अभ्यास (अध्ययन के...

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अययन अयास िया सू संकलन | ोत: मयथ दशन ए नागराज |तुत: ीराम नरसहन, िाथी | अटूबर २०१३ 1 “अयन лिоि– лिाी संकलन /शोि (भाग 2 : अास- समऩी उपयोगी सू संकलन) Яोत: म दशशन, सहअхििाद | णेता एिं लेखक: ए नागराज # यह िुлत म दशशन के अेयता के ऱप म, एक лिाी के हैоसयत से है | यह अयन म म परसर सहयोग के आशय से лकया गया है | इसम म दशशन िांगय से अास समऩी सू को मबध संकलन лकया गया है | इन सू को मूल िांगय के सा ही पढ़ एिं अपने अयन हेतु ी ए.नागराजजी ारा рलсखत मूल िांगय को ही आिार माने * ैके ट म छोटे अर म दीया आ सषीकरण हेतु संकलन करता ारा जडा गया ह| जहा ऐसे ....нि ह, िहा पुिक से कु छ िा को छोड़ा गया ह| संकलन сजरेदारी ीराम नरоसन | лिाी | ओोबर २०१३ | [email protected] अयन पжरभाषा: (Яोत = कमश दशन, संस -१, पृ ८९) ...मानि ‘है’ का अयन करता है| अयन का तायश अनुभि के काश म सरण पूिशक अात शब के सरण पूिशक, अ से इंлगत िसुताओं का, अхि म पहिान* पाना | इस कार शब के सरण#, शब के अश से इंлगत ििुएं अхि म सु सष होना ही जागृती ह| सुसषता का तायश यं म अनुभि, कायश- िहार म माण होने से ह| [सषीकरण: # शब का सरण = ‘िण’ होना = अ श भास होना, कना म होना.. * अхि म ििु पहिान पाना = सााार होना| सााार क े सा बुкध म तीत होना] अास (अयन के рलए) (इसम िान ऱप म ‘’मनन’ лया को इंлगत कीया गया ह): Яोत: अास दश शन, सं кतीय, २०१०, पृस १ से ४ [िैतऩ इका म ही лया-पूणशता एिं आिरण-पूणशता की संभािना की आिकता ह сजसके рलए मानि अास की अлनिायशता ह | अनुमान मता ही अास का आिार ह | अनुभि से अоिक उदय ही अनुमान ह| यही лनरंतर अास सू ह|

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Page 1: अभ्यास (अध्ययन के ललएmdstudents.net/wp-content/uploads/2020/01/adhyayan... · के अर्थश से इंवगत ििुएं अित्व

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 1

ldquoअधययन विधिrdquo ndash विदयारथी सकलन शोि

(भाग 2 अभयास- समबनधी उपयोगी सतर सकलन)

सतरोत मधयसथ दशशन सहअसतितविाद | परणता एि लखक ए नागराज

यह परिवत मधयसथ दशशन क अधययता क रप म एक विदयारथी क हधसयत स ह | यह अधययन करम म परसपर सहयोग क आशय स वकया गया ह | इसम मधयसथ दशशन िागमय स अभयास समबनधी सतरो को करमबदध सकलन वकया गया ह | इन सतरो को मल िागमय क सारथ ही पढ़ एि अपन अधययन हत शरी एनागराजजी दवारा ललखखत मल िागमय को ही आिार मान बरकट म छोट अकषरो म दीया हआ सपषटीकरण हत सकलन करता दवारा जोडा गया ह| जहाा ऐस lsquorsquo चिनह ह

िहाा पिक स कछ िाकयो को छोड़ा गया ह|

सकलन खजममदारी ndash शरीराम नरधसमहन | विदयारथी | ओकटोबर २०१३ | shriramlivein

अधययन पररभाषा (सतरोत = कमश दशशन सस -१ प ८९) मानि lsquoहrsquo का अधययन करता ह| अधययन का तातपयश अनभि क परकाश म समरण पिशक अरथात शबदो क समरण पिशक अरथो स इवगत िसताओ का असतितव म पहिान पाना | इस परकार शबदो क समरण शबदो क अरथश स इवगत ििए असतितव म ससपषट होना ही जागती ह| ससपषटता का तातपयश सवय म अनभि कायश-वयिहार म परमाण होन स ह | [सपषटीकरण शबदो का समरण = lsquoशरिणrsquo होना = अरथश भास होना कलपना म होना असतितव म िि पहिान पाना = साकषातकार होना| साकषातकार क सारथ बदधदध म परतीत होना]

अभयास (अधययन क ललए)

(इसम परिान रप म lsquorsquoमननrsquo परवकरया को इवगत कीया गया ह) सतरोत अभयास दशशन स दधदवतीय २०१०

पषठ १ स ४ [ितनय इका म ही वकरया-पणशता एि आिरण-पणशता की सभािना की आिशयकता ह खजसक ललए मानि म अभयास की अवनिायशता ह| अनमान कषमता ही अभयास का आिार ह| अनभि स अधिक उदय ही अनमान ह| यही वनरतर अभयास सतर ह|

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इसीललए वकसी न वकसी अश म वयापक सतता म अनभवत एि परकवत की वयजना (रप गण सवभाि सहज अधिकार एि िमश गराही ि परदायी कषमता) सपनन रहना परधसदध ह| [ वयजना समझन की कषमता अधययन करम म साकषातकार-बोि ldquoशबद एि अरथश को सतिचरथ-गवत रप म सवीकार करन की वकरयाrdquo] वयजनीयता ही दशशन कषमता एि अनभि ही आनद ह| वयजनीयता ही अभयदय की कामना का आिार ह| मन ितततत चितत अि बदधदध म ही वयखजत होन वयखजत करन की कषमता ि परवकरया पा जाती ह| यही ससकार ि वििार कषमता ह| कयो कस का उततर पान क ललए कीया गया बौधिक िाचिक काततयक वकरयाकलाप अभयास ह| अरथात समािान सपनन होन क ललए अभयास ह| मानि अभयदय पणश होन तक अभयास क ललए बाधय ह| मानि जागत होन क ललए अभयास करता ह| यह करम जागवत पणशता तक रहगा| वयजनीयता ही भास आभास परतीवत एि अनभि परमाण ह| यह ससकार एि अधययन का फल ह और सारथ ही अभयास एि अधययन क ललए पररणा एि गती भी ह| सपणश वयजनीयता शबद एि अरथश को सतिचरथ-गवत रप म सवीकार करन की वकरया ह| यह सपणश मानि म सारथशक होन िाली सतिचरथ वनतय समीिीन ह| वकरया शकती म कमाभयास इचछाशकती म वयवहराभयास एि शासतराभयास तरथा जञान शकती म चिितन एि परमाण परित करन अभयास परधसदध ह| ] (पषठ ८ १०) ldquoकषमता ि सवससकारrdquo अधययन तरथा िातािरण पर ldquoअिसरrdquo वयिसथा पर ldquoसािनrdquo उपलबधी पर ldquoअवनिायशताrdquo ितशमान सतिचरथ पर आिाररत ह| वनयम नयाय िमश और सतय ही जञान ह| मधयसथ वकरया ही इनका उदघाटन करती ह | इसम पणश वनषणात होन तक ही जागवत ह| यही अभयास ह| (पषट- १४) मानि क अखड सामाखजकता को पान क ललए जड़-ितनय परकवत म वनहहत मलयो को पणशतया अधययन अिगाहन मनन चिितन एि अनभि पिशक वयिहार एि उतपादन म लान क ललए अवनिायश ह| इसका वनिाह ही जीिन म सफलता उपलबधी समदधी एि समािान ह| [अिगाहन = समझन की सफल परवकरया| ओत-परोत अिसथा| अनभि की साकषी म अििारणा वकरया ndash पररभाषा सहहता सस २००८ प ३३] अभयास दशशन सस २०१२ प १५४

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मानिीयता म अमानिीयता का अतयाभाि होता ह| अमानिीयता म मानिीयता का भास आभास एि परतीवत होती ह| यही िािविकता अमानिीयता स मानिीयता म सकरमण एि समभािना को सपषट करती ह| प १५७ अमानिीयता स मानिीयता म अनगमन क ललए वनयमतरय पिशक दाततयतव एि कतशवय परमाखणत होता ह| प १५९ १६० सामाखजकता सवभाि म न हो परमानभती हो ऐसा परमाण नही ह| परमानभती पणश मानि की सवततरतापिशक सामाखजकता ही अलभवयकती ही समाज क ललए उसकी उपदयता ह| परमानभतीमयता की अलभवयकती शशषटता म अरथात आिरण म इवगत होता ह| इवगत होना ही वयजना ह| वयजना ही करम स भास आभास परतीवत अििारणा एि अनभती ह परमामयता ही मानि म अननयता क रप म परतयकष होती ह| ऐस परममयता क ललए ही सपणश परकार क अभयास होत ह| सपणश परकार क अभयास की िरमोतकरषट उपलबधी परमानभती ही ह जो पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक ह| सामाखजकता एि वयािहाररकता म ही मानि की यरथारथशता एि िािविकता सपषट होती ह न की उतपादन म| परमानभती म ही सरिोछ परकार की सामाखजकता परकट होती ह| सामाखजकता म ही सवगानभती ह| उसक अभाि म कलश होता ह| rdquoपरमानभती क ललए करम किल मानिीयतापणश जीिन म पणशता को पाना ही हrdquo| शभ कामना का उदय मानिीयता म ही परतयकष होता ह| यही परमानभती क ललए सिाततम सािना ह| शभकामना करम स इचछा म इचछा तीवर इचछा एि सकलप म तरथा भास-आभास परतीवत एि अििारणा म सथाततपत होता ह| फलत परमामयता का अनभि होता ह| मानि शभ आशा स सपनन ह ही| यही अभयासपिशक करम स कामना इचछा सकलप एि अनभती सलभ होता ह| मानि म परमाखणत होन िाल वनतय शभ मलयततरयानभती ही ह| ितनय इका का सिोचच विकास मलयानभती योगय कषमता स सपनन होना ही ह| यही बाधयता सतता म सपकतता ह| (पषट-२३ २४) लकषय जब आकाकषा आिशयकता या अवनिायशता क रप म पररिवति त (तीवर इचछा) होगा तब यही कायशकरम क ललए बाधयता होगी कयोकी लकषय विहीन कायशकरम नही ह| दशशन कषमता परतयक मानि म वकसी न वकसी अश म पा जाती ह| दशशन कषमता क जागवत की अलभलाषा स शशकषा एि अधययन की अवनिायशता धसदध ह ह समपणश अधययन सतता म सपकत परकवत सहज ह| जो असतितव दशशन जञान जीिन जञान मानिीयतापणश आिरण जञान ही ह| अनभि ही सतय ह और सतय अपररणामी ह| अनभिपिशक वयिहार ि उतपादन ही परमाण ह| दशशनविहीन परयोग ि उतपादन धसदध नही ह|

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विशलततषत सवीकत होना ही अधययन ह| रप गण सवभाि और िमश की परतयकषानभवत ही विशलषण ह जो सतिचरथिातता ि सतय ह| अि अधययन का फलन ही अनभि ह| अनभि विहीन परतयक उतपादन-कायश म तरदधट एि वयिहार-कायश म अपराि भािी ह| तरदधट एि अपराि मानि की िाधछत परिती नही ह| यह परिती तब तक रहगी जब तक अधययन पणश न हो जाए परतयक मानि म अधययन परितततत जनम स ही पा जाती ह| (पषट ndash ३९) परतयक मानि म पायी जान िाल अनभि क ललए कारण वििार क ललए सकषम वयिहार क ललए सकषम-सथल तरथा उतपादन क ललए सथल तथयो का अधययन ह जो परतयकष ह| अधययन स ििाररक वनयतरण शशकषा स वयािहाररक वनयतरण एि परशशकषण स उतपादन म वनयतरण ह| [कारण = वयापक िि सकषम = जीिन सथल = शरीरजड़] (प ५२ ५३) परतयक अनमान अनभि पर आिाररत अनयरथा अनभि क ललए सदधननहहत ह| परतयक अनमान अनभि क ललए पिापर ह| अनमान ही शोि पिशक भास आभास परतीवत क रप म उदय होता ह| खजसक आिार पर ही मानि म योजना वििार एि कलपना का परसि होता ह जो अनभि म परमाखणत होता ह ldquoतातरयrdquo स मानि म स क ललए अलभवयकती नही ह| इसीललए भाि = मौललकता = सवमलय तरथा मलयाकन कषमता = मौललकता का भास आभास परतीवत ि अनभती = वयकती की कषमता योगयता पातरता = जागवत = िातािरण अधययन और सवससकार = उतपादन वयिहार वयिसथा म भागीदारी = भाि परधसदध ह| (पषट ndash ६१) नयाय और समािान (िमश) सािशभौम सतय ह| यह दश काल अबाि ह| इसीललए मानि दवारा कीया गया समपणश वििार एि परयास तकशसगत या सतकशतापणश होन क ललए ही परतयक मानि का समािान एि समदधी म स क ललए ही वििार कमश एि वयिहार करना परधसदध ह| तकश की सीमा म परवततकश ह| मल िि क अजञात ि असपषट रहत हए उसक तातपयश या फलितता क सनदभश म की गयी परशनोततर परवकरया ही िाद-परवतिादी एि तकश-परवततकश ह हो समसया का समािान नही ह| समािान एि तातवतवकता क ललए तकश का परयकत होना ही उसकी िररतारथशता ह | इस परकार यह सपषट होता ह वक तकश का असतितव सवततर नही ह| सारथ ही तकश का परयोजन किल तातवतवकता स सबदध होना ही ह| इसी परमाण-धसदध-साकषय स सपषट होता ह वक तकश सीमानवरती वििार उपदश एि परिार मानि जीिन क ललए पयापत नही ह| (पषट -१९) मानि जावत क समि कायशकरम का उददशय अनभि एि परमाण ही ह बौशदघक समािान क वबना अनभि सभि नही ह कयोवक समािान की वनरतरता ही अनभि ह भौवतक समशदघ क वबना बौशदघक समािान धसदघ

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नही ह और बौशदघक समािान क वबना भौवतक समशदघ परमाखणत नही होती कयोवक अजञात को जञात करन क ललए एि अपरापत को परापत करन क ललए अनिरत परयास हआ ह वििक ि विजञान का सतलनाधिकार सहज परमाण ही भौवतक समशदघ एि बौशदघक समािान ह कमाभयास क वबना उतपादन एि समशदघ तरथा वयिहाराभयास क वबना समािान नही ह कमाभयास अनवषण शशकषण परशशकषण ह खजसकी िररतारथशता उतपादन ह फलत समशदघ ह वयिहाराभयास अनसिान अनसरण आिरण ससकवत सभयता विधि एि वयिसथा ह खजसकी िररतारथशता सामाखजकता अखडता अभयता समािान सतलन एि सवगश ह मानि का अशष कायशकरम ििाररक वयिहाररक एि उतपादन ह ििाररक पररपणशता अरथिा समािान क ललए चिनतनाभयास आिशयक ह ही चिनतनाभयास पिशक ही यरथारथता िािविकता सतयता को वनरीकषण-परीकषण कर परमाखणत कर पाना सहज ह यही समािान रपी वनषकषो को सफररत करता रहता ह खजसस ही सिशशभ ह जो पाािो सथसथवतयो म lsquolsquoनीवततरयrsquorsquo स सबदघ ह lsquolsquoअनभि कायशकरम नही ह अततपत अनभि म स क ललए ही कायशकरम हrsquorsquo (पषठ-८३ ८६) अपकषाकत सतिचरथितता ही अनमान का उदय ह| यही अधययन हत की गयी उतसकता ह| उदयविहीन सतिचरथ म अधययन एि अधययन धसदध नही ह| उदय ही कौतहल ह अरथात जानन मानन पहिानन उपयोवगता उपादयता एि अवनिायशतापिशक अनभि करन की वकरया ही उतकठा ह| यही मानि जीिन म वकरयाकलाप का आिार ह| मानि जीिन िार आयाम दश सोपनीय पररिार सभा वयिसथा एि मलयो क वनिाह क रप म दषटवय ह जो ससकवत सभयता विधि वयिसथा का आघात कायशकरम ह| [अभयास-करम म मनन पिान lsquoदशrsquo सबिी िि जीन की जगह शोि] सिशशभ उदय का भास-आभास सिदनशीलता की ही कषमता ह और परतीवत ि अनभती सजञानीयता की महहमा ह| सिशपररथम सख समािान का भास-आभास सिदनशीलता पिशक होता ह|

अनभिातमक आधयातमिाद ndash सस २००९

प १६ १७ १८

जानन का फलन मानन क रप म आता ही ह| मानन का सवरप ह - ldquoयह सतय ह इस सवीकारना ह |rdquo और सतय सहज परयोजन सवय स या सबस जडी ह सतिचरथ को और गवत को सवीकारना ही मानना ह| इसस सपषट होता ह हर सतिचरथ म िि सहज िािविकताओ को जननना सहज ह| इसी करम म उसकी गवत और परयोजन क सारथ ldquoसह-असतितवrdquo म स क ललए आिशयकताओ को सवीकारना ही मानना ह|

मानि ही जानन-मानन क आिार पर पहिानन-वनिाह करन म परयोजनशील होता ह| मानन का आिार परयोजन होना ह| जानन का आिार कयो और कस क उततर क रप म ह | सारथ ही िि कसा ह यह भी जानन म आता ह| िि कसा ह यह जानन का सवरप ह| इसी स कयो और कस का उततर सवय सफतश वििी

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स वनगशततमत होता ह| मानन का तातपयश परयोजन पहिानन क अरथश म सारथशक होता ह| जस असतितव सहज वनतय सतिचरथ को जानना सहअसतितव परयोजन सतर को पहिानना सवाभाविक होना पाया गया|

प ६६ ६७

जञान का मल सवरप जीिन जञान और असतितव सहज सहअसतितव रपी वयिसथा का जञान ह| जीिन जञान मानि सवय अपन जीिन सहज वकरयाकलापो क आिार पर विशवास करना बन पाता ह| यह मलत अनभि सहज वकरया ह| इसको जानना-मानना एक आिशयकता ह ही | जीिन को जानन-मानन क करम म शरीर रिना और शरीर सीमाओ क सनदभश म भल परकार स पारगत होन की आिशयकता ह| जीिन और शरीर क सयकत रप म ही जञानािसथा परकाशमान होन क आिार पर ही मानि सहज वििी स ही

१) अपना ही कलपनाशीलता कमशसवततरता शरीर स लभनन तरग क रप म अनभि करना बनता ह

२) आशा वििार इचछाए जीिन सहज वकरया होन क रप म सवय म सवय स सवय क ललए परीकषण वनरीकषण कर सकता ह

३) आसवादन तलन चिितन बोि करम म अधययन वििी म जो अनभवतयाा परतीत होती ह या भास-आभास होता ह इसका परीकषण सवय ही हर मानि हर काल म हर दश म वकया जाना समीिीन ह|

इन वकरयाकलापो क वनररकषण स पता लगता ह वक जीित मानि म आसवादन का अनभि भास नयाय िमश सतयरपी वनतय िि का भास होना हर वयततकत अपन म वनसिय कर सकता ह| चिितन म ही नयाय िमश सतय का आभास होना और परतीत होना परमाखणत होता ह|

साकषातकार अपन म परयोजनो का वनशचयन सहहत तपती क ललए सरोत रप म अधययन वििी स पहिान लता ह| फलसवरप बोि पिशक अनभि म सारथशकता सहहत नयाय िमश सतय सहज सवीकवत ही ससकार और अनभि बोि रप म जीिन म अविभाजय वकरया रपी बदधी म सथाततपत हो जाता ह| यही अधययन पिशक होन िाली अदभत उपलबधी ह| नयाय सहज साकषातकार सहअसतितव सहज सबिो का साकषातकार सहहत मलयो का साकषातकार होना पाया जाता ह ( यह सिारना ह यहाा मलयो स तातपयश मानि मलय अरथिा मानिीय सवभाि स ह कयोकी मलयो का साकषातकार होता नही िह बहत ह ) | यही मखय वबिद ह | सह-असतितव सहज सबिो को पहिानन म भरम रह जाता ह यही बिन का परमाण ह| यही जीिन को शरीर समझन (मानन) की घटना ह|

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मानि सितनािादी मनोविजञान ndash सस १९९८

प १९३

समपणश समझदारी शरवत समवत पिशक मानि स मानि को पीढ़ी स पीढ़ी को सपरततषत होता ह खजसम

स बोि होन पयशनत शरवत ह बोि म अपन म जानन मानन का सवरप ह इसका तततपत वबिद अनभि ह इस परमाखणत करन क करम म शरवत समवतपिशक बोि कराया जाना पाया जाता ह परतयक मनषय की सपणशता अपन म भाषा भाि भवगमा मदरा अगहार सहहत ही सारथशकता को पहिाना जाता ह शरवत समवत पिशक मलयाकन करत ह

प १८३ १८४ - भाषा शरवत (अभयास-अधययन करम म जो भाषा परयोग होना ह)

शरवत सह-असतितव सहज अलभवयततकत ह सह-असतितव सहज असतितव वनतय ितशमान ह ितशमान म ही मानि न अपनी कमश सवततरता कलपनाशीलता का परयोग वकया ह कर रहा ह करता रहगा मानि म ही शरवत समवत सहज परकाशन परमाखणत होना पाया जाता ह खजसस भास- आभास परतीवत पिशक अनभि होना पाया जाता ह इसी कारणिश उस उसक सहज रप म समझना कायशकरम ह इसका परमाण यह ह वक मनषय ही असतितव म धववन शबद नाद भाषा ि िि सहज परभदो को जानता मानता पहिानता ह अरथिा इसक योगय ह जस-पदारथश अिसथा म पा जान िाली वयिसथा का मल रप परमाण म भी धववन और िि को पहिानता ह

फलत अणओ क रप म होना सवाभाविक ह पराणकोशाओ म धववन ि कायश सकतो को परसपर कोशाए पहिानत ह फलसवरप रिनाए सपनन होती ह उसी भावत जीिो म भी शबद धववन और नाद उनक परसपर पहिान म होना पाया जाता ह मनषय म शबद धववन नाद ि भाषा य सहज ही परसपर ििओ को इवगत करन क अरथश म जानन मानन पहिानन को ततमलता ह भाषा का तातपयश होता ह खजसस िि सहज सतय भास हो जाय मानि भाषा म सतय भास आभास परतीवत सहहत अनभि होन क अरथश म ही परयोग वकया जाता ह यही जागवत सहज सपरषणा ह इसी करम म भाषा क परवत विशवास हो पाता ह मनषयतर परकवत म भी अपन अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा को परमाखणत करन क करम म समपणश धववन नाद ि शबद को दखा जाता ह जागत मनषय परसपर भाषा दवारा इवगत होना िाहता ह या इवगत कराना िाहता ह

भाषा धववन नाद ि शबद क मल म दखन पर पता िलता ह वक इका म सवय सफतश अलभवयततकत ह मल इका का तातपयश परमाण ही ह परमाण ही विकास पिशक जीिन जीिन जागवत पदो म और परमाण ही विकास करम म अण कोशा रिना ि विरिना क करम म असतितव म होना पाया जाता ह परमाण ही मलत वयिसथा का मल ह भौवतक वकरयाकलाप रासायवनक वकरयाकलाप जीिन वकरयाकलाप क मल म परमाण ही वयिसथा का िारक-िाहक होना पाया जाता ह मनषयतर तीनो अिसथाए अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा क रप म इस िरती म विदयमान ह मनषय भी मानितव सहहत वयिसथा क रप म परमाखणत होन क ललए परयतनशील ह इसकी सभािना समीिीन ह

समपणश शरवत परतयक एक अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा को बनाए रखन क ललए ही उदगमशील ह शररवत को धववन शबद नाद ि भाषा क रप म मनषय पहिानता ह इसकी सारथशकता को पहिानना शष रहा इसी करम म गवत लय तरग को भी पहिानता ह यह विविि परकार स शररवत को ही िि क रप म समझन का परयास सारथशक

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होता ह शरवत का तातपयश सथसथवत सतय िि सथसथवत सतय ििगत सतय को इवगत करन बोि करन क ललए ही सनन योगय ि सनान योगय सभाषण ह पणशता को इवगत करन करान क अरथश म परयोग वकया गया भाषा एि पररभाषा ह सनन सनान क ललए सवय सफतश मानि अपकषा ह सनान योगय भी सवय सफतश सपरषणा ह सपरषणा का तातपयश पणशता क अरथश म परित होन की परवकरया ह सनन क करम म भी पणशता को पहिानन सहज अपकषाए बनी ही रहती ह पणशता अपन म वनरतर ह इसका सामानय सवरप असतितव म पणशता परमपरा क रप म परकाशशत ह असतितव म पणशता गठन पणशता वकरया पणशता आिरण पणशता ही ह रासायवनक भौवतक इका या अपन-अपन िातािरण सहहत समपणश ह ही पदारथािसथा पराणािसथा जीिािसथा की परपराए उन उन की lsquoतवrsquo सहहत वयिसथा क रप म सदधतरत वयाखयाततयत ह यह परपराए पणशता सपणशता सहज ही वनरतरता को परापत वकए ह िह lsquoतवrsquo सहहत वयिसथा समगर वयिसथा म भागीदारी ह यही िभि-सतर ह

मानि ऐसी शरवत परमपरा को िाहता ही ह वक इसस यरथारथशता िािविकता और सतयता सहज ही समझ म आय जीिन सहज खजजञासा कयो ह कसा ह कबस ह कसा बना ह इस परकार क परशन अपन आप उदय होत ही ह यह कलपनाशीलता की गररमा ह इसका उततर पाना समािान पाना परमाण पाना परमाखणत होना यह ही शरवत समचचय की सारथशकता म होना पाया गया

समपणश िाङमय अरथात शरवत (सनन योगय सनान योगय भाषा पररभाषा जो सोि वििार वनशचय और समझदारी परितशन भाषाकरण सतरीकरण िाकय परबिन सिाद क रप म परिललत रहता ही ह) यरथारथशता का सवरप जसा खजसकी मौललकता ह उस इवगत करन वनदशशत करन और चिखनहत करन क रप म शररवत का परयोजन सारथशक होता हआ नजर आता ह खजसका जो अरथश का सवरप परतयक एक म रप गण सवभाि क रप म वयाखयाततयत होना पाया जाता ह इन िारो आयामो की अविभाजयता म परतयक एक वयिसथा क रप म मलयावकत होता ह और परतयक एक वकरया क रप म ही ततमलता ह

जबवक मानि भाषा कारण गण गखणत क अविभाजय रप म ह खजसस ही परम सतय रपी सह-असतितव भासा आभास पिशक परतीवत सहज बोि सारथशक होना पाया गया फलत अनभि होना धसदघ हआ प ४४ भततकत सहज अलभवयततकत जागवत गामी विधि स अरथिा जागवत करम विधि स भास आभास परतीवतयाा और जागवत-पणश विधि स परतीवत अनभवत ि उसकी वनरतरता दोनो सथसथवतयो म तनमयता तारतमयता और उपादयता सपषटतया समझ म आता ह प ८६ ndash मन म होन िाली सवागत वकरया ndash अभयास-अधययन करम म

सवागत - (1) अििारणा अनभि क ललए सवीकत वकया (2) वनयम नयाय समािान सतय सहज सवीकवतयो असवीकवतयो क ललए तयाररया (वििक ि विजञान सममत मानधसक ििाररक और ऐचिक तयाररया)

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इदधदरय सदधननकषश म भी सवागत भाि का भास आभास होना पाया जाता ह खजसकी वनरतरता की अपकषा ही रह पाती ह यह वयिहार म परमाखणत नही हो पाता अतएि सवागत का आिार समपणश मलय सवागत होना पाया जाता ह ििओ का िारक िाहकता म भी जीिन रहता ही ह

समपणश अििारणाए मौललकता क रप म होना पा जाती ह मौललकताए िमश और सवभाि क ही सतर ह समपणश असतितव म परतयक एक अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा ह समगर वयिसथा म भागीदार ह कयोवक असतितव म समपणश इकाइया (अरथिा समि इका या) सह-असतितव सतर म सदधतरत ह प २१८ इवगत होना ही वयजना ह वयजना ही करम स भास आभास परतीवत अििारणा एि अनभवत ह प २१

ियन-वकरया अरथात गरहण करन का वकरयाकलाप पराितशन विधि स और आसवादन वकरया परतयाितशन विधि स सवय म सपनन होती ह विशलषण वकरया पराितशन विधि स और तलन वकरया (ततपरय हहत लाभ नयाय िमश सतय दवषट) परतयाितशन विधि स सपनन होती ह चितरण वकरया पराितशन विधि स इचछा पटल म चिदधतरत हो पाती ह पराितशन म रिनाओ वकरयाओ क रप म परमाखणत हो पाता ह और चिनतन-वकरया साकषातकार विधि स सारथशक होती ह साकषातकार की समपणश िि जीिन मलय मानि मलय सथाततपत मलय शशषट मलय और िि-मलयो क रप म दरषटवय ह मलयो का सतलन तलन होकर तततपत विधि म सलगन रहता ह इस परकार साकषातकार की तततपत का सरोत मलय ह और उसकी (मलयो की) वनरतरता का भािी होना पाया जाता ह

जीिन म सपनन होन िाली अििारणा बोि-बशदघ सहज परतयाितशन वकरया ह सभी अििारणाए अधययन और अनसिान विधि स सथाततपत हो पाती ह अनभि मलक विधि अनभिगामी पदघतततत स बोि होना पाया जाता ह अनभि सतय बोि करान म परमाखणत होता ह और सकलप पणशता क अरथश म कलपनाओ को गवत दन स ह कलपनाए - आशा वििार इचछा क सयकत रप म परिाहहत रहती ह जीिन शततकत अकषय होन क कारण परतयक वयततकत म कलपनाशीलता का अकषय होना पाया जाता ह कयोवक यह कलपना जीिन शततकतयो का ही परिाह ह कलपनाए सतय सकलप क अनरप परािवति त होकर मानि परमपरा क अखड समाज सािशभौम वयिसथा क रप म सारथशकता को परमाखणत करती ह

प ४९-५०

पिानकरम पदघवत परणाली मानिीयता पणश वििार-चिितन-बोि-अििारणा और अनभि मलक होन क करम म अधययन गमय ह पिानकरम विधि स ही मनन पिशक मानयताए सथाततपत हो पाती ह फलत मानि परमपरा क ललए उपकारी और सारथशक धसदघ होती ह

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प ५१ ५२

वनषठा - जागवत पणश लकषय को वनचशचत अििारणा ि समरण पिशक परापत करन ि परमाखणत करन का वनरतर परयास

वयजनीयता का तातपयश - साकषातकार होन स ह साकषातकार चिितन म होता ह वयजनाए मानि मलय जीिन-मलय सथाततपत मलयो क परभाि क सारथ जीिन मलयो का बोि ि अनभि करन स ह समपणश रसानभवत का तातपयश ह - जीिन मलय रपी सख शावत सतोष आनद सहज आपलािन जागवत सहज परमाणो क रप म सपषट होना यही अनभि करन और बोि करान का तातपयश ह

प ७५-७७ गर और शशषय

पररभाषा गर - शशकषा ससकार वनयवत करमानिषगीय विधि स खजजञासाओ और परशनो को समािान रप म अििारणा म परसथाततपत करन िाला मनषय गर ह जागवत करम म मानि को अपरापत का परापत अजञात का जञात करन क ललए होन क ललए विधि वनयम परवकरया सहज समझदारी म पारगत बनाना ही परमाखणकता का परमाण ह परमाखणकता पणश गरजन ही असतितव सहज सह-असतितव रप म अििारणा को परवतसथाततपत करा सकता ह अििारणाय असतितव विकासकरम विकास जीिन जीिनी करम जीिन जागवतकरम जीिन जागवत सहज रप म परसपरता म अरथात समझा हआ और समझन क ललय तरथा मनषयो स ह गरजन इन मददो म पारगत रहग यह समझदारी ह समझदारी क आिार पर ही मानिीय शशकषा-ससकार सपनन होता रहगा ससकार का तातपयश ही अििारणा ह विदयाचरथि यो म सथाततपत होन स उसकी वनरतरता का परमाण वयिहार वयिसथा म परमाखणत होन स ह फलसवरप ही अखणड समाज सािशभौम वयिसथा म भागीदारी सहज कायश-कलाप हर मानिीय शशकषा-ससकार समपनन मानि स िररतारथश होना पाया जाता ह

परामाखणक - परमाणो का िारक िाहक - यरथा असतितव दशशन जीिन जञान मानिीयता पणश आिरण समचचय को परयोग वयिहार अनभि पणश विधि स परमाखणत करना और परमाणो क रप म जीना

पररभाषा शशषय - जागवत लकषय की पवति क ललए शशकषा ससकार गरहण करन सवीकार करन क ललए परित वयततकत खजसम गर का समबनध सवीकत हो िका रहता ह यही खजजञासातमक शशषटता ह

खजजञास - जीिन जञान सहहत वनभरशम शशकषा गरहण करन क ललए तीवर इचछा का परकाशन

समझन सीखन करन क ललए पणश खजजञासा सहहत परयतन सपनन वयततकत शशषय क रप म शोभनीय होता ह सफल होन क सभी लकषणो स यकत िातािरण म विशवास होना और विशवास को िातािरण म परभावित करन परमाखणत करन की सभी परवकरया अधययन ह

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असतितव विकास जीिन जीिन जागवत रासायवनक-भौवतक रिना-विरिना समपणश मानि क ललए समझन-समझान की िि ह सीखन की जो कछ भी परमाखणत िि ह यह मानि म मानिीयतापणश आिरण कमश अरथात वयिसाय म सवािलमबन वयिसथा म भागीदारी मानिीयता पणश आिरण का अभयास परामाखणकता सहज अलभवयततकत ह सारथ ही सािशभौम वयिसथा और अखड समाज म वनषठा ह य समपणश खजजञासाए वयािहाररक रप म िररतारथश होती ह परौढ़ता की पराकाषठा म स क ललए सवानशासन की खजजञासा का होना पाया जाता ह खजजञासा मानि सहज परकाशन ह

प १०६ जीिन को तातवतवक रप म समझन की खजजञासा हो ऐसी सथसथवत म परमाण म होन िाली विकास परवकरया उसक सकरमण िभि को भी जो ितनय इका क रप म परवतवषठत ह को सहज ही अधययन अििारणा म लाना एि अनभि करना आिशयक ह

अनभिातमक आधयातमिाद सस २००० (प ५८ ndash ६५) अनभव ही दसर नाम स परतयावरतन करिया ह और इसका परावरतन करिया को परामाणिकरा-परमाि नाम ददया ह जागकरर सह-असतितव म अनभव हई ह इसी जागर सथिकरर म होन वाली गकरर को परतयावरतन नाम ददया गया ह समपित परतयावरतन दरतन और जञान नाम स परकररकरिर ह जञान और दरतन सवाभाकरवक रप म ओर-परोर रप म वरतमान ह समपित असतितव सतता म सपकत जड़-चरनय परककरर ही सह-असतितव का मल सवरप ह इसका सामानय कलपना हर मानव म होना सभव ह कलपना का मल सतरोर आरा करवचार इचछा का असपषट गकरर रप ह कयोकरक समपित कलपनाए परावरतन म कायतरप रहना दखा जारा ह मानव ही कलपनारीलरा का परयोग कररा ह इस ऐसा भी कहा जा सकरा ह करक हर वयकतकत परकारानतर स कलपनारीलरा का परयोग कररा ह भरकतमर मानव दवारा कलपनारीलरा का सवाधिक परयोग ररीर और इनदरिय सदिकरत क रप म ही सवाभाकरवक ह यह भरम करववररा ह यही कलपनाए चचणिर रप म सपषट होन क ललए रतपर होर ह रभी करवधिवर करवशलरि और करनचिर चचतरि करवचार रप म समभावनाओ को सवीकारना बनरा ह सभावनाओ का लकषय कतपरय हहर लाभ सीमाओ म सीकतमर रहना पाया जारा ह यही भरमातमक कायत सीमा का अथ इकरर ह जागकररपित जीवन चचतरि म यह रथय ससपषट ह करक नयाय िमत सतय उसका साकषातकार बोि अनभव ही अधययन और अनसिान का लकषय और कायत ह इिी कायत रप क आिार पर असतितव और जीवन अविारिा म िाकतपर होना सफल अधययन का दयोरक और कसौटी भी ह इसी क आिार पर सवायतत मानव का सवकषि करनरीकषि और परीकषि होना सपषट हो जारा ह सवायतत मानव ही असतितव म अनभव सहज जागकरर का िारक-वाहक होना सपषट ह इस परकार अधययन सहज रप म जीवन और सह-असतितव म अनभव बोि की अलभवयकतकत और परमणिर होन क िम म आतमा असतितव म अनभर होना जीवन म किीय होना मधयि करिया और मधयि बल समपिरा का सवीकर होना परम रपत होना ह जीवन रचना मधयार सहज मधयि करिया मधयि बल मधयि रकतकत सरलन क अथत म सदा-सदा परयकत रहरा ही ह यही जागर

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मानव परपरा म परमाि ह मधयि करिया समम_य िम स जीवनी िम और जीवन जागकरर िम वयकत होरा ह इसी िम म जागर होना जीवन सहज परवकततत परयास आवशयकरा क योग-सयोग करवधि स समपि होरा ह यही अनसिान रोि और अधययन क ललए भी सयोजक रतव ह यह रतव सदा-सदा जीवन परकररिा म कायतरर रहरा ही ह इसकी परखररा क आिार पर ही अनसिान रोि अधययन सहज हो जारा ह इस परकार यह ससपषट हो जारा ह करक आतमा अधययन करवधि स असतितव म अनभर होरा ह दसरा अनसिान करवधि स भी असतितव म अनभर होना पाया जारा ह ( अनसिान विधि जो शरी ए नागराज न कीया सािना gt समािीgt सयम | अधययन विधि पिक एि वकसी समझ हए वयकती क माधयम स शशकषा-ससकार परापत करना) अनसिान करवधि स भी सवतपरथम असतितव म बोि होना दखा गया ह इसक उपरानत ही आतमा असतितव म अनभर होना दखा गया ह अधययन करवधि स भी यही सथिकरर अथार पहल बोि रदोपरार अनभव होना पाया जारा ह इन दोनो करवधियो म स अधययन करवधि लोकवयापीकरि क ललए कम समय म बोि होन की सथिकरर बनरी ह अनसिान करवधि म परवतत होन क ललए वयकतकत म लकषय सममर णजजञासा का होना अकरनवायत ह जब अधययन करवधि स समपित परशनो का उततर कतमल जारा ह परशन िली ररकत होना उसी िली म समपित उततर िाकतपर होना अधययन और अधयापन का सयोग और फलन ह परशन करवहीन सथिकरर म अनसिान का आिार नही बनरा इस परकार परपरा म सभी परशनो का उततर अधययन करवधि स हर मानव म हर सथिकरर पररसथिकररयो म समपित परशनो का उततर सह-असतितव सहज करवधि स समीचीन ह अनसिान करवधि एव अधययन करवधि स पहल बोि ही होरा ह रदोपरार lsquolsquoबोिrsquorsquo का आतमा म अनभव होरा ह अनभव क उपरानत lsquolsquoअनभव सहज बोिrsquorsquo अधययन एव अनसिान करवधि म एक जसा होरा ह एव एक ही होरा ह इसम मखय रथय यही ह यथाथतरा वासवकररकरा सतयरापित करवधि स अधयापन सामगरी वि परकरिया पररपित रहना आवशयक ह ( अधययन अरथिा शशकषा वििी म) अनसिान क ललय अजञार परशन चचि अकरर आवशयक ह हर अनसिान को अधययन और अधयापन कायत करवधि स लोक वयापीकरि होना सगम हो जारा ह इस परकार अनभव क अननतर ही अनभव lsquoबोिrsquo होना दखा गया ह यह हर वयकतकत म होना समीचीन ह (प १०७ १०८ १०९ इसक उपरानत जागकरर और जागकररपितरा ही मणजलो क रप म दखन को कतमलरा ह यह मलर करवचार चचतरि अविारिा अनभव और चचनतन का ही वभव रपी मानधसकरा क रप म दखा गया ह भरम का समपित सवरप आरा करवचार इचछा (चचतरि) का कतपरय हहर लाभातमक दकरषटयो की करियारीलरा ही ह सवतमानव पीड़ा स मकतकत चाहरा ही ह यही जागकरर सहज अपकषा का सरोर और समभावना ह जीवन सहज करियाकलापो म स नयाय िमत सतय का साकषातकार और दषटा होना और उसका परमाि धसदघ होना ही समपित जागकरर ह दषटापद म होन वाली समपित करियाकलाप जीवन सहज करवधि स जानन-मानन-पहचानन-करनवाह करन क रप म होना पाया गया ह जानन-मानन की समपित वि जीवन जञान सह-असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान ही ह

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अनभव असतितव म ही होना पाया जारा ह अनभव क पहल समझदारी जानन-मानन-पहचानन क रप म होना पाया जारा ह यही अधययनपवतक होन वाला अविारिा ससकार ह इसक पवत रप म करवचार और चचतरि ही रहरा ह यही शरकरर समकरर रबद और चचतरि ह रबद और चचतरि क आिार पर करकरन भी करियाकलापो को मानव सपाददर कररा ह यह सब असथिररा क साथ ही जझरा हआ दखा गया ह असथिररा म भरम ही परिान कारि ह इसीललय ही समरि और चचतरि क उपरानत कही न कही असथिररा-अकरनियरा को परकाशरर कररा ही ह इसी सीमा रक हम इस बीसवी सदी क अर रक झलर आय ह सथिररा की सवीककरर बोि रप म ही होना फलसवरप वयवहार म नयाय-समािान-सतय परमाणिर होना पाया जारा ह ऐसा बोि जानन-मानन-पहचानन का ही महहमा ह यह करिया जीवन म ही जागकरर सहज करवधि स होन वाली वाधिर परकरिया ह असतितव म अनभव सतता म (वयापक म) सपकत परककरर क रप म ही दखा गया ह सतता म सपकत रहन क आिार पर ही करियारीलरा करनयतरि सरलन सरकषि सामय ऊजा सरोर होना दखा गया ह इसीललय परककरर म करनयतरि सरकषि करनररर बना ही रहरा ह अर सतता म करनयतरि सपषट ह (प ७४) असतितव सहज सह-असतितव म जड़-चरनयातमक परककरर करनतय वभकरवर होन का सवरप करिया शरम गकरर पररिाम परकारन सहज करियाकलाप और पररिाम का अमरतव शरम का करवशराम गकरर का गरवय सहज लकषय करनहहर करिया उपयोकरगरा परकरा-उदाततीकरि करनयमो क अनरप समपित भौकररक-रासायकरनक जीवन रपी परककरर म करनतय रचना-करवरचना lsquoतवrsquo सहहर वयविा और उसकी परपरा भल परकार स बोि करान की सहज-करिया समपि करकया जा चका ह इसी िम म शरम का करवशराम गकरर का गरवय रपी परमािो को मानव परपरा म परमाणिर करन की आवशयकरा रहा ह इस सवतसलभ लोकगमय करन क ललए अधययनपवतक जागकरर करवधि और इसक परमाि म बोि परिाली को पहचाना गया यह भी अनभव करकया गया ह करक बोि होना समझदारी का ही दसरा नाम ह अथवा बोि का ही दसरा नाम समझदारी ह ऐस समझदारी अधययनमलक परिाली स अविारिा म िापकरर होना ऐसी अनभव मलक अविारिाओ को अलभवयकत सपरकतरर परकाशरर करन क िम म असतितव म अनभव एक अवशयभावी परकरिया क रप म सपषट हई ह इस िम म असतितव म अनभव करनतय ह यही मानव का परयोजन ह जीवन करनतय ह असतितव सथिर ह इसी आिार पर अनभव और अनभव िम अलभवयकतकत सहहर जागकरर सहज जीवन का गनतवय अथार जीवन म जागकरर पितरा ही जीवन गकरर का गरवय िली होना उसकी करनरनतररा सदा-सदा क ललय बना ही रहना दखा गया इिी आिारो पर lsquoअसतितवrsquo सतता म सपकत जड़-चरनय परककरर क रप म परकररपाददर हई सह- असतितव करवधि स वयाखयाकतयर हई यह महहमा जागकरर पित जीवन सहज अलभवयकतकत ह (प १८३) जीवन जञान सह-असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान रथयो सहज करवधिवर अधययनपवतक बोि होना दखा गया ह ऐस बोि सहज रथयो को उदघादटर करन क िम म और लोकवयापीकरि करन क

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िम म परमाणिर होर ही ह फलसवरप अनभर भी होर ह इस परकार करनतय परमाि और अनभव सहज रप म ही समपि होरा हआ दखा गया ह यही कवलय और जागकरर की महहमा ह (प १५४- १५७) जागकरर करवधि और अभयास असतितवमलक मानव कनदरिर चचनतन जञान दरतन आचरि िरवीकर रप म अधययन गमय होना दखा गया ह जीवन जञान जीवन म समपि होन वाली करियाओ का परसपररा सहज िरव करबनदओ क आिार पर उभय रकतपत करवधि सवत रभ एव समािान स दखा गया अलभवयकतकतया ह जसा मन और रकतपत म सामरसयरा का करबनद करवशलरि रलन पवतक आसवादन क रप म पहचाना गया ह यह सह-असतितव अनभव क पिार करनयम नयाय िमत सतय सहज परयोग म अनभर होन क उपरानत ही साथतक हो पारा ह इसक ललय अथार ऐस अनभकरर क ललय अधययन िम स आरभ होरा ह अधययन अविारिा कषतर का भरर-भरर वरतमान करवधि ह इस करवधि स णजरनी भी अविारिाए अधययन स समबदघ होरा गया उरन ही अविारिा क आिार पर परवकततत सहज नयाय िमातमक और सतय सहज रलन नयाय रलन समपि करवचार क आिार पर करकया गया आसवादन सहहर समपि करकया गया सभी चयन नयाय रप होना दखा गया ह इसी परकार ऊपर कह चचनतनपवतक जब चितरण रलन करवचार आसवादन और चयन करियाए समपि होर ह नयायपवतक वयविा म परमाणिर होना दखा गया अविारिाए सवाभाकरवक रप म ही असतितव सहज होन क आिार पर सह-असतितव रप होन क आिार पर अनभर होना अथार जानना-मानना और उसक रकतपत करबनद को पाना ही अनभव ह जानना-मानना-पहचानना ही अविारिा ह इसम रकतपत करबनद को पा लना ही अनभव ह इस कायत-वयवहार वयविा म वयकत कर दना परामाणिकरा ह अनभव परमाि पित बोि सहहर समपि होन वाल सकलप चचनतन चचतरि नयाय िमत सतय रपी रलन करवशलरि आसवादन सहहर करकया गया समपित अलभवयकतकतया वयविा और समगर वयविा म भागीदारी करनवाह कररा हआ ही दखन को कतमलरा ह इस करवधि स जागकररपित मानव ही असतितव म भरम बनधनो स मकत होना सपषट करकया जा चका ह जागकरर करवधि अधययन रपी सािना करवधि स सवाधिक उपयोगी सदपयोगी परयोजनरील होना दखन को कतमला ह इस करवधि स साधय सािक सािन का सामरसयरा सवय सफरत करवधि स समपि होना दखा गया ह जागकरर क ललय हर मानव सािक ह साधय जागकरर ही ह सािन जागकररगामी अधययन परिाली ह इस िम म परमपरा सािन परकररिा क रप म रन-मन-िन वयविा और समगर वयविा म भागीदारी का परमाि मानवाकाकषा क रप म होरा ही ह इस परकार स साधय-सािक-सािन का सयोग मानवीयरापित परपरा करवधि स सफल होन का सवरप सपषट ह ऐस परपरा क पवत (जस आज की सथिकरर म भरकतमर समदाय परपराए) मानवीयरापित परपरा म सिकतमर होन की कायतपरिाली मददा ह इस िम म अनसिान क अननतर णजरन भी रोिकरा सममर होर जार ह और सममकरर क अनरप करनिा उदगकतमर हो जारी ह और भी भाराओ स सवय सफरत करनिा उदगकतमर होरी ह ऐस ही करनिावान मिावी इस कायत म सलगन ह यही आज की सथिकरर म जागकररगामी अधययन जागकररमलक अलभवयकतकत सहज करवधि एक स अधिक वयकतकतयो म परमाणिर होन का आिार बन चकी ह जागकररपित परपरा म साधय सािन सािक म करनतय सगीर होना दखा गया ह दसर भारा म करनतय समािान होना पाया गया ह

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उललणखर अनभवो क आिार पर समपित जागकरर अपन-आपस जीवन जञान असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान म ही समपित ह इसका अभयास करवधि सवतपरथम अनसिान दसरा अधययन पवतक रोि रोि पवतक अधययन य ही मल अभयास ह कयोकरक अधययन करवधि स ही रोि करवधि स ही अविारिा का सवीकर होना दखा जारा ह अनय करवधि जस उपदर करवधि म भरकतमर होन की सभावना सदा बना ही रहरा ह हर परपरा म अपन ढग की आदर परकररिा िाकतपर रहरा ही ह वह अधययवसाकतयक (अधययनगमय) होर रक उपदर या सचना मातर ह परपरा म णजस आरय क ललय आदर-करनदर ह वह रकत सगर-वयवहार सगर बोि होन की परकरिया परिाली पदघकरर ही अधययन कहलारी ह रकत का साथतक सवरप करवजञान सममर करववक और करववक सममर करवजञान होना दखा गया परयोजन करवहीन उपदर परयोग वह भी वयवहार परमाि करवहीन उपदर रब रक ही रह पारा ह जब रक रकत सगर न हो रकत का रातपयत भी इसी रथय को उदघादटर कररा ह रकतपत क ललय आकरति परिाली (भारा परिाली) ऐस रकत सहज रप म ही करवजञान क आशरर करवशलरिो को करववक स आशरर परयोजनो का परमाणिर होना सहज ह हम इस बार को समझ चक ह करक परयोजनपवतक जीन क ललय परमाणिर होन क ललय समािान समशदघ क रप म सह-असतितव दरतन क ललय रकत सगर अधययवसाकतयक करवधि का होना आवशयक ह अधययन करियाकलाप रकतसगर परयोजन परयोजन सगर मानवापकषा मानवापकषा सगर जीवनापकषा जीवनापकषा सगर सह-असतितव सह-असतितव सगर करवकास िम और करवकास करवकासिम और करवकास सगर जीवन-जीवनी िम-जागकरर िम-जागकरर एव इसकी करनररररा सह-असतितव सहज लकषय ह असतितव सहज लकषय म भी मानव ही अकरवभाय ह और दषटा ह इसललय मानव असतितव सहज सह-असतितव करवधि स परकरा-उदाततीकरि परकरा-करवकास परकरा-जागकरर सतरो क आिार पर सह-असतितव सहज अधययन सलभ हआ ह समपित असतितव ही वयविा क सवरप म वरतमान होना समीचीन ह आज भी मानव क अकररररकत सभी अविा म (पदाथत पराि जीव अविा) अपन-अपन तव सहहर वयविा म होना ददखरा ह इसी िम म मानव भी अपन मानवतव सहहर वयविा और समगर वयविा म भागीदारी सहज अपकषा को साथतक बनान क िम म ही जागर होना पाया जारा ह हम यह पार ह करक जागकरर सतर वयाखया और परमाि सवतरभ क सवरप म ही वभकरवर होरा ह इस आरय को लोकवयापीकरि करना भी सवतरभ कायतिम का एक बकरनयादी आयाम ह इसी सतयरावर lsquolsquoअनभवातमक अधयातमवादrsquorsquo एक परिकरर ह हर मानव अपन कलपनारीलरा कमतसवरतररा पवतक ही हर परिकररयो को परखना (परीकषि करना) सवीकारना या असवीकार करन क कायतकलाप को कररा ह

अनभि दशशन सस २०१२ दधदवतीय (अधयाय -३)

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सतर छद िाकय शबद क दवारा वकरया मातर का िणशन ह सारथ ही जञानानभवत क ललए उपदश पिशक इवगत भी ह बरहम सहज िणशन पारगामी वयापक और पारदशीयता क रप म ह lsquolsquoयहrsquorsquo किल भास आभास बोि तरथा अनभिगमय ह इसका बोि मानि की कषमता योगयता पातरता पर आिाररत ह परतयाितशन पिशक परापत वयजनाएा जागवत क ललए गणातमक गवत ह गणातमक वयजना स सबोि सबोि स सससकार सससकार स गणातमक सिदना (सजञानीयता पिशक सिदना वनयदधतरत) रहना गणातमक सिदना स सतय सकलप तरथा सतय सकलप स गणातमक वयजनाओ की वनरनतरता ह सथसथवत एि वकरया सकत-गरहण कषमता ही वयजनीयता ह सकत-गरहण -परवकरयाबदघ जञान परापय को पान उस सरधकषत रखन क कायशकरम म अलभवयकत ह परापत क अनभि क करम म भास-आभास एि परतीवत ही जञापक (सतयाततपत होना) ह मानि दसरो क ललए भी सकत परसाररत करता ह सकत-गरहण-वकरया ही अनमानारोपण तरथा अनमानाकर भी ह जो सकलप इचछा वििार ि आशा ह अधयाय-७ अलभवयजना म गणातमक विकास का सकत वयजना म उपयोवगता का सकत ह अभयदय पराय (अभयदय जसा) ही अलभपराय ह खजसम अभयदय का भास या आभास होना आिशयक ह

कमशदशशन सस २००४ (प ८६ ८७) परमाण म विकास का तातपयश परमाण क गठनपणश होन स ह|मानि म एक बात की िाहत बनी ह ndash यरथासथसथवत िभि उसकी वनरतरता ndash यह सवाभाविक रप म सवीकत ह| परमाणओ म अशो का घटना-बढ़ना पररणाम क सवरप म हम समझ िक ह| पररणाम का अमरतव उसकी वनरतरता की अपकषा मानि म ही कलपना भास आभास परतीवत क रप म पाया जाता ह

प २० २३ (शासतराधययन की महततव) सदशासतराधययन क वबना सतय कामना एि परितततत सतय कामना क वबना सतय-परम सतय-परम क वबना सतय-वनषठा सतय वनषठा क वबना सतय परवतषठा सतय-परवतषठा क वबना सतय परतीवत सतय-परतीवत क वबना सतयानभाि सतयानभाि क वबना सद शासतर का उदघाटन तरथा सदशासतर क उदघाटन क वबना सद शासतर का अधययन पणश और सारथशक नही ह| मानि को जीिन की परतयक सतिचरथ म शानतनत एि सथसथरता की आिशयकता ह| सदशासतर सिन मनन एि आिरण स वयकती तरथा पररिार म शानतनत तरथा सथसथरता पा जाती ह|

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(सदशासतर सिन = शासतराधययन स शरिण | मनन एि आिरण अभयास-अधययन करम म समपणश मनन परवकरया)

(प ९७ ९८)

सहअसतितविादी विधि स हर मानि मानितव सहहत वयिसथा और समगर वयिसथा म भागीदारी करन योगय इका ह इसम मखय मददा यही ह - सवय को सवय क ललय रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क सयकत रप म होन को सवीकारन की आिशयकता ह जीिन वकरया की महहमा और मानि परमपरा म इसकी आिशयकता धयान म रहना अवत आिशयक ह तभी मानि शोि क ललए ततपर होना पाया जाता ह ऐसी ततपरता जागवत सहज विधि स सिशशभ क अरथश म परिावित होना होता ह तभी सिशमानि समािान पिशक वयकत होन समझदारी पिशक हर पररिार समािावनत और सखी होन की सथसथवत सपषट हो जाती ह फलसवरप समशदघ अभय सहअसतितव परभावित होन का सौभागय उदय होता ह यही मखय वबनद ह सिशशभ का परमाण भी यही ह कयोवक समािान समशदघ पिशक ही मानि सख शानतनत का अनभि करता ह इसी करम म समािान समशदघ अभय सहअसतितव पिशक आननद अपन आप म समपणश होना पाया जाता ह इस ढग स मानि लकषय सारथशक होन की सथसथवत म जीिन लकषय (सख शावत सतोष आननद) सारथशक होता ही ह जीिन लकषय और मानि लकषय सारथशक होना ही अधययन और अधयापन की सािशभौमता ह ऐस लकषय क सारथ मानि परमपरा अपन आप म सवय को पहिानन और समपणश मानि को पहिानन का सतर और वयाखया बन जाता ह परमाण क रप म वयाखया समझ क रप म सतर होना पाया जाता ह यह वनयवत सहज विधि स समीिीन रहना पाया जाता ह वनयवत विधि का तातपयश विकासकरम विकास जागवत करम जागवत ह दसर विधि स भौवतक रासायवनक रिना शरीर और जीिन वकरयाकलाप का सयकत अलभवयततकत समपरषणा परकाशन क रप म ह

मानि लकषय - समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करन और उस आिार पर जीिन लकषय (मनसवसथता) - सख शानतनत सतोष आननद को सारथशक बनान क अरथश म मानि शशकषा ससकार की आिशयकता सदा-सदा स बनी ह ह इसकी सफलता ही मानि कल का सौभागय ह

lsquoमानि कल और रासायवनक-भौवतक वकरयाकलाप का सारथशक परमाणrsquo

शशकषा की समपणश िि सहअसतितव रपी असतितव म रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म ही ह इसम स इनक अविभाजय रप म मानि परमपरा का समपणश वकरयाकलाप वयिहार सोि वििार समझ ह समझ क अरथश म ही हर मानि का अधययन करना होता ह समझ अपन म जानना मानना पहिानना वनिाह करन क रप म परमाखणत होती ह इसी अरथश म समपणश अधययन सारथशक होना पाया जाता ह

असतितव म समपणश इका याा रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म पररलधकषत ह ही (प १०२) वनशचयता सथसथरता सिशमानि म चिराकााकषा क रप म बनी ही ह सहअसतितव रपी असतितव जञान और सवीकवत का आिार ह यह सिशमानि म सिकषण पिशक विदधदत होन िाला तथय ह सवय को जाािन स भी

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यही सपषट होता ह हम सब सथसथरता ि वनशचयता को ही सवीकार करत रह ह न वक असथसथरता अवनशचयता को सथसथरता क सहज आिार पर ही वनशचयता का होना सवभाविक ह (प ११५) इस हम मानि को अचछी तरह स समझन की आिशयकता ह और अनशीलन पिशक सरकषण सििशन विधि स सवय को वयसथसथत कर लन की आिशयकता ह मानि क वयिसथसथत होन क मल म जञान विजञान वििक का एक सगीतमय कायशकलाप सपषट रहन स ह यही कायश-कलाप भाषा कायश-वयिहार म वनयोखजत होकर परयोजनो को परवतपादधदत करता ह मानि का परयोजन समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करना ही ह (प १२२ १२३)

( अनभि मलक वििी स

यरथारथशता िािविकता सतयता का बोि रपी बशदघ की सथसथवत उस परकाशशत करन की परितततत क रप म सकलप ही गवत ह नयाय िमश सतय क साकषातकार करन क रप म चितत सथसथवत और इसका चितरण क रप म चिदधतरत हो पाना गवत ह चितत वकरयाकलाप का समपणश चितरण तलन क रप म अरथात नयाय िमश ि सतय रप म सपषट होना ितततत सहज सथसथवत ह ितततत म समपनन हय तलन का विशलषण विधि म विशलततषत होना ि समपरततषत होना ितततत सहज गवत ह विशलषण क सपषट अरथिा सार रप म मलय सवीकत होता ह इस आसवादन करना ही मन की सथसथवत ह इसकी सारथशकता क ललय ियन वकरया को समपादधदत करन क रप म गवतत होना हर मानि म सिधकषत ह इस ढग स मानि भी सभी परकार स सथसथवत-गवत म होना सपषट होता ह इस परकार मानि समझदारी स समपनन होन क उपरानत परमाखणत होना सवभाविक होता ह इसका मतलब यही हआ हम जब तक परमाखणत नही होत तब तक परमाखणत होन क ललए जञानाजशन वििकाजशन विजञानाजशन कर लना ही शशकषा और शशकषण का तातपयश ह इसक ललए सह असतितविादी शशकषा करम समीिीन ह अतएि समझदार मानि होन क ललए धयान दन की आिशयकता ह

सह-असतितविादी वििार जञान वििक विजञान को समझना ही समझदारी ह

ldquoअधययन रपी उपासनाrdquo (अभयास) - कमशदशशन सस २००४ प ४९ ५०

मानि जीिन म उपासना एक महतवपणश भाग ह| उपासना ही मल परिततततयो का पररमाजशन एि पररितशन परवकरया ह| यही ससकार एि सवभाि पररितशन भी ह| ( उपासना = उपायो सहहत लकषय पती क ललए कीया गया वकरयाकलाप) उपायपिशक सहिास पाना ही उपासना की अििारणा ह खजसक ललए पररशरम (पररमाजशन शरम) एि अभयास ह| अभयास एि पररशरम स ही सथल सकषम कारण की सथसथवतितता सपषट ह| खजसस ततसबिी पदारथश वनयवत-

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करम शततकत महहमा विभती एि वनयम सबिी अनसिान (अनगमन पिशक अििारणा) शोि परधसदध ह| अनसिान भौवतक बौदधदधक तरथा आधयातमतमक भद स ह| अनसनधान परवकरया मनन चिितन सकलप एि अनभती क रप म परतयकष ह|

सथल सकषम कारण (दषटा) का तातपयश दखन समझन परयोग करन वयिहार करन एि अनभि करन योगय कषमता क सपनन होन स ह |

परिततततयो का पररमाजशन ही मानि जीिन का कायशकरम ह| मानि म पणशता एि पररमाजशनशीलता की अपकषा परतयक सथसथती म पा जाती ह| पणशता ही पादधडतय ह| पादधडतय स अधिक जञान एि वनपणता कशलता स अधिक वयिहार एि उतपादन नही ह| पररमाजशनशीलता उतपादन ि वयिहार म पा जाती ह| पादधडतय परबदधता परबदधता ही शशकषा एि वयिसथा ह| परबदधता स पररपणश होत तक उपासना अतयत उपयोगी ह|

प ५६ स ७२ (इनम स कछ ही िाकयो को ललया गया ह| समपणश क ललए पिक दख) उपासना स सािशभौततमक मलयो का अिगाहन करना ही परिान उपादयता ह| समि उपासनाओ क मल म लकषय समय ह िह अखड समाज सािशभौम वयिसथा ह| िह किल सिश

मगल ही ह| कयोकी सिश मगल की कामना क वबना सवय का मगल धसदध नही ह| अनय कामय कामनाए किल मगलमयता की भास परदायी ह न की अनभिदायी| इसललए सिशमगल

कामनारपी कायशकरम तःरथा उसकी अनसरण योगय कषमता पयत मानि परयास करन क ललए बाधय ह| सही क परती भरततमत रहना ही मत सपरदाय एि िगश का कारण ह|

मत सापरदाततयक िगीयता म आचरथिक िगीयता एि आचरथिक िगीयता म मत-सापरदाततयकता समा ह ह|

इसका वनराकरण सपषटतया सािशभौततमक रप म पा जान िाली मानिीयतापणश पदधवत स ldquoवनयम-तरयrdquo (बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक) क आिारपिशक ही आचरथिक एि सापरदाततयक िगश-भािनाओ स मकत होन की समभािना एि मकती ह| इसी म समि िगश-भािना विलीन हो जाती ह| इसीललए ndash

उपासना की उभय पदधवत का अभीषट समझदारी जागवत पिशक सारथशक होता ह जो जागरण ह| मानि म शततकतया वकरया इचछा एि जञान शततकत ही ह जो उनकी अहशताए ह| अहशताए परतयक इका

की जागवतशीलता जागवत पर आिाररत ह| शबद सपशश रप रस गिनतियो दवारा शततकतयो का अपवयय न होना सारथ ही सदवयाय होना ही

वकरया शततकत की जागवत ह| सदवयय एि अपवयय का वनिारण मानिीयता क सीमा म ldquoवनयम-तरयrdquo क रप म ह |

अतकरण मल परितताा अरथात आशा वििार इचछा ि सकलप का अपवयय न होना ही सदवयय ह| यही इचछा शततकत का जागरण ह|

समयक-बोि एि अनभती पणशता ही जञान परकटन कषमता ह| यही जञानशततकत का जागरण अरथिा पणश जागरण ह| यह ldquoजागवत-तरयrdquo मानिीयता एि अवतमानिीयता म परतयकष ह| यही मानि जीिन की िरमोतकषश

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उपलसतबध ह| सशकत उपासना क उपादयता यही ह यही समगर मानि की कामना ह| यही सिशमगल ह| इसीललए

जीिन-जागवत का परतयकष सवरप ही वििक पणश विजञान का परयोग ह यही सतकशता अखणड सामाखजकता परबदघता वनविि षमता सह-असतितव शशकषा विधि वयिसथा सभयता ससकवत बौशदघक समािान भौवतक समशदघ और जीिन जागवत की वनरनतरता ह

पणश जागवत पयशनत परतयक मानि इका परयास एि उपासना क ललय बाधय ह इसी क फलसवरप मल परिततततयो का पररमाजशन होता ह खजसक कारण विशशषट और शशषट मानधसकता एि वििार चिनतन-बोि कषमता अनभिपणशता परतयकष होती ह यही शरषठ उपासना की उपलसतबधयाा ह

इसललय समान क सारथ वयिहार करन क ललय बाधय हआ ह यही सामाखजकता की बाधयता ह यही मानि जीिन की गौरि और गररमा ह यही गररमा समान क सारथ वयिहार अधिक जागवत क ललय अभयास करन क ललय पररणा ह यही िािविक उपासना ह

वििक अरथात मानि लकषय और िरागय अरथात समशदघ ही उपासना का परतयकष फल ह खजसम सामाखजकता सवाभाविक रप स समाहहत रहती ह

िरागय का पराितशन ही असगरह (समशदघ) उदारता एि दया ह भौवतक समशदघ म उदारता एि दया क मौललक मलयो का अनरजन ही सामाखजकता का पराण ततव ह यही सामाखजक सगीत ह इसी क ललय मानि तततषत ह वििक ही बौशदघक समािान एि सामाखजक मलयो को वनिाह पिशक परकट करता ह इसललय

वििक ि िरागय ही परोकष जञान (सदवयिहाररक जञान) का परिान लकषण ह अनभि ही परोकष जञान की अनतनतम सथसथवत ह इसक पिश अनमान अधिकार ही परधसदघ ह ििसथसथवत ििगत सथसथवत सतय म ही अनभि ह

परोकष जञान क वबना वनतयावनतय यकतायकत नयायानयाय िमािमश सतयासतयइषटावनषट दषटादषट तरथा परोकष जञानाधिकार धसदघ नही होता ह

वनतयावनतय जञानाधिकार क वबना मनषय म सविमश क परवत वनषठा नही पा जाती ह मानि िमश ही सख सख ही नयायपणश आिरण नयायपणश आिरण ही मानिीयतापणश सीमा एि lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का पालन ह यही मनषय का सविमश ह मानि सख िमी ह

मयादा विहीन इका नही ह जस जीिो म सवभाि मयादा िनसपवतयो म गण मयादा एि पदारथो म रप मयादा-भग नही होती ह यही उनकी गररमा ह इसी परकार मानि म सख ही िमश ह िमश ही मयादा ह यही उनकी गररमा एि विशवास ह मयादा का परतयकष रप ही विशवास ह

lsquolsquoविशवासविहीन समबनध एि समपकश म सख नही हrsquorsquo समबनध एि समपकश विहीन मनषय नही ह यही बाधयता सविमश क ललय ह इसक पालन म जो अकषमता अयोगयता एि अपातरता ह - िही दख कलश समसया और अजागवत ह

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सविमश म समपननता एि पालन करन योगय कषमता योगयता एि पातरता स पररपणश होत तक जञानाजशन करन क अरथश म अधययन रपी उपासना का अभाि नही ह

मानि क सविमश की सीमा म ही मत समपरदाय िगश वतरोहहत हो जात ह यही समरथश उपासना की परतयकष गररमा ह lsquolsquoयही मागललक हrsquorsquo साधय सािक सािन इन तीनो का उपासना म समाहहत रहना अवनिायश ह इनकी एक सतरता ही उपासना की सफलता ह अनयरथा असफलता ह परतयक सथसथवत म परापत शततकत ि सािनो का सदपयोग करना ही उसकी अवगरम जागवत ह यही उपासना ह

इनतिय कायशकलाप तरथा इनतियो का कायशकषतर ही अपरोकष जञान की सीमा ह इस वयापार म ितविि षय सीमानतिती धसशदघयाा ह इसक अवतररकत और उपलसतबधयाा इसम नही ह

विषयो की सीमा म मनषय सीततमत नही ह कयोवक उसम िार आयाम परधसदघ ह

मनषय ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत समपनन होन क ललय बाधय ह यही आिशयकता अिसर सभािना एि वयिसथा ह

सयमतापिशक ही मनषय क दवारा परतयक पररपरकषय म वकय गय वकरयाकलाप म स गररमापणश िभि परकट होता ह जस-

सतयबोि सहहत सतय बोलन का अभयास करन स भय ि अविशवास की वनितततत हषश तरथा उतसाह का उदय होता ह

विशव क परवत मलय भाि की परवतषठा स इषट और सािक क मधय विषमता का अभाि होता ह

शबद क अरथश अरथात मनतरारथश का तदरपतापिशक समरण करन क अभयास स उसका अरथश एि सवभाि गमय होता ह सभी सारथशक शबद मनतर ह

अधिक जागत म समपशण स अलभमान ि अहकार का उनमलन तरथा विदया ि सरलता का उदय होता ह ( अधिक जागत = समझान िाला परमाखणत वयततकत गर)

शरीर सिदना सयत रहन स मन की पवितरता मन की पवितरता स मनोबल का लाभ होता ह

सव-शरीर मोह नषट होन स ससार क परवत मोह दर होता ह सिशशभरपी आपत कामना पणश बशदघ स ही विशव क परवत उदारता दया कपा करणा का परसिन तरथा विशव की आिारभत सतता म जञान एि अनभि होता ह

जञान विजञान वििक रपी सवतवहीनता ही असयमता मनोदौबशलय मल परविततततयो की अपररषकवत राग मोह लोभ अवििक अहकार अलभमान दहातमिादी परितततत दरािार सघषश असह-असतितव सशकता दवष तरथा तपोहीनता ह

सयमता क वबना बौशदघक मल परिततततयो की पररषकवत बशदघबल सामाखजक मलयो की अनभवत ितनय वकरया का दशशन समािान और सयमता धसदघ नही होती ह

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उपासना क ललय िातािरण का महतव अपररहायश ह खजसम स मनषय कत िातािरण ही परिान ह जो शशकषा ि वयिसथा क रप म ही ह

मानिीयता की सीमा म वयिहार lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का आिरण ही वयततकततव ह ऐस वयततकततव क वनमाण म सवकरय योगदान ही कततशवय ह यही परषारथश ह यही परबदघता ह

आशा भद स उपासना उपासना भद स अनभि अनभि भद स अनमान अनमान भद स उपासना भद ह यही उपासना म िविधयता का कारण ह यह िविधयता सािशभौम आिरण की सीमा म विलय होन क ललय बाधय ह

मानि क ललय सहज समरथश उपासना एक अवनिायश कायशकरम ह जो अमानिीयता स मानिीयता मानिीयता स अवतमानिीयता की परवतषठा सथाततपत करती ह

सह-असतितव म अनकषण-विकषण-ितततत स सहजाितततत होती ह

कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ही अनकषण-विकषण ितततत ह

अनकषण का तातपयश परतयक कषण म लगातार सह-असतितव चिनतन वििार करम म परमाखणकता का सहज परमाण परित हो जाता ह यही सहजाितततत ह

सतता म समपकत परकवत की समपकतता का जञान ही (पणश-दशशन) कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ह यही भरततमत भाि ि अभाि का वतरोभाि ह यही सहज परवतषठा ि अिसथा ह

सतता म समपकत परकवत का जञान न होन स और अनभिमलक जञान न होन स भय और परलोभनिश समि भरममलक कायश-वयिहार सोि-वििार को बनाय रखता ह यही समपणश कलश का कारण ह

काल वकरया की अिधि ह इसी अिधि म आरोततपत वििार ि इचछा ही असहज एि वनरारोततपत वििार ि इचछा ही सहज ह

मानि इका म ही जागवत क करम म भी वनरारोपण कषमता पा जाती ह भरमिश आरोपण होता ह

जो जसा ह उसस अधिक कम अरथिा नासमझना ही आरोपण ह यही अजञान ह यही अकषमता ह यही भरम ह

सतता म समपकत जड़-ितनयातमक परकवत की सथसथवत-शीलता ि सतता सहज पणशता क समबनध म ही आरोप या वनरारोण वकरया समपनन होना पाया जाता ह

परतयक इका म रप गण सवभाि एि िमश समाहहत ह यही उसकी कायशितता ह इसी की गणना पररमाण परयोजन जञान ही परकवत क परवत वनभरमतापणश कषमता का दयोतक ह यही परमाण ह यही सहजता ह

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समपणश वकरयाय मलत रप और शबद भद म दषटवय ह

परकता क वबना इका म अवगरमता नही ह

पणशता पयशनत इका परकता उपयोवगता क ललए परितत ह

परकता ही इका म हरास ि विकास क लकषणो को परकट करती ह यही परिान उपादयता भी ह

इका म परकट होन िाल शबदादधद गण ही सापकष शततकतयाा ह गणविहीन इका नही ह इसललय

मनषय म सहज कामना का अभाि नही ह सहजता ही िमश ह यही सख शानतनत सतोष एि आननद ह यही िारणा को सपषट करता ह जो परतयकष ह

परतयक कमश-फल ही मनषय क सख का पोषक ि शोषक धसदघ हआ ह

सतय और सतयता क अनभि-करम म वयििान नही ह कयोवक अनभिकरम-वयिसथा सघन ह जागवत की कदधड़याा सघन ह इसललय-

सहजता आरोप स मकत ह आरोप ही नयनावतरक मलयाकन ह सवय की नयनावतरक मलयाकन वकरया ही असहजता ह

सवय का मलयाकन lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म होता ह

lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म न हो ऐसा मनषय इस पथवी पर नही ह

िमश का वियोग नही ह कयोवक यह िारणा ह इसका परतयकष रप ही मानिीयता एि अवतमानिीयता पणश आिरण ह जो सहजता का परिान लकषण ह इसललय -

अमानिीयता पणश आिरण ही असहज ह इसललय

परकवत अपन म समपणशता क सारथ सीततमत ह यही अिधि ह इसललय पणश म समायी ह यही पणश म समपणशता सहज सह-असतितव ह यही समपणशता का वनतय ितशमान और जञानािसथा क मानि म पणशता का परसि ह यही जागवत क ललय बाधयता ह

मनषय क बौशदघक कषतर म पायी जान िाली अनािशयक कलपनाओ का वनराकरण ही दशशन-कषमता म गणातमक पररमाजशन ह यही गणातमक ससकार-पररितशन शशकषा एि जीिन क कायशकरम का योगफल ह

दशशन-कषमता का उतकषश ही अनकषण विकषण ह यही मधयसथ वकरया की कषमता ह मधयसथ वकरया ही दषटा ह

मधयसथ वकरया का िरमोतकषश ही सम ि विषम वकरया का पणश वनयतरण ह यही कषमता कषण-कषण मधयसथ वयििान स मततकत ह

ससकार पिशक ही बौशदघक वयिसथा-परवकरया -कषमता क आनषवगक ह मनषय सहज ऐषणा एि विषयो की सीमा म परितततत ि वनितततत पिशक वयि होना पाया जाता ह जो परतयकष ह

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आतमा (मधयसथ वकरया) क आनषवगक बौशदघक परवकरया ि वयिसथा म सतय-सकलप एि सतय-कलपनापणश मानधसकता की सथसथवत पा जाती ह जो परधसदघ कमश उपासना जञान पणश ह यही कषमता दि ि दधदवय मानिीयता को परकट करती ह यही पणश जागवत ह

ऐषणासकत बौशदघक वयिसथा म मानिीय तरथा दि मानिीय सवभाि परकट होता ह उसी क अनरप म मानधसक िातािरण की सथसथवतशीलता ह ऐसी कषमता ही सामाखजक ितना एि सतकशता स पररपणश पायी जाती ह

विषयासकत बौशदघक वयिसथा ि परवकरया म अमानिीयतापणश आिरण समपनन होता ह जो पाशविकता तरथा दानिीयता क रप म दषटवय ह इनम उसी क योगय मानधसकता पा जाती ह यही लपत-सपत कलपना का कारण ह यही अजागवत तरथा अपणश सतकशता का दयोतक ह

शरय (जागवत) खजजञास होन पर ही लपत-सपत कलपनाय पररमाखजि त होती ह फलत दानिी ि पाशिी परिततततयो स उदासीनता सथसथर होती ह सारथ ही वििकोदय होता ह

शरय खजजञासा का उदय सव-ससकार विधि-विहहत अधययन तरथा उसक अनकल िातािरण म होता ह

विधि-विहहत-अधययन वनपणता कशलता ि पादधडतय ही ह

अधययन एि िातािरण ही ससकार पररितशन क ललय समरथश वयिसथा ह खजसका गणातमक पररितशन ही आतमबोि क ललय खजजञासा ह

आतमबोि ही सतय खजजञासा का परिान लकषण ह इसललय- अििारणा ही अनगमन तरथा अनशीलन क ललय परितततत ह जो शशषटता क रप म परतयकष होती ह परगवत क ललय अििारणा अवनिायश ह जागवत क ललय अििारणा एि हरास क ललय आसततकत परधसदघ ह यही करम स वनितततत ि परितततत ह अििारणा ही सदधदविक ह सदधदविक सवय म सतयता की विििना ह जो सपषट ह मलत यही शभ एि मागलय ह अनभि की अििारणा सतय बोि क रप म अििारणा (समयक-बोि) ही सतय-सकलप ह यही परािवति त होकर शभकमश उपासना तरथा आिरण क रप म परतयकष ह इसी का पररिवति त मलय ही िीरता िीरता उदारता दया कपा और करणा क रप म परतयकष ह सतय म ही समयक-बोि होता ह असतय ही कलपना एि भास होता ह हीनता दीनता और कररता स यकत कमश अशभ होता ह सव-मलय ही परितततत और वनितततत का िशश ह इसललय असतय अलभमान तरथा दपश स मकत सतय सरलता सहजता तरथा सौजनयता स यकत कमश ि उपासना शरय कारक ह

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सतय कामना की वनरनतरता स लकषय की अििारणा होती ह जञान म ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत परतयकष ह जञान वििक सममत विजञान ही ह जो पणश ह सतय और सतयता म दढ़ता ही शरयमय जीिन ह सतयानभवत ही सबका अभीषट ह शरीर स समपनन होन िाल समि वकरयाओ का सिालन मन ही मिस दवारा करता ह मिस स सभी नादधड़याा वनयदधतरत ह शबद का मल रप मन ही ह मिस पर मन आसवादन एि सवागत भािपणश तरगो का परसारण सिालन वनयतरण करता ह उसक मल म शबद ही ह जागवत की ओर गवत हत वनयतरणातमक शबद ही मतर ह लकषय-पराततपत-योगय-करम परवकरया ही वनयतरण ह शबद म जो भाि (मलय) ह िही उसका अरथश ह सारथशक शबदो का अरथश ही जागवत की ओर गवत ह कयोवक शबद का अरथश असतितव म िि ह भाि म जो उपयोगपणश अवनिायशता ह िही उसका महतव ह उपयोग पणश अवनिायशता म जो वनचशचत दधदशा ह िही उसकी दढ़ता ह यही समयक सकलप ह समयक सकलप म जो पणशता ह िही अनभि ह जो करम स मन ितततत चितत बशदघ और आतमा म पा जान िाली सससकत मौललक वकरयाय ह भाि का तातपयश होन स ह शततकत-तरय-जागरण (इचछा-शततकत वकरया-शततकत तरथा जञान शततकत जागरण) क वबना तयाग (भरममततकत) और परम परमाखणत नही होता

मनन परवकरया म सव-मलयाकन

सव-मलयाकन मनन धयान ldquoअपराि क अभाि म दयापणश आशा का पराितशन अनयाय क अभाि म नयायपणश वििार का पराितशन आसकती क अभाि म समािान पणश इचछा का पराितशन तरथा अजञान क अभाि म जञानपणश सकलप का पराितशन होता ह| अत अपरािहीन वयिहार क ललए वयिसथा का परभाि अनयायहीन वििार क ललए अखणड समाज का परभाि तरथा अजञान रहहत बदधदध क ललए अतवनि यामन अरथिा धयान आिशयक ह खजसस ही परतयाितशन वकरया सफल ह| धयान का अरथश समझन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना और समझन-अनभि करन क

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उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 27

मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 28

(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 29

सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

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प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

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अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

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३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

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(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

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उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

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(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

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अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 2

इसीललए वकसी न वकसी अश म वयापक सतता म अनभवत एि परकवत की वयजना (रप गण सवभाि सहज अधिकार एि िमश गराही ि परदायी कषमता) सपनन रहना परधसदध ह| [ वयजना समझन की कषमता अधययन करम म साकषातकार-बोि ldquoशबद एि अरथश को सतिचरथ-गवत रप म सवीकार करन की वकरयाrdquo] वयजनीयता ही दशशन कषमता एि अनभि ही आनद ह| वयजनीयता ही अभयदय की कामना का आिार ह| मन ितततत चितत अि बदधदध म ही वयखजत होन वयखजत करन की कषमता ि परवकरया पा जाती ह| यही ससकार ि वििार कषमता ह| कयो कस का उततर पान क ललए कीया गया बौधिक िाचिक काततयक वकरयाकलाप अभयास ह| अरथात समािान सपनन होन क ललए अभयास ह| मानि अभयदय पणश होन तक अभयास क ललए बाधय ह| मानि जागत होन क ललए अभयास करता ह| यह करम जागवत पणशता तक रहगा| वयजनीयता ही भास आभास परतीवत एि अनभि परमाण ह| यह ससकार एि अधययन का फल ह और सारथ ही अभयास एि अधययन क ललए पररणा एि गती भी ह| सपणश वयजनीयता शबद एि अरथश को सतिचरथ-गवत रप म सवीकार करन की वकरया ह| यह सपणश मानि म सारथशक होन िाली सतिचरथ वनतय समीिीन ह| वकरया शकती म कमाभयास इचछाशकती म वयवहराभयास एि शासतराभयास तरथा जञान शकती म चिितन एि परमाण परित करन अभयास परधसदध ह| ] (पषठ ८ १०) ldquoकषमता ि सवससकारrdquo अधययन तरथा िातािरण पर ldquoअिसरrdquo वयिसथा पर ldquoसािनrdquo उपलबधी पर ldquoअवनिायशताrdquo ितशमान सतिचरथ पर आिाररत ह| वनयम नयाय िमश और सतय ही जञान ह| मधयसथ वकरया ही इनका उदघाटन करती ह | इसम पणश वनषणात होन तक ही जागवत ह| यही अभयास ह| (पषट- १४) मानि क अखड सामाखजकता को पान क ललए जड़-ितनय परकवत म वनहहत मलयो को पणशतया अधययन अिगाहन मनन चिितन एि अनभि पिशक वयिहार एि उतपादन म लान क ललए अवनिायश ह| इसका वनिाह ही जीिन म सफलता उपलबधी समदधी एि समािान ह| [अिगाहन = समझन की सफल परवकरया| ओत-परोत अिसथा| अनभि की साकषी म अििारणा वकरया ndash पररभाषा सहहता सस २००८ प ३३] अभयास दशशन सस २०१२ प १५४

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मानिीयता म अमानिीयता का अतयाभाि होता ह| अमानिीयता म मानिीयता का भास आभास एि परतीवत होती ह| यही िािविकता अमानिीयता स मानिीयता म सकरमण एि समभािना को सपषट करती ह| प १५७ अमानिीयता स मानिीयता म अनगमन क ललए वनयमतरय पिशक दाततयतव एि कतशवय परमाखणत होता ह| प १५९ १६० सामाखजकता सवभाि म न हो परमानभती हो ऐसा परमाण नही ह| परमानभती पणश मानि की सवततरतापिशक सामाखजकता ही अलभवयकती ही समाज क ललए उसकी उपदयता ह| परमानभतीमयता की अलभवयकती शशषटता म अरथात आिरण म इवगत होता ह| इवगत होना ही वयजना ह| वयजना ही करम स भास आभास परतीवत अििारणा एि अनभती ह परमामयता ही मानि म अननयता क रप म परतयकष होती ह| ऐस परममयता क ललए ही सपणश परकार क अभयास होत ह| सपणश परकार क अभयास की िरमोतकरषट उपलबधी परमानभती ही ह जो पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक ह| सामाखजकता एि वयािहाररकता म ही मानि की यरथारथशता एि िािविकता सपषट होती ह न की उतपादन म| परमानभती म ही सरिोछ परकार की सामाखजकता परकट होती ह| सामाखजकता म ही सवगानभती ह| उसक अभाि म कलश होता ह| rdquoपरमानभती क ललए करम किल मानिीयतापणश जीिन म पणशता को पाना ही हrdquo| शभ कामना का उदय मानिीयता म ही परतयकष होता ह| यही परमानभती क ललए सिाततम सािना ह| शभकामना करम स इचछा म इचछा तीवर इचछा एि सकलप म तरथा भास-आभास परतीवत एि अििारणा म सथाततपत होता ह| फलत परमामयता का अनभि होता ह| मानि शभ आशा स सपनन ह ही| यही अभयासपिशक करम स कामना इचछा सकलप एि अनभती सलभ होता ह| मानि म परमाखणत होन िाल वनतय शभ मलयततरयानभती ही ह| ितनय इका का सिोचच विकास मलयानभती योगय कषमता स सपनन होना ही ह| यही बाधयता सतता म सपकतता ह| (पषट-२३ २४) लकषय जब आकाकषा आिशयकता या अवनिायशता क रप म पररिवति त (तीवर इचछा) होगा तब यही कायशकरम क ललए बाधयता होगी कयोकी लकषय विहीन कायशकरम नही ह| दशशन कषमता परतयक मानि म वकसी न वकसी अश म पा जाती ह| दशशन कषमता क जागवत की अलभलाषा स शशकषा एि अधययन की अवनिायशता धसदध ह ह समपणश अधययन सतता म सपकत परकवत सहज ह| जो असतितव दशशन जञान जीिन जञान मानिीयतापणश आिरण जञान ही ह| अनभि ही सतय ह और सतय अपररणामी ह| अनभिपिशक वयिहार ि उतपादन ही परमाण ह| दशशनविहीन परयोग ि उतपादन धसदध नही ह|

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विशलततषत सवीकत होना ही अधययन ह| रप गण सवभाि और िमश की परतयकषानभवत ही विशलषण ह जो सतिचरथिातता ि सतय ह| अि अधययन का फलन ही अनभि ह| अनभि विहीन परतयक उतपादन-कायश म तरदधट एि वयिहार-कायश म अपराि भािी ह| तरदधट एि अपराि मानि की िाधछत परिती नही ह| यह परिती तब तक रहगी जब तक अधययन पणश न हो जाए परतयक मानि म अधययन परितततत जनम स ही पा जाती ह| (पषट ndash ३९) परतयक मानि म पायी जान िाल अनभि क ललए कारण वििार क ललए सकषम वयिहार क ललए सकषम-सथल तरथा उतपादन क ललए सथल तथयो का अधययन ह जो परतयकष ह| अधययन स ििाररक वनयतरण शशकषा स वयािहाररक वनयतरण एि परशशकषण स उतपादन म वनयतरण ह| [कारण = वयापक िि सकषम = जीिन सथल = शरीरजड़] (प ५२ ५३) परतयक अनमान अनभि पर आिाररत अनयरथा अनभि क ललए सदधननहहत ह| परतयक अनमान अनभि क ललए पिापर ह| अनमान ही शोि पिशक भास आभास परतीवत क रप म उदय होता ह| खजसक आिार पर ही मानि म योजना वििार एि कलपना का परसि होता ह जो अनभि म परमाखणत होता ह ldquoतातरयrdquo स मानि म स क ललए अलभवयकती नही ह| इसीललए भाि = मौललकता = सवमलय तरथा मलयाकन कषमता = मौललकता का भास आभास परतीवत ि अनभती = वयकती की कषमता योगयता पातरता = जागवत = िातािरण अधययन और सवससकार = उतपादन वयिहार वयिसथा म भागीदारी = भाि परधसदध ह| (पषट ndash ६१) नयाय और समािान (िमश) सािशभौम सतय ह| यह दश काल अबाि ह| इसीललए मानि दवारा कीया गया समपणश वििार एि परयास तकशसगत या सतकशतापणश होन क ललए ही परतयक मानि का समािान एि समदधी म स क ललए ही वििार कमश एि वयिहार करना परधसदध ह| तकश की सीमा म परवततकश ह| मल िि क अजञात ि असपषट रहत हए उसक तातपयश या फलितता क सनदभश म की गयी परशनोततर परवकरया ही िाद-परवतिादी एि तकश-परवततकश ह हो समसया का समािान नही ह| समािान एि तातवतवकता क ललए तकश का परयकत होना ही उसकी िररतारथशता ह | इस परकार यह सपषट होता ह वक तकश का असतितव सवततर नही ह| सारथ ही तकश का परयोजन किल तातवतवकता स सबदध होना ही ह| इसी परमाण-धसदध-साकषय स सपषट होता ह वक तकश सीमानवरती वििार उपदश एि परिार मानि जीिन क ललए पयापत नही ह| (पषट -१९) मानि जावत क समि कायशकरम का उददशय अनभि एि परमाण ही ह बौशदघक समािान क वबना अनभि सभि नही ह कयोवक समािान की वनरतरता ही अनभि ह भौवतक समशदघ क वबना बौशदघक समािान धसदघ

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नही ह और बौशदघक समािान क वबना भौवतक समशदघ परमाखणत नही होती कयोवक अजञात को जञात करन क ललए एि अपरापत को परापत करन क ललए अनिरत परयास हआ ह वििक ि विजञान का सतलनाधिकार सहज परमाण ही भौवतक समशदघ एि बौशदघक समािान ह कमाभयास क वबना उतपादन एि समशदघ तरथा वयिहाराभयास क वबना समािान नही ह कमाभयास अनवषण शशकषण परशशकषण ह खजसकी िररतारथशता उतपादन ह फलत समशदघ ह वयिहाराभयास अनसिान अनसरण आिरण ससकवत सभयता विधि एि वयिसथा ह खजसकी िररतारथशता सामाखजकता अखडता अभयता समािान सतलन एि सवगश ह मानि का अशष कायशकरम ििाररक वयिहाररक एि उतपादन ह ििाररक पररपणशता अरथिा समािान क ललए चिनतनाभयास आिशयक ह ही चिनतनाभयास पिशक ही यरथारथता िािविकता सतयता को वनरीकषण-परीकषण कर परमाखणत कर पाना सहज ह यही समािान रपी वनषकषो को सफररत करता रहता ह खजसस ही सिशशभ ह जो पाािो सथसथवतयो म lsquolsquoनीवततरयrsquorsquo स सबदघ ह lsquolsquoअनभि कायशकरम नही ह अततपत अनभि म स क ललए ही कायशकरम हrsquorsquo (पषठ-८३ ८६) अपकषाकत सतिचरथितता ही अनमान का उदय ह| यही अधययन हत की गयी उतसकता ह| उदयविहीन सतिचरथ म अधययन एि अधययन धसदध नही ह| उदय ही कौतहल ह अरथात जानन मानन पहिानन उपयोवगता उपादयता एि अवनिायशतापिशक अनभि करन की वकरया ही उतकठा ह| यही मानि जीिन म वकरयाकलाप का आिार ह| मानि जीिन िार आयाम दश सोपनीय पररिार सभा वयिसथा एि मलयो क वनिाह क रप म दषटवय ह जो ससकवत सभयता विधि वयिसथा का आघात कायशकरम ह| [अभयास-करम म मनन पिान lsquoदशrsquo सबिी िि जीन की जगह शोि] सिशशभ उदय का भास-आभास सिदनशीलता की ही कषमता ह और परतीवत ि अनभती सजञानीयता की महहमा ह| सिशपररथम सख समािान का भास-आभास सिदनशीलता पिशक होता ह|

अनभिातमक आधयातमिाद ndash सस २००९

प १६ १७ १८

जानन का फलन मानन क रप म आता ही ह| मानन का सवरप ह - ldquoयह सतय ह इस सवीकारना ह |rdquo और सतय सहज परयोजन सवय स या सबस जडी ह सतिचरथ को और गवत को सवीकारना ही मानना ह| इसस सपषट होता ह हर सतिचरथ म िि सहज िािविकताओ को जननना सहज ह| इसी करम म उसकी गवत और परयोजन क सारथ ldquoसह-असतितवrdquo म स क ललए आिशयकताओ को सवीकारना ही मानना ह|

मानि ही जानन-मानन क आिार पर पहिानन-वनिाह करन म परयोजनशील होता ह| मानन का आिार परयोजन होना ह| जानन का आिार कयो और कस क उततर क रप म ह | सारथ ही िि कसा ह यह भी जानन म आता ह| िि कसा ह यह जानन का सवरप ह| इसी स कयो और कस का उततर सवय सफतश वििी

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स वनगशततमत होता ह| मानन का तातपयश परयोजन पहिानन क अरथश म सारथशक होता ह| जस असतितव सहज वनतय सतिचरथ को जानना सहअसतितव परयोजन सतर को पहिानना सवाभाविक होना पाया गया|

प ६६ ६७

जञान का मल सवरप जीिन जञान और असतितव सहज सहअसतितव रपी वयिसथा का जञान ह| जीिन जञान मानि सवय अपन जीिन सहज वकरयाकलापो क आिार पर विशवास करना बन पाता ह| यह मलत अनभि सहज वकरया ह| इसको जानना-मानना एक आिशयकता ह ही | जीिन को जानन-मानन क करम म शरीर रिना और शरीर सीमाओ क सनदभश म भल परकार स पारगत होन की आिशयकता ह| जीिन और शरीर क सयकत रप म ही जञानािसथा परकाशमान होन क आिार पर ही मानि सहज वििी स ही

१) अपना ही कलपनाशीलता कमशसवततरता शरीर स लभनन तरग क रप म अनभि करना बनता ह

२) आशा वििार इचछाए जीिन सहज वकरया होन क रप म सवय म सवय स सवय क ललए परीकषण वनरीकषण कर सकता ह

३) आसवादन तलन चिितन बोि करम म अधययन वििी म जो अनभवतयाा परतीत होती ह या भास-आभास होता ह इसका परीकषण सवय ही हर मानि हर काल म हर दश म वकया जाना समीिीन ह|

इन वकरयाकलापो क वनररकषण स पता लगता ह वक जीित मानि म आसवादन का अनभि भास नयाय िमश सतयरपी वनतय िि का भास होना हर वयततकत अपन म वनसिय कर सकता ह| चिितन म ही नयाय िमश सतय का आभास होना और परतीत होना परमाखणत होता ह|

साकषातकार अपन म परयोजनो का वनशचयन सहहत तपती क ललए सरोत रप म अधययन वििी स पहिान लता ह| फलसवरप बोि पिशक अनभि म सारथशकता सहहत नयाय िमश सतय सहज सवीकवत ही ससकार और अनभि बोि रप म जीिन म अविभाजय वकरया रपी बदधी म सथाततपत हो जाता ह| यही अधययन पिशक होन िाली अदभत उपलबधी ह| नयाय सहज साकषातकार सहअसतितव सहज सबिो का साकषातकार सहहत मलयो का साकषातकार होना पाया जाता ह ( यह सिारना ह यहाा मलयो स तातपयश मानि मलय अरथिा मानिीय सवभाि स ह कयोकी मलयो का साकषातकार होता नही िह बहत ह ) | यही मखय वबिद ह | सह-असतितव सहज सबिो को पहिानन म भरम रह जाता ह यही बिन का परमाण ह| यही जीिन को शरीर समझन (मानन) की घटना ह|

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मानि सितनािादी मनोविजञान ndash सस १९९८

प १९३

समपणश समझदारी शरवत समवत पिशक मानि स मानि को पीढ़ी स पीढ़ी को सपरततषत होता ह खजसम

स बोि होन पयशनत शरवत ह बोि म अपन म जानन मानन का सवरप ह इसका तततपत वबिद अनभि ह इस परमाखणत करन क करम म शरवत समवतपिशक बोि कराया जाना पाया जाता ह परतयक मनषय की सपणशता अपन म भाषा भाि भवगमा मदरा अगहार सहहत ही सारथशकता को पहिाना जाता ह शरवत समवत पिशक मलयाकन करत ह

प १८३ १८४ - भाषा शरवत (अभयास-अधययन करम म जो भाषा परयोग होना ह)

शरवत सह-असतितव सहज अलभवयततकत ह सह-असतितव सहज असतितव वनतय ितशमान ह ितशमान म ही मानि न अपनी कमश सवततरता कलपनाशीलता का परयोग वकया ह कर रहा ह करता रहगा मानि म ही शरवत समवत सहज परकाशन परमाखणत होना पाया जाता ह खजसस भास- आभास परतीवत पिशक अनभि होना पाया जाता ह इसी कारणिश उस उसक सहज रप म समझना कायशकरम ह इसका परमाण यह ह वक मनषय ही असतितव म धववन शबद नाद भाषा ि िि सहज परभदो को जानता मानता पहिानता ह अरथिा इसक योगय ह जस-पदारथश अिसथा म पा जान िाली वयिसथा का मल रप परमाण म भी धववन और िि को पहिानता ह

फलत अणओ क रप म होना सवाभाविक ह पराणकोशाओ म धववन ि कायश सकतो को परसपर कोशाए पहिानत ह फलसवरप रिनाए सपनन होती ह उसी भावत जीिो म भी शबद धववन और नाद उनक परसपर पहिान म होना पाया जाता ह मनषय म शबद धववन नाद ि भाषा य सहज ही परसपर ििओ को इवगत करन क अरथश म जानन मानन पहिानन को ततमलता ह भाषा का तातपयश होता ह खजसस िि सहज सतय भास हो जाय मानि भाषा म सतय भास आभास परतीवत सहहत अनभि होन क अरथश म ही परयोग वकया जाता ह यही जागवत सहज सपरषणा ह इसी करम म भाषा क परवत विशवास हो पाता ह मनषयतर परकवत म भी अपन अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा को परमाखणत करन क करम म समपणश धववन नाद ि शबद को दखा जाता ह जागत मनषय परसपर भाषा दवारा इवगत होना िाहता ह या इवगत कराना िाहता ह

भाषा धववन नाद ि शबद क मल म दखन पर पता िलता ह वक इका म सवय सफतश अलभवयततकत ह मल इका का तातपयश परमाण ही ह परमाण ही विकास पिशक जीिन जीिन जागवत पदो म और परमाण ही विकास करम म अण कोशा रिना ि विरिना क करम म असतितव म होना पाया जाता ह परमाण ही मलत वयिसथा का मल ह भौवतक वकरयाकलाप रासायवनक वकरयाकलाप जीिन वकरयाकलाप क मल म परमाण ही वयिसथा का िारक-िाहक होना पाया जाता ह मनषयतर तीनो अिसथाए अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा क रप म इस िरती म विदयमान ह मनषय भी मानितव सहहत वयिसथा क रप म परमाखणत होन क ललए परयतनशील ह इसकी सभािना समीिीन ह

समपणश शरवत परतयक एक अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा को बनाए रखन क ललए ही उदगमशील ह शररवत को धववन शबद नाद ि भाषा क रप म मनषय पहिानता ह इसकी सारथशकता को पहिानना शष रहा इसी करम म गवत लय तरग को भी पहिानता ह यह विविि परकार स शररवत को ही िि क रप म समझन का परयास सारथशक

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होता ह शरवत का तातपयश सथसथवत सतय िि सथसथवत सतय ििगत सतय को इवगत करन बोि करन क ललए ही सनन योगय ि सनान योगय सभाषण ह पणशता को इवगत करन करान क अरथश म परयोग वकया गया भाषा एि पररभाषा ह सनन सनान क ललए सवय सफतश मानि अपकषा ह सनान योगय भी सवय सफतश सपरषणा ह सपरषणा का तातपयश पणशता क अरथश म परित होन की परवकरया ह सनन क करम म भी पणशता को पहिानन सहज अपकषाए बनी ही रहती ह पणशता अपन म वनरतर ह इसका सामानय सवरप असतितव म पणशता परमपरा क रप म परकाशशत ह असतितव म पणशता गठन पणशता वकरया पणशता आिरण पणशता ही ह रासायवनक भौवतक इका या अपन-अपन िातािरण सहहत समपणश ह ही पदारथािसथा पराणािसथा जीिािसथा की परपराए उन उन की lsquoतवrsquo सहहत वयिसथा क रप म सदधतरत वयाखयाततयत ह यह परपराए पणशता सपणशता सहज ही वनरतरता को परापत वकए ह िह lsquoतवrsquo सहहत वयिसथा समगर वयिसथा म भागीदारी ह यही िभि-सतर ह

मानि ऐसी शरवत परमपरा को िाहता ही ह वक इसस यरथारथशता िािविकता और सतयता सहज ही समझ म आय जीिन सहज खजजञासा कयो ह कसा ह कबस ह कसा बना ह इस परकार क परशन अपन आप उदय होत ही ह यह कलपनाशीलता की गररमा ह इसका उततर पाना समािान पाना परमाण पाना परमाखणत होना यह ही शरवत समचचय की सारथशकता म होना पाया गया

समपणश िाङमय अरथात शरवत (सनन योगय सनान योगय भाषा पररभाषा जो सोि वििार वनशचय और समझदारी परितशन भाषाकरण सतरीकरण िाकय परबिन सिाद क रप म परिललत रहता ही ह) यरथारथशता का सवरप जसा खजसकी मौललकता ह उस इवगत करन वनदशशत करन और चिखनहत करन क रप म शररवत का परयोजन सारथशक होता हआ नजर आता ह खजसका जो अरथश का सवरप परतयक एक म रप गण सवभाि क रप म वयाखयाततयत होना पाया जाता ह इन िारो आयामो की अविभाजयता म परतयक एक वयिसथा क रप म मलयावकत होता ह और परतयक एक वकरया क रप म ही ततमलता ह

जबवक मानि भाषा कारण गण गखणत क अविभाजय रप म ह खजसस ही परम सतय रपी सह-असतितव भासा आभास पिशक परतीवत सहज बोि सारथशक होना पाया गया फलत अनभि होना धसदघ हआ प ४४ भततकत सहज अलभवयततकत जागवत गामी विधि स अरथिा जागवत करम विधि स भास आभास परतीवतयाा और जागवत-पणश विधि स परतीवत अनभवत ि उसकी वनरतरता दोनो सथसथवतयो म तनमयता तारतमयता और उपादयता सपषटतया समझ म आता ह प ८६ ndash मन म होन िाली सवागत वकरया ndash अभयास-अधययन करम म

सवागत - (1) अििारणा अनभि क ललए सवीकत वकया (2) वनयम नयाय समािान सतय सहज सवीकवतयो असवीकवतयो क ललए तयाररया (वििक ि विजञान सममत मानधसक ििाररक और ऐचिक तयाररया)

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 9

इदधदरय सदधननकषश म भी सवागत भाि का भास आभास होना पाया जाता ह खजसकी वनरतरता की अपकषा ही रह पाती ह यह वयिहार म परमाखणत नही हो पाता अतएि सवागत का आिार समपणश मलय सवागत होना पाया जाता ह ििओ का िारक िाहकता म भी जीिन रहता ही ह

समपणश अििारणाए मौललकता क रप म होना पा जाती ह मौललकताए िमश और सवभाि क ही सतर ह समपणश असतितव म परतयक एक अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा ह समगर वयिसथा म भागीदार ह कयोवक असतितव म समपणश इकाइया (अरथिा समि इका या) सह-असतितव सतर म सदधतरत ह प २१८ इवगत होना ही वयजना ह वयजना ही करम स भास आभास परतीवत अििारणा एि अनभवत ह प २१

ियन-वकरया अरथात गरहण करन का वकरयाकलाप पराितशन विधि स और आसवादन वकरया परतयाितशन विधि स सवय म सपनन होती ह विशलषण वकरया पराितशन विधि स और तलन वकरया (ततपरय हहत लाभ नयाय िमश सतय दवषट) परतयाितशन विधि स सपनन होती ह चितरण वकरया पराितशन विधि स इचछा पटल म चिदधतरत हो पाती ह पराितशन म रिनाओ वकरयाओ क रप म परमाखणत हो पाता ह और चिनतन-वकरया साकषातकार विधि स सारथशक होती ह साकषातकार की समपणश िि जीिन मलय मानि मलय सथाततपत मलय शशषट मलय और िि-मलयो क रप म दरषटवय ह मलयो का सतलन तलन होकर तततपत विधि म सलगन रहता ह इस परकार साकषातकार की तततपत का सरोत मलय ह और उसकी (मलयो की) वनरतरता का भािी होना पाया जाता ह

जीिन म सपनन होन िाली अििारणा बोि-बशदघ सहज परतयाितशन वकरया ह सभी अििारणाए अधययन और अनसिान विधि स सथाततपत हो पाती ह अनभि मलक विधि अनभिगामी पदघतततत स बोि होना पाया जाता ह अनभि सतय बोि करान म परमाखणत होता ह और सकलप पणशता क अरथश म कलपनाओ को गवत दन स ह कलपनाए - आशा वििार इचछा क सयकत रप म परिाहहत रहती ह जीिन शततकत अकषय होन क कारण परतयक वयततकत म कलपनाशीलता का अकषय होना पाया जाता ह कयोवक यह कलपना जीिन शततकतयो का ही परिाह ह कलपनाए सतय सकलप क अनरप परािवति त होकर मानि परमपरा क अखड समाज सािशभौम वयिसथा क रप म सारथशकता को परमाखणत करती ह

प ४९-५०

पिानकरम पदघवत परणाली मानिीयता पणश वििार-चिितन-बोि-अििारणा और अनभि मलक होन क करम म अधययन गमय ह पिानकरम विधि स ही मनन पिशक मानयताए सथाततपत हो पाती ह फलत मानि परमपरा क ललए उपकारी और सारथशक धसदघ होती ह

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प ५१ ५२

वनषठा - जागवत पणश लकषय को वनचशचत अििारणा ि समरण पिशक परापत करन ि परमाखणत करन का वनरतर परयास

वयजनीयता का तातपयश - साकषातकार होन स ह साकषातकार चिितन म होता ह वयजनाए मानि मलय जीिन-मलय सथाततपत मलयो क परभाि क सारथ जीिन मलयो का बोि ि अनभि करन स ह समपणश रसानभवत का तातपयश ह - जीिन मलय रपी सख शावत सतोष आनद सहज आपलािन जागवत सहज परमाणो क रप म सपषट होना यही अनभि करन और बोि करान का तातपयश ह

प ७५-७७ गर और शशषय

पररभाषा गर - शशकषा ससकार वनयवत करमानिषगीय विधि स खजजञासाओ और परशनो को समािान रप म अििारणा म परसथाततपत करन िाला मनषय गर ह जागवत करम म मानि को अपरापत का परापत अजञात का जञात करन क ललए होन क ललए विधि वनयम परवकरया सहज समझदारी म पारगत बनाना ही परमाखणकता का परमाण ह परमाखणकता पणश गरजन ही असतितव सहज सह-असतितव रप म अििारणा को परवतसथाततपत करा सकता ह अििारणाय असतितव विकासकरम विकास जीिन जीिनी करम जीिन जागवतकरम जीिन जागवत सहज रप म परसपरता म अरथात समझा हआ और समझन क ललय तरथा मनषयो स ह गरजन इन मददो म पारगत रहग यह समझदारी ह समझदारी क आिार पर ही मानिीय शशकषा-ससकार सपनन होता रहगा ससकार का तातपयश ही अििारणा ह विदयाचरथि यो म सथाततपत होन स उसकी वनरतरता का परमाण वयिहार वयिसथा म परमाखणत होन स ह फलसवरप ही अखणड समाज सािशभौम वयिसथा म भागीदारी सहज कायश-कलाप हर मानिीय शशकषा-ससकार समपनन मानि स िररतारथश होना पाया जाता ह

परामाखणक - परमाणो का िारक िाहक - यरथा असतितव दशशन जीिन जञान मानिीयता पणश आिरण समचचय को परयोग वयिहार अनभि पणश विधि स परमाखणत करना और परमाणो क रप म जीना

पररभाषा शशषय - जागवत लकषय की पवति क ललए शशकषा ससकार गरहण करन सवीकार करन क ललए परित वयततकत खजसम गर का समबनध सवीकत हो िका रहता ह यही खजजञासातमक शशषटता ह

खजजञास - जीिन जञान सहहत वनभरशम शशकषा गरहण करन क ललए तीवर इचछा का परकाशन

समझन सीखन करन क ललए पणश खजजञासा सहहत परयतन सपनन वयततकत शशषय क रप म शोभनीय होता ह सफल होन क सभी लकषणो स यकत िातािरण म विशवास होना और विशवास को िातािरण म परभावित करन परमाखणत करन की सभी परवकरया अधययन ह

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असतितव विकास जीिन जीिन जागवत रासायवनक-भौवतक रिना-विरिना समपणश मानि क ललए समझन-समझान की िि ह सीखन की जो कछ भी परमाखणत िि ह यह मानि म मानिीयतापणश आिरण कमश अरथात वयिसाय म सवािलमबन वयिसथा म भागीदारी मानिीयता पणश आिरण का अभयास परामाखणकता सहज अलभवयततकत ह सारथ ही सािशभौम वयिसथा और अखड समाज म वनषठा ह य समपणश खजजञासाए वयािहाररक रप म िररतारथश होती ह परौढ़ता की पराकाषठा म स क ललए सवानशासन की खजजञासा का होना पाया जाता ह खजजञासा मानि सहज परकाशन ह

प १०६ जीिन को तातवतवक रप म समझन की खजजञासा हो ऐसी सथसथवत म परमाण म होन िाली विकास परवकरया उसक सकरमण िभि को भी जो ितनय इका क रप म परवतवषठत ह को सहज ही अधययन अििारणा म लाना एि अनभि करना आिशयक ह

अनभिातमक आधयातमिाद सस २००० (प ५८ ndash ६५) अनभव ही दसर नाम स परतयावरतन करिया ह और इसका परावरतन करिया को परामाणिकरा-परमाि नाम ददया ह जागकरर सह-असतितव म अनभव हई ह इसी जागर सथिकरर म होन वाली गकरर को परतयावरतन नाम ददया गया ह समपित परतयावरतन दरतन और जञान नाम स परकररकरिर ह जञान और दरतन सवाभाकरवक रप म ओर-परोर रप म वरतमान ह समपित असतितव सतता म सपकत जड़-चरनय परककरर ही सह-असतितव का मल सवरप ह इसका सामानय कलपना हर मानव म होना सभव ह कलपना का मल सतरोर आरा करवचार इचछा का असपषट गकरर रप ह कयोकरक समपित कलपनाए परावरतन म कायतरप रहना दखा जारा ह मानव ही कलपनारीलरा का परयोग कररा ह इस ऐसा भी कहा जा सकरा ह करक हर वयकतकत परकारानतर स कलपनारीलरा का परयोग कररा ह भरकतमर मानव दवारा कलपनारीलरा का सवाधिक परयोग ररीर और इनदरिय सदिकरत क रप म ही सवाभाकरवक ह यह भरम करववररा ह यही कलपनाए चचणिर रप म सपषट होन क ललए रतपर होर ह रभी करवधिवर करवशलरि और करनचिर चचतरि करवचार रप म समभावनाओ को सवीकारना बनरा ह सभावनाओ का लकषय कतपरय हहर लाभ सीमाओ म सीकतमर रहना पाया जारा ह यही भरमातमक कायत सीमा का अथ इकरर ह जागकररपित जीवन चचतरि म यह रथय ससपषट ह करक नयाय िमत सतय उसका साकषातकार बोि अनभव ही अधययन और अनसिान का लकषय और कायत ह इिी कायत रप क आिार पर असतितव और जीवन अविारिा म िाकतपर होना सफल अधययन का दयोरक और कसौटी भी ह इसी क आिार पर सवायतत मानव का सवकषि करनरीकषि और परीकषि होना सपषट हो जारा ह सवायतत मानव ही असतितव म अनभव सहज जागकरर का िारक-वाहक होना सपषट ह इस परकार अधययन सहज रप म जीवन और सह-असतितव म अनभव बोि की अलभवयकतकत और परमणिर होन क िम म आतमा असतितव म अनभर होना जीवन म किीय होना मधयि करिया और मधयि बल समपिरा का सवीकर होना परम रपत होना ह जीवन रचना मधयार सहज मधयि करिया मधयि बल मधयि रकतकत सरलन क अथत म सदा-सदा परयकत रहरा ही ह यही जागर

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मानव परपरा म परमाि ह मधयि करिया समम_य िम स जीवनी िम और जीवन जागकरर िम वयकत होरा ह इसी िम म जागर होना जीवन सहज परवकततत परयास आवशयकरा क योग-सयोग करवधि स समपि होरा ह यही अनसिान रोि और अधययन क ललए भी सयोजक रतव ह यह रतव सदा-सदा जीवन परकररिा म कायतरर रहरा ही ह इसकी परखररा क आिार पर ही अनसिान रोि अधययन सहज हो जारा ह इस परकार यह ससपषट हो जारा ह करक आतमा अधययन करवधि स असतितव म अनभर होरा ह दसरा अनसिान करवधि स भी असतितव म अनभर होना पाया जारा ह ( अनसिान विधि जो शरी ए नागराज न कीया सािना gt समािीgt सयम | अधययन विधि पिक एि वकसी समझ हए वयकती क माधयम स शशकषा-ससकार परापत करना) अनसिान करवधि स भी सवतपरथम असतितव म बोि होना दखा गया ह इसक उपरानत ही आतमा असतितव म अनभर होना दखा गया ह अधययन करवधि स भी यही सथिकरर अथार पहल बोि रदोपरार अनभव होना पाया जारा ह इन दोनो करवधियो म स अधययन करवधि लोकवयापीकरि क ललए कम समय म बोि होन की सथिकरर बनरी ह अनसिान करवधि म परवतत होन क ललए वयकतकत म लकषय सममर णजजञासा का होना अकरनवायत ह जब अधययन करवधि स समपित परशनो का उततर कतमल जारा ह परशन िली ररकत होना उसी िली म समपित उततर िाकतपर होना अधययन और अधयापन का सयोग और फलन ह परशन करवहीन सथिकरर म अनसिान का आिार नही बनरा इस परकार परपरा म सभी परशनो का उततर अधययन करवधि स हर मानव म हर सथिकरर पररसथिकररयो म समपित परशनो का उततर सह-असतितव सहज करवधि स समीचीन ह अनसिान करवधि एव अधययन करवधि स पहल बोि ही होरा ह रदोपरार lsquolsquoबोिrsquorsquo का आतमा म अनभव होरा ह अनभव क उपरानत lsquolsquoअनभव सहज बोिrsquorsquo अधययन एव अनसिान करवधि म एक जसा होरा ह एव एक ही होरा ह इसम मखय रथय यही ह यथाथतरा वासवकररकरा सतयरापित करवधि स अधयापन सामगरी वि परकरिया पररपित रहना आवशयक ह ( अधययन अरथिा शशकषा वििी म) अनसिान क ललय अजञार परशन चचि अकरर आवशयक ह हर अनसिान को अधययन और अधयापन कायत करवधि स लोक वयापीकरि होना सगम हो जारा ह इस परकार अनभव क अननतर ही अनभव lsquoबोिrsquo होना दखा गया ह यह हर वयकतकत म होना समीचीन ह (प १०७ १०८ १०९ इसक उपरानत जागकरर और जागकररपितरा ही मणजलो क रप म दखन को कतमलरा ह यह मलर करवचार चचतरि अविारिा अनभव और चचनतन का ही वभव रपी मानधसकरा क रप म दखा गया ह भरम का समपित सवरप आरा करवचार इचछा (चचतरि) का कतपरय हहर लाभातमक दकरषटयो की करियारीलरा ही ह सवतमानव पीड़ा स मकतकत चाहरा ही ह यही जागकरर सहज अपकषा का सरोर और समभावना ह जीवन सहज करियाकलापो म स नयाय िमत सतय का साकषातकार और दषटा होना और उसका परमाि धसदघ होना ही समपित जागकरर ह दषटापद म होन वाली समपित करियाकलाप जीवन सहज करवधि स जानन-मानन-पहचानन-करनवाह करन क रप म होना पाया गया ह जानन-मानन की समपित वि जीवन जञान सह-असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान ही ह

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अनभव असतितव म ही होना पाया जारा ह अनभव क पहल समझदारी जानन-मानन-पहचानन क रप म होना पाया जारा ह यही अधययनपवतक होन वाला अविारिा ससकार ह इसक पवत रप म करवचार और चचतरि ही रहरा ह यही शरकरर समकरर रबद और चचतरि ह रबद और चचतरि क आिार पर करकरन भी करियाकलापो को मानव सपाददर कररा ह यह सब असथिररा क साथ ही जझरा हआ दखा गया ह असथिररा म भरम ही परिान कारि ह इसीललय ही समरि और चचतरि क उपरानत कही न कही असथिररा-अकरनियरा को परकाशरर कररा ही ह इसी सीमा रक हम इस बीसवी सदी क अर रक झलर आय ह सथिररा की सवीककरर बोि रप म ही होना फलसवरप वयवहार म नयाय-समािान-सतय परमाणिर होना पाया जारा ह ऐसा बोि जानन-मानन-पहचानन का ही महहमा ह यह करिया जीवन म ही जागकरर सहज करवधि स होन वाली वाधिर परकरिया ह असतितव म अनभव सतता म (वयापक म) सपकत परककरर क रप म ही दखा गया ह सतता म सपकत रहन क आिार पर ही करियारीलरा करनयतरि सरलन सरकषि सामय ऊजा सरोर होना दखा गया ह इसीललय परककरर म करनयतरि सरकषि करनररर बना ही रहरा ह अर सतता म करनयतरि सपषट ह (प ७४) असतितव सहज सह-असतितव म जड़-चरनयातमक परककरर करनतय वभकरवर होन का सवरप करिया शरम गकरर पररिाम परकारन सहज करियाकलाप और पररिाम का अमरतव शरम का करवशराम गकरर का गरवय सहज लकषय करनहहर करिया उपयोकरगरा परकरा-उदाततीकरि करनयमो क अनरप समपित भौकररक-रासायकरनक जीवन रपी परककरर म करनतय रचना-करवरचना lsquoतवrsquo सहहर वयविा और उसकी परपरा भल परकार स बोि करान की सहज-करिया समपि करकया जा चका ह इसी िम म शरम का करवशराम गकरर का गरवय रपी परमािो को मानव परपरा म परमाणिर करन की आवशयकरा रहा ह इस सवतसलभ लोकगमय करन क ललए अधययनपवतक जागकरर करवधि और इसक परमाि म बोि परिाली को पहचाना गया यह भी अनभव करकया गया ह करक बोि होना समझदारी का ही दसरा नाम ह अथवा बोि का ही दसरा नाम समझदारी ह ऐस समझदारी अधययनमलक परिाली स अविारिा म िापकरर होना ऐसी अनभव मलक अविारिाओ को अलभवयकत सपरकतरर परकाशरर करन क िम म असतितव म अनभव एक अवशयभावी परकरिया क रप म सपषट हई ह इस िम म असतितव म अनभव करनतय ह यही मानव का परयोजन ह जीवन करनतय ह असतितव सथिर ह इसी आिार पर अनभव और अनभव िम अलभवयकतकत सहहर जागकरर सहज जीवन का गनतवय अथार जीवन म जागकरर पितरा ही जीवन गकरर का गरवय िली होना उसकी करनरनतररा सदा-सदा क ललय बना ही रहना दखा गया इिी आिारो पर lsquoअसतितवrsquo सतता म सपकत जड़-चरनय परककरर क रप म परकररपाददर हई सह- असतितव करवधि स वयाखयाकतयर हई यह महहमा जागकरर पित जीवन सहज अलभवयकतकत ह (प १८३) जीवन जञान सह-असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान रथयो सहज करवधिवर अधययनपवतक बोि होना दखा गया ह ऐस बोि सहज रथयो को उदघादटर करन क िम म और लोकवयापीकरि करन क

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िम म परमाणिर होर ही ह फलसवरप अनभर भी होर ह इस परकार करनतय परमाि और अनभव सहज रप म ही समपि होरा हआ दखा गया ह यही कवलय और जागकरर की महहमा ह (प १५४- १५७) जागकरर करवधि और अभयास असतितवमलक मानव कनदरिर चचनतन जञान दरतन आचरि िरवीकर रप म अधययन गमय होना दखा गया ह जीवन जञान जीवन म समपि होन वाली करियाओ का परसपररा सहज िरव करबनदओ क आिार पर उभय रकतपत करवधि सवत रभ एव समािान स दखा गया अलभवयकतकतया ह जसा मन और रकतपत म सामरसयरा का करबनद करवशलरि रलन पवतक आसवादन क रप म पहचाना गया ह यह सह-असतितव अनभव क पिार करनयम नयाय िमत सतय सहज परयोग म अनभर होन क उपरानत ही साथतक हो पारा ह इसक ललय अथार ऐस अनभकरर क ललय अधययन िम स आरभ होरा ह अधययन अविारिा कषतर का भरर-भरर वरतमान करवधि ह इस करवधि स णजरनी भी अविारिाए अधययन स समबदघ होरा गया उरन ही अविारिा क आिार पर परवकततत सहज नयाय िमातमक और सतय सहज रलन नयाय रलन समपि करवचार क आिार पर करकया गया आसवादन सहहर समपि करकया गया सभी चयन नयाय रप होना दखा गया ह इसी परकार ऊपर कह चचनतनपवतक जब चितरण रलन करवचार आसवादन और चयन करियाए समपि होर ह नयायपवतक वयविा म परमाणिर होना दखा गया अविारिाए सवाभाकरवक रप म ही असतितव सहज होन क आिार पर सह-असतितव रप होन क आिार पर अनभर होना अथार जानना-मानना और उसक रकतपत करबनद को पाना ही अनभव ह जानना-मानना-पहचानना ही अविारिा ह इसम रकतपत करबनद को पा लना ही अनभव ह इस कायत-वयवहार वयविा म वयकत कर दना परामाणिकरा ह अनभव परमाि पित बोि सहहर समपि होन वाल सकलप चचनतन चचतरि नयाय िमत सतय रपी रलन करवशलरि आसवादन सहहर करकया गया समपित अलभवयकतकतया वयविा और समगर वयविा म भागीदारी करनवाह कररा हआ ही दखन को कतमलरा ह इस करवधि स जागकररपित मानव ही असतितव म भरम बनधनो स मकत होना सपषट करकया जा चका ह जागकरर करवधि अधययन रपी सािना करवधि स सवाधिक उपयोगी सदपयोगी परयोजनरील होना दखन को कतमला ह इस करवधि स साधय सािक सािन का सामरसयरा सवय सफरत करवधि स समपि होना दखा गया ह जागकरर क ललय हर मानव सािक ह साधय जागकरर ही ह सािन जागकररगामी अधययन परिाली ह इस िम म परमपरा सािन परकररिा क रप म रन-मन-िन वयविा और समगर वयविा म भागीदारी का परमाि मानवाकाकषा क रप म होरा ही ह इस परकार स साधय-सािक-सािन का सयोग मानवीयरापित परपरा करवधि स सफल होन का सवरप सपषट ह ऐस परपरा क पवत (जस आज की सथिकरर म भरकतमर समदाय परपराए) मानवीयरापित परपरा म सिकतमर होन की कायतपरिाली मददा ह इस िम म अनसिान क अननतर णजरन भी रोिकरा सममर होर जार ह और सममकरर क अनरप करनिा उदगकतमर हो जारी ह और भी भाराओ स सवय सफरत करनिा उदगकतमर होरी ह ऐस ही करनिावान मिावी इस कायत म सलगन ह यही आज की सथिकरर म जागकररगामी अधययन जागकररमलक अलभवयकतकत सहज करवधि एक स अधिक वयकतकतयो म परमाणिर होन का आिार बन चकी ह जागकररपित परपरा म साधय सािन सािक म करनतय सगीर होना दखा गया ह दसर भारा म करनतय समािान होना पाया गया ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 15

उललणखर अनभवो क आिार पर समपित जागकरर अपन-आपस जीवन जञान असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान म ही समपित ह इसका अभयास करवधि सवतपरथम अनसिान दसरा अधययन पवतक रोि रोि पवतक अधययन य ही मल अभयास ह कयोकरक अधययन करवधि स ही रोि करवधि स ही अविारिा का सवीकर होना दखा जारा ह अनय करवधि जस उपदर करवधि म भरकतमर होन की सभावना सदा बना ही रहरा ह हर परपरा म अपन ढग की आदर परकररिा िाकतपर रहरा ही ह वह अधययवसाकतयक (अधययनगमय) होर रक उपदर या सचना मातर ह परपरा म णजस आरय क ललय आदर-करनदर ह वह रकत सगर-वयवहार सगर बोि होन की परकरिया परिाली पदघकरर ही अधययन कहलारी ह रकत का साथतक सवरप करवजञान सममर करववक और करववक सममर करवजञान होना दखा गया परयोजन करवहीन उपदर परयोग वह भी वयवहार परमाि करवहीन उपदर रब रक ही रह पारा ह जब रक रकत सगर न हो रकत का रातपयत भी इसी रथय को उदघादटर कररा ह रकतपत क ललय आकरति परिाली (भारा परिाली) ऐस रकत सहज रप म ही करवजञान क आशरर करवशलरिो को करववक स आशरर परयोजनो का परमाणिर होना सहज ह हम इस बार को समझ चक ह करक परयोजनपवतक जीन क ललय परमाणिर होन क ललय समािान समशदघ क रप म सह-असतितव दरतन क ललय रकत सगर अधययवसाकतयक करवधि का होना आवशयक ह अधययन करियाकलाप रकतसगर परयोजन परयोजन सगर मानवापकषा मानवापकषा सगर जीवनापकषा जीवनापकषा सगर सह-असतितव सह-असतितव सगर करवकास िम और करवकास करवकासिम और करवकास सगर जीवन-जीवनी िम-जागकरर िम-जागकरर एव इसकी करनररररा सह-असतितव सहज लकषय ह असतितव सहज लकषय म भी मानव ही अकरवभाय ह और दषटा ह इसललय मानव असतितव सहज सह-असतितव करवधि स परकरा-उदाततीकरि परकरा-करवकास परकरा-जागकरर सतरो क आिार पर सह-असतितव सहज अधययन सलभ हआ ह समपित असतितव ही वयविा क सवरप म वरतमान होना समीचीन ह आज भी मानव क अकररररकत सभी अविा म (पदाथत पराि जीव अविा) अपन-अपन तव सहहर वयविा म होना ददखरा ह इसी िम म मानव भी अपन मानवतव सहहर वयविा और समगर वयविा म भागीदारी सहज अपकषा को साथतक बनान क िम म ही जागर होना पाया जारा ह हम यह पार ह करक जागकरर सतर वयाखया और परमाि सवतरभ क सवरप म ही वभकरवर होरा ह इस आरय को लोकवयापीकरि करना भी सवतरभ कायतिम का एक बकरनयादी आयाम ह इसी सतयरावर lsquolsquoअनभवातमक अधयातमवादrsquorsquo एक परिकरर ह हर मानव अपन कलपनारीलरा कमतसवरतररा पवतक ही हर परिकररयो को परखना (परीकषि करना) सवीकारना या असवीकार करन क कायतकलाप को कररा ह

अनभि दशशन सस २०१२ दधदवतीय (अधयाय -३)

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सतर छद िाकय शबद क दवारा वकरया मातर का िणशन ह सारथ ही जञानानभवत क ललए उपदश पिशक इवगत भी ह बरहम सहज िणशन पारगामी वयापक और पारदशीयता क रप म ह lsquolsquoयहrsquorsquo किल भास आभास बोि तरथा अनभिगमय ह इसका बोि मानि की कषमता योगयता पातरता पर आिाररत ह परतयाितशन पिशक परापत वयजनाएा जागवत क ललए गणातमक गवत ह गणातमक वयजना स सबोि सबोि स सससकार सससकार स गणातमक सिदना (सजञानीयता पिशक सिदना वनयदधतरत) रहना गणातमक सिदना स सतय सकलप तरथा सतय सकलप स गणातमक वयजनाओ की वनरनतरता ह सथसथवत एि वकरया सकत-गरहण कषमता ही वयजनीयता ह सकत-गरहण -परवकरयाबदघ जञान परापय को पान उस सरधकषत रखन क कायशकरम म अलभवयकत ह परापत क अनभि क करम म भास-आभास एि परतीवत ही जञापक (सतयाततपत होना) ह मानि दसरो क ललए भी सकत परसाररत करता ह सकत-गरहण-वकरया ही अनमानारोपण तरथा अनमानाकर भी ह जो सकलप इचछा वििार ि आशा ह अधयाय-७ अलभवयजना म गणातमक विकास का सकत वयजना म उपयोवगता का सकत ह अभयदय पराय (अभयदय जसा) ही अलभपराय ह खजसम अभयदय का भास या आभास होना आिशयक ह

कमशदशशन सस २००४ (प ८६ ८७) परमाण म विकास का तातपयश परमाण क गठनपणश होन स ह|मानि म एक बात की िाहत बनी ह ndash यरथासथसथवत िभि उसकी वनरतरता ndash यह सवाभाविक रप म सवीकत ह| परमाणओ म अशो का घटना-बढ़ना पररणाम क सवरप म हम समझ िक ह| पररणाम का अमरतव उसकी वनरतरता की अपकषा मानि म ही कलपना भास आभास परतीवत क रप म पाया जाता ह

प २० २३ (शासतराधययन की महततव) सदशासतराधययन क वबना सतय कामना एि परितततत सतय कामना क वबना सतय-परम सतय-परम क वबना सतय-वनषठा सतय वनषठा क वबना सतय परवतषठा सतय-परवतषठा क वबना सतय परतीवत सतय-परतीवत क वबना सतयानभाि सतयानभाि क वबना सद शासतर का उदघाटन तरथा सदशासतर क उदघाटन क वबना सद शासतर का अधययन पणश और सारथशक नही ह| मानि को जीिन की परतयक सतिचरथ म शानतनत एि सथसथरता की आिशयकता ह| सदशासतर सिन मनन एि आिरण स वयकती तरथा पररिार म शानतनत तरथा सथसथरता पा जाती ह|

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(सदशासतर सिन = शासतराधययन स शरिण | मनन एि आिरण अभयास-अधययन करम म समपणश मनन परवकरया)

(प ९७ ९८)

सहअसतितविादी विधि स हर मानि मानितव सहहत वयिसथा और समगर वयिसथा म भागीदारी करन योगय इका ह इसम मखय मददा यही ह - सवय को सवय क ललय रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क सयकत रप म होन को सवीकारन की आिशयकता ह जीिन वकरया की महहमा और मानि परमपरा म इसकी आिशयकता धयान म रहना अवत आिशयक ह तभी मानि शोि क ललए ततपर होना पाया जाता ह ऐसी ततपरता जागवत सहज विधि स सिशशभ क अरथश म परिावित होना होता ह तभी सिशमानि समािान पिशक वयकत होन समझदारी पिशक हर पररिार समािावनत और सखी होन की सथसथवत सपषट हो जाती ह फलसवरप समशदघ अभय सहअसतितव परभावित होन का सौभागय उदय होता ह यही मखय वबनद ह सिशशभ का परमाण भी यही ह कयोवक समािान समशदघ पिशक ही मानि सख शानतनत का अनभि करता ह इसी करम म समािान समशदघ अभय सहअसतितव पिशक आननद अपन आप म समपणश होना पाया जाता ह इस ढग स मानि लकषय सारथशक होन की सथसथवत म जीिन लकषय (सख शावत सतोष आननद) सारथशक होता ही ह जीिन लकषय और मानि लकषय सारथशक होना ही अधययन और अधयापन की सािशभौमता ह ऐस लकषय क सारथ मानि परमपरा अपन आप म सवय को पहिानन और समपणश मानि को पहिानन का सतर और वयाखया बन जाता ह परमाण क रप म वयाखया समझ क रप म सतर होना पाया जाता ह यह वनयवत सहज विधि स समीिीन रहना पाया जाता ह वनयवत विधि का तातपयश विकासकरम विकास जागवत करम जागवत ह दसर विधि स भौवतक रासायवनक रिना शरीर और जीिन वकरयाकलाप का सयकत अलभवयततकत समपरषणा परकाशन क रप म ह

