Shri Guru Amar Das Ji Guru Gaddi Milna - 023a

Post on 13-Apr-2017

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Transcript of Shri Guru Amar Das Ji Guru Gaddi Milna - 023a

श्री गुरु अंगद देव जी के पास आकर जब कुछ दिदन बीत गए तो आप ने भाई बुड्डा जी से आज्ञा लेकर और सिसक्खों की तरह गुरुघर की सेवा में लग गए| आप सुबह उठकर गुरु जी के सिलए जल की गागरे लाकर स्नान कराते| फि-र कपड़े धोकर एकांत में बैठकर गुरु जी का ध्यान करते| स्मरण से उठकर लंगर के सिलए पानी लाते| फि-र वहाँ झाडू देते और बत8न सा- करते| आप सेवा में इतने तल्लीन रहते फिक आपको खाने पीने व पहनने की लालसा ही न रही| रात-दिदन आप अनथक सेवा के कारण शरीर कमजोर हो गया| पहनने वाले कपडे़ भी -टे पुराने से रहते थे|

श्री गुरु अंगद देव जी आपकी सेवा से बहुत खुश हुए|

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उन्होंने खुश होकर आपको एक अंगोछा दिदया| आपने गुरु जी का इसे प्रसाद समझकर अपने सिसर पर बांध सिलया| आप तन करके गुरु जी की सेवा करते और मन करके गुरु जी का ध्यान करते| गुरु जी आपकी सेवा पर खुश होते रहे और हर साल अंगोछा बक्शते रहे और आप पहले की तरह सिसर पर बांधते रहे| इस प्रकार जब ग्यारह साल बीत गए तो इन अंगोछो का बोझ सा बन गया| आपजी का शरीर पतला और छोटे कद का था जो वृद्ध अवस्था के कारण फिनब8ल हो चुका था|

एक दिदन अमरदास जी गुरु जी के स्नान के सिलए पानी की गागर सिसर पर उठाकर प्रातःकाल आ रहे थे फिक रास्त ेमें एक जुलाहे फिक खड्डी के खंूटे से आपको चोट लगी जिजससे आप खड्डी में फिगर गये|

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फिगरने फिक आवाज़ सुनकर जुलाहे ने जुलाही से पुछा फिक बाहर कौन है? जुलाही ने कहा इस समय और कौन हो सकता है, अमरू घरहीन ही होगा, जो रातदिदन समधिधयों का पानी ढ़ोता फि-रता है| जुलाही की यह बात सुनकर अमरदास जी ने कहा कमलीये! में घरहीन नहीं, मैं गुरु वाला हूँ| तू पागल है जो इस तरह कह रही हो|

उधर इनके वचनों से जुलाही पागलों की तरह बुख्लाने लगी| गुरु अंगद देव जी ने दोनों को अपने पास बुलाया और पूछा प्रातःकाल क्या बात हुई थी, सच सच बताना| जुलाहे ने सारी बात सच सच गुरु जी के आगे रख दी फिक अमरदास जी के वचन से ही मेरी पत्नी पागल हुई है| आप फिकरपा करके हमें क्षमा करें और इसे अरोग कर दे नही तो मेरा घर बबा8द हो जायेगा|

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जुलाहे की बात सुनकर गुरु जी ने कहा श्री अमर दास जी बेघरों के सिलए घर, फिनमाणिणयों का माण हैं| फिनओदिटओं की ओट हैं, फिनधरिरओं की धिधर हैं| फिनर आणिश्रतों का आश्रय हैं आदिद बारह वरदान देकर गुरु जी ने आपको अपने गले से लगा सिलया और वचन फिकया फिक आप मेरा ही रूप हो गये हो| इसके पश्चात गुरु अंगद देव जी ने अपनी कृपा दृधि[ से जुलाही की तर- देखा और उसे अरोग कर दिदया| इस प्रकार वे दोनों गुरु जी की उपमा गाते हुए घर की ओर चल दिदए|

इसके पश्चात गुरु जी ने आपके सिसर से ग्यारह सालों के ऊपर नीचे बंधे हुए अंगोछो की गठरी उतारकर और सिसक्खों को आज्ञा की फिक इनको अच्छी तरह से स्नान कराकर नए कपडे़ पहनाओ|

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आज से यह हमारा रूप ही हैं| हमारे बाद गुरु नानक देव जी की गद्दी पर यही सुशोणिभत होंगे|

गुरु जी ने अपना अन्तिन्तम समय जानकर संगत को प्रगट कर दिदया फिक अब अपना शरीर त्यागना चाहते हैं| आपके यह वचन सुनकर आस पास की संगत इक्कठी हो गई और खडूर साफिहब अन्तिन्तम दश8नों के सिलए पहुँच गई| श्री गुरु अंगद देव जी ने इसके पश्चात एक सेवादार को भेजकर श्री अमर दास जी को खडूर साफिहब बुला सिलया|

श्री अमर दास जी के आन ेपर गुरु जी ने सेवादारो को आज्ञा दी फिक इनक्को स्नान कराओ और नए वस्त्र पहनाकर हमरे पास ले आओ|

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हमारे दोनों सुपुत्रो और संगत को भी बुला लाओ| इस तरह जब दीवान सज गया तो गुरु जी ने श्री अमर दास जी को सम्बोधिधत करके कहा - हे प्यारे पुरुष श्री अमर दास जी! हमे अकालपुरुख का बुलावा आ गया है| हमने अपना शरीर त्याग कर बाबा जी के चरणों में जल्दी ही जा फिवराजना है| आपन ेगुरु नानक जी की चलाई हुई मया8दा को कायम रखना है| यह वचन कहकर आप जी ने चेत्र सुदी 4 संवत 1608 वाले दिदन पांच पैसे और नारिरयल श्री अमर दास जी के आगे रखकर माथा टेक दिदया और बाबा बुड्डा जी की आज्ञा अनुसार आप जी के मस्तक पर गुरुगद्दी का फितलक लगा दिदया| इसके पश्चात गुरु जी ने तीन परिरक्रमा की और श्री अमर दास जी को अपने सिसंघासन पर सुशोणिभत करके पहले अपने नमस्कार फिकया फि-र सब सिसक्खों और साफिहबजादो को भी ऐसा करने को कहा|

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अब यह मेरा रूप हैं| मेरे और इनमे कोई भेद नहीं है| गुरु जी का वचन मानकर सारी संगत ने माथा टेका परन्तु पुत्रों ने नहीं क्योंफिक वह अपने ही सवेक को माथा टेकना नहीं चाहते थे|

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