविद्यालय 6

    विक्षा के कायथ

    विक्षा के सामान्य मानिीय जीिन सामावजक जीिन राष्ट्रीय जीिन में

    कायथ में विक्षा के कायथ में विक्षा के कायथ विक्षा के कायथ

    1.4.1 शिक्षा के सामान्य कायथ-

    विक्षा के कुछ सामान्य कायथ वनम्नवलवखत हैं:

    1. जन्मजात िवक्तयों का प्रगवतिील विकास- बालक कुछ अतंवनथवहत िवक्तयों जैसे - प्रेम, वजज्ञासा, तकथ , कलपना, एिं आत्म सम्मान आवद को लेकर जन्म लेता ह।ै विक्षा

    इनअतंवनथवहत िवक्तयों का विकास करती ह।ै पेस्िलॉजी के विचार से इसको बल वमलता ह ै

    -

    विक्षा मनषु्ट्य की अतंवनथवहत िवक्तयों का स्िर्ाविक, सामजंस्यपणूथ एिं प्रगवतिील विकास

    ह।ै

    2. र्ाषा, ज्ञान, मानवसक िवक्तयों का विकास- विक्षा द्वारा व्यवक्तत्ि के वनमाथण के वलए बालक के िारीररक, मानवसक, नैवतक आध्यावत्मक एि ं संिेगात्मक आवद पक्षों का

    विकास वकया जाता ह ै।

    िी0पी0नन के अनसुार -विक्षा, िैयवक्तकता का पणूथ विकास ह,ै वजससें वक व्यवक्त अपनी

    पणूथ योग्यता अनसुार मानि जीिन को योग दे सके।

    3. नैवतक एिं चाररवत्रक विकास एि ंमलूय विक्षा- चररत्र का अर्थ ह ै- आन्तररक दृढ़ता और व्यवक्तत्ि की एकता। विक्षा का उद्दशे्य - ज्ञानाजथन करना और िारीररक िवक्त बढ़ाना ही

    नहीं िरन ्उत्तम चररत्र का वनमाथण करना र्ी ह।ै

    जमथन विक्षािास्त्री हरबािथ के अनसुार - अच्छे नैवतक चररत्र का विकास ही विक्षा ह।ै

    4. संस्कृवत का संरक्षण, हस्तान्तरण एिं विकास- वकसी समाज की संस्कृवत एिं सभ्यता का संरक्षण, आने िाली पीढ़ी को हस्तान्तरण एिं सांस्कृवतक विकास का कायथ करने में विक्षा

    महत्िपणूथ र्वूमका वनर्ाती ह।ै

    ओिािे के अनसुार- विक्षा का एक कायथ समाज के सांस्कृवतक मलूयों और व्यिहार के

    प्रवतमानों को अपने तरूण और कायथिील सदस्यों को प्रदान करना ह।ै

    5. ियस्क जीिन की तैयारी - विक्षा बालक को ियस्क जीिन के वलए तैयार करती ह।ै विक्षा के इस पहल ूपर बल देते हुये वमलिन ने वलखा ह ै- मैं उसी को पणूथ विक्षा कहता ह ाँ, जो

  • समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2

    उत्तराखण्ड मकु्त विश्वविद्यालय 7

    मनषु्ट्य को िावंत और यदु्व के समय व्यवक्तगत और सािथजवनक - दोनों प्रकार के सब कायों

    को उवचत रूप से करने के योग्य बनाती ह।ै

    6. उत्तम नागररकों का वनमाथण- उत्तम नागररक, उत्तम राज्य का आधार स्तम्र् ह।ै यही कारण ह ैवक प्रत्येक राज्य आिा करता ह ै वक उसके नागररक-ईमानदार, पररश्रमी, देिर्क्त और

    कतथव्य तर्ा दावयत्िों को र्ली प्रकार समझते हों तर्ा इन गणुों का विकास विक्षा द्वारा ही

    वकया जा सकता ह।ै

    7. सामावजक पररितथन, सधुार, ि उन्नवत- समाज द्वारा बालक की विक्षा का आयोजन इसवलए वकया जाता ह,ै तावक बालक को न केिल समाज के अनकूुल बनाये, िरन समाज

    के वनयमों और वसद्वान्तों का ज्ञान प्राप्त करके उसका सधुार करें और उस ेउवचत वदिा में

    आगे बढ़ायें। ड्यिूी के िब्दों में -विक्षा में अवत वनवश्चत और अलपतम साधनों द्वारा

    सामावजक औरसंस्र्ागत उद्दशे्यों के सार्-सार् समाज के कलयाण, प्रगवत और सधुार में

    रूवच का पवुष्ट्पत होना पाया जाता ह।ै

    8. उपरोक्त पंवक्तयों में विक्षा के कुछ कायों का िणथन वकया गया ह,ै परन्त ुविक्षा का कायथ के्षत्र अवत व्यापक ह।ै विक्षा की प्रवक्रया वस्र्र न होकर सदैि चलने िाली ह।ैअतः विक्षा का

