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  • ेमचंद

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    स यता का रह य 3 सम या 9 दो स खयां 15

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    स यता का रह य

    तो मेर समझ म द नया क एक हजार एक बात नह ं आतीु —जैसे लोग ात:काल उठते ह बाल पर छरा य चलाते ह ु ? या अब

    प ष म भी इतनी नजाकत आ गयी है क बाल का बोझ उनसे नह ं ुसभलता ँ ? एक साथ ह सभी पढ़े- लखे आद मय क आँख य इतनी कमजोर हो गयी है ? दमाग क कमजोर ह इसका कारण है या और कछु ? लोग खताब के पीछे य इतने हैरान होते ह ? इ या द—ले कन इस समय मझ ेइन बात से मतलब नह ं। मेरे मन म एक नया न उठ रहा है और ुउसका जवाब मझेु कोई नह ं देता। न यह है क स य कौन है और अस य कौन ? स यता के ल ण या ह ? सरसर नजर से दे खए, तो इससे यादा आसान और कोई सवाल ह न होगा। ब चा-ब चा इसका समाधान

    कर सकता है। ले कन जरा गौर से दे खए, तो न इतना आसान नह ं जान पड़ता। अगर कोट-पतलन पहननाू , टाई-हैट कालर लगाना, मेज पर बैठकर खाना खाना, दन म तेरह बार कोको या चाय पीना और सगार पीते हए ुचलना स यता है, तो उन गोर को भी स य कहना पड़ेगा, जो सड़क पर बैठकर शाम को कभी-कभी टहलते नजर आते ह; शराब के नश े से आँख सखु , पैर लड़खड़ाते हएु , रा ता चलनेवाल को अनायास छेड़ने क धन ु ! या उन गोर को स य कहा जा सकता है ? कभी नह ं। तो यह स हआ क ुस यता कोई और ह चीज है, उसका देह से इतना स ब ध नह ं है िजतना मन से।

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    रे इने- गने म म एक राय रतन कशोर भी ह। आप बहत ह ुस दय, बहत ह उदारु , बहत श त और एक बड़ ेओहदेदार ह। बहत ु ु

    अ छा वेतन पाने पर भी उनक आमदनी खच के लए काफ नह ं होती। एक चौथाई वेतन तो बगले ह क भट हो जाती है। इस लए आप बहधा ँ ुच ं तत रहते ह। र वत तो नह ं लेते—कम-से-कम म नह ं जानता, हालाँ क

    मे

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    कहने वाले कहते ह—ले कन इतना जानता ह क वह भ ता बढ़ाने के लए ूँदौरे पर बहत रहते हु , यहाँ तक क इसके लए हर साल बजट क कसी दसरे मद से पये नकालने पड़ते ह। उनके अफसर कहते हू , इतने दौरे य करते हो, तो जवाब देते ह, इस िजले का काम ह ऐसा है क जब तक खूब दौरे न कए जाएँ रआया शांत नह ं रह सकती। ले कन मजा तो यह है क राय साहब उतने दौरे वा तव म नह ं करत,े िजतने क अपने रोजनामचे म लखते ह। उनके पड़ाव शहर से पचास मील पर होते ह। खेमे वहॉ गड़ ेरहते ह, कप के अमले वहाँ पड़ े रहते ह और राय साहब घर पर म के साथ गप-शप करते रहते ह, पर कसी क मजाल है क राय साहब क नेकनीयती पर स देह कर सके। उनके स य प ष होने म कसी को शंका नह ं हो ुसकती। एक दन म उनसे मलने गया। उस समय वह अपने घ सयारे दमड़ी को डाँट रहे थे। दमड़ी रात- दन का नौकर था, ले कन घर रोट खाने जाया करता था। उसका घर थोड़ी ह दर पर एक गाँव म था। कल रात को कसी ूकारण से यहाँ न आ सका। इस लए डाँट पड़ रह थी। राय साहब—जब हम त ह रातु - दन के लए रखे हए हु , तो तम घर ुपर य रहे ? कल के पैसे कट जायगे। दमड़ी—हजरू, एक मेहमान आ गये थे, इसी से न आ सका। राय साहब—तो कल के पैसे उसी मेहमान से लो। दमड़ी—सरकार, अब कभी ऐसी खता न होगी। राय साहब—बक-बक मत करो। दमड़ी—हजरू...... राय साहब—दो पये जरमाना। ु दमड़ी रोता चला गया। रोजा ब शाने आया था, नमाज़ गले पड़ गयी। दो पये जरमानाु ठक गया। खता यह थी क बेचारा कसर माफ कराना ु ूचाहता था। यह एक रात को गैरहािज़र होने क सजा थी ! बेचारा दन-भर का काम कर चका थाु , रात को यहाँ सोया न था, उसका द ड ! और घर बैठे भ ते उड़ानेवाले को कोई नह ं पछता ू ! कोई दंड नह ं देता। दंड तो मले और ऐसा मले क िजंदगी-भर याद रहे; पर पकड़ना तो मि कल है। दमड़ी भी ु

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    अगर हो शयार होता, तो जरा रात रहे आकर कोठर म सो जाता। फर कसे खबर होती क वह रात को कहाँ रहा। पर गर ब इतना चंट न था।

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    मड़ी के पास कल छु : ब वे जमीन थी। पर इतने ह ा णय का खच भी था। उसके दो लड़के, दो लड़ कयाँ और ी, सब खेती म लगे रहते

    थे, फर भी पेट क रो टयाँ नह ं मय सर होती थीं। इतनी जमीन या सोना उगल देती ! अगर सब-के-सब घर से नकल मजदर करने लगतेू , तो आराम से रह सकते थे; ले कन मौ सी कसान मजदर कहलाने का अपमान न सह ूसकता था। इस बदनामी से बचने के लए दो बैल बाँध रखे थे ! उसके वेतन का बड़ा भाग बैल के दाने-चारे ह म उड़ जाता था। ये सार तकल फ मंजर थींू , पर खेती छोड़कर मजदर बन जाना मंजर न था। कसान क जो ू ूत ठा है, वह कह ं मजदर क हो सकती हैू , चाहे वह पया रोज ह य न

    कमाये ? कसानी के साथ मजदर करना इतने अपमान क बात नह ंू , वार पर बधे हए बैल हए बैल उसक मानँ ु ु -र ा कया करते ह, पर बैल को बेचकर फर कहाँ मह दखलाने क जगह रह सकती है ुँ ! एक दन राय साहब उसे सरद से काँपते देखकर बोले—कपड़ े य नह ं बनवाता ? काँप य रहा है ? दमड़ी—सरकार, पेट क रोट तो परा ह नह ं पड़तीू , कपड़ े कहाँ से बनवाऊँ ? राय साहब—बैल को बेच य नह ं डालता ? सैकड़ बार समझा चकाु , ले कन न-जाने य इतनी मोट -सी बात तेर समझ म नह ं आती। दमड़ी—सरकार, बरादर म कह ं मह दखाँु ने लायक न रहगा। लड़क ूँक सगाई न हो पायेगी, टाट बाहर कर दया जाऊँगा। राय साहब—इ ह ं हमाकत से तम लोग क यह दग त हो रह है। ु ुऐसे आद मय पर दया करना भी पाप है। (मेर तरफ फर कर) य मंशीजीु , इस पागलपन का भी कोई इलाज है ? जाड़ मर रहे ह, पर दरवाजे पर बैल ज र बाँधगे। मने कहा—जनाब, यह तो अपनी-अपनी समझ है।