मानि लकषय - समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करन और उस आिार पर जीिन लकषय (मनसवसथता) - सख शानतनत सतोष आननद को सारथशक बनान क अरथश म मानि शशकषा ससकार की आिशयकता सदा-सदा स बनी ह ह इसकी सफलता ही मानि कल का सौभागय ह

lsquoमानि कल और रासायवनक-भौवतक वकरयाकलाप का सारथशक परमाणrsquo

शशकषा की समपणश िि सहअसतितव रपी असतितव म रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म ही ह इसम स इनक अविभाजय रप म मानि परमपरा का समपणश वकरयाकलाप वयिहार सोि वििार समझ ह समझ क अरथश म ही हर मानि का अधययन करना होता ह समझ अपन म जानना मानना पहिानना वनिाह करन क रप म परमाखणत होती ह इसी अरथश म समपणश अधययन सारथशक होना पाया जाता ह

असतितव म समपणश इका याा रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म पररलधकषत ह ही (प १०२) वनशचयता सथसथरता सिशमानि म चिराकााकषा क रप म बनी ही ह सहअसतितव रपी असतितव जञान और सवीकवत का आिार ह यह सिशमानि म सिकषण पिशक विदधदत होन िाला तथय ह सवय को जाािन स भी

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यही सपषट होता ह हम सब सथसथरता ि वनशचयता को ही सवीकार करत रह ह न वक असथसथरता अवनशचयता को सथसथरता क सहज आिार पर ही वनशचयता का होना सवभाविक ह (प ११५) इस हम मानि को अचछी तरह स समझन की आिशयकता ह और अनशीलन पिशक सरकषण सििशन विधि स सवय को वयसथसथत कर लन की आिशयकता ह मानि क वयिसथसथत होन क मल म जञान विजञान वििक का एक सगीतमय कायशकलाप सपषट रहन स ह यही कायश-कलाप भाषा कायश-वयिहार म वनयोखजत होकर परयोजनो को परवतपादधदत करता ह मानि का परयोजन समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करना ही ह (प १२२ १२३)

( अनभि मलक वििी स

यरथारथशता िािविकता सतयता का बोि रपी बशदघ की सथसथवत उस परकाशशत करन की परितततत क रप म सकलप ही गवत ह नयाय िमश सतय क साकषातकार करन क रप म चितत सथसथवत और इसका चितरण क रप म चिदधतरत हो पाना गवत ह चितत वकरयाकलाप का समपणश चितरण तलन क रप म अरथात नयाय िमश ि सतय रप म सपषट होना ितततत सहज सथसथवत ह ितततत म समपनन हय तलन का विशलषण विधि म विशलततषत होना ि समपरततषत होना ितततत सहज गवत ह विशलषण क सपषट अरथिा सार रप म मलय सवीकत होता ह इस आसवादन करना ही मन की सथसथवत ह इसकी सारथशकता क ललय ियन वकरया को समपादधदत करन क रप म गवतत होना हर मानि म सिधकषत ह इस ढग स मानि भी सभी परकार स सथसथवत-गवत म होना सपषट होता ह इस परकार मानि समझदारी स समपनन होन क उपरानत परमाखणत होना सवभाविक होता ह इसका मतलब यही हआ हम जब तक परमाखणत नही होत तब तक परमाखणत होन क ललए जञानाजशन वििकाजशन विजञानाजशन कर लना ही शशकषा और शशकषण का तातपयश ह इसक ललए सह असतितविादी शशकषा करम समीिीन ह अतएि समझदार मानि होन क ललए धयान दन की आिशयकता ह

सह-असतितविादी वििार जञान वििक विजञान को समझना ही समझदारी ह

ldquoअधययन रपी उपासनाrdquo (अभयास) - कमशदशशन सस २००४ प ४९ ५०

मानि जीिन म उपासना एक महतवपणश भाग ह| उपासना ही मल परिततततयो का पररमाजशन एि पररितशन परवकरया ह| यही ससकार एि सवभाि पररितशन भी ह| ( उपासना = उपायो सहहत लकषय पती क ललए कीया गया वकरयाकलाप) उपायपिशक सहिास पाना ही उपासना की अििारणा ह खजसक ललए पररशरम (पररमाजशन शरम) एि अभयास ह| अभयास एि पररशरम स ही सथल सकषम कारण की सथसथवतितता सपषट ह| खजसस ततसबिी पदारथश वनयवत-

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करम शततकत महहमा विभती एि वनयम सबिी अनसिान (अनगमन पिशक अििारणा) शोि परधसदध ह| अनसिान भौवतक बौदधदधक तरथा आधयातमतमक भद स ह| अनसनधान परवकरया मनन चिितन सकलप एि अनभती क रप म परतयकष ह|

सथल सकषम कारण (दषटा) का तातपयश दखन समझन परयोग करन वयिहार करन एि अनभि करन योगय कषमता क सपनन होन स ह |

परिततततयो का पररमाजशन ही मानि जीिन का कायशकरम ह| मानि म पणशता एि पररमाजशनशीलता की अपकषा परतयक सथसथती म पा जाती ह| पणशता ही पादधडतय ह| पादधडतय स अधिक जञान एि वनपणता कशलता स अधिक वयिहार एि उतपादन नही ह| पररमाजशनशीलता उतपादन ि वयिहार म पा जाती ह| पादधडतय परबदधता परबदधता ही शशकषा एि वयिसथा ह| परबदधता स पररपणश होत तक उपासना अतयत उपयोगी ह|

प ५६ स ७२ (इनम स कछ ही िाकयो को ललया गया ह| समपणश क ललए पिक दख) उपासना स सािशभौततमक मलयो का अिगाहन करना ही परिान उपादयता ह| समि उपासनाओ क मल म लकषय समय ह िह अखड समाज सािशभौम वयिसथा ह| िह किल सिश

मगल ही ह| कयोकी सिश मगल की कामना क वबना सवय का मगल धसदध नही ह| अनय कामय कामनाए किल मगलमयता की भास परदायी ह न की अनभिदायी| इसललए सिशमगल

कामनारपी कायशकरम तःरथा उसकी अनसरण योगय कषमता पयत मानि परयास करन क ललए बाधय ह| सही क परती भरततमत रहना ही मत सपरदाय एि िगश का कारण ह|

मत सापरदाततयक िगीयता म आचरथिक िगीयता एि आचरथिक िगीयता म मत-सापरदाततयकता समा ह ह|

इसका वनराकरण सपषटतया सािशभौततमक रप म पा जान िाली मानिीयतापणश पदधवत स ldquoवनयम-तरयrdquo (बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक) क आिारपिशक ही आचरथिक एि सापरदाततयक िगश-भािनाओ स मकत होन की समभािना एि मकती ह| इसी म समि िगश-भािना विलीन हो जाती ह| इसीललए ndash

उपासना की उभय पदधवत का अभीषट समझदारी जागवत पिशक सारथशक होता ह जो जागरण ह| मानि म शततकतया वकरया इचछा एि जञान शततकत ही ह जो उनकी अहशताए ह| अहशताए परतयक इका

की जागवतशीलता जागवत पर आिाररत ह| शबद सपशश रप रस गिनतियो दवारा शततकतयो का अपवयय न होना सारथ ही सदवयाय होना ही

वकरया शततकत की जागवत ह| सदवयय एि अपवयय का वनिारण मानिीयता क सीमा म ldquoवनयम-तरयrdquo क रप म ह |

अतकरण मल परितताा अरथात आशा वििार इचछा ि सकलप का अपवयय न होना ही सदवयय ह| यही इचछा शततकत का जागरण ह|

समयक-बोि एि अनभती पणशता ही जञान परकटन कषमता ह| यही जञानशततकत का जागरण अरथिा पणश जागरण ह| यह ldquoजागवत-तरयrdquo मानिीयता एि अवतमानिीयता म परतयकष ह| यही मानि जीिन की िरमोतकषश

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उपलसतबध ह| सशकत उपासना क उपादयता यही ह यही समगर मानि की कामना ह| यही सिशमगल ह| इसीललए

जीिन-जागवत का परतयकष सवरप ही वििक पणश विजञान का परयोग ह यही सतकशता अखणड सामाखजकता परबदघता वनविि षमता सह-असतितव शशकषा विधि वयिसथा सभयता ससकवत बौशदघक समािान भौवतक समशदघ और जीिन जागवत की वनरनतरता ह

पणश जागवत पयशनत परतयक मानि इका परयास एि उपासना क ललय बाधय ह इसी क फलसवरप मल परिततततयो का पररमाजशन होता ह खजसक कारण विशशषट और शशषट मानधसकता एि वििार चिनतन-बोि कषमता अनभिपणशता परतयकष होती ह यही शरषठ उपासना की उपलसतबधयाा ह

इसललय समान क सारथ वयिहार करन क ललय बाधय हआ ह यही सामाखजकता की बाधयता ह यही मानि जीिन की गौरि और गररमा ह यही गररमा समान क सारथ वयिहार अधिक जागवत क ललय अभयास करन क ललय पररणा ह यही िािविक उपासना ह

वििक अरथात मानि लकषय और िरागय अरथात समशदघ ही उपासना का परतयकष फल ह खजसम सामाखजकता सवाभाविक रप स समाहहत रहती ह

िरागय का पराितशन ही असगरह (समशदघ) उदारता एि दया ह भौवतक समशदघ म उदारता एि दया क मौललक मलयो का अनरजन ही सामाखजकता का पराण ततव ह यही सामाखजक सगीत ह इसी क ललय मानि तततषत ह वििक ही बौशदघक समािान एि सामाखजक मलयो को वनिाह पिशक परकट करता ह इसललय

वििक ि िरागय ही परोकष जञान (सदवयिहाररक जञान) का परिान लकषण ह अनभि ही परोकष जञान की अनतनतम सथसथवत ह इसक पिश अनमान अधिकार ही परधसदघ ह ििसथसथवत ििगत सथसथवत सतय म ही अनभि ह

परोकष जञान क वबना वनतयावनतय यकतायकत नयायानयाय िमािमश सतयासतयइषटावनषट दषटादषट तरथा परोकष जञानाधिकार धसदघ नही होता ह

वनतयावनतय जञानाधिकार क वबना मनषय म सविमश क परवत वनषठा नही पा जाती ह मानि िमश ही सख सख ही नयायपणश आिरण नयायपणश आिरण ही मानिीयतापणश सीमा एि lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का पालन ह यही मनषय का सविमश ह मानि सख िमी ह

मयादा विहीन इका नही ह जस जीिो म सवभाि मयादा िनसपवतयो म गण मयादा एि पदारथो म रप मयादा-भग नही होती ह यही उनकी गररमा ह इसी परकार मानि म सख ही िमश ह िमश ही मयादा ह यही उनकी गररमा एि विशवास ह मयादा का परतयकष रप ही विशवास ह

lsquolsquoविशवासविहीन समबनध एि समपकश म सख नही हrsquorsquo समबनध एि समपकश विहीन मनषय नही ह यही बाधयता सविमश क ललय ह इसक पालन म जो अकषमता अयोगयता एि अपातरता ह - िही दख कलश समसया और अजागवत ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 21

सविमश म समपननता एि पालन करन योगय कषमता योगयता एि पातरता स पररपणश होत तक जञानाजशन करन क अरथश म अधययन रपी उपासना का अभाि नही ह

मानि क सविमश की सीमा म ही मत समपरदाय िगश वतरोहहत हो जात ह यही समरथश उपासना की परतयकष गररमा ह lsquolsquoयही मागललक हrsquorsquo साधय सािक सािन इन तीनो का उपासना म समाहहत रहना अवनिायश ह इनकी एक सतरता ही उपासना की सफलता ह अनयरथा असफलता ह परतयक सथसथवत म परापत शततकत ि सािनो का सदपयोग करना ही उसकी अवगरम जागवत ह यही उपासना ह

इनतिय कायशकलाप तरथा इनतियो का कायशकषतर ही अपरोकष जञान की सीमा ह इस वयापार म ितविि षय सीमानतिती धसशदघयाा ह इसक अवतररकत और उपलसतबधयाा इसम नही ह

विषयो की सीमा म मनषय सीततमत नही ह कयोवक उसम िार आयाम परधसदघ ह

मनषय ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत समपनन होन क ललय बाधय ह यही आिशयकता अिसर सभािना एि वयिसथा ह

सयमतापिशक ही मनषय क दवारा परतयक पररपरकषय म वकय गय वकरयाकलाप म स गररमापणश िभि परकट होता ह जस-

सतयबोि सहहत सतय बोलन का अभयास करन स भय ि अविशवास की वनितततत हषश तरथा उतसाह का उदय होता ह

विशव क परवत मलय भाि की परवतषठा स इषट और सािक क मधय विषमता का अभाि होता ह

शबद क अरथश अरथात मनतरारथश का तदरपतापिशक समरण करन क अभयास स उसका अरथश एि सवभाि गमय होता ह सभी सारथशक शबद मनतर ह

अधिक जागत म समपशण स अलभमान ि अहकार का उनमलन तरथा विदया ि सरलता का उदय होता ह ( अधिक जागत = समझान िाला परमाखणत वयततकत गर)

शरीर सिदना सयत रहन स मन की पवितरता मन की पवितरता स मनोबल का लाभ होता ह

सव-शरीर मोह नषट होन स ससार क परवत मोह दर होता ह सिशशभरपी आपत कामना पणश बशदघ स ही विशव क परवत उदारता दया कपा करणा का परसिन तरथा विशव की आिारभत सतता म जञान एि अनभि होता ह

जञान विजञान वििक रपी सवतवहीनता ही असयमता मनोदौबशलय मल परविततततयो की अपररषकवत राग मोह लोभ अवििक अहकार अलभमान दहातमिादी परितततत दरािार सघषश असह-असतितव सशकता दवष तरथा तपोहीनता ह

सयमता क वबना बौशदघक मल परिततततयो की पररषकवत बशदघबल सामाखजक मलयो की अनभवत ितनय वकरया का दशशन समािान और सयमता धसदघ नही होती ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 22

उपासना क ललय िातािरण का महतव अपररहायश ह खजसम स मनषय कत िातािरण ही परिान ह जो शशकषा ि वयिसथा क रप म ही ह

मानिीयता की सीमा म वयिहार lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का आिरण ही वयततकततव ह ऐस वयततकततव क वनमाण म सवकरय योगदान ही कततशवय ह यही परषारथश ह यही परबदघता ह

आशा भद स उपासना उपासना भद स अनभि अनभि भद स अनमान अनमान भद स उपासना भद ह यही उपासना म िविधयता का कारण ह यह िविधयता सािशभौम आिरण की सीमा म विलय होन क ललय बाधय ह

मानि क ललय सहज समरथश उपासना एक अवनिायश कायशकरम ह जो अमानिीयता स मानिीयता मानिीयता स अवतमानिीयता की परवतषठा सथाततपत करती ह

सह-असतितव म अनकषण-विकषण-ितततत स सहजाितततत होती ह

कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ही अनकषण-विकषण ितततत ह

अनकषण का तातपयश परतयक कषण म लगातार सह-असतितव चिनतन वििार करम म परमाखणकता का सहज परमाण परित हो जाता ह यही सहजाितततत ह

सतता म समपकत परकवत की समपकतता का जञान ही (पणश-दशशन) कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ह यही भरततमत भाि ि अभाि का वतरोभाि ह यही सहज परवतषठा ि अिसथा ह

सतता म समपकत परकवत का जञान न होन स और अनभिमलक जञान न होन स भय और परलोभनिश समि भरममलक कायश-वयिहार सोि-वििार को बनाय रखता ह यही समपणश कलश का कारण ह

काल वकरया की अिधि ह इसी अिधि म आरोततपत वििार ि इचछा ही असहज एि वनरारोततपत वििार ि इचछा ही सहज ह

मानि इका म ही जागवत क करम म भी वनरारोपण कषमता पा जाती ह भरमिश आरोपण होता ह

जो जसा ह उसस अधिक कम अरथिा नासमझना ही आरोपण ह यही अजञान ह यही अकषमता ह यही भरम ह

सतता म समपकत जड़-ितनयातमक परकवत की सथसथवत-शीलता ि सतता सहज पणशता क समबनध म ही आरोप या वनरारोण वकरया समपनन होना पाया जाता ह

परतयक इका म रप गण सवभाि एि िमश समाहहत ह यही उसकी कायशितता ह इसी की गणना पररमाण परयोजन जञान ही परकवत क परवत वनभरमतापणश कषमता का दयोतक ह यही परमाण ह यही सहजता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 23

समपणश वकरयाय मलत रप और शबद भद म दषटवय ह

परकता क वबना इका म अवगरमता नही ह

पणशता पयशनत इका परकता उपयोवगता क ललए परितत ह

परकता ही इका म हरास ि विकास क लकषणो को परकट करती ह यही परिान उपादयता भी ह

इका म परकट होन िाल शबदादधद गण ही सापकष शततकतयाा ह गणविहीन इका नही ह इसललय

मनषय म सहज कामना का अभाि नही ह सहजता ही िमश ह यही सख शानतनत सतोष एि आननद ह यही िारणा को सपषट करता ह जो परतयकष ह

परतयक कमश-फल ही मनषय क सख का पोषक ि शोषक धसदघ हआ ह

सतय और सतयता क अनभि-करम म वयििान नही ह कयोवक अनभिकरम-वयिसथा सघन ह जागवत की कदधड़याा सघन ह इसललय-

सहजता आरोप स मकत ह आरोप ही नयनावतरक मलयाकन ह सवय की नयनावतरक मलयाकन वकरया ही असहजता ह

सवय का मलयाकन lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म होता ह

lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म न हो ऐसा मनषय इस पथवी पर नही ह

िमश का वियोग नही ह कयोवक यह िारणा ह इसका परतयकष रप ही मानिीयता एि अवतमानिीयता पणश आिरण ह जो सहजता का परिान लकषण ह इसललय -

अमानिीयता पणश आिरण ही असहज ह इसललय

परकवत अपन म समपणशता क सारथ सीततमत ह यही अिधि ह इसललय पणश म समायी ह यही पणश म समपणशता सहज सह-असतितव ह यही समपणशता का वनतय ितशमान और जञानािसथा क मानि म पणशता का परसि ह यही जागवत क ललय बाधयता ह

मनषय क बौशदघक कषतर म पायी जान िाली अनािशयक कलपनाओ का वनराकरण ही दशशन-कषमता म गणातमक पररमाजशन ह यही गणातमक ससकार-पररितशन शशकषा एि जीिन क कायशकरम का योगफल ह

दशशन-कषमता का उतकषश ही अनकषण विकषण ह यही मधयसथ वकरया की कषमता ह मधयसथ वकरया ही दषटा ह

मधयसथ वकरया का िरमोतकषश ही सम ि विषम वकरया का पणश वनयतरण ह यही कषमता कषण-कषण मधयसथ वयििान स मततकत ह

ससकार पिशक ही बौशदघक वयिसथा-परवकरया -कषमता क आनषवगक ह मनषय सहज ऐषणा एि विषयो की सीमा म परितततत ि वनितततत पिशक वयि होना पाया जाता ह जो परतयकष ह

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आतमा (मधयसथ वकरया) क आनषवगक बौशदघक परवकरया ि वयिसथा म सतय-सकलप एि सतय-कलपनापणश मानधसकता की सथसथवत पा जाती ह जो परधसदघ कमश उपासना जञान पणश ह यही कषमता दि ि दधदवय मानिीयता को परकट करती ह यही पणश जागवत ह

ऐषणासकत बौशदघक वयिसथा म मानिीय तरथा दि मानिीय सवभाि परकट होता ह उसी क अनरप म मानधसक िातािरण की सथसथवतशीलता ह ऐसी कषमता ही सामाखजक ितना एि सतकशता स पररपणश पायी जाती ह

विषयासकत बौशदघक वयिसथा ि परवकरया म अमानिीयतापणश आिरण समपनन होता ह जो पाशविकता तरथा दानिीयता क रप म दषटवय ह इनम उसी क योगय मानधसकता पा जाती ह यही लपत-सपत कलपना का कारण ह यही अजागवत तरथा अपणश सतकशता का दयोतक ह

शरय (जागवत) खजजञास होन पर ही लपत-सपत कलपनाय पररमाखजि त होती ह फलत दानिी ि पाशिी परिततततयो स उदासीनता सथसथर होती ह सारथ ही वििकोदय होता ह

शरय खजजञासा का उदय सव-ससकार विधि-विहहत अधययन तरथा उसक अनकल िातािरण म होता ह

विधि-विहहत-अधययन वनपणता कशलता ि पादधडतय ही ह

अधययन एि िातािरण ही ससकार पररितशन क ललय समरथश वयिसथा ह खजसका गणातमक पररितशन ही आतमबोि क ललय खजजञासा ह

आतमबोि ही सतय खजजञासा का परिान लकषण ह इसललय- अििारणा ही अनगमन तरथा अनशीलन क ललय परितततत ह जो शशषटता क रप म परतयकष होती ह परगवत क ललय अििारणा अवनिायश ह जागवत क ललय अििारणा एि हरास क ललय आसततकत परधसदघ ह यही करम स वनितततत ि परितततत ह अििारणा ही सदधदविक ह सदधदविक सवय म सतयता की विििना ह जो सपषट ह मलत यही शभ एि मागलय ह अनभि की अििारणा सतय बोि क रप म अििारणा (समयक-बोि) ही सतय-सकलप ह यही परािवति त होकर शभकमश उपासना तरथा आिरण क रप म परतयकष ह इसी का पररिवति त मलय ही िीरता िीरता उदारता दया कपा और करणा क रप म परतयकष ह सतय म ही समयक-बोि होता ह असतय ही कलपना एि भास होता ह हीनता दीनता और कररता स यकत कमश अशभ होता ह सव-मलय ही परितततत और वनितततत का िशश ह इसललय असतय अलभमान तरथा दपश स मकत सतय सरलता सहजता तरथा सौजनयता स यकत कमश ि उपासना शरय कारक ह

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सतय कामना की वनरनतरता स लकषय की अििारणा होती ह जञान म ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत परतयकष ह जञान वििक सममत विजञान ही ह जो पणश ह सतय और सतयता म दढ़ता ही शरयमय जीिन ह सतयानभवत ही सबका अभीषट ह शरीर स समपनन होन िाल समि वकरयाओ का सिालन मन ही मिस दवारा करता ह मिस स सभी नादधड़याा वनयदधतरत ह शबद का मल रप मन ही ह मिस पर मन आसवादन एि सवागत भािपणश तरगो का परसारण सिालन वनयतरण करता ह उसक मल म शबद ही ह जागवत की ओर गवत हत वनयतरणातमक शबद ही मतर ह लकषय-पराततपत-योगय-करम परवकरया ही वनयतरण ह शबद म जो भाि (मलय) ह िही उसका अरथश ह सारथशक शबदो का अरथश ही जागवत की ओर गवत ह कयोवक शबद का अरथश असतितव म िि ह भाि म जो उपयोगपणश अवनिायशता ह िही उसका महतव ह उपयोग पणश अवनिायशता म जो वनचशचत दधदशा ह िही उसकी दढ़ता ह यही समयक सकलप ह समयक सकलप म जो पणशता ह िही अनभि ह जो करम स मन ितततत चितत बशदघ और आतमा म पा जान िाली सससकत मौललक वकरयाय ह भाि का तातपयश होन स ह शततकत-तरय-जागरण (इचछा-शततकत वकरया-शततकत तरथा जञान शततकत जागरण) क वबना तयाग (भरममततकत) और परम परमाखणत नही होता

मनन परवकरया म सव-मलयाकन

सव-मलयाकन मनन धयान ldquoअपराि क अभाि म दयापणश आशा का पराितशन अनयाय क अभाि म नयायपणश वििार का पराितशन आसकती क अभाि म समािान पणश इचछा का पराितशन तरथा अजञान क अभाि म जञानपणश सकलप का पराितशन होता ह| अत अपरािहीन वयिहार क ललए वयिसथा का परभाि अनयायहीन वििार क ललए अखणड समाज का परभाि तरथा अजञान रहहत बदधदध क ललए अतवनि यामन अरथिा धयान आिशयक ह खजसस ही परतयाितशन वकरया सफल ह| धयान का अरथश समझन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना और समझन-अनभि करन क

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उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 27

मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 28

(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 29

सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 30

प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 31

अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 32

३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

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(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 34

उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 3

मानिीयता म अमानिीयता का अतयाभाि होता ह| अमानिीयता म मानिीयता का भास आभास एि परतीवत होती ह| यही िािविकता अमानिीयता स मानिीयता म सकरमण एि समभािना को सपषट करती ह| प १५७ अमानिीयता स मानिीयता म अनगमन क ललए वनयमतरय पिशक दाततयतव एि कतशवय परमाखणत होता ह| प १५९ १६० सामाखजकता सवभाि म न हो परमानभती हो ऐसा परमाण नही ह| परमानभती पणश मानि की सवततरतापिशक सामाखजकता ही अलभवयकती ही समाज क ललए उसकी उपदयता ह| परमानभतीमयता की अलभवयकती शशषटता म अरथात आिरण म इवगत होता ह| इवगत होना ही वयजना ह| वयजना ही करम स भास आभास परतीवत अििारणा एि अनभती ह परमामयता ही मानि म अननयता क रप म परतयकष होती ह| ऐस परममयता क ललए ही सपणश परकार क अभयास होत ह| सपणश परकार क अभयास की िरमोतकरषट उपलबधी परमानभती ही ह जो पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक ह| सामाखजकता एि वयािहाररकता म ही मानि की यरथारथशता एि िािविकता सपषट होती ह न की उतपादन म| परमानभती म ही सरिोछ परकार की सामाखजकता परकट होती ह| सामाखजकता म ही सवगानभती ह| उसक अभाि म कलश होता ह| rdquoपरमानभती क ललए करम किल मानिीयतापणश जीिन म पणशता को पाना ही हrdquo| शभ कामना का उदय मानिीयता म ही परतयकष होता ह| यही परमानभती क ललए सिाततम सािना ह| शभकामना करम स इचछा म इचछा तीवर इचछा एि सकलप म तरथा भास-आभास परतीवत एि अििारणा म सथाततपत होता ह| फलत परमामयता का अनभि होता ह| मानि शभ आशा स सपनन ह ही| यही अभयासपिशक करम स कामना इचछा सकलप एि अनभती सलभ होता ह| मानि म परमाखणत होन िाल वनतय शभ मलयततरयानभती ही ह| ितनय इका का सिोचच विकास मलयानभती योगय कषमता स सपनन होना ही ह| यही बाधयता सतता म सपकतता ह| (पषट-२३ २४) लकषय जब आकाकषा आिशयकता या अवनिायशता क रप म पररिवति त (तीवर इचछा) होगा तब यही कायशकरम क ललए बाधयता होगी कयोकी लकषय विहीन कायशकरम नही ह| दशशन कषमता परतयक मानि म वकसी न वकसी अश म पा जाती ह| दशशन कषमता क जागवत की अलभलाषा स शशकषा एि अधययन की अवनिायशता धसदध ह ह समपणश अधययन सतता म सपकत परकवत सहज ह| जो असतितव दशशन जञान जीिन जञान मानिीयतापणश आिरण जञान ही ह| अनभि ही सतय ह और सतय अपररणामी ह| अनभिपिशक वयिहार ि उतपादन ही परमाण ह| दशशनविहीन परयोग ि उतपादन धसदध नही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 4

विशलततषत सवीकत होना ही अधययन ह| रप गण सवभाि और िमश की परतयकषानभवत ही विशलषण ह जो सतिचरथिातता ि सतय ह| अि अधययन का फलन ही अनभि ह| अनभि विहीन परतयक उतपादन-कायश म तरदधट एि वयिहार-कायश म अपराि भािी ह| तरदधट एि अपराि मानि की िाधछत परिती नही ह| यह परिती तब तक रहगी जब तक अधययन पणश न हो जाए परतयक मानि म अधययन परितततत जनम स ही पा जाती ह| (पषट ndash ३९) परतयक मानि म पायी जान िाल अनभि क ललए कारण वििार क ललए सकषम वयिहार क ललए सकषम-सथल तरथा उतपादन क ललए सथल तथयो का अधययन ह जो परतयकष ह| अधययन स ििाररक वनयतरण शशकषा स वयािहाररक वनयतरण एि परशशकषण स उतपादन म वनयतरण ह| [कारण = वयापक िि सकषम = जीिन सथल = शरीरजड़] (प ५२ ५३) परतयक अनमान अनभि पर आिाररत अनयरथा अनभि क ललए सदधननहहत ह| परतयक अनमान अनभि क ललए पिापर ह| अनमान ही शोि पिशक भास आभास परतीवत क रप म उदय होता ह| खजसक आिार पर ही मानि म योजना वििार एि कलपना का परसि होता ह जो अनभि म परमाखणत होता ह ldquoतातरयrdquo स मानि म स क ललए अलभवयकती नही ह| इसीललए भाि = मौललकता = सवमलय तरथा मलयाकन कषमता = मौललकता का भास आभास परतीवत ि अनभती = वयकती की कषमता योगयता पातरता = जागवत = िातािरण अधययन और सवससकार = उतपादन वयिहार वयिसथा म भागीदारी = भाि परधसदध ह| (पषट ndash ६१) नयाय और समािान (िमश) सािशभौम सतय ह| यह दश काल अबाि ह| इसीललए मानि दवारा कीया गया समपणश वििार एि परयास तकशसगत या सतकशतापणश होन क ललए ही परतयक मानि का समािान एि समदधी म स क ललए ही वििार कमश एि वयिहार करना परधसदध ह| तकश की सीमा म परवततकश ह| मल िि क अजञात ि असपषट रहत हए उसक तातपयश या फलितता क सनदभश म की गयी परशनोततर परवकरया ही िाद-परवतिादी एि तकश-परवततकश ह हो समसया का समािान नही ह| समािान एि तातवतवकता क ललए तकश का परयकत होना ही उसकी िररतारथशता ह | इस परकार यह सपषट होता ह वक तकश का असतितव सवततर नही ह| सारथ ही तकश का परयोजन किल तातवतवकता स सबदध होना ही ह| इसी परमाण-धसदध-साकषय स सपषट होता ह वक तकश सीमानवरती वििार उपदश एि परिार मानि जीिन क ललए पयापत नही ह| (पषट -१९) मानि जावत क समि कायशकरम का उददशय अनभि एि परमाण ही ह बौशदघक समािान क वबना अनभि सभि नही ह कयोवक समािान की वनरतरता ही अनभि ह भौवतक समशदघ क वबना बौशदघक समािान धसदघ

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नही ह और बौशदघक समािान क वबना भौवतक समशदघ परमाखणत नही होती कयोवक अजञात को जञात करन क ललए एि अपरापत को परापत करन क ललए अनिरत परयास हआ ह वििक ि विजञान का सतलनाधिकार सहज परमाण ही भौवतक समशदघ एि बौशदघक समािान ह कमाभयास क वबना उतपादन एि समशदघ तरथा वयिहाराभयास क वबना समािान नही ह कमाभयास अनवषण शशकषण परशशकषण ह खजसकी िररतारथशता उतपादन ह फलत समशदघ ह वयिहाराभयास अनसिान अनसरण आिरण ससकवत सभयता विधि एि वयिसथा ह खजसकी िररतारथशता सामाखजकता अखडता अभयता समािान सतलन एि सवगश ह मानि का अशष कायशकरम ििाररक वयिहाररक एि उतपादन ह ििाररक पररपणशता अरथिा समािान क ललए चिनतनाभयास आिशयक ह ही चिनतनाभयास पिशक ही यरथारथता िािविकता सतयता को वनरीकषण-परीकषण कर परमाखणत कर पाना सहज ह यही समािान रपी वनषकषो को सफररत करता रहता ह खजसस ही सिशशभ ह जो पाािो सथसथवतयो म lsquolsquoनीवततरयrsquorsquo स सबदघ ह lsquolsquoअनभि कायशकरम नही ह अततपत अनभि म स क ललए ही कायशकरम हrsquorsquo (पषठ-८३ ८६) अपकषाकत सतिचरथितता ही अनमान का उदय ह| यही अधययन हत की गयी उतसकता ह| उदयविहीन सतिचरथ म अधययन एि अधययन धसदध नही ह| उदय ही कौतहल ह अरथात जानन मानन पहिानन उपयोवगता उपादयता एि अवनिायशतापिशक अनभि करन की वकरया ही उतकठा ह| यही मानि जीिन म वकरयाकलाप का आिार ह| मानि जीिन िार आयाम दश सोपनीय पररिार सभा वयिसथा एि मलयो क वनिाह क रप म दषटवय ह जो ससकवत सभयता विधि वयिसथा का आघात कायशकरम ह| [अभयास-करम म मनन पिान lsquoदशrsquo सबिी िि जीन की जगह शोि] सिशशभ उदय का भास-आभास सिदनशीलता की ही कषमता ह और परतीवत ि अनभती सजञानीयता की महहमा ह| सिशपररथम सख समािान का भास-आभास सिदनशीलता पिशक होता ह|

अनभिातमक आधयातमिाद ndash सस २००९

प १६ १७ १८

जानन का फलन मानन क रप म आता ही ह| मानन का सवरप ह - ldquoयह सतय ह इस सवीकारना ह |rdquo और सतय सहज परयोजन सवय स या सबस जडी ह सतिचरथ को और गवत को सवीकारना ही मानना ह| इसस सपषट होता ह हर सतिचरथ म िि सहज िािविकताओ को जननना सहज ह| इसी करम म उसकी गवत और परयोजन क सारथ ldquoसह-असतितवrdquo म स क ललए आिशयकताओ को सवीकारना ही मानना ह|

मानि ही जानन-मानन क आिार पर पहिानन-वनिाह करन म परयोजनशील होता ह| मानन का आिार परयोजन होना ह| जानन का आिार कयो और कस क उततर क रप म ह | सारथ ही िि कसा ह यह भी जानन म आता ह| िि कसा ह यह जानन का सवरप ह| इसी स कयो और कस का उततर सवय सफतश वििी

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स वनगशततमत होता ह| मानन का तातपयश परयोजन पहिानन क अरथश म सारथशक होता ह| जस असतितव सहज वनतय सतिचरथ को जानना सहअसतितव परयोजन सतर को पहिानना सवाभाविक होना पाया गया|

प ६६ ६७

जञान का मल सवरप जीिन जञान और असतितव सहज सहअसतितव रपी वयिसथा का जञान ह| जीिन जञान मानि सवय अपन जीिन सहज वकरयाकलापो क आिार पर विशवास करना बन पाता ह| यह मलत अनभि सहज वकरया ह| इसको जानना-मानना एक आिशयकता ह ही | जीिन को जानन-मानन क करम म शरीर रिना और शरीर सीमाओ क सनदभश म भल परकार स पारगत होन की आिशयकता ह| जीिन और शरीर क सयकत रप म ही जञानािसथा परकाशमान होन क आिार पर ही मानि सहज वििी स ही

१) अपना ही कलपनाशीलता कमशसवततरता शरीर स लभनन तरग क रप म अनभि करना बनता ह

२) आशा वििार इचछाए जीिन सहज वकरया होन क रप म सवय म सवय स सवय क ललए परीकषण वनरीकषण कर सकता ह

३) आसवादन तलन चिितन बोि करम म अधययन वििी म जो अनभवतयाा परतीत होती ह या भास-आभास होता ह इसका परीकषण सवय ही हर मानि हर काल म हर दश म वकया जाना समीिीन ह|

इन वकरयाकलापो क वनररकषण स पता लगता ह वक जीित मानि म आसवादन का अनभि भास नयाय िमश सतयरपी वनतय िि का भास होना हर वयततकत अपन म वनसिय कर सकता ह| चिितन म ही नयाय िमश सतय का आभास होना और परतीत होना परमाखणत होता ह|

साकषातकार अपन म परयोजनो का वनशचयन सहहत तपती क ललए सरोत रप म अधययन वििी स पहिान लता ह| फलसवरप बोि पिशक अनभि म सारथशकता सहहत नयाय िमश सतय सहज सवीकवत ही ससकार और अनभि बोि रप म जीिन म अविभाजय वकरया रपी बदधी म सथाततपत हो जाता ह| यही अधययन पिशक होन िाली अदभत उपलबधी ह| नयाय सहज साकषातकार सहअसतितव सहज सबिो का साकषातकार सहहत मलयो का साकषातकार होना पाया जाता ह ( यह सिारना ह यहाा मलयो स तातपयश मानि मलय अरथिा मानिीय सवभाि स ह कयोकी मलयो का साकषातकार होता नही िह बहत ह ) | यही मखय वबिद ह | सह-असतितव सहज सबिो को पहिानन म भरम रह जाता ह यही बिन का परमाण ह| यही जीिन को शरीर समझन (मानन) की घटना ह|

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मानि सितनािादी मनोविजञान ndash सस १९९८

प १९३

समपणश समझदारी शरवत समवत पिशक मानि स मानि को पीढ़ी स पीढ़ी को सपरततषत होता ह खजसम

स बोि होन पयशनत शरवत ह बोि म अपन म जानन मानन का सवरप ह इसका तततपत वबिद अनभि ह इस परमाखणत करन क करम म शरवत समवतपिशक बोि कराया जाना पाया जाता ह परतयक मनषय की सपणशता अपन म भाषा भाि भवगमा मदरा अगहार सहहत ही सारथशकता को पहिाना जाता ह शरवत समवत पिशक मलयाकन करत ह

प १८३ १८४ - भाषा शरवत (अभयास-अधययन करम म जो भाषा परयोग होना ह)

शरवत सह-असतितव सहज अलभवयततकत ह सह-असतितव सहज असतितव वनतय ितशमान ह ितशमान म ही मानि न अपनी कमश सवततरता कलपनाशीलता का परयोग वकया ह कर रहा ह करता रहगा मानि म ही शरवत समवत सहज परकाशन परमाखणत होना पाया जाता ह खजसस भास- आभास परतीवत पिशक अनभि होना पाया जाता ह इसी कारणिश उस उसक सहज रप म समझना कायशकरम ह इसका परमाण यह ह वक मनषय ही असतितव म धववन शबद नाद भाषा ि िि सहज परभदो को जानता मानता पहिानता ह अरथिा इसक योगय ह जस-पदारथश अिसथा म पा जान िाली वयिसथा का मल रप परमाण म भी धववन और िि को पहिानता ह

फलत अणओ क रप म होना सवाभाविक ह पराणकोशाओ म धववन ि कायश सकतो को परसपर कोशाए पहिानत ह फलसवरप रिनाए सपनन होती ह उसी भावत जीिो म भी शबद धववन और नाद उनक परसपर पहिान म होना पाया जाता ह मनषय म शबद धववन नाद ि भाषा य सहज ही परसपर ििओ को इवगत करन क अरथश म जानन मानन पहिानन को ततमलता ह भाषा का तातपयश होता ह खजसस िि सहज सतय भास हो जाय मानि भाषा म सतय भास आभास परतीवत सहहत अनभि होन क अरथश म ही परयोग वकया जाता ह यही जागवत सहज सपरषणा ह इसी करम म भाषा क परवत विशवास हो पाता ह मनषयतर परकवत म भी अपन अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा को परमाखणत करन क करम म समपणश धववन नाद ि शबद को दखा जाता ह जागत मनषय परसपर भाषा दवारा इवगत होना िाहता ह या इवगत कराना िाहता ह

भाषा धववन नाद ि शबद क मल म दखन पर पता िलता ह वक इका म सवय सफतश अलभवयततकत ह मल इका का तातपयश परमाण ही ह परमाण ही विकास पिशक जीिन जीिन जागवत पदो म और परमाण ही विकास करम म अण कोशा रिना ि विरिना क करम म असतितव म होना पाया जाता ह परमाण ही मलत वयिसथा का मल ह भौवतक वकरयाकलाप रासायवनक वकरयाकलाप जीिन वकरयाकलाप क मल म परमाण ही वयिसथा का िारक-िाहक होना पाया जाता ह मनषयतर तीनो अिसथाए अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा क रप म इस िरती म विदयमान ह मनषय भी मानितव सहहत वयिसथा क रप म परमाखणत होन क ललए परयतनशील ह इसकी सभािना समीिीन ह

समपणश शरवत परतयक एक अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा को बनाए रखन क ललए ही उदगमशील ह शररवत को धववन शबद नाद ि भाषा क रप म मनषय पहिानता ह इसकी सारथशकता को पहिानना शष रहा इसी करम म गवत लय तरग को भी पहिानता ह यह विविि परकार स शररवत को ही िि क रप म समझन का परयास सारथशक

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होता ह शरवत का तातपयश सथसथवत सतय िि सथसथवत सतय ििगत सतय को इवगत करन बोि करन क ललए ही सनन योगय ि सनान योगय सभाषण ह पणशता को इवगत करन करान क अरथश म परयोग वकया गया भाषा एि पररभाषा ह सनन सनान क ललए सवय सफतश मानि अपकषा ह सनान योगय भी सवय सफतश सपरषणा ह सपरषणा का तातपयश पणशता क अरथश म परित होन की परवकरया ह सनन क करम म भी पणशता को पहिानन सहज अपकषाए बनी ही रहती ह पणशता अपन म वनरतर ह इसका सामानय सवरप असतितव म पणशता परमपरा क रप म परकाशशत ह असतितव म पणशता गठन पणशता वकरया पणशता आिरण पणशता ही ह रासायवनक भौवतक इका या अपन-अपन िातािरण सहहत समपणश ह ही पदारथािसथा पराणािसथा जीिािसथा की परपराए उन उन की lsquoतवrsquo सहहत वयिसथा क रप म सदधतरत वयाखयाततयत ह यह परपराए पणशता सपणशता सहज ही वनरतरता को परापत वकए ह िह lsquoतवrsquo सहहत वयिसथा समगर वयिसथा म भागीदारी ह यही िभि-सतर ह

मानि ऐसी शरवत परमपरा को िाहता ही ह वक इसस यरथारथशता िािविकता और सतयता सहज ही समझ म आय जीिन सहज खजजञासा कयो ह कसा ह कबस ह कसा बना ह इस परकार क परशन अपन आप उदय होत ही ह यह कलपनाशीलता की गररमा ह इसका उततर पाना समािान पाना परमाण पाना परमाखणत होना यह ही शरवत समचचय की सारथशकता म होना पाया गया

समपणश िाङमय अरथात शरवत (सनन योगय सनान योगय भाषा पररभाषा जो सोि वििार वनशचय और समझदारी परितशन भाषाकरण सतरीकरण िाकय परबिन सिाद क रप म परिललत रहता ही ह) यरथारथशता का सवरप जसा खजसकी मौललकता ह उस इवगत करन वनदशशत करन और चिखनहत करन क रप म शररवत का परयोजन सारथशक होता हआ नजर आता ह खजसका जो अरथश का सवरप परतयक एक म रप गण सवभाि क रप म वयाखयाततयत होना पाया जाता ह इन िारो आयामो की अविभाजयता म परतयक एक वयिसथा क रप म मलयावकत होता ह और परतयक एक वकरया क रप म ही ततमलता ह

जबवक मानि भाषा कारण गण गखणत क अविभाजय रप म ह खजसस ही परम सतय रपी सह-असतितव भासा आभास पिशक परतीवत सहज बोि सारथशक होना पाया गया फलत अनभि होना धसदघ हआ प ४४ भततकत सहज अलभवयततकत जागवत गामी विधि स अरथिा जागवत करम विधि स भास आभास परतीवतयाा और जागवत-पणश विधि स परतीवत अनभवत ि उसकी वनरतरता दोनो सथसथवतयो म तनमयता तारतमयता और उपादयता सपषटतया समझ म आता ह प ८६ ndash मन म होन िाली सवागत वकरया ndash अभयास-अधययन करम म

सवागत - (1) अििारणा अनभि क ललए सवीकत वकया (2) वनयम नयाय समािान सतय सहज सवीकवतयो असवीकवतयो क ललए तयाररया (वििक ि विजञान सममत मानधसक ििाररक और ऐचिक तयाररया)

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इदधदरय सदधननकषश म भी सवागत भाि का भास आभास होना पाया जाता ह खजसकी वनरतरता की अपकषा ही रह पाती ह यह वयिहार म परमाखणत नही हो पाता अतएि सवागत का आिार समपणश मलय सवागत होना पाया जाता ह ििओ का िारक िाहकता म भी जीिन रहता ही ह

समपणश अििारणाए मौललकता क रप म होना पा जाती ह मौललकताए िमश और सवभाि क ही सतर ह समपणश असतितव म परतयक एक अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा ह समगर वयिसथा म भागीदार ह कयोवक असतितव म समपणश इकाइया (अरथिा समि इका या) सह-असतितव सतर म सदधतरत ह प २१८ इवगत होना ही वयजना ह वयजना ही करम स भास आभास परतीवत अििारणा एि अनभवत ह प २१

ियन-वकरया अरथात गरहण करन का वकरयाकलाप पराितशन विधि स और आसवादन वकरया परतयाितशन विधि स सवय म सपनन होती ह विशलषण वकरया पराितशन विधि स और तलन वकरया (ततपरय हहत लाभ नयाय िमश सतय दवषट) परतयाितशन विधि स सपनन होती ह चितरण वकरया पराितशन विधि स इचछा पटल म चिदधतरत हो पाती ह पराितशन म रिनाओ वकरयाओ क रप म परमाखणत हो पाता ह और चिनतन-वकरया साकषातकार विधि स सारथशक होती ह साकषातकार की समपणश िि जीिन मलय मानि मलय सथाततपत मलय शशषट मलय और िि-मलयो क रप म दरषटवय ह मलयो का सतलन तलन होकर तततपत विधि म सलगन रहता ह इस परकार साकषातकार की तततपत का सरोत मलय ह और उसकी (मलयो की) वनरतरता का भािी होना पाया जाता ह

जीिन म सपनन होन िाली अििारणा बोि-बशदघ सहज परतयाितशन वकरया ह सभी अििारणाए अधययन और अनसिान विधि स सथाततपत हो पाती ह अनभि मलक विधि अनभिगामी पदघतततत स बोि होना पाया जाता ह अनभि सतय बोि करान म परमाखणत होता ह और सकलप पणशता क अरथश म कलपनाओ को गवत दन स ह कलपनाए - आशा वििार इचछा क सयकत रप म परिाहहत रहती ह जीिन शततकत अकषय होन क कारण परतयक वयततकत म कलपनाशीलता का अकषय होना पाया जाता ह कयोवक यह कलपना जीिन शततकतयो का ही परिाह ह कलपनाए सतय सकलप क अनरप परािवति त होकर मानि परमपरा क अखड समाज सािशभौम वयिसथा क रप म सारथशकता को परमाखणत करती ह

प ४९-५०

पिानकरम पदघवत परणाली मानिीयता पणश वििार-चिितन-बोि-अििारणा और अनभि मलक होन क करम म अधययन गमय ह पिानकरम विधि स ही मनन पिशक मानयताए सथाततपत हो पाती ह फलत मानि परमपरा क ललए उपकारी और सारथशक धसदघ होती ह

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प ५१ ५२

वनषठा - जागवत पणश लकषय को वनचशचत अििारणा ि समरण पिशक परापत करन ि परमाखणत करन का वनरतर परयास

वयजनीयता का तातपयश - साकषातकार होन स ह साकषातकार चिितन म होता ह वयजनाए मानि मलय जीिन-मलय सथाततपत मलयो क परभाि क सारथ जीिन मलयो का बोि ि अनभि करन स ह समपणश रसानभवत का तातपयश ह - जीिन मलय रपी सख शावत सतोष आनद सहज आपलािन जागवत सहज परमाणो क रप म सपषट होना यही अनभि करन और बोि करान का तातपयश ह

प ७५-७७ गर और शशषय

पररभाषा गर - शशकषा ससकार वनयवत करमानिषगीय विधि स खजजञासाओ और परशनो को समािान रप म अििारणा म परसथाततपत करन िाला मनषय गर ह जागवत करम म मानि को अपरापत का परापत अजञात का जञात करन क ललए होन क ललए विधि वनयम परवकरया सहज समझदारी म पारगत बनाना ही परमाखणकता का परमाण ह परमाखणकता पणश गरजन ही असतितव सहज सह-असतितव रप म अििारणा को परवतसथाततपत करा सकता ह अििारणाय असतितव विकासकरम विकास जीिन जीिनी करम जीिन जागवतकरम जीिन जागवत सहज रप म परसपरता म अरथात समझा हआ और समझन क ललय तरथा मनषयो स ह गरजन इन मददो म पारगत रहग यह समझदारी ह समझदारी क आिार पर ही मानिीय शशकषा-ससकार सपनन होता रहगा ससकार का तातपयश ही अििारणा ह विदयाचरथि यो म सथाततपत होन स उसकी वनरतरता का परमाण वयिहार वयिसथा म परमाखणत होन स ह फलसवरप ही अखणड समाज सािशभौम वयिसथा म भागीदारी सहज कायश-कलाप हर मानिीय शशकषा-ससकार समपनन मानि स िररतारथश होना पाया जाता ह

परामाखणक - परमाणो का िारक िाहक - यरथा असतितव दशशन जीिन जञान मानिीयता पणश आिरण समचचय को परयोग वयिहार अनभि पणश विधि स परमाखणत करना और परमाणो क रप म जीना

पररभाषा शशषय - जागवत लकषय की पवति क ललए शशकषा ससकार गरहण करन सवीकार करन क ललए परित वयततकत खजसम गर का समबनध सवीकत हो िका रहता ह यही खजजञासातमक शशषटता ह

खजजञास - जीिन जञान सहहत वनभरशम शशकषा गरहण करन क ललए तीवर इचछा का परकाशन

समझन सीखन करन क ललए पणश खजजञासा सहहत परयतन सपनन वयततकत शशषय क रप म शोभनीय होता ह सफल होन क सभी लकषणो स यकत िातािरण म विशवास होना और विशवास को िातािरण म परभावित करन परमाखणत करन की सभी परवकरया अधययन ह

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असतितव विकास जीिन जीिन जागवत रासायवनक-भौवतक रिना-विरिना समपणश मानि क ललए समझन-समझान की िि ह सीखन की जो कछ भी परमाखणत िि ह यह मानि म मानिीयतापणश आिरण कमश अरथात वयिसाय म सवािलमबन वयिसथा म भागीदारी मानिीयता पणश आिरण का अभयास परामाखणकता सहज अलभवयततकत ह सारथ ही सािशभौम वयिसथा और अखड समाज म वनषठा ह य समपणश खजजञासाए वयािहाररक रप म िररतारथश होती ह परौढ़ता की पराकाषठा म स क ललए सवानशासन की खजजञासा का होना पाया जाता ह खजजञासा मानि सहज परकाशन ह

प १०६ जीिन को तातवतवक रप म समझन की खजजञासा हो ऐसी सथसथवत म परमाण म होन िाली विकास परवकरया उसक सकरमण िभि को भी जो ितनय इका क रप म परवतवषठत ह को सहज ही अधययन अििारणा म लाना एि अनभि करना आिशयक ह

अनभिातमक आधयातमिाद सस २००० (प ५८ ndash ६५) अनभव ही दसर नाम स परतयावरतन करिया ह और इसका परावरतन करिया को परामाणिकरा-परमाि नाम ददया ह जागकरर सह-असतितव म अनभव हई ह इसी जागर सथिकरर म होन वाली गकरर को परतयावरतन नाम ददया गया ह समपित परतयावरतन दरतन और जञान नाम स परकररकरिर ह जञान और दरतन सवाभाकरवक रप म ओर-परोर रप म वरतमान ह समपित असतितव सतता म सपकत जड़-चरनय परककरर ही सह-असतितव का मल सवरप ह इसका सामानय कलपना हर मानव म होना सभव ह कलपना का मल सतरोर आरा करवचार इचछा का असपषट गकरर रप ह कयोकरक समपित कलपनाए परावरतन म कायतरप रहना दखा जारा ह मानव ही कलपनारीलरा का परयोग कररा ह इस ऐसा भी कहा जा सकरा ह करक हर वयकतकत परकारानतर स कलपनारीलरा का परयोग कररा ह भरकतमर मानव दवारा कलपनारीलरा का सवाधिक परयोग ररीर और इनदरिय सदिकरत क रप म ही सवाभाकरवक ह यह भरम करववररा ह यही कलपनाए चचणिर रप म सपषट होन क ललए रतपर होर ह रभी करवधिवर करवशलरि और करनचिर चचतरि करवचार रप म समभावनाओ को सवीकारना बनरा ह सभावनाओ का लकषय कतपरय हहर लाभ सीमाओ म सीकतमर रहना पाया जारा ह यही भरमातमक कायत सीमा का अथ इकरर ह जागकररपित जीवन चचतरि म यह रथय ससपषट ह करक नयाय िमत सतय उसका साकषातकार बोि अनभव ही अधययन और अनसिान का लकषय और कायत ह इिी कायत रप क आिार पर असतितव और जीवन अविारिा म िाकतपर होना सफल अधययन का दयोरक और कसौटी भी ह इसी क आिार पर सवायतत मानव का सवकषि करनरीकषि और परीकषि होना सपषट हो जारा ह सवायतत मानव ही असतितव म अनभव सहज जागकरर का िारक-वाहक होना सपषट ह इस परकार अधययन सहज रप म जीवन और सह-असतितव म अनभव बोि की अलभवयकतकत और परमणिर होन क िम म आतमा असतितव म अनभर होना जीवन म किीय होना मधयि करिया और मधयि बल समपिरा का सवीकर होना परम रपत होना ह जीवन रचना मधयार सहज मधयि करिया मधयि बल मधयि रकतकत सरलन क अथत म सदा-सदा परयकत रहरा ही ह यही जागर

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मानव परपरा म परमाि ह मधयि करिया समम_य िम स जीवनी िम और जीवन जागकरर िम वयकत होरा ह इसी िम म जागर होना जीवन सहज परवकततत परयास आवशयकरा क योग-सयोग करवधि स समपि होरा ह यही अनसिान रोि और अधययन क ललए भी सयोजक रतव ह यह रतव सदा-सदा जीवन परकररिा म कायतरर रहरा ही ह इसकी परखररा क आिार पर ही अनसिान रोि अधययन सहज हो जारा ह इस परकार यह ससपषट हो जारा ह करक आतमा अधययन करवधि स असतितव म अनभर होरा ह दसरा अनसिान करवधि स भी असतितव म अनभर होना पाया जारा ह ( अनसिान विधि जो शरी ए नागराज न कीया सािना gt समािीgt सयम | अधययन विधि पिक एि वकसी समझ हए वयकती क माधयम स शशकषा-ससकार परापत करना) अनसिान करवधि स भी सवतपरथम असतितव म बोि होना दखा गया ह इसक उपरानत ही आतमा असतितव म अनभर होना दखा गया ह अधययन करवधि स भी यही सथिकरर अथार पहल बोि रदोपरार अनभव होना पाया जारा ह इन दोनो करवधियो म स अधययन करवधि लोकवयापीकरि क ललए कम समय म बोि होन की सथिकरर बनरी ह अनसिान करवधि म परवतत होन क ललए वयकतकत म लकषय सममर णजजञासा का होना अकरनवायत ह जब अधययन करवधि स समपित परशनो का उततर कतमल जारा ह परशन िली ररकत होना उसी िली म समपित उततर िाकतपर होना अधययन और अधयापन का सयोग और फलन ह परशन करवहीन सथिकरर म अनसिान का आिार नही बनरा इस परकार परपरा म सभी परशनो का उततर अधययन करवधि स हर मानव म हर सथिकरर पररसथिकररयो म समपित परशनो का उततर सह-असतितव सहज करवधि स समीचीन ह अनसिान करवधि एव अधययन करवधि स पहल बोि ही होरा ह रदोपरार lsquolsquoबोिrsquorsquo का आतमा म अनभव होरा ह अनभव क उपरानत lsquolsquoअनभव सहज बोिrsquorsquo अधययन एव अनसिान करवधि म एक जसा होरा ह एव एक ही होरा ह इसम मखय रथय यही ह यथाथतरा वासवकररकरा सतयरापित करवधि स अधयापन सामगरी वि परकरिया पररपित रहना आवशयक ह ( अधययन अरथिा शशकषा वििी म) अनसिान क ललय अजञार परशन चचि अकरर आवशयक ह हर अनसिान को अधययन और अधयापन कायत करवधि स लोक वयापीकरि होना सगम हो जारा ह इस परकार अनभव क अननतर ही अनभव lsquoबोिrsquo होना दखा गया ह यह हर वयकतकत म होना समीचीन ह (प १०७ १०८ १०९ इसक उपरानत जागकरर और जागकररपितरा ही मणजलो क रप म दखन को कतमलरा ह यह मलर करवचार चचतरि अविारिा अनभव और चचनतन का ही वभव रपी मानधसकरा क रप म दखा गया ह भरम का समपित सवरप आरा करवचार इचछा (चचतरि) का कतपरय हहर लाभातमक दकरषटयो की करियारीलरा ही ह सवतमानव पीड़ा स मकतकत चाहरा ही ह यही जागकरर सहज अपकषा का सरोर और समभावना ह जीवन सहज करियाकलापो म स नयाय िमत सतय का साकषातकार और दषटा होना और उसका परमाि धसदघ होना ही समपित जागकरर ह दषटापद म होन वाली समपित करियाकलाप जीवन सहज करवधि स जानन-मानन-पहचानन-करनवाह करन क रप म होना पाया गया ह जानन-मानन की समपित वि जीवन जञान सह-असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान ही ह

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अनभव असतितव म ही होना पाया जारा ह अनभव क पहल समझदारी जानन-मानन-पहचानन क रप म होना पाया जारा ह यही अधययनपवतक होन वाला अविारिा ससकार ह इसक पवत रप म करवचार और चचतरि ही रहरा ह यही शरकरर समकरर रबद और चचतरि ह रबद और चचतरि क आिार पर करकरन भी करियाकलापो को मानव सपाददर कररा ह यह सब असथिररा क साथ ही जझरा हआ दखा गया ह असथिररा म भरम ही परिान कारि ह इसीललय ही समरि और चचतरि क उपरानत कही न कही असथिररा-अकरनियरा को परकाशरर कररा ही ह इसी सीमा रक हम इस बीसवी सदी क अर रक झलर आय ह सथिररा की सवीककरर बोि रप म ही होना फलसवरप वयवहार म नयाय-समािान-सतय परमाणिर होना पाया जारा ह ऐसा बोि जानन-मानन-पहचानन का ही महहमा ह यह करिया जीवन म ही जागकरर सहज करवधि स होन वाली वाधिर परकरिया ह असतितव म अनभव सतता म (वयापक म) सपकत परककरर क रप म ही दखा गया ह सतता म सपकत रहन क आिार पर ही करियारीलरा करनयतरि सरलन सरकषि सामय ऊजा सरोर होना दखा गया ह इसीललय परककरर म करनयतरि सरकषि करनररर बना ही रहरा ह अर सतता म करनयतरि सपषट ह (प ७४) असतितव सहज सह-असतितव म जड़-चरनयातमक परककरर करनतय वभकरवर होन का सवरप करिया शरम गकरर पररिाम परकारन सहज करियाकलाप और पररिाम का अमरतव शरम का करवशराम गकरर का गरवय सहज लकषय करनहहर करिया उपयोकरगरा परकरा-उदाततीकरि करनयमो क अनरप समपित भौकररक-रासायकरनक जीवन रपी परककरर म करनतय रचना-करवरचना lsquoतवrsquo सहहर वयविा और उसकी परपरा भल परकार स बोि करान की सहज-करिया समपि करकया जा चका ह इसी िम म शरम का करवशराम गकरर का गरवय रपी परमािो को मानव परपरा म परमाणिर करन की आवशयकरा रहा ह इस सवतसलभ लोकगमय करन क ललए अधययनपवतक जागकरर करवधि और इसक परमाि म बोि परिाली को पहचाना गया यह भी अनभव करकया गया ह करक बोि होना समझदारी का ही दसरा नाम ह अथवा बोि का ही दसरा नाम समझदारी ह ऐस समझदारी अधययनमलक परिाली स अविारिा म िापकरर होना ऐसी अनभव मलक अविारिाओ को अलभवयकत सपरकतरर परकाशरर करन क िम म असतितव म अनभव एक अवशयभावी परकरिया क रप म सपषट हई ह इस िम म असतितव म अनभव करनतय ह यही मानव का परयोजन ह जीवन करनतय ह असतितव सथिर ह इसी आिार पर अनभव और अनभव िम अलभवयकतकत सहहर जागकरर सहज जीवन का गनतवय अथार जीवन म जागकरर पितरा ही जीवन गकरर का गरवय िली होना उसकी करनरनतररा सदा-सदा क ललय बना ही रहना दखा गया इिी आिारो पर lsquoअसतितवrsquo सतता म सपकत जड़-चरनय परककरर क रप म परकररपाददर हई सह- असतितव करवधि स वयाखयाकतयर हई यह महहमा जागकरर पित जीवन सहज अलभवयकतकत ह (प १८३) जीवन जञान सह-असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान रथयो सहज करवधिवर अधययनपवतक बोि होना दखा गया ह ऐस बोि सहज रथयो को उदघादटर करन क िम म और लोकवयापीकरि करन क

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िम म परमाणिर होर ही ह फलसवरप अनभर भी होर ह इस परकार करनतय परमाि और अनभव सहज रप म ही समपि होरा हआ दखा गया ह यही कवलय और जागकरर की महहमा ह (प १५४- १५७) जागकरर करवधि और अभयास असतितवमलक मानव कनदरिर चचनतन जञान दरतन आचरि िरवीकर रप म अधययन गमय होना दखा गया ह जीवन जञान जीवन म समपि होन वाली करियाओ का परसपररा सहज िरव करबनदओ क आिार पर उभय रकतपत करवधि सवत रभ एव समािान स दखा गया अलभवयकतकतया ह जसा मन और रकतपत म सामरसयरा का करबनद करवशलरि रलन पवतक आसवादन क रप म पहचाना गया ह यह सह-असतितव अनभव क पिार करनयम नयाय िमत सतय सहज परयोग म अनभर होन क उपरानत ही साथतक हो पारा ह इसक ललय अथार ऐस अनभकरर क ललय अधययन िम स आरभ होरा ह अधययन अविारिा कषतर का भरर-भरर वरतमान करवधि ह इस करवधि स णजरनी भी अविारिाए अधययन स समबदघ होरा गया उरन ही अविारिा क आिार पर परवकततत सहज नयाय िमातमक और सतय सहज रलन नयाय रलन समपि करवचार क आिार पर करकया गया आसवादन सहहर समपि करकया गया सभी चयन नयाय रप होना दखा गया ह इसी परकार ऊपर कह चचनतनपवतक जब चितरण रलन करवचार आसवादन और चयन करियाए समपि होर ह नयायपवतक वयविा म परमाणिर होना दखा गया अविारिाए सवाभाकरवक रप म ही असतितव सहज होन क आिार पर सह-असतितव रप होन क आिार पर अनभर होना अथार जानना-मानना और उसक रकतपत करबनद को पाना ही अनभव ह जानना-मानना-पहचानना ही अविारिा ह इसम रकतपत करबनद को पा लना ही अनभव ह इस कायत-वयवहार वयविा म वयकत कर दना परामाणिकरा ह अनभव परमाि पित बोि सहहर समपि होन वाल सकलप चचनतन चचतरि नयाय िमत सतय रपी रलन करवशलरि आसवादन सहहर करकया गया समपित अलभवयकतकतया वयविा और समगर वयविा म भागीदारी करनवाह कररा हआ ही दखन को कतमलरा ह इस करवधि स जागकररपित मानव ही असतितव म भरम बनधनो स मकत होना सपषट करकया जा चका ह जागकरर करवधि अधययन रपी सािना करवधि स सवाधिक उपयोगी सदपयोगी परयोजनरील होना दखन को कतमला ह इस करवधि स साधय सािक सािन का सामरसयरा सवय सफरत करवधि स समपि होना दखा गया ह जागकरर क ललय हर मानव सािक ह साधय जागकरर ही ह सािन जागकररगामी अधययन परिाली ह इस िम म परमपरा सािन परकररिा क रप म रन-मन-िन वयविा और समगर वयविा म भागीदारी का परमाि मानवाकाकषा क रप म होरा ही ह इस परकार स साधय-सािक-सािन का सयोग मानवीयरापित परपरा करवधि स सफल होन का सवरप सपषट ह ऐस परपरा क पवत (जस आज की सथिकरर म भरकतमर समदाय परपराए) मानवीयरापित परपरा म सिकतमर होन की कायतपरिाली मददा ह इस िम म अनसिान क अननतर णजरन भी रोिकरा सममर होर जार ह और सममकरर क अनरप करनिा उदगकतमर हो जारी ह और भी भाराओ स सवय सफरत करनिा उदगकतमर होरी ह ऐस ही करनिावान मिावी इस कायत म सलगन ह यही आज की सथिकरर म जागकररगामी अधययन जागकररमलक अलभवयकतकत सहज करवधि एक स अधिक वयकतकतयो म परमाणिर होन का आिार बन चकी ह जागकररपित परपरा म साधय सािन सािक म करनतय सगीर होना दखा गया ह दसर भारा म करनतय समािान होना पाया गया ह

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उललणखर अनभवो क आिार पर समपित जागकरर अपन-आपस जीवन जञान असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान म ही समपित ह इसका अभयास करवधि सवतपरथम अनसिान दसरा अधययन पवतक रोि रोि पवतक अधययन य ही मल अभयास ह कयोकरक अधययन करवधि स ही रोि करवधि स ही अविारिा का सवीकर होना दखा जारा ह अनय करवधि जस उपदर करवधि म भरकतमर होन की सभावना सदा बना ही रहरा ह हर परपरा म अपन ढग की आदर परकररिा िाकतपर रहरा ही ह वह अधययवसाकतयक (अधययनगमय) होर रक उपदर या सचना मातर ह परपरा म णजस आरय क ललय आदर-करनदर ह वह रकत सगर-वयवहार सगर बोि होन की परकरिया परिाली पदघकरर ही अधययन कहलारी ह रकत का साथतक सवरप करवजञान सममर करववक और करववक सममर करवजञान होना दखा गया परयोजन करवहीन उपदर परयोग वह भी वयवहार परमाि करवहीन उपदर रब रक ही रह पारा ह जब रक रकत सगर न हो रकत का रातपयत भी इसी रथय को उदघादटर कररा ह रकतपत क ललय आकरति परिाली (भारा परिाली) ऐस रकत सहज रप म ही करवजञान क आशरर करवशलरिो को करववक स आशरर परयोजनो का परमाणिर होना सहज ह हम इस बार को समझ चक ह करक परयोजनपवतक जीन क ललय परमाणिर होन क ललय समािान समशदघ क रप म सह-असतितव दरतन क ललय रकत सगर अधययवसाकतयक करवधि का होना आवशयक ह अधययन करियाकलाप रकतसगर परयोजन परयोजन सगर मानवापकषा मानवापकषा सगर जीवनापकषा जीवनापकषा सगर सह-असतितव सह-असतितव सगर करवकास िम और करवकास करवकासिम और करवकास सगर जीवन-जीवनी िम-जागकरर िम-जागकरर एव इसकी करनररररा सह-असतितव सहज लकषय ह असतितव सहज लकषय म भी मानव ही अकरवभाय ह और दषटा ह इसललय मानव असतितव सहज सह-असतितव करवधि स परकरा-उदाततीकरि परकरा-करवकास परकरा-जागकरर सतरो क आिार पर सह-असतितव सहज अधययन सलभ हआ ह समपित असतितव ही वयविा क सवरप म वरतमान होना समीचीन ह आज भी मानव क अकररररकत सभी अविा म (पदाथत पराि जीव अविा) अपन-अपन तव सहहर वयविा म होना ददखरा ह इसी िम म मानव भी अपन मानवतव सहहर वयविा और समगर वयविा म भागीदारी सहज अपकषा को साथतक बनान क िम म ही जागर होना पाया जारा ह हम यह पार ह करक जागकरर सतर वयाखया और परमाि सवतरभ क सवरप म ही वभकरवर होरा ह इस आरय को लोकवयापीकरि करना भी सवतरभ कायतिम का एक बकरनयादी आयाम ह इसी सतयरावर lsquolsquoअनभवातमक अधयातमवादrsquorsquo एक परिकरर ह हर मानव अपन कलपनारीलरा कमतसवरतररा पवतक ही हर परिकररयो को परखना (परीकषि करना) सवीकारना या असवीकार करन क कायतकलाप को कररा ह

अनभि दशशन सस २०१२ दधदवतीय (अधयाय -३)

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सतर छद िाकय शबद क दवारा वकरया मातर का िणशन ह सारथ ही जञानानभवत क ललए उपदश पिशक इवगत भी ह बरहम सहज िणशन पारगामी वयापक और पारदशीयता क रप म ह lsquolsquoयहrsquorsquo किल भास आभास बोि तरथा अनभिगमय ह इसका बोि मानि की कषमता योगयता पातरता पर आिाररत ह परतयाितशन पिशक परापत वयजनाएा जागवत क ललए गणातमक गवत ह गणातमक वयजना स सबोि सबोि स सससकार सससकार स गणातमक सिदना (सजञानीयता पिशक सिदना वनयदधतरत) रहना गणातमक सिदना स सतय सकलप तरथा सतय सकलप स गणातमक वयजनाओ की वनरनतरता ह सथसथवत एि वकरया सकत-गरहण कषमता ही वयजनीयता ह सकत-गरहण -परवकरयाबदघ जञान परापय को पान उस सरधकषत रखन क कायशकरम म अलभवयकत ह परापत क अनभि क करम म भास-आभास एि परतीवत ही जञापक (सतयाततपत होना) ह मानि दसरो क ललए भी सकत परसाररत करता ह सकत-गरहण-वकरया ही अनमानारोपण तरथा अनमानाकर भी ह जो सकलप इचछा वििार ि आशा ह अधयाय-७ अलभवयजना म गणातमक विकास का सकत वयजना म उपयोवगता का सकत ह अभयदय पराय (अभयदय जसा) ही अलभपराय ह खजसम अभयदय का भास या आभास होना आिशयक ह

कमशदशशन सस २००४ (प ८६ ८७) परमाण म विकास का तातपयश परमाण क गठनपणश होन स ह|मानि म एक बात की िाहत बनी ह ndash यरथासथसथवत िभि उसकी वनरतरता ndash यह सवाभाविक रप म सवीकत ह| परमाणओ म अशो का घटना-बढ़ना पररणाम क सवरप म हम समझ िक ह| पररणाम का अमरतव उसकी वनरतरता की अपकषा मानि म ही कलपना भास आभास परतीवत क रप म पाया जाता ह

प २० २३ (शासतराधययन की महततव) सदशासतराधययन क वबना सतय कामना एि परितततत सतय कामना क वबना सतय-परम सतय-परम क वबना सतय-वनषठा सतय वनषठा क वबना सतय परवतषठा सतय-परवतषठा क वबना सतय परतीवत सतय-परतीवत क वबना सतयानभाि सतयानभाि क वबना सद शासतर का उदघाटन तरथा सदशासतर क उदघाटन क वबना सद शासतर का अधययन पणश और सारथशक नही ह| मानि को जीिन की परतयक सतिचरथ म शानतनत एि सथसथरता की आिशयकता ह| सदशासतर सिन मनन एि आिरण स वयकती तरथा पररिार म शानतनत तरथा सथसथरता पा जाती ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 17

(सदशासतर सिन = शासतराधययन स शरिण | मनन एि आिरण अभयास-अधययन करम म समपणश मनन परवकरया)

(प ९७ ९८)

सहअसतितविादी विधि स हर मानि मानितव सहहत वयिसथा और समगर वयिसथा म भागीदारी करन योगय इका ह इसम मखय मददा यही ह - सवय को सवय क ललय रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क सयकत रप म होन को सवीकारन की आिशयकता ह जीिन वकरया की महहमा और मानि परमपरा म इसकी आिशयकता धयान म रहना अवत आिशयक ह तभी मानि शोि क ललए ततपर होना पाया जाता ह ऐसी ततपरता जागवत सहज विधि स सिशशभ क अरथश म परिावित होना होता ह तभी सिशमानि समािान पिशक वयकत होन समझदारी पिशक हर पररिार समािावनत और सखी होन की सथसथवत सपषट हो जाती ह फलसवरप समशदघ अभय सहअसतितव परभावित होन का सौभागय उदय होता ह यही मखय वबनद ह सिशशभ का परमाण भी यही ह कयोवक समािान समशदघ पिशक ही मानि सख शानतनत का अनभि करता ह इसी करम म समािान समशदघ अभय सहअसतितव पिशक आननद अपन आप म समपणश होना पाया जाता ह इस ढग स मानि लकषय सारथशक होन की सथसथवत म जीिन लकषय (सख शावत सतोष आननद) सारथशक होता ही ह जीिन लकषय और मानि लकषय सारथशक होना ही अधययन और अधयापन की सािशभौमता ह ऐस लकषय क सारथ मानि परमपरा अपन आप म सवय को पहिानन और समपणश मानि को पहिानन का सतर और वयाखया बन जाता ह परमाण क रप म वयाखया समझ क रप म सतर होना पाया जाता ह यह वनयवत सहज विधि स समीिीन रहना पाया जाता ह वनयवत विधि का तातपयश विकासकरम विकास जागवत करम जागवत ह दसर विधि स भौवतक रासायवनक रिना शरीर और जीिन वकरयाकलाप का सयकत अलभवयततकत समपरषणा परकाशन क रप म ह

मानि लकषय - समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करन और उस आिार पर जीिन लकषय (मनसवसथता) - सख शानतनत सतोष आननद को सारथशक बनान क अरथश म मानि शशकषा ससकार की आिशयकता सदा-सदा स बनी ह ह इसकी सफलता ही मानि कल का सौभागय ह

lsquoमानि कल और रासायवनक-भौवतक वकरयाकलाप का सारथशक परमाणrsquo

शशकषा की समपणश िि सहअसतितव रपी असतितव म रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म ही ह इसम स इनक अविभाजय रप म मानि परमपरा का समपणश वकरयाकलाप वयिहार सोि वििार समझ ह समझ क अरथश म ही हर मानि का अधययन करना होता ह समझ अपन म जानना मानना पहिानना वनिाह करन क रप म परमाखणत होती ह इसी अरथश म समपणश अधययन सारथशक होना पाया जाता ह

असतितव म समपणश इका याा रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म पररलधकषत ह ही (प १०२) वनशचयता सथसथरता सिशमानि म चिराकााकषा क रप म बनी ही ह सहअसतितव रपी असतितव जञान और सवीकवत का आिार ह यह सिशमानि म सिकषण पिशक विदधदत होन िाला तथय ह सवय को जाािन स भी

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यही सपषट होता ह हम सब सथसथरता ि वनशचयता को ही सवीकार करत रह ह न वक असथसथरता अवनशचयता को सथसथरता क सहज आिार पर ही वनशचयता का होना सवभाविक ह (प ११५) इस हम मानि को अचछी तरह स समझन की आिशयकता ह और अनशीलन पिशक सरकषण सििशन विधि स सवय को वयसथसथत कर लन की आिशयकता ह मानि क वयिसथसथत होन क मल म जञान विजञान वििक का एक सगीतमय कायशकलाप सपषट रहन स ह यही कायश-कलाप भाषा कायश-वयिहार म वनयोखजत होकर परयोजनो को परवतपादधदत करता ह मानि का परयोजन समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करना ही ह (प १२२ १२३)

( अनभि मलक वििी स

यरथारथशता िािविकता सतयता का बोि रपी बशदघ की सथसथवत उस परकाशशत करन की परितततत क रप म सकलप ही गवत ह नयाय िमश सतय क साकषातकार करन क रप म चितत सथसथवत और इसका चितरण क रप म चिदधतरत हो पाना गवत ह चितत वकरयाकलाप का समपणश चितरण तलन क रप म अरथात नयाय िमश ि सतय रप म सपषट होना ितततत सहज सथसथवत ह ितततत म समपनन हय तलन का विशलषण विधि म विशलततषत होना ि समपरततषत होना ितततत सहज गवत ह विशलषण क सपषट अरथिा सार रप म मलय सवीकत होता ह इस आसवादन करना ही मन की सथसथवत ह इसकी सारथशकता क ललय ियन वकरया को समपादधदत करन क रप म गवतत होना हर मानि म सिधकषत ह इस ढग स मानि भी सभी परकार स सथसथवत-गवत म होना सपषट होता ह इस परकार मानि समझदारी स समपनन होन क उपरानत परमाखणत होना सवभाविक होता ह इसका मतलब यही हआ हम जब तक परमाखणत नही होत तब तक परमाखणत होन क ललए जञानाजशन वििकाजशन विजञानाजशन कर लना ही शशकषा और शशकषण का तातपयश ह इसक ललए सह असतितविादी शशकषा करम समीिीन ह अतएि समझदार मानि होन क ललए धयान दन की आिशयकता ह

सह-असतितविादी वििार जञान वििक विजञान को समझना ही समझदारी ह

ldquoअधययन रपी उपासनाrdquo (अभयास) - कमशदशशन सस २००४ प ४९ ५०

मानि जीिन म उपासना एक महतवपणश भाग ह| उपासना ही मल परिततततयो का पररमाजशन एि पररितशन परवकरया ह| यही ससकार एि सवभाि पररितशन भी ह| ( उपासना = उपायो सहहत लकषय पती क ललए कीया गया वकरयाकलाप) उपायपिशक सहिास पाना ही उपासना की अििारणा ह खजसक ललए पररशरम (पररमाजशन शरम) एि अभयास ह| अभयास एि पररशरम स ही सथल सकषम कारण की सथसथवतितता सपषट ह| खजसस ततसबिी पदारथश वनयवत-

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करम शततकत महहमा विभती एि वनयम सबिी अनसिान (अनगमन पिशक अििारणा) शोि परधसदध ह| अनसिान भौवतक बौदधदधक तरथा आधयातमतमक भद स ह| अनसनधान परवकरया मनन चिितन सकलप एि अनभती क रप म परतयकष ह|

सथल सकषम कारण (दषटा) का तातपयश दखन समझन परयोग करन वयिहार करन एि अनभि करन योगय कषमता क सपनन होन स ह |

परिततततयो का पररमाजशन ही मानि जीिन का कायशकरम ह| मानि म पणशता एि पररमाजशनशीलता की अपकषा परतयक सथसथती म पा जाती ह| पणशता ही पादधडतय ह| पादधडतय स अधिक जञान एि वनपणता कशलता स अधिक वयिहार एि उतपादन नही ह| पररमाजशनशीलता उतपादन ि वयिहार म पा जाती ह| पादधडतय परबदधता परबदधता ही शशकषा एि वयिसथा ह| परबदधता स पररपणश होत तक उपासना अतयत उपयोगी ह|

प ५६ स ७२ (इनम स कछ ही िाकयो को ललया गया ह| समपणश क ललए पिक दख) उपासना स सािशभौततमक मलयो का अिगाहन करना ही परिान उपादयता ह| समि उपासनाओ क मल म लकषय समय ह िह अखड समाज सािशभौम वयिसथा ह| िह किल सिश

मगल ही ह| कयोकी सिश मगल की कामना क वबना सवय का मगल धसदध नही ह| अनय कामय कामनाए किल मगलमयता की भास परदायी ह न की अनभिदायी| इसललए सिशमगल

कामनारपी कायशकरम तःरथा उसकी अनसरण योगय कषमता पयत मानि परयास करन क ललए बाधय ह| सही क परती भरततमत रहना ही मत सपरदाय एि िगश का कारण ह|

मत सापरदाततयक िगीयता म आचरथिक िगीयता एि आचरथिक िगीयता म मत-सापरदाततयकता समा ह ह|

इसका वनराकरण सपषटतया सािशभौततमक रप म पा जान िाली मानिीयतापणश पदधवत स ldquoवनयम-तरयrdquo (बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक) क आिारपिशक ही आचरथिक एि सापरदाततयक िगश-भािनाओ स मकत होन की समभािना एि मकती ह| इसी म समि िगश-भािना विलीन हो जाती ह| इसीललए ndash

उपासना की उभय पदधवत का अभीषट समझदारी जागवत पिशक सारथशक होता ह जो जागरण ह| मानि म शततकतया वकरया इचछा एि जञान शततकत ही ह जो उनकी अहशताए ह| अहशताए परतयक इका

की जागवतशीलता जागवत पर आिाररत ह| शबद सपशश रप रस गिनतियो दवारा शततकतयो का अपवयय न होना सारथ ही सदवयाय होना ही

वकरया शततकत की जागवत ह| सदवयय एि अपवयय का वनिारण मानिीयता क सीमा म ldquoवनयम-तरयrdquo क रप म ह |

अतकरण मल परितताा अरथात आशा वििार इचछा ि सकलप का अपवयय न होना ही सदवयय ह| यही इचछा शततकत का जागरण ह|

समयक-बोि एि अनभती पणशता ही जञान परकटन कषमता ह| यही जञानशततकत का जागरण अरथिा पणश जागरण ह| यह ldquoजागवत-तरयrdquo मानिीयता एि अवतमानिीयता म परतयकष ह| यही मानि जीिन की िरमोतकषश

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उपलसतबध ह| सशकत उपासना क उपादयता यही ह यही समगर मानि की कामना ह| यही सिशमगल ह| इसीललए

जीिन-जागवत का परतयकष सवरप ही वििक पणश विजञान का परयोग ह यही सतकशता अखणड सामाखजकता परबदघता वनविि षमता सह-असतितव शशकषा विधि वयिसथा सभयता ससकवत बौशदघक समािान भौवतक समशदघ और जीिन जागवत की वनरनतरता ह

पणश जागवत पयशनत परतयक मानि इका परयास एि उपासना क ललय बाधय ह इसी क फलसवरप मल परिततततयो का पररमाजशन होता ह खजसक कारण विशशषट और शशषट मानधसकता एि वििार चिनतन-बोि कषमता अनभिपणशता परतयकष होती ह यही शरषठ उपासना की उपलसतबधयाा ह

इसललय समान क सारथ वयिहार करन क ललय बाधय हआ ह यही सामाखजकता की बाधयता ह यही मानि जीिन की गौरि और गररमा ह यही गररमा समान क सारथ वयिहार अधिक जागवत क ललय अभयास करन क ललय पररणा ह यही िािविक उपासना ह

वििक अरथात मानि लकषय और िरागय अरथात समशदघ ही उपासना का परतयकष फल ह खजसम सामाखजकता सवाभाविक रप स समाहहत रहती ह

िरागय का पराितशन ही असगरह (समशदघ) उदारता एि दया ह भौवतक समशदघ म उदारता एि दया क मौललक मलयो का अनरजन ही सामाखजकता का पराण ततव ह यही सामाखजक सगीत ह इसी क ललय मानि तततषत ह वििक ही बौशदघक समािान एि सामाखजक मलयो को वनिाह पिशक परकट करता ह इसललय

वििक ि िरागय ही परोकष जञान (सदवयिहाररक जञान) का परिान लकषण ह अनभि ही परोकष जञान की अनतनतम सथसथवत ह इसक पिश अनमान अधिकार ही परधसदघ ह ििसथसथवत ििगत सथसथवत सतय म ही अनभि ह

परोकष जञान क वबना वनतयावनतय यकतायकत नयायानयाय िमािमश सतयासतयइषटावनषट दषटादषट तरथा परोकष जञानाधिकार धसदघ नही होता ह

वनतयावनतय जञानाधिकार क वबना मनषय म सविमश क परवत वनषठा नही पा जाती ह मानि िमश ही सख सख ही नयायपणश आिरण नयायपणश आिरण ही मानिीयतापणश सीमा एि lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का पालन ह यही मनषय का सविमश ह मानि सख िमी ह

मयादा विहीन इका नही ह जस जीिो म सवभाि मयादा िनसपवतयो म गण मयादा एि पदारथो म रप मयादा-भग नही होती ह यही उनकी गररमा ह इसी परकार मानि म सख ही िमश ह िमश ही मयादा ह यही उनकी गररमा एि विशवास ह मयादा का परतयकष रप ही विशवास ह

lsquolsquoविशवासविहीन समबनध एि समपकश म सख नही हrsquorsquo समबनध एि समपकश विहीन मनषय नही ह यही बाधयता सविमश क ललय ह इसक पालन म जो अकषमता अयोगयता एि अपातरता ह - िही दख कलश समसया और अजागवत ह

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सविमश म समपननता एि पालन करन योगय कषमता योगयता एि पातरता स पररपणश होत तक जञानाजशन करन क अरथश म अधययन रपी उपासना का अभाि नही ह

मानि क सविमश की सीमा म ही मत समपरदाय िगश वतरोहहत हो जात ह यही समरथश उपासना की परतयकष गररमा ह lsquolsquoयही मागललक हrsquorsquo साधय सािक सािन इन तीनो का उपासना म समाहहत रहना अवनिायश ह इनकी एक सतरता ही उपासना की सफलता ह अनयरथा असफलता ह परतयक सथसथवत म परापत शततकत ि सािनो का सदपयोग करना ही उसकी अवगरम जागवत ह यही उपासना ह

इनतिय कायशकलाप तरथा इनतियो का कायशकषतर ही अपरोकष जञान की सीमा ह इस वयापार म ितविि षय सीमानतिती धसशदघयाा ह इसक अवतररकत और उपलसतबधयाा इसम नही ह

विषयो की सीमा म मनषय सीततमत नही ह कयोवक उसम िार आयाम परधसदघ ह

मनषय ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत समपनन होन क ललय बाधय ह यही आिशयकता अिसर सभािना एि वयिसथा ह

सयमतापिशक ही मनषय क दवारा परतयक पररपरकषय म वकय गय वकरयाकलाप म स गररमापणश िभि परकट होता ह जस-

सतयबोि सहहत सतय बोलन का अभयास करन स भय ि अविशवास की वनितततत हषश तरथा उतसाह का उदय होता ह

विशव क परवत मलय भाि की परवतषठा स इषट और सािक क मधय विषमता का अभाि होता ह

शबद क अरथश अरथात मनतरारथश का तदरपतापिशक समरण करन क अभयास स उसका अरथश एि सवभाि गमय होता ह सभी सारथशक शबद मनतर ह

अधिक जागत म समपशण स अलभमान ि अहकार का उनमलन तरथा विदया ि सरलता का उदय होता ह ( अधिक जागत = समझान िाला परमाखणत वयततकत गर)

शरीर सिदना सयत रहन स मन की पवितरता मन की पवितरता स मनोबल का लाभ होता ह

सव-शरीर मोह नषट होन स ससार क परवत मोह दर होता ह सिशशभरपी आपत कामना पणश बशदघ स ही विशव क परवत उदारता दया कपा करणा का परसिन तरथा विशव की आिारभत सतता म जञान एि अनभि होता ह

जञान विजञान वििक रपी सवतवहीनता ही असयमता मनोदौबशलय मल परविततततयो की अपररषकवत राग मोह लोभ अवििक अहकार अलभमान दहातमिादी परितततत दरािार सघषश असह-असतितव सशकता दवष तरथा तपोहीनता ह

सयमता क वबना बौशदघक मल परिततततयो की पररषकवत बशदघबल सामाखजक मलयो की अनभवत ितनय वकरया का दशशन समािान और सयमता धसदघ नही होती ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 22

उपासना क ललय िातािरण का महतव अपररहायश ह खजसम स मनषय कत िातािरण ही परिान ह जो शशकषा ि वयिसथा क रप म ही ह

मानिीयता की सीमा म वयिहार lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का आिरण ही वयततकततव ह ऐस वयततकततव क वनमाण म सवकरय योगदान ही कततशवय ह यही परषारथश ह यही परबदघता ह

आशा भद स उपासना उपासना भद स अनभि अनभि भद स अनमान अनमान भद स उपासना भद ह यही उपासना म िविधयता का कारण ह यह िविधयता सािशभौम आिरण की सीमा म विलय होन क ललय बाधय ह

मानि क ललय सहज समरथश उपासना एक अवनिायश कायशकरम ह जो अमानिीयता स मानिीयता मानिीयता स अवतमानिीयता की परवतषठा सथाततपत करती ह

सह-असतितव म अनकषण-विकषण-ितततत स सहजाितततत होती ह

कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ही अनकषण-विकषण ितततत ह

अनकषण का तातपयश परतयक कषण म लगातार सह-असतितव चिनतन वििार करम म परमाखणकता का सहज परमाण परित हो जाता ह यही सहजाितततत ह

सतता म समपकत परकवत की समपकतता का जञान ही (पणश-दशशन) कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ह यही भरततमत भाि ि अभाि का वतरोभाि ह यही सहज परवतषठा ि अिसथा ह

सतता म समपकत परकवत का जञान न होन स और अनभिमलक जञान न होन स भय और परलोभनिश समि भरममलक कायश-वयिहार सोि-वििार को बनाय रखता ह यही समपणश कलश का कारण ह

काल वकरया की अिधि ह इसी अिधि म आरोततपत वििार ि इचछा ही असहज एि वनरारोततपत वििार ि इचछा ही सहज ह

मानि इका म ही जागवत क करम म भी वनरारोपण कषमता पा जाती ह भरमिश आरोपण होता ह

जो जसा ह उसस अधिक कम अरथिा नासमझना ही आरोपण ह यही अजञान ह यही अकषमता ह यही भरम ह

सतता म समपकत जड़-ितनयातमक परकवत की सथसथवत-शीलता ि सतता सहज पणशता क समबनध म ही आरोप या वनरारोण वकरया समपनन होना पाया जाता ह

परतयक इका म रप गण सवभाि एि िमश समाहहत ह यही उसकी कायशितता ह इसी की गणना पररमाण परयोजन जञान ही परकवत क परवत वनभरमतापणश कषमता का दयोतक ह यही परमाण ह यही सहजता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 23

समपणश वकरयाय मलत रप और शबद भद म दषटवय ह

परकता क वबना इका म अवगरमता नही ह

पणशता पयशनत इका परकता उपयोवगता क ललए परितत ह

परकता ही इका म हरास ि विकास क लकषणो को परकट करती ह यही परिान उपादयता भी ह

इका म परकट होन िाल शबदादधद गण ही सापकष शततकतयाा ह गणविहीन इका नही ह इसललय

मनषय म सहज कामना का अभाि नही ह सहजता ही िमश ह यही सख शानतनत सतोष एि आननद ह यही िारणा को सपषट करता ह जो परतयकष ह

परतयक कमश-फल ही मनषय क सख का पोषक ि शोषक धसदघ हआ ह

सतय और सतयता क अनभि-करम म वयििान नही ह कयोवक अनभिकरम-वयिसथा सघन ह जागवत की कदधड़याा सघन ह इसललय-

सहजता आरोप स मकत ह आरोप ही नयनावतरक मलयाकन ह सवय की नयनावतरक मलयाकन वकरया ही असहजता ह

सवय का मलयाकन lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म होता ह

lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म न हो ऐसा मनषय इस पथवी पर नही ह

िमश का वियोग नही ह कयोवक यह िारणा ह इसका परतयकष रप ही मानिीयता एि अवतमानिीयता पणश आिरण ह जो सहजता का परिान लकषण ह इसललय -

अमानिीयता पणश आिरण ही असहज ह इसललय

परकवत अपन म समपणशता क सारथ सीततमत ह यही अिधि ह इसललय पणश म समायी ह यही पणश म समपणशता सहज सह-असतितव ह यही समपणशता का वनतय ितशमान और जञानािसथा क मानि म पणशता का परसि ह यही जागवत क ललय बाधयता ह

मनषय क बौशदघक कषतर म पायी जान िाली अनािशयक कलपनाओ का वनराकरण ही दशशन-कषमता म गणातमक पररमाजशन ह यही गणातमक ससकार-पररितशन शशकषा एि जीिन क कायशकरम का योगफल ह

दशशन-कषमता का उतकषश ही अनकषण विकषण ह यही मधयसथ वकरया की कषमता ह मधयसथ वकरया ही दषटा ह

मधयसथ वकरया का िरमोतकषश ही सम ि विषम वकरया का पणश वनयतरण ह यही कषमता कषण-कषण मधयसथ वयििान स मततकत ह

ससकार पिशक ही बौशदघक वयिसथा-परवकरया -कषमता क आनषवगक ह मनषय सहज ऐषणा एि विषयो की सीमा म परितततत ि वनितततत पिशक वयि होना पाया जाता ह जो परतयकष ह

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आतमा (मधयसथ वकरया) क आनषवगक बौशदघक परवकरया ि वयिसथा म सतय-सकलप एि सतय-कलपनापणश मानधसकता की सथसथवत पा जाती ह जो परधसदघ कमश उपासना जञान पणश ह यही कषमता दि ि दधदवय मानिीयता को परकट करती ह यही पणश जागवत ह

ऐषणासकत बौशदघक वयिसथा म मानिीय तरथा दि मानिीय सवभाि परकट होता ह उसी क अनरप म मानधसक िातािरण की सथसथवतशीलता ह ऐसी कषमता ही सामाखजक ितना एि सतकशता स पररपणश पायी जाती ह

विषयासकत बौशदघक वयिसथा ि परवकरया म अमानिीयतापणश आिरण समपनन होता ह जो पाशविकता तरथा दानिीयता क रप म दषटवय ह इनम उसी क योगय मानधसकता पा जाती ह यही लपत-सपत कलपना का कारण ह यही अजागवत तरथा अपणश सतकशता का दयोतक ह

शरय (जागवत) खजजञास होन पर ही लपत-सपत कलपनाय पररमाखजि त होती ह फलत दानिी ि पाशिी परिततततयो स उदासीनता सथसथर होती ह सारथ ही वििकोदय होता ह

शरय खजजञासा का उदय सव-ससकार विधि-विहहत अधययन तरथा उसक अनकल िातािरण म होता ह

विधि-विहहत-अधययन वनपणता कशलता ि पादधडतय ही ह

अधययन एि िातािरण ही ससकार पररितशन क ललय समरथश वयिसथा ह खजसका गणातमक पररितशन ही आतमबोि क ललय खजजञासा ह

आतमबोि ही सतय खजजञासा का परिान लकषण ह इसललय- अििारणा ही अनगमन तरथा अनशीलन क ललय परितततत ह जो शशषटता क रप म परतयकष होती ह परगवत क ललय अििारणा अवनिायश ह जागवत क ललय अििारणा एि हरास क ललय आसततकत परधसदघ ह यही करम स वनितततत ि परितततत ह अििारणा ही सदधदविक ह सदधदविक सवय म सतयता की विििना ह जो सपषट ह मलत यही शभ एि मागलय ह अनभि की अििारणा सतय बोि क रप म अििारणा (समयक-बोि) ही सतय-सकलप ह यही परािवति त होकर शभकमश उपासना तरथा आिरण क रप म परतयकष ह इसी का पररिवति त मलय ही िीरता िीरता उदारता दया कपा और करणा क रप म परतयकष ह सतय म ही समयक-बोि होता ह असतय ही कलपना एि भास होता ह हीनता दीनता और कररता स यकत कमश अशभ होता ह सव-मलय ही परितततत और वनितततत का िशश ह इसललय असतय अलभमान तरथा दपश स मकत सतय सरलता सहजता तरथा सौजनयता स यकत कमश ि उपासना शरय कारक ह

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सतय कामना की वनरनतरता स लकषय की अििारणा होती ह जञान म ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत परतयकष ह जञान वििक सममत विजञान ही ह जो पणश ह सतय और सतयता म दढ़ता ही शरयमय जीिन ह सतयानभवत ही सबका अभीषट ह शरीर स समपनन होन िाल समि वकरयाओ का सिालन मन ही मिस दवारा करता ह मिस स सभी नादधड़याा वनयदधतरत ह शबद का मल रप मन ही ह मिस पर मन आसवादन एि सवागत भािपणश तरगो का परसारण सिालन वनयतरण करता ह उसक मल म शबद ही ह जागवत की ओर गवत हत वनयतरणातमक शबद ही मतर ह लकषय-पराततपत-योगय-करम परवकरया ही वनयतरण ह शबद म जो भाि (मलय) ह िही उसका अरथश ह सारथशक शबदो का अरथश ही जागवत की ओर गवत ह कयोवक शबद का अरथश असतितव म िि ह भाि म जो उपयोगपणश अवनिायशता ह िही उसका महतव ह उपयोग पणश अवनिायशता म जो वनचशचत दधदशा ह िही उसकी दढ़ता ह यही समयक सकलप ह समयक सकलप म जो पणशता ह िही अनभि ह जो करम स मन ितततत चितत बशदघ और आतमा म पा जान िाली सससकत मौललक वकरयाय ह भाि का तातपयश होन स ह शततकत-तरय-जागरण (इचछा-शततकत वकरया-शततकत तरथा जञान शततकत जागरण) क वबना तयाग (भरममततकत) और परम परमाखणत नही होता

मनन परवकरया म सव-मलयाकन

सव-मलयाकन मनन धयान ldquoअपराि क अभाि म दयापणश आशा का पराितशन अनयाय क अभाि म नयायपणश वििार का पराितशन आसकती क अभाि म समािान पणश इचछा का पराितशन तरथा अजञान क अभाि म जञानपणश सकलप का पराितशन होता ह| अत अपरािहीन वयिहार क ललए वयिसथा का परभाि अनयायहीन वििार क ललए अखणड समाज का परभाि तरथा अजञान रहहत बदधदध क ललए अतवनि यामन अरथिा धयान आिशयक ह खजसस ही परतयाितशन वकरया सफल ह| धयान का अरथश समझन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना और समझन-अनभि करन क

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उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

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मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

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(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

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सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

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प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

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अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

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३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 33

(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 34

उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

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मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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विशलततषत सवीकत होना ही अधययन ह| रप गण सवभाि और िमश की परतयकषानभवत ही विशलषण ह जो सतिचरथिातता ि सतय ह| अि अधययन का फलन ही अनभि ह| अनभि विहीन परतयक उतपादन-कायश म तरदधट एि वयिहार-कायश म अपराि भािी ह| तरदधट एि अपराि मानि की िाधछत परिती नही ह| यह परिती तब तक रहगी जब तक अधययन पणश न हो जाए परतयक मानि म अधययन परितततत जनम स ही पा जाती ह| (पषट ndash ३९) परतयक मानि म पायी जान िाल अनभि क ललए कारण वििार क ललए सकषम वयिहार क ललए सकषम-सथल तरथा उतपादन क ललए सथल तथयो का अधययन ह जो परतयकष ह| अधययन स ििाररक वनयतरण शशकषा स वयािहाररक वनयतरण एि परशशकषण स उतपादन म वनयतरण ह| [कारण = वयापक िि सकषम = जीिन सथल = शरीरजड़] (प ५२ ५३) परतयक अनमान अनभि पर आिाररत अनयरथा अनभि क ललए सदधननहहत ह| परतयक अनमान अनभि क ललए पिापर ह| अनमान ही शोि पिशक भास आभास परतीवत क रप म उदय होता ह| खजसक आिार पर ही मानि म योजना वििार एि कलपना का परसि होता ह जो अनभि म परमाखणत होता ह ldquoतातरयrdquo स मानि म स क ललए अलभवयकती नही ह| इसीललए भाि = मौललकता = सवमलय तरथा मलयाकन कषमता = मौललकता का भास आभास परतीवत ि अनभती = वयकती की कषमता योगयता पातरता = जागवत = िातािरण अधययन और सवससकार = उतपादन वयिहार वयिसथा म भागीदारी = भाि परधसदध ह| (पषट ndash ६१) नयाय और समािान (िमश) सािशभौम सतय ह| यह दश काल अबाि ह| इसीललए मानि दवारा कीया गया समपणश वििार एि परयास तकशसगत या सतकशतापणश होन क ललए ही परतयक मानि का समािान एि समदधी म स क ललए ही वििार कमश एि वयिहार करना परधसदध ह| तकश की सीमा म परवततकश ह| मल िि क अजञात ि असपषट रहत हए उसक तातपयश या फलितता क सनदभश म की गयी परशनोततर परवकरया ही िाद-परवतिादी एि तकश-परवततकश ह हो समसया का समािान नही ह| समािान एि तातवतवकता क ललए तकश का परयकत होना ही उसकी िररतारथशता ह | इस परकार यह सपषट होता ह वक तकश का असतितव सवततर नही ह| सारथ ही तकश का परयोजन किल तातवतवकता स सबदध होना ही ह| इसी परमाण-धसदध-साकषय स सपषट होता ह वक तकश सीमानवरती वििार उपदश एि परिार मानि जीिन क ललए पयापत नही ह| (पषट -१९) मानि जावत क समि कायशकरम का उददशय अनभि एि परमाण ही ह बौशदघक समािान क वबना अनभि सभि नही ह कयोवक समािान की वनरतरता ही अनभि ह भौवतक समशदघ क वबना बौशदघक समािान धसदघ

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 5

नही ह और बौशदघक समािान क वबना भौवतक समशदघ परमाखणत नही होती कयोवक अजञात को जञात करन क ललए एि अपरापत को परापत करन क ललए अनिरत परयास हआ ह वििक ि विजञान का सतलनाधिकार सहज परमाण ही भौवतक समशदघ एि बौशदघक समािान ह कमाभयास क वबना उतपादन एि समशदघ तरथा वयिहाराभयास क वबना समािान नही ह कमाभयास अनवषण शशकषण परशशकषण ह खजसकी िररतारथशता उतपादन ह फलत समशदघ ह वयिहाराभयास अनसिान अनसरण आिरण ससकवत सभयता विधि एि वयिसथा ह खजसकी िररतारथशता सामाखजकता अखडता अभयता समािान सतलन एि सवगश ह मानि का अशष कायशकरम ििाररक वयिहाररक एि उतपादन ह ििाररक पररपणशता अरथिा समािान क ललए चिनतनाभयास आिशयक ह ही चिनतनाभयास पिशक ही यरथारथता िािविकता सतयता को वनरीकषण-परीकषण कर परमाखणत कर पाना सहज ह यही समािान रपी वनषकषो को सफररत करता रहता ह खजसस ही सिशशभ ह जो पाािो सथसथवतयो म lsquolsquoनीवततरयrsquorsquo स सबदघ ह lsquolsquoअनभि कायशकरम नही ह अततपत अनभि म स क ललए ही कायशकरम हrsquorsquo (पषठ-८३ ८६) अपकषाकत सतिचरथितता ही अनमान का उदय ह| यही अधययन हत की गयी उतसकता ह| उदयविहीन सतिचरथ म अधययन एि अधययन धसदध नही ह| उदय ही कौतहल ह अरथात जानन मानन पहिानन उपयोवगता उपादयता एि अवनिायशतापिशक अनभि करन की वकरया ही उतकठा ह| यही मानि जीिन म वकरयाकलाप का आिार ह| मानि जीिन िार आयाम दश सोपनीय पररिार सभा वयिसथा एि मलयो क वनिाह क रप म दषटवय ह जो ससकवत सभयता विधि वयिसथा का आघात कायशकरम ह| [अभयास-करम म मनन पिान lsquoदशrsquo सबिी िि जीन की जगह शोि] सिशशभ उदय का भास-आभास सिदनशीलता की ही कषमता ह और परतीवत ि अनभती सजञानीयता की महहमा ह| सिशपररथम सख समािान का भास-आभास सिदनशीलता पिशक होता ह|

अनभिातमक आधयातमिाद ndash सस २००९

प १६ १७ १८

जानन का फलन मानन क रप म आता ही ह| मानन का सवरप ह - ldquoयह सतय ह इस सवीकारना ह |rdquo और सतय सहज परयोजन सवय स या सबस जडी ह सतिचरथ को और गवत को सवीकारना ही मानना ह| इसस सपषट होता ह हर सतिचरथ म िि सहज िािविकताओ को जननना सहज ह| इसी करम म उसकी गवत और परयोजन क सारथ ldquoसह-असतितवrdquo म स क ललए आिशयकताओ को सवीकारना ही मानना ह|

मानि ही जानन-मानन क आिार पर पहिानन-वनिाह करन म परयोजनशील होता ह| मानन का आिार परयोजन होना ह| जानन का आिार कयो और कस क उततर क रप म ह | सारथ ही िि कसा ह यह भी जानन म आता ह| िि कसा ह यह जानन का सवरप ह| इसी स कयो और कस का उततर सवय सफतश वििी

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 6

स वनगशततमत होता ह| मानन का तातपयश परयोजन पहिानन क अरथश म सारथशक होता ह| जस असतितव सहज वनतय सतिचरथ को जानना सहअसतितव परयोजन सतर को पहिानना सवाभाविक होना पाया गया|

प ६६ ६७

जञान का मल सवरप जीिन जञान और असतितव सहज सहअसतितव रपी वयिसथा का जञान ह| जीिन जञान मानि सवय अपन जीिन सहज वकरयाकलापो क आिार पर विशवास करना बन पाता ह| यह मलत अनभि सहज वकरया ह| इसको जानना-मानना एक आिशयकता ह ही | जीिन को जानन-मानन क करम म शरीर रिना और शरीर सीमाओ क सनदभश म भल परकार स पारगत होन की आिशयकता ह| जीिन और शरीर क सयकत रप म ही जञानािसथा परकाशमान होन क आिार पर ही मानि सहज वििी स ही

१) अपना ही कलपनाशीलता कमशसवततरता शरीर स लभनन तरग क रप म अनभि करना बनता ह

२) आशा वििार इचछाए जीिन सहज वकरया होन क रप म सवय म सवय स सवय क ललए परीकषण वनरीकषण कर सकता ह

३) आसवादन तलन चिितन बोि करम म अधययन वििी म जो अनभवतयाा परतीत होती ह या भास-आभास होता ह इसका परीकषण सवय ही हर मानि हर काल म हर दश म वकया जाना समीिीन ह|

इन वकरयाकलापो क वनररकषण स पता लगता ह वक जीित मानि म आसवादन का अनभि भास नयाय िमश सतयरपी वनतय िि का भास होना हर वयततकत अपन म वनसिय कर सकता ह| चिितन म ही नयाय िमश सतय का आभास होना और परतीत होना परमाखणत होता ह|

साकषातकार अपन म परयोजनो का वनशचयन सहहत तपती क ललए सरोत रप म अधययन वििी स पहिान लता ह| फलसवरप बोि पिशक अनभि म सारथशकता सहहत नयाय िमश सतय सहज सवीकवत ही ससकार और अनभि बोि रप म जीिन म अविभाजय वकरया रपी बदधी म सथाततपत हो जाता ह| यही अधययन पिशक होन िाली अदभत उपलबधी ह| नयाय सहज साकषातकार सहअसतितव सहज सबिो का साकषातकार सहहत मलयो का साकषातकार होना पाया जाता ह ( यह सिारना ह यहाा मलयो स तातपयश मानि मलय अरथिा मानिीय सवभाि स ह कयोकी मलयो का साकषातकार होता नही िह बहत ह ) | यही मखय वबिद ह | सह-असतितव सहज सबिो को पहिानन म भरम रह जाता ह यही बिन का परमाण ह| यही जीिन को शरीर समझन (मानन) की घटना ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 7

मानि सितनािादी मनोविजञान ndash सस १९९८

प १९३

समपणश समझदारी शरवत समवत पिशक मानि स मानि को पीढ़ी स पीढ़ी को सपरततषत होता ह खजसम

स बोि होन पयशनत शरवत ह बोि म अपन म जानन मानन का सवरप ह इसका तततपत वबिद अनभि ह इस परमाखणत करन क करम म शरवत समवतपिशक बोि कराया जाना पाया जाता ह परतयक मनषय की सपणशता अपन म भाषा भाि भवगमा मदरा अगहार सहहत ही सारथशकता को पहिाना जाता ह शरवत समवत पिशक मलयाकन करत ह

प १८३ १८४ - भाषा शरवत (अभयास-अधययन करम म जो भाषा परयोग होना ह)

शरवत सह-असतितव सहज अलभवयततकत ह सह-असतितव सहज असतितव वनतय ितशमान ह ितशमान म ही मानि न अपनी कमश सवततरता कलपनाशीलता का परयोग वकया ह कर रहा ह करता रहगा मानि म ही शरवत समवत सहज परकाशन परमाखणत होना पाया जाता ह खजसस भास- आभास परतीवत पिशक अनभि होना पाया जाता ह इसी कारणिश उस उसक सहज रप म समझना कायशकरम ह इसका परमाण यह ह वक मनषय ही असतितव म धववन शबद नाद भाषा ि िि सहज परभदो को जानता मानता पहिानता ह अरथिा इसक योगय ह जस-पदारथश अिसथा म पा जान िाली वयिसथा का मल रप परमाण म भी धववन और िि को पहिानता ह

फलत अणओ क रप म होना सवाभाविक ह पराणकोशाओ म धववन ि कायश सकतो को परसपर कोशाए पहिानत ह फलसवरप रिनाए सपनन होती ह उसी भावत जीिो म भी शबद धववन और नाद उनक परसपर पहिान म होना पाया जाता ह मनषय म शबद धववन नाद ि भाषा य सहज ही परसपर ििओ को इवगत करन क अरथश म जानन मानन पहिानन को ततमलता ह भाषा का तातपयश होता ह खजसस िि सहज सतय भास हो जाय मानि भाषा म सतय भास आभास परतीवत सहहत अनभि होन क अरथश म ही परयोग वकया जाता ह यही जागवत सहज सपरषणा ह इसी करम म भाषा क परवत विशवास हो पाता ह मनषयतर परकवत म भी अपन अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा को परमाखणत करन क करम म समपणश धववन नाद ि शबद को दखा जाता ह जागत मनषय परसपर भाषा दवारा इवगत होना िाहता ह या इवगत कराना िाहता ह

भाषा धववन नाद ि शबद क मल म दखन पर पता िलता ह वक इका म सवय सफतश अलभवयततकत ह मल इका का तातपयश परमाण ही ह परमाण ही विकास पिशक जीिन जीिन जागवत पदो म और परमाण ही विकास करम म अण कोशा रिना ि विरिना क करम म असतितव म होना पाया जाता ह परमाण ही मलत वयिसथा का मल ह भौवतक वकरयाकलाप रासायवनक वकरयाकलाप जीिन वकरयाकलाप क मल म परमाण ही वयिसथा का िारक-िाहक होना पाया जाता ह मनषयतर तीनो अिसथाए अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा क रप म इस िरती म विदयमान ह मनषय भी मानितव सहहत वयिसथा क रप म परमाखणत होन क ललए परयतनशील ह इसकी सभािना समीिीन ह

समपणश शरवत परतयक एक अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा को बनाए रखन क ललए ही उदगमशील ह शररवत को धववन शबद नाद ि भाषा क रप म मनषय पहिानता ह इसकी सारथशकता को पहिानना शष रहा इसी करम म गवत लय तरग को भी पहिानता ह यह विविि परकार स शररवत को ही िि क रप म समझन का परयास सारथशक

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 8

होता ह शरवत का तातपयश सथसथवत सतय िि सथसथवत सतय ििगत सतय को इवगत करन बोि करन क ललए ही सनन योगय ि सनान योगय सभाषण ह पणशता को इवगत करन करान क अरथश म परयोग वकया गया भाषा एि पररभाषा ह सनन सनान क ललए सवय सफतश मानि अपकषा ह सनान योगय भी सवय सफतश सपरषणा ह सपरषणा का तातपयश पणशता क अरथश म परित होन की परवकरया ह सनन क करम म भी पणशता को पहिानन सहज अपकषाए बनी ही रहती ह पणशता अपन म वनरतर ह इसका सामानय सवरप असतितव म पणशता परमपरा क रप म परकाशशत ह असतितव म पणशता गठन पणशता वकरया पणशता आिरण पणशता ही ह रासायवनक भौवतक इका या अपन-अपन िातािरण सहहत समपणश ह ही पदारथािसथा पराणािसथा जीिािसथा की परपराए उन उन की lsquoतवrsquo सहहत वयिसथा क रप म सदधतरत वयाखयाततयत ह यह परपराए पणशता सपणशता सहज ही वनरतरता को परापत वकए ह िह lsquoतवrsquo सहहत वयिसथा समगर वयिसथा म भागीदारी ह यही िभि-सतर ह

मानि ऐसी शरवत परमपरा को िाहता ही ह वक इसस यरथारथशता िािविकता और सतयता सहज ही समझ म आय जीिन सहज खजजञासा कयो ह कसा ह कबस ह कसा बना ह इस परकार क परशन अपन आप उदय होत ही ह यह कलपनाशीलता की गररमा ह इसका उततर पाना समािान पाना परमाण पाना परमाखणत होना यह ही शरवत समचचय की सारथशकता म होना पाया गया

समपणश िाङमय अरथात शरवत (सनन योगय सनान योगय भाषा पररभाषा जो सोि वििार वनशचय और समझदारी परितशन भाषाकरण सतरीकरण िाकय परबिन सिाद क रप म परिललत रहता ही ह) यरथारथशता का सवरप जसा खजसकी मौललकता ह उस इवगत करन वनदशशत करन और चिखनहत करन क रप म शररवत का परयोजन सारथशक होता हआ नजर आता ह खजसका जो अरथश का सवरप परतयक एक म रप गण सवभाि क रप म वयाखयाततयत होना पाया जाता ह इन िारो आयामो की अविभाजयता म परतयक एक वयिसथा क रप म मलयावकत होता ह और परतयक एक वकरया क रप म ही ततमलता ह

जबवक मानि भाषा कारण गण गखणत क अविभाजय रप म ह खजसस ही परम सतय रपी सह-असतितव भासा आभास पिशक परतीवत सहज बोि सारथशक होना पाया गया फलत अनभि होना धसदघ हआ प ४४ भततकत सहज अलभवयततकत जागवत गामी विधि स अरथिा जागवत करम विधि स भास आभास परतीवतयाा और जागवत-पणश विधि स परतीवत अनभवत ि उसकी वनरतरता दोनो सथसथवतयो म तनमयता तारतमयता और उपादयता सपषटतया समझ म आता ह प ८६ ndash मन म होन िाली सवागत वकरया ndash अभयास-अधययन करम म

सवागत - (1) अििारणा अनभि क ललए सवीकत वकया (2) वनयम नयाय समािान सतय सहज सवीकवतयो असवीकवतयो क ललए तयाररया (वििक ि विजञान सममत मानधसक ििाररक और ऐचिक तयाररया)

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इदधदरय सदधननकषश म भी सवागत भाि का भास आभास होना पाया जाता ह खजसकी वनरतरता की अपकषा ही रह पाती ह यह वयिहार म परमाखणत नही हो पाता अतएि सवागत का आिार समपणश मलय सवागत होना पाया जाता ह ििओ का िारक िाहकता म भी जीिन रहता ही ह

समपणश अििारणाए मौललकता क रप म होना पा जाती ह मौललकताए िमश और सवभाि क ही सतर ह समपणश असतितव म परतयक एक अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा ह समगर वयिसथा म भागीदार ह कयोवक असतितव म समपणश इकाइया (अरथिा समि इका या) सह-असतितव सतर म सदधतरत ह प २१८ इवगत होना ही वयजना ह वयजना ही करम स भास आभास परतीवत अििारणा एि अनभवत ह प २१

ियन-वकरया अरथात गरहण करन का वकरयाकलाप पराितशन विधि स और आसवादन वकरया परतयाितशन विधि स सवय म सपनन होती ह विशलषण वकरया पराितशन विधि स और तलन वकरया (ततपरय हहत लाभ नयाय िमश सतय दवषट) परतयाितशन विधि स सपनन होती ह चितरण वकरया पराितशन विधि स इचछा पटल म चिदधतरत हो पाती ह पराितशन म रिनाओ वकरयाओ क रप म परमाखणत हो पाता ह और चिनतन-वकरया साकषातकार विधि स सारथशक होती ह साकषातकार की समपणश िि जीिन मलय मानि मलय सथाततपत मलय शशषट मलय और िि-मलयो क रप म दरषटवय ह मलयो का सतलन तलन होकर तततपत विधि म सलगन रहता ह इस परकार साकषातकार की तततपत का सरोत मलय ह और उसकी (मलयो की) वनरतरता का भािी होना पाया जाता ह

जीिन म सपनन होन िाली अििारणा बोि-बशदघ सहज परतयाितशन वकरया ह सभी अििारणाए अधययन और अनसिान विधि स सथाततपत हो पाती ह अनभि मलक विधि अनभिगामी पदघतततत स बोि होना पाया जाता ह अनभि सतय बोि करान म परमाखणत होता ह और सकलप पणशता क अरथश म कलपनाओ को गवत दन स ह कलपनाए - आशा वििार इचछा क सयकत रप म परिाहहत रहती ह जीिन शततकत अकषय होन क कारण परतयक वयततकत म कलपनाशीलता का अकषय होना पाया जाता ह कयोवक यह कलपना जीिन शततकतयो का ही परिाह ह कलपनाए सतय सकलप क अनरप परािवति त होकर मानि परमपरा क अखड समाज सािशभौम वयिसथा क रप म सारथशकता को परमाखणत करती ह

प ४९-५०

पिानकरम पदघवत परणाली मानिीयता पणश वििार-चिितन-बोि-अििारणा और अनभि मलक होन क करम म अधययन गमय ह पिानकरम विधि स ही मनन पिशक मानयताए सथाततपत हो पाती ह फलत मानि परमपरा क ललए उपकारी और सारथशक धसदघ होती ह

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प ५१ ५२

वनषठा - जागवत पणश लकषय को वनचशचत अििारणा ि समरण पिशक परापत करन ि परमाखणत करन का वनरतर परयास

वयजनीयता का तातपयश - साकषातकार होन स ह साकषातकार चिितन म होता ह वयजनाए मानि मलय जीिन-मलय सथाततपत मलयो क परभाि क सारथ जीिन मलयो का बोि ि अनभि करन स ह समपणश रसानभवत का तातपयश ह - जीिन मलय रपी सख शावत सतोष आनद सहज आपलािन जागवत सहज परमाणो क रप म सपषट होना यही अनभि करन और बोि करान का तातपयश ह

प ७५-७७ गर और शशषय

पररभाषा गर - शशकषा ससकार वनयवत करमानिषगीय विधि स खजजञासाओ और परशनो को समािान रप म अििारणा म परसथाततपत करन िाला मनषय गर ह जागवत करम म मानि को अपरापत का परापत अजञात का जञात करन क ललए होन क ललए विधि वनयम परवकरया सहज समझदारी म पारगत बनाना ही परमाखणकता का परमाण ह परमाखणकता पणश गरजन ही असतितव सहज सह-असतितव रप म अििारणा को परवतसथाततपत करा सकता ह अििारणाय असतितव विकासकरम विकास जीिन जीिनी करम जीिन जागवतकरम जीिन जागवत सहज रप म परसपरता म अरथात समझा हआ और समझन क ललय तरथा मनषयो स ह गरजन इन मददो म पारगत रहग यह समझदारी ह समझदारी क आिार पर ही मानिीय शशकषा-ससकार सपनन होता रहगा ससकार का तातपयश ही अििारणा ह विदयाचरथि यो म सथाततपत होन स उसकी वनरतरता का परमाण वयिहार वयिसथा म परमाखणत होन स ह फलसवरप ही अखणड समाज सािशभौम वयिसथा म भागीदारी सहज कायश-कलाप हर मानिीय शशकषा-ससकार समपनन मानि स िररतारथश होना पाया जाता ह

परामाखणक - परमाणो का िारक िाहक - यरथा असतितव दशशन जीिन जञान मानिीयता पणश आिरण समचचय को परयोग वयिहार अनभि पणश विधि स परमाखणत करना और परमाणो क रप म जीना

पररभाषा शशषय - जागवत लकषय की पवति क ललए शशकषा ससकार गरहण करन सवीकार करन क ललए परित वयततकत खजसम गर का समबनध सवीकत हो िका रहता ह यही खजजञासातमक शशषटता ह

खजजञास - जीिन जञान सहहत वनभरशम शशकषा गरहण करन क ललए तीवर इचछा का परकाशन

समझन सीखन करन क ललए पणश खजजञासा सहहत परयतन सपनन वयततकत शशषय क रप म शोभनीय होता ह सफल होन क सभी लकषणो स यकत िातािरण म विशवास होना और विशवास को िातािरण म परभावित करन परमाखणत करन की सभी परवकरया अधययन ह

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असतितव विकास जीिन जीिन जागवत रासायवनक-भौवतक रिना-विरिना समपणश मानि क ललए समझन-समझान की िि ह सीखन की जो कछ भी परमाखणत िि ह यह मानि म मानिीयतापणश आिरण कमश अरथात वयिसाय म सवािलमबन वयिसथा म भागीदारी मानिीयता पणश आिरण का अभयास परामाखणकता सहज अलभवयततकत ह सारथ ही सािशभौम वयिसथा और अखड समाज म वनषठा ह य समपणश खजजञासाए वयािहाररक रप म िररतारथश होती ह परौढ़ता की पराकाषठा म स क ललए सवानशासन की खजजञासा का होना पाया जाता ह खजजञासा मानि सहज परकाशन ह

प १०६ जीिन को तातवतवक रप म समझन की खजजञासा हो ऐसी सथसथवत म परमाण म होन िाली विकास परवकरया उसक सकरमण िभि को भी जो ितनय इका क रप म परवतवषठत ह को सहज ही अधययन अििारणा म लाना एि अनभि करना आिशयक ह

अनभिातमक आधयातमिाद सस २००० (प ५८ ndash ६५) अनभव ही दसर नाम स परतयावरतन करिया ह और इसका परावरतन करिया को परामाणिकरा-परमाि नाम ददया ह जागकरर सह-असतितव म अनभव हई ह इसी जागर सथिकरर म होन वाली गकरर को परतयावरतन नाम ददया गया ह समपित परतयावरतन दरतन और जञान नाम स परकररकरिर ह जञान और दरतन सवाभाकरवक रप म ओर-परोर रप म वरतमान ह समपित असतितव सतता म सपकत जड़-चरनय परककरर ही सह-असतितव का मल सवरप ह इसका सामानय कलपना हर मानव म होना सभव ह कलपना का मल सतरोर आरा करवचार इचछा का असपषट गकरर रप ह कयोकरक समपित कलपनाए परावरतन म कायतरप रहना दखा जारा ह मानव ही कलपनारीलरा का परयोग कररा ह इस ऐसा भी कहा जा सकरा ह करक हर वयकतकत परकारानतर स कलपनारीलरा का परयोग कररा ह भरकतमर मानव दवारा कलपनारीलरा का सवाधिक परयोग ररीर और इनदरिय सदिकरत क रप म ही सवाभाकरवक ह यह भरम करववररा ह यही कलपनाए चचणिर रप म सपषट होन क ललए रतपर होर ह रभी करवधिवर करवशलरि और करनचिर चचतरि करवचार रप म समभावनाओ को सवीकारना बनरा ह सभावनाओ का लकषय कतपरय हहर लाभ सीमाओ म सीकतमर रहना पाया जारा ह यही भरमातमक कायत सीमा का अथ इकरर ह जागकररपित जीवन चचतरि म यह रथय ससपषट ह करक नयाय िमत सतय उसका साकषातकार बोि अनभव ही अधययन और अनसिान का लकषय और कायत ह इिी कायत रप क आिार पर असतितव और जीवन अविारिा म िाकतपर होना सफल अधययन का दयोरक और कसौटी भी ह इसी क आिार पर सवायतत मानव का सवकषि करनरीकषि और परीकषि होना सपषट हो जारा ह सवायतत मानव ही असतितव म अनभव सहज जागकरर का िारक-वाहक होना सपषट ह इस परकार अधययन सहज रप म जीवन और सह-असतितव म अनभव बोि की अलभवयकतकत और परमणिर होन क िम म आतमा असतितव म अनभर होना जीवन म किीय होना मधयि करिया और मधयि बल समपिरा का सवीकर होना परम रपत होना ह जीवन रचना मधयार सहज मधयि करिया मधयि बल मधयि रकतकत सरलन क अथत म सदा-सदा परयकत रहरा ही ह यही जागर

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मानव परपरा म परमाि ह मधयि करिया समम_य िम स जीवनी िम और जीवन जागकरर िम वयकत होरा ह इसी िम म जागर होना जीवन सहज परवकततत परयास आवशयकरा क योग-सयोग करवधि स समपि होरा ह यही अनसिान रोि और अधययन क ललए भी सयोजक रतव ह यह रतव सदा-सदा जीवन परकररिा म कायतरर रहरा ही ह इसकी परखररा क आिार पर ही अनसिान रोि अधययन सहज हो जारा ह इस परकार यह ससपषट हो जारा ह करक आतमा अधययन करवधि स असतितव म अनभर होरा ह दसरा अनसिान करवधि स भी असतितव म अनभर होना पाया जारा ह ( अनसिान विधि जो शरी ए नागराज न कीया सािना gt समािीgt सयम | अधययन विधि पिक एि वकसी समझ हए वयकती क माधयम स शशकषा-ससकार परापत करना) अनसिान करवधि स भी सवतपरथम असतितव म बोि होना दखा गया ह इसक उपरानत ही आतमा असतितव म अनभर होना दखा गया ह अधययन करवधि स भी यही सथिकरर अथार पहल बोि रदोपरार अनभव होना पाया जारा ह इन दोनो करवधियो म स अधययन करवधि लोकवयापीकरि क ललए कम समय म बोि होन की सथिकरर बनरी ह अनसिान करवधि म परवतत होन क ललए वयकतकत म लकषय सममर णजजञासा का होना अकरनवायत ह जब अधययन करवधि स समपित परशनो का उततर कतमल जारा ह परशन िली ररकत होना उसी िली म समपित उततर िाकतपर होना अधययन और अधयापन का सयोग और फलन ह परशन करवहीन सथिकरर म अनसिान का आिार नही बनरा इस परकार परपरा म सभी परशनो का उततर अधययन करवधि स हर मानव म हर सथिकरर पररसथिकररयो म समपित परशनो का उततर सह-असतितव सहज करवधि स समीचीन ह अनसिान करवधि एव अधययन करवधि स पहल बोि ही होरा ह रदोपरार lsquolsquoबोिrsquorsquo का आतमा म अनभव होरा ह अनभव क उपरानत lsquolsquoअनभव सहज बोिrsquorsquo अधययन एव अनसिान करवधि म एक जसा होरा ह एव एक ही होरा ह इसम मखय रथय यही ह यथाथतरा वासवकररकरा सतयरापित करवधि स अधयापन सामगरी वि परकरिया पररपित रहना आवशयक ह ( अधययन अरथिा शशकषा वििी म) अनसिान क ललय अजञार परशन चचि अकरर आवशयक ह हर अनसिान को अधययन और अधयापन कायत करवधि स लोक वयापीकरि होना सगम हो जारा ह इस परकार अनभव क अननतर ही अनभव lsquoबोिrsquo होना दखा गया ह यह हर वयकतकत म होना समीचीन ह (प १०७ १०८ १०९ इसक उपरानत जागकरर और जागकररपितरा ही मणजलो क रप म दखन को कतमलरा ह यह मलर करवचार चचतरि अविारिा अनभव और चचनतन का ही वभव रपी मानधसकरा क रप म दखा गया ह भरम का समपित सवरप आरा करवचार इचछा (चचतरि) का कतपरय हहर लाभातमक दकरषटयो की करियारीलरा ही ह सवतमानव पीड़ा स मकतकत चाहरा ही ह यही जागकरर सहज अपकषा का सरोर और समभावना ह जीवन सहज करियाकलापो म स नयाय िमत सतय का साकषातकार और दषटा होना और उसका परमाि धसदघ होना ही समपित जागकरर ह दषटापद म होन वाली समपित करियाकलाप जीवन सहज करवधि स जानन-मानन-पहचानन-करनवाह करन क रप म होना पाया गया ह जानन-मानन की समपित वि जीवन जञान सह-असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान ही ह

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अनभव असतितव म ही होना पाया जारा ह अनभव क पहल समझदारी जानन-मानन-पहचानन क रप म होना पाया जारा ह यही अधययनपवतक होन वाला अविारिा ससकार ह इसक पवत रप म करवचार और चचतरि ही रहरा ह यही शरकरर समकरर रबद और चचतरि ह रबद और चचतरि क आिार पर करकरन भी करियाकलापो को मानव सपाददर कररा ह यह सब असथिररा क साथ ही जझरा हआ दखा गया ह असथिररा म भरम ही परिान कारि ह इसीललय ही समरि और चचतरि क उपरानत कही न कही असथिररा-अकरनियरा को परकाशरर कररा ही ह इसी सीमा रक हम इस बीसवी सदी क अर रक झलर आय ह सथिररा की सवीककरर बोि रप म ही होना फलसवरप वयवहार म नयाय-समािान-सतय परमाणिर होना पाया जारा ह ऐसा बोि जानन-मानन-पहचानन का ही महहमा ह यह करिया जीवन म ही जागकरर सहज करवधि स होन वाली वाधिर परकरिया ह असतितव म अनभव सतता म (वयापक म) सपकत परककरर क रप म ही दखा गया ह सतता म सपकत रहन क आिार पर ही करियारीलरा करनयतरि सरलन सरकषि सामय ऊजा सरोर होना दखा गया ह इसीललय परककरर म करनयतरि सरकषि करनररर बना ही रहरा ह अर सतता म करनयतरि सपषट ह (प ७४) असतितव सहज सह-असतितव म जड़-चरनयातमक परककरर करनतय वभकरवर होन का सवरप करिया शरम गकरर पररिाम परकारन सहज करियाकलाप और पररिाम का अमरतव शरम का करवशराम गकरर का गरवय सहज लकषय करनहहर करिया उपयोकरगरा परकरा-उदाततीकरि करनयमो क अनरप समपित भौकररक-रासायकरनक जीवन रपी परककरर म करनतय रचना-करवरचना lsquoतवrsquo सहहर वयविा और उसकी परपरा भल परकार स बोि करान की सहज-करिया समपि करकया जा चका ह इसी िम म शरम का करवशराम गकरर का गरवय रपी परमािो को मानव परपरा म परमाणिर करन की आवशयकरा रहा ह इस सवतसलभ लोकगमय करन क ललए अधययनपवतक जागकरर करवधि और इसक परमाि म बोि परिाली को पहचाना गया यह भी अनभव करकया गया ह करक बोि होना समझदारी का ही दसरा नाम ह अथवा बोि का ही दसरा नाम समझदारी ह ऐस समझदारी अधययनमलक परिाली स अविारिा म िापकरर होना ऐसी अनभव मलक अविारिाओ को अलभवयकत सपरकतरर परकाशरर करन क िम म असतितव म अनभव एक अवशयभावी परकरिया क रप म सपषट हई ह इस िम म असतितव म अनभव करनतय ह यही मानव का परयोजन ह जीवन करनतय ह असतितव सथिर ह इसी आिार पर अनभव और अनभव िम अलभवयकतकत सहहर जागकरर सहज जीवन का गनतवय अथार जीवन म जागकरर पितरा ही जीवन गकरर का गरवय िली होना उसकी करनरनतररा सदा-सदा क ललय बना ही रहना दखा गया इिी आिारो पर lsquoअसतितवrsquo सतता म सपकत जड़-चरनय परककरर क रप म परकररपाददर हई सह- असतितव करवधि स वयाखयाकतयर हई यह महहमा जागकरर पित जीवन सहज अलभवयकतकत ह (प १८३) जीवन जञान सह-असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान रथयो सहज करवधिवर अधययनपवतक बोि होना दखा गया ह ऐस बोि सहज रथयो को उदघादटर करन क िम म और लोकवयापीकरि करन क