    कायथ वनधाथररत करना आसान नहींह।ैडा0 जावकर हसुैन के अनसुार विक्षा का प्रमखु कायथ

    यह ह ै - विक्षा का कायथ बालक के मवस्तष्ट्क को िदु्व, नैवतक और बौवद्वक मलूयों को

    अनरु्ि करन े में इस प्रकार सहायता दनेा ह ै वक िह इन मलूयों स े प्ररेरत होकर, इनको

    सिोत्तम प्रकार से अपने कायथ और जीिन में प्राप्त करे।

    1.4.2मानि जीिन में शिक्षा के कायथ

    महान दािथवनक डा0 राधा कृष्ट्णन के अनसुार- विक्षा को मानिीय होना चावहए। इसमें मात्र बौवद्वक

    प्रविक्षण का ही स्र्ान नहीं होना चावहए िरन ्आत्मानिुासन तर्ा हृदय की पवित्रता पर र्ी बल

    वदया जाना चावहए।र्ारतीय समाज की ितथमान आिश्यकताओ,ं मलूयों, गणुों, समस्याओ ं तर्ा

    उद्दशे्यों को ध्यान में रखते हुये मानि जीिन के वनम्न कायथ ह ै-

    1. मानिीय आिश्यकताओ ंकी पवूतथ - मानि जीिन में विक्षा के कायथ का महत्ि बताते हुये स्िामी वििेकानन्द न े वलखा ह ै - विक्षा का कायथ यह पता लगाना ह ै वक जीिन की

    समस्याओ ंको वकस प्रकार हल वकया जाय और आधवुनक सभ्य समाज का गम्र्ीर ध्यान

    इसी बात में लगा हुआ ह।ै विक्षा का कायथ व्यवक्त की आिश्यकता की पवूतथ करने के

    अवतररक्त उसे समाज के अन्य व्यवक्तयों के सार् सामावजक सम्बन्ध स्र्ावपत करने में मदद

    देना तर्ा ऐसे अिसर प्रदान करना ह ैवजससे वक िह उन्नवत कर सके।

    2. आत्मवनर्थरता की प्रावप्त- विक्षा का एक महत्िपणूथ कायथ व्यवक्त को अपना जीिन-यापन कर पाने में सक्षम बनाना ह।ै स्िामी वििेकानन्द के अनसुारहमें उस विक्षा की आिश्यकता

  • समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2

    उत्तराखण्ड मकु्त विश्वविद्यालय 8

    हवैजसके द्वारा चररत्र का वनमाथण होता ह ै मवस्तष्ट्क की िवक्त बढ़ती ह,ै बवुद्व का विकास

    होता ह ैऔर मनषु्ट्य अपने पैरों पर खड़ा हो सकता ह।ै

    3. व्यािसावयक कुिलता की प्रावप्त- मानि जीिन में विक्षा का एक कायथ, छात्रों को व्यािसावयक कुिलता की प्रावप्त में सहायता प्रदान करना ह।ै इससे राष्ट्रीय आय और

    उत्पादकता में िवृद्व होती ह।ै

    4. िातािरण से समायोजन एिं पररितथन- विक्षा, व्यवक्त को िातािरण के सार् समायोजन करना वसखाती ह ैतर्ा िातािरण को पररितथन योग्य बनाती ह।ै

    5. जॉन ड्यिूी के अनसुार -विक्षा व्यवक्त में उन क्षमताओ ंका विकास ह ैजो उसको अपन ेिातािरण को वनयंवत्रत तर्ा अपनी र्ािी सम्र्ािनाओ ंको पणूथ करने के योग्य बनाती ह ै।

    6. जीिन के वलए तैयारी - विक्षा व्यवक्त को जीिन के संघषो स ेवनपिने के वलए तैयार करती ह।ै विलमॉि का कर्न ह ै -‘‘ विक्षा जीिन की तैयारी ह।ै’’ अब यवद विक्षा-जीिन की

    तैयारी ह,ै तो विक्षा का कायथ ह ै- बच्चों को जीिन की कवठनाई ि संघषो का सामना करन े

    हते ुतैयार करना। विक्षा के इस कायथ पर अपने विचार व्यक्त करते हुये स्िामी वििेकानन्द न े

    वलखा ह ै -‘‘ यवद कोई मनषु्ट्य केिल कुछ परीक्षायें पास कर सकता ह।ै और अच्छे

    व्याख्यान दे सकता हो तो आप उसको विवक्षत समझते ह।ै क्या िह विक्षा,विक्षा कहलान े

    के योग्य ह,ै जो सामान्य जनसमहू को जीिन के संघषथ के वलए अपने आप को तैयार करने में

    सहायता नही देती ह,ै और उनमें िेर का सा साहस उत्पन्न नहीं करती ह।ै’’

    7. कायथ का व्यिहाररक ज्ञान - विक्षा का अवन्तम और महत्िपणूथ कायथ ह ै - बालकों को विवर्न्न कायथ के्षत्रों का व्यिहाररक ज्ञान देना। हमारे दिे की विक्षा व्यिस्र्ा में वसिांत पर