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    राय साहब—ऐसी समझ को दर से सलाम क िजए। मेरे यहॉ कई ू ंप त से ज मा टमी का उ सव मनाया जाता था। कई हजार पय पर पानी ुफर जाता था। गाना होता था; दावत होती थीं, र तेदार को योत े दये जाते थे, गर ब को कपड़ ेबाँटे जाते थे। वा लद साहब के बाद पहले ह साल मने उ सव ब द कर दया। फायदा या ? म त म चारु -पाँच हजार क चपत खानी पड़ती थी। सारे कसबे म वावेला मचा, आवाज कसी गयीं, कसी ने नाि तक कहा, कसी ने ईसाई बनाया ले कन यहाँ इन बात क या परवा ! आ खर थोड़ ेह दन म सारा कोलाहल शा त हो गया। अजी, बड़ी द लगी थी। कसबे म कसी के यहाँ शाद हो, लकड़ी मझसे ले ु ! प त से यह र म ुचल आती थी। वा लद तो दसर से दर त मोल लेकर इस र म को नभाते ूथे। थी हमाकत या नह ं ? मने फौरन लकड़ी देना ब द कर दया। इस पर भी लोग बहत रोयेु -धोये, ले कन दसर का रोनाू -धोना सनु ूँ, या अपना फायदा देख। लकड़ी से कमूँ -से-कम 500) पये सलाना क बचत हो गयी। अब कोई भलकर भी इन चीज के लए दक करने नह ं आता। ू मेरे दल म फर सवाल पैदा हआु , दोन म कौन स य है, कलु - त ठा पर ाण देनेवाले मख दमड़ीू ; या धन पर कलु -मयादा को ब ल देनेवाले राय रतन कशोर !

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    य साहब के इजलास म एक बड़े माक का मकदमा पेश था। शहर का ुएक रईस खन के मामले म फस गया था। उसक जमानत के लए ू ँ

    राय साहब क खशामद होनेु लगीं। इ जत क बात थी। रईस साहब का ह म था क चाहे रयासत बक जायु , पर इस मकदमे से बेदाग नकल ुजाऊँ। डा लयॉ लगाई गयीं, सफा रश पहचाई गयींँु , पर राय साहब पर कोई असर न हआ। रईस के आद मय को य प से र वत क चचा करने ुक ह मत न पड़ती थी। आ खर जब कोई बस न चला, तो रईस क ी से मलकर सौदा पटाने क ठानी। रात के दस बजे थे। दोन म हलाओं म बात होने लगीं। 20 हजार क बातचीत थी ! राय साहब क प नी तो इतनी खश ह क उसी व त राय ु ुसाहब के पास दौड़ी हई आयी और कहन लगीु —ले लो, ले लो

    रा

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    राय साहब ने कहा—इतनी बेस न हो। वह त ह अपने दल म या ुसमझगी ? कछ अपनी इ जत का भी खयाल है या नह ं ु ? माना क रकम बड़ी है और इससे म एकबारगी त हार आये दन क फरमायश से म त ु ुहो जाऊँगा, ले कन एक स व लयन क इ जत भी तो कोई मामल चीज ूनह ं है। त हु पहले बगड़कर कहना चा हए था क मझसे ऐसी बेदद ु ूबातचीत करनी हो, तो यहाँ से चल जाओ। म अपने कान से नह ं सनना ुचाहती। ी—यह तो मने पहले ह कया, बगड़कर खब खरू -खोट सनायीं। ुया इतना भी नह ं जानती ? बेचार मेरे पैर पर सर रखकर रोने लगी।

    राय साहब—यह कहा था क राय साहब से कहगीू ँ , तो मझे क चा ह ुचबा जायगे ? यह कहते हए राय साहब ने गदगद होकर प नी को गले लगा लया। ु ी—अजी, म न-जाने ऐसी कतनी ह बात कह चकु , ले कन कसी तरह टाले नह ं टलती। रो-रोकर जान दे रह है। राय साहब—उससे वादा तो नह ं कर लया ? ी—वादा ? म पये लेकर स दक म रख आयी। नोट थे। ू राय साहब— कतनी जबरद त अहमक हो, न मालम ई वर त ह कभी ू ुसमझ भी देगा या नह ं। ी—अब या देगा ? देना होता, तो दे न द होती। राय साहब—हाँ मालम तो ऐसा ह होता है। मझसे कहाू ु तक नह ं और पये लेकर स दक म दा खल कर लए ू ! अगर कसी तरह बात खल जायु ,

    तो कह ं का न रह। ूँ ी—तो भाई, सोच लो। अगर कछ गड़बड़ होु , तो म जाकर पये लौटा द। ूँ राय साहब— फर वह हमाकत ! अरे, अब तो जो कछ होना थाु , हो चका। ई वर पर भरोसा करके जमानतु लेनी पड़गेी। ले कन त हार हमाकत ुम शक नह ं। जानती हो, यह साँप के मह म उँगल डालना है। यह भी ुँजानती हो क मझ ेऐसी बात से कतनी नफरत हैु , फर भी बेस हो जाती हो। अबक बार त हार हमाकत से मेरा त टट रहा है। मने दल म ठान ु ूलया था क अब इस मामले म हाथ न डालगाँ ू , ले कन त हार हमाकत के ुमारे जब मेर कछ चलने भी पाये ु ?

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    ी—म जाकर लौटाये देती ह।ँू राय साहब—और म जाकर जहर खाये लेता ह। ँू

    इधर तो ी-प ष म यह अ भनय हो रहा थाु , उधर दमड़ी उसी व त अपने गाँव के म खया के खेत से जु ुआर काट रहा था। आज वह रात-भर क छ ी लेकर घर गया था। बैल के लए चारे का एक तनका भी नह ं है। ुअभी वेतन मलने म कई दन क देर थी, मोल ले न सकता था। घर वाल ने दन को कछ घास छ लकर खलायी तो थीु , ले कन ऊँट के मह म जीरा। ुँउतनी घास से या हो सकता था। दोन बैल भखे खड़ ेथे। दमड़ी को देखते ूह दोन पछ खड़ी करके हकारने लगे। जब वह पास गया तो दोन उसक ूँ ँुहथे लयाँ चाटने लगे। बेचारा दमड़ी मन मसोसकर रह गया। सोचा, इस व त तो कछ हो नह ं सकताु , सबेरे कसी से कछ उधार लेकर चारा लाऊँगा। ु ले कन जब यारह बजे रात उसक आँख खल ंु , तो देखा क दोन बैल अभी तक नाँद पर खड़े ह। चाँदनी रात थी, दमड़ी को जान पड़ा क दोन उसक ओर उपे ा और याचना क ि ट से देख रहे ह। उनक ुधा-वेदना देखकर उसक आँख सजल हो आयीं। कसान को अपने बैल अपने लड़क क तरह यारे होते ह। वह उ ह पश नह ंु , अपना म और सहायक समझता। बैल को भखे खड़े देखकर नींद आँख से भाग गयी। कछ सोचता ू ुहआ उठा। ह सया नकाल और चारे क फ म चला। गाँव के बाहर बाजरे ु ँऔर जआर के खेत खड़ ेथे। दमड़ी के हाथ काँपने लगे। ले कन बैल क याद ुने उसे उ तिेजत कर दया। चाहता, तो कई बोझ काट सकता था; ले कन वह चोर करते हए भी चोर न था। उसने केवल उतना ह चारा काटाु , िजतना बैल को रात-भर के लए काफ हो। सोचा, अगर कसी ने देख भी लया, तो उससे कह दगाूँ , बैल भखे थेू , इस लए काट लया। उसे व वास था क थोड़े-से चारे के लए कोई मझ ेपकड़ नह ं सकता। म कछ बेचने के लए तो काट ु ुनह ं रहा हँू; फर ऐसा नदयी कौन है, जो मझे पकड़ ले। बहत करेगाु ु , अपने दाम ले लेगा। उसने बहत सोचा। चारे का थोड़ा होना ह उसे चोर के ुअपराध से बचाने को काफ था। चोर उतना काटता, िजतना उससे उठ सकता। उसे कसी के फायदे और नकसान से या मतलब ु ? गाँव के लोग दमड़ी को चारा लये जाते देखकर बगड़ते ज र, पर कोई चोर के इलजाम म न फसाताँ , ले कन संयोग से ह के के थाने का सपाह उधर जा नकला। वह पड़ोस के एक ब नये के यहाँ जआ होने क खबर पाकर कछ ऐंठने क ु ु