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िम म परमाणिर होर ही ह फलसवरप अनभर भी होर ह इस परकार करनतय परमाि और अनभव सहज रप म ही समपि होरा हआ दखा गया ह यही कवलय और जागकरर की महहमा ह (प १५४- १५७) जागकरर करवधि और अभयास असतितवमलक मानव कनदरिर चचनतन जञान दरतन आचरि िरवीकर रप म अधययन गमय होना दखा गया ह जीवन जञान जीवन म समपि होन वाली करियाओ का परसपररा सहज िरव करबनदओ क आिार पर उभय रकतपत करवधि सवत रभ एव समािान स दखा गया अलभवयकतकतया ह जसा मन और रकतपत म सामरसयरा का करबनद करवशलरि रलन पवतक आसवादन क रप म पहचाना गया ह यह सह-असतितव अनभव क पिार करनयम नयाय िमत सतय सहज परयोग म अनभर होन क उपरानत ही साथतक हो पारा ह इसक ललय अथार ऐस अनभकरर क ललय अधययन िम स आरभ होरा ह अधययन अविारिा कषतर का भरर-भरर वरतमान करवधि ह इस करवधि स णजरनी भी अविारिाए अधययन स समबदघ होरा गया उरन ही अविारिा क आिार पर परवकततत सहज नयाय िमातमक और सतय सहज रलन नयाय रलन समपि करवचार क आिार पर करकया गया आसवादन सहहर समपि करकया गया सभी चयन नयाय रप होना दखा गया ह इसी परकार ऊपर कह चचनतनपवतक जब चितरण रलन करवचार आसवादन और चयन करियाए समपि होर ह नयायपवतक वयविा म परमाणिर होना दखा गया अविारिाए सवाभाकरवक रप म ही असतितव सहज होन क आिार पर सह-असतितव रप होन क आिार पर अनभर होना अथार जानना-मानना और उसक रकतपत करबनद को पाना ही अनभव ह जानना-मानना-पहचानना ही अविारिा ह इसम रकतपत करबनद को पा लना ही अनभव ह इस कायत-वयवहार वयविा म वयकत कर दना परामाणिकरा ह अनभव परमाि पित बोि सहहर समपि होन वाल सकलप चचनतन चचतरि नयाय िमत सतय रपी रलन करवशलरि आसवादन सहहर करकया गया समपित अलभवयकतकतया वयविा और समगर वयविा म भागीदारी करनवाह कररा हआ ही दखन को कतमलरा ह इस करवधि स जागकररपित मानव ही असतितव म भरम बनधनो स मकत होना सपषट करकया जा चका ह जागकरर करवधि अधययन रपी सािना करवधि स सवाधिक उपयोगी सदपयोगी परयोजनरील होना दखन को कतमला ह इस करवधि स साधय सािक सािन का सामरसयरा सवय सफरत करवधि स समपि होना दखा गया ह जागकरर क ललय हर मानव सािक ह साधय जागकरर ही ह सािन जागकररगामी अधययन परिाली ह इस िम म परमपरा सािन परकररिा क रप म रन-मन-िन वयविा और समगर वयविा म भागीदारी का परमाि मानवाकाकषा क रप म होरा ही ह इस परकार स साधय-सािक-सािन का सयोग मानवीयरापित परपरा करवधि स सफल होन का सवरप सपषट ह ऐस परपरा क पवत (जस आज की सथिकरर म भरकतमर समदाय परपराए) मानवीयरापित परपरा म सिकतमर होन की कायतपरिाली मददा ह इस िम म अनसिान क अननतर णजरन भी रोिकरा सममर होर जार ह और सममकरर क अनरप करनिा उदगकतमर हो जारी ह और भी भाराओ स सवय सफरत करनिा उदगकतमर होरी ह ऐस ही करनिावान मिावी इस कायत म सलगन ह यही आज की सथिकरर म जागकररगामी अधययन जागकररमलक अलभवयकतकत सहज करवधि एक स अधिक वयकतकतयो म परमाणिर होन का आिार बन चकी ह जागकररपित परपरा म साधय सािन सािक म करनतय सगीर होना दखा गया ह दसर भारा म करनतय समािान होना पाया गया ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 15

उललणखर अनभवो क आिार पर समपित जागकरर अपन-आपस जीवन जञान असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान म ही समपित ह इसका अभयास करवधि सवतपरथम अनसिान दसरा अधययन पवतक रोि रोि पवतक अधययन य ही मल अभयास ह कयोकरक अधययन करवधि स ही रोि करवधि स ही अविारिा का सवीकर होना दखा जारा ह अनय करवधि जस उपदर करवधि म भरकतमर होन की सभावना सदा बना ही रहरा ह हर परपरा म अपन ढग की आदर परकररिा िाकतपर रहरा ही ह वह अधययवसाकतयक (अधययनगमय) होर रक उपदर या सचना मातर ह परपरा म णजस आरय क ललय आदर-करनदर ह वह रकत सगर-वयवहार सगर बोि होन की परकरिया परिाली पदघकरर ही अधययन कहलारी ह रकत का साथतक सवरप करवजञान सममर करववक और करववक सममर करवजञान होना दखा गया परयोजन करवहीन उपदर परयोग वह भी वयवहार परमाि करवहीन उपदर रब रक ही रह पारा ह जब रक रकत सगर न हो रकत का रातपयत भी इसी रथय को उदघादटर कररा ह रकतपत क ललय आकरति परिाली (भारा परिाली) ऐस रकत सहज रप म ही करवजञान क आशरर करवशलरिो को करववक स आशरर परयोजनो का परमाणिर होना सहज ह हम इस बार को समझ चक ह करक परयोजनपवतक जीन क ललय परमाणिर होन क ललय समािान समशदघ क रप म सह-असतितव दरतन क ललय रकत सगर अधययवसाकतयक करवधि का होना आवशयक ह अधययन करियाकलाप रकतसगर परयोजन परयोजन सगर मानवापकषा मानवापकषा सगर जीवनापकषा जीवनापकषा सगर सह-असतितव सह-असतितव सगर करवकास िम और करवकास करवकासिम और करवकास सगर जीवन-जीवनी िम-जागकरर िम-जागकरर एव इसकी करनररररा सह-असतितव सहज लकषय ह असतितव सहज लकषय म भी मानव ही अकरवभाय ह और दषटा ह इसललय मानव असतितव सहज सह-असतितव करवधि स परकरा-उदाततीकरि परकरा-करवकास परकरा-जागकरर सतरो क आिार पर सह-असतितव सहज अधययन सलभ हआ ह समपित असतितव ही वयविा क सवरप म वरतमान होना समीचीन ह आज भी मानव क अकररररकत सभी अविा म (पदाथत पराि जीव अविा) अपन-अपन तव सहहर वयविा म होना ददखरा ह इसी िम म मानव भी अपन मानवतव सहहर वयविा और समगर वयविा म भागीदारी सहज अपकषा को साथतक बनान क िम म ही जागर होना पाया जारा ह हम यह पार ह करक जागकरर सतर वयाखया और परमाि सवतरभ क सवरप म ही वभकरवर होरा ह इस आरय को लोकवयापीकरि करना भी सवतरभ कायतिम का एक बकरनयादी आयाम ह इसी सतयरावर lsquolsquoअनभवातमक अधयातमवादrsquorsquo एक परिकरर ह हर मानव अपन कलपनारीलरा कमतसवरतररा पवतक ही हर परिकररयो को परखना (परीकषि करना) सवीकारना या असवीकार करन क कायतकलाप को कररा ह

अनभि दशशन सस २०१२ दधदवतीय (अधयाय -३)

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सतर छद िाकय शबद क दवारा वकरया मातर का िणशन ह सारथ ही जञानानभवत क ललए उपदश पिशक इवगत भी ह बरहम सहज िणशन पारगामी वयापक और पारदशीयता क रप म ह lsquolsquoयहrsquorsquo किल भास आभास बोि तरथा अनभिगमय ह इसका बोि मानि की कषमता योगयता पातरता पर आिाररत ह परतयाितशन पिशक परापत वयजनाएा जागवत क ललए गणातमक गवत ह गणातमक वयजना स सबोि सबोि स सससकार सससकार स गणातमक सिदना (सजञानीयता पिशक सिदना वनयदधतरत) रहना गणातमक सिदना स सतय सकलप तरथा सतय सकलप स गणातमक वयजनाओ की वनरनतरता ह सथसथवत एि वकरया सकत-गरहण कषमता ही वयजनीयता ह सकत-गरहण -परवकरयाबदघ जञान परापय को पान उस सरधकषत रखन क कायशकरम म अलभवयकत ह परापत क अनभि क करम म भास-आभास एि परतीवत ही जञापक (सतयाततपत होना) ह मानि दसरो क ललए भी सकत परसाररत करता ह सकत-गरहण-वकरया ही अनमानारोपण तरथा अनमानाकर भी ह जो सकलप इचछा वििार ि आशा ह अधयाय-७ अलभवयजना म गणातमक विकास का सकत वयजना म उपयोवगता का सकत ह अभयदय पराय (अभयदय जसा) ही अलभपराय ह खजसम अभयदय का भास या आभास होना आिशयक ह

कमशदशशन सस २००४ (प ८६ ८७) परमाण म विकास का तातपयश परमाण क गठनपणश होन स ह|मानि म एक बात की िाहत बनी ह ndash यरथासथसथवत िभि उसकी वनरतरता ndash यह सवाभाविक रप म सवीकत ह| परमाणओ म अशो का घटना-बढ़ना पररणाम क सवरप म हम समझ िक ह| पररणाम का अमरतव उसकी वनरतरता की अपकषा मानि म ही कलपना भास आभास परतीवत क रप म पाया जाता ह

प २० २३ (शासतराधययन की महततव) सदशासतराधययन क वबना सतय कामना एि परितततत सतय कामना क वबना सतय-परम सतय-परम क वबना सतय-वनषठा सतय वनषठा क वबना सतय परवतषठा सतय-परवतषठा क वबना सतय परतीवत सतय-परतीवत क वबना सतयानभाि सतयानभाि क वबना सद शासतर का उदघाटन तरथा सदशासतर क उदघाटन क वबना सद शासतर का अधययन पणश और सारथशक नही ह| मानि को जीिन की परतयक सतिचरथ म शानतनत एि सथसथरता की आिशयकता ह| सदशासतर सिन मनन एि आिरण स वयकती तरथा पररिार म शानतनत तरथा सथसथरता पा जाती ह|

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(सदशासतर सिन = शासतराधययन स शरिण | मनन एि आिरण अभयास-अधययन करम म समपणश मनन परवकरया)

(प ९७ ९८)

सहअसतितविादी विधि स हर मानि मानितव सहहत वयिसथा और समगर वयिसथा म भागीदारी करन योगय इका ह इसम मखय मददा यही ह - सवय को सवय क ललय रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क सयकत रप म होन को सवीकारन की आिशयकता ह जीिन वकरया की महहमा और मानि परमपरा म इसकी आिशयकता धयान म रहना अवत आिशयक ह तभी मानि शोि क ललए ततपर होना पाया जाता ह ऐसी ततपरता जागवत सहज विधि स सिशशभ क अरथश म परिावित होना होता ह तभी सिशमानि समािान पिशक वयकत होन समझदारी पिशक हर पररिार समािावनत और सखी होन की सथसथवत सपषट हो जाती ह फलसवरप समशदघ अभय सहअसतितव परभावित होन का सौभागय उदय होता ह यही मखय वबनद ह सिशशभ का परमाण भी यही ह कयोवक समािान समशदघ पिशक ही मानि सख शानतनत का अनभि करता ह इसी करम म समािान समशदघ अभय सहअसतितव पिशक आननद अपन आप म समपणश होना पाया जाता ह इस ढग स मानि लकषय सारथशक होन की सथसथवत म जीिन लकषय (सख शावत सतोष आननद) सारथशक होता ही ह जीिन लकषय और मानि लकषय सारथशक होना ही अधययन और अधयापन की सािशभौमता ह ऐस लकषय क सारथ मानि परमपरा अपन आप म सवय को पहिानन और समपणश मानि को पहिानन का सतर और वयाखया बन जाता ह परमाण क रप म वयाखया समझ क रप म सतर होना पाया जाता ह यह वनयवत सहज विधि स समीिीन रहना पाया जाता ह वनयवत विधि का तातपयश विकासकरम विकास जागवत करम जागवत ह दसर विधि स भौवतक रासायवनक रिना शरीर और जीिन वकरयाकलाप का सयकत अलभवयततकत समपरषणा परकाशन क रप म ह

मानि लकषय - समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करन और उस आिार पर जीिन लकषय (मनसवसथता) - सख शानतनत सतोष आननद को सारथशक बनान क अरथश म मानि शशकषा ससकार की आिशयकता सदा-सदा स बनी ह ह इसकी सफलता ही मानि कल का सौभागय ह

lsquoमानि कल और रासायवनक-भौवतक वकरयाकलाप का सारथशक परमाणrsquo

शशकषा की समपणश िि सहअसतितव रपी असतितव म रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म ही ह इसम स इनक अविभाजय रप म मानि परमपरा का समपणश वकरयाकलाप वयिहार सोि वििार समझ ह समझ क अरथश म ही हर मानि का अधययन करना होता ह समझ अपन म जानना मानना पहिानना वनिाह करन क रप म परमाखणत होती ह इसी अरथश म समपणश अधययन सारथशक होना पाया जाता ह

असतितव म समपणश इका याा रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म पररलधकषत ह ही (प १०२) वनशचयता सथसथरता सिशमानि म चिराकााकषा क रप म बनी ही ह सहअसतितव रपी असतितव जञान और सवीकवत का आिार ह यह सिशमानि म सिकषण पिशक विदधदत होन िाला तथय ह सवय को जाािन स भी

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यही सपषट होता ह हम सब सथसथरता ि वनशचयता को ही सवीकार करत रह ह न वक असथसथरता अवनशचयता को सथसथरता क सहज आिार पर ही वनशचयता का होना सवभाविक ह (प ११५) इस हम मानि को अचछी तरह स समझन की आिशयकता ह और अनशीलन पिशक सरकषण सििशन विधि स सवय को वयसथसथत कर लन की आिशयकता ह मानि क वयिसथसथत होन क मल म जञान विजञान वििक का एक सगीतमय कायशकलाप सपषट रहन स ह यही कायश-कलाप भाषा कायश-वयिहार म वनयोखजत होकर परयोजनो को परवतपादधदत करता ह मानि का परयोजन समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करना ही ह (प १२२ १२३)

( अनभि मलक वििी स

यरथारथशता िािविकता सतयता का बोि रपी बशदघ की सथसथवत उस परकाशशत करन की परितततत क रप म सकलप ही गवत ह नयाय िमश सतय क साकषातकार करन क रप म चितत सथसथवत और इसका चितरण क रप म चिदधतरत हो पाना गवत ह चितत वकरयाकलाप का समपणश चितरण तलन क रप म अरथात नयाय िमश ि सतय रप म सपषट होना ितततत सहज सथसथवत ह ितततत म समपनन हय तलन का विशलषण विधि म विशलततषत होना ि समपरततषत होना ितततत सहज गवत ह विशलषण क सपषट अरथिा सार रप म मलय सवीकत होता ह इस आसवादन करना ही मन की सथसथवत ह इसकी सारथशकता क ललय ियन वकरया को समपादधदत करन क रप म गवतत होना हर मानि म सिधकषत ह इस ढग स मानि भी सभी परकार स सथसथवत-गवत म होना सपषट होता ह इस परकार मानि समझदारी स समपनन होन क उपरानत परमाखणत होना सवभाविक होता ह इसका मतलब यही हआ हम जब तक परमाखणत नही होत तब तक परमाखणत होन क ललए जञानाजशन वििकाजशन विजञानाजशन कर लना ही शशकषा और शशकषण का तातपयश ह इसक ललए सह असतितविादी शशकषा करम समीिीन ह अतएि समझदार मानि होन क ललए धयान दन की आिशयकता ह

सह-असतितविादी वििार जञान वििक विजञान को समझना ही समझदारी ह

ldquoअधययन रपी उपासनाrdquo (अभयास) - कमशदशशन सस २००४ प ४९ ५०

मानि जीिन म उपासना एक महतवपणश भाग ह| उपासना ही मल परिततततयो का पररमाजशन एि पररितशन परवकरया ह| यही ससकार एि सवभाि पररितशन भी ह| ( उपासना = उपायो सहहत लकषय पती क ललए कीया गया वकरयाकलाप) उपायपिशक सहिास पाना ही उपासना की अििारणा ह खजसक ललए पररशरम (पररमाजशन शरम) एि अभयास ह| अभयास एि पररशरम स ही सथल सकषम कारण की सथसथवतितता सपषट ह| खजसस ततसबिी पदारथश वनयवत-

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करम शततकत महहमा विभती एि वनयम सबिी अनसिान (अनगमन पिशक अििारणा) शोि परधसदध ह| अनसिान भौवतक बौदधदधक तरथा आधयातमतमक भद स ह| अनसनधान परवकरया मनन चिितन सकलप एि अनभती क रप म परतयकष ह|

सथल सकषम कारण (दषटा) का तातपयश दखन समझन परयोग करन वयिहार करन एि अनभि करन योगय कषमता क सपनन होन स ह |

परिततततयो का पररमाजशन ही मानि जीिन का कायशकरम ह| मानि म पणशता एि पररमाजशनशीलता की अपकषा परतयक सथसथती म पा जाती ह| पणशता ही पादधडतय ह| पादधडतय स अधिक जञान एि वनपणता कशलता स अधिक वयिहार एि उतपादन नही ह| पररमाजशनशीलता उतपादन ि वयिहार म पा जाती ह| पादधडतय परबदधता परबदधता ही शशकषा एि वयिसथा ह| परबदधता स पररपणश होत तक उपासना अतयत उपयोगी ह|

प ५६ स ७२ (इनम स कछ ही िाकयो को ललया गया ह| समपणश क ललए पिक दख) उपासना स सािशभौततमक मलयो का अिगाहन करना ही परिान उपादयता ह| समि उपासनाओ क मल म लकषय समय ह िह अखड समाज सािशभौम वयिसथा ह| िह किल सिश

मगल ही ह| कयोकी सिश मगल की कामना क वबना सवय का मगल धसदध नही ह| अनय कामय कामनाए किल मगलमयता की भास परदायी ह न की अनभिदायी| इसललए सिशमगल

कामनारपी कायशकरम तःरथा उसकी अनसरण योगय कषमता पयत मानि परयास करन क ललए बाधय ह| सही क परती भरततमत रहना ही मत सपरदाय एि िगश का कारण ह|

मत सापरदाततयक िगीयता म आचरथिक िगीयता एि आचरथिक िगीयता म मत-सापरदाततयकता समा ह ह|

इसका वनराकरण सपषटतया सािशभौततमक रप म पा जान िाली मानिीयतापणश पदधवत स ldquoवनयम-तरयrdquo (बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक) क आिारपिशक ही आचरथिक एि सापरदाततयक िगश-भािनाओ स मकत होन की समभािना एि मकती ह| इसी म समि िगश-भािना विलीन हो जाती ह| इसीललए ndash

उपासना की उभय पदधवत का अभीषट समझदारी जागवत पिशक सारथशक होता ह जो जागरण ह| मानि म शततकतया वकरया इचछा एि जञान शततकत ही ह जो उनकी अहशताए ह| अहशताए परतयक इका

की जागवतशीलता जागवत पर आिाररत ह| शबद सपशश रप रस गिनतियो दवारा शततकतयो का अपवयय न होना सारथ ही सदवयाय होना ही

वकरया शततकत की जागवत ह| सदवयय एि अपवयय का वनिारण मानिीयता क सीमा म ldquoवनयम-तरयrdquo क रप म ह |

अतकरण मल परितताा अरथात आशा वििार इचछा ि सकलप का अपवयय न होना ही सदवयय ह| यही इचछा शततकत का जागरण ह|

समयक-बोि एि अनभती पणशता ही जञान परकटन कषमता ह| यही जञानशततकत का जागरण अरथिा पणश जागरण ह| यह ldquoजागवत-तरयrdquo मानिीयता एि अवतमानिीयता म परतयकष ह| यही मानि जीिन की िरमोतकषश

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उपलसतबध ह| सशकत उपासना क उपादयता यही ह यही समगर मानि की कामना ह| यही सिशमगल ह| इसीललए

जीिन-जागवत का परतयकष सवरप ही वििक पणश विजञान का परयोग ह यही सतकशता अखणड सामाखजकता परबदघता वनविि षमता सह-असतितव शशकषा विधि वयिसथा सभयता ससकवत बौशदघक समािान भौवतक समशदघ और जीिन जागवत की वनरनतरता ह

पणश जागवत पयशनत परतयक मानि इका परयास एि उपासना क ललय बाधय ह इसी क फलसवरप मल परिततततयो का पररमाजशन होता ह खजसक कारण विशशषट और शशषट मानधसकता एि वििार चिनतन-बोि कषमता अनभिपणशता परतयकष होती ह यही शरषठ उपासना की उपलसतबधयाा ह

इसललय समान क सारथ वयिहार करन क ललय बाधय हआ ह यही सामाखजकता की बाधयता ह यही मानि जीिन की गौरि और गररमा ह यही गररमा समान क सारथ वयिहार अधिक जागवत क ललय अभयास करन क ललय पररणा ह यही िािविक उपासना ह

वििक अरथात मानि लकषय और िरागय अरथात समशदघ ही उपासना का परतयकष फल ह खजसम सामाखजकता सवाभाविक रप स समाहहत रहती ह

िरागय का पराितशन ही असगरह (समशदघ) उदारता एि दया ह भौवतक समशदघ म उदारता एि दया क मौललक मलयो का अनरजन ही सामाखजकता का पराण ततव ह यही सामाखजक सगीत ह इसी क ललय मानि तततषत ह वििक ही बौशदघक समािान एि सामाखजक मलयो को वनिाह पिशक परकट करता ह इसललय

वििक ि िरागय ही परोकष जञान (सदवयिहाररक जञान) का परिान लकषण ह अनभि ही परोकष जञान की अनतनतम सथसथवत ह इसक पिश अनमान अधिकार ही परधसदघ ह ििसथसथवत ििगत सथसथवत सतय म ही अनभि ह

परोकष जञान क वबना वनतयावनतय यकतायकत नयायानयाय िमािमश सतयासतयइषटावनषट दषटादषट तरथा परोकष जञानाधिकार धसदघ नही होता ह

वनतयावनतय जञानाधिकार क वबना मनषय म सविमश क परवत वनषठा नही पा जाती ह मानि िमश ही सख सख ही नयायपणश आिरण नयायपणश आिरण ही मानिीयतापणश सीमा एि lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का पालन ह यही मनषय का सविमश ह मानि सख िमी ह

मयादा विहीन इका नही ह जस जीिो म सवभाि मयादा िनसपवतयो म गण मयादा एि पदारथो म रप मयादा-भग नही होती ह यही उनकी गररमा ह इसी परकार मानि म सख ही िमश ह िमश ही मयादा ह यही उनकी गररमा एि विशवास ह मयादा का परतयकष रप ही विशवास ह

lsquolsquoविशवासविहीन समबनध एि समपकश म सख नही हrsquorsquo समबनध एि समपकश विहीन मनषय नही ह यही बाधयता सविमश क ललय ह इसक पालन म जो अकषमता अयोगयता एि अपातरता ह - िही दख कलश समसया और अजागवत ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 21

सविमश म समपननता एि पालन करन योगय कषमता योगयता एि पातरता स पररपणश होत तक जञानाजशन करन क अरथश म अधययन रपी उपासना का अभाि नही ह

मानि क सविमश की सीमा म ही मत समपरदाय िगश वतरोहहत हो जात ह यही समरथश उपासना की परतयकष गररमा ह lsquolsquoयही मागललक हrsquorsquo साधय सािक सािन इन तीनो का उपासना म समाहहत रहना अवनिायश ह इनकी एक सतरता ही उपासना की सफलता ह अनयरथा असफलता ह परतयक सथसथवत म परापत शततकत ि सािनो का सदपयोग करना ही उसकी अवगरम जागवत ह यही उपासना ह

इनतिय कायशकलाप तरथा इनतियो का कायशकषतर ही अपरोकष जञान की सीमा ह इस वयापार म ितविि षय सीमानतिती धसशदघयाा ह इसक अवतररकत और उपलसतबधयाा इसम नही ह

विषयो की सीमा म मनषय सीततमत नही ह कयोवक उसम िार आयाम परधसदघ ह

मनषय ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत समपनन होन क ललय बाधय ह यही आिशयकता अिसर सभािना एि वयिसथा ह

सयमतापिशक ही मनषय क दवारा परतयक पररपरकषय म वकय गय वकरयाकलाप म स गररमापणश िभि परकट होता ह जस-

सतयबोि सहहत सतय बोलन का अभयास करन स भय ि अविशवास की वनितततत हषश तरथा उतसाह का उदय होता ह

विशव क परवत मलय भाि की परवतषठा स इषट और सािक क मधय विषमता का अभाि होता ह

शबद क अरथश अरथात मनतरारथश का तदरपतापिशक समरण करन क अभयास स उसका अरथश एि सवभाि गमय होता ह सभी सारथशक शबद मनतर ह

अधिक जागत म समपशण स अलभमान ि अहकार का उनमलन तरथा विदया ि सरलता का उदय होता ह ( अधिक जागत = समझान िाला परमाखणत वयततकत गर)

शरीर सिदना सयत रहन स मन की पवितरता मन की पवितरता स मनोबल का लाभ होता ह

सव-शरीर मोह नषट होन स ससार क परवत मोह दर होता ह सिशशभरपी आपत कामना पणश बशदघ स ही विशव क परवत उदारता दया कपा करणा का परसिन तरथा विशव की आिारभत सतता म जञान एि अनभि होता ह

जञान विजञान वििक रपी सवतवहीनता ही असयमता मनोदौबशलय मल परविततततयो की अपररषकवत राग मोह लोभ अवििक अहकार अलभमान दहातमिादी परितततत दरािार सघषश असह-असतितव सशकता दवष तरथा तपोहीनता ह

सयमता क वबना बौशदघक मल परिततततयो की पररषकवत बशदघबल सामाखजक मलयो की अनभवत ितनय वकरया का दशशन समािान और सयमता धसदघ नही होती ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 22

उपासना क ललय िातािरण का महतव अपररहायश ह खजसम स मनषय कत िातािरण ही परिान ह जो शशकषा ि वयिसथा क रप म ही ह

मानिीयता की सीमा म वयिहार lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का आिरण ही वयततकततव ह ऐस वयततकततव क वनमाण म सवकरय योगदान ही कततशवय ह यही परषारथश ह यही परबदघता ह

आशा भद स उपासना उपासना भद स अनभि अनभि भद स अनमान अनमान भद स उपासना भद ह यही उपासना म िविधयता का कारण ह यह िविधयता सािशभौम आिरण की सीमा म विलय होन क ललय बाधय ह

मानि क ललय सहज समरथश उपासना एक अवनिायश कायशकरम ह जो अमानिीयता स मानिीयता मानिीयता स अवतमानिीयता की परवतषठा सथाततपत करती ह

सह-असतितव म अनकषण-विकषण-ितततत स सहजाितततत होती ह

कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ही अनकषण-विकषण ितततत ह

अनकषण का तातपयश परतयक कषण म लगातार सह-असतितव चिनतन वििार करम म परमाखणकता का सहज परमाण परित हो जाता ह यही सहजाितततत ह

सतता म समपकत परकवत की समपकतता का जञान ही (पणश-दशशन) कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ह यही भरततमत भाि ि अभाि का वतरोभाि ह यही सहज परवतषठा ि अिसथा ह

सतता म समपकत परकवत का जञान न होन स और अनभिमलक जञान न होन स भय और परलोभनिश समि भरममलक कायश-वयिहार सोि-वििार को बनाय रखता ह यही समपणश कलश का कारण ह

काल वकरया की अिधि ह इसी अिधि म आरोततपत वििार ि इचछा ही असहज एि वनरारोततपत वििार ि इचछा ही सहज ह

मानि इका म ही जागवत क करम म भी वनरारोपण कषमता पा जाती ह भरमिश आरोपण होता ह

जो जसा ह उसस अधिक कम अरथिा नासमझना ही आरोपण ह यही अजञान ह यही अकषमता ह यही भरम ह

सतता म समपकत जड़-ितनयातमक परकवत की सथसथवत-शीलता ि सतता सहज पणशता क समबनध म ही आरोप या वनरारोण वकरया समपनन होना पाया जाता ह

परतयक इका म रप गण सवभाि एि िमश समाहहत ह यही उसकी कायशितता ह इसी की गणना पररमाण परयोजन जञान ही परकवत क परवत वनभरमतापणश कषमता का दयोतक ह यही परमाण ह यही सहजता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 23

समपणश वकरयाय मलत रप और शबद भद म दषटवय ह

परकता क वबना इका म अवगरमता नही ह

पणशता पयशनत इका परकता उपयोवगता क ललए परितत ह

परकता ही इका म हरास ि विकास क लकषणो को परकट करती ह यही परिान उपादयता भी ह

इका म परकट होन िाल शबदादधद गण ही सापकष शततकतयाा ह गणविहीन इका नही ह इसललय

मनषय म सहज कामना का अभाि नही ह सहजता ही िमश ह यही सख शानतनत सतोष एि आननद ह यही िारणा को सपषट करता ह जो परतयकष ह

परतयक कमश-फल ही मनषय क सख का पोषक ि शोषक धसदघ हआ ह

सतय और सतयता क अनभि-करम म वयििान नही ह कयोवक अनभिकरम-वयिसथा सघन ह जागवत की कदधड़याा सघन ह इसललय-

सहजता आरोप स मकत ह आरोप ही नयनावतरक मलयाकन ह सवय की नयनावतरक मलयाकन वकरया ही असहजता ह

सवय का मलयाकन lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म होता ह

lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म न हो ऐसा मनषय इस पथवी पर नही ह

िमश का वियोग नही ह कयोवक यह िारणा ह इसका परतयकष रप ही मानिीयता एि अवतमानिीयता पणश आिरण ह जो सहजता का परिान लकषण ह इसललय -

अमानिीयता पणश आिरण ही असहज ह इसललय

परकवत अपन म समपणशता क सारथ सीततमत ह यही अिधि ह इसललय पणश म समायी ह यही पणश म समपणशता सहज सह-असतितव ह यही समपणशता का वनतय ितशमान और जञानािसथा क मानि म पणशता का परसि ह यही जागवत क ललय बाधयता ह

मनषय क बौशदघक कषतर म पायी जान िाली अनािशयक कलपनाओ का वनराकरण ही दशशन-कषमता म गणातमक पररमाजशन ह यही गणातमक ससकार-पररितशन शशकषा एि जीिन क कायशकरम का योगफल ह

दशशन-कषमता का उतकषश ही अनकषण विकषण ह यही मधयसथ वकरया की कषमता ह मधयसथ वकरया ही दषटा ह

मधयसथ वकरया का िरमोतकषश ही सम ि विषम वकरया का पणश वनयतरण ह यही कषमता कषण-कषण मधयसथ वयििान स मततकत ह

ससकार पिशक ही बौशदघक वयिसथा-परवकरया -कषमता क आनषवगक ह मनषय सहज ऐषणा एि विषयो की सीमा म परितततत ि वनितततत पिशक वयि होना पाया जाता ह जो परतयकष ह

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आतमा (मधयसथ वकरया) क आनषवगक बौशदघक परवकरया ि वयिसथा म सतय-सकलप एि सतय-कलपनापणश मानधसकता की सथसथवत पा जाती ह जो परधसदघ कमश उपासना जञान पणश ह यही कषमता दि ि दधदवय मानिीयता को परकट करती ह यही पणश जागवत ह

ऐषणासकत बौशदघक वयिसथा म मानिीय तरथा दि मानिीय सवभाि परकट होता ह उसी क अनरप म मानधसक िातािरण की सथसथवतशीलता ह ऐसी कषमता ही सामाखजक ितना एि सतकशता स पररपणश पायी जाती ह

विषयासकत बौशदघक वयिसथा ि परवकरया म अमानिीयतापणश आिरण समपनन होता ह जो पाशविकता तरथा दानिीयता क रप म दषटवय ह इनम उसी क योगय मानधसकता पा जाती ह यही लपत-सपत कलपना का कारण ह यही अजागवत तरथा अपणश सतकशता का दयोतक ह

शरय (जागवत) खजजञास होन पर ही लपत-सपत कलपनाय पररमाखजि त होती ह फलत दानिी ि पाशिी परिततततयो स उदासीनता सथसथर होती ह सारथ ही वििकोदय होता ह

शरय खजजञासा का उदय सव-ससकार विधि-विहहत अधययन तरथा उसक अनकल िातािरण म होता ह

विधि-विहहत-अधययन वनपणता कशलता ि पादधडतय ही ह

अधययन एि िातािरण ही ससकार पररितशन क ललय समरथश वयिसथा ह खजसका गणातमक पररितशन ही आतमबोि क ललय खजजञासा ह

आतमबोि ही सतय खजजञासा का परिान लकषण ह इसललय- अििारणा ही अनगमन तरथा अनशीलन क ललय परितततत ह जो शशषटता क रप म परतयकष होती ह परगवत क ललय अििारणा अवनिायश ह जागवत क ललय अििारणा एि हरास क ललय आसततकत परधसदघ ह यही करम स वनितततत ि परितततत ह अििारणा ही सदधदविक ह सदधदविक सवय म सतयता की विििना ह जो सपषट ह मलत यही शभ एि मागलय ह अनभि की अििारणा सतय बोि क रप म अििारणा (समयक-बोि) ही सतय-सकलप ह यही परािवति त होकर शभकमश उपासना तरथा आिरण क रप म परतयकष ह इसी का पररिवति त मलय ही िीरता िीरता उदारता दया कपा और करणा क रप म परतयकष ह सतय म ही समयक-बोि होता ह असतय ही कलपना एि भास होता ह हीनता दीनता और कररता स यकत कमश अशभ होता ह सव-मलय ही परितततत और वनितततत का िशश ह इसललय असतय अलभमान तरथा दपश स मकत सतय सरलता सहजता तरथा सौजनयता स यकत कमश ि उपासना शरय कारक ह

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सतय कामना की वनरनतरता स लकषय की अििारणा होती ह जञान म ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत परतयकष ह जञान वििक सममत विजञान ही ह जो पणश ह सतय और सतयता म दढ़ता ही शरयमय जीिन ह सतयानभवत ही सबका अभीषट ह शरीर स समपनन होन िाल समि वकरयाओ का सिालन मन ही मिस दवारा करता ह मिस स सभी नादधड़याा वनयदधतरत ह शबद का मल रप मन ही ह मिस पर मन आसवादन एि सवागत भािपणश तरगो का परसारण सिालन वनयतरण करता ह उसक मल म शबद ही ह जागवत की ओर गवत हत वनयतरणातमक शबद ही मतर ह लकषय-पराततपत-योगय-करम परवकरया ही वनयतरण ह शबद म जो भाि (मलय) ह िही उसका अरथश ह सारथशक शबदो का अरथश ही जागवत की ओर गवत ह कयोवक शबद का अरथश असतितव म िि ह भाि म जो उपयोगपणश अवनिायशता ह िही उसका महतव ह उपयोग पणश अवनिायशता म जो वनचशचत दधदशा ह िही उसकी दढ़ता ह यही समयक सकलप ह समयक सकलप म जो पणशता ह िही अनभि ह जो करम स मन ितततत चितत बशदघ और आतमा म पा जान िाली सससकत मौललक वकरयाय ह भाि का तातपयश होन स ह शततकत-तरय-जागरण (इचछा-शततकत वकरया-शततकत तरथा जञान शततकत जागरण) क वबना तयाग (भरममततकत) और परम परमाखणत नही होता

मनन परवकरया म सव-मलयाकन

सव-मलयाकन मनन धयान ldquoअपराि क अभाि म दयापणश आशा का पराितशन अनयाय क अभाि म नयायपणश वििार का पराितशन आसकती क अभाि म समािान पणश इचछा का पराितशन तरथा अजञान क अभाि म जञानपणश सकलप का पराितशन होता ह| अत अपरािहीन वयिहार क ललए वयिसथा का परभाि अनयायहीन वििार क ललए अखणड समाज का परभाि तरथा अजञान रहहत बदधदध क ललए अतवनि यामन अरथिा धयान आिशयक ह खजसस ही परतयाितशन वकरया सफल ह| धयान का अरथश समझन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना और समझन-अनभि करन क

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उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 27

मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 28

(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 29

सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 30

प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 31

अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 32

३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

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(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 34

उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 5

नही ह और बौशदघक समािान क वबना भौवतक समशदघ परमाखणत नही होती कयोवक अजञात को जञात करन क ललए एि अपरापत को परापत करन क ललए अनिरत परयास हआ ह वििक ि विजञान का सतलनाधिकार सहज परमाण ही भौवतक समशदघ एि बौशदघक समािान ह कमाभयास क वबना उतपादन एि समशदघ तरथा वयिहाराभयास क वबना समािान नही ह कमाभयास अनवषण शशकषण परशशकषण ह खजसकी िररतारथशता उतपादन ह फलत समशदघ ह वयिहाराभयास अनसिान अनसरण आिरण ससकवत सभयता विधि एि वयिसथा ह खजसकी िररतारथशता सामाखजकता अखडता अभयता समािान सतलन एि सवगश ह मानि का अशष कायशकरम ििाररक वयिहाररक एि उतपादन ह ििाररक पररपणशता अरथिा समािान क ललए चिनतनाभयास आिशयक ह ही चिनतनाभयास पिशक ही यरथारथता िािविकता सतयता को वनरीकषण-परीकषण कर परमाखणत कर पाना सहज ह यही समािान रपी वनषकषो को सफररत करता रहता ह खजसस ही सिशशभ ह जो पाािो सथसथवतयो म lsquolsquoनीवततरयrsquorsquo स सबदघ ह lsquolsquoअनभि कायशकरम नही ह अततपत अनभि म स क ललए ही कायशकरम हrsquorsquo (पषठ-८३ ८६) अपकषाकत सतिचरथितता ही अनमान का उदय ह| यही अधययन हत की गयी उतसकता ह| उदयविहीन सतिचरथ म अधययन एि अधययन धसदध नही ह| उदय ही कौतहल ह अरथात जानन मानन पहिानन उपयोवगता उपादयता एि अवनिायशतापिशक अनभि करन की वकरया ही उतकठा ह| यही मानि जीिन म वकरयाकलाप का आिार ह| मानि जीिन िार आयाम दश सोपनीय पररिार सभा वयिसथा एि मलयो क वनिाह क रप म दषटवय ह जो ससकवत सभयता विधि वयिसथा का आघात कायशकरम ह| [अभयास-करम म मनन पिान lsquoदशrsquo सबिी िि जीन की जगह शोि] सिशशभ उदय का भास-आभास सिदनशीलता की ही कषमता ह और परतीवत ि अनभती सजञानीयता की महहमा ह| सिशपररथम सख समािान का भास-आभास सिदनशीलता पिशक होता ह|

अनभिातमक आधयातमिाद ndash सस २००९

प १६ १७ १८

जानन का फलन मानन क रप म आता ही ह| मानन का सवरप ह - ldquoयह सतय ह इस सवीकारना ह |rdquo और सतय सहज परयोजन सवय स या सबस जडी ह सतिचरथ को और गवत को सवीकारना ही मानना ह| इसस सपषट होता ह हर सतिचरथ म िि सहज िािविकताओ को जननना सहज ह| इसी करम म उसकी गवत और परयोजन क सारथ ldquoसह-असतितवrdquo म स क ललए आिशयकताओ को सवीकारना ही मानना ह|

मानि ही जानन-मानन क आिार पर पहिानन-वनिाह करन म परयोजनशील होता ह| मानन का आिार परयोजन होना ह| जानन का आिार कयो और कस क उततर क रप म ह | सारथ ही िि कसा ह यह भी जानन म आता ह| िि कसा ह यह जानन का सवरप ह| इसी स कयो और कस का उततर सवय सफतश वििी

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 6

स वनगशततमत होता ह| मानन का तातपयश परयोजन पहिानन क अरथश म सारथशक होता ह| जस असतितव सहज वनतय सतिचरथ को जानना सहअसतितव परयोजन सतर को पहिानना सवाभाविक होना पाया गया|

प ६६ ६७

जञान का मल सवरप जीिन जञान और असतितव सहज सहअसतितव रपी वयिसथा का जञान ह| जीिन जञान मानि सवय अपन जीिन सहज वकरयाकलापो क आिार पर विशवास करना बन पाता ह| यह मलत अनभि सहज वकरया ह| इसको जानना-मानना एक आिशयकता ह ही | जीिन को जानन-मानन क करम म शरीर रिना और शरीर सीमाओ क सनदभश म भल परकार स पारगत होन की आिशयकता ह| जीिन और शरीर क सयकत रप म ही जञानािसथा परकाशमान होन क आिार पर ही मानि सहज वििी स ही

१) अपना ही कलपनाशीलता कमशसवततरता शरीर स लभनन तरग क रप म अनभि करना बनता ह

२) आशा वििार इचछाए जीिन सहज वकरया होन क रप म सवय म सवय स सवय क ललए परीकषण वनरीकषण कर सकता ह

३) आसवादन तलन चिितन बोि करम म अधययन वििी म जो अनभवतयाा परतीत होती ह या भास-आभास होता ह इसका परीकषण सवय ही हर मानि हर काल म हर दश म वकया जाना समीिीन ह|

इन वकरयाकलापो क वनररकषण स पता लगता ह वक जीित मानि म आसवादन का अनभि भास नयाय िमश सतयरपी वनतय िि का भास होना हर वयततकत अपन म वनसिय कर सकता ह| चिितन म ही नयाय िमश सतय का आभास होना और परतीत होना परमाखणत होता ह|

साकषातकार अपन म परयोजनो का वनशचयन सहहत तपती क ललए सरोत रप म अधययन वििी स पहिान लता ह| फलसवरप बोि पिशक अनभि म सारथशकता सहहत नयाय िमश सतय सहज सवीकवत ही ससकार और अनभि बोि रप म जीिन म अविभाजय वकरया रपी बदधी म सथाततपत हो जाता ह| यही अधययन पिशक होन िाली अदभत उपलबधी ह| नयाय सहज साकषातकार सहअसतितव सहज सबिो का साकषातकार सहहत मलयो का साकषातकार होना पाया जाता ह ( यह सिारना ह यहाा मलयो स तातपयश मानि मलय अरथिा मानिीय सवभाि स ह कयोकी मलयो का साकषातकार होता नही िह बहत ह ) | यही मखय वबिद ह | सह-असतितव सहज सबिो को पहिानन म भरम रह जाता ह यही बिन का परमाण ह| यही जीिन को शरीर समझन (मानन) की घटना ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 7

मानि सितनािादी मनोविजञान ndash सस १९९८

प १९३

समपणश समझदारी शरवत समवत पिशक मानि स मानि को पीढ़ी स पीढ़ी को सपरततषत होता ह खजसम

स बोि होन पयशनत शरवत ह बोि म अपन म जानन मानन का सवरप ह इसका तततपत वबिद अनभि ह इस परमाखणत करन क करम म शरवत समवतपिशक बोि कराया जाना पाया जाता ह परतयक मनषय की सपणशता अपन म भाषा भाि भवगमा मदरा अगहार सहहत ही सारथशकता को पहिाना जाता ह शरवत समवत पिशक मलयाकन करत ह

प १८३ १८४ - भाषा शरवत (अभयास-अधययन करम म जो भाषा परयोग होना ह)

शरवत सह-असतितव सहज अलभवयततकत ह सह-असतितव सहज असतितव वनतय ितशमान ह ितशमान म ही मानि न अपनी कमश सवततरता कलपनाशीलता का परयोग वकया ह कर रहा ह करता रहगा मानि म ही शरवत समवत सहज परकाशन परमाखणत होना पाया जाता ह खजसस भास- आभास परतीवत पिशक अनभि होना पाया जाता ह इसी कारणिश उस उसक सहज रप म समझना कायशकरम ह इसका परमाण यह ह वक मनषय ही असतितव म धववन शबद नाद भाषा ि िि सहज परभदो को जानता मानता पहिानता ह अरथिा इसक योगय ह जस-पदारथश अिसथा म पा जान िाली वयिसथा का मल रप परमाण म भी धववन और िि को पहिानता ह

फलत अणओ क रप म होना सवाभाविक ह पराणकोशाओ म धववन ि कायश सकतो को परसपर कोशाए पहिानत ह फलसवरप रिनाए सपनन होती ह उसी भावत जीिो म भी शबद धववन और नाद उनक परसपर पहिान म होना पाया जाता ह मनषय म शबद धववन नाद ि भाषा य सहज ही परसपर ििओ को इवगत करन क अरथश म जानन मानन पहिानन को ततमलता ह भाषा का तातपयश होता ह खजसस िि सहज सतय भास हो जाय मानि भाषा म सतय भास आभास परतीवत सहहत अनभि होन क अरथश म ही परयोग वकया जाता ह यही जागवत सहज सपरषणा ह इसी करम म भाषा क परवत विशवास हो पाता ह मनषयतर परकवत म भी अपन अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा को परमाखणत करन क करम म समपणश धववन नाद ि शबद को दखा जाता ह जागत मनषय परसपर भाषा दवारा इवगत होना िाहता ह या इवगत कराना िाहता ह

भाषा धववन नाद ि शबद क मल म दखन पर पता िलता ह वक इका म सवय सफतश अलभवयततकत ह मल इका का तातपयश परमाण ही ह परमाण ही विकास पिशक जीिन जीिन जागवत पदो म और परमाण ही विकास करम म अण कोशा रिना ि विरिना क करम म असतितव म होना पाया जाता ह परमाण ही मलत वयिसथा का मल ह भौवतक वकरयाकलाप रासायवनक वकरयाकलाप जीिन वकरयाकलाप क मल म परमाण ही वयिसथा का िारक-िाहक होना पाया जाता ह मनषयतर तीनो अिसथाए अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा क रप म इस िरती म विदयमान ह मनषय भी मानितव सहहत वयिसथा क रप म परमाखणत होन क ललए परयतनशील ह इसकी सभािना समीिीन ह

समपणश शरवत परतयक एक अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा को बनाए रखन क ललए ही उदगमशील ह शररवत को धववन शबद नाद ि भाषा क रप म मनषय पहिानता ह इसकी सारथशकता को पहिानना शष रहा इसी करम म गवत लय तरग को भी पहिानता ह यह विविि परकार स शररवत को ही िि क रप म समझन का परयास सारथशक

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होता ह शरवत का तातपयश सथसथवत सतय िि सथसथवत सतय ििगत सतय को इवगत करन बोि करन क ललए ही सनन योगय ि सनान योगय सभाषण ह पणशता को इवगत करन करान क अरथश म परयोग वकया गया भाषा एि पररभाषा ह सनन सनान क ललए सवय सफतश मानि अपकषा ह सनान योगय भी सवय सफतश सपरषणा ह सपरषणा का तातपयश पणशता क अरथश म परित होन की परवकरया ह सनन क करम म भी पणशता को पहिानन सहज अपकषाए बनी ही रहती ह पणशता अपन म वनरतर ह इसका सामानय सवरप असतितव म पणशता परमपरा क रप म परकाशशत ह असतितव म पणशता गठन पणशता वकरया पणशता आिरण पणशता ही ह रासायवनक भौवतक इका या अपन-अपन िातािरण सहहत समपणश ह ही पदारथािसथा पराणािसथा जीिािसथा की परपराए उन उन की lsquoतवrsquo सहहत वयिसथा क रप म सदधतरत वयाखयाततयत ह यह परपराए पणशता सपणशता सहज ही वनरतरता को परापत वकए ह िह lsquoतवrsquo सहहत वयिसथा समगर वयिसथा म भागीदारी ह यही िभि-सतर ह

मानि ऐसी शरवत परमपरा को िाहता ही ह वक इसस यरथारथशता िािविकता और सतयता सहज ही समझ म आय जीिन सहज खजजञासा कयो ह कसा ह कबस ह कसा बना ह इस परकार क परशन अपन आप उदय होत ही ह यह कलपनाशीलता की गररमा ह इसका उततर पाना समािान पाना परमाण पाना परमाखणत होना यह ही शरवत समचचय की सारथशकता म होना पाया गया

समपणश िाङमय अरथात शरवत (सनन योगय सनान योगय भाषा पररभाषा जो सोि वििार वनशचय और समझदारी परितशन भाषाकरण सतरीकरण िाकय परबिन सिाद क रप म परिललत रहता ही ह) यरथारथशता का सवरप जसा खजसकी मौललकता ह उस इवगत करन वनदशशत करन और चिखनहत करन क रप म शररवत का परयोजन सारथशक होता हआ नजर आता ह खजसका जो अरथश का सवरप परतयक एक म रप गण सवभाि क रप म वयाखयाततयत होना पाया जाता ह इन िारो आयामो की अविभाजयता म परतयक एक वयिसथा क रप म मलयावकत होता ह और परतयक एक वकरया क रप म ही ततमलता ह

जबवक मानि भाषा कारण गण गखणत क अविभाजय रप म ह खजसस ही परम सतय रपी सह-असतितव भासा आभास पिशक परतीवत सहज बोि सारथशक होना पाया गया फलत अनभि होना धसदघ हआ प ४४ भततकत सहज अलभवयततकत जागवत गामी विधि स अरथिा जागवत करम विधि स भास आभास परतीवतयाा और जागवत-पणश विधि स परतीवत अनभवत ि उसकी वनरतरता दोनो सथसथवतयो म तनमयता तारतमयता और उपादयता सपषटतया समझ म आता ह प ८६ ndash मन म होन िाली सवागत वकरया ndash अभयास-अधययन करम म

सवागत - (1) अििारणा अनभि क ललए सवीकत वकया (2) वनयम नयाय समािान सतय सहज सवीकवतयो असवीकवतयो क ललए तयाररया (वििक ि विजञान सममत मानधसक ििाररक और ऐचिक तयाररया)

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इदधदरय सदधननकषश म भी सवागत भाि का भास आभास होना पाया जाता ह खजसकी वनरतरता की अपकषा ही रह पाती ह यह वयिहार म परमाखणत नही हो पाता अतएि सवागत का आिार समपणश मलय सवागत होना पाया जाता ह ििओ का िारक िाहकता म भी जीिन रहता ही ह

समपणश अििारणाए मौललकता क रप म होना पा जाती ह मौललकताए िमश और सवभाि क ही सतर ह समपणश असतितव म परतयक एक अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा ह समगर वयिसथा म भागीदार ह कयोवक असतितव म समपणश इकाइया (अरथिा समि इका या) सह-असतितव सतर म सदधतरत ह प २१८ इवगत होना ही वयजना ह वयजना ही करम स भास आभास परतीवत अििारणा एि अनभवत ह प २१

ियन-वकरया अरथात गरहण करन का वकरयाकलाप पराितशन विधि स और आसवादन वकरया परतयाितशन विधि स सवय म सपनन होती ह विशलषण वकरया पराितशन विधि स और तलन वकरया (ततपरय हहत लाभ नयाय िमश सतय दवषट) परतयाितशन विधि स सपनन होती ह चितरण वकरया पराितशन विधि स इचछा पटल म चिदधतरत हो पाती ह पराितशन म रिनाओ वकरयाओ क रप म परमाखणत हो पाता ह और चिनतन-वकरया साकषातकार विधि स सारथशक होती ह साकषातकार की समपणश िि जीिन मलय मानि मलय सथाततपत मलय शशषट मलय और िि-मलयो क रप म दरषटवय ह मलयो का सतलन तलन होकर तततपत विधि म सलगन रहता ह इस परकार साकषातकार की तततपत का सरोत मलय ह और उसकी (मलयो की) वनरतरता का भािी होना पाया जाता ह

जीिन म सपनन होन िाली अििारणा बोि-बशदघ सहज परतयाितशन वकरया ह सभी अििारणाए अधययन और अनसिान विधि स सथाततपत हो पाती ह अनभि मलक विधि अनभिगामी पदघतततत स बोि होना पाया जाता ह अनभि सतय बोि करान म परमाखणत होता ह और सकलप पणशता क अरथश म कलपनाओ को गवत दन स ह कलपनाए - आशा वििार इचछा क सयकत रप म परिाहहत रहती ह जीिन शततकत अकषय होन क कारण परतयक वयततकत म कलपनाशीलता का अकषय होना पाया जाता ह कयोवक यह कलपना जीिन शततकतयो का ही परिाह ह कलपनाए सतय सकलप क अनरप परािवति त होकर मानि परमपरा क अखड समाज सािशभौम वयिसथा क रप म सारथशकता को परमाखणत करती ह

प ४९-५०

पिानकरम पदघवत परणाली मानिीयता पणश वििार-चिितन-बोि-अििारणा और अनभि मलक होन क करम म अधययन गमय ह पिानकरम विधि स ही मनन पिशक मानयताए सथाततपत हो पाती ह फलत मानि परमपरा क ललए उपकारी और सारथशक धसदघ होती ह

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प ५१ ५२

वनषठा - जागवत पणश लकषय को वनचशचत अििारणा ि समरण पिशक परापत करन ि परमाखणत करन का वनरतर परयास

वयजनीयता का तातपयश - साकषातकार होन स ह साकषातकार चिितन म होता ह वयजनाए मानि मलय जीिन-मलय सथाततपत मलयो क परभाि क सारथ जीिन मलयो का बोि ि अनभि करन स ह समपणश रसानभवत का तातपयश ह - जीिन मलय रपी सख शावत सतोष आनद सहज आपलािन जागवत सहज परमाणो क रप म सपषट होना यही अनभि करन और बोि करान का तातपयश ह

प ७५-७७ गर और शशषय

पररभाषा गर - शशकषा ससकार वनयवत करमानिषगीय विधि स खजजञासाओ और परशनो को समािान रप म अििारणा म परसथाततपत करन िाला मनषय गर ह जागवत करम म मानि को अपरापत का परापत अजञात का जञात करन क ललए होन क ललए विधि वनयम परवकरया सहज समझदारी म पारगत बनाना ही परमाखणकता का परमाण ह परमाखणकता पणश गरजन ही असतितव सहज सह-असतितव रप म अििारणा को परवतसथाततपत करा सकता ह अििारणाय असतितव विकासकरम विकास जीिन जीिनी करम जीिन जागवतकरम जीिन जागवत सहज रप म परसपरता म अरथात समझा हआ और समझन क ललय तरथा मनषयो स ह गरजन इन मददो म पारगत रहग यह समझदारी ह समझदारी क आिार पर ही मानिीय शशकषा-ससकार सपनन होता रहगा ससकार का तातपयश ही अििारणा ह विदयाचरथि यो म सथाततपत होन स उसकी वनरतरता का परमाण वयिहार वयिसथा म परमाखणत होन स ह फलसवरप ही अखणड समाज सािशभौम वयिसथा म भागीदारी सहज कायश-कलाप हर मानिीय शशकषा-ससकार समपनन मानि स िररतारथश होना पाया जाता ह

परामाखणक - परमाणो का िारक िाहक - यरथा असतितव दशशन जीिन जञान मानिीयता पणश आिरण समचचय को परयोग वयिहार अनभि पणश विधि स परमाखणत करना और परमाणो क रप म जीना

पररभाषा शशषय - जागवत लकषय की पवति क ललए शशकषा ससकार गरहण करन सवीकार करन क ललए परित वयततकत खजसम गर का समबनध सवीकत हो िका रहता ह यही खजजञासातमक शशषटता ह

खजजञास - जीिन जञान सहहत वनभरशम शशकषा गरहण करन क ललए तीवर इचछा का परकाशन

समझन सीखन करन क ललए पणश खजजञासा सहहत परयतन सपनन वयततकत शशषय क रप म शोभनीय होता ह सफल होन क सभी लकषणो स यकत िातािरण म विशवास होना और विशवास को िातािरण म परभावित करन परमाखणत करन की सभी परवकरया अधययन ह

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असतितव विकास जीिन जीिन जागवत रासायवनक-भौवतक रिना-विरिना समपणश मानि क ललए समझन-समझान की िि ह सीखन की जो कछ भी परमाखणत िि ह यह मानि म मानिीयतापणश आिरण कमश अरथात वयिसाय म सवािलमबन वयिसथा म भागीदारी मानिीयता पणश आिरण का अभयास परामाखणकता सहज अलभवयततकत ह सारथ ही सािशभौम वयिसथा और अखड समाज म वनषठा ह य समपणश खजजञासाए वयािहाररक रप म िररतारथश होती ह परौढ़ता की पराकाषठा म स क ललए सवानशासन की खजजञासा का होना पाया जाता ह खजजञासा मानि सहज परकाशन ह

प १०६ जीिन को तातवतवक रप म समझन की खजजञासा हो ऐसी सथसथवत म परमाण म होन िाली विकास परवकरया उसक सकरमण िभि को भी जो ितनय इका क रप म परवतवषठत ह को सहज ही अधययन अििारणा म लाना एि अनभि करना आिशयक ह

अनभिातमक आधयातमिाद सस २००० (प ५८ ndash ६५) अनभव ही दसर नाम स परतयावरतन करिया ह और इसका परावरतन करिया को परामाणिकरा-परमाि नाम ददया ह जागकरर सह-असतितव म अनभव हई ह इसी जागर सथिकरर म होन वाली गकरर को परतयावरतन नाम ददया गया ह समपित परतयावरतन दरतन और जञान नाम स परकररकरिर ह जञान और दरतन सवाभाकरवक रप म ओर-परोर रप म वरतमान ह समपित असतितव सतता म सपकत जड़-चरनय परककरर ही सह-असतितव का मल सवरप ह इसका सामानय कलपना हर मानव म होना सभव ह कलपना का मल सतरोर आरा करवचार इचछा का असपषट गकरर रप ह कयोकरक समपित कलपनाए परावरतन म कायतरप रहना दखा जारा ह मानव ही कलपनारीलरा का परयोग कररा ह इस ऐसा भी कहा जा सकरा ह करक हर वयकतकत परकारानतर स कलपनारीलरा का परयोग कररा ह भरकतमर मानव दवारा कलपनारीलरा का सवाधिक परयोग ररीर और इनदरिय सदिकरत क रप म ही सवाभाकरवक ह यह भरम करववररा ह यही कलपनाए चचणिर रप म सपषट होन क ललए रतपर होर ह रभी करवधिवर करवशलरि और करनचिर चचतरि करवचार रप म समभावनाओ को सवीकारना बनरा ह सभावनाओ का लकषय कतपरय हहर लाभ सीमाओ म सीकतमर रहना पाया जारा ह यही भरमातमक कायत सीमा का अथ इकरर ह जागकररपित जीवन चचतरि म यह रथय ससपषट ह करक नयाय िमत सतय उसका साकषातकार बोि अनभव ही अधययन और अनसिान का लकषय और कायत ह इिी कायत रप क आिार पर असतितव और जीवन अविारिा म िाकतपर होना सफल अधययन का दयोरक और कसौटी भी ह इसी क आिार पर सवायतत मानव का सवकषि करनरीकषि और परीकषि होना सपषट हो जारा ह सवायतत मानव ही असतितव म अनभव सहज जागकरर का िारक-वाहक होना सपषट ह इस परकार अधययन सहज रप म जीवन और सह-असतितव म अनभव बोि की अलभवयकतकत और परमणिर होन क िम म आतमा असतितव म अनभर होना जीवन म किीय होना मधयि करिया और मधयि बल समपिरा का सवीकर होना परम रपत होना ह जीवन रचना मधयार सहज मधयि करिया मधयि बल मधयि रकतकत सरलन क अथत म सदा-सदा परयकत रहरा ही ह यही जागर

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मानव परपरा म परमाि ह मधयि करिया समम_य िम स जीवनी िम और जीवन जागकरर िम वयकत होरा ह इसी िम म जागर होना जीवन सहज परवकततत परयास आवशयकरा क योग-सयोग करवधि स समपि होरा ह यही अनसिान रोि और अधययन क ललए भी सयोजक रतव ह यह रतव सदा-सदा जीवन परकररिा म कायतरर रहरा ही ह इसकी परखररा क आिार पर ही अनसिान रोि अधययन सहज हो जारा ह इस परकार यह ससपषट हो जारा ह करक आतमा अधययन करवधि स असतितव म अनभर होरा ह दसरा अनसिान करवधि स भी असतितव म अनभर होना पाया जारा ह ( अनसिान विधि जो शरी ए नागराज न कीया सािना gt समािीgt सयम | अधययन विधि पिक एि वकसी समझ हए वयकती क माधयम स शशकषा-ससकार परापत करना) अनसिान करवधि स भी सवतपरथम असतितव म बोि होना दखा गया ह इसक उपरानत ही आतमा असतितव म अनभर होना दखा गया ह अधययन करवधि स भी यही सथिकरर अथार पहल बोि रदोपरार अनभव होना पाया जारा ह इन दोनो करवधियो म स अधययन करवधि लोकवयापीकरि क ललए कम समय म बोि होन की सथिकरर बनरी ह अनसिान करवधि म परवतत होन क ललए वयकतकत म लकषय सममर णजजञासा का होना अकरनवायत ह जब अधययन करवधि स समपित परशनो का उततर कतमल जारा ह परशन िली ररकत होना उसी िली म समपित उततर िाकतपर होना अधययन और अधयापन का सयोग और फलन ह परशन करवहीन सथिकरर म अनसिान का आिार नही बनरा इस परकार परपरा म सभी परशनो का उततर अधययन करवधि स हर मानव म हर सथिकरर पररसथिकररयो म समपित परशनो का उततर सह-असतितव सहज करवधि स समीचीन ह अनसिान करवधि एव अधययन करवधि स पहल बोि ही होरा ह रदोपरार lsquolsquoबोिrsquorsquo का आतमा म अनभव होरा ह अनभव क उपरानत lsquolsquoअनभव सहज बोिrsquorsquo अधययन एव अनसिान करवधि म एक जसा होरा ह एव एक ही होरा ह इसम मखय रथय यही ह यथाथतरा वासवकररकरा सतयरापित करवधि स अधयापन सामगरी वि परकरिया पररपित रहना आवशयक ह ( अधययन अरथिा शशकषा वििी म) अनसिान क ललय अजञार परशन चचि अकरर आवशयक ह हर अनसिान को अधययन और अधयापन कायत करवधि स लोक वयापीकरि होना सगम हो जारा ह इस परकार अनभव क अननतर ही अनभव lsquoबोिrsquo होना दखा गया ह यह हर वयकतकत म होना समीचीन ह (प १०७ १०८ १०९ इसक उपरानत जागकरर और जागकररपितरा ही मणजलो क रप म दखन को कतमलरा ह यह मलर करवचार चचतरि अविारिा अनभव और चचनतन का ही वभव रपी मानधसकरा क रप म दखा गया ह भरम का समपित सवरप आरा करवचार इचछा (चचतरि) का कतपरय हहर लाभातमक दकरषटयो की करियारीलरा ही ह सवतमानव पीड़ा स मकतकत चाहरा ही ह यही जागकरर सहज अपकषा का सरोर और समभावना ह जीवन सहज करियाकलापो म स नयाय िमत सतय का साकषातकार और दषटा होना और उसका परमाि धसदघ होना ही समपित जागकरर ह दषटापद म होन वाली समपित करियाकलाप जीवन सहज करवधि स जानन-मानन-पहचानन-करनवाह करन क रप म होना पाया गया ह जानन-मानन की समपित वि जीवन जञान सह-असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 13

अनभव असतितव म ही होना पाया जारा ह अनभव क पहल समझदारी जानन-मानन-पहचानन क रप म होना पाया जारा ह यही अधययनपवतक होन वाला अविारिा ससकार ह इसक पवत रप म करवचार और चचतरि ही रहरा ह यही शरकरर समकरर रबद और चचतरि ह रबद और चचतरि क आिार पर करकरन भी करियाकलापो को मानव सपाददर कररा ह यह सब असथिररा क साथ ही जझरा हआ दखा गया ह असथिररा म भरम ही परिान कारि ह इसीललय ही समरि और चचतरि क उपरानत कही न कही असथिररा-अकरनियरा को परकाशरर कररा ही ह इसी सीमा रक हम इस बीसवी सदी क अर रक झलर आय ह सथिररा की सवीककरर बोि रप म ही होना फलसवरप वयवहार म नयाय-समािान-सतय परमाणिर होना पाया जारा ह ऐसा बोि जानन-मानन-पहचानन का ही महहमा ह यह करिया जीवन म ही जागकरर सहज करवधि स होन वाली वाधिर परकरिया ह असतितव म अनभव सतता म (वयापक म) सपकत परककरर क रप म ही दखा गया ह सतता म सपकत रहन क आिार पर ही करियारीलरा करनयतरि सरलन सरकषि सामय ऊजा सरोर होना दखा गया ह इसीललय परककरर म करनयतरि सरकषि करनररर बना ही रहरा ह अर सतता म करनयतरि सपषट ह (प ७४) असतितव सहज सह-असतितव म जड़-चरनयातमक परककरर करनतय वभकरवर होन का सवरप करिया शरम गकरर पररिाम परकारन सहज करियाकलाप और पररिाम का अमरतव शरम का करवशराम गकरर का गरवय सहज लकषय करनहहर करिया उपयोकरगरा परकरा-उदाततीकरि करनयमो क अनरप समपित भौकररक-रासायकरनक जीवन रपी परककरर म करनतय रचना-करवरचना lsquoतवrsquo सहहर वयविा और उसकी परपरा भल परकार स बोि करान की सहज-करिया समपि करकया जा चका ह इसी िम म शरम का करवशराम गकरर का गरवय रपी परमािो को मानव परपरा म परमाणिर करन की आवशयकरा रहा ह इस सवतसलभ लोकगमय करन क ललए अधययनपवतक जागकरर करवधि और इसक परमाि म बोि परिाली को पहचाना गया यह भी अनभव करकया गया ह करक बोि होना समझदारी का ही दसरा नाम ह अथवा बोि का ही दसरा नाम समझदारी ह ऐस समझदारी अधययनमलक परिाली स अविारिा म िापकरर होना ऐसी अनभव मलक अविारिाओ को अलभवयकत सपरकतरर परकाशरर करन क िम म असतितव म अनभव एक अवशयभावी परकरिया क रप म सपषट हई ह इस िम म असतितव म अनभव करनतय ह यही मानव का परयोजन ह जीवन करनतय ह असतितव सथिर ह इसी आिार पर अनभव और अनभव िम अलभवयकतकत सहहर जागकरर सहज जीवन का गनतवय अथार जीवन म जागकरर पितरा ही जीवन गकरर का गरवय िली होना उसकी करनरनतररा सदा-सदा क ललय बना ही रहना दखा गया इिी आिारो पर lsquoअसतितवrsquo सतता म सपकत जड़-चरनय परककरर क रप म परकररपाददर हई सह- असतितव करवधि स वयाखयाकतयर हई यह महहमा जागकरर पित जीवन सहज अलभवयकतकत ह (प १८३) जीवन जञान सह-असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान रथयो सहज करवधिवर अधययनपवतक बोि होना दखा गया ह ऐस बोि सहज रथयो को उदघादटर करन क िम म और लोकवयापीकरि करन क

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िम म परमाणिर होर ही ह फलसवरप अनभर भी होर ह इस परकार करनतय परमाि और अनभव सहज रप म ही समपि होरा हआ दखा गया ह यही कवलय और जागकरर की महहमा ह (प १५४- १५७) जागकरर करवधि और अभयास असतितवमलक मानव कनदरिर चचनतन जञान दरतन आचरि िरवीकर रप म अधययन गमय होना दखा गया ह जीवन जञान जीवन म समपि होन वाली करियाओ का परसपररा सहज िरव करबनदओ क आिार पर उभय रकतपत करवधि सवत रभ एव समािान स दखा गया अलभवयकतकतया ह जसा मन और रकतपत म सामरसयरा का करबनद करवशलरि रलन पवतक आसवादन क रप म पहचाना गया ह यह सह-असतितव अनभव क पिार करनयम नयाय िमत सतय सहज परयोग म अनभर होन क उपरानत ही साथतक हो पारा ह इसक ललय अथार ऐस अनभकरर क ललय अधययन िम स आरभ होरा ह अधययन अविारिा कषतर का भरर-भरर वरतमान करवधि ह इस करवधि स णजरनी भी अविारिाए अधययन स समबदघ होरा गया उरन ही अविारिा क आिार पर परवकततत सहज नयाय िमातमक और सतय सहज रलन नयाय रलन समपि करवचार क आिार पर करकया गया आसवादन सहहर समपि करकया गया सभी चयन नयाय रप होना दखा गया ह इसी परकार ऊपर कह चचनतनपवतक जब चितरण रलन करवचार आसवादन और चयन करियाए समपि होर ह नयायपवतक वयविा म परमाणिर होना दखा गया अविारिाए सवाभाकरवक रप म ही असतितव सहज होन क आिार पर सह-असतितव रप होन क आिार पर अनभर होना अथार जानना-मानना और उसक रकतपत करबनद को पाना ही अनभव ह जानना-मानना-पहचानना ही अविारिा ह इसम रकतपत करबनद को पा लना ही अनभव ह इस कायत-वयवहार वयविा म वयकत कर दना परामाणिकरा ह अनभव परमाि पित बोि सहहर समपि होन वाल सकलप चचनतन चचतरि नयाय िमत सतय रपी रलन करवशलरि आसवादन सहहर करकया गया समपित अलभवयकतकतया वयविा और समगर वयविा म भागीदारी करनवाह कररा हआ ही दखन को कतमलरा ह इस करवधि स जागकररपित मानव ही असतितव म भरम बनधनो स मकत होना सपषट करकया जा चका ह जागकरर करवधि अधययन रपी सािना करवधि स सवाधिक उपयोगी सदपयोगी परयोजनरील होना दखन को कतमला ह इस करवधि स साधय सािक सािन का सामरसयरा सवय सफरत करवधि स समपि होना दखा गया ह जागकरर क ललय हर मानव सािक ह साधय जागकरर ही ह सािन जागकररगामी अधययन परिाली ह इस िम म परमपरा सािन परकररिा क रप म रन-मन-िन वयविा और समगर वयविा म भागीदारी का परमाि मानवाकाकषा क रप म होरा ही ह इस परकार स साधय-सािक-सािन का सयोग मानवीयरापित परपरा करवधि स सफल होन का सवरप सपषट ह ऐस परपरा क पवत (जस आज की सथिकरर म भरकतमर समदाय परपराए) मानवीयरापित परपरा म सिकतमर होन की कायतपरिाली मददा ह इस िम म अनसिान क अननतर णजरन भी रोिकरा सममर होर जार ह और सममकरर क अनरप करनिा उदगकतमर हो जारी ह और भी भाराओ स सवय सफरत करनिा उदगकतमर होरी ह ऐस ही करनिावान मिावी इस कायत म सलगन ह यही आज की सथिकरर म जागकररगामी अधययन जागकररमलक अलभवयकतकत सहज करवधि एक स अधिक वयकतकतयो म परमाणिर होन का आिार बन चकी ह जागकररपित परपरा म साधय सािन सािक म करनतय सगीर होना दखा गया ह दसर भारा म करनतय समािान होना पाया गया ह

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उललणखर अनभवो क आिार पर समपित जागकरर अपन-आपस जीवन जञान असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान म ही समपित ह इसका अभयास करवधि सवतपरथम अनसिान दसरा अधययन पवतक रोि रोि पवतक अधययन य ही मल अभयास ह कयोकरक अधययन करवधि स ही रोि करवधि स ही अविारिा का सवीकर होना दखा जारा ह अनय करवधि जस उपदर करवधि म भरकतमर होन की सभावना सदा बना ही रहरा ह हर परपरा म अपन ढग की आदर परकररिा िाकतपर रहरा ही ह वह अधययवसाकतयक (अधययनगमय) होर रक उपदर या सचना मातर ह परपरा म णजस आरय क ललय आदर-करनदर ह वह रकत सगर-वयवहार सगर बोि होन की परकरिया परिाली पदघकरर ही अधययन कहलारी ह रकत का साथतक सवरप करवजञान सममर करववक और करववक सममर करवजञान होना दखा गया परयोजन करवहीन उपदर परयोग वह भी वयवहार परमाि करवहीन उपदर रब रक ही रह पारा ह जब रक रकत सगर न हो रकत का रातपयत भी इसी रथय को उदघादटर कररा ह रकतपत क ललय आकरति परिाली (भारा परिाली) ऐस रकत सहज रप म ही करवजञान क आशरर करवशलरिो को करववक स आशरर परयोजनो का परमाणिर होना सहज ह हम इस बार को समझ चक ह करक परयोजनपवतक जीन क ललय परमाणिर होन क ललय समािान समशदघ क रप म सह-असतितव दरतन क ललय रकत सगर अधययवसाकतयक करवधि का होना आवशयक ह अधययन करियाकलाप रकतसगर परयोजन परयोजन सगर मानवापकषा मानवापकषा सगर जीवनापकषा जीवनापकषा सगर सह-असतितव सह-असतितव सगर करवकास िम और करवकास करवकासिम और करवकास सगर जीवन-जीवनी िम-जागकरर िम-जागकरर एव इसकी करनररररा सह-असतितव सहज लकषय ह असतितव सहज लकषय म भी मानव ही अकरवभाय ह और दषटा ह इसललय मानव असतितव सहज सह-असतितव करवधि स परकरा-उदाततीकरि परकरा-करवकास परकरा-जागकरर सतरो क आिार पर सह-असतितव सहज अधययन सलभ हआ ह समपित असतितव ही वयविा क सवरप म वरतमान होना समीचीन ह आज भी मानव क अकररररकत सभी अविा म (पदाथत पराि जीव अविा) अपन-अपन तव सहहर वयविा म होना ददखरा ह इसी िम म मानव भी अपन मानवतव सहहर वयविा और समगर वयविा म भागीदारी सहज अपकषा को साथतक बनान क िम म ही जागर होना पाया जारा ह हम यह पार ह करक जागकरर सतर वयाखया और परमाि सवतरभ क सवरप म ही वभकरवर होरा ह इस आरय को लोकवयापीकरि करना भी सवतरभ कायतिम का एक बकरनयादी आयाम ह इसी सतयरावर lsquolsquoअनभवातमक अधयातमवादrsquorsquo एक परिकरर ह हर मानव अपन कलपनारीलरा कमतसवरतररा पवतक ही हर परिकररयो को परखना (परीकषि करना) सवीकारना या असवीकार करन क कायतकलाप को कररा ह

अनभि दशशन सस २०१२ दधदवतीय (अधयाय -३)

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सतर छद िाकय शबद क दवारा वकरया मातर का िणशन ह सारथ ही जञानानभवत क ललए उपदश पिशक इवगत भी ह बरहम सहज िणशन पारगामी वयापक और पारदशीयता क रप म ह lsquolsquoयहrsquorsquo किल भास आभास बोि तरथा अनभिगमय ह इसका बोि मानि की कषमता योगयता पातरता पर आिाररत ह परतयाितशन पिशक परापत वयजनाएा जागवत क ललए गणातमक गवत ह गणातमक वयजना स सबोि सबोि स सससकार सससकार स गणातमक सिदना (सजञानीयता पिशक सिदना वनयदधतरत) रहना गणातमक सिदना स सतय सकलप तरथा सतय सकलप स गणातमक वयजनाओ की वनरनतरता ह सथसथवत एि वकरया सकत-गरहण कषमता ही वयजनीयता ह सकत-गरहण -परवकरयाबदघ जञान परापय को पान उस सरधकषत रखन क कायशकरम म अलभवयकत ह परापत क अनभि क करम म भास-आभास एि परतीवत ही जञापक (सतयाततपत होना) ह मानि दसरो क ललए भी सकत परसाररत करता ह सकत-गरहण-वकरया ही अनमानारोपण तरथा अनमानाकर भी ह जो सकलप इचछा वििार ि आशा ह अधयाय-७ अलभवयजना म गणातमक विकास का सकत वयजना म उपयोवगता का सकत ह अभयदय पराय (अभयदय जसा) ही अलभपराय ह खजसम अभयदय का भास या आभास होना आिशयक ह

कमशदशशन सस २००४ (प ८६ ८७) परमाण म विकास का तातपयश परमाण क गठनपणश होन स ह|मानि म एक बात की िाहत बनी ह ndash यरथासथसथवत िभि उसकी वनरतरता ndash यह सवाभाविक रप म सवीकत ह| परमाणओ म अशो का घटना-बढ़ना पररणाम क सवरप म हम समझ िक ह| पररणाम का अमरतव उसकी वनरतरता की अपकषा मानि म ही कलपना भास आभास परतीवत क रप म पाया जाता ह

प २० २३ (शासतराधययन की महततव) सदशासतराधययन क वबना सतय कामना एि परितततत सतय कामना क वबना सतय-परम सतय-परम क वबना सतय-वनषठा सतय वनषठा क वबना सतय परवतषठा सतय-परवतषठा क वबना सतय परतीवत सतय-परतीवत क वबना सतयानभाि सतयानभाि क वबना सद शासतर का उदघाटन तरथा सदशासतर क उदघाटन क वबना सद शासतर का अधययन पणश और सारथशक नही ह| मानि को जीिन की परतयक सतिचरथ म शानतनत एि सथसथरता की आिशयकता ह| सदशासतर सिन मनन एि आिरण स वयकती तरथा पररिार म शानतनत तरथा सथसथरता पा जाती ह|

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(सदशासतर सिन = शासतराधययन स शरिण | मनन एि आिरण अभयास-अधययन करम म समपणश मनन परवकरया)

(प ९७ ९८)

सहअसतितविादी विधि स हर मानि मानितव सहहत वयिसथा और समगर वयिसथा म भागीदारी करन योगय इका ह इसम मखय मददा यही ह - सवय को सवय क ललय रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क सयकत रप म होन को सवीकारन की आिशयकता ह जीिन वकरया की महहमा और मानि परमपरा म इसकी आिशयकता धयान म रहना अवत आिशयक ह तभी मानि शोि क ललए ततपर होना पाया जाता ह ऐसी ततपरता जागवत सहज विधि स सिशशभ क अरथश म परिावित होना होता ह तभी सिशमानि समािान पिशक वयकत होन समझदारी पिशक हर पररिार समािावनत और सखी होन की सथसथवत सपषट हो जाती ह फलसवरप समशदघ अभय सहअसतितव परभावित होन का सौभागय उदय होता ह यही मखय वबनद ह सिशशभ का परमाण भी यही ह कयोवक समािान समशदघ पिशक ही मानि सख शानतनत का अनभि करता ह इसी करम म समािान समशदघ अभय सहअसतितव पिशक आननद अपन आप म समपणश होना पाया जाता ह इस ढग स मानि लकषय सारथशक होन की सथसथवत म जीिन लकषय (सख शावत सतोष आननद) सारथशक होता ही ह जीिन लकषय और मानि लकषय सारथशक होना ही अधययन और अधयापन की सािशभौमता ह ऐस लकषय क सारथ मानि परमपरा अपन आप म सवय को पहिानन और समपणश मानि को पहिानन का सतर और वयाखया बन जाता ह परमाण क रप म वयाखया समझ क रप म सतर होना पाया जाता ह यह वनयवत सहज विधि स समीिीन रहना पाया जाता ह वनयवत विधि का तातपयश विकासकरम विकास जागवत करम जागवत ह दसर विधि स भौवतक रासायवनक रिना शरीर और जीिन वकरयाकलाप का सयकत अलभवयततकत समपरषणा परकाशन क रप म ह

मानि लकषय - समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करन और उस आिार पर जीिन लकषय (मनसवसथता) - सख शानतनत सतोष आननद को सारथशक बनान क अरथश म मानि शशकषा ससकार की आिशयकता सदा-सदा स बनी ह ह इसकी सफलता ही मानि कल का सौभागय ह

lsquoमानि कल और रासायवनक-भौवतक वकरयाकलाप का सारथशक परमाणrsquo

शशकषा की समपणश िि सहअसतितव रपी असतितव म रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म ही ह इसम स इनक अविभाजय रप म मानि परमपरा का समपणश वकरयाकलाप वयिहार सोि वििार समझ ह समझ क अरथश म ही हर मानि का अधययन करना होता ह समझ अपन म जानना मानना पहिानना वनिाह करन क रप म परमाखणत होती ह इसी अरथश म समपणश अधययन सारथशक होना पाया जाता ह

असतितव म समपणश इका याा रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म पररलधकषत ह ही (प १०२) वनशचयता सथसथरता सिशमानि म चिराकााकषा क रप म बनी ही ह सहअसतितव रपी असतितव जञान और सवीकवत का आिार ह यह सिशमानि म सिकषण पिशक विदधदत होन िाला तथय ह सवय को जाािन स भी

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यही सपषट होता ह हम सब सथसथरता ि वनशचयता को ही सवीकार करत रह ह न वक असथसथरता अवनशचयता को सथसथरता क सहज आिार पर ही वनशचयता का होना सवभाविक ह (प ११५) इस हम मानि को अचछी तरह स समझन की आिशयकता ह और अनशीलन पिशक सरकषण सििशन विधि स सवय को वयसथसथत कर लन की आिशयकता ह मानि क वयिसथसथत होन क मल म जञान विजञान वििक का एक सगीतमय कायशकलाप सपषट रहन स ह यही कायश-कलाप भाषा कायश-वयिहार म वनयोखजत होकर परयोजनो को परवतपादधदत करता ह मानि का परयोजन समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करना ही ह (प १२२ १२३)

( अनभि मलक वििी स

यरथारथशता िािविकता सतयता का बोि रपी बशदघ की सथसथवत उस परकाशशत करन की परितततत क रप म सकलप ही गवत ह नयाय िमश सतय क साकषातकार करन क रप म चितत सथसथवत और इसका चितरण क रप म चिदधतरत हो पाना गवत ह चितत वकरयाकलाप का समपणश चितरण तलन क रप म अरथात नयाय िमश ि सतय रप म सपषट होना ितततत सहज सथसथवत ह ितततत म समपनन हय तलन का विशलषण विधि म विशलततषत होना ि समपरततषत होना ितततत सहज गवत ह विशलषण क सपषट अरथिा सार रप म मलय सवीकत होता ह इस आसवादन करना ही मन की सथसथवत ह इसकी सारथशकता क ललय ियन वकरया को समपादधदत करन क रप म गवतत होना हर मानि म सिधकषत ह इस ढग स मानि भी सभी परकार स सथसथवत-गवत म होना सपषट होता ह इस परकार मानि समझदारी स समपनन होन क उपरानत परमाखणत होना सवभाविक होता ह इसका मतलब यही हआ हम जब तक परमाखणत नही होत तब तक परमाखणत होन क ललए जञानाजशन वििकाजशन विजञानाजशन कर लना ही शशकषा और शशकषण का तातपयश ह इसक ललए सह असतितविादी शशकषा करम समीिीन ह अतएि समझदार मानि होन क ललए धयान दन की आिशयकता ह

सह-असतितविादी वििार जञान वििक विजञान को समझना ही समझदारी ह

ldquoअधययन रपी उपासनाrdquo (अभयास) - कमशदशशन सस २००४ प ४९ ५०

मानि जीिन म उपासना एक महतवपणश भाग ह| उपासना ही मल परिततततयो का पररमाजशन एि पररितशन परवकरया ह| यही ससकार एि सवभाि पररितशन भी ह| ( उपासना = उपायो सहहत लकषय पती क ललए कीया गया वकरयाकलाप) उपायपिशक सहिास पाना ही उपासना की अििारणा ह खजसक ललए पररशरम (पररमाजशन शरम) एि अभयास ह| अभयास एि पररशरम स ही सथल सकषम कारण की सथसथवतितता सपषट ह| खजसस ततसबिी पदारथश वनयवत-

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 19

करम शततकत महहमा विभती एि वनयम सबिी अनसिान (अनगमन पिशक अििारणा) शोि परधसदध ह| अनसिान भौवतक बौदधदधक तरथा आधयातमतमक भद स ह| अनसनधान परवकरया मनन चिितन सकलप एि अनभती क रप म परतयकष ह|

सथल सकषम कारण (दषटा) का तातपयश दखन समझन परयोग करन वयिहार करन एि अनभि करन योगय कषमता क सपनन होन स ह |

परिततततयो का पररमाजशन ही मानि जीिन का कायशकरम ह| मानि म पणशता एि पररमाजशनशीलता की अपकषा परतयक सथसथती म पा जाती ह| पणशता ही पादधडतय ह| पादधडतय स अधिक जञान एि वनपणता कशलता स अधिक वयिहार एि उतपादन नही ह| पररमाजशनशीलता उतपादन ि वयिहार म पा जाती ह| पादधडतय परबदधता परबदधता ही शशकषा एि वयिसथा ह| परबदधता स पररपणश होत तक उपासना अतयत उपयोगी ह|

प ५६ स ७२ (इनम स कछ ही िाकयो को ललया गया ह| समपणश क ललए पिक दख) उपासना स सािशभौततमक मलयो का अिगाहन करना ही परिान उपादयता ह| समि उपासनाओ क मल म लकषय समय ह िह अखड समाज सािशभौम वयिसथा ह| िह किल सिश

मगल ही ह| कयोकी सिश मगल की कामना क वबना सवय का मगल धसदध नही ह| अनय कामय कामनाए किल मगलमयता की भास परदायी ह न की अनभिदायी| इसललए सिशमगल

कामनारपी कायशकरम तःरथा उसकी अनसरण योगय कषमता पयत मानि परयास करन क ललए बाधय ह| सही क परती भरततमत रहना ही मत सपरदाय एि िगश का कारण ह|

मत सापरदाततयक िगीयता म आचरथिक िगीयता एि आचरथिक िगीयता म मत-सापरदाततयकता समा ह ह|

इसका वनराकरण सपषटतया सािशभौततमक रप म पा जान िाली मानिीयतापणश पदधवत स ldquoवनयम-तरयrdquo (बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक) क आिारपिशक ही आचरथिक एि सापरदाततयक िगश-भािनाओ स मकत होन की समभािना एि मकती ह| इसी म समि िगश-भािना विलीन हो जाती ह| इसीललए ndash

उपासना की उभय पदधवत का अभीषट समझदारी जागवत पिशक सारथशक होता ह जो जागरण ह| मानि म शततकतया वकरया इचछा एि जञान शततकत ही ह जो उनकी अहशताए ह| अहशताए परतयक इका

की जागवतशीलता जागवत पर आिाररत ह| शबद सपशश रप रस गिनतियो दवारा शततकतयो का अपवयय न होना सारथ ही सदवयाय होना ही

वकरया शततकत की जागवत ह| सदवयय एि अपवयय का वनिारण मानिीयता क सीमा म ldquoवनयम-तरयrdquo क रप म ह |

अतकरण मल परितताा अरथात आशा वििार इचछा ि सकलप का अपवयय न होना ही सदवयय ह| यही इचछा शततकत का जागरण ह|

समयक-बोि एि अनभती पणशता ही जञान परकटन कषमता ह| यही जञानशततकत का जागरण अरथिा पणश जागरण ह| यह ldquoजागवत-तरयrdquo मानिीयता एि अवतमानिीयता म परतयकष ह| यही मानि जीिन की िरमोतकषश

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उपलसतबध ह| सशकत उपासना क उपादयता यही ह यही समगर मानि की कामना ह| यही सिशमगल ह| इसीललए

जीिन-जागवत का परतयकष सवरप ही वििक पणश विजञान का परयोग ह यही सतकशता अखणड सामाखजकता परबदघता वनविि षमता सह-असतितव शशकषा विधि वयिसथा सभयता ससकवत बौशदघक समािान भौवतक समशदघ और जीिन जागवत की वनरनतरता ह

पणश जागवत पयशनत परतयक मानि इका परयास एि उपासना क ललय बाधय ह इसी क फलसवरप मल परिततततयो का पररमाजशन होता ह खजसक कारण विशशषट और शशषट मानधसकता एि वििार चिनतन-बोि कषमता अनभिपणशता परतयकष होती ह यही शरषठ उपासना की उपलसतबधयाा ह

इसललय समान क सारथ वयिहार करन क ललय बाधय हआ ह यही सामाखजकता की बाधयता ह यही मानि जीिन की गौरि और गररमा ह यही गररमा समान क सारथ वयिहार अधिक जागवत क ललय अभयास करन क ललय पररणा ह यही िािविक उपासना ह

वििक अरथात मानि लकषय और िरागय अरथात समशदघ ही उपासना का परतयकष फल ह खजसम सामाखजकता सवाभाविक रप स समाहहत रहती ह

िरागय का पराितशन ही असगरह (समशदघ) उदारता एि दया ह भौवतक समशदघ म उदारता एि दया क मौललक मलयो का अनरजन ही सामाखजकता का पराण ततव ह यही सामाखजक सगीत ह इसी क ललय मानि तततषत ह वििक ही बौशदघक समािान एि सामाखजक मलयो को वनिाह पिशक परकट करता ह इसललय

वििक ि िरागय ही परोकष जञान (सदवयिहाररक जञान) का परिान लकषण ह अनभि ही परोकष जञान की अनतनतम सथसथवत ह इसक पिश अनमान अधिकार ही परधसदघ ह ििसथसथवत ििगत सथसथवत सतय म ही अनभि ह

परोकष जञान क वबना वनतयावनतय यकतायकत नयायानयाय िमािमश सतयासतयइषटावनषट दषटादषट तरथा परोकष जञानाधिकार धसदघ नही होता ह

वनतयावनतय जञानाधिकार क वबना मनषय म सविमश क परवत वनषठा नही पा जाती ह मानि िमश ही सख सख ही नयायपणश आिरण नयायपणश आिरण ही मानिीयतापणश सीमा एि lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का पालन ह यही मनषय का सविमश ह मानि सख िमी ह

मयादा विहीन इका नही ह जस जीिो म सवभाि मयादा िनसपवतयो म गण मयादा एि पदारथो म रप मयादा-भग नही होती ह यही उनकी गररमा ह इसी परकार मानि म सख ही िमश ह िमश ही मयादा ह यही उनकी गररमा एि विशवास ह मयादा का परतयकष रप ही विशवास ह

lsquolsquoविशवासविहीन समबनध एि समपकश म सख नही हrsquorsquo समबनध एि समपकश विहीन मनषय नही ह यही बाधयता सविमश क ललय ह इसक पालन म जो अकषमता अयोगयता एि अपातरता ह - िही दख कलश समसया और अजागवत ह

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सविमश म समपननता एि पालन करन योगय कषमता योगयता एि पातरता स पररपणश होत तक जञानाजशन करन क अरथश म अधययन रपी उपासना का अभाि नही ह

मानि क सविमश की सीमा म ही मत समपरदाय िगश वतरोहहत हो जात ह यही समरथश उपासना की परतयकष गररमा ह lsquolsquoयही मागललक हrsquorsquo साधय सािक सािन इन तीनो का उपासना म समाहहत रहना अवनिायश ह इनकी एक सतरता ही उपासना की सफलता ह अनयरथा असफलता ह परतयक सथसथवत म परापत शततकत ि सािनो का सदपयोग करना ही उसकी अवगरम जागवत ह यही उपासना ह

इनतिय कायशकलाप तरथा इनतियो का कायशकषतर ही अपरोकष जञान की सीमा ह इस वयापार म ितविि षय सीमानतिती धसशदघयाा ह इसक अवतररकत और उपलसतबधयाा इसम नही ह

विषयो की सीमा म मनषय सीततमत नही ह कयोवक उसम िार आयाम परधसदघ ह

मनषय ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत समपनन होन क ललय बाधय ह यही आिशयकता अिसर सभािना एि वयिसथा ह

सयमतापिशक ही मनषय क दवारा परतयक पररपरकषय म वकय गय वकरयाकलाप म स गररमापणश िभि परकट होता ह जस-

सतयबोि सहहत सतय बोलन का अभयास करन स भय ि अविशवास की वनितततत हषश तरथा उतसाह का उदय होता ह

विशव क परवत मलय भाि की परवतषठा स इषट और सािक क मधय विषमता का अभाि होता ह

शबद क अरथश अरथात मनतरारथश का तदरपतापिशक समरण करन क अभयास स उसका अरथश एि सवभाि गमय होता ह सभी सारथशक शबद मनतर ह

अधिक जागत म समपशण स अलभमान ि अहकार का उनमलन तरथा विदया ि सरलता का उदय होता ह ( अधिक जागत = समझान िाला परमाखणत वयततकत गर)

शरीर सिदना सयत रहन स मन की पवितरता मन की पवितरता स मनोबल का लाभ होता ह

सव-शरीर मोह नषट होन स ससार क परवत मोह दर होता ह सिशशभरपी आपत कामना पणश बशदघ स ही विशव क परवत उदारता दया कपा करणा का परसिन तरथा विशव की आिारभत सतता म जञान एि अनभि होता ह

जञान विजञान वििक रपी सवतवहीनता ही असयमता मनोदौबशलय मल परविततततयो की अपररषकवत राग मोह लोभ अवििक अहकार अलभमान दहातमिादी परितततत दरािार सघषश असह-असतितव सशकता दवष तरथा तपोहीनता ह

सयमता क वबना बौशदघक मल परिततततयो की पररषकवत बशदघबल सामाखजक मलयो की अनभवत ितनय वकरया का दशशन समािान और सयमता धसदघ नही होती ह

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उपासना क ललय िातािरण का महतव अपररहायश ह खजसम स मनषय कत िातािरण ही परिान ह जो शशकषा ि वयिसथा क रप म ही ह

मानिीयता की सीमा म वयिहार lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का आिरण ही वयततकततव ह ऐस वयततकततव क वनमाण म सवकरय योगदान ही कततशवय ह यही परषारथश ह यही परबदघता ह

आशा भद स उपासना उपासना भद स अनभि अनभि भद स अनमान अनमान भद स उपासना भद ह यही उपासना म िविधयता का कारण ह यह िविधयता सािशभौम आिरण की सीमा म विलय होन क ललय बाधय ह

मानि क ललय सहज समरथश उपासना एक अवनिायश कायशकरम ह जो अमानिीयता स मानिीयता मानिीयता स अवतमानिीयता की परवतषठा सथाततपत करती ह

सह-असतितव म अनकषण-विकषण-ितततत स सहजाितततत होती ह

कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ही अनकषण-विकषण ितततत ह

अनकषण का तातपयश परतयक कषण म लगातार सह-असतितव चिनतन वििार करम म परमाखणकता का सहज परमाण परित हो जाता ह यही सहजाितततत ह

सतता म समपकत परकवत की समपकतता का जञान ही (पणश-दशशन) कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ह यही भरततमत भाि ि अभाि का वतरोभाि ह यही सहज परवतषठा ि अिसथा ह

सतता म समपकत परकवत का जञान न होन स और अनभिमलक जञान न होन स भय और परलोभनिश समि भरममलक कायश-वयिहार सोि-वििार को बनाय रखता ह यही समपणश कलश का कारण ह

काल वकरया की अिधि ह इसी अिधि म आरोततपत वििार ि इचछा ही असहज एि वनरारोततपत वििार ि इचछा ही सहज ह

मानि इका म ही जागवत क करम म भी वनरारोपण कषमता पा जाती ह भरमिश आरोपण होता ह

जो जसा ह उसस अधिक कम अरथिा नासमझना ही आरोपण ह यही अजञान ह यही अकषमता ह यही भरम ह

सतता म समपकत जड़-ितनयातमक परकवत की सथसथवत-शीलता ि सतता सहज पणशता क समबनध म ही आरोप या वनरारोण वकरया समपनन होना पाया जाता ह

परतयक इका म रप गण सवभाि एि िमश समाहहत ह यही उसकी कायशितता ह इसी की गणना पररमाण परयोजन जञान ही परकवत क परवत वनभरमतापणश कषमता का दयोतक ह यही परमाण ह यही सहजता ह

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समपणश वकरयाय मलत रप और शबद भद म दषटवय ह

परकता क वबना इका म अवगरमता नही ह

पणशता पयशनत इका परकता उपयोवगता क ललए परितत ह

परकता ही इका म हरास ि विकास क लकषणो को परकट करती ह यही परिान उपादयता भी ह

इका म परकट होन िाल शबदादधद गण ही सापकष शततकतयाा ह गणविहीन इका नही ह इसललय

मनषय म सहज कामना का अभाि नही ह सहजता ही िमश ह यही सख शानतनत सतोष एि आननद ह यही िारणा को सपषट करता ह जो परतयकष ह

परतयक कमश-फल ही मनषय क सख का पोषक ि शोषक धसदघ हआ ह

सतय और सतयता क अनभि-करम म वयििान नही ह कयोवक अनभिकरम-वयिसथा सघन ह जागवत की कदधड़याा सघन ह इसललय-

सहजता आरोप स मकत ह आरोप ही नयनावतरक मलयाकन ह सवय की नयनावतरक मलयाकन वकरया ही असहजता ह

सवय का मलयाकन lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म होता ह

lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म न हो ऐसा मनषय इस पथवी पर नही ह

िमश का वियोग नही ह कयोवक यह िारणा ह इसका परतयकष रप ही मानिीयता एि अवतमानिीयता पणश आिरण ह जो सहजता का परिान लकषण ह इसललय -

अमानिीयता पणश आिरण ही असहज ह इसललय

परकवत अपन म समपणशता क सारथ सीततमत ह यही अिधि ह इसललय पणश म समायी ह यही पणश म समपणशता सहज सह-असतितव ह यही समपणशता का वनतय ितशमान और जञानािसथा क मानि म पणशता का परसि ह यही जागवत क ललय बाधयता ह

मनषय क बौशदघक कषतर म पायी जान िाली अनािशयक कलपनाओ का वनराकरण ही दशशन-कषमता म गणातमक पररमाजशन ह यही गणातमक ससकार-पररितशन शशकषा एि जीिन क कायशकरम का योगफल ह

दशशन-कषमता का उतकषश ही अनकषण विकषण ह यही मधयसथ वकरया की कषमता ह मधयसथ वकरया ही दषटा ह

मधयसथ वकरया का िरमोतकषश ही सम ि विषम वकरया का पणश वनयतरण ह यही कषमता कषण-कषण मधयसथ वयििान स मततकत ह

ससकार पिशक ही बौशदघक वयिसथा-परवकरया -कषमता क आनषवगक ह मनषय सहज ऐषणा एि विषयो की सीमा म परितततत ि वनितततत पिशक वयि होना पाया जाता ह जो परतयकष ह

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आतमा (मधयसथ वकरया) क आनषवगक बौशदघक परवकरया ि वयिसथा म सतय-सकलप एि सतय-कलपनापणश मानधसकता की सथसथवत पा जाती ह जो परधसदघ कमश उपासना जञान पणश ह यही कषमता दि ि दधदवय मानिीयता को परकट करती ह यही पणश जागवत ह

ऐषणासकत बौशदघक वयिसथा म मानिीय तरथा दि मानिीय सवभाि परकट होता ह उसी क अनरप म मानधसक िातािरण की सथसथवतशीलता ह ऐसी कषमता ही सामाखजक ितना एि सतकशता स पररपणश पायी जाती ह

विषयासकत बौशदघक वयिसथा ि परवकरया म अमानिीयतापणश आिरण समपनन होता ह जो पाशविकता तरथा दानिीयता क रप म दषटवय ह इनम उसी क योगय मानधसकता पा जाती ह यही लपत-सपत कलपना का कारण ह यही अजागवत तरथा अपणश सतकशता का दयोतक ह

शरय (जागवत) खजजञास होन पर ही लपत-सपत कलपनाय पररमाखजि त होती ह फलत दानिी ि पाशिी परिततततयो स उदासीनता सथसथर होती ह सारथ ही वििकोदय होता ह

शरय खजजञासा का उदय सव-ससकार विधि-विहहत अधययन तरथा उसक अनकल िातािरण म होता ह

विधि-विहहत-अधययन वनपणता कशलता ि पादधडतय ही ह

अधययन एि िातािरण ही ससकार पररितशन क ललय समरथश वयिसथा ह खजसका गणातमक पररितशन ही आतमबोि क ललय खजजञासा ह

आतमबोि ही सतय खजजञासा का परिान लकषण ह इसललय- अििारणा ही अनगमन तरथा अनशीलन क ललय परितततत ह जो शशषटता क रप म परतयकष होती ह परगवत क ललय अििारणा अवनिायश ह जागवत क ललय अििारणा एि हरास क ललय आसततकत परधसदघ ह यही करम स वनितततत ि परितततत ह अििारणा ही सदधदविक ह सदधदविक सवय म सतयता की विििना ह जो सपषट ह मलत यही शभ एि मागलय ह अनभि की अििारणा सतय बोि क रप म अििारणा (समयक-बोि) ही सतय-सकलप ह यही परािवति त होकर शभकमश उपासना तरथा आिरण क रप म परतयकष ह इसी का पररिवति त मलय ही िीरता िीरता उदारता दया कपा और करणा क रप म परतयकष ह सतय म ही समयक-बोि होता ह असतय ही कलपना एि भास होता ह हीनता दीनता और कररता स यकत कमश अशभ होता ह सव-मलय ही परितततत और वनितततत का िशश ह इसललय असतय अलभमान तरथा दपश स मकत सतय सरलता सहजता तरथा सौजनयता स यकत कमश ि उपासना शरय कारक ह

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सतय कामना की वनरनतरता स लकषय की अििारणा होती ह जञान म ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत परतयकष ह जञान वििक सममत विजञान ही ह जो पणश ह सतय और सतयता म दढ़ता ही शरयमय जीिन ह सतयानभवत ही सबका अभीषट ह शरीर स समपनन होन िाल समि वकरयाओ का सिालन मन ही मिस दवारा करता ह मिस स सभी नादधड़याा वनयदधतरत ह शबद का मल रप मन ही ह मिस पर मन आसवादन एि सवागत भािपणश तरगो का परसारण सिालन वनयतरण करता ह उसक मल म शबद ही ह जागवत की ओर गवत हत वनयतरणातमक शबद ही मतर ह लकषय-पराततपत-योगय-करम परवकरया ही वनयतरण ह शबद म जो भाि (मलय) ह िही उसका अरथश ह सारथशक शबदो का अरथश ही जागवत की ओर गवत ह कयोवक शबद का अरथश असतितव म िि ह भाि म जो उपयोगपणश अवनिायशता ह िही उसका महतव ह उपयोग पणश अवनिायशता म जो वनचशचत दधदशा ह िही उसकी दढ़ता ह यही समयक सकलप ह समयक सकलप म जो पणशता ह िही अनभि ह जो करम स मन ितततत चितत बशदघ और आतमा म पा जान िाली सससकत मौललक वकरयाय ह भाि का तातपयश होन स ह शततकत-तरय-जागरण (इचछा-शततकत वकरया-शततकत तरथा जञान शततकत जागरण) क वबना तयाग (भरममततकत) और परम परमाखणत नही होता

मनन परवकरया म सव-मलयाकन

सव-मलयाकन मनन धयान ldquoअपराि क अभाि म दयापणश आशा का पराितशन अनयाय क अभाि म नयायपणश वििार का पराितशन आसकती क अभाि म समािान पणश इचछा का पराितशन तरथा अजञान क अभाि म जञानपणश सकलप का पराितशन होता ह| अत अपरािहीन वयिहार क ललए वयिसथा का परभाि अनयायहीन वििार क ललए अखणड समाज का परभाि तरथा अजञान रहहत बदधदध क ललए अतवनि यामन अरथिा धयान आिशयक ह खजसस ही परतयाितशन वकरया सफल ह| धयान का अरथश समझन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना और समझन-अनभि करन क

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उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

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मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

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(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

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सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

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प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

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अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

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३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

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(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

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उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

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मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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स वनगशततमत होता ह| मानन का तातपयश परयोजन पहिानन क अरथश म सारथशक होता ह| जस असतितव सहज वनतय सतिचरथ को जानना सहअसतितव परयोजन सतर को पहिानना सवाभाविक होना पाया गया|

प ६६ ६७

जञान का मल सवरप जीिन जञान और असतितव सहज सहअसतितव रपी वयिसथा का जञान ह| जीिन जञान मानि सवय अपन जीिन सहज वकरयाकलापो क आिार पर विशवास करना बन पाता ह| यह मलत अनभि सहज वकरया ह| इसको जानना-मानना एक आिशयकता ह ही | जीिन को जानन-मानन क करम म शरीर रिना और शरीर सीमाओ क सनदभश म भल परकार स पारगत होन की आिशयकता ह| जीिन और शरीर क सयकत रप म ही जञानािसथा परकाशमान होन क आिार पर ही मानि सहज वििी स ही

१) अपना ही कलपनाशीलता कमशसवततरता शरीर स लभनन तरग क रप म अनभि करना बनता ह

२) आशा वििार इचछाए जीिन सहज वकरया होन क रप म सवय म सवय स सवय क ललए परीकषण वनरीकषण कर सकता ह

३) आसवादन तलन चिितन बोि करम म अधययन वििी म जो अनभवतयाा परतीत होती ह या भास-आभास होता ह इसका परीकषण सवय ही हर मानि हर काल म हर दश म वकया जाना समीिीन ह|

इन वकरयाकलापो क वनररकषण स पता लगता ह वक जीित मानि म आसवादन का अनभि भास नयाय िमश सतयरपी वनतय िि का भास होना हर वयततकत अपन म वनसिय कर सकता ह| चिितन म ही नयाय िमश सतय का आभास होना और परतीत होना परमाखणत होता ह|

साकषातकार अपन म परयोजनो का वनशचयन सहहत तपती क ललए सरोत रप म अधययन वििी स पहिान लता ह| फलसवरप बोि पिशक अनभि म सारथशकता सहहत नयाय िमश सतय सहज सवीकवत ही ससकार और अनभि बोि रप म जीिन म अविभाजय वकरया रपी बदधी म सथाततपत हो जाता ह| यही अधययन पिशक होन िाली अदभत उपलबधी ह| नयाय सहज साकषातकार सहअसतितव सहज सबिो का साकषातकार सहहत मलयो का साकषातकार होना पाया जाता ह ( यह सिारना ह यहाा मलयो स तातपयश मानि मलय अरथिा मानिीय सवभाि स ह कयोकी मलयो का साकषातकार होता नही िह बहत ह ) | यही मखय वबिद ह | सह-असतितव सहज सबिो को पहिानन म भरम रह जाता ह यही बिन का परमाण ह| यही जीिन को शरीर समझन (मानन) की घटना ह|

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मानि सितनािादी मनोविजञान ndash सस १९९८

प १९३

समपणश समझदारी शरवत समवत पिशक मानि स मानि को पीढ़ी स पीढ़ी को सपरततषत होता ह खजसम

स बोि होन पयशनत शरवत ह बोि म अपन म जानन मानन का सवरप ह इसका तततपत वबिद अनभि ह इस परमाखणत करन क करम म शरवत समवतपिशक बोि कराया जाना पाया जाता ह परतयक मनषय की सपणशता अपन म भाषा भाि भवगमा मदरा अगहार सहहत ही सारथशकता को पहिाना जाता ह शरवत समवत पिशक मलयाकन करत ह

प १८३ १८४ - भाषा शरवत (अभयास-अधययन करम म जो भाषा परयोग होना ह)

शरवत सह-असतितव सहज अलभवयततकत ह सह-असतितव सहज असतितव वनतय ितशमान ह ितशमान म ही मानि न अपनी कमश सवततरता कलपनाशीलता का परयोग वकया ह कर रहा ह करता रहगा मानि म ही शरवत समवत सहज परकाशन परमाखणत होना पाया जाता ह खजसस भास- आभास परतीवत पिशक अनभि होना पाया जाता ह इसी कारणिश उस उसक सहज रप म समझना कायशकरम ह इसका परमाण यह ह वक मनषय ही असतितव म धववन शबद नाद भाषा ि िि सहज परभदो को जानता मानता पहिानता ह अरथिा इसक योगय ह जस-पदारथश अिसथा म पा जान िाली वयिसथा का मल रप परमाण म भी धववन और िि को पहिानता ह

फलत अणओ क रप म होना सवाभाविक ह पराणकोशाओ म धववन ि कायश सकतो को परसपर कोशाए पहिानत ह फलसवरप रिनाए सपनन होती ह उसी भावत जीिो म भी शबद धववन और नाद उनक परसपर पहिान म होना पाया जाता ह मनषय म शबद धववन नाद ि भाषा य सहज ही परसपर ििओ को इवगत करन क अरथश म जानन मानन पहिानन को ततमलता ह भाषा का तातपयश होता ह खजसस िि सहज सतय भास हो जाय मानि भाषा म सतय भास आभास परतीवत सहहत अनभि होन क अरथश म ही परयोग वकया जाता ह यही जागवत सहज सपरषणा ह इसी करम म भाषा क परवत विशवास हो पाता ह मनषयतर परकवत म भी अपन अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा को परमाखणत करन क करम म समपणश धववन नाद ि शबद को दखा जाता ह जागत मनषय परसपर भाषा दवारा इवगत होना िाहता ह या इवगत कराना िाहता ह

भाषा धववन नाद ि शबद क मल म दखन पर पता िलता ह वक इका म सवय सफतश अलभवयततकत ह मल इका का तातपयश परमाण ही ह परमाण ही विकास पिशक जीिन जीिन जागवत पदो म और परमाण ही विकास करम म अण कोशा रिना ि विरिना क करम म असतितव म होना पाया जाता ह परमाण ही मलत वयिसथा का मल ह भौवतक वकरयाकलाप रासायवनक वकरयाकलाप जीिन वकरयाकलाप क मल म परमाण ही वयिसथा का िारक-िाहक होना पाया जाता ह मनषयतर तीनो अिसथाए अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा क रप म इस िरती म विदयमान ह मनषय भी मानितव सहहत वयिसथा क रप म परमाखणत होन क ललए परयतनशील ह इसकी सभािना समीिीन ह

समपणश शरवत परतयक एक अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा को बनाए रखन क ललए ही उदगमशील ह शररवत को धववन शबद नाद ि भाषा क रप म मनषय पहिानता ह इसकी सारथशकता को पहिानना शष रहा इसी करम म गवत लय तरग को भी पहिानता ह यह विविि परकार स शररवत को ही िि क रप म समझन का परयास सारथशक

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होता ह शरवत का तातपयश सथसथवत सतय िि सथसथवत सतय ििगत सतय को इवगत करन बोि करन क ललए ही सनन योगय ि सनान योगय सभाषण ह पणशता को इवगत करन करान क अरथश म परयोग वकया गया भाषा एि पररभाषा ह सनन सनान क ललए सवय सफतश मानि अपकषा ह सनान योगय भी सवय सफतश सपरषणा ह सपरषणा का तातपयश पणशता क अरथश म परित होन की परवकरया ह सनन क करम म भी पणशता को पहिानन सहज अपकषाए बनी ही रहती ह पणशता अपन म वनरतर ह इसका सामानय सवरप असतितव म पणशता परमपरा क रप म परकाशशत ह असतितव म पणशता गठन पणशता वकरया पणशता आिरण पणशता ही ह रासायवनक भौवतक इका या अपन-अपन िातािरण सहहत समपणश ह ही पदारथािसथा पराणािसथा जीिािसथा की परपराए उन उन की lsquoतवrsquo सहहत वयिसथा क रप म सदधतरत वयाखयाततयत ह यह परपराए पणशता सपणशता सहज ही वनरतरता को परापत वकए ह िह lsquoतवrsquo सहहत वयिसथा समगर वयिसथा म भागीदारी ह यही िभि-सतर ह

मानि ऐसी शरवत परमपरा को िाहता ही ह वक इसस यरथारथशता िािविकता और सतयता सहज ही समझ म आय जीिन सहज खजजञासा कयो ह कसा ह कबस ह कसा बना ह इस परकार क परशन अपन आप उदय होत ही ह यह कलपनाशीलता की गररमा ह इसका उततर पाना समािान पाना परमाण पाना परमाखणत होना यह ही शरवत समचचय की सारथशकता म होना पाया गया

समपणश िाङमय अरथात शरवत (सनन योगय सनान योगय भाषा पररभाषा जो सोि वििार वनशचय और समझदारी परितशन भाषाकरण सतरीकरण िाकय परबिन सिाद क रप म परिललत रहता ही ह) यरथारथशता का सवरप जसा खजसकी मौललकता ह उस इवगत करन वनदशशत करन और चिखनहत करन क रप म शररवत का परयोजन सारथशक होता हआ नजर आता ह खजसका जो अरथश का सवरप परतयक एक म रप गण सवभाि क रप म वयाखयाततयत होना पाया जाता ह इन िारो आयामो की अविभाजयता म परतयक एक वयिसथा क रप म मलयावकत होता ह और परतयक एक वकरया क रप म ही ततमलता ह

जबवक मानि भाषा कारण गण गखणत क अविभाजय रप म ह खजसस ही परम सतय रपी सह-असतितव भासा आभास पिशक परतीवत सहज बोि सारथशक होना पाया गया फलत अनभि होना धसदघ हआ प ४४ भततकत सहज अलभवयततकत जागवत गामी विधि स अरथिा जागवत करम विधि स भास आभास परतीवतयाा और जागवत-पणश विधि स परतीवत अनभवत ि उसकी वनरतरता दोनो सथसथवतयो म तनमयता तारतमयता और उपादयता सपषटतया समझ म आता ह प ८६ ndash मन म होन िाली सवागत वकरया ndash अभयास-अधययन करम म

सवागत - (1) अििारणा अनभि क ललए सवीकत वकया (2) वनयम नयाय समािान सतय सहज सवीकवतयो असवीकवतयो क ललए तयाररया (वििक ि विजञान सममत मानधसक ििाररक और ऐचिक तयाररया)

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इदधदरय सदधननकषश म भी सवागत भाि का भास आभास होना पाया जाता ह खजसकी वनरतरता की अपकषा ही रह पाती ह यह वयिहार म परमाखणत नही हो पाता अतएि सवागत का आिार समपणश मलय सवागत होना पाया जाता ह ििओ का िारक िाहकता म भी जीिन रहता ही ह

समपणश अििारणाए मौललकता क रप म होना पा जाती ह मौललकताए िमश और सवभाि क ही सतर ह समपणश असतितव म परतयक एक अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा ह समगर वयिसथा म भागीदार ह कयोवक असतितव म समपणश इकाइया (अरथिा समि इका या) सह-असतितव सतर म सदधतरत ह प २१८ इवगत होना ही वयजना ह वयजना ही करम स भास आभास परतीवत अििारणा एि अनभवत ह प २१

ियन-वकरया अरथात गरहण करन का वकरयाकलाप पराितशन विधि स और आसवादन वकरया परतयाितशन विधि स सवय म सपनन होती ह विशलषण वकरया पराितशन विधि स और तलन वकरया (ततपरय हहत लाभ नयाय िमश सतय दवषट) परतयाितशन विधि स सपनन होती ह चितरण वकरया पराितशन विधि स इचछा पटल म चिदधतरत हो पाती ह पराितशन म रिनाओ वकरयाओ क रप म परमाखणत हो पाता ह और चिनतन-वकरया साकषातकार विधि स सारथशक होती ह साकषातकार की समपणश िि जीिन मलय मानि मलय सथाततपत मलय शशषट मलय और िि-मलयो क रप म दरषटवय ह मलयो का सतलन तलन होकर तततपत विधि म सलगन रहता ह इस परकार साकषातकार की तततपत का सरोत मलय ह और उसकी (मलयो की) वनरतरता का भािी होना पाया जाता ह

जीिन म सपनन होन िाली अििारणा बोि-बशदघ सहज परतयाितशन वकरया ह सभी अििारणाए अधययन और अनसिान विधि स सथाततपत हो पाती ह अनभि मलक विधि अनभिगामी पदघतततत स बोि होना पाया जाता ह अनभि सतय बोि करान म परमाखणत होता ह और सकलप पणशता क अरथश म कलपनाओ को गवत दन स ह कलपनाए - आशा वििार इचछा क सयकत रप म परिाहहत रहती ह जीिन शततकत अकषय होन क कारण परतयक वयततकत म कलपनाशीलता का अकषय होना पाया जाता ह कयोवक यह कलपना जीिन शततकतयो का ही परिाह ह कलपनाए सतय सकलप क अनरप परािवति त होकर मानि परमपरा क अखड समाज सािशभौम वयिसथा क रप म सारथशकता को परमाखणत करती ह

प ४९-५०

पिानकरम पदघवत परणाली मानिीयता पणश वििार-चिितन-बोि-अििारणा और अनभि मलक होन क करम म अधययन गमय ह पिानकरम विधि स ही मनन पिशक मानयताए सथाततपत हो पाती ह फलत मानि परमपरा क ललए उपकारी और सारथशक धसदघ होती ह

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प ५१ ५२

वनषठा - जागवत पणश लकषय को वनचशचत अििारणा ि समरण पिशक परापत करन ि परमाखणत करन का वनरतर परयास

वयजनीयता का तातपयश - साकषातकार होन स ह साकषातकार चिितन म होता ह वयजनाए मानि मलय जीिन-मलय सथाततपत मलयो क परभाि क सारथ जीिन मलयो का बोि ि अनभि करन स ह समपणश रसानभवत का तातपयश ह - जीिन मलय रपी सख शावत सतोष आनद सहज आपलािन जागवत सहज परमाणो क रप म सपषट होना यही अनभि करन और बोि करान का तातपयश ह

प ७५-७७ गर और शशषय

पररभाषा गर - शशकषा ससकार वनयवत करमानिषगीय विधि स खजजञासाओ और परशनो को समािान रप म अििारणा म परसथाततपत करन िाला मनषय गर ह जागवत करम म मानि को अपरापत का परापत अजञात का जञात करन क ललए होन क ललए विधि वनयम परवकरया सहज समझदारी म पारगत बनाना ही परमाखणकता का परमाण ह परमाखणकता पणश गरजन ही असतितव सहज सह-असतितव रप म अििारणा को परवतसथाततपत करा सकता ह अििारणाय असतितव विकासकरम विकास जीिन जीिनी करम जीिन जागवतकरम जीिन जागवत सहज रप म परसपरता म अरथात समझा हआ और समझन क ललय तरथा मनषयो स ह गरजन इन मददो म पारगत रहग यह समझदारी ह समझदारी क आिार पर ही मानिीय शशकषा-ससकार सपनन होता रहगा ससकार का तातपयश ही अििारणा ह विदयाचरथि यो म सथाततपत होन स उसकी वनरतरता का परमाण वयिहार वयिसथा म परमाखणत होन स ह फलसवरप ही अखणड समाज सािशभौम वयिसथा म भागीदारी सहज कायश-कलाप हर मानिीय शशकषा-ससकार समपनन मानि स िररतारथश होना पाया जाता ह

परामाखणक - परमाणो का िारक िाहक - यरथा असतितव दशशन जीिन जञान मानिीयता पणश आिरण समचचय को परयोग वयिहार अनभि पणश विधि स परमाखणत करना और परमाणो क रप म जीना

पररभाषा शशषय - जागवत लकषय की पवति क ललए शशकषा ससकार गरहण करन सवीकार करन क ललए परित वयततकत खजसम गर का समबनध सवीकत हो िका रहता ह यही खजजञासातमक शशषटता ह

खजजञास - जीिन जञान सहहत वनभरशम शशकषा गरहण करन क ललए तीवर इचछा का परकाशन

समझन सीखन करन क ललए पणश खजजञासा सहहत परयतन सपनन वयततकत शशषय क रप म शोभनीय होता ह सफल होन क सभी लकषणो स यकत िातािरण म विशवास होना और विशवास को िातािरण म परभावित करन परमाखणत करन की सभी परवकरया अधययन ह

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असतितव विकास जीिन जीिन जागवत रासायवनक-भौवतक रिना-विरिना समपणश मानि क ललए समझन-समझान की िि ह सीखन की जो कछ भी परमाखणत िि ह यह मानि म मानिीयतापणश आिरण कमश अरथात वयिसाय म सवािलमबन वयिसथा म भागीदारी मानिीयता पणश आिरण का अभयास परामाखणकता सहज अलभवयततकत ह सारथ ही सािशभौम वयिसथा और अखड समाज म वनषठा ह य समपणश खजजञासाए वयािहाररक रप म िररतारथश होती ह परौढ़ता की पराकाषठा म स क ललए सवानशासन की खजजञासा का होना पाया जाता ह खजजञासा मानि सहज परकाशन ह

प १०६ जीिन को तातवतवक रप म समझन की खजजञासा हो ऐसी सथसथवत म परमाण म होन िाली विकास परवकरया उसक सकरमण िभि को भी जो ितनय इका क रप म परवतवषठत ह को सहज ही अधययन अििारणा म लाना एि अनभि करना आिशयक ह

अनभिातमक आधयातमिाद सस २००० (प ५८ ndash ६५) अनभव ही दसर नाम स परतयावरतन करिया ह और इसका परावरतन करिया को परामाणिकरा-परमाि नाम ददया ह जागकरर सह-असतितव म अनभव हई ह इसी जागर सथिकरर म होन वाली गकरर को परतयावरतन नाम ददया गया ह समपित परतयावरतन दरतन और जञान नाम स परकररकरिर ह जञान और दरतन सवाभाकरवक रप म ओर-परोर रप म वरतमान ह समपित असतितव सतता म सपकत जड़-चरनय परककरर ही सह-असतितव का मल सवरप ह इसका सामानय कलपना हर मानव म होना सभव ह कलपना का मल सतरोर आरा करवचार इचछा का असपषट गकरर रप ह कयोकरक समपित कलपनाए परावरतन म कायतरप रहना दखा जारा ह मानव ही कलपनारीलरा का परयोग कररा ह इस ऐसा भी कहा जा सकरा ह करक हर वयकतकत परकारानतर स कलपनारीलरा का परयोग कररा ह भरकतमर मानव दवारा कलपनारीलरा का सवाधिक परयोग ररीर और इनदरिय सदिकरत क रप म ही सवाभाकरवक ह यह भरम करववररा ह यही कलपनाए चचणिर रप म सपषट होन क ललए रतपर होर ह रभी करवधिवर करवशलरि और करनचिर चचतरि करवचार रप म समभावनाओ को सवीकारना बनरा ह सभावनाओ का लकषय कतपरय हहर लाभ सीमाओ म सीकतमर रहना पाया जारा ह यही भरमातमक कायत सीमा का अथ इकरर ह जागकररपित जीवन चचतरि म यह रथय ससपषट ह करक नयाय िमत सतय उसका साकषातकार बोि अनभव ही अधययन और अनसिान का लकषय और कायत ह इिी कायत रप क आिार पर असतितव और जीवन अविारिा म िाकतपर होना सफल अधययन का दयोरक और कसौटी भी ह इसी क आिार पर सवायतत मानव का सवकषि करनरीकषि और परीकषि होना सपषट हो जारा ह सवायतत मानव ही असतितव म अनभव सहज जागकरर का िारक-वाहक होना सपषट ह इस परकार अधययन सहज रप म जीवन और सह-असतितव म अनभव बोि की अलभवयकतकत और परमणिर होन क िम म आतमा असतितव म अनभर होना जीवन म किीय होना मधयि करिया और मधयि बल समपिरा का सवीकर होना परम रपत होना ह जीवन रचना मधयार सहज मधयि करिया मधयि बल मधयि रकतकत सरलन क अथत म सदा-सदा परयकत रहरा ही ह यही जागर

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 12

मानव परपरा म परमाि ह मधयि करिया समम_य िम स जीवनी िम और जीवन जागकरर िम वयकत होरा ह इसी िम म जागर होना जीवन सहज परवकततत परयास आवशयकरा क योग-सयोग करवधि स समपि होरा ह यही अनसिान रोि और अधययन क ललए भी सयोजक रतव ह यह रतव सदा-सदा जीवन परकररिा म कायतरर रहरा ही ह इसकी परखररा क आिार पर ही अनसिान रोि अधययन सहज हो जारा ह इस परकार यह ससपषट हो जारा ह करक आतमा अधययन करवधि स असतितव म अनभर होरा ह दसरा अनसिान करवधि स भी असतितव म अनभर होना पाया जारा ह ( अनसिान विधि जो शरी ए नागराज न कीया सािना gt समािीgt सयम | अधययन विधि पिक एि वकसी समझ हए वयकती क माधयम स शशकषा-ससकार परापत करना) अनसिान करवधि स भी सवतपरथम असतितव म बोि होना दखा गया ह इसक उपरानत ही आतमा असतितव म अनभर होना दखा गया ह अधययन करवधि स भी यही सथिकरर अथार पहल बोि रदोपरार अनभव होना पाया जारा ह इन दोनो करवधियो म स अधययन करवधि लोकवयापीकरि क ललए कम समय म बोि होन की सथिकरर बनरी ह अनसिान करवधि म परवतत होन क ललए वयकतकत म लकषय सममर णजजञासा का होना अकरनवायत ह जब अधययन करवधि स समपित परशनो का उततर कतमल जारा ह परशन िली ररकत होना उसी िली म समपित उततर िाकतपर होना अधययन और अधयापन का सयोग और फलन ह परशन करवहीन सथिकरर म अनसिान का आिार नही बनरा इस परकार परपरा म सभी परशनो का उततर अधययन करवधि स हर मानव म हर सथिकरर पररसथिकररयो म समपित परशनो का उततर सह-असतितव सहज करवधि स समीचीन ह अनसिान करवधि एव अधययन करवधि स पहल बोि ही होरा ह रदोपरार lsquolsquoबोिrsquorsquo का आतमा म अनभव होरा ह अनभव क उपरानत lsquolsquoअनभव सहज बोिrsquorsquo अधययन एव अनसिान करवधि म एक जसा होरा ह एव एक ही होरा ह इसम मखय रथय यही ह यथाथतरा वासवकररकरा सतयरापित करवधि स अधयापन सामगरी वि परकरिया पररपित रहना आवशयक ह ( अधययन अरथिा शशकषा वििी म) अनसिान क ललय अजञार परशन चचि अकरर आवशयक ह हर अनसिान को अधययन और अधयापन कायत करवधि स लोक वयापीकरि होना सगम हो जारा ह इस परकार अनभव क अननतर ही अनभव lsquoबोिrsquo होना दखा गया ह यह हर वयकतकत म होना समीचीन ह (प १०७ १०८ १०९ इसक उपरानत जागकरर और जागकररपितरा ही मणजलो क रप म दखन को कतमलरा ह यह मलर करवचार चचतरि अविारिा अनभव और चचनतन का ही वभव रपी मानधसकरा क रप म दखा गया ह भरम का समपित सवरप आरा करवचार इचछा (चचतरि) का कतपरय हहर लाभातमक दकरषटयो की करियारीलरा ही ह सवतमानव पीड़ा स मकतकत चाहरा ही ह यही जागकरर सहज अपकषा का सरोर और समभावना ह जीवन सहज करियाकलापो म स नयाय िमत सतय का साकषातकार और दषटा होना और उसका परमाि धसदघ होना ही समपित जागकरर ह दषटापद म होन वाली समपित करियाकलाप जीवन सहज करवधि स जानन-मानन-पहचानन-करनवाह करन क रप म होना पाया गया ह जानन-मानन की समपित वि जीवन जञान सह-असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान ही ह

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अनभव असतितव म ही होना पाया जारा ह अनभव क पहल समझदारी जानन-मानन-पहचानन क रप म होना पाया जारा ह यही अधययनपवतक होन वाला अविारिा ससकार ह इसक पवत रप म करवचार और चचतरि ही रहरा ह यही शरकरर समकरर रबद और चचतरि ह रबद और चचतरि क आिार पर करकरन भी करियाकलापो को मानव सपाददर कररा ह यह सब असथिररा क साथ ही जझरा हआ दखा गया ह असथिररा म भरम ही परिान कारि ह इसीललय ही समरि और चचतरि क उपरानत कही न कही असथिररा-अकरनियरा को परकाशरर कररा ही ह इसी सीमा रक हम इस बीसवी सदी क अर रक झलर आय ह सथिररा की सवीककरर बोि रप म ही होना फलसवरप वयवहार म नयाय-समािान-सतय परमाणिर होना पाया जारा ह ऐसा बोि जानन-मानन-पहचानन का ही महहमा ह यह करिया जीवन म ही जागकरर सहज करवधि स होन वाली वाधिर परकरिया ह असतितव म अनभव सतता म (वयापक म) सपकत परककरर क रप म ही दखा गया ह सतता म सपकत रहन क आिार पर ही करियारीलरा करनयतरि सरलन सरकषि सामय ऊजा सरोर होना दखा गया ह इसीललय परककरर म करनयतरि सरकषि करनररर बना ही रहरा ह अर सतता म करनयतरि सपषट ह (प ७४) असतितव सहज सह-असतितव म जड़-चरनयातमक परककरर करनतय वभकरवर होन का सवरप करिया शरम गकरर पररिाम परकारन सहज करियाकलाप और पररिाम का अमरतव शरम का करवशराम गकरर का गरवय सहज लकषय करनहहर करिया उपयोकरगरा परकरा-उदाततीकरि करनयमो क अनरप समपित भौकररक-रासायकरनक जीवन रपी परककरर म करनतय रचना-करवरचना lsquoतवrsquo सहहर वयविा और उसकी परपरा भल परकार स बोि करान की सहज-करिया समपि करकया जा चका ह इसी िम म शरम का करवशराम गकरर का गरवय रपी परमािो को मानव परपरा म परमाणिर करन की आवशयकरा रहा ह इस सवतसलभ लोकगमय करन क ललए अधययनपवतक जागकरर करवधि और इसक परमाि म बोि परिाली को पहचाना गया यह भी अनभव करकया गया ह करक बोि होना समझदारी का ही दसरा नाम ह अथवा बोि का ही दसरा नाम समझदारी ह ऐस समझदारी अधययनमलक परिाली स अविारिा म िापकरर होना ऐसी अनभव मलक अविारिाओ को अलभवयकत सपरकतरर परकाशरर करन क िम म असतितव म अनभव एक अवशयभावी परकरिया क रप म सपषट हई ह इस िम म असतितव म अनभव करनतय ह यही मानव का परयोजन ह जीवन करनतय ह असतितव सथिर ह इसी आिार पर अनभव और अनभव िम अलभवयकतकत सहहर जागकरर सहज जीवन का गनतवय अथार जीवन म जागकरर पितरा ही जीवन गकरर का गरवय िली होना उसकी करनरनतररा सदा-सदा क ललय बना ही रहना दखा गया इिी आिारो पर lsquoअसतितवrsquo सतता म सपकत जड़-चरनय परककरर क रप म परकररपाददर हई सह- असतितव करवधि स वयाखयाकतयर हई यह महहमा जागकरर पित जीवन सहज अलभवयकतकत ह (प १८३) जीवन जञान सह-असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान रथयो सहज करवधिवर अधययनपवतक बोि होना दखा गया ह ऐस बोि सहज रथयो को उदघादटर करन क िम म और लोकवयापीकरि करन क