    आिश्यकता से अवधक बल वदया जाता ह ैफलतः बालक को जीिन के वकसी र्ी कायथ-

    के्षत्र का व्यिहाररक ज्ञान नहीं प्राप्त होता ह।ै

    अन्ततः हम कह सकते ह ै वक मानि जीिन में विक्षा का कायथ समाज के सदस्यों की उन सब

    िवक्तयों, क्षमताओ ंि गणुों का विकास करना ह,ै जो उनमेंह,ै वजससे वक िे वनवदथष्ट लक्ष्य की ओर

    बढ़ सकें ।

    1.4.3 सामाशजक जीिन में शिक्षा के कायथ

    चूंवक मनषु्ट्य एक सामावजक प्राणी ह,ै अतः समाज के सार् वनिाथह करने के वलए विक्षा को अनके

    कायथ करने पड़ते हैं। वजसमें सें कुछ कायथ मखु्यतः वनम्नवलवखत हैं -

    1. समाज के सार् अनकूुलन। 2. सामावजक कुिलता की उन्नवत एिं सधुार। 3. सामावजक कतथव्यों की पवूतथ। 4. संस्कृवत और सभ्यता का विकास।

  • समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2

    उत्तराखण्ड मकु्त विश्वविद्यालय 9

    5. व्यवक्तगत वहत को सामावजक वहत से दरू रखना। 6. सामावजक र्ािना की जागवृत। 7. सामावजक गणुों का विकास।

    प्रत्येक व्यवक्त समाज में ही जन्म लेता ह,ै समाज में ही पललवित होकर जीिन व्यतीत करता ह ैऔर

    समाज में ही उसकी जीिन लीला समाप्त हो जाती ह।ै ऐसी वस्र्वत में विक्षा का महत्िपणूथ कतथव्य हो

    जाता ह ैवक बालकों में सामावजक र्ािना जागतृ करे, उनमें दया, परोपकार, सहनिीलता, सौहादथ,

    सहानरु्वूत, अनिुासन इत्यावद सामावजक गणुों का विकास करे।

    एच0गाडथन के अनसुार- विक्षा को यह जानने की आिश्यकता नहींह ैवक िह सामावजक प्रवक्रया को

    उन व्यवक्तयों के सम्मखु लाने की वदिा में आगे बढ़े जो इसके वलए अयोग्य हैं।विक्षा समाज को

    वदिा देती ह।ै ओिािे के अनसुार- यह वनःसंदहे सत्य ह ैवक सामावजक पररितथन में विक्षा को एक

    महत्िपणूथ कायथ करना पड़ता ह।ै

    1.4.4 राष्ट्रीय जीिन में शिक्षा के कायथ

    वकसी राष्ट्र का उत्र्ान एिं पतन उसके व्यवक्तयों की शे्रष्ठता ि हीनता स ेवनधाथररत होता ह।ै

    मैकाइिर एिं पेज के अनुसार- ‘‘ राष्ट्र का गणु, उसकी सामावजक इकाइयों का गणु ह,ै अर्ाथत

    सामावजक इकाइयों का सामवूहक जीिन ही राष्ट्रीय जीिन ह।ै यवद ईधन ही खराब ह ैतो ज्योवत कैस े

    तेज हो सकती ह ै- अर्ाथत यवद सामावजक इकाइयााँ वनबथल ह,ै तो राष्ट्र कैसे ददैीमायमान हो सकता

    ह”ै।

    राष्ट्र की उन्नवत तर्ी हो सकती ह,ै जब उसके नागररक श्रषे्ठ हों। उनको ऐसा बनाना ही राष्ट्रीय जीिन

    में विक्षा का कायथ ह।ै

    1. नेतृत्ि के शलए प्रशिक्षण - राष्ट्रीय जीिन में विक्षा का मखु्य कायथ ह ै- व्यवक्तयों को इस

    प्रकार प्रविवक्षत करना ह ैवक िे सामावजक, राजनीवतक, औद्योवगक और सांस्कृवतक के्षत्रों

    में नेततृ्ि का कायथ कर सकें ।

    2. कुिल श्रशमकों की पूशतथ - राष्ट्रीय जीिन में विक्षा का कायथ - कुिल श्रवमकों की पवूतथ

    करना ह।ै ऐसे श्रवमक व्यापार और उद्योग के उत्पादन को बढ़ायेंगे। फलतः राष्ट्रीय सम्पवत्त

    में िवृद्व होगी।

    हुमायूाँ, कबीरके अनसुार -‘‘ विवक्षत श्रवमक अवधक उत्पादन में योगदान देंगे और इस

    प्रकार उद्योग तर्ा व्यिसाय - दोनों की अवधक उन्नवत होगी”।

    3. राष्ट्रीय एकता का शिकास - विक्षा का कायथ राष्ट्रीय एकता का विकास करना ह।ै

    विवक्षत व्यवक्त के सोचने का के्षत्र व्यापक हो पाता ह ै िह जावतिाद, साम्प्रदावयकता,

  • समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2

    उत्तराखण्ड मकु्त विश्वविद्यालय 10

    अन्धविश्वास, के्षत्रीयता आवद में विश्वास नहीं करता ह ैतर्ा िह एक दसूरे के सार् र्ाई-चारे

    का व्यिहार करता ह ैतर्ा देि के वहत को सिोपरर समझता ह।ै

    जिाहरलाल नेहरू के अनसुार - राष्ट्रीयता एकता के प्रश्न में जीिन की प्रत्येक िस्त ुआ

    जाती ह।ै विक्षा का स्र्ान सबसे ऊपर ह ैऔर यही आधारविला ह।ै

    4. भािात्मक एकता का शिकास - देि में राष्ट्रीय एकता स्र्ावपत करने के वलए

    देििावसयों में र्ािात्मक एकता का विकास करना बहुत आिश्यक ह।ै विक्षा हमारे चारों

    ओर र्ािात्मक एकता का िातािरण वनवमथत करती ह।ै नागररकों में उवचत संिेगो एिं एकता

    का विकास करती ह।ै

    5. सांस्कृशतक शिरासत से सम्पकथ - राष्ट्रीय जीिन में विक्षा का प्रमखु कायथ बालक को

    राष्ट्र की संस्कृवत के सम्पकथ में लाना ह।ै विक्षा बालकों को उनके राष्ट्र की संस्कृवत का ज्ञान

    कराती ह ैतर्ा देि की संस्कृवत की विकास प्रवक्रया से अिगत कराती ह।ै

    डा0 जावकर हसुैन के अनसुार - ‘‘केिल संस्कृवत की सामग्री द्वारा ही विक्षा की प्रवक्रया को

    गवत दी जा सकती ह।ै केिल इसी सामग्री से मानि-मवस्तष्ट्क का विकास हो सकता ह।ै‘‘

    6. व्यशिगत शहत को सािथजशनक शहत से शनम्न रखना- राष्ट्रीय जीिन में विक्षा का एक

    महत्िपणूथ कायथ ह ै वक िह लोगों को ऐसा प्रविक्षण दे वक अपने वहतों को अपने समहू,

    समाज, देि ि राष्ट्र के वहतो से वनम्न समझे।

    7. मनुष्ट्य को इस प्रकार प्रशिशक्षत करना है शक िह अनिुावसत रह े ि हर प्रकार का

    बवलदान करने के वलए तैयार रह,े तर्ी िह सािथजवनक वहत में योग देकर देि का कलयाण

    कर सकता ह।ै

    8. योग्य नागररक का शनमाथण करना - विक्षा का कायथ प्रत्येक नागररक में उवचत नागररकता

    का विकास करना ह।ै विक्षा द्वारा प्रत्येक बालक में देिर्वक्त, अवधकारों और कतथव्यों को

    समझने और वनर्ाने की क्षमता, देि की बागडोर सम्र्ालने की योग्यता इत्यावद को उत्पन्न

    वकया जाता ह।ैडा0 जावकर हुसनै के अनसुार -’’प्रजातावन्त्रक समाज में यह आिश्यक ह ै

    वक व्यवक्त नैवतक और र्ौवतक दोनों प्रकार से समाज के जीिन को उत्तम बनाने के

    सवम्मवलत उत्तरदावयत्िों को सहषथ स्िीकार करे”।

    अतः स्पष्ट ह ैवक विक्षा मानिीय, सामावजक तर्ा राष्ट्रीय जीिन में अपने विवर्न्न कायों को

    सम्पन्न करती ह।ै ये सर्ी एक दसूरे से घवनष्ठ सम्बन्ध रखते ह।ै इस सदंर्थ मेंबोशसगं जीका विचार ह ै

    वक- ‘‘ विक्षा का कायथ व्यवक्त और समाज के बीच ऐसा सामजंस्य स्र्ावपत करना ह ैवजसमें व्यवक्त

    अपने को मोड़ सके और पररस्र्वतयों को पनुथव्यिवस्र्त कर ले वजसस ेदोनों को अवधकावधक स्र्ाई

    सन्तोष प्राप्त हो सके”।

  • समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2

    उत्तराखण्ड मकु्त विश्वविद्यालय 11

    स्िमूलयांकन हेतु प्रश्न

    ये पररर्ाषाएं वकस वििान की हैं -

    4. “विक्षा का कायथ -असहाय प्राणी के विकास में सहायता पहुाँचाना ह,ै तावक िह सखुी,नैवतक और कुिल मानि बन सके”।

    5. “विक्षा मनषु्ट्य की अतंवनथवहत िवक्तयों का स्िर्ाविक, सामजंस्यपणूथ एिं प्रगवतिील विकास ह”ै।