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    टोह म आया था। दमड़ी को चारा सर पर उठाते देखा, तो स देह हआ। ुइतनी रात गये कौन चारा काटता है ? हो न हो, कोई चोर से काट रहा है, डाँटकर बोला—कौन चारा लए जाता है ? खड़ा रह! दमड़ी ने चौककर पीछे देखा, तो प लस का सपाह ु ! हाथ-पाँव फल ूगये, काँपते हए बोलाु —हुजरू , थोड़ा ह -सा काटा है, देख ल िजए। सपाह —थोड़ा काटा हो या बहतु , है तो चोर । खेत कसका है ? दमड़ी—बलदेव महतो का। सपाह ने समझा था, शकार फसाँ , इससे कछ ऐंठगाु ँ ; ले कन वहाँ या रखा था। पकड़कर गाँव म लाया और जब वहाँ भी कछ ह थे चढ़ता न ुदखाई दया तो थाने ले गया। थानेदार ने चालान कर दया। मकदमा राय ुसाहब ह के इजलास म पेश कया। राय साहब ने दमड़ी को फसे हए देखाँ ु , तो हमदद के बदले कठोरता से काम लया। बोले—यह मेर बदनामी क बात है। तेरा या बगड़ा, साल-छ: मह ने क सजा हो जायेगी, श म दा तो मझेु होना पड़ रहा है ! लोग यह तो कहते ह गे क राय साहब के आदमी ऐसे बदमाश और चोर ह। त ूमेरा नौकर न होता, तो म हलक सजा देता; ले कन त मेरा नौकर हैू , इस लए कड़ी-से-कड़ी सजा दगा। म यह नह ं सन सकता क राय साहब ने अपने ू ुँनौकर के साथ रआयत क । यह कहकर राय साहब ने दमड़ी को छ: मह ने क स त कैद का ह म सना दया।ु ु उसी दन उ ह ने खन के मकदमे म जमानत ले ल । मने दोन ू ुव ता त सने और मेरे दल म यह याल और भी प का हो गया क ृ ुस यता केवल हनर के साथ ऐब करने का नाम है। आप बरेु ु -से-बरा काम ुकर, ले कन अगर आप उस पर परदा डाल सकते ह, तो आप स य ह, स जन ह, जेि टलमैन ह। अगर आप म यह सफ़त नह ं तो आप अस य ह, गवार हँ , बदमाश ह। यह स यता का रह य है !

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    सम या

    रे द तर म चार चपरासी ह। उनम एक का नाम गर ब है। वह बहत ुह सीधा, बड़ा आ ाकार , अपने काम म चौकस रहने वाला, घड़ कयाँ ु

    खाकर चप रह जानेवाला यथा नाम तथा गण वाला मन य है।मझ े इस ु ु ु ुद तर म साल-भर होते ह, मगर मने उसे एक दन के लए भी गैरहािजर नह ं पाया। म उसे 9 बजे द तर म अपनी फट दर पर बैठे हए देखने का ुऐसा आद हो गया ह क मानो वह भी उसी इमारत का कोई अंग है। इतना ूँसरल है क कसी क बात टालना नह ं जाना। एक मसलमान है। उससे ुसारा द तर डरता है, मालम नह ं य ू ? मझ ेतो इसका कारण सवाय उसक ुबड़ी-बड़ी बात के और कछ नह ं मालम होता। उसके कथनानसार उसके ु ू ुचचेरे भाई रामपरु रयासत म काजी ह, फफा ट क क रयासत म कोतवाल ूह। उसे सवस म त ने ‘काजी-साहेब’ क उपा ध दे रखी है। शषे दो महाशय जा त के ा मण ह। उनके आशीवाद का म य उनके काम से कह ं अ धक ूहै। ये तीन कामचोर, ग ताख और आलसी ह। कोई छोटाु -सा काम करने को भी क हए तो बना नाक-भ सकोड़ ेनह ं करते। लक को तो कछ समझते ुह नह ं ! केवल बड़ ेबाब से कछ दबते हू ु , य य प कभी-कभी उनसे झगड़ बैठते ह। मगर इन सब दगण के होते हए भी द तर म कसी क म ी ु ु ुइतनी खराब नह है, िजतनी बेचारे गर ब क । तर क का अवसर आया है, तो ये तीन मार ले जाते ह, गर ब को कोई पछता भी नह ं। और सब दसू -दस पाते ह, वह अभी छ: ह म पड़ा हआ है। सबह से शाम तक उसके पैर ु ुएक ण के लए भी नह ं टकते—यहाँ तक क तीन चपरासी उस पर हकमत जताते ह और ऊपर क आमदनी म तो उस बेचारे काु ू कोई भाग ह नह ं। तस पर भी द तर के सब कमचार —द तर से लेकर बाब तक ूसब—उससे चढ़ते ह। उसक कतनी ह बार शकायत हो चक हु , कतनी ह बार जमाना हो चका है और डाँटु ु -डपट तो न य ह हआ करती है। इसका ुरह य कछ मेर समझ म न आता था। हाँु , मझ ेउस परु दया अव य आती थी, और आपने यवहार से म यह दखाना चाहता था क मेर ि ट म उसका आदर चपरा सय से कम नह ं। यहाँ तक क कई बार म उसके पीछे अ य कमचा रय से लड़ भी चका ह।ु ू ँ

    मे

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  • 11

    2

    क दन बड़ े बाब ने गर ब से अपनी मेज साफ करने को कहा। वह ूतर त मेज साफु करने लगा। दैवयोग से झाड़न का झटका लगा, तो

    दावात उलट गयी और रोशनाई मेज पर फैल गयी। बड़ ेबाब यह देखते ह ूजामे से बाहर हो गये। उसके कान पकड़कर खब ऐंठे और भारतवष क सभी ूच लत भाषाओं से दवचन चनु ु -चनकर उसे सनाने लगे। बेचारा गर ब आँख ु ु

    म आँस भरे चपू ु चाप म तवत खड़ा सनता थाू ु् , मानो उसने कोई ह या कर डाल हो। मझे बाब का जराु ू -सी बात पर इतना भयंकर रौ प धारण करना बरा मालम हआ। य द कसी दसरे चपरासी ने इससे भी बड़ा कोई अपराध ु ू ूुकया होता, तो भी उस पर इतना व - हार न होता। मने अं ेजी म कहा—बाब साहबू , आप यह अ याय कर रहे ह। उसने जान-बझकर तो रोशनाई ूगराया नह ं। इसका इतना कड़ा द ड अनौ च य क पराका ठा है। बाबजी ने न ता से कहाू —आप इसे जानते नह ं, बड़ा द ट है। ु ‘म तो उसक कोई द टता नह ं देखता।ु ’ ‘आप अभी उसे जानते नह ं, एक ह पाजी है। इसके घर दो हल क खेती होती है, हजार का लेन-देन करता है; कई भसे लगती ह। इ ह ं बात का इसे घम ड है।’ ‘घर क ऐसी दशा होती, तो आपके यहाँ चपरास गर य करता?’ ‘ व वास मा नए, बड़ा पोढ़ा आदमी है और बला का म खीचस।ू ’ ‘य द ऐसा ह हो, तो भी कोई अपराध नह ं है।’ ‘अजी, अभी आप इन बात को नह ं जानते। कछ दन और र हए तो ुआपको वयं मालम हो जाएगा क यह कतना कमीना आदमी हैू ?’ एक दसरे महाशय बोल उठेू —भाई साहब, इसके घर मन दधू-दह होता है, मन मटर, जवारु , चने होते ह, ले कन इसक कभी इतनी ह मत न हई ुक कभी थोड़ा-सा द तरवाल को भी दे दो। यहाँ इन चीज को तरसकर रह जाते ह। तो फर य न जी जले ? और यह सब कछ इसी नौकर के ुबदौलत हआ है। नह ं तो पहले इसके घर म भनी भाँग न थी। ु ू बड़ े बाब कछ सकचाकर बोलेू ु ु —यह कोई बात नह ं। उसक चीज है, कसी को दे या न दे; ले कन यह ब कल पश है। ु ु