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िम म परमाणिर होर ही ह फलसवरप अनभर भी होर ह इस परकार करनतय परमाि और अनभव सहज रप म ही समपि होरा हआ दखा गया ह यही कवलय और जागकरर की महहमा ह (प १५४- १५७) जागकरर करवधि और अभयास असतितवमलक मानव कनदरिर चचनतन जञान दरतन आचरि िरवीकर रप म अधययन गमय होना दखा गया ह जीवन जञान जीवन म समपि होन वाली करियाओ का परसपररा सहज िरव करबनदओ क आिार पर उभय रकतपत करवधि सवत रभ एव समािान स दखा गया अलभवयकतकतया ह जसा मन और रकतपत म सामरसयरा का करबनद करवशलरि रलन पवतक आसवादन क रप म पहचाना गया ह यह सह-असतितव अनभव क पिार करनयम नयाय िमत सतय सहज परयोग म अनभर होन क उपरानत ही साथतक हो पारा ह इसक ललय अथार ऐस अनभकरर क ललय अधययन िम स आरभ होरा ह अधययन अविारिा कषतर का भरर-भरर वरतमान करवधि ह इस करवधि स णजरनी भी अविारिाए अधययन स समबदघ होरा गया उरन ही अविारिा क आिार पर परवकततत सहज नयाय िमातमक और सतय सहज रलन नयाय रलन समपि करवचार क आिार पर करकया गया आसवादन सहहर समपि करकया गया सभी चयन नयाय रप होना दखा गया ह इसी परकार ऊपर कह चचनतनपवतक जब चितरण रलन करवचार आसवादन और चयन करियाए समपि होर ह नयायपवतक वयविा म परमाणिर होना दखा गया अविारिाए सवाभाकरवक रप म ही असतितव सहज होन क आिार पर सह-असतितव रप होन क आिार पर अनभर होना अथार जानना-मानना और उसक रकतपत करबनद को पाना ही अनभव ह जानना-मानना-पहचानना ही अविारिा ह इसम रकतपत करबनद को पा लना ही अनभव ह इस कायत-वयवहार वयविा म वयकत कर दना परामाणिकरा ह अनभव परमाि पित बोि सहहर समपि होन वाल सकलप चचनतन चचतरि नयाय िमत सतय रपी रलन करवशलरि आसवादन सहहर करकया गया समपित अलभवयकतकतया वयविा और समगर वयविा म भागीदारी करनवाह कररा हआ ही दखन को कतमलरा ह इस करवधि स जागकररपित मानव ही असतितव म भरम बनधनो स मकत होना सपषट करकया जा चका ह जागकरर करवधि अधययन रपी सािना करवधि स सवाधिक उपयोगी सदपयोगी परयोजनरील होना दखन को कतमला ह इस करवधि स साधय सािक सािन का सामरसयरा सवय सफरत करवधि स समपि होना दखा गया ह जागकरर क ललय हर मानव सािक ह साधय जागकरर ही ह सािन जागकररगामी अधययन परिाली ह इस िम म परमपरा सािन परकररिा क रप म रन-मन-िन वयविा और समगर वयविा म भागीदारी का परमाि मानवाकाकषा क रप म होरा ही ह इस परकार स साधय-सािक-सािन का सयोग मानवीयरापित परपरा करवधि स सफल होन का सवरप सपषट ह ऐस परपरा क पवत (जस आज की सथिकरर म भरकतमर समदाय परपराए) मानवीयरापित परपरा म सिकतमर होन की कायतपरिाली मददा ह इस िम म अनसिान क अननतर णजरन भी रोिकरा सममर होर जार ह और सममकरर क अनरप करनिा उदगकतमर हो जारी ह और भी भाराओ स सवय सफरत करनिा उदगकतमर होरी ह ऐस ही करनिावान मिावी इस कायत म सलगन ह यही आज की सथिकरर म जागकररगामी अधययन जागकररमलक अलभवयकतकत सहज करवधि एक स अधिक वयकतकतयो म परमाणिर होन का आिार बन चकी ह जागकररपित परपरा म साधय सािन सािक म करनतय सगीर होना दखा गया ह दसर भारा म करनतय समािान होना पाया गया ह

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उललणखर अनभवो क आिार पर समपित जागकरर अपन-आपस जीवन जञान असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान म ही समपित ह इसका अभयास करवधि सवतपरथम अनसिान दसरा अधययन पवतक रोि रोि पवतक अधययन य ही मल अभयास ह कयोकरक अधययन करवधि स ही रोि करवधि स ही अविारिा का सवीकर होना दखा जारा ह अनय करवधि जस उपदर करवधि म भरकतमर होन की सभावना सदा बना ही रहरा ह हर परपरा म अपन ढग की आदर परकररिा िाकतपर रहरा ही ह वह अधययवसाकतयक (अधययनगमय) होर रक उपदर या सचना मातर ह परपरा म णजस आरय क ललय आदर-करनदर ह वह रकत सगर-वयवहार सगर बोि होन की परकरिया परिाली पदघकरर ही अधययन कहलारी ह रकत का साथतक सवरप करवजञान सममर करववक और करववक सममर करवजञान होना दखा गया परयोजन करवहीन उपदर परयोग वह भी वयवहार परमाि करवहीन उपदर रब रक ही रह पारा ह जब रक रकत सगर न हो रकत का रातपयत भी इसी रथय को उदघादटर कररा ह रकतपत क ललय आकरति परिाली (भारा परिाली) ऐस रकत सहज रप म ही करवजञान क आशरर करवशलरिो को करववक स आशरर परयोजनो का परमाणिर होना सहज ह हम इस बार को समझ चक ह करक परयोजनपवतक जीन क ललय परमाणिर होन क ललय समािान समशदघ क रप म सह-असतितव दरतन क ललय रकत सगर अधययवसाकतयक करवधि का होना आवशयक ह अधययन करियाकलाप रकतसगर परयोजन परयोजन सगर मानवापकषा मानवापकषा सगर जीवनापकषा जीवनापकषा सगर सह-असतितव सह-असतितव सगर करवकास िम और करवकास करवकासिम और करवकास सगर जीवन-जीवनी िम-जागकरर िम-जागकरर एव इसकी करनररररा सह-असतितव सहज लकषय ह असतितव सहज लकषय म भी मानव ही अकरवभाय ह और दषटा ह इसललय मानव असतितव सहज सह-असतितव करवधि स परकरा-उदाततीकरि परकरा-करवकास परकरा-जागकरर सतरो क आिार पर सह-असतितव सहज अधययन सलभ हआ ह समपित असतितव ही वयविा क सवरप म वरतमान होना समीचीन ह आज भी मानव क अकररररकत सभी अविा म (पदाथत पराि जीव अविा) अपन-अपन तव सहहर वयविा म होना ददखरा ह इसी िम म मानव भी अपन मानवतव सहहर वयविा और समगर वयविा म भागीदारी सहज अपकषा को साथतक बनान क िम म ही जागर होना पाया जारा ह हम यह पार ह करक जागकरर सतर वयाखया और परमाि सवतरभ क सवरप म ही वभकरवर होरा ह इस आरय को लोकवयापीकरि करना भी सवतरभ कायतिम का एक बकरनयादी आयाम ह इसी सतयरावर lsquolsquoअनभवातमक अधयातमवादrsquorsquo एक परिकरर ह हर मानव अपन कलपनारीलरा कमतसवरतररा पवतक ही हर परिकररयो को परखना (परीकषि करना) सवीकारना या असवीकार करन क कायतकलाप को कररा ह

अनभि दशशन सस २०१२ दधदवतीय (अधयाय -३)

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सतर छद िाकय शबद क दवारा वकरया मातर का िणशन ह सारथ ही जञानानभवत क ललए उपदश पिशक इवगत भी ह बरहम सहज िणशन पारगामी वयापक और पारदशीयता क रप म ह lsquolsquoयहrsquorsquo किल भास आभास बोि तरथा अनभिगमय ह इसका बोि मानि की कषमता योगयता पातरता पर आिाररत ह परतयाितशन पिशक परापत वयजनाएा जागवत क ललए गणातमक गवत ह गणातमक वयजना स सबोि सबोि स सससकार सससकार स गणातमक सिदना (सजञानीयता पिशक सिदना वनयदधतरत) रहना गणातमक सिदना स सतय सकलप तरथा सतय सकलप स गणातमक वयजनाओ की वनरनतरता ह सथसथवत एि वकरया सकत-गरहण कषमता ही वयजनीयता ह सकत-गरहण -परवकरयाबदघ जञान परापय को पान उस सरधकषत रखन क कायशकरम म अलभवयकत ह परापत क अनभि क करम म भास-आभास एि परतीवत ही जञापक (सतयाततपत होना) ह मानि दसरो क ललए भी सकत परसाररत करता ह सकत-गरहण-वकरया ही अनमानारोपण तरथा अनमानाकर भी ह जो सकलप इचछा वििार ि आशा ह अधयाय-७ अलभवयजना म गणातमक विकास का सकत वयजना म उपयोवगता का सकत ह अभयदय पराय (अभयदय जसा) ही अलभपराय ह खजसम अभयदय का भास या आभास होना आिशयक ह

कमशदशशन सस २००४ (प ८६ ८७) परमाण म विकास का तातपयश परमाण क गठनपणश होन स ह|मानि म एक बात की िाहत बनी ह ndash यरथासथसथवत िभि उसकी वनरतरता ndash यह सवाभाविक रप म सवीकत ह| परमाणओ म अशो का घटना-बढ़ना पररणाम क सवरप म हम समझ िक ह| पररणाम का अमरतव उसकी वनरतरता की अपकषा मानि म ही कलपना भास आभास परतीवत क रप म पाया जाता ह

प २० २३ (शासतराधययन की महततव) सदशासतराधययन क वबना सतय कामना एि परितततत सतय कामना क वबना सतय-परम सतय-परम क वबना सतय-वनषठा सतय वनषठा क वबना सतय परवतषठा सतय-परवतषठा क वबना सतय परतीवत सतय-परतीवत क वबना सतयानभाि सतयानभाि क वबना सद शासतर का उदघाटन तरथा सदशासतर क उदघाटन क वबना सद शासतर का अधययन पणश और सारथशक नही ह| मानि को जीिन की परतयक सतिचरथ म शानतनत एि सथसथरता की आिशयकता ह| सदशासतर सिन मनन एि आिरण स वयकती तरथा पररिार म शानतनत तरथा सथसथरता पा जाती ह|

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(सदशासतर सिन = शासतराधययन स शरिण | मनन एि आिरण अभयास-अधययन करम म समपणश मनन परवकरया)

(प ९७ ९८)

सहअसतितविादी विधि स हर मानि मानितव सहहत वयिसथा और समगर वयिसथा म भागीदारी करन योगय इका ह इसम मखय मददा यही ह - सवय को सवय क ललय रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क सयकत रप म होन को सवीकारन की आिशयकता ह जीिन वकरया की महहमा और मानि परमपरा म इसकी आिशयकता धयान म रहना अवत आिशयक ह तभी मानि शोि क ललए ततपर होना पाया जाता ह ऐसी ततपरता जागवत सहज विधि स सिशशभ क अरथश म परिावित होना होता ह तभी सिशमानि समािान पिशक वयकत होन समझदारी पिशक हर पररिार समािावनत और सखी होन की सथसथवत सपषट हो जाती ह फलसवरप समशदघ अभय सहअसतितव परभावित होन का सौभागय उदय होता ह यही मखय वबनद ह सिशशभ का परमाण भी यही ह कयोवक समािान समशदघ पिशक ही मानि सख शानतनत का अनभि करता ह इसी करम म समािान समशदघ अभय सहअसतितव पिशक आननद अपन आप म समपणश होना पाया जाता ह इस ढग स मानि लकषय सारथशक होन की सथसथवत म जीिन लकषय (सख शावत सतोष आननद) सारथशक होता ही ह जीिन लकषय और मानि लकषय सारथशक होना ही अधययन और अधयापन की सािशभौमता ह ऐस लकषय क सारथ मानि परमपरा अपन आप म सवय को पहिानन और समपणश मानि को पहिानन का सतर और वयाखया बन जाता ह परमाण क रप म वयाखया समझ क रप म सतर होना पाया जाता ह यह वनयवत सहज विधि स समीिीन रहना पाया जाता ह वनयवत विधि का तातपयश विकासकरम विकास जागवत करम जागवत ह दसर विधि स भौवतक रासायवनक रिना शरीर और जीिन वकरयाकलाप का सयकत अलभवयततकत समपरषणा परकाशन क रप म ह

मानि लकषय - समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करन और उस आिार पर जीिन लकषय (मनसवसथता) - सख शानतनत सतोष आननद को सारथशक बनान क अरथश म मानि शशकषा ससकार की आिशयकता सदा-सदा स बनी ह ह इसकी सफलता ही मानि कल का सौभागय ह

lsquoमानि कल और रासायवनक-भौवतक वकरयाकलाप का सारथशक परमाणrsquo

शशकषा की समपणश िि सहअसतितव रपी असतितव म रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म ही ह इसम स इनक अविभाजय रप म मानि परमपरा का समपणश वकरयाकलाप वयिहार सोि वििार समझ ह समझ क अरथश म ही हर मानि का अधययन करना होता ह समझ अपन म जानना मानना पहिानना वनिाह करन क रप म परमाखणत होती ह इसी अरथश म समपणश अधययन सारथशक होना पाया जाता ह

असतितव म समपणश इका याा रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म पररलधकषत ह ही (प १०२) वनशचयता सथसथरता सिशमानि म चिराकााकषा क रप म बनी ही ह सहअसतितव रपी असतितव जञान और सवीकवत का आिार ह यह सिशमानि म सिकषण पिशक विदधदत होन िाला तथय ह सवय को जाािन स भी

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 18

यही सपषट होता ह हम सब सथसथरता ि वनशचयता को ही सवीकार करत रह ह न वक असथसथरता अवनशचयता को सथसथरता क सहज आिार पर ही वनशचयता का होना सवभाविक ह (प ११५) इस हम मानि को अचछी तरह स समझन की आिशयकता ह और अनशीलन पिशक सरकषण सििशन विधि स सवय को वयसथसथत कर लन की आिशयकता ह मानि क वयिसथसथत होन क मल म जञान विजञान वििक का एक सगीतमय कायशकलाप सपषट रहन स ह यही कायश-कलाप भाषा कायश-वयिहार म वनयोखजत होकर परयोजनो को परवतपादधदत करता ह मानि का परयोजन समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करना ही ह (प १२२ १२३)

( अनभि मलक वििी स

यरथारथशता िािविकता सतयता का बोि रपी बशदघ की सथसथवत उस परकाशशत करन की परितततत क रप म सकलप ही गवत ह नयाय िमश सतय क साकषातकार करन क रप म चितत सथसथवत और इसका चितरण क रप म चिदधतरत हो पाना गवत ह चितत वकरयाकलाप का समपणश चितरण तलन क रप म अरथात नयाय िमश ि सतय रप म सपषट होना ितततत सहज सथसथवत ह ितततत म समपनन हय तलन का विशलषण विधि म विशलततषत होना ि समपरततषत होना ितततत सहज गवत ह विशलषण क सपषट अरथिा सार रप म मलय सवीकत होता ह इस आसवादन करना ही मन की सथसथवत ह इसकी सारथशकता क ललय ियन वकरया को समपादधदत करन क रप म गवतत होना हर मानि म सिधकषत ह इस ढग स मानि भी सभी परकार स सथसथवत-गवत म होना सपषट होता ह इस परकार मानि समझदारी स समपनन होन क उपरानत परमाखणत होना सवभाविक होता ह इसका मतलब यही हआ हम जब तक परमाखणत नही होत तब तक परमाखणत होन क ललए जञानाजशन वििकाजशन विजञानाजशन कर लना ही शशकषा और शशकषण का तातपयश ह इसक ललए सह असतितविादी शशकषा करम समीिीन ह अतएि समझदार मानि होन क ललए धयान दन की आिशयकता ह

सह-असतितविादी वििार जञान वििक विजञान को समझना ही समझदारी ह

ldquoअधययन रपी उपासनाrdquo (अभयास) - कमशदशशन सस २००४ प ४९ ५०

मानि जीिन म उपासना एक महतवपणश भाग ह| उपासना ही मल परिततततयो का पररमाजशन एि पररितशन परवकरया ह| यही ससकार एि सवभाि पररितशन भी ह| ( उपासना = उपायो सहहत लकषय पती क ललए कीया गया वकरयाकलाप) उपायपिशक सहिास पाना ही उपासना की अििारणा ह खजसक ललए पररशरम (पररमाजशन शरम) एि अभयास ह| अभयास एि पररशरम स ही सथल सकषम कारण की सथसथवतितता सपषट ह| खजसस ततसबिी पदारथश वनयवत-

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करम शततकत महहमा विभती एि वनयम सबिी अनसिान (अनगमन पिशक अििारणा) शोि परधसदध ह| अनसिान भौवतक बौदधदधक तरथा आधयातमतमक भद स ह| अनसनधान परवकरया मनन चिितन सकलप एि अनभती क रप म परतयकष ह|

सथल सकषम कारण (दषटा) का तातपयश दखन समझन परयोग करन वयिहार करन एि अनभि करन योगय कषमता क सपनन होन स ह |

परिततततयो का पररमाजशन ही मानि जीिन का कायशकरम ह| मानि म पणशता एि पररमाजशनशीलता की अपकषा परतयक सथसथती म पा जाती ह| पणशता ही पादधडतय ह| पादधडतय स अधिक जञान एि वनपणता कशलता स अधिक वयिहार एि उतपादन नही ह| पररमाजशनशीलता उतपादन ि वयिहार म पा जाती ह| पादधडतय परबदधता परबदधता ही शशकषा एि वयिसथा ह| परबदधता स पररपणश होत तक उपासना अतयत उपयोगी ह|

प ५६ स ७२ (इनम स कछ ही िाकयो को ललया गया ह| समपणश क ललए पिक दख) उपासना स सािशभौततमक मलयो का अिगाहन करना ही परिान उपादयता ह| समि उपासनाओ क मल म लकषय समय ह िह अखड समाज सािशभौम वयिसथा ह| िह किल सिश

मगल ही ह| कयोकी सिश मगल की कामना क वबना सवय का मगल धसदध नही ह| अनय कामय कामनाए किल मगलमयता की भास परदायी ह न की अनभिदायी| इसललए सिशमगल

कामनारपी कायशकरम तःरथा उसकी अनसरण योगय कषमता पयत मानि परयास करन क ललए बाधय ह| सही क परती भरततमत रहना ही मत सपरदाय एि िगश का कारण ह|

मत सापरदाततयक िगीयता म आचरथिक िगीयता एि आचरथिक िगीयता म मत-सापरदाततयकता समा ह ह|

इसका वनराकरण सपषटतया सािशभौततमक रप म पा जान िाली मानिीयतापणश पदधवत स ldquoवनयम-तरयrdquo (बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक) क आिारपिशक ही आचरथिक एि सापरदाततयक िगश-भािनाओ स मकत होन की समभािना एि मकती ह| इसी म समि िगश-भािना विलीन हो जाती ह| इसीललए ndash

उपासना की उभय पदधवत का अभीषट समझदारी जागवत पिशक सारथशक होता ह जो जागरण ह| मानि म शततकतया वकरया इचछा एि जञान शततकत ही ह जो उनकी अहशताए ह| अहशताए परतयक इका

की जागवतशीलता जागवत पर आिाररत ह| शबद सपशश रप रस गिनतियो दवारा शततकतयो का अपवयय न होना सारथ ही सदवयाय होना ही

वकरया शततकत की जागवत ह| सदवयय एि अपवयय का वनिारण मानिीयता क सीमा म ldquoवनयम-तरयrdquo क रप म ह |

अतकरण मल परितताा अरथात आशा वििार इचछा ि सकलप का अपवयय न होना ही सदवयय ह| यही इचछा शततकत का जागरण ह|

समयक-बोि एि अनभती पणशता ही जञान परकटन कषमता ह| यही जञानशततकत का जागरण अरथिा पणश जागरण ह| यह ldquoजागवत-तरयrdquo मानिीयता एि अवतमानिीयता म परतयकष ह| यही मानि जीिन की िरमोतकषश

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उपलसतबध ह| सशकत उपासना क उपादयता यही ह यही समगर मानि की कामना ह| यही सिशमगल ह| इसीललए

जीिन-जागवत का परतयकष सवरप ही वििक पणश विजञान का परयोग ह यही सतकशता अखणड सामाखजकता परबदघता वनविि षमता सह-असतितव शशकषा विधि वयिसथा सभयता ससकवत बौशदघक समािान भौवतक समशदघ और जीिन जागवत की वनरनतरता ह

पणश जागवत पयशनत परतयक मानि इका परयास एि उपासना क ललय बाधय ह इसी क फलसवरप मल परिततततयो का पररमाजशन होता ह खजसक कारण विशशषट और शशषट मानधसकता एि वििार चिनतन-बोि कषमता अनभिपणशता परतयकष होती ह यही शरषठ उपासना की उपलसतबधयाा ह

इसललय समान क सारथ वयिहार करन क ललय बाधय हआ ह यही सामाखजकता की बाधयता ह यही मानि जीिन की गौरि और गररमा ह यही गररमा समान क सारथ वयिहार अधिक जागवत क ललय अभयास करन क ललय पररणा ह यही िािविक उपासना ह

वििक अरथात मानि लकषय और िरागय अरथात समशदघ ही उपासना का परतयकष फल ह खजसम सामाखजकता सवाभाविक रप स समाहहत रहती ह

िरागय का पराितशन ही असगरह (समशदघ) उदारता एि दया ह भौवतक समशदघ म उदारता एि दया क मौललक मलयो का अनरजन ही सामाखजकता का पराण ततव ह यही सामाखजक सगीत ह इसी क ललय मानि तततषत ह वििक ही बौशदघक समािान एि सामाखजक मलयो को वनिाह पिशक परकट करता ह इसललय

वििक ि िरागय ही परोकष जञान (सदवयिहाररक जञान) का परिान लकषण ह अनभि ही परोकष जञान की अनतनतम सथसथवत ह इसक पिश अनमान अधिकार ही परधसदघ ह ििसथसथवत ििगत सथसथवत सतय म ही अनभि ह

परोकष जञान क वबना वनतयावनतय यकतायकत नयायानयाय िमािमश सतयासतयइषटावनषट दषटादषट तरथा परोकष जञानाधिकार धसदघ नही होता ह

वनतयावनतय जञानाधिकार क वबना मनषय म सविमश क परवत वनषठा नही पा जाती ह मानि िमश ही सख सख ही नयायपणश आिरण नयायपणश आिरण ही मानिीयतापणश सीमा एि lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का पालन ह यही मनषय का सविमश ह मानि सख िमी ह

मयादा विहीन इका नही ह जस जीिो म सवभाि मयादा िनसपवतयो म गण मयादा एि पदारथो म रप मयादा-भग नही होती ह यही उनकी गररमा ह इसी परकार मानि म सख ही िमश ह िमश ही मयादा ह यही उनकी गररमा एि विशवास ह मयादा का परतयकष रप ही विशवास ह

lsquolsquoविशवासविहीन समबनध एि समपकश म सख नही हrsquorsquo समबनध एि समपकश विहीन मनषय नही ह यही बाधयता सविमश क ललय ह इसक पालन म जो अकषमता अयोगयता एि अपातरता ह - िही दख कलश समसया और अजागवत ह

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सविमश म समपननता एि पालन करन योगय कषमता योगयता एि पातरता स पररपणश होत तक जञानाजशन करन क अरथश म अधययन रपी उपासना का अभाि नही ह

मानि क सविमश की सीमा म ही मत समपरदाय िगश वतरोहहत हो जात ह यही समरथश उपासना की परतयकष गररमा ह lsquolsquoयही मागललक हrsquorsquo साधय सािक सािन इन तीनो का उपासना म समाहहत रहना अवनिायश ह इनकी एक सतरता ही उपासना की सफलता ह अनयरथा असफलता ह परतयक सथसथवत म परापत शततकत ि सािनो का सदपयोग करना ही उसकी अवगरम जागवत ह यही उपासना ह

इनतिय कायशकलाप तरथा इनतियो का कायशकषतर ही अपरोकष जञान की सीमा ह इस वयापार म ितविि षय सीमानतिती धसशदघयाा ह इसक अवतररकत और उपलसतबधयाा इसम नही ह

विषयो की सीमा म मनषय सीततमत नही ह कयोवक उसम िार आयाम परधसदघ ह

मनषय ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत समपनन होन क ललय बाधय ह यही आिशयकता अिसर सभािना एि वयिसथा ह

सयमतापिशक ही मनषय क दवारा परतयक पररपरकषय म वकय गय वकरयाकलाप म स गररमापणश िभि परकट होता ह जस-

सतयबोि सहहत सतय बोलन का अभयास करन स भय ि अविशवास की वनितततत हषश तरथा उतसाह का उदय होता ह

विशव क परवत मलय भाि की परवतषठा स इषट और सािक क मधय विषमता का अभाि होता ह

शबद क अरथश अरथात मनतरारथश का तदरपतापिशक समरण करन क अभयास स उसका अरथश एि सवभाि गमय होता ह सभी सारथशक शबद मनतर ह

अधिक जागत म समपशण स अलभमान ि अहकार का उनमलन तरथा विदया ि सरलता का उदय होता ह ( अधिक जागत = समझान िाला परमाखणत वयततकत गर)

शरीर सिदना सयत रहन स मन की पवितरता मन की पवितरता स मनोबल का लाभ होता ह

सव-शरीर मोह नषट होन स ससार क परवत मोह दर होता ह सिशशभरपी आपत कामना पणश बशदघ स ही विशव क परवत उदारता दया कपा करणा का परसिन तरथा विशव की आिारभत सतता म जञान एि अनभि होता ह

जञान विजञान वििक रपी सवतवहीनता ही असयमता मनोदौबशलय मल परविततततयो की अपररषकवत राग मोह लोभ अवििक अहकार अलभमान दहातमिादी परितततत दरािार सघषश असह-असतितव सशकता दवष तरथा तपोहीनता ह

सयमता क वबना बौशदघक मल परिततततयो की पररषकवत बशदघबल सामाखजक मलयो की अनभवत ितनय वकरया का दशशन समािान और सयमता धसदघ नही होती ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 22

उपासना क ललय िातािरण का महतव अपररहायश ह खजसम स मनषय कत िातािरण ही परिान ह जो शशकषा ि वयिसथा क रप म ही ह

मानिीयता की सीमा म वयिहार lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का आिरण ही वयततकततव ह ऐस वयततकततव क वनमाण म सवकरय योगदान ही कततशवय ह यही परषारथश ह यही परबदघता ह

आशा भद स उपासना उपासना भद स अनभि अनभि भद स अनमान अनमान भद स उपासना भद ह यही उपासना म िविधयता का कारण ह यह िविधयता सािशभौम आिरण की सीमा म विलय होन क ललय बाधय ह

मानि क ललय सहज समरथश उपासना एक अवनिायश कायशकरम ह जो अमानिीयता स मानिीयता मानिीयता स अवतमानिीयता की परवतषठा सथाततपत करती ह

सह-असतितव म अनकषण-विकषण-ितततत स सहजाितततत होती ह

कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ही अनकषण-विकषण ितततत ह

अनकषण का तातपयश परतयक कषण म लगातार सह-असतितव चिनतन वििार करम म परमाखणकता का सहज परमाण परित हो जाता ह यही सहजाितततत ह

सतता म समपकत परकवत की समपकतता का जञान ही (पणश-दशशन) कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ह यही भरततमत भाि ि अभाि का वतरोभाि ह यही सहज परवतषठा ि अिसथा ह

सतता म समपकत परकवत का जञान न होन स और अनभिमलक जञान न होन स भय और परलोभनिश समि भरममलक कायश-वयिहार सोि-वििार को बनाय रखता ह यही समपणश कलश का कारण ह

काल वकरया की अिधि ह इसी अिधि म आरोततपत वििार ि इचछा ही असहज एि वनरारोततपत वििार ि इचछा ही सहज ह

मानि इका म ही जागवत क करम म भी वनरारोपण कषमता पा जाती ह भरमिश आरोपण होता ह

जो जसा ह उसस अधिक कम अरथिा नासमझना ही आरोपण ह यही अजञान ह यही अकषमता ह यही भरम ह

सतता म समपकत जड़-ितनयातमक परकवत की सथसथवत-शीलता ि सतता सहज पणशता क समबनध म ही आरोप या वनरारोण वकरया समपनन होना पाया जाता ह

परतयक इका म रप गण सवभाि एि िमश समाहहत ह यही उसकी कायशितता ह इसी की गणना पररमाण परयोजन जञान ही परकवत क परवत वनभरमतापणश कषमता का दयोतक ह यही परमाण ह यही सहजता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 23

समपणश वकरयाय मलत रप और शबद भद म दषटवय ह

परकता क वबना इका म अवगरमता नही ह

पणशता पयशनत इका परकता उपयोवगता क ललए परितत ह

परकता ही इका म हरास ि विकास क लकषणो को परकट करती ह यही परिान उपादयता भी ह

इका म परकट होन िाल शबदादधद गण ही सापकष शततकतयाा ह गणविहीन इका नही ह इसललय

मनषय म सहज कामना का अभाि नही ह सहजता ही िमश ह यही सख शानतनत सतोष एि आननद ह यही िारणा को सपषट करता ह जो परतयकष ह

परतयक कमश-फल ही मनषय क सख का पोषक ि शोषक धसदघ हआ ह

सतय और सतयता क अनभि-करम म वयििान नही ह कयोवक अनभिकरम-वयिसथा सघन ह जागवत की कदधड़याा सघन ह इसललय-

सहजता आरोप स मकत ह आरोप ही नयनावतरक मलयाकन ह सवय की नयनावतरक मलयाकन वकरया ही असहजता ह

सवय का मलयाकन lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म होता ह

lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म न हो ऐसा मनषय इस पथवी पर नही ह

िमश का वियोग नही ह कयोवक यह िारणा ह इसका परतयकष रप ही मानिीयता एि अवतमानिीयता पणश आिरण ह जो सहजता का परिान लकषण ह इसललय -

अमानिीयता पणश आिरण ही असहज ह इसललय

परकवत अपन म समपणशता क सारथ सीततमत ह यही अिधि ह इसललय पणश म समायी ह यही पणश म समपणशता सहज सह-असतितव ह यही समपणशता का वनतय ितशमान और जञानािसथा क मानि म पणशता का परसि ह यही जागवत क ललय बाधयता ह

मनषय क बौशदघक कषतर म पायी जान िाली अनािशयक कलपनाओ का वनराकरण ही दशशन-कषमता म गणातमक पररमाजशन ह यही गणातमक ससकार-पररितशन शशकषा एि जीिन क कायशकरम का योगफल ह

दशशन-कषमता का उतकषश ही अनकषण विकषण ह यही मधयसथ वकरया की कषमता ह मधयसथ वकरया ही दषटा ह

मधयसथ वकरया का िरमोतकषश ही सम ि विषम वकरया का पणश वनयतरण ह यही कषमता कषण-कषण मधयसथ वयििान स मततकत ह

ससकार पिशक ही बौशदघक वयिसथा-परवकरया -कषमता क आनषवगक ह मनषय सहज ऐषणा एि विषयो की सीमा म परितततत ि वनितततत पिशक वयि होना पाया जाता ह जो परतयकष ह

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आतमा (मधयसथ वकरया) क आनषवगक बौशदघक परवकरया ि वयिसथा म सतय-सकलप एि सतय-कलपनापणश मानधसकता की सथसथवत पा जाती ह जो परधसदघ कमश उपासना जञान पणश ह यही कषमता दि ि दधदवय मानिीयता को परकट करती ह यही पणश जागवत ह

ऐषणासकत बौशदघक वयिसथा म मानिीय तरथा दि मानिीय सवभाि परकट होता ह उसी क अनरप म मानधसक िातािरण की सथसथवतशीलता ह ऐसी कषमता ही सामाखजक ितना एि सतकशता स पररपणश पायी जाती ह

विषयासकत बौशदघक वयिसथा ि परवकरया म अमानिीयतापणश आिरण समपनन होता ह जो पाशविकता तरथा दानिीयता क रप म दषटवय ह इनम उसी क योगय मानधसकता पा जाती ह यही लपत-सपत कलपना का कारण ह यही अजागवत तरथा अपणश सतकशता का दयोतक ह

शरय (जागवत) खजजञास होन पर ही लपत-सपत कलपनाय पररमाखजि त होती ह फलत दानिी ि पाशिी परिततततयो स उदासीनता सथसथर होती ह सारथ ही वििकोदय होता ह

शरय खजजञासा का उदय सव-ससकार विधि-विहहत अधययन तरथा उसक अनकल िातािरण म होता ह

विधि-विहहत-अधययन वनपणता कशलता ि पादधडतय ही ह

अधययन एि िातािरण ही ससकार पररितशन क ललय समरथश वयिसथा ह खजसका गणातमक पररितशन ही आतमबोि क ललय खजजञासा ह

आतमबोि ही सतय खजजञासा का परिान लकषण ह इसललय- अििारणा ही अनगमन तरथा अनशीलन क ललय परितततत ह जो शशषटता क रप म परतयकष होती ह परगवत क ललय अििारणा अवनिायश ह जागवत क ललय अििारणा एि हरास क ललय आसततकत परधसदघ ह यही करम स वनितततत ि परितततत ह अििारणा ही सदधदविक ह सदधदविक सवय म सतयता की विििना ह जो सपषट ह मलत यही शभ एि मागलय ह अनभि की अििारणा सतय बोि क रप म अििारणा (समयक-बोि) ही सतय-सकलप ह यही परािवति त होकर शभकमश उपासना तरथा आिरण क रप म परतयकष ह इसी का पररिवति त मलय ही िीरता िीरता उदारता दया कपा और करणा क रप म परतयकष ह सतय म ही समयक-बोि होता ह असतय ही कलपना एि भास होता ह हीनता दीनता और कररता स यकत कमश अशभ होता ह सव-मलय ही परितततत और वनितततत का िशश ह इसललय असतय अलभमान तरथा दपश स मकत सतय सरलता सहजता तरथा सौजनयता स यकत कमश ि उपासना शरय कारक ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 25

सतय कामना की वनरनतरता स लकषय की अििारणा होती ह जञान म ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत परतयकष ह जञान वििक सममत विजञान ही ह जो पणश ह सतय और सतयता म दढ़ता ही शरयमय जीिन ह सतयानभवत ही सबका अभीषट ह शरीर स समपनन होन िाल समि वकरयाओ का सिालन मन ही मिस दवारा करता ह मिस स सभी नादधड़याा वनयदधतरत ह शबद का मल रप मन ही ह मिस पर मन आसवादन एि सवागत भािपणश तरगो का परसारण सिालन वनयतरण करता ह उसक मल म शबद ही ह जागवत की ओर गवत हत वनयतरणातमक शबद ही मतर ह लकषय-पराततपत-योगय-करम परवकरया ही वनयतरण ह शबद म जो भाि (मलय) ह िही उसका अरथश ह सारथशक शबदो का अरथश ही जागवत की ओर गवत ह कयोवक शबद का अरथश असतितव म िि ह भाि म जो उपयोगपणश अवनिायशता ह िही उसका महतव ह उपयोग पणश अवनिायशता म जो वनचशचत दधदशा ह िही उसकी दढ़ता ह यही समयक सकलप ह समयक सकलप म जो पणशता ह िही अनभि ह जो करम स मन ितततत चितत बशदघ और आतमा म पा जान िाली सससकत मौललक वकरयाय ह भाि का तातपयश होन स ह शततकत-तरय-जागरण (इचछा-शततकत वकरया-शततकत तरथा जञान शततकत जागरण) क वबना तयाग (भरममततकत) और परम परमाखणत नही होता

मनन परवकरया म सव-मलयाकन

सव-मलयाकन मनन धयान ldquoअपराि क अभाि म दयापणश आशा का पराितशन अनयाय क अभाि म नयायपणश वििार का पराितशन आसकती क अभाि म समािान पणश इचछा का पराितशन तरथा अजञान क अभाि म जञानपणश सकलप का पराितशन होता ह| अत अपरािहीन वयिहार क ललए वयिसथा का परभाि अनयायहीन वििार क ललए अखणड समाज का परभाि तरथा अजञान रहहत बदधदध क ललए अतवनि यामन अरथिा धयान आिशयक ह खजसस ही परतयाितशन वकरया सफल ह| धयान का अरथश समझन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना और समझन-अनभि करन क

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उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

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मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

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(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

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सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

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प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

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अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

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३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

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(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 34

उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

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मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

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मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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मानि सितनािादी मनोविजञान ndash सस १९९८

प १९३

समपणश समझदारी शरवत समवत पिशक मानि स मानि को पीढ़ी स पीढ़ी को सपरततषत होता ह खजसम

स बोि होन पयशनत शरवत ह बोि म अपन म जानन मानन का सवरप ह इसका तततपत वबिद अनभि ह इस परमाखणत करन क करम म शरवत समवतपिशक बोि कराया जाना पाया जाता ह परतयक मनषय की सपणशता अपन म भाषा भाि भवगमा मदरा अगहार सहहत ही सारथशकता को पहिाना जाता ह शरवत समवत पिशक मलयाकन करत ह

प १८३ १८४ - भाषा शरवत (अभयास-अधययन करम म जो भाषा परयोग होना ह)

शरवत सह-असतितव सहज अलभवयततकत ह सह-असतितव सहज असतितव वनतय ितशमान ह ितशमान म ही मानि न अपनी कमश सवततरता कलपनाशीलता का परयोग वकया ह कर रहा ह करता रहगा मानि म ही शरवत समवत सहज परकाशन परमाखणत होना पाया जाता ह खजसस भास- आभास परतीवत पिशक अनभि होना पाया जाता ह इसी कारणिश उस उसक सहज रप म समझना कायशकरम ह इसका परमाण यह ह वक मनषय ही असतितव म धववन शबद नाद भाषा ि िि सहज परभदो को जानता मानता पहिानता ह अरथिा इसक योगय ह जस-पदारथश अिसथा म पा जान िाली वयिसथा का मल रप परमाण म भी धववन और िि को पहिानता ह

फलत अणओ क रप म होना सवाभाविक ह पराणकोशाओ म धववन ि कायश सकतो को परसपर कोशाए पहिानत ह फलसवरप रिनाए सपनन होती ह उसी भावत जीिो म भी शबद धववन और नाद उनक परसपर पहिान म होना पाया जाता ह मनषय म शबद धववन नाद ि भाषा य सहज ही परसपर ििओ को इवगत करन क अरथश म जानन मानन पहिानन को ततमलता ह भाषा का तातपयश होता ह खजसस िि सहज सतय भास हो जाय मानि भाषा म सतय भास आभास परतीवत सहहत अनभि होन क अरथश म ही परयोग वकया जाता ह यही जागवत सहज सपरषणा ह इसी करम म भाषा क परवत विशवास हो पाता ह मनषयतर परकवत म भी अपन अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा को परमाखणत करन क करम म समपणश धववन नाद ि शबद को दखा जाता ह जागत मनषय परसपर भाषा दवारा इवगत होना िाहता ह या इवगत कराना िाहता ह

भाषा धववन नाद ि शबद क मल म दखन पर पता िलता ह वक इका म सवय सफतश अलभवयततकत ह मल इका का तातपयश परमाण ही ह परमाण ही विकास पिशक जीिन जीिन जागवत पदो म और परमाण ही विकास करम म अण कोशा रिना ि विरिना क करम म असतितव म होना पाया जाता ह परमाण ही मलत वयिसथा का मल ह भौवतक वकरयाकलाप रासायवनक वकरयाकलाप जीिन वकरयाकलाप क मल म परमाण ही वयिसथा का िारक-िाहक होना पाया जाता ह मनषयतर तीनो अिसथाए अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा क रप म इस िरती म विदयमान ह मनषय भी मानितव सहहत वयिसथा क रप म परमाखणत होन क ललए परयतनशील ह इसकी सभािना समीिीन ह

समपणश शरवत परतयक एक अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा को बनाए रखन क ललए ही उदगमशील ह शररवत को धववन शबद नाद ि भाषा क रप म मनषय पहिानता ह इसकी सारथशकता को पहिानना शष रहा इसी करम म गवत लय तरग को भी पहिानता ह यह विविि परकार स शररवत को ही िि क रप म समझन का परयास सारथशक

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होता ह शरवत का तातपयश सथसथवत सतय िि सथसथवत सतय ििगत सतय को इवगत करन बोि करन क ललए ही सनन योगय ि सनान योगय सभाषण ह पणशता को इवगत करन करान क अरथश म परयोग वकया गया भाषा एि पररभाषा ह सनन सनान क ललए सवय सफतश मानि अपकषा ह सनान योगय भी सवय सफतश सपरषणा ह सपरषणा का तातपयश पणशता क अरथश म परित होन की परवकरया ह सनन क करम म भी पणशता को पहिानन सहज अपकषाए बनी ही रहती ह पणशता अपन म वनरतर ह इसका सामानय सवरप असतितव म पणशता परमपरा क रप म परकाशशत ह असतितव म पणशता गठन पणशता वकरया पणशता आिरण पणशता ही ह रासायवनक भौवतक इका या अपन-अपन िातािरण सहहत समपणश ह ही पदारथािसथा पराणािसथा जीिािसथा की परपराए उन उन की lsquoतवrsquo सहहत वयिसथा क रप म सदधतरत वयाखयाततयत ह यह परपराए पणशता सपणशता सहज ही वनरतरता को परापत वकए ह िह lsquoतवrsquo सहहत वयिसथा समगर वयिसथा म भागीदारी ह यही िभि-सतर ह

मानि ऐसी शरवत परमपरा को िाहता ही ह वक इसस यरथारथशता िािविकता और सतयता सहज ही समझ म आय जीिन सहज खजजञासा कयो ह कसा ह कबस ह कसा बना ह इस परकार क परशन अपन आप उदय होत ही ह यह कलपनाशीलता की गररमा ह इसका उततर पाना समािान पाना परमाण पाना परमाखणत होना यह ही शरवत समचचय की सारथशकता म होना पाया गया

समपणश िाङमय अरथात शरवत (सनन योगय सनान योगय भाषा पररभाषा जो सोि वििार वनशचय और समझदारी परितशन भाषाकरण सतरीकरण िाकय परबिन सिाद क रप म परिललत रहता ही ह) यरथारथशता का सवरप जसा खजसकी मौललकता ह उस इवगत करन वनदशशत करन और चिखनहत करन क रप म शररवत का परयोजन सारथशक होता हआ नजर आता ह खजसका जो अरथश का सवरप परतयक एक म रप गण सवभाि क रप म वयाखयाततयत होना पाया जाता ह इन िारो आयामो की अविभाजयता म परतयक एक वयिसथा क रप म मलयावकत होता ह और परतयक एक वकरया क रप म ही ततमलता ह

जबवक मानि भाषा कारण गण गखणत क अविभाजय रप म ह खजसस ही परम सतय रपी सह-असतितव भासा आभास पिशक परतीवत सहज बोि सारथशक होना पाया गया फलत अनभि होना धसदघ हआ प ४४ भततकत सहज अलभवयततकत जागवत गामी विधि स अरथिा जागवत करम विधि स भास आभास परतीवतयाा और जागवत-पणश विधि स परतीवत अनभवत ि उसकी वनरतरता दोनो सथसथवतयो म तनमयता तारतमयता और उपादयता सपषटतया समझ म आता ह प ८६ ndash मन म होन िाली सवागत वकरया ndash अभयास-अधययन करम म

सवागत - (1) अििारणा अनभि क ललए सवीकत वकया (2) वनयम नयाय समािान सतय सहज सवीकवतयो असवीकवतयो क ललए तयाररया (वििक ि विजञान सममत मानधसक ििाररक और ऐचिक तयाररया)

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 9

इदधदरय सदधननकषश म भी सवागत भाि का भास आभास होना पाया जाता ह खजसकी वनरतरता की अपकषा ही रह पाती ह यह वयिहार म परमाखणत नही हो पाता अतएि सवागत का आिार समपणश मलय सवागत होना पाया जाता ह ििओ का िारक िाहकता म भी जीिन रहता ही ह

समपणश अििारणाए मौललकता क रप म होना पा जाती ह मौललकताए िमश और सवभाि क ही सतर ह समपणश असतितव म परतयक एक अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा ह समगर वयिसथा म भागीदार ह कयोवक असतितव म समपणश इकाइया (अरथिा समि इका या) सह-असतितव सतर म सदधतरत ह प २१८ इवगत होना ही वयजना ह वयजना ही करम स भास आभास परतीवत अििारणा एि अनभवत ह प २१

ियन-वकरया अरथात गरहण करन का वकरयाकलाप पराितशन विधि स और आसवादन वकरया परतयाितशन विधि स सवय म सपनन होती ह विशलषण वकरया पराितशन विधि स और तलन वकरया (ततपरय हहत लाभ नयाय िमश सतय दवषट) परतयाितशन विधि स सपनन होती ह चितरण वकरया पराितशन विधि स इचछा पटल म चिदधतरत हो पाती ह पराितशन म रिनाओ वकरयाओ क रप म परमाखणत हो पाता ह और चिनतन-वकरया साकषातकार विधि स सारथशक होती ह साकषातकार की समपणश िि जीिन मलय मानि मलय सथाततपत मलय शशषट मलय और िि-मलयो क रप म दरषटवय ह मलयो का सतलन तलन होकर तततपत विधि म सलगन रहता ह इस परकार साकषातकार की तततपत का सरोत मलय ह और उसकी (मलयो की) वनरतरता का भािी होना पाया जाता ह

जीिन म सपनन होन िाली अििारणा बोि-बशदघ सहज परतयाितशन वकरया ह सभी अििारणाए अधययन और अनसिान विधि स सथाततपत हो पाती ह अनभि मलक विधि अनभिगामी पदघतततत स बोि होना पाया जाता ह अनभि सतय बोि करान म परमाखणत होता ह और सकलप पणशता क अरथश म कलपनाओ को गवत दन स ह कलपनाए - आशा वििार इचछा क सयकत रप म परिाहहत रहती ह जीिन शततकत अकषय होन क कारण परतयक वयततकत म कलपनाशीलता का अकषय होना पाया जाता ह कयोवक यह कलपना जीिन शततकतयो का ही परिाह ह कलपनाए सतय सकलप क अनरप परािवति त होकर मानि परमपरा क अखड समाज सािशभौम वयिसथा क रप म सारथशकता को परमाखणत करती ह

प ४९-५०

पिानकरम पदघवत परणाली मानिीयता पणश वििार-चिितन-बोि-अििारणा और अनभि मलक होन क करम म अधययन गमय ह पिानकरम विधि स ही मनन पिशक मानयताए सथाततपत हो पाती ह फलत मानि परमपरा क ललए उपकारी और सारथशक धसदघ होती ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 10

प ५१ ५२

वनषठा - जागवत पणश लकषय को वनचशचत अििारणा ि समरण पिशक परापत करन ि परमाखणत करन का वनरतर परयास

वयजनीयता का तातपयश - साकषातकार होन स ह साकषातकार चिितन म होता ह वयजनाए मानि मलय जीिन-मलय सथाततपत मलयो क परभाि क सारथ जीिन मलयो का बोि ि अनभि करन स ह समपणश रसानभवत का तातपयश ह - जीिन मलय रपी सख शावत सतोष आनद सहज आपलािन जागवत सहज परमाणो क रप म सपषट होना यही अनभि करन और बोि करान का तातपयश ह

प ७५-७७ गर और शशषय

पररभाषा गर - शशकषा ससकार वनयवत करमानिषगीय विधि स खजजञासाओ और परशनो को समािान रप म अििारणा म परसथाततपत करन िाला मनषय गर ह जागवत करम म मानि को अपरापत का परापत अजञात का जञात करन क ललए होन क ललए विधि वनयम परवकरया सहज समझदारी म पारगत बनाना ही परमाखणकता का परमाण ह परमाखणकता पणश गरजन ही असतितव सहज सह-असतितव रप म अििारणा को परवतसथाततपत करा सकता ह अििारणाय असतितव विकासकरम विकास जीिन जीिनी करम जीिन जागवतकरम जीिन जागवत सहज रप म परसपरता म अरथात समझा हआ और समझन क ललय तरथा मनषयो स ह गरजन इन मददो म पारगत रहग यह समझदारी ह समझदारी क आिार पर ही मानिीय शशकषा-ससकार सपनन होता रहगा ससकार का तातपयश ही अििारणा ह विदयाचरथि यो म सथाततपत होन स उसकी वनरतरता का परमाण वयिहार वयिसथा म परमाखणत होन स ह फलसवरप ही अखणड समाज सािशभौम वयिसथा म भागीदारी सहज कायश-कलाप हर मानिीय शशकषा-ससकार समपनन मानि स िररतारथश होना पाया जाता ह

परामाखणक - परमाणो का िारक िाहक - यरथा असतितव दशशन जीिन जञान मानिीयता पणश आिरण समचचय को परयोग वयिहार अनभि पणश विधि स परमाखणत करना और परमाणो क रप म जीना

पररभाषा शशषय - जागवत लकषय की पवति क ललए शशकषा ससकार गरहण करन सवीकार करन क ललए परित वयततकत खजसम गर का समबनध सवीकत हो िका रहता ह यही खजजञासातमक शशषटता ह

खजजञास - जीिन जञान सहहत वनभरशम शशकषा गरहण करन क ललए तीवर इचछा का परकाशन

समझन सीखन करन क ललए पणश खजजञासा सहहत परयतन सपनन वयततकत शशषय क रप म शोभनीय होता ह सफल होन क सभी लकषणो स यकत िातािरण म विशवास होना और विशवास को िातािरण म परभावित करन परमाखणत करन की सभी परवकरया अधययन ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 11

असतितव विकास जीिन जीिन जागवत रासायवनक-भौवतक रिना-विरिना समपणश मानि क ललए समझन-समझान की िि ह सीखन की जो कछ भी परमाखणत िि ह यह मानि म मानिीयतापणश आिरण कमश अरथात वयिसाय म सवािलमबन वयिसथा म भागीदारी मानिीयता पणश आिरण का अभयास परामाखणकता सहज अलभवयततकत ह सारथ ही सािशभौम वयिसथा और अखड समाज म वनषठा ह य समपणश खजजञासाए वयािहाररक रप म िररतारथश होती ह परौढ़ता की पराकाषठा म स क ललए सवानशासन की खजजञासा का होना पाया जाता ह खजजञासा मानि सहज परकाशन ह

प १०६ जीिन को तातवतवक रप म समझन की खजजञासा हो ऐसी सथसथवत म परमाण म होन िाली विकास परवकरया उसक सकरमण िभि को भी जो ितनय इका क रप म परवतवषठत ह को सहज ही अधययन अििारणा म लाना एि अनभि करना आिशयक ह

अनभिातमक आधयातमिाद सस २००० (प ५८ ndash ६५) अनभव ही दसर नाम स परतयावरतन करिया ह और इसका परावरतन करिया को परामाणिकरा-परमाि नाम ददया ह जागकरर सह-असतितव म अनभव हई ह इसी जागर सथिकरर म होन वाली गकरर को परतयावरतन नाम ददया गया ह समपित परतयावरतन दरतन और जञान नाम स परकररकरिर ह जञान और दरतन सवाभाकरवक रप म ओर-परोर रप म वरतमान ह समपित असतितव सतता म सपकत जड़-चरनय परककरर ही सह-असतितव का मल सवरप ह इसका सामानय कलपना हर मानव म होना सभव ह कलपना का मल सतरोर आरा करवचार इचछा का असपषट गकरर रप ह कयोकरक समपित कलपनाए परावरतन म कायतरप रहना दखा जारा ह मानव ही कलपनारीलरा का परयोग कररा ह इस ऐसा भी कहा जा सकरा ह करक हर वयकतकत परकारानतर स कलपनारीलरा का परयोग कररा ह भरकतमर मानव दवारा कलपनारीलरा का सवाधिक परयोग ररीर और इनदरिय सदिकरत क रप म ही सवाभाकरवक ह यह भरम करववररा ह यही कलपनाए चचणिर रप म सपषट होन क ललए रतपर होर ह रभी करवधिवर करवशलरि और करनचिर चचतरि करवचार रप म समभावनाओ को सवीकारना बनरा ह सभावनाओ का लकषय कतपरय हहर लाभ सीमाओ म सीकतमर रहना पाया जारा ह यही भरमातमक कायत सीमा का अथ इकरर ह जागकररपित जीवन चचतरि म यह रथय ससपषट ह करक नयाय िमत सतय उसका साकषातकार बोि अनभव ही अधययन और अनसिान का लकषय और कायत ह इिी कायत रप क आिार पर असतितव और जीवन अविारिा म िाकतपर होना सफल अधययन का दयोरक और कसौटी भी ह इसी क आिार पर सवायतत मानव का सवकषि करनरीकषि और परीकषि होना सपषट हो जारा ह सवायतत मानव ही असतितव म अनभव सहज जागकरर का िारक-वाहक होना सपषट ह इस परकार अधययन सहज रप म जीवन और सह-असतितव म अनभव बोि की अलभवयकतकत और परमणिर होन क िम म आतमा असतितव म अनभर होना जीवन म किीय होना मधयि करिया और मधयि बल समपिरा का सवीकर होना परम रपत होना ह जीवन रचना मधयार सहज मधयि करिया मधयि बल मधयि रकतकत सरलन क अथत म सदा-सदा परयकत रहरा ही ह यही जागर

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 12

मानव परपरा म परमाि ह मधयि करिया समम_य िम स जीवनी िम और जीवन जागकरर िम वयकत होरा ह इसी िम म जागर होना जीवन सहज परवकततत परयास आवशयकरा क योग-सयोग करवधि स समपि होरा ह यही अनसिान रोि और अधययन क ललए भी सयोजक रतव ह यह रतव सदा-सदा जीवन परकररिा म कायतरर रहरा ही ह इसकी परखररा क आिार पर ही अनसिान रोि अधययन सहज हो जारा ह इस परकार यह ससपषट हो जारा ह करक आतमा अधययन करवधि स असतितव म अनभर होरा ह दसरा अनसिान करवधि स भी असतितव म अनभर होना पाया जारा ह ( अनसिान विधि जो शरी ए नागराज न कीया सािना gt समािीgt सयम | अधययन विधि पिक एि वकसी समझ हए वयकती क माधयम स शशकषा-ससकार परापत करना) अनसिान करवधि स भी सवतपरथम असतितव म बोि होना दखा गया ह इसक उपरानत ही आतमा असतितव म अनभर होना दखा गया ह अधययन करवधि स भी यही सथिकरर अथार पहल बोि रदोपरार अनभव होना पाया जारा ह इन दोनो करवधियो म स अधययन करवधि लोकवयापीकरि क ललए कम समय म बोि होन की सथिकरर बनरी ह अनसिान करवधि म परवतत होन क ललए वयकतकत म लकषय सममर णजजञासा का होना अकरनवायत ह जब अधययन करवधि स समपित परशनो का उततर कतमल जारा ह परशन िली ररकत होना उसी िली म समपित उततर िाकतपर होना अधययन और अधयापन का सयोग और फलन ह परशन करवहीन सथिकरर म अनसिान का आिार नही बनरा इस परकार परपरा म सभी परशनो का उततर अधययन करवधि स हर मानव म हर सथिकरर पररसथिकररयो म समपित परशनो का उततर सह-असतितव सहज करवधि स समीचीन ह अनसिान करवधि एव अधययन करवधि स पहल बोि ही होरा ह रदोपरार lsquolsquoबोिrsquorsquo का आतमा म अनभव होरा ह अनभव क उपरानत lsquolsquoअनभव सहज बोिrsquorsquo अधययन एव अनसिान करवधि म एक जसा होरा ह एव एक ही होरा ह इसम मखय रथय यही ह यथाथतरा वासवकररकरा सतयरापित करवधि स अधयापन सामगरी वि परकरिया पररपित रहना आवशयक ह ( अधययन अरथिा शशकषा वििी म) अनसिान क ललय अजञार परशन चचि अकरर आवशयक ह हर अनसिान को अधययन और अधयापन कायत करवधि स लोक वयापीकरि होना सगम हो जारा ह इस परकार अनभव क अननतर ही अनभव lsquoबोिrsquo होना दखा गया ह यह हर वयकतकत म होना समीचीन ह (प १०७ १०८ १०९ इसक उपरानत जागकरर और जागकररपितरा ही मणजलो क रप म दखन को कतमलरा ह यह मलर करवचार चचतरि अविारिा अनभव और चचनतन का ही वभव रपी मानधसकरा क रप म दखा गया ह भरम का समपित सवरप आरा करवचार इचछा (चचतरि) का कतपरय हहर लाभातमक दकरषटयो की करियारीलरा ही ह सवतमानव पीड़ा स मकतकत चाहरा ही ह यही जागकरर सहज अपकषा का सरोर और समभावना ह जीवन सहज करियाकलापो म स नयाय िमत सतय का साकषातकार और दषटा होना और उसका परमाि धसदघ होना ही समपित जागकरर ह दषटापद म होन वाली समपित करियाकलाप जीवन सहज करवधि स जानन-मानन-पहचानन-करनवाह करन क रप म होना पाया गया ह जानन-मानन की समपित वि जीवन जञान सह-असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान ही ह

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अनभव असतितव म ही होना पाया जारा ह अनभव क पहल समझदारी जानन-मानन-पहचानन क रप म होना पाया जारा ह यही अधययनपवतक होन वाला अविारिा ससकार ह इसक पवत रप म करवचार और चचतरि ही रहरा ह यही शरकरर समकरर रबद और चचतरि ह रबद और चचतरि क आिार पर करकरन भी करियाकलापो को मानव सपाददर कररा ह यह सब असथिररा क साथ ही जझरा हआ दखा गया ह असथिररा म भरम ही परिान कारि ह इसीललय ही समरि और चचतरि क उपरानत कही न कही असथिररा-अकरनियरा को परकाशरर कररा ही ह इसी सीमा रक हम इस बीसवी सदी क अर रक झलर आय ह सथिररा की सवीककरर बोि रप म ही होना फलसवरप वयवहार म नयाय-समािान-सतय परमाणिर होना पाया जारा ह ऐसा बोि जानन-मानन-पहचानन का ही महहमा ह यह करिया जीवन म ही जागकरर सहज करवधि स होन वाली वाधिर परकरिया ह असतितव म अनभव सतता म (वयापक म) सपकत परककरर क रप म ही दखा गया ह सतता म सपकत रहन क आिार पर ही करियारीलरा करनयतरि सरलन सरकषि सामय ऊजा सरोर होना दखा गया ह इसीललय परककरर म करनयतरि सरकषि करनररर बना ही रहरा ह अर सतता म करनयतरि सपषट ह (प ७४) असतितव सहज सह-असतितव म जड़-चरनयातमक परककरर करनतय वभकरवर होन का सवरप करिया शरम गकरर पररिाम परकारन सहज करियाकलाप और पररिाम का अमरतव शरम का करवशराम गकरर का गरवय सहज लकषय करनहहर करिया उपयोकरगरा परकरा-उदाततीकरि करनयमो क अनरप समपित भौकररक-रासायकरनक जीवन रपी परककरर म करनतय रचना-करवरचना lsquoतवrsquo सहहर वयविा और उसकी परपरा भल परकार स बोि करान की सहज-करिया समपि करकया जा चका ह इसी िम म शरम का करवशराम गकरर का गरवय रपी परमािो को मानव परपरा म परमाणिर करन की आवशयकरा रहा ह इस सवतसलभ लोकगमय करन क ललए अधययनपवतक जागकरर करवधि और इसक परमाि म बोि परिाली को पहचाना गया यह भी अनभव करकया गया ह करक बोि होना समझदारी का ही दसरा नाम ह अथवा बोि का ही दसरा नाम समझदारी ह ऐस समझदारी अधययनमलक परिाली स अविारिा म िापकरर होना ऐसी अनभव मलक अविारिाओ को अलभवयकत सपरकतरर परकाशरर करन क िम म असतितव म अनभव एक अवशयभावी परकरिया क रप म सपषट हई ह इस िम म असतितव म अनभव करनतय ह यही मानव का परयोजन ह जीवन करनतय ह असतितव सथिर ह इसी आिार पर अनभव और अनभव िम अलभवयकतकत सहहर जागकरर सहज जीवन का गनतवय अथार जीवन म जागकरर पितरा ही जीवन गकरर का गरवय िली होना उसकी करनरनतररा सदा-सदा क ललय बना ही रहना दखा गया इिी आिारो पर lsquoअसतितवrsquo सतता म सपकत जड़-चरनय परककरर क रप म परकररपाददर हई सह- असतितव करवधि स वयाखयाकतयर हई यह महहमा जागकरर पित जीवन सहज अलभवयकतकत ह (प १८३) जीवन जञान सह-असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान रथयो सहज करवधिवर अधययनपवतक बोि होना दखा गया ह ऐस बोि सहज रथयो को उदघादटर करन क िम म और लोकवयापीकरि करन क

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िम म परमाणिर होर ही ह फलसवरप अनभर भी होर ह इस परकार करनतय परमाि और अनभव सहज रप म ही समपि होरा हआ दखा गया ह यही कवलय और जागकरर की महहमा ह (प १५४- १५७) जागकरर करवधि और अभयास असतितवमलक मानव कनदरिर चचनतन जञान दरतन आचरि िरवीकर रप म अधययन गमय होना दखा गया ह जीवन जञान जीवन म समपि होन वाली करियाओ का परसपररा सहज िरव करबनदओ क आिार पर उभय रकतपत करवधि सवत रभ एव समािान स दखा गया अलभवयकतकतया ह जसा मन और रकतपत म सामरसयरा का करबनद करवशलरि रलन पवतक आसवादन क रप म पहचाना गया ह यह सह-असतितव अनभव क पिार करनयम नयाय िमत सतय सहज परयोग म अनभर होन क उपरानत ही साथतक हो पारा ह इसक ललय अथार ऐस अनभकरर क ललय अधययन िम स आरभ होरा ह अधययन अविारिा कषतर का भरर-भरर वरतमान करवधि ह इस करवधि स णजरनी भी अविारिाए अधययन स समबदघ होरा गया उरन ही अविारिा क आिार पर परवकततत सहज नयाय िमातमक और सतय सहज रलन नयाय रलन समपि करवचार क आिार पर करकया गया आसवादन सहहर समपि करकया गया सभी चयन नयाय रप होना दखा गया ह इसी परकार ऊपर कह चचनतनपवतक जब चितरण रलन करवचार आसवादन और चयन करियाए समपि होर ह नयायपवतक वयविा म परमाणिर होना दखा गया अविारिाए सवाभाकरवक रप म ही असतितव सहज होन क आिार पर सह-असतितव रप होन क आिार पर अनभर होना अथार जानना-मानना और उसक रकतपत करबनद को पाना ही अनभव ह जानना-मानना-पहचानना ही अविारिा ह इसम रकतपत करबनद को पा लना ही अनभव ह इस कायत-वयवहार वयविा म वयकत कर दना परामाणिकरा ह अनभव परमाि पित बोि सहहर समपि होन वाल सकलप चचनतन चचतरि नयाय िमत सतय रपी रलन करवशलरि आसवादन सहहर करकया गया समपित अलभवयकतकतया वयविा और समगर वयविा म भागीदारी करनवाह कररा हआ ही दखन को कतमलरा ह इस करवधि स जागकररपित मानव ही असतितव म भरम बनधनो स मकत होना सपषट करकया जा चका ह जागकरर करवधि अधययन रपी सािना करवधि स सवाधिक उपयोगी सदपयोगी परयोजनरील होना दखन को कतमला ह इस करवधि स साधय सािक सािन का सामरसयरा सवय सफरत करवधि स समपि होना दखा गया ह जागकरर क ललय हर मानव सािक ह साधय जागकरर ही ह सािन जागकररगामी अधययन परिाली ह इस िम म परमपरा सािन परकररिा क रप म रन-मन-िन वयविा और समगर वयविा म भागीदारी का परमाि मानवाकाकषा क रप म होरा ही ह इस परकार स साधय-सािक-सािन का सयोग मानवीयरापित परपरा करवधि स सफल होन का सवरप सपषट ह ऐस परपरा क पवत (जस आज की सथिकरर म भरकतमर समदाय परपराए) मानवीयरापित परपरा म सिकतमर होन की कायतपरिाली मददा ह इस िम म अनसिान क अननतर णजरन भी रोिकरा सममर होर जार ह और सममकरर क अनरप करनिा उदगकतमर हो जारी ह और भी भाराओ स सवय सफरत करनिा उदगकतमर होरी ह ऐस ही करनिावान मिावी इस कायत म सलगन ह यही आज की सथिकरर म जागकररगामी अधययन जागकररमलक अलभवयकतकत सहज करवधि एक स अधिक वयकतकतयो म परमाणिर होन का आिार बन चकी ह जागकररपित परपरा म साधय सािन सािक म करनतय सगीर होना दखा गया ह दसर भारा म करनतय समािान होना पाया गया ह

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उललणखर अनभवो क आिार पर समपित जागकरर अपन-आपस जीवन जञान असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान म ही समपित ह इसका अभयास करवधि सवतपरथम अनसिान दसरा अधययन पवतक रोि रोि पवतक अधययन य ही मल अभयास ह कयोकरक अधययन करवधि स ही रोि करवधि स ही अविारिा का सवीकर होना दखा जारा ह अनय करवधि जस उपदर करवधि म भरकतमर होन की सभावना सदा बना ही रहरा ह हर परपरा म अपन ढग की आदर परकररिा िाकतपर रहरा ही ह वह अधययवसाकतयक (अधययनगमय) होर रक उपदर या सचना मातर ह परपरा म णजस आरय क ललय आदर-करनदर ह वह रकत सगर-वयवहार सगर बोि होन की परकरिया परिाली पदघकरर ही अधययन कहलारी ह रकत का साथतक सवरप करवजञान सममर करववक और करववक सममर करवजञान होना दखा गया परयोजन करवहीन उपदर परयोग वह भी वयवहार परमाि करवहीन उपदर रब रक ही रह पारा ह जब रक रकत सगर न हो रकत का रातपयत भी इसी रथय को उदघादटर कररा ह रकतपत क ललय आकरति परिाली (भारा परिाली) ऐस रकत सहज रप म ही करवजञान क आशरर करवशलरिो को करववक स आशरर परयोजनो का परमाणिर होना सहज ह हम इस बार को समझ चक ह करक परयोजनपवतक जीन क ललय परमाणिर होन क ललय समािान समशदघ क रप म सह-असतितव दरतन क ललय रकत सगर अधययवसाकतयक करवधि का होना आवशयक ह अधययन करियाकलाप रकतसगर परयोजन परयोजन सगर मानवापकषा मानवापकषा सगर जीवनापकषा जीवनापकषा सगर सह-असतितव सह-असतितव सगर करवकास िम और करवकास करवकासिम और करवकास सगर जीवन-जीवनी िम-जागकरर िम-जागकरर एव इसकी करनररररा सह-असतितव सहज लकषय ह असतितव सहज लकषय म भी मानव ही अकरवभाय ह और दषटा ह इसललय मानव असतितव सहज सह-असतितव करवधि स परकरा-उदाततीकरि परकरा-करवकास परकरा-जागकरर सतरो क आिार पर सह-असतितव सहज अधययन सलभ हआ ह समपित असतितव ही वयविा क सवरप म वरतमान होना समीचीन ह आज भी मानव क अकररररकत सभी अविा म (पदाथत पराि जीव अविा) अपन-अपन तव सहहर वयविा म होना ददखरा ह इसी िम म मानव भी अपन मानवतव सहहर वयविा और समगर वयविा म भागीदारी सहज अपकषा को साथतक बनान क िम म ही जागर होना पाया जारा ह हम यह पार ह करक जागकरर सतर वयाखया और परमाि सवतरभ क सवरप म ही वभकरवर होरा ह इस आरय को लोकवयापीकरि करना भी सवतरभ कायतिम का एक बकरनयादी आयाम ह इसी सतयरावर lsquolsquoअनभवातमक अधयातमवादrsquorsquo एक परिकरर ह हर मानव अपन कलपनारीलरा कमतसवरतररा पवतक ही हर परिकररयो को परखना (परीकषि करना) सवीकारना या असवीकार करन क कायतकलाप को कररा ह

अनभि दशशन सस २०१२ दधदवतीय (अधयाय -३)

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सतर छद िाकय शबद क दवारा वकरया मातर का िणशन ह सारथ ही जञानानभवत क ललए उपदश पिशक इवगत भी ह बरहम सहज िणशन पारगामी वयापक और पारदशीयता क रप म ह lsquolsquoयहrsquorsquo किल भास आभास बोि तरथा अनभिगमय ह इसका बोि मानि की कषमता योगयता पातरता पर आिाररत ह परतयाितशन पिशक परापत वयजनाएा जागवत क ललए गणातमक गवत ह गणातमक वयजना स सबोि सबोि स सससकार सससकार स गणातमक सिदना (सजञानीयता पिशक सिदना वनयदधतरत) रहना गणातमक सिदना स सतय सकलप तरथा सतय सकलप स गणातमक वयजनाओ की वनरनतरता ह सथसथवत एि वकरया सकत-गरहण कषमता ही वयजनीयता ह सकत-गरहण -परवकरयाबदघ जञान परापय को पान उस सरधकषत रखन क कायशकरम म अलभवयकत ह परापत क अनभि क करम म भास-आभास एि परतीवत ही जञापक (सतयाततपत होना) ह मानि दसरो क ललए भी सकत परसाररत करता ह सकत-गरहण-वकरया ही अनमानारोपण तरथा अनमानाकर भी ह जो सकलप इचछा वििार ि आशा ह अधयाय-७ अलभवयजना म गणातमक विकास का सकत वयजना म उपयोवगता का सकत ह अभयदय पराय (अभयदय जसा) ही अलभपराय ह खजसम अभयदय का भास या आभास होना आिशयक ह

कमशदशशन सस २००४ (प ८६ ८७) परमाण म विकास का तातपयश परमाण क गठनपणश होन स ह|मानि म एक बात की िाहत बनी ह ndash यरथासथसथवत िभि उसकी वनरतरता ndash यह सवाभाविक रप म सवीकत ह| परमाणओ म अशो का घटना-बढ़ना पररणाम क सवरप म हम समझ िक ह| पररणाम का अमरतव उसकी वनरतरता की अपकषा मानि म ही कलपना भास आभास परतीवत क रप म पाया जाता ह

प २० २३ (शासतराधययन की महततव) सदशासतराधययन क वबना सतय कामना एि परितततत सतय कामना क वबना सतय-परम सतय-परम क वबना सतय-वनषठा सतय वनषठा क वबना सतय परवतषठा सतय-परवतषठा क वबना सतय परतीवत सतय-परतीवत क वबना सतयानभाि सतयानभाि क वबना सद शासतर का उदघाटन तरथा सदशासतर क उदघाटन क वबना सद शासतर का अधययन पणश और सारथशक नही ह| मानि को जीिन की परतयक सतिचरथ म शानतनत एि सथसथरता की आिशयकता ह| सदशासतर सिन मनन एि आिरण स वयकती तरथा पररिार म शानतनत तरथा सथसथरता पा जाती ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 17

(सदशासतर सिन = शासतराधययन स शरिण | मनन एि आिरण अभयास-अधययन करम म समपणश मनन परवकरया)

(प ९७ ९८)

सहअसतितविादी विधि स हर मानि मानितव सहहत वयिसथा और समगर वयिसथा म भागीदारी करन योगय इका ह इसम मखय मददा यही ह - सवय को सवय क ललय रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क सयकत रप म होन को सवीकारन की आिशयकता ह जीिन वकरया की महहमा और मानि परमपरा म इसकी आिशयकता धयान म रहना अवत आिशयक ह तभी मानि शोि क ललए ततपर होना पाया जाता ह ऐसी ततपरता जागवत सहज विधि स सिशशभ क अरथश म परिावित होना होता ह तभी सिशमानि समािान पिशक वयकत होन समझदारी पिशक हर पररिार समािावनत और सखी होन की सथसथवत सपषट हो जाती ह फलसवरप समशदघ अभय सहअसतितव परभावित होन का सौभागय उदय होता ह यही मखय वबनद ह सिशशभ का परमाण भी यही ह कयोवक समािान समशदघ पिशक ही मानि सख शानतनत का अनभि करता ह इसी करम म समािान समशदघ अभय सहअसतितव पिशक आननद अपन आप म समपणश होना पाया जाता ह इस ढग स मानि लकषय सारथशक होन की सथसथवत म जीिन लकषय (सख शावत सतोष आननद) सारथशक होता ही ह जीिन लकषय और मानि लकषय सारथशक होना ही अधययन और अधयापन की सािशभौमता ह ऐस लकषय क सारथ मानि परमपरा अपन आप म सवय को पहिानन और समपणश मानि को पहिानन का सतर और वयाखया बन जाता ह परमाण क रप म वयाखया समझ क रप म सतर होना पाया जाता ह यह वनयवत सहज विधि स समीिीन रहना पाया जाता ह वनयवत विधि का तातपयश विकासकरम विकास जागवत करम जागवत ह दसर विधि स भौवतक रासायवनक रिना शरीर और जीिन वकरयाकलाप का सयकत अलभवयततकत समपरषणा परकाशन क रप म ह

मानि लकषय - समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करन और उस आिार पर जीिन लकषय (मनसवसथता) - सख शानतनत सतोष आननद को सारथशक बनान क अरथश म मानि शशकषा ससकार की आिशयकता सदा-सदा स बनी ह ह इसकी सफलता ही मानि कल का सौभागय ह

lsquoमानि कल और रासायवनक-भौवतक वकरयाकलाप का सारथशक परमाणrsquo

शशकषा की समपणश िि सहअसतितव रपी असतितव म रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म ही ह इसम स इनक अविभाजय रप म मानि परमपरा का समपणश वकरयाकलाप वयिहार सोि वििार समझ ह समझ क अरथश म ही हर मानि का अधययन करना होता ह समझ अपन म जानना मानना पहिानना वनिाह करन क रप म परमाखणत होती ह इसी अरथश म समपणश अधययन सारथशक होना पाया जाता ह

असतितव म समपणश इका याा रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म पररलधकषत ह ही (प १०२) वनशचयता सथसथरता सिशमानि म चिराकााकषा क रप म बनी ही ह सहअसतितव रपी असतितव जञान और सवीकवत का आिार ह यह सिशमानि म सिकषण पिशक विदधदत होन िाला तथय ह सवय को जाािन स भी

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 18

यही सपषट होता ह हम सब सथसथरता ि वनशचयता को ही सवीकार करत रह ह न वक असथसथरता अवनशचयता को सथसथरता क सहज आिार पर ही वनशचयता का होना सवभाविक ह (प ११५) इस हम मानि को अचछी तरह स समझन की आिशयकता ह और अनशीलन पिशक सरकषण सििशन विधि स सवय को वयसथसथत कर लन की आिशयकता ह मानि क वयिसथसथत होन क मल म जञान विजञान वििक का एक सगीतमय कायशकलाप सपषट रहन स ह यही कायश-कलाप भाषा कायश-वयिहार म वनयोखजत होकर परयोजनो को परवतपादधदत करता ह मानि का परयोजन समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करना ही ह (प १२२ १२३)

( अनभि मलक वििी स

यरथारथशता िािविकता सतयता का बोि रपी बशदघ की सथसथवत उस परकाशशत करन की परितततत क रप म सकलप ही गवत ह नयाय िमश सतय क साकषातकार करन क रप म चितत सथसथवत और इसका चितरण क रप म चिदधतरत हो पाना गवत ह चितत वकरयाकलाप का समपणश चितरण तलन क रप म अरथात नयाय िमश ि सतय रप म सपषट होना ितततत सहज सथसथवत ह ितततत म समपनन हय तलन का विशलषण विधि म विशलततषत होना ि समपरततषत होना ितततत सहज गवत ह विशलषण क सपषट अरथिा सार रप म मलय सवीकत होता ह इस आसवादन करना ही मन की सथसथवत ह इसकी सारथशकता क ललय ियन वकरया को समपादधदत करन क रप म गवतत होना हर मानि म सिधकषत ह इस ढग स मानि भी सभी परकार स सथसथवत-गवत म होना सपषट होता ह इस परकार मानि समझदारी स समपनन होन क उपरानत परमाखणत होना सवभाविक होता ह इसका मतलब यही हआ हम जब तक परमाखणत नही होत तब तक परमाखणत होन क ललए जञानाजशन वििकाजशन विजञानाजशन कर लना ही शशकषा और शशकषण का तातपयश ह इसक ललए सह असतितविादी शशकषा करम समीिीन ह अतएि समझदार मानि होन क ललए धयान दन की आिशयकता ह

सह-असतितविादी वििार जञान वििक विजञान को समझना ही समझदारी ह

ldquoअधययन रपी उपासनाrdquo (अभयास) - कमशदशशन सस २००४ प ४९ ५०

मानि जीिन म उपासना एक महतवपणश भाग ह| उपासना ही मल परिततततयो का पररमाजशन एि पररितशन परवकरया ह| यही ससकार एि सवभाि पररितशन भी ह| ( उपासना = उपायो सहहत लकषय पती क ललए कीया गया वकरयाकलाप) उपायपिशक सहिास पाना ही उपासना की अििारणा ह खजसक ललए पररशरम (पररमाजशन शरम) एि अभयास ह| अभयास एि पररशरम स ही सथल सकषम कारण की सथसथवतितता सपषट ह| खजसस ततसबिी पदारथश वनयवत-

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करम शततकत महहमा विभती एि वनयम सबिी अनसिान (अनगमन पिशक अििारणा) शोि परधसदध ह| अनसिान भौवतक बौदधदधक तरथा आधयातमतमक भद स ह| अनसनधान परवकरया मनन चिितन सकलप एि अनभती क रप म परतयकष ह|

सथल सकषम कारण (दषटा) का तातपयश दखन समझन परयोग करन वयिहार करन एि अनभि करन योगय कषमता क सपनन होन स ह |

परिततततयो का पररमाजशन ही मानि जीिन का कायशकरम ह| मानि म पणशता एि पररमाजशनशीलता की अपकषा परतयक सथसथती म पा जाती ह| पणशता ही पादधडतय ह| पादधडतय स अधिक जञान एि वनपणता कशलता स अधिक वयिहार एि उतपादन नही ह| पररमाजशनशीलता उतपादन ि वयिहार म पा जाती ह| पादधडतय परबदधता परबदधता ही शशकषा एि वयिसथा ह| परबदधता स पररपणश होत तक उपासना अतयत उपयोगी ह|

प ५६ स ७२ (इनम स कछ ही िाकयो को ललया गया ह| समपणश क ललए पिक दख) उपासना स सािशभौततमक मलयो का अिगाहन करना ही परिान उपादयता ह| समि उपासनाओ क मल म लकषय समय ह िह अखड समाज सािशभौम वयिसथा ह| िह किल सिश

मगल ही ह| कयोकी सिश मगल की कामना क वबना सवय का मगल धसदध नही ह| अनय कामय कामनाए किल मगलमयता की भास परदायी ह न की अनभिदायी| इसललए सिशमगल

कामनारपी कायशकरम तःरथा उसकी अनसरण योगय कषमता पयत मानि परयास करन क ललए बाधय ह| सही क परती भरततमत रहना ही मत सपरदाय एि िगश का कारण ह|

मत सापरदाततयक िगीयता म आचरथिक िगीयता एि आचरथिक िगीयता म मत-सापरदाततयकता समा ह ह|

इसका वनराकरण सपषटतया सािशभौततमक रप म पा जान िाली मानिीयतापणश पदधवत स ldquoवनयम-तरयrdquo (बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक) क आिारपिशक ही आचरथिक एि सापरदाततयक िगश-भािनाओ स मकत होन की समभािना एि मकती ह| इसी म समि िगश-भािना विलीन हो जाती ह| इसीललए ndash

उपासना की उभय पदधवत का अभीषट समझदारी जागवत पिशक सारथशक होता ह जो जागरण ह| मानि म शततकतया वकरया इचछा एि जञान शततकत ही ह जो उनकी अहशताए ह| अहशताए परतयक इका

की जागवतशीलता जागवत पर आिाररत ह| शबद सपशश रप रस गिनतियो दवारा शततकतयो का अपवयय न होना सारथ ही सदवयाय होना ही

वकरया शततकत की जागवत ह| सदवयय एि अपवयय का वनिारण मानिीयता क सीमा म ldquoवनयम-तरयrdquo क रप म ह |

अतकरण मल परितताा अरथात आशा वििार इचछा ि सकलप का अपवयय न होना ही सदवयय ह| यही इचछा शततकत का जागरण ह|

समयक-बोि एि अनभती पणशता ही जञान परकटन कषमता ह| यही जञानशततकत का जागरण अरथिा पणश जागरण ह| यह ldquoजागवत-तरयrdquo मानिीयता एि अवतमानिीयता म परतयकष ह| यही मानि जीिन की िरमोतकषश

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उपलसतबध ह| सशकत उपासना क उपादयता यही ह यही समगर मानि की कामना ह| यही सिशमगल ह| इसीललए

जीिन-जागवत का परतयकष सवरप ही वििक पणश विजञान का परयोग ह यही सतकशता अखणड सामाखजकता परबदघता वनविि षमता सह-असतितव शशकषा विधि वयिसथा सभयता ससकवत बौशदघक समािान भौवतक समशदघ और जीिन जागवत की वनरनतरता ह

पणश जागवत पयशनत परतयक मानि इका परयास एि उपासना क ललय बाधय ह इसी क फलसवरप मल परिततततयो का पररमाजशन होता ह खजसक कारण विशशषट और शशषट मानधसकता एि वििार चिनतन-बोि कषमता अनभिपणशता परतयकष होती ह यही शरषठ उपासना की उपलसतबधयाा ह

इसललय समान क सारथ वयिहार करन क ललय बाधय हआ ह यही सामाखजकता की बाधयता ह यही मानि जीिन की गौरि और गररमा ह यही गररमा समान क सारथ वयिहार अधिक जागवत क ललय अभयास करन क ललय पररणा ह यही िािविक उपासना ह

वििक अरथात मानि लकषय और िरागय अरथात समशदघ ही उपासना का परतयकष फल ह खजसम सामाखजकता सवाभाविक रप स समाहहत रहती ह

िरागय का पराितशन ही असगरह (समशदघ) उदारता एि दया ह भौवतक समशदघ म उदारता एि दया क मौललक मलयो का अनरजन ही सामाखजकता का पराण ततव ह यही सामाखजक सगीत ह इसी क ललय मानि तततषत ह वििक ही बौशदघक समािान एि सामाखजक मलयो को वनिाह पिशक परकट करता ह इसललय

वििक ि िरागय ही परोकष जञान (सदवयिहाररक जञान) का परिान लकषण ह अनभि ही परोकष जञान की अनतनतम सथसथवत ह इसक पिश अनमान अधिकार ही परधसदघ ह ििसथसथवत ििगत सथसथवत सतय म ही अनभि ह

परोकष जञान क वबना वनतयावनतय यकतायकत नयायानयाय िमािमश सतयासतयइषटावनषट दषटादषट तरथा परोकष जञानाधिकार धसदघ नही होता ह

वनतयावनतय जञानाधिकार क वबना मनषय म सविमश क परवत वनषठा नही पा जाती ह मानि िमश ही सख सख ही नयायपणश आिरण नयायपणश आिरण ही मानिीयतापणश सीमा एि lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का पालन ह यही मनषय का सविमश ह मानि सख िमी ह

मयादा विहीन इका नही ह जस जीिो म सवभाि मयादा िनसपवतयो म गण मयादा एि पदारथो म रप मयादा-भग नही होती ह यही उनकी गररमा ह इसी परकार मानि म सख ही िमश ह िमश ही मयादा ह यही उनकी गररमा एि विशवास ह मयादा का परतयकष रप ही विशवास ह

lsquolsquoविशवासविहीन समबनध एि समपकश म सख नही हrsquorsquo समबनध एि समपकश विहीन मनषय नही ह यही बाधयता सविमश क ललय ह इसक पालन म जो अकषमता अयोगयता एि अपातरता ह - िही दख कलश समसया और अजागवत ह

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सविमश म समपननता एि पालन करन योगय कषमता योगयता एि पातरता स पररपणश होत तक जञानाजशन करन क अरथश म अधययन रपी उपासना का अभाि नही ह

मानि क सविमश की सीमा म ही मत समपरदाय िगश वतरोहहत हो जात ह यही समरथश उपासना की परतयकष गररमा ह lsquolsquoयही मागललक हrsquorsquo साधय सािक सािन इन तीनो का उपासना म समाहहत रहना अवनिायश ह इनकी एक सतरता ही उपासना की सफलता ह अनयरथा असफलता ह परतयक सथसथवत म परापत शततकत ि सािनो का सदपयोग करना ही उसकी अवगरम जागवत ह यही उपासना ह

इनतिय कायशकलाप तरथा इनतियो का कायशकषतर ही अपरोकष जञान की सीमा ह इस वयापार म ितविि षय सीमानतिती धसशदघयाा ह इसक अवतररकत और उपलसतबधयाा इसम नही ह

विषयो की सीमा म मनषय सीततमत नही ह कयोवक उसम िार आयाम परधसदघ ह

मनषय ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत समपनन होन क ललय बाधय ह यही आिशयकता अिसर सभािना एि वयिसथा ह

सयमतापिशक ही मनषय क दवारा परतयक पररपरकषय म वकय गय वकरयाकलाप म स गररमापणश िभि परकट होता ह जस-

सतयबोि सहहत सतय बोलन का अभयास करन स भय ि अविशवास की वनितततत हषश तरथा उतसाह का उदय होता ह

विशव क परवत मलय भाि की परवतषठा स इषट और सािक क मधय विषमता का अभाि होता ह

शबद क अरथश अरथात मनतरारथश का तदरपतापिशक समरण करन क अभयास स उसका अरथश एि सवभाि गमय होता ह सभी सारथशक शबद मनतर ह

अधिक जागत म समपशण स अलभमान ि अहकार का उनमलन तरथा विदया ि सरलता का उदय होता ह ( अधिक जागत = समझान िाला परमाखणत वयततकत गर)

शरीर सिदना सयत रहन स मन की पवितरता मन की पवितरता स मनोबल का लाभ होता ह

सव-शरीर मोह नषट होन स ससार क परवत मोह दर होता ह सिशशभरपी आपत कामना पणश बशदघ स ही विशव क परवत उदारता दया कपा करणा का परसिन तरथा विशव की आिारभत सतता म जञान एि अनभि होता ह

जञान विजञान वििक रपी सवतवहीनता ही असयमता मनोदौबशलय मल परविततततयो की अपररषकवत राग मोह लोभ अवििक अहकार अलभमान दहातमिादी परितततत दरािार सघषश असह-असतितव सशकता दवष तरथा तपोहीनता ह

सयमता क वबना बौशदघक मल परिततततयो की पररषकवत बशदघबल सामाखजक मलयो की अनभवत ितनय वकरया का दशशन समािान और सयमता धसदघ नही होती ह

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उपासना क ललय िातािरण का महतव अपररहायश ह खजसम स मनषय कत िातािरण ही परिान ह जो शशकषा ि वयिसथा क रप म ही ह

मानिीयता की सीमा म वयिहार lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का आिरण ही वयततकततव ह ऐस वयततकततव क वनमाण म सवकरय योगदान ही कततशवय ह यही परषारथश ह यही परबदघता ह

आशा भद स उपासना उपासना भद स अनभि अनभि भद स अनमान अनमान भद स उपासना भद ह यही उपासना म िविधयता का कारण ह यह िविधयता सािशभौम आिरण की सीमा म विलय होन क ललय बाधय ह

मानि क ललय सहज समरथश उपासना एक अवनिायश कायशकरम ह जो अमानिीयता स मानिीयता मानिीयता स अवतमानिीयता की परवतषठा सथाततपत करती ह

सह-असतितव म अनकषण-विकषण-ितततत स सहजाितततत होती ह

कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ही अनकषण-विकषण ितततत ह

अनकषण का तातपयश परतयक कषण म लगातार सह-असतितव चिनतन वििार करम म परमाखणकता का सहज परमाण परित हो जाता ह यही सहजाितततत ह

सतता म समपकत परकवत की समपकतता का जञान ही (पणश-दशशन) कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ह यही भरततमत भाि ि अभाि का वतरोभाि ह यही सहज परवतषठा ि अिसथा ह

सतता म समपकत परकवत का जञान न होन स और अनभिमलक जञान न होन स भय और परलोभनिश समि भरममलक कायश-वयिहार सोि-वििार को बनाय रखता ह यही समपणश कलश का कारण ह

काल वकरया की अिधि ह इसी अिधि म आरोततपत वििार ि इचछा ही असहज एि वनरारोततपत वििार ि इचछा ही सहज ह

मानि इका म ही जागवत क करम म भी वनरारोपण कषमता पा जाती ह भरमिश आरोपण होता ह

जो जसा ह उसस अधिक कम अरथिा नासमझना ही आरोपण ह यही अजञान ह यही अकषमता ह यही भरम ह

सतता म समपकत जड़-ितनयातमक परकवत की सथसथवत-शीलता ि सतता सहज पणशता क समबनध म ही आरोप या वनरारोण वकरया समपनन होना पाया जाता ह

परतयक इका म रप गण सवभाि एि िमश समाहहत ह यही उसकी कायशितता ह इसी की गणना पररमाण परयोजन जञान ही परकवत क परवत वनभरमतापणश कषमता का दयोतक ह यही परमाण ह यही सहजता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 23

समपणश वकरयाय मलत रप और शबद भद म दषटवय ह

परकता क वबना इका म अवगरमता नही ह

पणशता पयशनत इका परकता उपयोवगता क ललए परितत ह

परकता ही इका म हरास ि विकास क लकषणो को परकट करती ह यही परिान उपादयता भी ह

इका म परकट होन िाल शबदादधद गण ही सापकष शततकतयाा ह गणविहीन इका नही ह इसललय

मनषय म सहज कामना का अभाि नही ह सहजता ही िमश ह यही सख शानतनत सतोष एि आननद ह यही िारणा को सपषट करता ह जो परतयकष ह

परतयक कमश-फल ही मनषय क सख का पोषक ि शोषक धसदघ हआ ह

सतय और सतयता क अनभि-करम म वयििान नही ह कयोवक अनभिकरम-वयिसथा सघन ह जागवत की कदधड़याा सघन ह इसललय-

सहजता आरोप स मकत ह आरोप ही नयनावतरक मलयाकन ह सवय की नयनावतरक मलयाकन वकरया ही असहजता ह

सवय का मलयाकन lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म होता ह

lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म न हो ऐसा मनषय इस पथवी पर नही ह

िमश का वियोग नही ह कयोवक यह िारणा ह इसका परतयकष रप ही मानिीयता एि अवतमानिीयता पणश आिरण ह जो सहजता का परिान लकषण ह इसललय -

अमानिीयता पणश आिरण ही असहज ह इसललय

परकवत अपन म समपणशता क सारथ सीततमत ह यही अिधि ह इसललय पणश म समायी ह यही पणश म समपणशता सहज सह-असतितव ह यही समपणशता का वनतय ितशमान और जञानािसथा क मानि म पणशता का परसि ह यही जागवत क ललय बाधयता ह

मनषय क बौशदघक कषतर म पायी जान िाली अनािशयक कलपनाओ का वनराकरण ही दशशन-कषमता म गणातमक पररमाजशन ह यही गणातमक ससकार-पररितशन शशकषा एि जीिन क कायशकरम का योगफल ह

दशशन-कषमता का उतकषश ही अनकषण विकषण ह यही मधयसथ वकरया की कषमता ह मधयसथ वकरया ही दषटा ह

मधयसथ वकरया का िरमोतकषश ही सम ि विषम वकरया का पणश वनयतरण ह यही कषमता कषण-कषण मधयसथ वयििान स मततकत ह

ससकार पिशक ही बौशदघक वयिसथा-परवकरया -कषमता क आनषवगक ह मनषय सहज ऐषणा एि विषयो की सीमा म परितततत ि वनितततत पिशक वयि होना पाया जाता ह जो परतयकष ह

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आतमा (मधयसथ वकरया) क आनषवगक बौशदघक परवकरया ि वयिसथा म सतय-सकलप एि सतय-कलपनापणश मानधसकता की सथसथवत पा जाती ह जो परधसदघ कमश उपासना जञान पणश ह यही कषमता दि ि दधदवय मानिीयता को परकट करती ह यही पणश जागवत ह

ऐषणासकत बौशदघक वयिसथा म मानिीय तरथा दि मानिीय सवभाि परकट होता ह उसी क अनरप म मानधसक िातािरण की सथसथवतशीलता ह ऐसी कषमता ही सामाखजक ितना एि सतकशता स पररपणश पायी जाती ह

विषयासकत बौशदघक वयिसथा ि परवकरया म अमानिीयतापणश आिरण समपनन होता ह जो पाशविकता तरथा दानिीयता क रप म दषटवय ह इनम उसी क योगय मानधसकता पा जाती ह यही लपत-सपत कलपना का कारण ह यही अजागवत तरथा अपणश सतकशता का दयोतक ह

शरय (जागवत) खजजञास होन पर ही लपत-सपत कलपनाय पररमाखजि त होती ह फलत दानिी ि पाशिी परिततततयो स उदासीनता सथसथर होती ह सारथ ही वििकोदय होता ह

शरय खजजञासा का उदय सव-ससकार विधि-विहहत अधययन तरथा उसक अनकल िातािरण म होता ह

विधि-विहहत-अधययन वनपणता कशलता ि पादधडतय ही ह

अधययन एि िातािरण ही ससकार पररितशन क ललय समरथश वयिसथा ह खजसका गणातमक पररितशन ही आतमबोि क ललय खजजञासा ह

आतमबोि ही सतय खजजञासा का परिान लकषण ह इसललय- अििारणा ही अनगमन तरथा अनशीलन क ललय परितततत ह जो शशषटता क रप म परतयकष होती ह परगवत क ललय अििारणा अवनिायश ह जागवत क ललय अििारणा एि हरास क ललय आसततकत परधसदघ ह यही करम स वनितततत ि परितततत ह अििारणा ही सदधदविक ह सदधदविक सवय म सतयता की विििना ह जो सपषट ह मलत यही शभ एि मागलय ह अनभि की अििारणा सतय बोि क रप म अििारणा (समयक-बोि) ही सतय-सकलप ह यही परािवति त होकर शभकमश उपासना तरथा आिरण क रप म परतयकष ह इसी का पररिवति त मलय ही िीरता िीरता उदारता दया कपा और करणा क रप म परतयकष ह सतय म ही समयक-बोि होता ह असतय ही कलपना एि भास होता ह हीनता दीनता और कररता स यकत कमश अशभ होता ह सव-मलय ही परितततत और वनितततत का िशश ह इसललय असतय अलभमान तरथा दपश स मकत सतय सरलता सहजता तरथा सौजनयता स यकत कमश ि उपासना शरय कारक ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 25

सतय कामना की वनरनतरता स लकषय की अििारणा होती ह जञान म ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत परतयकष ह जञान वििक सममत विजञान ही ह जो पणश ह सतय और सतयता म दढ़ता ही शरयमय जीिन ह सतयानभवत ही सबका अभीषट ह शरीर स समपनन होन िाल समि वकरयाओ का सिालन मन ही मिस दवारा करता ह मिस स सभी नादधड़याा वनयदधतरत ह शबद का मल रप मन ही ह मिस पर मन आसवादन एि सवागत भािपणश तरगो का परसारण सिालन वनयतरण करता ह उसक मल म शबद ही ह जागवत की ओर गवत हत वनयतरणातमक शबद ही मतर ह लकषय-पराततपत-योगय-करम परवकरया ही वनयतरण ह शबद म जो भाि (मलय) ह िही उसका अरथश ह सारथशक शबदो का अरथश ही जागवत की ओर गवत ह कयोवक शबद का अरथश असतितव म िि ह भाि म जो उपयोगपणश अवनिायशता ह िही उसका महतव ह उपयोग पणश अवनिायशता म जो वनचशचत दधदशा ह िही उसकी दढ़ता ह यही समयक सकलप ह समयक सकलप म जो पणशता ह िही अनभि ह जो करम स मन ितततत चितत बशदघ और आतमा म पा जान िाली सससकत मौललक वकरयाय ह भाि का तातपयश होन स ह शततकत-तरय-जागरण (इचछा-शततकत वकरया-शततकत तरथा जञान शततकत जागरण) क वबना तयाग (भरममततकत) और परम परमाखणत नही होता

मनन परवकरया म सव-मलयाकन

सव-मलयाकन मनन धयान ldquoअपराि क अभाि म दयापणश आशा का पराितशन अनयाय क अभाि म नयायपणश वििार का पराितशन आसकती क अभाि म समािान पणश इचछा का पराितशन तरथा अजञान क अभाि म जञानपणश सकलप का पराितशन होता ह| अत अपरािहीन वयिहार क ललए वयिसथा का परभाि अनयायहीन वििार क ललए अखणड समाज का परभाि तरथा अजञान रहहत बदधदध क ललए अतवनि यामन अरथिा धयान आिशयक ह खजसस ही परतयाितशन वकरया सफल ह| धयान का अरथश समझन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना और समझन-अनभि करन क

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उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

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मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

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(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

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सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

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प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

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अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

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३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

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(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 34

उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

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मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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होता ह शरवत का तातपयश सथसथवत सतय िि सथसथवत सतय ििगत सतय को इवगत करन बोि करन क ललए ही सनन योगय ि सनान योगय सभाषण ह पणशता को इवगत करन करान क अरथश म परयोग वकया गया भाषा एि पररभाषा ह सनन सनान क ललए सवय सफतश मानि अपकषा ह सनान योगय भी सवय सफतश सपरषणा ह सपरषणा का तातपयश पणशता क अरथश म परित होन की परवकरया ह सनन क करम म भी पणशता को पहिानन सहज अपकषाए बनी ही रहती ह पणशता अपन म वनरतर ह इसका सामानय सवरप असतितव म पणशता परमपरा क रप म परकाशशत ह असतितव म पणशता गठन पणशता वकरया पणशता आिरण पणशता ही ह रासायवनक भौवतक इका या अपन-अपन िातािरण सहहत समपणश ह ही पदारथािसथा पराणािसथा जीिािसथा की परपराए उन उन की lsquoतवrsquo सहहत वयिसथा क रप म सदधतरत वयाखयाततयत ह यह परपराए पणशता सपणशता सहज ही वनरतरता को परापत वकए ह िह lsquoतवrsquo सहहत वयिसथा समगर वयिसथा म भागीदारी ह यही िभि-सतर ह

मानि ऐसी शरवत परमपरा को िाहता ही ह वक इसस यरथारथशता िािविकता और सतयता सहज ही समझ म आय जीिन सहज खजजञासा कयो ह कसा ह कबस ह कसा बना ह इस परकार क परशन अपन आप उदय होत ही ह यह कलपनाशीलता की गररमा ह इसका उततर पाना समािान पाना परमाण पाना परमाखणत होना यह ही शरवत समचचय की सारथशकता म होना पाया गया

समपणश िाङमय अरथात शरवत (सनन योगय सनान योगय भाषा पररभाषा जो सोि वििार वनशचय और समझदारी परितशन भाषाकरण सतरीकरण िाकय परबिन सिाद क रप म परिललत रहता ही ह) यरथारथशता का सवरप जसा खजसकी मौललकता ह उस इवगत करन वनदशशत करन और चिखनहत करन क रप म शररवत का परयोजन सारथशक होता हआ नजर आता ह खजसका जो अरथश का सवरप परतयक एक म रप गण सवभाि क रप म वयाखयाततयत होना पाया जाता ह इन िारो आयामो की अविभाजयता म परतयक एक वयिसथा क रप म मलयावकत होता ह और परतयक एक वकरया क रप म ही ततमलता ह

जबवक मानि भाषा कारण गण गखणत क अविभाजय रप म ह खजसस ही परम सतय रपी सह-असतितव भासा आभास पिशक परतीवत सहज बोि सारथशक होना पाया गया फलत अनभि होना धसदघ हआ प ४४ भततकत सहज अलभवयततकत जागवत गामी विधि स अरथिा जागवत करम विधि स भास आभास परतीवतयाा और जागवत-पणश विधि स परतीवत अनभवत ि उसकी वनरतरता दोनो सथसथवतयो म तनमयता तारतमयता और उपादयता सपषटतया समझ म आता ह प ८६ ndash मन म होन िाली सवागत वकरया ndash अभयास-अधययन करम म

सवागत - (1) अििारणा अनभि क ललए सवीकत वकया (2) वनयम नयाय समािान सतय सहज सवीकवतयो असवीकवतयो क ललए तयाररया (वििक ि विजञान सममत मानधसक ििाररक और ऐचिक तयाररया)

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इदधदरय सदधननकषश म भी सवागत भाि का भास आभास होना पाया जाता ह खजसकी वनरतरता की अपकषा ही रह पाती ह यह वयिहार म परमाखणत नही हो पाता अतएि सवागत का आिार समपणश मलय सवागत होना पाया जाता ह ििओ का िारक िाहकता म भी जीिन रहता ही ह

समपणश अििारणाए मौललकता क रप म होना पा जाती ह मौललकताए िमश और सवभाि क ही सतर ह समपणश असतितव म परतयक एक अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा ह समगर वयिसथा म भागीदार ह कयोवक असतितव म समपणश इकाइया (अरथिा समि इका या) सह-असतितव सतर म सदधतरत ह प २१८ इवगत होना ही वयजना ह वयजना ही करम स भास आभास परतीवत अििारणा एि अनभवत ह प २१

ियन-वकरया अरथात गरहण करन का वकरयाकलाप पराितशन विधि स और आसवादन वकरया परतयाितशन विधि स सवय म सपनन होती ह विशलषण वकरया पराितशन विधि स और तलन वकरया (ततपरय हहत लाभ नयाय िमश सतय दवषट) परतयाितशन विधि स सपनन होती ह चितरण वकरया पराितशन विधि स इचछा पटल म चिदधतरत हो पाती ह पराितशन म रिनाओ वकरयाओ क रप म परमाखणत हो पाता ह और चिनतन-वकरया साकषातकार विधि स सारथशक होती ह साकषातकार की समपणश िि जीिन मलय मानि मलय सथाततपत मलय शशषट मलय और िि-मलयो क रप म दरषटवय ह मलयो का सतलन तलन होकर तततपत विधि म सलगन रहता ह इस परकार साकषातकार की तततपत का सरोत मलय ह और उसकी (मलयो की) वनरतरता का भािी होना पाया जाता ह

जीिन म सपनन होन िाली अििारणा बोि-बशदघ सहज परतयाितशन वकरया ह सभी अििारणाए अधययन और अनसिान विधि स सथाततपत हो पाती ह अनभि मलक विधि अनभिगामी पदघतततत स बोि होना पाया जाता ह अनभि सतय बोि करान म परमाखणत होता ह और सकलप पणशता क अरथश म कलपनाओ को गवत दन स ह कलपनाए - आशा वििार इचछा क सयकत रप म परिाहहत रहती ह जीिन शततकत अकषय होन क कारण परतयक वयततकत म कलपनाशीलता का अकषय होना पाया जाता ह कयोवक यह कलपना जीिन शततकतयो का ही परिाह ह कलपनाए सतय सकलप क अनरप परािवति त होकर मानि परमपरा क अखड समाज सािशभौम वयिसथा क रप म सारथशकता को परमाखणत करती ह

प ४९-५०

पिानकरम पदघवत परणाली मानिीयता पणश वििार-चिितन-बोि-अििारणा और अनभि मलक होन क करम म अधययन गमय ह पिानकरम विधि स ही मनन पिशक मानयताए सथाततपत हो पाती ह फलत मानि परमपरा क ललए उपकारी और सारथशक धसदघ होती ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 10

प ५१ ५२

वनषठा - जागवत पणश लकषय को वनचशचत अििारणा ि समरण पिशक परापत करन ि परमाखणत करन का वनरतर परयास

वयजनीयता का तातपयश - साकषातकार होन स ह साकषातकार चिितन म होता ह वयजनाए मानि मलय जीिन-मलय सथाततपत मलयो क परभाि क सारथ जीिन मलयो का बोि ि अनभि करन स ह समपणश रसानभवत का तातपयश ह - जीिन मलय रपी सख शावत सतोष आनद सहज आपलािन जागवत सहज परमाणो क रप म सपषट होना यही अनभि करन और बोि करान का तातपयश ह

प ७५-७७ गर और शशषय

पररभाषा गर - शशकषा ससकार वनयवत करमानिषगीय विधि स खजजञासाओ और परशनो को समािान रप म अििारणा म परसथाततपत करन िाला मनषय गर ह जागवत करम म मानि को अपरापत का परापत अजञात का जञात करन क ललए होन क ललए विधि वनयम परवकरया सहज समझदारी म पारगत बनाना ही परमाखणकता का परमाण ह परमाखणकता पणश गरजन ही असतितव सहज सह-असतितव रप म अििारणा को परवतसथाततपत करा सकता ह अििारणाय असतितव विकासकरम विकास जीिन जीिनी करम जीिन जागवतकरम जीिन जागवत सहज रप म परसपरता म अरथात समझा हआ और समझन क ललय तरथा मनषयो स ह गरजन इन मददो म पारगत रहग यह समझदारी ह समझदारी क आिार पर ही मानिीय शशकषा-ससकार सपनन होता रहगा ससकार का तातपयश ही अििारणा ह विदयाचरथि यो म सथाततपत होन स उसकी वनरतरता का परमाण वयिहार वयिसथा म परमाखणत होन स ह फलसवरप ही अखणड समाज सािशभौम वयिसथा म भागीदारी सहज कायश-कलाप हर मानिीय शशकषा-ससकार समपनन मानि स िररतारथश होना पाया जाता ह

परामाखणक - परमाणो का िारक िाहक - यरथा असतितव दशशन जीिन जञान मानिीयता पणश आिरण समचचय को परयोग वयिहार अनभि पणश विधि स परमाखणत करना और परमाणो क रप म जीना

पररभाषा शशषय - जागवत लकषय की पवति क ललए शशकषा ससकार गरहण करन सवीकार करन क ललए परित वयततकत खजसम गर का समबनध सवीकत हो िका रहता ह यही खजजञासातमक शशषटता ह

खजजञास - जीिन जञान सहहत वनभरशम शशकषा गरहण करन क ललए तीवर इचछा का परकाशन

समझन सीखन करन क ललए पणश खजजञासा सहहत परयतन सपनन वयततकत शशषय क रप म शोभनीय होता ह सफल होन क सभी लकषणो स यकत िातािरण म विशवास होना और विशवास को िातािरण म परभावित करन परमाखणत करन की सभी परवकरया अधययन ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 11

असतितव विकास जीिन जीिन जागवत रासायवनक-भौवतक रिना-विरिना समपणश मानि क ललए समझन-समझान की िि ह सीखन की जो कछ भी परमाखणत िि ह यह मानि म मानिीयतापणश आिरण कमश अरथात वयिसाय म सवािलमबन वयिसथा म भागीदारी मानिीयता पणश आिरण का अभयास परामाखणकता सहज अलभवयततकत ह सारथ ही सािशभौम वयिसथा और अखड समाज म वनषठा ह य समपणश खजजञासाए वयािहाररक रप म िररतारथश होती ह परौढ़ता की पराकाषठा म स क ललए सवानशासन की खजजञासा का होना पाया जाता ह खजजञासा मानि सहज परकाशन ह

प १०६ जीिन को तातवतवक रप म समझन की खजजञासा हो ऐसी सथसथवत म परमाण म होन िाली विकास परवकरया उसक सकरमण िभि को भी जो ितनय इका क रप म परवतवषठत ह को सहज ही अधययन अििारणा म लाना एि अनभि करना आिशयक ह

अनभिातमक आधयातमिाद सस २००० (प ५८ ndash ६५) अनभव ही दसर नाम स परतयावरतन करिया ह और इसका परावरतन करिया को परामाणिकरा-परमाि नाम ददया ह जागकरर सह-असतितव म अनभव हई ह इसी जागर सथिकरर म होन वाली गकरर को परतयावरतन नाम ददया गया ह समपित परतयावरतन दरतन और जञान नाम स परकररकरिर ह जञान और दरतन सवाभाकरवक रप म ओर-परोर रप म वरतमान ह समपित असतितव सतता म सपकत जड़-चरनय परककरर ही सह-असतितव का मल सवरप ह इसका सामानय कलपना हर मानव म होना सभव ह कलपना का मल सतरोर आरा करवचार इचछा का असपषट गकरर रप ह कयोकरक समपित कलपनाए परावरतन म कायतरप रहना दखा जारा ह मानव ही कलपनारीलरा का परयोग कररा ह इस ऐसा भी कहा जा सकरा ह करक हर वयकतकत परकारानतर स कलपनारीलरा का परयोग कररा ह भरकतमर मानव दवारा कलपनारीलरा का सवाधिक परयोग ररीर और इनदरिय सदिकरत क रप म ही सवाभाकरवक ह यह भरम करववररा ह यही कलपनाए चचणिर रप म सपषट होन क ललए रतपर होर ह रभी करवधिवर करवशलरि और करनचिर चचतरि करवचार रप म समभावनाओ को सवीकारना बनरा ह सभावनाओ का लकषय कतपरय हहर लाभ सीमाओ म सीकतमर रहना पाया जारा ह यही भरमातमक कायत सीमा का अथ इकरर ह जागकररपित जीवन चचतरि म यह रथय ससपषट ह करक नयाय िमत सतय उसका साकषातकार बोि अनभव ही अधययन और अनसिान का लकषय और कायत ह इिी कायत रप क आिार पर असतितव और जीवन अविारिा म िाकतपर होना सफल अधययन का दयोरक और कसौटी भी ह इसी क आिार पर सवायतत मानव का सवकषि करनरीकषि और परीकषि होना सपषट हो जारा ह सवायतत मानव ही असतितव म अनभव सहज जागकरर का िारक-वाहक होना सपषट ह इस परकार अधययन सहज रप म जीवन और सह-असतितव म अनभव बोि की अलभवयकतकत और परमणिर होन क िम म आतमा असतितव म अनभर होना जीवन म किीय होना मधयि करिया और मधयि बल समपिरा का सवीकर होना परम रपत होना ह जीवन रचना मधयार सहज मधयि करिया मधयि बल मधयि रकतकत सरलन क अथत म सदा-सदा परयकत रहरा ही ह यही जागर

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 12

मानव परपरा म परमाि ह मधयि करिया समम_य िम स जीवनी िम और जीवन जागकरर िम वयकत होरा ह इसी िम म जागर होना जीवन सहज परवकततत परयास आवशयकरा क योग-सयोग करवधि स समपि होरा ह यही अनसिान रोि और अधययन क ललए भी सयोजक रतव ह यह रतव सदा-सदा जीवन परकररिा म कायतरर रहरा ही ह इसकी परखररा क आिार पर ही अनसिान रोि अधययन सहज हो जारा ह इस परकार यह ससपषट हो जारा ह करक आतमा अधययन करवधि स असतितव म अनभर होरा ह दसरा अनसिान करवधि स भी असतितव म अनभर होना पाया जारा ह ( अनसिान विधि जो शरी ए नागराज न कीया सािना gt समािीgt सयम | अधययन विधि पिक एि वकसी समझ हए वयकती क माधयम स शशकषा-ससकार परापत करना) अनसिान करवधि स भी सवतपरथम असतितव म बोि होना दखा गया ह इसक उपरानत ही आतमा असतितव म अनभर होना दखा गया ह अधययन करवधि स भी यही सथिकरर अथार पहल बोि रदोपरार अनभव होना पाया जारा ह इन दोनो करवधियो म स अधययन करवधि लोकवयापीकरि क ललए कम समय म बोि होन की सथिकरर बनरी ह अनसिान करवधि म परवतत होन क ललए वयकतकत म लकषय सममर णजजञासा का होना अकरनवायत ह जब अधययन करवधि स समपित परशनो का उततर कतमल जारा ह परशन िली ररकत होना उसी िली म समपित उततर िाकतपर होना अधययन और अधयापन का सयोग और फलन ह परशन करवहीन सथिकरर म अनसिान का आिार नही बनरा इस परकार परपरा म सभी परशनो का उततर अधययन करवधि स हर मानव म हर सथिकरर पररसथिकररयो म समपित परशनो का उततर सह-असतितव सहज करवधि स समीचीन ह अनसिान करवधि एव अधययन करवधि स पहल बोि ही होरा ह रदोपरार lsquolsquoबोिrsquorsquo का आतमा म अनभव होरा ह अनभव क उपरानत lsquolsquoअनभव सहज बोिrsquorsquo अधययन एव अनसिान करवधि म एक जसा होरा ह एव एक ही होरा ह इसम मखय रथय यही ह यथाथतरा वासवकररकरा सतयरापित करवधि स अधयापन सामगरी वि परकरिया पररपित रहना आवशयक ह ( अधययन अरथिा शशकषा वििी म) अनसिान क ललय अजञार परशन चचि अकरर आवशयक ह हर अनसिान को अधययन और अधयापन कायत करवधि स लोक वयापीकरि होना सगम हो जारा ह इस परकार अनभव क अननतर ही अनभव lsquoबोिrsquo होना दखा गया ह यह हर वयकतकत म होना समीचीन ह (प १०७ १०८ १०९ इसक उपरानत जागकरर और जागकररपितरा ही मणजलो क रप म दखन को कतमलरा ह यह मलर करवचार चचतरि अविारिा अनभव और चचनतन का ही वभव रपी मानधसकरा क रप म दखा गया ह भरम का समपित सवरप आरा करवचार इचछा (चचतरि) का कतपरय हहर लाभातमक दकरषटयो की करियारीलरा ही ह सवतमानव पीड़ा स मकतकत चाहरा ही ह यही जागकरर सहज अपकषा का सरोर और समभावना ह जीवन सहज करियाकलापो म स नयाय िमत सतय का साकषातकार और दषटा होना और उसका परमाि धसदघ होना ही समपित जागकरर ह दषटापद म होन वाली समपित करियाकलाप जीवन सहज करवधि स जानन-मानन-पहचानन-करनवाह करन क रप म होना पाया गया ह जानन-मानन की समपित वि जीवन जञान सह-असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान ही ह

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अनभव असतितव म ही होना पाया जारा ह अनभव क पहल समझदारी जानन-मानन-पहचानन क रप म होना पाया जारा ह यही अधययनपवतक होन वाला अविारिा ससकार ह इसक पवत रप म करवचार और चचतरि ही रहरा ह यही शरकरर समकरर रबद और चचतरि ह रबद और चचतरि क आिार पर करकरन भी करियाकलापो को मानव सपाददर कररा ह यह सब असथिररा क साथ ही जझरा हआ दखा गया ह असथिररा म भरम ही परिान कारि ह इसीललय ही समरि और चचतरि क उपरानत कही न कही असथिररा-अकरनियरा को परकाशरर कररा ही ह इसी सीमा रक हम इस बीसवी सदी क अर रक झलर आय ह सथिररा की सवीककरर बोि रप म ही होना फलसवरप वयवहार म नयाय-समािान-सतय परमाणिर होना पाया जारा ह ऐसा बोि जानन-मानन-पहचानन का ही महहमा ह यह करिया जीवन म ही जागकरर सहज करवधि स होन वाली वाधिर परकरिया ह असतितव म अनभव सतता म (वयापक म) सपकत परककरर क रप म ही दखा गया ह सतता म सपकत रहन क आिार पर ही करियारीलरा करनयतरि सरलन सरकषि सामय ऊजा सरोर होना दखा गया ह इसीललय परककरर म करनयतरि सरकषि करनररर बना ही रहरा ह अर सतता म करनयतरि सपषट ह (प ७४) असतितव सहज सह-असतितव म जड़-चरनयातमक परककरर करनतय वभकरवर होन का सवरप करिया शरम गकरर पररिाम परकारन सहज करियाकलाप और पररिाम का अमरतव शरम का करवशराम गकरर का गरवय सहज लकषय करनहहर करिया उपयोकरगरा परकरा-उदाततीकरि करनयमो क अनरप समपित भौकररक-रासायकरनक जीवन रपी परककरर म करनतय रचना-करवरचना lsquoतवrsquo सहहर वयविा और उसकी परपरा भल परकार स बोि करान की सहज-करिया समपि करकया जा चका ह इसी िम म शरम का करवशराम गकरर का गरवय रपी परमािो को मानव परपरा म परमाणिर करन की आवशयकरा रहा ह इस सवतसलभ लोकगमय करन क ललए अधययनपवतक जागकरर करवधि और इसक परमाि म बोि परिाली को पहचाना गया यह भी अनभव करकया गया ह करक बोि होना समझदारी का ही दसरा नाम ह अथवा बोि का ही दसरा नाम समझदारी ह ऐस समझदारी अधययनमलक परिाली स अविारिा म िापकरर होना ऐसी अनभव मलक अविारिाओ को अलभवयकत सपरकतरर परकाशरर करन क िम म असतितव म अनभव एक अवशयभावी परकरिया क रप म सपषट हई ह इस िम म असतितव म अनभव करनतय ह यही मानव का परयोजन ह जीवन करनतय ह असतितव सथिर ह इसी आिार पर अनभव और अनभव िम अलभवयकतकत सहहर जागकरर सहज जीवन का गनतवय अथार जीवन म जागकरर पितरा ही जीवन गकरर का गरवय िली होना उसकी करनरनतररा सदा-सदा क ललय बना ही रहना दखा गया इिी आिारो पर lsquoअसतितवrsquo सतता म सपकत जड़-चरनय परककरर क रप म परकररपाददर हई सह- असतितव करवधि स वयाखयाकतयर हई यह महहमा जागकरर पित जीवन सहज अलभवयकतकत ह (प १८३) जीवन जञान सह-असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान रथयो सहज करवधिवर अधययनपवतक बोि होना दखा गया ह ऐस बोि सहज रथयो को उदघादटर करन क िम म और लोकवयापीकरि करन क

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िम म परमाणिर होर ही ह फलसवरप अनभर भी होर ह इस परकार करनतय परमाि और अनभव सहज रप म ही समपि होरा हआ दखा गया ह यही कवलय और जागकरर की महहमा ह (प १५४- १५७) जागकरर करवधि और अभयास असतितवमलक मानव कनदरिर चचनतन जञान दरतन आचरि िरवीकर रप म अधययन गमय होना दखा गया ह जीवन जञान जीवन म समपि होन वाली करियाओ का परसपररा सहज िरव करबनदओ क आिार पर उभय रकतपत करवधि सवत रभ एव समािान स दखा गया अलभवयकतकतया ह जसा मन और रकतपत म सामरसयरा का करबनद करवशलरि रलन पवतक आसवादन क रप म पहचाना गया ह यह सह-असतितव अनभव क पिार करनयम नयाय िमत सतय सहज परयोग म अनभर होन क उपरानत ही साथतक हो पारा ह इसक ललय अथार ऐस अनभकरर क ललय अधययन िम स आरभ होरा ह अधययन अविारिा कषतर का भरर-भरर वरतमान करवधि ह इस करवधि स णजरनी भी अविारिाए अधययन स समबदघ होरा गया उरन ही अविारिा क आिार पर परवकततत सहज नयाय िमातमक और सतय सहज रलन नयाय रलन समपि करवचार क आिार पर करकया गया आसवादन सहहर समपि करकया गया सभी चयन नयाय रप होना दखा गया ह इसी परकार ऊपर कह चचनतनपवतक जब चितरण रलन करवचार आसवादन और चयन करियाए समपि होर ह नयायपवतक वयविा म परमाणिर होना दखा गया अविारिाए सवाभाकरवक रप म ही असतितव सहज होन क आिार पर सह-असतितव रप होन क आिार पर अनभर होना अथार जानना-मानना और उसक रकतपत करबनद को पाना ही अनभव ह जानना-मानना-पहचानना ही अविारिा ह इसम रकतपत करबनद को पा लना ही अनभव ह इस कायत-वयवहार वयविा म वयकत कर दना परामाणिकरा ह अनभव परमाि पित बोि सहहर समपि होन वाल सकलप चचनतन चचतरि नयाय िमत सतय रपी रलन करवशलरि आसवादन सहहर करकया गया समपित अलभवयकतकतया वयविा और समगर वयविा म भागीदारी करनवाह कररा हआ ही दखन को कतमलरा ह इस करवधि स जागकररपित मानव ही असतितव म भरम बनधनो स मकत होना सपषट करकया जा चका ह जागकरर करवधि अधययन रपी सािना करवधि स सवाधिक उपयोगी सदपयोगी परयोजनरील होना दखन को कतमला ह इस करवधि स साधय सािक सािन का सामरसयरा सवय सफरत करवधि स समपि होना दखा गया ह जागकरर क ललय हर मानव सािक ह साधय जागकरर ही ह सािन जागकररगामी अधययन परिाली ह इस िम म परमपरा सािन परकररिा क रप म रन-मन-िन वयविा और समगर वयविा म भागीदारी का परमाि मानवाकाकषा क रप म होरा ही ह इस परकार स साधय-सािक-सािन का सयोग मानवीयरापित परपरा करवधि स सफल होन का सवरप सपषट ह ऐस परपरा क पवत (जस आज की सथिकरर म भरकतमर समदाय परपराए) मानवीयरापित परपरा म सिकतमर होन की कायतपरिाली मददा ह इस िम म अनसिान क अननतर णजरन भी रोिकरा सममर होर जार ह और सममकरर क अनरप करनिा उदगकतमर हो जारी ह और भी भाराओ स सवय सफरत करनिा उदगकतमर होरी ह ऐस ही करनिावान मिावी इस कायत म सलगन ह यही आज की सथिकरर म जागकररगामी अधययन जागकररमलक अलभवयकतकत सहज करवधि एक स अधिक वयकतकतयो म परमाणिर होन का आिार बन चकी ह जागकररपित परपरा म साधय सािन सािक म करनतय सगीर होना दखा गया ह दसर भारा म करनतय समािान होना पाया गया ह

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उललणखर अनभवो क आिार पर समपित जागकरर अपन-आपस जीवन जञान असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान म ही समपित ह इसका अभयास करवधि सवतपरथम अनसिान दसरा अधययन पवतक रोि रोि पवतक अधययन य ही मल अभयास ह कयोकरक अधययन करवधि स ही रोि करवधि स ही अविारिा का सवीकर होना दखा जारा ह अनय करवधि जस उपदर करवधि म भरकतमर होन की सभावना सदा बना ही रहरा ह हर परपरा म अपन ढग की आदर परकररिा िाकतपर रहरा ही ह वह अधययवसाकतयक (अधययनगमय) होर रक उपदर या सचना मातर ह परपरा म णजस आरय क ललय आदर-करनदर ह वह रकत सगर-वयवहार सगर बोि होन की परकरिया परिाली पदघकरर ही अधययन कहलारी ह रकत का साथतक सवरप करवजञान सममर करववक और करववक सममर करवजञान होना दखा गया परयोजन करवहीन उपदर परयोग वह भी वयवहार परमाि करवहीन उपदर रब रक ही रह पारा ह जब रक रकत सगर न हो रकत का रातपयत भी इसी रथय को उदघादटर कररा ह रकतपत क ललय आकरति परिाली (भारा परिाली) ऐस रकत सहज रप म ही करवजञान क आशरर करवशलरिो को करववक स आशरर परयोजनो का परमाणिर होना सहज ह हम इस बार को समझ चक ह करक परयोजनपवतक जीन क ललय परमाणिर होन क ललय समािान समशदघ क रप म सह-असतितव दरतन क ललय रकत सगर अधययवसाकतयक करवधि का होना आवशयक ह अधययन करियाकलाप रकतसगर परयोजन परयोजन सगर मानवापकषा मानवापकषा सगर जीवनापकषा जीवनापकषा सगर सह-असतितव सह-असतितव सगर करवकास िम और करवकास करवकासिम और करवकास सगर जीवन-जीवनी िम-जागकरर िम-जागकरर एव इसकी करनररररा सह-असतितव सहज लकषय ह असतितव सहज लकषय म भी मानव ही अकरवभाय ह और दषटा ह इसललय मानव असतितव सहज सह-असतितव करवधि स परकरा-उदाततीकरि परकरा-करवकास परकरा-जागकरर सतरो क आिार पर सह-असतितव सहज अधययन सलभ हआ ह समपित असतितव ही वयविा क सवरप म वरतमान होना समीचीन ह आज भी मानव क अकररररकत सभी अविा म (पदाथत पराि जीव अविा) अपन-अपन तव सहहर वयविा म होना ददखरा ह इसी िम म मानव भी अपन मानवतव सहहर वयविा और समगर वयविा म भागीदारी सहज अपकषा को साथतक बनान क िम म ही जागर होना पाया जारा ह हम यह पार ह करक जागकरर सतर वयाखया और परमाि सवतरभ क सवरप म ही वभकरवर होरा ह इस आरय को लोकवयापीकरि करना भी सवतरभ कायतिम का एक बकरनयादी आयाम ह इसी सतयरावर lsquolsquoअनभवातमक अधयातमवादrsquorsquo एक परिकरर ह हर मानव अपन कलपनारीलरा कमतसवरतररा पवतक ही हर परिकररयो को परखना (परीकषि करना) सवीकारना या असवीकार करन क कायतकलाप को कररा ह

अनभि दशशन सस २०१२ दधदवतीय (अधयाय -३)

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सतर छद िाकय शबद क दवारा वकरया मातर का िणशन ह सारथ ही जञानानभवत क ललए उपदश पिशक इवगत भी ह बरहम सहज िणशन पारगामी वयापक और पारदशीयता क रप म ह lsquolsquoयहrsquorsquo किल भास आभास बोि तरथा अनभिगमय ह इसका बोि मानि की कषमता योगयता पातरता पर आिाररत ह परतयाितशन पिशक परापत वयजनाएा जागवत क ललए गणातमक गवत ह गणातमक वयजना स सबोि सबोि स सससकार सससकार स गणातमक सिदना (सजञानीयता पिशक सिदना वनयदधतरत) रहना गणातमक सिदना स सतय सकलप तरथा सतय सकलप स गणातमक वयजनाओ की वनरनतरता ह सथसथवत एि वकरया सकत-गरहण कषमता ही वयजनीयता ह सकत-गरहण -परवकरयाबदघ जञान परापय को पान उस सरधकषत रखन क कायशकरम म अलभवयकत ह परापत क अनभि क करम म भास-आभास एि परतीवत ही जञापक (सतयाततपत होना) ह मानि दसरो क ललए भी सकत परसाररत करता ह सकत-गरहण-वकरया ही अनमानारोपण तरथा अनमानाकर भी ह जो सकलप इचछा वििार ि आशा ह अधयाय-७ अलभवयजना म गणातमक विकास का सकत वयजना म उपयोवगता का सकत ह अभयदय पराय (अभयदय जसा) ही अलभपराय ह खजसम अभयदय का भास या आभास होना आिशयक ह

कमशदशशन सस २००४ (प ८६ ८७) परमाण म विकास का तातपयश परमाण क गठनपणश होन स ह|मानि म एक बात की िाहत बनी ह ndash यरथासथसथवत िभि उसकी वनरतरता ndash यह सवाभाविक रप म सवीकत ह| परमाणओ म अशो का घटना-बढ़ना पररणाम क सवरप म हम समझ िक ह| पररणाम का अमरतव उसकी वनरतरता की अपकषा मानि म ही कलपना भास आभास परतीवत क रप म पाया जाता ह

प २० २३ (शासतराधययन की महततव) सदशासतराधययन क वबना सतय कामना एि परितततत सतय कामना क वबना सतय-परम सतय-परम क वबना सतय-वनषठा सतय वनषठा क वबना सतय परवतषठा सतय-परवतषठा क वबना सतय परतीवत सतय-परतीवत क वबना सतयानभाि सतयानभाि क वबना सद शासतर का उदघाटन तरथा सदशासतर क उदघाटन क वबना सद शासतर का अधययन पणश और सारथशक नही ह| मानि को जीिन की परतयक सतिचरथ म शानतनत एि सथसथरता की आिशयकता ह| सदशासतर सिन मनन एि आिरण स वयकती तरथा पररिार म शानतनत तरथा सथसथरता पा जाती ह|

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(सदशासतर सिन = शासतराधययन स शरिण | मनन एि आिरण अभयास-अधययन करम म समपणश मनन परवकरया)

(प ९७ ९८)

सहअसतितविादी विधि स हर मानि मानितव सहहत वयिसथा और समगर वयिसथा म भागीदारी करन योगय इका ह इसम मखय मददा यही ह - सवय को सवय क ललय रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क सयकत रप म होन को सवीकारन की आिशयकता ह जीिन वकरया की महहमा और मानि परमपरा म इसकी आिशयकता धयान म रहना अवत आिशयक ह तभी मानि शोि क ललए ततपर होना पाया जाता ह ऐसी ततपरता जागवत सहज विधि स सिशशभ क अरथश म परिावित होना होता ह तभी सिशमानि समािान पिशक वयकत होन समझदारी पिशक हर पररिार समािावनत और सखी होन की सथसथवत सपषट हो जाती ह फलसवरप समशदघ अभय सहअसतितव परभावित होन का सौभागय उदय होता ह यही मखय वबनद ह सिशशभ का परमाण भी यही ह कयोवक समािान समशदघ पिशक ही मानि सख शानतनत का अनभि करता ह इसी करम म समािान समशदघ अभय सहअसतितव पिशक आननद अपन आप म समपणश होना पाया जाता ह इस ढग स मानि लकषय सारथशक होन की सथसथवत म जीिन लकषय (सख शावत सतोष आननद) सारथशक होता ही ह जीिन लकषय और मानि लकषय सारथशक होना ही अधययन और अधयापन की सािशभौमता ह ऐस लकषय क सारथ मानि परमपरा अपन आप म सवय को पहिानन और समपणश मानि को पहिानन का सतर और वयाखया बन जाता ह परमाण क रप म वयाखया समझ क रप म सतर होना पाया जाता ह यह वनयवत सहज विधि स समीिीन रहना पाया जाता ह वनयवत विधि का तातपयश विकासकरम विकास जागवत करम जागवत ह दसर विधि स भौवतक रासायवनक रिना शरीर और जीिन वकरयाकलाप का सयकत अलभवयततकत समपरषणा परकाशन क रप म ह

मानि लकषय - समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करन और उस आिार पर जीिन लकषय (मनसवसथता) - सख शानतनत सतोष आननद को सारथशक बनान क अरथश म मानि शशकषा ससकार की आिशयकता सदा-सदा स बनी ह ह इसकी सफलता ही मानि कल का सौभागय ह

lsquoमानि कल और रासायवनक-भौवतक वकरयाकलाप का सारथशक परमाणrsquo

शशकषा की समपणश िि सहअसतितव रपी असतितव म रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म ही ह इसम स इनक अविभाजय रप म मानि परमपरा का समपणश वकरयाकलाप वयिहार सोि वििार समझ ह समझ क अरथश म ही हर मानि का अधययन करना होता ह समझ अपन म जानना मानना पहिानना वनिाह करन क रप म परमाखणत होती ह इसी अरथश म समपणश अधययन सारथशक होना पाया जाता ह

असतितव म समपणश इका याा रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म पररलधकषत ह ही (प १०२) वनशचयता सथसथरता सिशमानि म चिराकााकषा क रप म बनी ही ह सहअसतितव रपी असतितव जञान और सवीकवत का आिार ह यह सिशमानि म सिकषण पिशक विदधदत होन िाला तथय ह सवय को जाािन स भी

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 18

यही सपषट होता ह हम सब सथसथरता ि वनशचयता को ही सवीकार करत रह ह न वक असथसथरता अवनशचयता को सथसथरता क सहज आिार पर ही वनशचयता का होना सवभाविक ह (प ११५) इस हम मानि को अचछी तरह स समझन की आिशयकता ह और अनशीलन पिशक सरकषण सििशन विधि स सवय को वयसथसथत कर लन की आिशयकता ह मानि क वयिसथसथत होन क मल म जञान विजञान वििक का एक सगीतमय कायशकलाप सपषट रहन स ह यही कायश-कलाप भाषा कायश-वयिहार म वनयोखजत होकर परयोजनो को परवतपादधदत करता ह मानि का परयोजन समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करना ही ह (प १२२ १२३)

( अनभि मलक वििी स

यरथारथशता िािविकता सतयता का बोि रपी बशदघ की सथसथवत उस परकाशशत करन की परितततत क रप म सकलप ही गवत ह नयाय िमश सतय क साकषातकार करन क रप म चितत सथसथवत और इसका चितरण क रप म चिदधतरत हो पाना गवत ह चितत वकरयाकलाप का समपणश चितरण तलन क रप म अरथात नयाय िमश ि सतय रप म सपषट होना ितततत सहज सथसथवत ह ितततत म समपनन हय तलन का विशलषण विधि म विशलततषत होना ि समपरततषत होना ितततत सहज गवत ह विशलषण क सपषट अरथिा सार रप म मलय सवीकत होता ह इस आसवादन करना ही मन की सथसथवत ह इसकी सारथशकता क ललय ियन वकरया को समपादधदत करन क रप म गवतत होना हर मानि म सिधकषत ह इस ढग स मानि भी सभी परकार स सथसथवत-गवत म होना सपषट होता ह इस परकार मानि समझदारी स समपनन होन क उपरानत परमाखणत होना सवभाविक होता ह इसका मतलब यही हआ हम जब तक परमाखणत नही होत तब तक परमाखणत होन क ललए जञानाजशन वििकाजशन विजञानाजशन कर लना ही शशकषा और शशकषण का तातपयश ह इसक ललए सह असतितविादी शशकषा करम समीिीन ह अतएि समझदार मानि होन क ललए धयान दन की आिशयकता ह