    6. ‘‘ िैवक्षक समाजिास़्त्त्र विक्षा और समाजिास्त्र के पारस्पररक सम्बन्धों का अध्ययन ह।ै’’ 7. ‘‘ िैवक्षक समाजिास्त्र, समाजिास्त्र के वसिान्तों को विक्षा की सम्पणूथ प्रवक्रया पर

    वक्रयावन्ित करता ह।ै ’’

    1.5 शिक्षा का शवषय शवस्तार विक्षािास्त्र ज्ञान की िह िाखा ह ैवजसमें विक्षा प्रवक्रया के स्िरूप एिं उसके विवर्न्न अगंों तर्ा

    समस्याओ ं का दािथवनक, समाजिास्त्रीय, राजनैवतक, आवर्थक, मनोिैज्ञावनक एिं िैज्ञावनक

    दृवष्टकोणों से अध्ययन वकया जाता ह।ै जहााँ तक विक्षािास्त्र के अध्ययन के्षत्र की बात ह,ै िह बड़ा

    व्यापक ह,ै परन्त ुइस व्यापक के्षत्र में हमने अब तक जो कुछ सोचा विचारा ह,ै िह उसकी विषयिस्त ु

    ह।ै विक्षािास्त्र के अध्ययनके्षत्र एिं विषयिस्त ुको सामान्यतः वनम्नवलवखत र्ागों में बााँिा जाता ह ै-

    विक्षा दिथन- मानि जीिन बड़ा रहस्यमय ह,ै जब तक हम उसके रहस्य को नहीं समझते तब तक

    हम यह वनवश्चत नहीं कर सकते वक हमें क्या सीखना ह ैऔर क्या वसखाना ह।ै इसवलए विक्षािास्त्र के

    अन्तगथत जीिन के प्रवत जो विवर्न्न दृवष्टकोण ह,ै उनका और उनके आधार पर विक्षा के स्िरूप,

    विक्षा के उद्दशे्य और विक्षा की पाठ्यचयाथ आवद का अध्ययन वकया जाता ह।ै विक्षािास्त्र के इस

    र्ाग को विक्षादिथन कहते ह।ै

    िैवक्षक समाजिास्त्र- मनषु्ट्य एक सामावजक प्राणी ह।ै िह जो कुछ र्ी सीखता ह ैसमाज के बीच

    रहकर सीखता ह ै उसके आचार-विचार को प्रर्ावित करने में समाज और सामावजक संगठनों का

    वििेष हार् रहता ह।ै दसूरी ओर विक्षा समाज पर वनयन्त्रण रखती ह ैऔर उसका विकास करती ह।ै

    विक्षािास्त्र के अन्तगथत समाज के स्िरूप, समाज और विक्षा के आपसी सम्बन्ध, विवर्न्न

    सामावजक संगठनों एिं विक्षा की प्रवक्रया में उनके कायों, समाज और विद्यालयों के सम्बन्धों, विक्षा

    के सामावजक कायों और विक्षा तर्ा सामावजक पररितथन के आपसी सम्बन्ध आवद का अध्ययन

    वकया जाता ह।ै इस अध्ययन के्षत्र को िैवक्षक समाजिास्त्र कहते हैं।

    जैसा शक ब्राउन ने कहा ह ै-

  • समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2

    उत्तराखण्ड मकु्त विश्वविद्यालय 12

    ‘‘ िैवक्षक समाजिास्त्र, समाजिास्त्र के वसिान्तों को विक्षा की सम्पणूथ प्रवक्रया पर वक्रयावन्ित करता

    ह।ै ’’

    ओिािे ने िवैक्षक समाजिास्त्र को पररर्ावषत करते हएु कहा ह:ै-

    ‘‘ िैवक्षक समाजिास़्त्त्र विक्षा और समाजिास्त्र के पारस्पररक सम्बन्धों का अध्ययन ह।ै’’

    शिक्षा मनोशिज्ञान - आज विक्षा की प्रवक्रया में बालक को बड़ा महत्ि वदया जाता ह।ै उसके

    िारीररक, मानवसक, संिेगात्मक एिं सामावजक विकास के आधार पर ही उसकी विक्षा व्यिस्र्ा

    की जाती ह।ै इन सबको समझन ेके वलए हमें मनोविज्ञान का सहारा लेना पड़ता ह।ै मनोविज्ञान का

    िह र्ाग वजसमें बालक के विकासक्रम, सीखन े की प्रवक्रया और अन्य िवैक्षक समस्याओ ंका

    अध्ययन वकया जाता ह,ै उसे विक्षा मनोविज्ञान कहते ह।ै इसके अन्तथगत बच्चों की प्रकृवत उनकी

    योग्यता, रूवचयों और अवर्रूवचयों तर्ा स्मवृत, विस्तवृत, वचन्तन और कलपना आवद िवक्तयों का

    अध्ययन वकया जाता ह।ै और विक्षा की प्रवक्रया में उनके उपयोग की सीमा वनवश्चत की जाती ह।ै