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  • 12

    म कछु -कछ मम समझ गया। बोलाु —य द ऐसे त छ दय का आदमी ुहै, तो वा तव म पश ह है। म यह न जानता था। ु अब बड़ ेबाब भी खले। संकोच दर हआ। बोलेू ु ू ु —इन सौगात से कसी का उबार तो होता नह ं, केवल देने वाले क स दयता कट होती है। और आशा भी उसी से क जाती है, जो इस यो य होता है। िजसम साम य ह नह ं, उससे कोई आशा नह ं करता। नंगे से कोई या लेगा ? रह य खल गया। बड़ ेबाब ने सरल भाव से सार अव था दरशा द ु ूथी। सम के श सब होते हृ ु , छोटे ह नह ं, बड़ ेभी। हमार ससरालु या न नहाल द र हो, तो हम उससे आशा नह ं रखते ! कदा चत वह हम ्व मत हो जाती है। क त वे साम यवान होकर हम न पछृ ु ू् , हमारे यहाँ तीज और चौथ न भेज, तो हमारे कलेजे पर साँप लोटने लगता है। हम अपने नधन म के पास जायँ, तो उसके एक बीड़ ेपान से ह संत ट हो ुजाते ह; पर ऐसा कौन मन य हैु , जो अपने कसी धनी म के घर से बना जलपान के लौटाकर उसे मन म कोसने न लगे और सदा के लए उसका तर कार न करने लगे। सदामा क ण के घर से य द नराश लौटते तोु ृ , कदा चत वह उनके शशपाल और जरासंध से भी बड़े श होते् ु ु । यह मानव-वभाव है।

    तीन

    ई दन पीछे मने गर ब से पछाू — य जी, त हारे घर पर कछ खेतीु ु -बार होती है ? गर ब ने द न भाव से कहा—हाँ, सरकार, होती है। आपके दो गलाम हु ,

    वह करते ह ? ‘गाय-भस भी लगती ह?’ ‘हाँ, हजरु ू ; दो भस लगती ह, मदा ु गाय अभी गा भन नह ं है। हजरु ू , लोग के ह दया-धरम से पेट क रो टयाँ चल जाती ह।’ ‘द तर के बाब लोग क भी कभी कछ खा तर करते होू ु ?’ गर ब ने अ य त द नता से कहा—हजरु ू ; म सरकार लोग क या खा तर कर सकता ह। खेती म जौूँ , चना, म का, जवार के सवाय ु और या होता है। आप लोग राजा ह, यह मोट -झोट चीज कस मह से आपक भट ँु

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  • 13

    क । जी डरता हैँ , कह ं कोई डाँट न बैठे क इस टके के आदमी क इतनी मजाल। इसी के मारे बाबजीू , हयाव नह ं पड़ता। नह ं तो दधू-दह क कौन बसात थी। मह लायक बीड़ा तो होना चा हए। ुँ ‘भला एक दन कछ लाके दो तोु , देखो, लोग या कहते ह। शहर म यह चीज कहाँ मय सर होती ह। इन लोग का जी कभी-कभी मोट -झोट चीज पर चला करता है।’ ‘जो सरकार, कोई कछ कहे तोु ? कह ं कोई साहब से शकायत कर दे तो म कह ं का न रह।ँू ’ ‘इसका मेरा िज मा है, त ह कोु ई कछ न कहेगा। कोई कछ कहेगाु ु , तो म समझा दगा।ँ ू ’ ‘तो हजरु ू , आजकल तो मटर क फ सल है। चने के साग भी हो गये ह और को ह भी खड़ा हो गया है। इसके सवाय तो और कछ नह ं है।ू ु ’ ‘बस, तो यह चीज लाओ।’ ‘कछ उ टु -सीधी पड़,े तो हजर ह सभालगेु ू ँ !’ ‘हाँ जी, कह तो दया क म देख लगा।ँ ू ’ दसरे दन गर ब आया तो उसके साथ तीन टू -प ट यवक भी थे। दो ु ुके सर पर टोक रयाँ थीं, उसम मटर क फ नयाँ भर हई थीं। एक के सर ुपर मटका था, उसम ऊख का रस था। तीन ऊख का एक-एक ग र काँख म दबाये हए थे। गर ब आकर चपके से ु ु बरामदे के सामने पेड़ के नीचे खड़ा हो गया। द तर म आने का उसे साहस नह ं होता था, मानो कोई अपराधी व ृके नीचे खड़ा था क इतने म द तर के चपरा सय और अ य कमचा रय ने उसे घेर लया। कोई ऊख लेकर चसने लगाू , कई आदमी टाकर पर टट पड़ेू , लट मच गयी। इतने ू म बड़ ेबाब द तर म आ पहचे। यह कौतकब देखा तो ँू ुुउ च वर से बोले—यह या भीड़ लगा रखी है, अपना-अपना काम देखो। मने जाकर उनके कान म कहा—गर ब, अपने घर से यह सौगात लाया है। कछ आप ले ल िजएु , कछ इन लोग को बाँट द िजए। ु बड़ ेबाब ने क म ोध धारू ृ ण करके कहा— य गर ब, तम ये चीज ुयहाँ य लाये ? अभी ले जाओ, नह ं तो म साहब से रपट कर दगा। कोई ँ ूहम लोग को मलका समझ लया है। ू गर ब का रंग उड़ गया। थर-थर काँपने लगा। मह से एक श द भी न ुँनकला। मेर ओर अपराधी ने से ताकने लगा।

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  • 14

    मने उसक ओर से मा- ाथना क । बहत कहनेु -सनने पर बाब साहब ु ूराजी हए। सब चीज म से आधीु -आधी अपने घर भजवायी। आधी म अ य लोग के ह से लगाये गये। इस कार यह अ भनय समा त हआ।ु

    4

    ब द तर म गर ब का नाम होने लगा। उसे न य घड़ कयाँ न ुमलतीं; दन-भर दौड़ना न पड़ता। कमचा रय के यं य और अपने

    सहयो गय के कटवा य न सनने पड़ते। चपरासी लोग वयं उसका काम ु ुकर देते। उसके नाम म भी थोड़ा-सा प रवतन हआ। वह गर ब से गर बदास ुबना। वभाव म कछ तबद ल पैदा हई। द नता क जगह आ मगौरव का ु ुउ व हआ। त परता कु जगह आल य ने ल । वह अब भी कभी देर करके द तर आता, कभी-कभी बीमार का बहाना करके घर बैठ रहता। उसके सभी अपराध अब य थे। उसे अपनी त ठा का गर हाथ लग गया था। वह ुअब दसव-पाँचवे दन दधू, दह लाकर बड़ ेबाब क भट कया करता। देवता ूको संत ट करना सीख गु या। सरलता के बदले अब उसम काँइयाँपन आ गया। एक रोज बड़े बाब ने उसे सरकार फाम का पासल छड़ाने के लए ू ुटेशन भेजा। कई बड़-ेबड़ ेप लदें थे। ठेले पर आये। गर ब ने ठेलेवाल से ु