सह-असतितविादी वििार जञान वििक विजञान को समझना ही समझदारी ह

ldquoअधययन रपी उपासनाrdquo (अभयास) - कमशदशशन सस २००४ प ४९ ५०

मानि जीिन म उपासना एक महतवपणश भाग ह| उपासना ही मल परिततततयो का पररमाजशन एि पररितशन परवकरया ह| यही ससकार एि सवभाि पररितशन भी ह| ( उपासना = उपायो सहहत लकषय पती क ललए कीया गया वकरयाकलाप) उपायपिशक सहिास पाना ही उपासना की अििारणा ह खजसक ललए पररशरम (पररमाजशन शरम) एि अभयास ह| अभयास एि पररशरम स ही सथल सकषम कारण की सथसथवतितता सपषट ह| खजसस ततसबिी पदारथश वनयवत-

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करम शततकत महहमा विभती एि वनयम सबिी अनसिान (अनगमन पिशक अििारणा) शोि परधसदध ह| अनसिान भौवतक बौदधदधक तरथा आधयातमतमक भद स ह| अनसनधान परवकरया मनन चिितन सकलप एि अनभती क रप म परतयकष ह|

सथल सकषम कारण (दषटा) का तातपयश दखन समझन परयोग करन वयिहार करन एि अनभि करन योगय कषमता क सपनन होन स ह |

परिततततयो का पररमाजशन ही मानि जीिन का कायशकरम ह| मानि म पणशता एि पररमाजशनशीलता की अपकषा परतयक सथसथती म पा जाती ह| पणशता ही पादधडतय ह| पादधडतय स अधिक जञान एि वनपणता कशलता स अधिक वयिहार एि उतपादन नही ह| पररमाजशनशीलता उतपादन ि वयिहार म पा जाती ह| पादधडतय परबदधता परबदधता ही शशकषा एि वयिसथा ह| परबदधता स पररपणश होत तक उपासना अतयत उपयोगी ह|

प ५६ स ७२ (इनम स कछ ही िाकयो को ललया गया ह| समपणश क ललए पिक दख) उपासना स सािशभौततमक मलयो का अिगाहन करना ही परिान उपादयता ह| समि उपासनाओ क मल म लकषय समय ह िह अखड समाज सािशभौम वयिसथा ह| िह किल सिश

मगल ही ह| कयोकी सिश मगल की कामना क वबना सवय का मगल धसदध नही ह| अनय कामय कामनाए किल मगलमयता की भास परदायी ह न की अनभिदायी| इसललए सिशमगल

कामनारपी कायशकरम तःरथा उसकी अनसरण योगय कषमता पयत मानि परयास करन क ललए बाधय ह| सही क परती भरततमत रहना ही मत सपरदाय एि िगश का कारण ह|

मत सापरदाततयक िगीयता म आचरथिक िगीयता एि आचरथिक िगीयता म मत-सापरदाततयकता समा ह ह|

इसका वनराकरण सपषटतया सािशभौततमक रप म पा जान िाली मानिीयतापणश पदधवत स ldquoवनयम-तरयrdquo (बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक) क आिारपिशक ही आचरथिक एि सापरदाततयक िगश-भािनाओ स मकत होन की समभािना एि मकती ह| इसी म समि िगश-भािना विलीन हो जाती ह| इसीललए ndash

उपासना की उभय पदधवत का अभीषट समझदारी जागवत पिशक सारथशक होता ह जो जागरण ह| मानि म शततकतया वकरया इचछा एि जञान शततकत ही ह जो उनकी अहशताए ह| अहशताए परतयक इका

की जागवतशीलता जागवत पर आिाररत ह| शबद सपशश रप रस गिनतियो दवारा शततकतयो का अपवयय न होना सारथ ही सदवयाय होना ही

वकरया शततकत की जागवत ह| सदवयय एि अपवयय का वनिारण मानिीयता क सीमा म ldquoवनयम-तरयrdquo क रप म ह |

अतकरण मल परितताा अरथात आशा वििार इचछा ि सकलप का अपवयय न होना ही सदवयय ह| यही इचछा शततकत का जागरण ह|

समयक-बोि एि अनभती पणशता ही जञान परकटन कषमता ह| यही जञानशततकत का जागरण अरथिा पणश जागरण ह| यह ldquoजागवत-तरयrdquo मानिीयता एि अवतमानिीयता म परतयकष ह| यही मानि जीिन की िरमोतकषश

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उपलसतबध ह| सशकत उपासना क उपादयता यही ह यही समगर मानि की कामना ह| यही सिशमगल ह| इसीललए

जीिन-जागवत का परतयकष सवरप ही वििक पणश विजञान का परयोग ह यही सतकशता अखणड सामाखजकता परबदघता वनविि षमता सह-असतितव शशकषा विधि वयिसथा सभयता ससकवत बौशदघक समािान भौवतक समशदघ और जीिन जागवत की वनरनतरता ह

पणश जागवत पयशनत परतयक मानि इका परयास एि उपासना क ललय बाधय ह इसी क फलसवरप मल परिततततयो का पररमाजशन होता ह खजसक कारण विशशषट और शशषट मानधसकता एि वििार चिनतन-बोि कषमता अनभिपणशता परतयकष होती ह यही शरषठ उपासना की उपलसतबधयाा ह

इसललय समान क सारथ वयिहार करन क ललय बाधय हआ ह यही सामाखजकता की बाधयता ह यही मानि जीिन की गौरि और गररमा ह यही गररमा समान क सारथ वयिहार अधिक जागवत क ललय अभयास करन क ललय पररणा ह यही िािविक उपासना ह

वििक अरथात मानि लकषय और िरागय अरथात समशदघ ही उपासना का परतयकष फल ह खजसम सामाखजकता सवाभाविक रप स समाहहत रहती ह

िरागय का पराितशन ही असगरह (समशदघ) उदारता एि दया ह भौवतक समशदघ म उदारता एि दया क मौललक मलयो का अनरजन ही सामाखजकता का पराण ततव ह यही सामाखजक सगीत ह इसी क ललय मानि तततषत ह वििक ही बौशदघक समािान एि सामाखजक मलयो को वनिाह पिशक परकट करता ह इसललय

वििक ि िरागय ही परोकष जञान (सदवयिहाररक जञान) का परिान लकषण ह अनभि ही परोकष जञान की अनतनतम सथसथवत ह इसक पिश अनमान अधिकार ही परधसदघ ह ििसथसथवत ििगत सथसथवत सतय म ही अनभि ह

परोकष जञान क वबना वनतयावनतय यकतायकत नयायानयाय िमािमश सतयासतयइषटावनषट दषटादषट तरथा परोकष जञानाधिकार धसदघ नही होता ह

वनतयावनतय जञानाधिकार क वबना मनषय म सविमश क परवत वनषठा नही पा जाती ह मानि िमश ही सख सख ही नयायपणश आिरण नयायपणश आिरण ही मानिीयतापणश सीमा एि lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का पालन ह यही मनषय का सविमश ह मानि सख िमी ह

मयादा विहीन इका नही ह जस जीिो म सवभाि मयादा िनसपवतयो म गण मयादा एि पदारथो म रप मयादा-भग नही होती ह यही उनकी गररमा ह इसी परकार मानि म सख ही िमश ह िमश ही मयादा ह यही उनकी गररमा एि विशवास ह मयादा का परतयकष रप ही विशवास ह

lsquolsquoविशवासविहीन समबनध एि समपकश म सख नही हrsquorsquo समबनध एि समपकश विहीन मनषय नही ह यही बाधयता सविमश क ललय ह इसक पालन म जो अकषमता अयोगयता एि अपातरता ह - िही दख कलश समसया और अजागवत ह

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सविमश म समपननता एि पालन करन योगय कषमता योगयता एि पातरता स पररपणश होत तक जञानाजशन करन क अरथश म अधययन रपी उपासना का अभाि नही ह

मानि क सविमश की सीमा म ही मत समपरदाय िगश वतरोहहत हो जात ह यही समरथश उपासना की परतयकष गररमा ह lsquolsquoयही मागललक हrsquorsquo साधय सािक सािन इन तीनो का उपासना म समाहहत रहना अवनिायश ह इनकी एक सतरता ही उपासना की सफलता ह अनयरथा असफलता ह परतयक सथसथवत म परापत शततकत ि सािनो का सदपयोग करना ही उसकी अवगरम जागवत ह यही उपासना ह

इनतिय कायशकलाप तरथा इनतियो का कायशकषतर ही अपरोकष जञान की सीमा ह इस वयापार म ितविि षय सीमानतिती धसशदघयाा ह इसक अवतररकत और उपलसतबधयाा इसम नही ह

विषयो की सीमा म मनषय सीततमत नही ह कयोवक उसम िार आयाम परधसदघ ह

मनषय ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत समपनन होन क ललय बाधय ह यही आिशयकता अिसर सभािना एि वयिसथा ह

सयमतापिशक ही मनषय क दवारा परतयक पररपरकषय म वकय गय वकरयाकलाप म स गररमापणश िभि परकट होता ह जस-

सतयबोि सहहत सतय बोलन का अभयास करन स भय ि अविशवास की वनितततत हषश तरथा उतसाह का उदय होता ह

विशव क परवत मलय भाि की परवतषठा स इषट और सािक क मधय विषमता का अभाि होता ह

शबद क अरथश अरथात मनतरारथश का तदरपतापिशक समरण करन क अभयास स उसका अरथश एि सवभाि गमय होता ह सभी सारथशक शबद मनतर ह

अधिक जागत म समपशण स अलभमान ि अहकार का उनमलन तरथा विदया ि सरलता का उदय होता ह ( अधिक जागत = समझान िाला परमाखणत वयततकत गर)

शरीर सिदना सयत रहन स मन की पवितरता मन की पवितरता स मनोबल का लाभ होता ह

सव-शरीर मोह नषट होन स ससार क परवत मोह दर होता ह सिशशभरपी आपत कामना पणश बशदघ स ही विशव क परवत उदारता दया कपा करणा का परसिन तरथा विशव की आिारभत सतता म जञान एि अनभि होता ह

जञान विजञान वििक रपी सवतवहीनता ही असयमता मनोदौबशलय मल परविततततयो की अपररषकवत राग मोह लोभ अवििक अहकार अलभमान दहातमिादी परितततत दरािार सघषश असह-असतितव सशकता दवष तरथा तपोहीनता ह

सयमता क वबना बौशदघक मल परिततततयो की पररषकवत बशदघबल सामाखजक मलयो की अनभवत ितनय वकरया का दशशन समािान और सयमता धसदघ नही होती ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 22

उपासना क ललय िातािरण का महतव अपररहायश ह खजसम स मनषय कत िातािरण ही परिान ह जो शशकषा ि वयिसथा क रप म ही ह

मानिीयता की सीमा म वयिहार lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का आिरण ही वयततकततव ह ऐस वयततकततव क वनमाण म सवकरय योगदान ही कततशवय ह यही परषारथश ह यही परबदघता ह

आशा भद स उपासना उपासना भद स अनभि अनभि भद स अनमान अनमान भद स उपासना भद ह यही उपासना म िविधयता का कारण ह यह िविधयता सािशभौम आिरण की सीमा म विलय होन क ललय बाधय ह

मानि क ललय सहज समरथश उपासना एक अवनिायश कायशकरम ह जो अमानिीयता स मानिीयता मानिीयता स अवतमानिीयता की परवतषठा सथाततपत करती ह

सह-असतितव म अनकषण-विकषण-ितततत स सहजाितततत होती ह

कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ही अनकषण-विकषण ितततत ह

अनकषण का तातपयश परतयक कषण म लगातार सह-असतितव चिनतन वििार करम म परमाखणकता का सहज परमाण परित हो जाता ह यही सहजाितततत ह

सतता म समपकत परकवत की समपकतता का जञान ही (पणश-दशशन) कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ह यही भरततमत भाि ि अभाि का वतरोभाि ह यही सहज परवतषठा ि अिसथा ह

सतता म समपकत परकवत का जञान न होन स और अनभिमलक जञान न होन स भय और परलोभनिश समि भरममलक कायश-वयिहार सोि-वििार को बनाय रखता ह यही समपणश कलश का कारण ह

काल वकरया की अिधि ह इसी अिधि म आरोततपत वििार ि इचछा ही असहज एि वनरारोततपत वििार ि इचछा ही सहज ह

मानि इका म ही जागवत क करम म भी वनरारोपण कषमता पा जाती ह भरमिश आरोपण होता ह

जो जसा ह उसस अधिक कम अरथिा नासमझना ही आरोपण ह यही अजञान ह यही अकषमता ह यही भरम ह

सतता म समपकत जड़-ितनयातमक परकवत की सथसथवत-शीलता ि सतता सहज पणशता क समबनध म ही आरोप या वनरारोण वकरया समपनन होना पाया जाता ह

परतयक इका म रप गण सवभाि एि िमश समाहहत ह यही उसकी कायशितता ह इसी की गणना पररमाण परयोजन जञान ही परकवत क परवत वनभरमतापणश कषमता का दयोतक ह यही परमाण ह यही सहजता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 23

समपणश वकरयाय मलत रप और शबद भद म दषटवय ह

परकता क वबना इका म अवगरमता नही ह

पणशता पयशनत इका परकता उपयोवगता क ललए परितत ह

परकता ही इका म हरास ि विकास क लकषणो को परकट करती ह यही परिान उपादयता भी ह

इका म परकट होन िाल शबदादधद गण ही सापकष शततकतयाा ह गणविहीन इका नही ह इसललय

मनषय म सहज कामना का अभाि नही ह सहजता ही िमश ह यही सख शानतनत सतोष एि आननद ह यही िारणा को सपषट करता ह जो परतयकष ह

परतयक कमश-फल ही मनषय क सख का पोषक ि शोषक धसदघ हआ ह

सतय और सतयता क अनभि-करम म वयििान नही ह कयोवक अनभिकरम-वयिसथा सघन ह जागवत की कदधड़याा सघन ह इसललय-

सहजता आरोप स मकत ह आरोप ही नयनावतरक मलयाकन ह सवय की नयनावतरक मलयाकन वकरया ही असहजता ह

सवय का मलयाकन lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म होता ह

lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म न हो ऐसा मनषय इस पथवी पर नही ह

िमश का वियोग नही ह कयोवक यह िारणा ह इसका परतयकष रप ही मानिीयता एि अवतमानिीयता पणश आिरण ह जो सहजता का परिान लकषण ह इसललय -

अमानिीयता पणश आिरण ही असहज ह इसललय

परकवत अपन म समपणशता क सारथ सीततमत ह यही अिधि ह इसललय पणश म समायी ह यही पणश म समपणशता सहज सह-असतितव ह यही समपणशता का वनतय ितशमान और जञानािसथा क मानि म पणशता का परसि ह यही जागवत क ललय बाधयता ह

मनषय क बौशदघक कषतर म पायी जान िाली अनािशयक कलपनाओ का वनराकरण ही दशशन-कषमता म गणातमक पररमाजशन ह यही गणातमक ससकार-पररितशन शशकषा एि जीिन क कायशकरम का योगफल ह

दशशन-कषमता का उतकषश ही अनकषण विकषण ह यही मधयसथ वकरया की कषमता ह मधयसथ वकरया ही दषटा ह

मधयसथ वकरया का िरमोतकषश ही सम ि विषम वकरया का पणश वनयतरण ह यही कषमता कषण-कषण मधयसथ वयििान स मततकत ह

ससकार पिशक ही बौशदघक वयिसथा-परवकरया -कषमता क आनषवगक ह मनषय सहज ऐषणा एि विषयो की सीमा म परितततत ि वनितततत पिशक वयि होना पाया जाता ह जो परतयकष ह

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आतमा (मधयसथ वकरया) क आनषवगक बौशदघक परवकरया ि वयिसथा म सतय-सकलप एि सतय-कलपनापणश मानधसकता की सथसथवत पा जाती ह जो परधसदघ कमश उपासना जञान पणश ह यही कषमता दि ि दधदवय मानिीयता को परकट करती ह यही पणश जागवत ह

ऐषणासकत बौशदघक वयिसथा म मानिीय तरथा दि मानिीय सवभाि परकट होता ह उसी क अनरप म मानधसक िातािरण की सथसथवतशीलता ह ऐसी कषमता ही सामाखजक ितना एि सतकशता स पररपणश पायी जाती ह

विषयासकत बौशदघक वयिसथा ि परवकरया म अमानिीयतापणश आिरण समपनन होता ह जो पाशविकता तरथा दानिीयता क रप म दषटवय ह इनम उसी क योगय मानधसकता पा जाती ह यही लपत-सपत कलपना का कारण ह यही अजागवत तरथा अपणश सतकशता का दयोतक ह

शरय (जागवत) खजजञास होन पर ही लपत-सपत कलपनाय पररमाखजि त होती ह फलत दानिी ि पाशिी परिततततयो स उदासीनता सथसथर होती ह सारथ ही वििकोदय होता ह

शरय खजजञासा का उदय सव-ससकार विधि-विहहत अधययन तरथा उसक अनकल िातािरण म होता ह

विधि-विहहत-अधययन वनपणता कशलता ि पादधडतय ही ह

अधययन एि िातािरण ही ससकार पररितशन क ललय समरथश वयिसथा ह खजसका गणातमक पररितशन ही आतमबोि क ललय खजजञासा ह

आतमबोि ही सतय खजजञासा का परिान लकषण ह इसललय- अििारणा ही अनगमन तरथा अनशीलन क ललय परितततत ह जो शशषटता क रप म परतयकष होती ह परगवत क ललय अििारणा अवनिायश ह जागवत क ललय अििारणा एि हरास क ललय आसततकत परधसदघ ह यही करम स वनितततत ि परितततत ह अििारणा ही सदधदविक ह सदधदविक सवय म सतयता की विििना ह जो सपषट ह मलत यही शभ एि मागलय ह अनभि की अििारणा सतय बोि क रप म अििारणा (समयक-बोि) ही सतय-सकलप ह यही परािवति त होकर शभकमश उपासना तरथा आिरण क रप म परतयकष ह इसी का पररिवति त मलय ही िीरता िीरता उदारता दया कपा और करणा क रप म परतयकष ह सतय म ही समयक-बोि होता ह असतय ही कलपना एि भास होता ह हीनता दीनता और कररता स यकत कमश अशभ होता ह सव-मलय ही परितततत और वनितततत का िशश ह इसललय असतय अलभमान तरथा दपश स मकत सतय सरलता सहजता तरथा सौजनयता स यकत कमश ि उपासना शरय कारक ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 25

सतय कामना की वनरनतरता स लकषय की अििारणा होती ह जञान म ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत परतयकष ह जञान वििक सममत विजञान ही ह जो पणश ह सतय और सतयता म दढ़ता ही शरयमय जीिन ह सतयानभवत ही सबका अभीषट ह शरीर स समपनन होन िाल समि वकरयाओ का सिालन मन ही मिस दवारा करता ह मिस स सभी नादधड़याा वनयदधतरत ह शबद का मल रप मन ही ह मिस पर मन आसवादन एि सवागत भािपणश तरगो का परसारण सिालन वनयतरण करता ह उसक मल म शबद ही ह जागवत की ओर गवत हत वनयतरणातमक शबद ही मतर ह लकषय-पराततपत-योगय-करम परवकरया ही वनयतरण ह शबद म जो भाि (मलय) ह िही उसका अरथश ह सारथशक शबदो का अरथश ही जागवत की ओर गवत ह कयोवक शबद का अरथश असतितव म िि ह भाि म जो उपयोगपणश अवनिायशता ह िही उसका महतव ह उपयोग पणश अवनिायशता म जो वनचशचत दधदशा ह िही उसकी दढ़ता ह यही समयक सकलप ह समयक सकलप म जो पणशता ह िही अनभि ह जो करम स मन ितततत चितत बशदघ और आतमा म पा जान िाली सससकत मौललक वकरयाय ह भाि का तातपयश होन स ह शततकत-तरय-जागरण (इचछा-शततकत वकरया-शततकत तरथा जञान शततकत जागरण) क वबना तयाग (भरममततकत) और परम परमाखणत नही होता

मनन परवकरया म सव-मलयाकन

सव-मलयाकन मनन धयान ldquoअपराि क अभाि म दयापणश आशा का पराितशन अनयाय क अभाि म नयायपणश वििार का पराितशन आसकती क अभाि म समािान पणश इचछा का पराितशन तरथा अजञान क अभाि म जञानपणश सकलप का पराितशन होता ह| अत अपरािहीन वयिहार क ललए वयिसथा का परभाि अनयायहीन वििार क ललए अखणड समाज का परभाि तरथा अजञान रहहत बदधदध क ललए अतवनि यामन अरथिा धयान आिशयक ह खजसस ही परतयाितशन वकरया सफल ह| धयान का अरथश समझन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना और समझन-अनभि करन क

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उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

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मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

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(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

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सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

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प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

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अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

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३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

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(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 34

उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

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मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 9

इदधदरय सदधननकषश म भी सवागत भाि का भास आभास होना पाया जाता ह खजसकी वनरतरता की अपकषा ही रह पाती ह यह वयिहार म परमाखणत नही हो पाता अतएि सवागत का आिार समपणश मलय सवागत होना पाया जाता ह ििओ का िारक िाहकता म भी जीिन रहता ही ह

समपणश अििारणाए मौललकता क रप म होना पा जाती ह मौललकताए िमश और सवभाि क ही सतर ह समपणश असतितव म परतयक एक अपन ldquoतवrsquorsquo सहहत वयिसथा ह समगर वयिसथा म भागीदार ह कयोवक असतितव म समपणश इकाइया (अरथिा समि इका या) सह-असतितव सतर म सदधतरत ह प २१८ इवगत होना ही वयजना ह वयजना ही करम स भास आभास परतीवत अििारणा एि अनभवत ह प २१

ियन-वकरया अरथात गरहण करन का वकरयाकलाप पराितशन विधि स और आसवादन वकरया परतयाितशन विधि स सवय म सपनन होती ह विशलषण वकरया पराितशन विधि स और तलन वकरया (ततपरय हहत लाभ नयाय िमश सतय दवषट) परतयाितशन विधि स सपनन होती ह चितरण वकरया पराितशन विधि स इचछा पटल म चिदधतरत हो पाती ह पराितशन म रिनाओ वकरयाओ क रप म परमाखणत हो पाता ह और चिनतन-वकरया साकषातकार विधि स सारथशक होती ह साकषातकार की समपणश िि जीिन मलय मानि मलय सथाततपत मलय शशषट मलय और िि-मलयो क रप म दरषटवय ह मलयो का सतलन तलन होकर तततपत विधि म सलगन रहता ह इस परकार साकषातकार की तततपत का सरोत मलय ह और उसकी (मलयो की) वनरतरता का भािी होना पाया जाता ह

जीिन म सपनन होन िाली अििारणा बोि-बशदघ सहज परतयाितशन वकरया ह सभी अििारणाए अधययन और अनसिान विधि स सथाततपत हो पाती ह अनभि मलक विधि अनभिगामी पदघतततत स बोि होना पाया जाता ह अनभि सतय बोि करान म परमाखणत होता ह और सकलप पणशता क अरथश म कलपनाओ को गवत दन स ह कलपनाए - आशा वििार इचछा क सयकत रप म परिाहहत रहती ह जीिन शततकत अकषय होन क कारण परतयक वयततकत म कलपनाशीलता का अकषय होना पाया जाता ह कयोवक यह कलपना जीिन शततकतयो का ही परिाह ह कलपनाए सतय सकलप क अनरप परािवति त होकर मानि परमपरा क अखड समाज सािशभौम वयिसथा क रप म सारथशकता को परमाखणत करती ह

प ४९-५०

पिानकरम पदघवत परणाली मानिीयता पणश वििार-चिितन-बोि-अििारणा और अनभि मलक होन क करम म अधययन गमय ह पिानकरम विधि स ही मनन पिशक मानयताए सथाततपत हो पाती ह फलत मानि परमपरा क ललए उपकारी और सारथशक धसदघ होती ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 10

प ५१ ५२

वनषठा - जागवत पणश लकषय को वनचशचत अििारणा ि समरण पिशक परापत करन ि परमाखणत करन का वनरतर परयास

वयजनीयता का तातपयश - साकषातकार होन स ह साकषातकार चिितन म होता ह वयजनाए मानि मलय जीिन-मलय सथाततपत मलयो क परभाि क सारथ जीिन मलयो का बोि ि अनभि करन स ह समपणश रसानभवत का तातपयश ह - जीिन मलय रपी सख शावत सतोष आनद सहज आपलािन जागवत सहज परमाणो क रप म सपषट होना यही अनभि करन और बोि करान का तातपयश ह

प ७५-७७ गर और शशषय

पररभाषा गर - शशकषा ससकार वनयवत करमानिषगीय विधि स खजजञासाओ और परशनो को समािान रप म अििारणा म परसथाततपत करन िाला मनषय गर ह जागवत करम म मानि को अपरापत का परापत अजञात का जञात करन क ललए होन क ललए विधि वनयम परवकरया सहज समझदारी म पारगत बनाना ही परमाखणकता का परमाण ह परमाखणकता पणश गरजन ही असतितव सहज सह-असतितव रप म अििारणा को परवतसथाततपत करा सकता ह अििारणाय असतितव विकासकरम विकास जीिन जीिनी करम जीिन जागवतकरम जीिन जागवत सहज रप म परसपरता म अरथात समझा हआ और समझन क ललय तरथा मनषयो स ह गरजन इन मददो म पारगत रहग यह समझदारी ह समझदारी क आिार पर ही मानिीय शशकषा-ससकार सपनन होता रहगा ससकार का तातपयश ही अििारणा ह विदयाचरथि यो म सथाततपत होन स उसकी वनरतरता का परमाण वयिहार वयिसथा म परमाखणत होन स ह फलसवरप ही अखणड समाज सािशभौम वयिसथा म भागीदारी सहज कायश-कलाप हर मानिीय शशकषा-ससकार समपनन मानि स िररतारथश होना पाया जाता ह

परामाखणक - परमाणो का िारक िाहक - यरथा असतितव दशशन जीिन जञान मानिीयता पणश आिरण समचचय को परयोग वयिहार अनभि पणश विधि स परमाखणत करना और परमाणो क रप म जीना

पररभाषा शशषय - जागवत लकषय की पवति क ललए शशकषा ससकार गरहण करन सवीकार करन क ललए परित वयततकत खजसम गर का समबनध सवीकत हो िका रहता ह यही खजजञासातमक शशषटता ह

खजजञास - जीिन जञान सहहत वनभरशम शशकषा गरहण करन क ललए तीवर इचछा का परकाशन

समझन सीखन करन क ललए पणश खजजञासा सहहत परयतन सपनन वयततकत शशषय क रप म शोभनीय होता ह सफल होन क सभी लकषणो स यकत िातािरण म विशवास होना और विशवास को िातािरण म परभावित करन परमाखणत करन की सभी परवकरया अधययन ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 11

असतितव विकास जीिन जीिन जागवत रासायवनक-भौवतक रिना-विरिना समपणश मानि क ललए समझन-समझान की िि ह सीखन की जो कछ भी परमाखणत िि ह यह मानि म मानिीयतापणश आिरण कमश अरथात वयिसाय म सवािलमबन वयिसथा म भागीदारी मानिीयता पणश आिरण का अभयास परामाखणकता सहज अलभवयततकत ह सारथ ही सािशभौम वयिसथा और अखड समाज म वनषठा ह य समपणश खजजञासाए वयािहाररक रप म िररतारथश होती ह परौढ़ता की पराकाषठा म स क ललए सवानशासन की खजजञासा का होना पाया जाता ह खजजञासा मानि सहज परकाशन ह

प १०६ जीिन को तातवतवक रप म समझन की खजजञासा हो ऐसी सथसथवत म परमाण म होन िाली विकास परवकरया उसक सकरमण िभि को भी जो ितनय इका क रप म परवतवषठत ह को सहज ही अधययन अििारणा म लाना एि अनभि करना आिशयक ह

अनभिातमक आधयातमिाद सस २००० (प ५८ ndash ६५) अनभव ही दसर नाम स परतयावरतन करिया ह और इसका परावरतन करिया को परामाणिकरा-परमाि नाम ददया ह जागकरर सह-असतितव म अनभव हई ह इसी जागर सथिकरर म होन वाली गकरर को परतयावरतन नाम ददया गया ह समपित परतयावरतन दरतन और जञान नाम स परकररकरिर ह जञान और दरतन सवाभाकरवक रप म ओर-परोर रप म वरतमान ह समपित असतितव सतता म सपकत जड़-चरनय परककरर ही सह-असतितव का मल सवरप ह इसका सामानय कलपना हर मानव म होना सभव ह कलपना का मल सतरोर आरा करवचार इचछा का असपषट गकरर रप ह कयोकरक समपित कलपनाए परावरतन म कायतरप रहना दखा जारा ह मानव ही कलपनारीलरा का परयोग कररा ह इस ऐसा भी कहा जा सकरा ह करक हर वयकतकत परकारानतर स कलपनारीलरा का परयोग कररा ह भरकतमर मानव दवारा कलपनारीलरा का सवाधिक परयोग ररीर और इनदरिय सदिकरत क रप म ही सवाभाकरवक ह यह भरम करववररा ह यही कलपनाए चचणिर रप म सपषट होन क ललए रतपर होर ह रभी करवधिवर करवशलरि और करनचिर चचतरि करवचार रप म समभावनाओ को सवीकारना बनरा ह सभावनाओ का लकषय कतपरय हहर लाभ सीमाओ म सीकतमर रहना पाया जारा ह यही भरमातमक कायत सीमा का अथ इकरर ह जागकररपित जीवन चचतरि म यह रथय ससपषट ह करक नयाय िमत सतय उसका साकषातकार बोि अनभव ही अधययन और अनसिान का लकषय और कायत ह इिी कायत रप क आिार पर असतितव और जीवन अविारिा म िाकतपर होना सफल अधययन का दयोरक और कसौटी भी ह इसी क आिार पर सवायतत मानव का सवकषि करनरीकषि और परीकषि होना सपषट हो जारा ह सवायतत मानव ही असतितव म अनभव सहज जागकरर का िारक-वाहक होना सपषट ह इस परकार अधययन सहज रप म जीवन और सह-असतितव म अनभव बोि की अलभवयकतकत और परमणिर होन क िम म आतमा असतितव म अनभर होना जीवन म किीय होना मधयि करिया और मधयि बल समपिरा का सवीकर होना परम रपत होना ह जीवन रचना मधयार सहज मधयि करिया मधयि बल मधयि रकतकत सरलन क अथत म सदा-सदा परयकत रहरा ही ह यही जागर

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 12

मानव परपरा म परमाि ह मधयि करिया समम_य िम स जीवनी िम और जीवन जागकरर िम वयकत होरा ह इसी िम म जागर होना जीवन सहज परवकततत परयास आवशयकरा क योग-सयोग करवधि स समपि होरा ह यही अनसिान रोि और अधययन क ललए भी सयोजक रतव ह यह रतव सदा-सदा जीवन परकररिा म कायतरर रहरा ही ह इसकी परखररा क आिार पर ही अनसिान रोि अधययन सहज हो जारा ह इस परकार यह ससपषट हो जारा ह करक आतमा अधययन करवधि स असतितव म अनभर होरा ह दसरा अनसिान करवधि स भी असतितव म अनभर होना पाया जारा ह ( अनसिान विधि जो शरी ए नागराज न कीया सािना gt समािीgt सयम | अधययन विधि पिक एि वकसी समझ हए वयकती क माधयम स शशकषा-ससकार परापत करना) अनसिान करवधि स भी सवतपरथम असतितव म बोि होना दखा गया ह इसक उपरानत ही आतमा असतितव म अनभर होना दखा गया ह अधययन करवधि स भी यही सथिकरर अथार पहल बोि रदोपरार अनभव होना पाया जारा ह इन दोनो करवधियो म स अधययन करवधि लोकवयापीकरि क ललए कम समय म बोि होन की सथिकरर बनरी ह अनसिान करवधि म परवतत होन क ललए वयकतकत म लकषय सममर णजजञासा का होना अकरनवायत ह जब अधययन करवधि स समपित परशनो का उततर कतमल जारा ह परशन िली ररकत होना उसी िली म समपित उततर िाकतपर होना अधययन और अधयापन का सयोग और फलन ह परशन करवहीन सथिकरर म अनसिान का आिार नही बनरा इस परकार परपरा म सभी परशनो का उततर अधययन करवधि स हर मानव म हर सथिकरर पररसथिकररयो म समपित परशनो का उततर सह-असतितव सहज करवधि स समीचीन ह अनसिान करवधि एव अधययन करवधि स पहल बोि ही होरा ह रदोपरार lsquolsquoबोिrsquorsquo का आतमा म अनभव होरा ह अनभव क उपरानत lsquolsquoअनभव सहज बोिrsquorsquo अधययन एव अनसिान करवधि म एक जसा होरा ह एव एक ही होरा ह इसम मखय रथय यही ह यथाथतरा वासवकररकरा सतयरापित करवधि स अधयापन सामगरी वि परकरिया पररपित रहना आवशयक ह ( अधययन अरथिा शशकषा वििी म) अनसिान क ललय अजञार परशन चचि अकरर आवशयक ह हर अनसिान को अधययन और अधयापन कायत करवधि स लोक वयापीकरि होना सगम हो जारा ह इस परकार अनभव क अननतर ही अनभव lsquoबोिrsquo होना दखा गया ह यह हर वयकतकत म होना समीचीन ह (प १०७ १०८ १०९ इसक उपरानत जागकरर और जागकररपितरा ही मणजलो क रप म दखन को कतमलरा ह यह मलर करवचार चचतरि अविारिा अनभव और चचनतन का ही वभव रपी मानधसकरा क रप म दखा गया ह भरम का समपित सवरप आरा करवचार इचछा (चचतरि) का कतपरय हहर लाभातमक दकरषटयो की करियारीलरा ही ह सवतमानव पीड़ा स मकतकत चाहरा ही ह यही जागकरर सहज अपकषा का सरोर और समभावना ह जीवन सहज करियाकलापो म स नयाय िमत सतय का साकषातकार और दषटा होना और उसका परमाि धसदघ होना ही समपित जागकरर ह दषटापद म होन वाली समपित करियाकलाप जीवन सहज करवधि स जानन-मानन-पहचानन-करनवाह करन क रप म होना पाया गया ह जानन-मानन की समपित वि जीवन जञान सह-असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 13

अनभव असतितव म ही होना पाया जारा ह अनभव क पहल समझदारी जानन-मानन-पहचानन क रप म होना पाया जारा ह यही अधययनपवतक होन वाला अविारिा ससकार ह इसक पवत रप म करवचार और चचतरि ही रहरा ह यही शरकरर समकरर रबद और चचतरि ह रबद और चचतरि क आिार पर करकरन भी करियाकलापो को मानव सपाददर कररा ह यह सब असथिररा क साथ ही जझरा हआ दखा गया ह असथिररा म भरम ही परिान कारि ह इसीललय ही समरि और चचतरि क उपरानत कही न कही असथिररा-अकरनियरा को परकाशरर कररा ही ह इसी सीमा रक हम इस बीसवी सदी क अर रक झलर आय ह सथिररा की सवीककरर बोि रप म ही होना फलसवरप वयवहार म नयाय-समािान-सतय परमाणिर होना पाया जारा ह ऐसा बोि जानन-मानन-पहचानन का ही महहमा ह यह करिया जीवन म ही जागकरर सहज करवधि स होन वाली वाधिर परकरिया ह असतितव म अनभव सतता म (वयापक म) सपकत परककरर क रप म ही दखा गया ह सतता म सपकत रहन क आिार पर ही करियारीलरा करनयतरि सरलन सरकषि सामय ऊजा सरोर होना दखा गया ह इसीललय परककरर म करनयतरि सरकषि करनररर बना ही रहरा ह अर सतता म करनयतरि सपषट ह (प ७४) असतितव सहज सह-असतितव म जड़-चरनयातमक परककरर करनतय वभकरवर होन का सवरप करिया शरम गकरर पररिाम परकारन सहज करियाकलाप और पररिाम का अमरतव शरम का करवशराम गकरर का गरवय सहज लकषय करनहहर करिया उपयोकरगरा परकरा-उदाततीकरि करनयमो क अनरप समपित भौकररक-रासायकरनक जीवन रपी परककरर म करनतय रचना-करवरचना lsquoतवrsquo सहहर वयविा और उसकी परपरा भल परकार स बोि करान की सहज-करिया समपि करकया जा चका ह इसी िम म शरम का करवशराम गकरर का गरवय रपी परमािो को मानव परपरा म परमाणिर करन की आवशयकरा रहा ह इस सवतसलभ लोकगमय करन क ललए अधययनपवतक जागकरर करवधि और इसक परमाि म बोि परिाली को पहचाना गया यह भी अनभव करकया गया ह करक बोि होना समझदारी का ही दसरा नाम ह अथवा बोि का ही दसरा नाम समझदारी ह ऐस समझदारी अधययनमलक परिाली स अविारिा म िापकरर होना ऐसी अनभव मलक अविारिाओ को अलभवयकत सपरकतरर परकाशरर करन क िम म असतितव म अनभव एक अवशयभावी परकरिया क रप म सपषट हई ह इस िम म असतितव म अनभव करनतय ह यही मानव का परयोजन ह जीवन करनतय ह असतितव सथिर ह इसी आिार पर अनभव और अनभव िम अलभवयकतकत सहहर जागकरर सहज जीवन का गनतवय अथार जीवन म जागकरर पितरा ही जीवन गकरर का गरवय िली होना उसकी करनरनतररा सदा-सदा क ललय बना ही रहना दखा गया इिी आिारो पर lsquoअसतितवrsquo सतता म सपकत जड़-चरनय परककरर क रप म परकररपाददर हई सह- असतितव करवधि स वयाखयाकतयर हई यह महहमा जागकरर पित जीवन सहज अलभवयकतकत ह (प १८३) जीवन जञान सह-असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान रथयो सहज करवधिवर अधययनपवतक बोि होना दखा गया ह ऐस बोि सहज रथयो को उदघादटर करन क िम म और लोकवयापीकरि करन क

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िम म परमाणिर होर ही ह फलसवरप अनभर भी होर ह इस परकार करनतय परमाि और अनभव सहज रप म ही समपि होरा हआ दखा गया ह यही कवलय और जागकरर की महहमा ह (प १५४- १५७) जागकरर करवधि और अभयास असतितवमलक मानव कनदरिर चचनतन जञान दरतन आचरि िरवीकर रप म अधययन गमय होना दखा गया ह जीवन जञान जीवन म समपि होन वाली करियाओ का परसपररा सहज िरव करबनदओ क आिार पर उभय रकतपत करवधि सवत रभ एव समािान स दखा गया अलभवयकतकतया ह जसा मन और रकतपत म सामरसयरा का करबनद करवशलरि रलन पवतक आसवादन क रप म पहचाना गया ह यह सह-असतितव अनभव क पिार करनयम नयाय िमत सतय सहज परयोग म अनभर होन क उपरानत ही साथतक हो पारा ह इसक ललय अथार ऐस अनभकरर क ललय अधययन िम स आरभ होरा ह अधययन अविारिा कषतर का भरर-भरर वरतमान करवधि ह इस करवधि स णजरनी भी अविारिाए अधययन स समबदघ होरा गया उरन ही अविारिा क आिार पर परवकततत सहज नयाय िमातमक और सतय सहज रलन नयाय रलन समपि करवचार क आिार पर करकया गया आसवादन सहहर समपि करकया गया सभी चयन नयाय रप होना दखा गया ह इसी परकार ऊपर कह चचनतनपवतक जब चितरण रलन करवचार आसवादन और चयन करियाए समपि होर ह नयायपवतक वयविा म परमाणिर होना दखा गया अविारिाए सवाभाकरवक रप म ही असतितव सहज होन क आिार पर सह-असतितव रप होन क आिार पर अनभर होना अथार जानना-मानना और उसक रकतपत करबनद को पाना ही अनभव ह जानना-मानना-पहचानना ही अविारिा ह इसम रकतपत करबनद को पा लना ही अनभव ह इस कायत-वयवहार वयविा म वयकत कर दना परामाणिकरा ह अनभव परमाि पित बोि सहहर समपि होन वाल सकलप चचनतन चचतरि नयाय िमत सतय रपी रलन करवशलरि आसवादन सहहर करकया गया समपित अलभवयकतकतया वयविा और समगर वयविा म भागीदारी करनवाह कररा हआ ही दखन को कतमलरा ह इस करवधि स जागकररपित मानव ही असतितव म भरम बनधनो स मकत होना सपषट करकया जा चका ह जागकरर करवधि अधययन रपी सािना करवधि स सवाधिक उपयोगी सदपयोगी परयोजनरील होना दखन को कतमला ह इस करवधि स साधय सािक सािन का सामरसयरा सवय सफरत करवधि स समपि होना दखा गया ह जागकरर क ललय हर मानव सािक ह साधय जागकरर ही ह सािन जागकररगामी अधययन परिाली ह इस िम म परमपरा सािन परकररिा क रप म रन-मन-िन वयविा और समगर वयविा म भागीदारी का परमाि मानवाकाकषा क रप म होरा ही ह इस परकार स साधय-सािक-सािन का सयोग मानवीयरापित परपरा करवधि स सफल होन का सवरप सपषट ह ऐस परपरा क पवत (जस आज की सथिकरर म भरकतमर समदाय परपराए) मानवीयरापित परपरा म सिकतमर होन की कायतपरिाली मददा ह इस िम म अनसिान क अननतर णजरन भी रोिकरा सममर होर जार ह और सममकरर क अनरप करनिा उदगकतमर हो जारी ह और भी भाराओ स सवय सफरत करनिा उदगकतमर होरी ह ऐस ही करनिावान मिावी इस कायत म सलगन ह यही आज की सथिकरर म जागकररगामी अधययन जागकररमलक अलभवयकतकत सहज करवधि एक स अधिक वयकतकतयो म परमाणिर होन का आिार बन चकी ह जागकररपित परपरा म साधय सािन सािक म करनतय सगीर होना दखा गया ह दसर भारा म करनतय समािान होना पाया गया ह

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उललणखर अनभवो क आिार पर समपित जागकरर अपन-आपस जीवन जञान असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान म ही समपित ह इसका अभयास करवधि सवतपरथम अनसिान दसरा अधययन पवतक रोि रोि पवतक अधययन य ही मल अभयास ह कयोकरक अधययन करवधि स ही रोि करवधि स ही अविारिा का सवीकर होना दखा जारा ह अनय करवधि जस उपदर करवधि म भरकतमर होन की सभावना सदा बना ही रहरा ह हर परपरा म अपन ढग की आदर परकररिा िाकतपर रहरा ही ह वह अधययवसाकतयक (अधययनगमय) होर रक उपदर या सचना मातर ह परपरा म णजस आरय क ललय आदर-करनदर ह वह रकत सगर-वयवहार सगर बोि होन की परकरिया परिाली पदघकरर ही अधययन कहलारी ह रकत का साथतक सवरप करवजञान सममर करववक और करववक सममर करवजञान होना दखा गया परयोजन करवहीन उपदर परयोग वह भी वयवहार परमाि करवहीन उपदर रब रक ही रह पारा ह जब रक रकत सगर न हो रकत का रातपयत भी इसी रथय को उदघादटर कररा ह रकतपत क ललय आकरति परिाली (भारा परिाली) ऐस रकत सहज रप म ही करवजञान क आशरर करवशलरिो को करववक स आशरर परयोजनो का परमाणिर होना सहज ह हम इस बार को समझ चक ह करक परयोजनपवतक जीन क ललय परमाणिर होन क ललय समािान समशदघ क रप म सह-असतितव दरतन क ललय रकत सगर अधययवसाकतयक करवधि का होना आवशयक ह अधययन करियाकलाप रकतसगर परयोजन परयोजन सगर मानवापकषा मानवापकषा सगर जीवनापकषा जीवनापकषा सगर सह-असतितव सह-असतितव सगर करवकास िम और करवकास करवकासिम और करवकास सगर जीवन-जीवनी िम-जागकरर िम-जागकरर एव इसकी करनररररा सह-असतितव सहज लकषय ह असतितव सहज लकषय म भी मानव ही अकरवभाय ह और दषटा ह इसललय मानव असतितव सहज सह-असतितव करवधि स परकरा-उदाततीकरि परकरा-करवकास परकरा-जागकरर सतरो क आिार पर सह-असतितव सहज अधययन सलभ हआ ह समपित असतितव ही वयविा क सवरप म वरतमान होना समीचीन ह आज भी मानव क अकररररकत सभी अविा म (पदाथत पराि जीव अविा) अपन-अपन तव सहहर वयविा म होना ददखरा ह इसी िम म मानव भी अपन मानवतव सहहर वयविा और समगर वयविा म भागीदारी सहज अपकषा को साथतक बनान क िम म ही जागर होना पाया जारा ह हम यह पार ह करक जागकरर सतर वयाखया और परमाि सवतरभ क सवरप म ही वभकरवर होरा ह इस आरय को लोकवयापीकरि करना भी सवतरभ कायतिम का एक बकरनयादी आयाम ह इसी सतयरावर lsquolsquoअनभवातमक अधयातमवादrsquorsquo एक परिकरर ह हर मानव अपन कलपनारीलरा कमतसवरतररा पवतक ही हर परिकररयो को परखना (परीकषि करना) सवीकारना या असवीकार करन क कायतकलाप को कररा ह

अनभि दशशन सस २०१२ दधदवतीय (अधयाय -३)

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सतर छद िाकय शबद क दवारा वकरया मातर का िणशन ह सारथ ही जञानानभवत क ललए उपदश पिशक इवगत भी ह बरहम सहज िणशन पारगामी वयापक और पारदशीयता क रप म ह lsquolsquoयहrsquorsquo किल भास आभास बोि तरथा अनभिगमय ह इसका बोि मानि की कषमता योगयता पातरता पर आिाररत ह परतयाितशन पिशक परापत वयजनाएा जागवत क ललए गणातमक गवत ह गणातमक वयजना स सबोि सबोि स सससकार सससकार स गणातमक सिदना (सजञानीयता पिशक सिदना वनयदधतरत) रहना गणातमक सिदना स सतय सकलप तरथा सतय सकलप स गणातमक वयजनाओ की वनरनतरता ह सथसथवत एि वकरया सकत-गरहण कषमता ही वयजनीयता ह सकत-गरहण -परवकरयाबदघ जञान परापय को पान उस सरधकषत रखन क कायशकरम म अलभवयकत ह परापत क अनभि क करम म भास-आभास एि परतीवत ही जञापक (सतयाततपत होना) ह मानि दसरो क ललए भी सकत परसाररत करता ह सकत-गरहण-वकरया ही अनमानारोपण तरथा अनमानाकर भी ह जो सकलप इचछा वििार ि आशा ह अधयाय-७ अलभवयजना म गणातमक विकास का सकत वयजना म उपयोवगता का सकत ह अभयदय पराय (अभयदय जसा) ही अलभपराय ह खजसम अभयदय का भास या आभास होना आिशयक ह

कमशदशशन सस २००४ (प ८६ ८७) परमाण म विकास का तातपयश परमाण क गठनपणश होन स ह|मानि म एक बात की िाहत बनी ह ndash यरथासथसथवत िभि उसकी वनरतरता ndash यह सवाभाविक रप म सवीकत ह| परमाणओ म अशो का घटना-बढ़ना पररणाम क सवरप म हम समझ िक ह| पररणाम का अमरतव उसकी वनरतरता की अपकषा मानि म ही कलपना भास आभास परतीवत क रप म पाया जाता ह

प २० २३ (शासतराधययन की महततव) सदशासतराधययन क वबना सतय कामना एि परितततत सतय कामना क वबना सतय-परम सतय-परम क वबना सतय-वनषठा सतय वनषठा क वबना सतय परवतषठा सतय-परवतषठा क वबना सतय परतीवत सतय-परतीवत क वबना सतयानभाि सतयानभाि क वबना सद शासतर का उदघाटन तरथा सदशासतर क उदघाटन क वबना सद शासतर का अधययन पणश और सारथशक नही ह| मानि को जीिन की परतयक सतिचरथ म शानतनत एि सथसथरता की आिशयकता ह| सदशासतर सिन मनन एि आिरण स वयकती तरथा पररिार म शानतनत तरथा सथसथरता पा जाती ह|

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(सदशासतर सिन = शासतराधययन स शरिण | मनन एि आिरण अभयास-अधययन करम म समपणश मनन परवकरया)

(प ९७ ९८)

सहअसतितविादी विधि स हर मानि मानितव सहहत वयिसथा और समगर वयिसथा म भागीदारी करन योगय इका ह इसम मखय मददा यही ह - सवय को सवय क ललय रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क सयकत रप म होन को सवीकारन की आिशयकता ह जीिन वकरया की महहमा और मानि परमपरा म इसकी आिशयकता धयान म रहना अवत आिशयक ह तभी मानि शोि क ललए ततपर होना पाया जाता ह ऐसी ततपरता जागवत सहज विधि स सिशशभ क अरथश म परिावित होना होता ह तभी सिशमानि समािान पिशक वयकत होन समझदारी पिशक हर पररिार समािावनत और सखी होन की सथसथवत सपषट हो जाती ह फलसवरप समशदघ अभय सहअसतितव परभावित होन का सौभागय उदय होता ह यही मखय वबनद ह सिशशभ का परमाण भी यही ह कयोवक समािान समशदघ पिशक ही मानि सख शानतनत का अनभि करता ह इसी करम म समािान समशदघ अभय सहअसतितव पिशक आननद अपन आप म समपणश होना पाया जाता ह इस ढग स मानि लकषय सारथशक होन की सथसथवत म जीिन लकषय (सख शावत सतोष आननद) सारथशक होता ही ह जीिन लकषय और मानि लकषय सारथशक होना ही अधययन और अधयापन की सािशभौमता ह ऐस लकषय क सारथ मानि परमपरा अपन आप म सवय को पहिानन और समपणश मानि को पहिानन का सतर और वयाखया बन जाता ह परमाण क रप म वयाखया समझ क रप म सतर होना पाया जाता ह यह वनयवत सहज विधि स समीिीन रहना पाया जाता ह वनयवत विधि का तातपयश विकासकरम विकास जागवत करम जागवत ह दसर विधि स भौवतक रासायवनक रिना शरीर और जीिन वकरयाकलाप का सयकत अलभवयततकत समपरषणा परकाशन क रप म ह

मानि लकषय - समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करन और उस आिार पर जीिन लकषय (मनसवसथता) - सख शानतनत सतोष आननद को सारथशक बनान क अरथश म मानि शशकषा ससकार की आिशयकता सदा-सदा स बनी ह ह इसकी सफलता ही मानि कल का सौभागय ह

lsquoमानि कल और रासायवनक-भौवतक वकरयाकलाप का सारथशक परमाणrsquo

शशकषा की समपणश िि सहअसतितव रपी असतितव म रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म ही ह इसम स इनक अविभाजय रप म मानि परमपरा का समपणश वकरयाकलाप वयिहार सोि वििार समझ ह समझ क अरथश म ही हर मानि का अधययन करना होता ह समझ अपन म जानना मानना पहिानना वनिाह करन क रप म परमाखणत होती ह इसी अरथश म समपणश अधययन सारथशक होना पाया जाता ह

असतितव म समपणश इका याा रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म पररलधकषत ह ही (प १०२) वनशचयता सथसथरता सिशमानि म चिराकााकषा क रप म बनी ही ह सहअसतितव रपी असतितव जञान और सवीकवत का आिार ह यह सिशमानि म सिकषण पिशक विदधदत होन िाला तथय ह सवय को जाािन स भी

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यही सपषट होता ह हम सब सथसथरता ि वनशचयता को ही सवीकार करत रह ह न वक असथसथरता अवनशचयता को सथसथरता क सहज आिार पर ही वनशचयता का होना सवभाविक ह (प ११५) इस हम मानि को अचछी तरह स समझन की आिशयकता ह और अनशीलन पिशक सरकषण सििशन विधि स सवय को वयसथसथत कर लन की आिशयकता ह मानि क वयिसथसथत होन क मल म जञान विजञान वििक का एक सगीतमय कायशकलाप सपषट रहन स ह यही कायश-कलाप भाषा कायश-वयिहार म वनयोखजत होकर परयोजनो को परवतपादधदत करता ह मानि का परयोजन समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करना ही ह (प १२२ १२३)

( अनभि मलक वििी स

यरथारथशता िािविकता सतयता का बोि रपी बशदघ की सथसथवत उस परकाशशत करन की परितततत क रप म सकलप ही गवत ह नयाय िमश सतय क साकषातकार करन क रप म चितत सथसथवत और इसका चितरण क रप म चिदधतरत हो पाना गवत ह चितत वकरयाकलाप का समपणश चितरण तलन क रप म अरथात नयाय िमश ि सतय रप म सपषट होना ितततत सहज सथसथवत ह ितततत म समपनन हय तलन का विशलषण विधि म विशलततषत होना ि समपरततषत होना ितततत सहज गवत ह विशलषण क सपषट अरथिा सार रप म मलय सवीकत होता ह इस आसवादन करना ही मन की सथसथवत ह इसकी सारथशकता क ललय ियन वकरया को समपादधदत करन क रप म गवतत होना हर मानि म सिधकषत ह इस ढग स मानि भी सभी परकार स सथसथवत-गवत म होना सपषट होता ह इस परकार मानि समझदारी स समपनन होन क उपरानत परमाखणत होना सवभाविक होता ह इसका मतलब यही हआ हम जब तक परमाखणत नही होत तब तक परमाखणत होन क ललए जञानाजशन वििकाजशन विजञानाजशन कर लना ही शशकषा और शशकषण का तातपयश ह इसक ललए सह असतितविादी शशकषा करम समीिीन ह अतएि समझदार मानि होन क ललए धयान दन की आिशयकता ह

सह-असतितविादी वििार जञान वििक विजञान को समझना ही समझदारी ह

ldquoअधययन रपी उपासनाrdquo (अभयास) - कमशदशशन सस २००४ प ४९ ५०

मानि जीिन म उपासना एक महतवपणश भाग ह| उपासना ही मल परिततततयो का पररमाजशन एि पररितशन परवकरया ह| यही ससकार एि सवभाि पररितशन भी ह| ( उपासना = उपायो सहहत लकषय पती क ललए कीया गया वकरयाकलाप) उपायपिशक सहिास पाना ही उपासना की अििारणा ह खजसक ललए पररशरम (पररमाजशन शरम) एि अभयास ह| अभयास एि पररशरम स ही सथल सकषम कारण की सथसथवतितता सपषट ह| खजसस ततसबिी पदारथश वनयवत-

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 19

करम शततकत महहमा विभती एि वनयम सबिी अनसिान (अनगमन पिशक अििारणा) शोि परधसदध ह| अनसिान भौवतक बौदधदधक तरथा आधयातमतमक भद स ह| अनसनधान परवकरया मनन चिितन सकलप एि अनभती क रप म परतयकष ह|

सथल सकषम कारण (दषटा) का तातपयश दखन समझन परयोग करन वयिहार करन एि अनभि करन योगय कषमता क सपनन होन स ह |

परिततततयो का पररमाजशन ही मानि जीिन का कायशकरम ह| मानि म पणशता एि पररमाजशनशीलता की अपकषा परतयक सथसथती म पा जाती ह| पणशता ही पादधडतय ह| पादधडतय स अधिक जञान एि वनपणता कशलता स अधिक वयिहार एि उतपादन नही ह| पररमाजशनशीलता उतपादन ि वयिहार म पा जाती ह| पादधडतय परबदधता परबदधता ही शशकषा एि वयिसथा ह| परबदधता स पररपणश होत तक उपासना अतयत उपयोगी ह|

प ५६ स ७२ (इनम स कछ ही िाकयो को ललया गया ह| समपणश क ललए पिक दख) उपासना स सािशभौततमक मलयो का अिगाहन करना ही परिान उपादयता ह| समि उपासनाओ क मल म लकषय समय ह िह अखड समाज सािशभौम वयिसथा ह| िह किल सिश

मगल ही ह| कयोकी सिश मगल की कामना क वबना सवय का मगल धसदध नही ह| अनय कामय कामनाए किल मगलमयता की भास परदायी ह न की अनभिदायी| इसललए सिशमगल

कामनारपी कायशकरम तःरथा उसकी अनसरण योगय कषमता पयत मानि परयास करन क ललए बाधय ह| सही क परती भरततमत रहना ही मत सपरदाय एि िगश का कारण ह|

मत सापरदाततयक िगीयता म आचरथिक िगीयता एि आचरथिक िगीयता म मत-सापरदाततयकता समा ह ह|

इसका वनराकरण सपषटतया सािशभौततमक रप म पा जान िाली मानिीयतापणश पदधवत स ldquoवनयम-तरयrdquo (बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक) क आिारपिशक ही आचरथिक एि सापरदाततयक िगश-भािनाओ स मकत होन की समभािना एि मकती ह| इसी म समि िगश-भािना विलीन हो जाती ह| इसीललए ndash

उपासना की उभय पदधवत का अभीषट समझदारी जागवत पिशक सारथशक होता ह जो जागरण ह| मानि म शततकतया वकरया इचछा एि जञान शततकत ही ह जो उनकी अहशताए ह| अहशताए परतयक इका

की जागवतशीलता जागवत पर आिाररत ह| शबद सपशश रप रस गिनतियो दवारा शततकतयो का अपवयय न होना सारथ ही सदवयाय होना ही

वकरया शततकत की जागवत ह| सदवयय एि अपवयय का वनिारण मानिीयता क सीमा म ldquoवनयम-तरयrdquo क रप म ह |

अतकरण मल परितताा अरथात आशा वििार इचछा ि सकलप का अपवयय न होना ही सदवयय ह| यही इचछा शततकत का जागरण ह|

समयक-बोि एि अनभती पणशता ही जञान परकटन कषमता ह| यही जञानशततकत का जागरण अरथिा पणश जागरण ह| यह ldquoजागवत-तरयrdquo मानिीयता एि अवतमानिीयता म परतयकष ह| यही मानि जीिन की िरमोतकषश

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उपलसतबध ह| सशकत उपासना क उपादयता यही ह यही समगर मानि की कामना ह| यही सिशमगल ह| इसीललए

जीिन-जागवत का परतयकष सवरप ही वििक पणश विजञान का परयोग ह यही सतकशता अखणड सामाखजकता परबदघता वनविि षमता सह-असतितव शशकषा विधि वयिसथा सभयता ससकवत बौशदघक समािान भौवतक समशदघ और जीिन जागवत की वनरनतरता ह

पणश जागवत पयशनत परतयक मानि इका परयास एि उपासना क ललय बाधय ह इसी क फलसवरप मल परिततततयो का पररमाजशन होता ह खजसक कारण विशशषट और शशषट मानधसकता एि वििार चिनतन-बोि कषमता अनभिपणशता परतयकष होती ह यही शरषठ उपासना की उपलसतबधयाा ह

इसललय समान क सारथ वयिहार करन क ललय बाधय हआ ह यही सामाखजकता की बाधयता ह यही मानि जीिन की गौरि और गररमा ह यही गररमा समान क सारथ वयिहार अधिक जागवत क ललय अभयास करन क ललय पररणा ह यही िािविक उपासना ह

वििक अरथात मानि लकषय और िरागय अरथात समशदघ ही उपासना का परतयकष फल ह खजसम सामाखजकता सवाभाविक रप स समाहहत रहती ह

िरागय का पराितशन ही असगरह (समशदघ) उदारता एि दया ह भौवतक समशदघ म उदारता एि दया क मौललक मलयो का अनरजन ही सामाखजकता का पराण ततव ह यही सामाखजक सगीत ह इसी क ललय मानि तततषत ह वििक ही बौशदघक समािान एि सामाखजक मलयो को वनिाह पिशक परकट करता ह इसललय

वििक ि िरागय ही परोकष जञान (सदवयिहाररक जञान) का परिान लकषण ह अनभि ही परोकष जञान की अनतनतम सथसथवत ह इसक पिश अनमान अधिकार ही परधसदघ ह ििसथसथवत ििगत सथसथवत सतय म ही अनभि ह

परोकष जञान क वबना वनतयावनतय यकतायकत नयायानयाय िमािमश सतयासतयइषटावनषट दषटादषट तरथा परोकष जञानाधिकार धसदघ नही होता ह

वनतयावनतय जञानाधिकार क वबना मनषय म सविमश क परवत वनषठा नही पा जाती ह मानि िमश ही सख सख ही नयायपणश आिरण नयायपणश आिरण ही मानिीयतापणश सीमा एि lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का पालन ह यही मनषय का सविमश ह मानि सख िमी ह

मयादा विहीन इका नही ह जस जीिो म सवभाि मयादा िनसपवतयो म गण मयादा एि पदारथो म रप मयादा-भग नही होती ह यही उनकी गररमा ह इसी परकार मानि म सख ही िमश ह िमश ही मयादा ह यही उनकी गररमा एि विशवास ह मयादा का परतयकष रप ही विशवास ह

lsquolsquoविशवासविहीन समबनध एि समपकश म सख नही हrsquorsquo समबनध एि समपकश विहीन मनषय नही ह यही बाधयता सविमश क ललय ह इसक पालन म जो अकषमता अयोगयता एि अपातरता ह - िही दख कलश समसया और अजागवत ह

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सविमश म समपननता एि पालन करन योगय कषमता योगयता एि पातरता स पररपणश होत तक जञानाजशन करन क अरथश म अधययन रपी उपासना का अभाि नही ह

मानि क सविमश की सीमा म ही मत समपरदाय िगश वतरोहहत हो जात ह यही समरथश उपासना की परतयकष गररमा ह lsquolsquoयही मागललक हrsquorsquo साधय सािक सािन इन तीनो का उपासना म समाहहत रहना अवनिायश ह इनकी एक सतरता ही उपासना की सफलता ह अनयरथा असफलता ह परतयक सथसथवत म परापत शततकत ि सािनो का सदपयोग करना ही उसकी अवगरम जागवत ह यही उपासना ह

इनतिय कायशकलाप तरथा इनतियो का कायशकषतर ही अपरोकष जञान की सीमा ह इस वयापार म ितविि षय सीमानतिती धसशदघयाा ह इसक अवतररकत और उपलसतबधयाा इसम नही ह

विषयो की सीमा म मनषय सीततमत नही ह कयोवक उसम िार आयाम परधसदघ ह

मनषय ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत समपनन होन क ललय बाधय ह यही आिशयकता अिसर सभािना एि वयिसथा ह

सयमतापिशक ही मनषय क दवारा परतयक पररपरकषय म वकय गय वकरयाकलाप म स गररमापणश िभि परकट होता ह जस-

सतयबोि सहहत सतय बोलन का अभयास करन स भय ि अविशवास की वनितततत हषश तरथा उतसाह का उदय होता ह

विशव क परवत मलय भाि की परवतषठा स इषट और सािक क मधय विषमता का अभाि होता ह

शबद क अरथश अरथात मनतरारथश का तदरपतापिशक समरण करन क अभयास स उसका अरथश एि सवभाि गमय होता ह सभी सारथशक शबद मनतर ह

अधिक जागत म समपशण स अलभमान ि अहकार का उनमलन तरथा विदया ि सरलता का उदय होता ह ( अधिक जागत = समझान िाला परमाखणत वयततकत गर)

शरीर सिदना सयत रहन स मन की पवितरता मन की पवितरता स मनोबल का लाभ होता ह

सव-शरीर मोह नषट होन स ससार क परवत मोह दर होता ह सिशशभरपी आपत कामना पणश बशदघ स ही विशव क परवत उदारता दया कपा करणा का परसिन तरथा विशव की आिारभत सतता म जञान एि अनभि होता ह

जञान विजञान वििक रपी सवतवहीनता ही असयमता मनोदौबशलय मल परविततततयो की अपररषकवत राग मोह लोभ अवििक अहकार अलभमान दहातमिादी परितततत दरािार सघषश असह-असतितव सशकता दवष तरथा तपोहीनता ह

सयमता क वबना बौशदघक मल परिततततयो की पररषकवत बशदघबल सामाखजक मलयो की अनभवत ितनय वकरया का दशशन समािान और सयमता धसदघ नही होती ह

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उपासना क ललय िातािरण का महतव अपररहायश ह खजसम स मनषय कत िातािरण ही परिान ह जो शशकषा ि वयिसथा क रप म ही ह

मानिीयता की सीमा म वयिहार lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का आिरण ही वयततकततव ह ऐस वयततकततव क वनमाण म सवकरय योगदान ही कततशवय ह यही परषारथश ह यही परबदघता ह

आशा भद स उपासना उपासना भद स अनभि अनभि भद स अनमान अनमान भद स उपासना भद ह यही उपासना म िविधयता का कारण ह यह िविधयता सािशभौम आिरण की सीमा म विलय होन क ललय बाधय ह

मानि क ललय सहज समरथश उपासना एक अवनिायश कायशकरम ह जो अमानिीयता स मानिीयता मानिीयता स अवतमानिीयता की परवतषठा सथाततपत करती ह

सह-असतितव म अनकषण-विकषण-ितततत स सहजाितततत होती ह

कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ही अनकषण-विकषण ितततत ह

अनकषण का तातपयश परतयक कषण म लगातार सह-असतितव चिनतन वििार करम म परमाखणकता का सहज परमाण परित हो जाता ह यही सहजाितततत ह

सतता म समपकत परकवत की समपकतता का जञान ही (पणश-दशशन) कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ह यही भरततमत भाि ि अभाि का वतरोभाि ह यही सहज परवतषठा ि अिसथा ह

सतता म समपकत परकवत का जञान न होन स और अनभिमलक जञान न होन स भय और परलोभनिश समि भरममलक कायश-वयिहार सोि-वििार को बनाय रखता ह यही समपणश कलश का कारण ह

काल वकरया की अिधि ह इसी अिधि म आरोततपत वििार ि इचछा ही असहज एि वनरारोततपत वििार ि इचछा ही सहज ह

मानि इका म ही जागवत क करम म भी वनरारोपण कषमता पा जाती ह भरमिश आरोपण होता ह

जो जसा ह उसस अधिक कम अरथिा नासमझना ही आरोपण ह यही अजञान ह यही अकषमता ह यही भरम ह

सतता म समपकत जड़-ितनयातमक परकवत की सथसथवत-शीलता ि सतता सहज पणशता क समबनध म ही आरोप या वनरारोण वकरया समपनन होना पाया जाता ह

परतयक इका म रप गण सवभाि एि िमश समाहहत ह यही उसकी कायशितता ह इसी की गणना पररमाण परयोजन जञान ही परकवत क परवत वनभरमतापणश कषमता का दयोतक ह यही परमाण ह यही सहजता ह

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समपणश वकरयाय मलत रप और शबद भद म दषटवय ह

परकता क वबना इका म अवगरमता नही ह

पणशता पयशनत इका परकता उपयोवगता क ललए परितत ह

परकता ही इका म हरास ि विकास क लकषणो को परकट करती ह यही परिान उपादयता भी ह

इका म परकट होन िाल शबदादधद गण ही सापकष शततकतयाा ह गणविहीन इका नही ह इसललय

मनषय म सहज कामना का अभाि नही ह सहजता ही िमश ह यही सख शानतनत सतोष एि आननद ह यही िारणा को सपषट करता ह जो परतयकष ह

परतयक कमश-फल ही मनषय क सख का पोषक ि शोषक धसदघ हआ ह

सतय और सतयता क अनभि-करम म वयििान नही ह कयोवक अनभिकरम-वयिसथा सघन ह जागवत की कदधड़याा सघन ह इसललय-

सहजता आरोप स मकत ह आरोप ही नयनावतरक मलयाकन ह सवय की नयनावतरक मलयाकन वकरया ही असहजता ह

सवय का मलयाकन lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म होता ह

lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म न हो ऐसा मनषय इस पथवी पर नही ह

िमश का वियोग नही ह कयोवक यह िारणा ह इसका परतयकष रप ही मानिीयता एि अवतमानिीयता पणश आिरण ह जो सहजता का परिान लकषण ह इसललय -

अमानिीयता पणश आिरण ही असहज ह इसललय

परकवत अपन म समपणशता क सारथ सीततमत ह यही अिधि ह इसललय पणश म समायी ह यही पणश म समपणशता सहज सह-असतितव ह यही समपणशता का वनतय ितशमान और जञानािसथा क मानि म पणशता का परसि ह यही जागवत क ललय बाधयता ह

मनषय क बौशदघक कषतर म पायी जान िाली अनािशयक कलपनाओ का वनराकरण ही दशशन-कषमता म गणातमक पररमाजशन ह यही गणातमक ससकार-पररितशन शशकषा एि जीिन क कायशकरम का योगफल ह

दशशन-कषमता का उतकषश ही अनकषण विकषण ह यही मधयसथ वकरया की कषमता ह मधयसथ वकरया ही दषटा ह

मधयसथ वकरया का िरमोतकषश ही सम ि विषम वकरया का पणश वनयतरण ह यही कषमता कषण-कषण मधयसथ वयििान स मततकत ह

ससकार पिशक ही बौशदघक वयिसथा-परवकरया -कषमता क आनषवगक ह मनषय सहज ऐषणा एि विषयो की सीमा म परितततत ि वनितततत पिशक वयि होना पाया जाता ह जो परतयकष ह

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आतमा (मधयसथ वकरया) क आनषवगक बौशदघक परवकरया ि वयिसथा म सतय-सकलप एि सतय-कलपनापणश मानधसकता की सथसथवत पा जाती ह जो परधसदघ कमश उपासना जञान पणश ह यही कषमता दि ि दधदवय मानिीयता को परकट करती ह यही पणश जागवत ह

ऐषणासकत बौशदघक वयिसथा म मानिीय तरथा दि मानिीय सवभाि परकट होता ह उसी क अनरप म मानधसक िातािरण की सथसथवतशीलता ह ऐसी कषमता ही सामाखजक ितना एि सतकशता स पररपणश पायी जाती ह

विषयासकत बौशदघक वयिसथा ि परवकरया म अमानिीयतापणश आिरण समपनन होता ह जो पाशविकता तरथा दानिीयता क रप म दषटवय ह इनम उसी क योगय मानधसकता पा जाती ह यही लपत-सपत कलपना का कारण ह यही अजागवत तरथा अपणश सतकशता का दयोतक ह

शरय (जागवत) खजजञास होन पर ही लपत-सपत कलपनाय पररमाखजि त होती ह फलत दानिी ि पाशिी परिततततयो स उदासीनता सथसथर होती ह सारथ ही वििकोदय होता ह

शरय खजजञासा का उदय सव-ससकार विधि-विहहत अधययन तरथा उसक अनकल िातािरण म होता ह

विधि-विहहत-अधययन वनपणता कशलता ि पादधडतय ही ह

अधययन एि िातािरण ही ससकार पररितशन क ललय समरथश वयिसथा ह खजसका गणातमक पररितशन ही आतमबोि क ललय खजजञासा ह

आतमबोि ही सतय खजजञासा का परिान लकषण ह इसललय- अििारणा ही अनगमन तरथा अनशीलन क ललय परितततत ह जो शशषटता क रप म परतयकष होती ह परगवत क ललय अििारणा अवनिायश ह जागवत क ललय अििारणा एि हरास क ललय आसततकत परधसदघ ह यही करम स वनितततत ि परितततत ह अििारणा ही सदधदविक ह सदधदविक सवय म सतयता की विििना ह जो सपषट ह मलत यही शभ एि मागलय ह अनभि की अििारणा सतय बोि क रप म अििारणा (समयक-बोि) ही सतय-सकलप ह यही परािवति त होकर शभकमश उपासना तरथा आिरण क रप म परतयकष ह इसी का पररिवति त मलय ही िीरता िीरता उदारता दया कपा और करणा क रप म परतयकष ह सतय म ही समयक-बोि होता ह असतय ही कलपना एि भास होता ह हीनता दीनता और कररता स यकत कमश अशभ होता ह सव-मलय ही परितततत और वनितततत का िशश ह इसललय असतय अलभमान तरथा दपश स मकत सतय सरलता सहजता तरथा सौजनयता स यकत कमश ि उपासना शरय कारक ह

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सतय कामना की वनरनतरता स लकषय की अििारणा होती ह जञान म ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत परतयकष ह जञान वििक सममत विजञान ही ह जो पणश ह सतय और सतयता म दढ़ता ही शरयमय जीिन ह सतयानभवत ही सबका अभीषट ह शरीर स समपनन होन िाल समि वकरयाओ का सिालन मन ही मिस दवारा करता ह मिस स सभी नादधड़याा वनयदधतरत ह शबद का मल रप मन ही ह मिस पर मन आसवादन एि सवागत भािपणश तरगो का परसारण सिालन वनयतरण करता ह उसक मल म शबद ही ह जागवत की ओर गवत हत वनयतरणातमक शबद ही मतर ह लकषय-पराततपत-योगय-करम परवकरया ही वनयतरण ह शबद म जो भाि (मलय) ह िही उसका अरथश ह सारथशक शबदो का अरथश ही जागवत की ओर गवत ह कयोवक शबद का अरथश असतितव म िि ह भाि म जो उपयोगपणश अवनिायशता ह िही उसका महतव ह उपयोग पणश अवनिायशता म जो वनचशचत दधदशा ह िही उसकी दढ़ता ह यही समयक सकलप ह समयक सकलप म जो पणशता ह िही अनभि ह जो करम स मन ितततत चितत बशदघ और आतमा म पा जान िाली सससकत मौललक वकरयाय ह भाि का तातपयश होन स ह शततकत-तरय-जागरण (इचछा-शततकत वकरया-शततकत तरथा जञान शततकत जागरण) क वबना तयाग (भरममततकत) और परम परमाखणत नही होता

मनन परवकरया म सव-मलयाकन

सव-मलयाकन मनन धयान ldquoअपराि क अभाि म दयापणश आशा का पराितशन अनयाय क अभाि म नयायपणश वििार का पराितशन आसकती क अभाि म समािान पणश इचछा का पराितशन तरथा अजञान क अभाि म जञानपणश सकलप का पराितशन होता ह| अत अपरािहीन वयिहार क ललए वयिसथा का परभाि अनयायहीन वििार क ललए अखणड समाज का परभाि तरथा अजञान रहहत बदधदध क ललए अतवनि यामन अरथिा धयान आिशयक ह खजसस ही परतयाितशन वकरया सफल ह| धयान का अरथश समझन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना और समझन-अनभि करन क

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उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

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मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

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(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

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सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

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प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

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अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

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३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

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(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

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उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

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मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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प ५१ ५२

वनषठा - जागवत पणश लकषय को वनचशचत अििारणा ि समरण पिशक परापत करन ि परमाखणत करन का वनरतर परयास

वयजनीयता का तातपयश - साकषातकार होन स ह साकषातकार चिितन म होता ह वयजनाए मानि मलय जीिन-मलय सथाततपत मलयो क परभाि क सारथ जीिन मलयो का बोि ि अनभि करन स ह समपणश रसानभवत का तातपयश ह - जीिन मलय रपी सख शावत सतोष आनद सहज आपलािन जागवत सहज परमाणो क रप म सपषट होना यही अनभि करन और बोि करान का तातपयश ह

प ७५-७७ गर और शशषय

पररभाषा गर - शशकषा ससकार वनयवत करमानिषगीय विधि स खजजञासाओ और परशनो को समािान रप म अििारणा म परसथाततपत करन िाला मनषय गर ह जागवत करम म मानि को अपरापत का परापत अजञात का जञात करन क ललए होन क ललए विधि वनयम परवकरया सहज समझदारी म पारगत बनाना ही परमाखणकता का परमाण ह परमाखणकता पणश गरजन ही असतितव सहज सह-असतितव रप म अििारणा को परवतसथाततपत करा सकता ह अििारणाय असतितव विकासकरम विकास जीिन जीिनी करम जीिन जागवतकरम जीिन जागवत सहज रप म परसपरता म अरथात समझा हआ और समझन क ललय तरथा मनषयो स ह गरजन इन मददो म पारगत रहग यह समझदारी ह समझदारी क आिार पर ही मानिीय शशकषा-ससकार सपनन होता रहगा ससकार का तातपयश ही अििारणा ह विदयाचरथि यो म सथाततपत होन स उसकी वनरतरता का परमाण वयिहार वयिसथा म परमाखणत होन स ह फलसवरप ही अखणड समाज सािशभौम वयिसथा म भागीदारी सहज कायश-कलाप हर मानिीय शशकषा-ससकार समपनन मानि स िररतारथश होना पाया जाता ह

परामाखणक - परमाणो का िारक िाहक - यरथा असतितव दशशन जीिन जञान मानिीयता पणश आिरण समचचय को परयोग वयिहार अनभि पणश विधि स परमाखणत करना और परमाणो क रप म जीना

पररभाषा शशषय - जागवत लकषय की पवति क ललए शशकषा ससकार गरहण करन सवीकार करन क ललए परित वयततकत खजसम गर का समबनध सवीकत हो िका रहता ह यही खजजञासातमक शशषटता ह

खजजञास - जीिन जञान सहहत वनभरशम शशकषा गरहण करन क ललए तीवर इचछा का परकाशन

समझन सीखन करन क ललए पणश खजजञासा सहहत परयतन सपनन वयततकत शशषय क रप म शोभनीय होता ह सफल होन क सभी लकषणो स यकत िातािरण म विशवास होना और विशवास को िातािरण म परभावित करन परमाखणत करन की सभी परवकरया अधययन ह

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असतितव विकास जीिन जीिन जागवत रासायवनक-भौवतक रिना-विरिना समपणश मानि क ललए समझन-समझान की िि ह सीखन की जो कछ भी परमाखणत िि ह यह मानि म मानिीयतापणश आिरण कमश अरथात वयिसाय म सवािलमबन वयिसथा म भागीदारी मानिीयता पणश आिरण का अभयास परामाखणकता सहज अलभवयततकत ह सारथ ही सािशभौम वयिसथा और अखड समाज म वनषठा ह य समपणश खजजञासाए वयािहाररक रप म िररतारथश होती ह परौढ़ता की पराकाषठा म स क ललए सवानशासन की खजजञासा का होना पाया जाता ह खजजञासा मानि सहज परकाशन ह

प १०६ जीिन को तातवतवक रप म समझन की खजजञासा हो ऐसी सथसथवत म परमाण म होन िाली विकास परवकरया उसक सकरमण िभि को भी जो ितनय इका क रप म परवतवषठत ह को सहज ही अधययन अििारणा म लाना एि अनभि करना आिशयक ह

अनभिातमक आधयातमिाद सस २००० (प ५८ ndash ६५) अनभव ही दसर नाम स परतयावरतन करिया ह और इसका परावरतन करिया को परामाणिकरा-परमाि नाम ददया ह जागकरर सह-असतितव म अनभव हई ह इसी जागर सथिकरर म होन वाली गकरर को परतयावरतन नाम ददया गया ह समपित परतयावरतन दरतन और जञान नाम स परकररकरिर ह जञान और दरतन सवाभाकरवक रप म ओर-परोर रप म वरतमान ह समपित असतितव सतता म सपकत जड़-चरनय परककरर ही सह-असतितव का मल सवरप ह इसका सामानय कलपना हर मानव म होना सभव ह कलपना का मल सतरोर आरा करवचार इचछा का असपषट गकरर रप ह कयोकरक समपित कलपनाए परावरतन म कायतरप रहना दखा जारा ह मानव ही कलपनारीलरा का परयोग कररा ह इस ऐसा भी कहा जा सकरा ह करक हर वयकतकत परकारानतर स कलपनारीलरा का परयोग कररा ह भरकतमर मानव दवारा कलपनारीलरा का सवाधिक परयोग ररीर और इनदरिय सदिकरत क रप म ही सवाभाकरवक ह यह भरम करववररा ह यही कलपनाए चचणिर रप म सपषट होन क ललए रतपर होर ह रभी करवधिवर करवशलरि और करनचिर चचतरि करवचार रप म समभावनाओ को सवीकारना बनरा ह सभावनाओ का लकषय कतपरय हहर लाभ सीमाओ म सीकतमर रहना पाया जारा ह यही भरमातमक कायत सीमा का अथ इकरर ह जागकररपित जीवन चचतरि म यह रथय ससपषट ह करक नयाय िमत सतय उसका साकषातकार बोि अनभव ही अधययन और अनसिान का लकषय और कायत ह इिी कायत रप क आिार पर असतितव और जीवन अविारिा म िाकतपर होना सफल अधययन का दयोरक और कसौटी भी ह इसी क आिार पर सवायतत मानव का सवकषि करनरीकषि और परीकषि होना सपषट हो जारा ह सवायतत मानव ही असतितव म अनभव सहज जागकरर का िारक-वाहक होना सपषट ह इस परकार अधययन सहज रप म जीवन और सह-असतितव म अनभव बोि की अलभवयकतकत और परमणिर होन क िम म आतमा असतितव म अनभर होना जीवन म किीय होना मधयि करिया और मधयि बल समपिरा का सवीकर होना परम रपत होना ह जीवन रचना मधयार सहज मधयि करिया मधयि बल मधयि रकतकत सरलन क अथत म सदा-सदा परयकत रहरा ही ह यही जागर

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मानव परपरा म परमाि ह मधयि करिया समम_य िम स जीवनी िम और जीवन जागकरर िम वयकत होरा ह इसी िम म जागर होना जीवन सहज परवकततत परयास आवशयकरा क योग-सयोग करवधि स समपि होरा ह यही अनसिान रोि और अधययन क ललए भी सयोजक रतव ह यह रतव सदा-सदा जीवन परकररिा म कायतरर रहरा ही ह इसकी परखररा क आिार पर ही अनसिान रोि अधययन सहज हो जारा ह इस परकार यह ससपषट हो जारा ह करक आतमा अधययन करवधि स असतितव म अनभर होरा ह दसरा अनसिान करवधि स भी असतितव म अनभर होना पाया जारा ह ( अनसिान विधि जो शरी ए नागराज न कीया सािना gt समािीgt सयम | अधययन विधि पिक एि वकसी समझ हए वयकती क माधयम स शशकषा-ससकार परापत करना) अनसिान करवधि स भी सवतपरथम असतितव म बोि होना दखा गया ह इसक उपरानत ही आतमा असतितव म अनभर होना दखा गया ह अधययन करवधि स भी यही सथिकरर अथार पहल बोि रदोपरार अनभव होना पाया जारा ह इन दोनो करवधियो म स अधययन करवधि लोकवयापीकरि क ललए कम समय म बोि होन की सथिकरर बनरी ह अनसिान करवधि म परवतत होन क ललए वयकतकत म लकषय सममर णजजञासा का होना अकरनवायत ह जब अधययन करवधि स समपित परशनो का उततर कतमल जारा ह परशन िली ररकत होना उसी िली म समपित उततर िाकतपर होना अधययन और अधयापन का सयोग और फलन ह परशन करवहीन सथिकरर म अनसिान का आिार नही बनरा इस परकार परपरा म सभी परशनो का उततर अधययन करवधि स हर मानव म हर सथिकरर पररसथिकररयो म समपित परशनो का उततर सह-असतितव सहज करवधि स समीचीन ह अनसिान करवधि एव अधययन करवधि स पहल बोि ही होरा ह रदोपरार lsquolsquoबोिrsquorsquo का आतमा म अनभव होरा ह अनभव क उपरानत lsquolsquoअनभव सहज बोिrsquorsquo अधययन एव अनसिान करवधि म एक जसा होरा ह एव एक ही होरा ह इसम मखय रथय यही ह यथाथतरा वासवकररकरा सतयरापित करवधि स अधयापन सामगरी वि परकरिया पररपित रहना आवशयक ह ( अधययन अरथिा शशकषा वििी म) अनसिान क ललय अजञार परशन चचि अकरर आवशयक ह हर अनसिान को अधययन और अधयापन कायत करवधि स लोक वयापीकरि होना सगम हो जारा ह इस परकार अनभव क अननतर ही अनभव lsquoबोिrsquo होना दखा गया ह यह हर वयकतकत म होना समीचीन ह (प १०७ १०८ १०९ इसक उपरानत जागकरर और जागकररपितरा ही मणजलो क रप म दखन को कतमलरा ह यह मलर करवचार चचतरि अविारिा अनभव और चचनतन का ही वभव रपी मानधसकरा क रप म दखा गया ह भरम का समपित सवरप आरा करवचार इचछा (चचतरि) का कतपरय हहर लाभातमक दकरषटयो की करियारीलरा ही ह सवतमानव पीड़ा स मकतकत चाहरा ही ह यही जागकरर सहज अपकषा का सरोर और समभावना ह जीवन सहज करियाकलापो म स नयाय िमत सतय का साकषातकार और दषटा होना और उसका परमाि धसदघ होना ही समपित जागकरर ह दषटापद म होन वाली समपित करियाकलाप जीवन सहज करवधि स जानन-मानन-पहचानन-करनवाह करन क रप म होना पाया गया ह जानन-मानन की समपित वि जीवन जञान सह-असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान ही ह

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अनभव असतितव म ही होना पाया जारा ह अनभव क पहल समझदारी जानन-मानन-पहचानन क रप म होना पाया जारा ह यही अधययनपवतक होन वाला अविारिा ससकार ह इसक पवत रप म करवचार और चचतरि ही रहरा ह यही शरकरर समकरर रबद और चचतरि ह रबद और चचतरि क आिार पर करकरन भी करियाकलापो को मानव सपाददर कररा ह यह सब असथिररा क साथ ही जझरा हआ दखा गया ह असथिररा म भरम ही परिान कारि ह इसीललय ही समरि और चचतरि क उपरानत कही न कही असथिररा-अकरनियरा को परकाशरर कररा ही ह इसी सीमा रक हम इस बीसवी सदी क अर रक झलर आय ह सथिररा की सवीककरर बोि रप म ही होना फलसवरप वयवहार म नयाय-समािान-सतय परमाणिर होना पाया जारा ह ऐसा बोि जानन-मानन-पहचानन का ही महहमा ह यह करिया जीवन म ही जागकरर सहज करवधि स होन वाली वाधिर परकरिया ह असतितव म अनभव सतता म (वयापक म) सपकत परककरर क रप म ही दखा गया ह सतता म सपकत रहन क आिार पर ही करियारीलरा करनयतरि सरलन सरकषि सामय ऊजा सरोर होना दखा गया ह इसीललय परककरर म करनयतरि सरकषि करनररर बना ही रहरा ह अर सतता म करनयतरि सपषट ह (प ७४) असतितव सहज सह-असतितव म जड़-चरनयातमक परककरर करनतय वभकरवर होन का सवरप करिया शरम गकरर पररिाम परकारन सहज करियाकलाप और पररिाम का अमरतव शरम का करवशराम गकरर का गरवय सहज लकषय करनहहर करिया उपयोकरगरा परकरा-उदाततीकरि करनयमो क अनरप समपित भौकररक-रासायकरनक जीवन रपी परककरर म करनतय रचना-करवरचना lsquoतवrsquo सहहर वयविा और उसकी परपरा भल परकार स बोि करान की सहज-करिया समपि करकया जा चका ह इसी िम म शरम का करवशराम गकरर का गरवय रपी परमािो को मानव परपरा म परमाणिर करन की आवशयकरा रहा ह इस सवतसलभ लोकगमय करन क ललए अधययनपवतक जागकरर करवधि और इसक परमाि म बोि परिाली को पहचाना गया यह भी अनभव करकया गया ह करक बोि होना समझदारी का ही दसरा नाम ह अथवा बोि का ही दसरा नाम समझदारी ह ऐस समझदारी अधययनमलक परिाली स अविारिा म िापकरर होना ऐसी अनभव मलक अविारिाओ को अलभवयकत सपरकतरर परकाशरर करन क िम म असतितव म अनभव एक अवशयभावी परकरिया क रप म सपषट हई ह इस िम म असतितव म अनभव करनतय ह यही मानव का परयोजन ह जीवन करनतय ह असतितव सथिर ह इसी आिार पर अनभव और अनभव िम अलभवयकतकत सहहर जागकरर सहज जीवन का गनतवय अथार जीवन म जागकरर पितरा ही जीवन गकरर का गरवय िली होना उसकी करनरनतररा सदा-सदा क ललय बना ही रहना दखा गया इिी आिारो पर lsquoअसतितवrsquo सतता म सपकत जड़-चरनय परककरर क रप म परकररपाददर हई सह- असतितव करवधि स वयाखयाकतयर हई यह महहमा जागकरर पित जीवन सहज अलभवयकतकत ह (प १८३) जीवन जञान सह-असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान रथयो सहज करवधिवर अधययनपवतक बोि होना दखा गया ह ऐस बोि सहज रथयो को उदघादटर करन क िम म और लोकवयापीकरि करन क

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िम म परमाणिर होर ही ह फलसवरप अनभर भी होर ह इस परकार करनतय परमाि और अनभव सहज रप म ही समपि होरा हआ दखा गया ह यही कवलय और जागकरर की महहमा ह (प १५४- १५७) जागकरर करवधि और अभयास असतितवमलक मानव कनदरिर चचनतन जञान दरतन आचरि िरवीकर रप म अधययन गमय होना दखा गया ह जीवन जञान जीवन म समपि होन वाली करियाओ का परसपररा सहज िरव करबनदओ क आिार पर उभय रकतपत करवधि सवत रभ एव समािान स दखा गया अलभवयकतकतया ह जसा मन और रकतपत म सामरसयरा का करबनद करवशलरि रलन पवतक आसवादन क रप म पहचाना गया ह यह सह-असतितव अनभव क पिार करनयम नयाय िमत सतय सहज परयोग म अनभर होन क उपरानत ही साथतक हो पारा ह इसक ललय अथार ऐस अनभकरर क ललय अधययन िम स आरभ होरा ह अधययन अविारिा कषतर का भरर-भरर वरतमान करवधि ह इस करवधि स णजरनी भी अविारिाए अधययन स समबदघ होरा गया उरन ही अविारिा क आिार पर परवकततत सहज नयाय िमातमक और सतय सहज रलन नयाय रलन समपि करवचार क आिार पर करकया गया आसवादन सहहर समपि करकया गया सभी चयन नयाय रप होना दखा गया ह इसी परकार ऊपर कह चचनतनपवतक जब चितरण रलन करवचार आसवादन और चयन करियाए समपि होर ह नयायपवतक वयविा म परमाणिर होना दखा गया अविारिाए सवाभाकरवक रप म ही असतितव सहज होन क आिार पर सह-असतितव रप होन क आिार पर अनभर होना अथार जानना-मानना और उसक रकतपत करबनद को पाना ही अनभव ह जानना-मानना-पहचानना ही अविारिा ह इसम रकतपत करबनद को पा लना ही अनभव ह इस कायत-वयवहार वयविा म वयकत कर दना परामाणिकरा ह अनभव परमाि पित बोि सहहर समपि होन वाल सकलप चचनतन चचतरि नयाय िमत सतय रपी रलन करवशलरि आसवादन सहहर करकया गया समपित अलभवयकतकतया वयविा और समगर वयविा म भागीदारी करनवाह कररा हआ ही दखन को कतमलरा ह इस करवधि स जागकररपित मानव ही असतितव म भरम बनधनो स मकत होना सपषट करकया जा चका ह जागकरर करवधि अधययन रपी सािना करवधि स सवाधिक उपयोगी सदपयोगी परयोजनरील होना दखन को कतमला ह इस करवधि स साधय सािक सािन का सामरसयरा सवय सफरत करवधि स समपि होना दखा गया ह जागकरर क ललय हर मानव सािक ह साधय जागकरर ही ह सािन जागकररगामी अधययन परिाली ह इस िम म परमपरा सािन परकररिा क रप म रन-मन-िन वयविा और समगर वयविा म भागीदारी का परमाि मानवाकाकषा क रप म होरा ही ह इस परकार स साधय-सािक-सािन का सयोग मानवीयरापित परपरा करवधि स सफल होन का सवरप सपषट ह ऐस परपरा क पवत (जस आज की सथिकरर म भरकतमर समदाय परपराए) मानवीयरापित परपरा म सिकतमर होन की कायतपरिाली मददा ह इस िम म अनसिान क अननतर णजरन भी रोिकरा सममर होर जार ह और सममकरर क अनरप करनिा उदगकतमर हो जारी ह और भी भाराओ स सवय सफरत करनिा उदगकतमर होरी ह ऐस ही करनिावान मिावी इस कायत म सलगन ह यही आज की सथिकरर म जागकररगामी अधययन जागकररमलक अलभवयकतकत सहज करवधि एक स अधिक वयकतकतयो म परमाणिर होन का आिार बन चकी ह जागकररपित परपरा म साधय सािन सािक म करनतय सगीर होना दखा गया ह दसर भारा म करनतय समािान होना पाया गया ह

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उललणखर अनभवो क आिार पर समपित जागकरर अपन-आपस जीवन जञान असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान म ही समपित ह इसका अभयास करवधि सवतपरथम अनसिान दसरा अधययन पवतक रोि रोि पवतक अधययन य ही मल अभयास ह कयोकरक अधययन करवधि स ही रोि करवधि स ही अविारिा का सवीकर होना दखा जारा ह अनय करवधि जस उपदर करवधि म भरकतमर होन की सभावना सदा बना ही रहरा ह हर परपरा म अपन ढग की आदर परकररिा िाकतपर रहरा ही ह वह अधययवसाकतयक (अधययनगमय) होर रक उपदर या सचना मातर ह परपरा म णजस आरय क ललय आदर-करनदर ह वह रकत सगर-वयवहार सगर बोि होन की परकरिया परिाली पदघकरर ही अधययन कहलारी ह रकत का साथतक सवरप करवजञान सममर करववक और करववक सममर करवजञान होना दखा गया परयोजन करवहीन उपदर परयोग वह भी वयवहार परमाि करवहीन उपदर रब रक ही रह पारा ह जब रक रकत सगर न हो रकत का रातपयत भी इसी रथय को उदघादटर कररा ह रकतपत क ललय आकरति परिाली (भारा परिाली) ऐस रकत सहज रप म ही करवजञान क आशरर करवशलरिो को करववक स आशरर परयोजनो का परमाणिर होना सहज ह हम इस बार को समझ चक ह करक परयोजनपवतक जीन क ललय परमाणिर होन क ललय समािान समशदघ क रप म सह-असतितव दरतन क ललय रकत सगर अधययवसाकतयक करवधि का होना आवशयक ह अधययन करियाकलाप रकतसगर परयोजन परयोजन सगर मानवापकषा मानवापकषा सगर जीवनापकषा जीवनापकषा सगर सह-असतितव सह-असतितव सगर करवकास िम और करवकास करवकासिम और करवकास सगर जीवन-जीवनी िम-जागकरर िम-जागकरर एव इसकी करनररररा सह-असतितव सहज लकषय ह असतितव सहज लकषय म भी मानव ही अकरवभाय ह और दषटा ह इसललय मानव असतितव सहज सह-असतितव करवधि स परकरा-उदाततीकरि परकरा-करवकास परकरा-जागकरर सतरो क आिार पर सह-असतितव सहज अधययन सलभ हआ ह समपित असतितव ही वयविा क सवरप म वरतमान होना समीचीन ह आज भी मानव क अकररररकत सभी अविा म (पदाथत पराि जीव अविा) अपन-अपन तव सहहर वयविा म होना ददखरा ह इसी िम म मानव भी अपन मानवतव सहहर वयविा और समगर वयविा म भागीदारी सहज अपकषा को साथतक बनान क िम म ही जागर होना पाया जारा ह हम यह पार ह करक जागकरर सतर वयाखया और परमाि सवतरभ क सवरप म ही वभकरवर होरा ह इस आरय को लोकवयापीकरि करना भी सवतरभ कायतिम का एक बकरनयादी आयाम ह इसी सतयरावर lsquolsquoअनभवातमक अधयातमवादrsquorsquo एक परिकरर ह हर मानव अपन कलपनारीलरा कमतसवरतररा पवतक ही हर परिकररयो को परखना (परीकषि करना) सवीकारना या असवीकार करन क कायतकलाप को कररा ह

अनभि दशशन सस २०१२ दधदवतीय (अधयाय -३)

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 16

सतर छद िाकय शबद क दवारा वकरया मातर का िणशन ह सारथ ही जञानानभवत क ललए उपदश पिशक इवगत भी ह बरहम सहज िणशन पारगामी वयापक और पारदशीयता क रप म ह lsquolsquoयहrsquorsquo किल भास आभास बोि तरथा अनभिगमय ह इसका बोि मानि की कषमता योगयता पातरता पर आिाररत ह परतयाितशन पिशक परापत वयजनाएा जागवत क ललए गणातमक गवत ह गणातमक वयजना स सबोि सबोि स सससकार सससकार स गणातमक सिदना (सजञानीयता पिशक सिदना वनयदधतरत) रहना गणातमक सिदना स सतय सकलप तरथा सतय सकलप स गणातमक वयजनाओ की वनरनतरता ह सथसथवत एि वकरया सकत-गरहण कषमता ही वयजनीयता ह सकत-गरहण -परवकरयाबदघ जञान परापय को पान उस सरधकषत रखन क कायशकरम म अलभवयकत ह परापत क अनभि क करम म भास-आभास एि परतीवत ही जञापक (सतयाततपत होना) ह मानि दसरो क ललए भी सकत परसाररत करता ह सकत-गरहण-वकरया ही अनमानारोपण तरथा अनमानाकर भी ह जो सकलप इचछा वििार ि आशा ह अधयाय-७ अलभवयजना म गणातमक विकास का सकत वयजना म उपयोवगता का सकत ह अभयदय पराय (अभयदय जसा) ही अलभपराय ह खजसम अभयदय का भास या आभास होना आिशयक ह

कमशदशशन सस २००४ (प ८६ ८७) परमाण म विकास का तातपयश परमाण क गठनपणश होन स ह|मानि म एक बात की िाहत बनी ह ndash यरथासथसथवत िभि उसकी वनरतरता ndash यह सवाभाविक रप म सवीकत ह| परमाणओ म अशो का घटना-बढ़ना पररणाम क सवरप म हम समझ िक ह| पररणाम का अमरतव उसकी वनरतरता की अपकषा मानि म ही कलपना भास आभास परतीवत क रप म पाया जाता ह

प २० २३ (शासतराधययन की महततव) सदशासतराधययन क वबना सतय कामना एि परितततत सतय कामना क वबना सतय-परम सतय-परम क वबना सतय-वनषठा सतय वनषठा क वबना सतय परवतषठा सतय-परवतषठा क वबना सतय परतीवत सतय-परतीवत क वबना सतयानभाि सतयानभाि क वबना सद शासतर का उदघाटन तरथा सदशासतर क उदघाटन क वबना सद शासतर का अधययन पणश और सारथशक नही ह| मानि को जीिन की परतयक सतिचरथ म शानतनत एि सथसथरता की आिशयकता ह| सदशासतर सिन मनन एि आिरण स वयकती तरथा पररिार म शानतनत तरथा सथसथरता पा जाती ह|

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(सदशासतर सिन = शासतराधययन स शरिण | मनन एि आिरण अभयास-अधययन करम म समपणश मनन परवकरया)

(प ९७ ९८)

सहअसतितविादी विधि स हर मानि मानितव सहहत वयिसथा और समगर वयिसथा म भागीदारी करन योगय इका ह इसम मखय मददा यही ह - सवय को सवय क ललय रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क सयकत रप म होन को सवीकारन की आिशयकता ह जीिन वकरया की महहमा और मानि परमपरा म इसकी आिशयकता धयान म रहना अवत आिशयक ह तभी मानि शोि क ललए ततपर होना पाया जाता ह ऐसी ततपरता जागवत सहज विधि स सिशशभ क अरथश म परिावित होना होता ह तभी सिशमानि समािान पिशक वयकत होन समझदारी पिशक हर पररिार समािावनत और सखी होन की सथसथवत सपषट हो जाती ह फलसवरप समशदघ अभय सहअसतितव परभावित होन का सौभागय उदय होता ह यही मखय वबनद ह सिशशभ का परमाण भी यही ह कयोवक समािान समशदघ पिशक ही मानि सख शानतनत का अनभि करता ह इसी करम म समािान समशदघ अभय सहअसतितव पिशक आननद अपन आप म समपणश होना पाया जाता ह इस ढग स मानि लकषय सारथशक होन की सथसथवत म जीिन लकषय (सख शावत सतोष आननद) सारथशक होता ही ह जीिन लकषय और मानि लकषय सारथशक होना ही अधययन और अधयापन की सािशभौमता ह ऐस लकषय क सारथ मानि परमपरा अपन आप म सवय को पहिानन और समपणश मानि को पहिानन का सतर और वयाखया बन जाता ह परमाण क रप म वयाखया समझ क रप म सतर होना पाया जाता ह यह वनयवत सहज विधि स समीिीन रहना पाया जाता ह वनयवत विधि का तातपयश विकासकरम विकास जागवत करम जागवत ह दसर विधि स भौवतक रासायवनक रिना शरीर और जीिन वकरयाकलाप का सयकत अलभवयततकत समपरषणा परकाशन क रप म ह

मानि लकषय - समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करन और उस आिार पर जीिन लकषय (मनसवसथता) - सख शानतनत सतोष आननद को सारथशक बनान क अरथश म मानि शशकषा ससकार की आिशयकता सदा-सदा स बनी ह ह इसकी सफलता ही मानि कल का सौभागय ह

lsquoमानि कल और रासायवनक-भौवतक वकरयाकलाप का सारथशक परमाणrsquo

शशकषा की समपणश िि सहअसतितव रपी असतितव म रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म ही ह इसम स इनक अविभाजय रप म मानि परमपरा का समपणश वकरयाकलाप वयिहार सोि वििार समझ ह समझ क अरथश म ही हर मानि का अधययन करना होता ह समझ अपन म जानना मानना पहिानना वनिाह करन क रप म परमाखणत होती ह इसी अरथश म समपणश अधययन सारथशक होना पाया जाता ह

असतितव म समपणश इका याा रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म पररलधकषत ह ही (प १०२) वनशचयता सथसथरता सिशमानि म चिराकााकषा क रप म बनी ही ह सहअसतितव रपी असतितव जञान और सवीकवत का आिार ह यह सिशमानि म सिकषण पिशक विदधदत होन िाला तथय ह सवय को जाािन स भी

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यही सपषट होता ह हम सब सथसथरता ि वनशचयता को ही सवीकार करत रह ह न वक असथसथरता अवनशचयता को सथसथरता क सहज आिार पर ही वनशचयता का होना सवभाविक ह (प ११५) इस हम मानि को अचछी तरह स समझन की आिशयकता ह और अनशीलन पिशक सरकषण सििशन विधि स सवय को वयसथसथत कर लन की आिशयकता ह मानि क वयिसथसथत होन क मल म जञान विजञान वििक का एक सगीतमय कायशकलाप सपषट रहन स ह यही कायश-कलाप भाषा कायश-वयिहार म वनयोखजत होकर परयोजनो को परवतपादधदत करता ह मानि का परयोजन समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करना ही ह (प १२२ १२३)

( अनभि मलक वििी स

यरथारथशता िािविकता सतयता का बोि रपी बशदघ की सथसथवत उस परकाशशत करन की परितततत क रप म सकलप ही गवत ह नयाय िमश सतय क साकषातकार करन क रप म चितत सथसथवत और इसका चितरण क रप म चिदधतरत हो पाना गवत ह चितत वकरयाकलाप का समपणश चितरण तलन क रप म अरथात नयाय िमश ि सतय रप म सपषट होना ितततत सहज सथसथवत ह ितततत म समपनन हय तलन का विशलषण विधि म विशलततषत होना ि समपरततषत होना ितततत सहज गवत ह विशलषण क सपषट अरथिा सार रप म मलय सवीकत होता ह इस आसवादन करना ही मन की सथसथवत ह इसकी सारथशकता क ललय ियन वकरया को समपादधदत करन क रप म गवतत होना हर मानि म सिधकषत ह इस ढग स मानि भी सभी परकार स सथसथवत-गवत म होना सपषट होता ह इस परकार मानि समझदारी स समपनन होन क उपरानत परमाखणत होना सवभाविक होता ह इसका मतलब यही हआ हम जब तक परमाखणत नही होत तब तक परमाखणत होन क ललए जञानाजशन वििकाजशन विजञानाजशन कर लना ही शशकषा और शशकषण का तातपयश ह इसक ललए सह असतितविादी शशकषा करम समीिीन ह अतएि समझदार मानि होन क ललए धयान दन की आिशयकता ह

सह-असतितविादी वििार जञान वििक विजञान को समझना ही समझदारी ह

ldquoअधययन रपी उपासनाrdquo (अभयास) - कमशदशशन सस २००४ प ४९ ५०

मानि जीिन म उपासना एक महतवपणश भाग ह| उपासना ही मल परिततततयो का पररमाजशन एि पररितशन परवकरया ह| यही ससकार एि सवभाि पररितशन भी ह| ( उपासना = उपायो सहहत लकषय पती क ललए कीया गया वकरयाकलाप) उपायपिशक सहिास पाना ही उपासना की अििारणा ह खजसक ललए पररशरम (पररमाजशन शरम) एि अभयास ह| अभयास एि पररशरम स ही सथल सकषम कारण की सथसथवतितता सपषट ह| खजसस ततसबिी पदारथश वनयवत-

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करम शततकत महहमा विभती एि वनयम सबिी अनसिान (अनगमन पिशक अििारणा) शोि परधसदध ह| अनसिान भौवतक बौदधदधक तरथा आधयातमतमक भद स ह| अनसनधान परवकरया मनन चिितन सकलप एि अनभती क रप म परतयकष ह|

सथल सकषम कारण (दषटा) का तातपयश दखन समझन परयोग करन वयिहार करन एि अनभि करन योगय कषमता क सपनन होन स ह |

परिततततयो का पररमाजशन ही मानि जीिन का कायशकरम ह| मानि म पणशता एि पररमाजशनशीलता की अपकषा परतयक सथसथती म पा जाती ह| पणशता ही पादधडतय ह| पादधडतय स अधिक जञान एि वनपणता कशलता स अधिक वयिहार एि उतपादन नही ह| पररमाजशनशीलता उतपादन ि वयिहार म पा जाती ह| पादधडतय परबदधता परबदधता ही शशकषा एि वयिसथा ह| परबदधता स पररपणश होत तक उपासना अतयत उपयोगी ह|

प ५६ स ७२ (इनम स कछ ही िाकयो को ललया गया ह| समपणश क ललए पिक दख) उपासना स सािशभौततमक मलयो का अिगाहन करना ही परिान उपादयता ह| समि उपासनाओ क मल म लकषय समय ह िह अखड समाज सािशभौम वयिसथा ह| िह किल सिश

मगल ही ह| कयोकी सिश मगल की कामना क वबना सवय का मगल धसदध नही ह| अनय कामय कामनाए किल मगलमयता की भास परदायी ह न की अनभिदायी| इसललए सिशमगल

कामनारपी कायशकरम तःरथा उसकी अनसरण योगय कषमता पयत मानि परयास करन क ललए बाधय ह| सही क परती भरततमत रहना ही मत सपरदाय एि िगश का कारण ह|

मत सापरदाततयक िगीयता म आचरथिक िगीयता एि आचरथिक िगीयता म मत-सापरदाततयकता समा ह ह|

इसका वनराकरण सपषटतया सािशभौततमक रप म पा जान िाली मानिीयतापणश पदधवत स ldquoवनयम-तरयrdquo (बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक) क आिारपिशक ही आचरथिक एि सापरदाततयक िगश-भािनाओ स मकत होन की समभािना एि मकती ह| इसी म समि िगश-भािना विलीन हो जाती ह| इसीललए ndash

उपासना की उभय पदधवत का अभीषट समझदारी जागवत पिशक सारथशक होता ह जो जागरण ह| मानि म शततकतया वकरया इचछा एि जञान शततकत ही ह जो उनकी अहशताए ह| अहशताए परतयक इका

की जागवतशीलता जागवत पर आिाररत ह| शबद सपशश रप रस गिनतियो दवारा शततकतयो का अपवयय न होना सारथ ही सदवयाय होना ही

वकरया शततकत की जागवत ह| सदवयय एि अपवयय का वनिारण मानिीयता क सीमा म ldquoवनयम-तरयrdquo क रप म ह |

अतकरण मल परितताा अरथात आशा वििार इचछा ि सकलप का अपवयय न होना ही सदवयय ह| यही इचछा शततकत का जागरण ह|

समयक-बोि एि अनभती पणशता ही जञान परकटन कषमता ह| यही जञानशततकत का जागरण अरथिा पणश जागरण ह| यह ldquoजागवत-तरयrdquo मानिीयता एि अवतमानिीयता म परतयकष ह| यही मानि जीिन की िरमोतकषश

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उपलसतबध ह| सशकत उपासना क उपादयता यही ह यही समगर मानि की कामना ह| यही सिशमगल ह| इसीललए

जीिन-जागवत का परतयकष सवरप ही वििक पणश विजञान का परयोग ह यही सतकशता अखणड सामाखजकता परबदघता वनविि षमता सह-असतितव शशकषा विधि वयिसथा सभयता ससकवत बौशदघक समािान भौवतक समशदघ और जीिन जागवत की वनरनतरता ह

पणश जागवत पयशनत परतयक मानि इका परयास एि उपासना क ललय बाधय ह इसी क फलसवरप मल परिततततयो का पररमाजशन होता ह खजसक कारण विशशषट और शशषट मानधसकता एि वििार चिनतन-बोि कषमता अनभिपणशता परतयकष होती ह यही शरषठ उपासना की उपलसतबधयाा ह

इसललय समान क सारथ वयिहार करन क ललय बाधय हआ ह यही सामाखजकता की बाधयता ह यही मानि जीिन की गौरि और गररमा ह यही गररमा समान क सारथ वयिहार अधिक जागवत क ललय अभयास करन क ललय पररणा ह यही िािविक उपासना ह

वििक अरथात मानि लकषय और िरागय अरथात समशदघ ही उपासना का परतयकष फल ह खजसम सामाखजकता सवाभाविक रप स समाहहत रहती ह

िरागय का पराितशन ही असगरह (समशदघ) उदारता एि दया ह भौवतक समशदघ म उदारता एि दया क मौललक मलयो का अनरजन ही सामाखजकता का पराण ततव ह यही सामाखजक सगीत ह इसी क ललय मानि तततषत ह वििक ही बौशदघक समािान एि सामाखजक मलयो को वनिाह पिशक परकट करता ह इसललय

वििक ि िरागय ही परोकष जञान (सदवयिहाररक जञान) का परिान लकषण ह अनभि ही परोकष जञान की अनतनतम सथसथवत ह इसक पिश अनमान अधिकार ही परधसदघ ह ििसथसथवत ििगत सथसथवत सतय म ही अनभि ह

परोकष जञान क वबना वनतयावनतय यकतायकत नयायानयाय िमािमश सतयासतयइषटावनषट दषटादषट तरथा परोकष जञानाधिकार धसदघ नही होता ह

वनतयावनतय जञानाधिकार क वबना मनषय म सविमश क परवत वनषठा नही पा जाती ह मानि िमश ही सख सख ही नयायपणश आिरण नयायपणश आिरण ही मानिीयतापणश सीमा एि lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का पालन ह यही मनषय का सविमश ह मानि सख िमी ह

मयादा विहीन इका नही ह जस जीिो म सवभाि मयादा िनसपवतयो म गण मयादा एि पदारथो म रप मयादा-भग नही होती ह यही उनकी गररमा ह इसी परकार मानि म सख ही िमश ह िमश ही मयादा ह यही उनकी गररमा एि विशवास ह मयादा का परतयकष रप ही विशवास ह

lsquolsquoविशवासविहीन समबनध एि समपकश म सख नही हrsquorsquo समबनध एि समपकश विहीन मनषय नही ह यही बाधयता सविमश क ललय ह इसक पालन म जो अकषमता अयोगयता एि अपातरता ह - िही दख कलश समसया और अजागवत ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 21

सविमश म समपननता एि पालन करन योगय कषमता योगयता एि पातरता स पररपणश होत तक जञानाजशन करन क अरथश म अधययन रपी उपासना का अभाि नही ह

मानि क सविमश की सीमा म ही मत समपरदाय िगश वतरोहहत हो जात ह यही समरथश उपासना की परतयकष गररमा ह lsquolsquoयही मागललक हrsquorsquo साधय सािक सािन इन तीनो का उपासना म समाहहत रहना अवनिायश ह इनकी एक सतरता ही उपासना की सफलता ह अनयरथा असफलता ह परतयक सथसथवत म परापत शततकत ि सािनो का सदपयोग करना ही उसकी अवगरम जागवत ह यही उपासना ह

इनतिय कायशकलाप तरथा इनतियो का कायशकषतर ही अपरोकष जञान की सीमा ह इस वयापार म ितविि षय सीमानतिती धसशदघयाा ह इसक अवतररकत और उपलसतबधयाा इसम नही ह

विषयो की सीमा म मनषय सीततमत नही ह कयोवक उसम िार आयाम परधसदघ ह

मनषय ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत समपनन होन क ललय बाधय ह यही आिशयकता अिसर सभािना एि वयिसथा ह

सयमतापिशक ही मनषय क दवारा परतयक पररपरकषय म वकय गय वकरयाकलाप म स गररमापणश िभि परकट होता ह जस-

सतयबोि सहहत सतय बोलन का अभयास करन स भय ि अविशवास की वनितततत हषश तरथा उतसाह का उदय होता ह

विशव क परवत मलय भाि की परवतषठा स इषट और सािक क मधय विषमता का अभाि होता ह

शबद क अरथश अरथात मनतरारथश का तदरपतापिशक समरण करन क अभयास स उसका अरथश एि सवभाि गमय होता ह सभी सारथशक शबद मनतर ह

अधिक जागत म समपशण स अलभमान ि अहकार का उनमलन तरथा विदया ि सरलता का उदय होता ह ( अधिक जागत = समझान िाला परमाखणत वयततकत गर)

शरीर सिदना सयत रहन स मन की पवितरता मन की पवितरता स मनोबल का लाभ होता ह

सव-शरीर मोह नषट होन स ससार क परवत मोह दर होता ह सिशशभरपी आपत कामना पणश बशदघ स ही विशव क परवत उदारता दया कपा करणा का परसिन तरथा विशव की आिारभत सतता म जञान एि अनभि होता ह

जञान विजञान वििक रपी सवतवहीनता ही असयमता मनोदौबशलय मल परविततततयो की अपररषकवत राग मोह लोभ अवििक अहकार अलभमान दहातमिादी परितततत दरािार सघषश असह-असतितव सशकता दवष तरथा तपोहीनता ह

सयमता क वबना बौशदघक मल परिततततयो की पररषकवत बशदघबल सामाखजक मलयो की अनभवत ितनय वकरया का दशशन समािान और सयमता धसदघ नही होती ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 22

उपासना क ललय िातािरण का महतव अपररहायश ह खजसम स मनषय कत िातािरण ही परिान ह जो शशकषा ि वयिसथा क रप म ही ह

मानिीयता की सीमा म वयिहार lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का आिरण ही वयततकततव ह ऐस वयततकततव क वनमाण म सवकरय योगदान ही कततशवय ह यही परषारथश ह यही परबदघता ह

आशा भद स उपासना उपासना भद स अनभि अनभि भद स अनमान अनमान भद स उपासना भद ह यही उपासना म िविधयता का कारण ह यह िविधयता सािशभौम आिरण की सीमा म विलय होन क ललय बाधय ह

मानि क ललय सहज समरथश उपासना एक अवनिायश कायशकरम ह जो अमानिीयता स मानिीयता मानिीयता स अवतमानिीयता की परवतषठा सथाततपत करती ह

सह-असतितव म अनकषण-विकषण-ितततत स सहजाितततत होती ह

कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ही अनकषण-विकषण ितततत ह

अनकषण का तातपयश परतयक कषण म लगातार सह-असतितव चिनतन वििार करम म परमाखणकता का सहज परमाण परित हो जाता ह यही सहजाितततत ह

सतता म समपकत परकवत की समपकतता का जञान ही (पणश-दशशन) कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ह यही भरततमत भाि ि अभाि का वतरोभाि ह यही सहज परवतषठा ि अिसथा ह

सतता म समपकत परकवत का जञान न होन स और अनभिमलक जञान न होन स भय और परलोभनिश समि भरममलक कायश-वयिहार सोि-वििार को बनाय रखता ह यही समपणश कलश का कारण ह

काल वकरया की अिधि ह इसी अिधि म आरोततपत वििार ि इचछा ही असहज एि वनरारोततपत वििार ि इचछा ही सहज ह

मानि इका म ही जागवत क करम म भी वनरारोपण कषमता पा जाती ह भरमिश आरोपण होता ह

जो जसा ह उसस अधिक कम अरथिा नासमझना ही आरोपण ह यही अजञान ह यही अकषमता ह यही भरम ह

सतता म समपकत जड़-ितनयातमक परकवत की सथसथवत-शीलता ि सतता सहज पणशता क समबनध म ही आरोप या वनरारोण वकरया समपनन होना पाया जाता ह

परतयक इका म रप गण सवभाि एि िमश समाहहत ह यही उसकी कायशितता ह इसी की गणना पररमाण परयोजन जञान ही परकवत क परवत वनभरमतापणश कषमता का दयोतक ह यही परमाण ह यही सहजता ह

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समपणश वकरयाय मलत रप और शबद भद म दषटवय ह

परकता क वबना इका म अवगरमता नही ह

पणशता पयशनत इका परकता उपयोवगता क ललए परितत ह

परकता ही इका म हरास ि विकास क लकषणो को परकट करती ह यही परिान उपादयता भी ह

इका म परकट होन िाल शबदादधद गण ही सापकष शततकतयाा ह गणविहीन इका नही ह इसललय

मनषय म सहज कामना का अभाि नही ह सहजता ही िमश ह यही सख शानतनत सतोष एि आननद ह यही िारणा को सपषट करता ह जो परतयकष ह

परतयक कमश-फल ही मनषय क सख का पोषक ि शोषक धसदघ हआ ह

सतय और सतयता क अनभि-करम म वयििान नही ह कयोवक अनभिकरम-वयिसथा सघन ह जागवत की कदधड़याा सघन ह इसललय-

सहजता आरोप स मकत ह आरोप ही नयनावतरक मलयाकन ह सवय की नयनावतरक मलयाकन वकरया ही असहजता ह

सवय का मलयाकन lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म होता ह

lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म न हो ऐसा मनषय इस पथवी पर नही ह

िमश का वियोग नही ह कयोवक यह िारणा ह इसका परतयकष रप ही मानिीयता एि अवतमानिीयता पणश आिरण ह जो सहजता का परिान लकषण ह इसललय -

अमानिीयता पणश आिरण ही असहज ह इसललय

परकवत अपन म समपणशता क सारथ सीततमत ह यही अिधि ह इसललय पणश म समायी ह यही पणश म समपणशता सहज सह-असतितव ह यही समपणशता का वनतय ितशमान और जञानािसथा क मानि म पणशता का परसि ह यही जागवत क ललय बाधयता ह

मनषय क बौशदघक कषतर म पायी जान िाली अनािशयक कलपनाओ का वनराकरण ही दशशन-कषमता म गणातमक पररमाजशन ह यही गणातमक ससकार-पररितशन शशकषा एि जीिन क कायशकरम का योगफल ह

दशशन-कषमता का उतकषश ही अनकषण विकषण ह यही मधयसथ वकरया की कषमता ह मधयसथ वकरया ही दषटा ह

मधयसथ वकरया का िरमोतकषश ही सम ि विषम वकरया का पणश वनयतरण ह यही कषमता कषण-कषण मधयसथ वयििान स मततकत ह

ससकार पिशक ही बौशदघक वयिसथा-परवकरया -कषमता क आनषवगक ह मनषय सहज ऐषणा एि विषयो की सीमा म परितततत ि वनितततत पिशक वयि होना पाया जाता ह जो परतयकष ह

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आतमा (मधयसथ वकरया) क आनषवगक बौशदघक परवकरया ि वयिसथा म सतय-सकलप एि सतय-कलपनापणश मानधसकता की सथसथवत पा जाती ह जो परधसदघ कमश उपासना जञान पणश ह यही कषमता दि ि दधदवय मानिीयता को परकट करती ह यही पणश जागवत ह

ऐषणासकत बौशदघक वयिसथा म मानिीय तरथा दि मानिीय सवभाि परकट होता ह उसी क अनरप म मानधसक िातािरण की सथसथवतशीलता ह ऐसी कषमता ही सामाखजक ितना एि सतकशता स पररपणश पायी जाती ह

विषयासकत बौशदघक वयिसथा ि परवकरया म अमानिीयतापणश आिरण समपनन होता ह जो पाशविकता तरथा दानिीयता क रप म दषटवय ह इनम उसी क योगय मानधसकता पा जाती ह यही लपत-सपत कलपना का कारण ह यही अजागवत तरथा अपणश सतकशता का दयोतक ह

शरय (जागवत) खजजञास होन पर ही लपत-सपत कलपनाय पररमाखजि त होती ह फलत दानिी ि पाशिी परिततततयो स उदासीनता सथसथर होती ह सारथ ही वििकोदय होता ह

शरय खजजञासा का उदय सव-ससकार विधि-विहहत अधययन तरथा उसक अनकल िातािरण म होता ह

विधि-विहहत-अधययन वनपणता कशलता ि पादधडतय ही ह

अधययन एि िातािरण ही ससकार पररितशन क ललय समरथश वयिसथा ह खजसका गणातमक पररितशन ही आतमबोि क ललय खजजञासा ह

आतमबोि ही सतय खजजञासा का परिान लकषण ह इसललय- अििारणा ही अनगमन तरथा अनशीलन क ललय परितततत ह जो शशषटता क रप म परतयकष होती ह परगवत क ललय अििारणा अवनिायश ह जागवत क ललय अििारणा एि हरास क ललय आसततकत परधसदघ ह यही करम स वनितततत ि परितततत ह अििारणा ही सदधदविक ह सदधदविक सवय म सतयता की विििना ह जो सपषट ह मलत यही शभ एि मागलय ह अनभि की अििारणा सतय बोि क रप म अििारणा (समयक-बोि) ही सतय-सकलप ह यही परािवति त होकर शभकमश उपासना तरथा आिरण क रप म परतयकष ह इसी का पररिवति त मलय ही िीरता िीरता उदारता दया कपा और करणा क रप म परतयकष ह सतय म ही समयक-बोि होता ह असतय ही कलपना एि भास होता ह हीनता दीनता और कररता स यकत कमश अशभ होता ह सव-मलय ही परितततत और वनितततत का िशश ह इसललय असतय अलभमान तरथा दपश स मकत सतय सरलता सहजता तरथा सौजनयता स यकत कमश ि उपासना शरय कारक ह

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सतय कामना की वनरनतरता स लकषय की अििारणा होती ह जञान म ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत परतयकष ह जञान वििक सममत विजञान ही ह जो पणश ह सतय और सतयता म दढ़ता ही शरयमय जीिन ह सतयानभवत ही सबका अभीषट ह शरीर स समपनन होन िाल समि वकरयाओ का सिालन मन ही मिस दवारा करता ह मिस स सभी नादधड़याा वनयदधतरत ह शबद का मल रप मन ही ह मिस पर मन आसवादन एि सवागत भािपणश तरगो का परसारण सिालन वनयतरण करता ह उसक मल म शबद ही ह जागवत की ओर गवत हत वनयतरणातमक शबद ही मतर ह लकषय-पराततपत-योगय-करम परवकरया ही वनयतरण ह शबद म जो भाि (मलय) ह िही उसका अरथश ह सारथशक शबदो का अरथश ही जागवत की ओर गवत ह कयोवक शबद का अरथश असतितव म िि ह भाि म जो उपयोगपणश अवनिायशता ह िही उसका महतव ह उपयोग पणश अवनिायशता म जो वनचशचत दधदशा ह िही उसकी दढ़ता ह यही समयक सकलप ह समयक सकलप म जो पणशता ह िही अनभि ह जो करम स मन ितततत चितत बशदघ और आतमा म पा जान िाली सससकत मौललक वकरयाय ह भाि का तातपयश होन स ह शततकत-तरय-जागरण (इचछा-शततकत वकरया-शततकत तरथा जञान शततकत जागरण) क वबना तयाग (भरममततकत) और परम परमाखणत नही होता

मनन परवकरया म सव-मलयाकन

सव-मलयाकन मनन धयान ldquoअपराि क अभाि म दयापणश आशा का पराितशन अनयाय क अभाि म नयायपणश वििार का पराितशन आसकती क अभाि म समािान पणश इचछा का पराितशन तरथा अजञान क अभाि म जञानपणश सकलप का पराितशन होता ह| अत अपरािहीन वयिहार क ललए वयिसथा का परभाि अनयायहीन वििार क ललए अखणड समाज का परभाि तरथा अजञान रहहत बदधदध क ललए अतवनि यामन अरथिा धयान आिशयक ह खजसस ही परतयाितशन वकरया सफल ह| धयान का अरथश समझन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना और समझन-अनभि करन क

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उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

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मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

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(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 29

सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 30

प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 31

अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 32

३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 33

(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 34

उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

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तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

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मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 11

असतितव विकास जीिन जीिन जागवत रासायवनक-भौवतक रिना-विरिना समपणश मानि क ललए समझन-समझान की िि ह सीखन की जो कछ भी परमाखणत िि ह यह मानि म मानिीयतापणश आिरण कमश अरथात वयिसाय म सवािलमबन वयिसथा म भागीदारी मानिीयता पणश आिरण का अभयास परामाखणकता सहज अलभवयततकत ह सारथ ही सािशभौम वयिसथा और अखड समाज म वनषठा ह य समपणश खजजञासाए वयािहाररक रप म िररतारथश होती ह परौढ़ता की पराकाषठा म स क ललए सवानशासन की खजजञासा का होना पाया जाता ह खजजञासा मानि सहज परकाशन ह

प १०६ जीिन को तातवतवक रप म समझन की खजजञासा हो ऐसी सथसथवत म परमाण म होन िाली विकास परवकरया उसक सकरमण िभि को भी जो ितनय इका क रप म परवतवषठत ह को सहज ही अधययन अििारणा म लाना एि अनभि करना आिशयक ह

अनभिातमक आधयातमिाद सस २००० (प ५८ ndash ६५) अनभव ही दसर नाम स परतयावरतन करिया ह और इसका परावरतन करिया को परामाणिकरा-परमाि नाम ददया ह जागकरर सह-असतितव म अनभव हई ह इसी जागर सथिकरर म होन वाली गकरर को परतयावरतन नाम ददया गया ह समपित परतयावरतन दरतन और जञान नाम स परकररकरिर ह जञान और दरतन सवाभाकरवक रप म ओर-परोर रप म वरतमान ह समपित असतितव सतता म सपकत जड़-चरनय परककरर ही सह-असतितव का मल सवरप ह इसका सामानय कलपना हर मानव म होना सभव ह कलपना का मल सतरोर आरा करवचार इचछा का असपषट गकरर रप ह कयोकरक समपित कलपनाए परावरतन म कायतरप रहना दखा जारा ह मानव ही कलपनारीलरा का परयोग कररा ह इस ऐसा भी कहा जा सकरा ह करक हर वयकतकत परकारानतर स कलपनारीलरा का परयोग कररा ह भरकतमर मानव दवारा कलपनारीलरा का सवाधिक परयोग ररीर और इनदरिय सदिकरत क रप म ही सवाभाकरवक ह यह भरम करववररा ह यही कलपनाए चचणिर रप म सपषट होन क ललए रतपर होर ह रभी करवधिवर करवशलरि और करनचिर चचतरि करवचार रप म समभावनाओ को सवीकारना बनरा ह सभावनाओ का लकषय कतपरय हहर लाभ सीमाओ म सीकतमर रहना पाया जारा ह यही भरमातमक कायत सीमा का अथ इकरर ह जागकररपित जीवन चचतरि म यह रथय ससपषट ह करक नयाय िमत सतय उसका साकषातकार बोि अनभव ही अधययन और अनसिान का लकषय और कायत ह इिी कायत रप क आिार पर असतितव और जीवन अविारिा म िाकतपर होना सफल अधययन का दयोरक और कसौटी भी ह इसी क आिार पर सवायतत मानव का सवकषि करनरीकषि और परीकषि होना सपषट हो जारा ह सवायतत मानव ही असतितव म अनभव सहज जागकरर का िारक-वाहक होना सपषट ह इस परकार अधययन सहज रप म जीवन और सह-असतितव म अनभव बोि की अलभवयकतकत और परमणिर होन क िम म आतमा असतितव म अनभर होना जीवन म किीय होना मधयि करिया और मधयि बल समपिरा का सवीकर होना परम रपत होना ह जीवन रचना मधयार सहज मधयि करिया मधयि बल मधयि रकतकत सरलन क अथत म सदा-सदा परयकत रहरा ही ह यही जागर

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 12

मानव परपरा म परमाि ह मधयि करिया समम_य िम स जीवनी िम और जीवन जागकरर िम वयकत होरा ह इसी िम म जागर होना जीवन सहज परवकततत परयास आवशयकरा क योग-सयोग करवधि स समपि होरा ह यही अनसिान रोि और अधययन क ललए भी सयोजक रतव ह यह रतव सदा-सदा जीवन परकररिा म कायतरर रहरा ही ह इसकी परखररा क आिार पर ही अनसिान रोि अधययन सहज हो जारा ह इस परकार यह ससपषट हो जारा ह करक आतमा अधययन करवधि स असतितव म अनभर होरा ह दसरा अनसिान करवधि स भी असतितव म अनभर होना पाया जारा ह ( अनसिान विधि जो शरी ए नागराज न कीया सािना gt समािीgt सयम | अधययन विधि पिक एि वकसी समझ हए वयकती क माधयम स शशकषा-ससकार परापत करना) अनसिान करवधि स भी सवतपरथम असतितव म बोि होना दखा गया ह इसक उपरानत ही आतमा असतितव म अनभर होना दखा गया ह अधययन करवधि स भी यही सथिकरर अथार पहल बोि रदोपरार अनभव होना पाया जारा ह इन दोनो करवधियो म स अधययन करवधि लोकवयापीकरि क ललए कम समय म बोि होन की सथिकरर बनरी ह अनसिान करवधि म परवतत होन क ललए वयकतकत म लकषय सममर णजजञासा का होना अकरनवायत ह जब अधययन करवधि स समपित परशनो का उततर कतमल जारा ह परशन िली ररकत होना उसी िली म समपित उततर िाकतपर होना अधययन और अधयापन का सयोग और फलन ह परशन करवहीन सथिकरर म अनसिान का आिार नही बनरा इस परकार परपरा म सभी परशनो का उततर अधययन करवधि स हर मानव म हर सथिकरर पररसथिकररयो म समपित परशनो का उततर सह-असतितव सहज करवधि स समीचीन ह अनसिान करवधि एव अधययन करवधि स पहल बोि ही होरा ह रदोपरार lsquolsquoबोिrsquorsquo का आतमा म अनभव होरा ह अनभव क उपरानत lsquolsquoअनभव सहज बोिrsquorsquo अधययन एव अनसिान करवधि म एक जसा होरा ह एव एक ही होरा ह इसम मखय रथय यही ह यथाथतरा वासवकररकरा सतयरापित करवधि स अधयापन सामगरी वि परकरिया पररपित रहना आवशयक ह ( अधययन अरथिा शशकषा वििी म) अनसिान क ललय अजञार परशन चचि अकरर आवशयक ह हर अनसिान को अधययन और अधयापन कायत करवधि स लोक वयापीकरि होना सगम हो जारा ह इस परकार अनभव क अननतर ही अनभव lsquoबोिrsquo होना दखा गया ह यह हर वयकतकत म होना समीचीन ह (प १०७ १०८ १०९ इसक उपरानत जागकरर और जागकररपितरा ही मणजलो क रप म दखन को कतमलरा ह यह मलर करवचार चचतरि अविारिा अनभव और चचनतन का ही वभव रपी मानधसकरा क रप म दखा गया ह भरम का समपित सवरप आरा करवचार इचछा (चचतरि) का कतपरय हहर लाभातमक दकरषटयो की करियारीलरा ही ह सवतमानव पीड़ा स मकतकत चाहरा ही ह यही जागकरर सहज अपकषा का सरोर और समभावना ह जीवन सहज करियाकलापो म स नयाय िमत सतय का साकषातकार और दषटा होना और उसका परमाि धसदघ होना ही समपित जागकरर ह दषटापद म होन वाली समपित करियाकलाप जीवन सहज करवधि स जानन-मानन-पहचानन-करनवाह करन क रप म होना पाया गया ह जानन-मानन की समपित वि जीवन जञान सह-असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान ही ह