    विक्षा मनोविज्ञान में बच्चो की बवुि और उनके व्यवक्तत्ि के विकास की विवधयााँ एिं उनके मापन े

    की विवधयााँ तर्ा सीखन ेकी प्रवक्रया के स्िरूप, विवधयों एिं दिाओ ंका र्ी विस्ततृ अध्ययन वकया

    जाता ह।ै

    कोलसशनक महोदय के अनसुार-

    “विक्षा मनोविज्ञान विक्षा के के्षत्र में मनोविज्ञान की खोजों और वसिान्तों का प्रयोग ह”ै।

    शस्कनर के अनसुार -

    “विक्षा मनोविज्ञान मानिीय व्यिहार का िवैक्षक पररवस्र्वतयों में अध्ययन ह”ै।

    शलण्डगे्रन के अनसुार -

    विक्षा मनोिजै्ञावनकों का सम्बन्ध तीन केन्र वबन्दओु ंसे ह ैऔर िह ह ै-

    i. विक्षार्ी ii. सीखने का प्रक्रम

    iii. सीखने की पररवस्र्वतयााँ

    शिक्षा का इशतहास - ितथमान की रचना अतीत की उपलवब्धयों के आधार पर ही की जाती ह,ै

    इसवलए अतीत का अध्ययन आिश्यक होता ह।ै विक्षािास्त्र के अन्तगथत हम विक्षा के इवतहास का

    अध्ययन इसी दृवष्ट से करते ह।ै जब तक हम आवद काल से लेकर अब तक विक्षा का जो स्िरूप रहा

    ह,ै उसकी जो व्यिस्र्ा रही ह ैऔर उसके जो पररणाम रह ेह,ै उस सबका विस्ततृ अध्ययन नहीं करते

    तब तक हम अपन ेवलए उवचत विक्षा की व्यिस्र्ा नहीं कर सकते। अतः विक्षािास्त्र में इस सबका

    अध्ययन र्ी वकया जाता ह।ै

  • समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2

    उत्तराखण्ड मकु्त विश्वविद्यालय 13

    तुलनात्मक शिक्षा- आज मनषु्ट्य केिल अपनी जावत के अनरु्िों से ही लार् नहीं उठाता अवपत ु

    दसूरे दिेों और राष्ट्रों के लोगों के अनरु्िों से र्ी लार् उठाता ह।ै विक्षािास्त्र के के्षत्र में र्ी विवर्न्न

    देिों की विक्षा प्रणावलयों का तलुनात्मक अध्ययन वकया जाता ह ैऔर उनके गणुदोषों का वििेचन

    वकया जाता ह।ै इससे हम अपनी पररवस्र्वतयों में अपने उपयोग की विक्षा व्यिस्र्ा का वनमाथण करन े

    में सफल होते ह।ै

    1.5.1 िैशक्षक समस्याएाँ

    इसके अन्तगथत देि की ितथमान िैवक्षक समस्याओ ंपर विचार वकया जाता ह ैऔर उनके समाधान के

    तरीके ढंूढे जाते ह।ै आज हमारे देि में मखु्य िवैक्षक समस्याएाँ ह ै-देि के सर्ी के्षत्रों में विक्षा की

    समान सवुिधाएाँ उपलब्ध कराना, विक्षा को व्यिसावयक स्िरूप प्रदान करना, धमथवनरपेक्ष राज्य में

    धावमथक और नैवतक विक्षा का विधान करना तर्ा विक्षा का राष्ट्रीयकरण करना आवद। जब तक

    विक्षािास्त्र के अन्तगथत ितथमान समस्याओ ंका अध्ययन कर उनके समाधान के तरीके नहीं सोच े

    जाते तब तक इसे विकवसत नहीं कहा जा सकता।

    िैवक्षक प्रिासन एिं संगठन- वनयवमत विक्षा की व्यिस्र्ा विद्यालयों में होती ह,ै इसवलए

    विक्षािास्त्र में इन विद्यालयों के संगठन और संचालन की विवधयों का अध्ययन र्ी वकया जाता ह।ै

    इसके अन्तगथत वजन तथ्यों का अध्ययन वकया जाता ह ैउनमें से मखु्य ह ै–

    विक्षा का सचंालन वकसके हार् में ह,ै राज्य का इसमें वकस प्रकार सहयोग है? समाज वकस

    प्रकार सहयोग कर रहा ह,ै विद्यालयों का वनमाथण कैसे करना चावहए, विद्यालयो में विवर्न्न िैवक्षक

    (पाठ्यचारी एि ंसहपाठ्यचारी) वक्रयाओ ंका संगठन वकन वसिान्तों के आधार पर वकया जाए वक

    उनसे अवधक से अवधक लार् उठाया जा सके, प्रधानाध्यापकों एिं अध्यापकों के गणु एिं कतथव्यों

    और उनके आपसी सम्बन्धों को समुधरु बनाने के उपाय, बच्चों में अनिुासन उत्पन्न करने के उपाय,