    बारह आने मजदर तय क थी। जब कागज द तर म गये तो उसने बड़े ूबाब से बारह ू आने पैसे ठेलेवाल को देने के लए वसल कये। ले कन द तर ूसे कछ दर जाकर उसक नीयत बदल । अपनी द तर माँगने लगा। ठेलेवाले ु ू ूराजी न हए। इस पर गर ब ने बगड़कर सब पैसे जेब म रख लये और ुधमकाकर बोला—अब एक फट कौड़ी भी न दगा। जाओ जहाँ फ रयाद करो। ू ूँदेख, या बना लेते हो। ठेलेवाले ने जब देखा क भट न देने से जमा ह गायब हई जाती है ुतो रो-धोकर चार आने पैसे देने पर राजी हए। गर ब ने अठ नी उसके हवाले ुक , बारह आने क रसीद लखाकर उसके अँगठे के नशान लगवाये और ूरसीद द तर म दा खल हो गयी। यह कतहल देखकर मु ू दंग रह गया। यह वह गर ब है, जो कई मह ने पहले सरलता और द नता क म त थाू , िजजसे कभी चपरा सय से भी अपने

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  • 15

    ह से क रकम माँगने का साहस न होता था, जो दसर को खलाना भी न ूजानता था, खाने का तो िज ह या। यह वभावांतर देखकर अ य त खेद हआ। इसका उ तरदाु य व कसके सर था ? मेरे सर, िजसने उसे च घड़पन और धतता का पहला पाठ पढ़ाया था। मेरे च त म न उठाू —इस काँइयाँपन से, जो दसर का गला दबाता हैू , वह भोलापन या बरा थाु , जो दसर का अ याय सह लेता था। वह अशभ महत थाू ु ु ू , जब मने उसे त ठा-ाि त का माग दखाया, य क वा तव म वह उसके पतन का भयंकर माग

    था। मने बा य त ठा पर उसक आ म- त ठा का ब लदान कर दया।

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  • 16

    दो स खयाँ

    1 लखनऊ 1-7-25

    यार बहन, जब से यहाँ आयी हँू, त हार याद सताती रहती है। काशु ! तम कछ ु ु

    दन के लए यहाँ चल आतीं, तो कतनी बहार रहती। म त ह अपने वनोद ुसे मलाती। या यह स भव नह ं है ? त हारे माताु - पता या त ह इतनी ुआजाद भी न दगे ? मझ ेतो आ चय यह है क बे ड़याँ पहनकर तम कैसे ु ुरह सकती हो! म तो इस तरह घ टे-भर भी नह ं रह सकती। ई वर को ध यवाद देती ह क मेरे पताजी परानी लक र पीटने वाल म नह ं। वह उन ूँ ुनवीन आदश के भ त ह, िज ह ने नार -जीवन को वग बना दया है। नह ं तो म कह ं क न रहती। वनोद हाल ह म इं लड से डी0 फल0 होकर लौटे ह और जीवन-या ा आर भ करने के पहले एक बार संसार-या ा करना चाहते ह। योरप का अ धकांश भाग तो वह देख चके हु , पर अमे रका, आ े लया और ए शया क सैर कये बना उ ह चैन नह ं। म य ए शया और चीन का तो यह वशेष प से अ ययन करना चाहते ह। योरो पयन या ी िजन बात क मीमांसा न

    कर सके, उ ह ं पर काश डालना इनका येय है। सच कहती हँू, च दा, ऐसा साहसी, ऐसा नभ क, ऐसा आदशवाद प ष मने कभी नह ं देखा था। म तो ुउनक बात सनकर च कत हो जाती ह। ऐसा कोई वषय नह ं हैँु ू , िजसका उ ह परा ान न होू , िजसक वह आलोचना न कर सकते हो; और यह केवल कताबी आलोचना नह ं होती, उसम मौ लकता और नवीनता होती है। वव ता के तो वह अन य उपासक ह। ऐसे प ष क प नी बनकर ऐसी ु

    कौन-सी ी है, जो अपने सौभा य पर गव न करे। बहन, तमसे या कह ु ू ँक ात:काल उ ह अपने बगले क ओर आते देखकर मेरे च त कँ या दशा हो जाती है। यह उन पर योछावर होने के लए वकल हो जाता है। यह मेर आ मा म बस गये ह। अपने प ष क मने मन म जो क पना क ुथी, उसम और उनम बाल बराबर भी अ तर नह ं। मझ ेरातु - दन यह भय

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  • 17

    लगा रहता है क कह ं मझम उ ह कोई ट न मल जाु ु य। िजन वषय से उ ह च है, उनका अ ययन आधी रात तक बैठ कया करती ह। ऐसा ूँप र म मने कभी न कया था। आईने-कंघी से मझे कभी उतना ेम न थाु , सभा षत को मने कभी इतने चाव से क ठ न कया था। अगर इतना सब ुकछ करने पर भी म उनका दय न पा सकु , तो बहन, मेरा जीवन न ट हो जायेगा, मेरा दय फट जायेगा और संसार मेरे लए सना हो जायेगा। ू कदा चत ेम के साथ ह मन म ई या का भाव भी उदय हो जाता है। ्उ ह मेरे बगले क ओर जाते हए देख जब मेर पड़ो सन कसम अपने ँ ु ु ुबरामदे म आकर खड़ी हो जाती है, तो मेरा ऐसा जी चाहता है क उसक आँख यो तह न हो जाय। कल तो अनथ ह हो गया। वनोद ने उसे देखते ँह हैट उतार ल और म कराए। वह कलटा भी खीस नकालने लगी। ई वर ु ुसार वपि तयाँ दे, पर म या भमान न दे। चड़ैल कु -सी तो आपक सरत ूहै, पर अपने को अ सरा समझती ह। आप क वता करती ह और कई प काओं म उनक क वताएँ छप भी गई ह। बस, आप जमीन पर पाँव नह ं रखतीं। सच कहती हँू, थोड़ी देर के लए वनोद पर से मेर ा उठ गयी। ऐसा आवेश होता था क चलकर कसम का मह नोच ल। खै रयत हई क ु ु ु ूँ ँ ुदोन म बातचलत न हईु , पर वनोद आकर बैठे तो आध घ टे तक म उनसे न बोल सक , जैसे उनके श द म वह जाद ह न थाू , वाणी म वह रस ह न था। तब से अब तक मेरे च त क य ता शा त नह ं हई। रातु -भर मझे ुनींद नह ं आयी, वह य आँख के सामने बार-बार आता था। कसम को ु ुलि जत करने के लए कतने मसबे बाँध चक ह। अगर यह भय न होता ू ु ू ँक वनोद मझे ओछ और हलक समझगेु , तो म उनसे अपने मनोभाव को प ट कह देती। म स पणतू : उनक होकर उ ह स पणतू : अपना बनाना

    चाहती ह। मझ े व वास है क संसार का सबसे पवान यवक मेरे सामने ूँ ्ु ुआ जाय, तो म उसे आँख उठाकर न देखगी। वनोद के मन म मेरे त यह ूँभाव य नह ं है।

    च दा, यार बहन; एक स ताह के लए आ जा। तझसे मलने के लए ुमन अधीर हो रहा है। मझ ेइस समय तेर सलाह और सहानभ त क बड़ी ु ु ूज रत है। यह मेरे जीवन का सबसे नाजक समय है। इ ह ं दसु -पाँच दन म या तो पारस हो जाऊँगी या म ी। लो सात बज गए और अभी बाल तक नह ं बनाये। वनोद के आने का समय है। अब वदा होती ह। कह ं आज ूँ