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अनभव असतितव म ही होना पाया जारा ह अनभव क पहल समझदारी जानन-मानन-पहचानन क रप म होना पाया जारा ह यही अधययनपवतक होन वाला अविारिा ससकार ह इसक पवत रप म करवचार और चचतरि ही रहरा ह यही शरकरर समकरर रबद और चचतरि ह रबद और चचतरि क आिार पर करकरन भी करियाकलापो को मानव सपाददर कररा ह यह सब असथिररा क साथ ही जझरा हआ दखा गया ह असथिररा म भरम ही परिान कारि ह इसीललय ही समरि और चचतरि क उपरानत कही न कही असथिररा-अकरनियरा को परकाशरर कररा ही ह इसी सीमा रक हम इस बीसवी सदी क अर रक झलर आय ह सथिररा की सवीककरर बोि रप म ही होना फलसवरप वयवहार म नयाय-समािान-सतय परमाणिर होना पाया जारा ह ऐसा बोि जानन-मानन-पहचानन का ही महहमा ह यह करिया जीवन म ही जागकरर सहज करवधि स होन वाली वाधिर परकरिया ह असतितव म अनभव सतता म (वयापक म) सपकत परककरर क रप म ही दखा गया ह सतता म सपकत रहन क आिार पर ही करियारीलरा करनयतरि सरलन सरकषि सामय ऊजा सरोर होना दखा गया ह इसीललय परककरर म करनयतरि सरकषि करनररर बना ही रहरा ह अर सतता म करनयतरि सपषट ह (प ७४) असतितव सहज सह-असतितव म जड़-चरनयातमक परककरर करनतय वभकरवर होन का सवरप करिया शरम गकरर पररिाम परकारन सहज करियाकलाप और पररिाम का अमरतव शरम का करवशराम गकरर का गरवय सहज लकषय करनहहर करिया उपयोकरगरा परकरा-उदाततीकरि करनयमो क अनरप समपित भौकररक-रासायकरनक जीवन रपी परककरर म करनतय रचना-करवरचना lsquoतवrsquo सहहर वयविा और उसकी परपरा भल परकार स बोि करान की सहज-करिया समपि करकया जा चका ह इसी िम म शरम का करवशराम गकरर का गरवय रपी परमािो को मानव परपरा म परमाणिर करन की आवशयकरा रहा ह इस सवतसलभ लोकगमय करन क ललए अधययनपवतक जागकरर करवधि और इसक परमाि म बोि परिाली को पहचाना गया यह भी अनभव करकया गया ह करक बोि होना समझदारी का ही दसरा नाम ह अथवा बोि का ही दसरा नाम समझदारी ह ऐस समझदारी अधययनमलक परिाली स अविारिा म िापकरर होना ऐसी अनभव मलक अविारिाओ को अलभवयकत सपरकतरर परकाशरर करन क िम म असतितव म अनभव एक अवशयभावी परकरिया क रप म सपषट हई ह इस िम म असतितव म अनभव करनतय ह यही मानव का परयोजन ह जीवन करनतय ह असतितव सथिर ह इसी आिार पर अनभव और अनभव िम अलभवयकतकत सहहर जागकरर सहज जीवन का गनतवय अथार जीवन म जागकरर पितरा ही जीवन गकरर का गरवय िली होना उसकी करनरनतररा सदा-सदा क ललय बना ही रहना दखा गया इिी आिारो पर lsquoअसतितवrsquo सतता म सपकत जड़-चरनय परककरर क रप म परकररपाददर हई सह- असतितव करवधि स वयाखयाकतयर हई यह महहमा जागकरर पित जीवन सहज अलभवयकतकत ह (प १८३) जीवन जञान सह-असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान रथयो सहज करवधिवर अधययनपवतक बोि होना दखा गया ह ऐस बोि सहज रथयो को उदघादटर करन क िम म और लोकवयापीकरि करन क

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 14

िम म परमाणिर होर ही ह फलसवरप अनभर भी होर ह इस परकार करनतय परमाि और अनभव सहज रप म ही समपि होरा हआ दखा गया ह यही कवलय और जागकरर की महहमा ह (प १५४- १५७) जागकरर करवधि और अभयास असतितवमलक मानव कनदरिर चचनतन जञान दरतन आचरि िरवीकर रप म अधययन गमय होना दखा गया ह जीवन जञान जीवन म समपि होन वाली करियाओ का परसपररा सहज िरव करबनदओ क आिार पर उभय रकतपत करवधि सवत रभ एव समािान स दखा गया अलभवयकतकतया ह जसा मन और रकतपत म सामरसयरा का करबनद करवशलरि रलन पवतक आसवादन क रप म पहचाना गया ह यह सह-असतितव अनभव क पिार करनयम नयाय िमत सतय सहज परयोग म अनभर होन क उपरानत ही साथतक हो पारा ह इसक ललय अथार ऐस अनभकरर क ललय अधययन िम स आरभ होरा ह अधययन अविारिा कषतर का भरर-भरर वरतमान करवधि ह इस करवधि स णजरनी भी अविारिाए अधययन स समबदघ होरा गया उरन ही अविारिा क आिार पर परवकततत सहज नयाय िमातमक और सतय सहज रलन नयाय रलन समपि करवचार क आिार पर करकया गया आसवादन सहहर समपि करकया गया सभी चयन नयाय रप होना दखा गया ह इसी परकार ऊपर कह चचनतनपवतक जब चितरण रलन करवचार आसवादन और चयन करियाए समपि होर ह नयायपवतक वयविा म परमाणिर होना दखा गया अविारिाए सवाभाकरवक रप म ही असतितव सहज होन क आिार पर सह-असतितव रप होन क आिार पर अनभर होना अथार जानना-मानना और उसक रकतपत करबनद को पाना ही अनभव ह जानना-मानना-पहचानना ही अविारिा ह इसम रकतपत करबनद को पा लना ही अनभव ह इस कायत-वयवहार वयविा म वयकत कर दना परामाणिकरा ह अनभव परमाि पित बोि सहहर समपि होन वाल सकलप चचनतन चचतरि नयाय िमत सतय रपी रलन करवशलरि आसवादन सहहर करकया गया समपित अलभवयकतकतया वयविा और समगर वयविा म भागीदारी करनवाह कररा हआ ही दखन को कतमलरा ह इस करवधि स जागकररपित मानव ही असतितव म भरम बनधनो स मकत होना सपषट करकया जा चका ह जागकरर करवधि अधययन रपी सािना करवधि स सवाधिक उपयोगी सदपयोगी परयोजनरील होना दखन को कतमला ह इस करवधि स साधय सािक सािन का सामरसयरा सवय सफरत करवधि स समपि होना दखा गया ह जागकरर क ललय हर मानव सािक ह साधय जागकरर ही ह सािन जागकररगामी अधययन परिाली ह इस िम म परमपरा सािन परकररिा क रप म रन-मन-िन वयविा और समगर वयविा म भागीदारी का परमाि मानवाकाकषा क रप म होरा ही ह इस परकार स साधय-सािक-सािन का सयोग मानवीयरापित परपरा करवधि स सफल होन का सवरप सपषट ह ऐस परपरा क पवत (जस आज की सथिकरर म भरकतमर समदाय परपराए) मानवीयरापित परपरा म सिकतमर होन की कायतपरिाली मददा ह इस िम म अनसिान क अननतर णजरन भी रोिकरा सममर होर जार ह और सममकरर क अनरप करनिा उदगकतमर हो जारी ह और भी भाराओ स सवय सफरत करनिा उदगकतमर होरी ह ऐस ही करनिावान मिावी इस कायत म सलगन ह यही आज की सथिकरर म जागकररगामी अधययन जागकररमलक अलभवयकतकत सहज करवधि एक स अधिक वयकतकतयो म परमाणिर होन का आिार बन चकी ह जागकररपित परपरा म साधय सािन सािक म करनतय सगीर होना दखा गया ह दसर भारा म करनतय समािान होना पाया गया ह

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उललणखर अनभवो क आिार पर समपित जागकरर अपन-आपस जीवन जञान असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान म ही समपित ह इसका अभयास करवधि सवतपरथम अनसिान दसरा अधययन पवतक रोि रोि पवतक अधययन य ही मल अभयास ह कयोकरक अधययन करवधि स ही रोि करवधि स ही अविारिा का सवीकर होना दखा जारा ह अनय करवधि जस उपदर करवधि म भरकतमर होन की सभावना सदा बना ही रहरा ह हर परपरा म अपन ढग की आदर परकररिा िाकतपर रहरा ही ह वह अधययवसाकतयक (अधययनगमय) होर रक उपदर या सचना मातर ह परपरा म णजस आरय क ललय आदर-करनदर ह वह रकत सगर-वयवहार सगर बोि होन की परकरिया परिाली पदघकरर ही अधययन कहलारी ह रकत का साथतक सवरप करवजञान सममर करववक और करववक सममर करवजञान होना दखा गया परयोजन करवहीन उपदर परयोग वह भी वयवहार परमाि करवहीन उपदर रब रक ही रह पारा ह जब रक रकत सगर न हो रकत का रातपयत भी इसी रथय को उदघादटर कररा ह रकतपत क ललय आकरति परिाली (भारा परिाली) ऐस रकत सहज रप म ही करवजञान क आशरर करवशलरिो को करववक स आशरर परयोजनो का परमाणिर होना सहज ह हम इस बार को समझ चक ह करक परयोजनपवतक जीन क ललय परमाणिर होन क ललय समािान समशदघ क रप म सह-असतितव दरतन क ललय रकत सगर अधययवसाकतयक करवधि का होना आवशयक ह अधययन करियाकलाप रकतसगर परयोजन परयोजन सगर मानवापकषा मानवापकषा सगर जीवनापकषा जीवनापकषा सगर सह-असतितव सह-असतितव सगर करवकास िम और करवकास करवकासिम और करवकास सगर जीवन-जीवनी िम-जागकरर िम-जागकरर एव इसकी करनररररा सह-असतितव सहज लकषय ह असतितव सहज लकषय म भी मानव ही अकरवभाय ह और दषटा ह इसललय मानव असतितव सहज सह-असतितव करवधि स परकरा-उदाततीकरि परकरा-करवकास परकरा-जागकरर सतरो क आिार पर सह-असतितव सहज अधययन सलभ हआ ह समपित असतितव ही वयविा क सवरप म वरतमान होना समीचीन ह आज भी मानव क अकररररकत सभी अविा म (पदाथत पराि जीव अविा) अपन-अपन तव सहहर वयविा म होना ददखरा ह इसी िम म मानव भी अपन मानवतव सहहर वयविा और समगर वयविा म भागीदारी सहज अपकषा को साथतक बनान क िम म ही जागर होना पाया जारा ह हम यह पार ह करक जागकरर सतर वयाखया और परमाि सवतरभ क सवरप म ही वभकरवर होरा ह इस आरय को लोकवयापीकरि करना भी सवतरभ कायतिम का एक बकरनयादी आयाम ह इसी सतयरावर lsquolsquoअनभवातमक अधयातमवादrsquorsquo एक परिकरर ह हर मानव अपन कलपनारीलरा कमतसवरतररा पवतक ही हर परिकररयो को परखना (परीकषि करना) सवीकारना या असवीकार करन क कायतकलाप को कररा ह

अनभि दशशन सस २०१२ दधदवतीय (अधयाय -३)

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सतर छद िाकय शबद क दवारा वकरया मातर का िणशन ह सारथ ही जञानानभवत क ललए उपदश पिशक इवगत भी ह बरहम सहज िणशन पारगामी वयापक और पारदशीयता क रप म ह lsquolsquoयहrsquorsquo किल भास आभास बोि तरथा अनभिगमय ह इसका बोि मानि की कषमता योगयता पातरता पर आिाररत ह परतयाितशन पिशक परापत वयजनाएा जागवत क ललए गणातमक गवत ह गणातमक वयजना स सबोि सबोि स सससकार सससकार स गणातमक सिदना (सजञानीयता पिशक सिदना वनयदधतरत) रहना गणातमक सिदना स सतय सकलप तरथा सतय सकलप स गणातमक वयजनाओ की वनरनतरता ह सथसथवत एि वकरया सकत-गरहण कषमता ही वयजनीयता ह सकत-गरहण -परवकरयाबदघ जञान परापय को पान उस सरधकषत रखन क कायशकरम म अलभवयकत ह परापत क अनभि क करम म भास-आभास एि परतीवत ही जञापक (सतयाततपत होना) ह मानि दसरो क ललए भी सकत परसाररत करता ह सकत-गरहण-वकरया ही अनमानारोपण तरथा अनमानाकर भी ह जो सकलप इचछा वििार ि आशा ह अधयाय-७ अलभवयजना म गणातमक विकास का सकत वयजना म उपयोवगता का सकत ह अभयदय पराय (अभयदय जसा) ही अलभपराय ह खजसम अभयदय का भास या आभास होना आिशयक ह

कमशदशशन सस २००४ (प ८६ ८७) परमाण म विकास का तातपयश परमाण क गठनपणश होन स ह|मानि म एक बात की िाहत बनी ह ndash यरथासथसथवत िभि उसकी वनरतरता ndash यह सवाभाविक रप म सवीकत ह| परमाणओ म अशो का घटना-बढ़ना पररणाम क सवरप म हम समझ िक ह| पररणाम का अमरतव उसकी वनरतरता की अपकषा मानि म ही कलपना भास आभास परतीवत क रप म पाया जाता ह

प २० २३ (शासतराधययन की महततव) सदशासतराधययन क वबना सतय कामना एि परितततत सतय कामना क वबना सतय-परम सतय-परम क वबना सतय-वनषठा सतय वनषठा क वबना सतय परवतषठा सतय-परवतषठा क वबना सतय परतीवत सतय-परतीवत क वबना सतयानभाि सतयानभाि क वबना सद शासतर का उदघाटन तरथा सदशासतर क उदघाटन क वबना सद शासतर का अधययन पणश और सारथशक नही ह| मानि को जीिन की परतयक सतिचरथ म शानतनत एि सथसथरता की आिशयकता ह| सदशासतर सिन मनन एि आिरण स वयकती तरथा पररिार म शानतनत तरथा सथसथरता पा जाती ह|

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(सदशासतर सिन = शासतराधययन स शरिण | मनन एि आिरण अभयास-अधययन करम म समपणश मनन परवकरया)

(प ९७ ९८)

सहअसतितविादी विधि स हर मानि मानितव सहहत वयिसथा और समगर वयिसथा म भागीदारी करन योगय इका ह इसम मखय मददा यही ह - सवय को सवय क ललय रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क सयकत रप म होन को सवीकारन की आिशयकता ह जीिन वकरया की महहमा और मानि परमपरा म इसकी आिशयकता धयान म रहना अवत आिशयक ह तभी मानि शोि क ललए ततपर होना पाया जाता ह ऐसी ततपरता जागवत सहज विधि स सिशशभ क अरथश म परिावित होना होता ह तभी सिशमानि समािान पिशक वयकत होन समझदारी पिशक हर पररिार समािावनत और सखी होन की सथसथवत सपषट हो जाती ह फलसवरप समशदघ अभय सहअसतितव परभावित होन का सौभागय उदय होता ह यही मखय वबनद ह सिशशभ का परमाण भी यही ह कयोवक समािान समशदघ पिशक ही मानि सख शानतनत का अनभि करता ह इसी करम म समािान समशदघ अभय सहअसतितव पिशक आननद अपन आप म समपणश होना पाया जाता ह इस ढग स मानि लकषय सारथशक होन की सथसथवत म जीिन लकषय (सख शावत सतोष आननद) सारथशक होता ही ह जीिन लकषय और मानि लकषय सारथशक होना ही अधययन और अधयापन की सािशभौमता ह ऐस लकषय क सारथ मानि परमपरा अपन आप म सवय को पहिानन और समपणश मानि को पहिानन का सतर और वयाखया बन जाता ह परमाण क रप म वयाखया समझ क रप म सतर होना पाया जाता ह यह वनयवत सहज विधि स समीिीन रहना पाया जाता ह वनयवत विधि का तातपयश विकासकरम विकास जागवत करम जागवत ह दसर विधि स भौवतक रासायवनक रिना शरीर और जीिन वकरयाकलाप का सयकत अलभवयततकत समपरषणा परकाशन क रप म ह

मानि लकषय - समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करन और उस आिार पर जीिन लकषय (मनसवसथता) - सख शानतनत सतोष आननद को सारथशक बनान क अरथश म मानि शशकषा ससकार की आिशयकता सदा-सदा स बनी ह ह इसकी सफलता ही मानि कल का सौभागय ह

lsquoमानि कल और रासायवनक-भौवतक वकरयाकलाप का सारथशक परमाणrsquo

शशकषा की समपणश िि सहअसतितव रपी असतितव म रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म ही ह इसम स इनक अविभाजय रप म मानि परमपरा का समपणश वकरयाकलाप वयिहार सोि वििार समझ ह समझ क अरथश म ही हर मानि का अधययन करना होता ह समझ अपन म जानना मानना पहिानना वनिाह करन क रप म परमाखणत होती ह इसी अरथश म समपणश अधययन सारथशक होना पाया जाता ह

असतितव म समपणश इका याा रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म पररलधकषत ह ही (प १०२) वनशचयता सथसथरता सिशमानि म चिराकााकषा क रप म बनी ही ह सहअसतितव रपी असतितव जञान और सवीकवत का आिार ह यह सिशमानि म सिकषण पिशक विदधदत होन िाला तथय ह सवय को जाािन स भी

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यही सपषट होता ह हम सब सथसथरता ि वनशचयता को ही सवीकार करत रह ह न वक असथसथरता अवनशचयता को सथसथरता क सहज आिार पर ही वनशचयता का होना सवभाविक ह (प ११५) इस हम मानि को अचछी तरह स समझन की आिशयकता ह और अनशीलन पिशक सरकषण सििशन विधि स सवय को वयसथसथत कर लन की आिशयकता ह मानि क वयिसथसथत होन क मल म जञान विजञान वििक का एक सगीतमय कायशकलाप सपषट रहन स ह यही कायश-कलाप भाषा कायश-वयिहार म वनयोखजत होकर परयोजनो को परवतपादधदत करता ह मानि का परयोजन समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करना ही ह (प १२२ १२३)

( अनभि मलक वििी स

यरथारथशता िािविकता सतयता का बोि रपी बशदघ की सथसथवत उस परकाशशत करन की परितततत क रप म सकलप ही गवत ह नयाय िमश सतय क साकषातकार करन क रप म चितत सथसथवत और इसका चितरण क रप म चिदधतरत हो पाना गवत ह चितत वकरयाकलाप का समपणश चितरण तलन क रप म अरथात नयाय िमश ि सतय रप म सपषट होना ितततत सहज सथसथवत ह ितततत म समपनन हय तलन का विशलषण विधि म विशलततषत होना ि समपरततषत होना ितततत सहज गवत ह विशलषण क सपषट अरथिा सार रप म मलय सवीकत होता ह इस आसवादन करना ही मन की सथसथवत ह इसकी सारथशकता क ललय ियन वकरया को समपादधदत करन क रप म गवतत होना हर मानि म सिधकषत ह इस ढग स मानि भी सभी परकार स सथसथवत-गवत म होना सपषट होता ह इस परकार मानि समझदारी स समपनन होन क उपरानत परमाखणत होना सवभाविक होता ह इसका मतलब यही हआ हम जब तक परमाखणत नही होत तब तक परमाखणत होन क ललए जञानाजशन वििकाजशन विजञानाजशन कर लना ही शशकषा और शशकषण का तातपयश ह इसक ललए सह असतितविादी शशकषा करम समीिीन ह अतएि समझदार मानि होन क ललए धयान दन की आिशयकता ह

सह-असतितविादी वििार जञान वििक विजञान को समझना ही समझदारी ह

ldquoअधययन रपी उपासनाrdquo (अभयास) - कमशदशशन सस २००४ प ४९ ५०

मानि जीिन म उपासना एक महतवपणश भाग ह| उपासना ही मल परिततततयो का पररमाजशन एि पररितशन परवकरया ह| यही ससकार एि सवभाि पररितशन भी ह| ( उपासना = उपायो सहहत लकषय पती क ललए कीया गया वकरयाकलाप) उपायपिशक सहिास पाना ही उपासना की अििारणा ह खजसक ललए पररशरम (पररमाजशन शरम) एि अभयास ह| अभयास एि पररशरम स ही सथल सकषम कारण की सथसथवतितता सपषट ह| खजसस ततसबिी पदारथश वनयवत-

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करम शततकत महहमा विभती एि वनयम सबिी अनसिान (अनगमन पिशक अििारणा) शोि परधसदध ह| अनसिान भौवतक बौदधदधक तरथा आधयातमतमक भद स ह| अनसनधान परवकरया मनन चिितन सकलप एि अनभती क रप म परतयकष ह|

सथल सकषम कारण (दषटा) का तातपयश दखन समझन परयोग करन वयिहार करन एि अनभि करन योगय कषमता क सपनन होन स ह |

परिततततयो का पररमाजशन ही मानि जीिन का कायशकरम ह| मानि म पणशता एि पररमाजशनशीलता की अपकषा परतयक सथसथती म पा जाती ह| पणशता ही पादधडतय ह| पादधडतय स अधिक जञान एि वनपणता कशलता स अधिक वयिहार एि उतपादन नही ह| पररमाजशनशीलता उतपादन ि वयिहार म पा जाती ह| पादधडतय परबदधता परबदधता ही शशकषा एि वयिसथा ह| परबदधता स पररपणश होत तक उपासना अतयत उपयोगी ह|

प ५६ स ७२ (इनम स कछ ही िाकयो को ललया गया ह| समपणश क ललए पिक दख) उपासना स सािशभौततमक मलयो का अिगाहन करना ही परिान उपादयता ह| समि उपासनाओ क मल म लकषय समय ह िह अखड समाज सािशभौम वयिसथा ह| िह किल सिश

मगल ही ह| कयोकी सिश मगल की कामना क वबना सवय का मगल धसदध नही ह| अनय कामय कामनाए किल मगलमयता की भास परदायी ह न की अनभिदायी| इसललए सिशमगल

कामनारपी कायशकरम तःरथा उसकी अनसरण योगय कषमता पयत मानि परयास करन क ललए बाधय ह| सही क परती भरततमत रहना ही मत सपरदाय एि िगश का कारण ह|

मत सापरदाततयक िगीयता म आचरथिक िगीयता एि आचरथिक िगीयता म मत-सापरदाततयकता समा ह ह|

इसका वनराकरण सपषटतया सािशभौततमक रप म पा जान िाली मानिीयतापणश पदधवत स ldquoवनयम-तरयrdquo (बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक) क आिारपिशक ही आचरथिक एि सापरदाततयक िगश-भािनाओ स मकत होन की समभािना एि मकती ह| इसी म समि िगश-भािना विलीन हो जाती ह| इसीललए ndash

उपासना की उभय पदधवत का अभीषट समझदारी जागवत पिशक सारथशक होता ह जो जागरण ह| मानि म शततकतया वकरया इचछा एि जञान शततकत ही ह जो उनकी अहशताए ह| अहशताए परतयक इका

की जागवतशीलता जागवत पर आिाररत ह| शबद सपशश रप रस गिनतियो दवारा शततकतयो का अपवयय न होना सारथ ही सदवयाय होना ही

वकरया शततकत की जागवत ह| सदवयय एि अपवयय का वनिारण मानिीयता क सीमा म ldquoवनयम-तरयrdquo क रप म ह |

अतकरण मल परितताा अरथात आशा वििार इचछा ि सकलप का अपवयय न होना ही सदवयय ह| यही इचछा शततकत का जागरण ह|

समयक-बोि एि अनभती पणशता ही जञान परकटन कषमता ह| यही जञानशततकत का जागरण अरथिा पणश जागरण ह| यह ldquoजागवत-तरयrdquo मानिीयता एि अवतमानिीयता म परतयकष ह| यही मानि जीिन की िरमोतकषश

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उपलसतबध ह| सशकत उपासना क उपादयता यही ह यही समगर मानि की कामना ह| यही सिशमगल ह| इसीललए

जीिन-जागवत का परतयकष सवरप ही वििक पणश विजञान का परयोग ह यही सतकशता अखणड सामाखजकता परबदघता वनविि षमता सह-असतितव शशकषा विधि वयिसथा सभयता ससकवत बौशदघक समािान भौवतक समशदघ और जीिन जागवत की वनरनतरता ह

पणश जागवत पयशनत परतयक मानि इका परयास एि उपासना क ललय बाधय ह इसी क फलसवरप मल परिततततयो का पररमाजशन होता ह खजसक कारण विशशषट और शशषट मानधसकता एि वििार चिनतन-बोि कषमता अनभिपणशता परतयकष होती ह यही शरषठ उपासना की उपलसतबधयाा ह

इसललय समान क सारथ वयिहार करन क ललय बाधय हआ ह यही सामाखजकता की बाधयता ह यही मानि जीिन की गौरि और गररमा ह यही गररमा समान क सारथ वयिहार अधिक जागवत क ललय अभयास करन क ललय पररणा ह यही िािविक उपासना ह

वििक अरथात मानि लकषय और िरागय अरथात समशदघ ही उपासना का परतयकष फल ह खजसम सामाखजकता सवाभाविक रप स समाहहत रहती ह

िरागय का पराितशन ही असगरह (समशदघ) उदारता एि दया ह भौवतक समशदघ म उदारता एि दया क मौललक मलयो का अनरजन ही सामाखजकता का पराण ततव ह यही सामाखजक सगीत ह इसी क ललय मानि तततषत ह वििक ही बौशदघक समािान एि सामाखजक मलयो को वनिाह पिशक परकट करता ह इसललय

वििक ि िरागय ही परोकष जञान (सदवयिहाररक जञान) का परिान लकषण ह अनभि ही परोकष जञान की अनतनतम सथसथवत ह इसक पिश अनमान अधिकार ही परधसदघ ह ििसथसथवत ििगत सथसथवत सतय म ही अनभि ह

परोकष जञान क वबना वनतयावनतय यकतायकत नयायानयाय िमािमश सतयासतयइषटावनषट दषटादषट तरथा परोकष जञानाधिकार धसदघ नही होता ह

वनतयावनतय जञानाधिकार क वबना मनषय म सविमश क परवत वनषठा नही पा जाती ह मानि िमश ही सख सख ही नयायपणश आिरण नयायपणश आिरण ही मानिीयतापणश सीमा एि lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का पालन ह यही मनषय का सविमश ह मानि सख िमी ह

मयादा विहीन इका नही ह जस जीिो म सवभाि मयादा िनसपवतयो म गण मयादा एि पदारथो म रप मयादा-भग नही होती ह यही उनकी गररमा ह इसी परकार मानि म सख ही िमश ह िमश ही मयादा ह यही उनकी गररमा एि विशवास ह मयादा का परतयकष रप ही विशवास ह

lsquolsquoविशवासविहीन समबनध एि समपकश म सख नही हrsquorsquo समबनध एि समपकश विहीन मनषय नही ह यही बाधयता सविमश क ललय ह इसक पालन म जो अकषमता अयोगयता एि अपातरता ह - िही दख कलश समसया और अजागवत ह

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सविमश म समपननता एि पालन करन योगय कषमता योगयता एि पातरता स पररपणश होत तक जञानाजशन करन क अरथश म अधययन रपी उपासना का अभाि नही ह

मानि क सविमश की सीमा म ही मत समपरदाय िगश वतरोहहत हो जात ह यही समरथश उपासना की परतयकष गररमा ह lsquolsquoयही मागललक हrsquorsquo साधय सािक सािन इन तीनो का उपासना म समाहहत रहना अवनिायश ह इनकी एक सतरता ही उपासना की सफलता ह अनयरथा असफलता ह परतयक सथसथवत म परापत शततकत ि सािनो का सदपयोग करना ही उसकी अवगरम जागवत ह यही उपासना ह

इनतिय कायशकलाप तरथा इनतियो का कायशकषतर ही अपरोकष जञान की सीमा ह इस वयापार म ितविि षय सीमानतिती धसशदघयाा ह इसक अवतररकत और उपलसतबधयाा इसम नही ह

विषयो की सीमा म मनषय सीततमत नही ह कयोवक उसम िार आयाम परधसदघ ह

मनषय ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत समपनन होन क ललय बाधय ह यही आिशयकता अिसर सभािना एि वयिसथा ह

सयमतापिशक ही मनषय क दवारा परतयक पररपरकषय म वकय गय वकरयाकलाप म स गररमापणश िभि परकट होता ह जस-

सतयबोि सहहत सतय बोलन का अभयास करन स भय ि अविशवास की वनितततत हषश तरथा उतसाह का उदय होता ह

विशव क परवत मलय भाि की परवतषठा स इषट और सािक क मधय विषमता का अभाि होता ह

शबद क अरथश अरथात मनतरारथश का तदरपतापिशक समरण करन क अभयास स उसका अरथश एि सवभाि गमय होता ह सभी सारथशक शबद मनतर ह

अधिक जागत म समपशण स अलभमान ि अहकार का उनमलन तरथा विदया ि सरलता का उदय होता ह ( अधिक जागत = समझान िाला परमाखणत वयततकत गर)

शरीर सिदना सयत रहन स मन की पवितरता मन की पवितरता स मनोबल का लाभ होता ह

सव-शरीर मोह नषट होन स ससार क परवत मोह दर होता ह सिशशभरपी आपत कामना पणश बशदघ स ही विशव क परवत उदारता दया कपा करणा का परसिन तरथा विशव की आिारभत सतता म जञान एि अनभि होता ह

जञान विजञान वििक रपी सवतवहीनता ही असयमता मनोदौबशलय मल परविततततयो की अपररषकवत राग मोह लोभ अवििक अहकार अलभमान दहातमिादी परितततत दरािार सघषश असह-असतितव सशकता दवष तरथा तपोहीनता ह

सयमता क वबना बौशदघक मल परिततततयो की पररषकवत बशदघबल सामाखजक मलयो की अनभवत ितनय वकरया का दशशन समािान और सयमता धसदघ नही होती ह

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उपासना क ललय िातािरण का महतव अपररहायश ह खजसम स मनषय कत िातािरण ही परिान ह जो शशकषा ि वयिसथा क रप म ही ह

मानिीयता की सीमा म वयिहार lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का आिरण ही वयततकततव ह ऐस वयततकततव क वनमाण म सवकरय योगदान ही कततशवय ह यही परषारथश ह यही परबदघता ह

आशा भद स उपासना उपासना भद स अनभि अनभि भद स अनमान अनमान भद स उपासना भद ह यही उपासना म िविधयता का कारण ह यह िविधयता सािशभौम आिरण की सीमा म विलय होन क ललय बाधय ह

मानि क ललय सहज समरथश उपासना एक अवनिायश कायशकरम ह जो अमानिीयता स मानिीयता मानिीयता स अवतमानिीयता की परवतषठा सथाततपत करती ह

सह-असतितव म अनकषण-विकषण-ितततत स सहजाितततत होती ह

कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ही अनकषण-विकषण ितततत ह

अनकषण का तातपयश परतयक कषण म लगातार सह-असतितव चिनतन वििार करम म परमाखणकता का सहज परमाण परित हो जाता ह यही सहजाितततत ह

सतता म समपकत परकवत की समपकतता का जञान ही (पणश-दशशन) कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ह यही भरततमत भाि ि अभाि का वतरोभाि ह यही सहज परवतषठा ि अिसथा ह

सतता म समपकत परकवत का जञान न होन स और अनभिमलक जञान न होन स भय और परलोभनिश समि भरममलक कायश-वयिहार सोि-वििार को बनाय रखता ह यही समपणश कलश का कारण ह

काल वकरया की अिधि ह इसी अिधि म आरोततपत वििार ि इचछा ही असहज एि वनरारोततपत वििार ि इचछा ही सहज ह

मानि इका म ही जागवत क करम म भी वनरारोपण कषमता पा जाती ह भरमिश आरोपण होता ह

जो जसा ह उसस अधिक कम अरथिा नासमझना ही आरोपण ह यही अजञान ह यही अकषमता ह यही भरम ह

सतता म समपकत जड़-ितनयातमक परकवत की सथसथवत-शीलता ि सतता सहज पणशता क समबनध म ही आरोप या वनरारोण वकरया समपनन होना पाया जाता ह

परतयक इका म रप गण सवभाि एि िमश समाहहत ह यही उसकी कायशितता ह इसी की गणना पररमाण परयोजन जञान ही परकवत क परवत वनभरमतापणश कषमता का दयोतक ह यही परमाण ह यही सहजता ह

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समपणश वकरयाय मलत रप और शबद भद म दषटवय ह

परकता क वबना इका म अवगरमता नही ह

पणशता पयशनत इका परकता उपयोवगता क ललए परितत ह

परकता ही इका म हरास ि विकास क लकषणो को परकट करती ह यही परिान उपादयता भी ह

इका म परकट होन िाल शबदादधद गण ही सापकष शततकतयाा ह गणविहीन इका नही ह इसललय

मनषय म सहज कामना का अभाि नही ह सहजता ही िमश ह यही सख शानतनत सतोष एि आननद ह यही िारणा को सपषट करता ह जो परतयकष ह

परतयक कमश-फल ही मनषय क सख का पोषक ि शोषक धसदघ हआ ह

सतय और सतयता क अनभि-करम म वयििान नही ह कयोवक अनभिकरम-वयिसथा सघन ह जागवत की कदधड़याा सघन ह इसललय-

सहजता आरोप स मकत ह आरोप ही नयनावतरक मलयाकन ह सवय की नयनावतरक मलयाकन वकरया ही असहजता ह

सवय का मलयाकन lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म होता ह

lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म न हो ऐसा मनषय इस पथवी पर नही ह

िमश का वियोग नही ह कयोवक यह िारणा ह इसका परतयकष रप ही मानिीयता एि अवतमानिीयता पणश आिरण ह जो सहजता का परिान लकषण ह इसललय -

अमानिीयता पणश आिरण ही असहज ह इसललय

परकवत अपन म समपणशता क सारथ सीततमत ह यही अिधि ह इसललय पणश म समायी ह यही पणश म समपणशता सहज सह-असतितव ह यही समपणशता का वनतय ितशमान और जञानािसथा क मानि म पणशता का परसि ह यही जागवत क ललय बाधयता ह

मनषय क बौशदघक कषतर म पायी जान िाली अनािशयक कलपनाओ का वनराकरण ही दशशन-कषमता म गणातमक पररमाजशन ह यही गणातमक ससकार-पररितशन शशकषा एि जीिन क कायशकरम का योगफल ह

दशशन-कषमता का उतकषश ही अनकषण विकषण ह यही मधयसथ वकरया की कषमता ह मधयसथ वकरया ही दषटा ह

मधयसथ वकरया का िरमोतकषश ही सम ि विषम वकरया का पणश वनयतरण ह यही कषमता कषण-कषण मधयसथ वयििान स मततकत ह

ससकार पिशक ही बौशदघक वयिसथा-परवकरया -कषमता क आनषवगक ह मनषय सहज ऐषणा एि विषयो की सीमा म परितततत ि वनितततत पिशक वयि होना पाया जाता ह जो परतयकष ह

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आतमा (मधयसथ वकरया) क आनषवगक बौशदघक परवकरया ि वयिसथा म सतय-सकलप एि सतय-कलपनापणश मानधसकता की सथसथवत पा जाती ह जो परधसदघ कमश उपासना जञान पणश ह यही कषमता दि ि दधदवय मानिीयता को परकट करती ह यही पणश जागवत ह

ऐषणासकत बौशदघक वयिसथा म मानिीय तरथा दि मानिीय सवभाि परकट होता ह उसी क अनरप म मानधसक िातािरण की सथसथवतशीलता ह ऐसी कषमता ही सामाखजक ितना एि सतकशता स पररपणश पायी जाती ह

विषयासकत बौशदघक वयिसथा ि परवकरया म अमानिीयतापणश आिरण समपनन होता ह जो पाशविकता तरथा दानिीयता क रप म दषटवय ह इनम उसी क योगय मानधसकता पा जाती ह यही लपत-सपत कलपना का कारण ह यही अजागवत तरथा अपणश सतकशता का दयोतक ह

शरय (जागवत) खजजञास होन पर ही लपत-सपत कलपनाय पररमाखजि त होती ह फलत दानिी ि पाशिी परिततततयो स उदासीनता सथसथर होती ह सारथ ही वििकोदय होता ह

शरय खजजञासा का उदय सव-ससकार विधि-विहहत अधययन तरथा उसक अनकल िातािरण म होता ह

विधि-विहहत-अधययन वनपणता कशलता ि पादधडतय ही ह

अधययन एि िातािरण ही ससकार पररितशन क ललय समरथश वयिसथा ह खजसका गणातमक पररितशन ही आतमबोि क ललय खजजञासा ह

आतमबोि ही सतय खजजञासा का परिान लकषण ह इसललय- अििारणा ही अनगमन तरथा अनशीलन क ललय परितततत ह जो शशषटता क रप म परतयकष होती ह परगवत क ललय अििारणा अवनिायश ह जागवत क ललय अििारणा एि हरास क ललय आसततकत परधसदघ ह यही करम स वनितततत ि परितततत ह अििारणा ही सदधदविक ह सदधदविक सवय म सतयता की विििना ह जो सपषट ह मलत यही शभ एि मागलय ह अनभि की अििारणा सतय बोि क रप म अििारणा (समयक-बोि) ही सतय-सकलप ह यही परािवति त होकर शभकमश उपासना तरथा आिरण क रप म परतयकष ह इसी का पररिवति त मलय ही िीरता िीरता उदारता दया कपा और करणा क रप म परतयकष ह सतय म ही समयक-बोि होता ह असतय ही कलपना एि भास होता ह हीनता दीनता और कररता स यकत कमश अशभ होता ह सव-मलय ही परितततत और वनितततत का िशश ह इसललय असतय अलभमान तरथा दपश स मकत सतय सरलता सहजता तरथा सौजनयता स यकत कमश ि उपासना शरय कारक ह

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सतय कामना की वनरनतरता स लकषय की अििारणा होती ह जञान म ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत परतयकष ह जञान वििक सममत विजञान ही ह जो पणश ह सतय और सतयता म दढ़ता ही शरयमय जीिन ह सतयानभवत ही सबका अभीषट ह शरीर स समपनन होन िाल समि वकरयाओ का सिालन मन ही मिस दवारा करता ह मिस स सभी नादधड़याा वनयदधतरत ह शबद का मल रप मन ही ह मिस पर मन आसवादन एि सवागत भािपणश तरगो का परसारण सिालन वनयतरण करता ह उसक मल म शबद ही ह जागवत की ओर गवत हत वनयतरणातमक शबद ही मतर ह लकषय-पराततपत-योगय-करम परवकरया ही वनयतरण ह शबद म जो भाि (मलय) ह िही उसका अरथश ह सारथशक शबदो का अरथश ही जागवत की ओर गवत ह कयोवक शबद का अरथश असतितव म िि ह भाि म जो उपयोगपणश अवनिायशता ह िही उसका महतव ह उपयोग पणश अवनिायशता म जो वनचशचत दधदशा ह िही उसकी दढ़ता ह यही समयक सकलप ह समयक सकलप म जो पणशता ह िही अनभि ह जो करम स मन ितततत चितत बशदघ और आतमा म पा जान िाली सससकत मौललक वकरयाय ह भाि का तातपयश होन स ह शततकत-तरय-जागरण (इचछा-शततकत वकरया-शततकत तरथा जञान शततकत जागरण) क वबना तयाग (भरममततकत) और परम परमाखणत नही होता

मनन परवकरया म सव-मलयाकन

सव-मलयाकन मनन धयान ldquoअपराि क अभाि म दयापणश आशा का पराितशन अनयाय क अभाि म नयायपणश वििार का पराितशन आसकती क अभाि म समािान पणश इचछा का पराितशन तरथा अजञान क अभाि म जञानपणश सकलप का पराितशन होता ह| अत अपरािहीन वयिहार क ललए वयिसथा का परभाि अनयायहीन वििार क ललए अखणड समाज का परभाि तरथा अजञान रहहत बदधदध क ललए अतवनि यामन अरथिा धयान आिशयक ह खजसस ही परतयाितशन वकरया सफल ह| धयान का अरथश समझन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना और समझन-अनभि करन क

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उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 27

मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 28

(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 29

सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

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प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

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अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

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३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

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(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

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उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

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(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

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Page 12: अभ्यास (अध्ययन के ललएmdstudents.net/wp-content/uploads/2020/01/adhyayan... · के अर्थश से इंवगत ििुएं अित्व

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 12

मानव परपरा म परमाि ह मधयि करिया समम_य िम स जीवनी िम और जीवन जागकरर िम वयकत होरा ह इसी िम म जागर होना जीवन सहज परवकततत परयास आवशयकरा क योग-सयोग करवधि स समपि होरा ह यही अनसिान रोि और अधययन क ललए भी सयोजक रतव ह यह रतव सदा-सदा जीवन परकररिा म कायतरर रहरा ही ह इसकी परखररा क आिार पर ही अनसिान रोि अधययन सहज हो जारा ह इस परकार यह ससपषट हो जारा ह करक आतमा अधययन करवधि स असतितव म अनभर होरा ह दसरा अनसिान करवधि स भी असतितव म अनभर होना पाया जारा ह ( अनसिान विधि जो शरी ए नागराज न कीया सािना gt समािीgt सयम | अधययन विधि पिक एि वकसी समझ हए वयकती क माधयम स शशकषा-ससकार परापत करना) अनसिान करवधि स भी सवतपरथम असतितव म बोि होना दखा गया ह इसक उपरानत ही आतमा असतितव म अनभर होना दखा गया ह अधययन करवधि स भी यही सथिकरर अथार पहल बोि रदोपरार अनभव होना पाया जारा ह इन दोनो करवधियो म स अधययन करवधि लोकवयापीकरि क ललए कम समय म बोि होन की सथिकरर बनरी ह अनसिान करवधि म परवतत होन क ललए वयकतकत म लकषय सममर णजजञासा का होना अकरनवायत ह जब अधययन करवधि स समपित परशनो का उततर कतमल जारा ह परशन िली ररकत होना उसी िली म समपित उततर िाकतपर होना अधययन और अधयापन का सयोग और फलन ह परशन करवहीन सथिकरर म अनसिान का आिार नही बनरा इस परकार परपरा म सभी परशनो का उततर अधययन करवधि स हर मानव म हर सथिकरर पररसथिकररयो म समपित परशनो का उततर सह-असतितव सहज करवधि स समीचीन ह अनसिान करवधि एव अधययन करवधि स पहल बोि ही होरा ह रदोपरार lsquolsquoबोिrsquorsquo का आतमा म अनभव होरा ह अनभव क उपरानत lsquolsquoअनभव सहज बोिrsquorsquo अधययन एव अनसिान करवधि म एक जसा होरा ह एव एक ही होरा ह इसम मखय रथय यही ह यथाथतरा वासवकररकरा सतयरापित करवधि स अधयापन सामगरी वि परकरिया पररपित रहना आवशयक ह ( अधययन अरथिा शशकषा वििी म) अनसिान क ललय अजञार परशन चचि अकरर आवशयक ह हर अनसिान को अधययन और अधयापन कायत करवधि स लोक वयापीकरि होना सगम हो जारा ह इस परकार अनभव क अननतर ही अनभव lsquoबोिrsquo होना दखा गया ह यह हर वयकतकत म होना समीचीन ह (प १०७ १०८ १०९ इसक उपरानत जागकरर और जागकररपितरा ही मणजलो क रप म दखन को कतमलरा ह यह मलर करवचार चचतरि अविारिा अनभव और चचनतन का ही वभव रपी मानधसकरा क रप म दखा गया ह भरम का समपित सवरप आरा करवचार इचछा (चचतरि) का कतपरय हहर लाभातमक दकरषटयो की करियारीलरा ही ह सवतमानव पीड़ा स मकतकत चाहरा ही ह यही जागकरर सहज अपकषा का सरोर और समभावना ह जीवन सहज करियाकलापो म स नयाय िमत सतय का साकषातकार और दषटा होना और उसका परमाि धसदघ होना ही समपित जागकरर ह दषटापद म होन वाली समपित करियाकलाप जीवन सहज करवधि स जानन-मानन-पहचानन-करनवाह करन क रप म होना पाया गया ह जानन-मानन की समपित वि जीवन जञान सह-असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 13

अनभव असतितव म ही होना पाया जारा ह अनभव क पहल समझदारी जानन-मानन-पहचानन क रप म होना पाया जारा ह यही अधययनपवतक होन वाला अविारिा ससकार ह इसक पवत रप म करवचार और चचतरि ही रहरा ह यही शरकरर समकरर रबद और चचतरि ह रबद और चचतरि क आिार पर करकरन भी करियाकलापो को मानव सपाददर कररा ह यह सब असथिररा क साथ ही जझरा हआ दखा गया ह असथिररा म भरम ही परिान कारि ह इसीललय ही समरि और चचतरि क उपरानत कही न कही असथिररा-अकरनियरा को परकाशरर कररा ही ह इसी सीमा रक हम इस बीसवी सदी क अर रक झलर आय ह सथिररा की सवीककरर बोि रप म ही होना फलसवरप वयवहार म नयाय-समािान-सतय परमाणिर होना पाया जारा ह ऐसा बोि जानन-मानन-पहचानन का ही महहमा ह यह करिया जीवन म ही जागकरर सहज करवधि स होन वाली वाधिर परकरिया ह असतितव म अनभव सतता म (वयापक म) सपकत परककरर क रप म ही दखा गया ह सतता म सपकत रहन क आिार पर ही करियारीलरा करनयतरि सरलन सरकषि सामय ऊजा सरोर होना दखा गया ह इसीललय परककरर म करनयतरि सरकषि करनररर बना ही रहरा ह अर सतता म करनयतरि सपषट ह (प ७४) असतितव सहज सह-असतितव म जड़-चरनयातमक परककरर करनतय वभकरवर होन का सवरप करिया शरम गकरर पररिाम परकारन सहज करियाकलाप और पररिाम का अमरतव शरम का करवशराम गकरर का गरवय सहज लकषय करनहहर करिया उपयोकरगरा परकरा-उदाततीकरि करनयमो क अनरप समपित भौकररक-रासायकरनक जीवन रपी परककरर म करनतय रचना-करवरचना lsquoतवrsquo सहहर वयविा और उसकी परपरा भल परकार स बोि करान की सहज-करिया समपि करकया जा चका ह इसी िम म शरम का करवशराम गकरर का गरवय रपी परमािो को मानव परपरा म परमाणिर करन की आवशयकरा रहा ह इस सवतसलभ लोकगमय करन क ललए अधययनपवतक जागकरर करवधि और इसक परमाि म बोि परिाली को पहचाना गया यह भी अनभव करकया गया ह करक बोि होना समझदारी का ही दसरा नाम ह अथवा बोि का ही दसरा नाम समझदारी ह ऐस समझदारी अधययनमलक परिाली स अविारिा म िापकरर होना ऐसी अनभव मलक अविारिाओ को अलभवयकत सपरकतरर परकाशरर करन क िम म असतितव म अनभव एक अवशयभावी परकरिया क रप म सपषट हई ह इस िम म असतितव म अनभव करनतय ह यही मानव का परयोजन ह जीवन करनतय ह असतितव सथिर ह इसी आिार पर अनभव और अनभव िम अलभवयकतकत सहहर जागकरर सहज जीवन का गनतवय अथार जीवन म जागकरर पितरा ही जीवन गकरर का गरवय िली होना उसकी करनरनतररा सदा-सदा क ललय बना ही रहना दखा गया इिी आिारो पर lsquoअसतितवrsquo सतता म सपकत जड़-चरनय परककरर क रप म परकररपाददर हई सह- असतितव करवधि स वयाखयाकतयर हई यह महहमा जागकरर पित जीवन सहज अलभवयकतकत ह (प १८३) जीवन जञान सह-असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान रथयो सहज करवधिवर अधययनपवतक बोि होना दखा गया ह ऐस बोि सहज रथयो को उदघादटर करन क िम म और लोकवयापीकरि करन क

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िम म परमाणिर होर ही ह फलसवरप अनभर भी होर ह इस परकार करनतय परमाि और अनभव सहज रप म ही समपि होरा हआ दखा गया ह यही कवलय और जागकरर की महहमा ह (प १५४- १५७) जागकरर करवधि और अभयास असतितवमलक मानव कनदरिर चचनतन जञान दरतन आचरि िरवीकर रप म अधययन गमय होना दखा गया ह जीवन जञान जीवन म समपि होन वाली करियाओ का परसपररा सहज िरव करबनदओ क आिार पर उभय रकतपत करवधि सवत रभ एव समािान स दखा गया अलभवयकतकतया ह जसा मन और रकतपत म सामरसयरा का करबनद करवशलरि रलन पवतक आसवादन क रप म पहचाना गया ह यह सह-असतितव अनभव क पिार करनयम नयाय िमत सतय सहज परयोग म अनभर होन क उपरानत ही साथतक हो पारा ह इसक ललय अथार ऐस अनभकरर क ललय अधययन िम स आरभ होरा ह अधययन अविारिा कषतर का भरर-भरर वरतमान करवधि ह इस करवधि स णजरनी भी अविारिाए अधययन स समबदघ होरा गया उरन ही अविारिा क आिार पर परवकततत सहज नयाय िमातमक और सतय सहज रलन नयाय रलन समपि करवचार क आिार पर करकया गया आसवादन सहहर समपि करकया गया सभी चयन नयाय रप होना दखा गया ह इसी परकार ऊपर कह चचनतनपवतक जब चितरण रलन करवचार आसवादन और चयन करियाए समपि होर ह नयायपवतक वयविा म परमाणिर होना दखा गया अविारिाए सवाभाकरवक रप म ही असतितव सहज होन क आिार पर सह-असतितव रप होन क आिार पर अनभर होना अथार जानना-मानना और उसक रकतपत करबनद को पाना ही अनभव ह जानना-मानना-पहचानना ही अविारिा ह इसम रकतपत करबनद को पा लना ही अनभव ह इस कायत-वयवहार वयविा म वयकत कर दना परामाणिकरा ह अनभव परमाि पित बोि सहहर समपि होन वाल सकलप चचनतन चचतरि नयाय िमत सतय रपी रलन करवशलरि आसवादन सहहर करकया गया समपित अलभवयकतकतया वयविा और समगर वयविा म भागीदारी करनवाह कररा हआ ही दखन को कतमलरा ह इस करवधि स जागकररपित मानव ही असतितव म भरम बनधनो स मकत होना सपषट करकया जा चका ह जागकरर करवधि अधययन रपी सािना करवधि स सवाधिक उपयोगी सदपयोगी परयोजनरील होना दखन को कतमला ह इस करवधि स साधय सािक सािन का सामरसयरा सवय सफरत करवधि स समपि होना दखा गया ह जागकरर क ललय हर मानव सािक ह साधय जागकरर ही ह सािन जागकररगामी अधययन परिाली ह इस िम म परमपरा सािन परकररिा क रप म रन-मन-िन वयविा और समगर वयविा म भागीदारी का परमाि मानवाकाकषा क रप म होरा ही ह इस परकार स साधय-सािक-सािन का सयोग मानवीयरापित परपरा करवधि स सफल होन का सवरप सपषट ह ऐस परपरा क पवत (जस आज की सथिकरर म भरकतमर समदाय परपराए) मानवीयरापित परपरा म सिकतमर होन की कायतपरिाली मददा ह इस िम म अनसिान क अननतर णजरन भी रोिकरा सममर होर जार ह और सममकरर क अनरप करनिा उदगकतमर हो जारी ह और भी भाराओ स सवय सफरत करनिा उदगकतमर होरी ह ऐस ही करनिावान मिावी इस कायत म सलगन ह यही आज की सथिकरर म जागकररगामी अधययन जागकररमलक अलभवयकतकत सहज करवधि एक स अधिक वयकतकतयो म परमाणिर होन का आिार बन चकी ह जागकररपित परपरा म साधय सािन सािक म करनतय सगीर होना दखा गया ह दसर भारा म करनतय समािान होना पाया गया ह

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उललणखर अनभवो क आिार पर समपित जागकरर अपन-आपस जीवन जञान असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान म ही समपित ह इसका अभयास करवधि सवतपरथम अनसिान दसरा अधययन पवतक रोि रोि पवतक अधययन य ही मल अभयास ह कयोकरक अधययन करवधि स ही रोि करवधि स ही अविारिा का सवीकर होना दखा जारा ह अनय करवधि जस उपदर करवधि म भरकतमर होन की सभावना सदा बना ही रहरा ह हर परपरा म अपन ढग की आदर परकररिा िाकतपर रहरा ही ह वह अधययवसाकतयक (अधययनगमय) होर रक उपदर या सचना मातर ह परपरा म णजस आरय क ललय आदर-करनदर ह वह रकत सगर-वयवहार सगर बोि होन की परकरिया परिाली पदघकरर ही अधययन कहलारी ह रकत का साथतक सवरप करवजञान सममर करववक और करववक सममर करवजञान होना दखा गया परयोजन करवहीन उपदर परयोग वह भी वयवहार परमाि करवहीन उपदर रब रक ही रह पारा ह जब रक रकत सगर न हो रकत का रातपयत भी इसी रथय को उदघादटर कररा ह रकतपत क ललय आकरति परिाली (भारा परिाली) ऐस रकत सहज रप म ही करवजञान क आशरर करवशलरिो को करववक स आशरर परयोजनो का परमाणिर होना सहज ह हम इस बार को समझ चक ह करक परयोजनपवतक जीन क ललय परमाणिर होन क ललय समािान समशदघ क रप म सह-असतितव दरतन क ललय रकत सगर अधययवसाकतयक करवधि का होना आवशयक ह अधययन करियाकलाप रकतसगर परयोजन परयोजन सगर मानवापकषा मानवापकषा सगर जीवनापकषा जीवनापकषा सगर सह-असतितव सह-असतितव सगर करवकास िम और करवकास करवकासिम और करवकास सगर जीवन-जीवनी िम-जागकरर िम-जागकरर एव इसकी करनररररा सह-असतितव सहज लकषय ह असतितव सहज लकषय म भी मानव ही अकरवभाय ह और दषटा ह इसललय मानव असतितव सहज सह-असतितव करवधि स परकरा-उदाततीकरि परकरा-करवकास परकरा-जागकरर सतरो क आिार पर सह-असतितव सहज अधययन सलभ हआ ह समपित असतितव ही वयविा क सवरप म वरतमान होना समीचीन ह आज भी मानव क अकररररकत सभी अविा म (पदाथत पराि जीव अविा) अपन-अपन तव सहहर वयविा म होना ददखरा ह इसी िम म मानव भी अपन मानवतव सहहर वयविा और समगर वयविा म भागीदारी सहज अपकषा को साथतक बनान क िम म ही जागर होना पाया जारा ह हम यह पार ह करक जागकरर सतर वयाखया और परमाि सवतरभ क सवरप म ही वभकरवर होरा ह इस आरय को लोकवयापीकरि करना भी सवतरभ कायतिम का एक बकरनयादी आयाम ह इसी सतयरावर lsquolsquoअनभवातमक अधयातमवादrsquorsquo एक परिकरर ह हर मानव अपन कलपनारीलरा कमतसवरतररा पवतक ही हर परिकररयो को परखना (परीकषि करना) सवीकारना या असवीकार करन क कायतकलाप को कररा ह

अनभि दशशन सस २०१२ दधदवतीय (अधयाय -३)

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सतर छद िाकय शबद क दवारा वकरया मातर का िणशन ह सारथ ही जञानानभवत क ललए उपदश पिशक इवगत भी ह बरहम सहज िणशन पारगामी वयापक और पारदशीयता क रप म ह lsquolsquoयहrsquorsquo किल भास आभास बोि तरथा अनभिगमय ह इसका बोि मानि की कषमता योगयता पातरता पर आिाररत ह परतयाितशन पिशक परापत वयजनाएा जागवत क ललए गणातमक गवत ह गणातमक वयजना स सबोि सबोि स सससकार सससकार स गणातमक सिदना (सजञानीयता पिशक सिदना वनयदधतरत) रहना गणातमक सिदना स सतय सकलप तरथा सतय सकलप स गणातमक वयजनाओ की वनरनतरता ह सथसथवत एि वकरया सकत-गरहण कषमता ही वयजनीयता ह सकत-गरहण -परवकरयाबदघ जञान परापय को पान उस सरधकषत रखन क कायशकरम म अलभवयकत ह परापत क अनभि क करम म भास-आभास एि परतीवत ही जञापक (सतयाततपत होना) ह मानि दसरो क ललए भी सकत परसाररत करता ह सकत-गरहण-वकरया ही अनमानारोपण तरथा अनमानाकर भी ह जो सकलप इचछा वििार ि आशा ह अधयाय-७ अलभवयजना म गणातमक विकास का सकत वयजना म उपयोवगता का सकत ह अभयदय पराय (अभयदय जसा) ही अलभपराय ह खजसम अभयदय का भास या आभास होना आिशयक ह

कमशदशशन सस २००४ (प ८६ ८७) परमाण म विकास का तातपयश परमाण क गठनपणश होन स ह|मानि म एक बात की िाहत बनी ह ndash यरथासथसथवत िभि उसकी वनरतरता ndash यह सवाभाविक रप म सवीकत ह| परमाणओ म अशो का घटना-बढ़ना पररणाम क सवरप म हम समझ िक ह| पररणाम का अमरतव उसकी वनरतरता की अपकषा मानि म ही कलपना भास आभास परतीवत क रप म पाया जाता ह

प २० २३ (शासतराधययन की महततव) सदशासतराधययन क वबना सतय कामना एि परितततत सतय कामना क वबना सतय-परम सतय-परम क वबना सतय-वनषठा सतय वनषठा क वबना सतय परवतषठा सतय-परवतषठा क वबना सतय परतीवत सतय-परतीवत क वबना सतयानभाि सतयानभाि क वबना सद शासतर का उदघाटन तरथा सदशासतर क उदघाटन क वबना सद शासतर का अधययन पणश और सारथशक नही ह| मानि को जीिन की परतयक सतिचरथ म शानतनत एि सथसथरता की आिशयकता ह| सदशासतर सिन मनन एि आिरण स वयकती तरथा पररिार म शानतनत तरथा सथसथरता पा जाती ह|

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(सदशासतर सिन = शासतराधययन स शरिण | मनन एि आिरण अभयास-अधययन करम म समपणश मनन परवकरया)

(प ९७ ९८)

सहअसतितविादी विधि स हर मानि मानितव सहहत वयिसथा और समगर वयिसथा म भागीदारी करन योगय इका ह इसम मखय मददा यही ह - सवय को सवय क ललय रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क सयकत रप म होन को सवीकारन की आिशयकता ह जीिन वकरया की महहमा और मानि परमपरा म इसकी आिशयकता धयान म रहना अवत आिशयक ह तभी मानि शोि क ललए ततपर होना पाया जाता ह ऐसी ततपरता जागवत सहज विधि स सिशशभ क अरथश म परिावित होना होता ह तभी सिशमानि समािान पिशक वयकत होन समझदारी पिशक हर पररिार समािावनत और सखी होन की सथसथवत सपषट हो जाती ह फलसवरप समशदघ अभय सहअसतितव परभावित होन का सौभागय उदय होता ह यही मखय वबनद ह सिशशभ का परमाण भी यही ह कयोवक समािान समशदघ पिशक ही मानि सख शानतनत का अनभि करता ह इसी करम म समािान समशदघ अभय सहअसतितव पिशक आननद अपन आप म समपणश होना पाया जाता ह इस ढग स मानि लकषय सारथशक होन की सथसथवत म जीिन लकषय (सख शावत सतोष आननद) सारथशक होता ही ह जीिन लकषय और मानि लकषय सारथशक होना ही अधययन और अधयापन की सािशभौमता ह ऐस लकषय क सारथ मानि परमपरा अपन आप म सवय को पहिानन और समपणश मानि को पहिानन का सतर और वयाखया बन जाता ह परमाण क रप म वयाखया समझ क रप म सतर होना पाया जाता ह यह वनयवत सहज विधि स समीिीन रहना पाया जाता ह वनयवत विधि का तातपयश विकासकरम विकास जागवत करम जागवत ह दसर विधि स भौवतक रासायवनक रिना शरीर और जीिन वकरयाकलाप का सयकत अलभवयततकत समपरषणा परकाशन क रप म ह

मानि लकषय - समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करन और उस आिार पर जीिन लकषय (मनसवसथता) - सख शानतनत सतोष आननद को सारथशक बनान क अरथश म मानि शशकषा ससकार की आिशयकता सदा-सदा स बनी ह ह इसकी सफलता ही मानि कल का सौभागय ह

lsquoमानि कल और रासायवनक-भौवतक वकरयाकलाप का सारथशक परमाणrsquo

शशकषा की समपणश िि सहअसतितव रपी असतितव म रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म ही ह इसम स इनक अविभाजय रप म मानि परमपरा का समपणश वकरयाकलाप वयिहार सोि वििार समझ ह समझ क अरथश म ही हर मानि का अधययन करना होता ह समझ अपन म जानना मानना पहिानना वनिाह करन क रप म परमाखणत होती ह इसी अरथश म समपणश अधययन सारथशक होना पाया जाता ह

असतितव म समपणश इका याा रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म पररलधकषत ह ही (प १०२) वनशचयता सथसथरता सिशमानि म चिराकााकषा क रप म बनी ही ह सहअसतितव रपी असतितव जञान और सवीकवत का आिार ह यह सिशमानि म सिकषण पिशक विदधदत होन िाला तथय ह सवय को जाािन स भी

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यही सपषट होता ह हम सब सथसथरता ि वनशचयता को ही सवीकार करत रह ह न वक असथसथरता अवनशचयता को सथसथरता क सहज आिार पर ही वनशचयता का होना सवभाविक ह (प ११५) इस हम मानि को अचछी तरह स समझन की आिशयकता ह और अनशीलन पिशक सरकषण सििशन विधि स सवय को वयसथसथत कर लन की आिशयकता ह मानि क वयिसथसथत होन क मल म जञान विजञान वििक का एक सगीतमय कायशकलाप सपषट रहन स ह यही कायश-कलाप भाषा कायश-वयिहार म वनयोखजत होकर परयोजनो को परवतपादधदत करता ह मानि का परयोजन समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करना ही ह (प १२२ १२३)

( अनभि मलक वििी स

यरथारथशता िािविकता सतयता का बोि रपी बशदघ की सथसथवत उस परकाशशत करन की परितततत क रप म सकलप ही गवत ह नयाय िमश सतय क साकषातकार करन क रप म चितत सथसथवत और इसका चितरण क रप म चिदधतरत हो पाना गवत ह चितत वकरयाकलाप का समपणश चितरण तलन क रप म अरथात नयाय िमश ि सतय रप म सपषट होना ितततत सहज सथसथवत ह ितततत म समपनन हय तलन का विशलषण विधि म विशलततषत होना ि समपरततषत होना ितततत सहज गवत ह विशलषण क सपषट अरथिा सार रप म मलय सवीकत होता ह इस आसवादन करना ही मन की सथसथवत ह इसकी सारथशकता क ललय ियन वकरया को समपादधदत करन क रप म गवतत होना हर मानि म सिधकषत ह इस ढग स मानि भी सभी परकार स सथसथवत-गवत म होना सपषट होता ह इस परकार मानि समझदारी स समपनन होन क उपरानत परमाखणत होना सवभाविक होता ह इसका मतलब यही हआ हम जब तक परमाखणत नही होत तब तक परमाखणत होन क ललए जञानाजशन वििकाजशन विजञानाजशन कर लना ही शशकषा और शशकषण का तातपयश ह इसक ललए सह असतितविादी शशकषा करम समीिीन ह अतएि समझदार मानि होन क ललए धयान दन की आिशयकता ह

सह-असतितविादी वििार जञान वििक विजञान को समझना ही समझदारी ह

ldquoअधययन रपी उपासनाrdquo (अभयास) - कमशदशशन सस २००४ प ४९ ५०

मानि जीिन म उपासना एक महतवपणश भाग ह| उपासना ही मल परिततततयो का पररमाजशन एि पररितशन परवकरया ह| यही ससकार एि सवभाि पररितशन भी ह| ( उपासना = उपायो सहहत लकषय पती क ललए कीया गया वकरयाकलाप) उपायपिशक सहिास पाना ही उपासना की अििारणा ह खजसक ललए पररशरम (पररमाजशन शरम) एि अभयास ह| अभयास एि पररशरम स ही सथल सकषम कारण की सथसथवतितता सपषट ह| खजसस ततसबिी पदारथश वनयवत-

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 19

करम शततकत महहमा विभती एि वनयम सबिी अनसिान (अनगमन पिशक अििारणा) शोि परधसदध ह| अनसिान भौवतक बौदधदधक तरथा आधयातमतमक भद स ह| अनसनधान परवकरया मनन चिितन सकलप एि अनभती क रप म परतयकष ह|

सथल सकषम कारण (दषटा) का तातपयश दखन समझन परयोग करन वयिहार करन एि अनभि करन योगय कषमता क सपनन होन स ह |

परिततततयो का पररमाजशन ही मानि जीिन का कायशकरम ह| मानि म पणशता एि पररमाजशनशीलता की अपकषा परतयक सथसथती म पा जाती ह| पणशता ही पादधडतय ह| पादधडतय स अधिक जञान एि वनपणता कशलता स अधिक वयिहार एि उतपादन नही ह| पररमाजशनशीलता उतपादन ि वयिहार म पा जाती ह| पादधडतय परबदधता परबदधता ही शशकषा एि वयिसथा ह| परबदधता स पररपणश होत तक उपासना अतयत उपयोगी ह|

प ५६ स ७२ (इनम स कछ ही िाकयो को ललया गया ह| समपणश क ललए पिक दख) उपासना स सािशभौततमक मलयो का अिगाहन करना ही परिान उपादयता ह| समि उपासनाओ क मल म लकषय समय ह िह अखड समाज सािशभौम वयिसथा ह| िह किल सिश

मगल ही ह| कयोकी सिश मगल की कामना क वबना सवय का मगल धसदध नही ह| अनय कामय कामनाए किल मगलमयता की भास परदायी ह न की अनभिदायी| इसललए सिशमगल

कामनारपी कायशकरम तःरथा उसकी अनसरण योगय कषमता पयत मानि परयास करन क ललए बाधय ह| सही क परती भरततमत रहना ही मत सपरदाय एि िगश का कारण ह|

मत सापरदाततयक िगीयता म आचरथिक िगीयता एि आचरथिक िगीयता म मत-सापरदाततयकता समा ह ह|

इसका वनराकरण सपषटतया सािशभौततमक रप म पा जान िाली मानिीयतापणश पदधवत स ldquoवनयम-तरयrdquo (बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक) क आिारपिशक ही आचरथिक एि सापरदाततयक िगश-भािनाओ स मकत होन की समभािना एि मकती ह| इसी म समि िगश-भािना विलीन हो जाती ह| इसीललए ndash

उपासना की उभय पदधवत का अभीषट समझदारी जागवत पिशक सारथशक होता ह जो जागरण ह| मानि म शततकतया वकरया इचछा एि जञान शततकत ही ह जो उनकी अहशताए ह| अहशताए परतयक इका

की जागवतशीलता जागवत पर आिाररत ह| शबद सपशश रप रस गिनतियो दवारा शततकतयो का अपवयय न होना सारथ ही सदवयाय होना ही

वकरया शततकत की जागवत ह| सदवयय एि अपवयय का वनिारण मानिीयता क सीमा म ldquoवनयम-तरयrdquo क रप म ह |

अतकरण मल परितताा अरथात आशा वििार इचछा ि सकलप का अपवयय न होना ही सदवयय ह| यही इचछा शततकत का जागरण ह|

समयक-बोि एि अनभती पणशता ही जञान परकटन कषमता ह| यही जञानशततकत का जागरण अरथिा पणश जागरण ह| यह ldquoजागवत-तरयrdquo मानिीयता एि अवतमानिीयता म परतयकष ह| यही मानि जीिन की िरमोतकषश

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उपलसतबध ह| सशकत उपासना क उपादयता यही ह यही समगर मानि की कामना ह| यही सिशमगल ह| इसीललए

जीिन-जागवत का परतयकष सवरप ही वििक पणश विजञान का परयोग ह यही सतकशता अखणड सामाखजकता परबदघता वनविि षमता सह-असतितव शशकषा विधि वयिसथा सभयता ससकवत बौशदघक समािान भौवतक समशदघ और जीिन जागवत की वनरनतरता ह

पणश जागवत पयशनत परतयक मानि इका परयास एि उपासना क ललय बाधय ह इसी क फलसवरप मल परिततततयो का पररमाजशन होता ह खजसक कारण विशशषट और शशषट मानधसकता एि वििार चिनतन-बोि कषमता अनभिपणशता परतयकष होती ह यही शरषठ उपासना की उपलसतबधयाा ह

इसललय समान क सारथ वयिहार करन क ललय बाधय हआ ह यही सामाखजकता की बाधयता ह यही मानि जीिन की गौरि और गररमा ह यही गररमा समान क सारथ वयिहार अधिक जागवत क ललय अभयास करन क ललय पररणा ह यही िािविक उपासना ह

वििक अरथात मानि लकषय और िरागय अरथात समशदघ ही उपासना का परतयकष फल ह खजसम सामाखजकता सवाभाविक रप स समाहहत रहती ह

िरागय का पराितशन ही असगरह (समशदघ) उदारता एि दया ह भौवतक समशदघ म उदारता एि दया क मौललक मलयो का अनरजन ही सामाखजकता का पराण ततव ह यही सामाखजक सगीत ह इसी क ललय मानि तततषत ह वििक ही बौशदघक समािान एि सामाखजक मलयो को वनिाह पिशक परकट करता ह इसललय

वििक ि िरागय ही परोकष जञान (सदवयिहाररक जञान) का परिान लकषण ह अनभि ही परोकष जञान की अनतनतम सथसथवत ह इसक पिश अनमान अधिकार ही परधसदघ ह ििसथसथवत ििगत सथसथवत सतय म ही अनभि ह

परोकष जञान क वबना वनतयावनतय यकतायकत नयायानयाय िमािमश सतयासतयइषटावनषट दषटादषट तरथा परोकष जञानाधिकार धसदघ नही होता ह

वनतयावनतय जञानाधिकार क वबना मनषय म सविमश क परवत वनषठा नही पा जाती ह मानि िमश ही सख सख ही नयायपणश आिरण नयायपणश आिरण ही मानिीयतापणश सीमा एि lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का पालन ह यही मनषय का सविमश ह मानि सख िमी ह

मयादा विहीन इका नही ह जस जीिो म सवभाि मयादा िनसपवतयो म गण मयादा एि पदारथो म रप मयादा-भग नही होती ह यही उनकी गररमा ह इसी परकार मानि म सख ही िमश ह िमश ही मयादा ह यही उनकी गररमा एि विशवास ह मयादा का परतयकष रप ही विशवास ह

lsquolsquoविशवासविहीन समबनध एि समपकश म सख नही हrsquorsquo समबनध एि समपकश विहीन मनषय नही ह यही बाधयता सविमश क ललय ह इसक पालन म जो अकषमता अयोगयता एि अपातरता ह - िही दख कलश समसया और अजागवत ह

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सविमश म समपननता एि पालन करन योगय कषमता योगयता एि पातरता स पररपणश होत तक जञानाजशन करन क अरथश म अधययन रपी उपासना का अभाि नही ह

मानि क सविमश की सीमा म ही मत समपरदाय िगश वतरोहहत हो जात ह यही समरथश उपासना की परतयकष गररमा ह lsquolsquoयही मागललक हrsquorsquo साधय सािक सािन इन तीनो का उपासना म समाहहत रहना अवनिायश ह इनकी एक सतरता ही उपासना की सफलता ह अनयरथा असफलता ह परतयक सथसथवत म परापत शततकत ि सािनो का सदपयोग करना ही उसकी अवगरम जागवत ह यही उपासना ह

इनतिय कायशकलाप तरथा इनतियो का कायशकषतर ही अपरोकष जञान की सीमा ह इस वयापार म ितविि षय सीमानतिती धसशदघयाा ह इसक अवतररकत और उपलसतबधयाा इसम नही ह

विषयो की सीमा म मनषय सीततमत नही ह कयोवक उसम िार आयाम परधसदघ ह

मनषय ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत समपनन होन क ललय बाधय ह यही आिशयकता अिसर सभािना एि वयिसथा ह

सयमतापिशक ही मनषय क दवारा परतयक पररपरकषय म वकय गय वकरयाकलाप म स गररमापणश िभि परकट होता ह जस-

सतयबोि सहहत सतय बोलन का अभयास करन स भय ि अविशवास की वनितततत हषश तरथा उतसाह का उदय होता ह

विशव क परवत मलय भाि की परवतषठा स इषट और सािक क मधय विषमता का अभाि होता ह

शबद क अरथश अरथात मनतरारथश का तदरपतापिशक समरण करन क अभयास स उसका अरथश एि सवभाि गमय होता ह सभी सारथशक शबद मनतर ह

अधिक जागत म समपशण स अलभमान ि अहकार का उनमलन तरथा विदया ि सरलता का उदय होता ह ( अधिक जागत = समझान िाला परमाखणत वयततकत गर)

शरीर सिदना सयत रहन स मन की पवितरता मन की पवितरता स मनोबल का लाभ होता ह

सव-शरीर मोह नषट होन स ससार क परवत मोह दर होता ह सिशशभरपी आपत कामना पणश बशदघ स ही विशव क परवत उदारता दया कपा करणा का परसिन तरथा विशव की आिारभत सतता म जञान एि अनभि होता ह

जञान विजञान वििक रपी सवतवहीनता ही असयमता मनोदौबशलय मल परविततततयो की अपररषकवत राग मोह लोभ अवििक अहकार अलभमान दहातमिादी परितततत दरािार सघषश असह-असतितव सशकता दवष तरथा तपोहीनता ह

सयमता क वबना बौशदघक मल परिततततयो की पररषकवत बशदघबल सामाखजक मलयो की अनभवत ितनय वकरया का दशशन समािान और सयमता धसदघ नही होती ह

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उपासना क ललय िातािरण का महतव अपररहायश ह खजसम स मनषय कत िातािरण ही परिान ह जो शशकषा ि वयिसथा क रप म ही ह

मानिीयता की सीमा म वयिहार lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का आिरण ही वयततकततव ह ऐस वयततकततव क वनमाण म सवकरय योगदान ही कततशवय ह यही परषारथश ह यही परबदघता ह

आशा भद स उपासना उपासना भद स अनभि अनभि भद स अनमान अनमान भद स उपासना भद ह यही उपासना म िविधयता का कारण ह यह िविधयता सािशभौम आिरण की सीमा म विलय होन क ललय बाधय ह

मानि क ललय सहज समरथश उपासना एक अवनिायश कायशकरम ह जो अमानिीयता स मानिीयता मानिीयता स अवतमानिीयता की परवतषठा सथाततपत करती ह

सह-असतितव म अनकषण-विकषण-ितततत स सहजाितततत होती ह

कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ही अनकषण-विकषण ितततत ह

अनकषण का तातपयश परतयक कषण म लगातार सह-असतितव चिनतन वििार करम म परमाखणकता का सहज परमाण परित हो जाता ह यही सहजाितततत ह

सतता म समपकत परकवत की समपकतता का जञान ही (पणश-दशशन) कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ह यही भरततमत भाि ि अभाि का वतरोभाि ह यही सहज परवतषठा ि अिसथा ह

सतता म समपकत परकवत का जञान न होन स और अनभिमलक जञान न होन स भय और परलोभनिश समि भरममलक कायश-वयिहार सोि-वििार को बनाय रखता ह यही समपणश कलश का कारण ह

काल वकरया की अिधि ह इसी अिधि म आरोततपत वििार ि इचछा ही असहज एि वनरारोततपत वििार ि इचछा ही सहज ह

मानि इका म ही जागवत क करम म भी वनरारोपण कषमता पा जाती ह भरमिश आरोपण होता ह

जो जसा ह उसस अधिक कम अरथिा नासमझना ही आरोपण ह यही अजञान ह यही अकषमता ह यही भरम ह

सतता म समपकत जड़-ितनयातमक परकवत की सथसथवत-शीलता ि सतता सहज पणशता क समबनध म ही आरोप या वनरारोण वकरया समपनन होना पाया जाता ह

परतयक इका म रप गण सवभाि एि िमश समाहहत ह यही उसकी कायशितता ह इसी की गणना पररमाण परयोजन जञान ही परकवत क परवत वनभरमतापणश कषमता का दयोतक ह यही परमाण ह यही सहजता ह

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समपणश वकरयाय मलत रप और शबद भद म दषटवय ह

परकता क वबना इका म अवगरमता नही ह

पणशता पयशनत इका परकता उपयोवगता क ललए परितत ह

परकता ही इका म हरास ि विकास क लकषणो को परकट करती ह यही परिान उपादयता भी ह

इका म परकट होन िाल शबदादधद गण ही सापकष शततकतयाा ह गणविहीन इका नही ह इसललय

मनषय म सहज कामना का अभाि नही ह सहजता ही िमश ह यही सख शानतनत सतोष एि आननद ह यही िारणा को सपषट करता ह जो परतयकष ह

परतयक कमश-फल ही मनषय क सख का पोषक ि शोषक धसदघ हआ ह

सतय और सतयता क अनभि-करम म वयििान नही ह कयोवक अनभिकरम-वयिसथा सघन ह जागवत की कदधड़याा सघन ह इसललय-

सहजता आरोप स मकत ह आरोप ही नयनावतरक मलयाकन ह सवय की नयनावतरक मलयाकन वकरया ही असहजता ह

सवय का मलयाकन lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म होता ह

lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म न हो ऐसा मनषय इस पथवी पर नही ह

िमश का वियोग नही ह कयोवक यह िारणा ह इसका परतयकष रप ही मानिीयता एि अवतमानिीयता पणश आिरण ह जो सहजता का परिान लकषण ह इसललय -

अमानिीयता पणश आिरण ही असहज ह इसललय

परकवत अपन म समपणशता क सारथ सीततमत ह यही अिधि ह इसललय पणश म समायी ह यही पणश म समपणशता सहज सह-असतितव ह यही समपणशता का वनतय ितशमान और जञानािसथा क मानि म पणशता का परसि ह यही जागवत क ललय बाधयता ह

मनषय क बौशदघक कषतर म पायी जान िाली अनािशयक कलपनाओ का वनराकरण ही दशशन-कषमता म गणातमक पररमाजशन ह यही गणातमक ससकार-पररितशन शशकषा एि जीिन क कायशकरम का योगफल ह

दशशन-कषमता का उतकषश ही अनकषण विकषण ह यही मधयसथ वकरया की कषमता ह मधयसथ वकरया ही दषटा ह

मधयसथ वकरया का िरमोतकषश ही सम ि विषम वकरया का पणश वनयतरण ह यही कषमता कषण-कषण मधयसथ वयििान स मततकत ह

ससकार पिशक ही बौशदघक वयिसथा-परवकरया -कषमता क आनषवगक ह मनषय सहज ऐषणा एि विषयो की सीमा म परितततत ि वनितततत पिशक वयि होना पाया जाता ह जो परतयकष ह

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आतमा (मधयसथ वकरया) क आनषवगक बौशदघक परवकरया ि वयिसथा म सतय-सकलप एि सतय-कलपनापणश मानधसकता की सथसथवत पा जाती ह जो परधसदघ कमश उपासना जञान पणश ह यही कषमता दि ि दधदवय मानिीयता को परकट करती ह यही पणश जागवत ह

ऐषणासकत बौशदघक वयिसथा म मानिीय तरथा दि मानिीय सवभाि परकट होता ह उसी क अनरप म मानधसक िातािरण की सथसथवतशीलता ह ऐसी कषमता ही सामाखजक ितना एि सतकशता स पररपणश पायी जाती ह

विषयासकत बौशदघक वयिसथा ि परवकरया म अमानिीयतापणश आिरण समपनन होता ह जो पाशविकता तरथा दानिीयता क रप म दषटवय ह इनम उसी क योगय मानधसकता पा जाती ह यही लपत-सपत कलपना का कारण ह यही अजागवत तरथा अपणश सतकशता का दयोतक ह

शरय (जागवत) खजजञास होन पर ही लपत-सपत कलपनाय पररमाखजि त होती ह फलत दानिी ि पाशिी परिततततयो स उदासीनता सथसथर होती ह सारथ ही वििकोदय होता ह

शरय खजजञासा का उदय सव-ससकार विधि-विहहत अधययन तरथा उसक अनकल िातािरण म होता ह

विधि-विहहत-अधययन वनपणता कशलता ि पादधडतय ही ह

अधययन एि िातािरण ही ससकार पररितशन क ललय समरथश वयिसथा ह खजसका गणातमक पररितशन ही आतमबोि क ललय खजजञासा ह

आतमबोि ही सतय खजजञासा का परिान लकषण ह इसललय- अििारणा ही अनगमन तरथा अनशीलन क ललय परितततत ह जो शशषटता क रप म परतयकष होती ह परगवत क ललय अििारणा अवनिायश ह जागवत क ललय अििारणा एि हरास क ललय आसततकत परधसदघ ह यही करम स वनितततत ि परितततत ह अििारणा ही सदधदविक ह सदधदविक सवय म सतयता की विििना ह जो सपषट ह मलत यही शभ एि मागलय ह अनभि की अििारणा सतय बोि क रप म अििारणा (समयक-बोि) ही सतय-सकलप ह यही परािवति त होकर शभकमश उपासना तरथा आिरण क रप म परतयकष ह इसी का पररिवति त मलय ही िीरता िीरता उदारता दया कपा और करणा क रप म परतयकष ह सतय म ही समयक-बोि होता ह असतय ही कलपना एि भास होता ह हीनता दीनता और कररता स यकत कमश अशभ होता ह सव-मलय ही परितततत और वनितततत का िशश ह इसललय असतय अलभमान तरथा दपश स मकत सतय सरलता सहजता तरथा सौजनयता स यकत कमश ि उपासना शरय कारक ह

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सतय कामना की वनरनतरता स लकषय की अििारणा होती ह जञान म ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत परतयकष ह जञान वििक सममत विजञान ही ह जो पणश ह सतय और सतयता म दढ़ता ही शरयमय जीिन ह सतयानभवत ही सबका अभीषट ह शरीर स समपनन होन िाल समि वकरयाओ का सिालन मन ही मिस दवारा करता ह मिस स सभी नादधड़याा वनयदधतरत ह शबद का मल रप मन ही ह मिस पर मन आसवादन एि सवागत भािपणश तरगो का परसारण सिालन वनयतरण करता ह उसक मल म शबद ही ह जागवत की ओर गवत हत वनयतरणातमक शबद ही मतर ह लकषय-पराततपत-योगय-करम परवकरया ही वनयतरण ह शबद म जो भाि (मलय) ह िही उसका अरथश ह सारथशक शबदो का अरथश ही जागवत की ओर गवत ह कयोवक शबद का अरथश असतितव म िि ह भाि म जो उपयोगपणश अवनिायशता ह िही उसका महतव ह उपयोग पणश अवनिायशता म जो वनचशचत दधदशा ह िही उसकी दढ़ता ह यही समयक सकलप ह समयक सकलप म जो पणशता ह िही अनभि ह जो करम स मन ितततत चितत बशदघ और आतमा म पा जान िाली सससकत मौललक वकरयाय ह भाि का तातपयश होन स ह शततकत-तरय-जागरण (इचछा-शततकत वकरया-शततकत तरथा जञान शततकत जागरण) क वबना तयाग (भरममततकत) और परम परमाखणत नही होता

मनन परवकरया म सव-मलयाकन

सव-मलयाकन मनन धयान ldquoअपराि क अभाि म दयापणश आशा का पराितशन अनयाय क अभाि म नयायपणश वििार का पराितशन आसकती क अभाि म समािान पणश इचछा का पराितशन तरथा अजञान क अभाि म जञानपणश सकलप का पराितशन होता ह| अत अपरािहीन वयिहार क ललए वयिसथा का परभाि अनयायहीन वििार क ललए अखणड समाज का परभाि तरथा अजञान रहहत बदधदध क ललए अतवनि यामन अरथिा धयान आिशयक ह खजसस ही परतयाितशन वकरया सफल ह| धयान का अरथश समझन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना और समझन-अनभि करन क

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उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

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मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

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(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

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सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

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प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

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अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

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३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

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(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

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उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

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मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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अनभव असतितव म ही होना पाया जारा ह अनभव क पहल समझदारी जानन-मानन-पहचानन क रप म होना पाया जारा ह यही अधययनपवतक होन वाला अविारिा ससकार ह इसक पवत रप म करवचार और चचतरि ही रहरा ह यही शरकरर समकरर रबद और चचतरि ह रबद और चचतरि क आिार पर करकरन भी करियाकलापो को मानव सपाददर कररा ह यह सब असथिररा क साथ ही जझरा हआ दखा गया ह असथिररा म भरम ही परिान कारि ह इसीललय ही समरि और चचतरि क उपरानत कही न कही असथिररा-अकरनियरा को परकाशरर कररा ही ह इसी सीमा रक हम इस बीसवी सदी क अर रक झलर आय ह सथिररा की सवीककरर बोि रप म ही होना फलसवरप वयवहार म नयाय-समािान-सतय परमाणिर होना पाया जारा ह ऐसा बोि जानन-मानन-पहचानन का ही महहमा ह यह करिया जीवन म ही जागकरर सहज करवधि स होन वाली वाधिर परकरिया ह असतितव म अनभव सतता म (वयापक म) सपकत परककरर क रप म ही दखा गया ह सतता म सपकत रहन क आिार पर ही करियारीलरा करनयतरि सरलन सरकषि सामय ऊजा सरोर होना दखा गया ह इसीललय परककरर म करनयतरि सरकषि करनररर बना ही रहरा ह अर सतता म करनयतरि सपषट ह (प ७४) असतितव सहज सह-असतितव म जड़-चरनयातमक परककरर करनतय वभकरवर होन का सवरप करिया शरम गकरर पररिाम परकारन सहज करियाकलाप और पररिाम का अमरतव शरम का करवशराम गकरर का गरवय सहज लकषय करनहहर करिया उपयोकरगरा परकरा-उदाततीकरि करनयमो क अनरप समपित भौकररक-रासायकरनक जीवन रपी परककरर म करनतय रचना-करवरचना lsquoतवrsquo सहहर वयविा और उसकी परपरा भल परकार स बोि करान की सहज-करिया समपि करकया जा चका ह इसी िम म शरम का करवशराम गकरर का गरवय रपी परमािो को मानव परपरा म परमाणिर करन की आवशयकरा रहा ह इस सवतसलभ लोकगमय करन क ललए अधययनपवतक जागकरर करवधि और इसक परमाि म बोि परिाली को पहचाना गया यह भी अनभव करकया गया ह करक बोि होना समझदारी का ही दसरा नाम ह अथवा बोि का ही दसरा नाम समझदारी ह ऐस समझदारी अधययनमलक परिाली स अविारिा म िापकरर होना ऐसी अनभव मलक अविारिाओ को अलभवयकत सपरकतरर परकाशरर करन क िम म असतितव म अनभव एक अवशयभावी परकरिया क रप म सपषट हई ह इस िम म असतितव म अनभव करनतय ह यही मानव का परयोजन ह जीवन करनतय ह असतितव सथिर ह इसी आिार पर अनभव और अनभव िम अलभवयकतकत सहहर जागकरर सहज जीवन का गनतवय अथार जीवन म जागकरर पितरा ही जीवन गकरर का गरवय िली होना उसकी करनरनतररा सदा-सदा क ललय बना ही रहना दखा गया इिी आिारो पर lsquoअसतितवrsquo सतता म सपकत जड़-चरनय परककरर क रप म परकररपाददर हई सह- असतितव करवधि स वयाखयाकतयर हई यह महहमा जागकरर पित जीवन सहज अलभवयकतकत ह (प १८३) जीवन जञान सह-असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान रथयो सहज करवधिवर अधययनपवतक बोि होना दखा गया ह ऐस बोि सहज रथयो को उदघादटर करन क िम म और लोकवयापीकरि करन क

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िम म परमाणिर होर ही ह फलसवरप अनभर भी होर ह इस परकार करनतय परमाि और अनभव सहज रप म ही समपि होरा हआ दखा गया ह यही कवलय और जागकरर की महहमा ह (प १५४- १५७) जागकरर करवधि और अभयास असतितवमलक मानव कनदरिर चचनतन जञान दरतन आचरि िरवीकर रप म अधययन गमय होना दखा गया ह जीवन जञान जीवन म समपि होन वाली करियाओ का परसपररा सहज िरव करबनदओ क आिार पर उभय रकतपत करवधि सवत रभ एव समािान स दखा गया अलभवयकतकतया ह जसा मन और रकतपत म सामरसयरा का करबनद करवशलरि रलन पवतक आसवादन क रप म पहचाना गया ह यह सह-असतितव अनभव क पिार करनयम नयाय िमत सतय सहज परयोग म अनभर होन क उपरानत ही साथतक हो पारा ह इसक ललय अथार ऐस अनभकरर क ललय अधययन िम स आरभ होरा ह अधययन अविारिा कषतर का भरर-भरर वरतमान करवधि ह इस करवधि स णजरनी भी अविारिाए अधययन स समबदघ होरा गया उरन ही अविारिा क आिार पर परवकततत सहज नयाय िमातमक और सतय सहज रलन नयाय रलन समपि करवचार क आिार पर करकया गया आसवादन सहहर समपि करकया गया सभी चयन नयाय रप होना दखा गया ह इसी परकार ऊपर कह चचनतनपवतक जब चितरण रलन करवचार आसवादन और चयन करियाए समपि होर ह नयायपवतक वयविा म परमाणिर होना दखा गया अविारिाए सवाभाकरवक रप म ही असतितव सहज होन क आिार पर सह-असतितव रप होन क आिार पर अनभर होना अथार जानना-मानना और उसक रकतपत करबनद को पाना ही अनभव ह जानना-मानना-पहचानना ही अविारिा ह इसम रकतपत करबनद को पा लना ही अनभव ह इस कायत-वयवहार वयविा म वयकत कर दना परामाणिकरा ह अनभव परमाि पित बोि सहहर समपि होन वाल सकलप चचनतन चचतरि नयाय िमत सतय रपी रलन करवशलरि आसवादन सहहर करकया गया समपित अलभवयकतकतया वयविा और समगर वयविा म भागीदारी करनवाह कररा हआ ही दखन को कतमलरा ह इस करवधि स जागकररपित मानव ही असतितव म भरम बनधनो स मकत होना सपषट करकया जा चका ह जागकरर करवधि अधययन रपी सािना करवधि स सवाधिक उपयोगी सदपयोगी परयोजनरील होना दखन को कतमला ह इस करवधि स साधय सािक सािन का सामरसयरा सवय सफरत करवधि स समपि होना दखा गया ह जागकरर क ललय हर मानव सािक ह साधय जागकरर ही ह सािन जागकररगामी अधययन परिाली ह इस िम म परमपरा सािन परकररिा क रप म रन-मन-िन वयविा और समगर वयविा म भागीदारी का परमाि मानवाकाकषा क रप म होरा ही ह इस परकार स साधय-सािक-सािन का सयोग मानवीयरापित परपरा करवधि स सफल होन का सवरप सपषट ह ऐस परपरा क पवत (जस आज की सथिकरर म भरकतमर समदाय परपराए) मानवीयरापित परपरा म सिकतमर होन की कायतपरिाली मददा ह इस िम म अनसिान क अननतर णजरन भी रोिकरा सममर होर जार ह और सममकरर क अनरप करनिा उदगकतमर हो जारी ह और भी भाराओ स सवय सफरत करनिा उदगकतमर होरी ह ऐस ही करनिावान मिावी इस कायत म सलगन ह यही आज की सथिकरर म जागकररगामी अधययन जागकररमलक अलभवयकतकत सहज करवधि एक स अधिक वयकतकतयो म परमाणिर होन का आिार बन चकी ह जागकररपित परपरा म साधय सािन सािक म करनतय सगीर होना दखा गया ह दसर भारा म करनतय समािान होना पाया गया ह

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उललणखर अनभवो क आिार पर समपित जागकरर अपन-आपस जीवन जञान असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान म ही समपित ह इसका अभयास करवधि सवतपरथम अनसिान दसरा अधययन पवतक रोि रोि पवतक अधययन य ही मल अभयास ह कयोकरक अधययन करवधि स ही रोि करवधि स ही अविारिा का सवीकर होना दखा जारा ह अनय करवधि जस उपदर करवधि म भरकतमर होन की सभावना सदा बना ही रहरा ह हर परपरा म अपन ढग की आदर परकररिा िाकतपर रहरा ही ह वह अधययवसाकतयक (अधययनगमय) होर रक उपदर या सचना मातर ह परपरा म णजस आरय क ललय आदर-करनदर ह वह रकत सगर-वयवहार सगर बोि होन की परकरिया परिाली पदघकरर ही अधययन कहलारी ह रकत का साथतक सवरप करवजञान सममर करववक और करववक सममर करवजञान होना दखा गया परयोजन करवहीन उपदर परयोग वह भी वयवहार परमाि करवहीन उपदर रब रक ही रह पारा ह जब रक रकत सगर न हो रकत का रातपयत भी इसी रथय को उदघादटर कररा ह रकतपत क ललय आकरति परिाली (भारा परिाली) ऐस रकत सहज रप म ही करवजञान क आशरर करवशलरिो को करववक स आशरर परयोजनो का परमाणिर होना सहज ह हम इस बार को समझ चक ह करक परयोजनपवतक जीन क ललय परमाणिर होन क ललय समािान समशदघ क रप म सह-असतितव दरतन क ललय रकत सगर अधययवसाकतयक करवधि का होना आवशयक ह अधययन करियाकलाप रकतसगर परयोजन परयोजन सगर मानवापकषा मानवापकषा सगर जीवनापकषा जीवनापकषा सगर सह-असतितव सह-असतितव सगर करवकास िम और करवकास करवकासिम और करवकास सगर जीवन-जीवनी िम-जागकरर िम-जागकरर एव इसकी करनररररा सह-असतितव सहज लकषय ह असतितव सहज लकषय म भी मानव ही अकरवभाय ह और दषटा ह इसललय मानव असतितव सहज सह-असतितव करवधि स परकरा-उदाततीकरि परकरा-करवकास परकरा-जागकरर सतरो क आिार पर सह-असतितव सहज अधययन सलभ हआ ह समपित असतितव ही वयविा क सवरप म वरतमान होना समीचीन ह आज भी मानव क अकररररकत सभी अविा म (पदाथत पराि जीव अविा) अपन-अपन तव सहहर वयविा म होना ददखरा ह इसी िम म मानव भी अपन मानवतव सहहर वयविा और समगर वयविा म भागीदारी सहज अपकषा को साथतक बनान क िम म ही जागर होना पाया जारा ह हम यह पार ह करक जागकरर सतर वयाखया और परमाि सवतरभ क सवरप म ही वभकरवर होरा ह इस आरय को लोकवयापीकरि करना भी सवतरभ कायतिम का एक बकरनयादी आयाम ह इसी सतयरावर lsquolsquoअनभवातमक अधयातमवादrsquorsquo एक परिकरर ह हर मानव अपन कलपनारीलरा कमतसवरतररा पवतक ही हर परिकररयो को परखना (परीकषि करना) सवीकारना या असवीकार करन क कायतकलाप को कररा ह

अनभि दशशन सस २०१२ दधदवतीय (अधयाय -३)

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सतर छद िाकय शबद क दवारा वकरया मातर का िणशन ह सारथ ही जञानानभवत क ललए उपदश पिशक इवगत भी ह बरहम सहज िणशन पारगामी वयापक और पारदशीयता क रप म ह lsquolsquoयहrsquorsquo किल भास आभास बोि तरथा अनभिगमय ह इसका बोि मानि की कषमता योगयता पातरता पर आिाररत ह परतयाितशन पिशक परापत वयजनाएा जागवत क ललए गणातमक गवत ह गणातमक वयजना स सबोि सबोि स सससकार सससकार स गणातमक सिदना (सजञानीयता पिशक सिदना वनयदधतरत) रहना गणातमक सिदना स सतय सकलप तरथा सतय सकलप स गणातमक वयजनाओ की वनरनतरता ह सथसथवत एि वकरया सकत-गरहण कषमता ही वयजनीयता ह सकत-गरहण -परवकरयाबदघ जञान परापय को पान उस सरधकषत रखन क कायशकरम म अलभवयकत ह परापत क अनभि क करम म भास-आभास एि परतीवत ही जञापक (सतयाततपत होना) ह मानि दसरो क ललए भी सकत परसाररत करता ह सकत-गरहण-वकरया ही अनमानारोपण तरथा अनमानाकर भी ह जो सकलप इचछा वििार ि आशा ह अधयाय-७ अलभवयजना म गणातमक विकास का सकत वयजना म उपयोवगता का सकत ह अभयदय पराय (अभयदय जसा) ही अलभपराय ह खजसम अभयदय का भास या आभास होना आिशयक ह

कमशदशशन सस २००४ (प ८६ ८७) परमाण म विकास का तातपयश परमाण क गठनपणश होन स ह|मानि म एक बात की िाहत बनी ह ndash यरथासथसथवत िभि उसकी वनरतरता ndash यह सवाभाविक रप म सवीकत ह| परमाणओ म अशो का घटना-बढ़ना पररणाम क सवरप म हम समझ िक ह| पररणाम का अमरतव उसकी वनरतरता की अपकषा मानि म ही कलपना भास आभास परतीवत क रप म पाया जाता ह

प २० २३ (शासतराधययन की महततव) सदशासतराधययन क वबना सतय कामना एि परितततत सतय कामना क वबना सतय-परम सतय-परम क वबना सतय-वनषठा सतय वनषठा क वबना सतय परवतषठा सतय-परवतषठा क वबना सतय परतीवत सतय-परतीवत क वबना सतयानभाि सतयानभाि क वबना सद शासतर का उदघाटन तरथा सदशासतर क उदघाटन क वबना सद शासतर का अधययन पणश और सारथशक नही ह| मानि को जीिन की परतयक सतिचरथ म शानतनत एि सथसथरता की आिशयकता ह| सदशासतर सिन मनन एि आिरण स वयकती तरथा पररिार म शानतनत तरथा सथसथरता पा जाती ह|

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(सदशासतर सिन = शासतराधययन स शरिण | मनन एि आिरण अभयास-अधययन करम म समपणश मनन परवकरया)

(प ९७ ९८)

सहअसतितविादी विधि स हर मानि मानितव सहहत वयिसथा और समगर वयिसथा म भागीदारी करन योगय इका ह इसम मखय मददा यही ह - सवय को सवय क ललय रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क सयकत रप म होन को सवीकारन की आिशयकता ह जीिन वकरया की महहमा और मानि परमपरा म इसकी आिशयकता धयान म रहना अवत आिशयक ह तभी मानि शोि क ललए ततपर होना पाया जाता ह ऐसी ततपरता जागवत सहज विधि स सिशशभ क अरथश म परिावित होना होता ह तभी सिशमानि समािान पिशक वयकत होन समझदारी पिशक हर पररिार समािावनत और सखी होन की सथसथवत सपषट हो जाती ह फलसवरप समशदघ अभय सहअसतितव परभावित होन का सौभागय उदय होता ह यही मखय वबनद ह सिशशभ का परमाण भी यही ह कयोवक समािान समशदघ पिशक ही मानि सख शानतनत का अनभि करता ह इसी करम म समािान समशदघ अभय सहअसतितव पिशक आननद अपन आप म समपणश होना पाया जाता ह इस ढग स मानि लकषय सारथशक होन की सथसथवत म जीिन लकषय (सख शावत सतोष आननद) सारथशक होता ही ह जीिन लकषय और मानि लकषय सारथशक होना ही अधययन और अधयापन की सािशभौमता ह ऐस लकषय क सारथ मानि परमपरा अपन आप म सवय को पहिानन और समपणश मानि को पहिानन का सतर और वयाखया बन जाता ह परमाण क रप म वयाखया समझ क रप म सतर होना पाया जाता ह यह वनयवत सहज विधि स समीिीन रहना पाया जाता ह वनयवत विधि का तातपयश विकासकरम विकास जागवत करम जागवत ह दसर विधि स भौवतक रासायवनक रिना शरीर और जीिन वकरयाकलाप का सयकत अलभवयततकत समपरषणा परकाशन क रप म ह

मानि लकषय - समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करन और उस आिार पर जीिन लकषय (मनसवसथता) - सख शानतनत सतोष आननद को सारथशक बनान क अरथश म मानि शशकषा ससकार की आिशयकता सदा-सदा स बनी ह ह इसकी सफलता ही मानि कल का सौभागय ह

lsquoमानि कल और रासायवनक-भौवतक वकरयाकलाप का सारथशक परमाणrsquo

शशकषा की समपणश िि सहअसतितव रपी असतितव म रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म ही ह इसम स इनक अविभाजय रप म मानि परमपरा का समपणश वकरयाकलाप वयिहार सोि वििार समझ ह समझ क अरथश म ही हर मानि का अधययन करना होता ह समझ अपन म जानना मानना पहिानना वनिाह करन क रप म परमाखणत होती ह इसी अरथश म समपणश अधययन सारथशक होना पाया जाता ह

असतितव म समपणश इका याा रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म पररलधकषत ह ही (प १०२) वनशचयता सथसथरता सिशमानि म चिराकााकषा क रप म बनी ही ह सहअसतितव रपी असतितव जञान और सवीकवत का आिार ह यह सिशमानि म सिकषण पिशक विदधदत होन िाला तथय ह सवय को जाािन स भी

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यही सपषट होता ह हम सब सथसथरता ि वनशचयता को ही सवीकार करत रह ह न वक असथसथरता अवनशचयता को सथसथरता क सहज आिार पर ही वनशचयता का होना सवभाविक ह (प ११५) इस हम मानि को अचछी तरह स समझन की आिशयकता ह और अनशीलन पिशक सरकषण सििशन विधि स सवय को वयसथसथत कर लन की आिशयकता ह मानि क वयिसथसथत होन क मल म जञान विजञान वििक का एक सगीतमय कायशकलाप सपषट रहन स ह यही कायश-कलाप भाषा कायश-वयिहार म वनयोखजत होकर परयोजनो को परवतपादधदत करता ह मानि का परयोजन समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करना ही ह (प १२२ १२३)

( अनभि मलक वििी स

यरथारथशता िािविकता सतयता का बोि रपी बशदघ की सथसथवत उस परकाशशत करन की परितततत क रप म सकलप ही गवत ह नयाय िमश सतय क साकषातकार करन क रप म चितत सथसथवत और इसका चितरण क रप म चिदधतरत हो पाना गवत ह चितत वकरयाकलाप का समपणश चितरण तलन क रप म अरथात नयाय िमश ि सतय रप म सपषट होना ितततत सहज सथसथवत ह ितततत म समपनन हय तलन का विशलषण विधि म विशलततषत होना ि समपरततषत होना ितततत सहज गवत ह विशलषण क सपषट अरथिा सार रप म मलय सवीकत होता ह इस आसवादन करना ही मन की सथसथवत ह इसकी सारथशकता क ललय ियन वकरया को समपादधदत करन क रप म गवतत होना हर मानि म सिधकषत ह इस ढग स मानि भी सभी परकार स सथसथवत-गवत म होना सपषट होता ह इस परकार मानि समझदारी स समपनन होन क उपरानत परमाखणत होना सवभाविक होता ह इसका मतलब यही हआ हम जब तक परमाखणत नही होत तब तक परमाखणत होन क ललए जञानाजशन वििकाजशन विजञानाजशन कर लना ही शशकषा और शशकषण का तातपयश ह इसक ललए सह असतितविादी शशकषा करम समीिीन ह अतएि समझदार मानि होन क ललए धयान दन की आिशयकता ह

सह-असतितविादी वििार जञान वििक विजञान को समझना ही समझदारी ह

ldquoअधययन रपी उपासनाrdquo (अभयास) - कमशदशशन सस २००४ प ४९ ५०

मानि जीिन म उपासना एक महतवपणश भाग ह| उपासना ही मल परिततततयो का पररमाजशन एि पररितशन परवकरया ह| यही ससकार एि सवभाि पररितशन भी ह| ( उपासना = उपायो सहहत लकषय पती क ललए कीया गया वकरयाकलाप) उपायपिशक सहिास पाना ही उपासना की अििारणा ह खजसक ललए पररशरम (पररमाजशन शरम) एि अभयास ह| अभयास एि पररशरम स ही सथल सकषम कारण की सथसथवतितता सपषट ह| खजसस ततसबिी पदारथश वनयवत-

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करम शततकत महहमा विभती एि वनयम सबिी अनसिान (अनगमन पिशक अििारणा) शोि परधसदध ह| अनसिान भौवतक बौदधदधक तरथा आधयातमतमक भद स ह| अनसनधान परवकरया मनन चिितन सकलप एि अनभती क रप म परतयकष ह|

सथल सकषम कारण (दषटा) का तातपयश दखन समझन परयोग करन वयिहार करन एि अनभि करन योगय कषमता क सपनन होन स ह |

परिततततयो का पररमाजशन ही मानि जीिन का कायशकरम ह| मानि म पणशता एि पररमाजशनशीलता की अपकषा परतयक सथसथती म पा जाती ह| पणशता ही पादधडतय ह| पादधडतय स अधिक जञान एि वनपणता कशलता स अधिक वयिहार एि उतपादन नही ह| पररमाजशनशीलता उतपादन ि वयिहार म पा जाती ह| पादधडतय परबदधता परबदधता ही शशकषा एि वयिसथा ह| परबदधता स पररपणश होत तक उपासना अतयत उपयोगी ह|

प ५६ स ७२ (इनम स कछ ही िाकयो को ललया गया ह| समपणश क ललए पिक दख) उपासना स सािशभौततमक मलयो का अिगाहन करना ही परिान उपादयता ह| समि उपासनाओ क मल म लकषय समय ह िह अखड समाज सािशभौम वयिसथा ह| िह किल सिश

मगल ही ह| कयोकी सिश मगल की कामना क वबना सवय का मगल धसदध नही ह| अनय कामय कामनाए किल मगलमयता की भास परदायी ह न की अनभिदायी| इसललए सिशमगल

कामनारपी कायशकरम तःरथा उसकी अनसरण योगय कषमता पयत मानि परयास करन क ललए बाधय ह| सही क परती भरततमत रहना ही मत सपरदाय एि िगश का कारण ह|

मत सापरदाततयक िगीयता म आचरथिक िगीयता एि आचरथिक िगीयता म मत-सापरदाततयकता समा ह ह|

इसका वनराकरण सपषटतया सािशभौततमक रप म पा जान िाली मानिीयतापणश पदधवत स ldquoवनयम-तरयrdquo (बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक) क आिारपिशक ही आचरथिक एि सापरदाततयक िगश-भािनाओ स मकत होन की समभािना एि मकती ह| इसी म समि िगश-भािना विलीन हो जाती ह| इसीललए ndash

उपासना की उभय पदधवत का अभीषट समझदारी जागवत पिशक सारथशक होता ह जो जागरण ह| मानि म शततकतया वकरया इचछा एि जञान शततकत ही ह जो उनकी अहशताए ह| अहशताए परतयक इका

की जागवतशीलता जागवत पर आिाररत ह| शबद सपशश रप रस गिनतियो दवारा शततकतयो का अपवयय न होना सारथ ही सदवयाय होना ही

वकरया शततकत की जागवत ह| सदवयय एि अपवयय का वनिारण मानिीयता क सीमा म ldquoवनयम-तरयrdquo क रप म ह |

अतकरण मल परितताा अरथात आशा वििार इचछा ि सकलप का अपवयय न होना ही सदवयय ह| यही इचछा शततकत का जागरण ह|

समयक-बोि एि अनभती पणशता ही जञान परकटन कषमता ह| यही जञानशततकत का जागरण अरथिा पणश जागरण ह| यह ldquoजागवत-तरयrdquo मानिीयता एि अवतमानिीयता म परतयकष ह| यही मानि जीिन की िरमोतकषश

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उपलसतबध ह| सशकत उपासना क उपादयता यही ह यही समगर मानि की कामना ह| यही सिशमगल ह| इसीललए

जीिन-जागवत का परतयकष सवरप ही वििक पणश विजञान का परयोग ह यही सतकशता अखणड सामाखजकता परबदघता वनविि षमता सह-असतितव शशकषा विधि वयिसथा सभयता ससकवत बौशदघक समािान भौवतक समशदघ और जीिन जागवत की वनरनतरता ह

पणश जागवत पयशनत परतयक मानि इका परयास एि उपासना क ललय बाधय ह इसी क फलसवरप मल परिततततयो का पररमाजशन होता ह खजसक कारण विशशषट और शशषट मानधसकता एि वििार चिनतन-बोि कषमता अनभिपणशता परतयकष होती ह यही शरषठ उपासना की उपलसतबधयाा ह

इसललय समान क सारथ वयिहार करन क ललय बाधय हआ ह यही सामाखजकता की बाधयता ह यही मानि जीिन की गौरि और गररमा ह यही गररमा समान क सारथ वयिहार अधिक जागवत क ललय अभयास करन क ललय पररणा ह यही िािविक उपासना ह

वििक अरथात मानि लकषय और िरागय अरथात समशदघ ही उपासना का परतयकष फल ह खजसम सामाखजकता सवाभाविक रप स समाहहत रहती ह

िरागय का पराितशन ही असगरह (समशदघ) उदारता एि दया ह भौवतक समशदघ म उदारता एि दया क मौललक मलयो का अनरजन ही सामाखजकता का पराण ततव ह यही सामाखजक सगीत ह इसी क ललय मानि तततषत ह वििक ही बौशदघक समािान एि सामाखजक मलयो को वनिाह पिशक परकट करता ह इसललय

वििक ि िरागय ही परोकष जञान (सदवयिहाररक जञान) का परिान लकषण ह अनभि ही परोकष जञान की अनतनतम सथसथवत ह इसक पिश अनमान अधिकार ही परधसदघ ह ििसथसथवत ििगत सथसथवत सतय म ही अनभि ह

परोकष जञान क वबना वनतयावनतय यकतायकत नयायानयाय िमािमश सतयासतयइषटावनषट दषटादषट तरथा परोकष जञानाधिकार धसदघ नही होता ह

वनतयावनतय जञानाधिकार क वबना मनषय म सविमश क परवत वनषठा नही पा जाती ह मानि िमश ही सख सख ही नयायपणश आिरण नयायपणश आिरण ही मानिीयतापणश सीमा एि lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का पालन ह यही मनषय का सविमश ह मानि सख िमी ह

मयादा विहीन इका नही ह जस जीिो म सवभाि मयादा िनसपवतयो म गण मयादा एि पदारथो म रप मयादा-भग नही होती ह यही उनकी गररमा ह इसी परकार मानि म सख ही िमश ह िमश ही मयादा ह यही उनकी गररमा एि विशवास ह मयादा का परतयकष रप ही विशवास ह

lsquolsquoविशवासविहीन समबनध एि समपकश म सख नही हrsquorsquo समबनध एि समपकश विहीन मनषय नही ह यही बाधयता सविमश क ललय ह इसक पालन म जो अकषमता अयोगयता एि अपातरता ह - िही दख कलश समसया और अजागवत ह

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सविमश म समपननता एि पालन करन योगय कषमता योगयता एि पातरता स पररपणश होत तक जञानाजशन करन क अरथश म अधययन रपी उपासना का अभाि नही ह

मानि क सविमश की सीमा म ही मत समपरदाय िगश वतरोहहत हो जात ह यही समरथश उपासना की परतयकष गररमा ह lsquolsquoयही मागललक हrsquorsquo साधय सािक सािन इन तीनो का उपासना म समाहहत रहना अवनिायश ह इनकी एक सतरता ही उपासना की सफलता ह अनयरथा असफलता ह परतयक सथसथवत म परापत शततकत ि सािनो का सदपयोग करना ही उसकी अवगरम जागवत ह यही उपासना ह

इनतिय कायशकलाप तरथा इनतियो का कायशकषतर ही अपरोकष जञान की सीमा ह इस वयापार म ितविि षय सीमानतिती धसशदघयाा ह इसक अवतररकत और उपलसतबधयाा इसम नही ह

विषयो की सीमा म मनषय सीततमत नही ह कयोवक उसम िार आयाम परधसदघ ह

मनषय ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत समपनन होन क ललय बाधय ह यही आिशयकता अिसर सभािना एि वयिसथा ह

सयमतापिशक ही मनषय क दवारा परतयक पररपरकषय म वकय गय वकरयाकलाप म स गररमापणश िभि परकट होता ह जस-

सतयबोि सहहत सतय बोलन का अभयास करन स भय ि अविशवास की वनितततत हषश तरथा उतसाह का उदय होता ह

विशव क परवत मलय भाि की परवतषठा स इषट और सािक क मधय विषमता का अभाि होता ह

शबद क अरथश अरथात मनतरारथश का तदरपतापिशक समरण करन क अभयास स उसका अरथश एि सवभाि गमय होता ह सभी सारथशक शबद मनतर ह

अधिक जागत म समपशण स अलभमान ि अहकार का उनमलन तरथा विदया ि सरलता का उदय होता ह ( अधिक जागत = समझान िाला परमाखणत वयततकत गर)

शरीर सिदना सयत रहन स मन की पवितरता मन की पवितरता स मनोबल का लाभ होता ह

सव-शरीर मोह नषट होन स ससार क परवत मोह दर होता ह सिशशभरपी आपत कामना पणश बशदघ स ही विशव क परवत उदारता दया कपा करणा का परसिन तरथा विशव की आिारभत सतता म जञान एि अनभि होता ह

जञान विजञान वििक रपी सवतवहीनता ही असयमता मनोदौबशलय मल परविततततयो की अपररषकवत राग मोह लोभ अवििक अहकार अलभमान दहातमिादी परितततत दरािार सघषश असह-असतितव सशकता दवष तरथा तपोहीनता ह

सयमता क वबना बौशदघक मल परिततततयो की पररषकवत बशदघबल सामाखजक मलयो की अनभवत ितनय वकरया का दशशन समािान और सयमता धसदघ नही होती ह

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उपासना क ललय िातािरण का महतव अपररहायश ह खजसम स मनषय कत िातािरण ही परिान ह जो शशकषा ि वयिसथा क रप म ही ह

मानिीयता की सीमा म वयिहार lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का आिरण ही वयततकततव ह ऐस वयततकततव क वनमाण म सवकरय योगदान ही कततशवय ह यही परषारथश ह यही परबदघता ह

आशा भद स उपासना उपासना भद स अनभि अनभि भद स अनमान अनमान भद स उपासना भद ह यही उपासना म िविधयता का कारण ह यह िविधयता सािशभौम आिरण की सीमा म विलय होन क ललय बाधय ह

मानि क ललय सहज समरथश उपासना एक अवनिायश कायशकरम ह जो अमानिीयता स मानिीयता मानिीयता स अवतमानिीयता की परवतषठा सथाततपत करती ह

सह-असतितव म अनकषण-विकषण-ितततत स सहजाितततत होती ह

कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ही अनकषण-विकषण ितततत ह

अनकषण का तातपयश परतयक कषण म लगातार सह-असतितव चिनतन वििार करम म परमाखणकता का सहज परमाण परित हो जाता ह यही सहजाितततत ह

सतता म समपकत परकवत की समपकतता का जञान ही (पणश-दशशन) कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ह यही भरततमत भाि ि अभाि का वतरोभाि ह यही सहज परवतषठा ि अिसथा ह

सतता म समपकत परकवत का जञान न होन स और अनभिमलक जञान न होन स भय और परलोभनिश समि भरममलक कायश-वयिहार सोि-वििार को बनाय रखता ह यही समपणश कलश का कारण ह

काल वकरया की अिधि ह इसी अिधि म आरोततपत वििार ि इचछा ही असहज एि वनरारोततपत वििार ि इचछा ही सहज ह

मानि इका म ही जागवत क करम म भी वनरारोपण कषमता पा जाती ह भरमिश आरोपण होता ह

जो जसा ह उसस अधिक कम अरथिा नासमझना ही आरोपण ह यही अजञान ह यही अकषमता ह यही भरम ह

सतता म समपकत जड़-ितनयातमक परकवत की सथसथवत-शीलता ि सतता सहज पणशता क समबनध म ही आरोप या वनरारोण वकरया समपनन होना पाया जाता ह

परतयक इका म रप गण सवभाि एि िमश समाहहत ह यही उसकी कायशितता ह इसी की गणना पररमाण परयोजन जञान ही परकवत क परवत वनभरमतापणश कषमता का दयोतक ह यही परमाण ह यही सहजता ह

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समपणश वकरयाय मलत रप और शबद भद म दषटवय ह

परकता क वबना इका म अवगरमता नही ह

पणशता पयशनत इका परकता उपयोवगता क ललए परितत ह

परकता ही इका म हरास ि विकास क लकषणो को परकट करती ह यही परिान उपादयता भी ह

इका म परकट होन िाल शबदादधद गण ही सापकष शततकतयाा ह गणविहीन इका नही ह इसललय

मनषय म सहज कामना का अभाि नही ह सहजता ही िमश ह यही सख शानतनत सतोष एि आननद ह यही िारणा को सपषट करता ह जो परतयकष ह

परतयक कमश-फल ही मनषय क सख का पोषक ि शोषक धसदघ हआ ह

सतय और सतयता क अनभि-करम म वयििान नही ह कयोवक अनभिकरम-वयिसथा सघन ह जागवत की कदधड़याा सघन ह इसललय-

सहजता आरोप स मकत ह आरोप ही नयनावतरक मलयाकन ह सवय की नयनावतरक मलयाकन वकरया ही असहजता ह

सवय का मलयाकन lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म होता ह

lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म न हो ऐसा मनषय इस पथवी पर नही ह

िमश का वियोग नही ह कयोवक यह िारणा ह इसका परतयकष रप ही मानिीयता एि अवतमानिीयता पणश आिरण ह जो सहजता का परिान लकषण ह इसललय -

अमानिीयता पणश आिरण ही असहज ह इसललय

परकवत अपन म समपणशता क सारथ सीततमत ह यही अिधि ह इसललय पणश म समायी ह यही पणश म समपणशता सहज सह-असतितव ह यही समपणशता का वनतय ितशमान और जञानािसथा क मानि म पणशता का परसि ह यही जागवत क ललय बाधयता ह

मनषय क बौशदघक कषतर म पायी जान िाली अनािशयक कलपनाओ का वनराकरण ही दशशन-कषमता म गणातमक पररमाजशन ह यही गणातमक ससकार-पररितशन शशकषा एि जीिन क कायशकरम का योगफल ह

दशशन-कषमता का उतकषश ही अनकषण विकषण ह यही मधयसथ वकरया की कषमता ह मधयसथ वकरया ही दषटा ह

मधयसथ वकरया का िरमोतकषश ही सम ि विषम वकरया का पणश वनयतरण ह यही कषमता कषण-कषण मधयसथ वयििान स मततकत ह

ससकार पिशक ही बौशदघक वयिसथा-परवकरया -कषमता क आनषवगक ह मनषय सहज ऐषणा एि विषयो की सीमा म परितततत ि वनितततत पिशक वयि होना पाया जाता ह जो परतयकष ह

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आतमा (मधयसथ वकरया) क आनषवगक बौशदघक परवकरया ि वयिसथा म सतय-सकलप एि सतय-कलपनापणश मानधसकता की सथसथवत पा जाती ह जो परधसदघ कमश उपासना जञान पणश ह यही कषमता दि ि दधदवय मानिीयता को परकट करती ह यही पणश जागवत ह

ऐषणासकत बौशदघक वयिसथा म मानिीय तरथा दि मानिीय सवभाि परकट होता ह उसी क अनरप म मानधसक िातािरण की सथसथवतशीलता ह ऐसी कषमता ही सामाखजक ितना एि सतकशता स पररपणश पायी जाती ह

विषयासकत बौशदघक वयिसथा ि परवकरया म अमानिीयतापणश आिरण समपनन होता ह जो पाशविकता तरथा दानिीयता क रप म दषटवय ह इनम उसी क योगय मानधसकता पा जाती ह यही लपत-सपत कलपना का कारण ह यही अजागवत तरथा अपणश सतकशता का दयोतक ह

शरय (जागवत) खजजञास होन पर ही लपत-सपत कलपनाय पररमाखजि त होती ह फलत दानिी ि पाशिी परिततततयो स उदासीनता सथसथर होती ह सारथ ही वििकोदय होता ह

शरय खजजञासा का उदय सव-ससकार विधि-विहहत अधययन तरथा उसक अनकल िातािरण म होता ह

विधि-विहहत-अधययन वनपणता कशलता ि पादधडतय ही ह

अधययन एि िातािरण ही ससकार पररितशन क ललय समरथश वयिसथा ह खजसका गणातमक पररितशन ही आतमबोि क ललय खजजञासा ह

आतमबोि ही सतय खजजञासा का परिान लकषण ह इसललय- अििारणा ही अनगमन तरथा अनशीलन क ललय परितततत ह जो शशषटता क रप म परतयकष होती ह परगवत क ललय अििारणा अवनिायश ह जागवत क ललय अििारणा एि हरास क ललय आसततकत परधसदघ ह यही करम स वनितततत ि परितततत ह अििारणा ही सदधदविक ह सदधदविक सवय म सतयता की विििना ह जो सपषट ह मलत यही शभ एि मागलय ह अनभि की अििारणा सतय बोि क रप म अििारणा (समयक-बोि) ही सतय-सकलप ह यही परािवति त होकर शभकमश उपासना तरथा आिरण क रप म परतयकष ह इसी का पररिवति त मलय ही िीरता िीरता उदारता दया कपा और करणा क रप म परतयकष ह सतय म ही समयक-बोि होता ह असतय ही कलपना एि भास होता ह हीनता दीनता और कररता स यकत कमश अशभ होता ह सव-मलय ही परितततत और वनितततत का िशश ह इसललय असतय अलभमान तरथा दपश स मकत सतय सरलता सहजता तरथा सौजनयता स यकत कमश ि उपासना शरय कारक ह

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सतय कामना की वनरनतरता स लकषय की अििारणा होती ह जञान म ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत परतयकष ह जञान वििक सममत विजञान ही ह जो पणश ह सतय और सतयता म दढ़ता ही शरयमय जीिन ह सतयानभवत ही सबका अभीषट ह शरीर स समपनन होन िाल समि वकरयाओ का सिालन मन ही मिस दवारा करता ह मिस स सभी नादधड़याा वनयदधतरत ह शबद का मल रप मन ही ह मिस पर मन आसवादन एि सवागत भािपणश तरगो का परसारण सिालन वनयतरण करता ह उसक मल म शबद ही ह जागवत की ओर गवत हत वनयतरणातमक शबद ही मतर ह लकषय-पराततपत-योगय-करम परवकरया ही वनयतरण ह शबद म जो भाि (मलय) ह िही उसका अरथश ह सारथशक शबदो का अरथश ही जागवत की ओर गवत ह कयोवक शबद का अरथश असतितव म िि ह भाि म जो उपयोगपणश अवनिायशता ह िही उसका महतव ह उपयोग पणश अवनिायशता म जो वनचशचत दधदशा ह िही उसकी दढ़ता ह यही समयक सकलप ह समयक सकलप म जो पणशता ह िही अनभि ह जो करम स मन ितततत चितत बशदघ और आतमा म पा जान िाली सससकत मौललक वकरयाय ह भाि का तातपयश होन स ह शततकत-तरय-जागरण (इचछा-शततकत वकरया-शततकत तरथा जञान शततकत जागरण) क वबना तयाग (भरममततकत) और परम परमाखणत नही होता

मनन परवकरया म सव-मलयाकन

सव-मलयाकन मनन धयान ldquoअपराि क अभाि म दयापणश आशा का पराितशन अनयाय क अभाि म नयायपणश वििार का पराितशन आसकती क अभाि म समािान पणश इचछा का पराितशन तरथा अजञान क अभाि म जञानपणश सकलप का पराितशन होता ह| अत अपरािहीन वयिहार क ललए वयिसथा का परभाि अनयायहीन वििार क ललए अखणड समाज का परभाि तरथा अजञान रहहत बदधदध क ललए अतवनि यामन अरथिा धयान आिशयक ह खजसस ही परतयाितशन वकरया सफल ह| धयान का अरथश समझन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना और समझन-अनभि करन क

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उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

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मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

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(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

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सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

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प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

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अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

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३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

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(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

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उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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Page 14: अभ्यास (अध्ययन के ललएmdstudents.net/wp-content/uploads/2020/01/adhyayan... · के अर्थश से इंवगत ििुएं अित्व

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 14

िम म परमाणिर होर ही ह फलसवरप अनभर भी होर ह इस परकार करनतय परमाि और अनभव सहज रप म ही समपि होरा हआ दखा गया ह यही कवलय और जागकरर की महहमा ह (प १५४- १५७) जागकरर करवधि और अभयास असतितवमलक मानव कनदरिर चचनतन जञान दरतन आचरि िरवीकर रप म अधययन गमय होना दखा गया ह जीवन जञान जीवन म समपि होन वाली करियाओ का परसपररा सहज िरव करबनदओ क आिार पर उभय रकतपत करवधि सवत रभ एव समािान स दखा गया अलभवयकतकतया ह जसा मन और रकतपत म सामरसयरा का करबनद करवशलरि रलन पवतक आसवादन क रप म पहचाना गया ह यह सह-असतितव अनभव क पिार करनयम नयाय िमत सतय सहज परयोग म अनभर होन क उपरानत ही साथतक हो पारा ह इसक ललय अथार ऐस अनभकरर क ललय अधययन िम स आरभ होरा ह अधययन अविारिा कषतर का भरर-भरर वरतमान करवधि ह इस करवधि स णजरनी भी अविारिाए अधययन स समबदघ होरा गया उरन ही अविारिा क आिार पर परवकततत सहज नयाय िमातमक और सतय सहज रलन नयाय रलन समपि करवचार क आिार पर करकया गया आसवादन सहहर समपि करकया गया सभी चयन नयाय रप होना दखा गया ह इसी परकार ऊपर कह चचनतनपवतक जब चितरण रलन करवचार आसवादन और चयन करियाए समपि होर ह नयायपवतक वयविा म परमाणिर होना दखा गया अविारिाए सवाभाकरवक रप म ही असतितव सहज होन क आिार पर सह-असतितव रप होन क आिार पर अनभर होना अथार जानना-मानना और उसक रकतपत करबनद को पाना ही अनभव ह जानना-मानना-पहचानना ही अविारिा ह इसम रकतपत करबनद को पा लना ही अनभव ह इस कायत-वयवहार वयविा म वयकत कर दना परामाणिकरा ह अनभव परमाि पित बोि सहहर समपि होन वाल सकलप चचनतन चचतरि नयाय िमत सतय रपी रलन करवशलरि आसवादन सहहर करकया गया समपित अलभवयकतकतया वयविा और समगर वयविा म भागीदारी करनवाह कररा हआ ही दखन को कतमलरा ह इस करवधि स जागकररपित मानव ही असतितव म भरम बनधनो स मकत होना सपषट करकया जा चका ह जागकरर करवधि अधययन रपी सािना करवधि स सवाधिक उपयोगी सदपयोगी परयोजनरील होना दखन को कतमला ह इस करवधि स साधय सािक सािन का सामरसयरा सवय सफरत करवधि स समपि होना दखा गया ह जागकरर क ललय हर मानव सािक ह साधय जागकरर ही ह सािन जागकररगामी अधययन परिाली ह इस िम म परमपरा सािन परकररिा क रप म रन-मन-िन वयविा और समगर वयविा म भागीदारी का परमाि मानवाकाकषा क रप म होरा ही ह इस परकार स साधय-सािक-सािन का सयोग मानवीयरापित परपरा करवधि स सफल होन का सवरप सपषट ह ऐस परपरा क पवत (जस आज की सथिकरर म भरकतमर समदाय परपराए) मानवीयरापित परपरा म सिकतमर होन की कायतपरिाली मददा ह इस िम म अनसिान क अननतर णजरन भी रोिकरा सममर होर जार ह और सममकरर क अनरप करनिा उदगकतमर हो जारी ह और भी भाराओ स सवय सफरत करनिा उदगकतमर होरी ह ऐस ही करनिावान मिावी इस कायत म सलगन ह यही आज की सथिकरर म जागकररगामी अधययन जागकररमलक अलभवयकतकत सहज करवधि एक स अधिक वयकतकतयो म परमाणिर होन का आिार बन चकी ह जागकररपित परपरा म साधय सािन सािक म करनतय सगीर होना दखा गया ह दसर भारा म करनतय समािान होना पाया गया ह

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उललणखर अनभवो क आिार पर समपित जागकरर अपन-आपस जीवन जञान असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान म ही समपित ह इसका अभयास करवधि सवतपरथम अनसिान दसरा अधययन पवतक रोि रोि पवतक अधययन य ही मल अभयास ह कयोकरक अधययन करवधि स ही रोि करवधि स ही अविारिा का सवीकर होना दखा जारा ह अनय करवधि जस उपदर करवधि म भरकतमर होन की सभावना सदा बना ही रहरा ह हर परपरा म अपन ढग की आदर परकररिा िाकतपर रहरा ही ह वह अधययवसाकतयक (अधययनगमय) होर रक उपदर या सचना मातर ह परपरा म णजस आरय क ललय आदर-करनदर ह वह रकत सगर-वयवहार सगर बोि होन की परकरिया परिाली पदघकरर ही अधययन कहलारी ह रकत का साथतक सवरप करवजञान सममर करववक और करववक सममर करवजञान होना दखा गया परयोजन करवहीन उपदर परयोग वह भी वयवहार परमाि करवहीन उपदर रब रक ही रह पारा ह जब रक रकत सगर न हो रकत का रातपयत भी इसी रथय को उदघादटर कररा ह रकतपत क ललय आकरति परिाली (भारा परिाली) ऐस रकत सहज रप म ही करवजञान क आशरर करवशलरिो को करववक स आशरर परयोजनो का परमाणिर होना सहज ह हम इस बार को समझ चक ह करक परयोजनपवतक जीन क ललय परमाणिर होन क ललय समािान समशदघ क रप म सह-असतितव दरतन क ललय रकत सगर अधययवसाकतयक करवधि का होना आवशयक ह अधययन करियाकलाप रकतसगर परयोजन परयोजन सगर मानवापकषा मानवापकषा सगर जीवनापकषा जीवनापकषा सगर सह-असतितव सह-असतितव सगर करवकास िम और करवकास करवकासिम और करवकास सगर जीवन-जीवनी िम-जागकरर िम-जागकरर एव इसकी करनररररा सह-असतितव सहज लकषय ह असतितव सहज लकषय म भी मानव ही अकरवभाय ह और दषटा ह इसललय मानव असतितव सहज सह-असतितव करवधि स परकरा-उदाततीकरि परकरा-करवकास परकरा-जागकरर सतरो क आिार पर सह-असतितव सहज अधययन सलभ हआ ह समपित असतितव ही वयविा क सवरप म वरतमान होना समीचीन ह आज भी मानव क अकररररकत सभी अविा म (पदाथत पराि जीव अविा) अपन-अपन तव सहहर वयविा म होना ददखरा ह इसी िम म मानव भी अपन मानवतव सहहर वयविा और समगर वयविा म भागीदारी सहज अपकषा को साथतक बनान क िम म ही जागर होना पाया जारा ह हम यह पार ह करक जागकरर सतर वयाखया और परमाि सवतरभ क सवरप म ही वभकरवर होरा ह इस आरय को लोकवयापीकरि करना भी सवतरभ कायतिम का एक बकरनयादी आयाम ह इसी सतयरावर lsquolsquoअनभवातमक अधयातमवादrsquorsquo एक परिकरर ह हर मानव अपन कलपनारीलरा कमतसवरतररा पवतक ही हर परिकररयो को परखना (परीकषि करना) सवीकारना या असवीकार करन क कायतकलाप को कररा ह

अनभि दशशन सस २०१२ दधदवतीय (अधयाय -३)