    बच्चों का प्रििे, उनका िगीकरण औरउनकी उपलवब्धयों का मलूयांकन और कक्षोन्नवत, विद्यालयों

    में बच्चों के स्िास्थ्य की रक्षा के उपाय और िैवक्षक एि ंव्यिसावयक वनदेिन। इन सबके अध्ययन

    से हम विक्षा की प्रवक्रया को सचुारू रूप से चलाने में समर्थ होते ह।ै

    विक्षण कला एिं तकनीकी- विक्षण प्रवक्रया में सीखना और वसखाना दोनों वक्रयाएाँ आती ह।ै

    सीखना क्या ह?ैइसकी विवधयााँ कौन-कौन सी ह?ैउत्तम सीखना कब सम्र्ि होता है? इन सब प्रश्नों

    के उत्तर हमें मनोविज्ञान देता ह ैऔर उसके आधार पर वर्न्न-वर्न्न स्तरों के बच्चों को वर्न्न-वर्न्न

    विषयों को पढ़ान ेकी कौन-कौन सी विवधयों का वनमाथण हआु ह?ैउनमें कौन सी विवधयााँ उपयोगी

    ह?ै और इन विवधयों को अपनाते समय क्या सािधावनयााँ बरतनी चावहए? इन सबकी चचाथ विक्षण

    कला एिं तकनीकी के अन्तगथत की जाती ह।ै अतः विक्षािास्त्र में इस सबका अध्ययन र्ी वकया

    जाता ह।ै वनयोवजत विक्षा को चलाने के वलए हमें इस सबका अध्ययन करना ही होता ह।ै

  • समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2

    उत्तराखण्ड मकु्त विश्वविद्यालय 14

    1.5.2 अध्ययन के शिशिि के्षत्र

    विक्षािास्त्र के के्षत्र में अब नए-नए विषयों का विकास हो रहा ह ैऔर उनका अध्ययन र्ी आिश्यक

    समझा जाता ह।ैजैसे - विि ु विक्षा, बालविक्षा, प्रौढ़ विक्षा, स्त्रीविक्षा, व्यिसावयक विक्षा,

    तकनीकी विक्षा, विक्षक विक्षा, पसु्तकालय संगठन, िैवक्षक और व्यािसावयक वनदेिन, विक्षण में

    दृश्य -श्रव्य सामग्री का प्रयोग, िैवक्षक तकनीकी, िैवक्षक वनयोजन, िैवक्षक वित्त, िैवक्षक मापन

    और मलूयाकंन, िैवक्षक सावंख्यकी और विक्षा में अनसुंधान आवद। इस सदंर्थ में हम यह स्पष्ट कर

    देना आिश्यक समझते ह ैवक आज स ेकुछ िषथ पहले तक इन सबका अध्ययन विक्षा के इवतहास,

    िैवक्षक प्रिासन, विक्षा मनोविज्ञान और िवैक्षक तकनीकी के अन्तगथत ही वकया जाता र्ा, परन्त ु

    अब से अलग-अलग विषयों के रूप में विकवसत हो रह ेह।ै

    स्िमूलयांकन हेतु प्रश्न

    8. एजकेुिन िब्द लैविन र्ाषा के ............... के िब्द स ेबना ह।ै 9. विक्षा िह ह ैजो ................. वदलाये। (जगदगरुू िकंराचायथ) 10. .......... के अनसुार, विक्षा िह प्रवक्रया ह ै वजसके द्वारा बालक अपनी आतंररक िवक्तयों

    को बाहर की ओर प्रकि करता ह।ै

    11. विक्षा मनोविज्ञान मानिीय व्यिहार का ............. पररवस्र्वतयों में अध्ययन ह।ै

    1.6 साराांि i. विक्षा, समाज में चलने िाली सीखन-ेवसखाने की सप्रयोजन प्रवक्रया ह।ै

    ii. विक्षा के अर्थ को विवर्न्न दृवष्टकोणों के आधार पर समझा जा सकता ह ैवजनमें से प्रमखु ह-ै िावब्दक अर्थ, संकुवचत अर्थ, व्यापक अर्थ, विशे्लष्ट्णात्मक एिं समग्र अर्थ।

    iii. विक्षा का कायथ मानि एिं समाज की आिश्यकताओ ंको ध्यान में रखकर वनधाथररत होता ह।ै

    iv. विक्षा के इस प्रकार चार प्रमखु कायथ ह-ैसामान्य, मानिीय, सामावजक एिं राष्ट्रीय जीिन में कायथ।

    v. विक्षािास्त्र ज्ञान की िह िाखा ह ैवजसमें विक्षा प्रवक्रया के स्िरूप एि ंउसके विवर्न्न अगंों तर्ा समस्याओ ं का दािथवनक, समाजिास्त्रीय, राजनैवतक, आवर्थक, मनोिैज्ञावनक एि ं