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  • 18

    फर अभा गनी कसम अपने बरामदे म न आ खड़ी हो। अभी से दल काँप ु ुरहा है। कल तो यह सोचकर मन को समझाया था क य ह सरल भाव से वह हस पड़ी होगी। आज भी अगर वह य सामने आयाँ , तो उतनी आसानी से मन को न समझा सकगी। ूँ

    त हारु , प ा

    2

    गोरखपरु 5-7-25

    य प ा, भला एक यग के बाद त ह मेर स ध तो आई। मने तो समझा थाु ु ु , शायद तमने परलोकु -या ा कर ल । यह उस न ठरता का दंड ह हैु , जो कसम त ह दे रह है। ु ु ु 15 ए ल को कालेज ब द हआ और एक जलाई को ु ुआप खत लखती ह—परे ढाई मह ने बादू , वह भी कसम क कपा से। िजस ु ु ृकसम को तम कोस रह होु ु ु , उसे म आशीवाद दे रह ह। वह दा ण दँू :ुख क भाँ त त हारे रा ते म न आ खड़ी होतीु , तो त हु य मेर याद आती ? खैर, वनोद क तमने जो तसवीर खींचीु , वह बहत ह आकषक है और म ुई वर से मना रह हँू, वह दन ज द आए क म उनसे बहनोई के नाते मल सक। मगर देखनाूँ , कह ं स वल मैरेज न कर बैठना। ववाह ह द-ूप त के अनसार ह हो। हॉु , त ह अि यु र है जो सैकड़ बेहदा और यथ के कपड़ ेहू , उ ह नकाल डालो। एक स चे, व वान पि डत को अव य बलानाु , इस लए नह ं क वह तमसे बातु -बात पर टके नकलवाये, बि क इस लए क वह देखता रहे क वह सब कछ शाु - व ध से हो रहा है, या नह ं। अ छा, अब मझसे पछोु ू क इतने दन य च पी साधे बैठ रह । ुमेरे ह खानदान म इन ढाई मह न म, पाँच शा दयॉ हई। बारात का ताँता ुलगा रहा। ऐसा शायद ह कोई दन गया हो क एक सौ महमान से कम रहे ह और जब बारात आ जाती थी, तब तो उनक सं या पाँच-पाँच सौ तक पहच जाती थी। येु ँ पाँच लड़ कयाँ मझसे छोट ह और मेरा बस चलता तो ुअभी तीन-चार साल तक न बोलती, ले कन मेर सनता कौन है और वचार ु

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  • 19

    करने पर मझ े भी ऐसा मालम होता है क माताु ू - पता का लड़ कय के ववाह के लए ज द करना कछ अन चत नह ं है। िज दगी का कोई ु ुठकाना नह ं। अगर माता- पता अकाल मर जायँ, तो लड़क का ववाह कौन करे। भाइय का या भरोसा। अगर पता ने काफ दौलत छोड़ी है तो कोई बात नह ं; ले कन जैसा साधारणत: होता है, पता ऋण का भार छोड़ गये, तो बहन भाइय पर भार हो जाती है। यह भी अ य कतने ह ह द-ूर म क भाँ त आ थक सम या है, और जब तक हमार आ थक दशा न सधरेगीु , यह र म भी न मटेगी। अब मेरे ब लदान क बार है। आज के पं हव दन यह घर मेरे लए वदेश हो जायगा। दो-चार मह ने के लए आऊँगी, तो मेहमान क तरह। मेरे वनोद बनारसी ह, अभी कानन पढ़ रहे ह। उनके पता नामी वक लू ह। सनती हु ू ँ, कई गाँव ह, कई मकान ह, अ छ मयादा है। मने अभी तक वर को नह ं देखा। पताजी ने मझसे पछवाया था क इ छा होु ु , तो वर को बला द। ु ूँपर मने कह दया, कोई ज रत नह ं। कौन घर म बह बने। है तकद र ह का ूसौदा। न पताजी ह कसी के मन म पैठ सकते ह, न म ह । अगर दो-एक बार देख ह लेती, नह ं मलाकात ह कर लेती तो या हम दोन एकु -दसरे ूको परख लेते ? यह कसी तरह संभव नह ं। यादा-से- यादा हम एक-दसरे ूका रंग- प देख सकते ह। इस वषय म मझ े व वास है क पताजी मझसे ु ुकम संयत नह ं ह। मेरे दोन बड़ ेबहनोई स दय के पतले न ह पर कोई ुरमणी उनसे घणा नह ं कर सकती। मेर बहन उनके साथ आन द से जीवन ृबता रह ह। फर पताजी मेरे ह साथ य अ याय करगे। यह म मानती ह क हमारे समाज म कछ लोग का वैवा हक जीवन सखकर नह ं हैू ँ ु ु , ले कन संसार म ऐसा कौन समाज है, िजसम दखी प रवार न ह । और फर हमेशा ुप ष ह का दोष तो नह ं होताु , बहधा ि यॉ ह वष का गाँठ होती ह। म ुतो ववाह को सेवा और याग का त समझती ह और इसी भाव से उसका ूँअ भवादन करती ह। हाँू ँ , म त ह वनोद से छ नना तो नह ंु चाहती ले कन अगर 20 जलाई तक तम दो दन के लए आ सकोु ु , तो मझ े िजला लो। ुय - य इस त का दन नकट आ रहा है, मझ ेएक अ ात शंका हो रह ु

    है; मगर तम खद बीमार होु ु , मेर दवा या करोगी—ज र आना बहन ! त हारु , च दा

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  • 20

    3

    मंसरू

    5-8-25 यार च दा, सकड़ बात लखनी ह, कस म से श कु ँ , समझ म नह ं आता। सबसे पहले त हारे ववाह के शभ अवसर पर न पहच सकने के लए मा ु ु ु ँचाहती ह। म आने का न चय कर चक थीू ँ ु , म और यार चंदा के वयंवर म न जाऊँ: मगर उसके ठ क तीन दन पहले वनोद ने अपना आ मसमपण करके मझे ऐसा म ध कर दया क फर मझे कसी क स ध न रह । आहु ु ु ु ! वे ेम के अ त तल से नकले हए उ णु , आवेशमय और कं पत श द अभी तक कान म गज रहे ह। म खड़ी थीँू , और वनोद मेरे सामने घटने टेके हए ु ुेरणा, वनय और आ ह के पतले बने बैठे थे। ऐसाु अवसर जीवन म एक

    ह बार आता है, केवल एक बार, मगर उसक मधर म त कसी वगु ृ -संगीत क भाँती जीवन के तार-तार म या त रहता है। तम उस आन द का ुअनभव कर सकोगीु —म रोने लगी, कह नह ं सकती, मन म या- या भाव आये; पर मेर आँख से आँसओं क धारा बहने लगीु । कदा चत यह आन द ्क चरम सीमा है। म कछु -कछ नराश हो चल थी। तीनु -चार दन से वनोद को आते-जाते कसम से बात करते देखती थीु ु , कसम नत नए ु ुआभषण से सजी रहती थी और या कहू ू ँ, एक दन वनोद ने कसम क ु ुएक क वता मझ ेसनायी और एकु ु -एक श द पर सर धनते रहे।ु म मा ननी तो ह हूँ ; सोचा,जब यह उस चड़ैल पर ल हो रहे हु ू , तो मझे या गरज पड़ी ुहै क इनके लए अपना सर खपाऊँ। दसरे दन वह सबेरे आयेू , तो मने कहला दया, तबीयत अ छ नह ं है। जब उ ह ने मझसे मलने के लए ुआ ह कया, तब ववश होकर मझ ेकमरे म आनाु पड़ा। मन म न चय करके आयी थी—साफ कह दंगी अब आप न आया क िजए। म आपके यो य ूनह ं हँू, म क व नह ं, वदषी नह ंु , सभा षणी नह ंु ....एक पर पीच मन म ूउमड़ रह थी, पर कमरे म आई और वनोद के सत ण ने देखेृ , बल उ कंठा म काँपते हए ह ठु —बहन, उस आवेश का च ण नह ं कर सकती।