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सतर छद िाकय शबद क दवारा वकरया मातर का िणशन ह सारथ ही जञानानभवत क ललए उपदश पिशक इवगत भी ह बरहम सहज िणशन पारगामी वयापक और पारदशीयता क रप म ह lsquolsquoयहrsquorsquo किल भास आभास बोि तरथा अनभिगमय ह इसका बोि मानि की कषमता योगयता पातरता पर आिाररत ह परतयाितशन पिशक परापत वयजनाएा जागवत क ललए गणातमक गवत ह गणातमक वयजना स सबोि सबोि स सससकार सससकार स गणातमक सिदना (सजञानीयता पिशक सिदना वनयदधतरत) रहना गणातमक सिदना स सतय सकलप तरथा सतय सकलप स गणातमक वयजनाओ की वनरनतरता ह सथसथवत एि वकरया सकत-गरहण कषमता ही वयजनीयता ह सकत-गरहण -परवकरयाबदघ जञान परापय को पान उस सरधकषत रखन क कायशकरम म अलभवयकत ह परापत क अनभि क करम म भास-आभास एि परतीवत ही जञापक (सतयाततपत होना) ह मानि दसरो क ललए भी सकत परसाररत करता ह सकत-गरहण-वकरया ही अनमानारोपण तरथा अनमानाकर भी ह जो सकलप इचछा वििार ि आशा ह अधयाय-७ अलभवयजना म गणातमक विकास का सकत वयजना म उपयोवगता का सकत ह अभयदय पराय (अभयदय जसा) ही अलभपराय ह खजसम अभयदय का भास या आभास होना आिशयक ह

कमशदशशन सस २००४ (प ८६ ८७) परमाण म विकास का तातपयश परमाण क गठनपणश होन स ह|मानि म एक बात की िाहत बनी ह ndash यरथासथसथवत िभि उसकी वनरतरता ndash यह सवाभाविक रप म सवीकत ह| परमाणओ म अशो का घटना-बढ़ना पररणाम क सवरप म हम समझ िक ह| पररणाम का अमरतव उसकी वनरतरता की अपकषा मानि म ही कलपना भास आभास परतीवत क रप म पाया जाता ह

प २० २३ (शासतराधययन की महततव) सदशासतराधययन क वबना सतय कामना एि परितततत सतय कामना क वबना सतय-परम सतय-परम क वबना सतय-वनषठा सतय वनषठा क वबना सतय परवतषठा सतय-परवतषठा क वबना सतय परतीवत सतय-परतीवत क वबना सतयानभाि सतयानभाि क वबना सद शासतर का उदघाटन तरथा सदशासतर क उदघाटन क वबना सद शासतर का अधययन पणश और सारथशक नही ह| मानि को जीिन की परतयक सतिचरथ म शानतनत एि सथसथरता की आिशयकता ह| सदशासतर सिन मनन एि आिरण स वयकती तरथा पररिार म शानतनत तरथा सथसथरता पा जाती ह|

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(सदशासतर सिन = शासतराधययन स शरिण | मनन एि आिरण अभयास-अधययन करम म समपणश मनन परवकरया)

(प ९७ ९८)

सहअसतितविादी विधि स हर मानि मानितव सहहत वयिसथा और समगर वयिसथा म भागीदारी करन योगय इका ह इसम मखय मददा यही ह - सवय को सवय क ललय रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क सयकत रप म होन को सवीकारन की आिशयकता ह जीिन वकरया की महहमा और मानि परमपरा म इसकी आिशयकता धयान म रहना अवत आिशयक ह तभी मानि शोि क ललए ततपर होना पाया जाता ह ऐसी ततपरता जागवत सहज विधि स सिशशभ क अरथश म परिावित होना होता ह तभी सिशमानि समािान पिशक वयकत होन समझदारी पिशक हर पररिार समािावनत और सखी होन की सथसथवत सपषट हो जाती ह फलसवरप समशदघ अभय सहअसतितव परभावित होन का सौभागय उदय होता ह यही मखय वबनद ह सिशशभ का परमाण भी यही ह कयोवक समािान समशदघ पिशक ही मानि सख शानतनत का अनभि करता ह इसी करम म समािान समशदघ अभय सहअसतितव पिशक आननद अपन आप म समपणश होना पाया जाता ह इस ढग स मानि लकषय सारथशक होन की सथसथवत म जीिन लकषय (सख शावत सतोष आननद) सारथशक होता ही ह जीिन लकषय और मानि लकषय सारथशक होना ही अधययन और अधयापन की सािशभौमता ह ऐस लकषय क सारथ मानि परमपरा अपन आप म सवय को पहिानन और समपणश मानि को पहिानन का सतर और वयाखया बन जाता ह परमाण क रप म वयाखया समझ क रप म सतर होना पाया जाता ह यह वनयवत सहज विधि स समीिीन रहना पाया जाता ह वनयवत विधि का तातपयश विकासकरम विकास जागवत करम जागवत ह दसर विधि स भौवतक रासायवनक रिना शरीर और जीिन वकरयाकलाप का सयकत अलभवयततकत समपरषणा परकाशन क रप म ह

मानि लकषय - समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करन और उस आिार पर जीिन लकषय (मनसवसथता) - सख शानतनत सतोष आननद को सारथशक बनान क अरथश म मानि शशकषा ससकार की आिशयकता सदा-सदा स बनी ह ह इसकी सफलता ही मानि कल का सौभागय ह

lsquoमानि कल और रासायवनक-भौवतक वकरयाकलाप का सारथशक परमाणrsquo

शशकषा की समपणश िि सहअसतितव रपी असतितव म रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म ही ह इसम स इनक अविभाजय रप म मानि परमपरा का समपणश वकरयाकलाप वयिहार सोि वििार समझ ह समझ क अरथश म ही हर मानि का अधययन करना होता ह समझ अपन म जानना मानना पहिानना वनिाह करन क रप म परमाखणत होती ह इसी अरथश म समपणश अधययन सारथशक होना पाया जाता ह

असतितव म समपणश इका याा रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म पररलधकषत ह ही (प १०२) वनशचयता सथसथरता सिशमानि म चिराकााकषा क रप म बनी ही ह सहअसतितव रपी असतितव जञान और सवीकवत का आिार ह यह सिशमानि म सिकषण पिशक विदधदत होन िाला तथय ह सवय को जाािन स भी

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यही सपषट होता ह हम सब सथसथरता ि वनशचयता को ही सवीकार करत रह ह न वक असथसथरता अवनशचयता को सथसथरता क सहज आिार पर ही वनशचयता का होना सवभाविक ह (प ११५) इस हम मानि को अचछी तरह स समझन की आिशयकता ह और अनशीलन पिशक सरकषण सििशन विधि स सवय को वयसथसथत कर लन की आिशयकता ह मानि क वयिसथसथत होन क मल म जञान विजञान वििक का एक सगीतमय कायशकलाप सपषट रहन स ह यही कायश-कलाप भाषा कायश-वयिहार म वनयोखजत होकर परयोजनो को परवतपादधदत करता ह मानि का परयोजन समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करना ही ह (प १२२ १२३)

( अनभि मलक वििी स

यरथारथशता िािविकता सतयता का बोि रपी बशदघ की सथसथवत उस परकाशशत करन की परितततत क रप म सकलप ही गवत ह नयाय िमश सतय क साकषातकार करन क रप म चितत सथसथवत और इसका चितरण क रप म चिदधतरत हो पाना गवत ह चितत वकरयाकलाप का समपणश चितरण तलन क रप म अरथात नयाय िमश ि सतय रप म सपषट होना ितततत सहज सथसथवत ह ितततत म समपनन हय तलन का विशलषण विधि म विशलततषत होना ि समपरततषत होना ितततत सहज गवत ह विशलषण क सपषट अरथिा सार रप म मलय सवीकत होता ह इस आसवादन करना ही मन की सथसथवत ह इसकी सारथशकता क ललय ियन वकरया को समपादधदत करन क रप म गवतत होना हर मानि म सिधकषत ह इस ढग स मानि भी सभी परकार स सथसथवत-गवत म होना सपषट होता ह इस परकार मानि समझदारी स समपनन होन क उपरानत परमाखणत होना सवभाविक होता ह इसका मतलब यही हआ हम जब तक परमाखणत नही होत तब तक परमाखणत होन क ललए जञानाजशन वििकाजशन विजञानाजशन कर लना ही शशकषा और शशकषण का तातपयश ह इसक ललए सह असतितविादी शशकषा करम समीिीन ह अतएि समझदार मानि होन क ललए धयान दन की आिशयकता ह

सह-असतितविादी वििार जञान वििक विजञान को समझना ही समझदारी ह

ldquoअधययन रपी उपासनाrdquo (अभयास) - कमशदशशन सस २००४ प ४९ ५०

मानि जीिन म उपासना एक महतवपणश भाग ह| उपासना ही मल परिततततयो का पररमाजशन एि पररितशन परवकरया ह| यही ससकार एि सवभाि पररितशन भी ह| ( उपासना = उपायो सहहत लकषय पती क ललए कीया गया वकरयाकलाप) उपायपिशक सहिास पाना ही उपासना की अििारणा ह खजसक ललए पररशरम (पररमाजशन शरम) एि अभयास ह| अभयास एि पररशरम स ही सथल सकषम कारण की सथसथवतितता सपषट ह| खजसस ततसबिी पदारथश वनयवत-

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करम शततकत महहमा विभती एि वनयम सबिी अनसिान (अनगमन पिशक अििारणा) शोि परधसदध ह| अनसिान भौवतक बौदधदधक तरथा आधयातमतमक भद स ह| अनसनधान परवकरया मनन चिितन सकलप एि अनभती क रप म परतयकष ह|

सथल सकषम कारण (दषटा) का तातपयश दखन समझन परयोग करन वयिहार करन एि अनभि करन योगय कषमता क सपनन होन स ह |

परिततततयो का पररमाजशन ही मानि जीिन का कायशकरम ह| मानि म पणशता एि पररमाजशनशीलता की अपकषा परतयक सथसथती म पा जाती ह| पणशता ही पादधडतय ह| पादधडतय स अधिक जञान एि वनपणता कशलता स अधिक वयिहार एि उतपादन नही ह| पररमाजशनशीलता उतपादन ि वयिहार म पा जाती ह| पादधडतय परबदधता परबदधता ही शशकषा एि वयिसथा ह| परबदधता स पररपणश होत तक उपासना अतयत उपयोगी ह|

प ५६ स ७२ (इनम स कछ ही िाकयो को ललया गया ह| समपणश क ललए पिक दख) उपासना स सािशभौततमक मलयो का अिगाहन करना ही परिान उपादयता ह| समि उपासनाओ क मल म लकषय समय ह िह अखड समाज सािशभौम वयिसथा ह| िह किल सिश

मगल ही ह| कयोकी सिश मगल की कामना क वबना सवय का मगल धसदध नही ह| अनय कामय कामनाए किल मगलमयता की भास परदायी ह न की अनभिदायी| इसललए सिशमगल

कामनारपी कायशकरम तःरथा उसकी अनसरण योगय कषमता पयत मानि परयास करन क ललए बाधय ह| सही क परती भरततमत रहना ही मत सपरदाय एि िगश का कारण ह|

मत सापरदाततयक िगीयता म आचरथिक िगीयता एि आचरथिक िगीयता म मत-सापरदाततयकता समा ह ह|

इसका वनराकरण सपषटतया सािशभौततमक रप म पा जान िाली मानिीयतापणश पदधवत स ldquoवनयम-तरयrdquo (बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक) क आिारपिशक ही आचरथिक एि सापरदाततयक िगश-भािनाओ स मकत होन की समभािना एि मकती ह| इसी म समि िगश-भािना विलीन हो जाती ह| इसीललए ndash

उपासना की उभय पदधवत का अभीषट समझदारी जागवत पिशक सारथशक होता ह जो जागरण ह| मानि म शततकतया वकरया इचछा एि जञान शततकत ही ह जो उनकी अहशताए ह| अहशताए परतयक इका

की जागवतशीलता जागवत पर आिाररत ह| शबद सपशश रप रस गिनतियो दवारा शततकतयो का अपवयय न होना सारथ ही सदवयाय होना ही

वकरया शततकत की जागवत ह| सदवयय एि अपवयय का वनिारण मानिीयता क सीमा म ldquoवनयम-तरयrdquo क रप म ह |

अतकरण मल परितताा अरथात आशा वििार इचछा ि सकलप का अपवयय न होना ही सदवयय ह| यही इचछा शततकत का जागरण ह|

समयक-बोि एि अनभती पणशता ही जञान परकटन कषमता ह| यही जञानशततकत का जागरण अरथिा पणश जागरण ह| यह ldquoजागवत-तरयrdquo मानिीयता एि अवतमानिीयता म परतयकष ह| यही मानि जीिन की िरमोतकषश

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उपलसतबध ह| सशकत उपासना क उपादयता यही ह यही समगर मानि की कामना ह| यही सिशमगल ह| इसीललए

जीिन-जागवत का परतयकष सवरप ही वििक पणश विजञान का परयोग ह यही सतकशता अखणड सामाखजकता परबदघता वनविि षमता सह-असतितव शशकषा विधि वयिसथा सभयता ससकवत बौशदघक समािान भौवतक समशदघ और जीिन जागवत की वनरनतरता ह

पणश जागवत पयशनत परतयक मानि इका परयास एि उपासना क ललय बाधय ह इसी क फलसवरप मल परिततततयो का पररमाजशन होता ह खजसक कारण विशशषट और शशषट मानधसकता एि वििार चिनतन-बोि कषमता अनभिपणशता परतयकष होती ह यही शरषठ उपासना की उपलसतबधयाा ह

इसललय समान क सारथ वयिहार करन क ललय बाधय हआ ह यही सामाखजकता की बाधयता ह यही मानि जीिन की गौरि और गररमा ह यही गररमा समान क सारथ वयिहार अधिक जागवत क ललय अभयास करन क ललय पररणा ह यही िािविक उपासना ह

वििक अरथात मानि लकषय और िरागय अरथात समशदघ ही उपासना का परतयकष फल ह खजसम सामाखजकता सवाभाविक रप स समाहहत रहती ह

िरागय का पराितशन ही असगरह (समशदघ) उदारता एि दया ह भौवतक समशदघ म उदारता एि दया क मौललक मलयो का अनरजन ही सामाखजकता का पराण ततव ह यही सामाखजक सगीत ह इसी क ललय मानि तततषत ह वििक ही बौशदघक समािान एि सामाखजक मलयो को वनिाह पिशक परकट करता ह इसललय

वििक ि िरागय ही परोकष जञान (सदवयिहाररक जञान) का परिान लकषण ह अनभि ही परोकष जञान की अनतनतम सथसथवत ह इसक पिश अनमान अधिकार ही परधसदघ ह ििसथसथवत ििगत सथसथवत सतय म ही अनभि ह

परोकष जञान क वबना वनतयावनतय यकतायकत नयायानयाय िमािमश सतयासतयइषटावनषट दषटादषट तरथा परोकष जञानाधिकार धसदघ नही होता ह

वनतयावनतय जञानाधिकार क वबना मनषय म सविमश क परवत वनषठा नही पा जाती ह मानि िमश ही सख सख ही नयायपणश आिरण नयायपणश आिरण ही मानिीयतापणश सीमा एि lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का पालन ह यही मनषय का सविमश ह मानि सख िमी ह

मयादा विहीन इका नही ह जस जीिो म सवभाि मयादा िनसपवतयो म गण मयादा एि पदारथो म रप मयादा-भग नही होती ह यही उनकी गररमा ह इसी परकार मानि म सख ही िमश ह िमश ही मयादा ह यही उनकी गररमा एि विशवास ह मयादा का परतयकष रप ही विशवास ह

lsquolsquoविशवासविहीन समबनध एि समपकश म सख नही हrsquorsquo समबनध एि समपकश विहीन मनषय नही ह यही बाधयता सविमश क ललय ह इसक पालन म जो अकषमता अयोगयता एि अपातरता ह - िही दख कलश समसया और अजागवत ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 21

सविमश म समपननता एि पालन करन योगय कषमता योगयता एि पातरता स पररपणश होत तक जञानाजशन करन क अरथश म अधययन रपी उपासना का अभाि नही ह

मानि क सविमश की सीमा म ही मत समपरदाय िगश वतरोहहत हो जात ह यही समरथश उपासना की परतयकष गररमा ह lsquolsquoयही मागललक हrsquorsquo साधय सािक सािन इन तीनो का उपासना म समाहहत रहना अवनिायश ह इनकी एक सतरता ही उपासना की सफलता ह अनयरथा असफलता ह परतयक सथसथवत म परापत शततकत ि सािनो का सदपयोग करना ही उसकी अवगरम जागवत ह यही उपासना ह

इनतिय कायशकलाप तरथा इनतियो का कायशकषतर ही अपरोकष जञान की सीमा ह इस वयापार म ितविि षय सीमानतिती धसशदघयाा ह इसक अवतररकत और उपलसतबधयाा इसम नही ह

विषयो की सीमा म मनषय सीततमत नही ह कयोवक उसम िार आयाम परधसदघ ह

मनषय ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत समपनन होन क ललय बाधय ह यही आिशयकता अिसर सभािना एि वयिसथा ह

सयमतापिशक ही मनषय क दवारा परतयक पररपरकषय म वकय गय वकरयाकलाप म स गररमापणश िभि परकट होता ह जस-

सतयबोि सहहत सतय बोलन का अभयास करन स भय ि अविशवास की वनितततत हषश तरथा उतसाह का उदय होता ह

विशव क परवत मलय भाि की परवतषठा स इषट और सािक क मधय विषमता का अभाि होता ह

शबद क अरथश अरथात मनतरारथश का तदरपतापिशक समरण करन क अभयास स उसका अरथश एि सवभाि गमय होता ह सभी सारथशक शबद मनतर ह

अधिक जागत म समपशण स अलभमान ि अहकार का उनमलन तरथा विदया ि सरलता का उदय होता ह ( अधिक जागत = समझान िाला परमाखणत वयततकत गर)

शरीर सिदना सयत रहन स मन की पवितरता मन की पवितरता स मनोबल का लाभ होता ह

सव-शरीर मोह नषट होन स ससार क परवत मोह दर होता ह सिशशभरपी आपत कामना पणश बशदघ स ही विशव क परवत उदारता दया कपा करणा का परसिन तरथा विशव की आिारभत सतता म जञान एि अनभि होता ह

जञान विजञान वििक रपी सवतवहीनता ही असयमता मनोदौबशलय मल परविततततयो की अपररषकवत राग मोह लोभ अवििक अहकार अलभमान दहातमिादी परितततत दरािार सघषश असह-असतितव सशकता दवष तरथा तपोहीनता ह

सयमता क वबना बौशदघक मल परिततततयो की पररषकवत बशदघबल सामाखजक मलयो की अनभवत ितनय वकरया का दशशन समािान और सयमता धसदघ नही होती ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 22

उपासना क ललय िातािरण का महतव अपररहायश ह खजसम स मनषय कत िातािरण ही परिान ह जो शशकषा ि वयिसथा क रप म ही ह

मानिीयता की सीमा म वयिहार lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का आिरण ही वयततकततव ह ऐस वयततकततव क वनमाण म सवकरय योगदान ही कततशवय ह यही परषारथश ह यही परबदघता ह

आशा भद स उपासना उपासना भद स अनभि अनभि भद स अनमान अनमान भद स उपासना भद ह यही उपासना म िविधयता का कारण ह यह िविधयता सािशभौम आिरण की सीमा म विलय होन क ललय बाधय ह

मानि क ललय सहज समरथश उपासना एक अवनिायश कायशकरम ह जो अमानिीयता स मानिीयता मानिीयता स अवतमानिीयता की परवतषठा सथाततपत करती ह

सह-असतितव म अनकषण-विकषण-ितततत स सहजाितततत होती ह

कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ही अनकषण-विकषण ितततत ह

अनकषण का तातपयश परतयक कषण म लगातार सह-असतितव चिनतन वििार करम म परमाखणकता का सहज परमाण परित हो जाता ह यही सहजाितततत ह

सतता म समपकत परकवत की समपकतता का जञान ही (पणश-दशशन) कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ह यही भरततमत भाि ि अभाि का वतरोभाि ह यही सहज परवतषठा ि अिसथा ह

सतता म समपकत परकवत का जञान न होन स और अनभिमलक जञान न होन स भय और परलोभनिश समि भरममलक कायश-वयिहार सोि-वििार को बनाय रखता ह यही समपणश कलश का कारण ह

काल वकरया की अिधि ह इसी अिधि म आरोततपत वििार ि इचछा ही असहज एि वनरारोततपत वििार ि इचछा ही सहज ह

मानि इका म ही जागवत क करम म भी वनरारोपण कषमता पा जाती ह भरमिश आरोपण होता ह

जो जसा ह उसस अधिक कम अरथिा नासमझना ही आरोपण ह यही अजञान ह यही अकषमता ह यही भरम ह

सतता म समपकत जड़-ितनयातमक परकवत की सथसथवत-शीलता ि सतता सहज पणशता क समबनध म ही आरोप या वनरारोण वकरया समपनन होना पाया जाता ह

परतयक इका म रप गण सवभाि एि िमश समाहहत ह यही उसकी कायशितता ह इसी की गणना पररमाण परयोजन जञान ही परकवत क परवत वनभरमतापणश कषमता का दयोतक ह यही परमाण ह यही सहजता ह

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समपणश वकरयाय मलत रप और शबद भद म दषटवय ह

परकता क वबना इका म अवगरमता नही ह

पणशता पयशनत इका परकता उपयोवगता क ललए परितत ह

परकता ही इका म हरास ि विकास क लकषणो को परकट करती ह यही परिान उपादयता भी ह

इका म परकट होन िाल शबदादधद गण ही सापकष शततकतयाा ह गणविहीन इका नही ह इसललय

मनषय म सहज कामना का अभाि नही ह सहजता ही िमश ह यही सख शानतनत सतोष एि आननद ह यही िारणा को सपषट करता ह जो परतयकष ह

परतयक कमश-फल ही मनषय क सख का पोषक ि शोषक धसदघ हआ ह

सतय और सतयता क अनभि-करम म वयििान नही ह कयोवक अनभिकरम-वयिसथा सघन ह जागवत की कदधड़याा सघन ह इसललय-

सहजता आरोप स मकत ह आरोप ही नयनावतरक मलयाकन ह सवय की नयनावतरक मलयाकन वकरया ही असहजता ह

सवय का मलयाकन lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म होता ह

lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म न हो ऐसा मनषय इस पथवी पर नही ह

िमश का वियोग नही ह कयोवक यह िारणा ह इसका परतयकष रप ही मानिीयता एि अवतमानिीयता पणश आिरण ह जो सहजता का परिान लकषण ह इसललय -

अमानिीयता पणश आिरण ही असहज ह इसललय

परकवत अपन म समपणशता क सारथ सीततमत ह यही अिधि ह इसललय पणश म समायी ह यही पणश म समपणशता सहज सह-असतितव ह यही समपणशता का वनतय ितशमान और जञानािसथा क मानि म पणशता का परसि ह यही जागवत क ललय बाधयता ह

मनषय क बौशदघक कषतर म पायी जान िाली अनािशयक कलपनाओ का वनराकरण ही दशशन-कषमता म गणातमक पररमाजशन ह यही गणातमक ससकार-पररितशन शशकषा एि जीिन क कायशकरम का योगफल ह

दशशन-कषमता का उतकषश ही अनकषण विकषण ह यही मधयसथ वकरया की कषमता ह मधयसथ वकरया ही दषटा ह

मधयसथ वकरया का िरमोतकषश ही सम ि विषम वकरया का पणश वनयतरण ह यही कषमता कषण-कषण मधयसथ वयििान स मततकत ह

ससकार पिशक ही बौशदघक वयिसथा-परवकरया -कषमता क आनषवगक ह मनषय सहज ऐषणा एि विषयो की सीमा म परितततत ि वनितततत पिशक वयि होना पाया जाता ह जो परतयकष ह

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आतमा (मधयसथ वकरया) क आनषवगक बौशदघक परवकरया ि वयिसथा म सतय-सकलप एि सतय-कलपनापणश मानधसकता की सथसथवत पा जाती ह जो परधसदघ कमश उपासना जञान पणश ह यही कषमता दि ि दधदवय मानिीयता को परकट करती ह यही पणश जागवत ह

ऐषणासकत बौशदघक वयिसथा म मानिीय तरथा दि मानिीय सवभाि परकट होता ह उसी क अनरप म मानधसक िातािरण की सथसथवतशीलता ह ऐसी कषमता ही सामाखजक ितना एि सतकशता स पररपणश पायी जाती ह

विषयासकत बौशदघक वयिसथा ि परवकरया म अमानिीयतापणश आिरण समपनन होता ह जो पाशविकता तरथा दानिीयता क रप म दषटवय ह इनम उसी क योगय मानधसकता पा जाती ह यही लपत-सपत कलपना का कारण ह यही अजागवत तरथा अपणश सतकशता का दयोतक ह

शरय (जागवत) खजजञास होन पर ही लपत-सपत कलपनाय पररमाखजि त होती ह फलत दानिी ि पाशिी परिततततयो स उदासीनता सथसथर होती ह सारथ ही वििकोदय होता ह

शरय खजजञासा का उदय सव-ससकार विधि-विहहत अधययन तरथा उसक अनकल िातािरण म होता ह

विधि-विहहत-अधययन वनपणता कशलता ि पादधडतय ही ह

अधययन एि िातािरण ही ससकार पररितशन क ललय समरथश वयिसथा ह खजसका गणातमक पररितशन ही आतमबोि क ललय खजजञासा ह

आतमबोि ही सतय खजजञासा का परिान लकषण ह इसललय- अििारणा ही अनगमन तरथा अनशीलन क ललय परितततत ह जो शशषटता क रप म परतयकष होती ह परगवत क ललय अििारणा अवनिायश ह जागवत क ललय अििारणा एि हरास क ललय आसततकत परधसदघ ह यही करम स वनितततत ि परितततत ह अििारणा ही सदधदविक ह सदधदविक सवय म सतयता की विििना ह जो सपषट ह मलत यही शभ एि मागलय ह अनभि की अििारणा सतय बोि क रप म अििारणा (समयक-बोि) ही सतय-सकलप ह यही परािवति त होकर शभकमश उपासना तरथा आिरण क रप म परतयकष ह इसी का पररिवति त मलय ही िीरता िीरता उदारता दया कपा और करणा क रप म परतयकष ह सतय म ही समयक-बोि होता ह असतय ही कलपना एि भास होता ह हीनता दीनता और कररता स यकत कमश अशभ होता ह सव-मलय ही परितततत और वनितततत का िशश ह इसललय असतय अलभमान तरथा दपश स मकत सतय सरलता सहजता तरथा सौजनयता स यकत कमश ि उपासना शरय कारक ह

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सतय कामना की वनरनतरता स लकषय की अििारणा होती ह जञान म ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत परतयकष ह जञान वििक सममत विजञान ही ह जो पणश ह सतय और सतयता म दढ़ता ही शरयमय जीिन ह सतयानभवत ही सबका अभीषट ह शरीर स समपनन होन िाल समि वकरयाओ का सिालन मन ही मिस दवारा करता ह मिस स सभी नादधड़याा वनयदधतरत ह शबद का मल रप मन ही ह मिस पर मन आसवादन एि सवागत भािपणश तरगो का परसारण सिालन वनयतरण करता ह उसक मल म शबद ही ह जागवत की ओर गवत हत वनयतरणातमक शबद ही मतर ह लकषय-पराततपत-योगय-करम परवकरया ही वनयतरण ह शबद म जो भाि (मलय) ह िही उसका अरथश ह सारथशक शबदो का अरथश ही जागवत की ओर गवत ह कयोवक शबद का अरथश असतितव म िि ह भाि म जो उपयोगपणश अवनिायशता ह िही उसका महतव ह उपयोग पणश अवनिायशता म जो वनचशचत दधदशा ह िही उसकी दढ़ता ह यही समयक सकलप ह समयक सकलप म जो पणशता ह िही अनभि ह जो करम स मन ितततत चितत बशदघ और आतमा म पा जान िाली सससकत मौललक वकरयाय ह भाि का तातपयश होन स ह शततकत-तरय-जागरण (इचछा-शततकत वकरया-शततकत तरथा जञान शततकत जागरण) क वबना तयाग (भरममततकत) और परम परमाखणत नही होता

मनन परवकरया म सव-मलयाकन

सव-मलयाकन मनन धयान ldquoअपराि क अभाि म दयापणश आशा का पराितशन अनयाय क अभाि म नयायपणश वििार का पराितशन आसकती क अभाि म समािान पणश इचछा का पराितशन तरथा अजञान क अभाि म जञानपणश सकलप का पराितशन होता ह| अत अपरािहीन वयिहार क ललए वयिसथा का परभाि अनयायहीन वििार क ललए अखणड समाज का परभाि तरथा अजञान रहहत बदधदध क ललए अतवनि यामन अरथिा धयान आिशयक ह खजसस ही परतयाितशन वकरया सफल ह| धयान का अरथश समझन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना और समझन-अनभि करन क

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उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

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मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

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(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 29

सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 30

प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 31

अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 32

३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

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(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 34

उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 15

उललणखर अनभवो क आिार पर समपित जागकरर अपन-आपस जीवन जञान असतितव दरतन जञान मानवीयरापित आचरि जञान म ही समपित ह इसका अभयास करवधि सवतपरथम अनसिान दसरा अधययन पवतक रोि रोि पवतक अधययन य ही मल अभयास ह कयोकरक अधययन करवधि स ही रोि करवधि स ही अविारिा का सवीकर होना दखा जारा ह अनय करवधि जस उपदर करवधि म भरकतमर होन की सभावना सदा बना ही रहरा ह हर परपरा म अपन ढग की आदर परकररिा िाकतपर रहरा ही ह वह अधययवसाकतयक (अधययनगमय) होर रक उपदर या सचना मातर ह परपरा म णजस आरय क ललय आदर-करनदर ह वह रकत सगर-वयवहार सगर बोि होन की परकरिया परिाली पदघकरर ही अधययन कहलारी ह रकत का साथतक सवरप करवजञान सममर करववक और करववक सममर करवजञान होना दखा गया परयोजन करवहीन उपदर परयोग वह भी वयवहार परमाि करवहीन उपदर रब रक ही रह पारा ह जब रक रकत सगर न हो रकत का रातपयत भी इसी रथय को उदघादटर कररा ह रकतपत क ललय आकरति परिाली (भारा परिाली) ऐस रकत सहज रप म ही करवजञान क आशरर करवशलरिो को करववक स आशरर परयोजनो का परमाणिर होना सहज ह हम इस बार को समझ चक ह करक परयोजनपवतक जीन क ललय परमाणिर होन क ललय समािान समशदघ क रप म सह-असतितव दरतन क ललय रकत सगर अधययवसाकतयक करवधि का होना आवशयक ह अधययन करियाकलाप रकतसगर परयोजन परयोजन सगर मानवापकषा मानवापकषा सगर जीवनापकषा जीवनापकषा सगर सह-असतितव सह-असतितव सगर करवकास िम और करवकास करवकासिम और करवकास सगर जीवन-जीवनी िम-जागकरर िम-जागकरर एव इसकी करनररररा सह-असतितव सहज लकषय ह असतितव सहज लकषय म भी मानव ही अकरवभाय ह और दषटा ह इसललय मानव असतितव सहज सह-असतितव करवधि स परकरा-उदाततीकरि परकरा-करवकास परकरा-जागकरर सतरो क आिार पर सह-असतितव सहज अधययन सलभ हआ ह समपित असतितव ही वयविा क सवरप म वरतमान होना समीचीन ह आज भी मानव क अकररररकत सभी अविा म (पदाथत पराि जीव अविा) अपन-अपन तव सहहर वयविा म होना ददखरा ह इसी िम म मानव भी अपन मानवतव सहहर वयविा और समगर वयविा म भागीदारी सहज अपकषा को साथतक बनान क िम म ही जागर होना पाया जारा ह हम यह पार ह करक जागकरर सतर वयाखया और परमाि सवतरभ क सवरप म ही वभकरवर होरा ह इस आरय को लोकवयापीकरि करना भी सवतरभ कायतिम का एक बकरनयादी आयाम ह इसी सतयरावर lsquolsquoअनभवातमक अधयातमवादrsquorsquo एक परिकरर ह हर मानव अपन कलपनारीलरा कमतसवरतररा पवतक ही हर परिकररयो को परखना (परीकषि करना) सवीकारना या असवीकार करन क कायतकलाप को कररा ह

अनभि दशशन सस २०१२ दधदवतीय (अधयाय -३)

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 16

सतर छद िाकय शबद क दवारा वकरया मातर का िणशन ह सारथ ही जञानानभवत क ललए उपदश पिशक इवगत भी ह बरहम सहज िणशन पारगामी वयापक और पारदशीयता क रप म ह lsquolsquoयहrsquorsquo किल भास आभास बोि तरथा अनभिगमय ह इसका बोि मानि की कषमता योगयता पातरता पर आिाररत ह परतयाितशन पिशक परापत वयजनाएा जागवत क ललए गणातमक गवत ह गणातमक वयजना स सबोि सबोि स सससकार सससकार स गणातमक सिदना (सजञानीयता पिशक सिदना वनयदधतरत) रहना गणातमक सिदना स सतय सकलप तरथा सतय सकलप स गणातमक वयजनाओ की वनरनतरता ह सथसथवत एि वकरया सकत-गरहण कषमता ही वयजनीयता ह सकत-गरहण -परवकरयाबदघ जञान परापय को पान उस सरधकषत रखन क कायशकरम म अलभवयकत ह परापत क अनभि क करम म भास-आभास एि परतीवत ही जञापक (सतयाततपत होना) ह मानि दसरो क ललए भी सकत परसाररत करता ह सकत-गरहण-वकरया ही अनमानारोपण तरथा अनमानाकर भी ह जो सकलप इचछा वििार ि आशा ह अधयाय-७ अलभवयजना म गणातमक विकास का सकत वयजना म उपयोवगता का सकत ह अभयदय पराय (अभयदय जसा) ही अलभपराय ह खजसम अभयदय का भास या आभास होना आिशयक ह

कमशदशशन सस २००४ (प ८६ ८७) परमाण म विकास का तातपयश परमाण क गठनपणश होन स ह|मानि म एक बात की िाहत बनी ह ndash यरथासथसथवत िभि उसकी वनरतरता ndash यह सवाभाविक रप म सवीकत ह| परमाणओ म अशो का घटना-बढ़ना पररणाम क सवरप म हम समझ िक ह| पररणाम का अमरतव उसकी वनरतरता की अपकषा मानि म ही कलपना भास आभास परतीवत क रप म पाया जाता ह

प २० २३ (शासतराधययन की महततव) सदशासतराधययन क वबना सतय कामना एि परितततत सतय कामना क वबना सतय-परम सतय-परम क वबना सतय-वनषठा सतय वनषठा क वबना सतय परवतषठा सतय-परवतषठा क वबना सतय परतीवत सतय-परतीवत क वबना सतयानभाि सतयानभाि क वबना सद शासतर का उदघाटन तरथा सदशासतर क उदघाटन क वबना सद शासतर का अधययन पणश और सारथशक नही ह| मानि को जीिन की परतयक सतिचरथ म शानतनत एि सथसथरता की आिशयकता ह| सदशासतर सिन मनन एि आिरण स वयकती तरथा पररिार म शानतनत तरथा सथसथरता पा जाती ह|

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(सदशासतर सिन = शासतराधययन स शरिण | मनन एि आिरण अभयास-अधययन करम म समपणश मनन परवकरया)

(प ९७ ९८)

सहअसतितविादी विधि स हर मानि मानितव सहहत वयिसथा और समगर वयिसथा म भागीदारी करन योगय इका ह इसम मखय मददा यही ह - सवय को सवय क ललय रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क सयकत रप म होन को सवीकारन की आिशयकता ह जीिन वकरया की महहमा और मानि परमपरा म इसकी आिशयकता धयान म रहना अवत आिशयक ह तभी मानि शोि क ललए ततपर होना पाया जाता ह ऐसी ततपरता जागवत सहज विधि स सिशशभ क अरथश म परिावित होना होता ह तभी सिशमानि समािान पिशक वयकत होन समझदारी पिशक हर पररिार समािावनत और सखी होन की सथसथवत सपषट हो जाती ह फलसवरप समशदघ अभय सहअसतितव परभावित होन का सौभागय उदय होता ह यही मखय वबनद ह सिशशभ का परमाण भी यही ह कयोवक समािान समशदघ पिशक ही मानि सख शानतनत का अनभि करता ह इसी करम म समािान समशदघ अभय सहअसतितव पिशक आननद अपन आप म समपणश होना पाया जाता ह इस ढग स मानि लकषय सारथशक होन की सथसथवत म जीिन लकषय (सख शावत सतोष आननद) सारथशक होता ही ह जीिन लकषय और मानि लकषय सारथशक होना ही अधययन और अधयापन की सािशभौमता ह ऐस लकषय क सारथ मानि परमपरा अपन आप म सवय को पहिानन और समपणश मानि को पहिानन का सतर और वयाखया बन जाता ह परमाण क रप म वयाखया समझ क रप म सतर होना पाया जाता ह यह वनयवत सहज विधि स समीिीन रहना पाया जाता ह वनयवत विधि का तातपयश विकासकरम विकास जागवत करम जागवत ह दसर विधि स भौवतक रासायवनक रिना शरीर और जीिन वकरयाकलाप का सयकत अलभवयततकत समपरषणा परकाशन क रप म ह

मानि लकषय - समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करन और उस आिार पर जीिन लकषय (मनसवसथता) - सख शानतनत सतोष आननद को सारथशक बनान क अरथश म मानि शशकषा ससकार की आिशयकता सदा-सदा स बनी ह ह इसकी सफलता ही मानि कल का सौभागय ह

lsquoमानि कल और रासायवनक-भौवतक वकरयाकलाप का सारथशक परमाणrsquo

शशकषा की समपणश िि सहअसतितव रपी असतितव म रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म ही ह इसम स इनक अविभाजय रप म मानि परमपरा का समपणश वकरयाकलाप वयिहार सोि वििार समझ ह समझ क अरथश म ही हर मानि का अधययन करना होता ह समझ अपन म जानना मानना पहिानना वनिाह करन क रप म परमाखणत होती ह इसी अरथश म समपणश अधययन सारथशक होना पाया जाता ह

असतितव म समपणश इका याा रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म पररलधकषत ह ही (प १०२) वनशचयता सथसथरता सिशमानि म चिराकााकषा क रप म बनी ही ह सहअसतितव रपी असतितव जञान और सवीकवत का आिार ह यह सिशमानि म सिकषण पिशक विदधदत होन िाला तथय ह सवय को जाािन स भी

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यही सपषट होता ह हम सब सथसथरता ि वनशचयता को ही सवीकार करत रह ह न वक असथसथरता अवनशचयता को सथसथरता क सहज आिार पर ही वनशचयता का होना सवभाविक ह (प ११५) इस हम मानि को अचछी तरह स समझन की आिशयकता ह और अनशीलन पिशक सरकषण सििशन विधि स सवय को वयसथसथत कर लन की आिशयकता ह मानि क वयिसथसथत होन क मल म जञान विजञान वििक का एक सगीतमय कायशकलाप सपषट रहन स ह यही कायश-कलाप भाषा कायश-वयिहार म वनयोखजत होकर परयोजनो को परवतपादधदत करता ह मानि का परयोजन समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करना ही ह (प १२२ १२३)

( अनभि मलक वििी स

यरथारथशता िािविकता सतयता का बोि रपी बशदघ की सथसथवत उस परकाशशत करन की परितततत क रप म सकलप ही गवत ह नयाय िमश सतय क साकषातकार करन क रप म चितत सथसथवत और इसका चितरण क रप म चिदधतरत हो पाना गवत ह चितत वकरयाकलाप का समपणश चितरण तलन क रप म अरथात नयाय िमश ि सतय रप म सपषट होना ितततत सहज सथसथवत ह ितततत म समपनन हय तलन का विशलषण विधि म विशलततषत होना ि समपरततषत होना ितततत सहज गवत ह विशलषण क सपषट अरथिा सार रप म मलय सवीकत होता ह इस आसवादन करना ही मन की सथसथवत ह इसकी सारथशकता क ललय ियन वकरया को समपादधदत करन क रप म गवतत होना हर मानि म सिधकषत ह इस ढग स मानि भी सभी परकार स सथसथवत-गवत म होना सपषट होता ह इस परकार मानि समझदारी स समपनन होन क उपरानत परमाखणत होना सवभाविक होता ह इसका मतलब यही हआ हम जब तक परमाखणत नही होत तब तक परमाखणत होन क ललए जञानाजशन वििकाजशन विजञानाजशन कर लना ही शशकषा और शशकषण का तातपयश ह इसक ललए सह असतितविादी शशकषा करम समीिीन ह अतएि समझदार मानि होन क ललए धयान दन की आिशयकता ह

सह-असतितविादी वििार जञान वििक विजञान को समझना ही समझदारी ह

ldquoअधययन रपी उपासनाrdquo (अभयास) - कमशदशशन सस २००४ प ४९ ५०

मानि जीिन म उपासना एक महतवपणश भाग ह| उपासना ही मल परिततततयो का पररमाजशन एि पररितशन परवकरया ह| यही ससकार एि सवभाि पररितशन भी ह| ( उपासना = उपायो सहहत लकषय पती क ललए कीया गया वकरयाकलाप) उपायपिशक सहिास पाना ही उपासना की अििारणा ह खजसक ललए पररशरम (पररमाजशन शरम) एि अभयास ह| अभयास एि पररशरम स ही सथल सकषम कारण की सथसथवतितता सपषट ह| खजसस ततसबिी पदारथश वनयवत-

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करम शततकत महहमा विभती एि वनयम सबिी अनसिान (अनगमन पिशक अििारणा) शोि परधसदध ह| अनसिान भौवतक बौदधदधक तरथा आधयातमतमक भद स ह| अनसनधान परवकरया मनन चिितन सकलप एि अनभती क रप म परतयकष ह|

सथल सकषम कारण (दषटा) का तातपयश दखन समझन परयोग करन वयिहार करन एि अनभि करन योगय कषमता क सपनन होन स ह |

परिततततयो का पररमाजशन ही मानि जीिन का कायशकरम ह| मानि म पणशता एि पररमाजशनशीलता की अपकषा परतयक सथसथती म पा जाती ह| पणशता ही पादधडतय ह| पादधडतय स अधिक जञान एि वनपणता कशलता स अधिक वयिहार एि उतपादन नही ह| पररमाजशनशीलता उतपादन ि वयिहार म पा जाती ह| पादधडतय परबदधता परबदधता ही शशकषा एि वयिसथा ह| परबदधता स पररपणश होत तक उपासना अतयत उपयोगी ह|

प ५६ स ७२ (इनम स कछ ही िाकयो को ललया गया ह| समपणश क ललए पिक दख) उपासना स सािशभौततमक मलयो का अिगाहन करना ही परिान उपादयता ह| समि उपासनाओ क मल म लकषय समय ह िह अखड समाज सािशभौम वयिसथा ह| िह किल सिश

मगल ही ह| कयोकी सिश मगल की कामना क वबना सवय का मगल धसदध नही ह| अनय कामय कामनाए किल मगलमयता की भास परदायी ह न की अनभिदायी| इसललए सिशमगल

कामनारपी कायशकरम तःरथा उसकी अनसरण योगय कषमता पयत मानि परयास करन क ललए बाधय ह| सही क परती भरततमत रहना ही मत सपरदाय एि िगश का कारण ह|

मत सापरदाततयक िगीयता म आचरथिक िगीयता एि आचरथिक िगीयता म मत-सापरदाततयकता समा ह ह|

इसका वनराकरण सपषटतया सािशभौततमक रप म पा जान िाली मानिीयतापणश पदधवत स ldquoवनयम-तरयrdquo (बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक) क आिारपिशक ही आचरथिक एि सापरदाततयक िगश-भािनाओ स मकत होन की समभािना एि मकती ह| इसी म समि िगश-भािना विलीन हो जाती ह| इसीललए ndash

उपासना की उभय पदधवत का अभीषट समझदारी जागवत पिशक सारथशक होता ह जो जागरण ह| मानि म शततकतया वकरया इचछा एि जञान शततकत ही ह जो उनकी अहशताए ह| अहशताए परतयक इका

की जागवतशीलता जागवत पर आिाररत ह| शबद सपशश रप रस गिनतियो दवारा शततकतयो का अपवयय न होना सारथ ही सदवयाय होना ही

वकरया शततकत की जागवत ह| सदवयय एि अपवयय का वनिारण मानिीयता क सीमा म ldquoवनयम-तरयrdquo क रप म ह |

अतकरण मल परितताा अरथात आशा वििार इचछा ि सकलप का अपवयय न होना ही सदवयय ह| यही इचछा शततकत का जागरण ह|

समयक-बोि एि अनभती पणशता ही जञान परकटन कषमता ह| यही जञानशततकत का जागरण अरथिा पणश जागरण ह| यह ldquoजागवत-तरयrdquo मानिीयता एि अवतमानिीयता म परतयकष ह| यही मानि जीिन की िरमोतकषश

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उपलसतबध ह| सशकत उपासना क उपादयता यही ह यही समगर मानि की कामना ह| यही सिशमगल ह| इसीललए

जीिन-जागवत का परतयकष सवरप ही वििक पणश विजञान का परयोग ह यही सतकशता अखणड सामाखजकता परबदघता वनविि षमता सह-असतितव शशकषा विधि वयिसथा सभयता ससकवत बौशदघक समािान भौवतक समशदघ और जीिन जागवत की वनरनतरता ह

पणश जागवत पयशनत परतयक मानि इका परयास एि उपासना क ललय बाधय ह इसी क फलसवरप मल परिततततयो का पररमाजशन होता ह खजसक कारण विशशषट और शशषट मानधसकता एि वििार चिनतन-बोि कषमता अनभिपणशता परतयकष होती ह यही शरषठ उपासना की उपलसतबधयाा ह

इसललय समान क सारथ वयिहार करन क ललय बाधय हआ ह यही सामाखजकता की बाधयता ह यही मानि जीिन की गौरि और गररमा ह यही गररमा समान क सारथ वयिहार अधिक जागवत क ललय अभयास करन क ललय पररणा ह यही िािविक उपासना ह

वििक अरथात मानि लकषय और िरागय अरथात समशदघ ही उपासना का परतयकष फल ह खजसम सामाखजकता सवाभाविक रप स समाहहत रहती ह

िरागय का पराितशन ही असगरह (समशदघ) उदारता एि दया ह भौवतक समशदघ म उदारता एि दया क मौललक मलयो का अनरजन ही सामाखजकता का पराण ततव ह यही सामाखजक सगीत ह इसी क ललय मानि तततषत ह वििक ही बौशदघक समािान एि सामाखजक मलयो को वनिाह पिशक परकट करता ह इसललय

वििक ि िरागय ही परोकष जञान (सदवयिहाररक जञान) का परिान लकषण ह अनभि ही परोकष जञान की अनतनतम सथसथवत ह इसक पिश अनमान अधिकार ही परधसदघ ह ििसथसथवत ििगत सथसथवत सतय म ही अनभि ह

परोकष जञान क वबना वनतयावनतय यकतायकत नयायानयाय िमािमश सतयासतयइषटावनषट दषटादषट तरथा परोकष जञानाधिकार धसदघ नही होता ह

वनतयावनतय जञानाधिकार क वबना मनषय म सविमश क परवत वनषठा नही पा जाती ह मानि िमश ही सख सख ही नयायपणश आिरण नयायपणश आिरण ही मानिीयतापणश सीमा एि lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का पालन ह यही मनषय का सविमश ह मानि सख िमी ह

मयादा विहीन इका नही ह जस जीिो म सवभाि मयादा िनसपवतयो म गण मयादा एि पदारथो म रप मयादा-भग नही होती ह यही उनकी गररमा ह इसी परकार मानि म सख ही िमश ह िमश ही मयादा ह यही उनकी गररमा एि विशवास ह मयादा का परतयकष रप ही विशवास ह

lsquolsquoविशवासविहीन समबनध एि समपकश म सख नही हrsquorsquo समबनध एि समपकश विहीन मनषय नही ह यही बाधयता सविमश क ललय ह इसक पालन म जो अकषमता अयोगयता एि अपातरता ह - िही दख कलश समसया और अजागवत ह

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सविमश म समपननता एि पालन करन योगय कषमता योगयता एि पातरता स पररपणश होत तक जञानाजशन करन क अरथश म अधययन रपी उपासना का अभाि नही ह

मानि क सविमश की सीमा म ही मत समपरदाय िगश वतरोहहत हो जात ह यही समरथश उपासना की परतयकष गररमा ह lsquolsquoयही मागललक हrsquorsquo साधय सािक सािन इन तीनो का उपासना म समाहहत रहना अवनिायश ह इनकी एक सतरता ही उपासना की सफलता ह अनयरथा असफलता ह परतयक सथसथवत म परापत शततकत ि सािनो का सदपयोग करना ही उसकी अवगरम जागवत ह यही उपासना ह

इनतिय कायशकलाप तरथा इनतियो का कायशकषतर ही अपरोकष जञान की सीमा ह इस वयापार म ितविि षय सीमानतिती धसशदघयाा ह इसक अवतररकत और उपलसतबधयाा इसम नही ह

विषयो की सीमा म मनषय सीततमत नही ह कयोवक उसम िार आयाम परधसदघ ह

मनषय ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत समपनन होन क ललय बाधय ह यही आिशयकता अिसर सभािना एि वयिसथा ह

सयमतापिशक ही मनषय क दवारा परतयक पररपरकषय म वकय गय वकरयाकलाप म स गररमापणश िभि परकट होता ह जस-

सतयबोि सहहत सतय बोलन का अभयास करन स भय ि अविशवास की वनितततत हषश तरथा उतसाह का उदय होता ह

विशव क परवत मलय भाि की परवतषठा स इषट और सािक क मधय विषमता का अभाि होता ह

शबद क अरथश अरथात मनतरारथश का तदरपतापिशक समरण करन क अभयास स उसका अरथश एि सवभाि गमय होता ह सभी सारथशक शबद मनतर ह

अधिक जागत म समपशण स अलभमान ि अहकार का उनमलन तरथा विदया ि सरलता का उदय होता ह ( अधिक जागत = समझान िाला परमाखणत वयततकत गर)

शरीर सिदना सयत रहन स मन की पवितरता मन की पवितरता स मनोबल का लाभ होता ह

सव-शरीर मोह नषट होन स ससार क परवत मोह दर होता ह सिशशभरपी आपत कामना पणश बशदघ स ही विशव क परवत उदारता दया कपा करणा का परसिन तरथा विशव की आिारभत सतता म जञान एि अनभि होता ह

जञान विजञान वििक रपी सवतवहीनता ही असयमता मनोदौबशलय मल परविततततयो की अपररषकवत राग मोह लोभ अवििक अहकार अलभमान दहातमिादी परितततत दरािार सघषश असह-असतितव सशकता दवष तरथा तपोहीनता ह

सयमता क वबना बौशदघक मल परिततततयो की पररषकवत बशदघबल सामाखजक मलयो की अनभवत ितनय वकरया का दशशन समािान और सयमता धसदघ नही होती ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 22

उपासना क ललय िातािरण का महतव अपररहायश ह खजसम स मनषय कत िातािरण ही परिान ह जो शशकषा ि वयिसथा क रप म ही ह

मानिीयता की सीमा म वयिहार lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का आिरण ही वयततकततव ह ऐस वयततकततव क वनमाण म सवकरय योगदान ही कततशवय ह यही परषारथश ह यही परबदघता ह

आशा भद स उपासना उपासना भद स अनभि अनभि भद स अनमान अनमान भद स उपासना भद ह यही उपासना म िविधयता का कारण ह यह िविधयता सािशभौम आिरण की सीमा म विलय होन क ललय बाधय ह

मानि क ललय सहज समरथश उपासना एक अवनिायश कायशकरम ह जो अमानिीयता स मानिीयता मानिीयता स अवतमानिीयता की परवतषठा सथाततपत करती ह

सह-असतितव म अनकषण-विकषण-ितततत स सहजाितततत होती ह

कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ही अनकषण-विकषण ितततत ह

अनकषण का तातपयश परतयक कषण म लगातार सह-असतितव चिनतन वििार करम म परमाखणकता का सहज परमाण परित हो जाता ह यही सहजाितततत ह

सतता म समपकत परकवत की समपकतता का जञान ही (पणश-दशशन) कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ह यही भरततमत भाि ि अभाि का वतरोभाि ह यही सहज परवतषठा ि अिसथा ह

सतता म समपकत परकवत का जञान न होन स और अनभिमलक जञान न होन स भय और परलोभनिश समि भरममलक कायश-वयिहार सोि-वििार को बनाय रखता ह यही समपणश कलश का कारण ह

काल वकरया की अिधि ह इसी अिधि म आरोततपत वििार ि इचछा ही असहज एि वनरारोततपत वििार ि इचछा ही सहज ह

मानि इका म ही जागवत क करम म भी वनरारोपण कषमता पा जाती ह भरमिश आरोपण होता ह

जो जसा ह उसस अधिक कम अरथिा नासमझना ही आरोपण ह यही अजञान ह यही अकषमता ह यही भरम ह

सतता म समपकत जड़-ितनयातमक परकवत की सथसथवत-शीलता ि सतता सहज पणशता क समबनध म ही आरोप या वनरारोण वकरया समपनन होना पाया जाता ह

परतयक इका म रप गण सवभाि एि िमश समाहहत ह यही उसकी कायशितता ह इसी की गणना पररमाण परयोजन जञान ही परकवत क परवत वनभरमतापणश कषमता का दयोतक ह यही परमाण ह यही सहजता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 23

समपणश वकरयाय मलत रप और शबद भद म दषटवय ह

परकता क वबना इका म अवगरमता नही ह

पणशता पयशनत इका परकता उपयोवगता क ललए परितत ह

परकता ही इका म हरास ि विकास क लकषणो को परकट करती ह यही परिान उपादयता भी ह

इका म परकट होन िाल शबदादधद गण ही सापकष शततकतयाा ह गणविहीन इका नही ह इसललय

मनषय म सहज कामना का अभाि नही ह सहजता ही िमश ह यही सख शानतनत सतोष एि आननद ह यही िारणा को सपषट करता ह जो परतयकष ह

परतयक कमश-फल ही मनषय क सख का पोषक ि शोषक धसदघ हआ ह

सतय और सतयता क अनभि-करम म वयििान नही ह कयोवक अनभिकरम-वयिसथा सघन ह जागवत की कदधड़याा सघन ह इसललय-

सहजता आरोप स मकत ह आरोप ही नयनावतरक मलयाकन ह सवय की नयनावतरक मलयाकन वकरया ही असहजता ह

सवय का मलयाकन lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म होता ह

lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म न हो ऐसा मनषय इस पथवी पर नही ह

िमश का वियोग नही ह कयोवक यह िारणा ह इसका परतयकष रप ही मानिीयता एि अवतमानिीयता पणश आिरण ह जो सहजता का परिान लकषण ह इसललय -

अमानिीयता पणश आिरण ही असहज ह इसललय

परकवत अपन म समपणशता क सारथ सीततमत ह यही अिधि ह इसललय पणश म समायी ह यही पणश म समपणशता सहज सह-असतितव ह यही समपणशता का वनतय ितशमान और जञानािसथा क मानि म पणशता का परसि ह यही जागवत क ललय बाधयता ह

मनषय क बौशदघक कषतर म पायी जान िाली अनािशयक कलपनाओ का वनराकरण ही दशशन-कषमता म गणातमक पररमाजशन ह यही गणातमक ससकार-पररितशन शशकषा एि जीिन क कायशकरम का योगफल ह

दशशन-कषमता का उतकषश ही अनकषण विकषण ह यही मधयसथ वकरया की कषमता ह मधयसथ वकरया ही दषटा ह

मधयसथ वकरया का िरमोतकषश ही सम ि विषम वकरया का पणश वनयतरण ह यही कषमता कषण-कषण मधयसथ वयििान स मततकत ह

ससकार पिशक ही बौशदघक वयिसथा-परवकरया -कषमता क आनषवगक ह मनषय सहज ऐषणा एि विषयो की सीमा म परितततत ि वनितततत पिशक वयि होना पाया जाता ह जो परतयकष ह

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आतमा (मधयसथ वकरया) क आनषवगक बौशदघक परवकरया ि वयिसथा म सतय-सकलप एि सतय-कलपनापणश मानधसकता की सथसथवत पा जाती ह जो परधसदघ कमश उपासना जञान पणश ह यही कषमता दि ि दधदवय मानिीयता को परकट करती ह यही पणश जागवत ह

ऐषणासकत बौशदघक वयिसथा म मानिीय तरथा दि मानिीय सवभाि परकट होता ह उसी क अनरप म मानधसक िातािरण की सथसथवतशीलता ह ऐसी कषमता ही सामाखजक ितना एि सतकशता स पररपणश पायी जाती ह

विषयासकत बौशदघक वयिसथा ि परवकरया म अमानिीयतापणश आिरण समपनन होता ह जो पाशविकता तरथा दानिीयता क रप म दषटवय ह इनम उसी क योगय मानधसकता पा जाती ह यही लपत-सपत कलपना का कारण ह यही अजागवत तरथा अपणश सतकशता का दयोतक ह

शरय (जागवत) खजजञास होन पर ही लपत-सपत कलपनाय पररमाखजि त होती ह फलत दानिी ि पाशिी परिततततयो स उदासीनता सथसथर होती ह सारथ ही वििकोदय होता ह

शरय खजजञासा का उदय सव-ससकार विधि-विहहत अधययन तरथा उसक अनकल िातािरण म होता ह

विधि-विहहत-अधययन वनपणता कशलता ि पादधडतय ही ह

अधययन एि िातािरण ही ससकार पररितशन क ललय समरथश वयिसथा ह खजसका गणातमक पररितशन ही आतमबोि क ललय खजजञासा ह

आतमबोि ही सतय खजजञासा का परिान लकषण ह इसललय- अििारणा ही अनगमन तरथा अनशीलन क ललय परितततत ह जो शशषटता क रप म परतयकष होती ह परगवत क ललय अििारणा अवनिायश ह जागवत क ललय अििारणा एि हरास क ललय आसततकत परधसदघ ह यही करम स वनितततत ि परितततत ह अििारणा ही सदधदविक ह सदधदविक सवय म सतयता की विििना ह जो सपषट ह मलत यही शभ एि मागलय ह अनभि की अििारणा सतय बोि क रप म अििारणा (समयक-बोि) ही सतय-सकलप ह यही परािवति त होकर शभकमश उपासना तरथा आिरण क रप म परतयकष ह इसी का पररिवति त मलय ही िीरता िीरता उदारता दया कपा और करणा क रप म परतयकष ह सतय म ही समयक-बोि होता ह असतय ही कलपना एि भास होता ह हीनता दीनता और कररता स यकत कमश अशभ होता ह सव-मलय ही परितततत और वनितततत का िशश ह इसललय असतय अलभमान तरथा दपश स मकत सतय सरलता सहजता तरथा सौजनयता स यकत कमश ि उपासना शरय कारक ह

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सतय कामना की वनरनतरता स लकषय की अििारणा होती ह जञान म ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत परतयकष ह जञान वििक सममत विजञान ही ह जो पणश ह सतय और सतयता म दढ़ता ही शरयमय जीिन ह सतयानभवत ही सबका अभीषट ह शरीर स समपनन होन िाल समि वकरयाओ का सिालन मन ही मिस दवारा करता ह मिस स सभी नादधड़याा वनयदधतरत ह शबद का मल रप मन ही ह मिस पर मन आसवादन एि सवागत भािपणश तरगो का परसारण सिालन वनयतरण करता ह उसक मल म शबद ही ह जागवत की ओर गवत हत वनयतरणातमक शबद ही मतर ह लकषय-पराततपत-योगय-करम परवकरया ही वनयतरण ह शबद म जो भाि (मलय) ह िही उसका अरथश ह सारथशक शबदो का अरथश ही जागवत की ओर गवत ह कयोवक शबद का अरथश असतितव म िि ह भाि म जो उपयोगपणश अवनिायशता ह िही उसका महतव ह उपयोग पणश अवनिायशता म जो वनचशचत दधदशा ह िही उसकी दढ़ता ह यही समयक सकलप ह समयक सकलप म जो पणशता ह िही अनभि ह जो करम स मन ितततत चितत बशदघ और आतमा म पा जान िाली सससकत मौललक वकरयाय ह भाि का तातपयश होन स ह शततकत-तरय-जागरण (इचछा-शततकत वकरया-शततकत तरथा जञान शततकत जागरण) क वबना तयाग (भरममततकत) और परम परमाखणत नही होता

मनन परवकरया म सव-मलयाकन

सव-मलयाकन मनन धयान ldquoअपराि क अभाि म दयापणश आशा का पराितशन अनयाय क अभाि म नयायपणश वििार का पराितशन आसकती क अभाि म समािान पणश इचछा का पराितशन तरथा अजञान क अभाि म जञानपणश सकलप का पराितशन होता ह| अत अपरािहीन वयिहार क ललए वयिसथा का परभाि अनयायहीन वििार क ललए अखणड समाज का परभाि तरथा अजञान रहहत बदधदध क ललए अतवनि यामन अरथिा धयान आिशयक ह खजसस ही परतयाितशन वकरया सफल ह| धयान का अरथश समझन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना और समझन-अनभि करन क

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उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

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मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

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(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

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सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

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प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

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अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

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३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 33

(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 34

उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

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मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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सतर छद िाकय शबद क दवारा वकरया मातर का िणशन ह सारथ ही जञानानभवत क ललए उपदश पिशक इवगत भी ह बरहम सहज िणशन पारगामी वयापक और पारदशीयता क रप म ह lsquolsquoयहrsquorsquo किल भास आभास बोि तरथा अनभिगमय ह इसका बोि मानि की कषमता योगयता पातरता पर आिाररत ह परतयाितशन पिशक परापत वयजनाएा जागवत क ललए गणातमक गवत ह गणातमक वयजना स सबोि सबोि स सससकार सससकार स गणातमक सिदना (सजञानीयता पिशक सिदना वनयदधतरत) रहना गणातमक सिदना स सतय सकलप तरथा सतय सकलप स गणातमक वयजनाओ की वनरनतरता ह सथसथवत एि वकरया सकत-गरहण कषमता ही वयजनीयता ह सकत-गरहण -परवकरयाबदघ जञान परापय को पान उस सरधकषत रखन क कायशकरम म अलभवयकत ह परापत क अनभि क करम म भास-आभास एि परतीवत ही जञापक (सतयाततपत होना) ह मानि दसरो क ललए भी सकत परसाररत करता ह सकत-गरहण-वकरया ही अनमानारोपण तरथा अनमानाकर भी ह जो सकलप इचछा वििार ि आशा ह अधयाय-७ अलभवयजना म गणातमक विकास का सकत वयजना म उपयोवगता का सकत ह अभयदय पराय (अभयदय जसा) ही अलभपराय ह खजसम अभयदय का भास या आभास होना आिशयक ह

कमशदशशन सस २००४ (प ८६ ८७) परमाण म विकास का तातपयश परमाण क गठनपणश होन स ह|मानि म एक बात की िाहत बनी ह ndash यरथासथसथवत िभि उसकी वनरतरता ndash यह सवाभाविक रप म सवीकत ह| परमाणओ म अशो का घटना-बढ़ना पररणाम क सवरप म हम समझ िक ह| पररणाम का अमरतव उसकी वनरतरता की अपकषा मानि म ही कलपना भास आभास परतीवत क रप म पाया जाता ह

प २० २३ (शासतराधययन की महततव) सदशासतराधययन क वबना सतय कामना एि परितततत सतय कामना क वबना सतय-परम सतय-परम क वबना सतय-वनषठा सतय वनषठा क वबना सतय परवतषठा सतय-परवतषठा क वबना सतय परतीवत सतय-परतीवत क वबना सतयानभाि सतयानभाि क वबना सद शासतर का उदघाटन तरथा सदशासतर क उदघाटन क वबना सद शासतर का अधययन पणश और सारथशक नही ह| मानि को जीिन की परतयक सतिचरथ म शानतनत एि सथसथरता की आिशयकता ह| सदशासतर सिन मनन एि आिरण स वयकती तरथा पररिार म शानतनत तरथा सथसथरता पा जाती ह|

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(सदशासतर सिन = शासतराधययन स शरिण | मनन एि आिरण अभयास-अधययन करम म समपणश मनन परवकरया)

(प ९७ ९८)

सहअसतितविादी विधि स हर मानि मानितव सहहत वयिसथा और समगर वयिसथा म भागीदारी करन योगय इका ह इसम मखय मददा यही ह - सवय को सवय क ललय रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क सयकत रप म होन को सवीकारन की आिशयकता ह जीिन वकरया की महहमा और मानि परमपरा म इसकी आिशयकता धयान म रहना अवत आिशयक ह तभी मानि शोि क ललए ततपर होना पाया जाता ह ऐसी ततपरता जागवत सहज विधि स सिशशभ क अरथश म परिावित होना होता ह तभी सिशमानि समािान पिशक वयकत होन समझदारी पिशक हर पररिार समािावनत और सखी होन की सथसथवत सपषट हो जाती ह फलसवरप समशदघ अभय सहअसतितव परभावित होन का सौभागय उदय होता ह यही मखय वबनद ह सिशशभ का परमाण भी यही ह कयोवक समािान समशदघ पिशक ही मानि सख शानतनत का अनभि करता ह इसी करम म समािान समशदघ अभय सहअसतितव पिशक आननद अपन आप म समपणश होना पाया जाता ह इस ढग स मानि लकषय सारथशक होन की सथसथवत म जीिन लकषय (सख शावत सतोष आननद) सारथशक होता ही ह जीिन लकषय और मानि लकषय सारथशक होना ही अधययन और अधयापन की सािशभौमता ह ऐस लकषय क सारथ मानि परमपरा अपन आप म सवय को पहिानन और समपणश मानि को पहिानन का सतर और वयाखया बन जाता ह परमाण क रप म वयाखया समझ क रप म सतर होना पाया जाता ह यह वनयवत सहज विधि स समीिीन रहना पाया जाता ह वनयवत विधि का तातपयश विकासकरम विकास जागवत करम जागवत ह दसर विधि स भौवतक रासायवनक रिना शरीर और जीिन वकरयाकलाप का सयकत अलभवयततकत समपरषणा परकाशन क रप म ह

मानि लकषय - समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करन और उस आिार पर जीिन लकषय (मनसवसथता) - सख शानतनत सतोष आननद को सारथशक बनान क अरथश म मानि शशकषा ससकार की आिशयकता सदा-सदा स बनी ह ह इसकी सफलता ही मानि कल का सौभागय ह

lsquoमानि कल और रासायवनक-भौवतक वकरयाकलाप का सारथशक परमाणrsquo

शशकषा की समपणश िि सहअसतितव रपी असतितव म रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म ही ह इसम स इनक अविभाजय रप म मानि परमपरा का समपणश वकरयाकलाप वयिहार सोि वििार समझ ह समझ क अरथश म ही हर मानि का अधययन करना होता ह समझ अपन म जानना मानना पहिानना वनिाह करन क रप म परमाखणत होती ह इसी अरथश म समपणश अधययन सारथशक होना पाया जाता ह

असतितव म समपणश इका याा रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म पररलधकषत ह ही (प १०२) वनशचयता सथसथरता सिशमानि म चिराकााकषा क रप म बनी ही ह सहअसतितव रपी असतितव जञान और सवीकवत का आिार ह यह सिशमानि म सिकषण पिशक विदधदत होन िाला तथय ह सवय को जाािन स भी

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यही सपषट होता ह हम सब सथसथरता ि वनशचयता को ही सवीकार करत रह ह न वक असथसथरता अवनशचयता को सथसथरता क सहज आिार पर ही वनशचयता का होना सवभाविक ह (प ११५) इस हम मानि को अचछी तरह स समझन की आिशयकता ह और अनशीलन पिशक सरकषण सििशन विधि स सवय को वयसथसथत कर लन की आिशयकता ह मानि क वयिसथसथत होन क मल म जञान विजञान वििक का एक सगीतमय कायशकलाप सपषट रहन स ह यही कायश-कलाप भाषा कायश-वयिहार म वनयोखजत होकर परयोजनो को परवतपादधदत करता ह मानि का परयोजन समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करना ही ह (प १२२ १२३)

( अनभि मलक वििी स

यरथारथशता िािविकता सतयता का बोि रपी बशदघ की सथसथवत उस परकाशशत करन की परितततत क रप म सकलप ही गवत ह नयाय िमश सतय क साकषातकार करन क रप म चितत सथसथवत और इसका चितरण क रप म चिदधतरत हो पाना गवत ह चितत वकरयाकलाप का समपणश चितरण तलन क रप म अरथात नयाय िमश ि सतय रप म सपषट होना ितततत सहज सथसथवत ह ितततत म समपनन हय तलन का विशलषण विधि म विशलततषत होना ि समपरततषत होना ितततत सहज गवत ह विशलषण क सपषट अरथिा सार रप म मलय सवीकत होता ह इस आसवादन करना ही मन की सथसथवत ह इसकी सारथशकता क ललय ियन वकरया को समपादधदत करन क रप म गवतत होना हर मानि म सिधकषत ह इस ढग स मानि भी सभी परकार स सथसथवत-गवत म होना सपषट होता ह इस परकार मानि समझदारी स समपनन होन क उपरानत परमाखणत होना सवभाविक होता ह इसका मतलब यही हआ हम जब तक परमाखणत नही होत तब तक परमाखणत होन क ललए जञानाजशन वििकाजशन विजञानाजशन कर लना ही शशकषा और शशकषण का तातपयश ह इसक ललए सह असतितविादी शशकषा करम समीिीन ह अतएि समझदार मानि होन क ललए धयान दन की आिशयकता ह

सह-असतितविादी वििार जञान वििक विजञान को समझना ही समझदारी ह

ldquoअधययन रपी उपासनाrdquo (अभयास) - कमशदशशन सस २००४ प ४९ ५०

मानि जीिन म उपासना एक महतवपणश भाग ह| उपासना ही मल परिततततयो का पररमाजशन एि पररितशन परवकरया ह| यही ससकार एि सवभाि पररितशन भी ह| ( उपासना = उपायो सहहत लकषय पती क ललए कीया गया वकरयाकलाप) उपायपिशक सहिास पाना ही उपासना की अििारणा ह खजसक ललए पररशरम (पररमाजशन शरम) एि अभयास ह| अभयास एि पररशरम स ही सथल सकषम कारण की सथसथवतितता सपषट ह| खजसस ततसबिी पदारथश वनयवत-

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करम शततकत महहमा विभती एि वनयम सबिी अनसिान (अनगमन पिशक अििारणा) शोि परधसदध ह| अनसिान भौवतक बौदधदधक तरथा आधयातमतमक भद स ह| अनसनधान परवकरया मनन चिितन सकलप एि अनभती क रप म परतयकष ह|

सथल सकषम कारण (दषटा) का तातपयश दखन समझन परयोग करन वयिहार करन एि अनभि करन योगय कषमता क सपनन होन स ह |

परिततततयो का पररमाजशन ही मानि जीिन का कायशकरम ह| मानि म पणशता एि पररमाजशनशीलता की अपकषा परतयक सथसथती म पा जाती ह| पणशता ही पादधडतय ह| पादधडतय स अधिक जञान एि वनपणता कशलता स अधिक वयिहार एि उतपादन नही ह| पररमाजशनशीलता उतपादन ि वयिहार म पा जाती ह| पादधडतय परबदधता परबदधता ही शशकषा एि वयिसथा ह| परबदधता स पररपणश होत तक उपासना अतयत उपयोगी ह|

प ५६ स ७२ (इनम स कछ ही िाकयो को ललया गया ह| समपणश क ललए पिक दख) उपासना स सािशभौततमक मलयो का अिगाहन करना ही परिान उपादयता ह| समि उपासनाओ क मल म लकषय समय ह िह अखड समाज सािशभौम वयिसथा ह| िह किल सिश

मगल ही ह| कयोकी सिश मगल की कामना क वबना सवय का मगल धसदध नही ह| अनय कामय कामनाए किल मगलमयता की भास परदायी ह न की अनभिदायी| इसललए सिशमगल

कामनारपी कायशकरम तःरथा उसकी अनसरण योगय कषमता पयत मानि परयास करन क ललए बाधय ह| सही क परती भरततमत रहना ही मत सपरदाय एि िगश का कारण ह|

मत सापरदाततयक िगीयता म आचरथिक िगीयता एि आचरथिक िगीयता म मत-सापरदाततयकता समा ह ह|

इसका वनराकरण सपषटतया सािशभौततमक रप म पा जान िाली मानिीयतापणश पदधवत स ldquoवनयम-तरयrdquo (बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक) क आिारपिशक ही आचरथिक एि सापरदाततयक िगश-भािनाओ स मकत होन की समभािना एि मकती ह| इसी म समि िगश-भािना विलीन हो जाती ह| इसीललए ndash

उपासना की उभय पदधवत का अभीषट समझदारी जागवत पिशक सारथशक होता ह जो जागरण ह| मानि म शततकतया वकरया इचछा एि जञान शततकत ही ह जो उनकी अहशताए ह| अहशताए परतयक इका

की जागवतशीलता जागवत पर आिाररत ह| शबद सपशश रप रस गिनतियो दवारा शततकतयो का अपवयय न होना सारथ ही सदवयाय होना ही

वकरया शततकत की जागवत ह| सदवयय एि अपवयय का वनिारण मानिीयता क सीमा म ldquoवनयम-तरयrdquo क रप म ह |

अतकरण मल परितताा अरथात आशा वििार इचछा ि सकलप का अपवयय न होना ही सदवयय ह| यही इचछा शततकत का जागरण ह|

समयक-बोि एि अनभती पणशता ही जञान परकटन कषमता ह| यही जञानशततकत का जागरण अरथिा पणश जागरण ह| यह ldquoजागवत-तरयrdquo मानिीयता एि अवतमानिीयता म परतयकष ह| यही मानि जीिन की िरमोतकषश

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 20

उपलसतबध ह| सशकत उपासना क उपादयता यही ह यही समगर मानि की कामना ह| यही सिशमगल ह| इसीललए

जीिन-जागवत का परतयकष सवरप ही वििक पणश विजञान का परयोग ह यही सतकशता अखणड सामाखजकता परबदघता वनविि षमता सह-असतितव शशकषा विधि वयिसथा सभयता ससकवत बौशदघक समािान भौवतक समशदघ और जीिन जागवत की वनरनतरता ह

पणश जागवत पयशनत परतयक मानि इका परयास एि उपासना क ललय बाधय ह इसी क फलसवरप मल परिततततयो का पररमाजशन होता ह खजसक कारण विशशषट और शशषट मानधसकता एि वििार चिनतन-बोि कषमता अनभिपणशता परतयकष होती ह यही शरषठ उपासना की उपलसतबधयाा ह

इसललय समान क सारथ वयिहार करन क ललय बाधय हआ ह यही सामाखजकता की बाधयता ह यही मानि जीिन की गौरि और गररमा ह यही गररमा समान क सारथ वयिहार अधिक जागवत क ललय अभयास करन क ललय पररणा ह यही िािविक उपासना ह

वििक अरथात मानि लकषय और िरागय अरथात समशदघ ही उपासना का परतयकष फल ह खजसम सामाखजकता सवाभाविक रप स समाहहत रहती ह

िरागय का पराितशन ही असगरह (समशदघ) उदारता एि दया ह भौवतक समशदघ म उदारता एि दया क मौललक मलयो का अनरजन ही सामाखजकता का पराण ततव ह यही सामाखजक सगीत ह इसी क ललय मानि तततषत ह वििक ही बौशदघक समािान एि सामाखजक मलयो को वनिाह पिशक परकट करता ह इसललय

वििक ि िरागय ही परोकष जञान (सदवयिहाररक जञान) का परिान लकषण ह अनभि ही परोकष जञान की अनतनतम सथसथवत ह इसक पिश अनमान अधिकार ही परधसदघ ह ििसथसथवत ििगत सथसथवत सतय म ही अनभि ह

परोकष जञान क वबना वनतयावनतय यकतायकत नयायानयाय िमािमश सतयासतयइषटावनषट दषटादषट तरथा परोकष जञानाधिकार धसदघ नही होता ह

वनतयावनतय जञानाधिकार क वबना मनषय म सविमश क परवत वनषठा नही पा जाती ह मानि िमश ही सख सख ही नयायपणश आिरण नयायपणश आिरण ही मानिीयतापणश सीमा एि lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का पालन ह यही मनषय का सविमश ह मानि सख िमी ह

मयादा विहीन इका नही ह जस जीिो म सवभाि मयादा िनसपवतयो म गण मयादा एि पदारथो म रप मयादा-भग नही होती ह यही उनकी गररमा ह इसी परकार मानि म सख ही िमश ह िमश ही मयादा ह यही उनकी गररमा एि विशवास ह मयादा का परतयकष रप ही विशवास ह

lsquolsquoविशवासविहीन समबनध एि समपकश म सख नही हrsquorsquo समबनध एि समपकश विहीन मनषय नही ह यही बाधयता सविमश क ललय ह इसक पालन म जो अकषमता अयोगयता एि अपातरता ह - िही दख कलश समसया और अजागवत ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 21

सविमश म समपननता एि पालन करन योगय कषमता योगयता एि पातरता स पररपणश होत तक जञानाजशन करन क अरथश म अधययन रपी उपासना का अभाि नही ह

मानि क सविमश की सीमा म ही मत समपरदाय िगश वतरोहहत हो जात ह यही समरथश उपासना की परतयकष गररमा ह lsquolsquoयही मागललक हrsquorsquo साधय सािक सािन इन तीनो का उपासना म समाहहत रहना अवनिायश ह इनकी एक सतरता ही उपासना की सफलता ह अनयरथा असफलता ह परतयक सथसथवत म परापत शततकत ि सािनो का सदपयोग करना ही उसकी अवगरम जागवत ह यही उपासना ह

इनतिय कायशकलाप तरथा इनतियो का कायशकषतर ही अपरोकष जञान की सीमा ह इस वयापार म ितविि षय सीमानतिती धसशदघयाा ह इसक अवतररकत और उपलसतबधयाा इसम नही ह

विषयो की सीमा म मनषय सीततमत नही ह कयोवक उसम िार आयाम परधसदघ ह

मनषय ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत समपनन होन क ललय बाधय ह यही आिशयकता अिसर सभािना एि वयिसथा ह

सयमतापिशक ही मनषय क दवारा परतयक पररपरकषय म वकय गय वकरयाकलाप म स गररमापणश िभि परकट होता ह जस-

सतयबोि सहहत सतय बोलन का अभयास करन स भय ि अविशवास की वनितततत हषश तरथा उतसाह का उदय होता ह

विशव क परवत मलय भाि की परवतषठा स इषट और सािक क मधय विषमता का अभाि होता ह

शबद क अरथश अरथात मनतरारथश का तदरपतापिशक समरण करन क अभयास स उसका अरथश एि सवभाि गमय होता ह सभी सारथशक शबद मनतर ह

अधिक जागत म समपशण स अलभमान ि अहकार का उनमलन तरथा विदया ि सरलता का उदय होता ह ( अधिक जागत = समझान िाला परमाखणत वयततकत गर)

शरीर सिदना सयत रहन स मन की पवितरता मन की पवितरता स मनोबल का लाभ होता ह

सव-शरीर मोह नषट होन स ससार क परवत मोह दर होता ह सिशशभरपी आपत कामना पणश बशदघ स ही विशव क परवत उदारता दया कपा करणा का परसिन तरथा विशव की आिारभत सतता म जञान एि अनभि होता ह

जञान विजञान वििक रपी सवतवहीनता ही असयमता मनोदौबशलय मल परविततततयो की अपररषकवत राग मोह लोभ अवििक अहकार अलभमान दहातमिादी परितततत दरािार सघषश असह-असतितव सशकता दवष तरथा तपोहीनता ह

सयमता क वबना बौशदघक मल परिततततयो की पररषकवत बशदघबल सामाखजक मलयो की अनभवत ितनय वकरया का दशशन समािान और सयमता धसदघ नही होती ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 22

उपासना क ललय िातािरण का महतव अपररहायश ह खजसम स मनषय कत िातािरण ही परिान ह जो शशकषा ि वयिसथा क रप म ही ह

मानिीयता की सीमा म वयिहार lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का आिरण ही वयततकततव ह ऐस वयततकततव क वनमाण म सवकरय योगदान ही कततशवय ह यही परषारथश ह यही परबदघता ह

आशा भद स उपासना उपासना भद स अनभि अनभि भद स अनमान अनमान भद स उपासना भद ह यही उपासना म िविधयता का कारण ह यह िविधयता सािशभौम आिरण की सीमा म विलय होन क ललय बाधय ह

मानि क ललय सहज समरथश उपासना एक अवनिायश कायशकरम ह जो अमानिीयता स मानिीयता मानिीयता स अवतमानिीयता की परवतषठा सथाततपत करती ह

सह-असतितव म अनकषण-विकषण-ितततत स सहजाितततत होती ह

कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ही अनकषण-विकषण ितततत ह

अनकषण का तातपयश परतयक कषण म लगातार सह-असतितव चिनतन वििार करम म परमाखणकता का सहज परमाण परित हो जाता ह यही सहजाितततत ह

सतता म समपकत परकवत की समपकतता का जञान ही (पणश-दशशन) कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ह यही भरततमत भाि ि अभाि का वतरोभाि ह यही सहज परवतषठा ि अिसथा ह

सतता म समपकत परकवत का जञान न होन स और अनभिमलक जञान न होन स भय और परलोभनिश समि भरममलक कायश-वयिहार सोि-वििार को बनाय रखता ह यही समपणश कलश का कारण ह

काल वकरया की अिधि ह इसी अिधि म आरोततपत वििार ि इचछा ही असहज एि वनरारोततपत वििार ि इचछा ही सहज ह

मानि इका म ही जागवत क करम म भी वनरारोपण कषमता पा जाती ह भरमिश आरोपण होता ह

जो जसा ह उसस अधिक कम अरथिा नासमझना ही आरोपण ह यही अजञान ह यही अकषमता ह यही भरम ह

सतता म समपकत जड़-ितनयातमक परकवत की सथसथवत-शीलता ि सतता सहज पणशता क समबनध म ही आरोप या वनरारोण वकरया समपनन होना पाया जाता ह

परतयक इका म रप गण सवभाि एि िमश समाहहत ह यही उसकी कायशितता ह इसी की गणना पररमाण परयोजन जञान ही परकवत क परवत वनभरमतापणश कषमता का दयोतक ह यही परमाण ह यही सहजता ह

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समपणश वकरयाय मलत रप और शबद भद म दषटवय ह

परकता क वबना इका म अवगरमता नही ह

पणशता पयशनत इका परकता उपयोवगता क ललए परितत ह

परकता ही इका म हरास ि विकास क लकषणो को परकट करती ह यही परिान उपादयता भी ह

इका म परकट होन िाल शबदादधद गण ही सापकष शततकतयाा ह गणविहीन इका नही ह इसललय

मनषय म सहज कामना का अभाि नही ह सहजता ही िमश ह यही सख शानतनत सतोष एि आननद ह यही िारणा को सपषट करता ह जो परतयकष ह

परतयक कमश-फल ही मनषय क सख का पोषक ि शोषक धसदघ हआ ह

सतय और सतयता क अनभि-करम म वयििान नही ह कयोवक अनभिकरम-वयिसथा सघन ह जागवत की कदधड़याा सघन ह इसललय-

सहजता आरोप स मकत ह आरोप ही नयनावतरक मलयाकन ह सवय की नयनावतरक मलयाकन वकरया ही असहजता ह

सवय का मलयाकन lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म होता ह

lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म न हो ऐसा मनषय इस पथवी पर नही ह

िमश का वियोग नही ह कयोवक यह िारणा ह इसका परतयकष रप ही मानिीयता एि अवतमानिीयता पणश आिरण ह जो सहजता का परिान लकषण ह इसललय -

अमानिीयता पणश आिरण ही असहज ह इसललय

परकवत अपन म समपणशता क सारथ सीततमत ह यही अिधि ह इसललय पणश म समायी ह यही पणश म समपणशता सहज सह-असतितव ह यही समपणशता का वनतय ितशमान और जञानािसथा क मानि म पणशता का परसि ह यही जागवत क ललय बाधयता ह

मनषय क बौशदघक कषतर म पायी जान िाली अनािशयक कलपनाओ का वनराकरण ही दशशन-कषमता म गणातमक पररमाजशन ह यही गणातमक ससकार-पररितशन शशकषा एि जीिन क कायशकरम का योगफल ह

दशशन-कषमता का उतकषश ही अनकषण विकषण ह यही मधयसथ वकरया की कषमता ह मधयसथ वकरया ही दषटा ह

मधयसथ वकरया का िरमोतकषश ही सम ि विषम वकरया का पणश वनयतरण ह यही कषमता कषण-कषण मधयसथ वयििान स मततकत ह

ससकार पिशक ही बौशदघक वयिसथा-परवकरया -कषमता क आनषवगक ह मनषय सहज ऐषणा एि विषयो की सीमा म परितततत ि वनितततत पिशक वयि होना पाया जाता ह जो परतयकष ह

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आतमा (मधयसथ वकरया) क आनषवगक बौशदघक परवकरया ि वयिसथा म सतय-सकलप एि सतय-कलपनापणश मानधसकता की सथसथवत पा जाती ह जो परधसदघ कमश उपासना जञान पणश ह यही कषमता दि ि दधदवय मानिीयता को परकट करती ह यही पणश जागवत ह

ऐषणासकत बौशदघक वयिसथा म मानिीय तरथा दि मानिीय सवभाि परकट होता ह उसी क अनरप म मानधसक िातािरण की सथसथवतशीलता ह ऐसी कषमता ही सामाखजक ितना एि सतकशता स पररपणश पायी जाती ह

विषयासकत बौशदघक वयिसथा ि परवकरया म अमानिीयतापणश आिरण समपनन होता ह जो पाशविकता तरथा दानिीयता क रप म दषटवय ह इनम उसी क योगय मानधसकता पा जाती ह यही लपत-सपत कलपना का कारण ह यही अजागवत तरथा अपणश सतकशता का दयोतक ह

शरय (जागवत) खजजञास होन पर ही लपत-सपत कलपनाय पररमाखजि त होती ह फलत दानिी ि पाशिी परिततततयो स उदासीनता सथसथर होती ह सारथ ही वििकोदय होता ह

शरय खजजञासा का उदय सव-ससकार विधि-विहहत अधययन तरथा उसक अनकल िातािरण म होता ह

विधि-विहहत-अधययन वनपणता कशलता ि पादधडतय ही ह

अधययन एि िातािरण ही ससकार पररितशन क ललय समरथश वयिसथा ह खजसका गणातमक पररितशन ही आतमबोि क ललय खजजञासा ह

आतमबोि ही सतय खजजञासा का परिान लकषण ह इसललय- अििारणा ही अनगमन तरथा अनशीलन क ललय परितततत ह जो शशषटता क रप म परतयकष होती ह परगवत क ललय अििारणा अवनिायश ह जागवत क ललय अििारणा एि हरास क ललय आसततकत परधसदघ ह यही करम स वनितततत ि परितततत ह अििारणा ही सदधदविक ह सदधदविक सवय म सतयता की विििना ह जो सपषट ह मलत यही शभ एि मागलय ह अनभि की अििारणा सतय बोि क रप म अििारणा (समयक-बोि) ही सतय-सकलप ह यही परािवति त होकर शभकमश उपासना तरथा आिरण क रप म परतयकष ह इसी का पररिवति त मलय ही िीरता िीरता उदारता दया कपा और करणा क रप म परतयकष ह सतय म ही समयक-बोि होता ह असतय ही कलपना एि भास होता ह हीनता दीनता और कररता स यकत कमश अशभ होता ह सव-मलय ही परितततत और वनितततत का िशश ह इसललय असतय अलभमान तरथा दपश स मकत सतय सरलता सहजता तरथा सौजनयता स यकत कमश ि उपासना शरय कारक ह

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सतय कामना की वनरनतरता स लकषय की अििारणा होती ह जञान म ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत परतयकष ह जञान वििक सममत विजञान ही ह जो पणश ह सतय और सतयता म दढ़ता ही शरयमय जीिन ह सतयानभवत ही सबका अभीषट ह शरीर स समपनन होन िाल समि वकरयाओ का सिालन मन ही मिस दवारा करता ह मिस स सभी नादधड़याा वनयदधतरत ह शबद का मल रप मन ही ह मिस पर मन आसवादन एि सवागत भािपणश तरगो का परसारण सिालन वनयतरण करता ह उसक मल म शबद ही ह जागवत की ओर गवत हत वनयतरणातमक शबद ही मतर ह लकषय-पराततपत-योगय-करम परवकरया ही वनयतरण ह शबद म जो भाि (मलय) ह िही उसका अरथश ह सारथशक शबदो का अरथश ही जागवत की ओर गवत ह कयोवक शबद का अरथश असतितव म िि ह भाि म जो उपयोगपणश अवनिायशता ह िही उसका महतव ह उपयोग पणश अवनिायशता म जो वनचशचत दधदशा ह िही उसकी दढ़ता ह यही समयक सकलप ह समयक सकलप म जो पणशता ह िही अनभि ह जो करम स मन ितततत चितत बशदघ और आतमा म पा जान िाली सससकत मौललक वकरयाय ह भाि का तातपयश होन स ह शततकत-तरय-जागरण (इचछा-शततकत वकरया-शततकत तरथा जञान शततकत जागरण) क वबना तयाग (भरममततकत) और परम परमाखणत नही होता

मनन परवकरया म सव-मलयाकन

सव-मलयाकन मनन धयान ldquoअपराि क अभाि म दयापणश आशा का पराितशन अनयाय क अभाि म नयायपणश वििार का पराितशन आसकती क अभाि म समािान पणश इचछा का पराितशन तरथा अजञान क अभाि म जञानपणश सकलप का पराितशन होता ह| अत अपरािहीन वयिहार क ललए वयिसथा का परभाि अनयायहीन वििार क ललए अखणड समाज का परभाि तरथा अजञान रहहत बदधदध क ललए अतवनि यामन अरथिा धयान आिशयक ह खजसस ही परतयाितशन वकरया सफल ह| धयान का अरथश समझन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना और समझन-अनभि करन क

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उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 27

मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 28

(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 29

सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

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प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

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अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

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३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

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(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

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उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

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(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

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िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 17

(सदशासतर सिन = शासतराधययन स शरिण | मनन एि आिरण अभयास-अधययन करम म समपणश मनन परवकरया)

(प ९७ ९८)

सहअसतितविादी विधि स हर मानि मानितव सहहत वयिसथा और समगर वयिसथा म भागीदारी करन योगय इका ह इसम मखय मददा यही ह - सवय को सवय क ललय रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क सयकत रप म होन को सवीकारन की आिशयकता ह जीिन वकरया की महहमा और मानि परमपरा म इसकी आिशयकता धयान म रहना अवत आिशयक ह तभी मानि शोि क ललए ततपर होना पाया जाता ह ऐसी ततपरता जागवत सहज विधि स सिशशभ क अरथश म परिावित होना होता ह तभी सिशमानि समािान पिशक वयकत होन समझदारी पिशक हर पररिार समािावनत और सखी होन की सथसथवत सपषट हो जाती ह फलसवरप समशदघ अभय सहअसतितव परभावित होन का सौभागय उदय होता ह यही मखय वबनद ह सिशशभ का परमाण भी यही ह कयोवक समािान समशदघ पिशक ही मानि सख शानतनत का अनभि करता ह इसी करम म समािान समशदघ अभय सहअसतितव पिशक आननद अपन आप म समपणश होना पाया जाता ह इस ढग स मानि लकषय सारथशक होन की सथसथवत म जीिन लकषय (सख शावत सतोष आननद) सारथशक होता ही ह जीिन लकषय और मानि लकषय सारथशक होना ही अधययन और अधयापन की सािशभौमता ह ऐस लकषय क सारथ मानि परमपरा अपन आप म सवय को पहिानन और समपणश मानि को पहिानन का सतर और वयाखया बन जाता ह परमाण क रप म वयाखया समझ क रप म सतर होना पाया जाता ह यह वनयवत सहज विधि स समीिीन रहना पाया जाता ह वनयवत विधि का तातपयश विकासकरम विकास जागवत करम जागवत ह दसर विधि स भौवतक रासायवनक रिना शरीर और जीिन वकरयाकलाप का सयकत अलभवयततकत समपरषणा परकाशन क रप म ह

मानि लकषय - समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करन और उस आिार पर जीिन लकषय (मनसवसथता) - सख शानतनत सतोष आननद को सारथशक बनान क अरथश म मानि शशकषा ससकार की आिशयकता सदा-सदा स बनी ह ह इसकी सफलता ही मानि कल का सौभागय ह

lsquoमानि कल और रासायवनक-भौवतक वकरयाकलाप का सारथशक परमाणrsquo

शशकषा की समपणश िि सहअसतितव रपी असतितव म रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म ही ह इसम स इनक अविभाजय रप म मानि परमपरा का समपणश वकरयाकलाप वयिहार सोि वििार समझ ह समझ क अरथश म ही हर मानि का अधययन करना होता ह समझ अपन म जानना मानना पहिानना वनिाह करन क रप म परमाखणत होती ह इसी अरथश म समपणश अधययन सारथशक होना पाया जाता ह

असतितव म समपणश इका याा रासायवनक भौवतक एि जीिन वकरया क रप म पररलधकषत ह ही (प १०२) वनशचयता सथसथरता सिशमानि म चिराकााकषा क रप म बनी ही ह सहअसतितव रपी असतितव जञान और सवीकवत का आिार ह यह सिशमानि म सिकषण पिशक विदधदत होन िाला तथय ह सवय को जाािन स भी

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 18

यही सपषट होता ह हम सब सथसथरता ि वनशचयता को ही सवीकार करत रह ह न वक असथसथरता अवनशचयता को सथसथरता क सहज आिार पर ही वनशचयता का होना सवभाविक ह (प ११५) इस हम मानि को अचछी तरह स समझन की आिशयकता ह और अनशीलन पिशक सरकषण सििशन विधि स सवय को वयसथसथत कर लन की आिशयकता ह मानि क वयिसथसथत होन क मल म जञान विजञान वििक का एक सगीतमय कायशकलाप सपषट रहन स ह यही कायश-कलाप भाषा कायश-वयिहार म वनयोखजत होकर परयोजनो को परवतपादधदत करता ह मानि का परयोजन समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करना ही ह (प १२२ १२३)

( अनभि मलक वििी स

यरथारथशता िािविकता सतयता का बोि रपी बशदघ की सथसथवत उस परकाशशत करन की परितततत क रप म सकलप ही गवत ह नयाय िमश सतय क साकषातकार करन क रप म चितत सथसथवत और इसका चितरण क रप म चिदधतरत हो पाना गवत ह चितत वकरयाकलाप का समपणश चितरण तलन क रप म अरथात नयाय िमश ि सतय रप म सपषट होना ितततत सहज सथसथवत ह ितततत म समपनन हय तलन का विशलषण विधि म विशलततषत होना ि समपरततषत होना ितततत सहज गवत ह विशलषण क सपषट अरथिा सार रप म मलय सवीकत होता ह इस आसवादन करना ही मन की सथसथवत ह इसकी सारथशकता क ललय ियन वकरया को समपादधदत करन क रप म गवतत होना हर मानि म सिधकषत ह इस ढग स मानि भी सभी परकार स सथसथवत-गवत म होना सपषट होता ह इस परकार मानि समझदारी स समपनन होन क उपरानत परमाखणत होना सवभाविक होता ह इसका मतलब यही हआ हम जब तक परमाखणत नही होत तब तक परमाखणत होन क ललए जञानाजशन वििकाजशन विजञानाजशन कर लना ही शशकषा और शशकषण का तातपयश ह इसक ललए सह असतितविादी शशकषा करम समीिीन ह अतएि समझदार मानि होन क ललए धयान दन की आिशयकता ह

सह-असतितविादी वििार जञान वििक विजञान को समझना ही समझदारी ह

ldquoअधययन रपी उपासनाrdquo (अभयास) - कमशदशशन सस २००४ प ४९ ५०

मानि जीिन म उपासना एक महतवपणश भाग ह| उपासना ही मल परिततततयो का पररमाजशन एि पररितशन परवकरया ह| यही ससकार एि सवभाि पररितशन भी ह| ( उपासना = उपायो सहहत लकषय पती क ललए कीया गया वकरयाकलाप) उपायपिशक सहिास पाना ही उपासना की अििारणा ह खजसक ललए पररशरम (पररमाजशन शरम) एि अभयास ह| अभयास एि पररशरम स ही सथल सकषम कारण की सथसथवतितता सपषट ह| खजसस ततसबिी पदारथश वनयवत-

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करम शततकत महहमा विभती एि वनयम सबिी अनसिान (अनगमन पिशक अििारणा) शोि परधसदध ह| अनसिान भौवतक बौदधदधक तरथा आधयातमतमक भद स ह| अनसनधान परवकरया मनन चिितन सकलप एि अनभती क रप म परतयकष ह|

सथल सकषम कारण (दषटा) का तातपयश दखन समझन परयोग करन वयिहार करन एि अनभि करन योगय कषमता क सपनन होन स ह |

परिततततयो का पररमाजशन ही मानि जीिन का कायशकरम ह| मानि म पणशता एि पररमाजशनशीलता की अपकषा परतयक सथसथती म पा जाती ह| पणशता ही पादधडतय ह| पादधडतय स अधिक जञान एि वनपणता कशलता स अधिक वयिहार एि उतपादन नही ह| पररमाजशनशीलता उतपादन ि वयिहार म पा जाती ह| पादधडतय परबदधता परबदधता ही शशकषा एि वयिसथा ह| परबदधता स पररपणश होत तक उपासना अतयत उपयोगी ह|

प ५६ स ७२ (इनम स कछ ही िाकयो को ललया गया ह| समपणश क ललए पिक दख) उपासना स सािशभौततमक मलयो का अिगाहन करना ही परिान उपादयता ह| समि उपासनाओ क मल म लकषय समय ह िह अखड समाज सािशभौम वयिसथा ह| िह किल सिश

मगल ही ह| कयोकी सिश मगल की कामना क वबना सवय का मगल धसदध नही ह| अनय कामय कामनाए किल मगलमयता की भास परदायी ह न की अनभिदायी| इसललए सिशमगल

कामनारपी कायशकरम तःरथा उसकी अनसरण योगय कषमता पयत मानि परयास करन क ललए बाधय ह| सही क परती भरततमत रहना ही मत सपरदाय एि िगश का कारण ह|

मत सापरदाततयक िगीयता म आचरथिक िगीयता एि आचरथिक िगीयता म मत-सापरदाततयकता समा ह ह|

इसका वनराकरण सपषटतया सािशभौततमक रप म पा जान िाली मानिीयतापणश पदधवत स ldquoवनयम-तरयrdquo (बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक) क आिारपिशक ही आचरथिक एि सापरदाततयक िगश-भािनाओ स मकत होन की समभािना एि मकती ह| इसी म समि िगश-भािना विलीन हो जाती ह| इसीललए ndash

उपासना की उभय पदधवत का अभीषट समझदारी जागवत पिशक सारथशक होता ह जो जागरण ह| मानि म शततकतया वकरया इचछा एि जञान शततकत ही ह जो उनकी अहशताए ह| अहशताए परतयक इका

की जागवतशीलता जागवत पर आिाररत ह| शबद सपशश रप रस गिनतियो दवारा शततकतयो का अपवयय न होना सारथ ही सदवयाय होना ही

वकरया शततकत की जागवत ह| सदवयय एि अपवयय का वनिारण मानिीयता क सीमा म ldquoवनयम-तरयrdquo क रप म ह |

अतकरण मल परितताा अरथात आशा वििार इचछा ि सकलप का अपवयय न होना ही सदवयय ह| यही इचछा शततकत का जागरण ह|

समयक-बोि एि अनभती पणशता ही जञान परकटन कषमता ह| यही जञानशततकत का जागरण अरथिा पणश जागरण ह| यह ldquoजागवत-तरयrdquo मानिीयता एि अवतमानिीयता म परतयकष ह| यही मानि जीिन की िरमोतकषश

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उपलसतबध ह| सशकत उपासना क उपादयता यही ह यही समगर मानि की कामना ह| यही सिशमगल ह| इसीललए

जीिन-जागवत का परतयकष सवरप ही वििक पणश विजञान का परयोग ह यही सतकशता अखणड सामाखजकता परबदघता वनविि षमता सह-असतितव शशकषा विधि वयिसथा सभयता ससकवत बौशदघक समािान भौवतक समशदघ और जीिन जागवत की वनरनतरता ह

पणश जागवत पयशनत परतयक मानि इका परयास एि उपासना क ललय बाधय ह इसी क फलसवरप मल परिततततयो का पररमाजशन होता ह खजसक कारण विशशषट और शशषट मानधसकता एि वििार चिनतन-बोि कषमता अनभिपणशता परतयकष होती ह यही शरषठ उपासना की उपलसतबधयाा ह

इसललय समान क सारथ वयिहार करन क ललय बाधय हआ ह यही सामाखजकता की बाधयता ह यही मानि जीिन की गौरि और गररमा ह यही गररमा समान क सारथ वयिहार अधिक जागवत क ललय अभयास करन क ललय पररणा ह यही िािविक उपासना ह

वििक अरथात मानि लकषय और िरागय अरथात समशदघ ही उपासना का परतयकष फल ह खजसम सामाखजकता सवाभाविक रप स समाहहत रहती ह

िरागय का पराितशन ही असगरह (समशदघ) उदारता एि दया ह भौवतक समशदघ म उदारता एि दया क मौललक मलयो का अनरजन ही सामाखजकता का पराण ततव ह यही सामाखजक सगीत ह इसी क ललय मानि तततषत ह वििक ही बौशदघक समािान एि सामाखजक मलयो को वनिाह पिशक परकट करता ह इसललय

वििक ि िरागय ही परोकष जञान (सदवयिहाररक जञान) का परिान लकषण ह अनभि ही परोकष जञान की अनतनतम सथसथवत ह इसक पिश अनमान अधिकार ही परधसदघ ह ििसथसथवत ििगत सथसथवत सतय म ही अनभि ह

परोकष जञान क वबना वनतयावनतय यकतायकत नयायानयाय िमािमश सतयासतयइषटावनषट दषटादषट तरथा परोकष जञानाधिकार धसदघ नही होता ह

वनतयावनतय जञानाधिकार क वबना मनषय म सविमश क परवत वनषठा नही पा जाती ह मानि िमश ही सख सख ही नयायपणश आिरण नयायपणश आिरण ही मानिीयतापणश सीमा एि lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का पालन ह यही मनषय का सविमश ह मानि सख िमी ह

मयादा विहीन इका नही ह जस जीिो म सवभाि मयादा िनसपवतयो म गण मयादा एि पदारथो म रप मयादा-भग नही होती ह यही उनकी गररमा ह इसी परकार मानि म सख ही िमश ह िमश ही मयादा ह यही उनकी गररमा एि विशवास ह मयादा का परतयकष रप ही विशवास ह

lsquolsquoविशवासविहीन समबनध एि समपकश म सख नही हrsquorsquo समबनध एि समपकश विहीन मनषय नही ह यही बाधयता सविमश क ललय ह इसक पालन म जो अकषमता अयोगयता एि अपातरता ह - िही दख कलश समसया और अजागवत ह

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सविमश म समपननता एि पालन करन योगय कषमता योगयता एि पातरता स पररपणश होत तक जञानाजशन करन क अरथश म अधययन रपी उपासना का अभाि नही ह

मानि क सविमश की सीमा म ही मत समपरदाय िगश वतरोहहत हो जात ह यही समरथश उपासना की परतयकष गररमा ह lsquolsquoयही मागललक हrsquorsquo साधय सािक सािन इन तीनो का उपासना म समाहहत रहना अवनिायश ह इनकी एक सतरता ही उपासना की सफलता ह अनयरथा असफलता ह परतयक सथसथवत म परापत शततकत ि सािनो का सदपयोग करना ही उसकी अवगरम जागवत ह यही उपासना ह

इनतिय कायशकलाप तरथा इनतियो का कायशकषतर ही अपरोकष जञान की सीमा ह इस वयापार म ितविि षय सीमानतिती धसशदघयाा ह इसक अवतररकत और उपलसतबधयाा इसम नही ह

विषयो की सीमा म मनषय सीततमत नही ह कयोवक उसम िार आयाम परधसदघ ह

मनषय ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत समपनन होन क ललय बाधय ह यही आिशयकता अिसर सभािना एि वयिसथा ह

सयमतापिशक ही मनषय क दवारा परतयक पररपरकषय म वकय गय वकरयाकलाप म स गररमापणश िभि परकट होता ह जस-

सतयबोि सहहत सतय बोलन का अभयास करन स भय ि अविशवास की वनितततत हषश तरथा उतसाह का उदय होता ह

विशव क परवत मलय भाि की परवतषठा स इषट और सािक क मधय विषमता का अभाि होता ह

शबद क अरथश अरथात मनतरारथश का तदरपतापिशक समरण करन क अभयास स उसका अरथश एि सवभाि गमय होता ह सभी सारथशक शबद मनतर ह

अधिक जागत म समपशण स अलभमान ि अहकार का उनमलन तरथा विदया ि सरलता का उदय होता ह ( अधिक जागत = समझान िाला परमाखणत वयततकत गर)

शरीर सिदना सयत रहन स मन की पवितरता मन की पवितरता स मनोबल का लाभ होता ह

सव-शरीर मोह नषट होन स ससार क परवत मोह दर होता ह सिशशभरपी आपत कामना पणश बशदघ स ही विशव क परवत उदारता दया कपा करणा का परसिन तरथा विशव की आिारभत सतता म जञान एि अनभि होता ह

जञान विजञान वििक रपी सवतवहीनता ही असयमता मनोदौबशलय मल परविततततयो की अपररषकवत राग मोह लोभ अवििक अहकार अलभमान दहातमिादी परितततत दरािार सघषश असह-असतितव सशकता दवष तरथा तपोहीनता ह

सयमता क वबना बौशदघक मल परिततततयो की पररषकवत बशदघबल सामाखजक मलयो की अनभवत ितनय वकरया का दशशन समािान और सयमता धसदघ नही होती ह

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उपासना क ललय िातािरण का महतव अपररहायश ह खजसम स मनषय कत िातािरण ही परिान ह जो शशकषा ि वयिसथा क रप म ही ह

मानिीयता की सीमा म वयिहार lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का आिरण ही वयततकततव ह ऐस वयततकततव क वनमाण म सवकरय योगदान ही कततशवय ह यही परषारथश ह यही परबदघता ह

आशा भद स उपासना उपासना भद स अनभि अनभि भद स अनमान अनमान भद स उपासना भद ह यही उपासना म िविधयता का कारण ह यह िविधयता सािशभौम आिरण की सीमा म विलय होन क ललय बाधय ह

मानि क ललय सहज समरथश उपासना एक अवनिायश कायशकरम ह जो अमानिीयता स मानिीयता मानिीयता स अवतमानिीयता की परवतषठा सथाततपत करती ह

सह-असतितव म अनकषण-विकषण-ितततत स सहजाितततत होती ह

कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ही अनकषण-विकषण ितततत ह

अनकषण का तातपयश परतयक कषण म लगातार सह-असतितव चिनतन वििार करम म परमाखणकता का सहज परमाण परित हो जाता ह यही सहजाितततत ह

सतता म समपकत परकवत की समपकतता का जञान ही (पणश-दशशन) कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ह यही भरततमत भाि ि अभाि का वतरोभाि ह यही सहज परवतषठा ि अिसथा ह

सतता म समपकत परकवत का जञान न होन स और अनभिमलक जञान न होन स भय और परलोभनिश समि भरममलक कायश-वयिहार सोि-वििार को बनाय रखता ह यही समपणश कलश का कारण ह

काल वकरया की अिधि ह इसी अिधि म आरोततपत वििार ि इचछा ही असहज एि वनरारोततपत वििार ि इचछा ही सहज ह

मानि इका म ही जागवत क करम म भी वनरारोपण कषमता पा जाती ह भरमिश आरोपण होता ह

जो जसा ह उसस अधिक कम अरथिा नासमझना ही आरोपण ह यही अजञान ह यही अकषमता ह यही भरम ह

सतता म समपकत जड़-ितनयातमक परकवत की सथसथवत-शीलता ि सतता सहज पणशता क समबनध म ही आरोप या वनरारोण वकरया समपनन होना पाया जाता ह

परतयक इका म रप गण सवभाि एि िमश समाहहत ह यही उसकी कायशितता ह इसी की गणना पररमाण परयोजन जञान ही परकवत क परवत वनभरमतापणश कषमता का दयोतक ह यही परमाण ह यही सहजता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 23

समपणश वकरयाय मलत रप और शबद भद म दषटवय ह

परकता क वबना इका म अवगरमता नही ह

पणशता पयशनत इका परकता उपयोवगता क ललए परितत ह

परकता ही इका म हरास ि विकास क लकषणो को परकट करती ह यही परिान उपादयता भी ह

इका म परकट होन िाल शबदादधद गण ही सापकष शततकतयाा ह गणविहीन इका नही ह इसललय

मनषय म सहज कामना का अभाि नही ह सहजता ही िमश ह यही सख शानतनत सतोष एि आननद ह यही िारणा को सपषट करता ह जो परतयकष ह

परतयक कमश-फल ही मनषय क सख का पोषक ि शोषक धसदघ हआ ह

सतय और सतयता क अनभि-करम म वयििान नही ह कयोवक अनभिकरम-वयिसथा सघन ह जागवत की कदधड़याा सघन ह इसललय-

सहजता आरोप स मकत ह आरोप ही नयनावतरक मलयाकन ह सवय की नयनावतरक मलयाकन वकरया ही असहजता ह

सवय का मलयाकन lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म होता ह

lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म न हो ऐसा मनषय इस पथवी पर नही ह

िमश का वियोग नही ह कयोवक यह िारणा ह इसका परतयकष रप ही मानिीयता एि अवतमानिीयता पणश आिरण ह जो सहजता का परिान लकषण ह इसललय -

अमानिीयता पणश आिरण ही असहज ह इसललय

परकवत अपन म समपणशता क सारथ सीततमत ह यही अिधि ह इसललय पणश म समायी ह यही पणश म समपणशता सहज सह-असतितव ह यही समपणशता का वनतय ितशमान और जञानािसथा क मानि म पणशता का परसि ह यही जागवत क ललय बाधयता ह

मनषय क बौशदघक कषतर म पायी जान िाली अनािशयक कलपनाओ का वनराकरण ही दशशन-कषमता म गणातमक पररमाजशन ह यही गणातमक ससकार-पररितशन शशकषा एि जीिन क कायशकरम का योगफल ह

दशशन-कषमता का उतकषश ही अनकषण विकषण ह यही मधयसथ वकरया की कषमता ह मधयसथ वकरया ही दषटा ह

मधयसथ वकरया का िरमोतकषश ही सम ि विषम वकरया का पणश वनयतरण ह यही कषमता कषण-कषण मधयसथ वयििान स मततकत ह

ससकार पिशक ही बौशदघक वयिसथा-परवकरया -कषमता क आनषवगक ह मनषय सहज ऐषणा एि विषयो की सीमा म परितततत ि वनितततत पिशक वयि होना पाया जाता ह जो परतयकष ह

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आतमा (मधयसथ वकरया) क आनषवगक बौशदघक परवकरया ि वयिसथा म सतय-सकलप एि सतय-कलपनापणश मानधसकता की सथसथवत पा जाती ह जो परधसदघ कमश उपासना जञान पणश ह यही कषमता दि ि दधदवय मानिीयता को परकट करती ह यही पणश जागवत ह

ऐषणासकत बौशदघक वयिसथा म मानिीय तरथा दि मानिीय सवभाि परकट होता ह उसी क अनरप म मानधसक िातािरण की सथसथवतशीलता ह ऐसी कषमता ही सामाखजक ितना एि सतकशता स पररपणश पायी जाती ह

विषयासकत बौशदघक वयिसथा ि परवकरया म अमानिीयतापणश आिरण समपनन होता ह जो पाशविकता तरथा दानिीयता क रप म दषटवय ह इनम उसी क योगय मानधसकता पा जाती ह यही लपत-सपत कलपना का कारण ह यही अजागवत तरथा अपणश सतकशता का दयोतक ह

शरय (जागवत) खजजञास होन पर ही लपत-सपत कलपनाय पररमाखजि त होती ह फलत दानिी ि पाशिी परिततततयो स उदासीनता सथसथर होती ह सारथ ही वििकोदय होता ह

शरय खजजञासा का उदय सव-ससकार विधि-विहहत अधययन तरथा उसक अनकल िातािरण म होता ह

विधि-विहहत-अधययन वनपणता कशलता ि पादधडतय ही ह

अधययन एि िातािरण ही ससकार पररितशन क ललय समरथश वयिसथा ह खजसका गणातमक पररितशन ही आतमबोि क ललय खजजञासा ह

आतमबोि ही सतय खजजञासा का परिान लकषण ह इसललय- अििारणा ही अनगमन तरथा अनशीलन क ललय परितततत ह जो शशषटता क रप म परतयकष होती ह परगवत क ललय अििारणा अवनिायश ह जागवत क ललय अििारणा एि हरास क ललय आसततकत परधसदघ ह यही करम स वनितततत ि परितततत ह अििारणा ही सदधदविक ह सदधदविक सवय म सतयता की विििना ह जो सपषट ह मलत यही शभ एि मागलय ह अनभि की अििारणा सतय बोि क रप म अििारणा (समयक-बोि) ही सतय-सकलप ह यही परािवति त होकर शभकमश उपासना तरथा आिरण क रप म परतयकष ह इसी का पररिवति त मलय ही िीरता िीरता उदारता दया कपा और करणा क रप म परतयकष ह सतय म ही समयक-बोि होता ह असतय ही कलपना एि भास होता ह हीनता दीनता और कररता स यकत कमश अशभ होता ह सव-मलय ही परितततत और वनितततत का िशश ह इसललय असतय अलभमान तरथा दपश स मकत सतय सरलता सहजता तरथा सौजनयता स यकत कमश ि उपासना शरय कारक ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 25

सतय कामना की वनरनतरता स लकषय की अििारणा होती ह जञान म ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत परतयकष ह जञान वििक सममत विजञान ही ह जो पणश ह सतय और सतयता म दढ़ता ही शरयमय जीिन ह सतयानभवत ही सबका अभीषट ह शरीर स समपनन होन िाल समि वकरयाओ का सिालन मन ही मिस दवारा करता ह मिस स सभी नादधड़याा वनयदधतरत ह शबद का मल रप मन ही ह मिस पर मन आसवादन एि सवागत भािपणश तरगो का परसारण सिालन वनयतरण करता ह उसक मल म शबद ही ह जागवत की ओर गवत हत वनयतरणातमक शबद ही मतर ह लकषय-पराततपत-योगय-करम परवकरया ही वनयतरण ह शबद म जो भाि (मलय) ह िही उसका अरथश ह सारथशक शबदो का अरथश ही जागवत की ओर गवत ह कयोवक शबद का अरथश असतितव म िि ह भाि म जो उपयोगपणश अवनिायशता ह िही उसका महतव ह उपयोग पणश अवनिायशता म जो वनचशचत दधदशा ह िही उसकी दढ़ता ह यही समयक सकलप ह समयक सकलप म जो पणशता ह िही अनभि ह जो करम स मन ितततत चितत बशदघ और आतमा म पा जान िाली सससकत मौललक वकरयाय ह भाि का तातपयश होन स ह शततकत-तरय-जागरण (इचछा-शततकत वकरया-शततकत तरथा जञान शततकत जागरण) क वबना तयाग (भरममततकत) और परम परमाखणत नही होता

मनन परवकरया म सव-मलयाकन

सव-मलयाकन मनन धयान ldquoअपराि क अभाि म दयापणश आशा का पराितशन अनयाय क अभाि म नयायपणश वििार का पराितशन आसकती क अभाि म समािान पणश इचछा का पराितशन तरथा अजञान क अभाि म जञानपणश सकलप का पराितशन होता ह| अत अपरािहीन वयिहार क ललए वयिसथा का परभाि अनयायहीन वििार क ललए अखणड समाज का परभाि तरथा अजञान रहहत बदधदध क ललए अतवनि यामन अरथिा धयान आिशयक ह खजसस ही परतयाितशन वकरया सफल ह| धयान का अरथश समझन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना और समझन-अनभि करन क

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उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

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मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

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(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

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सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

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प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

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अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

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३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

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(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 34

उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

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मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

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मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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यही सपषट होता ह हम सब सथसथरता ि वनशचयता को ही सवीकार करत रह ह न वक असथसथरता अवनशचयता को सथसथरता क सहज आिार पर ही वनशचयता का होना सवभाविक ह (प ११५) इस हम मानि को अचछी तरह स समझन की आिशयकता ह और अनशीलन पिशक सरकषण सििशन विधि स सवय को वयसथसथत कर लन की आिशयकता ह मानि क वयिसथसथत होन क मल म जञान विजञान वििक का एक सगीतमय कायशकलाप सपषट रहन स ह यही कायश-कलाप भाषा कायश-वयिहार म वनयोखजत होकर परयोजनो को परवतपादधदत करता ह मानि का परयोजन समािान समशदघ अभय सहअसतितव को परमाखणत करना ही ह (प १२२ १२३)

( अनभि मलक वििी स

यरथारथशता िािविकता सतयता का बोि रपी बशदघ की सथसथवत उस परकाशशत करन की परितततत क रप म सकलप ही गवत ह नयाय िमश सतय क साकषातकार करन क रप म चितत सथसथवत और इसका चितरण क रप म चिदधतरत हो पाना गवत ह चितत वकरयाकलाप का समपणश चितरण तलन क रप म अरथात नयाय िमश ि सतय रप म सपषट होना ितततत सहज सथसथवत ह ितततत म समपनन हय तलन का विशलषण विधि म विशलततषत होना ि समपरततषत होना ितततत सहज गवत ह विशलषण क सपषट अरथिा सार रप म मलय सवीकत होता ह इस आसवादन करना ही मन की सथसथवत ह इसकी सारथशकता क ललय ियन वकरया को समपादधदत करन क रप म गवतत होना हर मानि म सिधकषत ह इस ढग स मानि भी सभी परकार स सथसथवत-गवत म होना सपषट होता ह इस परकार मानि समझदारी स समपनन होन क उपरानत परमाखणत होना सवभाविक होता ह इसका मतलब यही हआ हम जब तक परमाखणत नही होत तब तक परमाखणत होन क ललए जञानाजशन वििकाजशन विजञानाजशन कर लना ही शशकषा और शशकषण का तातपयश ह इसक ललए सह असतितविादी शशकषा करम समीिीन ह अतएि समझदार मानि होन क ललए धयान दन की आिशयकता ह

सह-असतितविादी वििार जञान वििक विजञान को समझना ही समझदारी ह

ldquoअधययन रपी उपासनाrdquo (अभयास) - कमशदशशन सस २००४ प ४९ ५०

मानि जीिन म उपासना एक महतवपणश भाग ह| उपासना ही मल परिततततयो का पररमाजशन एि पररितशन परवकरया ह| यही ससकार एि सवभाि पररितशन भी ह| ( उपासना = उपायो सहहत लकषय पती क ललए कीया गया वकरयाकलाप) उपायपिशक सहिास पाना ही उपासना की अििारणा ह खजसक ललए पररशरम (पररमाजशन शरम) एि अभयास ह| अभयास एि पररशरम स ही सथल सकषम कारण की सथसथवतितता सपषट ह| खजसस ततसबिी पदारथश वनयवत-

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करम शततकत महहमा विभती एि वनयम सबिी अनसिान (अनगमन पिशक अििारणा) शोि परधसदध ह| अनसिान भौवतक बौदधदधक तरथा आधयातमतमक भद स ह| अनसनधान परवकरया मनन चिितन सकलप एि अनभती क रप म परतयकष ह|

सथल सकषम कारण (दषटा) का तातपयश दखन समझन परयोग करन वयिहार करन एि अनभि करन योगय कषमता क सपनन होन स ह |

परिततततयो का पररमाजशन ही मानि जीिन का कायशकरम ह| मानि म पणशता एि पररमाजशनशीलता की अपकषा परतयक सथसथती म पा जाती ह| पणशता ही पादधडतय ह| पादधडतय स अधिक जञान एि वनपणता कशलता स अधिक वयिहार एि उतपादन नही ह| पररमाजशनशीलता उतपादन ि वयिहार म पा जाती ह| पादधडतय परबदधता परबदधता ही शशकषा एि वयिसथा ह| परबदधता स पररपणश होत तक उपासना अतयत उपयोगी ह|

प ५६ स ७२ (इनम स कछ ही िाकयो को ललया गया ह| समपणश क ललए पिक दख) उपासना स सािशभौततमक मलयो का अिगाहन करना ही परिान उपादयता ह| समि उपासनाओ क मल म लकषय समय ह िह अखड समाज सािशभौम वयिसथा ह| िह किल सिश

मगल ही ह| कयोकी सिश मगल की कामना क वबना सवय का मगल धसदध नही ह| अनय कामय कामनाए किल मगलमयता की भास परदायी ह न की अनभिदायी| इसललए सिशमगल

कामनारपी कायशकरम तःरथा उसकी अनसरण योगय कषमता पयत मानि परयास करन क ललए बाधय ह| सही क परती भरततमत रहना ही मत सपरदाय एि िगश का कारण ह|

मत सापरदाततयक िगीयता म आचरथिक िगीयता एि आचरथिक िगीयता म मत-सापरदाततयकता समा ह ह|

इसका वनराकरण सपषटतया सािशभौततमक रप म पा जान िाली मानिीयतापणश पदधवत स ldquoवनयम-तरयrdquo (बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक) क आिारपिशक ही आचरथिक एि सापरदाततयक िगश-भािनाओ स मकत होन की समभािना एि मकती ह| इसी म समि िगश-भािना विलीन हो जाती ह| इसीललए ndash

उपासना की उभय पदधवत का अभीषट समझदारी जागवत पिशक सारथशक होता ह जो जागरण ह| मानि म शततकतया वकरया इचछा एि जञान शततकत ही ह जो उनकी अहशताए ह| अहशताए परतयक इका

की जागवतशीलता जागवत पर आिाररत ह| शबद सपशश रप रस गिनतियो दवारा शततकतयो का अपवयय न होना सारथ ही सदवयाय होना ही

वकरया शततकत की जागवत ह| सदवयय एि अपवयय का वनिारण मानिीयता क सीमा म ldquoवनयम-तरयrdquo क रप म ह |

अतकरण मल परितताा अरथात आशा वििार इचछा ि सकलप का अपवयय न होना ही सदवयय ह| यही इचछा शततकत का जागरण ह|

समयक-बोि एि अनभती पणशता ही जञान परकटन कषमता ह| यही जञानशततकत का जागरण अरथिा पणश जागरण ह| यह ldquoजागवत-तरयrdquo मानिीयता एि अवतमानिीयता म परतयकष ह| यही मानि जीिन की िरमोतकषश

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उपलसतबध ह| सशकत उपासना क उपादयता यही ह यही समगर मानि की कामना ह| यही सिशमगल ह| इसीललए

जीिन-जागवत का परतयकष सवरप ही वििक पणश विजञान का परयोग ह यही सतकशता अखणड सामाखजकता परबदघता वनविि षमता सह-असतितव शशकषा विधि वयिसथा सभयता ससकवत बौशदघक समािान भौवतक समशदघ और जीिन जागवत की वनरनतरता ह

पणश जागवत पयशनत परतयक मानि इका परयास एि उपासना क ललय बाधय ह इसी क फलसवरप मल परिततततयो का पररमाजशन होता ह खजसक कारण विशशषट और शशषट मानधसकता एि वििार चिनतन-बोि कषमता अनभिपणशता परतयकष होती ह यही शरषठ उपासना की उपलसतबधयाा ह

इसललय समान क सारथ वयिहार करन क ललय बाधय हआ ह यही सामाखजकता की बाधयता ह यही मानि जीिन की गौरि और गररमा ह यही गररमा समान क सारथ वयिहार अधिक जागवत क ललय अभयास करन क ललय पररणा ह यही िािविक उपासना ह

वििक अरथात मानि लकषय और िरागय अरथात समशदघ ही उपासना का परतयकष फल ह खजसम सामाखजकता सवाभाविक रप स समाहहत रहती ह

िरागय का पराितशन ही असगरह (समशदघ) उदारता एि दया ह भौवतक समशदघ म उदारता एि दया क मौललक मलयो का अनरजन ही सामाखजकता का पराण ततव ह यही सामाखजक सगीत ह इसी क ललय मानि तततषत ह वििक ही बौशदघक समािान एि सामाखजक मलयो को वनिाह पिशक परकट करता ह इसललय

वििक ि िरागय ही परोकष जञान (सदवयिहाररक जञान) का परिान लकषण ह अनभि ही परोकष जञान की अनतनतम सथसथवत ह इसक पिश अनमान अधिकार ही परधसदघ ह ििसथसथवत ििगत सथसथवत सतय म ही अनभि ह

परोकष जञान क वबना वनतयावनतय यकतायकत नयायानयाय िमािमश सतयासतयइषटावनषट दषटादषट तरथा परोकष जञानाधिकार धसदघ नही होता ह

वनतयावनतय जञानाधिकार क वबना मनषय म सविमश क परवत वनषठा नही पा जाती ह मानि िमश ही सख सख ही नयायपणश आिरण नयायपणश आिरण ही मानिीयतापणश सीमा एि lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का पालन ह यही मनषय का सविमश ह मानि सख िमी ह

मयादा विहीन इका नही ह जस जीिो म सवभाि मयादा िनसपवतयो म गण मयादा एि पदारथो म रप मयादा-भग नही होती ह यही उनकी गररमा ह इसी परकार मानि म सख ही िमश ह िमश ही मयादा ह यही उनकी गररमा एि विशवास ह मयादा का परतयकष रप ही विशवास ह

lsquolsquoविशवासविहीन समबनध एि समपकश म सख नही हrsquorsquo समबनध एि समपकश विहीन मनषय नही ह यही बाधयता सविमश क ललय ह इसक पालन म जो अकषमता अयोगयता एि अपातरता ह - िही दख कलश समसया और अजागवत ह

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सविमश म समपननता एि पालन करन योगय कषमता योगयता एि पातरता स पररपणश होत तक जञानाजशन करन क अरथश म अधययन रपी उपासना का अभाि नही ह

मानि क सविमश की सीमा म ही मत समपरदाय िगश वतरोहहत हो जात ह यही समरथश उपासना की परतयकष गररमा ह lsquolsquoयही मागललक हrsquorsquo साधय सािक सािन इन तीनो का उपासना म समाहहत रहना अवनिायश ह इनकी एक सतरता ही उपासना की सफलता ह अनयरथा असफलता ह परतयक सथसथवत म परापत शततकत ि सािनो का सदपयोग करना ही उसकी अवगरम जागवत ह यही उपासना ह

इनतिय कायशकलाप तरथा इनतियो का कायशकषतर ही अपरोकष जञान की सीमा ह इस वयापार म ितविि षय सीमानतिती धसशदघयाा ह इसक अवतररकत और उपलसतबधयाा इसम नही ह

विषयो की सीमा म मनषय सीततमत नही ह कयोवक उसम िार आयाम परधसदघ ह

मनषय ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत समपनन होन क ललय बाधय ह यही आिशयकता अिसर सभािना एि वयिसथा ह

सयमतापिशक ही मनषय क दवारा परतयक पररपरकषय म वकय गय वकरयाकलाप म स गररमापणश िभि परकट होता ह जस-

सतयबोि सहहत सतय बोलन का अभयास करन स भय ि अविशवास की वनितततत हषश तरथा उतसाह का उदय होता ह

विशव क परवत मलय भाि की परवतषठा स इषट और सािक क मधय विषमता का अभाि होता ह

शबद क अरथश अरथात मनतरारथश का तदरपतापिशक समरण करन क अभयास स उसका अरथश एि सवभाि गमय होता ह सभी सारथशक शबद मनतर ह

अधिक जागत म समपशण स अलभमान ि अहकार का उनमलन तरथा विदया ि सरलता का उदय होता ह ( अधिक जागत = समझान िाला परमाखणत वयततकत गर)

शरीर सिदना सयत रहन स मन की पवितरता मन की पवितरता स मनोबल का लाभ होता ह

सव-शरीर मोह नषट होन स ससार क परवत मोह दर होता ह सिशशभरपी आपत कामना पणश बशदघ स ही विशव क परवत उदारता दया कपा करणा का परसिन तरथा विशव की आिारभत सतता म जञान एि अनभि होता ह

जञान विजञान वििक रपी सवतवहीनता ही असयमता मनोदौबशलय मल परविततततयो की अपररषकवत राग मोह लोभ अवििक अहकार अलभमान दहातमिादी परितततत दरािार सघषश असह-असतितव सशकता दवष तरथा तपोहीनता ह

सयमता क वबना बौशदघक मल परिततततयो की पररषकवत बशदघबल सामाखजक मलयो की अनभवत ितनय वकरया का दशशन समािान और सयमता धसदघ नही होती ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 22

उपासना क ललय िातािरण का महतव अपररहायश ह खजसम स मनषय कत िातािरण ही परिान ह जो शशकषा ि वयिसथा क रप म ही ह

मानिीयता की सीमा म वयिहार lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का आिरण ही वयततकततव ह ऐस वयततकततव क वनमाण म सवकरय योगदान ही कततशवय ह यही परषारथश ह यही परबदघता ह

आशा भद स उपासना उपासना भद स अनभि अनभि भद स अनमान अनमान भद स उपासना भद ह यही उपासना म िविधयता का कारण ह यह िविधयता सािशभौम आिरण की सीमा म विलय होन क ललय बाधय ह

मानि क ललय सहज समरथश उपासना एक अवनिायश कायशकरम ह जो अमानिीयता स मानिीयता मानिीयता स अवतमानिीयता की परवतषठा सथाततपत करती ह

सह-असतितव म अनकषण-विकषण-ितततत स सहजाितततत होती ह

कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ही अनकषण-विकषण ितततत ह

अनकषण का तातपयश परतयक कषण म लगातार सह-असतितव चिनतन वििार करम म परमाखणकता का सहज परमाण परित हो जाता ह यही सहजाितततत ह

सतता म समपकत परकवत की समपकतता का जञान ही (पणश-दशशन) कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ह यही भरततमत भाि ि अभाि का वतरोभाि ह यही सहज परवतषठा ि अिसथा ह

सतता म समपकत परकवत का जञान न होन स और अनभिमलक जञान न होन स भय और परलोभनिश समि भरममलक कायश-वयिहार सोि-वििार को बनाय रखता ह यही समपणश कलश का कारण ह

काल वकरया की अिधि ह इसी अिधि म आरोततपत वििार ि इचछा ही असहज एि वनरारोततपत वििार ि इचछा ही सहज ह

मानि इका म ही जागवत क करम म भी वनरारोपण कषमता पा जाती ह भरमिश आरोपण होता ह

जो जसा ह उसस अधिक कम अरथिा नासमझना ही आरोपण ह यही अजञान ह यही अकषमता ह यही भरम ह

सतता म समपकत जड़-ितनयातमक परकवत की सथसथवत-शीलता ि सतता सहज पणशता क समबनध म ही आरोप या वनरारोण वकरया समपनन होना पाया जाता ह

परतयक इका म रप गण सवभाि एि िमश समाहहत ह यही उसकी कायशितता ह इसी की गणना पररमाण परयोजन जञान ही परकवत क परवत वनभरमतापणश कषमता का दयोतक ह यही परमाण ह यही सहजता ह

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समपणश वकरयाय मलत रप और शबद भद म दषटवय ह