    िैज्ञावनक दृवष्टकोणों स ेअध्ययन वकया जाता ह।ै

  • समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2

    उत्तराखण्ड मकु्त विश्वविद्यालय 15

    1.7 िब्दावली प्रौढ़ विक्षा:-प्रौढ़ विक्षा उन लोगों के वलए चलाया गया एक अवर्यान र्ा, जो वकसी कारण स े

    विक्षा से िवंचत रह गये हैं।इसमेंउम्र की सीमा का कोई बन्धन नहीं र्ा।

    तलुनात्मक विक्षा- विक्षािास्त्र के के्षत्र में र्ी विवर्न्न देिों की विक्षा प्रणावलयों का तलुनात्मक

    अध्ययन वकया जाता ह ै और उनके गणुदोषों का वििेचन वकया जाता ह।ै इससे हम अपनी

    पररवस्र्वतयों में अपने उपयोग की विक्षा व्यिस्र्ा का वनमाथण करने में सफल होते ह।ै

    1.8 स्वमूलयाांकन हतुे प्रश्नों के उत्तर 1. मां 2. व्यवक्त 3. व्यिहार में 4. जान ड्यिूी के अनसुार । 5. पेस्िलॉजी के अनसुार । 6. ओिािे के अनसुार । 7. ब्राउन के अनसुार । 8. एडूकेिम 9. मवुक्त 10. फ्रोबेल 11. िैवक्षक

    1.9 सांदर्थ ग्रन्र् सूची 1. ए0के0चक्रिती,वप्रसीपल एण्ड प्रवैक्िस फ फ एजकेुिन- आर0लाल बकु वडपो मरेठ। 2. पाल (डा0), गपु्त एिं मदन मोहन. विक्षा के दािथवनक एि ं समाजिास्त्रीय आधार,- न्यू

    कैलाि प्रकािन, इलाहाबाद

    3. त्यागी एि ंपाठक, विक्षा के वसिांत,अग्रिाल पवब्लकेिन, आगरा। 4. चौबे एस0पी0 (डा0) एिं अवखलेि चौबे वफलोसोवफकल एण्ड सोिोलावजकल

    फाउण्डेिन्स फफ एजकेुिन, विनोद पसु्तक मवंदर, आगरा।

    1.10 शनबन्धात्मक प्रश्न 1. विक्षा से आप क्या समझते ह?ै विक्षा के सकुंवचत एिं व्यापक अर्थ को स्पष्टकरें। 2. विक्षा के र्ारतीय एिं पाश्चात्य दृवष्टकोण का उललेख करते हएु अतंर स्पष्ट करें ।

  • समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2

    उत्तराखण्ड मकु्त विश्वविद्यालय 16

    3. विक्षा के विवर्न्न कायों का वििचेन कीवजए। 4. विक्षा के विषय विस्तार की रूप रेखा प्रस्ततु करें। 5. इनमें से प्रत्येक पर 100 िब्द वलखें-

    (i) विक्षा का िावब्दक अर्थ। (ii)विक्षा के सामावजक जीिन में कायथ।

    (iii) विक्षा मनोविज्ञान की विषयिस्त।ु (iv)िैवक्षक प्रिासन एि ंसंगठन।

  • समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2

    उत्तराखण्ड मकु्त विश्वविद्यालय 17

    इकाई-2 शिक्षा के साधन: औपचाशिक, अनौपचाशिक एवं शनिौपचाशिक

    Agencies of Education: Formal, Informal and Non-formal

    2.1 प्रस्तािना 2.2 उद्दशे्य 2.3 विक्षा के साधनों का िगीकरण

    2.3.1 विक्षा के औपचाररक साधन 2.3.2 औपचाररक विक्षा की वििेषताएाँ 2.3.3 औपचाररक विक्षा के दोष

    2.4 विक्षा के अनौपचाररक साधन 2.4.1 अनौपचाररक विक्षा की वििेषताएाँ 2.4.2 अनौपचाररक विक्षा केदोष

    2.5 विक्षा के वनरौपचाररक साधन 2.5.1 वनरौपचाररक विक्षा की वििेषताएाँ 2.5.2 वनरौपचाररक विक्षा के दोष 2.5.3 विक्षा के औपचाररक, अनौपचाररक एि ंवनरौपचाररक साधनों में अतंर

    2.6 सारांि 2.7 िब्दािली 2.8 स्िमूलयांकन हतेु प्रश्नों के उत्तर 2.9 संदर्थ ग्रन्र् सचूी 2.10 वनबंधात्मक प्रश्न

    2.1 प्रस्तावना जब हम विक्षा को आजीिन चलन ेिाली प्रवक्रया के रूप में दखेते हैं तो हम विक्षा के साधन के रूप

    में वसफथ विद्यालय को ही नहीं देखते िरन ्उन अनके संस्र्ाओ ंको र्ी उसमें समवन्ित करते हैं, वजनमें

    व्यवक्त जीिन पयथन्त रहता ह ै एि ं वजनस े व्यवक्त उपयोगी या अनपुयोगी ज्ञान प्राप्त करता ह।ै इन

  • समकालीन भारत और शिक्षा