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  • 21

    वनोद ने मझ ेबैठने भी न दया। मेरे सामने घटन के बल फश पर बैठ ु ुगये और उनके आतर उ म त श द मेरे दय को तरं गत करने लगे। ु एक स ताह तैया रय म कट गया। पापा ओर मामा फले न समाते ूथे।

    और सबसे स न थी कसम ु ु ! यह कसमु ु िजसक सरत से मझ ेघणा ू ु ृथी ! अब मझ े ात हआ क मने उस पर स देह करके उसके साथ घोर ु ुअ याय कया। उसका दय न कपट है, उसम न ई या है, न त णाृ , सेवा ह उसके जीवन का मलत व है। म नह ं समझती क उसके बना ये सात दन ूकैसे कटते। म कछ खोईु -खोई सी जान पड़ती थी। कसम पर मने अपना ु ुसारा भार छोड़ दया था। आभषण के चनाव और सजावू ु , व के रंग और काट-छाँट के वषय म उसक स च वल ण है। आठव दन जब उसने ुमझ ेदल हन बनायाु ु , तो म अपना प देखकर च कत रह गई। मने अपने को कभी ऐसी स दर न समझा थाु । गव से मेर आँख म नशा-सा छा गया। उसी दन सं या-समय वनोद और म दो भ न जल-धाराओं क भाँ त संगम पर मलकर अ भ न हो गये। वहार-या ा क तैयार पहले ह से हो चक थीु , ात:काल हम मंसर के लए रवाना हो गये। कसम हम पहचाने के ू ुु ँुलए टेशन तक आई और वदा होते समय बहत रोयी। उसे साथ ले चलना ुचाहती थी, पर न जाने य वह राजी न हई। ु मंसर रमणीक हैू , इसम स देह नह ं। यामवण मेघ-मालाएँ पहा ड़य पर व ाम कर रह ह, शीतल पवन आशा-तरंग क भाँ त च त का रंजन कर रहा है, पर मझे ऐसा व वास है ु क वनोद के साथ म कसी नजन वन म भी इतने ह सख से रहती। उ ह पाकर अब मझ े कसी व त क ु ु ुलालसा नह ं। बहन, तम इस आन दमय जीवन क शायद क पना भी न कर ुसकोगी। सबह हईु ु , ना ता आया, हम दोन ने ना ता कया; डाँडी तैयार है, नौ बजते-बजते सैर करने नकल गए। कसी जल- पात के कनारे जा बैठे। वहाँ जल- वाह का मधर संगीत सन रहे ह। या कसी शलाु ु -खंड पर बैठे मेघ क योम- ड़ा देख रहे ह। यारह बजते-बजते लौटै। भोजन कया। म यानो पर जा बैठ । वनोद को संगीत से ेम है। खद बहत अ छा गाते ह और म ु ुगाने लगती हँू, तब तो वह झमने ह लगते ह। तीसरे पहर हम एक घंटे के ूलए व ाम करके खेलने या कोई खेल देखने चले जाते ह। रात को भोजन

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  • 22

    करने के बाद थयेटर देखते ह और वहाँ से लौट कर शयन करते ह। न सास क घड़ कयाँ ह न ननद क कानाफसीु ू , न जेठा नय के ताने। पर इस सख ुम भी मझ ेकभीु -कभी एक शंका-सी होती है—फल म कोई काँटा तो नह ं ूछपा हआ हैु , काश के पीछे कह ं अ धकार तो नह ं है ! मेर समझ म नह ं आता, ऐसी शंका य होती है। अरे, यह लो पाँच बज गए, वनोद तैयार ह, आज टे नस का मैच देखने जाना है। म भी ज द से तैयार हो जाऊँ। शषे बात फर लखगी। ूँ हाँ, एक बात तो भल ह जा रह थी। अपने ववाह का समाचार ूलखना। प तदेव कैसे ह ? रंग- प कैसा है ? ससराल गयीु , या अभी मैके ह म हो ? ससराल गयींु , तो वहाँ के अनभव अव य लखना। त हार खब ु ु ूनमाइश हई होगी।ु ु घर, कट ब और मह ले क म हलाओं ने घघट उठाु ु ु ूँ -उठाकर खब मह देखा होगाू ुँ , खब पर ा हई होगी। ये सभी बात व तार से ू ुलखना। देख कब फर मलाकात होती है। ु

    त हारु , प ा

    3

    गोरखपरु 1-9-25

    यार प ा, त हारा प पढ़कर च त को बड़ी शां त मल । ु त हारे न आने ह से ुम समझ गई थी क वनोद बाब त ह हर ले गएू ु , मगर यह न समझी थी क तम मंसर पहच गयी। अब उस आमोदु ू ु ँ - मोद म भला गर ब च दा य याद आने लगी। अब मेर समझ म आ रहा है क ववाह के लए नए और पराने आदश म या अ तर है। तमने अपनी पु ु स द से काम लया, सखी ुहो। म लोक-लाज क दासी बनी रह , नसीब को रो रह ह। ूँ अ छा, अब मेर बीती सनो। दानु -दहेज के टंटे से तो मझ े कछ ु ुमतलब है नह ं। पताजी ने बड़ा ह उदार- दय पाया है। खब दल खोलकर ूदया होगा। मगर वार पर बारात आते ह मेर अि न-पर ा श हो गयी। ुकतनी उ क ठा थी—वह-दशन क , पर देख कैसे। कल क नाक न कट ूँ ु

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  • 23

    जाएगी। वार पर बारात आयी। सारा जमाना वर को घेरे हए था। मने ुसोचा—छत पर से देख। छत पर गयीूँ , पर वहाँ से भी कछ न दखाई दया। ुहाँ, इस अपराध के लए अ माँजी क घड़ कयाँ सननी पड़ींु ु । मेर जो बात इन लोग को अ छ नह ं लगती, उसका दोष मेर श ा के माथे मढ़ा जाता है। पताजी बेचारे मेरे साथ बड़ी सहानभ त रखते ह। मगर कसु ू - कस का मह पकड़। वारचार तो य गजरा और भाँवर क तैया रयाँ होने लगी। ु ुँजनवासे से गहन और कपड़ का थाल आया। बहन ! सारा घर— ी-प षु —सब उस पर कछ इस तरह टटेु ू , मानो इन लोग ने कभी कछ देखा ह नह ं। ुकोई कहता है, कंठा तो लाये ह नह ं; कोई हार के नाम को रोता है! अ माँजी तो सचमच रोने लगीु , मानो म डबा द गयी। वरु -प वाल क दल खोलकर नदंा होने लगी। मगर मने गहन क तरफ आँख उठाकर भी नह ं देखा। हाँ, जब कोई वर के वषय म कोई बात करता था, तो म त मय होकर सनने ुलगती था। मालम हआू ु —दबलेु -पतले आदमी ह। रंग साँवला है, आँख बड़ी-बड़ी ह, हसमख ह। इन सचनाओं से दशन कंठा और भी बल होती थी। ँ ु ूभाँवर का मुहत यू - य समीप आता था, मेरा च त य होता जाता था। अब तक य य प मने उनक झलक भी न देखी थी, पर मझ ेउनके त एक ुअभतपव ेम का अनभव हो रहा था। इस व त य द मझ ेमालम हो जाता ू ू ु ु ूक उनके द मन को कछ हो गया हैु ु , तो म बावल हो जाती। अभी तक मेरा उनसे सा ात नह ं हआ ह् ु , मने उनक बोल तक नह ं सनी हैु , ले कन संसार का सबसे पवान प ष भी् ु , मेरे च त को आक षत नह ं कर सकता। अब वह मेरे सव व ह। आधी रात के बाद भाँवर ह । सामने हवनु -क ड थाु , दोन ओर व गण बैठे हए थेु , द पक जल रहा था, कल देवता क म त रखी हई थीं। ु ू ुवेद मं का पाठ हो रहा था। उस समय मझे ऐसा मालम हआ क सचमच ु ू ुुदेवता वराजमान ह। अि न, वायु, द पक, न सभी मझे उस समय देव व ुक यो त से द त जान पड़ते थे। मझ ेपहल बार आ याि मक वकास ुका प रचय मला। मने जब अि न के सामने म तक झकायाु , तो यह कोर र म क पाबंद न थी, म अि नदेव को अपने स मख म तवान ्ु ू , वग य आभा से तेजोमय देख रह थी। आ खर भाँवर भी समा त हो गई; पर प तदेव के दशन न हए। ु