परकता क वबना इका म अवगरमता नही ह

पणशता पयशनत इका परकता उपयोवगता क ललए परितत ह

परकता ही इका म हरास ि विकास क लकषणो को परकट करती ह यही परिान उपादयता भी ह

इका म परकट होन िाल शबदादधद गण ही सापकष शततकतयाा ह गणविहीन इका नही ह इसललय

मनषय म सहज कामना का अभाि नही ह सहजता ही िमश ह यही सख शानतनत सतोष एि आननद ह यही िारणा को सपषट करता ह जो परतयकष ह

परतयक कमश-फल ही मनषय क सख का पोषक ि शोषक धसदघ हआ ह

सतय और सतयता क अनभि-करम म वयििान नही ह कयोवक अनभिकरम-वयिसथा सघन ह जागवत की कदधड़याा सघन ह इसललय-

सहजता आरोप स मकत ह आरोप ही नयनावतरक मलयाकन ह सवय की नयनावतरक मलयाकन वकरया ही असहजता ह

सवय का मलयाकन lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म होता ह

lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म न हो ऐसा मनषय इस पथवी पर नही ह

िमश का वियोग नही ह कयोवक यह िारणा ह इसका परतयकष रप ही मानिीयता एि अवतमानिीयता पणश आिरण ह जो सहजता का परिान लकषण ह इसललय -

अमानिीयता पणश आिरण ही असहज ह इसललय

परकवत अपन म समपणशता क सारथ सीततमत ह यही अिधि ह इसललय पणश म समायी ह यही पणश म समपणशता सहज सह-असतितव ह यही समपणशता का वनतय ितशमान और जञानािसथा क मानि म पणशता का परसि ह यही जागवत क ललय बाधयता ह

मनषय क बौशदघक कषतर म पायी जान िाली अनािशयक कलपनाओ का वनराकरण ही दशशन-कषमता म गणातमक पररमाजशन ह यही गणातमक ससकार-पररितशन शशकषा एि जीिन क कायशकरम का योगफल ह

दशशन-कषमता का उतकषश ही अनकषण विकषण ह यही मधयसथ वकरया की कषमता ह मधयसथ वकरया ही दषटा ह

मधयसथ वकरया का िरमोतकषश ही सम ि विषम वकरया का पणश वनयतरण ह यही कषमता कषण-कषण मधयसथ वयििान स मततकत ह

ससकार पिशक ही बौशदघक वयिसथा-परवकरया -कषमता क आनषवगक ह मनषय सहज ऐषणा एि विषयो की सीमा म परितततत ि वनितततत पिशक वयि होना पाया जाता ह जो परतयकष ह

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आतमा (मधयसथ वकरया) क आनषवगक बौशदघक परवकरया ि वयिसथा म सतय-सकलप एि सतय-कलपनापणश मानधसकता की सथसथवत पा जाती ह जो परधसदघ कमश उपासना जञान पणश ह यही कषमता दि ि दधदवय मानिीयता को परकट करती ह यही पणश जागवत ह

ऐषणासकत बौशदघक वयिसथा म मानिीय तरथा दि मानिीय सवभाि परकट होता ह उसी क अनरप म मानधसक िातािरण की सथसथवतशीलता ह ऐसी कषमता ही सामाखजक ितना एि सतकशता स पररपणश पायी जाती ह

विषयासकत बौशदघक वयिसथा ि परवकरया म अमानिीयतापणश आिरण समपनन होता ह जो पाशविकता तरथा दानिीयता क रप म दषटवय ह इनम उसी क योगय मानधसकता पा जाती ह यही लपत-सपत कलपना का कारण ह यही अजागवत तरथा अपणश सतकशता का दयोतक ह

शरय (जागवत) खजजञास होन पर ही लपत-सपत कलपनाय पररमाखजि त होती ह फलत दानिी ि पाशिी परिततततयो स उदासीनता सथसथर होती ह सारथ ही वििकोदय होता ह

शरय खजजञासा का उदय सव-ससकार विधि-विहहत अधययन तरथा उसक अनकल िातािरण म होता ह

विधि-विहहत-अधययन वनपणता कशलता ि पादधडतय ही ह

अधययन एि िातािरण ही ससकार पररितशन क ललय समरथश वयिसथा ह खजसका गणातमक पररितशन ही आतमबोि क ललय खजजञासा ह

आतमबोि ही सतय खजजञासा का परिान लकषण ह इसललय- अििारणा ही अनगमन तरथा अनशीलन क ललय परितततत ह जो शशषटता क रप म परतयकष होती ह परगवत क ललय अििारणा अवनिायश ह जागवत क ललय अििारणा एि हरास क ललय आसततकत परधसदघ ह यही करम स वनितततत ि परितततत ह अििारणा ही सदधदविक ह सदधदविक सवय म सतयता की विििना ह जो सपषट ह मलत यही शभ एि मागलय ह अनभि की अििारणा सतय बोि क रप म अििारणा (समयक-बोि) ही सतय-सकलप ह यही परािवति त होकर शभकमश उपासना तरथा आिरण क रप म परतयकष ह इसी का पररिवति त मलय ही िीरता िीरता उदारता दया कपा और करणा क रप म परतयकष ह सतय म ही समयक-बोि होता ह असतय ही कलपना एि भास होता ह हीनता दीनता और कररता स यकत कमश अशभ होता ह सव-मलय ही परितततत और वनितततत का िशश ह इसललय असतय अलभमान तरथा दपश स मकत सतय सरलता सहजता तरथा सौजनयता स यकत कमश ि उपासना शरय कारक ह

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सतय कामना की वनरनतरता स लकषय की अििारणा होती ह जञान म ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत परतयकष ह जञान वििक सममत विजञान ही ह जो पणश ह सतय और सतयता म दढ़ता ही शरयमय जीिन ह सतयानभवत ही सबका अभीषट ह शरीर स समपनन होन िाल समि वकरयाओ का सिालन मन ही मिस दवारा करता ह मिस स सभी नादधड़याा वनयदधतरत ह शबद का मल रप मन ही ह मिस पर मन आसवादन एि सवागत भािपणश तरगो का परसारण सिालन वनयतरण करता ह उसक मल म शबद ही ह जागवत की ओर गवत हत वनयतरणातमक शबद ही मतर ह लकषय-पराततपत-योगय-करम परवकरया ही वनयतरण ह शबद म जो भाि (मलय) ह िही उसका अरथश ह सारथशक शबदो का अरथश ही जागवत की ओर गवत ह कयोवक शबद का अरथश असतितव म िि ह भाि म जो उपयोगपणश अवनिायशता ह िही उसका महतव ह उपयोग पणश अवनिायशता म जो वनचशचत दधदशा ह िही उसकी दढ़ता ह यही समयक सकलप ह समयक सकलप म जो पणशता ह िही अनभि ह जो करम स मन ितततत चितत बशदघ और आतमा म पा जान िाली सससकत मौललक वकरयाय ह भाि का तातपयश होन स ह शततकत-तरय-जागरण (इचछा-शततकत वकरया-शततकत तरथा जञान शततकत जागरण) क वबना तयाग (भरममततकत) और परम परमाखणत नही होता

मनन परवकरया म सव-मलयाकन

सव-मलयाकन मनन धयान ldquoअपराि क अभाि म दयापणश आशा का पराितशन अनयाय क अभाि म नयायपणश वििार का पराितशन आसकती क अभाि म समािान पणश इचछा का पराितशन तरथा अजञान क अभाि म जञानपणश सकलप का पराितशन होता ह| अत अपरािहीन वयिहार क ललए वयिसथा का परभाि अनयायहीन वििार क ललए अखणड समाज का परभाि तरथा अजञान रहहत बदधदध क ललए अतवनि यामन अरथिा धयान आिशयक ह खजसस ही परतयाितशन वकरया सफल ह| धयान का अरथश समझन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना और समझन-अनभि करन क

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उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

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मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

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(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

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सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

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प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

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अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

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३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 33

(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 34

उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 19

करम शततकत महहमा विभती एि वनयम सबिी अनसिान (अनगमन पिशक अििारणा) शोि परधसदध ह| अनसिान भौवतक बौदधदधक तरथा आधयातमतमक भद स ह| अनसनधान परवकरया मनन चिितन सकलप एि अनभती क रप म परतयकष ह|

सथल सकषम कारण (दषटा) का तातपयश दखन समझन परयोग करन वयिहार करन एि अनभि करन योगय कषमता क सपनन होन स ह |

परिततततयो का पररमाजशन ही मानि जीिन का कायशकरम ह| मानि म पणशता एि पररमाजशनशीलता की अपकषा परतयक सथसथती म पा जाती ह| पणशता ही पादधडतय ह| पादधडतय स अधिक जञान एि वनपणता कशलता स अधिक वयिहार एि उतपादन नही ह| पररमाजशनशीलता उतपादन ि वयिहार म पा जाती ह| पादधडतय परबदधता परबदधता ही शशकषा एि वयिसथा ह| परबदधता स पररपणश होत तक उपासना अतयत उपयोगी ह|

प ५६ स ७२ (इनम स कछ ही िाकयो को ललया गया ह| समपणश क ललए पिक दख) उपासना स सािशभौततमक मलयो का अिगाहन करना ही परिान उपादयता ह| समि उपासनाओ क मल म लकषय समय ह िह अखड समाज सािशभौम वयिसथा ह| िह किल सिश

मगल ही ह| कयोकी सिश मगल की कामना क वबना सवय का मगल धसदध नही ह| अनय कामय कामनाए किल मगलमयता की भास परदायी ह न की अनभिदायी| इसललए सिशमगल

कामनारपी कायशकरम तःरथा उसकी अनसरण योगय कषमता पयत मानि परयास करन क ललए बाधय ह| सही क परती भरततमत रहना ही मत सपरदाय एि िगश का कारण ह|

मत सापरदाततयक िगीयता म आचरथिक िगीयता एि आचरथिक िगीयता म मत-सापरदाततयकता समा ह ह|

इसका वनराकरण सपषटतया सािशभौततमक रप म पा जान िाली मानिीयतापणश पदधवत स ldquoवनयम-तरयrdquo (बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक) क आिारपिशक ही आचरथिक एि सापरदाततयक िगश-भािनाओ स मकत होन की समभािना एि मकती ह| इसी म समि िगश-भािना विलीन हो जाती ह| इसीललए ndash

उपासना की उभय पदधवत का अभीषट समझदारी जागवत पिशक सारथशक होता ह जो जागरण ह| मानि म शततकतया वकरया इचछा एि जञान शततकत ही ह जो उनकी अहशताए ह| अहशताए परतयक इका

की जागवतशीलता जागवत पर आिाररत ह| शबद सपशश रप रस गिनतियो दवारा शततकतयो का अपवयय न होना सारथ ही सदवयाय होना ही

वकरया शततकत की जागवत ह| सदवयय एि अपवयय का वनिारण मानिीयता क सीमा म ldquoवनयम-तरयrdquo क रप म ह |

अतकरण मल परितताा अरथात आशा वििार इचछा ि सकलप का अपवयय न होना ही सदवयय ह| यही इचछा शततकत का जागरण ह|

समयक-बोि एि अनभती पणशता ही जञान परकटन कषमता ह| यही जञानशततकत का जागरण अरथिा पणश जागरण ह| यह ldquoजागवत-तरयrdquo मानिीयता एि अवतमानिीयता म परतयकष ह| यही मानि जीिन की िरमोतकषश

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उपलसतबध ह| सशकत उपासना क उपादयता यही ह यही समगर मानि की कामना ह| यही सिशमगल ह| इसीललए

जीिन-जागवत का परतयकष सवरप ही वििक पणश विजञान का परयोग ह यही सतकशता अखणड सामाखजकता परबदघता वनविि षमता सह-असतितव शशकषा विधि वयिसथा सभयता ससकवत बौशदघक समािान भौवतक समशदघ और जीिन जागवत की वनरनतरता ह

पणश जागवत पयशनत परतयक मानि इका परयास एि उपासना क ललय बाधय ह इसी क फलसवरप मल परिततततयो का पररमाजशन होता ह खजसक कारण विशशषट और शशषट मानधसकता एि वििार चिनतन-बोि कषमता अनभिपणशता परतयकष होती ह यही शरषठ उपासना की उपलसतबधयाा ह

इसललय समान क सारथ वयिहार करन क ललय बाधय हआ ह यही सामाखजकता की बाधयता ह यही मानि जीिन की गौरि और गररमा ह यही गररमा समान क सारथ वयिहार अधिक जागवत क ललय अभयास करन क ललय पररणा ह यही िािविक उपासना ह

वििक अरथात मानि लकषय और िरागय अरथात समशदघ ही उपासना का परतयकष फल ह खजसम सामाखजकता सवाभाविक रप स समाहहत रहती ह

िरागय का पराितशन ही असगरह (समशदघ) उदारता एि दया ह भौवतक समशदघ म उदारता एि दया क मौललक मलयो का अनरजन ही सामाखजकता का पराण ततव ह यही सामाखजक सगीत ह इसी क ललय मानि तततषत ह वििक ही बौशदघक समािान एि सामाखजक मलयो को वनिाह पिशक परकट करता ह इसललय

वििक ि िरागय ही परोकष जञान (सदवयिहाररक जञान) का परिान लकषण ह अनभि ही परोकष जञान की अनतनतम सथसथवत ह इसक पिश अनमान अधिकार ही परधसदघ ह ििसथसथवत ििगत सथसथवत सतय म ही अनभि ह

परोकष जञान क वबना वनतयावनतय यकतायकत नयायानयाय िमािमश सतयासतयइषटावनषट दषटादषट तरथा परोकष जञानाधिकार धसदघ नही होता ह

वनतयावनतय जञानाधिकार क वबना मनषय म सविमश क परवत वनषठा नही पा जाती ह मानि िमश ही सख सख ही नयायपणश आिरण नयायपणश आिरण ही मानिीयतापणश सीमा एि lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का पालन ह यही मनषय का सविमश ह मानि सख िमी ह

मयादा विहीन इका नही ह जस जीिो म सवभाि मयादा िनसपवतयो म गण मयादा एि पदारथो म रप मयादा-भग नही होती ह यही उनकी गररमा ह इसी परकार मानि म सख ही िमश ह िमश ही मयादा ह यही उनकी गररमा एि विशवास ह मयादा का परतयकष रप ही विशवास ह

lsquolsquoविशवासविहीन समबनध एि समपकश म सख नही हrsquorsquo समबनध एि समपकश विहीन मनषय नही ह यही बाधयता सविमश क ललय ह इसक पालन म जो अकषमता अयोगयता एि अपातरता ह - िही दख कलश समसया और अजागवत ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 21

सविमश म समपननता एि पालन करन योगय कषमता योगयता एि पातरता स पररपणश होत तक जञानाजशन करन क अरथश म अधययन रपी उपासना का अभाि नही ह

मानि क सविमश की सीमा म ही मत समपरदाय िगश वतरोहहत हो जात ह यही समरथश उपासना की परतयकष गररमा ह lsquolsquoयही मागललक हrsquorsquo साधय सािक सािन इन तीनो का उपासना म समाहहत रहना अवनिायश ह इनकी एक सतरता ही उपासना की सफलता ह अनयरथा असफलता ह परतयक सथसथवत म परापत शततकत ि सािनो का सदपयोग करना ही उसकी अवगरम जागवत ह यही उपासना ह

इनतिय कायशकलाप तरथा इनतियो का कायशकषतर ही अपरोकष जञान की सीमा ह इस वयापार म ितविि षय सीमानतिती धसशदघयाा ह इसक अवतररकत और उपलसतबधयाा इसम नही ह

विषयो की सीमा म मनषय सीततमत नही ह कयोवक उसम िार आयाम परधसदघ ह

मनषय ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत समपनन होन क ललय बाधय ह यही आिशयकता अिसर सभािना एि वयिसथा ह

सयमतापिशक ही मनषय क दवारा परतयक पररपरकषय म वकय गय वकरयाकलाप म स गररमापणश िभि परकट होता ह जस-

सतयबोि सहहत सतय बोलन का अभयास करन स भय ि अविशवास की वनितततत हषश तरथा उतसाह का उदय होता ह

विशव क परवत मलय भाि की परवतषठा स इषट और सािक क मधय विषमता का अभाि होता ह

शबद क अरथश अरथात मनतरारथश का तदरपतापिशक समरण करन क अभयास स उसका अरथश एि सवभाि गमय होता ह सभी सारथशक शबद मनतर ह

अधिक जागत म समपशण स अलभमान ि अहकार का उनमलन तरथा विदया ि सरलता का उदय होता ह ( अधिक जागत = समझान िाला परमाखणत वयततकत गर)

शरीर सिदना सयत रहन स मन की पवितरता मन की पवितरता स मनोबल का लाभ होता ह

सव-शरीर मोह नषट होन स ससार क परवत मोह दर होता ह सिशशभरपी आपत कामना पणश बशदघ स ही विशव क परवत उदारता दया कपा करणा का परसिन तरथा विशव की आिारभत सतता म जञान एि अनभि होता ह

जञान विजञान वििक रपी सवतवहीनता ही असयमता मनोदौबशलय मल परविततततयो की अपररषकवत राग मोह लोभ अवििक अहकार अलभमान दहातमिादी परितततत दरािार सघषश असह-असतितव सशकता दवष तरथा तपोहीनता ह

सयमता क वबना बौशदघक मल परिततततयो की पररषकवत बशदघबल सामाखजक मलयो की अनभवत ितनय वकरया का दशशन समािान और सयमता धसदघ नही होती ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 22

उपासना क ललय िातािरण का महतव अपररहायश ह खजसम स मनषय कत िातािरण ही परिान ह जो शशकषा ि वयिसथा क रप म ही ह

मानिीयता की सीमा म वयिहार lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का आिरण ही वयततकततव ह ऐस वयततकततव क वनमाण म सवकरय योगदान ही कततशवय ह यही परषारथश ह यही परबदघता ह

आशा भद स उपासना उपासना भद स अनभि अनभि भद स अनमान अनमान भद स उपासना भद ह यही उपासना म िविधयता का कारण ह यह िविधयता सािशभौम आिरण की सीमा म विलय होन क ललय बाधय ह

मानि क ललय सहज समरथश उपासना एक अवनिायश कायशकरम ह जो अमानिीयता स मानिीयता मानिीयता स अवतमानिीयता की परवतषठा सथाततपत करती ह

सह-असतितव म अनकषण-विकषण-ितततत स सहजाितततत होती ह

कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ही अनकषण-विकषण ितततत ह

अनकषण का तातपयश परतयक कषण म लगातार सह-असतितव चिनतन वििार करम म परमाखणकता का सहज परमाण परित हो जाता ह यही सहजाितततत ह

सतता म समपकत परकवत की समपकतता का जञान ही (पणश-दशशन) कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ह यही भरततमत भाि ि अभाि का वतरोभाि ह यही सहज परवतषठा ि अिसथा ह

सतता म समपकत परकवत का जञान न होन स और अनभिमलक जञान न होन स भय और परलोभनिश समि भरममलक कायश-वयिहार सोि-वििार को बनाय रखता ह यही समपणश कलश का कारण ह

काल वकरया की अिधि ह इसी अिधि म आरोततपत वििार ि इचछा ही असहज एि वनरारोततपत वििार ि इचछा ही सहज ह

मानि इका म ही जागवत क करम म भी वनरारोपण कषमता पा जाती ह भरमिश आरोपण होता ह

जो जसा ह उसस अधिक कम अरथिा नासमझना ही आरोपण ह यही अजञान ह यही अकषमता ह यही भरम ह

सतता म समपकत जड़-ितनयातमक परकवत की सथसथवत-शीलता ि सतता सहज पणशता क समबनध म ही आरोप या वनरारोण वकरया समपनन होना पाया जाता ह

परतयक इका म रप गण सवभाि एि िमश समाहहत ह यही उसकी कायशितता ह इसी की गणना पररमाण परयोजन जञान ही परकवत क परवत वनभरमतापणश कषमता का दयोतक ह यही परमाण ह यही सहजता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 23

समपणश वकरयाय मलत रप और शबद भद म दषटवय ह

परकता क वबना इका म अवगरमता नही ह

पणशता पयशनत इका परकता उपयोवगता क ललए परितत ह

परकता ही इका म हरास ि विकास क लकषणो को परकट करती ह यही परिान उपादयता भी ह

इका म परकट होन िाल शबदादधद गण ही सापकष शततकतयाा ह गणविहीन इका नही ह इसललय

मनषय म सहज कामना का अभाि नही ह सहजता ही िमश ह यही सख शानतनत सतोष एि आननद ह यही िारणा को सपषट करता ह जो परतयकष ह

परतयक कमश-फल ही मनषय क सख का पोषक ि शोषक धसदघ हआ ह

सतय और सतयता क अनभि-करम म वयििान नही ह कयोवक अनभिकरम-वयिसथा सघन ह जागवत की कदधड़याा सघन ह इसललय-

सहजता आरोप स मकत ह आरोप ही नयनावतरक मलयाकन ह सवय की नयनावतरक मलयाकन वकरया ही असहजता ह

सवय का मलयाकन lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म होता ह

lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म न हो ऐसा मनषय इस पथवी पर नही ह

िमश का वियोग नही ह कयोवक यह िारणा ह इसका परतयकष रप ही मानिीयता एि अवतमानिीयता पणश आिरण ह जो सहजता का परिान लकषण ह इसललय -

अमानिीयता पणश आिरण ही असहज ह इसललय

परकवत अपन म समपणशता क सारथ सीततमत ह यही अिधि ह इसललय पणश म समायी ह यही पणश म समपणशता सहज सह-असतितव ह यही समपणशता का वनतय ितशमान और जञानािसथा क मानि म पणशता का परसि ह यही जागवत क ललय बाधयता ह

मनषय क बौशदघक कषतर म पायी जान िाली अनािशयक कलपनाओ का वनराकरण ही दशशन-कषमता म गणातमक पररमाजशन ह यही गणातमक ससकार-पररितशन शशकषा एि जीिन क कायशकरम का योगफल ह

दशशन-कषमता का उतकषश ही अनकषण विकषण ह यही मधयसथ वकरया की कषमता ह मधयसथ वकरया ही दषटा ह

मधयसथ वकरया का िरमोतकषश ही सम ि विषम वकरया का पणश वनयतरण ह यही कषमता कषण-कषण मधयसथ वयििान स मततकत ह

ससकार पिशक ही बौशदघक वयिसथा-परवकरया -कषमता क आनषवगक ह मनषय सहज ऐषणा एि विषयो की सीमा म परितततत ि वनितततत पिशक वयि होना पाया जाता ह जो परतयकष ह

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आतमा (मधयसथ वकरया) क आनषवगक बौशदघक परवकरया ि वयिसथा म सतय-सकलप एि सतय-कलपनापणश मानधसकता की सथसथवत पा जाती ह जो परधसदघ कमश उपासना जञान पणश ह यही कषमता दि ि दधदवय मानिीयता को परकट करती ह यही पणश जागवत ह

ऐषणासकत बौशदघक वयिसथा म मानिीय तरथा दि मानिीय सवभाि परकट होता ह उसी क अनरप म मानधसक िातािरण की सथसथवतशीलता ह ऐसी कषमता ही सामाखजक ितना एि सतकशता स पररपणश पायी जाती ह

विषयासकत बौशदघक वयिसथा ि परवकरया म अमानिीयतापणश आिरण समपनन होता ह जो पाशविकता तरथा दानिीयता क रप म दषटवय ह इनम उसी क योगय मानधसकता पा जाती ह यही लपत-सपत कलपना का कारण ह यही अजागवत तरथा अपणश सतकशता का दयोतक ह

शरय (जागवत) खजजञास होन पर ही लपत-सपत कलपनाय पररमाखजि त होती ह फलत दानिी ि पाशिी परिततततयो स उदासीनता सथसथर होती ह सारथ ही वििकोदय होता ह

शरय खजजञासा का उदय सव-ससकार विधि-विहहत अधययन तरथा उसक अनकल िातािरण म होता ह

विधि-विहहत-अधययन वनपणता कशलता ि पादधडतय ही ह

अधययन एि िातािरण ही ससकार पररितशन क ललय समरथश वयिसथा ह खजसका गणातमक पररितशन ही आतमबोि क ललय खजजञासा ह

आतमबोि ही सतय खजजञासा का परिान लकषण ह इसललय- अििारणा ही अनगमन तरथा अनशीलन क ललय परितततत ह जो शशषटता क रप म परतयकष होती ह परगवत क ललय अििारणा अवनिायश ह जागवत क ललय अििारणा एि हरास क ललय आसततकत परधसदघ ह यही करम स वनितततत ि परितततत ह अििारणा ही सदधदविक ह सदधदविक सवय म सतयता की विििना ह जो सपषट ह मलत यही शभ एि मागलय ह अनभि की अििारणा सतय बोि क रप म अििारणा (समयक-बोि) ही सतय-सकलप ह यही परािवति त होकर शभकमश उपासना तरथा आिरण क रप म परतयकष ह इसी का पररिवति त मलय ही िीरता िीरता उदारता दया कपा और करणा क रप म परतयकष ह सतय म ही समयक-बोि होता ह असतय ही कलपना एि भास होता ह हीनता दीनता और कररता स यकत कमश अशभ होता ह सव-मलय ही परितततत और वनितततत का िशश ह इसललय असतय अलभमान तरथा दपश स मकत सतय सरलता सहजता तरथा सौजनयता स यकत कमश ि उपासना शरय कारक ह

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सतय कामना की वनरनतरता स लकषय की अििारणा होती ह जञान म ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत परतयकष ह जञान वििक सममत विजञान ही ह जो पणश ह सतय और सतयता म दढ़ता ही शरयमय जीिन ह सतयानभवत ही सबका अभीषट ह शरीर स समपनन होन िाल समि वकरयाओ का सिालन मन ही मिस दवारा करता ह मिस स सभी नादधड़याा वनयदधतरत ह शबद का मल रप मन ही ह मिस पर मन आसवादन एि सवागत भािपणश तरगो का परसारण सिालन वनयतरण करता ह उसक मल म शबद ही ह जागवत की ओर गवत हत वनयतरणातमक शबद ही मतर ह लकषय-पराततपत-योगय-करम परवकरया ही वनयतरण ह शबद म जो भाि (मलय) ह िही उसका अरथश ह सारथशक शबदो का अरथश ही जागवत की ओर गवत ह कयोवक शबद का अरथश असतितव म िि ह भाि म जो उपयोगपणश अवनिायशता ह िही उसका महतव ह उपयोग पणश अवनिायशता म जो वनचशचत दधदशा ह िही उसकी दढ़ता ह यही समयक सकलप ह समयक सकलप म जो पणशता ह िही अनभि ह जो करम स मन ितततत चितत बशदघ और आतमा म पा जान िाली सससकत मौललक वकरयाय ह भाि का तातपयश होन स ह शततकत-तरय-जागरण (इचछा-शततकत वकरया-शततकत तरथा जञान शततकत जागरण) क वबना तयाग (भरममततकत) और परम परमाखणत नही होता

मनन परवकरया म सव-मलयाकन

सव-मलयाकन मनन धयान ldquoअपराि क अभाि म दयापणश आशा का पराितशन अनयाय क अभाि म नयायपणश वििार का पराितशन आसकती क अभाि म समािान पणश इचछा का पराितशन तरथा अजञान क अभाि म जञानपणश सकलप का पराितशन होता ह| अत अपरािहीन वयिहार क ललए वयिसथा का परभाि अनयायहीन वििार क ललए अखणड समाज का परभाि तरथा अजञान रहहत बदधदध क ललए अतवनि यामन अरथिा धयान आिशयक ह खजसस ही परतयाितशन वकरया सफल ह| धयान का अरथश समझन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना और समझन-अनभि करन क

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उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

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मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

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(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

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सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

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प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

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अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

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३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 33

(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 34

उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

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(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

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मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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उपलसतबध ह| सशकत उपासना क उपादयता यही ह यही समगर मानि की कामना ह| यही सिशमगल ह| इसीललए

जीिन-जागवत का परतयकष सवरप ही वििक पणश विजञान का परयोग ह यही सतकशता अखणड सामाखजकता परबदघता वनविि षमता सह-असतितव शशकषा विधि वयिसथा सभयता ससकवत बौशदघक समािान भौवतक समशदघ और जीिन जागवत की वनरनतरता ह

पणश जागवत पयशनत परतयक मानि इका परयास एि उपासना क ललय बाधय ह इसी क फलसवरप मल परिततततयो का पररमाजशन होता ह खजसक कारण विशशषट और शशषट मानधसकता एि वििार चिनतन-बोि कषमता अनभिपणशता परतयकष होती ह यही शरषठ उपासना की उपलसतबधयाा ह

इसललय समान क सारथ वयिहार करन क ललय बाधय हआ ह यही सामाखजकता की बाधयता ह यही मानि जीिन की गौरि और गररमा ह यही गररमा समान क सारथ वयिहार अधिक जागवत क ललय अभयास करन क ललय पररणा ह यही िािविक उपासना ह

वििक अरथात मानि लकषय और िरागय अरथात समशदघ ही उपासना का परतयकष फल ह खजसम सामाखजकता सवाभाविक रप स समाहहत रहती ह

िरागय का पराितशन ही असगरह (समशदघ) उदारता एि दया ह भौवतक समशदघ म उदारता एि दया क मौललक मलयो का अनरजन ही सामाखजकता का पराण ततव ह यही सामाखजक सगीत ह इसी क ललय मानि तततषत ह वििक ही बौशदघक समािान एि सामाखजक मलयो को वनिाह पिशक परकट करता ह इसललय

वििक ि िरागय ही परोकष जञान (सदवयिहाररक जञान) का परिान लकषण ह अनभि ही परोकष जञान की अनतनतम सथसथवत ह इसक पिश अनमान अधिकार ही परधसदघ ह ििसथसथवत ििगत सथसथवत सतय म ही अनभि ह

परोकष जञान क वबना वनतयावनतय यकतायकत नयायानयाय िमािमश सतयासतयइषटावनषट दषटादषट तरथा परोकष जञानाधिकार धसदघ नही होता ह

वनतयावनतय जञानाधिकार क वबना मनषय म सविमश क परवत वनषठा नही पा जाती ह मानि िमश ही सख सख ही नयायपणश आिरण नयायपणश आिरण ही मानिीयतापणश सीमा एि lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का पालन ह यही मनषय का सविमश ह मानि सख िमी ह

मयादा विहीन इका नही ह जस जीिो म सवभाि मयादा िनसपवतयो म गण मयादा एि पदारथो म रप मयादा-भग नही होती ह यही उनकी गररमा ह इसी परकार मानि म सख ही िमश ह िमश ही मयादा ह यही उनकी गररमा एि विशवास ह मयादा का परतयकष रप ही विशवास ह

lsquolsquoविशवासविहीन समबनध एि समपकश म सख नही हrsquorsquo समबनध एि समपकश विहीन मनषय नही ह यही बाधयता सविमश क ललय ह इसक पालन म जो अकषमता अयोगयता एि अपातरता ह - िही दख कलश समसया और अजागवत ह

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सविमश म समपननता एि पालन करन योगय कषमता योगयता एि पातरता स पररपणश होत तक जञानाजशन करन क अरथश म अधययन रपी उपासना का अभाि नही ह

मानि क सविमश की सीमा म ही मत समपरदाय िगश वतरोहहत हो जात ह यही समरथश उपासना की परतयकष गररमा ह lsquolsquoयही मागललक हrsquorsquo साधय सािक सािन इन तीनो का उपासना म समाहहत रहना अवनिायश ह इनकी एक सतरता ही उपासना की सफलता ह अनयरथा असफलता ह परतयक सथसथवत म परापत शततकत ि सािनो का सदपयोग करना ही उसकी अवगरम जागवत ह यही उपासना ह

इनतिय कायशकलाप तरथा इनतियो का कायशकषतर ही अपरोकष जञान की सीमा ह इस वयापार म ितविि षय सीमानतिती धसशदघयाा ह इसक अवतररकत और उपलसतबधयाा इसम नही ह

विषयो की सीमा म मनषय सीततमत नही ह कयोवक उसम िार आयाम परधसदघ ह

मनषय ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत समपनन होन क ललय बाधय ह यही आिशयकता अिसर सभािना एि वयिसथा ह

सयमतापिशक ही मनषय क दवारा परतयक पररपरकषय म वकय गय वकरयाकलाप म स गररमापणश िभि परकट होता ह जस-

सतयबोि सहहत सतय बोलन का अभयास करन स भय ि अविशवास की वनितततत हषश तरथा उतसाह का उदय होता ह

विशव क परवत मलय भाि की परवतषठा स इषट और सािक क मधय विषमता का अभाि होता ह

शबद क अरथश अरथात मनतरारथश का तदरपतापिशक समरण करन क अभयास स उसका अरथश एि सवभाि गमय होता ह सभी सारथशक शबद मनतर ह

अधिक जागत म समपशण स अलभमान ि अहकार का उनमलन तरथा विदया ि सरलता का उदय होता ह ( अधिक जागत = समझान िाला परमाखणत वयततकत गर)

शरीर सिदना सयत रहन स मन की पवितरता मन की पवितरता स मनोबल का लाभ होता ह

सव-शरीर मोह नषट होन स ससार क परवत मोह दर होता ह सिशशभरपी आपत कामना पणश बशदघ स ही विशव क परवत उदारता दया कपा करणा का परसिन तरथा विशव की आिारभत सतता म जञान एि अनभि होता ह

जञान विजञान वििक रपी सवतवहीनता ही असयमता मनोदौबशलय मल परविततततयो की अपररषकवत राग मोह लोभ अवििक अहकार अलभमान दहातमिादी परितततत दरािार सघषश असह-असतितव सशकता दवष तरथा तपोहीनता ह

सयमता क वबना बौशदघक मल परिततततयो की पररषकवत बशदघबल सामाखजक मलयो की अनभवत ितनय वकरया का दशशन समािान और सयमता धसदघ नही होती ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 22

उपासना क ललय िातािरण का महतव अपररहायश ह खजसम स मनषय कत िातािरण ही परिान ह जो शशकषा ि वयिसथा क रप म ही ह

मानिीयता की सीमा म वयिहार lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का आिरण ही वयततकततव ह ऐस वयततकततव क वनमाण म सवकरय योगदान ही कततशवय ह यही परषारथश ह यही परबदघता ह

आशा भद स उपासना उपासना भद स अनभि अनभि भद स अनमान अनमान भद स उपासना भद ह यही उपासना म िविधयता का कारण ह यह िविधयता सािशभौम आिरण की सीमा म विलय होन क ललय बाधय ह

मानि क ललय सहज समरथश उपासना एक अवनिायश कायशकरम ह जो अमानिीयता स मानिीयता मानिीयता स अवतमानिीयता की परवतषठा सथाततपत करती ह

सह-असतितव म अनकषण-विकषण-ितततत स सहजाितततत होती ह

कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ही अनकषण-विकषण ितततत ह

अनकषण का तातपयश परतयक कषण म लगातार सह-असतितव चिनतन वििार करम म परमाखणकता का सहज परमाण परित हो जाता ह यही सहजाितततत ह

सतता म समपकत परकवत की समपकतता का जञान ही (पणश-दशशन) कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ह यही भरततमत भाि ि अभाि का वतरोभाि ह यही सहज परवतषठा ि अिसथा ह

सतता म समपकत परकवत का जञान न होन स और अनभिमलक जञान न होन स भय और परलोभनिश समि भरममलक कायश-वयिहार सोि-वििार को बनाय रखता ह यही समपणश कलश का कारण ह

काल वकरया की अिधि ह इसी अिधि म आरोततपत वििार ि इचछा ही असहज एि वनरारोततपत वििार ि इचछा ही सहज ह

मानि इका म ही जागवत क करम म भी वनरारोपण कषमता पा जाती ह भरमिश आरोपण होता ह

जो जसा ह उसस अधिक कम अरथिा नासमझना ही आरोपण ह यही अजञान ह यही अकषमता ह यही भरम ह

सतता म समपकत जड़-ितनयातमक परकवत की सथसथवत-शीलता ि सतता सहज पणशता क समबनध म ही आरोप या वनरारोण वकरया समपनन होना पाया जाता ह

परतयक इका म रप गण सवभाि एि िमश समाहहत ह यही उसकी कायशितता ह इसी की गणना पररमाण परयोजन जञान ही परकवत क परवत वनभरमतापणश कषमता का दयोतक ह यही परमाण ह यही सहजता ह

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समपणश वकरयाय मलत रप और शबद भद म दषटवय ह

परकता क वबना इका म अवगरमता नही ह

पणशता पयशनत इका परकता उपयोवगता क ललए परितत ह

परकता ही इका म हरास ि विकास क लकषणो को परकट करती ह यही परिान उपादयता भी ह

इका म परकट होन िाल शबदादधद गण ही सापकष शततकतयाा ह गणविहीन इका नही ह इसललय

मनषय म सहज कामना का अभाि नही ह सहजता ही िमश ह यही सख शानतनत सतोष एि आननद ह यही िारणा को सपषट करता ह जो परतयकष ह

परतयक कमश-फल ही मनषय क सख का पोषक ि शोषक धसदघ हआ ह

सतय और सतयता क अनभि-करम म वयििान नही ह कयोवक अनभिकरम-वयिसथा सघन ह जागवत की कदधड़याा सघन ह इसललय-

सहजता आरोप स मकत ह आरोप ही नयनावतरक मलयाकन ह सवय की नयनावतरक मलयाकन वकरया ही असहजता ह

सवय का मलयाकन lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म होता ह

lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म न हो ऐसा मनषय इस पथवी पर नही ह

िमश का वियोग नही ह कयोवक यह िारणा ह इसका परतयकष रप ही मानिीयता एि अवतमानिीयता पणश आिरण ह जो सहजता का परिान लकषण ह इसललय -

अमानिीयता पणश आिरण ही असहज ह इसललय

परकवत अपन म समपणशता क सारथ सीततमत ह यही अिधि ह इसललय पणश म समायी ह यही पणश म समपणशता सहज सह-असतितव ह यही समपणशता का वनतय ितशमान और जञानािसथा क मानि म पणशता का परसि ह यही जागवत क ललय बाधयता ह

मनषय क बौशदघक कषतर म पायी जान िाली अनािशयक कलपनाओ का वनराकरण ही दशशन-कषमता म गणातमक पररमाजशन ह यही गणातमक ससकार-पररितशन शशकषा एि जीिन क कायशकरम का योगफल ह

दशशन-कषमता का उतकषश ही अनकषण विकषण ह यही मधयसथ वकरया की कषमता ह मधयसथ वकरया ही दषटा ह

मधयसथ वकरया का िरमोतकषश ही सम ि विषम वकरया का पणश वनयतरण ह यही कषमता कषण-कषण मधयसथ वयििान स मततकत ह

ससकार पिशक ही बौशदघक वयिसथा-परवकरया -कषमता क आनषवगक ह मनषय सहज ऐषणा एि विषयो की सीमा म परितततत ि वनितततत पिशक वयि होना पाया जाता ह जो परतयकष ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 24

आतमा (मधयसथ वकरया) क आनषवगक बौशदघक परवकरया ि वयिसथा म सतय-सकलप एि सतय-कलपनापणश मानधसकता की सथसथवत पा जाती ह जो परधसदघ कमश उपासना जञान पणश ह यही कषमता दि ि दधदवय मानिीयता को परकट करती ह यही पणश जागवत ह

ऐषणासकत बौशदघक वयिसथा म मानिीय तरथा दि मानिीय सवभाि परकट होता ह उसी क अनरप म मानधसक िातािरण की सथसथवतशीलता ह ऐसी कषमता ही सामाखजक ितना एि सतकशता स पररपणश पायी जाती ह

विषयासकत बौशदघक वयिसथा ि परवकरया म अमानिीयतापणश आिरण समपनन होता ह जो पाशविकता तरथा दानिीयता क रप म दषटवय ह इनम उसी क योगय मानधसकता पा जाती ह यही लपत-सपत कलपना का कारण ह यही अजागवत तरथा अपणश सतकशता का दयोतक ह

शरय (जागवत) खजजञास होन पर ही लपत-सपत कलपनाय पररमाखजि त होती ह फलत दानिी ि पाशिी परिततततयो स उदासीनता सथसथर होती ह सारथ ही वििकोदय होता ह

शरय खजजञासा का उदय सव-ससकार विधि-विहहत अधययन तरथा उसक अनकल िातािरण म होता ह

विधि-विहहत-अधययन वनपणता कशलता ि पादधडतय ही ह

अधययन एि िातािरण ही ससकार पररितशन क ललय समरथश वयिसथा ह खजसका गणातमक पररितशन ही आतमबोि क ललय खजजञासा ह

आतमबोि ही सतय खजजञासा का परिान लकषण ह इसललय- अििारणा ही अनगमन तरथा अनशीलन क ललय परितततत ह जो शशषटता क रप म परतयकष होती ह परगवत क ललय अििारणा अवनिायश ह जागवत क ललय अििारणा एि हरास क ललय आसततकत परधसदघ ह यही करम स वनितततत ि परितततत ह अििारणा ही सदधदविक ह सदधदविक सवय म सतयता की विििना ह जो सपषट ह मलत यही शभ एि मागलय ह अनभि की अििारणा सतय बोि क रप म अििारणा (समयक-बोि) ही सतय-सकलप ह यही परािवति त होकर शभकमश उपासना तरथा आिरण क रप म परतयकष ह इसी का पररिवति त मलय ही िीरता िीरता उदारता दया कपा और करणा क रप म परतयकष ह सतय म ही समयक-बोि होता ह असतय ही कलपना एि भास होता ह हीनता दीनता और कररता स यकत कमश अशभ होता ह सव-मलय ही परितततत और वनितततत का िशश ह इसललय असतय अलभमान तरथा दपश स मकत सतय सरलता सहजता तरथा सौजनयता स यकत कमश ि उपासना शरय कारक ह

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सतय कामना की वनरनतरता स लकषय की अििारणा होती ह जञान म ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत परतयकष ह जञान वििक सममत विजञान ही ह जो पणश ह सतय और सतयता म दढ़ता ही शरयमय जीिन ह सतयानभवत ही सबका अभीषट ह शरीर स समपनन होन िाल समि वकरयाओ का सिालन मन ही मिस दवारा करता ह मिस स सभी नादधड़याा वनयदधतरत ह शबद का मल रप मन ही ह मिस पर मन आसवादन एि सवागत भािपणश तरगो का परसारण सिालन वनयतरण करता ह उसक मल म शबद ही ह जागवत की ओर गवत हत वनयतरणातमक शबद ही मतर ह लकषय-पराततपत-योगय-करम परवकरया ही वनयतरण ह शबद म जो भाि (मलय) ह िही उसका अरथश ह सारथशक शबदो का अरथश ही जागवत की ओर गवत ह कयोवक शबद का अरथश असतितव म िि ह भाि म जो उपयोगपणश अवनिायशता ह िही उसका महतव ह उपयोग पणश अवनिायशता म जो वनचशचत दधदशा ह िही उसकी दढ़ता ह यही समयक सकलप ह समयक सकलप म जो पणशता ह िही अनभि ह जो करम स मन ितततत चितत बशदघ और आतमा म पा जान िाली सससकत मौललक वकरयाय ह भाि का तातपयश होन स ह शततकत-तरय-जागरण (इचछा-शततकत वकरया-शततकत तरथा जञान शततकत जागरण) क वबना तयाग (भरममततकत) और परम परमाखणत नही होता

मनन परवकरया म सव-मलयाकन

सव-मलयाकन मनन धयान ldquoअपराि क अभाि म दयापणश आशा का पराितशन अनयाय क अभाि म नयायपणश वििार का पराितशन आसकती क अभाि म समािान पणश इचछा का पराितशन तरथा अजञान क अभाि म जञानपणश सकलप का पराितशन होता ह| अत अपरािहीन वयिहार क ललए वयिसथा का परभाि अनयायहीन वििार क ललए अखणड समाज का परभाि तरथा अजञान रहहत बदधदध क ललए अतवनि यामन अरथिा धयान आिशयक ह खजसस ही परतयाितशन वकरया सफल ह| धयान का अरथश समझन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना और समझन-अनभि करन क

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उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

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मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

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(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

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सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

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प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

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अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

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३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

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(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 34

उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

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मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

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मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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सविमश म समपननता एि पालन करन योगय कषमता योगयता एि पातरता स पररपणश होत तक जञानाजशन करन क अरथश म अधययन रपी उपासना का अभाि नही ह

मानि क सविमश की सीमा म ही मत समपरदाय िगश वतरोहहत हो जात ह यही समरथश उपासना की परतयकष गररमा ह lsquolsquoयही मागललक हrsquorsquo साधय सािक सािन इन तीनो का उपासना म समाहहत रहना अवनिायश ह इनकी एक सतरता ही उपासना की सफलता ह अनयरथा असफलता ह परतयक सथसथवत म परापत शततकत ि सािनो का सदपयोग करना ही उसकी अवगरम जागवत ह यही उपासना ह

इनतिय कायशकलाप तरथा इनतियो का कायशकषतर ही अपरोकष जञान की सीमा ह इस वयापार म ितविि षय सीमानतिती धसशदघयाा ह इसक अवतररकत और उपलसतबधयाा इसम नही ह

विषयो की सीमा म मनषय सीततमत नही ह कयोवक उसम िार आयाम परधसदघ ह

मनषय ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत समपनन होन क ललय बाधय ह यही आिशयकता अिसर सभािना एि वयिसथा ह

सयमतापिशक ही मनषय क दवारा परतयक पररपरकषय म वकय गय वकरयाकलाप म स गररमापणश िभि परकट होता ह जस-

सतयबोि सहहत सतय बोलन का अभयास करन स भय ि अविशवास की वनितततत हषश तरथा उतसाह का उदय होता ह

विशव क परवत मलय भाि की परवतषठा स इषट और सािक क मधय विषमता का अभाि होता ह

शबद क अरथश अरथात मनतरारथश का तदरपतापिशक समरण करन क अभयास स उसका अरथश एि सवभाि गमय होता ह सभी सारथशक शबद मनतर ह

अधिक जागत म समपशण स अलभमान ि अहकार का उनमलन तरथा विदया ि सरलता का उदय होता ह ( अधिक जागत = समझान िाला परमाखणत वयततकत गर)

शरीर सिदना सयत रहन स मन की पवितरता मन की पवितरता स मनोबल का लाभ होता ह

सव-शरीर मोह नषट होन स ससार क परवत मोह दर होता ह सिशशभरपी आपत कामना पणश बशदघ स ही विशव क परवत उदारता दया कपा करणा का परसिन तरथा विशव की आिारभत सतता म जञान एि अनभि होता ह

जञान विजञान वििक रपी सवतवहीनता ही असयमता मनोदौबशलय मल परविततततयो की अपररषकवत राग मोह लोभ अवििक अहकार अलभमान दहातमिादी परितततत दरािार सघषश असह-असतितव सशकता दवष तरथा तपोहीनता ह

सयमता क वबना बौशदघक मल परिततततयो की पररषकवत बशदघबल सामाखजक मलयो की अनभवत ितनय वकरया का दशशन समािान और सयमता धसदघ नही होती ह

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उपासना क ललय िातािरण का महतव अपररहायश ह खजसम स मनषय कत िातािरण ही परिान ह जो शशकषा ि वयिसथा क रप म ही ह

मानिीयता की सीमा म वयिहार lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का आिरण ही वयततकततव ह ऐस वयततकततव क वनमाण म सवकरय योगदान ही कततशवय ह यही परषारथश ह यही परबदघता ह

आशा भद स उपासना उपासना भद स अनभि अनभि भद स अनमान अनमान भद स उपासना भद ह यही उपासना म िविधयता का कारण ह यह िविधयता सािशभौम आिरण की सीमा म विलय होन क ललय बाधय ह

मानि क ललय सहज समरथश उपासना एक अवनिायश कायशकरम ह जो अमानिीयता स मानिीयता मानिीयता स अवतमानिीयता की परवतषठा सथाततपत करती ह

सह-असतितव म अनकषण-विकषण-ितततत स सहजाितततत होती ह

कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ही अनकषण-विकषण ितततत ह

अनकषण का तातपयश परतयक कषण म लगातार सह-असतितव चिनतन वििार करम म परमाखणकता का सहज परमाण परित हो जाता ह यही सहजाितततत ह

सतता म समपकत परकवत की समपकतता का जञान ही (पणश-दशशन) कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ह यही भरततमत भाि ि अभाि का वतरोभाि ह यही सहज परवतषठा ि अिसथा ह

सतता म समपकत परकवत का जञान न होन स और अनभिमलक जञान न होन स भय और परलोभनिश समि भरममलक कायश-वयिहार सोि-वििार को बनाय रखता ह यही समपणश कलश का कारण ह

काल वकरया की अिधि ह इसी अिधि म आरोततपत वििार ि इचछा ही असहज एि वनरारोततपत वििार ि इचछा ही सहज ह

मानि इका म ही जागवत क करम म भी वनरारोपण कषमता पा जाती ह भरमिश आरोपण होता ह

जो जसा ह उसस अधिक कम अरथिा नासमझना ही आरोपण ह यही अजञान ह यही अकषमता ह यही भरम ह

सतता म समपकत जड़-ितनयातमक परकवत की सथसथवत-शीलता ि सतता सहज पणशता क समबनध म ही आरोप या वनरारोण वकरया समपनन होना पाया जाता ह

परतयक इका म रप गण सवभाि एि िमश समाहहत ह यही उसकी कायशितता ह इसी की गणना पररमाण परयोजन जञान ही परकवत क परवत वनभरमतापणश कषमता का दयोतक ह यही परमाण ह यही सहजता ह

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समपणश वकरयाय मलत रप और शबद भद म दषटवय ह

परकता क वबना इका म अवगरमता नही ह

पणशता पयशनत इका परकता उपयोवगता क ललए परितत ह

परकता ही इका म हरास ि विकास क लकषणो को परकट करती ह यही परिान उपादयता भी ह

इका म परकट होन िाल शबदादधद गण ही सापकष शततकतयाा ह गणविहीन इका नही ह इसललय

मनषय म सहज कामना का अभाि नही ह सहजता ही िमश ह यही सख शानतनत सतोष एि आननद ह यही िारणा को सपषट करता ह जो परतयकष ह

परतयक कमश-फल ही मनषय क सख का पोषक ि शोषक धसदघ हआ ह

सतय और सतयता क अनभि-करम म वयििान नही ह कयोवक अनभिकरम-वयिसथा सघन ह जागवत की कदधड़याा सघन ह इसललय-

सहजता आरोप स मकत ह आरोप ही नयनावतरक मलयाकन ह सवय की नयनावतरक मलयाकन वकरया ही असहजता ह

सवय का मलयाकन lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म होता ह

lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म न हो ऐसा मनषय इस पथवी पर नही ह

िमश का वियोग नही ह कयोवक यह िारणा ह इसका परतयकष रप ही मानिीयता एि अवतमानिीयता पणश आिरण ह जो सहजता का परिान लकषण ह इसललय -

अमानिीयता पणश आिरण ही असहज ह इसललय

परकवत अपन म समपणशता क सारथ सीततमत ह यही अिधि ह इसललय पणश म समायी ह यही पणश म समपणशता सहज सह-असतितव ह यही समपणशता का वनतय ितशमान और जञानािसथा क मानि म पणशता का परसि ह यही जागवत क ललय बाधयता ह

मनषय क बौशदघक कषतर म पायी जान िाली अनािशयक कलपनाओ का वनराकरण ही दशशन-कषमता म गणातमक पररमाजशन ह यही गणातमक ससकार-पररितशन शशकषा एि जीिन क कायशकरम का योगफल ह

दशशन-कषमता का उतकषश ही अनकषण विकषण ह यही मधयसथ वकरया की कषमता ह मधयसथ वकरया ही दषटा ह

मधयसथ वकरया का िरमोतकषश ही सम ि विषम वकरया का पणश वनयतरण ह यही कषमता कषण-कषण मधयसथ वयििान स मततकत ह

ससकार पिशक ही बौशदघक वयिसथा-परवकरया -कषमता क आनषवगक ह मनषय सहज ऐषणा एि विषयो की सीमा म परितततत ि वनितततत पिशक वयि होना पाया जाता ह जो परतयकष ह

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आतमा (मधयसथ वकरया) क आनषवगक बौशदघक परवकरया ि वयिसथा म सतय-सकलप एि सतय-कलपनापणश मानधसकता की सथसथवत पा जाती ह जो परधसदघ कमश उपासना जञान पणश ह यही कषमता दि ि दधदवय मानिीयता को परकट करती ह यही पणश जागवत ह

ऐषणासकत बौशदघक वयिसथा म मानिीय तरथा दि मानिीय सवभाि परकट होता ह उसी क अनरप म मानधसक िातािरण की सथसथवतशीलता ह ऐसी कषमता ही सामाखजक ितना एि सतकशता स पररपणश पायी जाती ह

विषयासकत बौशदघक वयिसथा ि परवकरया म अमानिीयतापणश आिरण समपनन होता ह जो पाशविकता तरथा दानिीयता क रप म दषटवय ह इनम उसी क योगय मानधसकता पा जाती ह यही लपत-सपत कलपना का कारण ह यही अजागवत तरथा अपणश सतकशता का दयोतक ह

शरय (जागवत) खजजञास होन पर ही लपत-सपत कलपनाय पररमाखजि त होती ह फलत दानिी ि पाशिी परिततततयो स उदासीनता सथसथर होती ह सारथ ही वििकोदय होता ह

शरय खजजञासा का उदय सव-ससकार विधि-विहहत अधययन तरथा उसक अनकल िातािरण म होता ह

विधि-विहहत-अधययन वनपणता कशलता ि पादधडतय ही ह

अधययन एि िातािरण ही ससकार पररितशन क ललय समरथश वयिसथा ह खजसका गणातमक पररितशन ही आतमबोि क ललय खजजञासा ह

आतमबोि ही सतय खजजञासा का परिान लकषण ह इसललय- अििारणा ही अनगमन तरथा अनशीलन क ललय परितततत ह जो शशषटता क रप म परतयकष होती ह परगवत क ललय अििारणा अवनिायश ह जागवत क ललय अििारणा एि हरास क ललय आसततकत परधसदघ ह यही करम स वनितततत ि परितततत ह अििारणा ही सदधदविक ह सदधदविक सवय म सतयता की विििना ह जो सपषट ह मलत यही शभ एि मागलय ह अनभि की अििारणा सतय बोि क रप म अििारणा (समयक-बोि) ही सतय-सकलप ह यही परािवति त होकर शभकमश उपासना तरथा आिरण क रप म परतयकष ह इसी का पररिवति त मलय ही िीरता िीरता उदारता दया कपा और करणा क रप म परतयकष ह सतय म ही समयक-बोि होता ह असतय ही कलपना एि भास होता ह हीनता दीनता और कररता स यकत कमश अशभ होता ह सव-मलय ही परितततत और वनितततत का िशश ह इसललय असतय अलभमान तरथा दपश स मकत सतय सरलता सहजता तरथा सौजनयता स यकत कमश ि उपासना शरय कारक ह

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सतय कामना की वनरनतरता स लकषय की अििारणा होती ह जञान म ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत परतयकष ह जञान वििक सममत विजञान ही ह जो पणश ह सतय और सतयता म दढ़ता ही शरयमय जीिन ह सतयानभवत ही सबका अभीषट ह शरीर स समपनन होन िाल समि वकरयाओ का सिालन मन ही मिस दवारा करता ह मिस स सभी नादधड़याा वनयदधतरत ह शबद का मल रप मन ही ह मिस पर मन आसवादन एि सवागत भािपणश तरगो का परसारण सिालन वनयतरण करता ह उसक मल म शबद ही ह जागवत की ओर गवत हत वनयतरणातमक शबद ही मतर ह लकषय-पराततपत-योगय-करम परवकरया ही वनयतरण ह शबद म जो भाि (मलय) ह िही उसका अरथश ह सारथशक शबदो का अरथश ही जागवत की ओर गवत ह कयोवक शबद का अरथश असतितव म िि ह भाि म जो उपयोगपणश अवनिायशता ह िही उसका महतव ह उपयोग पणश अवनिायशता म जो वनचशचत दधदशा ह िही उसकी दढ़ता ह यही समयक सकलप ह समयक सकलप म जो पणशता ह िही अनभि ह जो करम स मन ितततत चितत बशदघ और आतमा म पा जान िाली सससकत मौललक वकरयाय ह भाि का तातपयश होन स ह शततकत-तरय-जागरण (इचछा-शततकत वकरया-शततकत तरथा जञान शततकत जागरण) क वबना तयाग (भरममततकत) और परम परमाखणत नही होता

मनन परवकरया म सव-मलयाकन

सव-मलयाकन मनन धयान ldquoअपराि क अभाि म दयापणश आशा का पराितशन अनयाय क अभाि म नयायपणश वििार का पराितशन आसकती क अभाि म समािान पणश इचछा का पराितशन तरथा अजञान क अभाि म जञानपणश सकलप का पराितशन होता ह| अत अपरािहीन वयिहार क ललए वयिसथा का परभाि अनयायहीन वििार क ललए अखणड समाज का परभाि तरथा अजञान रहहत बदधदध क ललए अतवनि यामन अरथिा धयान आिशयक ह खजसस ही परतयाितशन वकरया सफल ह| धयान का अरथश समझन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना और समझन-अनभि करन क

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उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

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मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

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(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

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सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

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प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

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अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

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३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

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(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

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उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 22

उपासना क ललय िातािरण का महतव अपररहायश ह खजसम स मनषय कत िातािरण ही परिान ह जो शशकषा ि वयिसथा क रप म ही ह

मानिीयता की सीमा म वयिहार lsquolsquoवनयम-तरयrsquorsquo का आिरण ही वयततकततव ह ऐस वयततकततव क वनमाण म सवकरय योगदान ही कततशवय ह यही परषारथश ह यही परबदघता ह

आशा भद स उपासना उपासना भद स अनभि अनभि भद स अनमान अनमान भद स उपासना भद ह यही उपासना म िविधयता का कारण ह यह िविधयता सािशभौम आिरण की सीमा म विलय होन क ललय बाधय ह

मानि क ललय सहज समरथश उपासना एक अवनिायश कायशकरम ह जो अमानिीयता स मानिीयता मानिीयता स अवतमानिीयता की परवतषठा सथाततपत करती ह

सह-असतितव म अनकषण-विकषण-ितततत स सहजाितततत होती ह

कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ही अनकषण-विकषण ितततत ह

अनकषण का तातपयश परतयक कषण म लगातार सह-असतितव चिनतन वििार करम म परमाखणकता का सहज परमाण परित हो जाता ह यही सहजाितततत ह

सतता म समपकत परकवत की समपकतता का जञान ही (पणश-दशशन) कषण-कषण मधयसथ वयििान का वतरोभाि ह यही भरततमत भाि ि अभाि का वतरोभाि ह यही सहज परवतषठा ि अिसथा ह

सतता म समपकत परकवत का जञान न होन स और अनभिमलक जञान न होन स भय और परलोभनिश समि भरममलक कायश-वयिहार सोि-वििार को बनाय रखता ह यही समपणश कलश का कारण ह

काल वकरया की अिधि ह इसी अिधि म आरोततपत वििार ि इचछा ही असहज एि वनरारोततपत वििार ि इचछा ही सहज ह

मानि इका म ही जागवत क करम म भी वनरारोपण कषमता पा जाती ह भरमिश आरोपण होता ह

जो जसा ह उसस अधिक कम अरथिा नासमझना ही आरोपण ह यही अजञान ह यही अकषमता ह यही भरम ह

सतता म समपकत जड़-ितनयातमक परकवत की सथसथवत-शीलता ि सतता सहज पणशता क समबनध म ही आरोप या वनरारोण वकरया समपनन होना पाया जाता ह

परतयक इका म रप गण सवभाि एि िमश समाहहत ह यही उसकी कायशितता ह इसी की गणना पररमाण परयोजन जञान ही परकवत क परवत वनभरमतापणश कषमता का दयोतक ह यही परमाण ह यही सहजता ह

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समपणश वकरयाय मलत रप और शबद भद म दषटवय ह

परकता क वबना इका म अवगरमता नही ह

पणशता पयशनत इका परकता उपयोवगता क ललए परितत ह

परकता ही इका म हरास ि विकास क लकषणो को परकट करती ह यही परिान उपादयता भी ह

इका म परकट होन िाल शबदादधद गण ही सापकष शततकतयाा ह गणविहीन इका नही ह इसललय

मनषय म सहज कामना का अभाि नही ह सहजता ही िमश ह यही सख शानतनत सतोष एि आननद ह यही िारणा को सपषट करता ह जो परतयकष ह

परतयक कमश-फल ही मनषय क सख का पोषक ि शोषक धसदघ हआ ह

सतय और सतयता क अनभि-करम म वयििान नही ह कयोवक अनभिकरम-वयिसथा सघन ह जागवत की कदधड़याा सघन ह इसललय-

सहजता आरोप स मकत ह आरोप ही नयनावतरक मलयाकन ह सवय की नयनावतरक मलयाकन वकरया ही असहजता ह

सवय का मलयाकन lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म होता ह

lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म न हो ऐसा मनषय इस पथवी पर नही ह

िमश का वियोग नही ह कयोवक यह िारणा ह इसका परतयकष रप ही मानिीयता एि अवतमानिीयता पणश आिरण ह जो सहजता का परिान लकषण ह इसललय -

अमानिीयता पणश आिरण ही असहज ह इसललय

परकवत अपन म समपणशता क सारथ सीततमत ह यही अिधि ह इसललय पणश म समायी ह यही पणश म समपणशता सहज सह-असतितव ह यही समपणशता का वनतय ितशमान और जञानािसथा क मानि म पणशता का परसि ह यही जागवत क ललय बाधयता ह

मनषय क बौशदघक कषतर म पायी जान िाली अनािशयक कलपनाओ का वनराकरण ही दशशन-कषमता म गणातमक पररमाजशन ह यही गणातमक ससकार-पररितशन शशकषा एि जीिन क कायशकरम का योगफल ह

दशशन-कषमता का उतकषश ही अनकषण विकषण ह यही मधयसथ वकरया की कषमता ह मधयसथ वकरया ही दषटा ह

मधयसथ वकरया का िरमोतकषश ही सम ि विषम वकरया का पणश वनयतरण ह यही कषमता कषण-कषण मधयसथ वयििान स मततकत ह

ससकार पिशक ही बौशदघक वयिसथा-परवकरया -कषमता क आनषवगक ह मनषय सहज ऐषणा एि विषयो की सीमा म परितततत ि वनितततत पिशक वयि होना पाया जाता ह जो परतयकष ह

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आतमा (मधयसथ वकरया) क आनषवगक बौशदघक परवकरया ि वयिसथा म सतय-सकलप एि सतय-कलपनापणश मानधसकता की सथसथवत पा जाती ह जो परधसदघ कमश उपासना जञान पणश ह यही कषमता दि ि दधदवय मानिीयता को परकट करती ह यही पणश जागवत ह

ऐषणासकत बौशदघक वयिसथा म मानिीय तरथा दि मानिीय सवभाि परकट होता ह उसी क अनरप म मानधसक िातािरण की सथसथवतशीलता ह ऐसी कषमता ही सामाखजक ितना एि सतकशता स पररपणश पायी जाती ह

विषयासकत बौशदघक वयिसथा ि परवकरया म अमानिीयतापणश आिरण समपनन होता ह जो पाशविकता तरथा दानिीयता क रप म दषटवय ह इनम उसी क योगय मानधसकता पा जाती ह यही लपत-सपत कलपना का कारण ह यही अजागवत तरथा अपणश सतकशता का दयोतक ह

शरय (जागवत) खजजञास होन पर ही लपत-सपत कलपनाय पररमाखजि त होती ह फलत दानिी ि पाशिी परिततततयो स उदासीनता सथसथर होती ह सारथ ही वििकोदय होता ह

शरय खजजञासा का उदय सव-ससकार विधि-विहहत अधययन तरथा उसक अनकल िातािरण म होता ह

विधि-विहहत-अधययन वनपणता कशलता ि पादधडतय ही ह

अधययन एि िातािरण ही ससकार पररितशन क ललय समरथश वयिसथा ह खजसका गणातमक पररितशन ही आतमबोि क ललय खजजञासा ह

आतमबोि ही सतय खजजञासा का परिान लकषण ह इसललय- अििारणा ही अनगमन तरथा अनशीलन क ललय परितततत ह जो शशषटता क रप म परतयकष होती ह परगवत क ललय अििारणा अवनिायश ह जागवत क ललय अििारणा एि हरास क ललय आसततकत परधसदघ ह यही करम स वनितततत ि परितततत ह अििारणा ही सदधदविक ह सदधदविक सवय म सतयता की विििना ह जो सपषट ह मलत यही शभ एि मागलय ह अनभि की अििारणा सतय बोि क रप म अििारणा (समयक-बोि) ही सतय-सकलप ह यही परािवति त होकर शभकमश उपासना तरथा आिरण क रप म परतयकष ह इसी का पररिवति त मलय ही िीरता िीरता उदारता दया कपा और करणा क रप म परतयकष ह सतय म ही समयक-बोि होता ह असतय ही कलपना एि भास होता ह हीनता दीनता और कररता स यकत कमश अशभ होता ह सव-मलय ही परितततत और वनितततत का िशश ह इसललय असतय अलभमान तरथा दपश स मकत सतय सरलता सहजता तरथा सौजनयता स यकत कमश ि उपासना शरय कारक ह

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सतय कामना की वनरनतरता स लकषय की अििारणा होती ह जञान म ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत परतयकष ह जञान वििक सममत विजञान ही ह जो पणश ह सतय और सतयता म दढ़ता ही शरयमय जीिन ह सतयानभवत ही सबका अभीषट ह शरीर स समपनन होन िाल समि वकरयाओ का सिालन मन ही मिस दवारा करता ह मिस स सभी नादधड़याा वनयदधतरत ह शबद का मल रप मन ही ह मिस पर मन आसवादन एि सवागत भािपणश तरगो का परसारण सिालन वनयतरण करता ह उसक मल म शबद ही ह जागवत की ओर गवत हत वनयतरणातमक शबद ही मतर ह लकषय-पराततपत-योगय-करम परवकरया ही वनयतरण ह शबद म जो भाि (मलय) ह िही उसका अरथश ह सारथशक शबदो का अरथश ही जागवत की ओर गवत ह कयोवक शबद का अरथश असतितव म िि ह भाि म जो उपयोगपणश अवनिायशता ह िही उसका महतव ह उपयोग पणश अवनिायशता म जो वनचशचत दधदशा ह िही उसकी दढ़ता ह यही समयक सकलप ह समयक सकलप म जो पणशता ह िही अनभि ह जो करम स मन ितततत चितत बशदघ और आतमा म पा जान िाली सससकत मौललक वकरयाय ह भाि का तातपयश होन स ह शततकत-तरय-जागरण (इचछा-शततकत वकरया-शततकत तरथा जञान शततकत जागरण) क वबना तयाग (भरममततकत) और परम परमाखणत नही होता

मनन परवकरया म सव-मलयाकन

सव-मलयाकन मनन धयान ldquoअपराि क अभाि म दयापणश आशा का पराितशन अनयाय क अभाि म नयायपणश वििार का पराितशन आसकती क अभाि म समािान पणश इचछा का पराितशन तरथा अजञान क अभाि म जञानपणश सकलप का पराितशन होता ह| अत अपरािहीन वयिहार क ललए वयिसथा का परभाि अनयायहीन वििार क ललए अखणड समाज का परभाि तरथा अजञान रहहत बदधदध क ललए अतवनि यामन अरथिा धयान आिशयक ह खजसस ही परतयाितशन वकरया सफल ह| धयान का अरथश समझन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना और समझन-अनभि करन क

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उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

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मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

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(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

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सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

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प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 31

अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

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३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

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(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

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उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

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(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 23

समपणश वकरयाय मलत रप और शबद भद म दषटवय ह

परकता क वबना इका म अवगरमता नही ह

पणशता पयशनत इका परकता उपयोवगता क ललए परितत ह

परकता ही इका म हरास ि विकास क लकषणो को परकट करती ह यही परिान उपादयता भी ह

इका म परकट होन िाल शबदादधद गण ही सापकष शततकतयाा ह गणविहीन इका नही ह इसललय

मनषय म सहज कामना का अभाि नही ह सहजता ही िमश ह यही सख शानतनत सतोष एि आननद ह यही िारणा को सपषट करता ह जो परतयकष ह

परतयक कमश-फल ही मनषय क सख का पोषक ि शोषक धसदघ हआ ह

सतय और सतयता क अनभि-करम म वयििान नही ह कयोवक अनभिकरम-वयिसथा सघन ह जागवत की कदधड़याा सघन ह इसललय-

सहजता आरोप स मकत ह आरोप ही नयनावतरक मलयाकन ह सवय की नयनावतरक मलयाकन वकरया ही असहजता ह

सवय का मलयाकन lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म होता ह

lsquolsquoता-तरयrsquorsquo की सीमा म न हो ऐसा मनषय इस पथवी पर नही ह

िमश का वियोग नही ह कयोवक यह िारणा ह इसका परतयकष रप ही मानिीयता एि अवतमानिीयता पणश आिरण ह जो सहजता का परिान लकषण ह इसललय -

अमानिीयता पणश आिरण ही असहज ह इसललय

परकवत अपन म समपणशता क सारथ सीततमत ह यही अिधि ह इसललय पणश म समायी ह यही पणश म समपणशता सहज सह-असतितव ह यही समपणशता का वनतय ितशमान और जञानािसथा क मानि म पणशता का परसि ह यही जागवत क ललय बाधयता ह

मनषय क बौशदघक कषतर म पायी जान िाली अनािशयक कलपनाओ का वनराकरण ही दशशन-कषमता म गणातमक पररमाजशन ह यही गणातमक ससकार-पररितशन शशकषा एि जीिन क कायशकरम का योगफल ह

दशशन-कषमता का उतकषश ही अनकषण विकषण ह यही मधयसथ वकरया की कषमता ह मधयसथ वकरया ही दषटा ह

मधयसथ वकरया का िरमोतकषश ही सम ि विषम वकरया का पणश वनयतरण ह यही कषमता कषण-कषण मधयसथ वयििान स मततकत ह

ससकार पिशक ही बौशदघक वयिसथा-परवकरया -कषमता क आनषवगक ह मनषय सहज ऐषणा एि विषयो की सीमा म परितततत ि वनितततत पिशक वयि होना पाया जाता ह जो परतयकष ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 24

आतमा (मधयसथ वकरया) क आनषवगक बौशदघक परवकरया ि वयिसथा म सतय-सकलप एि सतय-कलपनापणश मानधसकता की सथसथवत पा जाती ह जो परधसदघ कमश उपासना जञान पणश ह यही कषमता दि ि दधदवय मानिीयता को परकट करती ह यही पणश जागवत ह

ऐषणासकत बौशदघक वयिसथा म मानिीय तरथा दि मानिीय सवभाि परकट होता ह उसी क अनरप म मानधसक िातािरण की सथसथवतशीलता ह ऐसी कषमता ही सामाखजक ितना एि सतकशता स पररपणश पायी जाती ह

विषयासकत बौशदघक वयिसथा ि परवकरया म अमानिीयतापणश आिरण समपनन होता ह जो पाशविकता तरथा दानिीयता क रप म दषटवय ह इनम उसी क योगय मानधसकता पा जाती ह यही लपत-सपत कलपना का कारण ह यही अजागवत तरथा अपणश सतकशता का दयोतक ह

शरय (जागवत) खजजञास होन पर ही लपत-सपत कलपनाय पररमाखजि त होती ह फलत दानिी ि पाशिी परिततततयो स उदासीनता सथसथर होती ह सारथ ही वििकोदय होता ह

शरय खजजञासा का उदय सव-ससकार विधि-विहहत अधययन तरथा उसक अनकल िातािरण म होता ह

विधि-विहहत-अधययन वनपणता कशलता ि पादधडतय ही ह

अधययन एि िातािरण ही ससकार पररितशन क ललय समरथश वयिसथा ह खजसका गणातमक पररितशन ही आतमबोि क ललय खजजञासा ह

आतमबोि ही सतय खजजञासा का परिान लकषण ह इसललय- अििारणा ही अनगमन तरथा अनशीलन क ललय परितततत ह जो शशषटता क रप म परतयकष होती ह परगवत क ललय अििारणा अवनिायश ह जागवत क ललय अििारणा एि हरास क ललय आसततकत परधसदघ ह यही करम स वनितततत ि परितततत ह अििारणा ही सदधदविक ह सदधदविक सवय म सतयता की विििना ह जो सपषट ह मलत यही शभ एि मागलय ह अनभि की अििारणा सतय बोि क रप म अििारणा (समयक-बोि) ही सतय-सकलप ह यही परािवति त होकर शभकमश उपासना तरथा आिरण क रप म परतयकष ह इसी का पररिवति त मलय ही िीरता िीरता उदारता दया कपा और करणा क रप म परतयकष ह सतय म ही समयक-बोि होता ह असतय ही कलपना एि भास होता ह हीनता दीनता और कररता स यकत कमश अशभ होता ह सव-मलय ही परितततत और वनितततत का िशश ह इसललय असतय अलभमान तरथा दपश स मकत सतय सरलता सहजता तरथा सौजनयता स यकत कमश ि उपासना शरय कारक ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 25

सतय कामना की वनरनतरता स लकषय की अििारणा होती ह जञान म ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत परतयकष ह जञान वििक सममत विजञान ही ह जो पणश ह सतय और सतयता म दढ़ता ही शरयमय जीिन ह सतयानभवत ही सबका अभीषट ह शरीर स समपनन होन िाल समि वकरयाओ का सिालन मन ही मिस दवारा करता ह मिस स सभी नादधड़याा वनयदधतरत ह शबद का मल रप मन ही ह मिस पर मन आसवादन एि सवागत भािपणश तरगो का परसारण सिालन वनयतरण करता ह उसक मल म शबद ही ह जागवत की ओर गवत हत वनयतरणातमक शबद ही मतर ह लकषय-पराततपत-योगय-करम परवकरया ही वनयतरण ह शबद म जो भाि (मलय) ह िही उसका अरथश ह सारथशक शबदो का अरथश ही जागवत की ओर गवत ह कयोवक शबद का अरथश असतितव म िि ह भाि म जो उपयोगपणश अवनिायशता ह िही उसका महतव ह उपयोग पणश अवनिायशता म जो वनचशचत दधदशा ह िही उसकी दढ़ता ह यही समयक सकलप ह समयक सकलप म जो पणशता ह िही अनभि ह जो करम स मन ितततत चितत बशदघ और आतमा म पा जान िाली सससकत मौललक वकरयाय ह भाि का तातपयश होन स ह शततकत-तरय-जागरण (इचछा-शततकत वकरया-शततकत तरथा जञान शततकत जागरण) क वबना तयाग (भरममततकत) और परम परमाखणत नही होता

मनन परवकरया म सव-मलयाकन

सव-मलयाकन मनन धयान ldquoअपराि क अभाि म दयापणश आशा का पराितशन अनयाय क अभाि म नयायपणश वििार का पराितशन आसकती क अभाि म समािान पणश इचछा का पराितशन तरथा अजञान क अभाि म जञानपणश सकलप का पराितशन होता ह| अत अपरािहीन वयिहार क ललए वयिसथा का परभाि अनयायहीन वििार क ललए अखणड समाज का परभाि तरथा अजञान रहहत बदधदध क ललए अतवनि यामन अरथिा धयान आिशयक ह खजसस ही परतयाितशन वकरया सफल ह| धयान का अरथश समझन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना और समझन-अनभि करन क

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 26

उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

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मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

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(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

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सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

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प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

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अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

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३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

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(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

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उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

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मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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आतमा (मधयसथ वकरया) क आनषवगक बौशदघक परवकरया ि वयिसथा म सतय-सकलप एि सतय-कलपनापणश मानधसकता की सथसथवत पा जाती ह जो परधसदघ कमश उपासना जञान पणश ह यही कषमता दि ि दधदवय मानिीयता को परकट करती ह यही पणश जागवत ह

ऐषणासकत बौशदघक वयिसथा म मानिीय तरथा दि मानिीय सवभाि परकट होता ह उसी क अनरप म मानधसक िातािरण की सथसथवतशीलता ह ऐसी कषमता ही सामाखजक ितना एि सतकशता स पररपणश पायी जाती ह

विषयासकत बौशदघक वयिसथा ि परवकरया म अमानिीयतापणश आिरण समपनन होता ह जो पाशविकता तरथा दानिीयता क रप म दषटवय ह इनम उसी क योगय मानधसकता पा जाती ह यही लपत-सपत कलपना का कारण ह यही अजागवत तरथा अपणश सतकशता का दयोतक ह

शरय (जागवत) खजजञास होन पर ही लपत-सपत कलपनाय पररमाखजि त होती ह फलत दानिी ि पाशिी परिततततयो स उदासीनता सथसथर होती ह सारथ ही वििकोदय होता ह

शरय खजजञासा का उदय सव-ससकार विधि-विहहत अधययन तरथा उसक अनकल िातािरण म होता ह

विधि-विहहत-अधययन वनपणता कशलता ि पादधडतय ही ह

अधययन एि िातािरण ही ससकार पररितशन क ललय समरथश वयिसथा ह खजसका गणातमक पररितशन ही आतमबोि क ललय खजजञासा ह

आतमबोि ही सतय खजजञासा का परिान लकषण ह इसललय- अििारणा ही अनगमन तरथा अनशीलन क ललय परितततत ह जो शशषटता क रप म परतयकष होती ह परगवत क ललय अििारणा अवनिायश ह जागवत क ललय अििारणा एि हरास क ललय आसततकत परधसदघ ह यही करम स वनितततत ि परितततत ह अििारणा ही सदधदविक ह सदधदविक सवय म सतयता की विििना ह जो सपषट ह मलत यही शभ एि मागलय ह अनभि की अििारणा सतय बोि क रप म अििारणा (समयक-बोि) ही सतय-सकलप ह यही परािवति त होकर शभकमश उपासना तरथा आिरण क रप म परतयकष ह इसी का पररिवति त मलय ही िीरता िीरता उदारता दया कपा और करणा क रप म परतयकष ह सतय म ही समयक-बोि होता ह असतय ही कलपना एि भास होता ह हीनता दीनता और कररता स यकत कमश अशभ होता ह सव-मलय ही परितततत और वनितततत का िशश ह इसललय असतय अलभमान तरथा दपश स मकत सतय सरलता सहजता तरथा सौजनयता स यकत कमश ि उपासना शरय कारक ह

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सतय कामना की वनरनतरता स लकषय की अििारणा होती ह जञान म ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत परतयकष ह जञान वििक सममत विजञान ही ह जो पणश ह सतय और सतयता म दढ़ता ही शरयमय जीिन ह सतयानभवत ही सबका अभीषट ह शरीर स समपनन होन िाल समि वकरयाओ का सिालन मन ही मिस दवारा करता ह मिस स सभी नादधड़याा वनयदधतरत ह शबद का मल रप मन ही ह मिस पर मन आसवादन एि सवागत भािपणश तरगो का परसारण सिालन वनयतरण करता ह उसक मल म शबद ही ह जागवत की ओर गवत हत वनयतरणातमक शबद ही मतर ह लकषय-पराततपत-योगय-करम परवकरया ही वनयतरण ह शबद म जो भाि (मलय) ह िही उसका अरथश ह सारथशक शबदो का अरथश ही जागवत की ओर गवत ह कयोवक शबद का अरथश असतितव म िि ह भाि म जो उपयोगपणश अवनिायशता ह िही उसका महतव ह उपयोग पणश अवनिायशता म जो वनचशचत दधदशा ह िही उसकी दढ़ता ह यही समयक सकलप ह समयक सकलप म जो पणशता ह िही अनभि ह जो करम स मन ितततत चितत बशदघ और आतमा म पा जान िाली सससकत मौललक वकरयाय ह भाि का तातपयश होन स ह शततकत-तरय-जागरण (इचछा-शततकत वकरया-शततकत तरथा जञान शततकत जागरण) क वबना तयाग (भरममततकत) और परम परमाखणत नही होता

मनन परवकरया म सव-मलयाकन

सव-मलयाकन मनन धयान ldquoअपराि क अभाि म दयापणश आशा का पराितशन अनयाय क अभाि म नयायपणश वििार का पराितशन आसकती क अभाि म समािान पणश इचछा का पराितशन तरथा अजञान क अभाि म जञानपणश सकलप का पराितशन होता ह| अत अपरािहीन वयिहार क ललए वयिसथा का परभाि अनयायहीन वििार क ललए अखणड समाज का परभाि तरथा अजञान रहहत बदधदध क ललए अतवनि यामन अरथिा धयान आिशयक ह खजसस ही परतयाितशन वकरया सफल ह| धयान का अरथश समझन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना और समझन-अनभि करन क

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उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

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मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

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(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

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सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

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प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

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अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 32

३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 33

(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 34

उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

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तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

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(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

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मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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सतय कामना की वनरनतरता स लकषय की अििारणा होती ह जञान म ही उतपादन वयिहार वििार एि अनभवत परतयकष ह जञान वििक सममत विजञान ही ह जो पणश ह सतय और सतयता म दढ़ता ही शरयमय जीिन ह सतयानभवत ही सबका अभीषट ह शरीर स समपनन होन िाल समि वकरयाओ का सिालन मन ही मिस दवारा करता ह मिस स सभी नादधड़याा वनयदधतरत ह शबद का मल रप मन ही ह मिस पर मन आसवादन एि सवागत भािपणश तरगो का परसारण सिालन वनयतरण करता ह उसक मल म शबद ही ह जागवत की ओर गवत हत वनयतरणातमक शबद ही मतर ह लकषय-पराततपत-योगय-करम परवकरया ही वनयतरण ह शबद म जो भाि (मलय) ह िही उसका अरथश ह सारथशक शबदो का अरथश ही जागवत की ओर गवत ह कयोवक शबद का अरथश असतितव म िि ह भाि म जो उपयोगपणश अवनिायशता ह िही उसका महतव ह उपयोग पणश अवनिायशता म जो वनचशचत दधदशा ह िही उसकी दढ़ता ह यही समयक सकलप ह समयक सकलप म जो पणशता ह िही अनभि ह जो करम स मन ितततत चितत बशदघ और आतमा म पा जान िाली सससकत मौललक वकरयाय ह भाि का तातपयश होन स ह शततकत-तरय-जागरण (इचछा-शततकत वकरया-शततकत तरथा जञान शततकत जागरण) क वबना तयाग (भरममततकत) और परम परमाखणत नही होता

मनन परवकरया म सव-मलयाकन

सव-मलयाकन मनन धयान ldquoअपराि क अभाि म दयापणश आशा का पराितशन अनयाय क अभाि म नयायपणश वििार का पराितशन आसकती क अभाि म समािान पणश इचछा का पराितशन तरथा अजञान क अभाि म जञानपणश सकलप का पराितशन होता ह| अत अपरािहीन वयिहार क ललए वयिसथा का परभाि अनयायहीन वििार क ललए अखणड समाज का परभाि तरथा अजञान रहहत बदधदध क ललए अतवनि यामन अरथिा धयान आिशयक ह खजसस ही परतयाितशन वकरया सफल ह| धयान का अरथश समझन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना और समझन-अनभि करन क

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उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

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मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

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(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

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सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 30

प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 31

अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

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३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

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(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

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उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

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(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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उपरानत परमाखणत करन क ललए मन ितततत चितत बदधदध को क दधदरत करना | अरथश बोि होन क ललए तरथा अरथश परमाखणत करन क ललए धयान होना आिशयक ह| यही धयय ह| सिशमानि धयाता ह| अत यह वनषकषश वनकलता ह की मानवीयातापणश वयिसथा सामाखजक आिरण अधययन और ससकार क सारथ ही अतवनि यामन आिशयक ह खजसस िरम विकास (जागरवत) की उपलबधी सभि ह|rdquo

- मानि वयिहार दशशन स २००९ प २२० २२१ अपरािहीन वयिहार lsquoसामाखजक वनयमrsquo अनसार जीना |

अभयास दशशन स-दधदवतीय २०१०

(प २)

मल-परिततततयो म पररमाजशन पिशक कशलता एि पादधडतयपणश वयिहार ही अभयास का परिान लकषण ह| [अभयास-अधययन करम म इस आिार पर सवय म करमश गणातमक पररितशन का आकलन हो सकता ह]

(प १३)

ldquoसवय क ललए जो घटनाए िदना क कारण ह ि ही दसरो क ललए भी ह ऐस सवीकवत कषमता ही सिदना ह| इसक अभाि म मानि जीिन म वनहहत विशष मलयो का परयोजन धसदध होना सभि नही ह| इसी कारणिश मानि सामाखजक मलयो क आिरण अनसरण एि अनशासन क ललए परररत हrdquo

अभयास दशशन सस २०१२ प ६३

सपणश सगराम-सामगरी सािन-ततर वयिसथा मातर अपवयय म स क ललए ही ह| जबकी परतयक मानि परतयक िर म अरथश का सदपयोग तरथा सरकषा िाहता ह| यही िाहन और करन क बीि म जो दरी ह िही अतदवद आतम विशवास का अभाि तरथा सवय म सवय क विशवास म साशकता और भय का कारण ह यही पीड़ा ह| अतदवदव स मकती क ललए परतयक मानि को परतयक िर म अरथश का सदपयोग एि सरकषा हत मानिीयता म ldquoवनयमततरयrdquo का अनगमन-अनसरण एि अनशीलन करना ही पड़गा|

अभयास दशशन सस २०१२ प ६६

शरीर का जनम और मतय घटना ह| इस तथय को जानन िाला भी ितनय इका ही ह| मानि म शरम का मल रप भी ितनय-वकरया ही ह| इस ितनय-वकरया म जो सिदनशील एि सगयानशील कषमता ह िही सथाततपत

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मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

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(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 29

सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 30

प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 31

अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 32

३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

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(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 34

उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

httpbitlymd-notes

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अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 27

मलयो का िहन शशषट मलयो का परकटन और उतपादधदत िि मलयो का मलयाकन करता ह और परमाखणत होना पाया जाता ह| सामाखजक जीिन म उतपादन उपयोग सदपयोग एि विवनमय अविभाजय अग ह| यही जीिन म एकसतरता तारतमयता अननयता और एकातमकता को सथाततपत करन क ललए परररत करता ह| यही सथापना शित वयिसथा ह|

प १६२

परमानभती योगय कषमता सपनन होन क ललए शचिता एि गणातमक पररितशन म अनशीलन अवनिायश सािना ह| समयकता की ओर गतीशीला अरथात गणातमक पररितशन हत सवनचशचत आिरण वयिहार एि अरथश का सदपयोग ही सािना और अभयास ह| शारीररक सवसथता एि शशषटता क योगफल ही शचिता ह|

कमश दशशन ndash सस २००४

प १० ११ १३

समपणश कमो का फल िार रपो म जञातवय हमोकष िमश काम एि अरथश| इचछा क वबना कमश नही ह|

मानि म इचछाए तीवर कारण एि सकषम भद स जञातवय ह|

तीवर इचछा वकरया क रप म अितररत होती ह| तीवर इचछाए ndash खजसक वबना जीना नही होता

कारण इचछाए वकरया क रप म अलप सभावय ह| कारण इचछाए ndash योग सयोग घटनािश जो पररणाए होती ह यह सब कारण इचछाए ह

सकषम इचछाए वकरया क रप म अतयालप सभावय ह| सकषम इचछाए ndash मानि म सतय को िि ह िमश नयाय को िि ह खजसको परमाखणत करन क ललए को सपषट वििार नही रहता ह |

समि इचछाओ क सात भद ह -

१) मोकष क ललए अरथश ndash (उततमोततम)

२) िमश क ललए अरथश ndash (मधयमोततम)

३) काम क ललए अरथश ndash (उततम)

४) अरथश क ललए अरथश ndash (माधयम)

५) अरथश क ललए काम ndash (अिम-माधयम)

६) अरथश क ललए िमश ndash (अिम)

७) अरथश क ललए मोकष ndash (अिमािम)

य करम स सात उततमोततम मधयमोततम उततम माधयम अिम-माधयम अिम ि अिमािम ह |

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(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 29

सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 30

प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 31

अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 32

३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

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(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 34

उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

httpbitlymd-notes

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अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 28

(अरथश = तन मन िन रपी अरथश | अरथश ही सािन ह| इनम स अतरग सािन = आशा वििार इचछा सकलप और अनभि परमाण | बहहरग सािन = तन िन)

प १४ १५

विषयािशण परितततत सवारथश सीमा म एषणानवषण परारथश सीमा म ि सतयानवषण परमारथश रप म वकरयाशील ह| इसीललए

सवारथशपणश वयिहार अिम और असामाखजक (४ विषयो म जीना)

परारथश पणश वयिहार मधयमोततम और सामाखजक (३ एषणा म जीना )

परमारथश पणश वयिहार उततम सामाखजक एि सवततर पाया जाता ह (एषणा मकत मातर उपकार)

परमारथश पणश वयिहार ही सिशशभ मानधसकता ह

प ३२ ३३

मानि म आिरण का िर सात परकार स गणय ह| १) पराण २) जीि ३) काम ४) लाभ ५) कला ६) परदशशन ७) सहज | इनम स पराण जीि काम लाभ क ललए आिरण पशमनि और राकषसमानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

समदधी कला और बोि क ललए आिरण मानिीयतापणश मानि म पाया जाता ह|

बोि एि सहजता क ललए आिरण दधदवय मानिीयतापणश मानि म परतयकष ह जो उनका सवभाि ह|

पतनोमखी जीिन की शखला म अपराि क तीन कारण दषटवय ह - १) अभाि २) अतयाषा एि ३) अजञान| इसक सारथ ही राग दवष असतय अलभमान भय आलसय रोग और असफलता भी ह| इसका वनराकरण करम स अभाि को उतपादन एि अभयास स अतयाशा को वििक स अजञान को जञान स राग को विराग स दवष को सनह स असतय को सतय स अलभमान को सरलता स भय को अभय स आलसय को िषटा स असफलता को पराकरम ि पनपरयोग स रोग को औषिी आहार एि विहार स समािान एि पररहारकरन की वयिसथा ह जो मानि क ललए एक अिसर ह| यही आिशयकता ह|

प १७ १८

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 29

सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 30

प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 31

अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

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३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

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(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

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उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 29

सामाखजक सतलन सविन सवनारीसवपरष एि दया पणश कायश वयिहार परपरा स ह| इसक विपरीत म असतलन क ललए परनारी परपरष पर-िन एि पर-पीड़ा ही ह जो परतयकष ह

वयततकत क वििार-सतलन क मल म आिशयकीय एि अनािाशयकीय मल परिततततया की सवकरयता पा जाती ह | मानि क आिशयकीय मल परितततत क मल म ससकार समझदारी ही रहता ह| अनािशयकता क मल म भरम वििशताए दषटवय ह|

आिशयकीय मल परिततततया पाि अनािाशयकीय मल परिततततया भी पाि ह|

आिशयकीय मल परिततततया करम स असगरह (समदधी) सनह विदया सरलता एि अभय (ितशमान म विशवास) क रप म अनािाशयकीय मल परिततततया सवििा-सगरह अविदया अलभमान एि भय क रप म परतयकष ह|

पराकवतक सतलन सामाखजक सतलन एि बौदधदधक सतलन योगय वनयम ही आिशयकीय वनयम ह| यही ldquoवनयम-तरयrdquo ह| ( पराकवतक वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम अभयास-अधययन करम म इनका अनकरण अनसरण इचछा-वििार रप म सवीकवत ऐसा परितततत होना पशययात वनयम बोि)

आिशयकीय वनयमो का जञान ि अनसरण वनणशय उसक सदपयोग स सदपयोग का वनणशय विकास एि जागवत स विकास एि जागवत का वनणशय बौदधदधक सामाखजक एि पराकवतक वनयमो क समझ ि पालन स सपषट होता ह| मानि क ललए अपन विकास एि जागवत करम शरखला को अकषण बनाए रखन क ललए आिशयकीय वनयमो का अनसरण एक अवनिायश परवकरया ह| यही मानि-जीिन जागवत करम जागवत जीिन क कायशकरम का परतयकष रप भी ह|

प -२०

सामाखजक वनयमो का पालन स ही सिासथ सािशभौम ससकवत और सभयता का उदय होता ह| फलत समाज की अखडता एि उसकी अकषणणता धसदध होती ह|

प-२९

वयिहाररक मलयो का वनिारण विििना पिशक ही होता ह| विििनाए आतमा (जीिन) क अमरतव शरीर क नशिरतव एि वयिहार क वनयम क अनसार होता ह| वयिहाररक मलय मानिीयता क अरथश म सारथशक होत ह | इसक आिार पर वनयम-तरय (बौदधदधक सामाखजक पराकवतक) धसदध ह ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 30

प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 31

अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 32

३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 33

(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 34

उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

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(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

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मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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प ३५ ३६

सािशभौततमक कामनारप कायशकरम म रत होन स ह सभी सथसथवतयो म दोष दर होत ह | ( सतिचरथयाा ५ = वयततकत पररिार समाज राषटर अतरराषटर)

1 पर-िन पर-नारीपर-परष एि पर-पीड़ा ही वयिहाररक सामाखजक एि भौवतक उननती तरथा जागती म बािक ह|

2 राग दवष अविदया एि अलभमान बौदधदधक जागती म अिरोिक धसदध हए ह|

3 भय आधयातमतमक अनभती (सह-असतितवानभती) योगय कषमता क विकास म अिरोिक ह|

4 पराकवतक विभि क अपवयय स ऋत ndashअसतलन एि उसस कलशोदय होता ह जो परतयकष ह|

सव-िन सव-नारीसव-परष एि दयापणश कायश वयिहार तरथा आिरण स सामाखजक सख एि सतलन का असगरह (समदधी) सनह विदया एि सरलता स बौदधदधक सख का अभयता स आधयातमतमक आनद का अनभि ह| यही भौवतक बौदधदधक एि आधयातमतमकता का उतपादन वििार एि अनभती का वयकती का वयकती-पररिार-समाज-राषटर एि अनतराषटर की एक सतरता सतलन समािान एि समदधी ह| यही सािशभौम समय कामना ह|

प ४६

दशचररतरपणश जीिन का भय-तरि होना वििशता ह जो सव-पर पीड़ा का परिान कारण ह| यही मानि म वनहहत अमानिीयता का भय ह| यही असामाखजकता एि असहासतितव का मल कारण ह|

मानि-कल क सारथ सनह करन की कषमता ही विशवास एि सतोष की वनरतरता ह| यही अवगरम विकास क ललए उतसाह एि परितशन भी ह| विशवासविहीन सबि सफल नही ह| सबि रहहत सतिचरथ म कमश धसदध नही ह| परतयक सामाखजक मलय का वनिाह विशवासपिशक ही सफल हआ ह|

प ३८

अभाि भाि और वतरोभाि की सवीकार-कषमता ही सिदना ह| यह करम स अभाि म िदना भाि म सिदना एि वतरोभाि म समबोिना ह| यही समयक बोि ह| यही अनभि का पिश लकषण ह|

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अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

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३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

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(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 34

उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 31

अभाि का भाि क ललए परयोग और उतपादन भाि की पणशता क ललए आिरण एि वयिहार भाि क वतरोभाि क ललए अभयास परधसदध ह|

प-३० ३१

मानिीयतापणश आिरण ही अििारणा का परमाण ह| अििारणा ही परितततत ि वनितततत म परमाखणत होता ह| परितततत वनितततत ही सिग ि वििक सिग ि वििक ही अनगमन ि अनसरण अनगमन ि अनसरण ही उदघाटन उदघाटन ही परकटन परकटन ही परतयकष परतयकष ही परमाण परमाण ही अनभती अनभती ही कषमता योगयता और पातरता कषमता योगयता ि पातरता ही सथसथवतितता सथसथवतितता ही विभि विभि ही िभि और िभि ही आिरण ह|

ििाररक कषमता क पररमाजशन हत सतमागश एि योगाभयास (अधययन क ललए अभयास) परधसदध ह| यही ससकार म गणातमक पररितशन भी ह| पनह यही ििाररक कषमता ह| यह करम मानिीयता तरथा अवतमानवीयातापणश आिरणो स सपनन होत तक पररपणश वयिसथा ह| यह ldquoवनयम-तरयrdquo क पालन अनसरण एि अनशीलन पिशक सफल अरथिा असफल ह|

lsquoसिादrsquo पिक स उपयोगी सकलन

(कछ ही िाकयो को ललया गया ह पर सनदभश क ललए पिक दख)

समझन की परवकरया

सिाद भाग-२ ()

प ९

शबद का अरथश िि ह| िि बोि जब हो जाता ह तब हमारा अधययन हआ| यदी िि बोि नही हआ ह तो शबद तक ही हम रह जायग|

ldquoम समझ सकता हा ओर जी कर परमाखणत कर सकता हाrdquo जब तक यह सवय म भरोसा नही बनता ह तब तक हम शबद तक भी नही पहाि पायग| आदमी ही एकमातर िि ह जो समझ सकता ह परमाखणत हो सकता ह| इस बात को हम जब तक उभरग नही तब तक शबद भी आदमी ढग स सनगा ऐसा भरोसा कीया नही जा सकता|

इस तरह अधययन क तीन िरण ह

१) परसपरता म विशवास (समझान िाल वयकती गर क सारथ)

२) शबद का शरिण (ललखा हआ कहा हआ भाषा स)

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३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

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(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

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उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

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(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

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मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

httpbitlymd-notes

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अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 32

३) शबद स इवगत िसति का बोि (इसक मलपिश म मनन परवकरया समाया ह)

इन तीन िरणो म अधययन सारथशक होता ह| इनम स वकसी भी िरण को छोड़ा नही जा सकता|

िि बोि (अििारणा) होन क बाद ही अनभि सहज परमाखणत होन क ललए परितततत उसक ललए सकलप सकलप क बाद वयिहार म परमाणीकरण होता ह|

इस तरह मन अधययन क तीन िरणो को दखा ह|

(आिरी आशरम १९९८)

प १३ १४

हर िि को सह असतितव म ldquoजीनrdquo क अरथश म समझना होगा और बीि म ldquoअनभिrdquo नाम का एक कषण होता ही ह| जीन क अरथश म सनन पर अनभि होता ही ह ( इसक मल म मनन-अििारणा समाया ह) | तकश की आिशयकता अब कम हो गयी जीन क अरथश म हर बात को अब समझग| सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

समझन को लकर कया हम समझ गए ह और कया समझना अभी शष ह इस पर िला जाय| समझन क मदद पाि ही ह

१) सह असतितव कयो ह कसा ह को समझना

२) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

३) सह असतितव म विकासकरम कयो ह कसा ह को समझना

४) सह असतितव म जागवत करम कयो ह कसा ह को समझना

५) सह असतितव म जागवत कयो ह कसा ह को समझना

रिना करम म विकास की सिोपरी सतिचरथ म ह मानि शरीर| परमाण म विकास की सिोपरी सथसथती ही जीिन| मानि शरीर क घदधटत होन क ललए पीछ क सभी रिनाय ह |

असतितव म परकटन करम म िार अिसथाओ का परगटन हआ| हर अिसथा की परपरा बनन की वििी रही| इसी करम म मानि का परगटन िरती पर हआ| ldquoमानि शरीर एक परपरा क सवरप म बन रहन क ललए िरती पर परगट हआ|rdquo यदी यह बात आपको मल रप म समझ आता ह तो आपम ldquoजीन की इचछाrdquo बन जात ह | ldquoमझ जीना िाहहएrdquo यह आप म वनशचयन हो जाता ह| ततफर मानि परपरा क ldquoजीनrdquo क जो ldquoसमझrdquo की आिशयकता ह उसका ldquoसवीकारrdquo करन क ललए आप परयास रत होत हो|

सवीकारना समझना और जीना अलग अलग नही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 33

(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 34

उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

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मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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(जनिरी २००७ अमरकटक)

प १७

शबद क दवारा ldquoमानयताrdquo क रप म जो हम सवीकार उसका सवय म पररशीलन (वनरीकषण परीकषण) [ मनन परवकरया दवारा] होन पर चितत ततमएा साकषातकार होता ह| साकषातकार क फलन म बोि बोि क फलन म अनभि अनभि क पहला म अनबहव परमाण बोि खजसक फलन म चिितन पिशक तलन पिशक परमाखणत करन योगय हो जात ह |

सह असतितव का परिाि समरण म आन क बाद इसको समझना और परमाखणत करना शष रहता ह| परमाण क सारथ ही समझ परा होता ह| अनभि क वबना समझ परा होता नही| अनभि क वबना परमाण नही ह|

चितत क पहल शबद ह| चितत क बाद अरथश ह| अरथश क सारथ तनात होन पर हमको तरत बोि होता ह| बोि होन पर ततकाल चितत म हए साकषातकार की तषटी हो जाती ह|

आसथा या ldquoमाननrdquo क रप म हम शर करत ह अनभि परमाण क आिार पर हम परमाखणत हो जात ह | यह जीिन म होन िाली परवकरया ह|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३२ ३३

मधयसथ दशशन क अधययन विधि म पररभाषा स आप शबद क अरथश को अपन कलपना म लात ह| पररभाषा आपक कलपनाशीलता क ललए रािा ह| उस कलपना क आिार पर असतितव म िि को आप पहिानन जात ह| आपकी कलपनाशीलता िि को छ सकती ह| असतितव म िि को पहिानन पर िि साकषातकार हआ| िि क रप म िि साकषातकार होता ह शबद क रप म नही| साकषातकार की िि सहअसतितव सरपी असतितव ही ह| सह असतितव साकषातकार होना ही मानि म कलपनाशीलता का परयोजन ह

सारी दरी जब तक कलपना म ह तब तक ही ह| अनभि म कलपनाशीलता पिशक वकया गया अनमान विलय हो जाता ह| अनभि ही ततफर परभािी हो जाता ह| परी जीिन अनभि मलक हो जाता ह|

इस तरह अधययन वििी स जीिन म ldquoसमझrdquo परापत होती ह| यह समझ जीन म परमाखणत होती ह| समझ िही ह जो जीन म परमाखणत हो

(अगि २००६ अमरकटक)

प ४५

मगल मतरी क वबना अधययन सफल हो ही नही सकता| मगल मतरी ही दसर वयकती म बोि करन क ललए एक पवितर पािन वनमशल और शदध आिार भमी ह| अधययन करन िाला पपरबोिक को पारगत मान कर ही

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उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

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(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

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िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

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मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 34

उसकी बात सनता ह| यदी उस पारगत नही मानता तो िह उसकी बात सनता ही नही ह| मगल मतरी पिशक ही सनन िाला और सनान िाल एक दसर पर विशवास कर सकत ह| सनान िाला पारगत ह यह विशवास सनन िाल म हो और सनन िाला इमानदारी स सन रहा ह इस बोि होगा यह विशवास सनान िाल म हो तभी परबोिन सफल होता ह| यदी परसपर यह विशवास नही होता तो हम बतगड म फस जात ह | बोि की अपकषा म ही विदयारथी यदी खजजञासा करता ह तो उस बोि होता ह| बोि की अपकषा को छोड़ कर हम और को आिार स यदधद तकश करत ह ( अरथात शका करना) तो राि स हट जात ह | स क नोक स भी यदधद इसस हटत ह तो वकसी दसर ही दधदशा म िल जात ह |

ldquoसवभाि गवतrdquo म रहन पर ही मगल मतरी होता ह जो अधययन क ललए आिशयक ह| आिशशत गवत म रहन पर अधययन नही होता| बहोश रहन पर भी नही होता| ििलता बन रहन पर भी नही होता| मन यदी भटकता रह और आप सनत रह तो कछ समझ म नही आएगा| मन को एक ही समय तीन जगह पर काम करन का अधिकार रहता ह| इसललए अधययन क ललए विदयारथी दवारा अपन मन को सथसथर करन की आिशयकता ह| इसी का नाम ह ldquoधयानrdquo| अधययन क ललए धयान दना बहत आिशयक ह| अधययन करना ही धयान का परयोजन ह| आाख माद लना को धयान नही ह उसस को परयोजन धसदध नही हआ| ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग अरथिा अरथश म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

अभयास-अधययन करम म गर (समझा हआ वयततकत) की आिशयकता

प १२७

परशन अधययन कया ह इस एक बार ततफर स समझा दीखजए|

उततर अनभि की रौशनी म समरण पिशक कीया गया वकरयाकलाप अधययन ह| अनभि की रौशनी अधययन करान िाल (गर) क पास रहता ह| उस अनभि की रौशनी म िािविकताओ स तदाकार होन की परितततत िाला विदयारथी ह| िि क सवरप म तदाकार होन की पररणा गर दता ह| तदाकार होन की परितततत सभी मानि शरीर िलान िाल जीिनो म समान ह| शबद क अरथश म जो िि ह उसस तदाकार होन की परितततत कलपनाशीलता क सवरप म सभी जीिनो म रखा ह| उसी आिार पर अधययन होता ह| िि क सवरप म जब अधययन करन िाला जीिन तदाकार हो गया तो उसम (साकषातकार ndash बोि ndash अििारणा पिशक) अनभि होना सवाभाविक हो जाता ह| तदाकार होना ही अधययन ह| उसको मानि परपरा म परमाखणत करना ही जागवत ह|

परशन गर क सादधननधय की आिशयकता कब तक रहती ह

उततर जब तक समझ म न आ जाए तब तक जब तक अनभि न हो जाय तब तक अनभि होन क बाद सदा सदा क ललए हम सामान ही ह सारथ ही ह एक ही अरथश म ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 35

(दधदसमबर २००८ अमरकटक)

(सिाद २००९ जीिन विदया राषटरीय सममलन हदराबाद)

परशन अधययन स कया आशय ह उततर अधिषठान क साकषी म अरथात अनभि क साकषी म या अनभि की रोशनी म समरण पिशक वकया गया परयास अधययन ह| यह पररभाषा ह| इसका वििरण इस परकार दधदया - अधययन क ललए जो शबद का हम परयोग करत ह उस शबद क अरथश सवरप म असतितव म िि होती ह| उस िि का जञान हआ मतलब हमन अधययन वकया| िि का जञान तदाकार विधि स होता ह| हर मानि क पास कलपनाशीलता ह उस कलपनाशीलता क आिार पर तदाकार होता ह| परशन तदाकार स कया आशय ह उततर अभी भी आप तदाकार विधि स ही िल ह| जस - िार विषयो क सारथ तदाकार हो जाना| पाि सिदनाओ क सारथ तदाकार हो जाना| सवििा-सगरह क सारथ तदाकार हो जाना| इस तरह की हविस या मनोगत-भाि स तदाकार होन पर मानि फस जाता ह| अब यहाा समािान क सारथ तदाकार होन का परिाि ह| परशन अनभि की रोशनी स कया आशय ह उततर अधययन करान िाल क पास अनभि की रोशनी रहता ह| परशन अधययन करन िाल क पास कया रहता ह उततर अधययन करन िाल क पास अनमान रहता ह| मझको समझा हआ मान कर ( सवीकारना जािन क पशययात सवीकारना) ही आप मझस अधययन कर पाओग नही तो मझस अधययन नही कर पाओग| आपका अनमान जहा तक बन पाता ह िहा तक आपको समझ आता ह| आपका अनमान जहा नही बन पाता ह या हमारा कलपनाशीलता जहा कहठत होता ह िहा सचचा समझ म नही आ पाता ह| वबना समझ कछ भी करन जात ह तो उसस गलती ही होगा दसरा कछ होगा नही| आदमी दो ही सवरप म रह सकता ह - समािान क सवरप म या गलती क सवरप म| परशन कलपनाशीलता इस तरह कहठत हो जाए तो कया कर उततर उसक ललए मल स पनः खजजञासा करना िाहहए| आप पढ़ सकत ह और समझ भी सकत ह| आप पदधढ़ए जो समझ म नही आता ह - िह मझ स समझ लीखजय| यही इसका विधि ह| समझा हआ वयततकत इस परकार समझान की खजममदारी ल और समझन िाला वयततकत समझन की खजममदारी ल तो समझ म आ जाता ह| परशन यदधद परिाि की सिना ह और मरी खजजञासा ह तो कया िह समझन क ललए पयापत नही ह या समझान

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 36

िाल की ततफर भी आिशयकता ह उततर - किल सिना होना और खजजञासा होना समझन क ललए पयापत नही ह| समझान िाल क वबना समझ म नही आता| समझान िाल क वबना समझन क ललए समाधि होना आिशयक ह| समाधि क बाद यदधद सयम म आपका लकषय सथसथर रहता ह तो परकवत स सीि आपको समझ म आएगा| इस परिाि की सिना का महततव इसको समझान िालो क सारथ ही ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 37

मनन परवकरया ततव सबिी िि का शोि साकषातकार क ललए अभयास

सिाद भाग-1

(ए न) [ldquoखजजञासा समझन की गवत (सही गरहण मनन) और जीन की वनषठा (सही जीना) इन तीनो को जोड़न स उपलसतबध तक पहाि सकत ह| जीन की वनषठा इचछा शकती (इचछा होना िाहना परारथततमकता) की बात ह| जीन की वनषठा म कमी क मल म आपक पिागरह ही ह ndashसिाद भाग१ स २०११ प १७८rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना स िािविकता म जान क ललए यदी परयतन होता ह तो अधययन क ललए परितततत होती ह(शरिण)| अधययन क ललए परितततत को वकरयानवयन (मनन) करन स साकषातकार होता हndashसिाद स २०११ प २०१rdquo]

(ए न) [ldquoसाकषातकार कया भाषा स जो बताया भाषा क अरथश म जो िि कलपना म आयी उसका साकषातकार होता| िह साकषातकार हए वबना अनभि होता नही| साकषातकार होन क ललए नयाय िमश सतय को जीन म परमाखणत करन की इचछा समाहहत रहना आिशयक ह| परमाखणत करन की इचछा नही हो तो साकषातकार होता नही| परमाखणत करना जीन म काततयक िाचिक मानधसक कत काररत अनमोदधदत नोऊ भदो स होता ह| परमाखणत करन की इचछा को हटा करक हम साकषातकार कर ल अनभि कर ल यह होन िाला नही ह| वकसी को ऐस साकषातकार अनभि नही होगा इस िरती परrdquoसाकषातकार होता ह क नही दख लत ह ततफर दखग| अनभि होता ह की नही दख लत ह | अनभि होता ह तो उसक बाद म सोिगrdquo| जबकी परमाखणत करन क अपकषा क वबना शरिण मातर स यह अनभि तक पहािता ही नही ह| शरिण स कलपना का वििार तलन तक हो सकता ह वकनत यदी इस तलन क सारथ हम परमाखणत होन का उददशय नही रखग तो िह साकषातकार म पहिगा ही नही | शरिण क सारथ मनन होता ह खजसस ितततत म तलन होता ह| कयो तलन कर इस बात का सपषट उततर होन पर ही तलन सफल होता ह और साकषातकार होता ह| परमाखणत करन क ललए तलन कर तो साकषातकार होता ह| अनयरथा शरिण किल भाषा का ही होता ह अरथश ततमलता नही ह| ऐस म तलन किल तलन क ललए हो जाता ह| इसम समय वयतीत हो जाता ह| समय को यदी बिाना ह ह तो ऊपर जो बात बता गयी ह उस तरीक को अपनान की आिशयकता ह| - सिाद स २०११ प ९९-१००rdquo]

(ए न) [ldquoकलपना ही जञान तक पहािन का रािा ह| कलपना नही ह तो जञान तक पहािन का को रािा नही ह| कलपनाशीलता क परयोग स सहअसतितव सवरततप सतय को समझना ही जञान क ललए रािा ह| इसक ललए धयान दना होता ह| धयान दना मतलब मन को लगानामन को अनभि क पकष म लगान को धयान ह| मन जब लगता ह तब वििार और इचछा भी उसक सारथ रहता ही ह| मन वकस बात म लगाना ह इसकी परारथततमकता इचछा म ही तय होती ह| खजस इचछा को हम परारथततमक सवीकारत ह उसी क ललए (मन) काम कता ह| अनभि की आिशयकता (जीिन वनयम नयाय िमश सतय समझना) जब तीवरतम इचछा क िर पर पहाि जाती ह तब मन लगता ह| मन लगता ह तो अधययन होता ह (साकषातकार-बोि होना) (lsquoसारभत भाग म चित-ितततत किीभत होनाrsquo) ndash सिाद भाग१ स २०११ प ११४rdquo]

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 38

(ए न) [ldquoअधययन क ललए आपकी इचछा बहत परबल होना आिशयक ह तभी अधययन हो पाता ह| अनभि होता ह - इस बार म आशवि होन की आिशयकता ह| अनभि क बार म आशवि हो गए और अधययन की इचछा परबल हो गयी - तो िह परमाण तक पहिगा ही तलन साकषातकार की पषठ-भततम ह| परमाखणत होन की अपकषा म हम तलन करत ह तो साकषातकार होता ह| यह अपन म दखन की बात ह| वकताब यहाा स पीछ छट गया| परमाखणत होन की अपकषा नही ह तो साकषातकार होगा नही| हम अधययन करग बाद म परमाखणत होन क बार म सोिग या हम अनभि करग बाद म परमाखणत होन का सोिग - यह सब शखी समापत हो जाती ह| अनभि होन क पहल परमाखणत होन की इचछा क वबना हम साकषातकार ही नही होगा| आग बढ़न क मागश म यह बहत बड़ा रोड़ा ह| हमारी इचछा ही नही ह तो हमारी गवत कस होगा परमाखणत होन की अपकषा या इचछा क सारथ तलन करन पर साकषातकार होता ही ह परमाखणत होन की आिशयकता क आिार पर ही अधययन होता ह| अधययन होता ह तभी साकषातकार होता ह| साकषातकार होता ह तो ततफर रकता नही ह| इसको अचछी तरह समझन की जररत ह| अभी आदमी जहा अटका ह िहा स उदधार होन का रािा ह यहाा स ndash सिाद जनिरी २००७ rdquo]

सिाद भाग-२ () ndash

प १७ १८

भाषा क अरथश म पहिना हर वयततकत म सवय सफतश ह| यह असतितव सहज ह| असतितव म समपणश िि वनहहत ह| िि क रप म िि बोि होन पर ही मन भरता ह| इसक ललए परयतन करना िाहहए| सह असतितव कस ह कयो ह इन दो परशनो का उततर बारबार अपन मन म पहिना िाहहए| फलत अनबहव क आकार म सवय को परमाखणत करन की अहशता सथाततपत होना िाहहए| फलसवरप मन भरगा नह तो कह को भरगा

सजञानशीलता की अहशता हम वकतनी जलदी हाधसल कर सकत ह िह हमार ldquoतीवरताrdquo क आिार पर ह| हमारी सास लन की एक गवत ह सोिन की एक गवत ह वनणशय लन क ललए परारथततमता बनन की एक गवत ह| सजञानशीलता की परारथततमकता जब सवय म बन जाती ह तो काम हो जाएगा

(अगि २००६ अमरकटक)

प १९

सह असतितव परिाि शबदो म सनन स इतना भारी उपकार हो जाता ह की सह असतितव ldquoहोनrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| नयाय िमश सतय ldquoकछ हrdquo यह सवीकार हो जाता ह| (अरथात भास होता ह) इस आिार पर सवय को जीन म यह जािना शर करत ह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सतय ह इस तरह जब जािना शर करत ही तो शबद पयापत नही होता|

खजजञासा पिशक ldquoसतयrdquo शबद स सह असतितव जो इवगत ह िहाा हम पहाि जात ह| इस तरह सह असतितव चितत म चिितन कषतर म साकषातकार होता ह| साकषातकार होन पर बधि म बोि होता ही ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

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(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

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(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 39

(अगि २००६ अमरकटक)

प २१ २२

भरततमत मानि म भी बदधदध चितत म होन िाल चितरणो का दषटा बना रहता ह| मधयसथ दशशन क असतितव सहज परिाि का चितरण जब चितत म होता ह तो बदधदध उसस ldquoसहमतrdquo होती ह| यही कारण ह इस परिाि को सनन स ldquoरोमािकताrdquo होती ह| रोमािकता का मतलब यह नही ह ldquoकछ बोि हो गयाrdquo इस रोमािकता स lsquoतततपतrsquo नही ह|

परशन तततपत क ललए ततफर कया कीया जाए

उततर ततपरय हहत लाभ पिशक जो हम तलन करत ही िहाा नयाय िमश सतय को परिान मान जाए| नयाय िमश सतय की िाहत भरततमत मानि म भी बनी ह| एक भी कषण ऐसा नही ही जब हम नयाय िमश सतय नही िाहत हो हर वयततकत क मानस पटल म नयाय िमश सतय की िाहत ह| इस परिाि को सनन क बाद उसक आिार पर हम ldquoखजजञासाrdquo शर करत ह यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह वकतना हम सचचा को समझत ही और परमाखणत कर रह ह ldquoनयायrdquo ldquoिमशrdquo ldquoसतयrdquo शबदो स हम म सहमती ह| नयाय कया ह िमश कया ह सतय कया ह यह खजजञासा ह| यह खजजञासा सवय म शर होन पर अनततोगतवा हमार परारथततमकता नयाय िमश और सतय क ललए सथसथर हो जाती ह ( मनन परवकरया दवारा)

परशन यह खजजञासा कस काम करती ह

उततर हम जहाा भी रहत ह िाहन सोित ह ही| िही हम ldquoसवय की जािrdquo शर कर दत ह नयाय सोि रह ह या अनयाय सोि रह ह | यह जाि होन पर नयाय िमश और सतय की परारथततमकता को हम सवय म सवीकार कर लत ह ( मनन परवकरया म सव-मलयाकन)| यह परारथततमकता सवीकार लन क बाद हम नयाय कया ह िमश कया ह अिमश कया ह सतय कया ह असतय कया ह इस ldquoशोिrdquo म लगत ह|

इस शोि क फलसवरप हम इन वनषकषो पर पहाित ह ( मनन परवकरया म िाधछत िि दश एि ततव म चितत-ितततत सयत होना सवीकार होना)

१) सह असतितव सवरततप असतितव ही ldquoपरम सतयrdquo ह|

२) सिशतोमखी समािान ही ldquoिमशrdquo ह|

३) मलयो का वनिाह ही ldquoनयायrdquo ह|

इन तीन वनषकषश पर आन पर ततकाल साकषातकार हो कर बदधदध म बोि होता ह| ( मनन परवकरया म ldquoसयत होन पर पणाधिकार क अनतर शरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo फलसवरप तदाकार होना साकषातकार होना बदधदध म परतीत होना)

बदधदध म जब यह सवीकार हो जाता ह तो ( अििारणा क अनतर) अनभि म आ जाता ह| सहअसतितव म अनभि हो जाता ह|

बोि तक अधययन ह| उसक बाद अनभि सवत होता ह

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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Page 40: अभ्यास (अध्ययन के ललएmdstudents.net/wp-content/uploads/2020/01/adhyayan... · के अर्थश से इंवगत ििुएं अित्व

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 40

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३७

मानि ितना की अपकषा बनन क बाद उसको पान क ललए जो हमारा मन लगता ह उसको ldquoधयानrdquo कहत ह | लगान क ललए हमार पास तन मन और िन होता ह| इसम स मन लगान का जो भाग ह उसको ldquoधयानrdquo कहा ह | ( मनन परवकरया म शरिण क सारभत भाग म चितत-ितततत किीभत होना ही धयान ह यही मनन ह) | अधययन क ललए धयान दन की आिशयकता ह| उसका मतलब यही ह मन को लगाना|

अधययन म यदी आपका मन लगता ह तो शन शन आप मानि ितना क बार म सपषट होत जात ह | एक दधदन उसी करम म िह वबिद आता ह जब मानि ितना आपको ldquoसवतवrdquo क रप म सवीकार हो जाता ह| ( सवीकार होना = बोि होना)|

(अगि २००६ अमरकटक)

प ३९

अधययन को ldquoसमयबदध परवकरयाrdquo नही ह| अधययन एक ldquoउपलबधीrdquo ह| पठन एक समय बदध परवकरया ह लवकन अधययन एक उपलबधी ह| पठन पिशक समरण ( शासतराधययन स शरिण होना) ततफर अधययन क ललए परारथततमकता बनना ( समपणश मनन परवकरया) उसक बाद अधययन ह| समरण पिशक अनभि की रोशनी म अधिषठान क साकषी म वकया गया परयास अधययन ह|

ldquoअधययन होनाrdquo मतलभ उजाला हो गया ह ( कयोकी साकषातकार होना बोि होना ही अधययन ह) | अधययन क पहल ldquoउजाल की अपकषाrdquo रहा| अधययन की पषट भमी साि िार वकरया स दस वकरया म लाघन की तयारी ह| उस तयारी म समय लगता ह | ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन म समय)

यदी परी यातरा को एक फट की दरी माना जाए तो 115 इि की पषट भमी ह ( शासतराधययन gt शरिण gt मनन खजसम भास होता ह आभास होता ह) किल आिा इि अधययन ह (साकषातकार-बोि अरथिा परतीवत वनदधदधयासन) |

(अगि २००६ अमरकटक)

प ९२ ndash अधययन म एकागरता

अधययन म एकागरता की आिशयकता ह| एकागरता क ललए अधययन का लकषय वनचशचत करना आिशयक ह| वबना अधययन का लकषय वनचशचत हए एकागरता नही आ सकता अधययन म मन नही लग सकता|

मधयसथ दशशन क अधययन का लकषय ह सवय म विशवास सपनन होना और सिश शभ सतर वयवखखया सवरप म जीना| इस लकषय क सारथ अधययन करत ह तो मन लगता ह|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

httpbitlymd-notes

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अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 41

(अपरल २००९)

प ९४ ९५

परशन हम जब मधयसथ दशशन क आपक परिाि को सनत ह सोित ह तो कभी कभी हमको लगता ह कछ समझ म आ गया | कया यही साकषातकार ह

उततर नही| अधययन क बाद साकषातकार अनभि ही ह

परशन ततफर िह जो लगता ह ldquoकछ समझ आ गयाrdquo िह कया ह

उततर िह आपकी इस परिाि क पतरी सवीकवत ह जो समगर क सारथ अभी करमबदध नही हआ ह| ( भास अरथिा आभास ह| यहाा सवीकवत इचछाचितरण वििार रप म)

समगर क सारथ करमबदध होन का धसलधसला अभी शर नही हआ| िह धसललधसला बनन का तड़प आपम रखा हआ ही ह| िह धसलधसला बनन का एकमातर विधि अधययन ही ह| एक-एक बात को जो आप अधययन करत हो उसका एक दसर क सारथ सबि सतर फलता ह| ( साकषातकार पिशक बोि म) | िह सबि सतर अनभि म जाकर सथसथर होता ह|

साकषातकार का मतलब ह अधययन पिशक सवय म ह सवीकवत ( शरिण मनन पिशक आभास इचछा-वििार रप म सवीकारना जो अभयास ह) क अनरप असतितव म िािविकताओ क सारथ तदाकार होना| साकषातकार आिरा नही होता|

अनकरम स अनभि होता ह| मानि जीि अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह जीि अिसथा पराण अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पराण अिसथा पदारथश अिसथा क सारथ कस अनपराखणत ह सबधित ह पन इन िारो अिसथाओ का कया अतर सबि हशरीर का जीिन क सारथ सबि जीिन का जीिन क सारथ सबि य सब जडी ह कदधड़यो को पहिानना ही अनकरम ह| (इसी का भास आभास परतीवत (साकषातकार-बोि यही अधययन) एि अििारणा पशययात अनभि)

(अगि २००६ अमरकटक)

प १२१ १२२

तदाकार तक पहिना ही अधययन की मल िषटा ह| शबद क अरथश क ओर धयान दन स अरथश क मल म असतितव म जो िि ह उसक सारथ तदाकार होना बनता ह| उसक बाद तदरप होना (परमाखणत) सवाभाविक ह| अरथश असतितव म िि क रप म साकषातकार ( एि परतीत) होन तक परषारथश ह |

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 42

तदाकार होन क सतिचरथ म जब हम पहाित ह तो हमको सपषट होता ह की ( तदाकार होन की सतिचरथ क मल म मनन ह ldquoशरिण क सारभत भाग म चितत ितततत किीभत होनाrdquo)

िि िि का परयोजन और िि क सारथ हमारा सबि|

यह हर िि क सारथ होना ह ( िारो अिसथा)| इसम को भी कड़ी छटा तो िह किल शबद ही सना ह| इस सिाद म जो सबस परबल परिाि ह िह यही ह|

तदाकार होन की सतिचरथ किल अधययन ( अधययन क ललए अभयास) स आता ह| तदरप वििी स परमाण आता ह यह अनभि क बाद होता ह|

मनन परवकरया सव-मलयाकन

(ए न) [ldquoमधयसथ दशशन क परिाि स आप रोमाचित हए कयोकी आपकी बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत ततमली| बदधदध की चितरण क सारथ सहमवत होन पर रोमािकता तो होता ह पर तततपत नही ह| तततपत कस ला जाय तलन म नयाय िमश सतय को परिान माना जाए| नयाय िमश सतय को हम िाहत तो ह ही| हर वयकती म ह| मन म नयाय िमश सतय क सारथ सहमवत ह| इस तरह हम खजतना भी जान ह (आज तक जो जाना जीया) उसस यह दखना शर करत ह की यह कहाा तक नयाय ह कहाा तक समािान ह कहाा तक सचचा ह | यह खजजञासा करन स हम अपनी िरीयता को नयाय िमश सतय म सथसथर कर लत ह |यही तरीका ह नयाय िमश सतय को सवय म परभािशाली बनान का| सवय की नयाय िमश सतय क आिार पर जाि करना| यह जाि होन पर हम सवय म नयाय िमश सतय की परारथततमकता को सवीकार कर लत ह | यह सवीकारन क बाद हम नयाय कया ह िमश(समािान) कया ह सतय कया ह ndash इस खोज म जात ह rdquo ndash सिाद भाग १ स २०११ प ८०]

(ए न) - [ldquoसवय का मलयाकन यदी सही नही ह तो उस सतिचरथ म अधययन क ललए आिशयक सामथयश को सजो लना सभि नही ह ndash वयिहार दशशन स २००९ प ५३rdquo]

(ए न) [ldquoबदधदध और आतमा जीिन म अविभाजय ह| भरततमत अिसथा म भरततमत चितरणो को बदधदध असवीकता ह और िह चितरण तक रह जाता ह बोि तक नही जाता| इस स भरततमत मानि को lsquoगलतीrsquo हो गया यह पाता िलता ह| बदधदध और आतमा ऐस भरततमत चितरणो क परती तटसथ बना रहता ह इसक परभाि सवरप म कलपनाशीलता म lsquoअचछा की िाहतrsquo बन जाती ह| यही भरततमत मानि म शभकामना का आिार ह| भरततमत अिसथा म बदधदध और आतमा म lsquoसहीrsquo क ललए िि नही रहती पर गलती क ललए असवीकवत रहती ह- सिाद भाग१ स २०११ प १७३rdquo]

मनन परवकरया ndash सही जीना दश सबि अभयास-अधययन करम म जीन का सवरप

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

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Page 43: अभ्यास (अध्ययन के ललएmdstudents.net/wp-content/uploads/2020/01/adhyayan... · के अर्थश से इंवगत ििुएं अित्व

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 43

(ए न) [ldquoसाकषातकार बोि क ललए वनरतर परयतन करन की आिशयकता ह| ऐस परयतन करत हए हमारा दधदनिया भी उसक अनकल होना आिशयक ह| अपन lsquoकरनrsquo का यदी अपन lsquoसोिनrsquo स विरोिाभास रहता ह तो साकषातकार बोि नही होगा| पन हम शरीर मलक विधि म ही रह जात ह | आिश क सारथ अधययन नही होता| आिश अधययन क ललए अड़िन ह| पहल रािा ठीक होगा तभी तो गमी सथली तक पहिग रि पर िलकर ही गमी सथली तक पहिा जा सकता ह| रि पर हम िल ही नही और हम गमी सथली ततमल जाएगा ऐस कस हो इसक ललए हम यह जािन की जररत ह कया हमारा lsquoकरनाrsquo हमार गमी सथली तक पहािन क ललए अिरोि तो पदा नही कर रहा ह हम जसा सोित ह िसा कर भी िस कह भी िस फल पररणामो को पाए भी िसा परमाखणत भी कर यह lsquoगमय सथलीrsquo ह| जस हम lsquoवनयमrsquo का अधययन कर रह ह ( वनयम वयिहार क वनयम सामाखजक वनयम बौदधदधक वनयम पराकवतक वनयम) और हमारा आिरण वनयम क विपरीत हो तो इसम अतविि रोि हो गया| इस अतविि रोि क सारथ वनयम का साकषातकार नही होता| अधययन क सारथ सवय का शोि िलता रहता ह| म जो समझा हा कया म उसक अनरप जी रहा हा इसको परा करन क ललए ही lsquoअनकरण विधिrsquo ह| अधययन एक lsquoवनचशचत सािनाrsquo ह| अधययन रपी सािना क सारथ lsquoसमािान समदधीrsquo क परारप का अनकरण कीया जा सकता ह-सिाद सस 2011 प 196rdquo]

(ए न) [ldquoअधययन पणशतया सामाखजक एि वयािहाररक परवकरया ह| अवयिहाररकता एि असामाखजकता पिशक अधययन होना सभि नही ह ndash अभयास दशशन स २००४ प २६२rdquo]

सिाद भाग-२

प ४० (अभयास-अधययन म जीन क सवरप म पररितशन)

इसम एक और बात धयान दन की ह इस परिाि क अनरप जीन का सवरप अभी आप जस जी रह हो उसस लभनन होगा| आप अभी की परपरा म खजस परारप म जी रह हो िस ही जीत रहो और यह जञान आपक जीन म परमाखणत हो जाए ऐसा सभि नही ह| इस जञान क अनरप जीन का परारप ह समािान समदधी पिशक जीना| मानि ितना सपनन होन क ललए यह परिाि आपक अधिकार म न आन म आना कानी करन का एक बड़ा कारण ह हमारा जीि ितना क अपन जीन कछ पकषो को सही मान रहना| जबकी मानि ितना और जीि ितना म को भी पकष म समानता नही ह| मानि ितना को जीि ितना क सारथ जोड़ तोड़ पिशक बठाया नही जा सकता| जब तक अधययन शर नही हआ ( साकषातकार बोि नही हआ) तब तक हमारी कलपनाएा हमार सारथ बािाए डालता ही ह| मलत बािा डालन िाली कलपना ह ldquoशरीर को जीिन माननाrdquo| अधययन म सिशपररथम यही विशलततषत होता ह जीिन और शरीर दो लभनन िािविकताए ह | जीिन अमर ह| शरीर नशवर ह| जीिन शरीर को िलाता ह| वनयवत करम म िरती पर मानि शरीर परपरा सथाततपत होती ह| जीिन म एक बार मानि ितना क ललए परारथततमकता सथाततपत हो जाती ह तो िह सदा क ललए हो जाती ह| आग शरीर यातराओ म भी ततफर सवय को परमाखणत करन की अहशता बनी रहगी|

अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

मधयसथ दशशन क विदयाचरथि यो दवारा अधययन स समबधित अनय उपयोगी सकलन यहाा स डाउनलोड वकया जा सकता ह

httpbitlymd-notes

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अधययन ndashअभयास परकरिया सतर सकलन | सरोत मधयसथ दरशन ndashए नागराज |परसतकरत शरीराम नरकरसमहन करिदयाथी | अकटबर २०१३ 44

मानि क जीन क दो ही सथसथवतया ह जीि साढ िार वकरया म जीना या दस वकरया म जीना| इसक बीि म को सथसथती नही ह| (किल अभयास-अधययन ह खजसम शनशन मानि ितना अरथिा नयाय-िमश-सतय िरीय होता ह)

(अगि २००६ अमरकटक)

प ७२

जीन क ललए अभयास ह| अभयास का अवतम छोर ह अनभि म जीना| पहल सिश शभ सिना क आिार पर जीना| ततफर सिश शभ सिना क अनकल अधययन म जीना | (वयिहार क वनयम सबिो म जीना ldquoदशrdquo जीन जीन की जगह)| अधययन परा होन पर अनभि म जीना| अनभि म जीना बराबर अखड समाज सािशभौम वयिसथा सतर वयाखया म जीना|

(२००६ सममलन कानपर)

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