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  • 24

    अब अि तम आशा यह थी क ात:काल जब प तदेव कलेवा के लए बलाये जायगेु ँ , उस समय देखगी। तब उनके सर पर मौर न होगाूँ , स खय के साथ म भी जा बैठगी और खब जी भरकर देखगी। पर या मालम था क ँू ू ू ूँव ध कछ और ह कच रच रहा है। ातु ु :काल देखती हँू, तो जनवासे के खेमे उखड़ रहे ह। बात कछ न थी। बारा तय के ना तेु के लए जो सामान भेजा गया था, वह काफ न था। शायद घी भी खराब था। मेरे पताजी को तम जानती ह हो। कभी कसी से दबे नह ंु , जहाँ रहे शेर बनकर रहे। बोले—जाते ह, तो जाने दो, मनाने क कोई ज रत नह ं; क याप का धम है बारा तय का स कार करना, ले कन स कार का यह अथ नह ं क धमक और रोब से काम लया जाय, मानो कसी अफसर का पड़ाव हो। अगर वह अपने लड़के क शाद कर सकते ह, तो म भी अपनी लड़क क शाद कर सकता ह।ूँ बारात चल गई और म प त के दशन न कर सक ! सारे शहर म हलचल मच गई। वरो धय को हसने का अवसर मँ ला। पताजी ने बहत ुसामान जमा कया था। वह सब खराब हो गया। घर म िजसे दे खए, मेर ससराल क नदंा कर रहा हैु —उज ड ह, लोभी ह, बदमाश ह, मझे जरा भी ुबरा नह ं लगता। ले कन प त के व म एक श द भी नह ं सनना चाहती। ु ुएक दन अ माँजी बोल —लड़का भी बेसमझ है। दध पीता ब चा नह ंू , कानन पढ़ता हैू , मछूँ -दाढ़ आ गई है, उसे अपने बाप को समझाना चा हए था क आप लोग या कर रहे ह। मगर वह भी भीगी ब ल बना रहा। म सनकर तल मला उठ । कछ बोल तो नह ंु ु , पर अ माँजी को मालम ज र हो ूगया क इस वषय म म उनसे सहमत नह ं। म त ह ं से पछती ह बहनँु ू ू , जैसी सम या उठ खड़ी हई थीु , उसम उनका या धम था ? अगर वह अपने पता और अ य स बि धय का कहना न मानते, तो उनका अपमान न होता

    ? उस व त उ ह ने वह कया, जो उ चत था। मगर मझ े व वास है क जरा ुमामला ठंडा होने पर वह आयगे। म अभी से उनक राह देखने लगी ह। ँूडा कया च याँ लाता है, तो दल म धड़कन होने लगती ह—शायद उनका प भी हो ! जी म बार-बार आता है, य न म ह एक खत लखँू; मगर संकोच म पड़कर रह जाती ह। शायद म कभी न लख सकगी। मान नह ं है ँ ँू ूकेवल संकोच है। पर हाँ, अगर दस-पाँच दन और उनका प न आया, या वह खद न आएु , तो संकोच मान का प धारण कर लेगा। या तम उ ह ु

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  • 25

    एक च ी नह ं लख सकती ! सब खेल बन जाय। या मेर इतनी खा तर भी न करोगी ? मगर ई वर के लए उस खत म कह ं यह न लख देना क चंदा ने ेरणा क है। मा करना ऐसी भ ी गलती क , त हार ओर से शंका ुकरके म त हारे साथ अ याय कर रह हँु ू , मगर म समझदार थी ह कब ?

    त हारु ,

    च दा

    5 मंसर ू

    20-9-25 यार च दा, मने त हारा खत पाने के दसरे ह दन काशी खत लख दया था। ु ूउसका जवाब भी मल गया। शायद बाबजी ने त ह खत लखा हो। कछ ू ु ुपराने खयाल के आदमी ह। मेर तो उनसे एक दन भी न नभती। हाँु , तमसे नभ जायगी। य द मेरे प त ने मेरे साथ यह बताव कया होताु —अकारण मझसे ठे होतेु —तो म िज दगी-भर उनक सरत न देखती। अगर ूकभी आते भी, तो क त क तरह ु द कार देती। प ष पर सबसे बड़ा अ धकार ु ुउसक ी का है। माता- पता को खश रखने के लए वह ी का तर कार ुनह ं कर सकता। त हारे ससरालवाल ने बड़ा घ णत यवहार कया। पराने ु ु ुृखयालवाल का गजब का कलेजा है, जो ऐसी बात सहते ह। देखा उस था का फल, िजसक तार फ करते त हार जबान नह ं थकती। वह द वार सड़ ुगई। ट पटाप करने से काम न चलेगा। उसक जगह नये सरे से द वार बनाने क ज रत है। अ छा, अब कछ मेर भी कथा सन लो। मझ ेऐसा संदेह हो रहा है ु ु ुक वनोद ने मेरे साथ दगा क है। इनक आ थक दशा वैसी नह ं, जैसी मने समझी थी। केवल मझ ेठगने के लए इ ह ने सारा वाँग भरा था। मोटर ुमाँगे क थी, बगले का कराया अभी तक नह ं दया गयाँ , फर नचर कराये के थे। यह सच है क इ ह ने य प से मझे धोखा नह ं दया। कभी ुअपनी दौलत क डींग नह ं मार , ले कन ऐसा रहन-सहन बना लेना, िजससे दसर को अनमान हो क यह कोई बड़ ेधनी आदमी हू ु , एक कार का धोखा

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  • 26

    ह है। यह वाँग इसी लए भरा गया था क कोई शकार फस जाय। अब ँदेखती ह क वनोद मझसे अपनी असल हालत को छपाने का य न ूँ ुकया करते ह। अपने खत मझे नह ं देखने देतेु , कोई मलने आता है, तो च क पड़ते ह और घबरायी हई आवाज म बेरा से पछते हु ू , कौन है ? तम ुजानती हो, म धन क ल डी नह ं। म केवल वश दय चाहती ह। िजसम ँु ूप षाथ हैु , तभा है, वह आज नह ं तो कल अव य ह धनवान होकर रहेगा। ्म इस कपट-ल ला से जलती ह। अगरूँ वनोद मझसे अपनी क ठनाइयाँ कह ुद, तो म उनके साथ सहानभ त क गीँु ू , उन क ठनाइय को दर करने म ूउनक मदद क गी। य मझसे परदा करके यह मेर सहानभती और सहयोग ँ ु ु ूह से हाथ नह ं धोते, मेरे मन म अ व वास, वेष और ोभ का बीज बोते ह। यह चतंा मझे मारेु डालती ह। अगर इ ह ने अपनी दशा साफ-साफ बता द होती, तो म यहाँ मंसर आती ह य ू ? लखनऊ म ऐसी गरमी नह ं पड़ती क आदमी पागल �